Cricket News: Latest Cricket News, Live Scores, Results, Upcoming match Schedules | Times of India

Sportstar - IPL

अनिद्रा (Insomnia) : Rajiv Dixit

 अनिद्रा

अनिद्रा में रोगी को पर्याप्त नींद आती। नींद की अवधि पूरी होने के पहले या बीच- बीच में नींद खुल जाती है। जिससे रोगी को आवश्यकतानुसार नींद नहीं हो पाती, विश्राम नहीं हो पाता और इसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ्य रहने क लिए पर्याप्त नींद लेना जरुरी होता है। लगातार नींद पूरी न होने से अन्य स्वस्थ्य संबंधी समस्याएं भी शुरू हो जाती हैं।
अनिद्रा (Insomnia) : Rajiv Dixit
अनिद्रा का कारण (Causes Of  Insomnia)
      यह बीमारी कई कारणों से होती है।इसमें रोगी को नींद नहीं आती। नींद आने पर जरा सी आहट से नींद खुल जाती है। इसलिए शरीर में थकान और आलस्य हमेशा रहता है।
#  अनिद्रा मानसिक अशांति के कारण होती है।
#  बहुत अधिक थकान रहने से ।
#  गलत ढंग से खाने पीने से।
#   कब्ज रहने से।
#  मानसिक तनाव और चिंता रहने से।
#  शरीर के किसी भी भाग के रोग ग्रस्त हो जाने से।
#  अत्यधिक धूम्रपान और मदिरापान करने से।
#  हर दिन सोने के समय में बदलाव से।
#  सोते समय तक मोबाइल, टीवी ,कंप्यूटर आदि का प्रयोग करते रहना।
#  दिन के समय सोना।
अनिद्रा (Insomnia) : Rajiv Dixit

अनिद्रा  के  लक्षण (Symptoms of Insomnia):

# ज्यादा देर तक जागना।
# रात सोने में परेशानी होना।
# दिन में थकान तथा आलस बने रहना।
# सोते में बार -बार उठना या नींद खुल जाना।
# सुबह उठने बाद तरोताज़ा महसूस न होना।

अनिद्रा के लिए घरेलू उपचार (Home Remedies For Insomnia):
अनिद्रा (Insomnia) : Rajiv Dixit

 इसके कुछ घरेलू उपचार निम्नलिखित हैं।
#  गाय का घी एक एक बूंद थोड़ा गर्म करके रात में सोते समय नाक में डाल दें, इसका अद्भुत लाभ है।
#   रात्रि में सोने से पूर्व अच्छे ढंग से गर्म पानी से हाथ पैर धो कर तलवों पर सरसों के तेल का मालिश करें।
#   सरसों के तेल में कपूर अथवा आंवले के तेल में कपूर मिलाकर सिर पर मालिश करने से भी अच्छी नींद आती है
#  दो चम्मच शहद और एक चम्मच प्याज का रस मिलाकर चाहते से लाभ होता है।
#  रात्रि भोजन के पश्चात पत्ता गोभी खाने से तथा सेब का मुरब्बा लेने से नींद अच्छी आती है।
#  पपीते की सब्जी या पका पपीता खाने से अनिद्रा का रोग कम होता जाता है।
#  मेहंदी के पत्तों को पीसकर तलवों में लगाने से अनिद्रा दूर होती है।
#  मेथी दाना दोनों हाथों के अंगूठे के नाखून के नीचे बांध ले और सो  जाऐं।
#  अपनी जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाएं, सोने और जागने का समय निर्धारित करें, जल्दी सोएं जल्दी जागें। #  नियमित योग व्यायाम करें।
#  सोने से पहले भारी भोजन न करें।
#  सोने से 1 -2 घंटे पहले मोबाइल, टीवी,कंप्यूटर बंद कर दें।

मैं एक पुरूष हूं

मैं एक पुरूष हूं

मैं एक पुरूष हूं
"इतना सब्र करना सीख जाओ कि, 
       अब कुछ बुरा भी हो तो बुरा ना लगे...❣️"

मैं पुरुष हूं

इसलिए कठोर हृदय हूं 

 मुझे कोमलता से क्या सरोकार 

आंसुओं को जब्त कर लेता हूं

पर आत्मा तो एक है 

वो कहां मानती है भेदभाव 

जन्मों से उसका आवागमन है 

कभी पुरुष तो कभी स्त्री का 

 वेश धारण किया है उसने 

पुरुष की कठोरता है उसमें 

तो स्त्री की कोमलता भी है 

मुझे (पुरुष) भी दर्द होता है 

स्त्री के प्रेम में पड़ा हुआ पुरूष 

चाहता है थोड़ा सा प्रेम 

उसके आंचल की छांव में 

आंसुओं से भीगना चाहता है

अपने कठोर हृदय के आवरण को उतारना चाहता है 

पिघलना चाहता है उसके प्रेम में 

थक कर उसकी गोद का आसरा खोजता है 

वह उससे कहना चाहता है 

हां मैं हूं एक.....

पिता पति पुत्र भाई और दोस्त ‌

पर एक कोमल हृदय आत्मा भी हूं 

मैं चाहता हूं स्पर्श तुम्हारे हाथों का 

मान अभिमान‌ कठोर होने का दिखावा 

सब उतार फेंकना चाहता हूं 

मैं चाहता हूं तुम्हारे प्रेम की तपिश 

थोड़ा सा तुम्हारे प्रेम में दुलार

दुनिया के मापदंडों से मैं थक गया हूं 

मैं खुलकर रोना चाहता हूं 

तुम अपने कोमल हाथों को 

मेरे सिर पर रखना 

और कहना कि मैं हुं 

अधिकार देना मुझे टूट कर बिखरने की 

आश्वासन और विश्वास देना 

समेट कर मुझे संबल प्रदान करोगी

हां मैं पुरुष हूं 

पर मैं एक कोमल हृदय भी हूं ।

गुलाम की सीख

 गुलाम की सीख

दास प्रथा के समय में एक मालिक के पास अनेकों गुलाम हुआ करते थे। उन्हीं में से एक था सुखराम। सभी गुलामों में सुखराम चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी। 

गुलाम की सीख

एक दिन इस बात की खबर उसके मालिक को लगी, मालिक ने सुखराम को बुलाया और कहा- सुना है कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ। अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी। अच्छा जाओ, एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा बढ़िया हो, उसे ले आओ।

सुखराम ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी। तब मालिक के कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया। सुखराम ने कहा - अगर शरीर में जीभ अच्छी हो तो सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता है।

मालिक ने आदेश देते हुए कहा - "अच्छा! इसे उठा ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो वो ले आओ।"

सुखराम बाहर गया और थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को वापस लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया। मालिक के फिर से कारण पूछने पर सुखराम ने कहा - "अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा ही बुरा है।"    उसने आगे कहते हुए कहा - "मालिक! वाणी तो सभी के पास जन्मजात होती है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है, क्या बोलें, कैसे शब्द बोलें, कब बोलें? इस एक कला को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है। कड़वी बातों ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये हैं। इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाये हैं। जीभ तीन इंच का वो हथियार है, जिससे कोई छः फिट के आदमी को भी मार सकता है तो कोई मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक सकता है। संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को ही मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और दुरूपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो सकता है। भारत के विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था।"

मालिक, सुखराम की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों से बहुत खुश हुए। आज उनके गुलाम ने उन्हें एक बहुत बड़ी सीख दी थी और अपने कहे अनुसार उन्होंने उसे आजाद कर दिया।


हमारी वाणी हमारे व्यत्कित्व का प्रतिबिम्ब है।

हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron

हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल 

सामान्य नाम:  गुलाबी बुरांस
स्थानीय नाम: गुलाबी बुरांस
वैज्ञानिक नाम: 'रोडोडेंड्रोन कैम्पानुलैटम'

गुलाबी बुरांस हिमाचल प्रदेश का राज्य फूल है। यह नेपाल का राष्ट्रीय फूल भी है। यह फूल ऊंचे तथा ठन्डे जलवायु वाले स्थान में पाया जाता है। इस बेल रोडोडेंड्रॉन, बेल फ्लावर रोडोडेंड्रॉन या बुरांश नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम “Rhododendron campanulatum.” है। पहले साधारण बुरांश हिमाचल प्रदेश का राज्य फूल था, जो व्यापक रूप से हिमालय रेंज में वितरित किया जाता है और रोडोडेंड्रॉन अर्बोरियम उत्तराखंड का एक राज्य वृक्ष है, इसलिए हिमाचल प्रदेश में इसे गुलाबी रोडोडेंड्रॉन में बदल दिया और इसे अपना राज्य फूल बना दिया।  यह बहुत ही सुन्दर फूल होता है। गुलाबी रोडोडेंड्रॉन IUCN (International Union for Conservation of Nature) की संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में है। 
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron
फूलों के पौधे की यह प्रजाति एक सदाबहार झाड़ी या एक छोटा पेड़ है जो 5 मीटर तक पहुंचता है। तने अच्छी तरह से शाखाबद्ध होते हैं, और पत्तियां अंडाकार से अण्डाकार होती हैं। गुलाबी रंग के सफेद फूल टर्मिनल कोरिंबोज रेसमी में व्यवस्थित होते हैं। यह प्रजाति भारत की मूल निवासी है और जम्मू और कश्मीर से सिक्किम तक भारतीय हिमालयी क्षेत्र में 2400 से 5200 मीटर की ऊंचाई पर व्यापक रूप से पाई जाती है।

हिमाचल प्रदेश के राज्य प्रतीक  

राज्य पशु – हिम तेंदुआ 
राज्य पक्षी –  पश्चिमी ट्रैगोपैन
राज्य वृक्ष – देवदार
राज्य पुष्प – गुलाबी बुरांस
राज्य की भाषा – हिन्दी (हिमाचल प्रदेश में कई भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से हिन्दी प्रमुख भाषा है:
हिन्दी, कांगड़ी, पहाड़ी, पंजाबी, मंडियाली, डोगरी, ब्रज भाषा, गढ़वाली, कुमाऊंणी, जगरण)
राज्य मछली – गोल्डन महसीर

