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श्रीरामचरितमानस – लंकाकांड ( Shri Ramcharitmanas – Lankakand )

श्री रामचरितमानस की महत्वपूर्ण घटनाएं

रामचरितमानस की समग्र घटनाओं को मुख्य 7 कांड में विभाजित कर सरलता से समझा जा सकता है। बालकाण्डअयोध्याकाण्डअरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदरकांड के बाद लंका कांड आता है।  

श्रीरामचरितमानस –  लंकाकांड ( Shri Ramcharitmanas – Lankakand )


श्रीरामचरितमानस –  लंकाकांड ( Shri Ramcharitmanas – Lankakand )

यो ददाति सतां शम्भुः कैवल्यमपि दुर्लभम्।
खलानां दण्डकृद्योऽसौ शंकरः शं तनोतु मे॥

भगवान शिव अपने भक्तों को कैवल्य भी देते हैं और साथ ही साथ दुष्टों को दंड देने वाले भी हैं। हितकारी देवों के देव महादेव मेरे मनोरथ और कर्तव्यों का विस्तार करें।

रामचरितमानस का छठा कांड जिसका नाम लंका कांड है ।लंका कांड में दुष्ट अभिमानी राक्षसों जैसे मेघनाथ कुंभकरण और राजकुमार प्रहस्त और कालनेमि और वज्रमुष्टि जैसे राज्यों का वध होता है। इनके वध के पश्चात पूरा ब्रह्मांड राम नाम से गूँजने लगता है ।देवता लोग कहते राम आपकी जय हो ।और ऊपर से फूल माला की वर्षा करने लगते हैं। लंका कांड हम सबको यह सूचित करता है कि अपने कर्तव्य का पालन कैसे करना चाहिए ? भक्त और भगवान का संबंध कैसा होता है? जब लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा था। तो हनुमान जी संजीवनी बूटी लाए ।जिसके परिणाम स्वरूप लक्ष्मण के प्राण को बचाया जा सकता है। भक्ति, शक्ति और बुद्धि और साथ ही साथ संयम ,करुणा ,परोपकार का जो लंका कांड में तुलसीदास जी जिस प्रकार से वर्णन किया है वह अद्भुत है वह शब्दों से परे है।

लंका कांड का संक्षिप्त वर्णन

नल और नील द्वारा समुद्र सेतु का निर्माण किया जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप राम की सेना लंका पहुंचती है। तत्पश्चात सुबेल पर्वत पर अपना डेरा लगाकर रहने लगते हैं। उधर रावण के नाना मालीवाल और रावण की पत्नी मंदोदरी रावण को समझा रही है कि आप सीता के मोह का त्याग कर दीजिए ।रावण मंदोदरी की बातों का अनदेखा करके वहां से चला जाता है। राम भगवान फिर शांति प्रस्ताव रखते हैं इसके लिए अंगद को भेजते हैं। अंगद वहां जाने के बाद रावण को समझाता है कि वह सीता माता को प्रभु श्री राम को सौंप दे ।वह कृपा निधान है वह तुम्हें क्षमा कर देंगे। लेकिन रावण अंगद को ही बंदी बनाने का प्रयास करता है। लेकिन असफल रहता है उसके बाद युद्ध प्रारंभ हो जाता है। युद्ध में वज्र मुट्ठी और राजकुमार प्रहस्त जैसे शूरवीर योद्धा मारे जाते हैं। रावण का भाई कुंभकरण भी मारा जाता है। उसके बाद मेघनाथ आते हैं। मेघनाथ और लक्ष्मण में घमासान युद्ध होता है । इस घमासान युद्ध के बीच लक्ष्मण और राम को मेघनाथ नागपाश में बांध देता है। फिर हनुमान जी गरुड़ को लाते है।गरुड़ के माध्यम से नागपाश से मुक्ति मिलती है ।फिर लक्ष्मण और मेघनाथ में घमासान युद्ध होता है इस बार मेघनाथ ने शक्ति बाण छोड़ा शक्ति बाल लगते ही लक्ष्मण मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़े जिसके बाद संजीवनी बूटी लाया गया संजीवनी बूटी के माध्यम से सुषेण लक्ष्मण को जीवित कर देते हैं जिसके बाद मेघनाथ मारा जाता है ।फिर अंततः रावण युद्ध में आता है ।राम और रावण का घमासान युद्ध 32 दिनों तक चलता है ।अंततः रावण भी मारा जाता है ।रावण के मरने के बाद पुष्पक विमान से राम और लक्ष्मण सुग्रीव और सीता हनुमान जामवंत सब अयोध्या आ जाते हैं।

लंका कांड की विशेषता क्या है ?

(1) राम की सेना का लंका में आगमन

नल और नील दोनों भाई बड़े हर्ष के साथ राम सेतु का निर्माण करने लगते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप जब रामसेतु बनकर पूर्ण हो जाता है ।तब राम भगवान की सेना उस सेतु के माध्यम से लंका पहुंच जाती है ।उसके बाद सुबेल नामक पर्वत पर डेरा लगाकर वास करने लगते हैं ।सुबेल पर्वत पर डेरा इसलिए लगाया गया था क्योंकि सुबेल पर्वत पर से यहां का मूल्यांकन किया जा सकता था की रावण से जासूस कहीं आस-पास तो नहीं है ।यह आसानी से जाना जा सकता था।

इस प्रसंग में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
चला कटकु प्रभु आयसु पाई।
 को कहि सक कपि दल बिपुलाई॥

सभी वानर राम की आज्ञा से वहां की फलों को बड़े चाव से खाने लगते हैं इसके विषय में तुलसीदास जी लिखते हैं कि 

सिंधु पार प्रभु डेरा कीन्हा। सकल कपिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा॥
खाहु जाइ फल मूल सुहाए। सुनत भालू कपि जहँ तहँ धाए॥

(2) मेघनाथ की मृत्यु

राम भगवान इस भीषण युद्ध को टालना चाहते थे इसके लिए वह शांतिदूत रावण के दरबार में भेजते हैं ।अंगद शांति दूत के रूप में रावण के दरबार में जब पहुंचता है। उसने अपना परिचय दिया ।परिचय देने के परिणाम स्वरुप रावण को यह चेतावनी दी थी ।वह माता सीता को सही सलामत श्री राम को सौंप दें अन्यथा लंका की ईट से ईट बज जाएगी। रावण नहीं मानता है जिसके परिणाम स्वरूप रावण अपने सैनिकों का आदेश देता है कि अंगद को बंदी बना लो अंगद छलांग लगाकर रावण का मुकुट लेकर चल पड़ते हैं ।निर्णय के रूप में अंगद ने रावण को 1 दिन का समय दिया था। रावण को उसकी पत्नी मंदोदरी बहुत समझाती है कि स्वामी आप एक स्त्री की खातिर पूरे निर्दोष प्रजा को क्यों दंड देना चाहते हैं ।रावण अहंकार में मंदोदरी की बातों को अनसुना कर देता है । रावण के नाना मालीवाल भी समझाते हैं कि सीता को सही सलामत श्री राम को लौटा दे। लेकिन अपने नाना की बात भी नहीं मानता है। जब एक दिन बीत जाता है फिर युद्ध प्रारंभ हो जाता है ।रावण की सेना की ओर से राजकुमार प्रहस्त नेतृत्व करते हैं ।प्रहस्त और लक्ष्मण का घमासान युद्ध होता है। प्रहस्त जाता है और साथ ही साथ वज्रमुष्टि भी मारा जाता है

इसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
भागत भट पटकहिं धरि धरनी। करहिं भालु कपि अद्भुत करनी॥
गहि पद डारहिं सागर माहीं। मकर उरग झष धरि धरि खाहीं॥

फिर रावण का पुत्र अतिकाय आता है। वह भी लक्ष्मण के हाथों मारा जाता है। फिर उसके बाद रावण स्वयं आता है। फिर प्रभु श्री राम रावण का उपहास करके उसे निःशस्त्र करके वापस भेज देते हैं। फिर कुंभकरण आता है। कुंभकरण से राम का भीषण युद्ध होता है जिसमें कुंभकरण परास्त होकर मारा जाता है

इसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
सो सिर परेउ दसानन आगें। बिकल भयउ जिमि फनि मनि त्यागें॥
धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब प्रभु काटि कीन्ह दुइ खंडा॥

और फिर अंत में अपने परम प्रतापी पुत्र मेघनाथ को रणभूमि में रावण भेजता है। मेघनाथ के रन में आने से राक्षसों में हर्षोल्लास छा गया । बड़ी ऊर्जा के साथ वानर भालू से युद्ध करने लगे। मेघनाथ अपने धनुष की झंकार से पूरे ब्रह्मांड को कम्पित कर रहा था । फिर मेघनाथ और लक्ष्मण का युद्ध होता है। मेघनाथ नागपाश के माध्यम से लक्ष्मण और राम को बांध देता है।  गरुड़ की सहायता से राम और लक्ष्मण को नागपाश से मुक्ति मिलती है। उसके बाद फिर से एक बार मेघनाथ और लक्ष्मण का युद्ध होता है ।इस बार मेघनाथ ने शक्ति बाण छोड़ा ।शक्ति बाण लगते लक्ष्मण धरती पर मूर्छित अवस्था में गिर पड़ते है।

इस विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं की
बीरघातिनी छाड़िसि साँगी। तेजपुंज लछिमन उर लागी॥
मुरुछा भई सक्ति के लागें। तब चलि गयउ निकट भय त्यागें॥

