श्याम बेनेगल
मूल नाम : श्याम बेनेगल (Shyam Benegal)
उपनाम : 'NA'
जन्म : 14 दिसंबर 1934 | तिरुमलागिरी , हैदराबाद
निधन : 23 दिसंबर 2024 (आयु 90) | मुंबई , महाराष्ट्र.
जन्म : 14 दिसंबर 1934 | तिरुमलागिरी , हैदराबाद
निधन : 23 दिसंबर 2024 (आयु 90) | मुंबई , महाराष्ट्र.
आम लोगों की जिंदगी को पर्दे पर उतारने वाले श्याम बेनेगल (Shyam Benegal), हिंदी सिनेमा के एक प्रसिद्ध निर्देशक थे। श्याम बेनेगल का नाम हिंदी सिनेमा जगत के अग्रणी निर्देशकों में शुमार है। श्याम बेनेगल जी पद्मश्री और पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया जा चुके हैं। इसमें कोई संदेह नहीं की इनका निधन हिंदी सिनेमा जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। हाल ही में 23 दिसंबर 2024 को शाम 6:38 पर इन्होंने मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल में आखिरी सांसें ली (जहाँ वे क्रोनिक किडनी रोग का इलाज करवा रहे थे) और मायानगरी को अलविदा कह चले। वे लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। दो साल पहले उनकी दोनों किडनी खराब हो गई थीं। उसके बाद से उनका डायलिसिस के साथ इलाज चल रहा था। श्याम बेनेगल ने फिल्म इंडस्ट्री को कई बड़ी और बेहतरीन फिल्में दी हैं।
श्याम बेनेगल जी का जीवन परिचय
श्याम सुंदर बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 में तिरुमलागिरी, हैदराबाद में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता कर्नाटक से थे और पेशे से फोटोग्राफर थे। श्याम बेनेगल बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता और निर्देशक गुरुदत्त के भतीजे थे। श्याम बेनेगल ने नीरा बेनेगल से शादी की। उनकी एक बेटी है पिया बेनेगल, जो एक कॉस्ट्यूम डिजाइनर है। जब श्याम बेनेगल बारह साल के थे, तब उन्होंने अपने फोटोग्राफर पिता श्रीधर बी. बेनेगल द्वारा दिए गए कैमरे से अपनी पहली फिल्म बनाई थी।
2009 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में श्याम बेनेगल ने कहा था,"जब मैं बच्चा था तो तब ये निजाम का हैदराबाद था। जब कुछ बड़ा हुआ तो ये भारत का हिस्सा बना। मैंने कई ऐतिहासिक बदलाव देखे हैं। एक बात और कि हैदराबाद शहर में सामंतवादी राज था लेकिन जहाँ हम रहते थे वो छावनी क्षेत्र था। छावनी की सोच एकदम अलग थी। मैं हैदराबाद के पहले अंग्रेजी स्कूल महबूब कॉलेज हाई स्कूल में पढ़ा। मेरे पिता फोटोग्राफर थे, वैसे तो वो कलाकार थे लेकिन जीविकोपार्जन के लिए उनका स्टूडियो था।"
रचनात्मकता उन्हें अपने पिता से मिली थी। बतौर कॉपी राइटर करियर की शुरुआत करने वाले बेनेगल ने पहले एक दशक तक सैकड़ों विज्ञापनों का निर्देशन किया, लेकिन वो यथार्थवादी फिल्में बनाना चाहते थे, जो सोचने पर मजबूर करें।
श्याम बेनेगल की शिक्षा:-
श्याम बेनेगल जी ने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। बाद में फोटोग्राफी शुरू कर दी। बॉलीवुड में उन्हें आर्ट सिनेमा का जनक भी माना जाता है।
श्याम बेनेगल ने अपना पेशेवर जीवन बॉम्बे में एक विज्ञापन एजेंसी में काम करके शुरू किया। उन्होंने एक कॉपीराइटर के रूप में शुरुआत की और जल्द ही फिल्म निर्माता बन गए। उस पद पर उन्होंने 900 से अधिक वाणिज्यिक और विज्ञापन फिल्में और 11 कॉरपोरेट फिल्में और साथ ही कई वृत्तचित्र बनाए।
श्याम बेनेगल जो फ़िल्मों को विशुद्ध मनोरंजन का साधन नहीं, अपितु समाज को आईना दिखाने का माध्यम मानते थे
