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भानगढ़ का किला || Bhangarh Fort (भानगढ़ फोर्ट)

भानगढ़ का किला

हमारा देश भारत विविधताओं के साथ ही एक अद्भुत और रहस्यमई देश है। जहाँ भारत देश बेहद धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं से जुड़ा देश है, धर्म और देवी-देवताओं में आस्था है वहीं बुरी शक्तियों पर भी लोगों का उतना ही विश्वास है। 

भानगढ़ का किला || Bhangarh Fort (भानगढ़ फोर्ट)

आज भी भारत देश में ऐसे अनेक तहखानों के बंद दरवाजे पड़े हैं, जिनमें कोई ताला नहीं है, कोई जंजीर नहीं है ! सिर्फ मंत्रों की ताकत से बंधे, अपने सीने में न जाने कितने अनजाने राज छुपाए हैं। कुछ इसी तरह की रहस्यमई किंवदंतियों के कारण भानगढ़ का किला हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। भानगढ़ दुर्ग राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के पास में स्थित है। इस किले का निर्माण राजा भान सिंह ने करवाया था। 

भानगढ़ का किला दुनियाभर में मशहूर है। वहीं भानगढ़ को एशिया की सबसे डरावनी जगहों में से एक माना जाता है। कुछ लोग भानगढ़ के किले को भुतहा कहते हैं तो कई लोग इस जगह को खतरनाक बताते हैं।भानगढ़ के किले को देश का सबसे प्रेतवाधित जगह घोषित किया है। शाम होने के बाद किले मे रहना प्रतिबंधित है।

राजा भान सिंह ने अपने पूरे शासनकाल तक यहां सुख पूर्वक शासन किया था। उनके बाद उनके पुत्र भगवंत दास ने गद्दी संभाली। भगवंत दास के भी दो पुत्र हुए, जिनका नाम मानसिंह व माधो सिंह था। माधो सिंह के 3 पुत्र हुए - सुजान सिंह, छत्र सिंह और तेज सिंह। माधो सिंह के बाद छत्र सिंह वहां के राजा बने। इसके बाद छत्र सिंह के पुत्र अजब सिंह हुए जिन्होंने मानगढ़ से दूर अजबगढ़ (अपने नाम पर) बसाया। इसके बाद अजब सिंह के दो पुत्र हुए - काबिल सिंह और हरि सिंह। काबिल सिंह अजबगढ़ में ही रह गए, लेकिन हरि सिंह ने पुनः भानगढ़ को स्वीकार किया। 

भारत की सबसे डरावनी जगह है भानगढ़ का किला

उसके बाद हरी सिंह के दो बेटों ने डर वस या लालच वस औरंगजेब के शासनकाल में इस्लाम स्वीकार कर लिया। लेकिन अभी भी भानगढ़ पर उनका अधिकार था। औरंगजेब के शासनकाल के बाद मुगल शक्ति कमजोर पड़ गई और सवाई जय सिंह जी ने भानगढ़ पर विजय हासिल करके अपना अधिकार जमा लिया। अभी तक भानगढ़ में सुख शांति और समृद्धि का राज्य था। भानगढ़ के रहस्यमई और निर्जन होने के पीछे मुख्य रूप से दो कहानियां मिलती हैं। 

भानगढ़ के रहस्य के बारे में पहली कथा

प्रथम कथा के अनुसार भानगढ़ दुर्ग के समीप एक सन्यासी तपस्वी रहते थे। उनसे अनुनय विनय कर वहां दुर्ग बनाने की अनुमति तो मिल गई परन्तु इस शर्त पर कि किसी भी हालत में दुर्ग की परछाई उस ऋषि की कुटिया तक नहीं पहुंचनी चाहिए। प्रारंभ में ऐसा ही था, किंतु आगे चलकर उनके पुत्र भगवंत दास ने तपस्वी की बात को अनदेखा करते हुए 1683 में दुर्ग का पुनर्निर्माण करवाया और ऊंचाई का ध्यान नहीं दिया। ऊंचाई बढ़ने के कारण उसका बिंब उस ऋषि की कुटिया तक पहुंचने लगा। ऋषि ने क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि," शीघ्र ही इस दुर्ग का विनाश हो जाएगा और यहां पर प्रेत आत्माएं वास करेंगी।" लेकिन यहां पर थोड़ा सा मतभेद है। यदि दुर्ग की ऊंचाई बढ़ जाने पर श्राप दिया गया तो फिर लगभग 200 साल तक वहां पर सुख समृद्धि का राज्य कैसे था ? इसलिए दूसरी कहानी अधिक महत्व रखती है। 

भानगढ़ का किला || Bhangarh Fort (भानगढ़ फोर्ट)

भानगढ़ के रहस्य के बारे में दूसरी कथा

इस कथा के अनुसार भानगढ़ के इतिहास में अचानक अद्भुत सुंदरी और बुद्धिमान राजकुमारी रत्नावती का नाम आता है। राजकुमारी रत्नावती की सुंदरता की चर्चा पूरे भारत में हो रही थी। कहा जाता है कि रानी पद्मावती से भी अधिक सुन्दर राजकुमारी रत्नावती का रूप था। जो भी उन्हें देखता था मानो सम्मोहित हो जाता था। 

एक बार राजकुमारी रत्नावती पास के बाजार में अपनी दासी के साथ घूमने गई थी। संयोगवश उसी बाजार में तांत्रिक सिंघवी पहुंच गया था, जो कि मानगढ़ की पहाड़ियों के दूसरी छोर पर अपनी कुटिया बनाकर तंत्र साधनाएं करता था। सिंघवी एक उच्च कोटि का तांत्रिक और तंत्र साधनाओं में पूरी तरह निपुण था। 

मनस्वी और संयमी सिंघवी आज रत्नावती को देखते ही अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार था। उसे बोध हो रहा था कि संसार में साधना से भी अधिक आकर्षक कुछ हो सकता है। यूँ तो तंत्र जगत की साधनाओं का नियम है सिद्धि हमेशा परोपकार के लिए की जाती है, लेकिन वह सब कुछ भूल कर बावरा हो गया। 

रत्नावती एक पल के लिए उसकी हो जाए, बदले में उसकी जान भी चली जाए तो उसे कोई पछतावा नहीं होगा। सिंघवी सम्मोहित भाव से राजकुमारी के पीछे पीछे चलने लगा। कुछ देर बाद राजकुमारी एक इत्र की दुकान पर रूकती है, और कुछ खास प्रकार की इत्र को परखने के बाद अपनी दासी को इत्र लेने के लिए इशारा करती है। इत्र की सुगंध सिंघवी तक पहुंचती है और अचानक उसकी तन्द्रा टूटती है। राजकुमारी दासी के साथ इत्र लेकर चल देती हैं। तांत्रिक भी उनके पीछे-पीछे जाता है। राजकुमारी और उनकी दासियां राजमहल में प्रवेश कर जाती हैं और द्वारपाल तांत्रिक को प्रवेश नहीं करने देता और वहीं से तांत्रिक विवश होकर वापस लौट जाता है। 