भारतीय हिमालय श्रृंखला के साथ-साथ यह फूल तिब्बत में भी पाया जाता है। पूरी दुनिया में यह इसकी 900 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। गुलाबी बुरांस उनमें से एक है, इसकी अधिकांश प्रजातियां भारत-पाकिस्तान तिब्बत, भूटान, चीन और नेपाल के हिमालय पर्वतमाला में पाई जाती है। इसकी यह खासियत है कि यह इसकी सभी प्रजातियां चिकित्सकीय रूप से अत्यधिक समृद्ध हैं। लोग इस फूल का रस भी बनाते हैं। गुलाबी बुरांस के बेल में फूल में मई से नवंबर के बीच में आते हैं। 
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron
बुरांश के फूलों को सेहत के लिए बेहद चमत्कारी माना जाता है। पहाड़ों पर रहने वाले लोग इस फूल का इस्तेमाल सदियों से विभिन्न बीमारियों के इलाज में करते रहे हैं। लोग इसे पहाड़ों पर मिलने वाली संजीवनी बूटी कहते हैं। कई रिसर्च में भी बुरांश के फूलों के औषधीय गुणों पर मुहर लग चुकी है। यह बेहद खूबसूरत फूल सेहत के लिए प्रकृति का वरदान है। कई रिसर्च में इस फूल को सेहत के लिए रामबाण माना गया है। 

इस फूल का जूस, स्क्वैश, जैली, अचार और शहद बनाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। लोगों के लिए यह फूल प्रकृति का वरदान है। रिसर्चगेट की रिपोर्ट के अनुसार बुरांश के फूल में फाइटोकेमिकल प्रॉपर्टी होती हैं और इसका उपयोग बैक्टीरियल इंफेक्शन, सिरदर्द, डायरिया और फंगल इंफेक्शन के इलाज के रूप में किया जाता रहा है। 
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron

English Translate

State flower of Himachal Pradesh


Common name: Pink Rhododendron
Local name: Pink Rhododendron
Scientific name: 'Rhododendron campanulatum'
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron
Pink Rhododendron is the state flower of Himachal Pradesh. It is also the national flower of Nepal. This flower is found in high and cold climate areas. This vine is also known as rhododendron, bell flower rhododendron or buransh. Its scientific name is “Rhododendron campanulatum.” Earlier the common rhododendron was the state flower of Himachal Pradesh, which is widely distributed in the Himalayan range and Rhododendron arboreum is a state tree of Uttarakhand, so Himachal Pradesh changed it to pink rhododendron and made it its state flower. It is a very beautiful flower. Pink Rhododendron is in the list of endangered species of IUCN (International Union for Conservation of Nature).

This species of flowering plant is an evergreen shrub or a small tree that reaches up to 5 meters. The stems are well branched, and the leaves are ovate to elliptical. The pinkish white flowers are arranged in terminal corymbose racemes. The species is native to India and is widely found in the Indian Himalayan region from Jammu and Kashmir to Sikkim at an altitude of 2400 to 5200 m.

State Symbols of Himachal Pradesh

State Animal – Snow Leopard
State Bird – Western Tragopan
State Tree – Deodar
State Flower – Pink Rhododendron
State Language – Hindi (Many languages ​​are spoken in Himachal Pradesh, out of which Hindi is the major language: Hindi, Kangri, Pahari, Punjabi, Mandiali, Dogri, Braj Bhasha, Garhwali, Kumauni, Jagran)
State Fish – Golden Mahseer
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron
Along with the Indian Himalayan range, this flower is also found in Tibet. It has more than 900 species found all over the world. Pink rhododendron is one of them, most of its species are found in the Himalayan ranges of India-Pakistan Tibet, Bhutan, China and Nepal. Its specialty is that all its species are extremely rich in medicinal properties. People also make juice of this flower. The flowers of pink rhododendron vine come between May to November.

Rhododendron flowers are considered very miraculous for health. People living in the mountains have been using this flower for centuries in the treatment of various diseases. People call it Sanjeevani Booti found in the mountains. The medicinal properties of rhododendron flowers have also been confirmed in many researches. This very beautiful flower is a boon of nature for health. In many researches, this flower has been considered a panacea for health.
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron
This flower is also used to make juice, squash, jelly, pickles and honey. This flower is a boon of nature for people. According to ResearchGate, rhododendron flowers have phytochemical properties and have been used to treat bacterial infections, headache, diarrhea, and fungal infections.

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ...मोटर के छींटे

मानसरोवर-2 ...मोटर के छींटे

मोटर के छींटे- मुंशी प्रेमचंद | Motar ke Chhite by Munshi Premchand

क्या नाम कि प्रातःकाल स्थान-पूजा से निपट, तिलक लगा, पीताम्बर पहन, खड़ाऊँ पाँव में डाल, बगल में पत्रा दबा, हाथ में मोटा-सा शत्रु-मरतक-भंजन ले एक जजमान के घर चला। विवाह ती साइत विचारनी थी। कम-से-कम एक कलदार का डौल था। और मेरा जलपान मामूली जलपान नहीं हैं। बाबूओं को तो मुझे निमंत्रित करने की हिम्मत ही नहीं पड़ती। उनका महीने-भर का नाश्ता मेरा एक दिन का जलपान हैं। इस विषय में तो हम अपने सेठो-साहूकरों के कायल हैं ऐसा खिलाते हैं ऐसा खिलाते हैं और इतने खुले मन से कि चोला आनन्दित हो उठता हैं। जजमान का दिल देखकर ही मैं उनका निमन्त्रण स्वीकार करता हूँ। खिलाते समय किसी ने रोनी सूरत बनायी और मेरी क्षुधा गायब हुई। रोकर किसी ने खिलाया तो क्या? ऐसा भोजन कम-से-कम मुझे तो नहीं पचता। जजमान ऐसा चाहिए कि ललकारता जाय – लो शास्त्री जी, एक बालूशाही और मैं कहता जाऊँ – नहीं जजमान अब नहीं!
मोटर के छींटे- मुंशी प्रेमचंद | Motar ke Chhite by Munshi Premchand


रात खूब बर्षा हुई थी, सड़क पर जगह-जगह पानी जमा था। मैं अपने विचारों में मगन चला जाता था कि एक मोटर छप-छप करती हुई निकल गयी। मुँह पर छींटे पड़े। जो देखता हूँ, तो धोती पर मानो किसी ने कीचड़ घोलकर डाल दिया हो। कपड़े भ्रष्ट हुए, वह अलग, देह भ्रष्ट हुई, वह अलग, आर्थिक क्षति जो हुई, वह अलग। अगर मोटर वालो को पकड़ पाता, तो ऐसी मरम्मत करता कि वे भी याद करते। मन मसोसकर रह गया। इस वेश में जजमान के घर तो जा नहीं सकता था, अपना घर भी मील-भर से कम न था। फिर आने-जाने वाले सब मेरी ओर देख-देख कर तालियाँ बजा रहे थे। ऐसी दुर्गति मेरी कभी नहीं हुई थी। अब क्या करोगे मन? घर जाओगे, तो पंडिताइन क्या कहेगी?

मैने चटपट अपने कर्त्तव्य का निश्चय कर लिया। इधर-उधर से दस-बारह पत्थर के टुकड़े बटोरे लिये और दूसरी मोटर की राह देखने लगा। ब्रह्मतेज सिर पर चढ़ बैठा! अभी दस मिनट भी न गुजरे होंगे कि एक मोटर आती हुई दिखायी दी! ओहो वही मोटर थी। शायद स्वामी को स्टेशन से लेकर लौट रही थी। ज्योंहि समीप आयी, मैने एक पत्थर चलाया, भरपूर जोर लगाकर चलाया। साहब की टोपी उड़कर सड़क के उस बाजू पर गिरी। मोटर की चाल धीमी हुई। मैने दूसरा फेर किया। खिड़की के शीशे चूर -चर हो गये और एक टुकड़ा साहब बहादुर के गाल में भी लगा। खून बहने लगा। मोटर रूकी और साहब उतरकर मेरी तरफ आये और घूँसा तानकर बोले- सूअर हम तुमको पुलिस में देगा। इतना सुनना था कि मैंने पोथी-पत्रा जमीन पर फेंका और साहब की कमर पकड़कर अगंजी लगायी, तो कीचड़ में भद-से गिरे। मैंने चट सवारी गाँठी और गरदन पर एक पचीस रद्दे ताबड़तोड़ जमाये कि साहब चौधिया गये। इतने में उनकी पत्नी उतर आयी। ऊँची एड़ी का जूता, रेशमी साड़ी गालों पर पाउडर ओठों पर रंग भवों पर स्याही, मुझे छाते से गोदने लगी। मैने साहब को छोड़ दिया औऱ डंडा सम्भालता हुआ बोला- देवीजी, आप मरदों के बीच में न पड़े, कहीं चोट-चपेट आ जाय, तो मुझे दु:ख होगा।

साहब ने अवसर पाया, तो सम्हलकर उठे और अपने बूटदार पैरों से मुझे एक ठोकर जमायी। मेरे घुटने में बड़ी चोट लगी। मैने बौखलाकर डंडा उठा लिया। और साहब के पाँव में जमा दिया। वह कटे पेड़ की तरह गिरे। मेम साहब छतरी तानकर दौड़ी। मैने धीरे से उनकी छतरी छीनकर फेंक दी। ड्राइवर अभी तक बैठा था। अब वह भी उतरा और छड़ी लेकर मुझ पर पिल पड़ा। मैने एक डंडा उसके भी जमाया, लोट गया। पचासों आदमी तमाशा देखने जमा हो गए। साहब भूमि पर पड़े-पड़े बोले- रेस्केल, हम तुमको पुलिस में देगा।

2

मैने फिर डंडा सँभाला और चाहता था कि खोपड़ी पर जमाऊँ कि साहब ने हाथ जोड़कर कहा- नहीं-नहीं, बाबा, हम पुलिस में नहीं जायगा, माफी दो।

मैने कहा- हाँ, पुलिस का नाम न लेना, नहीं तो यहीं खोपड़ी रंग दूँगा। बहुत होगा छः महीने की सजा हो जायगी, मगर तुम्हारी आदत छुड़ा दूँगा। मोटर चलाते हो, तो छींटे उड़ाते चलते हो, मारे घमंड के अन्धे हो जाते हो। सामने या बगल में कौन जा रहा हैं, इसका कुछ ध्यान नहीं रखते।

एक दर्शक नें आलोचना की- अरे महाराज, मोटरवाले जान-बूझ कर छींटे उड़ाते हैं और जब आदमी लथपथ हो जाता हैं, तो सब उसका तमाशा देखते हैं और खूब हँसते हैं। आपने बड़ा अच्छा किया, कि एक को ठीक कर दिया।

मैने साहब को ललकार कर कहा- सुनता हैं कुछ, जनता क्या कहती हैं। साहब ने उस आदमी की ओर लाल-लाल आँखों से देखकर कहा- तुम झूठ बोलता हैं, बिल्कुल झूठ बोलता हैं।
सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र
मैने डाँटा- अभी तुम्हारी हेकड़ी कम नहीं हुई, आऊँ फिर और दूँ एक सोटा कसके?

