कालकाजी मंदिर
कालकाजी मंदिर राजधानी दिल्ली का एक लोकप्रिय मंदिर है, जो माता काली को समर्पित है। कालकाजी का मंदिर दिल्ली के साथ पूरे देशभर में प्रसिद्ध है। दक्षिण दिल्ली में स्थित यह मंदिर अरावली पर्वत श्रृंखला के सूर्यकूट पर्वत पर है, जहां मां कालका माता के नाम से विराजमान हैं। कालकाजी माता का मंदिर सिद्धपीठों में से एक माना जाता है और नवरात्र के दौरान यहां एक से डेढ़ लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर लोटस टेंपल और इस्कॉन टेंपल के पास स्थित है।
कालकाजी मंदिर का इतिहास
कालकाजी मंदिर बहुत प्राचीन हिन्दू मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान मंदिर के प्राचीन हिस्से का निर्माण मराठाओं की ओर से सन् 1764 ईस्वी में किया गया था। बाद में सन् 1816 ईस्वी में अकबर के पेशकार राजा केदार नाथ ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया था।
3000 साल पुराना
मान्यताओं के अनुसार मंदिर 3000 साल से अधिक पुराना है। मान्यता है कि इस पीठ का स्वरूप हर काल में बदलता रहता है। मां दुर्गा ने यहीं पर महाकाली के रूप में प्रकट होक असुरों का संहार किया था। कालकाजी मंदिर प्राचीनतम सिद्धपीठों में एक है। मौजूदा मंदिर बाबा बालकनाथ ने स्थापित किया था। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान मंदिर के पुराने हिस्से का निर्माण मराठाओं ने 1764 में करवाया था। बाद में 1816 में अकबर द्वितीय ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।
महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ की थी अराधना
इस पीठ का अस्तित्व अनादि काल से है। माना जाता है कि हर काल में इसका स्वरूप बदला। मान्यता है कि इसी जगह आद्यशक्ति माता भगवती 'महाकाली' के रूप में प्रकट हुई और असुरों का संहार किया, तब से यह मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है। मौजूदा मंदिर बाबा बालकनाथ ने स्थापित किया था। उनके कहने पर मुगल सम्राज्य के कल्पित सरदार अकबर शाह ने इसका जीर्णोद्धार कराया। बीसवीं शताब्दी के दौरान दिल्ली में रहने वाले हिन्दू धर्म के अनुयायियों और व्यापारियों ने यहां चारों ओर कई मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया था। उसी दौरान इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप बनाया गया था। ऐसा भी माना जाता है कि महाभारत काल में युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ यहां भगवती की अराधना की थी। बाद में बाबा बालकनाथ ने इस पर्वत पर तपस्या की। तब मां भगवती ने उन्हें दर्शन दिए थे।
300 साल पुराना ऐतिहासिक हवन कुंड
कालकाजी मंदिर पिरामिडनुमाकार बना हुआ है। मंदिर का केंद्रीय भाग पूरी तरह से संगमरमर से बना हुआ है। मंदिर में काली देवी की एक पत्थर की मूर्ति भी है। अकबर द्वितीय ने इस मंदिर में 84 घंटे लगवाए थे। इनमें से कुछ घंटे अब मौजूद नहीं है। इन घंटों की विशेषता यह है कि हर घंटे की आवाज अलग है। इसके अलावा 300 साल पुराना ऐतिहासिक हवन कुंड भी मंदिर में है और वहां आज भी हवन किए जाते हैं।
कालकाजी मंदिर की विशेषता
कालकाजी के मुख्य मंदिर में 12 द्वार हैं, जो 12 महीनों का संकेत देते हैं। हर द्वार के पास माता के अलग-अलग रूपों का चित्रण किया गया है। मंदिर के परिक्रमा में 36 मातृकाओं (हिन्दी वर्णमाला के अक्षर) के द्योतक हैं। माना जाता है कि ग्रहण में सभी ग्रह इनके अधीन होते हैं, इसलिए दुनिया भर के मंदिर ग्रहण के वक्त बंद होते हैं, जबकि कालकाजी मंदिर खुला होता है।
दिन में दो बार होता है मां के शृंगार
माँ का श्रृंगार दिन में दो बार किया जाता है। सुबह के समय मां के 16 श्रृंगार के साथ फूल, वस्त्र आदि पहनाए जाते हैं, वहीं शाम को शृंगार में आभूषण से लेकर वस्त्र तक बदले जाते हैं। मां की पोशाक के अलावा आभूषण का विशेष महत्व होता है। नवरात्र के दौरान रोजाना मंदिर को 150 किलो फूलों से सजाया जाता है। इनमें से काफी सारे फूल विदेशी होते हैं। मंदिर की सजावट में इस्तेमाल फूल अगले दिन श्रद्धालुओं को प्रसाद के साथ बांटे जाते हैं। मंदिर में बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों के मुंडन के लिए भी आते हैं।