India most haunted fort

लौटने के बाद भी तांत्रिक राजकुमारी से मिलने की योजनाएं बनाता है, परंतु कोई भी मार्ग नजर नहीं आने पर एक दिन उसके मन में यह बात आती है की राजकुमारी को इत्र पसंद आया होगा तो वह इत्र लेने दोबारा वही आएंगी या अपनी दासी को भेजेंगी। इसी योजना को आधार बनाकर वह प्रतिदिन इत्र की दुकान के आसपास चक्कर लगाता है और एक दिन उसे राजकुमारी की दासी दिख जाती है। 

तांत्रिक ने उस दासी को अपने तंत्र विद्या से सम्मोहित कर वैसा ही इत्र बोतल में भरकर दे देता है। तांत्रिक ने उस इत्र में काला जादू किया होता है, जिसके प्रभाव से जो भी इस इत्र का प्रयोग करेगा तांत्रिक की ओर खिंचा चला जाएगा। तांत्रिक के मंत्र के प्रभाव में दासी सीधे राजमहल जाती है और राजकुमारी को वह इत्र दे देती है। 

अगले दिन जब राजकुमारी स्नान करके सिंगार करने के लिए आती हैं, तो सीसी को हाथ में उठाते ही उन्हें कुछ आशंका होती है, जिसके कारण वह इत्र को बाहर बड़े पत्थर पर फेंक देती हैं, जिससे सीसी टूट कर बिखर जाती है। इत्र के काले जादू के प्रभाव से वह पत्थर तांत्रिक सिंधवि की ओर खिंचा चला जाता है। विशाल का चट्टान को अपनी कुटिया की तरफ आते देख तांत्रिक समझ जाता है, लेकिन उसके पास इतना समय नहीं रहता है कि वह अपना बचाव कर सके। क्रोधवस अपनी सारी शक्तियों को समेट कर वह श्राप देता है कि जिस राजकुमारी ने अपने सौंदर्य के अहंकार में उसको ठुकराया है, उसका पूरा किला नष्ट हो जाए और वहां प्रेत आत्माओं का निवास हो। 

लोगों का मानना है कि इस श्राप के कारण भानगढ़ का किला आज निर्जन और रहस्यमई बना हुआ है। यहां सिर्फ एक मंदिर के अलावा बाकी सब खंडहर दिखाई देता है। लोगों का कहना है की रानी रत्नावती आज भी प्रतिदिन वहां श्रृंगार के लिए आया करती हैं, जिनके पायल और चूड़ियों की झंकार आज भी सुनाई देती है।

वैसे तो इस किले का सच आज तक सामने नहीं आया है और ना ही कभी इसकी आधिकारिक पुष्टि की गई है कि किले में भूत है कि नहीं है। वैज्ञानिक भानगढ़ की कहानियों को खारिज करते हैं, लेकिन गांव के लोग अभी भी इस किले को भूतिया मानते हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्होंने एक औरत के चिल्लाने, चूड़ियां तोड़ने और रोने की आवाजें सुनी हैं। साथ ही उनका कहना है कि किले से संगीत की आवाजें भी आती हैं और कभी-कभी उन्हें परछाइयां भी दिखाई देती हैं। 

कुछ लोगों को लगता है कि कोई उनका पीछा कर रहा है और उन्हें पीछे से थप्पड़ मार रहा है। वहां से अजीब सी गंध भी आती है, ऐसा स्थानीय निवासियों का कहना है। इन्हीं कारणों की वजह से सूर्यास्त के बाद किले के दरवाजे बंद हो जाते हैं और किले के अंदर जाना मना है। यह कहानियां मनगढ़ंत हैं या असल, इस बारे में तो कोई कुछ भी नहीं कह सकता, परन्तु ASI (The Archaeological Survey of India)(भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) ने इस फोर्ट में सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया है। 

भानगढ़ का किला || Bhangarh Fort (भानगढ़ फोर्ट)

कुछ लोगों का कहना है कि यह एक बहुत ही सुंदर किला है, जिसे देखने के लिए कई पर्यटक आते हैं। इस जगह से जुड़ी भूतिया कहानी इस जगह को और भी भूतिया बनाती है। ये कहानियां यहां आने वाले पर्यटकों को उत्सुक करने के लिए बनाई गई हैं। हालांकि, यहां पर कई बरगद के पेड़ हैं, जिससे इस जगह को देखकर बहुत डर लगता है।

English Translate

Bhangarh Fort

Our country India is a wonderful and mysterious country with diversity. While India is a country with very religious and spiritual beliefs, there is faith in religion and gods and goddesses, people also have equal faith in evil powers.

Even today, there are many closed doors of such cellars in India, which have no lock, no chain. Bound only by the power of mantras, he has hidden so many unknown secrets in his chest. Bhangarh Fort has always been a topic of discussion due to some such mysterious legends. Bhangarh Fort is located near Sariska National Park in Alwar district of Rajasthan. This fort was built by Raja Bhan Singh.

Bhangarh Fort is famous all over the world. Bhangarh is considered one of the scariest places in Asia. Some people call Bhangarh Fort haunted while many people call this place dangerous. Bhangarh Fort has been declared the most haunted place in the country. It is prohibited to stay in the fort after evening.

भानगढ़ का किला || Bhangarh Fort (भानगढ़ फोर्ट)

Raja Bhan Singh ruled here happily throughout his reign. After him his son Bhagwant Das assumed the throne. Bhagwant Das also had two sons, whose names were Mansingh and Madho Singh. Madho Singh had 3 sons – Sujan Singh, Chhatra Singh and Tej Singh. After Madho Singh, Chhatra Singh became the king there. After this, Chhatra Singh's son Ajab Singh was born who settled Ajabgarh (in his own name) away from Mangarh. After this Ajab Singh had two sons – Kabil Singh and Hari Singh. Kabil Singh remained in Ajabgarh, but Hari Singh again accepted Bhangarh.

After that, either out of fear or greed, two sons of Hari Singh accepted Islam during the reign of Aurangzeb. But he still had authority over Bhangarh. After the reign of Aurangzeb, the Mughal power weakened and Sawai Jai Singh ji conquered Bhangarh and established his authority. Till now there was a state of happiness, peace and prosperity in Bhangarh. There are mainly two stories behind Bhangarh being mysterious and uninhabited.

First story about the mystery of Bhangarh

According to the first story, a hermit ascetic lived near Bhangarh fort. After persuading him, he got permission to build a fort there but on the condition that under no circumstances should the shadow of the fort reach the sage's hut. It was like this in the beginning, but later his son Bhagwant Das, ignoring the ascetic's advice, got the fort rebuilt in 1683 and did not pay attention to the height. Due to increase in height, its image started reaching the hut of that sage. The sage got angry and cursed, "Soon this fort will be destroyed and ghosts will reside here." But there is a slight difference of opinion here. If a curse was given when the height of the fort increased, then how was there a state of happiness and prosperity for almost 200 years? Therefore the second story holds more importance.

भानगढ़ का किला || Bhangarh Fort (भानगढ़ फोर्ट)

Second story about the mystery of Bhangarh

According to this story, the name of the amazingly beautiful and intelligent princess Ratnavati suddenly appears in the history of Bhangarh. The beauty of Princess Ratnavati was being discussed all over India. It is said that Princess Ratnavati's appearance was even more beautiful than Queen Padmavati. Whoever saw him seemed to be hypnotized.