सुषेण वैद्य बताते हैं कि यदि लक्ष्मण को बचाना है इसके लिए संजीवनी बूटी लाना है। वह भी सूर्योदय से पहले हनुमान जी बड़े वेग के साथ उत्तर दिशा में उड़ते हैं। और रास्ते में अड़चन डालने के लिए रावण द्वारा कालनेमि को भेजा जाता है। कालनेमि का  भेद खुलने के बाद वीर हनुमान उसे मार देते हैं ।फिर उसके बाद जब वह संजीवनी बूटी लेकर वापस लौटते हैं। भरत अनजाने में हनुमान के ऊपर बाण से प्रहार कर देते हैं जिसके परिणाम स्वरूप हनुमान पर्वत सहित जमीन पर गिर जाते हैं । मुख से राम नाम निकल रहा था ।उसके बाद भरत राम नाम की सौगंध देते हैं। तुरंत हनुमान मूर्छित की अवस्था से  खड़े हो जाते हैं। और पूरी आपबीती भरत से बताते हैं ।उसके बाद भारत कहते मैं वैष्णवआस्त्र का संधान करता हूं। तुम मेरे वैष्णव अस्त्र पर बैठ कर जाइए। हनुमान जी कहते हैं कि मेरे पास राम नाम की ऐसी शक्ति है। मैं वहां सूर्योदय से पहले ही पहुंच जाऊंगा ।उसके बाद हनुमान जी सूर्योदय से पहले पहुंच जाते हैं । संजीवनी बूटी का उपयोग होता है संजीवनी बूटी से  लक्ष्मण जीवित होते हैं ।उसके बाद मेघनाथ और लक्ष्मण का युद्ध होता है ।इस बार मेघनाथ लक्ष्मण के हाथों मारा जाता है

फिर विषय में तुलसीदास जी लिखते हैं कि
सुमिरि कोसलाधीस प्रतापा। सर संधान कीन्ह करि दापा॥
छाड़ा बान माझ उर लागा। मरती बार कपटु सब त्यागा॥

(3) पुष्पक विमान से राम अपनी भार्या सीता और अनुज सहित अयोध्या पहुंचे

मेघनाथ की मृत्यु के उपरांत रावण बहुत क्रोधित होता है। फिर राम और रावण का भीषण युद्ध होता है ।इस युद्ध से पूर्व ब्रह्मांड कांपने लगता है। ऐसे- ऐसे अस्त्रों और शस्त्रों का उपयोग होता है ।जिसे देखकर नाग और गंधर्व भी भयभीत हो जाते हैं। 32 दिन तक चलने वाला यह युद्ध बहुत भीषण होता है ।लेकिन भविषन की  सहायता से रावण राम को मार देते हैं।

इस विषय मे तुलसीदास जी लिखते हैं कि
धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब सर हति प्रभु कृत दुइ खंडा॥
गर्जेउ मरत घोर रव भारी। कहाँ रामु रन हतौं पचारी॥

रावण की मृत्यु के बाद लंका का राजा भविषन को बनाया जाता है ।फिर सीता की अग्नि परीक्षा होती है। अग्नि परीक्षा होने के बाद राम भगवान द्वारा दिए गए पुष्पक विमान की मदद से अयोध्या पहुंचते हैं। भरत उनको देखकर बहुत आनंदित होते हैं

इस विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि
 लियो हृदयँ लाइ कृपा निधान सुजान रायँ रमापति।
बैठारि परम समीप बूझी कुसल सो कर बीनती॥
अब कुसल पद पंकज बिलोकि बिरंचि संकर सेब्य जे।
सुख धाम पूरनकाम राम नमामि राम नमामि ते॥

यति (Yeti)

यति (Yeti)

रहस्यमई जीव जंतुओं के श्रृंखला को आगे बढ़ते हैं और आज बात करते हैं हिम मानव यति की। हिमालय के रहस्यमयी जीव हिममानव के अस्तिस्व के बारे में तमाम तरह के दावे किए जाते हैं। स्थानीय लोग हिममानव को येति के नाम से भी पुकारते हैं। यह मानव आकृतिनुमा ऐसा प्राणी है, जिसके अस्तित्व के ठोस प्रमाण तो नहीं मिले हैं, लेकिन कई पर्वतारोहियों और स्थानीय लोगों ने उसे देखने के दावे किए हैं।

यति (Yeti)

पहली बार सन 1832 में पुरातत्वविद जेम्स प्रिंसेप द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल’ में एक पर्वतारोही का अनुभव प्रकाशित किया। पर्वतारोही का नाम बीएच हॉजसन था। वे उत्तरी नेपाल में हिमालय ट्रेकिंग कर रहे थे, उन्होंने और उनके स्थानीय गाइडों ने कद में 9-10 फीट लंबे और भूरे बाल वाले विशेष प्राणी को देखने का दावा किया था। हॉजसन ने उसे वनमानुश नाम दिया था।

1889 में 'अमल हिमालयाज' में लरिस वाडेला ने एक विशाल दो पैरों वाला भालू जैसा प्राणी देखने का लिखा था। 1925 में जर्मन के फोटोग्राफर तथा रॉयल ज्योग्राफिकल समिति के सदस्य  एम. ए. टोम्बाजी लिखते हैं उन्होंने एक ऐसा प्राणी को देखा जो इंसान की तरह चल रहा है। वो इसे 200 मीटर दूर से देख रहे थे। उसके शरीर पर अधिक मात्रा में बाल थे। दिखने में काला था, उसके शरीर पर कपड़े नहीं थे और उसके पैरों का निशान 7 इंच का था। 

यति (Yeti)

Himalayan Yeti by Himalayanyeti on DeviantArt

इसी प्रकार ब्रिटिश फोटाग्राफर एरिक सिप्टन ने 1991 में हिमालय के नेपाल क्षेत्र में येति को देखने का दावा किया था। उन्होंने येति के पैरों के निशानों की तस्वीरी लीं, जो उस समय ब्रिटेन के प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित हुईं। जिसके बाद रहस्यवाद के खोजकर्ताओं के बीच में येति चर्चा का विषय बन गया।

भारतीय सेना के जवानों ने हिमालय में हिममानव के देखे जाने का दावा किया था। 29 अप्रैल, 2019 को जिसकी तस्वीरों को भारतीय सेना ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से शेयर किया था। सेना के जवानों द्वारा किए गए गए दावे की जब जांच की गई, तो बर्फ में किसी विशाल मानव के पैरों के निशान मिले। पैरों की लंबाई करीब 32 इंच और चौड़ाई 15 इंच थी। ये विशाल पैरों के निशान 9 अप्रैल, 2019 को सेना के मकालू बेस कैंप के पास देखे गए थे। इस रहस्यमयी प्राणी को मकालू बरून नेशनल पार्क में पहले भी कई बार देखे जाने के दावे किए गए हैं।

यति (Yeti)

ऐसी ही मामला नेपाल का है। नेपाल के स्थानीय लोगों ने सन 2022 में एक येति को देखने का दावा किया था। लोगों के दावों की जांच करने का जिम्मा नेपाल के वैज्ञानिक मधु क्षेत्री ने लिया। स्थानीय लोगों ने उनको उस जीव के पैरों के निशान दिखाने के अलावा बालों के नमूने भी दिए। वैज्ञानिक मधु क्षेत्री ने स्थानीय लोगों के दावे पर शोध करते हुए कहा कि यह तथाकथित हिममानव एक तिब्बत का भूरा भालू है। भालू भी सीधा खड़ा होकर दो पैरों पर चल सकता है और उसके शरीर पर लंबे भूरे बाल पाए जाते हैं।

हालांकि मधु क्षेत्री के विपरीत स्थानीय लोगों का मानना था कि उन्हें भालू और हिममानव में अंतर पता है, जो उन्होंने देखा वह भालू नहीं था, बल्कि येति था। हिमालय में रहने वाली मूल जातियां येति को अपनी सभ्यताओं का अहम हिस्सा मानती हैं। तमाम दावों और निष्कर्ष के बावजूद हिममानव आज भी रहस्य बना हुआ है।

English Translate

Yeti

Continuing the series of mysterious creatures, let's talk about Yeti, the snowman. All kinds of claims are made about the existence of the mysterious creature of the Himalayas, the Snowman. Local people also call the snowman as Yeti. This is a human-shaped creature, for whose existence concrete evidence has not been found, but many mountaineers and local people have claimed to have seen it.

यति (Yeti)

For the first time in 1832, a mountaineer's experience was published in the journal 'Journal of Asiatic Society of Bengal' published by archaeologist James Prinsep. The name of the climber was BH Hodgson. While they were trekking the Himalayas in northern Nepal, he and his local guides claimed to have seen a special creature 9-10 feet tall in stature and with brown hair. Hodgson named him Orangutan.

In 1889, in 'Amal Himalayas', Laris Vadella wrote of seeing a huge bipedal bear-like creature. In 1925, German photographer and member of the Royal Geographical Committee M.A. Tombaji writes that he saw a creature that was walking like a human being. He was watching it from 200 meters away. There was a lot of hair on his body. He was black in appearance, had no clothes on his body and his footprints were 7 inches long.

Similarly, British photographer Eric Sipton claimed to have seen Yeti in the Nepal region of the Himalayas in 1991. He took photographs of the Yeti's footprints, which were published in major British newspapers at the time. After which Yeti became a topic of discussion among the seekers of mysticism.