साहब ने घिघियाकर कहा- अरे नहीं बाबा, सच बोलता हैं, सच बोलता हैं। अब तो खुश हुआ।

दूसरा दर्शक बोला- अभी जो चाहे कह दें, लेकिन ज्योंही गाड़ी पर बैठे, फिर वही हरकत शुरू कर देंगे। गाड़ी पर बैठते ही सब अपने को नवाब का नाती समझने लगते हैं।

दूसरे महाशय बोले- इससे कहिए थूककर चाटे।

तीसरे सज्जन ने कहा- नहीं, कान पकड़कर उठाइए-बैठाइए।

चौथा बोला- अरे, ड्राइवर को भी। ये सब बदमाश होते हैं। मालदार आदमी घमंड करे, तो एक बात हैं, तुम किस बात पर अकड़ते हो। चक्कर हाथ में लिया और आँखों पर परदा पड़ा।

मैने यह प्रस्ताव स्वीकार किया। ड्राइवर और मालिक दोनों ही का कान पकड़कर उठाना-बैठाना चाहिए और मेम साहब गिने। सुना मेम साहब, तुमको गिनना होगा। पूरी सौ बैठकें। एक भी नहीं, ज्यादा जितनी चाहें, हो जायँ।

दो आदमियों ने साहब का हाथ पकड़कर उठाया, दो ने ड्राइवर-महोदय का। ड्राइवर बेचारे की टाँग में चोट थी, फिर भी बैठके लगा। साहब की अकड़ अभी काफी थी। आप लेट गये और ऊल-जलूल बकने लगे। मैं उस समय रुद्र बना हुआ था। दिन में ठान लिया था कि इससे बिना सौ बैठकें लगवाये न छोडूँगा। चार आदमियों को हुक्म दिया कि गा़ड़ी को ढकेलकर सड़क ले नीचे गिरा दो।

हुक्म की देरी थी। चार की जगह पचास आदमी लिपट गये और गाड़ी को ढकेलने लगे। वह सड़क बहुत ऊँची थी। दोनों तरफ की जमीन नीची। गाड़ी नीचे गिरती तो टूट -टाटकर ढेर हो जाती। गाड़ी सड़क के किनारे तक पहुँच चुकी थी, कि साहब काँखकर उठ खड़े हुए और बोले- बाबा, गा़ड़ी को मत तोड़ो, हम उठे-बैठेगा।

मैने आदमियों को अलग हट जाने का हुक्म दिया; मगर सबों को एक दिल्लगी मिल गयी थी। किसी ने मेरी तरफ ध्यान न दिया। लेकिन जब मैं डंडा लेकर उनकी ओर दौड़ा तब सब गाड़ी छोड़कर भागे और साहब ने आँखे बन्द करके बैठके लगानी शुरू की।

मैने दस बैठकों के बाद मेम साहब से पूछा- कितनी बैठकें हुई?

मेम साहब ने कहा- हम नही गिनता।

‘तो इस तरह साहब दिन-भर काँखते रहेंगे और मैं न छोडूँगा। अगर उनको कुशल से घर ले जाना चाहती हो, तो बैठकें गिन दो। मैं उनको रिहा कर दूँगा।’

साहब ने देखा कि बिना दंड भोगे जान न बचेगी. तो बैठकें लगाने लगे। एक, दो, तीन, चार, पाँच….

3

सहसा एक दूसरी मोटर आती दिखायी दी। साहब ने देखा और नाक रगड़कर बोले- पंडितजी, आप मेरा बाप हैं। मुझ पर दया करो, अब हम कभी मोटर पर न बैठेगे। मुझे भी दया आ गयी। बोला- मोटर पर बैठने से नहीं रोकता, इतना ही कहता हूँ कि मोटर पर बैठ कर भी आदमियों को आदमी समझो।

दूसरी गाड़ी तेज चली आती थी। मैने इशारा किया। सब आदमियों ने दो-दो पत्थर उठा लिये। उस गाड़ी का मालिक स्वयं ड्राइव कर रहा था। गाड़ी धीमी करके धीरे से सरक जाना चाहता था कि मैने बढ़कर उसके दोनों कान पकड़े और खूब जोर से हिलाकर और दोनों गालों पर एक-एक पड़ाका देकर बोला- गाड़ी से छींटा न उड़ाया करो, समझे। चुपके से चले जाओ।

यह महाशय तो झक-झक तो करते रहे; मगर एक सौ आदमियों को पत्थर लिये खड़ा देखा, तो बिना कान-पूँछ डुलाये चलते हुए।

उनके जाने के एक मिनट बाद दूसरी गाड़ी आयी। मैने 50 आदमियों को राह रोक लेने का हुक्म दिया। गाड़ी रूक गयी। मैने उन्हें भी चार पड़ाके देकर विदा किया; मगर बेचारे भले आदमी थे। मजे से चाटें खाकर चलते हुए।

सहसा एक आदमी ने कहा- पुलिस आ रही हैं।

और सब-के-सब हुर्र हो गये। मैं भी सड़क के नीचे उतर गया और एक गली में घुस कर गायब हो गया।

जायंट पांडा के बारे में ४० रोचक तथ्य | 40 Interesting Facts About the Giant Panda

जायंट पांडा के बारे में रोचक तथ्य

आज बात करते हैं बच्चों के बेहद पसंदीदा जानवर पांडा के बारे में। यह ब्लैक एंड व्हाइट कलर का जानवर अनायास ही सबका ध्यान अपने तरफ आकर्षित कर लेता है।  देखने में बहुत ही  लगता है। यह प्यारा सा जानवर थोड़ा आलसी होता है। जायंट पांडा (Giant Panda), जिसे पांडा बियर (Panda Bear) या सिर्फ़ पांडा (Panda) भी कहा जाता है, दुनिया के सबसे प्यारे जानवरों में से एक है। भालू परिवार (Bear Family) से संबंधित जायंट पांडा दक्षिण-पश्चिमी चीन के पर्वतीय वनों का मूल निवासी है। रेड पांडा (Red Panda) से पृथक करने के लिए इसे जायंट पांडा (Giant Panda) कहा जाता है। 

जायंट पांडा के बारे में ४० रोचक तथ्य | 40 Interesting Facts About the Giant Panda

जायंट पांडा दिखने में तो ये भालू की तरह ही विशाल और गोल-मटोल से होते हैं, लेकिन इनके शरीर पर मौजूद काले धब्बे, आंखें और कान इन्हें भालू से बिल्कुल अलग बना देती हैं। इसके अलावा एक और खास बात जो इन्हें भालू से बिल्कुल अलग बनाती है, वो ये कि पांडा भालू की तरह हिंसक नहीं होते हैं। पांडा चीन के मूल निवासी हैं। वैसे तो ये अब दुनिया के कई देशों में दिख जाते हैं, लेकिन इनका जन्मस्थान चीन ही है। इन्हें इस देश में शांति का प्रतीक माना जाता है। आज दुनियाभर में 2250 के करीब ही पांडा बचे हैं, जिनमें से तकरीबन 1850 पांडा जंगलों में रहते हैं, जबकि 400 के करीब पांडा अलग-अलग जगहों पर कैद हैं। 

जायंट पांडा के बारे में ४० रोचक तथ्य | 40 Interesting Facts About the Giant Panda

शायद आपको यह जानकर हैरानी हो कि जन्म के समय एक पांडा के बच्चे का वजन महज 150 ग्राम ही होता है, लेकिन व्यस्क होने पर इनका वजन 150-200 किलो तक हो जाता है। इनकी लंबाई छह फीट के आसपास होती है जबकि इनका जीवन काल मात्र 20-30 साल का ही होता है। हालांकि कोई-कोई पांडा इससे ज्यादा भी जीते हैं। ऐसे ही कई रोचक तथ्य हैं, जिनके बारे में शायद ही आप जानते होंगे। तो चलिए इन रोचक बातों से आपको रूबरू कराते हैं:- .................

जायंट पांडा के बारे में ४० रोचक तथ्य | 40 Interesting Facts About the Giant Panda