Once Princess Ratnavati had gone to the nearby market with her maid. Coincidentally, Tantrik Singhvi had reached the same market, who used to practice tantra practices by building his hut at the other end of the hills of Mangarh. Singhvi was a high class Tantrik and completely adept in Tantra practices.

Mindful and patient Singhvi was ready to sacrifice everything as soon as he saw Ratnavati. He was realizing that there could be something more attractive in the world than spiritual practice. Actually, the rule of the spiritual practices of Tantra world is that Siddhi is always done for charity, but he forgot everything and became crazy.

If Ratnavati becomes his for a moment, even if he loses his life in return, he will have no regrets. Singhvi started following the princess with a hypnotized feeling. After some time, the princess stops at a perfume shop, and after trying some specific types of perfume, she signals her maid to buy the perfume. The scent of perfume reaches Singhvi and suddenly his trance is broken. The princess leaves with the maid carrying the perfume. The Tantrik also follows him. The princess and her maids enter the palace and the gatekeeper does not allow the Tantrik to enter and from there the Tantrik is forced to return.

Even after returning, the Tantrik makes plans to meet the princess, but seeing no way in sight, one day it comes to his mind that if the princess liked the perfume, she will come back to get the perfume or will send it to her maid. Based on this plan, he goes around the perfume shop every day and one day he sees the princess's maid.

The Tantrik hypnotizes the maid with his knowledge of Tantra and fills the same perfume in a bottle and gives it to her. The Tantrik has done black magic in that perfume, due to which whoever uses this perfume will be attracted towards the Tantrik. Under the influence of the Tantrik's mantra, the maid goes straight to the palace and gives the perfume to the princess.

The next day, when the princess comes to bathe and adorn herself, as soon as she picks up the perfume, she feels some apprehension, due to which she throws the perfume on a big stone outside, due to which the perfume breaks and shatters. Due to the black magic of the perfume, the stone gets attracted towards Tantrik Sindavi. Seeing Vishal's rock coming towards his hut, the Tantrik understands, but he does not have enough time to defend himself. Enraged, he gathers all his powers and curses that the entire fort of the princess who rejected him because of her beauty should be destroyed and ghost spirits reside there.

People believe that due to this curse the fort of Bhangarh remains uninhabited and mysterious today. Apart from only one temple, everything else is in ruins here. People say that Queen Ratnavati still comes there every day for adornment, the jingle of her anklets and bangles can still be heard.

Although the truth of this fort has not been revealed till date nor has it ever been officially confirmed whether there is a ghost in the fort or not. Scientists dismiss the stories of Bhangarh, but the villagers still consider the fort to be haunted. Local residents say that they have heard the sounds of a woman screaming, bangles breaking and crying. They also say that sounds of music come from the fort and sometimes they also see shadows.

Some people feel that someone is following them and slapping them from behind. A strange smell also comes from there, local residents say. Due to these reasons, the doors of the fort are closed after sunset and going inside the fort is prohibited. No one can say anything about whether these stories are fabricated or real.

Some people say that this is a very beautiful fort, which many tourists come to see. The haunted story associated with this place makes this place even more haunted. These stories have been created to intrigue the tourists coming here. However, there are many banyan trees here, which makes one feel very scared after seeing this place.

हार्ट अटैक || Heart Attack

 हार्ट अटैक

कोरोना महामारी के बाद हार्ट अटैक से जुड़ी बीमारियों में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक साल 2020 में हृदय रोगों से दुनिया भर में 1.86 करोड़ लोगों की मौत हुई। वहीं भारत में बीते दो सालों में हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। 

हार्ट अटैक || Heart Attack

ऐसे में आजकल अपने हृदय का ख्याल रखने के लिए बहुत से आर्टिकल पढ़ने को मिल रहे हैं। राजीव दीक्षित जी से आप सभी वाकिफ होंगे। उन्होंने महर्षि वागभट्ट की 7000 सूत्रों में से कुछ सूत्र निकालकर हम लोगों के समक्ष प्रस्तुत किए थे। 

हमारे  देश भारत में 3000 साल पहले एक बहुत  बड़े ऋषि हुये थे, उनका  नाम  था महाऋषि वागभट्ट, जिन्होंने एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम है - अष्टांग हृदयम (Astang hridayam) और इस पुस्तक में उन्होंने बीमारियों को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखे।  

महाऋषि वागभट्ट के अनुसार कभी भी हृदयघात हो रहा है, मतलब दिल की नलियों में blockage होना शुरू हो रहा है, तो  इसका मतलब है कि रक्त में अम्लता बढ़ी  हुई  है, जिसको अँग्रेजी में acidity कहते हैं। अम्लता दो तरह की होती है- पेट की अम्लता और रक्त की अम्लता। पेट में अम्लता जब बढ़ती है, तोपेट में जलन, खट्टी डकार आती है, मुंह से पानी निकलता है और अगर ये अम्लता ज्यादा बढ़ जाती है, तो  hyperacidity होती है और यही  पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त में आती है तो रक्तअम्लता (blood acidity) होती है और जब रक्त में अम्लता बढ़ती है तो ये अम्लीय रक्त दिल की नलियों में से निकल नहीं पाती और नलियों में blockage कर देती है, तभी हार्ट अटैक होता है। इसके बिना heart attack  नहीं  होता। 

महाऋषि वागभट्ट लिखते हैं कि जब रक्त में अम्लता बढ़ गई है, तो हमें ऐसी चीजों का प्रयोग करना चाहिए, जो  क्षारीय हैं। आयुर्वेद के अनुसार चीजें दो तरह की होती हैं - अम्लीय  और  क्षारीय (acidic and alkaline) यदि अम्ल और क्षार को मिला दिया जाये तो वह neutral हो जाता है। तो वागवट जी कहते हैं कि रक्त की अम्लता बढ़ी हुई है  तो क्षारीय (alkaline) चीजें खाओ, तो रक्त की अम्लता (acidity) neutral हो जाएगी और रक्त में अम्लता neutral हो गई तो heartattack की जिंदगी में कभी संभावना ही नहीं रह जाएगी। 

अब बात आती है क्षारीय चीजों की। रसोई घर में ऐसी बहुत सी चीजें है, जो क्षारीय हैं, जिन्हें हम खायें तो कभी heart attack न आए। ज्यादा  क्षारीय चीज सब घर मे आसानी से उपलब्ध रहती है, वह है लौकी, जिसे दुधी भी कहते हैं, जिसे हम सब्जी के रूप में खाते हैं। इससे ज्यादा कोई क्षारीय चीज ही नहीं है।  

हार्ट अटैक || Heart Attack

महाऋषि वागभट्ट कहते हैं रक्त की अम्लता कम करने की सबसे ज्यादा ताकत लौकी में ही है, तो आप लौकी  के  रस का सेवन करें। राजीव दीक्षित जी लौकी के सेवन का तरीका बताते हैं कि रोज 200 से 300 मिलीग्राम लौकी के रस का सेवन सुबह  खाली  पेटकरें या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते हैं। इस लौकी के रस को और ज्यादा क्षारीय बनाया जा सकता है इसमें 7 से 10 पत्ते तुलसी जी के डाल कर। तुलसी भी बहुत क्षारीय होता है। इसके  साथ इसमें पुदीने के 7 से 10 पत्ते मिला सकते हैं। पुदीना भी क्षारीय होता है। इसके साथ ही इसमें काला नमक  या सेंधा नमक जरूर डालें। नमक काला या सेंधा ही डाले, आयोडीन युक्त नमक  प्रयोग ना करें। आओडीन युक्त  नमक अम्लीय होता है। इस लौकी के जूस का सेवन जरूर करें।

