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मीराबाई || MeeraBai ||

 मीराबाई

मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत हैं, जिनका सब कुछ कृष्ण के लिए समर्पित था। यहां तक कि कृष्ण को ही वह अपना पति मान बैठी थीं। भक्ति की ऐसी चरम अवस्था कम ही देखने को मिलती है। मीराबाई के बालमन में कृष्ण की ऐसी छवि बसी थी कि किशोरावस्था से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना। जोधपुर के राठौड़ रतनसिंह जी की इकलौती पुत्री मीराबाई का जन्म सोलहवीं शताब्दी में हुआ था। बचपन से ही वह कृष्ण-भक्ति में रम गई थीं।

मीराबाई || MeeraBai ||

मीराबाई के बचपन में हुई एक घटना की वजह से उनका कृष्ण-प्रेम अपनी चरम अवस्था तक पहुंचा। एक दिन उनके पड़ोस में किसी बड़े आदमी के यहां बारात आई। सभी औरतें छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीरा भी बारात देखने लगीं। बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है? इस पर उनकी माता ने कृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा कर के कह दिया कि यही तुम्हारे दूल्हा हैं। बस यह बात मीरा के बालमन में एक गांठ की तरह बंध गई।

बाद में मीराबाई की शादी महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज, जो आगे चलकर महाराणा कुंभा कहलाए, से कर दी गई।

इस शादी के लिए पहले तो मीराबाई ने मना कर दिया, लेकिन जोर देने पर वह फूट-फूट कर रोने लगीं। शादी के बाद विदाई के समय वे कृष्ण की वही मूर्ति अपने साथ ले गईं, जिसे उनकी माता ने उनका दूल्हा बताया था।

ससुराल में अपने घरेलू कामकाज निबटाने के बाद मीरा रोज कृष्ण के मंदिर चली जातीं और कृष्ण की पूजा करतीं, उनकी मूर्ति के सामने गातीं और नृत्य करतीं। उनके ससुराल वाले तुलजा भवानी यानी दुर्गा को कुल-देवी मानते थे। जब मीरा ने कुल-देवी की पूजा करने से इनकार कर दिया तो परिवार वालों ने उनकी श्रद्धा-भक्ति को मंजूरी नहीं दी।

मीराबाई || MeeraBai ||

 मीराबाई की ननद उदाबाई ने उन्हें बदनाम करने के लिए उनके खिलाफ एक साजिश रची। उसने राणा से कहा कि मीरा का किसी के साथ गुप्त प्रेम है और उसने मीरा को मंदिर में अपने प्रेमी से बात करते देखा है।

देखा कि मीरा अकेले ही कृष्ण की मूर्ति के सामने परम आनंद की अवस्था में बैठी मूर्ति से बातें कर रही थीं और मस्ती में गा रही थीं। राणा मीरा पर चिल्लाया – ’मीरा, तुम जिस प्रेमी से अभी बातें कर रही हो, उसे मेरे सामने लाओ।’ मीरा ने जवाब दिया – ‘वह सामने बैठा है – मेरा स्वामी – नैनचोर, जिसने मेरा दिल चुराया है, और वह समाधि में चली गईं। इस घटना से राणा कुंभा का दिल टूट गया, लेकिन फिर भी उसने एक अच्छे पति की भूमिका निभाई और मरते दम तक मीरा का साथ दिया।

हालांकि मीरा को राजगद्दी की कोई चाह नहीं थी, फिर भी राणा के संबंधी मीरा को कई तरीकों से सताने लगे। कृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम शुरुआत में बेहद निजी था, लेकिन बाद में कभी-कभी मीरा के मन में प्रेमानंद इतना उमड़ पड़ता था कि वह आम लोगों के सामने और धार्मिक उत्सवों में नाचने-गाने लगती थीं। 

मीराबाई || MeeraBai ||

वे रात में चुपचाप चित्तौड़ के किले से निकल जाती थीं और नगर में चल रहे सत्संग में हिस्सा लेती थीं। मीरा का देवर विक्रमादित्य, जो चित्तौड़गढ़ का नया राजा बना, बहुत कठोर था। मीरा की भक्ति, उनका आम लोगों के साथ घुलना-मिलना और नारी-मर्यादा के प्रति उनकी लापरवाही का उसने कड़ा विरोध किया। उसने मीरा को मारने की कई बार कोशिश की।

यहां तक कि एक बार उसने मीरा के पास फूलों की टोकरी में एक जहरीला सांप रखकर भेजा और मीरा को संदेश भिजवाया कि टोकरी में फूलों के हार हैं। ध्यान से उठने के बाद जब मीरा ने टोकरी खोली तो उसमें से फूलों के हार के साथ कृष्ण की एक सुंदर मूर्ति निकली। राणा का तैयार किया हुआ कांटो का बिस्तर भी मीरा के लिए फूलों का सेज बन गया जब मीरा उस पर सोने चलीं।

जब यातनाएं बरदाश्त से बाहर हो गईं, तो उन्होंने चित्तौड़ छोड़ दिया। वे पहले मेड़ता गईं, लेकिन जब उन्हें वहां भी संतोश नहीं मिला तो कुछ समय के बाद उन्होने कृश्ण-भक्ति के केंद्र वृंदावन का रुख कर लिया। मीरा मानती थीं कि वह गोपी ललिता ही हैं, जिन्होने फिर से जन्म लिया है। ललिता कृष्ण के प्रेम में दीवानी थीं।

 खैर, मीरा ने अपनी तीर्थयात्रा जारी रखी, वे एक गांव से दूसरे गांव नाचती-गाती पूरे उत्तर भारत में घूमती रहीं। माना जाता है कि उन्होंने अपने जीवन के अंतिम कुछ साल गुजरात के द्वारका में गुजारे। ऐसा कहा जाता है कि दर्शकों की पूरी भीड़ के सामने मीरा द्वारकाधीश की मूर्ति में समा गईं।

मीराबाई || MeeraBai ||

“इंसान आमतौर पर शरीर, मन और बहुत सारी भावनाओं से बना है। यही वजह है कि ज्यादातर लोग अपने शरीर, मन और भावनाओं को समर्पित किए बिना किसी चीज के प्रति खुद को समर्पित नहीं कर सकते। विवाह का मतलब यही है कि आप एक इंसान के लिए अपनी हर चीज समर्पित कर दें, अपना शरीर, अपना मन और अपनी भावनाएं। आज भी कई इसाई संप्रदायों में नन बनने की दीक्षा पाने के लिए, लड़कियां पहले जीसस के साथ विवाह करती हैं।

 कुछ लोगों के लिए यह समर्पण, शरीर, मन और भावनाओं के परे, एक ऐसे धरातल पर पहुंच गया, जो बिलकुल अलग था, जहां यह उनके लिए परम सत्य बन गया था। ऐसे लोगों में से एक मीराबाई थीं, जो कृष्ण को अपना पति मानती थीं।