  1. शब्द “पांडा” नेपाली शब्द ‘पोनीया’ (poonya) से विकसित हुआ है, जिसका अर्थ है “बांस खाने वाला जानवर” या “पौधे खाने वाला जानवर” । 
  2. पांडा बहुत आलसी होते हैं। इनका अधिकतर समय खाने और सोने में ही निकल जाता है। हालांकि ये तैरने और पेड़ पर चढ़ने मे माहिर होते हैं। ये पेड़ पर ही रहना भी पसंद करते हैं और कई बार तो पेड़ों पर ही अपना घर भी बना लेते हैं। 7 माह का होने के बाद वे पेड़ों पर चढ़ना शुरू कर देते हैं। 
  3. पांडा को बांस खाने वाला जीव भी कहते हैं। एक पांडा एक दिन मे 10 से 38 किलो तक बांस खा सकता है। माना जाता है कि ये अपने जीवन काल का आधा हिस्सा तो खाने में ही निकाल देते हैं। अब जाहिर है जब ये ज्यादा खाएंगे तो उसी हिसाब से मल भी करेंगे, तो एक पांडा एक दिन में तकरीबन 20-25 किलो तक मल कर सकता है।  
  4. इसका शरीर सफ़ेद रंग के फ़र से ढका रहता है, जिसमें आँखों, थूथन, कानों और कंधों पर काले धब्बे होते हैं। इसकी यह विशिष्टता इसे दूसरे भालुओं से अलग करती हैं। 
  5. फ़िल्म कुंग फ़ू पांडा (Kung Fu Panda) की तरह ये अपने दो पैरों पर चल नहीं सकते, जैसा कि फिल्म में दर्शाया गया है। इनके पैरों में इतनी शक्ति नहीं होती। उनके छोटे पैर पूरे शरीर का भार उठाने लायक पर्याप्त मजबूत नहीं होते। पांडा की हड्डियां दूसरे जानवरों की उसी आकार की हड्डियों से दोगुनी भारी होती हैं। पर, ये पेड़ पर चढ़ने में माहिर होते हैं और गजब के तैराक हैं। 
  6. पृथ्वी पर जायंट पांडा (Giant Panda) का अस्तित्व दो से तीन मिलियन वर्ष पूर्व से है। 
  7. जायंट पांडा (Giant Panda) और लाल पांडा (Red Panda) का निवास और आहार एक समान होने के बावजूद दोनों पृथक परिवार से संबंध रखते हैं। जहाँ रेड पांडा रैकोन परिवार (raccoon family) से संबंधित है, वहीं जायंट पांडा भालू परिवार (bear family) से। 
  8. जंगल में जायंट पांडा (Giant Panda) का औसत जीवनकाल 15 से 20 वर्ष होता है. पालतू जायंट पांडा (Giant Panda) का औसत जीवनकाल 30 वर्ष होता है। 
  9. सबसे लंबी उम्र तक जीवित रहने वाली पालतू जायंट पांडा (Giant Panda) जिया जिया (jia jia) नाम की मादा पांडा थी, जो 38 वर्ष (1978 से 2016) तक जीवित रही थी। 
  10. कैद में पैदा होने वाला पहला जायंट पांडा (Giant Panda) 1963 में बीजिंग के एक चिड़ियाघर में पैदा हुआ था। 
  11. वयस्क जायंट पांडा (Giant Panda) 1.2 से 1.9 मीटर (3 फ़ीट 11 इंच से 6 फ़ीट 3 इंच) लंबा और 60 से 90 सेमी (24 से 35 मीटर) ऊँचा होता है। 
  12. वयस्क जायंट पांडा का औसत वजन 100 से 115 Kg (220-254 lb) होता है। मादा का वजन नर से 10-20% कम होता है। 
  13. जायंट पांडा (Giant Panda) औसतन 10 से 15 सेमी (4 से 6 इंच) लंबी पूंछ के साथ के बाद भालू परिवार में दूसरा सबसे लंबी पूंछ वाला जानवर है। पहले स्थान पर sloth bear है। 
  14. विशाल पांडा के शरीर पर पाए जाने वाले काले और सफेद धब्बे इसका छलावरण होते हैं। चेहरा, गर्दन, पेट, दुम सफ़ेद होते हैं, जो इसे बर्फीले आवासों में छिपने में मदद करते हैं। वहीं हाथ और पैर के काले धब्बे इसे छाया में छिपाने में मदद करते हैं। 
  15. जायंट पांडा (Giant Panda) के पंजे में 5 उंगलियाँ और एक अंगूठा होता है, जिससे ये बांस को हाथ में आसानी से पकड़कर खा सकते हैं। 
  16. जायंट पांडा तेज रफ़्तार से दौड़ नहीं सकता। वह धीमी गति से भाग सकता है। भालू परिवार का सबसे तेज भालू ‘काला भालू’ (black bear) है, जिसके दौड़ने की रफ़्तार 35 मील/प्रति घंटे है। 
  17. जायंट पांडा गंध की सूंघने की शक्ति तीव्र होती है। रात के समय वे सूंघकर सबसे अच्छे बांस के डंठल खोज लेते हैं। 
  18. मादा पांडा साल में केवल एक बार डिंबोत्सर्जन (ovulate) करती है। अतः वर्ष के केवल दो या तीन दिन ही वे गर्भधारण कर पाती हैं। 
  19. जायंट पांडा के शावक सामान्यतः अगस्त या सितंबर माह में पैदा होते हैं और मादा पांडा का गर्भधारण काल 3 से 5 माह का होता है। 
  20. आधे से अधिक नवजात जायंट पांडा की मृत्यु बीमारियों से या उनकी माताओं द्वारा दुर्घटनावश कुचले जाने से हो जाती है। 
  21. जन्म के समय पांडा की ऑंखें बंद होती है, और मुँह में दांत नहीं होते। पांडा शावक की आँखे लगभग 4-6 सप्ताह बाद खुलती हैं। 
  22. जायंट पांडा (Giant Panda) के शावक की आँखें जन्म उपरांत गोलाकार होती हैं, लेकिन जैसे-जैसे शावक का विकास होता है, उसकी आँखों का आकार आँसू की बूँद (teardrop) की तरह हो जाता है। 
  23. लगभग 2-3 साल तक शावक अपनी माँ की देखरेख में रहता है, उसके बाद वह उसे छोड़ देता है। मादा जायंट पांडा को वयस्क होने में 5 वर्ष और नर शावक को 7 वर्ष लगते हैं। 
  24. कैद में रहने वाली मादा पांडा जंगली मादा पांडा की तुलना में अधिक बार जुड़वाँ बच्चे जन्म देते है। 
  25. शोधकर्ताओं के अनुसार जायंट पांडा (Giant Panda) 11 अलग-अलग प्रकार की आवाज़ें निकाल सकता है। उनमें से चार आवाज़ों का उपयोग वह अपने साथी की खोज के लिए करता है। 
  26. जायंट पांडा (Giant Panda) के 42 दांत होते हैं। एक बार टूट जाने के बाद जायंट पांडा के दांत एक बार ही आ सकते हैं। 
  27. हालांकि जायंट पांडा का फ़र रेशमी और नरम दिखता है, पर असल में यह काफी मोटा और कड़ा होता है। 
  28. जहाँ जायंट पांडा के फर का रंग काला होता है, उसके नीचे की चमड़ी काली होती है। जहाँ उसके फर का रंग सफेद होता है, वहाँ उसकी चमड़ी गुलाबी होत्ती है। 
  29. वयस्क जायंट पांडा (Giant Panda) के बाल 4 इंच (10 सेमी) तक बढ़ सकते हैं। 
  30. जायंट पांडा हाइबरनेट नहीं करते हैं, क्योंकि वे आहार के रूप में बांस ग्रहण करते हैं। यह आहार उन्हें सर्दियों के लिए पर्याप्त वसा भंडारण की अनुमति नहीं देता। 
  31. जायंट पांडा (Giant Panda) एक बांस की कोपलों को लगभग 40 सेकंड में छीलकर खा सकता है। वयस्क जायंट पांडा एक दिन में औसतन 25-30 पाउंड बांस खा जाता है। वसंत में, जायंट पांडा (Giant Panda) एक दिन में 100 पाउंड बांस खा सकता है। 
  32. अवैध व्यापार बाजार पर एक जायंट पांडा (Giant Panda) के फर की कीमत 60,000 $ से 100,000 $ के बीच है। 
  33. चिड़ियाघर में जायंट पांडा (Giant Panda) को रखना और उसके देखभाल करना बहुत महंगा है। एक जायंट पांडा (Giant Panda) को पालने का खर्च हाथी जैसे जानवर से भी 5 गुना अधिक होता है। 
  34. चीन में जायंट पांडा (Giant Panda) को राष्ट्रीय खजाना (national treasures) माना जाता है। 
  35. चीन में जायंट पांडा (Giant Panda) को शांति का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व चीन में युद्ध करने वाली जनजातियाँ युद्धविराम संधि के लिए पांडा की तस्वीर वाला ध्वज फहराया करती थी। 
  36. वर्ष 1974-1989 तक चीन के सिचुआन (Sichuan) क्षेत्रों में पांडा के निवास का आधा हिस्सा मानव गतिविधियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था। 
  37. चीन में वर्ष 1960 के दशक से जायंट पांडा (Giant Panda) का शिकार गैरकानूनी है, लेकिन यह कानून इतना सख्त नहीं था। 
  38. वर्ष 1987 में कानून को सख्त करते हुये जायंट पांडा का शिकार करने वाले को दो साल की कैद से लेकर उम्रकैद या मौत तक की सजा का प्रावधान किया गया। वर्तमान में जायंट पांडा के शिकार पर 10 से लेकर 20 साल तक के कारावास का प्रावधान है। 
  39. वर्ष 1990 से जायंट पांडा (Giant Panda) लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में सम्मिलित है। इनके लुप्तप्राय होने का मुख्य कारण आवास की क्षति और अवैध शिकार हैं। 
  40. वर्तमान में विश्व में लगभग 1864 जायंट पांडा (Giant Panda) शेष हैं. वैज्ञानिक 2025 तक जंगली जायंट पांडा की आबादी 5,000 तक बढ़ाने के प्रयास में हैं। 
जायंट पांडा के बारे में ४० रोचक तथ्य | 40 Interesting Facts About the Giant Panda

Interesting facts about the Giant Panda


Today, let's talk about the panda, the most favorite animal of children. This black and white animal inadvertently attracts everyone's attention. It looks very cute. This cute animal is a little lazy. The Giant Panda, also known as the Panda Bear or simply Panda, is one of the cutest animals in the world. Belonging to the Bear Family, the Giant Panda is a native of the mountain forests of southwestern China. It is called the Giant Panda to distinguish it from the Red Panda.
जायंट पांडा के बारे में ४० रोचक तथ्य | 40 Interesting Facts About the Giant Panda
Giant pandas look huge and chubby like bears, but the black spots, eyes and ears on their body make them completely different from bears. Apart from this, another special thing that makes them completely different from bears is that pandas are not violent like bears. Pandas are native to China. Although they are now seen in many countries of the world, but their birthplace is China. They are considered a symbol of peace in this country. Today, there are only about 2250 pandas left in the world, out of which about 1850 pandas live in the forests, while about 400 pandas are imprisoned in different places.