विज्ञापन की दुनिया से आए श्याम बेनेगल (एक फ़िल्मकार) ने सिनेमा को केवल विशुद्ध मनोरंजन का साधन मानने से साफ़ इनकार कर दिया। उनका ग़ुस्सा भी यथार्थ से ज़रा दूर हट के फ़िल्मी ही था। उस समय पर 1970 के दसक में जब हिंदी सिनेमा में गीत-संगीत और रोमांटिक कहानियों का दौर था, मुख्य किरदार में सुपर स्टार राजेश खन्ना हुआ करते थे, ऐसे में उनको चुनौती देने का बीड़ा श्याम बेनेगल ने उठा लिया। श्याम बेनेगल, जिन्होंने फ़िल्मों को समाज को आईना दिखाने और बदलाव लाने के एक माध्यम के रूप में देखा। यही नज़र थी, जिसके साथ श्याम बेनेगल ने 1974 में अपनी पहली फ़िल्म 'अंकुर' के साथ मुख्यधारा की मसाला फ़िल्मों के समानांतर एक गाढ़ी लक़ीर खींच दी। श्याम बेनेगल का पूरा सिनेमाई दृष्टिकोण और सामाजिक सरोकार महान फिल्मकार सत्यजीत रे से प्रेरित था। श्याम बेनेगल ने अपने कई इंटरव्यूज़ में कहा है कि स्वतंत्र भारत का महानतम फिल्मकार वह सत्यजीत रे को ही मानते थे क्योंकि सत्यजीत रे ने देश में ऐसे सिनेमाई मानक स्थापित किए, जिनका यहाँ कोई अस्तित्व था ही नहीं।
बीबीसी को दिए इंटरव्यू (2009) में बेनेगल ने कहा था, "जब मैंने पहली फिल्म बनाई तो मुझे फिल्म निर्माण के तमाम पहलुओं की जानकारी थी। यही वजह थी कि अंकुर बनाने के बाद जब वी शांताराम ने मुझे फोन किया तो पूछा कि ऐसी फिल्म कैसे बनाई? अब तक क्या कर रहे थे? फिर मैं राज कपूर से मिला तो उन्होंने मुझसे कहा कि तुमने पहले कभी फ़िल्म नहीं बनाई फिर भी इतनी अच्छी फ़िल्म बना दी, ये कैसे किया?"
श्याम बेनेगल की आठ आईकॉनिक फिल्में जिनको मिला नेशनल अवार्ड
श्याम बेनेगल के नाम सबसे ज्यादा नेशनल अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड है। उन्हें 8 फिल्मों के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
1974 में आई श्याम बेनेगल की फिल्म "अंकुर (द सीडलिंग)" को बहुत पसंद किया गया था। इस फिल्म के लिए शबाना आजमी को बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवार्ड और फिल्म को बेस्ट पिक्चर फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था। यह सिनेमा ग्रामीण आंध्र प्रदेश में जाति संघर्ष के बारे में एक यथार्थवादी नाटक, समानांतर सिनेमा आंदोलन के युग का प्रतीक है
1975 में आई श्याम बेनेगल की फिल्म "निशांत (नाइट्स एंड)" को इंडिया की तरफ से ऑस्कर में आर्टिफिशियल एंट्री मिली थी। फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था।
1976 में आई श्याम बेनेगल की तीसरी फिल्म "मंथन (द मंथन)" थी। इस फिल्म को भी बेस्ट पिक्चर फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था। इस फिल्म को बनाने के लिए 5 लाख किसानों ने दो-दो रुपए इकट्ठा किए थे, जो उस समय काफी चर्चा में रही थी।
1977 में आई श्याम बेनेगल की फिल्म "भूमिका (द रोल)" जो महिलाओं के अधिकारों पर आधारित थी। इस फिल्म के लिए स्मिता पाटिल को बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवार्ड मिला था।
1978 में आई फिल्म "जुनून (द ऑब्सेशन)" श्याम बेनेगल की एपिक ड्रामा फ़िल्म थी। इस फिल्म को भी बेस्ट पिक्चर फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था। इसे शशि कपूर ने प्रोड्यूस किया था।