जीव गोसांई वृंदावन में वैष्णव-संप्रदाय के मुखिया थे। मीरा जीव गोसांई के दर्शन करना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने मीरा से मिलने से मना कर दिया। उन्होंने मीरा को संदेशा भिजवाया कि वह किसी औरत को अपने सामने आने की इजाजत नहीं देंगे। मीराबाई ने इसके जवाब में अपना संदेश भिजवाया कि ‘वृंदावन में हर कोई औरत है। अगर यहां कोई पुरुष है तो केवल गिरिधर गोपाल। 

आज मुझे पता चला कि वृंदावन में कृष्ण के अलावा कोई और पुरुष भी है।’  इस जबाब से जीव गोसाईं बहुत शर्मिंदा हुए। वह फौरन मीरा से मिलने गए और उन्हें भरपूर सम्मान दिया।

मीराबाई || MeeraBai ||

मीरा ने गुरु के बारे में कहा है कि बिना गुरु धारण किए भक्ति नहीं होती। भक्तिपूर्ण इंसान ही प्रभु प्राप्ति का भेद बता सकता है। वही सच्चा गुरु है। स्वयं मीरा के पद से पता चलता है कि उनके गुरु रैदास थे।

नहिं मैं पीहर सासरे, नहिं पियाजी री साथ

मीरा ने गोबिन्द मिल्या जी, गुरु मिलिया रैदास

 मीरा ने अनेक पदों व गीतों की रचना की। उनके पदों में उच्च आध्यात्मिक अनुभव हैं। उनमें दिए गए संदेश और अन्य संतों की शिक्षाओं में समानता नजर आती है। उनके पद उनकी आध्यात्मिक उंचाई के अनुभवों का आईना है। 

मीरा ने अन्य संतों की तरह कई भाषाओं का प्रयोग किया है, जैसे – हिंदी, गुजराती, ब्रज, अवधी, भोजपुरी, अरबी, फारसी, मारवाड़ी, संस्कृत, मैथिली और पंजाबी।

मीराबाई || MeeraBai ||

मीरा के पदों में भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ-साथ प्रेम की ओजस्वी प्रवाह-धारा और प्रीतम से वियोग की पीड़ा का मर्मभेदी वर्णन मिलता है। प्रेम की साक्षात् मूर्ति मीरा के बराबर शायद ही कोई कवि हो।

 मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।

जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।

छांड़ि दई कुल की कानि कहा करै कोई।

संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई।

अंसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।

दधि मथि घृत काढ़ि लियौ डारि दई छोई।

भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।

दासी मीरा लाल गिरिधर तारो अब मोई।

 पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो।

बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।

जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।

खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढ़त सवायो।

सत की नाव खेवहिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरख-हरख जस पायो..!!

गोंद स्याह या काला गोंद || Kala Gond ||

गोंद स्याह

आज हम स्याह गोंद या काले गोंद के बारे में जानकारी देंगे।

हममे से कई लोग हैं जो यकाला गोंदह नहीं जानते कि गोंद क्या होता है और इसे खाया भी जाता है।  दरअसल बारिश का मौसम ख़त्म होने के बाद, ऐसे कई पेड़  होते हैं जिनके तनो से प्राकृतिक रूप से रस निकलता है।  यह रस चिपचिपा होता है और जिस जगह से यह रस निकलता है, यह रस वहीं  पर सूख जाता है।  सूखने के बाद यह रस उस जगह पर जम जाता है।  इस जमे हुए रस को गोंद कहते हैं। 

गोंद स्याह या काला गोंद || Kala Gond ||

गोंद बहुत गुणकारी होता है और गोंद जिस भी पेड़ से निकलता है, इसमें उस पेड़ के औषधिक गुण होते हैं।

गोंद स्याह या काला गोंद एक प्राकृतिक गोंद है जिसका सेवन करने से गठिया, हड्डियों का दर्द, जोड़ों की सूजन आदि कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है।  यह गोंद काले रंग का होता है इसीलिए इसे गोंद सियाह या काला गोंद कहा जाता है।

वैसे तो बाज़ार में आपको गोंद स्याह कई जगह मिल जाएगा लेकिन आजकल जिस तरह हर चीज़ में मिलावट की जाती है, उसी तरह बाजार  में भी कई जगह नकली गोंद स्याह बेचा जाता है जो आपको कोई भी फ़ायदा नहीं पहुंचाएगा इसलिए गोंद स्याह की सही पहचान करना ज़रूरी है।  गोंद स्याह कोयले की तरह काले रंग का और सख्त होता है। गोंद स्याह टुकड़ों में पाया जाता है और आप आसानी से इसका पाउडर बना सकते हैं।

गोंद स्याह पानी में डालने पर फूलने लगता है और यह पानी में घुलता नहीं है। 

गोंद स्याह या काला गोंद || Kala Gond ||

यह गोंद आबनूस  के पेड़ से निकलता है। यह गोंद आबनूस के पेड़ के तने  में या फिर पेड़ पर चिपकी हुई होती है।  इस गोंद को आप किसी वस्तु की मदद से या आपने हाथों से भी निकाल सकते हैं।  काला गोंद कई प्रकार की आयुर्वेदिक दवाइयों में प्रयोग किया जाता है साथ ही इसके सेवन से आप कई बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं। निम्न रोगों में इसका जबरदस्त असर देखा गया है:

1. गठिया
2. साइटिका
3. पीठ दर्द
4. कन्धों का दर्द
5. एड़ी में दर्द
6. कलाई में दर्द
7. कूल्हों में दर्द
8. टखनों में दर्द
9. बढ़ा हुआ यूरिक एसिड
10. मांसपेशियों का दर्द
11. सर्वाइकल दर्द
12. गर्दन दर्द
13. नसों का दर्द
14. घुटनों का दर्द
15. कोहनी में दर्द
गोंद स्याह या काला गोंद || Kala Gond ||

गोंद स्याह का स्वाद कच्ची कॉफ़ी की तरह कड़वा होता है।

उम्र बढ़ने के साथ ही शरीर के विभिन्न अंगो में दर्द होने लगता है।  आजकल तो कम उम्र से ही निरंतर लैपटॉप, फ़ोन का इस्तेमाल करने से और शारीरिक व्यायाम ना कर पाने के शरीर में दर्द की शिकायत होने लगी है। इस दर्द से छुटकारा पाने के लिए गोंद स्याह का सेवन किया जा सकता है। इसका सेवन करने के लिए इसका पाउडर बना लें और गुनगुने पानी में आधा ग्राम पाउडर अच्छे से मिला लें और इसे हर दिन दो बार पिएं। इसका सेवन खाना खाने के बाद करें।

English Translate

Kala Gond

Today we will give information about black gum or black gum.

There are many of us who do not know what gum is and it is also eaten. In fact, after the end of the rainy season, there are many trees whose trunks naturally produce sap. This juice is sticky and the place from where this juice comes out, this juice dries up there itself. After drying, this juice freezes at that place. This frozen juice is called gum.

