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31 दिसंबर || 31 December ||

31 दिसंबर (31 December)

नया साल हमारे आपके सबके जीवन के लगभग हर क्षेत्र में नए पन की एक नई शुरुआत लेकर आता है। आज 31 दिसंबर है यानि नववर्ष की पूर्व संध्या। इसका इतंजार पूरे वर्ष सभी को रहता है। लोग इस उत्सव के लिए बहुत उत्साह के साथ इंतजार करते हैं क्योंकि यह जीवन के अगले चरण की नई शुरुआत है। भारत में यह उत्सव शायद देश के वास्तविक आकर्षण को उजागर करता हैं। यहां परंपरा और संस्कृति दोनों दिखाई पड़ती है।

31 दिसंबर (31 December)

ग्रेगोरियन कैलेंडर में 31 दिसंबर साल का 365वां दिन है। इसे कई नामों से जाना जाता है, जिनमें शामिल हैं: सेंट सिल्वेस्टर डे, न्यू ईयर्स ईव या ओल्ड ईयर्स डे/नाइट, क्योंकि अगला दिन न्यू ईयर्स डे है। यह साल का आखिरी दिन है; अगला दिन 1 जनवरी है, अगले वर्ष का पहला दिन। 

पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण भारत में नव वर्ष की पूर्व संध्या मनाने के प्रति दीवानगी पिछले दिनों से बढ़ गई है। 31 दिसंबर को नए साल की पूर्व संध्या, ग्रेगोरियन वर्ष के अंतिम दिन के रूप में मनाया जाता है। दिन का उत्सव आमतौर पर शाम को शुरू होता है और रात के 12 बजे पूरा होता है। यह उत्सव देर रात तक चलता रहता है। 

31 दिसंबर (31 December)

 नए साल की पूर्व संध्या पर विदाई देने और नए साल का स्वागत करने के लिए परिवार और दोस्त के जमावड़े और एक साथ पार्टी करने का चलन है। कई डिस्कोथेक, पब और रेस्तरां उत्सव के लिए विशेष कार्यक्रम और शानदार आतिशबाजी का आयोजन करते हैं।


 31 दिसंबर एक प्रतीकात्मक तिथि है, जो यह प्रतिबिंबित करती है कि यह वर्ष हमारे लिये कैसा रहा? हमें आगामी वर्ष को स्नेह वर्ष की तरह मनाना चाहिए।.परिस्थितियां चाहे जितनी प्रतिकूल हो जाएं लेकिन प्रतिकूलता की परवाह किए बिना, हमे प्यार और अपनापन बांटते रहना होगा।

देश और दुनिया के इतिहास में 31 दिसंबर की तारीख में दर्ज कुछ महत्वपूर्ण घटनाऐं 

देश और दुनिया के इतिहास में 31 दिसंबर की तारीख में दर्ज कुछ महत्वपूर्ण घटनाऐं

  1. 1600: ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने शाही फरमान जारी कर ईस्ट इंडिया कंपनी के पंजीकरण का आदेश दिया.
  2. 1802: पेशवा बाजी राव द्वितीय ब्रिटिश संरक्षण में आए.
  3. 1857: क्वीन विक्टोरिया ने ओटावा को कनाडा की राजधानी घोषित किया.
  4. 1929: लाहौर में आधी रात को महात्मा गांधी ने कांग्रेस जन के साथ पूर्ण स्वराज का संकल्प लिया.
  5. 1943: बेन किंग्सले का जन्म. बहुत कम लोग जानते हैं कि उनका असली नाम कृष्ण भानजी था. इंग्लैंड के यार्कशर में पैदा हुए बेन ने वर्ष 1982 में फिल्म गांधी में मुख्य भूमिका निभाई थी और इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अकेडमी पुरस्कार भी मिला था.
  6. 1964: डोनाल्ड कैंपबेल ने पानी और जमीन पर सबसे तेज रफ्तार से वाहन चलाने का रिकार्ड बनाया. एक ही वर्ष में दोनों सतह पर रिकार्ड बनाने वाले वह दुनिया के पहले व्यक्ति थे. हालांकि रफ्तार के इसी जुनून ने 1967 में उनकी जान ले ली.
  7. 1972: बेसबॉल के महान खिलाड़ी रोबर्टो क्लेमेंट की एक विमान दुर्घटना में मौत. वह निकारागुआ के भूकंप पीड़ितों के लिए एकत्र राहत सामग्री लेकर जा रहे थे.
  8. 1999: अमेरिका ने पनामा नहर का नियंत्रण आधिकारिक तौर पर पनामा के हवाले किया.
  9. 2004: ताइपे, ताइवान में 508 मीटर ऊंची इमारत का उद्घाटन किया गया. उस समय इसके दुनिया की सबसे ऊंची इमारत होने का दावा किया गया था.

वाचाल गधा: पंचतंत्र || Vachal gadha : Panchtantra ||

वाचाल गधा

मौनं सर्वाऽर्थसाधकम्

वाचालता विनाशक है, मौन में बड़े गुण हैं।

वाचाल गधा: पंचतंत्र || Vachal gadha : Panchtantra ||

एक शहर में शुद्धपट नाम का धोबी रहता था। उसके पास एक गधा भी था। घास न मिलने से वह बहुत दुबला हो गया। धोबी ने तब एक उपाय सोचा। कुछ दिन पहले जंगल में घूमते-घूमते उसे एक मरा हुआ शेर मिला था, उसकी खाल उसके पास थी। उसने सोचा यह खाल गधे को ओढ़ाकर खेत में भेज दूँगा, जिससे खेत के रखवाले इसे शेर समझकर डरेंगे और इसे मारकर भगाने की कोशिश नहीं करेंगे।

धोबी की चाल चल गई। हर रात वह गधे को शेर की खाल पहनाकर खेत में भेज देता था। गधा भी रात भर खाने के बाद घर आ जाता था।

लेकिन एक दिन पोल खुल गई। गधे ने दूसरे गधे की आवाज़ सुनकर खुद भी अरड़ाना शुरू कर दिया। रखवाले शेर की खाल ओढ़े गधे पर टूट पड़े, और उसे इतना मारा कि बेचारा मर ही गया। उसकी वाचालता ने उसकी जान ले ली।

वाचाल गधा: पंचतंत्र || Vachal gadha : Panchtantra ||

बन्दर मगर को यह कहानी कह ही रहा था कि मगर के एक पड़ोसी ने वहाँ आकर मगर को यह खबर दी कि उसकी स्त्री भूखी-प्यासी बैठी उसके आने की राह देखती देखती मर गई। मगरमच्छ यह सुनकर व्याकुल हो गया और बन्दर से बोला- मित्र, क्षमा करना, में तो अब स्त्री वियोग से भी दुखी हूँ। बन्दर ने हँसते हुए कहा-यह तो पहले ही जानता था कि तू स्त्री का दास है अब उसका प्रमाण भी मिल गया। मूर्ख! ऐसी दुष्ट स्त्री की मृत्यु पर तो उत्सव मानना चाहिए, दुःख नहीं। ऐसी स्त्रियाँ पुरुष के लिए विष-समान होती हैं। बाहर से वे जितना अमृत समान मीठी लगती हैं, अन्दर से उतनी ही विष समान कड़वी होती है।

मगर ने कहा- मित्र ! ऐसा ही होगा, किन्तु अब क्या करूँ? मैं तो दोनों ओर से जाता रहा। उधर पत्नी का वियोग हुआ, घर उजड़ गया; इधर तेरे जैसा मित्र छूट गया। यह भी दैव-संयोग की बात है। मेरी अवस्था उस किसान पत्नी की तरह हो गई है। जो पति से भी छूटी और धन से भी वंचित कर दी गई।

बन्दर ने पूछा- वह कैसे? तब मगर ने गीदड़ और किसान पत्नी की यह कथा सुनाई

घर का न घाट का

To be continued ...

गुरु गोविंद सिंह जी जयंती 2022~ Guru Gobind Singh Jayanti 2022

गुरु गोविंद सिंह जी जयंती 2022

सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह थे। उनकी जयंती प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाई जाती है। गुरु गोविंद सिंह जी एक आध्यात्मिक नेता, योद्धा, कवि और दार्शनिक थे।

इस दिन, दुनिया भर से उनके अनुयायी एक दूसरे को शुभकामनाएं भेजते हैं और गुरु गोबिंद सिंह जी की शिक्षाओं और मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। इस वर्ष गुरु गोबिंद सिंह जयंती आज यानि 29 दिसंबर, 2022 को है। यह दिन महान योद्धा, कवि, दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु के सम्मान और स्मरण में मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार पौष शुक्ल सप्तमी को गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था। 

गुरु गोविंद सिंह जी जयंती 2022~ Guru Gobind Singh Jayanti 2022

गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा कहा गया एक वाक्य बहुत प्रसिद्ध है,

"चिड़ियां नाल मैं बाज लड़ावां गिदरां नुं मैं शेर बनावां सवा लाख से एक लड़ावां तां गोविंद सिंह नाम धरावां" उनके द्वारा 17 वीं शताब्दी में ये शब्द कहे गए थे। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पटना में हुआ था। बाद में ये दसवें सिख गुरु बने। वह औपचारिक रूप से नौ साल की उम्र में सिखों के नेता और रक्षक बन गए थे। नौवें सिख गुरु और उनके पिता गुरु तेग बहादुर औरंगजेब द्वारा इस्लाम में परिवर्तित होने से इनकार करने के लिए मार दिए गए थे। गुरु गोबिंद जी ने अपनी शिक्षाओं और दर्शन के माध्यम से सिख समुदाय का नेतृत्व किया और जल्द ही ऐतिहासिक महत्व प्राप्त कर लिया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी मृत्यु से पहले 1708 में गुरु ग्रंथ साहिब को सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ घोषित किया था।

गुरु गोविंद सिंह जी जयंती 2022~ Guru Gobind Singh Jayanti 2022

गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा होने के साथ साथ , कविता और दर्शन और लेखन के प्रति अपने झुकाव के लिए जाने जाते थे। उन्होंने मुगल आक्रमणकारियों को जवाब देने से इनकार कर दिया और अपने लोगों की रक्षा के लिए खालसा के साथ लड़ाई लड़ी। उनके मार्गदर्शन में उनके अनुयायियों ने एक सख्त संहिता का पालन किया। उनके दर्शन, लेखन और कविता आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। गुरु गोबिंद सिंह जयंती मनाने के लिए दुनिया भर के सिख गुरुद्वारों में जाते हैं, जहां गुरु गोबिंद सिंह जी के सम्मान में प्रार्थना सभाएं होती हैं। लोग गुरुद्वारों द्वारा आयोजित जुलूसों में भाग लेते हैं, कीर्तन करते हैं और सेवा भी करते हैं।

गुरु गोविंद सिंह जी जयंती 2022~ Guru Gobind Singh Jayanti 2022

गुरु गोबिंद सिंह ही थे जिन्होंने सिखों द्वारा पालन किए जाने वाले पांच ककार का परिचय दिया था:

केश: बिना कटे बाल

कंघा : एक लकड़ी की कंघी

कारा: कलाई पर पहना जाने वाला लोहे या स्टील का ब्रेसलेट

कृपाण: एक तलवार

कच्छेरा: छोटा अंडरवियर

सन 1708 में गुरु गोविंद सिंह का निधन हो गया लेकिन उनके मूल्य और विश्वास उनके अनुयायियों के माध्यम से जीवित है। गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती है। उन्होंने हमेशा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया।

गुरु गोविंद सिंह जी जयंती 2022~ Guru Gobind Singh Jayanti 2022

 उनकी मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दी।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई बड़े सिख गुरुओं के महान उपदेशों को सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित कर इसे पूरा किया था। सिख धर्म के लोगों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को सबसे पवित्र एवं गुरु का प्रतीक बनाया। इन्होंने साल 1669 में मुगल बादशाहों के खिलाफ विरोध करने के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी।

सिख साहित्य में गुरु गोबिन्द सिंह जी के महान विचारों द्धारा की गई “चंडी दीवार” नामक साहित्य की रचना खास महत्व रखती है। 

गुरु गोविंद सिंह जी जयंती 2022~ Guru Gobind Singh Jayanti 2022

 गुरु गोविंद सिंह जी को एक पिता,एक पुत्र,एक लेखक,एक त्यागी और एक गुरु के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा।

भारत सरकार का बेहद शानदार कदम, 26 दिसंबर वीर बाल दिवस के रूप किया गया

भारत सरकार का बेहद शानदार कदम, 26 दिसंबर वीर बाल दिवस के रूप किया गया

इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को अंतिम सिख गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटों, ‘साहिबजादे’ के साहस को श्रद्धांजलि देने के लिए ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। यह चारों मुगलों के हाथों शहीद हो गए थे। इस कार्यक्रम के लिए 26 दिसंबर की तारिख इसलिए चुनी गई क्योंकि इस दिन को साहिबजादों जोरावर सिंह और फतेह सिंह के शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता था। सिख और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए कुर्बानी देने वाले चार साहिबजादों की याद में 21 से 27 दिसंबर का सप्ताह बलिदानी सप्ताह के तौर पर मनाया जाता है। दोनों साहिबजादे सरहिंद (पंजाब) में 6 और 9 साल की छोटी उम्र में मुगल सेना के हाथों मारे गए थे। वीर बाल दिवस: सिखों के इतिहास का सुनहरा पन्ना है। साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह ने अपनी शहादत दे दी, लेकिन धर्म पर आंच नहीं आने दी।

26 दिसंबर, वीर बाल दिवस

जुल्म की दास्तां और बहादुरी की मिसाल

सिख और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए कुर्बानी देने वाले चार साहिबजादों की याद में 21 से 27 दिसंबर का सप्ताह बलिदानी सप्ताह के तौर पर मनाया जाता है। साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह ने अपनी शहादत दे दी, लेकिन धर्म पर आंच नहीं आने दी। खालसा पंथ की स्थापना के बाद मुगल शासकों, सरहिंद के सूबेदार वजीर खां के आक्रमण के बाद 20-21 दिसंबर 1704 को मुगल सेना से युद्ध करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्री आनंदपुर साहिब का किला छोड़ा। सरसा नदी पर गुरु गोबिंद सिंह जी का परिवार जुदा हो गया। बड़े साहिबजादे अजीत सिंह, जुझार सिंह गुरु जी के साथ रह गए, जबकि छोटे बेटे जोरावर सिंह और फतेह सिंह माता गुजरी जी के साथ थे। रास्ते में माता गुजरी जी को गंगू मिला, जो किसी समय पर गुरु महल की सेवा करता था। गंगू उन्हें बिछड़े परिवार से मिलाने का भरोसा देकर अपने घर ले गया। 

26 दिसंबर, वीर बाल दिवस

इसके बाद सोने की मोहरें के लालच में गंगू ने वजीर खां को उनकी खबर दे दी। वजीर खां के सैनिक माता गुजरी और 7 वर्ष के साहिबजादा जोरावर सिंह और 5 वर्ष के साहिबजादा फतेह सिंह को गिरफ्तार करके ले आए। उन्हें ठंडे बुर्ज में रखा गया। सुबह दोनों साहिबजादों को वजीर खां के सामने पेश किया गया, जहां उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा गया। लेकिन गुरु जी की नन्हीं जिंदगियों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। मुलाजिमों ने सिर झुकाने के लिए कहा तो दोनों ने जवाब दिया कि ‘हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के भी सामने सिर नहीं झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कुर्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे, यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया तो हम अपने दादा को क्या जवाब देंगे, जिन्होंने धर्म के नाम पर सिर कलम करवाना सही समझा, लेकिन झुकना नहीं’।  वजीर खां ने दोनों को काफी डराया, धमकाया और प्यार से भी इस्लाम कबूल करने के लिए राजी करना चाहा, लेकिन दोनों अटल रहे। आखिर में दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवारों में चुनवाने का एलान किया गया। कहते हैं दोनों साहिबजादों को जब दीवार में चुनना आरंभ किया गया तब उन्होंने ‘जपुजी साहिब’ का पाठ शुरू कर दिया और दीवार पूरी होने के बाद अंदर से जयकारा लगाने की आवाज आई। दूसरी ओर साहिबजादों की शहीदी की खबर सुनकर माता गुजरी जी ने प्राण त्याग दिए। यह वाकया 27 दिसंबर सन 1704 को हुआ। इसकी खबर गुरुजी तक पहुंची तो उन्होंने औरंगजेब को एक जफरनामा (विजय की चिट्ठी) लिखा, जिसमें उन्होंने औरगंजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।  

साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह की वीरता की कहानी 

अजीत सिंह श्री गुरु गोबिंद सिंह के सबसे बड़े पुत्र थे। चमकौर के युद्ध में अजीत सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। गुरु जी द्वारा नियुक्त किए गए पांच प्यारों ने अजीत सिंह को समझाने की कोशिश की कि वे युद्ध में ना जाएं। लेकिन पुत्र की वीरता को देखते हुए गुरु जी ने अजीत सिंह को स्वयं अपने हाथों से शस्त्र भेंट कर लड़ने भेजा। इतिहासकार बताते हैं कि रणभूमि में जाते ही अजीत सिंह ने मुगल फौज को कांपने पर मजबूर कर दिया। अजीत सिंह कुछ यूं युद्ध कर रहे थे मानो कोई बुराई पर कहर बरसा रहा हो। मुगल फौज पीछे भाग रही थी लेकिन अजीत सिंह के तीर खत्म होने लगे तो दुश्मनों ने उन्हें घेर लिया। लेकिन अजीत सिंह ने तलवार निकाली और अकेले ही मुगल फौज पर टूट पड़े। उन्होंने एक-एक करके मुगल सैनिकों का संहार किया, लेकिन तभी लड़ते-लड़ते उनकी तलवार भी टूट गई। महज 17 वर्ष की आयु में आखिरी सांस तक मुगलों से लड़ते हुए उन्होंने रणभूमि में शहादत दे दी। इनके नाम पर ही मोहाली का नाम साहिबजादा अजीत सिंह नगर रखा गया है। अजीत सिंह की शहादत के बाद साहिबजादा जुझार सिंह ने मोर्चा संभाला। वह भी उनके पदचिन्हों पर चलकर अतुलनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। चारों साहिबजादों की शहादत की कोई दूसरी मिसाल इस धरती पर नहीं मिलती है।

26 दिसंबर, वीर बाल दिवस

गुरुजी के साहिबजादों की शहादत का बदला बाबा बंदा सिंह बहादुर ने लिया। उन्होंने सरहिंद में वजीर खान को उसके कर्मों की सजा दी और पूरे इलाके पर सिखों का आधिपत्य स्थापित किया। इसी बलिदान का परिणाम था कि आगे चल कर महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में एक बड़े सिख साम्राज्य का उदय हुआ। 

सभी पाठकों को गुरु पर्व की लख लख बधाई 

HAPPY GURUPURAB

गुरु गोविंद सिंह जी जयंती 2021 ~ Guru Gobind Singh Jayanti 2021

बीकानेर की विरांगना राजरानी किरण देवी

बीकानेर की विरांगना राजरानी किरण देवी

यूं तो राजपूत कूल का जब जिक्र होता है, तो गौरवशाली इतिहास नज़रों में यकायक अपनी छवि स्वयम बना लेता है। राजपूतों के शौर्य और बलिदानों की अमर गाथाओं से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं, परंतु आज हम बात करने जा रहे हैं, बीकानेर की विरांगना राजरानी किरण देवी की। 

बीकानेर की विरांगना राजरानी किरण देवी

भारतीय नारी की सहन क्षमता उसके दृढ़ संकल्प विश्वास से दुनिया में सभी भली भाती बाकिफ हैं। अपने सतीत्व एवं पतिव्रता धर्म के मार्ग पर चलते हुए उसकी रक्षा करना ही भारतीय नारी की पहचान है। उनके जीवन का आदर्श है। उनके सतीत्व से कितने बड़े बड़े साम्राज्य तिनके की तरह बिखर गए, ऐसी थी राजरानी किरण देवी, जिनकी लोक गाथा को इतिहासकारों ने अपने अपने हिसाब से वर्णित किये हैं। 

सर्वप्रथम जान लेते हैं कौन हैं राजरानी किरण देवी

राजरानी किरण देवी मेवाड़ सूर्य महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह की कन्या थीं, जिनका विवाह बीकानेर नरेश के भाई महाराज पृथ्वी सिंह से हुआ था। ये वही किरण देवी हैं, जिनकी कविता ने राणा प्रताप में पुन: राजपूतानों का जोश ला दिया था और फिर उनहोंने किसी भी हालत में अकबर से संधि की बातचीत स्वीकार नहीं की थी।

आप सभी बेहतर जानते हैं अकबर और राणा प्रताप की हट तथा राणा प्रताप का मातृभूमि प्रेम। एक समय अकबर जहाँ अपनी कूटनीति छल कपट से सारे राज्यों पर अधिकार जमाता रहा था, बड़े-बड़े राजपूत-घरानों ने अपनी सांस्कृतिक परम्परा और मान-सम्मान की उपेक्षा करना आरंभ कर दिया था, मेवाड़ छोडकर अन्य राजपूत रियासतों ने अकबर का लोहा मान लिया था, वहीँ पृथ्वीराज अपनी इस वीर रानी के साथ दिल्ली में ही रहते थे। किरण देवी परम सुन्दरी और सुशीला थीं। अकबर उसे अपनी वासना का शिकार बनाना चाहता था। अकबर शक्तिशाली सम्राट अवश्य था, किंतु कुछ गलत आदतें उसके हृदय में रात-दिन धधका करती थी। वहीँ दिल्ली के शक्तिशाली सम्राट की अभिलाषाओं की पूर्ति के लिये काफी शक्ति और साधन सम्पन्नता की आवश्यकता थी।

सभी जानते है अपनी गलत इच्छाओं की तृप्ति करने के लिये ही अकबर हर साल दिल्ली में ‘नौरोज’ का मेला लगवाता था, जिसमें राजपूतों की तथा दिल्ली की अन्य स्त्रियाँ  मेले के बाजार में आया करती थीं। जहाँ से अपहरण कर स्त्रियों को अकबर के आरामगाह में छोड़ा जाता था। इस मेले में पुरुषों को जाने की आज्ञा नहीं दी जाती थी। अकबर स्त्री के वेश में इस मेले में घुमा करता था। जिन सुन्दरी पर अकबर मुग्ध हो जाता था, उसी स्त्री को उठवा लिया जाता था और अकबर के महल में ले  था।

इन्हीं सब के बीच अकबर की आँखे बहुत दिनों से किरण देवी पर लगी हुई थी, परन्तु वो इस बात को भूल बैठा था कि ये उसी सिसोदिया राजघराने की सिंहनी है, जिस घराने के पुत्र राणा से जीतने का कोई स्वप्न में भी न सोंच सका था। वो रानी किरण देवी की वीरता से अनजान था। यही उसकी जीवन की बड़ी भूल साबित हुई। वह नहीं जानता था कि भारतीय नारियों ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिये अपने प्राणों तक की चिंता नहीं की और आग में जल-जलकर खुद को बलिदान कर दिया है। महारानी पद्मिनी की चिता की जलती राख का दर्शन उसकी पापी आँखों ने नहीं किया था। एक रोज जब मेले में मीना बाजार की सजावट देखने रानी किरण देवी आयीं तो अकबर के आदमियों ने अकबर के संकेत से राजरानी किरण देवी को धोखे से उठाकर महल पर पहुँचा दिया, जहाँ अकबर ने उसे घेर लिया और नाना प्रकार के प्रलोभन दिये। 

किरण देवी की तेजस्विता की प्रखर किरणों से अकबर की इच्छाएं भभकती जा रही थी और जैसे ही अकबर ने उस राजपूत रमणिका को स्पर्श करने के लिये अपने हाथ बढ़ाये, उसी पल ही उस रणचण्डी ने कमर से तेज कटार निकाली और शुंभ-निशुम्भ की तरह उसे धरती पर पटककर छाती पर पैर रखकर कहा – ‘नीच! नराधम! भारत का सम्राट होते हुए भी तूने इतना बड़ा पाप करने की कुचेष्टा की। भगवान ने सती साध्वियों की रक्षा के लिये तुझे बादशाह बनाया है और तू उनपर जोर जबरदस्ती करता है। दुष्ट! अधम! तू बादशाह नहीं, नीच है, पिचाश है; तुझे पता नहीं कि मैं किस कुल की कन्या हूँ। सारा भारत तेरे पाँवों पर सिर झुकाता है, परंतु मेवाड़ का सिसोदिया-वंश का अभी भी सिर ऊँचा खड़ा है। 

मैं उसी पवित्र राजवंश की कन्या हूँ। मेरी धमनियों में बप्पा रावल और साँगा का रक्त है। मेरे अंग-अंग में पावन क्षत्रिय वीरांगनाओं के चरित्र की पवित्रता है। तू बचना चाहता है, तो मन में सच्चा पश्चाताप करके अपनी माता की शपथ खाकर प्रतिज्ञा कर कि अब से ‘नौरोजी’ का मेला नहीं होगा और किसी भी नारी पर तू अपनी गन्दी दृष्टी नहीं डालेगा। नहीं तो, आज इसी तेज धार कटार से तेरा काम तमाम करती हूँ।

बीकानेर की विरांगना राजरानी किरण देवी

अकबर के शरीर का खून सूख गया। उसके दोनों हाथ थरथर काँपने लगे उसने करुण स्वर में बड़ा पश्चात्ताप करते हुए हाथ जोडकर कहा, ‘माँ ! क्षमा कर दो, मेरे प्राण तुम्हारे हाथों में है, पुत्र प्राणों की भीख चाहता है। उसने प्रण किया कि अब नौरोज का मेला और मीना बाजार नहीं सजेगा। यह अकबर के चरित्र के बड़े कलंक हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता।

किरण देवी सतीत्व की प्रखर किरण थीं, जिसके आलोक ने सारे देश को पतिव्रत्य की आभा से जगमगा दिया। शत शत नमन है ऐसी विरंगना के श्री चरणों में जिन्होने इतने बड़े सम्राट बादशाह अकबर को भी अपनी जान की भीख मांगने एवं अपने चरणों पर झुकने को मजबूर कर दिया ।

कुछ इतिहासकरों का मत है कि किरण देवी का नाम जयावती (या जोशीबाई) था। नाम कुछ भी हो, काम से ही लोगों की प्रसिद्धि होती है एवम राजरानी किरण देवी ने दिखा दिया कि नारी सिर्फ कहलाने को अबला होती है। नारी से बलवान कोई राजा महाराजा सम्राट बादशाह कोई नहीं। नारी कभी माँ, बहन, बेटी हर रूप में वंदनीय है। 

बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeeswarar Temple) || बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी के रोचक तथ्य ||

बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeeswarar Temple)

बृहदेश्वर या बृहदीश्वर मंदिर दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। तमिल भाषा में इसे बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर भगवान शिवशंकर को समर्पित है। यह मंदिर अपनी सुन्दरता, वास्‍तुशिल्‍प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचता है। इसे देखने हर साल लाखों की संख्या में दुनियाभर से पर्यटक आते है।

बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeeswarar Temple) || बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी के रोचक तथ्य ||

बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी का इतिहास

इस भव्य मंदिर के प्रवर्तक राजाराज -1 चोल थे। राजाराज चोल 1 दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य के महान सम्राट थे, जिन्होंने यहाँ 985 से 1014 तक राज किया। उनके शासन में चोलों ने दक्षिण में श्रीलंका तथा उत्तर में कलिंग तक साम्राज्य फैलाया। इस मंदिर का निर्माण 1003-1010 ई. के बीच किया गया था। उनके नाम के कारण ही इसे राजराजेश्वर मंदिर नाम भी दिया गया है। यह मंदिर उनके शासनकाल की वास्तुकला की एक श्रेष्ठ उपलब्धि है।

बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी के रोचक तथ्य

बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeeswarar Temple) || बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी के रोचक तथ्य ||

  1. इस मंदिर के निर्माण में लगभग 1,30,000 टन ग्रेनाइट का उपयोग किया गया था, जबकि मंदिर के 100 कि.मी. की दूरी तक ग्रेनाइट की कोई खदान मौजूद नहीं है। संसार में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जिसे ग्रेनाइट से बनाया गया था।
  2. इसकी ऊंचाई लगभग 66 मीटर (216. 535 फुट) है और जिसे विश्व के सबसे ऊँचे मंदिरों में गिना जाता है।
  3. मंदिर में अन्दर जाने पर आपको गोपुरम्‌ के भीतर एक चौकोर मंडप बना हुआ दिखाई देगा।
  4. वही चबूतरे पर भगवान् शिव की सवारी नन्दी जी (सांड) की मूर्ति भी हैं। इस प्रतिमा की लम्बाई 6 मीटर, चौड़ाई 2.6 मीटर तथा ऊंचाई 3.7 मीटर है।
  5. देश में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है।
  6. मंदिर के सबसे ऊपर एक कुंभम् (कलश) बना है, जिसे केवल एक ही पत्थर से बनाया गया है और इसका वज़न 80 टन का है।
  7. गर्भ गृह के अंदर 8.7 मीटर ऊंचाई का विशाल लिंग भी है।बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeeswarar Temple) || बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी के रोचक तथ्य ||
  8. अंदर के मार्ग में दीवारों पर दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती और भिक्षाटन, वीरभद्र कालांतक, नटेश, अर्धनारीश्वर और अलिंगाना रूप में शिव की प्रतिमा बनी हुई है।
  9. अंदर की ओर दीवार के निचले हिस्से में भित्ति चित्र चोल साम्राज्य के समय के उत्कृष्ट उदाहरण है।
  10. साल 1987 में यूनेस्को द्वारा इस मंदिर को विश्व विरासत स्थल भी घोषित किया जा चुका है।
  11. यहाँ पर कार्तिक के महीने में कृत्तिका नाम से एक त्यौहार भी मनाया जाता है, इसके अलावा वैशाख (मई) के महीने में नौ दिन का एक उत्सव ओर मनाया जाता है जिसमें राजा राजेश्वर के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन किया जाता था।
  12. भारतीय रिजर्व बैंक ने 01 अप्रैल 1954 को 1000 रुपये का नोट जारी किया था, जिस पर इस बृहदेश्वर मंदिर की भव्य तस्वीर को अंकित किया गया था।
  13. भारत सरकार ने वर्ष 2010 में इस मंदिर के निर्माण के एक हजार वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित मिलेनियम उत्सव के दौरान एक हजार रुपये का स्मारक सिक्का भी जारी किया था। इस सिक्के का वजन 35 ग्राम है जिसे 80 प्रतिशत चाँदी और 20 प्रतिशत तांबे से मिलाकर बनाया गया था।
  14. इस सिक्के के एक तरफ सिंह स्तंभ के चित्र के साथ हिंदी में सत्यमेव जयते, भारत तथा धनराशि हिंदी तथा अंग्रेजी दोनो भाषा में लिखी गई है। वही सिक्के के
  15. दूसरी ओर राजाराज चोल- I की तस्वीर बनी हुई है, जिसमें वे हाथ जोड़कर मंदिर में खड़े हुए हैं।
  16. इस मंदिर की एक और विशेषता यह भी है कि गोपुरम (पिरामिड की आकृति जो दक्षिण भारत के मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थित होता है) की छाया जमीन पर नहीं पड़ती।
बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeeswarar Temple) || बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी के रोचक तथ्य ||

बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeeswarar Temple)

व्रत या उपवास

व्रत या उपवास

दिनभर के लिए अन्न या जल या अन्य भोजन या इन सबका त्याग व्रत कहलाता है। व्रत रखना एक तरफ धर्म से जुड़ा है तो वहीँ दूसरी तरफ स्वास्थ्य से जुड़ा है। व्रत रखने के नियम दुनिया को हिंदूधर्म की देन है। व्रत रखना एक पवित्र कर्म है और यदि इसे नियमपूर्वक नहीं किया जाता है, तो न तो इसका कोई महत्व है और न ही लाभ बल्कि इससे नुकसान भी हो सकते हैं। हम व्रत बिल्कुल भी नहीं रखते हैं तो भी हमको इस कर्म का भुगतान करना ही होगा। राजा भोज के राजमार्तण्ड में 24 व्रतों का उल्लेख है।

व्रत या उपवास

व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं?

हेमादि में 700 व्रतों के नाम बताए गए हैं। गोपीनाथ कविराज ने 1622 व्रतों का उल्लेख अपने व्रतकोश में किया है। व्रतों के प्रकार तो मूलत: तीन है:- 1. नित्य, 2.नैमित्तिक और 3.काम्य।

1.नित्य व्रत उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर भक्ति या आचरणों पर बल दिया जाता है, जैसे सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति का संकल्प लेना आदि नित्य व्रत हैं। इनका पालन नहीं करते से मानव दोषी माना जाता है ।

2.नैमिक्तिक व्रत उसे कहते हैं जिसमें किसी प्रकार के पाप हो जाने या दुखों से छुटकारा पाने का विधान होता है। अन्य किसी प्रकार के निमित्त के उपस्थित होने पर चांद्रायण प्रभृति, तिथि विशेष में जो ऐसे व्रत किए जाते हैं वे नैमिक्तिक व्रत हैं।

3.काम्य व्रत किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं,जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए, धन- समृद्धि के लिए या अन्य सुखों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले व्रत काम्य व्रत हैं।

व्रतों का वार्षिक चक्र :-

1.साप्ताहिक व्रत :सप्ताह में एक दिन व्रत रखना चाहिए। यह सबसे उत्तम है।

2 . पाक्षिक व्रत : 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष में चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी, अमावस्या और पूर्णिमा के व्रत महतवपूर्ण होते हैं। उक्त में से किसी भी एक व्रत को करना चाहिए।

3.त्रैमासिक : वैसे त्रैमासिक व्रतों में प्रमुख है नवरात्रि के व्रत। हिंदू माह अनुसार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन मान में नवरात्रि आती है। उक्त प्रत्येक माह की प्रतिपदा यानी एकम् से नवमी तक का समय नवरात्रि का होता है। इन नौ दिनों तक व्रत और उपवास रखने से सभी तरह के क्लेश समाप्त हो जाते हैं।

4.छह मासिक व्रत : चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं। उक्त दोंनों के बीच छह माह का अंतर होता है। इसके अलावा

5.वार्षिक व्रत : वार्षिक व्रतों में पूरे श्रावण मास में व्रत रखने का विधान है। इसके अलवा जो लोग चतुर्मास करते हैं उन्हें जिंदगी में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता है। इससे यह सिद्ध हुआ की व्रतों में 'श्रावण माह' महत्वपूर्ण होता है। सोमवार नहीं पूरे श्रावण माह में व्रत रखने से हर तरह के शारीरिक और मानसिक कलेश मिट जाते हैं।

उपवास के प्रकार:- 1.प्रात: उपवास, 2.अद्धोपवास, 3.एकाहारोपवास, 4.रसोपवास, 5.फलोपवास, 6.दुग्धोपवास 7.तक्रोपवास, 8.पूर्णोपवास, 9.साप्ताहिक उपवास, 10.लघु उपवास, 11.कठोर उपवास, 12.टूटे उपवास, 13.दीर्घ उपवास। बताए गए हैं, लेकिन हम यहां वर्ष में जो व्रत होते हैं उसके बारे में बता रहे हैं।

व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं?

1.प्रात: उपवास- 

इस उपवास में सिर्फ सुबह का नाश्ता नहीं करना होता है और पूरे दिन और रात में सिर्फ 2 बार ही भोजन करना होता है।

2.अद्धोपवास- 

इस उपवास को शाम का उपवास भी कहा जाता है और इस उपवास में सिर्फ पूरे दिन में एक ही बार भोजन करना होता है। इस उपवास के दौरान रात का भोजन नहीं खाया जाता।

3.एकाहारोपवास- 

एकाहारोपवास में एक समय के भोजन में सिर्फ एक ही चीज खाई जाती है, जैसे सुबह के समय अगर रोटी खाई जाए तो शाम को सिर्फ सब्जी खाई जाती है। दूसरे दिन सुबह को एक तरह का कोई फल और शाम को सिर्फ दूध आदि।

4.रसोपवास- 

इस उपवास में अन्न तथा फल जैसे ज्यादा भारी पदार्थ नहीं खाए जाते, सिर्फ रसदार फलों के रस अथवा साग-सब्जियों के जूस पर ही रहा जाता है।दूध पीना भी मना होता है,क्योंकि दूध की गणना भी ठोस पदार्थों में की जा सकती है।

5.फलोपवास- 

कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों या भाजी आदि पर रहना फलोपवास कहलाता है।अगर फल बिलकुल ही अनुकूल न पड़ते हो तो सिर्फ पकी हुई साग-सब्जियां खानी चाहिए।

6.दुग्धोपवास-

दुग्धोपवास को 'दुग्ध कल्प' के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास में सिर्फ कुछ दिनों तक दिन में 4-5 बार सिर्फ दूध ही पीना होता है।

7.तक्रोपवास- 

तक्रोपवास को 'मठाकल्प' भी कहा जाता है। इस उपवास में जो मठा लिया जाए, उसमें घी कम होना चाहिए और वो खट्टा भी कम ही होना चाहिए। इस उपवास को कम से कम 2 महीने तक आराम से किया जा सकता है।

8.पूर्णोपवास- 

बिलकुल साफ-सुथरे ताजे पानी के अलावा किसी और चीज को बिलकुल न खाना पूर्णोपवास कहलाता है। इस उपवास में उपवास से संबंधित बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है।

9.साप्ताहिक उपवास- 

पूरे सप्ताह में सिर्फ एक पूर्णोपवास नियम से करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है।

10.लघु उपवास- 

3 से लेकर 7 दिनों तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।

11.कठोर उपवास- 

जिन लोगों को बहुत भयानक रोग होते हैं यह उपवास उनके लिए बहुत लाभकारी होता है। इस उपवास में पूर्णोपवास के सारे नियमों को सख्ती से निभाना पड़ता है। 

12.टूटे उपवास- 

इस उपवास में 2 से 7 दिनों तक पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर रहकर दोबारा उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास रखने का और हल्का भोजन करने का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि इस उपवास को करने का मकसद पूरा न हो जाए।

13.दीर्घ उपवास- 

दीर्घ उपवास में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक करना होता हैजिसके लिए कोई निश्चित समय पहले से ही निर्धारित नहीं होता। इसमें 21 से लेकर 50-60 दिन भी लग सकते हैं। अक्सर यह उपवास तभी तोड़ा जाता है,जब स्वाभाविक भूख लगने लगती है अथवा शरीर के सारे जहरीले पदार्थ पचने के बाद जब शरीर के जरूरी अवयवों के पचने की नौबत आ जाने की संभावना हो जाती है।

व्रत या उपवास के स्वास्थ्य लाभ

उपवास अगर सही नियम और तरीके से किए जाएं तो सेहत के लिए काफी फायदेमंद हो सकते हैं।वास्तव में व्रत का संबंध हमारे शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण से होता है। उपवास में भोजन का त्याग कर खाली पेट रहना पड़ता है, लेकिन आजकल के दौर में तो लोग उपवास के नाम पर बहुत सारी चीजें खाने लगे हैं। जिससे उन्हें कई तरह कि बीमारियों से गुजरना पड़ता है।

व्रत या उपवास के स्वास्थ्य लाभ

वैसे तो व्रत स्वास्थ की सलामती के लिए रखा जाता है, लेकिन इन सभी चीजों के कारण हमारे शरीर को नुकसान भी पहुंच सकता है। इसलिए व्रत में केवल फलाहार का ही सेवन करना चाहिए जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहे। व्रत रखने से पांचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर में जमा विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैँ, जिससे हमारा पांचन तंत्र ठीक रहता है।

उपवास रखने से शांत और स्थिर रहने का अवसर भी मिलता है जिसके कारण मानसिक तनाव भी नहीं रहता। मोटापे को कम करने में भी व्रत व उपवास एक अलग ही भूमिका निभाता है। व्रत रखने से शरीर तो स्वस्थ रहता ही है साथ ही पेट से संबंधित बीमारियों की रोकथाम हो जाती है।

इससे कब्ज, गैस, एसिडीटी, अजीर्ण, अरूचि, सिरदर्द, बुखार, मोटापा जैसे कई रोगों का नाश हो जाता है। व्रत करने से आध्यत्मिक शक्ति तो बढ़ती ही है।साथ ही, ज्ञान, विचार, पवित्रता बुद्धि का विकास होता है। इसी कारण उपवास व्रत को पूजा पद्धति में भी शामिल किया गया है।

व्रत रखने का एक लाभ यह भी अगर मौसम परिवर्तन की अवस्था में उपवास रखने पर ऋतु संक्रमण काल की बीमारियां पास नहीं आती। जिससे हमें मौसमी बीमारियों का खतरा नहीं होता। इसके अलावा मनुष्य में भूखे रहने व भूख सहने की इच्छा शक्ति का विकास होता है। उपवास रखने से खाने से नियंत्रण होने के कारण किसी भी बीमारी का खतरा नहीं होता जिसके कारण हमारा शरीर स्वस्थ रहता है।

उपवास अगर सही नियम और तरीके से किए जाएं तो सेहत के लिए काफी फायदेमंद हो सकते हैं। कई लोग उपवास के नाम पर सामान्य दिनों की तुलना में ज्यादा खा लेते हैं, इससे उपवास का फायदा मिलने के बजाय नुकसान हो सकता है। खान-पान से जुड़ी ऐसी कुछ गलतियां जो लोग उपवास के दौरान करते हैं और इससे सेहत को नुकसान पहुंच सकता है या फिर उपवास से मिलने वाला फायदा नहीं मिलता।

ये बादल...

ये बादल..

Oos ki Boond
अभी मै कुछ हूं नहीं,
अभी मेरा नाम बाकी है 
ये तो बादल है,
अभी तो बरसात होना बाकी है...❣️

ये बादल....

कभी इन बादलों को गौर से देखो

कितनी आकृतियां बनाती हैं ये

मानो बादलों में अटखेलियां करती हैं

कभी दिल बनकर दिल की धड़कन बढ़ा जातीं हैं ये

और स्मृतियों के अनसुलझे से

और स्मृतियों के वातायन से

भूली हुई प्रेम कहानी के पट खोल जाती हैं ये

दिल की नादानियां, जमाने की बंदिशे

जाने कितने दिलों की नजदीकियां दिखा जाती हैं ये

लेकिन ये मस्तमौला फुदकते मेघ 

प्रेम की रसभरी बूंदों से भिगोते हैं

जब इस धरा के ह्रदय को तो शायद

ये अपने दिल को कुर्बान कर देते हैं

औरों के सुख के लिए

बिल्कुल हमारे तुम्हारे दिलों के जैसे...

Oos ki Boond

बादल से आज कहा मैंने बड़ी देर लगा दी आने में, 
सागर थोड़े ही मांगा था, बूंदों सी प्यास बुझाने में...
❣️

मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi)

मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi)

आज मशहूर पार्श्व गायक मोहम्मद रफी की जयंती है। उनकी जयंती पर उन्हें नमन। मोहम्मद रफी को लोग प्यार से रफी साहब बोलते हैं। उनके पहले और बाद में मुंबई महानगरी में कई गायक आए और कई चले गए, लेकिन भारतीय फिल्म जगत में रफी साहब जैसी प्रतिभाएं अनंत काल तक जीवित रहती हैं। 

मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi)

रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर,1924 को हुआ था। वह जितने अच्छे फनकार थे, उतने ही अच्छे इंसान भी थे। अमृतसर के छोटे गांव कोटला सुल्तानपुर के ये रहने वाले थे। बचपन से ही ये अपने गांव के फकीर के साथ गीत गुनगनाया करते थे। धीरे-धीरे यह सूफी फकीर उनके गाने की प्रेरणा बनता गया और वह मोहम्मद रफी से उस्ताद मोहम्मद रफी बन गए। अपने जमाने में हिंदुस्तान के संगीत प्रेमियों के दिलों की धड़कन कहे जाने वाले रफी साहब का निकनेम "फीको" था।

मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi)

रफी साहब के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इनके बड़े भाई सलून चलाया करते थे। मोहम्मद रफी की पढ़ाई में कोई रूचि नहीं थी। ऐसे में उनके पिताजी ने उन्हें बड़े भाई के साथ सलून में काम सीखने के लिए भेज दिया।

वहां यह सलून में काम करने लगे। एक दिन उनका साला मोहम्मद हनीफ वहां आया। उसने रफी में प्रतिभा और संगीत के प्रति जुनून देखा। यह देखकर उसने, उनका उत्साह बढ़ाया। हमीद ने ही रफी साहब की मुलाकात नौशाद अली से करवाई। जिसके बाद उन्हें ‘हिंदुस्तान के हम हैं, हिंदुस्तान हमारा’ की कुछ लाइने गाने का मौका मिला।

मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi)

रफी काी पहली सार्वजनिक परफॉर्मेंस 13 साल की उम्र में हुई, जब उन्हें महान केएल सहगल के एक संगीत कार्यक्रम में गाने की अनुमति दी गई। उसके बाद रफी साहब ने पीछे मुड़कर नही देखा।

1948 में, रफी ने राजेंद्र कृष्ण द्वारा लिखित ‘सुन सुनो ऐ दुनिया वालों बापूजी की अमर कहानी’ गाया।यह गाना बहुत लोकप्रिय हुआ। इस गाने के हिट होने के बाद उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के घर में गाने के लिए आमंत्रित किया गया था।

रफी साहब ने नौशाद के अलावा कई बड़े कम्पोजर्स के साथ काम किया था। एस.डी बर्मन, शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, ओपी नैय्यर और कल्य़ाणजी आनंदजी समेत अपने दौर के लगभग सभी लोकप्रिय संगीतकारों के साथ मोहम्मद रफी ने गाना गाया था।

31 जुलाई 1980 को मात्र 55 साल की उम्र में रफी साहब का निधन हो गया। उनके अंतिम संस्कार मुंबई में हुआ था। तेज बारिश के बावजूद इसकी रिकॉर्डिंग की गई थी और उसी रिकॉर्डिंग का एक हिस्सा बाद में रिलीज हुई एक हिंदी फ़िल्म में इस्तेमाल किया गया । यह मुंबई में अब तक के सबसे बड़े अंतिम संस्कार जुलूसों में से एक था, जिसमें 10,000 से अधिक लोग शामिल हुए थे।

रफी साहब ने हिंदुस्तान के संगीत प्रेमियों को कई अविस्मरणीय गीतों की सौगात दी। आज भले ही रफी साहब हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके गए गीत आज भी जिंदा है। अपने अदभुत गीतों के माध्यम से वे हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे।

मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi)

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Mohammed Rafi

Today is the birth anniversary of famous playback singer Mohammad Rafi. Tribute to him on his birth anniversary. People fondly call Mohammed Rafi as Rafi Sahab. Many singers have come and gone in Mumbai Metropolitan Region before and after him, but talents like Rafi Sahab live on for eternity in the Indian film industry.

Rafi Sahab was born on December 24, 1924. He was as good a person as he was a good artist. He was a resident of Kotla Sultanpur, a small village in Amritsar. Since childhood, he used to sing songs with the fakir of his village. Gradually this Sufi Fakir became the inspiration of his singing and he became Ustad Mohammad Rafi from Mohammad Rafi. In his time, the nickname of Rafi Sahab, who was called the heartbeat of the music lovers of India, was "Fico".

An interesting thing about Rafi Sahab is that his elder brother used to run a saloon. Mohammad Rafi had no interest in studies. In such a situation, his father sent him to learn work in the saloon with his elder brother.

मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi)

There he started working in the saloon. One day his brother-in-law Mohammad Hanif came there. He saw in Rafi the talent and passion for music. Seeing this, he encouraged them. It was Hameed who got Rafi Sahab to meet Naushad Ali. After which he got a chance to sing a few lines of 'Hindustan Ke Hum Hain, Hindustan Hamara'.

Rafi's first public performance was at the age of 13, when he was allowed to sing in a concert by the great KL Saigal. After that Rafi Sahab did not look back.

In 1948, Rafi sang Sun Suno Ae Duniya Walon Bapuji Ki Amar Kahani written by Rajendra Krishna. The song became very popular. After this song became a hit, she was invited to sing at the then Prime Minister Jawaharlal Nehru's house.

Apart from Naushad, Rafi Sahab had worked with many big composers. Mohammed Rafi sang with almost all the popular composers of his era including SD Burman, Shankar-Jaikishan, Laxmikant Pyarelal, OP Nayyar and Kalyanji Anandji.

Rafi Sahab died on 31 July 1980 at the age of just 55. His last rites took place in Mumbai. It was recorded despite heavy rain and a portion of the same recording was used in a Hindi film released later. It was one of the largest funeral processions ever held in Mumbai, with over 10,000 people attending.

Rafi Sahab gifted many unforgettable songs to the music lovers of India. Even though Rafi sahab is not among us today, his songs are still alive. Through his wonderful songs, he will always be alive in the hearts of people.

दिल (मानव हृदय) के बारे में रोचक तथ्य || Amazing Facts About Human Heart ||

दिल (मानव हृदय)

दिल मनुष्य के शरीर का सबसे अहम हिस्सा होता है जिसके बिना मनुष्य के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ह्रदय पुरातन काल से ही काफी चर्चा का बिषय रहा है और बढ़ते समय के साथ लोगों के मन में, दिल के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने की तीव्र जिज्ञासा रही है।

दिल (मानव हृदय) के बारे में रोचक तथ्य || Amazing Facts About Human Heart ||

सबसे पहली बात हमारा दिल लेफ्ट या राइट साइड में नहीं होता हैं, बल्कि दिल ये छाती के बीचो बीच होता हैं। हृदय पंजरे के नीचे, सीने के केंद्र में और फेफड़ों के बीच में स्थित होता है। हमारा ह्रदय जीवन भर में 16 करोड़ लीटर खून पंप करता हैं। जिसका मतलब ये हैं कि यदि आप किसी नल को 45 दिनो तक खुला छोड़ दे। एक स्वस्थ्य मनुष्य के शरीर में औसतन 5 से 6 लीटर खून होता है। ये शरीर के भार का 7 फीसदी होता हैं। यदि दिल को शरीर से अलग कर दिया जाएगा। तो ये तबतक धड़कता रहता हैं। जबतक इसे पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलता रहता हैं। क्योंकि इसका स्वंय का विद्युत आवेग होता हैं। चार हफ्ते की प्रेग्नेंसी के बाद बच्चे का दिल धड़कना शुरू होता हैं।

दिल (मानव हृदय) के बारे में रोचक तथ्य || Amazing Facts About Human Heart ||

हम जैसे गाना सुनते हैं हमारे दिल की धड़कन उसी के अनुसार बदल जाती हैं। हमारा दिल हर दिन इतनी एनर्जी उत्पन्न करता की जितना एक ट्रक को 32 किलोमीटर चलाने के लिए काफी होगा। पैदा हुए बच्चे की दिल की धड़कन सबसे तेज होती हैं। (70-160 beat/min) बुढ़ापे में दिल की धड़कन सबसे स्लो होती हैं। (30-40 beat / min) दिल का वजन 250 से 350 होता हैं। यह 12 सेमी लम्बा, 8 सेमी चौड़ा व 6 सेमी मोटा होता हैं। हमारा दिल एक मिनट में 72 बार एक दिन में एक लाख बार व पूरे जीवन में 2.5 अरब बार धड़कता हैं। एक टूटा हुआ दिल भी हार्ट अटैक की तरह महसूस करता हैं। हार्ट अटैक के सबसे ज्यादा चांस सोमवार की सुबह व क्रिसमस के मौके पर होता हैं। ऐसा रिपोर्ट्स की माने तो हार्ट अटैक का मामला औरतो व पुरूषो में अलग-अलग होता हैं।

दिल के बारे में रोचक तथ्य:

दिल (मानव हृदय) के बारे में रोचक तथ्य || Amazing Facts About Human Heart ||
  1. दिल का आकार औसतन एक वयस्क की मुट्ठी के बराबर होता है। 
  2. यदि शरीर की सभी रक्त वाहिकाओं की लम्बाई को मापा जाए, तो यह लगभग 60,000 मील से अधिक होती है।

  3. एक दिल हर दिन लगभग 100,000 बार धड़कता है
  4. शरीर में लगभग 100,000 मील रक्त वाहिकाएं हैं
  5. गर्भाधान के 4 सप्ताह बाद दिल धड़कना शुरू कर देता है
  6. दिल हर दिन लगभग 2000 गैलन रक्त पंप करता है
  7. दिल मस्तिष्क या शरीर के बिना कार्य कर सकता है। इसकी अपनी विद्युत प्रणाली है जिसे कार्डियक चालन प्रणाली के रूप में जाना जाता है, जो हृदय की लय को नियंत्रित करती है। 
  8. हंसना, दिल के लिए अच्छा होता है। यह तनाव को कम करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करता है।दिल (मानव हृदय) के बारे में रोचक तथ्य || Amazing Facts About Human Heart ||
  9. व्यक्ति के ब्रेन डेड होने के बाद भी या दिल को हटा दिए जाने के बाद भी दिल तब तक धड़कता रहता है, जब तक उसके पास ऑक्सीजन होती है
  10. परी मक्खी (ततैया) में किसी भी जीवित प्राणी का सबसे छोटा दिल होता है और स्तनधारियों में, व्हेल का दिल सबसे बड़ा होता है
  11. औसतन एक पुरुष का दिल एक महिला के दिल से 2 औंस भारी होता है
  12. एक महिला का दिल एक पुरुष के दिल की तुलना में थोड़ा तेज धड़कता है
  13. 1893 में पहली ओपन-हार्ट सर्जरी संयुक्त राज्य अमेरिका में डैनियल हेल विलियम्स द्वारा की गई थी
  14. एक नवजात शिशु की हृदय गति प्रति मिनट 70 से 190 बीट्स होती है जबकि एक औसत वयस्क की हृदय गति 60 और 100 बीट्स प्रति मिनट होती है।
  15. दिल का टूटना संभव है, दिल टूटने की स्थिति को ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम कहा जाता है, जिसमें हार्ट अटैक के समान लक्षण प्रगट हो सकते हैं। हार्ट अटैक और दिल के टूटने की स्थिति में अंतर केवल यह है कि, हार्ट अटैक दिल की बीमारी से सम्बंधित होता है और ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम (टूटा हुआ दिल) एक भावनात्मक या शारीरिक तनाव से सम्बंधित स्थिति है, जो तनाव हार्मोन की अधिकता के कारण उत्पन्न होती है। टूटे हुए दिल की स्थिति या ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम, मौत का कारण भी बन सकती है, लेकिन बेहद दुर्लभ है।

स्वस्थ आहार और स्वस्थ जीवन शैली दिल के स्वास्थ्य को बनाए रखने में बहुत महत्वपूर्ण है। अक्सर तनाव, व्यायाम की कमी, अस्वास्थ्यकर आहार की आदतों के कारण दिल का दौरा, दिल की विफलता, हृदय रोग आदि जैसी स्थितियां पैदा होती हैं, जो हृदय और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। एक स्वस्थ जीवन के लिए दिल को हमेशा स्वस्थ बनाए रखें।

श्रीनिवास रामानुजन् ( Srinivas Ramanujan )

श्रीनिवास रामानुजन् (Srinivas Ramanujan)

श्रीनिवास रामानुजन् ( Srinivas Ramanujan)(जन्म: 22 दिसम्बर 1887, मृत्यु: 20 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। जिनका जन्म 22 दिसम्बर 1887 को भारत के दक्षिणी भूभाग में स्थित कोयम्बटूर के ईरोड नामके गांव में हुआ था। वह पारम्परिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। इनकी माता का नाम कोमलताम्मल और इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था। इनका बचपन मुख्यतः कुंभकोणम में बीता था, जो कि अपने प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है।
श्रीनिवास रामानुजन् ( Srinivas Ramanujan )

बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकास सामान्य बालकों जैसा नहीं था। वह तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे। लोगों को यह संदेह हो चला था कि कहीं रामानुजन गूंगे तो नहीं हैं। 

प्रारंभिक शिक्षा में इनका कभी भी मन नहीं लगा। बाद में 10 वर्ष की आयु में प्राइमरी परीक्षा में रामानुजन पूरे जिले में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए। उन्हें प्रश्न पूछना बहुत ज्यादा पसंद था। उनके प्रश्न अध्यापकों को कभी-कभी बहुत अटपटे लगते थे। जैसे कि संसार में पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों के बीच की दूरी कितनी होती है? 