लौकी के बाद एक और उपयोगी चीज है अर्जुन की छाल, जो हमारे ह्रदय का ख्याल रखती है। अर्जुन की छाल के फायदे हृदय रोग में सबसे ज्यादा होते हैं। 

हार्ट अटैक || Heart Attack

तो अपने दिल का ख्याल रखें, स्वस्थ रहें मस्त रहें। 

दिल (मानव हृदय) के बारे में रोचक तथ्य || Amazing Facts About Human Heart ||

संकल्प से सिद्धि तक का सफर

संकल्प से सिद्धि तक का सफर

Rupa OOs ki ek Boond
"जिंदगी का एक ही उसूल रखो,
मुसीबत चाहे कितनी भी हो हमेशा
चेहरे पर मुस्कान रखो"..❣️

संकल्प से सिद्धि तक के सफर का

प्रयास, ही तो होते हैं आधार..

येे प्रयास ही तो हैं,

जो सपनों को हमारे देते आकार..

निरंतर प्रयास ही, 

करते हैं सपनों को साकार..

संकल्प दृढ़ हो, हौंसले अडिग हों,

निश्चित ही सफलता के होते दीदार..

कर्म न करें 

तो भाग्य भरोसे 

होना है असफल

भाग्य भी साथ तब देत है 

जब कर्म हो प्रधान..

कर्म करना भी बेहतर है,

हे मानव! करले है इस सत्य को स्वीकार|| 

Rupa OOs ki ek Boond

"मुस्कुराना एक ऐसा उपहार है,
जो बिना मोल के भी अनमोल है"..❣️

शरद पूर्णिमा २०२३ || Sharad Purnima 2023 ||

शरद पूर्णिमा पर यह काम करेंगे तो सालभर रहेगे स्वस्थ्य 

चांद सी शीतलता, शुभ्रता, कोमलता
उदारता, प्रेमलता आपको और
आपके परिवार को प्रदान हो
शुभ शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा के दिन  ज्यादातर भारतीय घरों में खीर बनाकर रातभर खुले आसमान के नीचे  चांद के प्रकाश रखते हैं।

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ बोलते हैं । शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता है। इस रात्रि में चंद्रमा का ओज सबसे तेजवान और ऊर्जावान होता है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है। 

शरद पूर्णिमा २०२३ || Sharad Purnima 2023 ||

शरद पूर्णिमा के दिन रास-उत्सव और कोजागर व्रत किया जाता है । गोपियों को शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने बंसी बजाकर अपने पास बुलाया और ईश्वरीय अमृत का पान कराया था ।

यू तो हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है।

शरद पूर्णिमा से जुड़ी बातें :-

शरद पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं, जो कई बीमारियों का नाश कर देती हैं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं, जिससे चंद्रमा की किरणें उस खीर के संपर्क में आती है, इसके बाद उसे खाया जाता है।

नारद पुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी में मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए निशिद काल में पृथ्वी पर भ्रमण करती है। माता यह देखती है कि कौन जाग रहा है? यानी अपने कर्तव्‍यों को लेकर कौन जागृत है? जो इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं, मां उन पर असीम कृपा करती है।

शरद पूर्णिमा २०२३ || Sharad Purnima 2023 ||

वैज्ञानिक भी मानते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात स्वास्थ्य व सकारात्मकता देने वाली मानी जाती है, क्योंकि चंद्रमा धरती के बहुत समीप होता है। शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा की किरणों में खास तरह के लवण व विटामिन आ जाते हैं। पृथ्वी के पास होने पर इसकी किरणें सीधे जब खाद्य पदार्थों पर पड़ती हैं तो उनकी क्वालिटी में बढ़ोतरी हो जाती है।

शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सुबह उठकर व्रत करके अपने इष्ट देव का पूजन करना चाहिए। इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी का दीपक जलाकर, गंध पुष्प आदि से पूजन करना चाहिए। ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रूप से किया जाता है,कहा जाता है कि इस दिन जागरण करने वाले की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।

इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है ।

शरद पूर्णिमा की चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट और बलवान होता है ।

अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है । जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है। 

शरद पूर्णिमा २०२३ || Sharad Purnima 2023 ||

शरद पूर्णिमा की रात खीर को बनायें अमृतमय प्रसाद

खीर को रसराज कहते हैं। सीताजी को अशोक वाटिका में रखा गया था । रावण के घर का क्या खायेंगी सीताजी, तो इन्द्रदेव उन्हें खीर भेजते थे ।

खीर बनाते समय घर में चाँदी का गिलास आदि जो बर्तन हो, आजकल जो मेटल (धातु) का बनाकर चाँदी के नाम से देते हैं वह नहीं, असली चाँदी के बर्तन अथवा असली सोना धोकर खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे । लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाओ तो लौह तत्त्व भी उसमें आ जायेगा । खीर में इलायची, खजूर या छुहारा डाल सकते हो लेकिन बादाम, काजू, पिस्ता, चारोली ये रात को पचने में भारी पड़ेंगे । रात्रि 8 बजे महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर 12 बजे के बाद भगवान को भोग लगा के प्रसादरूप में खा लेनी चाहिए । लेकिन देर रात को खाते हैं इसलिए थोड़ी कम खाना । सुबह गर्म करके भी खा सकते हो । (खीर दूध, चावल, मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी – इन पंचश्वेतों से युक्त होती है, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती ।) यह खीर खाने से सालभर मनुष्य स्वथ्य रहता है ।

शरद पूर्णिमा २०२३ || Sharad Purnima 2023 ||

स्वास्थ्य प्रयोग

  • इस रात्रि में 3-4 घंटे तक बदन पर चन्द्रमा की किरणों को अच्छी तरह पड़ने दें ।
  • दो पके सेवफल के टुकड़े करके शरद पूर्णिमा को रातभर चाँदनी में रखने से उनमें चन्द्रकिरणें और ओज के कण समा जाते हैं । सुबह खाली पेट सेवन करने से कुछ दिनों में स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक लाभकारी परिवर्तन होते हैं।
  • 250 ग्राम दूध में 1-2 बादाम व 2-3 छुहारों के टुकड़े करके उबालें । फिर इस दूध को पतले सूती कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में 2-3 घंटे तक रख दें । यह दूध औषधीय गुणों से पुष्ट हो जायेगा । सुबह इस दूध को पी लें ।
  • सोंठ, काली मिर्च और लौंग डालकर उबाला हुआ दूध चाँदनी रात में 2-3 घंटे रखकर पीने से बार-बार जुकाम नहीं होता, सिरदर्द में लाभ होता है ।
  • तुलसी के 10-12 पत्ते एक कटोरी पानी में भिगोकर चाँदनी रात में 2-3 घंटे के लिए रख दें । फिर इन पत्तों को चबाकर खा लें व थोड़ा पानी पियें । बचे हुए पानी को छानकर एक-एक बूँद आँखों में डालें, नाभि में मलें तथा पैरों के तलुओं पर भी मलें । आँखों से धुँधला दिखना, बार-बार पानी आना आदि में इससे लाभ होता है। तुलसी के पानी की बूँदें चन्द्रकिरणों के संग मिलकर प्राकृतिक अमृत बन जाती हैं ।
शरद पूर्णिमा २०२३ || Sharad Purnima 2023 ||

नोट : दूध व तुलसी के सेवन में दो घंटे का अंतर रखें

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।’

अर्थात रसस्वरूप अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं।(गीताः15.13)

शरद पूर्णिमा २०२३ || Sharad Purnima 2023 ||

पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है .... आखिर यह 16 कलाएं हैं क्या ?