महाकाली ने रक्तबीज का किया था वध
मंदिर के महंत के अनुसार जब असुरों का प्रकोप बहुत बढ़ गया और वो देवताओं को सताने लगे तब देवताओं ने इसी जगह शिवा (शक्ति) की अराधना की। देवताओं के वरदान मांगने पर मां पार्वती ने कौशिकी देवी को प्रकट किया, जिन्होंने अनेक असुरों का संहार किया, लेकिन रक्तबीज को नहीं मार सकीं। इसके बाद पार्वती ने अपनी भृकुटी से महाकाली को प्रकट किया, जिन्होंने रक्तबीज का संहार किया। महाकाली का रूप देखकर सभी भयभीत हो गए। देवताओं ने काली की स्तुति की तो मां भगवती ने कहा कि जो भी इस स्थान पर श्रृद्धाभाव से पूजा करेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी।
कालकाजी मंदिर की वास्तुकला
कालकाजी मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण ईंट और संगमरमर के पत्थरों से किया गया। इसका बरामदा 8 से 9 फुट तक चौड़ा है। इस बरामदे ने मुख्य मंदिर को चारों ओर से घेरा हुआ है। मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में माता का शक्ति पीठ विराजमान है। मंदिर के सामने बाहर आंगन में दो बाघों की मूर्ति है, जिसका निर्माण बलुआ पत्थरों से किया गया है। इन दोनों बाघों के नीचे संगमरमर का आसन बना हुआ है। इस मंदिर में काली देवी की एक पत्थर की मूर्ति भी स्थित है, जिसपर उनका नाम हिन्दी में लिखा हुआ है। उस मूर्ति के सामने एक पत्थर का बना हुआ त्रिशूल भी खड़ा किया गया है।
नवरात्र मेले में घूमती हैं माता
इस मंदिर में वेदोक्त, पुराणोक्त और तंत्रोक्त तीनों विधियों से पूजा होती है। नवरात्र में यहां मेला लगता है। रोजाना हजारों लोग माता के दर्शन करने पहुंचते हैं। इस मंदिर में अखंड दीप प्रज्जवलित है। पहली नवरात्र के दिन लोग मंदिर से माता की जोत अपने घर ले जाते हैं। मंदिर में सुबह शाम आरती होती है। मान्यता है कि अष्टमी और नवमी को माता मेला में घूमती हैं, इसलिए अष्टमी के दिन सुबह की आरती के बाद कपाट खोल दिया जाता है। इस दौरान दो दिन आरती नहीं होती है और फिर उसके बाद दसवीं को आरती की जाती है।
सुबह-शाम की आरती का वक़्त
मंदिर सुबह 4:00 बजे से रात्री 11:00 बजे तक खुला रहता है, लेकिन दिन में 11:30 से 12:00 बजे के बीच 30 मिनट तक भोग लगाने के लिए यह मंदिर बंद किया जाता है। वहीं शाम को 3:00 से 4:00 बजे के बीच साफ-सफाई के लिए बंद किया जाता है। बाकी किसी भी समय इस मंदिर में पूजा-पाठ और दर्शन के लिए जा सकते हैं। इस मंदिर में सुबह और शाम को दो बार आरती की जाती है। शाम को होने वाली आरती को तांत्रिक आरती के रूप में जाना जाता है। मौसम के अनुसार आरतियों के समय में भी बदलाव होते रहता है। इस मंदिर में हर दिन अलग-अलग पुजारी पूजा-पाठ करते हैं।
माता को क्या लगता है भोग
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि माता का विशिष्ट भोग का समय सुबह 11:30 बजे होता है, जिसमें 6-7 तरह के व्यंजन और पकवान उन्हें चढ़ाया जाता है। वहीं आरती के वक्त बुरा और पंचमेवा का भोग लगाया जाता है, चूंकि माता को सात्विक, राजसी और तामसी तीनों तरह से भोग लगाए जाते हैं। माता और यहां विराजमान भैरव को मंगलवार और सप्तमी के दिन को छोड़ कर सोमरस आज के समय में मदिरा भी चढ़ाया जाता है, वैसे ये आवश्यक नहीं होता है।
मशहूर शख्सियत पहुंचते हैं माता के दरबार में
मां कालकाजी का ये मंदिर मनोकामना मंदिर के नाम से भी मशहूर है, इसलिए आम से खास लोग मंदिर में मां के दर्शन और इच्छा पूर्ति के लिए आते रहे हैं, जिनमें बॉलीवुड के कलाकारों से लेकर राजनीति के बड़े-बड़े दिग्गज नेता तक शामिल हैं।
कालकाजी मंदिर कैसे पहुंचे