Gum is very beneficial and whatever tree the gum comes from, it has medicinal properties of that tree.

Gond Syah or black gum is a natural gum, which can be used to get rid of many diseases like arthritis, bone pain, swelling of joints, etc. This gum is black in color, that is why it is called gum syah or black gum.

By the way, you will find gum ink in many places in the market, but nowadays, the way everything is adulterated, in the same way fake gum ink is sold in many places in the market, which will not give you any benefit, so it is important to identify gum ink correctly. It is important Gum black is black in color and hard like coal. Gum black is found in chunks and you can easily make powder out of it.

Gum ink swells when put in water and it does not dissolve in water.

This gum comes from the ebony tree. This glue is stuck in the trunk of the ebony tree or on the tree. You can remove this gum with the help of an object or even with your hands. Black gum is used in many types of Ayurvedic medicines, as well as you can get rid of many diseases by consuming it. Its tremendous effect has been seen in the following diseases:

1. Arthritis

2. Sciatica

3. Back Pain

4. Shoulder pain

5. Heel pain

6. Wrist Pain

7. Pain in the hips

8. Pain in ankles

9. Increased Uric Acid

10. Muscle pain

11. Cervical Pain

12. Neck Pain

13. Neuralgia

14. Knee Pain

15. Elbow pain

The taste of gond syah is bitter like raw coffee.

With increasing age, pain starts in different parts of the body. Nowadays, from an early age, there are complaints of body pain due to continuous use of laptop, phone and not being able to do physical exercise. Gum ink can be consumed to get rid of this pain. To consume it, make its powder and mix half gram powder well in lukewarm water and drink it twice every day. Consume it after having food.

कुछ अर्थपूर्ण पंक्तियाँ "जिंदगी का अर्थ"

कुछ अर्थपूर्ण पंक्तियाँ  "जिंदगी का अर्थ"

Rupa Oos ki ek Boond
"Say something positive, 
and you’ll see something positive..”

एक सुबह पार्क में दौड़ते,

एक व्यक्ति को देखा 

मुझ से आधा किलोमीटर आगे था

अंदाज़ा लगाया कि मुझसे थोड़ा धीरे ही भाग रहा था

एक अजीब सी खुशी मिली

मैं पकड़ लूंगा उसे, यकीं था

मैं तेज़ और तेज़ दौड़ने लगा

आगे बढ़ते हर कदम के साथ,

मैं उसके करीब पहुंच रहा था

कुछ ही पलों में,

मैं उससे बस सौ क़दम पीछे था

निर्णय ले लिया था कि मुझे उसे पीछे छोड़ना है 

गति बढ़ाई

अंततः कर दिया

उसके पास पहुंच,

उससे आगे निकल गया

आंतरिक हर्ष की अनुभूति,

कि मैंने उसे हरा दिया

बेशक उसे नहीं पता था

कि हम दौड़ लगा रहे थे

मैं जब उससे आगे निकल गया,

मुझे एहसास हुआ

कि दिलो-दिमाग प्रतिस्पर्धा पर इस कदर केंद्रित था

कि

घर का मोड़ छूट गया

मन का सकूं खो गया

आस-पास की खूबसूरती और हरियाली नहीं देख पाया

ध्यान लगाने और अपनी आत्मा को भूल गया

और

व्यर्थ की जल्दबाज़ी में

दो-तीन बार गिरा

शायद ज़ोर से गिरने पर,

कोई हड्डी टूट जाती

तब समझ में आया,

यही तो होता है जीवन में,

जब हम अपने साथियों को,

पड़ोसियों को,

दोस्तों को,

परिवार के सदस्यों को,

प्रतियोगी समझते हैं

उनसे बेहतर करना चाहते हैं

प्रमाणित करना चाहते हैं

कि हम उनसे अधिक सफल हैं

या

अधिक महत्वपूर्ण

बहुत महंगा पड़ता है,

क्योंकि अपनी खुशी भूल जाते हैं

अपना समय और ऊर्जा

उनके पीछे भागने में गवां देते हैं

इस सब में अपना मार्ग और मंज़िल भूल जाते हैं

भूल जाते हैं कि नकारात्मक प्रतिस्पर्धाएं कभी ख़त्म नहीं होंगी

हमेशा कोई आगे होगा

किसी के पास बेहतर नौकरी होगी

बेहतर गाड़ी,

बैंक में अधिक रुपए,

ज़्यादा पढ़ाई,

खूबसूरत पत्नी,

ज़्यादा संस्कारी बच्चे,

बेहतर परिस्थितियां

और बेहतर हालात

इस सब में एक एहसास ज़रूरी है कि

बिना प्रतियोगिता किए, 

हर इंसान श्रेष्ठतम हो सकता है

असुरक्षित महसूस करते हैं वे चंद लोग 

जो कि अत्यधिक ध्यान देते हैं दूसरों पर

कहां जा रहे हैं?

क्या कर रहे हैं?

क्या पहन रहे हैं?

क्या बातें कर रहे हैं?

जो है, उसी में खुश रहो

लंबाई, वज़न या व्यक्तित्व

स्वीकार करो और समझो

कि कितने भाग्यशाली हो

ध्यान नियंत्रित रखो, 

स्वस्थ, सुखुद ज़िन्दगी जीओ

भाग्य में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है

सबका अपना-अपना है

तुलना और प्रतियोगिता हर खुशी को चुरा लेते‌ हैं

अपनी शर्तों पर जीने का आनंद छीन लेते हैं

अपनी दौड़ खुद लगाओ,

किसी प्रतिस्पर्धा के लिए नहीं

अपने जीवन को स्थिर,खुश और शांतपूर्ण बनाने के लिए

Rupa Oos ki ek Boond

चाय पीजिये सकारात्मक रहिये खुश रहिये खुशियाँ बांटिए 
Happy Sunday 

वैज्ञानिक मूर्ख : पंचतंत्र || Vaigyanik Murkh : Panchtantra ||

 वैज्ञानिक मूर्ख


वरं बुद्धिर्न सा विद्या विद्याया बुद्धिरुत्तमा। 
बुद्धिहीना विनश्यन्ति यथा ते सिंह कारकाः।

बुद्धि का स्थान विद्या से ऊँचा है।

वैज्ञानिक मूर्ख : पंचतंत्र || Vaigyanik Murkh : Panchtantra ||

एक नगर में चार मित्र रहते थे। उनमें से तीन बड़े वैज्ञानिक थे, किन्तु बुद्धिरहित थे; चौथा वैज्ञानिक नहीं था, किन्तु बुद्धिमानू था। चारों ने सोचा कि विद्या का लाभ तभी हो सकता है, यदि वे विदेशों में जाकर धन-संग्रह करें। इसी विचार से वे विदेश यात्रा को चल पड़े।

कुछ दूर जाकर उनमें से सबसे बड़े ने कहा : -हम चारों विद्वानों में एक विद्याशून्य है, वह केवल बुद्धिमान् है। धनोपार्जन के लिए और धनिकों की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए विद्या आवश्यक है। विद्या के चमत्कार से ही हम उन्हें प्रभावित कर सकते हैं। अतः हम अपने धन का कोई भी भाग इस विद्याहीन को नहीं देंगे। वह चाहे तो घर वापस चला जाए।