You might be surprised to know that at the time of birth, the weight of a baby panda is only 150 grams, but when they become adults, their weight increases to 150-200 kg. Their height is around six feet while their life span is only 20-30 years. However, some pandas live longer than this. There are many such interesting facts, which you probably would not know about. So let us introduce you to these interesting facts:- .................
जायंट पांडा के बारे में ४० रोचक तथ्य | 40 Interesting Facts About the Giant Panda
  1. The word “panda” has evolved from the Nepali word ‘poonya’, which means “bamboo eating animal” or “plant eating animal”.
  2. Pandas are very lazy. Most of their time is spent in eating and sleeping. However, they are expert in swimming and climbing trees. They also like to live on trees and sometimes even make their home on trees. They start climbing trees after 7 months of age.
  3. Panda is also called bamboo eating creature. A panda can eat 10 to 38 kg of bamboo in a day. It is believed that they spend half of their life span in eating. Now it is obvious that when they eat more, they will also defecate accordingly, so a panda can defecate about 20-25 kg in a day.
  4. Its body is covered with white fur, with black spots on the eyes, muzzle, ears and shoulders. This feature distinguishes it from other bears.
  5. Like the film Kung Fu Panda, they cannot walk on their two legs, as shown in the film. Their legs do not have that much strength. Their small legs are not strong enough to bear the weight of the whole body. The bones of the panda are twice as heavy as the bones of the same size of other animals. But, they are adept at climbing trees and are excellent swimmers.
  6. The Giant Panda has existed on Earth since two to three million years ago.
  7. Despite the Giant Panda and the Red Panda having the same habitat and diet, both belong to different families. While the Red Panda belongs to the raccoon family, the Giant Panda belongs to the bear family.
  8. The average lifespan of a Giant Panda in the wild is 15 to 20 years. The average lifespan of a pet Giant Panda is 30 years.
  9. The longest-lived pet Giant Panda was a female named Jia Jia, who lived for 38 years (1978 to 2016).
  10. The first Giant Panda born in captivity was born in 1963 at a zoo in Beijing.
  11. An adult Giant Panda is 1.2 to 1.9 m (3 ft 11 in to 6 ft 3 in) long and 60 to 90 cm (24 to 35 in) high.
  12. The average weight of an adult Giant Panda is 100 to 115 Kg (220–254 lb). The female weighs 10-20% less than the male.
  13. The Giant Panda is the second longest tailed animal in the bear family after the pheasant with an average tail of 10 to 15 cm (4 to 6 inches). The first place is taken by the sloth bear.
  14. The black and white spots found on the body of the giant panda are its camouflage. The face, neck, stomach, tail are white, which help it to hide in snowy habitats. At the same time, the black spots on the hands and feet help it to hide in the shadow.
  15. The Giant Panda has 5 fingers and a thumb in its paw, due to which it can easily hold bamboo in its hand and eat it.
  16. The Giant Panda cannot run at a fast speed. It can run at a slow speed. The fastest bear of the bear family is the 'black bear', whose running speed is 35 miles per hour.
  17. The Giant Panda has a strong sense of smell. At night they sniff out the best bamboo stalks. Female pandas only ovulate once a year, so they can only get pregnant for two or three days a year.
  18. Giant panda cubs are usually born in August or September, and the female panda has a gestation period of 3 to 5 months.
  19. More than half of newborn giant pandas die from disease or from being accidentally crushed by their mothers.
  20. At birth, the eyes of the panda are closed, and there are no teeth in the mouth. The eyes of the panda cub open after about 4-6 weeks.
  21. The eyes of the Giant Panda cub are round after birth, but as the cub grows, the shape of its eyes becomes like a teardrop.
  22. The cub remains under the care of its mother for about 2-3 years, after which it leaves her. A female giant panda takes 5 years to become an adult and a male cub takes 7 years.
  23. Female pandas living in captivity give birth to twins more often than wild female pandas.
  24. According to researchers, the Giant Panda can make 11 different types of sounds. It uses four of those sounds to search for its mate.
  25. The Giant Panda has 42 teeth. Once lost, a giant panda's teeth can only grow once.
  26. Although the giant panda's fur looks silky and soft, it is actually very thick and tough.
  27. Where the giant panda's fur is black, the skin underneath is black. Where its fur is white, its skin is pink.
  28. The hair of an adult giant panda can grow up to 4 inches (10 cm).
  29. Giant pandas do not hibernate, as they consume bamboo as a diet. This diet does not allow them to store enough fat for the winter.
  30. A giant panda can peel and eat a bamboo shoot in about 40 seconds. An adult giant panda eats an average of 25-30 pounds of bamboo a day. In the spring, a giant panda can eat 100 pounds of bamboo a day.
  31. The price of a Giant Panda's fur on the illegal trade market is between $60,000 and $100,000.
  32. Keeping and caring for a Giant Panda in a zoo is very expensive. The cost of raising a Giant Panda is 5 times more than that of an animal like an elephant.
  33. Giant Panda is considered a national treasure in China.
  34. Giant Panda is considered a symbol of peace in China. It is said that hundreds of years ago, warring tribes in China used to hoist a flag with a picture of a panda to sign a ceasefire.
  35. From 1974-1989, half of the panda's habitat in Sichuan regions of China was destroyed by human activities.
  36. Hunting of Giant Panda has been illegal in China since 1960s, but the law was not so strict.
  37. In 1987, the law was made stricter and punishment ranging from two years imprisonment to life imprisonment or death was provided to the person hunting Giant Panda. Currently, there is a provision of 10 to 20 years imprisonment for hunting Giant Panda.
  38. Since 1990, Giant Panda is included in the list of endangered species. The main reason for their extinction is loss of habitat and illegal hunting.
  39. At present, there are about 1864 Giant Pandas left in the world. Scientists are trying to increase the population of wild Giant Panda to 5,000 by 2025.

कालकाजी मंदिर, दिल्ली || Shri Kalka Ji Temple, Delhi

कालकाजी मंदिर

कालकाजी मंदिर राजधानी दिल्ली का एक लोकप्रिय मंदिर है, जो माता काली को समर्पित है। कालकाजी का मंदिर दिल्ली के साथ पूरे देशभर में प्रसिद्ध है। दक्षिण दिल्ली में स्थित यह मंदिर अरावली पर्वत श्रृंखला के सूर्यकूट पर्वत पर है, जहां मां कालका माता के नाम से विराजमान हैं। कालकाजी माता का मंदिर सिद्धपीठों में से एक माना जाता है और नवरात्र के दौरान यहां एक से डेढ़ लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर लोटस टेंपल और इस्कॉन टेंपल के पास स्थित है। 

कालकाजी मंदिर, दिल्ली || Shri Kalka Ji Temple, Delhi

कालकाजी मंदिर का इतिहास

कालकाजी मंदिर बहुत प्राचीन हिन्दू मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान मंदिर के प्राचीन हिस्से का निर्माण मराठाओं की ओर से सन् 1764 ईस्वी में किया गया था। बाद में सन् 1816 ईस्वी में अकबर के पेशकार राजा केदार नाथ ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया था।

3000 साल पुराना

मान्यताओं के अनुसार मंदिर 3000 साल से अधिक पुराना है। मान्यता है कि इस पीठ का स्वरूप हर काल में बदलता रहता है। मां दुर्गा ने यहीं पर महाकाली के रूप में प्रकट होक असुरों का संहार किया था। कालकाजी मंदिर प्राचीनतम सिद्धपीठों में एक है। मौजूदा मंदिर बाबा बालकनाथ ने स्थापित किया था। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान मंदिर के पुराने हिस्से का निर्माण मराठाओं ने 1764 में करवाया था। बाद में 1816 में अकबर द्वितीय ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।

महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ की थी अराधना

इस पीठ का अस्तित्व अनादि काल से है। माना जाता है कि हर काल में इसका स्वरूप बदला। मान्यता है कि इसी जगह आद्यशक्ति माता भगवती 'महाकाली' के रूप में प्रकट हुई और असुरों का संहार किया, तब से यह मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है। मौजूदा मंदिर बाबा बालकनाथ ने स्थापित किया था। उनके कहने पर मुगल सम्राज्य के कल्पित सरदार अकबर शाह ने इसका जीर्णोद्धार कराया। बीसवीं शताब्दी के दौरान दिल्ली में रहने वाले हिन्दू धर्म के अनुयायियों और व्यापारियों ने यहां चारों ओर कई मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया था। उसी दौरान इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप बनाया गया था। ऐसा भी माना जाता है कि महाभारत काल में युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ यहां भगवती की अराधना की थी। बाद में बाबा बालकनाथ ने इस पर्वत पर तपस्या की। तब मां भगवती ने उन्हें दर्शन दिए थे। 

कालकाजी मंदिर, दिल्ली || Shri Kalka Ji Temple, Delhi

300 साल पुराना ऐतिहासिक हवन कुंड

कालकाजी मंदिर पिरामिडनुमाकार बना हुआ है। मंदिर का केंद्रीय भाग पूरी तरह से संगमरमर से बना हुआ है। मंदिर में काली देवी की एक पत्थर की मूर्ति भी है। अकबर द्वितीय ने इस मंदिर में 84 घंटे लगवाए थे। इनमें से कुछ घंटे अब मौजूद नहीं है। इन घंटों की विशेषता यह है कि हर घंटे की आवाज अलग है। इसके अलावा 300 साल पुराना ऐतिहासिक हवन कुंड भी मंदिर में है और वहां आज भी हवन किए जाते हैं।

कालकाजी मंदिर की विशेषता

कालकाजी के मुख्य मंदिर में 12 द्वार हैं, जो 12 महीनों का संकेत देते हैं। हर द्वार के पास माता के अलग-अलग रूपों का चित्रण किया गया है। मंदिर के परिक्रमा में 36 मातृकाओं (हिन्दी वर्णमाला के अक्षर) के द्योतक हैं। माना जाता है कि ग्रहण में सभी ग्रह इनके अधीन होते हैं, इसलिए दुनिया भर के मंदिर ग्रहण के वक्त बंद होते हैं, जबकि कालकाजी मंदिर खुला होता है। 

दिन में दो बार होता है मां के शृंगार

माँ का श्रृंगार दिन में दो बार किया जाता है। सुबह के समय मां के 16 श्रृंगार के साथ फूल, वस्त्र आदि पहनाए जाते हैं, वहीं शाम को शृंगार में आभूषण से लेकर वस्त्र तक बदले जाते हैं। मां की पोशाक के अलावा आभूषण का विशेष महत्व होता है। नवरात्र के दौरान रोजाना मंदिर को 150 किलो फूलों से सजाया जाता है। इनमें से काफी सारे फूल विदेशी होते हैं। मंदिर की सजावट में इस्तेमाल फूल अगले दिन श्रद्धालुओं को प्रसाद के साथ बांटे जाते हैं। मंदिर में बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों के मुंडन के लिए भी आते हैं। 