Indian Army soldiers claimed to have seen a snowman in the Himalayas. Whose pictures were shared by the Indian Army from its official Twitter handle on April 29, 2019. When the claim made by the army personnel was investigated, footprints of a huge human were found in the snow. The length of the feet was about 32 inches and width was 15 inches. These giant footprints were seen near the army's Makalu base camp on April 9, 2019. Claims have been made that this mysterious creature has been seen several times in the Makalu Barun National Park.

Similar is the case of Nepal. Local people of Nepal claimed to have seen a Yeti in the year 2022. Nepalese scientist Madhu Kshetri took the responsibility of investigating people's claims. Apart from showing them the footprints of the creature, the local people also gave them hair samples. Scientist Madhu Kshetri, while researching the claims of the local people, said that this so-called snowman is a Tibetan brown bear. The bear can also stand upright and walk on two legs and long brown hair is found on its body.

यति (Yeti)

Although unlike Madhu Kshetri, the locals believed they knew the difference between a bear and a snowman, what they saw was not a bear but a yeti. The native tribes living in the Himalayas consider Yeti to be an important part of their civilizations. Despite all the claims and conclusions, the snowman still remains a mystery.

अब तो तेरा इश्क भूल जाएं तो बेहतर है..

अब तो तेरा इश्क भूल जाएं तो बेहतर है..

अब तो तेरा इश्क भूल जाएं तो बेहतर है

अब तो तेरा इश्क भूल जाएं तो बेहतर है,

तू अब लौट कर ना ही आए तो बेहतर है..


ज़िन्दगी अब ज़िन्दगी ना रही मगर क्या कहें,

तेरे साथ जितनी गुजारी उससे तो बेहतर है..


तुम कह गए थे खुश रहना मेरे बाद मगर,

इस तरह की खुशी से तो गम बेहतर है..


मुझे छोड़ कर चुना तुमने किसी और को,

चलो मान लिया तुम्हारे लिए वो बेहतर है..


बेशक रुलाती है मगर बेवफ़ा तो नही है,

तुम्हारे चले जाने से तो तुम्हारी यादें बेहतर हैं..

चन्द्रशेखर आज़ाद (Chandra Shekhar Azad)

चन्द्रशेखर आज़ाद

Born: 23 July 1906, Bhavra
Died: 27 February 1931, Chandrashekhar Azad Park, Prayagraj

मेरा नाम आजाद है, पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल है" आज  चन्द्रशेखर आज़ाद की पुण्य तिथि है। आज ही के दिन 1931 में आज़ाद ने खुद को गोली मार ली थी। 
चन्द्रशेखर आज़ाद (Chandra Shekhar Azad)
“मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा” यह नारा था, भारत की आजादी के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाले देश के महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का। मात्र 24 साल की उम्र जो युवाओं के लिए जिंदगी के सपने देखने की होती है उसमें चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए।

चन्द्रशेखर आज़ाद का जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन

चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) में एक ब्राह्मण परिवार में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ था। उनके पूर्वज ग्राम बदरका वर्तमान उन्नाव जिला (बैसवारा) से थे। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे, फिर जाकर भाबरा गाँव में बस गये। 
चन्द्रशेखर आज़ाद (Chandra Shekhar Azad)
यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष-बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। 

बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से जाना जाता था।

चंद्रशेखर आजाद नाम से कैसे प्रसिद्ध हुए?

वैसे तो पण्डित चंद्रशेखर तिवारी को उनके दोस्त पंडितजी, बलराज और क्विक सिल्वर जैसे कई उपनामों से बुलाते थे, लेकिन आजाद उपनाम सबसे खास था और चंद्रशेखर को पसंद भी था। उन्होंने अपने नाम के सा​थ तिवारी की जगह आजाद लिखना पसंद किया। चंद्रशेखर को जाति बंधन भी स्वीकार नहीं था। आजाद उपनाम कैसे पड़ा, इस घटना का उल्लेख पं० जवाहरलाल नेहरू ने कायदा तोड़ने वाले एक छोटे से लड़के की कहानी के रूप में किया है- "ऐसे ही कायदे (कानून) तोड़ने के लिये एक छोटे से लड़के को, जिसकी उम्र १४ या १५ साल की थी और जो अपने को आज़ाद कहता था, बेंत की सजा दी गयी। उसे नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध दिया गया। बेत एक एक कर उस पर पड़ते और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते पर वह हर बेत के साथ चिल्लाता'भारत माता की जय!'। वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक की वह बेहोश न हो गया। बाद में वही लड़का उत्तर भारत के क्रान्तिकारी कार्यों के दल का एक बड़ा नेता बना।"
चन्द्रशेखर आज़ाद (Chandra Shekhar Azad)
साल 1921 में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था और बालक चंद्रशेखर एक धरने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया और मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर किया गया। पारसी मजिस्ट्रेट मिस्टर खरेघाट अपनी कठोर सजाओं के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कड़क कर चंद्रेशेखर से पूछा:

क्या नाम है तुम्हारा?
चंद्रशेखर ने संयत भाव से उत्तर दिया- मेरा नाम आजाद है। 
मजिस्ट्रेट ने दूसरा सवाल किया- तुम्हारे पिता का क्या नाम है?
आजाद का जवाब फिर लाजवाब था, उन्होंने कहा- मेरे पिता का नाम स्वाधिनता है। 
एक बालक के उत्तरों से चकित मजिस्ट्रेट ने तीसरा सवाल किया, तुम्हारी माता का नाम क्या है?
आजाद का जवाब था- भारत मेरी मां है और जेलखाना मेरा घर है। 
बस फिर क्या था गुस्साए मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर को 15 बेंत लगाने की सजा सुना दी। 


बालक चंद्रशेखर को 15 बेंत लगाई गई. लेकिन उन्होंने उफ्फ तक नहीं किया। हर बेंत के साथ उन्होंने ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाया। आखिर में सजा भुगतने के एवज में उन्हें तीन आने दिए गए जो वे जेलर के मूंह पर फेंक आए। इस घटना के बाद लोगों ने उन्हें आजाद बुलाना शुरू कर दिया। 

चंद्रशेखर आजाद कैसे शहीद हुए?

अंग्रेज सरकार ने राजगुरू, भगतसिंह और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई। तब आजाद इस कोशिश में थे कि उनकी सजा को किसी तरह कम या उम्रकैद में बदलवा दी जाए। ऐसे ही एक प्रयास के लिए वे इलाहाबाद पहुंचे. इसकी भनक पुलिस को लग गई और जिस अल्‍फ्रेड पार्क में वे थे, उसे हजारों पुलिस वालों ने घेर लिया और उन्‍हें आत्‍मसमर्पण के लिए कहा। लेकिन आजाद ने आत्मसमर्पण नहीं किया। उन्हें लड़ते हुए शहीद हो जाना मंजूर था। वह अंग्रेजों से अकेले लोहा लेने लगे। इस लड़ाई में 20 मिनट तक अकेले अंग्रेजों का सामना करने के दौरान वह बुरी तरह से घायल हो गए। इसके बाद आजाद ने अपनी बंदूक से ही अपनी जान ले ली और वाकई में आखिरी सांस तक वह अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे।
चन्द्रशेखर आज़ाद (Chandra Shekhar Azad)
उनका अंतिम संस्‍कार भी अंग्रेज सरकार ने बिना किसी सूचना के कर दिया। लोगों को मालूम चला जो लोग सड़कों पर उतर आए, ऐसा लगा जैसे गंगा जी संगम छोड़कर इलाहाबाद की सड़कों पर उतर आई हों। लोगों ने उस पेड़ की पूजा शुरू कर दी, जहां इस महान क्रांतिकारी ने अ‍तिम सांस ली थी। 

अमचूर पाउडर/खटाई (Dry Mango Powder)

अमचूर पाउडर/खटाई

घरेलू मसालों के रूप में हम कई प्रकार की सामग्री का इस्तेमाल करते हैं। मसाले न केवल भोजन को स्वाद और सुगंध प्रदान करते हैं, बल्कि कई पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने का भी काम करते हैं। इन्हीं मसालों में से एक है, अमचूर। आमचूर किचन का एक ऐसा मसाला है जो न सिर्फ खाने में स्वाद जोड़ता है, बल्कि सेहत को भी फायदा पहुंचाता है।

अमचूर के फायदे और नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

हमारे किचन में कई ऐसे मसालें हैं जो सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाते हैं बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होते हैं। इन्हीं में से एक है आमचूर। इसे हम खटाई के नाम से जानते हैं। कच्चे आम के गूदे को सुखाने के बाद उसे पीसकर जो पाउडर तैयार होता है वह अमचूर होता है। स्वाद में खट्टी अमचूर की एक चुटकी खाने में पड़ जाए तो खाने का स्वाद बढ़ जाता है। वहीं आमचूर का पाउडर औषधीय गुणों से भरपूर होता है। 

अमचूर क्‍या है?