दूसरे ने इस बात का समर्थन किया। किन्तु तीसरे ने कहा- यह बात उचित नहीं है। बचपन से ही हम एक-दूसरे के सुख-दुःख के समभागी रहे हैं। हम जो भी धन कमाएँगे, उसमें इसका हिस्सा रहेगा। अपने-पराए की गणना छोटे दिलवालों का काम है। उदार चरित्र व्यक्तियों के लिए सारा संसार ही अपना कुटुम्ब होता है। हमें उदारता दिखलानी चाहिए।

उसकी बात मानकर चारों आगे चल पड़े। दूर जाकर उन्हें जंगल में एक शेर का मृत शरीर मिला। उसके अंग-प्रत्यंग बिखरे हुए थे। तीनों विद्याभिमानी युवकों ने कहा-जाओ, हम अपनी विज्ञान की शिक्षा की परीक्षा करें। विज्ञान के प्रभाव से हम इस मृत शरीर में नया जीवन डाल सकते हैं । - यह कहकर तीनों उसकी हड्डियाँ बटोरने और बिखरे हुए अंगों को मिलाने में लग गए। एक ने अस्थिसंजय किया, दूसरे ने चर्म, माँस, रुधिर संयुक्त किया, तीसरे ने प्राणों के संचार की प्रक्रिया शुरू की। इतने में विज्ञान-शिक्षा से रहित, किन्तु बुद्धिमान् मित्र ने उन्हें सावधान करते हुए कहा ज़रा ठहरो । तुम लोग अपनी विद्या के प्रभाव से शेर को जीवित कर रहे हो। वह जीवित होते ही तुम्हें मारकर खा जाएगा।

वैज्ञानिक मित्रों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। तब वह बुद्धिमान् बोला- यदि तुम्हें अपनी विद्या का चमत्कार दिखलाना ही है, तो दिखलाओ। लेकिन एक क्षण ठहर जाओ, में वृक्ष पर चढ़ जाऊँ। यह कहकर वह वृक्ष पर चढ़ गया।

इतने में तीनों वैज्ञानिकों ने शेर को जीवित कर दिया। जीवित होते ही शेर ने तीनों पर हमला कर दिया। तीनों मारे गए। अतः शास्त्रों में कुशल होना ही पर्याप्त नहीं है। लोक-व्यवहार को समझने और लोकाचार के अनुकूल काम करने की बुद्धि भी होनी चाहिए, अन्यथा लोकाचार-हीन विद्वान भी मूर्ख पण्डितों की तरह उपहास के पात्र बनते हैं।

चक्रधर ने पूछा- कौन से मूर्ख पण्डितों की तरह?

स्वर्ण-सिद्धि युवक ने तब अगली कथा सुनाई:

चार मूर्ख युवक

काफिरिस्तान के काफिर..

काफिरिस्तान के काफिर..

काफिरिस्तान का नाम सुने हैं? पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर एक छोटा सा इलाका है यह। बड़ा ही महत्वपूर्ण क्षेत्र! जानते हैं क्यों? क्योंकि आज से सवा सौ वर्ष पूर्व तक वहाँ विश्व की सबसे प्राचीन परंपरा को मानने वाले लोग बसते थे।

काफिरिस्तान के काफिर..

हिन्दू ही थे वे, पर हमसे थोड़े अलग थे। विशुद्ध वैदिक परम्पराओं को मानने वाले हिन्दू - सूर्य, इंद्र, वरुण आदि प्राकृतिक शक्तियों को पूजने वाले वैदिक हिन्दू। वैदिक काल से अबतक हमारी परम्पराओं में असँख्य परिवर्तन हुए हैं। हमने समय के अनुसार असँख्य बार स्वयं में परिवर्तन किया है, पर काफिरिस्तान के लोगों ने नहीं किया था। बड़े शक्तिशाली लोग थे काफिरिस्तान के। इतने शक्तिशाली कि मोहम्मद बिन कासिम से लेकर अहमद शाह अब्दाली तक हजार वर्षों में हुए असँख्य अरबी आक्रमणों के बाद भी वे नहीं बदले।

वर्तमान अफगानिस्तान के अधिकांश लोग अशोक और कनिष्क के काल में हिन्दू से बौद्ध हो गए थे। आठवीं सदी में जब वहाँ अरबी आक्रमण शुरू हुआ तो ये बौद्ध स्वयं को पच्चीस वर्षों तक भी नहीं बचा पाए। वे तो गए ही, साथ ही शेष हिन्दू भी पतित हो गए। पर यदि कोई नहीं बदला, तो वे चंद सूर्यपूजक सनातनी लोग नहीं बदले।

युग बदल गया, पर वे नहीं बदले। तलवारों के भय से धर्म बदलने वाले हिन्दू और बौद्ध धीरे-धीरे इन प्राचीन लोगों को काफिर और इनके क्षेत्र को काफिरिस्तान कहने लगे। वैदिक सनातनियों का यह क्षेत्र बहुत ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र है। ऊँचे ऊँचे पर्वतों और उनपर उगे घने जंगलों में बसी सभ्यता इतनी मजबूत थी कि वे पचास से अधिक आक्रमणों के बाद भी कभी पराजित नहीं हुए। न टूटे न बदले। 

काफिरिस्तान के लोग जितने शक्तिशाली थे, उतने ही सुन्दर भी थे। वहाँ की लड़कियाँ दुनिया की सबसे सुन्दर लड़कियां लगती हैं। माथे पर मोर पंख सजा कर फूल की तरह खिली हुई लड़कियां, जैसे लड़कियाँ नहीं परियाँ हों। वहाँ के चौड़ी छाती और लंबे शरीर वाले पुरुष, देवदूत की तरह लगते थे। दूध की तरह गोरारंग, बड़ी-बड़ी नीली आँखें मानो जैसे स्वर्ग का कोई निर्वासित देवता हो।

काफिरिस्तान के काफिर..

