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फ़रह इकबाल की गजल: जरा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए

जरा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए 

फ़रह इकबाल की गजल: जरा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए

"कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को, 
खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए..
❣️

जरा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए 

जरा सा दिल बहल जाए तो शायद नींद आ जाए


अभी तो कर्ब है, बे-चैनियाँ हैं, बे-क़रारी है 

तबीअं'त कुछ सँभल जाए तो शायद नींद आ जाए


हवा के नर्म झोंकों ने जगाया तेरी यादों को 

हवा का रुख बदल जाए तो शायद नींद आ जाए


ये तूफ़ाँ आँसुओं का जो उमड आया है पलकों तक 

किसी सूरत ये टल जाए तो शायद नींद आ जाए


ये हँसता मुस्कुराता क़ाफ़िला जो चाँद तारों का 

'फ़रह' आगे निकल जाए तो शायद नींद आ जाए

Rupa Oos ki ek Boond
         
"बेचैन इस क़दर थी कि सो न सकी रात भर,  
पलकों से लिख रही थी तेरा नाम चांद पर ..❣️



5 comments:

  1. संजय कुमारDecember 9, 2024 at 6:12 AM

    🙏🙏💐💐
    🕉Good Morning 🕉️☕️☕️
    Have a wonderful day ahead
    🙏 Take care.. Stay healthy, stay happy 🙏🙏
    🙏जय श्री हरि 🚩🚩

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