1983 में आई फिल्म "मंडी (द मार्केटप्लेस)" जो कि कोठे की औरतों की कहानी पर आधारित थी, श्याम बेनेगल की आईकॉनिक फिल्म थी। इस फिल्म ने उस समय रिलीज के साथ ही खूब धमाल किया था और इस फिल्म को भी बेस्ट आर्ट डायरेक्शन का नेशनल अवार्ड मिला था।
1992 में आई फिल्म "सूरज का सातवां घोड़ा" धर्मवीर भारती की उपन्यास पर आधारित था। इस फिल्म को भी बेस्ट फीचर फिल्म के लिए नेशनल अवार्ड मिला था।
2001 में आई "जुबैदा" श्याम बेनेगल की काफी पसंद की जाने वाली फिल्म में से था। इसमें रेखा, करिश्मा कपूर मनोज बाजपेई अहम भूमिका में थे। इस फिल्म को भी नेशनल अवार्ड मिला था।
श्याम बेनेगल की उपलब्धियाँ :-
श्याम बेनेगल जी को अठारह राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (National Film Awards), एक फिल्मफेयर पुरस्कार (Filmfare Awards) और एक नंदी पुरस्कार सहित कई पुरस्कार मिले हैं। 2005 में उन्हें सिनेमा के क्षेत्र में भारत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार (Dada Saheb Phalke Award) से सम्मानित किया गया। 1976 में उन्हें भारत सरकार द्वारा देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म श्री (Padma Shri) से सम्मानित किया गया, और 1991 में उन्हें कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण (Padma Bhushan) से सम्मानित किया गया।
श्याम बेनेगल ने फिल्म इंडस्ट्री को कई बड़ी और बेहतरीन फिल्में दी
श्याम बेनेगल की उपलब्धियाँ ही बताती हैं कि उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को कई बड़ी और बेहतरीन फिल्में दी है। फिल्मों के अलावा श्याम बेनेगल ने हिंदी सिनेमा को स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी जैसे बड़े कलाकार भी दिए हैं। इस लाइन का आशय यह है कि श्याम बेनेगल एक्टर के काम को निखारते थे। वे सेट पर बेहद अलग अंदाज में काम करते थे। वह एक्टर को किरदार को सेट पर अपने किरदार के साथ एक्सपेरिमेंट करने का पूरा मौका देते थे। शूटिंग से पहले वह रिहर्सल में एक्टर को देखते थे कि वह अपने किरदार को कैसे निभा रहे हैं?
खबरों के अनुसार कई बार तो वह एक्टर के काम और डेडिकेशन को देखते हुए अपना शॉट और एंगल ही बदल देते थे। वह एक्टर्स के काम और कंट्रीब्यूशन को निखारते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उनके सेट पर किसी भी तरह की चिल्लम चिल्ली नहीं होती थी। उनके सेट पर कभी गाली-गलौच का माहोल भी नहीं था। इसके अलावा वह सेट पर 8 से 9 घंटे तक काम करना पसंद कते थे। इस वजह से उनके प्रोडक्शन हाउस या फिर फिल्म में कोई भी एक्टर थका नहीं दिखता था।
श्याम बेनेगल को सिर्फ एक बात नहीं पसंद की थी
रिपोर्ट्स के अनुसार श्याम बेनेगल को एक बात बिल्कुल भी पसंद नहीं थी कि कोई एक्टर सेट पर आने के बाद कोई लाइन याद करे। किसी एक्टर को ऐसा करते हुए देखते थे तो वह गुस्सा हो जाते थे। वह अक्सर एक्टर को बोलते थे कि अपनी लाइनें यादकर करके ही वह सेट पर पहुंचा करें। उनके साथ काम करने वाले सभी एक्टर इस बात से अवगत हो गए थे और इस बात को फॉलो करते थे।
श्याम बेनेगल का 90 की उम्र में निधन, लंबे वक्त से थे बीमार
23 दिसंबर 2024 को 90 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। श्याम बेनेगल का निधन मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल में हुआ जहाँ वे क्रोनिक किडनी रोग का इलाज करवा रहे थे। श्याम बेनेगल अब तक के सबसे बेहतरीन निर्देशकों में से एक थे।
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