महाकाली ने रक्तबीज का किया था वध

मंदिर के महंत के अनुसार जब असुरों का प्रकोप बहुत बढ़ गया और वो देवताओं को सताने लगे तब देवताओं ने इसी जगह शिवा (शक्ति) की अराधना की। देवताओं के वरदान मांगने पर मां पार्वती ने कौशिकी देवी को प्रकट किया, जिन्होंने अनेक असुरों का संहार किया, लेकिन रक्तबीज को नहीं मार सकीं। इसके बाद पार्वती ने अपनी भृकुटी से महाकाली को प्रकट किया, जिन्होंने रक्तबीज का संहार किया। महाकाली का रूप देखकर सभी भयभीत हो गए। देवताओं ने काली की स्तुति की तो मां भगवती ने कहा कि जो भी इस स्थान पर श्रृद्धाभाव से पूजा करेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। 

कालकाजी मंदिर की वास्तुकला

कालकाजी मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण ईंट और संगमरमर के पत्थरों से किया गया। इसका बरामदा 8 से 9 फुट तक चौड़ा है। इस बरामदे ने मुख्य मंदिर को चारों ओर से घेरा हुआ है। मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में माता का शक्ति पीठ विराजमान है। मंदिर के सामने बाहर आंगन में दो बाघों की मूर्ति है, जिसका निर्माण बलुआ पत्थरों से किया गया है। इन दोनों बाघों के नीचे संगमरमर का आसन बना हुआ है। इस मंदिर में काली देवी की एक पत्थर की मूर्ति भी स्थित है, जिसपर उनका नाम हिन्दी में लिखा हुआ है। उस मूर्ति के सामने एक पत्थर का बना हुआ त्रिशूल भी खड़ा किया गया है। 

नवरात्र मेले में घूमती हैं माता

इस मंदिर में वेदोक्त, पुराणोक्त और तंत्रोक्त तीनों विधियों से पूजा होती है। नवरात्र में यहां मेला लगता है। रोजाना हजारों लोग माता के दर्शन करने पहुंचते हैं। इस मंदिर में अखंड दीप प्रज्जवलित है। पहली नवरात्र के दिन लोग मंदिर से माता की जोत अपने घर ले जाते हैं। मंदिर में सुबह शाम आरती होती है।  मान्यता है कि अष्टमी और नवमी को माता मेला में घूमती हैं, इसलिए अष्टमी के दिन सुबह की आरती के बाद कपाट खोल दिया जाता है। इस दौरान दो दिन आरती नहीं होती है और फिर उसके बाद दसवीं को आरती की जाती है। 

कालकाजी मंदिर, दिल्ली || Shri Kalka Ji Temple, Delhi

सुबह-शाम की आरती का वक़्त 

मंदिर सुबह 4:00 बजे से रात्री 11:00 बजे तक खुला रहता है, लेकिन दिन में 11:30 से 12:00 बजे के बीच 30 मिनट तक भोग लगाने के लिए यह मंदिर बंद किया जाता है। वहीं शाम को 3:00 से 4:00 बजे के बीच साफ-सफाई के लिए बंद किया जाता है। बाकी किसी भी समय इस मंदिर में पूजा-पाठ और दर्शन के लिए जा सकते हैं। इस मंदिर में सुबह और शाम को दो बार आरती की जाती है। शाम को होने वाली आरती को तांत्रिक आरती के रूप में जाना जाता है। मौसम के अनुसार आरतियों के समय में भी बदलाव होते रहता है। इस मंदिर में हर दिन अलग-अलग पुजारी पूजा-पाठ करते हैं। 

माता को क्या लगता है भोग 

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि माता का विशिष्ट भोग का समय सुबह 11:30 बजे होता है, जिसमें 6-7 तरह के व्यंजन और पकवान उन्हें चढ़ाया जाता है। वहीं आरती के वक्त बुरा और पंचमेवा का भोग लगाया जाता है, चूंकि माता को सात्विक, राजसी और तामसी तीनों तरह से भोग लगाए जाते हैं। माता और यहां विराजमान भैरव को मंगलवार और सप्तमी के दिन को छोड़ कर सोमरस आज के समय में मदिरा भी चढ़ाया जाता है, वैसे ये आवश्यक नहीं होता है। 

मशहूर शख्सियत पहुंचते हैं माता के दरबार में

मां कालकाजी का ये मंदिर मनोकामना मंदिर के नाम से भी मशहूर है, इसलिए आम से खास लोग मंदिर में मां के दर्शन और इच्छा पूर्ति के लिए आते रहे हैं, जिनमें बॉलीवुड के कलाकारों से लेकर राजनीति के बड़े-बड़े दिग्गज नेता तक शामिल हैं। 

कालकाजी मंदिर कैसे पहुंचे 

मैं लखनऊ में रहती हूँ, यहाँ लखनऊ मेट्रो का सफर सीमित है, पर दिल्ली मेट्रो बहुत विस्तृत है। कालकाजी मंदिर पहुंचने के लिए दिल्ली का सफर अच्छा है। वॉयलेट लाइन वाली मेट्रो से आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। कालकाजी मेट्रो स्टेशन पर उतर कर आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। वहीं अगर सड़क मार्ग से कालकाजी मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो शहर के किसी भी कोने से दिल्ली परिवहन निगम की बसों, निजी बसों और टैक्सियों के माध्यम से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यह मंदिर दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध जगह नेहरू प्लेस के पास और ओखला-कालकाजी मेट्रो स्टेशन के बीच में स्थित है। कालकाजी मंदिर के पास कुछ और प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है। मंदिर में दर्शन करने के बाद अगर घूमने की प्लानिंग है तो लोटस टेंपल, इंडिया गेट, अक्षरधाम और लालकिला जैसी जगहों पर घूम सकते हैं। 

English Translate

Kalkaji Temple

Kalkaji Temple is a popular temple of the capital Delhi, dedicated to Mata Kali. Kalkaji Temple is famous all over the country along with Delhi. Located in South Delhi, this temple is on the Suryakut mountain of the Aravali mountain range, where Maa Kalka is seated in the name of Mata. Kalkaji Mata Temple is considered one of the Siddhapeeths and during Navratri, one to one and a half lakh devotees come here for darshan. This temple is located near Lotus Temple and ISKCON Temple.

कालकाजी मंदिर, दिल्ली || Shri Kalka Ji Temple, Delhi

History of Kalkaji Temple

Kalkaji Temple is a very ancient Hindu temple. It is believed that the ancient part of the present temple was built by the Marathas in 1764 AD. Later in 1816 AD, Akbar's Peshkar Raja Kedar Nath rebuilt this temple.

3000 years old

According to beliefs, the temple is more than 3000 years old. It is believed that the form of this Peeth keeps changing in every era. It was here that Maa Durga appeared in the form of Mahakali and killed the demons. Kalkaji temple is one of the oldest Siddhapeeths. The present temple was established by Baba Balaknath. It is believed that the old part of the present temple was built by the Marathas in 1764. Later in 1816, Akbar II got it rebuilt.

During the Mahabharata period, Shri Krishna worshipped with the Pandavas.

This Peeth has existed since time immemorial. It is believed that its form changed in every period. It is believed that at this place Adishakti Mata Bhagwati appeared in the form of 'Mahakali' and killed the demons, since then it is famous as Manokamna Siddhapeeth. The present temple was established by Baba Balaknath. On his request, Akbar Shah, the imaginary chieftain of the Mughal Empire, got it renovated. During the twentieth century, the followers and traders of Hindu religion living in Delhi built many temples and dharamshalas around here. During that time, the present form of this temple was built. It is also believed that before the war in the Mahabharata period, Lord Krishna had worshipped Bhagwati here with the Pandavas. Later Baba Balaknath did penance on this mountain. Then Maa Bhagwati appeared before him.

300 years old historical Hawan Kund

The Kalkaji temple is pyramid-shaped. The central part of the temple is completely made of marble. There is also a stone idol of Kali Devi in ​​the temple. Akbar II had installed 84 bells in this temple. Some of these bells are no longer present. The specialty of these bells is that the sound of each bell is different. Apart from this, there is also a 300 years old historical Hawan Kund in the temple and Hawans are performed there even today.

Features of Kalkaji Temple

The main temple of Kalkaji has 12 gates, which indicate 12 months. Different forms of the mother have been depicted near each gate. There are 36 Matrikas (letters of the Hindi alphabet) in the parikrama of the temple. It is believed that all the planets are under her control during eclipse, so temples all over the world are closed during eclipse, while Kalkaji temple is open.

Maa's Shringar is done twice a day

Maa's Shringar is done twice a day. In the morning, flowers, clothes etc. are worn along with 16 Shringar of Maa, while in the evening, from jewellery to clothes are changed. Apart from Maa's dress, jewellery has special importance. During Navratri, the temple is decorated with 150 kg of flowers every day. Many of these flowers are foreign. The flowers used in the decoration of the temple are distributed to the devotees with Prasad the next day. A large number of people also come to the temple for the tonsure of their children.

Mahakali had killed Raktbeej

According to the Mahant of the temple, when the fury of the demons increased a lot and they started harassing the gods, then the gods worshipped Shiva (Shakti) at this place. When the gods asked for a boon, Maa Parvati manifested Kaushiki Devi, who killed many demons, but could not kill Raktbeej. After this, Parvati manifested Mahakali from her eyebrows, who killed Raktbeej. Everyone got frightened seeing the form of Mahakali. When the gods praised Kali, Maa Bhagwati said that whoever worships at this place with devotion, his wish will be fulfilled.

Architecture of Kalkaji Temple

The present form of Kalkaji Temple was built with brick and marble stones. Its verandah is 8 to 9 feet wide. This verandah surrounds the main temple from all sides. Mother's Shakti Peeth is seated in the sanctum sanctorum of the main temple. There is a statue of two tigers in the courtyard outside the temple, which is made of sandstone. There is a marble seat under these two tigers. A stone statue of Kali Devi is also located in this temple, on which her name is written in Hindi. A trident made of stone has been placed in front of the idol.

The Goddess roams in the Navratri fair

In this temple, worship is done through all three methods, Vedic, Puranic and Tantric. A fair is held here during Navratri. Thousands of people come to see the Goddess every day. An eternal lamp is lit in this temple. On the first day of Navratri, people take the Goddess's flame from the temple to their homes. Aarti is performed in the temple in the morning and evening. It is believed that the Goddess roams in the fair on Ashtami and Navami, so the doors are opened after the morning Aarti on Ashtami. During this time, Aarti is not performed for two days and then Aarti is performed on the tenth day.