घरेलू मसालों में अमचूर का इस्तेमाल नियमित रूप से किया जाता है। इसे आम को सुखाने के बाद पीसकर तैयार किया जाता है। वैसे तो बाजार में आसानी से बना बनाया अमचूर मिल जाता है, लेकिन अगर चाहें, तो घर में भी इसे तैयार कर सकते हैं। कच्चे आम के गूदे को सुखाने के बाद उसे पीसकर जो पाउडर तैयार होता है, वह अमचूर है। वहीं, कई एशियाई व्यंजनों में इसका उपयोग खट्टापन लाने और स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से फायदेमंद होता है। 

अमचूर के फायदे और नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

अमचूर के फायदे और नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

आम के फायदों की तरह ही अमचूर के भी फायदे देखे गए हैं। यह भी कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है।

वजन घटाने में 

अमचूर का इस्तेमाल वजन घटाने में सहायक हो सकता है। क्योंकि इसमें फाइबर होता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जिससे मेटाबॉलिज्म तेज होता है और इससे चर्बी तेजी से बर्न होती है। इस लिहाज से वेट लॉस जर्नी में अमचूर लाभकारी विकल्प साबित हो सकता है।

पाचन तंत्र के लिए 

पाचन तंत्र को दुरुस्त करने में भी अमचूर मददगार हो सकता है। अमचूर में फाइबर की मात्रा पाई जाती है और फाइबर पाचन में सुधार करने में मदद करता है। इससे आंतों की सेहत अच्छी होती है और कब्ज जैसी समस्याओं में आराम मिल सकता है।

आयरन की कमी 

अमचूर में आयरन की अधिक मात्रा होती है,जिन महिलाओं को एनीमिया की शिकायत है उनके लिए इसका सेवन फायदेमंद साबित हो सकताहै। अमचूर में मौजूद अमचूर रेड ब्लड सेल्स की संख्या बढ़ती है। 

दिल की सेहत के लिए

अमचूर दिल की सेहत के लिए भी फायदेमंद है। दरअसल अमचूर में पोटेशियम की अधिकता होती है जो ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में कारगर है। इस हिसाब से दिल से जुड़ी गंभीर बीमारियों का खतरा कम होता है।

स्कर्वी 


स्कर्वी विटामिन-सी की कमी से होने वाला एक रोग है। आमतौर पर इस बीमारी में मसूड़ों से खून आना, थकावट और कमजोरी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। वहीं, सूखे आम में (जिससे अमचूर बनाया जाता है) विटामिन-सी पाया जाता है, जिससे शरीर में विटामिन-सी की पूर्ति की जा सकती है।

एंटी बैक्टीरियल गुण 

बैक्टीरियल संक्रमण से बचने में भी अमचूर का उपयोग किया जा सकता है। शोध में पाया गया कि अमचूर में एंटीमाइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं। ये गुण बैक्टीरियल संक्रमण के जोखिम को कम करने में मददगार हो सकते हैं। 

डायबिटीज के मरीजों के लिए

डायबिटीज के मरीजों के लिए भी अमचूर पाउडर काफी फायदेमंद होता है क्योंकि इसमें मौजूद फाइबर ब्लड शुगर स्पाइक को रोकता है। यह मधुमेह की जटिलताओं को रोकने या प्रबंधित करने में मददगार है।

अमचूर पाउडर में मौजूद पोषक तत्व 

अमचूर पाउडर कई आवश्यक पोषक तत्व और बायोएक्टिव यौगिक प्रदान करता है, जिसमें कैरोटीनॉयड, एंटीऑक्सिडेंट, फेनोलिक यौगिक, फ्लेवोनोइड और वाष्पशील यौगिक शामिल हैं। अमचूर पाउडर का पोषण तत्वइस प्रकार है: 

अमचूर पाउडर के नुकसान

अमचूर पाउडर का सीमित मात्रा में सेवन सुरक्षित माना जाता है। हालाँकि अमचूर पाउडर से एलर्जी की प्रतिक्रिया दुर्लभ है, लेकिन कुछ लोगों को त्वचा की एलर्जी हो सकती है, जिन लोगों को आम से एलर्जी है। अमचूर पाउडर से जुड़ी त्वचा की एलर्जी निम्नलिखित लक्षण दिखाती है:  

  • लालपन  
  • खुजली  
  • त्वचा के चकत्ते 
  • सांस लेते समय सीटी की आवाज आना 
  • त्वचा की सूजन 
अमचूर के फायदे और नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

English Translate

Dry Mango Powder

We use many types of ingredients as home spices. Spices not only provide taste and aroma to food, but also fulfill the deficiency of many nutrients. One of these spices is dry mango powder. Mango powder is a kitchen spice which not only adds taste to the food but also benefits health.

There are many spices in our kitchen which not only enhance the taste of food but are also beneficial for health. One of these is mango powder. We know it as sourness. The powder prepared by grinding raw mango pulp after drying it is called mango powder. If a pinch of sour mango powder is added to the food then the taste of the food increases. Mango powder is full of medicinal properties.
अमचूर के फायदे और नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

What is dry mango powder?

Dry mango powder is regularly used in household spices. It is prepared by grinding mango after drying it. Although ready-made mango powder is easily available in the market, but if you want, you can prepare it at home also. The powder prepared by grinding raw mango pulp after drying it is called mango powder. At the same time, it is used in many Asian dishes to bring sourness and enhance taste. It is beneficial from health point of view.

Benefits and disadvantages of dry mango powder, uses and medicinal properties

Like the benefits of mango, the benefits of dry mango powder have also been seen. It is also rich in many nutrients.

in weight loss

Use of dry mango powder can be helpful in weight loss. Because it contains fiber. It has antioxidant and anti-inflammatory properties, which speeds up metabolism and burns fat faster. In this context, mango powder can prove to be a beneficial option in the weight loss journey.

for the digestive system

Dry mango can also be helpful in improving the digestive system. Mango is rich in fiber and fiber helps in improving digestion. This improves intestinal health and can provide relief from problems like constipation.

iron deficiency

Mango powder contains high amount of iron, its consumption can prove beneficial for women who suffer from anemia. The number of red blood cells present in dry mango powder increases.

for heart health

Mango powder is also beneficial for heart health. Actually, mango powder is rich in potassium which is effective in controlling blood pressure. Accordingly, the risk of serious heart related diseases is reduced.

scurvy

Scurvy is a disease caused by deficiency of Vitamin C. Generally, in this disease, symptoms like bleeding gums, fatigue and weakness are seen. At the same time, Vitamin C is found in dried mango (from which Amchur is made), which can help in replenishing Vitamin C in the body.

anti bacterial properties

Dry mango can also be used to prevent bacterial infections. Research found that mango powder has antimicrobial properties. These properties may be helpful in reducing the risk of bacterial infections.

For diabetic patients

Dry mango powder is also very beneficial for diabetic patients because the fiber present in it prevents blood sugar spike. It is helpful in preventing or managing complications of diabetes.

अमचूर के फायदे और नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

Disadvantages of dry mango powder

Consumption of dry mango powder in limited quantities is considered safe. Although allergic reactions to mango powder are rare, it may cause skin allergies in some people, including those who are allergic to mango. Skin allergy associated with dry mango powder shows the following symptoms:

  • redness
  • Itching
  • skin rashes
  • whistling sound while breathing
  • skin inflammation

हम ऐसी दुनिया में क्यों जीते हैं ?

हम ऐसी दुनिया में क्यों जीते हैं ?

Rupa Oos ki ek Boond

हम ऐसी दुनिया में क्यों जीते हैं ?

दस्तूर-ए-दुनिया कुछ ऐसा ही नज़र आता है

कोई ताक़त से तो कोई ज़बान से वार करता है

दोनो ही सूरत में

इन्सान घायल होता है

पर ज़बानी हमलों से शायद

ज़्यादा दर्द झेलता है

फिर भी हम सब कुछ सहते हैं

हम ऐसी दुनिया में क्यों जीते हैं ?


जिस पर आँखें मूँद कर हम

भरोसा करते हैं

वो ही उम्र भर के लिए

हमारी आँखें खोल देता है

और हमें सब कुछ

शफ़्फ़ाफ़ दिखने लगता है,

हद तो तब होती है

जब अपना पेट पालने के लिए ऐसे कुछ लोग

किसी के आँचल से

सूखी रोटी भी छीन लेते हैं

हम ऐसी दुनिया में क्यों जीते हैं ?


मेहनत मुशक़्क़त किए बग़ैर 

आमदनी होती रहे

इस फ़लसफ़े पर आज कई लोग

अमल करते हैं 

हद तो तब होती है जब

जिससे माली इ’आनत मिलती है

उसी की क़द्र नहीं करते हैं

हम ऐसी दुनिया में क्यों जीते हैं ?


घर में चाहे रोटी न हो

पर अक्सर लोग

मुफ़्त में मिले लज़ीज़ पकवान में भी

ख़ामियाँ तलाशते हैं

हम ऐसी दुनिया में क्यों जीते हैं ?


ऐसे बेशुमार सवालात हमारे ज़ेहन में 

हमेशा से उठते आए हैं

और हम युगों युगों से

इसी दुनिया में जीते आए हैं !

रविदास जयंती 2024 || Ravidas Jayanti 2024

रविदास जयंती

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है। इस बार संत रविदास जी की जयंती 24 फरवरी को है। गुरु रविदास कौन थे और क्यों मनाई जाती है संत रविदास जयंती?