तो यह १६ कलाएं हैं - चंद्रमा की 16 कला (Moon 16 Kala)

  1. अमृत
  2. मनदा  (विचार)
  3. पूर्ण (पूर्णता अर्थात कर्मशीलता)
  4. शाशनी (तेज)
  5. ध्रुति (विद्या)
  6. चंद्रिका (शांति)
  7. ज्योत्सना (प्रकाश)
  8. कांति (कीर्ति)
  9. पुष्टि (स्वस्थता)
  10. तुष्टि(इच्छापूर्ति)
  11. पूर्णामृत (सुख)
  12. प्रीति (प्रेम)
  13. पुष्प (सौंदर्य)
  14. ज्योत्सना (प्रकाश)
  15. श्री (धन)
  16. अंगदा (स्थायित्व)
ब्लॉग के सभी पाठकों को शरद पूर्णिमा की असीम शुभकामनायें !!

आंध्रप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु काला हिरण (एंटिलोप सर्विकापरा)/ Black Buck

काला हिरण (Black Buck/ब्लैक बक)

वर्ष 1985 में इंडियन बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ ने भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अपना राजकीय पक्षी, पशु, वृक्ष और पुष्प चिन्हित करते हुए उन्हें अधिघोषित करने के लिए कहा था। वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश को दो भागों (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) में बांटा गया था। विभाजन के उपरांत तेलंगाना में चले गये आंध्र प्रदेश के कुछ भाग से आंध्र प्रदेश की पारिस्थितिकी भी दो भागों में विभाजित हुई, जिसके चलते नये राजकीय चिन्ह जारी करना आवश्यक था। आंध्र प्रदेश के विभाजन के चार वर्ष बाद 30 मई 2018 को आंध्र प्रदेश के पर्यावरण, वन, विज्ञान एवं तकनीक विभाग द्वारा राज्य के नये राजकीय चिन्हों की घोषणा की गई। आंध्र प्रदेश का राजकीय पशु "काला हिरण ( Black Buck )" है। इसको अंग्रेजी में "ब्लैक बुक्क" कहा जाता है। यह आंध्र प्रदेश के अलावा हरियाणा और पंजाब का भी राज्य पशु है।

आंध्रप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु काला हिरण (एंटिलोप सर्विकापरा)/ Black Buck

काले हिरन की प्रजातियों का वर्णन सबसे पहले 1758 में स्वीडिश जीव विज्ञानी कार्ल लिनिअस ने किया गया था।स्थानीय रूप से, आंध्र प्रदेश में, काले हिरण को "कृष्ण जिंका" कहा जाता है। इसके चेहरे पर काली धारियां होती हैं, जो ठुड्डी और आंखों के आसपास सफेद फर से बिल्कुल विपरीत होती हैं। नर अलग-अलग होते हैं, क्योंकि उनका रंग दो-रंग का होता है, जबकि मादाएं और युवा थोड़े गहरे भूरे रंग के होते हैं।

आंध्रप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु काला हिरण (एंटिलोप सर्विकापरा)/ Black Buck

"काले हिरन (कृष्णमृग)" का वैज्ञानिक नाम ‘Antilope Cervicapra’ है, जिसे ‘भारतीय मृग’ (Indian Antelope) के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत और नेपाल में  मूल रूप से निवास करने वाली मृग की एक प्रजाति है।ये राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और अन्य क्षेत्रों में (संपूर्ण प्रायद्वीपीय भारत में) व्यापक रूप से पाए जाते हैं। ये घास के मैदानों में सर्वाधिक पाए जाते हैं। इसे चीते के बाद दुनिया का दूसरा सबसे तेज़ दौड़ने वाला जानवर माना जाता है। कृष्णमृग एक दैनंदिनी मृग (Diurnal Antelope) है अर्थात् यह मुख्य रूप से दिन के समय ज़्यादातर सक्रिय रहता है। जल, कृष्णमृग की दैनिक आवश्यकता है इसलिए वे पानी के पास रहना पसंद करते हैं।

आंध्रप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु काला हिरण (एंटिलोप सर्विकापरा)/ Black Buck

काले हिरन (एंटीलोप सेरवीकप्रा) को भारतीय मृग अथवा हिरन के रूप में भी जाना जाता है। इसकी ऊंचाई 74 से 84 सेमी. तक होती है। नर हिरन का वजन 20-57 किलोग्राम होता है, जबकि मादा हिरन का वजन औसतन 20-33 किलोग्राम होता है। यह 50 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से भाग सकता है।  नर कृष्णमृग के सींग चक्राकार होते हैं जो 35-75 सेमी लंबे होते हैं। मादा कृष्णमृग के भी सींग हो सकते हैं। कृष्णमृग शाकाहारी होता है। घास का भक्षण करता है। काले हिरन में गर्भकाल का समय आम तौर पर छह महीने का होता है, जिसके बाद एक शावक का जन्म होता है। इसका जीवन काल 10 से 15 वर्ष तक होता है।

आंध्रप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु काला हिरण (एंटिलोप सर्विकापरा)/ Black Buck

1972 के वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की पहली अनुसूची के तहत भारत में कृष्णमृग (काले हिरन) का शिकार करना प्रतिबंधित है। कृष्णमृग 30 नर गुणसूत्र होते हैं जबकि मादा कृष्णमृग में 31 गुणसूत्र होते हैं। कृष्णमृग के प्रमुख शिकारियों में भेड़िये, चीते और जंगली कुत्ते शामिल हैं। (साल 1998 के सितंबर-अक्टूबर के महीने में जोधपुर में फिल्म 'हम साथ साथ हैं' की शूटिंग के दौरान सलमान खान अपने साथी कलाकारों के साथ भवाद गांव की तरफ शिकार करने के लिए गए थे. जहां 27-28 सितंबर 1998 की रात घोड़ा फार्म हाउस में काले हिरण का शिकार किया गया था, जिसका इल्जाम सलमान खान पर था।)

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भारतीय उपमहाद्वीप में कृष्णमृग रेगिस्तान (उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में), तटीय क्षेत्रों और पहाड़ों (उत्तरी-पूर्वोत्तर क्षेत्र में) में भी देखे जा सकते हैं। कृष्णमृग को गर्म जलवायु पसंद है। आईयूसीएन (अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ /IUCN) ने काले हिरन को लगभग विलुप्त प्राय जानवरों की श्रेणी में शामिल किया है। 

English Translate

Black Buck

In the year 1985, the Indian Board for Wildlife had asked all the states and union territories of India to identify and declare their state birds, animals, trees and flowers. In the year 2014, Andhra Pradesh was divided into two parts (Andhra Pradesh and Telangana). After the partition, some parts of Andhra Pradesh went to Telangana and the ecology of Andhra Pradesh was also divided into two parts, due to which it was necessary to issue new state symbols. On 30 May 2018, four years after the bifurcation of Andhra Pradesh, the new state symbols of Andhra Pradesh were announced by the Department of Environment, Forest, Science and Technology of Andhra Pradesh. The state animal of Andhra Pradesh is "Black Buck". It is called "Black Book" in English. Apart from Andhra Pradesh, it is also the state animal of Haryana and Punjab.

आंध्रप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु काला हिरण (एंटिलोप सर्विकापरा)/ Black Buck

The black buck species was first described by the Swedish zoologist Carl Linnaeus in 1758. Locally, in Andhra Pradesh, the black buck is called "Krishna Jinka". It has black stripes on its face, which contrast with the white fur on the chin and around the eyes. Males are distinguishable as they have a two-tone coloration, while females and young are slightly darker brown.

The scientific name of "Black Deer" is 'Antilope Cervicapra', which is also known as 'Indian Antelope'. It is a species of antelope native to India and Nepal. They are found widely in Rajasthan, Gujarat, Madhya Pradesh, Tamil Nadu, Odisha and other regions (all over peninsular India). These are found most in grasslands. It is considered to be the second fastest running animal in the world after the leopard. Blackbuck is a diurnal antelope, that is, it is active mainly during the day. Water is the daily requirement of blackbuck, so they like to live near water.

आंध्रप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु काला हिरण (एंटिलोप सर्विकापरा)/ Black Buck

The blackbuck (Antilope cervicapra) is also known as the Indian antelope or deer. Its height is 74 to 84 cm. Happens till then. The weight of a male deer is 20-57 kg, while the weight of a female deer is on average 20-33 kg. It can run at a speed of 50 kilometers per hour. The male blackbuck has circular horns which are 35-75 cm long. Female blackbuck may also have horns. Blackbuck is a vegetarian. Eats grass. The gestation period in blackbuck is typically six months, after which one fawn is born. Its life span is from 10 to 15 years.

आंध्रप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु काला हिरण (एंटिलोप सर्विकापरा)/ Black Buck

Hunting of blackbuck is prohibited in India under the First Schedule of the Wildlife Protection Act of 1972. Male blackbuck have 30 chromosomes while female blackbuck have 31 chromosomes. Major predators of blackbuck include wolves, leopards and wild dogs. (During the shooting of the film 'Hum Saath Saath Hain' in Jodhpur in the month of September-October 1998, Salman Khan along with his co-actors had gone to Bhavad village for hunting. Where on the night of 27-28 September 1998, the horse Black buck was hunted in the farm house, the blame for which was on Salman Khan.)

आंध्रप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु काला हिरण (एंटिलोप सर्विकापरा)/ Black Buck

In the Indian subcontinent, blackbucks can also be seen in deserts (in the north-western region), coastal areas and mountains (in the north-eastern region). Blackbuck likes hot climate. The IUCN (International Union for Conservation of Nature) has included the black buck in the category of almost extinct animals.

भारतीय राज्य के राजकीय पशुओं की सूची || List of State Animals of India ||

भारतीय राज्य के राजकीय पक्षियों की सूची |(List of State Birds of India)

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) अध्याय - 16 (01-05)

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

इस ब्लॉग के माध्यम से हम सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता प्रकाशित कर रहे हैं, इसके तहत हम सभी 18 अध्यायों और उनके सभी श्लोकों का सरल अनुवाद हिंदी में प्रकाशित करेंगे। 

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता के 18 अध्यायों में से अध्याय 1,2,3,4,5, 6, 7, 8,9, 10,11,12,14 और 15 के पूरे होने के बाद आज प्रस्तुत है, अध्याय 16 के सभी अनुच्छेद।  

अथ षोडशोऽध्यायः- दैवासुरसम्पद्विभागयोग

फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

श्रीभगवानुवाच

अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌ || 16.01 ||

भावार्थ : 

श्री भगवान बोले- भय का सर्वथा अभाव, अन्तःकरण की पूर्ण निर्मलता, तत्त्वज्ञान के लिए ध्यान योग में निरन्तर दृढ़ स्थिति (परमात्मा के स्वरूप को तत्त्व से जानने के लिए सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में एकी भाव से ध्यान की निरन्तर गाढ़ स्थिति का ही नाम 'ज्ञानयोगव्यवस्थिति' समझना चाहिए) और सात्त्विक दान (गीता अध्याय 17 श्लोक 20 में जिसका विस्तार किया है), इन्द्रियों का दमन, भगवान, देवता और गुरुजनों की पूजा तथा अग्निहोत्र आदि उत्तम कर्मों का आचरण एवं वेद-शास्त्रों का पठन-पाठन तथा भगवान्‌ के नाम और गुणों का कीर्तन, स्वधर्म पालन के लिए कष्टसहन और शरीर तथा इन्द्रियों के सहित अन्तःकरण की सरलता॥

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्‌।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्‌ || 16.02 ||

भावार्थ : 

मन, वाणी और शरीर से किसी प्रकार भी किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण (अन्तःकरण और इन्द्रियों के द्वारा जैसा निश्चय किया हो, वैसे-का-वैसा ही प्रिय शब्दों में कहने का नाम 'सत्यभाषण' है), अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध का न होना, कर्मों में कर्तापन के अभिमान का त्याग, अन्तःकरण की उपरति अर्थात्‌ चित्त की चञ्चलता का अभाव, किसी की भी निन्दादि न करना, सब भूतप्राणियों में हेतुरहित दया, इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होने पर भी उनमें आसक्ति का न होना, कोमलता, लोक और शास्त्र से विरुद्ध आचरण में लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव॥

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहोनातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत || 16.03 ||

भावार्थ : 

तेज (श्रेष्ठ पुरुषों की उस शक्ति का नाम 'तेज' है कि जिसके प्रभाव से उनके सामने विषयासक्त और नीच प्रकृति वाले मनुष्य भी प्रायः अन्यायाचरण से रुककर उनके कथनानुसार श्रेष्ठ कर्मों में प्रवृत्त हो जाते हैं), क्षमा, धैर्य, बाहर की शुद्धि (गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी देखनी चाहिए) एवं किसी में भी शत्रुभाव का न होना और अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव- ये सब तो हे अर्जुन! दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं ॥

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्‌ || 16.04 ||

भावार्थ : 

हे पार्थ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं॥

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव || 16.05 ||

भावार्थ : 

दैवी सम्पदा मुक्ति के लिए और आसुरी सम्पदा बाँधने के लिए मानी गई है। इसलिए हे अर्जुन! तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुआ है ॥

स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)

स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)

चम्मचचोंच या स्पूनबिल (Spoonbill) कम-गहराई वाले जलसमूहों में पतली व लम्बी टांगों वाला पक्षी है। इनकी चोंच के अन्त चपटे और चम्मच जैसे होते हैं, इसीलिए इसका नाम स्पूनबिल पड़ा। वयस्क पक्षी की शिखा छोटी, स्तन पर पीले रंग का धब्बा होता है। प्रथम वर्ष में चोंच पीली होती है, जिसके पंखों की नोकें उड़ान में दिखाई देती हैं। सोते हुए पक्षियों की मुद्रा क्षैतिज होती है और गर्दन उभरी हुई होती है, जबकि बगुले की स्थिति अधिक ऊर्ध्वाधर होती है। यह ज्यादातर उथले पानी (ज्वारीय फ्लैटों सहित) के साथ आर्द्रभूमि में पाया जाता है। 