Time of morning and evening Aarti

The temple is open from 4:00 am to 11:00 pm, but during the day it is closed for 30 minutes between 11:30 am and 12:00 pm for offerings. while closed for cleaning between 3:00 and 4:00 p.m. Others can visit the temple at any time for worship and darshan. Aarti is performed twice in the morning and evening. The evening Aarti is known as Tantric Aarti. The time of Aartis also varies according to the season. Different priests perform pujas in this temple every day.

What does the mother feel is pleasure

As mentioned above, the typical enjoyment time of the mother is at 11:30 am, in which 6-7 kinds of dishes and dishes are offered to her. During the Aarti, offerings of Bura and Panchameva are made, since the mother is offered in three ways: Sattvic, Rajasic and Tamasic. Somaras is also offered to the mother and Bhairav ​​who resides here except on Tuesdays and Saptami days. However, it is not necessary.

Famous personalities arrive at the court of the mother

This temple of Maa Kalkaji is also known as the Manokamana Temple, so people from common to special have been visiting the temple for darshan and wish fulfillment of the mother, including Bollywood actors to big political leaders.

कालकाजी मंदिर, दिल्ली || Shri Kalka Ji Temple, Delhi

How to reach Kalkaji Temple

I live in Lucknow, here Lucknow metro journey is limited, but Delhi metro is very extensive. Delhi is a good journey to reach Kalkaji Temple. The temple is easily accessible by violet line metro. You can get down at Kalkaji metro station and reach the temple easily. On the other hand, if you want to reach Kalkaji temple by road, you can reach the temple from any corner of the city through Delhi Transport Corporation buses, private buses and taxis. The temple is located near Nehru Place, the most famous place in Delhi and between Okhla-Kalkaji metro station. There are some other famous sightseeing spots near Kalkaji Temple. After visiting the temple, if you are planning to visit places like Lotus Temple, India Gate, Akshardham and Red Fort.

अर्थराइटिस- ARTHRITIS ( By Rajiv Dixit)

 अर्थराइटिस- ARTHRITIS

आर्थराइटिस को आम भाषा में गठिया कहते हैं। यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें व्यक्ति के जोड़ों में दर्द के साथ सूजन भी आ जाती है। बदलती जीवन शैली, मोटापा, गलत खानपान आदि वजह से यह रोग सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं है, बल्कि युवा वर्ग भी इसका शिकार हो रहे हैं। यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है ओस्टियो आर्थराइटिस(OsteoArthritis) और रूमेटाइड अर्थराइटिस(RheumatoidArthritis)

अर्थराइटिस- ARTHRITIS ( By Rajiv Dixit)

अर्थराइटिस के कारण: Causes Of Arthritis:
आर्थराइटिस की बीमारी किसी भी व्यक्ति को हो सकती है  और इसके भिन्न भिन्न कारण हो सकते हैं।
#  यूरिक एसिड का स्तर ज्यादा होने पर यह  रोग होता है।
#  शरीर में कैल्शियम की कमी।
#  आनुवांशिक कारणों से।
#   जोड़ो में चोट लगने से।
#  किसी दवाई के दुष्प्रभाव से।
#  रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने से।
अर्थराइटिस- ARTHRITIS ( By Rajiv Dixit)

अर्थराइटिस के लक्षण:Symptoms of Arthritis:

#  बार बार बुखार आना।
#  मांसपेशियों में दर्द।
#   हमेशा थकान और घूटन महसूस होना।
#   भूख कम लगना।
#   वजन घटना।
#    शरीर के तमाम जोड़ों में दर्द होना।
#   किसी को जलन की शिकायत भी होती है.
#   जोड़ों के आसपास सख्त गोलाकार गांठों जैसे उभर जाना।

अर्थराइटिस से बचाव: Prevention of Arthritis:

#  शरीर का वजन कम रखें। ज्यादा वजन से घुटनों तथा कुल्लू पर दबाव पड़ता है।
#  योग तथा प्राणायाम को नियमित दिनचर्या में शामिल करें अर्थात योगासन तथा व्यायाम करें।
#  गुनगुना पानी पिए तथा स्नान भी ठंडे पानी से ना  करें।
#  समय-समय पर डॉक्टर की सलाह लेते रहे।

अर्थराइटिस के लिए घरेलू उपचार: Home Remedies For Arthritis:
अर्थराइटिस- ARTHRITIS ( By Rajiv Dixit)
1.  आर्थराइटिस के मरीज 1 दिन में 2 ग्राम चूना खा सकते हैं और स्वस्थ आदमी एक ग्राम चूना खाए। चूने को दही के साथ, छाछ के साथ, दाल के साथ या पानी में मिलाकर खाया जा सकता है।
2.  मेथी दाना रात को गर्म पानी में भिगो दें और सुबह उठते ही पानी पी लें और मेथी दाना चबा चबा कर खा लें।
3.  गाय के दूध में गाय का घी मिलाकर और थोड़ी हरण मिलाकर हमेशा शाम को देना है।
4.   हल्दी मेथी सोंठ बराबर मात्रा में पीसकर पाउडर बना लें और एक चम्मच रोज सुबह खाली पेट कम से कम डेढ़ - दो महीने तक लें।
5.   सबसे क्षारीय है हारसिंगार का पेड़ या पारिजात के पेड़ के पत्ते, 5-7 पत्ते की पत्थर पर पीसकर चटनी बनानी है और एक गिलास पानी में तब तक उबालना है जब तक कि पानी आधा गिलास ना हो जाए। उसके बाद ही से चाय की तरह रोज सुबह खाली पेट कुछ भी खाने से एक घंटा पहले पीना है। 15 से 20 दिन में बीमारी से आराम मिलना शुरू हो जाएगा। दोनों ही आर्थराइटिस (रूमेटाइड और ओस्टियो) के केस में 20 साल पुराना गठिया का दर्द ठीक होता है।
6.  कार्टिलेज और RH फैक्टर की समस्याओं के लिए भी पारिजात के पत्ते का काढ़ा काम में आता है। हिप ज्वाइंट या नी ज्वाइंट निकालने की स्थिति आ गई हो तो आज से यही दवा नियमित रूप से सेवन करें।
7.   आइसक्रीम कभी ना खाएं।
8.   दालचीनी सौंठ का काढ़ा गुड़ मिलाकर जरूर पिएं, जिसको भी आर्थराइटिस हो।
9.   मूंगफली और तिल रोज खाएं। खाना खाने के बाद तिल और गुड़ जरूर खाएं। काला तिल मिले तो बहुत अच्छा होगा। खासकर उन लोगों के लिए जो आर्थराइटिस, अस्थमा, मोटापा और हृदयघात जैसी बीमारियों से बचना चाहते हैं। हड्डियों के किसी भी रोग में के लिए चूना खाएं।
10.  पानी घुंट घुंट कर पीएं।
 11. जैतून और अरंडी का तेल मालिश करने से गठिया रोग के दर्द से राहत मिलती है। 

इस तरह थोड़ा सा ध्यान, केयर, योग और प्राणायाम से हम इस बीमारी से बच सकते। 

फ़रह इकबाल की गजल: जरा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए

जरा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए 

फ़रह इकबाल की गजल: जरा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए

"कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को, 
खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए..
❣️

जरा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए 

जरा सा दिल बहल जाए तो शायद नींद आ जाए


अभी तो कर्ब है, बे-चैनियाँ हैं, बे-क़रारी है 

तबीअं'त कुछ सँभल जाए तो शायद नींद आ जाए


हवा के नर्म झोंकों ने जगाया तेरी यादों को 

हवा का रुख बदल जाए तो शायद नींद आ जाए


ये तूफ़ाँ आँसुओं का जो उमड आया है पलकों तक 

किसी सूरत ये टल जाए तो शायद नींद आ जाए


ये हँसता मुस्कुराता क़ाफ़िला जो चाँद तारों का 

'फ़रह' आगे निकल जाए तो शायद नींद आ जाए

Rupa Oos ki ek Boond
         
"बेचैन इस क़दर थी कि सो न सकी रात भर,  
पलकों से लिख रही थी तेरा नाम चांद पर ..❣️



ईमानदारी

ईमानदारी

आज गांव के एक बच्चे की ईमानदारी की बात करते हैं, जो अभाव में भी अपनी ईमानदारी को नहीं छोड़ता।

किसी गांव में एक लड़का रहता था। उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। बहुत ही मुश्किल से उसके घर में भोजन पानी की व्यवस्था हो पति थी। आर्थिक तंगी के बीच पले बढ़े इस बच्चे के मन में विचार आया कि किसी बड़े शहर में जाकर वह नौकरी कर ले। वह कलकत्ता गया और नौकरी ढूंढने लगा।

कुछ दिन खोज बीन के बाद उसे एक सेठ के घर में नौकरी मिल गयी। काम था सेठ को रोज़ 6 घंटे अख़बार और किताब पढ़कर सुनाना। लड़के को नौकरी की ज़रूरत थी तो उसने वह नौकरी स्वीकार कर ली।

ईमानदारी

एक दिन की बात है लड़के को दुकान के कोने में 100-100 के 8 नोट पड़े मिले। उसने चुपचाप उन्हें अख़बारों और किताबों से ढक दिया। दूसरे दिन रुपयों की खोजबीन हुई। वह रुपये किसी ग्राहक के थे, जो गलती से गिर गए थे। दुकान पर काम करने वाले सभी लोगों से पूछ ताछ शुरू हुई। लड़का सुबह जब दुकान पर आया तो उससे भी पूछा गया।

लड़के ने तुरंत ही प्रसनन्ता से रूपये निकालकर ग्राहक को दे दिए। वह बहुत ही खुश हुआ। लड़के के ईमानदारी से सबको बहुत प्रसनन्ता हुई। सेठ भी लड़के से बहुत खुश हुआ। सेठ ने लड़के को पुरस्कार देना चाहा, तो लड़के ने लेने से मना कर दिया।

लड़के ने सेठ जी से कहा - अगर आप कुछ करना ही चाहते हैं तो, मैं आगे पढ़ना चाहता हुँ , पर पैसो के आभाव ने पढ़ नहीं पा रहा। यदि आप कुछ सहयता कर दें।

सेठ ने लड़के की पढ़ाई का प्रबंध कर दिया। लड़के ने जी जान लगा दी और बहुत मेहनत से पढता गया। यह लड़का आगे चलकर सहित्यकार बना। इसका नाम था – राम नरेश त्रिपाठी। हिंदी साहित्य में इनका बहुत बढ़ा योगदान है।