रविदास जयंती 2024 || Ravidas Jayanti 2024

भारत में कई संतों ने लोगों को आपसी प्रेम, सौहार्द और गंगा जमुनी तहजीब सिखाई, इन्हीं में एक थे संत रविदास, जिनका भक्ति आंदोलन और समाज सुधार में विशेष योगदान रहा। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ ये मुहावरा आज भी बहुत प्रसिद्ध है, जो रविदास जी ने ही कहा था। 

संत गुरु रविदास जी भारत के महान संतों में से एक हैं, जिन्होंने अपना जीवन समाज सुधार कार्य के लिए समर्पित कर दिया। समाज से जाति विभेद को दूर करने में रविदास जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। वो ईश्वर को पाने का एक ही मार्ग जानते थे और वो है ‘भक्ति’, इसलिए तो उनका यह मुहावरा आज भी बहुत प्रसिद्ध है ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।'

रविदास जयंती 2024 || Ravidas Jayanti 2024

कौन थे संत रविदास

गुरु रविदास जी भारत के एक महान कवि , दार्शनिक एवं समाज सुधारक थे। संत रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी क्षेत्र में हुआ था। रविदास जी के जन्म को लेकर कई मत हैं, लेकिन रविदास जी के जन्म पर एक दोहा खूब प्रचलित है- "चौदस सो तैंसीस कि माघ सुदी पन्दरास, दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री गुरु रविदास।" इस पंक्ति के अनुसार गुरु रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा को रविवार के दिन 1433 को हुआ था। इसलिए हर साल माघ मास की पूर्णिमा तिथि को रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता है जोकि इस वर्ष 24 फरवरी 2024 को है। 

रविदास जी का जन्म 15वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक मोची परिवार में हुआ। उनके माता जी का नाम कर्मा देवी एवं पिताजी का नाम संतोष दास जी था। उनके दादाजी का नाम कालूराम एवं दादी जी का नाम श्रीमती लखपति जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी है। उनके पिताजी जाति के अनुसार जूते बनाने का पारंपरिक पेशा करते थे, जोकि उस काल में निम्न जाति का माना जाता था। लेकिन अपनी सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद भी रविदास जी भक्ति आंदोलन, हिंदू धर्म में भक्ति और समतावादी आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उजागर हुए। 15 वीं शताब्दी में रविदास जी द्वारा चलाया गया भक्ति आंदोलन उस समय का एक बड़ा आध्यात्मिक आंदोलन था। 

गुरु रविदास जी बचपन से ही काफी बहादुर और भगवान के सच्चे भक्त थे। उन्होंने अपनी शिक्षा को पंडित शारदानंद गुरु से प्राप्त किए थे। गुरु रविदास जी जब बड़े हुए तो उनका भक्ति के प्रति स्नेह बढ़ गया था। संत रविदास जी काफी धार्मिक विचार के व्यक्ति थे। इन्होंने आजीविका के लिए पैतृक कार्य को अपनाते हुए भगवान के भक्ति के भावना में हमेशा लीन रहा करते थे। रविदास जी चर्मकार कुल के होने के कारण वह जूते बनाते थे। ऐसा करने में उन्हें काफी आनंद मिलता था अपने कार्य को काफी ईमानदारी परिश्रम एवं लगन के साथ करते थे। लोगों को हमेशा धर्म के रास्ते चलने के लिए शिक्षा देते थे। वह भगवान राम जी के परम भक्त थे।

रविदास जयंती 2024 || Ravidas Jayanti 2024

क्यों मनाई जाती है संत रविदास जयंती

उनके जन्मदिन को ही प्रत्येक वर्ष गुरु रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार को काफी धूमधाम के साथ माघ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन खास तौर पर लोगों के द्वारा कीर्तन एवं भजन किया जाता है। संत रविदास जी निर्गुण संप्रदाय के एक प्रमुख व्यक्ति थे और उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किए थे।

कहते हैं कि स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णो भक्ति धारा के महान संत हैं। संत रविदास उनके शिष्य थे। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरु भाई माने जाते हैं। स्वयं कबीर दास जी ने "संतन" में रविदास कहकर इन्हें मान्यता दी है। राजस्थान की कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई उनकी शिष्या थीं। यह भी कहा जाता है कि चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनी थी। वहीं चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है।  मान्यता है कि वह वहीं से स्वर्गारोहन कर गए थे। हालांकि इसका कोई आधिकारिक विवरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन कहते हैं कि वाराणसी में 1540 ईस्वी में उन्होंने देह त्याग दिया था। 

English Translate

Ravidas Jayanti

According to the Hindu calendar, Ravidas Jayanti is celebrated every year on the day of Magh Purnima. This time the birth anniversary of Saint Ravidas ji is on 24th February. Who was Guru Ravidas and why is Sant Ravidas Jayanti celebrated?

रविदास जयंती 2024 || Ravidas Jayanti 2024

In India, many saints taught people mutual love, harmony and Ganga-Jamuni culture, one of them was Saint Ravidas, who had a special contribution in the Bhakti movement and social reform. This idiom, ‘If the mind is healed then the Ganga is cut,’ is very famous even today, which was said by Ravidas ji.

Saint Guru Ravidas Ji is one of the great saints of India, who dedicated his life to the work of social reform. Ravidas ji had an important contribution in removing caste discrimination from the society. He knew only one way to reach God and that is 'devotion', that is why his phrase is very famous even today, 'If the mind is healed then the Ganga is in trouble.'

Who was Saint Ravidas

Guru Ravidas ji was a great poet, philosopher and social reformer of India. Saint Ravidas ji was born in Varanasi region of Uttar Pradesh. There are many opinions regarding the birth of Ravidas ji, but a couplet on the birth of Ravidas ji is very popular - "Chaudas so tansis ki magh sudi pandaras, Shri Guru Ravidas progressed in the welfare of the poor." According to this line, Guru Ravidas was born on Sunday, 1433, on the full moon day of Magh month. Therefore, every year the full moon date of Magh month is celebrated as Ravidas Jayanti, which is this year on 24 February 2024.

Ravidas ji was born in a cobbler family in Varanasi, Uttar Pradesh in the 15th century. His mother's name was Karma Devi and father's name was Santosh Das ji. His grandfather's name is Kaluram and grandmother's name is Mrs. Lakhpati ji, wife's name is Mrs. Lonaji and son's name is Shrivijay Das ji. His father did the traditional profession of shoe making as per the caste, which was considered low caste at that time. But despite his humble family background, Ravidas ji emerged as a prominent figure in the Bhakti movement, devotion in Hinduism and the egalitarian movement. The Bhakti movement started by Ravidas ji in the 15th century was a major spiritual movement of that time.

Guru Ravidas ji was very brave since childhood and a true devotee of God. He received his education from Pandit Shardanand Guru. When Guru Ravidas ji grew up, his love for devotion increased. Saint Ravidas ji was a person of very religious thoughts. He adopted his ancestral work for livelihood and was always engrossed in the feeling of devotion to God. Since Ravidas ji belonged to a cobbler family, he used to make shoes. He enjoyed doing this a lot and did his work with utmost honesty, hard work and dedication. Always taught people to follow the path of religion. He was a great devotee of Lord Ram.

Why is Sant Ravidas Jayanti celebrated?

His birthday is celebrated every year as Guru Ravidas Jayanti. This festival is celebrated with much pomp and show on the day of Magh Purnima. Kirtan and bhajan are especially performed by people on this day. Saint Ravidas Ji was a prominent figure of the Nirguna sect and led the North Indian Bhakti movement.

It is said that Swami Ramanandacharya is a great saint of Vaishno Bhakti stream. Saint Ravidas was his disciple. Saint Ravidas is considered to be the contemporary and guru brother of Saint Kabir. Kabir Das ji himself has recognized him by calling him Ravidas in "Santan". Krishna devotee poetess Meerabai of Rajasthan was his disciple. It is also said that Jhali Rani, wife of Rana Sanga of Chittor, became his disciple. There is an umbrella of Saint Ravidas in Chittor. It is believed that he ascended to heaven from there. Although no official details are available, it is said that he left his body in Varanasi in 1540 AD.

गुजरात का राज्य पशु "एशियाई शेर" || State Animal of Gujrat "Asiatic Lion"

गुजरात का राज्य पशु "एशियाई शेर"

गुजरात का राज्य पशु एशियाई शेर है। एशियाई शेर, जिसे फ़ारसी शेर के नाम से भी जाना जाता है, पैंथेरा लियो की एक आबादी है। 20वीं सदी की शुरुआत के बाद से इसकी सीमा गिर राष्ट्रीय उद्यान और भारतीय राज्य गुजरात के आसपास के क्षेत्रों तक ही सीमित रही है। ऐतिहासिक रूप से, यह दक्षिण-पश्चिम एशिया से लेकर उत्तरी भारत तक अधिकांश भाग में बसा हुआ है। गुजरात भारत का एकमात्र स्थान है। जहाँ शेर पाए जाते हैं और गिर राष्ट्रीय उद्यान 535 भारतीय शेरों का अकेला घर है। 

गुजरात का राज्य पशु "एशियाई शेर" || State Animal of Gujrat "Asiatic Lion"

एशियाई शेर खुले जंगल और सूखे पौधे और भूमि में रहता है। शेर का स्वभाव अधिकतर आक्रामक और खतरनाक होता है, लेकिन गिर का शेर शायद ही कभी लोगों पर हमला करता है और निकटतम लोगों के साथ उनका व्यवहार अच्छा होता है। शेर की सुरक्षा के लिए गिर में शेर का शिकार बंद कर दिया गया है। शेर के लिए सबसे संरक्षित और आरामदायक स्थान गिर वन राष्ट्रीय उद्यान गुजरात में है। 

गुजरात का राज्य पशु "एशियाई शेर" || State Animal of Gujrat "Asiatic Lion"

वयस्क नर का वजन 160 से 250 किलोग्राम और ऊंचाई 10 फीट तक, मादा का वजन 110 से 150 किलोग्राम और ऊंचाई 9 फीट तक होती है। नर की खोपड़ी की लंबाई 330 से 340 मिमी और महिलाओं की 292 से 302 मिमी तक होती है। गुजरात राज्य के पशु शेर के बालों का रंग रेत जैसा भूरा, भूरा, चांदी जैसा चमकीला और काला होता है। मादाओं का रंग रेत जैसा और पीला-भूरा होता है। नर शेर गहरे भूरे, नारंगी और पीले रंग के होते हैं। 

