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Ayurveda The Synthesis of Yoga and Natural Remedies - 49 - Constipation ( कब्ज)

 कब्ज  (constipation)

हमारे द्वारा भोजन ग्रहण करने के बाद उसका पाचन संस्थान द्वारा पाचन होता है। मुंह में ग्रास के जाने के साथ ही पाचन क्रिया की शुरुआत हो जाती है। उसके बाद ग्रास नली द्वारा आमाशय में पहुंचकर भोजन के पचने की क्रिया आरंभ होती है। अगर इस क्रिया में किसी भी प्रकार की रुकावट होती है तो फिर भोजन सही ढंग से नहीं पचता तथा अपच होता है और फिर कब्ज होता है।
कब्ज पाचन तंत्र की सामान्य समस्या है, जो स्वयं तो इतनी खतरनाक नहीं है लेकिन अनेक गंभीर बीमारियों का कारण हो सकती है। जैसे - अपेंडिसाइटिस, आर्थराइटिस, हाई बीपी, पाइल्स आदि। 


कब्ज रोग का कारण (Causes of Constipation):- 

#   अनियमित खानपान व अनियमित जीवन शैली
#   जंक फूड व फास्ट फूड तथा कोल्ड ड्रिंक्स के सेवन से 
#   कम पानी पीने से या तरल पदार्थों की कमी से 
#   खाद्य पदार्थों में रेशेदार चीजों की कमी के कारण 
#   नींद और दर्द निवारक दवाओं के दुष्प्रभाव से 
#   समय से मल त्याग करने की आदत ना होने से 
#   अत्यधिक चिंता, व्याकुलता, भय इत्यादि से


कब्ज रोग के लक्षण (Symptoms of Constipation):- 

#   सामान्य रूप से मल त्याग ना कर पाना
#   मल त्याग होने पर भी पेट ठीक से साफ ना होना 
#   ठीक से नींद ना आना और सिर में भारीपन रहना 
#   जीभ का गंदा रहना और मुंह से बदबू आना 
#   मुंह में छाले या घाव होना या पेट में अफारा रहना और भूख ना लगना

कब्ज रोग के घरेलू उपचार (Home Remedies For Constipation):- 

#   पेट साफ होने के लिए सबसे अच्छी औषधि त्रिफला चूर्ण है। 
#   15 मुनक्का सुबह एक गिलास पानी में भिगो दें। रात को सोते समय मुनक्का चबा चबा कर खा लें और ऊपर से मुनक्के का पानी पी लें। 
#   रात्रि को त्रिफला चूर्ण का प्रयोग करें 
#   रात को दूध में घी डालकर पीने से कब्ज की समस्या दूर होती है
#   सौंठ, कालीमिर्च, पीपल को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाएं। सुबह-शाम एक-एक चम्मच लें कब्ज दूर होगी
#   पके हुए बेल का शरबत पीने से या बेल के गूदे में सौंफ का पाउडर मिलाकर पीने से कब्ज दूर होता है। 


#   सीधा पका बेल खाएं तो बहुत अच्छा 
#   पुदीने का रस चीनी या गुड़ मिलाकर सेवन करें 
#   गर्म पानी में एक नींबू मिलाकर पीने से कब्ज दूर होती है। 
#   रात्रि में तांबे के पात्र में रखा पानी प्रातः शौच जाने से पहले पीने से कब्ज दूर होती है। 
#   रात को गर्म दूध के साथ एक चम्मच त्रिफला चूर्ण लेने से आराम मिलेगा। 
#   भोजन के साथ सुबह - शाम पपीता खाने से कब्ज दूर होता है। 
#    प्रतिदिन 25 मिलीलीटर देसी गाय का गोमूत्र पीने से कब्ज दूर होता है। 
#   यदि खाना नहीं पचता तो फालसे के रस के साथ सेंधा नमक और काली मिर्च मिलाकर पिएं। फालसा पित्त विकारों में भी लाभ करता है। 
#   कच्चे प्याज का रस पेट दर्द,बदहजमी,वायु विकार और अफारा में लाभदायक होता है। 