अरबी तलवार जब आठ सौ वर्षों में भी उन्हें नहीं बदल पायी, तो उन्होंने हमले का तरीका बदल दिया। अफगानी लोग उनसे मिल-जुल कर रहने लगे। दोनों लोगों में मेल जोल हो गया। फिर, सन अठारह सौ छानबे (१८९६) में अफगानिस्तान के तात्कालिक शासक अब्दीर रहमान खान ने काफिरिस्तान पर आखिरी आक्रमण किया। इस बार प्रतिरोध उतना मजबूत नहीं था। काफिरों में असँख्य थे, जिन्हें लगता था कि हमें प्रेम से रहना चाहिए, युद्ध नहीं करना चाहिए। फल यह हुआ कि हजार वर्षों तक अपराजेय रहने वाले काफिरिस्तान के सनातनी एक झटके में समाप्त हो गए। पूर्णतः समाप्त हो गए, पराजित हुए। फिर हमेशा की तरह हत्या और बलात्कार का ताण्डव शुरू हुआ। आधे लोग मार डाले गए, जो बचे उनका धर्म बदल दिया गया। कोई नहीं बचा, कोई भी नहीं काफिरिस्तान का नाम बदल कर नूरिस्तान कर दिया गया।

काफिरिस्तान खड़ी और जंगली घाटियों से भरा था। यह अपनी सटीक लकड़ी की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध था, विशेष रूप से देवदार-लकड़ी के खंभे, नक्काशीदार दरवाजे, फर्नीचर (सींग कुर्सियों सहित ) और मूर्ति। इन स्तंभों में से कुछ जीवित हैं, क्योंकि उनका मस्जिदों में पुन: उपयोग किया गया था, लेकिन मंदिरों, मंदिरों और स्थानीय पंथों के केंद्र, उनके लकड़ी के पुतलों और पूर्वजों की कई मूर्तियों के साथ आग लगा दी गई और जमीन पर जला दिया गया। काबुल में इस इस्लामी जीत की लूट के रूप में केवल एक छोटा सा अंश काबुल वापस लाया गया। इनमें पुश्तैनी नायकों और पूर्व-इस्लामिक स्मारक कुर्सियों के विभिन्न लकड़ी के पुतले शामिल थे। १८९६ में या उसके तुरंत बाद काबुल में लाए गए तीस से अधिक लकड़ी के आंकड़ों में से चौदह काबुल संग्रहालय में गए और चार पेरिस में स्थित मुसी गुइमेट और मुसी डे ल'होमे के पास गए । काबुल संग्रहालय में तालिबान के तहत बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे, लेकिन तब से उन्हें बहाल कर दिया गया है। 

काफिरिस्तान के काफिर..

आज काफिरिस्तान का नाम लेने वाला कोई नहीं। कुछ लोगों का मानना है कि काफिरिस्तान के वैदिक हिन्दुओं की ही एक शाखा पाकिस्तान के कलाशा में आज भी जीवित है। वे आज भी वैदिक रीतियों का पालन करते हैं। लगभग छह हजार की सँख्या है उनकी। 

श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय सात - ज्ञानविज्ञान योग || अनुच्छेद 08 - 19 ||

श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय सात ज्ञानविज्ञान योग ||

अथ सप्तमोऽध्यायः- ज्ञानविज्ञानयोग

अध्याय सात के अनुच्छेद 08 - 19

अध्याय सात के अनुच्छेद 08-12 में संपूर्ण पदार्थों में कारण रूप से भगवान की व्यापकता का वर्णन किया गया है।

श्रीमद्भगवद्गीता

श्रीभगवानुवाच

रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥

भावार्थ : 

हे अर्जुन! मैं जल में रस हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में प्रकाश हूँ, सम्पूर्ण वेदों में ओंकार हूँ, आकाश में शब्द और पुरुषों में पुरुषत्व हूँ॥8॥

पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥

भावार्थ : 

मैं पृथ्वी में पवित्र (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध से इस प्रसंग में इनके कारण रूप तन्मात्राओं का ग्रहण है, इस बात को स्पष्ट करने के लिए उनके साथ पवित्र शब्द जोड़ा गया है।) गंध और अग्नि में तेज हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों में उनका जीवन हूँ और तपस्वियों में तप हूँ॥9॥

बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्‌ ।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्‌ ॥

भावार्थ : 

हे अर्जुन! तू सम्पूर्ण भूतों का सनातन बीज मुझको ही जान। मैं बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ॥10॥

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्‌ ।
धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ॥

भावार्थ : 

हे भरतश्रेष्ठ! मैं बलवानों का आसक्ति और कामनाओं से रहित बल अर्थात सामर्थ्य हूँ और सब भूतों में धर्म के अनुकूल अर्थात शास्त्र के अनुकूल काम हूँ॥11॥

ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्चये ।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥

भावार्थ : 

और भी जो सत्त्व गुण से उत्पन्न होने वाले भाव हैं और जो रजो गुण से होने वाले भाव हैं, उन सबको तू 'मुझसे ही होने वाले हैं' ऐसा जान, परन्तु वास्तव में (गीता अ. 9 श्लोक 4-5 में देखना चाहिए) उनमें मैं और वे मुझमें नहीं हैं॥12॥

अध्याय सात के अनुच्छेद 13-19 में आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भगवद्भक्तों की प्रशंसा का वर्णन किया गया है।  

त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत्‌ ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम्‌ ॥

भावार्थ : 

गुणों के कार्य रूप सात्त्विक, राजस और तामस- इन तीनों प्रकार के भावों से यह सारा संसार- प्राणिसमुदाय मोहित हो रहा है, इसीलिए इन तीनों गुणों से परे मुझ अविनाशी को नहीं जानता॥13॥

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥

भावार्थ : 

क्योंकि यह अलौकिक अर्थात अति अद्भुत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है, परन्तु जो पुरुष केवल मुझको ही निरंतर भजते हैं, वे इस माया को उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात्‌ संसार से तर जाते हैं॥14॥

न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः ।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ॥

भावार्थ : 

माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते॥15॥

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥

भावार्थ : 

हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी (सांसारिक पदार्थों के लिए भजने वाला), आर्त (संकटनिवारण के लिए भजने वाला) जिज्ञासु (मेरे को यथार्थ रूप से जानने की इच्छा से भजने वाला) और ज्ञानी- ऐसे चार प्रकार के भक्तजन मुझको भजते हैं॥16॥

तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥

भावार्थ : 

उनमें नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेमभक्ति वाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है क्योंकि मुझको तत्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय है॥17॥

उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्‌ ।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्‌ ॥

भावार्थ : 

ये सभी उदार हैं, परन्तु ज्ञानी तो साक्षात्‌ मेरा स्वरूप ही है- ऐसा मेरा मत है क्योंकि वह मद्गत मन-बुद्धिवाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम गतिस्वरूप मुझमें ही अच्छी प्रकार स्थित है॥18॥

बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥

भावार्थ : 

बहुत जन्मों के अंत के जन्म में तत्व ज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही हैं- इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है॥19॥

स्वतंत्र भारत में एक रेलवे ट्रैक ऐसा भी है, जिस पर भारत का अधिकार नहीं

आजाद भारत की गुलाम ट्रेन

स्वतंत्र भारत में एक रेलवे ट्रैक ऐसा भी है, जिस पर भारत का अधिकार नहीं है, बल्कि अंग्रेजों की हुकूमत है। आज भी भारत सरकार की ओर से इस ट्रैक के लिए करोड़ों की रॉयल्‍टी दी जाती है।