गुजरात का राज्य पशु "एशियाई शेर" || State Animal of Gujrat "Asiatic Lion"

नर शेर पर अयाल की छोटी वृद्धि गले और गालों पर काले और भूरे रंग की होती है और मादा शेर में यह नहीं देखी जाती है। नर शेर का कान केवल सिर के शीर्ष पर देखा जाता है। शेर एक दिन में 20 घंटे सोते या आराम करते हैं। मादा शेरनी हर दो साल में बच्चों को जन्म देती है। शेरों का जीवन काल 18 वर्ष तक होता है। नर की यौन परिपक्वता की आयु 4-5 वर्ष और मादा की 3-4 वर्ष होती है। मादा एक समय में 2 से 5 शावकों को एक साथ जन्म देती है। शावक 3 महीने के बाद मांस खाना शुरू कर देते हैं और शिकार के लिए 9 महीने का प्रशिक्षण लेते हैं। गुजरात के एशियाई शेर के पंजे और दांत बहुत लंबे और नुकीले होते हैं और वे अपने शिकार को जमीन पर खींच सकते हैं।

English Translate

State animal of Gujarat "Asiatic Lion"

The state animal of Gujarat is the Asiatic lion. The Asiatic lion, also known as the Persian lion, is a subspecies of Panthera leo. Since the beginning of the 20th century its range has been restricted to Gir National Park and surrounding areas of the Indian state of Gujarat. Historically, it inhabited much of southwest Asia to northern India. Gujarat is the only place in India. Where lions are found and Gir National Park is the sole home of 535 Indian lions.

गुजरात का राज्य पशु "एशियाई शेर" || State Animal of Gujrat "Asiatic Lion"

The Asiatic lion lives in open forests and dry vegetation and land. The nature of the lion is mostly aggressive and dangerous, but the Gir lion rarely attacks people and has good behavior with the people closest to him. Lion hunting has been stopped in Gir for the safety of the lion. The most protected and comfortable place for lion is Gir Forest National Park in Gujarat.

गुजरात का राज्य पशु "एशियाई शेर" || State Animal of Gujrat "Asiatic Lion"

Weight of adult male is 160 to 250 kg and height is up to 10 feet, weight of female is 110 to 150 kg and height is up to 9 feet. The skull length of males ranges from 330 to 340 mm and that of females from 292 to 302 mm. The color of hair of lion, the animal of Gujarat state, is sand-brown, brown, silver-shiny and black. The color of females is sand-like and yellow-brown. Male lions are dark brown, orange and yellow in color.

The short growth of mane on the male lion is black and brown on the neck and cheeks and is not seen in the female lion. The male lion's ears are only seen on the top of the head. Lions sleep or rest for 20 hours a day. Female lionesses give birth to cubs every two years. The life span of lions is up to 18 years. The age of sexual maturity of males is 4-5 years and that of females is 3-4 years. The female gives birth to 2 to 5 cubs at a time. Cubs start eating meat after 3 months and undergo 9 months of training for hunting. The Asiatic lion of Gujarat has very long and sharp claws and teeth and can drag its prey along the ground.

भारतीय राज्य के राजकीय पशुओं की सूची || List of State Animals of India ||

भारतीय राज्य के राजकीय पक्षियों की सूची |(List of State Birds of India)

श्रीरामचरितमानस – सुंदरकांड ( Shri Ramcharitmanas – Sunderkand )

श्री रामचरितमानस की महत्वपूर्ण घटनाएं

रामचरितमानस की समग्र घटनाओं को मुख्य 7 कांड में विभाजित कर सरलता से समझा जा सकता है। बालकाण्डअयोध्याकाण्डअरण्यकांड, किष्किंधा कांड के बाद सुंदरकांड आता है।  

श्रीरामचरितमानस – सुंदरकांड ( Shri Ramcharitmanas – Sunderkand )

श्रीरामचरितमानस – सुंदरकांड ( Shri Ramcharitmanas – Sunderkand )

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥

हे राम मैं सत्य कहता हूं मेरे हृदय में सिर्फ आप वास करते हैं। रघुकुल शिरोमणि मुझे अपनी अमूल्य निधि वाली भक्ति प्रदान करिए ।जिसके परिणाम स्वरूप मैं राग – द्वेष  से मुक्ति पा सकू।

तुलसीदास द्वारा रचित सुंदरकांड में एक भक्त की बुद्धि और विवेक का जो वर्णन हुआ है ।उस वर्णन की प्रशंसा यदि शब्दों में की जाए तो शब्दों का अभाव हो जाएगा। लेकिन प्रशंसा कम नहीं पड़ेगी। भक्त हनुमान ने निष्काम भाव से अपने आराध्य के कार्यों को अंतिम परिणाम दिया। जिसके परिणाम स्वरूप श्री राम हनुमान जी के निष्काम भक्ति से प्रसन्न होकर हो जाते हैं । और कुछ मांगने के लिए कहते हैं ।हनुमान जी कहते हैं कि प्रभु मुझे सिर्फ आपकी भक्ति चाहिए ।इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए । आपके अमूल्य भक्ति में जो आनंद रस है ।उसके सामने हीरे -मोती और सोना चांदी का क्या महत्व है? रामचरितमानस में सातों कांडों में से सुंदरकांड प्रसिद्ध है ।क्योंकि सुंदरकांड जो भी व्यक्ति स्वच्छ मन से प्रतिदिन पड़ता है उसकी सारी मनोकामना पूरी होती है। सुंदरकांड में भक्ति ,बुध्दि, शक्ति इन तीनों का अद्भुत मेल है ।उनका अनुपात भी बराबर है। अहंकार का समावेश भी नही है। इसीलिए आप निष्काम भाव से रामचरितमानस सुंदरकांड पढ़िए।

सुंदरकांड की संक्षिप्त कहानी

जामवंत के द्वारा जब हनुमान जी को अपनी शक्ति याद दिला जाती है। शक्ति याद आते ही हनुमान जी अपने शरीर को सुमेरु पर्वत की भांति विकराल कर लेते हैं। और जय श्री राम का नारा लगाते हुए आसमान में उड़ने लगते हैं। रास्ते में वीर हनुमान की थकान को दूर करने के लिए मैनाक पर्वत आता है ।हनुमान जी से निवेदन है कि आप मेरे शिखर पर बैठकर थोड़ा आराम कर लीजिए। फिर अपनी उड़ान को प्रारम्भ करिये। हनुमान जी कहते हैं कि मैं राम के कार्यों को बिना सिद्ध किए आराम नहीं कर सकता हूं ।फिर इतना कह कर हनुमान जी उड़ चलते हैं। रास्ते में देवताओं द्वारा हनुमान की जी की बुद्धि का परीक्षण करने के लिए सुरसा नामक नागकन्या को भेजा जाता है। 

सुरसा एक राक्षस का वेश बनाकर हनुमान जी को निगलना चाहती थी। लेकिन हनुमान जी कहते हैं कि मैं राम का कार्य करके आता हूं उसके बाद तुम उसे खा लेना ।सुरसा बोलती है कि इस मार्ग से जो भी गुजरता है उसे मेरे पेट में जाना होता है ।उसे मेरा भोजन बनना होता है। इसके बाद वह अपना मुख 100 योजन का बनाती है ।हनुमान जी अपने विकराल रूप से छोटे रूप में आकर सुरसा के मुंह में प्रवेश करते हैं तो सुरसा को यह आभास नही हो पाता है कि हनुमान मेरे मुख में कब गए और कब बाहर आये।  सुरसा हनुमान जी के बुद्धि से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देती है और अदृश्य हो जाती है ।

तदोपरांत 40 योजन उड़ान करने के बाद छाया को पकड़ने वाली रक्षिणी का वध हनुमान  करते हैं ।उसके बाद हनुमान जी लंका पहुंचते हैं। लंका में लंकिनी से सामना होता है। लंकिनी को भी नुकसान पहुंचाते हैं। उसके बाद हनुमान जी लंका के अंदर प्रवेश करते हैं। सूक्ष्म रूप बनाकर फिर वह महल में जाकर करके देखते हैं सीता किस हाल में है। फिर वह रावण के कक्ष में जाते हैं फिर मेघनाथ फिर मंदोदरी और फिर विभीषण के कक्ष में जाते हैं । 

विभीषण के कक्ष में जब जाते हैं। तब भविषन को देखते हैं। विभीषण राम नाम का जाप कर रहा है । फिर हनुमान जी विभीषण से  परिचय करते हैं। विभीषण सीता के विषय में बताते हैं कि सीता अशोक वाटिका में है ।फिर हनुमान जी अशोक वाटिका में एक वृक्ष पर बैठकर यह देख रहे थे कि कैसे रावण सीता को प्रताड़ित कर रहा है ।उसके प्रताड़ित करने के बाद त्रिजटा उनको सांत्वना दे रही है कि बेटी धैर्य रखो तुम्हारे स्वामी आने वाले हैं। त्रिजटा के सान्त्वना देने के बाद त्रिजटा वहां चली जाती है। 

फिर सीता और हनुमान संवाद होता है। संवाद होने के उपरांत हनुमान जी अशोक वाटिका से फल खाने लगते हैं। इसके उपरांत हनुमान जी द्वारा राजकुमार अक्षय का वध होता है। फिर मेघनाथ द्वारा हनुमान जी को ब्रह्मास्त्र के माध्यम से बंदी बनाया जाता है। बंदी बनने के बाद रावण के दरबार में लाया जाता है ।हनुमान और रावण में संवाद होता है फिर इसके बाद हनुमान की पूंछ में आग लगा दी जाती है। 

हनुमान पूरे लंका में आग लगा देते है।हनुमान सीता से उनकी चूड़ामणि लेकर श्रीलंका से प्रस्थान करती हैं अपनी वानर सेना से मिलते हैं। फिर उसके बाद राम के पास ले जाते हैं और राम को सबूत के तौर पर वह चूड़ामणि देते हैं। श्री राम अपनी सेना को एकत्रित करने के बाद उस विशाल समुद्र के पास पहुंचते हैं। इसके बाद रावण द्वारा विभीषण को देशद्रोह के अपराध लगाकर लंका से निष्कासित कर दिया जाता है।फिर भविषन राम  के शरणागत हो जाये है।

सुंदरकांड की विशेषता क्या है ?