झारखंड का राजकीय फूल - पलाश || Butea gum || State Flower of Jharkhand - Palash

झारखंड का राजकीय फूल - पलाश

सामान्य नाम:  पलाश
स्थानीय नाम: पलाश
वैज्ञानिक नाम: 'ब्यूटिया मोनोस्पर्मा'

झारखंड का राजकीय फूल पलाश है। इसका वैज्ञानिक नाम "butea monosperma" है। पलाश की पेड़ तो लगभग सभी लोग जानते होंगे। यह पेड़ सड़क किनारे साधारणतया देखने को मिल जाता है और इसपर लगे फूल अपनी आकर्षक खूबसूरती से सभी को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। यह वृक्ष हिंदुओं के पवित्र माने हुए वृक्षों में से हैं। इसका उल्लेख वेदों तक में मिलता है। पलाश को ढाक और टेसू के नाम से भी जाना जाता है। यह उत्तर प्रदेश का भी राजकीय फूल है। 
झारखंड का राजकीय फूल - पलाश || Butea gum || State Flower of Jharkhand - Palash

पलाश की उत्पत्ति बिहार और झारखंड में हुई थी। पलाश के फूलों को शायद इसके रंग के कारण 'जंगल की लपटें' भी कहा जाता है, वैसे तो यह तीन रंगों में होता है - सफेद, पीला और लाल- नारंगी। आदिवासी संस्कृति में पलाश का बहुत महत्व है। 

झारखंड के राज्य प्रतीक  

राज्य पशु – हाथी 
राज्य पक्षी – एशियाई कोयल
राज्य वृक्ष – साल या सखुआ 
राज्य पुष्प – पलाश
राज्य की भाषा – हिन्दी (कई जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाएं)
राज्य गीत – 'खेलो झारखंड'

पलाश झारखंड में बहुतायत पाया जाता है। दिखने में यह काफी आकर्षक होता है पर इसमें सुगंध नहीं होती। ग्रीष्म ऋतु के शुरुआती समय में इसे बहुतायत देखा सकता है। पलास भारतवर्ष के सभी प्रदेशों और सभी स्थानों में पाया जाता है। पलास का वृक्ष मैदानों और जंगलों ही में नहीं, ४००० फुट ऊँची पहाड़ियों की चोटियों पर भी मिलता है। पलाश का पेड़ टेढ़ा - मेढ़ा 12 से 15 मीटर ऊंचा, मध्यम आकार का वृक्ष होता है। इसके पत्ते बृहत् त्री- पत्रक युक्त तथा स्पष्ट सिरा युक्त होते हैं। इसके पत्तों का प्रयोग दोना तथा पत्तल बनाने के लिए किया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में इसकी त्वचा को छत करने पर एक रस निकलता है, जो लाल रंग का होता है तथा सूखने पर कृष्णा रक्त वर्ण युक्त, भंगुर तथा चमकदार होता है। 

झारखंड का राजकीय फूल - पलाश || Butea gum || State Flower of Jharkhand - Palash

पलाश की वृक्ष पर वसंत ऋतु में फूल खिलते हैं, जो तीन रंगों में होता है - सफेद, पीला और लाल- नारंगी। आयुर्वेद में पलाश के पेड़ को बहुत ही अहम स्थान दिया गया है, क्योंकि पलाश के बहुगुणी होने के कारण इसको कई तरह की बीमारियों के लिए औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद में पलाश के जड़, बीज, तना, फूल और फल का उपयोग किया जाता है। पलाश में बहुत सारे पोषक तत्व हैं जो उसको अमूल्य बना देते हैं। राजस्थान और बंगाल में इनसे तंबाकू की बीड़ियाँ भी बनाते हैं।

पलाश के वृक्ष का हर हिस्सा उपयोगी होता है। पलाश के बीज में पेट के कीड़े मारने का गुण विशेष रूप से निहित होता है। फूल को उबालने से एक प्रकार का ललाई लिए हुए पीला रंग भी निकलता है, जिसका खासकर होली के अवसर पर प्रयोग किया जाता है। फली की बुकनी कर लेने से वह भी अबीर का काम देती है। छाल से एक प्रकार का रेशा निकलता है जिसको जहाज के पटरों की दरारों में भरकर भीतर पानी आने की रोक की जाती है। जड़ की छाल से जो रेशा निकलता है, उसकी रस्सियाँ बटी जाती हैं। इससे दरी और कागज भी बनाया जाता है। इसकी पतली डालियों को उबालकर एक प्रकार का कत्था तैयार किया जाता है। मोटी डालियों और तनों को जलाकर कोयला तैयार करते हैं। छाल पर बछने लगाने से एक प्रकार का गोंद भी निकलता है, जिसको 'चुनियाँ गोंद' या पलास का गोंद कहते हैं। 

झारखंड का राजकीय फूल - पलाश || Butea gum || State Flower of Jharkhand - Palash

उत्तर प्रदेश और झारखण्ड का राज्य पुष्प होने के साथ ही इसको 'भारतीय डाकतार विभाग' द्वारा डाक टिकट पर प्रकाशित कर सम्मानित किया जा चुका है। एक "लता पलाश" भी होता है। लता पलाश दो प्रकार का होता है। एक तो लाल पुष्पो वाला और दूसरा सफेद पुष्पो वाला। सफेद पुष्पो वाले लता पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। वैज्ञानिक दस्तावेज़ों में दोनो ही प्रकार के लता पलाश का वर्णन मिलता है। सफेद फूलों वाले लता पलाश का वैज्ञानिक नाम "ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा" है जबकि लाल फूलो वाले को "ब्यूटिया सुपर्बा" कहा जाता है। 

एक पीले पुष्पों वाला पलाश भी होता है। इसका उपयोग तांत्रिक गति-विधियों में भी बहुतायत से किया जाता है। पलाश की पत्तियों का उपयोग वैवाहिक कार्यक्रमों मे मंडपाच्छादन के लिए और मेहमानों को भोजन कराने के लिए दोना पत्तल के रूप मेें बहुत प्रचलित था,यह गांव मे सस्ते इंधन का विकल्प है और जलाऊ लकड़ी के रूप मेें उपयोग होता है। पलाश के फूलों का रस तितली, मधुमक्खियों बंदरों के अलावा बच्चों को भी बहुत मधुर लगता है। इसके फूलों के गहने बच्चों को बहुत भाते हैं। छत्तीसगढ़ ये की लोकप्रिय गीत इन फूलों पर बनाते और फिल्माए गए हैं जैसे ,"रस घोले ये माघ फगुनवा,मन डोले रे माघ फगुनवा,राजा बरोबर लगे मौरे आमा रानी सही परसा फुलवा । "

English Translate

State flower of Jharkhand - Palash

Common name: Palash
Local name: Palash
Scientific name: 'Butea monosperma'

The state flower of Jharkhand is Palash. Its scientific name is "butea monosperma". Almost everyone must be knowing the Palash tree. This tree is commonly seen on the roadside and the flowers on it attract everyone with their attractive beauty. This tree is among the trees considered sacred by Hindus. It is mentioned even in the Vedas. Palash is also known as Dhak and Tesu. It is also the state flower of Uttar Pradesh.

झारखंड का राजकीय फूल - पलाश || Butea gum || State Flower of Jharkhand - Palash

Palash originated in Bihar and Jharkhand. Palash flowers are also called 'flames of the forest' probably because of its color, although it is found in three colors - white, yellow and red-orange. Palash has great importance in tribal culture.

State symbols of Jharkhand

State animal – Elephant
State bird – Asian Koel
State tree – Sal or Sakhua
State flower – Palash
State language – Hindi (many tribal and regional languages)
State song – 'Khelo Jharkhand'

Palash is found in abundance in Jharkhand. It looks very attractive but does not have fragrance. It can be seen in abundance during the early summer season. Palas is found in all the states and all places of India. Palas tree is found not only in plains and forests but also on the peaks of 4000 feet high hills. Palas tree is a crooked, 12 to 15 meter tall, medium sized tree. Its leaves have large three-leaflets and have clear ends. Its leaves are used to make dona and pattal. In summer, when its skin is peeled, a juice comes out which is red in colour and when dried, it becomes blackish red in colour, brittle and shiny.

In spring, flowers bloom on the Palaash tree, which are of three colours - white, yellow and red-orange. In Ayurveda, the Palaash tree has been given a very important place, because due to the versatility of Palaash, it is used as a medicine for many kinds of diseases. In Ayurveda, the root, seed, stem, flower and fruit of Palaash are used. Palaash has many nutrients which make it invaluable. In Rajasthan and Bengal, tobacco bidis are also made from it.

झारखंड का राजकीय फूल - पलाश || Butea gum || State Flower of Jharkhand - Palash

Every part of the Palaash tree is useful. The Palaash seed especially has the property of killing stomach worms. By boiling the flower, a kind of reddish yellow colour also comes out, which is especially used on the occasion of Holi. By grinding the pod into powder, it also works as abir. A type of fiber comes out from the bark which is filled in the cracks of the ship's planks to prevent water from entering inside. The fiber that comes out from the root bark is used to make ropes. Carpets and paper are also made from it. A type of catechu is prepared by boiling its thin branches. Coal is prepared by burning thick branches and stems. A type of gum also comes out by applying resin on the bark, which is called 'Chuniya Gum' or Palas Gum.

Along with being the state flower of Uttar Pradesh and Jharkhand, it has been honored by the 'Indian Postal Department' by publishing it on a postage stamp. There is also a "Laata Palaash". Laata Palaash is of two types. One with red flowers and the other with white flowers. Laata Palaash with white flowers is considered more useful from a medicinal point of view. Description of both types of Laata Palaash is found in scientific documents. The scientific name of the white flowering creeper palash is "Butea parviflora" while the one with red flowers is called "Butea superba".

There is also a yellow flowering palash. It is also used in tantric rituals. The use of palash leaves was very popular in wedding ceremonies for covering the mandap and in the form of dona pattal for serving food to the guests. It is a cheap fuel option in villages and is used as firewood. The nectar of the palash flowers is very sweet not only for butterflies, bees, monkeys but also for children. Children like the ornaments made of its flowers very much. Popular songs of Chhattisgarh have been made and filmed on these flowers such as, "Ras ghole ye Magh phagunwa, Man dole re Magh phagunwa, Raja barobar lage maure aama rani sahi parsa phulwa."

पलाश के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें