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गणेश चतुर्थी 2022 || Ganesh Chaturthi 2022 ||

गणेश चतुर्थी

आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयां !!

गणेश चतुर्थी || Ganesh Chaturthi ||

आज 31 अगस्त दिन बुधवार को गणेश चतुर्थी पर्व मनाया जा रहा है। गणेश चतुर्थी हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जी के जन्मोत्सव के दिन गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री गणेश जी का जन्म भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था। यह उत्सव हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक 10 दिनों तक चलता है।

गणेश चतुर्थी || Ganesh Chaturthi ||

वैसे तो भारत के विभिन्न त्योहार की तरह गणेश चतुर्थी का त्योहार भी बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ देश के अलग-अलग राज्यों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है, परंतु मुख्य रूप से गणेश चतुर्थी के त्योहार का भव्य आयोजन महाराष्ट्र में किया जाता है। भगवान श्री गणेश की प्रतिष्ठा संपूर्ण भारत में समान रूप से की जाती है। महाराष्ट्र इसे 'मंगलकारी देवता' के रूप में व 'मंगल मूर्ति' के नाम से पूजता है, तो दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता 'कला शिरोमणि' के रूप में है। मैसूर और तंजौर के मंदिरों में गणेश जी की नृत्य मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं।

गणेश चतुर्थी || Ganesh Chaturthi ||

हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश को एक विशेष स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो या यज्ञ पूजन हो निर्विघ्नं कार्य संपन्न करने के लिए भगवान गणपति जी की पूजा सबसे पहले की जाती है। 

वर्तमान समय में गणेश चतुर्थी का सबसे बड़ा मेला मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में आयोजित होता है। भगवान श्री गणेश को हम लंबोदर, विघ्नहर्ता और अन्य नामों से भी जानते हैं। उन्हें तर्क, बुद्धि और विवेक का देवता माना जाता है। भगवान गणेश की सवारी चूहा है और इनका सर्वप्रिय भोग मोदक है।

गणेश चतुर्थी || Ganesh Chaturthi ||

गणेश चतुर्थी के अवसर पर कई प्रमुख जगहों पर भगवान श्री गणेश की बड़ी प्रतिमाएं भी स्थापित की जाती हैं। इस प्रतिमा का 9 दिनों तक पूजन किया जाता है तथा बड़ी संख्या में आसपास के लोग दर्शन करने आते हैं। 9 दिन बाद गानों, बाजो, पटाखों के साथ गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है।

गणेश चतुर्थी || Ganesh Chaturthi ||

हर की पौड़ी, हरिद्वार || Har Ki Pauri, Haridwar ||

हर की पौड़ी, हरिद्वार

हर की पौड़ी या हरि की पौड़ी इसका भावार्थ है- "हरि यानी नारायण के चरण"

हर की पौड़ी भारत के उत्तराखंड राज्य की एक धार्मिक नगरी हरिद्वार का एक पवित्र और सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। हर की पौड़ी या ब्रह्मा कुंड पवित्र नगरी हरिद्वार का मुख्य घाट है। यह माना गया है कि यही वह स्थान है, जहां से गंगा नदी पहाड़ों को छोड़ मैदानी क्षेत्रों की ओर अग्रसर होती हैं। इस स्थान पर नदी में पापों को धो डालने की शक्ति है, क्योंकि प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, हर की पौड़ी में एक शिला में भगवान विष्णु के पद चिन्ह हैं, इसी वजह से इस घाट को हर की पौड़ी के नाम से जाना जाता है। यह घाट गंगा नदी की नहर के पश्चिमी तट पर है जहां से नदी उत्तर की ओर मुड़ जाती है।हरिद्वार में हर की पौड़ी के घाट पर कुंभ का मेला लगता है।

हर की पौड़ी, हरिद्वार || Har Ki Pauri, Haridwar ||

हर की पौड़ी, हरिद्वार की कथा

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के बाद जब धनवंतरी अमृत के लिए झगड़ रहे देव-दानव से बचाकर अमृत ले जा रहे थे तो पृथ्वी पर इसकी कुछ बूंदे गिर गई और वह स्थान धार्मिक महत्त्व वाले स्थान बन गए। अमृत की बूंदें हरिद्वार में भी गिरीं, जहां पर गिरीं, वह स्थान हर की पौड़ी था। यहां पर स्नान करना हरिद्वार आए हर श्रद्धालु की सबसे प्रबल इच्छा होती है, क्योंकि यह माना जाता है कि यहां पर स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

हर की पौड़ी, हरिद्वार || Har Ki Pauri, Haridwar ||

हर की पौड़ी वह घाट है, जिसे विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि की याद में बनवाया था। इस घाट को 'ब्रह्मकुंड' के नाम से भी जाना जाता है, जो गंगा के पश्चिमी तट पर है।यह भी कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां पर वैदिक काल में श्री हरि (विष्णु) और शिव जी प्रकट हुए थे।

संध्या काल में गंगा घाट पर आरती की जाती है। यह दृश्य बेहद मनमोहक होता है, जब दीपों की रोशनी से जल में भी दीपों की प्रति ज्वाला जलती दिखती है।

इस मुख्य घाट के अतिरिक्त यहां पर नहर के किनारे अनेक छोटे-छोटे घाट हैं। थोड़े-थोड़े अंतराल पर ही संतरी व सफेद रंग के जीवन रक्षक टावर लगे हुए हैं, जो यह निगरानी रखते हैं कि कहीं कोई श्रद्धालु बह ना जाए।

हर की पौड़ी, हरिद्वार || Har Ki Pauri, Haridwar ||

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Har Ki Pauri, Haridwar

Har ki Pauri or Hari ki Pauri meaning - "Hari means feet of Narayan".

Har ki Pauri is a holy and most important religious place in Haridwar, a religious city in the state of Uttarakhand, India. Har Ki Pauri or Brahma Kund is the main ghat of the holy city of Haridwar. It is believed that this is the place from where the river Ganges leaves the mountains and moves towards the plains. The river at this place has the power to wash away sins, because according to popular beliefs, there is a rock at Har Ki Pauri. It has the footprints of Lord Vishnu, that is why this ghat is known as Har Ki Pauri. This ghat is on the western bank of the canal of the river Ganges, from where the river turns north. Kumbh Mela is held at Har Ki Pauri Ghat in Haridwar.

हर की पौड़ी, हरिद्वार || Har Ki Pauri, Haridwar ||

Story of Har ki Pauri, Haridwar

According to Hindu religious beliefs, after the churning of the ocean, when Dhanvantari was carrying nectar from a demon who was fighting for nectar, a few drops of it fell on the earth and the place became a place of religious importance. The drops of nectar also fell in Haridwar, the place where it fell was Har Ki Pauri. Taking a bath here is the most ardent desire of every devotee who comes to Haridwar, because it is believed that bathing here leads to salvation.

हर की पौड़ी, हरिद्वार || Har Ki Pauri, Haridwar ||

Har Ki Pauri is the ghat built by Vikramaditya in the memory of his brother Bhatrihari. This ghat is also known as 'Brahmakund', which is on the western bank of the Ganges. It is also said that this is the place where Shri Hari (Vishnu) and Shiva appeared during the Vedic period.

Aarti is performed at Ganga Ghat in the evening. This scene is very enchanting, when the flame of the lamps is seen burning in the water with the light of the lamps.

हर की पौड़ी, हरिद्वार || Har Ki Pauri, Haridwar ||

Apart from this main ghat, there are many small ghats on the banks of the canal. There are life-saving towers of orange and white color at frequent intervals, which keep a watch that no devotee gets swept away.

सहस्रार चक्र : मुकुट केन्द्र || शरीर विज्ञान व सातचक्र ||

 सहस्रार चक्र : मुकुट केन्द्र

सहस्रार =हजार, अनंत, असंख्य

शरीर विज्ञान व सातचक्र

सहस्रार चक्र सिर के शिखर पर स्थित है। इसे "हजार पंखुडिय़ों वाले कमल”, "ब्रह्म रन्ध्र” (ईश्वर का द्वार) या "लक्ष किरणों का केन्द्र” भी कहा जाता है, क्योंकि यह सूर्य की भांति प्रकाश का विकिरण करता है। अन्य कोई प्रकाश सूर्य की चमक के निकट नहीं पहुंच सकता। इसी प्रकार, अन्य सभी चक्रों की ऊर्जा और विकिरण सहस्रार चक्र के विकिरण में धूमिल हो जाते हैं।

सहस्रार चक्र में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति - मेधा शक्ति है। मेधा शक्ति एक हार्मोन है, जो मस्तिष्क की प्रक्रियाओं जैसे स्मरण शक्ति, एकाग्रता और बुद्धि को प्रभावित करता है। योग अभ्यासों से मेधा शक्ति को सक्रिय और मजबूत किया जा सकता है।

सहस्रार चक्र : मुकुट केन्द्र || शरीर विज्ञान व सातचक्र ||

सहस्रार चक्र का कोई विशेष रंग या गुण नहीं है। यह विशुद्ध प्रकाश है, जिसमें सभी रंग हैं। सभी नाडिय़ों की ऊर्जा इस केन्द्र में एक हो जाती है, जैसे हजारों नदियों का पानी सागर में गिरता है। यहां अन्तरात्मा शिव की पीठ है। सहस्रार चक्र के जाग्रत होने का अर्थ दैवी चमत्कार और सर्वोच्च चेतना का दर्शन है। जिस प्रकार सूर्योदय के साथ ही रात्रि ओझल हो जाती है, उसी प्रकार सहस्रार चक्र के जागरण से अज्ञान धूमिल (नष्ट) हो जाता है।

सहस्रार चक्र : मुकुट केन्द्र || शरीर विज्ञान व सातचक्र ||

यह चक्र योग के उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करता है- आत्म अनुभूति और ईश्वर की अनुभूति, जहां व्यक्ति की आत्मा ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है। जिसे यह उपलब्धि मिल जाती है, वह सभी कर्मों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है - पुनर्जन्म और मृत्यु के चक्र से पूरी तरह स्वतंत्र। ध्यान में योगी निर्विकल्प समाधि (समाधि का उच्चतम स्तर) सहस्रार चक्र पर पहुंचता है, यहां मन पूरी तरह निश्चल हो जाता है और ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय एक में ही समाविष्ट होकर पूर्णता को प्राप्त होते हैं।

सहस्रार चक्र में हजारों पंखुडिय़ों वाले कमल का खिलना संपूर्ण, विस्तृत चेतना का प्रतीक है। इस चक्र के देवता विशुद्ध, सर्वोच्च चेतना के रूप में भगवान शिव है। इसका समान रूप तत्त्व आदितत्त्व, सर्वोच्च, आध्यात्मिक तत्त्व है। मंत्र वही है जैसा आज्ञा चक्र के लिए है- मूल जप ॐ

जीना अभी बाकी है

जीना अभी बाकी है 

Os Ki Boond
"घायल तो यहां हर परिंदा है. 
मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा है..❤"

जीना अभी बाकी है

गुजर रही है उम्र,

पर जीना अभी बाकी है।

जिन हालातों ने पटका है जमीन पर,

उन्हें उठकर जवाब देना अभी बाकी है।


चल रहा हूँ मन्जिल के सफर मैं,

मन्जिल को पाना अभी बाकी है,

कर लेने दो लोगों को चर्चे मेरी हार के,

कामयाबी का शोर मचाना अभी बाकी है ।


वक्त को करने दो अपनी मनमानी,

मेरा वक्त आना अभी बाकी है,

कर रहे है सवाल मुझसे जो 

उन सबको जवाब देना अभी बाकी है।


निभा रहा हूँ अपना किरदार जिंदंगी के मंच पर

परदा गिरते ही तालीयाँ बजना अभी बाकी है,

बहुत कुछ गया हाथ से अभी तक,

फिर भी बहुत कुछ पाना अभी बाकी है…

Good Morning

"हर वक़्त जीतने का जज्बा होना चाहिए, 
क्यूंकि किस्मत बदले न बदले पर समय ज़रूर बदलता है..❤"


टूटी प्रीति जुड़े न दूजी बार : पंचतंत्र || Tuti Preet jude na Duji baar : Panchtantra ||

टूटी प्रीति जुड़े न दूजी बार

भिन्नश्लष्टा तु या प्रीतिर्न सा स्नेहेन वर्धते ।

एक बार टूटकर जुड़ी हुई प्रीति कभी स्थिर नहीं रह सकती।

पंचतंत्र की कहानी: किसान और सांप (Panchtantra Ki Kahani: The Farmer And The Snake)

एक स्थान पर हरिदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। पर्याप्त मिक्षा न मिलने से उसने खेती करना शुरू कर दिया था। किन्तु खेती कभी ठीक नहीं हुई। किसी न किसी कारण फसल खराब हो जाती थी।

गर्मियों के दिनों में एक दिन वह अपने खेत में वृक्ष की छाया के नीचे लेटा हुआ था कि उसने पास ही एक बिल पर फन फैलाकर बैठे भयंकर साँप को देखा। साँप को देखकर सोचने लगा, अवश्यमेव यही मेरा क्षेत्र-देवता है, मैंने इसकी कभी पूजा नहीं की, तभी मेरी खेती सूख जाती है। अब इसकी पूजा किया करूँगा। यह सोचकर वह कहीं से दूध माँगकर पात्र में डाल लाया और बिल के पास जाकर बोला- क्षेत्रपाल ! मैंने अज्ञानवश आज तक आपकी पूजा नहीं की। आज मुझे ज्ञान हुआ है। पूजा की भेंट स्वीकार कीजिये और मेरे पिछले अपराधों को क्षमा कीजिये। यह कहकर वह दूध का पात्र वहीं रखकर वापस आ गया।

पंचतंत्र की कहानी: किसान और सांप (Panchtantra Ki Kahani: The Farmer And The Snake)

अगले दिन सुबह जब वह बिल के पास गया तो देखता क्या है कि साँप ने दूध पी लिया है और पात्र में एक सोने की मुहर पड़ी है। दूसरे दिन भी ब्राह्मण ने जिस पात्र में दूध रखा था उसमें सोने की मुहर पड़ी मिली। इसके बाद प्रतिदिन इसे दूध के बदले सोने की मुहर मिलने लगी। वह भी नियम से प्रतिदिन दूध देने लगा।

एक दिन हरिदत्त को गाँव से बाहर जाना था। इसीलिए उसने अपने पुत्र को पूजा का दूध ले जाने के लिए आदेश दिया। पुत्र ने भी पात्र में दूध रख दिया। दूसरे दिन उसे भी मुहर मिल गई। तब वह सोचने लगा, इस वल्मीक में सोने की मुहर का खजाना छिपा हुआ है, क्यों न इसे तोड़कर पूरा खज़ाना एक बार ही हस्तगत कर लिया जाए। यह सोचकर अगले दिन जब दूध का पात्र रखा और साँप दूध पीने आया तो उसने लाठी से साँप पर प्रहार किया। लाठी का निशाना चूक गया। साँप ने क्रोध में आकर हरिदत्त के पुत्र को काट लिया, वह वहीं मर गया।

दूसरे दिन जब हरिदत्त वापस आया तो स्वजनों से पुत्र मृत्यु का सब वृत्तान्त सुनकर बोला- पुत्र ने अपने किए का फल पाया है। जो व्यक्ति अपनी शरण में आए जीवों पर दया नहीं करता, उसके बने-बनाए काम बिगड़ जाते हैं जैसे पद्मसर में हंसों का काम बिगड़ गया।

स्वजनों ने पूछा-कैसे? हरिदत्त ने तब हंसों की अगली कथा सुनाई :

शरणागत को दुतकारो नहीं

To be continued ...


हलधर नाग || Haldhar Nag ||

हलधर नाग

आज एक ऐसे कवि और लेखक की चर्चा करते हैं, जिन्हें 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था - हलधर नाग

हलधर नाग, जिसके नाम के आगे कभी श्री नहीं लगाया गया, 3 जोड़ी कपड़े, एक टूटी रबड़ की चप्पल, एक बिन कमानी का चश्मा और जमा पूंजी 732/- रुपया। 

ये हैं ओड़िशा के हलधर नाग ।

हलधर नाग || Haldhar Nag ||

हलधर नाग, जिनका जन्म 31 मार्च 1950 में हुआ था, ओड़ीसा के संबंलपुरी भाषा के कवि और लेखक हैं। वे "लोककवि रत्न" के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनके बारे में विशेष बात यह है कि उन्हें अपनी लिखी सारी कविताएँ और 20 महाकाव्य कण्ठस्थ हैं। संभलपुर विश्वविद्यालय में उनके लेखन के एक संकलन "हलधर ग्रन्थावली-2" को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। सादा लिबास, सफेद धोती, गमछा और बनियान पहने, नाग नंगे पैर ही रहते हैं। उड़‍िया के लोक-कवि हलधर नाग के बारे में जब आप जानेंगे, तो प्रेरणा से ओतप्रोत हो जायेंगे।

हलधर का जन्म 1950 में ओडिशा के बरगढ़ में एक गरीब परिवार में हुआ था। जब वे 10 वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु के साथ हलधर का संघर्ष शुरू हो गया। तब उन्हें मजबूरी में तीसरी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। घर की अत्यन्त विपन्न स्थिति के कारण मिठाई की दुकान में बर्तन धोने पड़े। दो साल बाद गाँव के सरपंच ने हलधर को पास ही के एक स्कूल में खाना पकाने के लिए नियुक्त कर दिया, जहाँ उन्होंने 16 वर्ष तक काम किया। जब उन्हें लगा कि उनके गाँव में बहुत सारे विद्यालय खुल रहे हैं, तो उन्होंने एक बैंक से सम्पर्क किया और स्कूली बच्चों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने की एक छोटी सी दुकान शुरू करने के लिए 1000 रुपये का ऋण लिया। यह दुकान स्कूल के सामने थी, जहाँ वो छुट्टी के समय बैठते थे। 

कुछ समय पश्चात हलधर नाग ने स्थानीय उड़िया भाषा में ''राम-शबरी'' जैसे कुछ धार्मिक प्रसंगों पर लिखकर लोगों को सुनाना शुरू किया। उन्होंने भावनाओं से ओत प्रोत कवितायें लिखी, शुरुवाती दौर में जिन्हें नाग जबरन लोगों के बीच प्रस्तुत करते थे। धीरे - धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। 

1990 में हलधर ने पहली कविता "धोधो बारगाजी" (अर्थ : 'पुराना बरगद') नाम से लिखी, जिसे एक स्थानीय पत्रिका ने छापा और उसके बाद हलधर की सभी कविताओं को पत्रिका में जगह मिलती रही और वे आस-पास के गाँवों से भी कविता सुनाने के लिए बुलाए जाने लगे। लोगों को हलधर की कविताएँ इतनी पसन्द आईं कि वे उन्हें "लोक कविरत्न" के नाम से बुलाने लगे।

नाग पर PHD कर रहे रिसर्चर्स

अब उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ चुकी थी कि सन 2016 में हलधर नाग को भारत के राष्ट्रपति के द्वारा साहित्य के लिये पद्मश्री प्रदान किया। इतना ही नहीं अब 5 रिसर्चर्स हलधर नाग के साहित्य पर PHd कर रहे हैं, जबकि हलधर खुद केवल तीसरी कक्षा तक ही पढ़े हैं। हलधर नाग को पदम्श्री से सम्मानित करने और उनपर रिसर्चर्स के PHD करने पर कहा गया है कि

 ''आप किताबों में प्रकृति को चुनते है, 
पद्मश्री ने प्रकृति से किताबें चुनी हैं।''
जानिये पद्मश्री कवि हलधर नाग के बारे में

2021 में सोशल मिडिया पर एक पोस्ट वायरल हुई थी "साहिब - दिल्ही आने तक के पैसे नहीं हैं, कृपया पुरुस्कार डाक से भिजवा दो।"

डा. हलधर नाग को लेकर इंटरनेट मीडिया में एक गलत पोस्ट वायरल हुई थी। इस पोस्ट को लेकर नाग ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा था कि उनके नाम पर किया गया पोस्ट पूरी तरह झूठा और मनगढ़ंत है। ऐसे पोस्ट से वे काफी दुखी और आहत हैं। वायरल पोस्ट में कहा गया है कि पद्मश्री पुरस्कार लेने के लिए हलधर नाग के पास दिल्ली जाने के पैसे नहीं हैं और इस संबंध में सरकार को पत्र लिखकर नाग ने आग्रह किया है कि उनका पुरस्कार डाक से भेज दिया जाय।

नाग ने कहा कि शरारतपूर्ण तरीके से यह झूठी जानकारी वायरल की गई है। सच तो यह है कि उन्हें इस वर्ष नहीं बल्कि 2016 में पद्मश्री का पुरस्कार मिला था। 2016 में भी जब पद्मश्री पुरस्कार लेने के लिए उन्हें दिल्ली बुलाया गया था तब उन्होंने सरकार को अपनी गरीबी का हवाला देते हुए कोई पत्र नहीं लिखा था और न ही पदमश्री पुरस्कार को डाक से भेज देने की बात कही थी। लोककवि डा. हलधर नाग ने कहा कि पद्मश्री पुरस्कार से पहले से ही ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की ओर से उन्हें कलाकार भत्ता दिया जा रहा था। ओडिशा सरकार ने उन्हें रहने के लिए जमीन भी दी है, जिसपर बरगढ़ के एक डाक्टर ने अपने खर्च से मकान भी बनवा दिया है। वर्तमान में उन्हें सरकार की ओर से साढ़े 18 हजार रुपये का मासिक भत्ता भी मिलता है।

Haldhar Nag

Today let's discuss a poet and writer who was awarded Padma Shri in 2016 - Haldhar Nag

Haldhar Nag, whose name has never been preceded by Shri, 3 pairs of clothes, a broken rubber slipper, a pair of spectacles without springs and a deposit of Rs. 732/-.

मात्र तीसरी पास, पद्म श्री हलधर नाग की कोसली कविताएँ बनी पीएचडी अनुसंधान का विषय

These are the Haldhar Nag of Odisha.

Haldhar Nag, born 31 March 1950, is a poet and writer from the Sambalpuri language of Orissa. He is popularly known as "Lokkavi Ratna". The special thing about him is that he has memorized all his poems and 20 epics. A compilation of his writings "Haldhar Granthavali-2" will be made part of the curriculum at Sambhalpur University. Wearing plain clothes, white dhoti, gamchha and vest, the snakes remain barefoot. When you learn about the Oriya folk-poet Haldhar Nag, you will be filled with inspiration.

Haldhar was born in 1950 in a poor family in Bargarh, Odisha. Haldhar's struggle began with the death of his father when he was 10 years old. Then he was forced to leave school after the third grade. Due to the very poor condition of the house, the dishes had to be washed in the sweet shop. Two years later, the village sarpanch appointed Haldhar to cook at a nearby school, where he worked for 16 years. When he realized that too many schools were opening in his village, he approached a bank and took a loan of Rs 1000 to start a small shop for stationery and food for school children. This shop was in front of the school, where he used to sit during the holidays.

After some time Haldhar Nag started narrating to the people by writing on some religious themes like "Ram-Shabri" in the local Oriya language. He wrote poems full of emotion, which in the early stages were forcibly presented among the people by the serpents. Gradually his popularity started increasing.

In 1990, Haldhar wrote the first poem called "Dhodho Bargazi" (meaning: 'Old Banyan') which was published by a local magazine and thereafter all Haldhar's poems continued to find place in the magazine and they were also from nearby villages. They were called to recite poetry. People liked Haldhar's poems so much that they started calling him "Lok Kaviratna".

Researchers doing PhD on Haldhar Nag

Now his popularity had increased so much that in 2016, Haldhar Nag was awarded Padma Shri by the President of India for literature. Not only this, now 5 researchers are doing PHd on the literature of Haldhar Nag, while Haldhar himself has studied only till the third standard. On conferring Padmashree on Haldhar Nag and doing PhD on him, it has been said that

 "You choose nature in books,
Padmashree has chosen books from nature.

In 2021, a post went viral on social media "Sahib - till Delhi aane ke paisa nahi hai, please send the award by post."

A wrong post had gone viral in the internet media about Dr. Haldhar Nag. Expressing strong displeasure over this post, Nag had said that the post made in his name is completely false and concocted. Very sad and hurt by such post. The viral post states that Haldhar Nag has no money to go to Delhi to receive the Padma Shri award and in this regard, Nag has written a letter to the government requesting that his award be sent by post.


Nag said that this false information has been made viral in a mischievous manner. The truth is that he got the Padma Shri award in 2016 and not this year. Even in 2016, when he was called to Delhi to receive the Padma Shri award, he did not write any letter to the government citing his poverty, nor did he talk about sending the Padma Shri award by post. Folk poet Dr. Haldhar Nag said that even before the Padma Shri award, Odisha Chief Minister Naveen Patnaik was giving him artist allowance. The Odisha government has also given them land to live on, on which a doctor from Bargarh has also built a house at his own expense. At present, they also get a monthly allowance of Rs 18,000 from the government.

श्रीमद्भगवद्गीता || Shrimad Bhagwat Geeta || अध्याय दो - सांख्ययोग 01-10 अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

इस ब्लॉग के माध्यम से हम सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता प्रकाशित करेंगे, इसके तहत हम सभी 18 अध्यायों और उनके सभी श्लोकों का सरल अनुवाद हिंदी में प्रकाशित करेंगे। 

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता के 18 अध्यायों में से अध्याय 1 के पूरे होने के बाद आज से अध्याय 2 की शुरुवात करते हैं। 


अध्याय दो  - सांख्ययोग  01-10 अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद

अध्याय दो          - सांख्ययोग 

01-10 अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद
11-30 गीताशास्त्रका अवतरण
31-38 क्षत्रिय धर्म और युद्ध करने की आवश्यकता का वर्णन
39-53 कर्मयोग विषय का उपदेश
54-72 स्थिरबुद्धि पुरुष के लक्षण और उसकी महिमा

श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय दो ~ सांख्ययोग ||

अथ द्वितीयोऽध्यायः ~ सांख्ययोग

अध्यायदो के अनुच्छेद 01 - 10

 अध्याय दो के अनुच्छेद 01 - 10 में अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद की व्याख्या है।

संजय उवाच

तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌ ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥2.1॥

भावार्थ : 

संजय बोले- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा॥1॥

श्रीभगवानुवाच

कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌ ।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥2.2॥

भावार्थ : 

श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है॥2॥

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥2.3॥

भावार्थ :  

इसलिए हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा॥3॥

अर्जुन उवाच

कथं भीष्ममहं सङ्‍ख्ये द्रोणं च मधुसूदन ।
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥2.4॥

भावार्थ : 

अर्जुन बोले- हे मधुसूदन! मैं रणभूमि में किस प्रकार बाणों से भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध लड़ूँगा? क्योंकि हे अरिसूदन! वे दोनों ही पूजनीय हैं॥4॥

गुरूनहत्वा हि महानुभावा-
ञ्छ्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके ।
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव
भुंजीय भोगान्‌ रुधिरप्रदिग्धान्‌ ॥2.5॥

भावार्थ : 

.इसलिए इन महानुभाव गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ क्योंकि गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ और कामरूप भोगों को ही तो भोगूँगा॥5॥

न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो-
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः ।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम-
स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥2.6॥

भावार्थ : 

हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे। और जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं ॥6॥

कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः ।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्‌ ॥2.7॥

भावार्थ : 

इसलिए कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिए कहिए क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिए आपके शरण में हूँ। मुझको शिक्षा दीजिए ॥7॥

न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या-
द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्‌ ।
अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धं-
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्‌ ॥2.8॥

भावार्थ : 

क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके॥8॥


संजय उवाच

एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप ।
न योत्स्य इतिगोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥2.9॥

भावार्थ : 

संजय बोले- हे राजन्‌! निद्रा को जीतने वाले अर्जुन अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर फिर श्री गोविंद भगवान्‌ से 'युद्ध नहीं करूँगा' यह स्पष्ट कहकर चुप हो गए ॥9॥

तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदंतमिदं वचः ॥2.10॥

भावार्थ : 

हे भरतवंशी धृतराष्ट्र! अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए से यह वचन बोले ॥10॥

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श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना

श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना  

क्या कभी आपलोगों के मन में ये सवाल आया कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना ? कुरुक्षेत्र के अलावा भी मैदान थे जहाँ महाभारत का युद्ध हो सकता था, परन्तु श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र को ही चुना। इसके पीछे एक बहुत अद्भुत कथा है। 

गीता का उपदेश श्री कृष्ण ने अर्जुन को कुरूक्षेत्र में ही दिया था, जहां महाभारत का युद्ध भी हुआ। आज जानते हैं कि महाभारत का युद्ध कुरूक्षेत्र में ही क्यों हुआ? धर्म से जुड़े बहुत लोग इससे वाकिफ होंगे तो कुछ लोग अनजान भी होंगे। 

श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना

कौरवों के छल के बाद जब पांडवों ने अपना वनवास और अज्ञातवास पूर्ण कर लिया तब भी दुर्योधन उन्हें इन्द्रप्रस्थ लौटाने को तैयार ना हुआ।

क्रूरता और द्वेष से संस्कारित भूमि चाहते थे श्री कृष्ण

वे ये भी जानते थे कि संधि करने के उनके सारे प्रयत्न विफल होंगे। तो अब जब युद्ध की ठन ही गयी तो उन्होंने बहुत सावधानीपूर्वक युद्धभूमि की खोज आरम्भ की। श्रीकृष्ण को इस बात का भय था कि चूँकि दोनों ओर सम्बन्धी ही युद्ध कर रहे हैं, इसीलिए कही ऐसा ना हो कि युद्ध आरम्भ होने के बाद एक दूसरे को आमने सामने देख कर कौरव और पांडव संधि कर लें और इस महायुद्ध का आयोजन विफल हो जाये। 

श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना

यही कारण था कि वो युद्ध के लिए एक ऐसी भूमि की खोज कर रहे थे जिसका इतिहास अत्यंत भयावह और कठोर रहा हो। ऐसा इस लिए कि वे जानते थे कि इस युद्ध में भाई भाई से, पिता पुत्र से और गुरु शिष्य से युद्ध करने वाले हैं और इसी लिए उनके मन में एक दूसरे के प्रति कठोरता का भाव शिखर पर रहना चाहिए। यही सोच कर उन्होंने अपने गप्तचरों को चारों दिशाओं में भेजा ताकि वो ऐसी भूमि का पता लगा सकें जो सर्वाधिक भयावह एवं कठोर हो। वापस आकर उनके गुप्तचरों ने अपनी-अपनी दिशा के सर्वाधिक भयावह अनुभव उन्हें बताये किन्तु जो गुप्तचर उत्तर दिशा की ओर गया था उसने वासुदेव से कहा कि उसने कुछ ऐसा देखा है जिससे उसे ये विश्वास है कि समस्त संसार में उससे अधिक भयावह भूमि और कोई नहीं है। 

श्रीकृष्ण ने आश्चर्य से उससे पूछा कि उसने ऐसा क्या देख लिया जिससे वो ऐसी बात कर रहा है?

कुरूक्षेत्र ऐसी जगह मिली जहां छोटी बात पर भाई ने भाई की हत्या कर दी 

तब उस गुप्तचर ने श्रीकृष्ण को बताया - "हे माधव! मैं कठोर भूमि की खोज में कुरुक्षेत्र तक जा पहुँचा। वहां मैंने देखा कि दो भाई साथ मिलकर खेती कर रहे थे। 

श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना

तभी वर्षा होने लगी और बड़े भाई ने अपने छोटे भाई से कहा कि वो तुरंत एक मेड़ बनाये ताकि पानी उनके खेतों में घुसने से रुक सके। इसपर छोटे भाई ने कहा कि मैं आपका दास नहीं हूँ। आप स्वयं मेंड़ बना लें। ये सुनकर बड़े भाई को इतना क्रोध आया कि उसने अपने खड्ग से अपने छोटे भाई की हत्या कर दी और उसके शव को कुचलते हुए मेंड़ के स्थान पर लगा दिया जिससे जल का प्रवाह रुक गया।"ये सुनकर श्रीकृष्ण भी हतप्रभ रह गए। ऐसी भूमि जहाँ भाई-भाई की हत्या इस नृशंशता से कर दे, वही भूमि उन्हें युद्ध के लिए उचित जान पड़ी। वे ये भी जानते थे कि कुरुक्षेत्र की भूमि पर ही कभी भगवान परशुराम ने २१ बार क्षत्रियों को मार कर उनके रक्त से ५ सरोवर बना दिए थे। कदाचित उसी भीषण हिंसा के प्रभाव से आज भी वहां का वातावरण ऐसा था जहाँ मित्रता और संधि पनप नहीं सकती थी। यही कारण था कि श्रीकृष्ण ने उसी कुरुक्षेत्र की भूमि को महाभारत के युद्ध के लिए चुना। 

उसी भूमि के प्रभाव से संधि के कई अवसर होते हुए भी वो महायुद्ध रुका नहीं और लाखों लोगों की बलि के साथ ही समाप्त हुआ। 

कुरुक्षेत्र की भूमि पर प्राण त्यागने वाला  स्वर्गलोक जायेगा 

महापुराण महाभारत ग्रंथ के अनुसार कुरु ने जिस क्षेत्र को बार-बार जोता था, उसका नाम कुरुक्षेत्र पड़ा। कहते हैं कि जब कुरु इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इसका कारण पूछा। कुरु ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर मारा जाए, वह पुण्य लोक में जाए, ऐसी मेरी इच्छा है। इन्द्र उनकी बात को हंसी में उड़ाते हुए स्वर्गलोक चले गए।

श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना

ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने अन्य देवताओं को भी ये बात बताई। देवताओं ने इन्द्र से कहा कि यदि संभव हो तो कुरु को अपने पक्ष में कर लो। तब इन्द्र ने कुरु के पास जाकर कहा कि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर या युद्ध करके इस स्थान पर मारा जायेगा तो वह स्वर्ग का भागी होगा। ये बात भीष्म, कृष्ण आदि सभी जानते थे, इसलिए महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया।। इसलिए भी वो स्थान श्रीकृष्ण ने चुना क्योंकि वे चाहते थे कि युद्ध मे मारे जाने वाले सभी योद्धाओं को स्वर्ग प्राप्त हो।

उम्मीद है ब्लॉग के सभी पाठकों को पोस्ट पसंद आएगी। 

#जय श्री कृष्णा 

स्थानेश्वर मंदिर, हरियाणा || Sthaneshwar Temple, Haryana ||

स्थानेश्वर मंदिर, हरियाणा 

श्री स्थानेश्वर मंदिर व श्री स्थाणु मंदिर हरियाणा के जिला कुरुक्षेत्र के थानेसर में स्थित है। स्थानेश्वर मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक है एवं भगवान शिव को समर्पित है। स्थानेश्वर मंदिर की बड़ी महत्ता है और कुरूक्षेत्र का प्रसिद्ध एवं पवित्र केंद्र है। ऐसी मान्यता भी है कि भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रुप में पहली बार इसी स्थान पर हुई थी। कुरुक्षेत्र की तीर्थ यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना पूरी नहीं मानी जाती है। इसलिए कुरुक्षेत्र तीर्थ धाम की यात्रा जो व्यक्ति करता है वह इस स्थान पर आकर भगवान शिव के दर्शन जरूर करता है और अपनी तीर्थ यात्रा को सफल बनाता है।

स्थानेश्वर मंदिर, हरियाणा || Sthaneshwar Temple, Haryana ||

इतिहास एवं मान्यताएं

कहा जाता है कि महाभारत का विनाशकारी युद्ध आरंभ होने से पहले पांडवों ने कृष्ण के साथ इसी स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी। भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद भी दिया था। पुनः सिख समुदाय के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर स्थानेश्वर मंदिर तीर्थ के पास एक बिंदु पर रुके थे। इस मंदिर के समीप उनकी याद में गुरुद्वारा नवीं पातशाही भी बना हुआ है। भारतीय इतिहास के अनुसार, यह स्थान पुष्यभूति राजवंश के महान भारतीय सम्राट हर्षवर्धन की राजधानी थी, हालांकि इस तथ्य का कोई उचित प्रमाण नहीं है। लेकिन यह कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव का 'लिंग' के रूप में प्रथम बार पूजा यहीं पर हुई थी। महान योद्धा एवं ऋषि परशुराम ने यहां कई क्षत्रियों को मार डाला था और महाभारत नायकों के पूर्वज कुरु ने यमुना नदी के तट पर कई वर्ष तक तपस्या की थी।

महाभारत का विनाशकारी युद्ध आरंभ होने से पहले पांडवों ने कृष्ण के साथ इसी स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी

स्थापत्य एवं उत्सव

मंदिर की छत गुंबद के आकार की है एवं छत पर आज भी प्राचीन कलाकृतियां विद्यमान हैं।इस मंदिर में भगवान शिव का शिवलिंग अति प्राचीन शिवलिंग है। यह मंदिर दो भागों में विभाजित है बायीं ओर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर है और दायीं ओर भगवान शिव का मंदिर है। इस मंदिर में भगवान हनुमान, भैरव, राम परिवार और माता दुर्गा जी की मूर्ति स्थापित है।

कुरुक्षेत्र की तीर्थ यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना पूरी नहीं मानी जाती

मंदिर परिसर में एक सरोवर भी है। जिसके बारे में पौराणिक संदर्भ अनुसार यह माना जाता है कि इसकी कुछ बूंदों से राजा बान का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था। यमुना नदी के किनारे बसे इस शिवमंदिर के लिए कहा जाता है कि मंदिर के पीछे यमुना का पानी मंदिर के टैंक से होता हुआ मंदिर के बाहर निकलता है जिसकी एक बूंद से सारे रोग का निवारण हो जाता है। 

भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रुप में पहली बार इसी स्थान पर हुई

वैसे तो स्थानेश्वर मंदिर में सभी त्योहार मनाए जाते हैं। विशेषकर महाशिवरात्रि के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को फूलों एवं दीपमालिकाओं से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है। इस प्राचीन मंदिर के लिए कहा जाता है कि स्वयं भगवान शिव यहां वास करते हैं और महाशिवरात्रि की रात को तांडव करते हैं।

स्थानेश्वर मंदिर, हरियाणा || Sthaneshwar Temple, Haryana ||

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Sthaneshwar Temple, Haryana

Shri Sthaneshwar Temple and Shri Sthanu Temple are located in Thanesar, District Kurukshetra, Haryana. Sthaneshwar Temple is one of the oldest temples and is dedicated to Lord Shiva. Sthaneshwar Temple is of great importance and is the famous and sacred center of Kurukshetra. There is also a belief that Lord Shiva was worshiped at this place for the first time in the form of Shivling. A pilgrimage to Kurukshetra is not considered complete without a visit to this temple. Therefore, the person who visits the Kurukshetra shrine must come to this place and see Lord Shiva and make his pilgrimage successful.

स्थानेश्वर मंदिर, हरियाणा || Sthaneshwar Temple, Haryana ||

History and beliefs

It is said that the Pandavas along with Krishna worshiped Lord Shiva at this place before the devastating war of Mahabharata began. Lord Shiva had also blessed him to fulfill his wish by giving a darshan. Again the ninth Guru of the Sikh community, Shri Tegh Bahadur stayed at a point near the Sthaneshwar temple shrine. Gurudwara Navin Patshahi is also built in his memory near this temple. According to Indian history, this place was the capital of the great Indian emperor Harshavardhana of the Pushyabhuti dynasty, although there is no proper proof of this fact. But it is said that this temple was constructed during the Mahabharata period. According to some other beliefs, Lord Shiva was worshiped here for the first time in the form of 'Linga'. The great warrior and sage Parashurama had killed many Kshatriyas here and Kuru, the ancestor of the Mahabharata heroes, meditated for many years on the banks of the river Yamuna.

स्थानेश्वर मंदिर, हरियाणा || Sthaneshwar Temple, Haryana ||

Architecture and Festivals

The roof of the temple is in the shape of a dome and ancient artifacts are still present on the roof. The Shivling of Lord Shiva in this temple is a very ancient Shivling. This temple is divided into two parts, on the left is the temple of Lord Shri Lakshmi Narayan Ji and on the right is the temple of Lord Shiva. The idols of Lord Hanuman, Bhairav, Ram family and Mother Durga are installed in this temple.

स्थानेश्वर मंदिर, हरियाणा || Sthaneshwar Temple, Haryana ||

There is also a lake in the temple premises. According to mythological references about which it is believed that King Ban's leprosy was cured by a few drops of it. It is said for this Shiva temple situated on the banks of river Yamuna that the water of Yamuna comes out of the temple through the temple tank behind the temple, a drop of which cures all diseases.

स्थानेश्वर मंदिर, हरियाणा || Sthaneshwar Temple, Haryana ||

By the way, all the festivals are celebrated in the Sthaneshwar temple. Special puja is organized especially on the festival of Mahashivratri. On this day the temple is decorated with flowers and lamps. The spiritual atmosphere of the temple provides peace to the hearts and minds of the devotees. It is said for this ancient temple that Lord Shiva himself resides here and performs Tandava on the night of Mahashivratri.

आज्ञा चक्र : भौंहों के केन्द्र में || शरीर विज्ञान व सातचक्र ||

 आज्ञा चक्र : भौंहों के केन्द्र में

आज्ञा =आदेश, ज्ञान

शरीर विज्ञान व सातचक्र

आज्ञा चक्र मस्तक के मध्य में, भौंहों के बीच स्थित है। इस कारण इसे "तीसरा नेत्र” भी कहते हैं। आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केन्द्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह ३ प्रमुख नाडिय़ों, इडा (चंद्र नाड़ी) पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने का स्थान है। जब इन तीनों नाडिय़ों की ऊर्जा यहां मिलती है और आगे उठती है, तब हमें समाधि, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है।


इसका मंत्र है ॐ। आज्ञा चक्र का रंग सफेद है। इसका तत्व मन का तत्व, अनुपद तत्त्व है। इसका चिह्न एक श्वेत शिवलिंगम्, सृजनात्मक चेतना का प्रतीक है। इसमें और बाद के सभी चक्रों में कोई पशु चिह्न नहीं है। इस स्तर पर केवल शुद्ध मानव और दैवी गुण होते हैं।

आज्ञा चक्र : भौंहों के केन्द्र में || शरीर विज्ञान व सातचक्र ||

आज्ञा चक्र के प्रतीक चित्र में दो पंखुडिय़ों वाला एक कमल है जो इस बात का द्योतक है कि चेतना के इस स्तर पर 'केवल दो', आत्मा और परमात्मा (स्व और ईश्वर) ही हैं। आज्ञा चक्र की देव मूर्तियों में शिव और शक्ति एक ही रूप में संयुक्त हैं। इसका अर्थ है कि आज्ञा चक्र में चेतना और प्रकृति पहले ही संयुक्त है, किन्तु अभी भी वे पूर्ण ऐक्य में समाए नहीं हैं।

इस चक्र के गुण हैं - एकता, शून्य, सत, चित्त और आनंद। 'ज्ञान नेत्र' भीतर खुलता है और हम आत्मा की वास्तविकता देखते हैं - इसलिए 'तीसरा नेत्र' का प्रयोग किया गया है जो भगवान शिव का द्योतक है। आज्ञा चक्र 'आंतरिक गुरू' की पीठ (स्थान) है। यह द्योतक है बुद्धि और ज्ञान का, जो सभी कार्यों में अनुभव किया जा सकता है। उच्चतर, नैतिक विवेक के तर्कयुक्त शक्ति के समक्ष अहंकार आधारित प्रतिभा समर्पण कर चुकी है। तथापि, इस चक्र में एक रुकावट का उल्टा प्रभाव है जो व्यक्ति की परिकल्पना और विवेक की शक्ति को कम करता है, जिसका परिणाम भ्रम होता है।

गुलाब || Gulab || Rose

एक जिंदगी गुलाब की, एक जिंदगी गुलाब सी

इतवार का प्यार भरा नमस्कार 🙏
सभी की जीवन में गुलाब सी ताज़गी बनी रहे 🌹


"इस दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है 
जो हमें उतना परेशान कर सके जितना कि हमारे अपने विचार।"

 ☕गुड मॉर्निंग☕

गुलाब || Gulab || Rose

🌹🌹

कांटो के बीच पलता है जो खिलता है गुलाब 
वही प्रेम का संदेश देता है गुलाब..

विपरीत परिस्थितियों में जीना सिखाता है गुलाब
है साथ में कांटों की चुभन 
फिर भी आ जाये जिसके हाथ 
मुस्कुराना सिखाता है गुलाब..

यूं तो हर फूल के खिलने का अपना
अपना मौसम अलग है
बिन मौसम सदा बहार जो खिलते
हुए अपनी महक से महकाता है वातावरण
ऐसा निराला अनोखा सा है गुलाब..

किस्म नई नई रंग नए नए ओढे हुए
कली से बन के फूल जब खिलता है
हर मन को भाता है गुलाब..