(1) वीर हनुमान का लंका पहुँचना

जामवंत के वचन को सुनकर वीर हनुमान बड़े हर्षोल्लास के साथ सीता जी की खोज के लिए समुद्र में एक पर्वत से एक लंबी छलांग लगाई । श्री राम नाम का उद्घोष करते हुए बड़े बेग के साथ उड़ चले ।रास्ते में मैनाक पर्वत हनुमान जी से यह अनुग्रह करता है कि आप मेरे शिखर पर बैठकर थोड़ी देर आराम कर लीजिए ।

इसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं की
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
 तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥

हनुमान जी ने मैनाक पर्वत के आग्रह पर कहा कि मुझे श्री राम के कार्य में विश्राम नहीं करना है। हनुमान जी के वेग में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी। जिसको सुर ,नर और मुनि देख कर हर्षित हो रहे थे।  हनुमान जी को यह आशीर्वाद दे रहे थे कि वह श्रीराम के कार्य को सफल बनाकर आये। समुद्र के बीच में सुरसा नामक राक्षस मिलती है जो हनुमान जी को खाने के लिए कहती है

इसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥

समुद्र में सुरसा नामक एक राक्षस के वेश में एक सर्प कन्या मिलती है। हे माता अभी मुझे जाने दो। मैं श्री राम के कार्य को पहले कर लेता हूं। उसके बाद तुम मुझे खा लेना लेकिन सुरसा बोलती है कि जो भी इस मार्ग से गुजरता है उसी मेरे पेट का आहार बनना पड़ता है। वीर हनुमान जी अपनी चतुराई से सुरसा के मुख से निकल जाते हैं। हनुमान जी की बुद्धिमानी पर सुरसा अपने वास्तविक रूप में आकर हनुमान जी की बुद्धि की प्रशंसा करती है। उन्हें आशीर्वाद देकर अदृश्य हो जाती है। फिर रास्ते में छाया नामक एक रक्षिणी मिलती है ।

जिसके विषय मे तुलसीदास जी लिखते है कि
निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥
छाया नामक रक्षिणी का वध करके हनुमान जी लंका पहुचते हैं।

(2) वीर हनुमान को ब्रह्मपाश में बांधना मेघनाथ के द्वारा

वीर हनुमान लंका पहुंच करके सर्वप्रथम एक पर्वत की चोटी पर खड़ा होकर के लंका को देखने लगे। लंका की भव्यता को देखकर हनुमान जी ने मन ही मन उसकी प्रशंसा की। यब किला वास्तव में अत्यंत सुंदर है। तदोपरांत सूक्ष्म रूप धारण करके लंका में प्रवेश करने लगे ।वहां पर उनका सामना लंका की पहरेदारी कर रही लंकिनी से होता है।

जिसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि
मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥

लंकिनी के दुस्साहस पर हनुमान जी लंकिनी के नाक पर एक घुसा मारते हैं। तब उसके नाक से खून निकलने लगता है ।वह उद्घोष करने लगती है कि अब लंका का विनाश होने वाला है। फिर लघु रूप धारण करके वीर हनुमान जी ने लंका के अंदर प्रवेश किया ।लंका के हर एक महल में जाकर देखा की सीता किस  महल में है। लेकिन सीता किसी भी महल में नहीं मिलती है। फिर उसके बाद उनकी मुलाकात भविषन से होती है। भविषन भी एक राम भक्त है। हनुमान जी का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें सीता जी के विषय में बताते हैं। फिर हनुमान जी बिना क्षण भर की देरी किए हुए अशोक वाटिका जाते हैं। वहां वह देखते हैं कि रावण सीता को कैसे प्रताड़ित कर रहा है।

इसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा॥
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी॥

रावण के द्वारा जो लोभ सीता को दिया जा रहा है। सीता जी ने कहा कि श्री राम के बिना मेरे लिए यह सारा संसार मिट्टी के ढेले के समान है। इसका मेरे जीवन में कोई महत्व नहीं है। यदि मैं जीवित हूं । श्री राम के लिए अन्यथा मैं अपने शरीर परित्याग कर देती ।फिर रावण के जाने के बाद विभीषण की बेटी त्रिजटा सीता के अंदर यह ढांढस बांधती है कि बेटी दुख के दिन सदैव नही रहते है। मनुष्य के जीवन में सुख-दुख एक रथ के पहिए की भांति है ।आज दुख का पहिया घूम रहा है। कल सुख का पहिया घूमेगा ।बेटी तुम धैर्य बनाये रखो। सीता को समझाने के बाद त्रिजटा वहां से चली जाती है। वहां से जाने के बाद हनुमान जी राम के द्वारा दी गई अंगूठी सीता के पास गिराते हैं ।

जिसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ॥

सीता जी ऊपर से गिराई गई अंगूठी को देखकर आकर्षित होती है ।यह अंगूठी तो  श्रीराम ने मुझे दिया था ।इस अंगूठी पर श्री राम नाम लिखा है सीता इस अंगूठी को देखकर रावण का माया समझती है कि रावण मेरे साथ छल – कपट कर रहा है ।तब हनुमान जी सामने आते हैं कहते हैं कि माता मैं श्री राम का सेवक हनुमान हूँ।मैं आपकी खोज करने के लिए आया हूं ।आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं कोई निशाचर नहीं हूं और ऐसे कई भेद बताते हैं जो श्रीराम सिर्फ सीता से कह होते हैं तब सीता को विश्वास हो जाता है कि हनुमान जी रावण के द्वारा भेजे गए कोई मायावी निशाचर नहीं है ।अपितु राम के दूत हैं। सीता श्री राम के विषय में पूछती है कि क्या मेरे स्वामी मुझे याद करते हैं? 

हनुमान जी ने कहा  श्रीराम आपको हर क्षण य रहते हैं ऐसा कोई भी क्षण भी नही जब श्री राम का नाम न लेते हो। हनुमान जी की श्री राम की प्रति ऐसी श्रद्धा को देखकर सीता जी हनुमान को क्या आशीर्वाद देती है कि हनुमान आठ सिद्धियों और नौ निधियों से परिपूर्ण हो जाओ।

इसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता।।

हनुमान जी सीता माता से यह अनुमति लेते हैं कि माता मुझे भूख लगी है मैं पहले कुछ फल खा लू। इसके बाद हनुमान जी अशोक वाटिका में फलों को तोड़कर खाने लगे ।जिसके परिणाम स्वरूप वहां के वनरक्षक इसका विरोध करने लगे ।लेकिन हनुमान जी ने उन सब को परास्त करके भेज दिया। फिर जम्मू माली आए वह भी परास्त हो गए । फिर रावण के पिता के पुत्र अक्षय कुमार आए जो भीषण युद्ध किया। 

लेकिन हनुमान जी ने ना केवल अक्षय कुमार को परास्त किया। बल्कि उनका अंत ही कर दिया ।फिर अंत में मेघनाथ आया। मेघनाथ और हनुमान जी का भीषण युध्द हुआ। मेघनाथ ने हनुमान जी के ऊपर तब अंत ने ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र का मान रखने के लिए हनुमान जी ब्रह्मपाश में बन्ध गए और फिर  मेघनाथ द्वारा हनुमान जी को लंका के दरबार में लाया गया।

जिसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥

(3) लंका दहन

रावण हनुमान जी के विषय में पूछता है। तब हनुमान जी अपना परिचय देते हैं कि मैं तीनों लोकों के स्वामी श्री राम का दूत हनुमान हूं ।उसके बाद हनुमान जी रावण को समझाते हैं कि सही सलामत सीता को श्री राम को लौटा दो ।अन्यथा श्री राम लंका की ईट से ईट बजा देंगे। हनुमान जी की बातों पर रावण इतना क्रोधित हो जाता है वह हनुमान जी को मृत्युदंड दे देता है। लेकिन मंत्री की सलाह पर हनुमान जी की पूंछ में आग लगा दी जाती है तदोपरांत हनुमान जी पूरी लंका में आग लगा देते हैं।

जिसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि
देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला॥