आजाद भारत का इकलौता रेलवे ट्रैक; जिस पर आज भी है गोरों की हुकूमत

भारतीय रेलवे एशिया का सबसे बड़ा और दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है।  यदि किसी को देश के किसी भी कोने में घूमना हो, तो वह भारतीय रेल से यात्रा करके वहां तक पहुंच सकता हैं।लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में एक रेलवे ट्रैक ऐसा भी है, जिस पर भारत का अधिकार नहीं है, बल्कि अंग्रेजों का शासन है। यूँ तो भारत को तो अंग्रेजों से आजाद हुए 75 साल से ज्‍यादा समय बीत चुका है, लेकिन ये सच है कि गोरों से आजाद होने के बाद भी भारत में एक ऐसा रेलवे ट्रैक है, जिसका स्वामित्व सरकार के पास नहीं है बल्कि ब्रिटेन में एक निजी कंपनी के पास है। इस ट्रैक को शकुंतला रेलवे ट्रैक के नाम से जाना जाता है।

आजाद भारत का इकलौता रेलवे ट्रैक; जिस पर आज भी है गोरों की हुकूमत

शकुंतला रेलवे ट्रैक महाराष्ट्र के अमरावती से मुर्तजापुर तक 190 किलोमीटर तक फैला हुआ है। ये ट्रैक अंग्रेजों के जमाने का है। दरअसल अंग्रेजों के जमाने से ही महाराष्ट्र के अमरावती में कपास की खेती होती थी। उस समय कपास को मुंबई पोर्ट तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजों ने इस ट्रैक को बनवाया था। ब्रिटेन की क्लिक निक्सन एंड कंपनी ने इस रेलवे ट्रैक को बनाने के लिए सेंट्रल प्रोविंस रेलवे कंपनी (CPRC) की स्थापना की।  इस कंपनी ने  ट्रैक बिछाने का ये काम साल 1903 में शुरू हुआ और 1916 में रेल लाइन भी पूरा हो गया। 

अंग्रेजों के जमाने में बने इस ट्रैक पर शंकुतला पैसेंजर नाम की एक ही ट्रेन चलती थी, जिसके कारण इस ट्रैक का नाम भी शकुंतला रेलवे ट्रैक पड़ गया। शकुंतला पैसेंजर में सिर्फ 5 ट्रेन के डिब्‍बे होते थे और इसे स्‍टीम के इंजन से खींचा जाता था। 1994 के बाद से इस ट्रेन में डीजल इंजन लगा दिया गया और इसमें बोगियों की संख्‍या को भी बढ़ाकर 7 कर दिया गया। अगर आप इस ट्रैक पर जाएंगे तो आज भी आपको यहां सिग्‍नल से लेकर दूसरी तमाम चीजें, सब कुछ अंग्रेजों के जमाने की ही दिखेंगी। शकुंतला पैसेंजर इस ट्रैक पर करीब 6-7 घंटे का सफर पूरा करती है। सफर के दौरान ट्रेन अचलपुर, यवतमाल समेत 17 अलग-अलग स्टेशनों पर रुकती है।

आजाद भारत का इकलौता रेलवे ट्रैक; जिस पर आज भी है गोरों की हुकूमत

देश के आजाद होने के बाद भी इस ट्रैक का स्‍वामित्‍व ब्रिटेन की प्राइवेट कंपनी के ही पास है। वहीं कंपनी इस ट्रैक को संचालित करती है। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो भारतीय रेलवे ने इस कंपनी के साथ एक समझौता किया, जिसके अंतर्गत हर साल आज भी भारतीय रेलवे की ओर से कंपनी को रॉयल्टी दी जाती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय रेलवे हर साल 1 करोड़ 20 लाख की रॉयल्टी कंपनी को देता है। हालांकि भारतीय रेलवे ने कई बार इसे खरीदने का प्रस्ताव जरूर रखा है, लेकिन अभी तक इसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया है।

 शकुंतला रेलवे ट्रैक काफी पुराना होने के कारण जर्जर हो गया है। भारत सरकार इस ट्रैक के लिए कंपनी को रॉयल्‍टी जरूर देती है, लेकिन फिर भी पिछले 60 सालों से इस ट्रैक की मरम्‍मत का काम कंपनी की तरफ से नहीं कराया गया । इस कारण शकुंतला पैसेंजर की रफ्तार भी इस ट्रैक पर 20 किमी प्रति घंटे के हिसाब से रहती थी। यही वजह है कि 2020 से इस ट्रेन का संचालन बंद है। हालांकि इलाके में रहने वाले लोगों की मांग है कि इस ट्रेन को दोबारा से शुरू किया जाए।

देखना यह है कि इस ट्रैक को दोबारा कब खोला जाता है।

slave train of free india

There is also a railway track in independent India, which is not owned by India, but is ruled by the British. Even today, royalty of crores is given by the Government of India for this track.

आजाद भारत का इकलौता रेलवे ट्रैक; जिस पर आज भी है गोरों की हुकूमत

Indian Railways is the largest rail network in Asia and the fourth largest in the world. If anyone wants to travel to any corner of the country, he can reach there by traveling by Indian Railways. But you will be surprised to know that there is a railway track in India which is not owned by India, but by the British. is the rule of Although India has been free from the British for more than 75 years, but it is true that even after being free from the whites, there is a railway track in India, which is not owned by the government, but by a private company in Britain. Company has. This track is known as Shakuntala Railway Track.

The Shakuntala railway track stretches for 190 kilometers from Amravati to Murtajapur in Maharashtra. This track is from the British era. In fact, since the time of the British, cotton was cultivated in Amravati, Maharashtra. At that time, this track was built by the British to take cotton to Mumbai port. Britain's Click Nixon and Company established the Central Province Railway Company (CPRC) to build this railway track. This work of laying the track by this company started in the year 1903 and in 1916 the rail line was also completed.

Only one train named Shankutla Passenger used to run on this track built during the British era, due to which the name of this track also got Shakuntala Railway Track. The Shakuntala Passenger had only 5 train coaches and was pulled by a steam engine. From 1994 onwards, this train was fitted with a diesel engine and the number of bogies was also increased to 7. If you go on this track, even today you will see everything from the signal to other things, everything is from the British era. Shakuntala Passenger completes the journey of about 6-7 hours on this track. During the journey, the train stops at 17 different stations including Achalpur, Yavatmal.

आजाद भारत का इकलौता रेलवे ट्रैक; जिस पर आज भी है गोरों की हुकूमत

Even after the independence of the country, the ownership of this track is with the private company of Britain. The same company operates this track. When the country became independent in 1947, the Indian Railways entered into an agreement with this company, under which royalty is paid to the company by the Indian Railways every year even today. According to reports, Indian Railways gives royalty of 1 crore 20 lakhs to the company every year. Although the Indian Railways has proposed to buy it many times, but so far no result has come out of it.

  Shakuntala railway track has become dilapidated due to being very old. The Government of India definitely pays royalty to the company for this track, but still the repair work of this track has not been done by the company for the last 60 years. For this reason, the speed of Shakuntala Passenger was also kept at 20 km per hour on this track. This is the reason why the operation of this train is closed from 2020. However, the people living in the area have demanded that this train be started again.

It remains to be seen when this track is opened again.