स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)

स्पूनबिल पक्षियों की छह प्रजातियाँ पाई जाती हैं। स्पूनबिल मुहाना, खारे पानी की खाड़ी और झीलों में पाए जाते हैं। वे कीचड़ या उथले पानी में लंबी चोंच को अगल-बगल से साफ करके भोजन करते हैं और इस तरह ज्यादातर छोटी मछलियां और क्रस्टेशियंस पकड़ते हैं। नदी की मछली, जलीय कीडे़ और छोटे मेढक स्पूनबिल का भोजन होते हैं। उड़ते समय, स्पूनबिल गर्दन और पैरों को फैलाते हैं और पंखों को लगातार फड़फड़ाते हैं। वे कालोनियों में प्रजनन करते हैं, अक्सर इबिस और बगुलों के साथ, एक निचली झाड़ी या पेड़ में लकड़ियों का एक बड़ा घोंसला बनाते हैं और तीन से पांच सफेद अंडे देते हैं, जिन पर लाल भूरे रंग के धब्बे होते हैं।

स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)

स्पूनबिल की लंबाई लगभग 60 से 80 सेमी (24 से 32 इंच) तक होती है। सिर आंशिक रूप से या पूरी तरह से नंगा है। अधिकांश प्रजातियों में आलूबुखारा सफेद होता है, कभी-कभी गुलाबी रंगत के साथ, लेकिन उत्तर और दक्षिण अमेरिका का रोज़ेट स्पूनबिल, लगभग 80 सेमी लंबा, सफेद गर्दन और ऊपरी पीठ के साथ गहरे गुलाबी रंग का होता है। यह टेक्सास और वेस्ट इंडीज के खाड़ी तट से लेकर अर्जेंटीना और चिली तक फैला हुआ है। कुछ स्थानों पर इसे प्लम शिकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया है।

स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)

पक्षी विशेषज्ञ सतेंद्र शर्मा के अनुसार स्पूनबिल पक्षियों का प्रजनन काल सितंबर से दिसंबर के बीच होता है। एक बार में 2 से 4 अंडे देती हैं। सात सप्ताह में इनके शिशु उड़ान भरने लगते हैं। नर मादा मिल कर अंडों की देखरेख करते हैं। अधिकांश प्रजातियां पेड़ों या ईख की क्यारियों में घोंसला बनाती हैं। स्पूनबिल की छह प्रजातियां दुनिया के अधिकांश हिस्सों में वितरित की जाती हैं।

स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)

यूरेशियन स्पूनबिल

वयस्क और किशोर बड़े पैमाने पर काले बाहरी पंख-टिप्स और काले बिल और पैरों के साथ सफेद होते हैं। यह सबसे व्यापक प्रजाति हैं, जो अफ्रीका के उत्तर-पूर्व में और यूरोप और एशिया के अधिकांश हिस्सों में जापान में पाई जाती है ।

स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)

ब्लैक-फेस्ड स्पूनबिल

यह प्रजाति यूरेशियन स्पूनबिल्स से काफी मिलती जुलती है। यह ज्यादातर ताइवान , चीन , कोरिया और जापान में पाई जाती है। 

अफ्रीकी स्पूनबिल

यूरेशियन स्पूनबिल के समान एक बड़ी सफेद प्रजाति, जिससे इसे अपने गुलाबी चेहरे और आमतौर पर हल्के बिल से अलग किया जा सकता है। इसके भोजन में कीड़े और अन्य छोटे जीव शामिल हैं, और यह पेड़ों, दलदल या चट्टानों में घोंसला बनाता है। यह प्रजाति अफ्रीका और मेडागास्कर में पाई जाती है। 

स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)

रॉयल स्पूनबिल

काले चेहरे वाला एक बड़ा सफेद स्पूनबिल। यह दक्षिण-पूर्व ऑस्ट्रेलिया में सबसे आम है, लेकिन अस्थायी आर्द्रभूमि बनने पर महाद्वीप के अन्य हिस्सों में नियमित रूप से कम संख्या में पाया जाता है। यह न्यूजीलैंड , विशेष रूप से दक्षिणी द्वीप और कभी कभी stragglers के रूप में न्यू गिनी , इंडोनेशिया और प्रशांत द्वीप समूह में देखे जाते हैं।

येलो-बिल्ड स्पूनबिल          

पीले रंग के बिल के साथ एक सफेद स्पूनबिल, जो ज्यादातर दक्षिणपूर्व ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं। 

रोजेट स्पूनबिल

रोजेट स्पूनबिल में वयस्क गुलाबी पंखों के साथ बड़े होते हैं। दक्षिण अमेरिका, कैरिबियन और दक्षिणपूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका में इनको ज्यादातर देखा गया है। 

स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)



English Translate

Spoonbill Bird

The spoonbill is a thin and long-legged bird found in shallow water bodies. The ends of their beak are flat and spoon-like, hence the name spoonbill. The adult bird has a small crest and a yellow spot on the breast. In the first year the beak is yellow, the tips of whose feathers are visible in flight. The posture of sleeping birds is horizontal with the neck erect, whereas the posture of herons is more vertical. It is found mostly in wetlands with shallow water (including tidal flats).
स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)
Six species of spoonbill birds are found. Spoonbills are found in estuaries, saltwater bays and lakes. They feed by sweeping their long beaks from side to side in mud or shallow water and thus catch mostly small fish and crustaceans. River fish, aquatic insects and small frogs are the food of the spoonbill. While flying, spoonbills extend the neck and legs and flap their wings continuously. They breed in colonies, often with ibises and herons, building a large nest of sticks in a low bush or tree and laying three to five white eggs with reddish brown spots.
स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)
The spoonbill ranges from about 60 to 80 cm (24 to 32 in) in length. The head is partially or completely bare. The plumage of most species is white, sometimes with a pink tinge, but the roseate spoonbill of North and South America, about 80 cm long, is dark pink with a white neck and upper back. It ranges from the Gulf Coast of Texas and the West Indies to Argentina and Chile. In some places it has been destroyed by plume hunters.

According to bird expert Satendra Sharma, the breeding period of spoonbill birds is between September to December. Lays 2 to 4 eggs at a time. Their babies start flying in seven weeks. Male and female together take care of the eggs. Most species nest in trees or reed beds. Six species of spoonbills are distributed over much of the world.

Eurasian spoonbill

Adults and juveniles are largely white with black outer wing-tips and black bill and legs. It is the most widespread species, found in Japan, north-east Africa and much of Europe and Asia.
स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)

Black-faced spoonbill

This species is very similar to Eurasian spoonbills. It is mostly found in Taiwan, China, Korea and Japan.

african spoonbill

A large white species similar to the Eurasian spoonbill, from which it can be distinguished by its pink face and usually lighter bill. Its diet includes insects and other small creatures, and it nests in trees, marshes or rocks. This species is found in Africa and Madagascar.
स्पूनबिल पक्षी (Spoonbill Bird)

royal spoonbill

A large white spoonbill with a black face. It is most common in south-eastern Australia, but is regularly found in small numbers in other parts of the continent when temporary wetlands form. It is seen in New Zealand, especially the South Island, and occasionally as stragglers in New Guinea, Indonesia and the Pacific Islands.