(4) विभीषण श्री राम के शरणागत

लंका विध्वंस के बाद हनुमान जी सीता जी से विदा मांगने आते हैं। सीता जी अपनी चूड़ामणि हनुमान को देती हैं। हनुमान जी फिर सीता माता से आशीर्वाद लेकर लंका से प्रस्थान करते हैं। फिर लंका से जाकर तुरंत जामवंत और नलनील से मिलते हैं। उसके बाद सब खुशी के साथ श्री राम के पास जाते है ।हनुमान श्री राम संवाद होता है। हनुमान जी ने श्री राम को सीता द्वारा दिए गए चूणामणि देती हैं निशानी के तौर पर। श्रीराम चूड़ामणि को देखकर भावविभोर हो जाती हैं। और उनकी आंख से आंसू निकलने लगते है और फिर हनुमान जी को गले लगा लेते हैं । किष्किंधा नरेश सुग्रीव कहते हैं प्रभु अब किस बात की देरी। अब तो पता ही चल गया है कि जानकी माता कहां है। सुग्रीव सारे वानरों को एकत्र करके श्री राम का नाम का नारा लगाते हुए चल पड़ते हैं। और समुद्र के पास पहुंच जाते हैं। इतने विशाल समुद्र को देखकर अब यह समस्या होने लगती है कि समुद्र को कैसे पार किया जाएगा। मंदोदरी रावण को समझा रही है कि सीता का मोह का त्याग कर दे। सीता लंका के लिए किसी विष से कम नहीं है। लेकिन रावण मंदोदरी की किसी बात को नहीं मानता है। फिर विभीषण रावण को समझाते हैं लेकिन रावण भविष्य के ऊपर देशद्रोह का आरोप लगाकर राज्य से निष्कासित कर देता है और राम की शरण में आ जाता है।

इस प्रसंग के विषय में तुलसीदास जी लिखते हैं कि
अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा॥
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥

पोप लिक मॉन्स्टर (Pop Lick Monster)

पोप लिक मॉन्स्टर (Pop Lick Monster)

इस विचित्र प्राणी का आकार इंसान जैसा था, लेकिन इसके शरीर के कुछ हिस्से भेड़ बकरी जैसे थे। इसके पैर शक्तिशाली थे और बकरियों के फर से ढके हुए थे। इसकी विचित्र नाक लंबी थी और आंखें काफी चौड़ी थी। इसके माथे पर भेड़ जैसे सींग उगे हुए थे। इस जीव को प्राचीन समय से ही देखा जा रहा है, लेकिन इसके बारे में पहली बार रिपोर्ट 1857 में यूरोप में आई थी। जब एक प्रत्यक्षदर्शी ने यह दावा किया कि उसने बालों वाले और सींग वाले व्यक्ति जैसे दिखने वाले प्राणी को देखा है।

पोप लिक मॉन्स्टर (Pop Lick Monster)

इस घटना के बाद उस गांव में एक के बाद एक करीब दो दर्जन लोगों की हत्या हो गई, जिससे डर के बाकी के लोग गांव छोड़कर भाग गए। खास बात यह है कि इस जीव को देखने का दावा पूरी दुनिया भर के लोग करते रहे। अरब देशों में इस प्राणी को लेकर कई तरह की कई बातें प्रचलित हैं – कहा जाता है कि यह सम्मोहन विद्या का उपयोग करता था। अपने शिकार को विचित्र ढंग से गाते हुए या मिमिक्री करते हुए आकर्षित करता था और फिर उन्हें मार देता था। 

पोप लिक मॉन्स्टर (Pop Lick Monster)

यह भी कहा जाता है कि वह लोगों को चलती हुई ट्रेन के सामने फेंक देता था। पोप लिक मॉन्स्टर के बारे में अन्य कहानियों में कहा गया है कि वह चलती कारों की छतों पर चढ़ जाता था। वह अपने शिकार को कुल्हाड़ियों से भी मारता था। माना जाता है कि इस जीव का अस्तित्व आज भी है। 23 अप्रैल 2016 को एक 26 वर्षीय युवक पोप लिक मॉन्स्टर की खोज में जंगलों में खोज घूम रहा था, लेकिन वह युवक रहस्यमई तरीके से अचानक गायब हो गया। बाद में जब उस युवक को खोजा गया तो उसकी लाश एक रेलवे ट्रैक पर बरामद हुई। 

English Translate

Pop Lick Monster

The shape of this strange creature was like that of a human being, but some parts of its body were like those of a sheep and goat. Its legs were powerful and covered with the fur of goats. Its strange nose was long and its eyes were quite wide. Sheep-like horns had grown on its forehead. This creature has been observed since ancient times, but it was first reported in Europe in 1857. When an eyewitness claimed to have seen a man-like creature with hair and horns.

पोप लिक मॉन्स्टर (Pop Lick Monster)

After this incident, about two dozen people were murdered one after the other in that village, due to which the remaining people left the village out of fear. The special thing is that people from all over the world kept claiming to have seen this creature. There are many rumors about this creature in Arab countries – it is said that it used hypnotism. It would attract its victims by singing or mimicking strange sounds and then kill them.

पोप लिक मॉन्स्टर (Pop Lick Monster)

It is also said that he used to throw people in front of a moving train. Other stories about the Pope Lick Monster say that he used to climb onto the roofs of moving cars. He also used to kill his victims with axes. It is believed that this creature still exists today. On April 23, 2016, a 26-year-old young man was roaming in the forests in search of the Pope Lick Monster, but the young man suddenly disappeared mysteriously. Later, when the young man was searched, his body was found on a railway track.


22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes

THIS IS WISH FOR YOU:


smiles
when sadness intrudes,

comfort 
on difficult days,

rainbows 
to follow the clouds,

laughter 
to kiss your lips,

hugs 
when spirits sag,

sunsets
to warm your heart,

friendships
to brighten your being,

beauty 
for your eyes to see,

faith 
so that you can believe,

confidence 
for when you doubt,

patience 
to accept the truth,

courage 
to know yourself,

love
to complete your life.


Happy Birthday


22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes
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जन्मदिन साल भर में एक ही बार आता है। यह दिन सभी के लिए बहुत खास होता है। अच्छा लगता है जब कोई हमारे जन्मदिन पर बधाई और शुभकामनाएं भेजता है। पहले के समय में हम अपने प्रियजनों को जन्मदिन की बधाई देने के लिए खुद कार्ड्स बनाते थे, सोशल साइट्स की इतनी सुविधा उपलब्ध नहीं थी। अब समय बदल चुका है और अपने नियर डियर को शुभकामनाएं भेजना बहुत सरल हो गया है, चाहे कोई आपसे कितना भी दूर क्यूं ना हो। जन्मदिन पर जब हम अपने दोस्तों या रिश्तेदारों को एक नए अंदाज़ से जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं तो ये ख़ास दिन उनके लिए और भी ख़ास हो जाता है। कुछ बधाई संदेश के साथ किसी के जन्मदिन को और भी ख़ास बनाया जा सकता है। 

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / Happy Birthday Wishes

Wish you a very HAPPY BIRTHDAY May life lead you to great happiness, success and hope that all your wishes comes true! Enjoy your day.

Happy Birthday

22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes

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On your birthday, I wish.. May you be gifted with life's biggest joys and never-ending bliss.

Happy Birthday


22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes
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Count not the candles the lights they give. Count not the years, but the life you live. Wishing you a wonderful time ahead.

Happy Birthday
22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes
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I wish that for every extra candle on your cake, you receive an extra reason to smile.

Happy Birthday!
22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes
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Wishing you a day which is as special as you are.

Happy Birthday
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Happy birthday

"Pay attention, you are special not only on your birthday, but also the rest of the days of your life"

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Happy Birthday!

Wishing you another fabulous birthday full of God's blessing.
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Happy birthday many more happy returns of the day

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Wishing you a birthday filled with love, passion, and success you deserve.

HAPPY BIRTHDAY!

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Happy Birthday

May this special day be the beginning of another year full of happiness for you. Happy Birthday!

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Happy Birthday

"best prayer for you hope what you expect can become reality"
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Happy Birthday!
Well, you are another day older and you haven't changed a bit.
That's great, because you are perfect just the way you are!

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Wish you a many many happy returns of the day. May God bless you with health, wealth and prosperity in your life....

Happy Birthday
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May happiness touch your life today as warmly as you have touched the lives of others.

Happy Birthday
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Thinking of the many joys that you deserve today and sending many wishes for those joys to come your way.

Happy Birthday
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May your Birthday be the beginning of the most amazing. sensational, incredible, awesome, and brilliantly fantastic year!
22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes
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A BIRTHDAY BLESSING
In the coming year, may you:
Accomplish many goals
Dream big dreams
Learn from your mistakes
Celebrate your successes
Worry less about dumb stuff
Drink just the right amount of coffee
Accept the unchangeable
Fight for what is right
Wear truly comfortable shoes
Be part of exciting conversations
Meet kind people
Try new things
Share your thoughts
Find your voice
And be really, really happy.

22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes
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HAPPY Birthday

May God always provide you the most precious thing in life: Health, Love, Joy, Peace and Prosperity...

Godbless you!
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FOR EVERY CANDLE YOU BLOW ON YOUR BIRTHDAY YOU WILL GET BUNDLES OF HAPPY MEMORIES AND TONS OF HAPPINESS. WISH YOU A BEAUTIFUL AND Happy Birthday

22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes
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I pray that wisdom and grace is yours to behold, on this day you are another year old. May your path ahead bring joy and peace, and happiness continue to increase.

May you have a wonderful and Happy Birthday

22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes
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Happy Birthday

Wishing you a beautiful and blessed birthday, May this be a day that is filled with laughter, happiness and much love.

22 जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं / 22 Happy Birthday Wishes Quotes
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Let God decorate each Golden ray of the sun reaching you with wishes of Success, Happiness and prosperity... Have a super birthday.

Happy BIRTHDAY

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