कित्तूर की रानी चेन्नमा/Rani Chennamma (Kittur)

कित्तूर की रानी चेन्नमा/Rani Chennamma (Kittur)

- बलिदान दिवस 21 फरवरी, 1826

उत्तर भारत में जो स्थान स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का है, कर्नाटक में वही स्थान कित्तूर की रानी चेन्नम्मा का है। चेन्नम्मा ने लक्ष्मीबाई से पहले ही अंग्रेज़ों की सत्ता को सशस्त्र चुनौती दी थी और अंग्रेज़ों की सेना को उनके सामने दो बार मुँह की खानी पड़ी थी।

कित्तूर की रानी चेन्नमा/Rani Chennamma (Kittur)

चेन्नम्मा का अर्थ होता है सुंदर कन्या। इस सुंदर बालिका का जन्म 1778 ई. में दक्षिण के काकातीय राजवंश में हुआ था। पिता धूलप्पा और माता पद्मावती ने उसका पालन-पोषण राजकुल के पुत्रों की भाँति किया। उसे संस्कृत भाषा, कन्नड़ भाषा, मराठी भाषा और उर्दू भाषा के साथ-साथ घुड़सवारी, अस्त्र शस्त्र चलाने और युद्ध-कला की भी शिक्षा दी गई।

चेन्नमा का विवाह कित्तूर के राजा मल्लसर्ज के साथ हुआ। कित्तूर उन दिनों मैसूर के उत्तर में एक छोटा स्वतंत्र राज्य था। परन्तु यह बड़ा संपन्न था। यहाँ हीरे-जवाहरात के बाज़ार लगा करते थे और दूर-दूर के व्यापारी आया करते थे। चेन्नम्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया, पर उसकी जल्दी मृत्यु हो गई। कुछ दिन बाद राजा मल्लसर्ज भी चल बसे। तब उनकी बड़ी रानी रुद्रम्मा का पुत्र शिवलिंग रुद्रसर्ज गद्दी पर बैठा और चेन्नम्मा के सहयोग से राजकाज चलाने लगा। शिवलिंग के भी कोई संतान नहीं थी। इसलिए उसने अपने एक संबंधी गुरुलिंग को गोद लिया और वसीयत लिख दी कि राज्य का काम चेन्नम्मा देखेगी। शिवलिंग रुद्रसर्ज की भी जल्दी मृत्यु हो गई।

कित्तूर की रानी चेन्नमा/Rani Chennamma (Kittur)

कित्तूर पर हमला

अंग्रेज़ों की नजर इस छोटे परन्तु संपन्न राज्य कित्तूर पर बहुत दिन से लगी थी। अवसर मिलते ही उन्होंने गोद लिए पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया और वे राज्य को हड़पने की योजना बनाने लगे। आधा राज्य देने का लालच देकर उन्होंने राज्य के कुछ देशद्रोहियों को भी अपनी ओर मिला लिया। पर रानी चेन्नम्मा ने स्पष्ट उत्तर दिया कि उत्तराधिकारी का मामला हमारा अपना मामला है, अंग्रेज़ों का इससे कोई लेना-देना नहीं। साथ ही उसने अपनी जनता से कहा कि जब तक तुम्हारी रानी की नसों में रक्त की एक भी बूँद है, कित्तूर को कोई नहीं ले सकता।

कित्तूर की रानी चेन्नमा/Rani Chennamma (Kittur)

रानी का उत्तर पाकर धारवाड़ के कलेक्टर थैकरे ने 500 सिपाहियों के साथ कित्तूर का किला घेर लिया। 23 सितंबर, 1824 का दिन था। किले के फाटक बंद थे। थैकरे ने दस मिनट के अंदर आत्मसमर्पण करने की चेतावनी दी। इतने में अकस्मात क़िले के फाटक खुले और दो हज़ार देशभक्तों की अपनी सेना के साथ रानी चेन्नम्मा मर्दाने वेश में अंग्रेज़ों की सेना पर टूट पड़ी। थैकरे भाग गया। दो देशद्रोही को रानी चेन्नम्मा ने तलवार के घाट उतार दिया। अंग्रेजों ने मद्रास और मुंबई से कुमुक मंगा कर 3 दिसंबर, 1824 को फिर कित्तूर का किला घेर डाला। परन्तु उन्हें कित्तूर के देशभक्तों के सामने फिर पीछे हटना पड़ा। दो दिन बाद वे फिर शक्तिसंचय करके आ धमके। छोटे से राज्य के लोग काफ़ी बलिदान कर चुके थे।

कित्तूर की रानी चेन्नमा/Rani Chennamma (Kittur)

चेन्नम्मा के नेतृत्व में उन्होंने विदेशियों का फिर सामना किया, पर इस बार वे टिक नहीं सके। रानी चेन्नम्मा को अंग्रेज़ों ने बंदी बनाकर जेल में डाल दिया। उनके अनेक सहयोगियों को फाँसी दे दी। कित्तूर की मनमानी लूट हुई।

21 फरवरी, 1829 ई. को जेल के अंदर ही इस वीरांगना रानी चेन्नम्मा का देहांत हो गया। 

English Translate

Rani Chennamma (Kittur)

- Sacrifice Day February 21, 1826

कित्तूर की रानी चेन्नमा/Rani Chennamma (Kittur)

The place in North India which belongs to Rani Lakshmibai of Jhansi in the context of freedom struggle, in Karnataka the same place belongs to Rani Chennamma of Kittur. Chennamma had challenged the British authority even before Lakshmibai and the British army had to face her twice.

Chennamma means beautiful girl. This beautiful girl was born in 1778 AD in the Kakatiya dynasty of the South. Father Dhulappa and mother Padmavati raised him like the sons of Rajkul. He was taught Sanskrit language, Kannada language, Marathi language and Urdu language as well as horse riding, weapon handling and martial arts.

कित्तूर की रानी चेन्नमा/Rani Chennamma (Kittur)

Chennama was married to King Mallasarja of Kittur. Kittur was a small independent kingdom to the north of Mysore in those days. But it was very rich. Here diamond and jewels markets used to be set up and merchants from far and wide used to come. Chennamma gave birth to a son, but he died early. After a few days, King Mallasarj also passed away. Then his elder queen Rudramma's son Shivalinga Rudrasarja sat on the throne and started running the kingdom with the help of Chennamma. Shivling also did not have any children. So he adopted one of his relatives Gurulinga and wrote a will that Chennamma would look after the affairs of the kingdom. Shivling Rudrasarj also died early.

attack on kittur

The eyes of the British were on this small but prosperous state of Kittur for a long time. As soon as he got the opportunity, he refused to accept the adopted son as heir and started planning to annex the state. By giving the lure of giving half the state, he also got some of the traitors of the state in his side. But Rani Chennamma categorically replied that the matter of successor is our own matter, the British have nothing to do with it. At the same time, he told his people that as long as there is a drop of blood in your queen's veins, no one can take Kittur.