Yellow-billed spoonbill

A white spoonbill with a yellow bill, found mostly in southeastern Australia.

rosette spoonbill

Roseate spoonbill adults are large with pink feathers. They are most commonly seen in South America, the Caribbean, and the Southeastern United States.

दशहरा (Dussehra)/ विजयादशमी (vijayadashami) 2023

दशहरा (Dussehra)/ विजयादशमी (Vijayadashami)

असत्य पर सत्य के विजय का पर्व है विजयदशमी। आज 24 अक्टूबर को पूरे देश भर में बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा (विजयदशमी) का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने लंका पति रावण का वध किया था। नवरात्र के समापन के बाद इस त्योहार का आरंभ होता है। दशहरा, हिंदू कैलेंडर में अश्विन महीने के दसवें दिन मनाया जाता है, जो इस बार 24 अक्टूबर दिन मंगलवाल आज मनाया जा रहा है। इस दिन प्रभु श्रीराम ने लंका नरेश रावण पर विजय हासिल की थी। विजयादशमी या दशहरे का त्योहार अधर्म पर धर्म की जीत एवं अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग रावण सहित मेघनाथ और कुम्भकर्ण का पुतला जलाया जाता है।

दशहरा (Dussehra)/ विजयादशमी (vijayadashami)

बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा असल में दो कहानियों से जुड़ा हुआ है। शारदीय नवरात्र की दशमी तिथि के दिन मां दुर्गा ने चंडी रूप धारण करके महिषासुर नामक असुर का वध किया था। मां दुर्गा ने लगातार 9 दिनों तक महिषासुर और उसकी सेना से युद्ध किया था और 10वें दिन महिसाषुर का अंत कर विजय प्राप्त की थी। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्‍तम श्रीराम ने रावण का वध किया था।

दशहरा (Dussehra)/ विजयादशमी (vijayadashami) 2023

राम ने 9 दिन तक मां दुर्गा की उपासनी की और 10वें दिन रावण पर विजय प्राप्त की, इसलिए इस त्योहार को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। रावण के बुरे कर्मों पर राम की अच्छाई की जीत हुई थी और बुराई पर अच्छाई की जीत के त्योहार के रूप में दशहरा को मनाते हैं। इस दिन रावण के साथ उनके पुत्र मेघनाद और भाई कुंभकरण के पुतले को भी फूंका जाता हैं।

दशहरा (Dussehra)/ विजयादशमी (vijayadashami) 2023

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Dussehra/Vijayadashami

Vijayadashami is the festival of victory of truth over untruth. Today on 24th October, the festival of Dussehra (Vijayadashami), the festival of victory of good over evil, is being celebrated with great pomp across the country. On this day, Maryada Purushottam Lord Shri Ram had killed the Lankan husband Ravana. This festival starts after the end of Navratri. Dussehra is celebrated on the tenth day of Ashwin month in the Hindu calendar, which is being celebrated this time on Tuesday, 24th October. On this day Lord Shri Ram had won over Lankan King Ravana. The festival of Vijayadashami or Dussehra is celebrated as the victory of righteousness over unrighteousness and the victory of justice over injustice. On this day people burn the effigies of Ravana along with Meghnath and Kumbhakarna.

दशहरा (Dussehra)/ विजयादशमी (vijayadashami)

Dussehra, symbolizing the victory of good over evil, is actually linked to two stories. On the tenth day of Sharadiya Navratri, Mother Durga took the form of Chandi and killed the demon Mahishasura. Mother Durga fought against Mahishasura and his army for 9 consecutive days and on the 10th day she defeated Mahishasura and won. On this day, Maryada Purushottam Shri Ram had killed Ravana.

दशहरा (Dussehra)/ विजयादशमी (vijayadashami)

Ram worshiped Goddess Durga for 9 days and won over Ravana on the 10th day, hence this festival is celebrated as Vijayadashami. Rama's goodness triumphed over Ravana's evil deeds and Dussehra is celebrated as the festival of victory of good over evil. On this day, along with Ravana, the effigies of his son Meghnad and brother Kumbhkaran are also burnt.

🙏🙏आप सभी को दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयां 🙏🙏


औषधियों के पेड़ पौधे जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है

औषधियों के पेड़ पौधे जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है

आज नवरात्रि का अंतिम दिन है। नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।

आज हम जानेंगे औषधियों में विराजमान नवदुर्गा के बारे में। 

एक मत के अनुसार ब्रह्माजी के दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में विराजमान हैं। यह नौ  औषधियां ऐसी हैं, जिनमें मां दुर्गा के नौ रूप विराजमान है। इन 9 औषधियों को दुर्गा कवच कहा जाता है क्योंकि मानना है कि यह औषधियां रोगों को हरने वाली और उनसे बचा कर रखने के लिए एक कवच के रूप में कार्य करती हैं। आज नव दुर्गा का पांचवा दिन है। इसमें मां दुर्गा के पांचवें रूप स्कंदमाता की पूजा की जाती है। आज यहां नवरात्र के 9 दिनों से संबंधित इन दिव्य गुणों वाली 9 औषधियों के बारे में जानते हैं।

औषधियों में विराजमान नवदुर्गा

(1) प्रथम शैलपुत्री (हरड़) : कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है, जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है.यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है। 

प्रथम शैलपुत्री (हरड़)

(2) ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) : ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है.इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है। 

ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी)

(3) चंद्रघंटा (चंदुसूर) : यह एक ऎसा पौधा है जो धनिए के समान है. यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महंती भी कहते हैं। 

चंद्रघंटा (चंदुसूर)

(4) कूष्मांडा (पेठा) : इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है.इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं. इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है मानसिक रोगों में यह अमृत समान है। 

कूष्मांडा (पेठा)

(5) स्कंदमाता (अलसी) : देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं. यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है.इसमे फाइबर की मात्रा ज्यादा होने से इसे सभी को भोजन के पश्चात काले नमक सेभूंजकर प्रतिदिन सुबह शाम लेना चाहिए यह खून भी साफ करता है। 

स्कंदमाता (अलसी)

(6) कात्यायनी (मोइया) : देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका.इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं.यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है। 

स्कंदमाता (अलसी)

(7) कालरात्रि (नागदौन) : यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं.यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है.यह पाइल्स के लिये भी रामबाण औषधि है इसे स्थानीय भाषा जबलपुर में दूधी कहा जाता है। 

कालरात्रि (नागदौन)

(8) महागौरी (तुलसी) : तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र. ये रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है. एकादशी को छोडकर प्रतिदिन सुबह ग्रहण करना चाहिए। 

महागौरी (तुलसी)

(9) सिद्धिदात्री (शतावरी) : दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं. यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है.विशेषकर प्रसूताओं (जिन माताओं को ऑपरेशन के पश्चात अथवा कम दूध आता है) उनके लिए यह रामबाण औषधि है  इसका सेवन करना चाहिए।     

सिद्धिदात्री (शतावरी)

इस नवरात्रि आपसब को समृद्धि एवं आरोग्य की शुभकामनाओं सहित 

शतावरी (Asparagus)