मैं लखनऊ में रहती हूँ, यहाँ लखनऊ मेट्रो का सफर सीमित है, पर दिल्ली मेट्रो बहुत विस्तृत है। कालकाजी मंदिर पहुंचने के लिए दिल्ली का सफर अच्छा है। वॉयलेट लाइन वाली मेट्रो से आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। कालकाजी मेट्रो स्टेशन पर उतर कर आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। वहीं अगर सड़क मार्ग से कालकाजी मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो शहर के किसी भी कोने से दिल्ली परिवहन निगम की बसों, निजी बसों और टैक्सियों के माध्यम से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यह मंदिर दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध जगह नेहरू प्लेस के पास और ओखला-कालकाजी मेट्रो स्टेशन के बीच में स्थित है। कालकाजी मंदिर के पास कुछ और प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है। मंदिर में दर्शन करने के बाद अगर घूमने की प्लानिंग है तो लोटस टेंपल, इंडिया गेट, अक्षरधाम और लालकिला जैसी जगहों पर घूम सकते हैं।
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Kalkaji Temple
Kalkaji Temple is a popular temple of the capital Delhi, dedicated to Mata Kali. Kalkaji Temple is famous all over the country along with Delhi. Located in South Delhi, this temple is on the Suryakut mountain of the Aravali mountain range, where Maa Kalka is seated in the name of Mata. Kalkaji Mata Temple is considered one of the Siddhapeeths and during Navratri, one to one and a half lakh devotees come here for darshan. This temple is located near Lotus Temple and ISKCON Temple.
History of Kalkaji Temple
Kalkaji Temple is a very ancient Hindu temple. It is believed that the ancient part of the present temple was built by the Marathas in 1764 AD. Later in 1816 AD, Akbar's Peshkar Raja Kedar Nath rebuilt this temple.
3000 years old
According to beliefs, the temple is more than 3000 years old. It is believed that the form of this Peeth keeps changing in every era. It was here that Maa Durga appeared in the form of Mahakali and killed the demons. Kalkaji temple is one of the oldest Siddhapeeths. The present temple was established by Baba Balaknath. It is believed that the old part of the present temple was built by the Marathas in 1764. Later in 1816, Akbar II got it rebuilt.
During the Mahabharata period, Shri Krishna worshipped with the Pandavas.
This Peeth has existed since time immemorial. It is believed that its form changed in every period. It is believed that at this place Adishakti Mata Bhagwati appeared in the form of 'Mahakali' and killed the demons, since then it is famous as Manokamna Siddhapeeth. The present temple was established by Baba Balaknath. On his request, Akbar Shah, the imaginary chieftain of the Mughal Empire, got it renovated. During the twentieth century, the followers and traders of Hindu religion living in Delhi built many temples and dharamshalas around here. During that time, the present form of this temple was built. It is also believed that before the war in the Mahabharata period, Lord Krishna had worshipped Bhagwati here with the Pandavas. Later Baba Balaknath did penance on this mountain. Then Maa Bhagwati appeared before him.
300 years old historical Hawan Kund
The Kalkaji temple is pyramid-shaped. The central part of the temple is completely made of marble. There is also a stone idol of Kali Devi in the temple. Akbar II had installed 84 bells in this temple. Some of these bells are no longer present. The specialty of these bells is that the sound of each bell is different. Apart from this, there is also a 300 years old historical Hawan Kund in the temple and Hawans are performed there even today.