कित्तूर की रानी चेन्नमा/Rani Chennamma (Kittur)

After receiving the reply of the queen, Thakre, the collector of Dharwad, surrounded the fort of Kittur with 500 soldiers. September 23, 1824 was the day. The gates of the fort were closed. Thakre warned to surrender within ten minutes. Suddenly, the gates of the fort opened and Rani Chennamma with her army of two thousand patriots, in a manly garb, broke down on the British army. Thacker fled. Two traitors were killed by the sword by Rani Chennamma. The British again besieged the fort of Kittur on December 3, 1824, by importing kumuk from Madras and Mumbai. But he had to retreat again in front of the patriots of Kittur. After two days, he came again after accumulating power. The people of the small kingdom had sacrificed a lot.

Under the leadership of Chennamma, he again faced the foreigners, but this time he could not survive. Rani Chennamma was imprisoned by the British and imprisoned. Many of his associates were hanged. Kittur was looted arbitrarily.

कित्तूर की रानी चेन्नमा/Rani Chennamma (Kittur)

On February 21, 1829 AD, this heroic queen Rani Chennamma died inside the jail.

30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes

जन्मदिन साल भर में एक ही बार आता है। यह दिन सभी के लिए बहुत खास होता है। अच्छा लगता है जब कोई हमारे जन्मदिन पर बधाई और शुभकामनाएं भेजता है। पहले के समय में हम अपने प्रियजनों को जन्मदिन की बधाई देने के लिए खुद कार्ड्स बनाते थे, सोशल साइट्स की इतनी सुविधा उपलब्ध नहीं थी। अब समय बदल चुका है और अपने नियर डियर को शुभकामनाएं भेजना बहुत सरल हो गया है, चाहे कोई आपसे कितना भी दूर क्यूं ना हो। जन्मदिन पर जब हम अपने दोस्तों या रिश्तेदारों को एक नए अंदाज़ से जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं तो ये ख़ास दिन उनके लिए और भी ख़ास हो जाता है। कुछ बधाई संदेश के साथ किसी के जन्मदिन को और भी ख़ास बनाया जा सकता है। 

30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes
प्यार से भरी ख़ुशी मिले आपको.
खुशियों से भरे पल मिले आपको..
कभी किसी गम का सामना न करना पड़े..
ऐसा आने वाला कल मिले आपको..

    जन्मदिन मुबारक

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes
दुनियाँ की खुशियाँ आपको मिल जायें 
अपनों से मिल के आपका मन खिल जाये 
चेहरे पर दुःख की कभी शिकन भी न हो 
आपके जन्मदिन पर मेरी दिल से शुभकामनायें..

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes
जन्मदिन के ये खास लम्हे मुबारक.
आँखों में बसे नए ख्वाब मुबारक..
ज़िन्दगी जो लेकर आई है आपके लिए आज ..
वो तमाम खुशियों की हंसीं सौगात मुबारक..

Happy birthday ❤️

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes
ख़ुशी से बीते आपका हर दिन, हर रात सुहानी हो !
आपके जन्मदिन पर हर ख़ुशी बस आपकी दीवानी हो !!

       जन्मदिन मुबारक हो 
💫💫💫💫💫💫💫💫💫💫


30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

मुस्कान आपके होंठो से कभी जाये नहीं !
आंसू आपकी पलकों पे कभी आये नहीं..
पूरा हो आपका हर सपना..
और जो पूरा न हो वो सपना आये ही नहीं ..

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
💫💫💫💫💫💫💫💫💫💫
30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

आपके रास्तें में गुलाब खिलते रहें .
आपकी निगाहों में हसीं ख्वाब सजते रहें ..
जीवन की हर ख़ुशी मिले आपको ..
यही दुआ हर दिल से आपको मिलती रहे ..

       जन्मदिन मुबारक हो..
💫💫💫💫💫💫💫💫💫💫

30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

बार बार दिन ये आये !
बार बार दिल ये गाये !!
तुम जियो हज़ारो साल ये मेरी है आरज़ू ..


      हैप्पी बर्थडे टू यू ..
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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

ना गिला करते हैं ना शिकवा करते हैं !
आप सलामत रहें बस यही दुआ करते हैं !!
और आपको जन्मदिन की शुभकामनाएं देतें हैं !!!

      जन्मदिन की बधाई 
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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

हर साल जन्मदिन आपके लिए तरक्की बनके आये.
आपके लिए ख़ुशी के नये नये अवसर लाये..
खुशियाँ भी आपके लिए तराने गायें..

    जन्मदिन मुबारक 
💫💫💫💫💫💫💫💫💫💫

30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

फूलों के जैसे महके ज़िन्दगी तुम्हारी.
तारों के जैसे चमके जीवन तुम्हारा..
दिल से दुआ है लम्बी हो उम्र तुम्हारी..
क़ुबूल करो जन्मदिन की शुभकामनाएं हमारी..

      जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

आपकी खुशियों की महफ़िल सदा सजती रहे.
आपकी ज़िन्दगी का हर पल ख़ूबसूरत रहें..

      जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

💫💫💫💫💫💫💫💫💫💫

30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes
आपके जीवन की यादें, आपके बर्थडे केक की तरह ही मीठी हों। 
आपका जन्मदिन आपके लिए यादगार हो..

जन्मदिन मुबारक

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes
आपको जीवन में वो सब कुछ हासिल हो, 
जिस की आप कामना करते हैं। 

आपको मेरी तरफ से जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं।

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

मेरी दुआ है कि आपको जन्मदिन पर
ढेर सारी खुशियां और सफलता मिले। 

जन्मदिन मुबारक।

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

Happy birthday. I pray all your birthday wishes to come true.

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

“Happy birthday! Here’s to more life, love, and adventures with you to come!”

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

Here is a wish for your birthday. 
May you receive whatever you ask for, 
may you find whatever you seek. 

🌹Happy birthday🌹

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

May all the joy you have spread around 
come back to you a hundredfold. 

❣️Happy birthday❣️

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

Do not count the candles, but see the light they give. Don't count your years but the life you live. 

💐Happy Birthday💐

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

“Enjoy your special day.”

❣️ Happy wala Birthday ❣️

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

“Have the best birthday ever!”

🥳 Happy Birthday 🥳

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

“Wherever the year ahead takes you, I hope it’s happy.”

🌹 Happy Birthday 🌹

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

“The day is all yours — have fun!”

❣️ Happy wala Birthday ❣️

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

“Thinking of you on your birthday and wishing you everything happy.”

🎁 Happy Birthday 🎁

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

“Best wishes on your birthday – may you have many, many more.”

🍫 Happy Birthday 🍫

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

“Cheers to you for another trip around the sun!”

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

“Today is about you. I can’t wait to celebrate you all day long!”

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

I hope your special day this year gives you everything your kind heart desires. May your special day be filled with many amazing surprises.

HAPPY BIRTHDAY!

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

My birthday wish for you is that you continue to love life and never stop dreaming.

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30 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes Quotes

May All your Dreams come True

Happy Birthday to You

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