अपनी खुशबू से हर जीवन को महकाता है गुलाब
प्रेमी देते प्रेमिका को लाल गुलाब 
दोस्त दे मित्रता को प्रगाढ़ करने पीला गुलाब
हो माहौल अशांति का रार द्वेष का 
अपने सफेद रंग से शांति का संदेश देता है गुलाब..

क्या क्या लिखे तारीफ गुलाब की
भला ये "रूपा"
जो भी देखे बच्चा, बुजुर्ग या जवान खिलते गुलाब को
बहुत खूबसूरत जैसे अनेको नाम
से खुद तारीफ पाता है गुलाब..

अंतिम पंक्ति ये कहे
"रूपा-ओस की एक बूंद" 
जीवन में अलग अलग रूप से 
प्रेम, दोस्ती, शांति, धैर्य, कोमलता, 
दुखों में भी मुस्कुराना, कठिनाइयों के बीच भी जीना सिखाता है गुलाब..

🌹🌹

एक जिंदगी गुलाब की, एक जिंदगी गुलाब सी
🌹🌹
Rose Poem In Hindi | गुलाब पर कविता | Gulab Par Kavita
🌹🌹
Rose Poem In Hindi | गुलाब पर कविता | Gulab Par Kavita
🌹🌹
Rose Poem In Hindi | गुलाब पर कविता | Gulab Par Kavita
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बहुतों से बैर ना करो : पंचतंत्र || Bahuton se bair na karo : Panchtantra ||

बहुतों से बैर ना करो

बहवो न विरोद्धव्या दुर्जया हि महाजनः 

बहुतों के साथ विरोध न करें।

बहुतों से बैर ना करो : पंचतंत्र || Bahuton se bair na karo : Panchtantra ||

एक वल्मीक में बहुत बड़ा काला नाग रहता था। अभिमानी होने के कारण उसका नाम था अतिदर्प। एक दिन वह अपने बिल को छोड़कर एक और संकीर्ण बिल से बाहर जाने का यत्न करने लगा। इससे उसका शरीर कई स्थानों से छिल गया। जगह-जगह घाव हो गए, खून निकलने लगा। खून की गन्ध पाकर चीटियाँ आ गईं और उसे घेरकर तंग करने लगीं। साँप ने कई चींटियों को मारा। किन्तु कहाँ तक मारता। अन्त में चींटियों ने ही उसे काट-काटकर मार दिया।

स्थिरजीवी ने कहा-इसीलिए मैं कहता हूँ, बहुतों से विरोध न करो।

मेघवर्ण-आप जैसा आदेश करेंगे, वैसा ही करूँगा। स्थिरजीवी-अच्छी बात है। मैं स्वयं गुप्तचर का काम करूँगा। तुम मुझसे लड़कर, मुझे लहू-लुहान करने के बाद इसी वृक्ष के नीचे फेंककर स्वयं सपरिवार ऋष्यमूक पर्वत पर चले जाओ। मैं तुम्हारे शत्रु उल्लुओं का विश्वासपात्र बनकर उन्हें इस वृक्ष पर बने अपने दुर्ग में बसा लूँगा। और अवसर पाकर उन सबका नाश कर दूंगा। तब तुम फिर यहाँ आ जाना।

मेघवर्ण ने ऐसा ही किया। थोड़ी देर में दोनों की लड़ाई शुरू हो गई। दूसरे कौवे जब उसकी सहायता को आए तो उन्हें दूर करके कहा - इसको मैं स्वयं दण्ड दे लूँगा। अपनी चोंचों के प्रहार से घायल करके वह स्थिरजीवी को वहीं फेंकने के बाद खुद परिवार सहित ऋष्यमूक पर्वत पर चला गया।

तब उल्लू की मित्र कृकालिका ने मेघवर्ण के भागने और अमात्य स्थिरजीवी से लड़ाई होने की बात उलूकराज से कह दी। उलकराज ने भी रात आने पर दल-बल समेत पीपल के वृक्ष पर आक्रमण कर दिया। उसने सोचा-भागते हुए शत्रु को नष्ट करना अधिक सहज होता है। पीपल के वृक्ष को घेरकर उसने शेष रह गए सभी कौवों को मार दिया।

अभी उलूकराज की सेना भागे हुए कौवों को पीछा करने की सोच ही रही थी कि आहत स्थिरजीवी ने कराहना शुरू कर दिया। उसे सुनकर सबका ध्यान उसकी ओर गया। सब उल्लू उसे मारने झपटे। तब स्थिरजीवी ने कहा - इससे पूर्व कि तुम मुझे जान से मार डालो, मेरी एक बात सुन लो। मैं मेघवर्ण का मन्त्री हूँ। मेघवर्ण ने ही मुझे घायल करके इस तरह फेंक दिया था। मैं तुम्हारे राजा से बहुत-सी बातें कहना चाहता हूँ। उससे मेरी भेंट करवा दो।

सब उल्लुओं ने उलूकराज से यह बात कही। उलूकराज स्वयं वहाँ आया; स्थिरजीवी को देखकर वह आश्चर्य से बोला-तेरी यह दशा किसने कर दी ?

स्थिरजीवी-देव! बात यह हुई कि दुष्ट मेघवर्ण आपके ऊपर सेनासहित आक्रमण करना चाहता था। मैंने उसे रोकते हुए कहा कि वे बहुत बलशाली है; उनसे युद्ध मत करो, उनसे सुलह कर लो। बलशाली शत्रु से सन्धि करना ही उचित है; उसे सब कुछ देकर भी वह अपने प्राणों की रक्षा तो कर ही लेता है। मेरी बात सुनकर वह दुष्ट मेघवर्ण ने समझा कि मैं आपका हितचिंतक हूँ। इसीलिए वह मुझपर झपट पड़ा। अब आप ही मेरे स्वामी हैं। मैं आपकी शरण आया हूँ। जब मेरे घाव भर जाएँगे तो मैं स्वयं आपके साथ जाकर मेघवर्ण को खोज निकालूँगा और उसके सर्वनाश में आपका सहायक बनूँगा।

स्थिरजीवी की बात सुनकर उलूकराज ने अपने सभी पुराने मन्त्रियों से सलाह ली। उसके पास भी पाँच मन्त्री थे। रक्ताक्ष, क्रूराक्ष, दीप्ताक्ष, वक्रनास, प्राकारकर्ण।

पहले उसने रक्ताक्ष से पूछा - इस शरणागत शत्रु-मन्त्री के साथ कौन-सा व्यवहार किया जाए ?-रक्ताक्ष ने कहा कि इसे अविलम्ब मार दिया जाए। शत्रु को निर्बल अवस्था में ही मार देना चाहिए, अन्यथा बली होने के बाद वही दुर्जेय हो जाता है। इसके अतिरिक्त एक और बात है; एक बार टूटकर जुड़ी हुई प्रीति स्नेह के अतिशय प्रदर्शन से भी बढ़ नहीं सकती।

उलूकराज ने पूछा - वह कैसे?

रक्ताक्ष ने तब ब्राह्मण और साँप की यह कथा सुनाई :

टूटी प्रीत जुड़े न दूजी बार

To be continued ...