Features of Kalkaji Temple
The main temple of Kalkaji has 12 gates, which indicate 12 months. Different forms of the mother have been depicted near each gate. There are 36 Matrikas (letters of the Hindi alphabet) in the parikrama of the temple. It is believed that all the planets are under her control during eclipse, so temples all over the world are closed during eclipse, while Kalkaji temple is open.
Maa's Shringar is done twice a day
Maa's Shringar is done twice a day. In the morning, flowers, clothes etc. are worn along with 16 Shringar of Maa, while in the evening, from jewellery to clothes are changed. Apart from Maa's dress, jewellery has special importance. During Navratri, the temple is decorated with 150 kg of flowers every day. Many of these flowers are foreign. The flowers used in the decoration of the temple are distributed to the devotees with Prasad the next day. A large number of people also come to the temple for the tonsure of their children.
Mahakali had killed Raktbeej
According to the Mahant of the temple, when the fury of the demons increased a lot and they started harassing the gods, then the gods worshipped Shiva (Shakti) at this place. When the gods asked for a boon, Maa Parvati manifested Kaushiki Devi, who killed many demons, but could not kill Raktbeej. After this, Parvati manifested Mahakali from her eyebrows, who killed Raktbeej. Everyone got frightened seeing the form of Mahakali. When the gods praised Kali, Maa Bhagwati said that whoever worships at this place with devotion, his wish will be fulfilled.
Architecture of Kalkaji Temple
The present form of Kalkaji Temple was built with brick and marble stones. Its verandah is 8 to 9 feet wide. This verandah surrounds the main temple from all sides. Mother's Shakti Peeth is seated in the sanctum sanctorum of the main temple. There is a statue of two tigers in the courtyard outside the temple, which is made of sandstone. There is a marble seat under these two tigers. A stone statue of Kali Devi is also located in this temple, on which her name is written in Hindi. A trident made of stone has been placed in front of the idol.
The Goddess roams in the Navratri fair
In this temple, worship is done through all three methods, Vedic, Puranic and Tantric. A fair is held here during Navratri. Thousands of people come to see the Goddess every day. An eternal lamp is lit in this temple. On the first day of Navratri, people take the Goddess's flame from the temple to their homes. Aarti is performed in the temple in the morning and evening. It is believed that the Goddess roams in the fair on Ashtami and Navami, so the doors are opened after the morning Aarti on Ashtami. During this time, Aarti is not performed for two days and then Aarti is performed on the tenth day.
Time of morning and evening Aarti
The temple is open from 4:00 am to 11:00 pm, but during the day it is closed for 30 minutes between 11:30 am and 12:00 pm for offerings. while closed for cleaning between 3:00 and 4:00 p.m. Others can visit the temple at any time for worship and darshan. Aarti is performed twice in the morning and evening. The evening Aarti is known as Tantric Aarti. The time of Aartis also varies according to the season. Different priests perform pujas in this temple every day.
What does the mother feel is pleasure
As mentioned above, the typical enjoyment time of the mother is at 11:30 am, in which 6-7 kinds of dishes and dishes are offered to her. During the Aarti, offerings of Bura and Panchameva are made, since the mother is offered in three ways: Sattvic, Rajasic and Tamasic. Somaras is also offered to the mother and Bhairav who resides here except on Tuesdays and Saptami days. However, it is not necessary.
Famous personalities arrive at the court of the mother
This temple of Maa Kalkaji is also known as the Manokamana Temple, so people from common to special have been visiting the temple for darshan and wish fulfillment of the mother, including Bollywood actors to big political leaders.
How to reach Kalkaji Temple
I live in Lucknow, here Lucknow metro journey is limited, but Delhi metro is very extensive. Delhi is a good journey to reach Kalkaji Temple. The temple is easily accessible by violet line metro. You can get down at Kalkaji metro station and reach the temple easily. On the other hand, if you want to reach Kalkaji temple by road, you can reach the temple from any corner of the city through Delhi Transport Corporation buses, private buses and taxis. The temple is located near Nehru Place, the most famous place in Delhi and between Okhla-Kalkaji metro station. There are some other famous sightseeing spots near Kalkaji Temple. After visiting the temple, if you are planning to visit places like Lotus Temple, India Gate, Akshardham and Red Fort.