Sunday

 इतवार 

सुबह - सुबह एक पैगाम देना है 

आपको सुबह का पहला पैगाम देना है ,

गुजरे सारा दिन आपका खुशियों में 

आपकी सुबह को खूबसूरत सा इनाम देना है। 


         चांद

यों तो कोई भी रास्ता 
चाँद से होकर नहीं जाता 
पर प्यार के सभी रास्ते 
चाँद से होकर जाते हैं 

चाँदनी, हांथों में नहीं रचाई जाती 
लेकिन, स्त्रेहसिक्त हथेलियों पर 
उसकी परछाई होती है 
और, कुछ संदर्भों में 
वह पूरे के पूरे अस्तित्व पर 
छाई होती है 

यथार्थ कितना भी ठोस 
और पाषाणमय क्यों ना हो 
जीवन में आवरणों का 
अपना आकर्षण है 
चाँद से आये हुए पत्थरों से !!

🌸🌸 अच्छे लोगों की सबसे बड़ी खूबी 

यह होती है कि उन्हें याद रखना नहीं पड़ता 

वो यूँ ही याद रहते हैं 🌸🌸

                                                             जैसे कि मैं 😍

 

कपिराज (Kapiraaj)

 कपिराज

कभी एक राजा के बगीचे में अनेक बंदर रहते थे और बड़ी स्वच्छंदता से वहां कूद फांद करते थे। 

एक दिन उस बगीचे के द्वार के नीचे राजपुरोहित घूम रहे थे। उस द्वार के ऊपर एक शरारती बंदर बैठा था। जैसे ही राजपुरोहित उसके नीचे आए उसने उनके गंजे सिर पर विष्ठा कर दी। अचंभित हो पुरोहित ने चारों तरफ देखा, फिर खुले मुख से ऊपर देखा। बंदर ने तब उनके खुले मुख में ही मलोत्सर्ग कर दिया। क्रुद्ध पुरोहित ने जब उन्हें सबक सिखाने की बात कही तो वहां बैठे सभी बंदरों ने दांत किटकिटा कर उनका और भी मखौल उड़ाया। 

कपिराज (Kapiraaj)

कपिराज को जब यह बात मालूम हुई कि राजपुरोहित वहां रहने वाले वानरों से नाराज हैं, तो उसने तत्काल ही अपने साथियों को बगीचा छोड़ कहीं और कूच कर जाने की सलाह दी। सभी वानरों ने तो उसकी बात मान ली और तत्काल वहां से प्रस्थान कर गए। मगर एक दम्भी मर्कट और उसके पांच मित्रों ने कपिराज की सलाह को नहीं माना और वही रहते रहे। 

कुछ ही दिनों के बाद राजा की एक दासी ने प्रासाद के रसोई घर के बाहर गीले चावल को सूखने के लिए डाले। एक भेड़ की उस पर नजर पड़ी और वह चावल खाने को लपका। दासी ने जब भेड़ को चावल खाते देखा तो उसने अंगीठी से निकाल एक जलती लकड़ी से भेड़ को मारा, जिससे भेड़ के रोम जलने लगे। जलता भेड़ दौड़ता हुआ हाथी के अस्तबल पर पहुंचा, जिससे अस्तबल में आग लग गई और अनेक हाथी जल गए। 

राजा ने हाथियों के उपचार के लिए एक सभा बुलाई, जिसमें राजपुरोहित प्रमुख थे। पुरोहित ने राजा को बताया कि बंदरों की चर्बी हाथियों के घाव के लिए कारगर मलहम है। फिर क्या था?  राजा ने अपने सिपाहियों को तुरंत बंदरों की चर्बी लाने की आज्ञा दी। सिपाही बगीचे में गए और पलक झपकते उस दम्भी बंदर और उसके पांचों साथियों को मार गिराया। 

महाकवि और उसके साथी जो किसी अन्य बगीचे में रहते थे शेष जीवन का आनंद उठाते रहे। 

कपिराज (Kapiraaj)

English Translate

Kapiraaj

Once a monkey lived in a garden and used to jump there with great freedom.

One day the Rajpurohit were roaming under the gate of that garden. A mischievous monkey was sitting atop that gate. As soon as Rajpurohit came under him, he put his hair on his bald head. Surprised, the priest looked around, then looked up with an open face. The monkey then rubbed in his open mouth. When the enraged Purohit asked him to teach him a lesson, all the monkeys sitting there mocked him even more by gritting his teeth.

When Kapiraja came to know that Rajpurohit was angry with the monkeys living there, he immediately advised his companions to leave the garden and move elsewhere. All the apes agreed to it and immediately departed from there. But an arrogant Mercut and his five friends did not listen to Kapiraj's advice and stayed the same.

कपिराज (Kapiraaj)

A few days later, a maid of the king poured wet rice outside the Prasad's kitchen to dry. A sheep stared at him and he grabbed the rice to eat. When the maid saw the sheep eating rice, she took it out of the fireplace and hit the sheep with a burning wood, which caused the sheep's follicles to burn. The burning sheep rushed to the elephant's stables, which set fire to the stables and burned many elephants.

The king convened an assembly for the treatment of elephants, in which Rajpurohit was the chief. The priest told the king that monkey fat is an effective ointment for elephant wounds. What was then? The king ordered his soldiers to bring the fat of the monkeys immediately. The soldiers went to the garden and, in a blink of an eye, killed the arrogant monkey and his five companions.

Mahakavi and his companions who lived in another garden continued to enjoy the rest of their lives.

Ayurveda The Synthesis of Yoga and Natural Remedies - 48 - Toothache

 दातों का दर्द


दांतों में दर्द होना वैसे तो एक आम समस्या है। लेकिन यह बेहद असहनीय  होता है। दांत दर्द की वजह से कई बार चेहरे पर सूजन भी आ जाती है। यहां तक कि सिर में दर्द भी हो सकता है। दांत का दर्द किसी भी उम्र में हो सकता है। दांतो को नियमित रूप से साफ ना करने से, पेट में कब्ज एवं वायु रहने से, भोजन के पश्चात दांतों में अन्न कण फंसे रहने से तथा अत्यधिक आइसक्रीम खाने से दांतों में दर्द रहता है और दांत हिलने शुरू हो जाते हैं।

दाँत दर्द का कारण (Causes of Toothache):- 

#   दांतों में कीड़ा लगना
#   दांतों की जड़ कमजोर होना
#   गलत तरीके से दांतो की सफाई करना
#   अक्ल दाढ़ निकलने के दौरान दातों में असहनीय दर्द होना
#   दांतों में संक्रमण होना
#   कैल्शियम की कमी
#   दातों में बैक्टीरियल इनफेक्शन

दाँत दर्द का घरेलू उपचार (Home Remedies For Toothache):-

#   अदरक और तुलसी के पत्तों का रस दांतो पर लगाएं
#   हींग को पानी में घोलकर उस पानी से कुल्ला करें
#   रूई द्वारा लौंग का तेल दर्द वाली जगह पर लगाएं
#   सरसों के तेल में एक चुटकी नमक मिलाकर दांतों में मले तथा थोड़ी देर बाद गर्म पानी से कुल्ला करें
#   सरसों के तेल में पीसी हुई हल्दी मिलाकर दांतों पर मलने से दातों के दर्द में आराम मिलेगा
#   गुड़ का शरबत गर्म करके कुल्ला करने से भी आराम मिलता है
#   सरसों के तेल में नमक मिलाकर मंजन करने से मसूड़े भी मजबूत होते हैं
#   दाढ़ में दर्द होने पर नमक लगे अदरक के टुकड़े चूसने से आराम मिलता है
#   मूली के नियमित प्रयोग से दांत और मसूड़े दोनों मजबूत होते हैं
#   दांतों की सबसे अच्छी दवा है लौंग या लौंग का तेल इस्तेमाल कीजिए। लौंग को पानी में मिलाकर पत्थर पर घिसिए और दातों पर लगा लीजिए। एक गिलास पानी में 4 लौंग डालकर उबाल लें और उससे कुल्ला करें और दातों में कभी दर्द हो ही नहीं तो रोज चूना खाएं और पेस्ट बंद कर दे दातुन या दंत मंजन करें। 

सूचना : पथरी के मरीज चूना का सेवन न करें। 


मुर्गी या अंडा - Murgi ya Anda

 मुर्गी या अंडा 

मुर्गी या अंडा (Murgi ya Anda)
जब भी बुद्धिमत्ता, चतुराई और हाजिर जवाबी की बात होती है तो सबसे पहला नाम बीरबल का आता है। वहीं  अकबर बीरबल की जुगलबंदी किसी से छुपी नहीं है। ऐसा कहा भी जाता है कि बीरबल को बादशाह अकबर के नौ रत्नों में से एक अनमोल रत्न माना जाता था। अकबर बीरबल से जुड़ी ऐसी कई कहानियां हैं जो हर किसी को गुदगुदा जाती हैं। हमलोग भी यहां 15 कहानियाँ पढ़ चुके हैं। इसी क्रम में एक और कहानी जो कि हमेशा से हंसी का विषय रहा है। ये कहानी उस सवाल के बारे में है जो सभी लोगों ने बचपन में कभी न कभी सुना ही होगा और पूछा ही होगा मुर्गी पहले आई कि अंडा। 

एक दिन की बात है - बादशाह अकबर की राज्यसभा में एक ज्ञानी पंडित आया हुआ था। वह कुछ सवालों के जवाब बादशाह से जानना चाहता था, लेकिन बादशाह के लिए उसके सवालों का जवाब देना मुश्किल हो गया। इसलिए उन्होंने पंडित के सवालों के जवाब देने के लिए बीरबल को आगे कर दिया। बीरबल की चतुराई से सभी वाकिफ थे और सभी को उम्मीद थी कि बीरबल पंडित के सभी सवाल का जवाब आसानी से दे सकते हैं। 
मुर्गी या अंडा (Murgi ya Anda)
पंडित ने बीरबल से कहा, "मैं तुम्हें दो विकल्प देता हूं। एक या तो तुम मुझे मेरे 100 आसान से सवाल के जवाब दो या फिर मेरे एक मुश्किल सवाल का जवाब दो।" बीरबल ने सोच विचार करने के बाद कहा कि मैं आपके एक मुश्किल सवाल का जवाब देना चाहता हूं। 

फिर पंडित ने बीरबल से पूछा, तो बताओ मुर्गी पहले आई या अंडा। बीरबल ने तुरंत पंडित को जवाब दिया कि मुर्गी पहले आई। फिर पंडित ने उनसे पूछा कि तुम इतनी आसानी से कैसे बोल सकते हो कि मुर्गी पहले आई। इस पर बीरबल ने पंडित से कहा कि यह आपका दूसरा सवाल है और मुझे आपके एक सवाल का ही जवाब देना था। 

मुर्गी या अंडा (Murgi ya Anda)

ऐसे में पंडित बीरबल के सामने कुछ बोल नहीं पाया और बिना बोले ही दरबार से चला गया। बीरबल की चतुराई और अक्लमंदी को देखकर अकबर हमेशा की तरह ही इस बार भी बहुत खुश हुए। इससे बीरबल ने साबित कर दिया कि बादशाह अकबर के दरबार में सलाहकार के रूप में बीरबल का रहना कितना जरूरी है। 

शिक्षा /Moral :- सही तरह से दिमाग लगाने और संयम रखने से हर सवाल का जवाब और हर समस्या का हल मिल सकता है। 

English Translate

Murgi ya Anda

मुर्गी या अंडा (Murgi ya Anda)

 Whenever it comes to intelligence, cleverness and spot-response, the first name comes from Birbal.  At the same time, the jugalbandi of Akbar Birbal is not hidden from anyone.  It is also said that Birbal was considered to be one of the nine precious jewels of Emperor Akbar.  There are many stories related to Akbar Birbal that tickle everyone.  We have also read 15 stories here.  In this sequence, another story which has always been the subject of laughter.  This story is about the question that all people must have heard at some time in childhood and must have asked that the chicken came first that the egg.
 It is a matter of a day - a learned Pandit came in the Rajya Sabha of Emperor Akbar.  He wanted to know the answers to some questions from the emperor, but it became difficult for the emperor to answer his questions.  So he forwarded Birbal to answer Pandit's questions.  All were well aware of Birbal's cleverness and everyone hoped that Birbal could easily answer all the questions of Pandit.

 Pandit said to Birbal, "I give you two options. Either you give me one of my 100 easy questions or answer one of my difficult questions."  Birbal said after thinking carefully that I want to answer one of your difficult questions.

 Then Pandit asked Birbal, tell me if the chicken came first or the egg.  Birbal immediately replies to Pandit that the hen came first.  Then Pandit asked him how you can speak so easily that the chicken came first.  On this Birbal told Pandit that this is your second question and I had to answer only one of your questions.

 In such a situation, Pandit could not speak anything in front of Birbal and left without speaking.  Akbar was very happy this time as always, seeing Birbal's cleverness and wisdom.  With this, Birbal proved how important it is for Birbal to remain as an advisor in Emperor Akbar's court.

 Education / Moral: - Applying mind and restraint in the right way can answer every question and solve every problem.

मुर्गी या अंडा (Murgi ya Anda)

अद्भुत संसार - 4 - Barren Island - Volcano in India

बैरन द्वीप


बैरन द्वीप भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है जो अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से 138  किलोमीटर की दूर बंगाल की  खाड़ी में स्थित है। इस  द्वीप की गोलाकार आकृति लगभग 3 किलोमीटर है और यह अंडमान द्वीपों का पूर्वी द्वीप है। 150 वर्षों तक निष्क्रिय रहने के बाद 1991 में सक्रिय हुआ तथा उसके बाद यह रुक रुक कर सक्रिय होता रहा है। 

यह भारत ही नहीं अपितु दक्षिण एशिया का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है । ज्वालामुखी वहां पाए जाते हैं, जहां टेक्टोनिक प्लेटों में तनाव हो या पृथ्वी का भीतरी भाग बहुत गर्म हो। बैरन द्वीप के ज्वालामुखी का पहला रिकॉर्ड सन 1787 का है। उसके बाद यहां 10 बार ज्वालामुखी फट चुका है। ये विस्फोट 1991, 1994-95 और 2005 में हुए थे। इस विस्फोट के दौरान इसमें से 2008 तक लगातार लावा निकलता रहा। जनवरी से मार्च 2009 तक ज्वालामुखी में स्ट्रोमबोलियन विस्फोट हुए। जनवरी 2010 में, ज्वालामुखी से 0.93 मील राख का बादल उत्सर्जित किया गया था। 2013 में एक और बड़ा विस्फोट हुआ था जब ज्वालामुखी से 20,000 फुट की राख का बादल हटा दिया गया था। राख का बादल दक्षिण पश्चिम में 100 से अधिक समुद्री मील तक फैला हुआ था।

बैरन का अर्थ बंजर है। नाम के अनुसार यह स्थान भी बंजर है। यह मनुष्य के रहने लायक नहीं है । हम यहां कुछ वन्यजीव ही देख पाएंगे, भले ही जीवों की संख्या कम है पर उनकी कई प्रजातियां हैं। इस द्वीप पर विभिन्न प्रकार की बकरी पाई जाती हैं, जिसे "फेरल गोट" कहते हैं। कहा जाता है कि कई साल पहले यहां कुछ नाविक इस प्रजाति के बकरी को  छोड़ कर चले गए, पर यह देखकर बहुत हैरानी होती है कि यह प्राचीन बकरियां इतने कठिन वातावरण में भी  खारा पानी पीकर जीवित है । इसके अलावा यहां विभिन्न प्रजाति के चमगादड़ पाए जाते हैं, जिन्हें "फ्लाइंग फॉक्स" कहते हैं और चूहे भी पाए जाते हैं। 

 बंजर द्वीप ज्वालामुखी आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पर्यटकों को आकर्षित करता है। बैरन द्वीप के आसपास का पानी दुनिया के शीर्ष स्कूबा डाइविंग स्थलों में प्रतिष्ठित है। स्कूबा डाइविंग से यहां के स्पष्ट पानी में मानता रे अलग ही तरह मछलीयां, डाइवर्स कोरल, और लावा से बनी चट्टानें देखी जा सकती हैं।

English Translate

Baron Island is India's only active volcano located 138 km from Port Blair, the capital of Andaman and Nicobar Islands.  The island has a circular shape of about 3 kilometers and is the easternmost island of the Andaman Islands.  Activated in 1991 after lying dormant for 150 years and after that it has been active from stop to stop.

 It is not only India but the only active volcano in South Asia.  Volcanoes are found where tectonic plates are stressed or the interior of the Earth is very hot.  The first recorded volcano of Baron Island dates back to 1787.  After that, the volcano has erupted here 10 times.  These explosions occurred in 1991, 1994–95 and 2005.  During this explosion, lava continued to flow out of it till 2008.  Strombolian eruptions occurred in the volcano from January to March 2009.  In January 2010, a cloud of ash 0.93 miles from the volcano was emitted.  Another major eruption occurred in 2013 when a 20,000-foot ash cloud was removed from the volcano.  The ash cloud extended over 100 nautical miles to the southwest.

Baron means barren.  According to the name this place is also barren.  It is not fit for humans to live.  We can only see some wildlife here, even though the number of organisms is small but they have many species.  Various types of goats are found on this island, known as "feral goats".  It is said that several years ago some sailors left this goat of this species, but it is very surprising to see that these ancient goats survive by drinking saline water even in such a difficult environment.  Apart from this, bats of various species are also known here, which are called "flying fox" and mice.

 The barren island volcano is economically important as it attracts tourists.  The waters around Baron Island are among the top scuba diving destinations in the world.  Scuba diving can see different types of fish, divers corals, and lava rocks in the clear waters here.

Sunderkand-15

सुंदरकांड 

विभीषण और माल्यावान का रावण को समझाना

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

माल्यवंत अति सचिव सयाना।
तासु बचन सुनि अति सुख माना॥
तात अनुज तव नीति बिभूषन।
सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥


वहां माल्यावान नाम एक सुबुद्धि मंत्री बैठा हुआ था. वह विभीषणके वचन सुनकर. अतिप्रसन्न हुआ
और उसने रावणसे कहा कि तातआपका छोटा भाई बड़ा नीति जाननेवाला हैँ इस वास्ते बिभीषण जो बात कहता है, उसी बातको आप अपने मनमें धारण करो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ।
दूरि करहु इहाँ हइ कोऊ॥
माल्यवंत गह गयउ बहोरी।
कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥

माल्यवान्‌की यह बात सुनकर रावणने कहा कि हे राक्षसो! ये दोनों नीच शत्रुकी बड़ाई करते हैं, तुममेंसे कोई भी उनको यहां से निकाल नहीं देते, यह क्या बात है॥
तब माल्यवान् तो उठकर अपने घरको चला गया. और बिभीषणने हाथ जोड़कर फिर कहा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥

कि हे नाथ! वेद और पुरानोमें ऐसा कहा है कि सुबुद्धि और कुबुद्धि सबके मनमें रहती है। जहा सुमति है, वहा संपदा है. आर जहा कुबुद्धि है वहां विपत्ति॥

तव उर कुमति बसी बिपरीता।
हित अनहित मानहु रिपु प्रीता॥
कालराति निसिचर कुल केरी।
तेहि सीता पर प्रीति घनेरी॥

हे रावण! आपके हृदयमें कुबुद्धि बसी है, इसीसे आप हित और अनहितको. विपरीत मानते हो की जिससे शत्रुको प्रीति होती है॥
जो राक्षसोंके कुलकी कालरात्रि है, उस सीतापर आपकी बहुत प्रीति हैं यह कुबुद्धि नहीं तो और क्या हे॥

दोहा (Doha – Sunderkand)

तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार।
सीता देहु राम कहुँ अहित होइ तुम्हार 40

हे तात में चरण पकडकर आपसे प्रार्थना करता हूं सो मेरी प्रार्थना अंगीकार करो। आप सीता रामचंद्रजीको दे दो, जिससे आपका बहुत भला होगा 40

विभीषण का अपमान

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

बुध पुरान श्रुति संमत बानी।
कही बिभीषन नीति बखानी॥
सुनत दसानन उठा रिसाई।
खल तोहि निकट मृत्यु अब आई॥

सयाने बिभीषणने नीतिको कहकर वेद और पुराणके संमत वाणी कही॥
जिसको सुनकर रावण गुस्सा होकर उठ खड़ा हुआ और बोला कि हे दुष्ट! तेरी मृत्यु निकट गयी दीखती है॥

जिअसि सदा सठ मोर जिआवा।
रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा॥
कहसि खल अस को जग माहीं।
भुज बल जाहि जिता मैं नाहीं॥

हे नीच! सदा तू जीविका तो मेरी पाता है और शत्रुका पक्ष सदा अच्छा लगता है॥
हे दुष्ट! तू यह नही कहता कि जिसको हमने अपने भुजबलसे नहीं जीता ऐसा जगत्‌में कौन है?

मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती।
सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती॥
अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा।
अनुज गहे पद बारहिं बारा॥

हे शठ मेरी नगरीमें रहकर जो तू तपस्वीसे प्रीति करता है तो हे नीच! उससे जा मिल और उसीसे नीतिका उपदेश कर॥
ऐसे कहकर रावणने लातका प्रहार किया, परंतु बिभीषणने तो इतने परभी वारंत्रार पैर ही पकड़े॥

उमा संत कइ इहइ बड़ाई।
मंद करत जो करइ भलाई॥
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा।
रामु भजें हित नाथ तुम्हारा॥

शिवजी कहते हैं, है पार्वती! सत्पुरुषोंकी यही बड़ाई है कि बुरा करनेवालों की भलाई ही सोचते है और करते हैं॥
विभीषण ने कहा, हे रावण! आप मेरे पिताके बराबर हो इस वास्ते आपने जो मुझको मारा वह ठीक ही है, परंतु आपका भला तो रामचन्द्रजीके भजन से ही होगा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

सचिव संग लै नभ पथ गयऊ।
सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ॥

ऐसे कहकर बिभीषण अपने मंत्रियोंको संग लेकर आकाशमार्ग गया और जाते समय सबको सुनाकर ऐसे कहता गया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

दोहा (Doha – Sunderkand)

रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि 41

कि हे प्रभु! रामचन्द्रजी सत्यप्रतिज्ञ है और तेरी सभा कालके आधीन है। और में अब रामचन्द्रजीके शरण जाता हूँ सो मुझको अपराध मत लगाना 41 जय सियाराम जय जय सियाराम

विभीषण का प्रभु श्री राम की शरण के लिए प्रस्थान


चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

अस कहि चला बिभीषनु जबहीं।
आयूहीन भए सब तबहीं॥
साधु अवग्या तुरत भवानी।
कर कल्यान अखिल कै हानी॥

जिस वक़्त विभीषण ऐसे कहकर लंकासे चले उसी समय तमाम राक्षस आयुहीन हो गये॥
महादेवजीने कहा कि हे पार्वती! साधू पुरुषोकी अवज्ञा करनी ऐसी ही बुरी है कि वह तुरंत तमाम कल्याणको नाश कर देती है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

रावन जबहिं बिभीषन त्यागा।
भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा॥
चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं।
करत मनोरथ बहु मन माहीं॥

रावणने जिस समय बिभीषणका परित्याग किया उसी क्षण वह मंदभागी विभवहीन हो गया॥
बिभीषण मनमें अनेक प्रकारके मनोरथ करते हुए आनंदके साथ रामचन्द्रजीके पास चला॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

देखिहउँ जाइ चरन जलजाता।
अरुन मृदुल सेवक सुखदाता॥
जे पद परसि तरी रिषनारी।
दंडक कानन पावनकारी॥

विभीषण मनमें विचार करने लगा कि आज जाकर मैं रघुनाथजीके भक्तलोगोंके सुखदायी अरुण (लाल वर्ण के सुंदर चरण) और सुकोमल चरणकमलोंके दर्शन करूंगा॥
कैसे हे चरणकमल कि जिनको परस कर (स्पर्श पाकर) गौतम ऋषिकी स्त्री (अहल्या) ऋषिके शापसे पार उतरी, जिनसे दंडक वन पवित्र हुआ है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

जे पद जनकसुताँ उर लाए।
कपट कुरंग संग धर धाए॥
हर उर सर सरोज पद जेई।
अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई॥

जिनको सीताजी अपने हृदयमें सदा लगाये रहतीं है. जो कपटी हरिण ( मारीच राक्षस) के पीछे दौड़े॥
रूप हृदयरूपी सरोवर भीतर कमलरूप हैं, उन चरणोको जाकर मैं देखूंगा। अहो! मेरा बड़ा भाग्य हे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

दोहा (Doha – Sunderkand)

जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ।
ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ 42

जिन चरणोकी पादुकाओमें भरतजी रातदिन मन लगाये है, आज मैं जाकर इन्ही नेत्रोसे उन चरणोंको देखूंगा 42

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

ऐहि बिधि करत सप्रेम बिचारा।
आयउ सपदि सिंदु एहिं पारा॥
कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा।
जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा॥

यिभीषण इस प्रकार प्रेमसहित अनेक प्रकारके विचार करते हुए तुरंत समुद्रके इस पार आए॥
वानरोंने बिभीषणको आते देखकर जाना कि यह कोई शत्रुका दूत है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

ताहि राखि कपीस पहिं आए।
समाचार सब ताहि सुनाए॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई।
आवा मिलन दसानन भाई॥

वानर उनको वही रखकर सुग्रीवके पास आये और जाकर उनके सब समाचार सुग्रीवको सुनाये॥
तब सुग्रीवने जाकर रामचन्द्रजीसे कहा कि हे प्रभु! रावणका भाई आपसे मिलनेको आया है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा।
कहइ कपीस सुनहु नरनाहा॥
जानि जाइ निसाचर माया।
कामरूप केहि कारन आया॥

तब रामचन्द्रजीने कहा कि हे सखा! तुम्हारी क्या राय है (तुम क्या समझते हो)? तब सुग्रीवने रामचन्द्रजीसे कहा कि हे नरनाथ! सुनो,
राक्षसोंकी माया जाननेमें नहीं सकती। इसी बास्ते यह नहीं कह सकते कि यह मनोवांछित रूप धरकर यहां क्यों आया है? जय सियाराम जय जय सियाराम

भेद हमार लेन सठ आवा।
राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी।
मम पन सरनागत भयहारी॥

मेरे मनमें तो यह जँचता है कि यह शठ हमारा भेद लेने को आया है। इस वास्ते इसको बांधकर रख देना चाहिये॥
तब रामचन्द्रजीने कहा कि हे सखा! तुमने यह नीति बहुत अच्छी बिचारी परंतु मेरा पण शरणागतोंका भय मिटानेका है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना।
सरनागत बच्छल भगवाना॥

रामचन्द्रजीके वचन सुनकर हनुमानजीको बड़ा आनंद हुआ कि भगवान् सच्चे शरणागतवत्सल हैं (शरण में आए हुए पर पिता की भाँति प्रेम करनेवाले) जय सियाराम जय जय सियाराम

दोहा (Doha – Sunderkand)

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि 43

कहा है कि जो आदमी अपने अहितको विचार कर शरणागतको त्याग देते हैं, उन मनुष्योको पामर (पागल) और पापरूप जानना चाहिये क्योंकि उनको देखनेहीसे हानि होती है 43 जय सियाराम जय जय सियाराम

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