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2022 || Shri Krishna Janmashtami 2022 ||

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2022 || Shri Krishna Janmashtami 2022 ||

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जिसे जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है।यह जन्माष्टमी विष्णु जी के 10 अवतारों में से 8 वें और 24 अवतारों में से 22 वें अवतार श्री कृष्ण के जन्म के आनंदोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार हिंदी मास के भाद्रपद के कृष्ण पक्ष (अंधेरा पख्वाडा) आठवें (अष्टमी) को मनाया जाता है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2022 || Shri Krishna Janmashtami 2022 ||

श्री कृष्ण जन्माष्टमी भारत का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। कृष्ण देवकी और वासुदेव आनकदुंदुभी के पुत्र हैं और इनके जन्मदिन को हिंदुओं द्वारा जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था,उस समय अराजकता अपने चरम पर थी।यह एक ऐसा समय था जब उत्पीड़न बड़े पैमाने पर था, सभी अपनी स्वतंत्रता से वंचित थे, बुराई सब ओर थी। या यूं कहें कि इस बुराई का नाश करने के लिए भगवान कृष्ण ने अवतार लिया था।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2022 || Shri Krishna Janmashtami 2022 ||

कृष्ण जी भगवान विष्णु जी के अवतार हैं जो तीन लोक के 3 गुणों सतगुण, रजगुण तथा तमोगुण में सतगुण के लिए जाने जाते हैं। श्री कृष्ण के माता पिता वासुदेव और देवकी जी के विवाह के समय जब मामा कंस अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुंचाने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई थी कि देवकी का आठवां पुत्र कंस को मारेगा। इस आकाशवाणी के बाद कंस ने देवकी और वासुदेव को अपने कारागार में डाल दिया और उनके सभी सातों पुत्रों का जन्म होते ही वध कर दिया। लेकिन देवकी और वासुदेव को जेल में रखने के बावजूद कंस उनके आठवें पुत्र को नहीं मार पाया। मथुरा की जेल में जन्म के तुरंत बाद श्री कृष्ण के पिता वासुदेव कृष्ण को यमुना पार अपने मित्र नंद और उनकी पत्नी यशोदा के पास ले जाते हैं। वृंदावन में श्री कृष्ण का लालन पोषण नंदलाल और यशोदा मां मिलकर बहुत प्रेम से करते है। श्री कृष्ण की अद्भुत और अलौकिक छवि से पूरा वृंदावन मोहित रहता है। गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठाकर श्री कृष्ण ने पूरे वृंदावन वासियों की रक्षा की थी और इंद्र का घमंड तोड़ा था।यह बात मथुरा के राजा कंस के पास पहुंचती है, तो वह समझ जाता है कि यही बालक मेरा भी वध करेगा। इसलिए उसने एक महायज्ञ के बहाने अपना एक मंत्री अक्रूर सिंह जी को भेजकर श्रीकृष्ण को यज्ञ में आमंत्रण देता है। श्री कृष्ण जी मथुरा आते हैं। दरवाजे पर एक ऐसा धनुष रखा था जिसे कोई साधारण इंसान उठा नहीं पाता। भगवान श्री कृष्णा उस धनुष को ऐसे तोड़ा जैसे बच्चा अपने खिलौने से खेलता है। कंस समझ गया कि ये कोई साधारण बालक नहीं। इसलिए उन्हें मारने के लिए उसने दैवीय राक्षस भेजें। अंत में कंस खुद लड़ने आया और उसका श्री कृष्ण ने वध कर दिया। बाल्यावस्था से ही श्रीकृष्ण की कई सारी लीलाएं और कथाएं हैं, जिनकी चर्चा हम एक ब्लाग में नहीं कर सकते।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2022 || Shri Krishna Janmashtami 2022 ||

मध्य रात्रि के जन्म के बाद शिशु कृष्ण की मूर्तियों को धोया और पहनाया जाता है। फिर एक पालने में रखा जाता है उसके बाद भक्त भोजन वह मिठाई बांट कर अपना उपवास तोड़ते हैं। इसदिन भक्त व्रत, गायन, रात्रि जागरण और विशेष भोजन तैयार करते हैं। कुछ लोग कृष्ण या विष्णु मंदिर जाकर भजन- कीर्तन करते हैं। प्रमुख 'कृष्ण मंदिर' में भागवत गीता भागवत पुराण का आयोजन होता है। नृत्य नाटक कार्यक्रम अथवा कृष्ण लीला या रासलीला आयोजित होती है। महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के अगले दिन दही- हांडी का आयोजन होता है। युवा समूह जिन्हें गोविंदा भी कहा जाता है इस दहीहंडी फोड़कर इनाम पाते हैं।

गुजरात के द्वारिका में लोग सामूहिक गायन और नृत्य के साथ कृष्ण जुलूस निकालते हैं।

यह त्यौहार भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। 

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2022 || Shri Krishna Janmashtami 2022 ||

Shri Krishna Janmashtami

Shri Krishna Janmashtami also known as Janmashtami or Gokulashtami. This Janmashtami is celebrated as the 8th out of 10 incarnations of Vishnu and the 22nd out of 24 incarnations as the celebration of the birth of Shri Krishna. This festival is celebrated on the eighth (Ashtami) of the Krishna Paksha (dark fortnight) of the Hindi month of Bhadrapada.

Shri Krishna Janmashtami is an important festival of India. Krishna is the son of Devaki and Vasudeva Anakadundubhi and his birthday is celebrated as Janmashtami by Hindus.

Anarchy was at its peak when Lord Krishna was born. It was a time when oppression was rampant, everyone was deprived of their freedom, evil was everywhere. Or rather, to destroy this evil, Lord Krishna had incarnated.

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2022 || Shri Krishna Janmashtami 2022 ||

Krishna ji is an incarnation of Lord Vishnu, who is known to have Satgun in the 3 gunas of the three worlds, Satgun, Rajgun and Tamogun. At the time of the marriage of Shri Krishna's parents Vasudev and Devaki ji, when Mama Kansa was going to take her sister Devaki to her in-laws' house, there was an Akashvani that Devaki's eighth son would kill Kansa. After this Akashvani, Kansa put Devaki and Vasudeva in his prison and killed all their seven sons as soon as they were born. But despite keeping Devaki and Vasudeva in jail, Kansa could not kill his eighth son. Soon after his birth in the Mathura prison, Vasudeva, the father of Shri Krishna, takes Krishna across the Yamuna to his friend Nanda and his wife Yashoda. In Vrindavan, Shri Krishna is brought up by Nandlal and Yashoda Maa together with great love. The whole Vrindavan remains fascinated by the wonderful and supernatural image of Shri Krishna. By lifting the Govardhan mountain on his one finger, Shri Krishna had protected the entire Vrindavan residents and broke Indra's pride. When this matter reaches the king of Mathura, Kansa, he understands that this child will kill me too. Therefore, on the pretext of a Mahayagya, he sends one of his ministers, Akrur Singh, and invites Shri Krishna to the Yagya. Shri Krishna ji comes to Mathura. There was such a bow on the door that no ordinary person could lift it. Lord Shri Krishna broke that bow like a child playing with his toy. Kansa understood that this was no ordinary child. So he sent divine demons to kill them. In the end, Kansa himself came to fight and was killed by Shri Krishna. There are many pastimes and stories of Shri Krishna since childhood, which we cannot discuss in one blog.

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2022 || Shri Krishna Janmashtami 2022 ||

The idols of baby Krishna are washed and clothed after the midnight birth. Then it is kept in a cradle, after that the devotees break their fast by distributing food and sweets. On this day devotees observe fast, singing, night awakening and preparing special food. Some people go to Krishna or Vishnu temple and do bhajan-kirtan. Bhagwat Gita Bhagwat Purana is organized in the main 'Krishna Mandir'. A dance drama program or Krishna Leela or Rasleela is organized. In Maharashtra, Dahi-Handi is organized on the next day of Janmashtami. Youth groups also known as Govinda get reward by breaking this Dahi Handi.

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2022 || Shri Krishna Janmashtami 2022 ||

People take out Krishna procession with mass singing and dancing in Dwarka, Gujarat.

This festival is celebrated with great pomp not only in India but also in other countries of the world.