रामानुजन बहुत शांत स्वभाव के थे। उनका व्यवहार बहुत ही मधुर था। उनका सामान्य से अधिक स्थूल शरीर और जिज्ञासा से भरी आंखें इन्हें एक अलग पहचान देती थी। रामानुजन के सहपाठियों के अनुसार इनका व्यवहार इतना सौम्य था कि कोई भी उनसे नाराज हो ही नहीं सकता था।
श्रीनिवास रामानुजन् ( Srinivas Ramanujan )

प्रारम्भ से ही रामानुजन का गणित के प्रति रुझान बहुत ज्यादा था। एक बार इनके विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने यह भी कहा था कि विद्यालय में होने वाली परीक्षाओं के मापदंड रामानुजन के लिए लागू नहीं होते हैं। हाई स्कूल की परीक्षा में इन्हें गणित और अंग्रेजी में अच्छे अंक लाने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति मिली और आगे कॉलेज की शिक्षा के लिए प्रवेश भी मिला। रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम इतना प्रगाढ़ हो गया था कि वह दूसरे विषयों पर बिल्कुल भी ध्यान ही नहीं देते थे। यहां तक कि वह इतिहास और जीव विज्ञान की कक्षा में भी गणित के प्रश्नों को हल किया करते थे। नतीजा यह हुआ कि रामानुजन 11वीं की कक्षा में गणित छोड़कर बाकी सभी विषयों में फेल हो गए और उनको छात्रवृत्ति मिलनी बंद हो गई। 

घर की आर्थिक स्थिति खराब और ऊपर से छात्रवृत्ति भी नहीं मिल रही थी, जिसकी वजह से रामानुजन को बहुत ही कठिन समय का सामना करना पड़ा। घर की स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने गणित के कुछ ट्यूशन और खाते- बही खाते का काम करना प्रारंभ कर दिया। कुछ समय पश्चात 1907 में रामानुजन ने फिर से 12वीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी और फिर से फेल हो गए और इसी के साथ उनके पारंपरिक शिक्षा की इतिश्री हो गई।          
      
रामानुजन ने वर्ष 1918 में 31 साल की उम्र में गणित के 120 सूत्र लिखे और अपनी शोध को अंग्रेजी प्रोफ़ेसर जी.एच. हार्डी के पास भेजे। हार्डी ने उस शोध को पढ़ा और उन शोध पत्रों से वे अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्हें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी (cambridge university) आने का न्योता दिया। फिर अक्टूबर 1918 में रामानुजन को ट्रिनिटी कॉलेज की सदस्यता प्रदान की गयी। ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय थे। 
श्रीनिवास रामानुजन् ( Srinivas Ramanujan )

26 अप्रैल 1920 को मात्र 33 वर्ष की आयु में TB(Tuberculosis) बीमारी के कारण रामानुजन ने अपने जीवन की अंतिम सांस ली। श्रीनिवास जी को खोना सम्पूर्ण विश्व के लिए अपूर्णीय क्षति थी। रामानुजन ने अपने 33 वर्ष के जीवन में 3884 समीकरण बनाये, जिनमें से कई तो आज भी अनसुलझी हैं। गणित में 1729 को रामानुजन नंबर से जाना जाता हैं। भारत के तमिलनाडु राज्य में रामानुजन के जन्मदिन को IT दिवस और भारत में NATIONAL MATHEMATICS DAY रूप में बनाया जाता हैं। श्रीनिवास रामानुजन को “MAN WHO KNEW INFINITY” कहा जाता हैं। 2014 में इनके जीवन में तमिल फिल्म “रामानुजन का जीवन” बनाई गयी थी। 2015 में इन पर एक और फिल्म आई जिसका नाम “THE MAN WHO KNEW INFINTY ” था। 

श्रीनिवास रामानुजन के बारे में रोचक तथ्य | Interesting facts about Srinivasa Ramanujan 
उनकी जीवन कहानी भी उनकी ही तरह रोचक है:
श्रीनिवास रामानुजन् ( Srinivas Ramanujan )
  • महान गणितज्ञ Srinivasa Ramanujan को man Who Knew Infinity कहा जाता है, क्योंकि इनके गणित में दिए योगदान में सबसे ज्यादा सूत्र Infinity सीरीज के थे।
  • क्या आप जानते है, श्रीनिवास रामानुजन जैसे गणितज्ञ कभी स्कूल जाना नही चाहते थे।
  • श्रीनिवास रामानुजन् अपने गणित के पेपर को आधे से कम समय में हल कर लेते थे।
  • इन्होंने 11 वर्ष की उम्र में ही college के लेवल की गणित सिख ली थी। और 13 वर्ष की उम्र आते आते ये अपनी थ्योरम बनाने लग गए थे।
  • गणित में अपनी योग्यता के कारण रामानुजन को कॉलेज से स्कॉलरशिप मिली लेकिन उनका ध्यान हमेशा गणित में रहता। इस कारण वो और विषयो में फेल हो गए और उनकी scholership छीन ली गई।
  • Srinivasa Ramanujan की कहानी में मोड़ जब आया जब वो 22 साल के थे और उनकी शादी 10 साल की जानकी नाम की लड़की से कर दी गई और उनको Hydrocele Testing नाम की एक अंडकोष की बीमारी हो गई। लेकिन रामानुजन के परिवार के पास पैसे ना होने के कारण डॉक्टरों ने उनका इलाज फ्री किया और वो बच गए।
  • श्रीनिवास रामानुजन् एक बार खुदकुशी करने वाले थे, लेकिन समय पर इंग्लैंड पुलिस पहुंच गई और उन्हें जेल ले ही जाने वाले थे कि प्रोफेसर होली ने उनके बारे में पुलिस को बोला की FRS के सदस्य है और कुछ दिन बाद वैज्ञानिक रामानुजन सच में FRS के सदस्य बन गए।     

पूर्व जन्म से जुड़े कुछ रोचक रहस्य

पूर्व जन्म से जुड़े कुछ रोचक रहस्य

मुझे नहीं पता कि ब्लॉग के पाठकों में कितने लोग पूर्व जन्म को मानते हैं, कितने नहीं। हो सकता है कुछ लोग इससे इत्तेफाक रखते होंगे और कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो पूर्व जन्म को नहीं मानते होंगे। ज्योतिष शास्त्र की एक बड़ी अवधारणा यह है कि मनुष्य के वर्तमान जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा अनायास घट रहा है, उसे पिछले जन्म का प्रारब्ध माना जाता है। पोस्ट आगे लिख रही हूँ, अपनी सहमति या असहमति जो भी हो, कमेंट बॉक्स में जरूर साझा कीजियेगा। 

पूर्व जन्म से जुड़े कुछ रोचक रहस्य

आइये जानते है पूर्व जन्म से जुड़े कुछ रोचक रहस्य 

आपने अक्सर सुना होगा जब किसी के घर की मृत्यु होती है, उसके पश्चात कुछ ही अवधि में किसी संतान के जन्म लेने पर कहा जाता है जाने वाला इस संतान के रूप में बापस आ गया। 

पूर्वजन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नि, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसारके जितने भी रिश्ते नाते हैं,सब मिलते हैं। क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है। वैसे ही सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है, जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है :-

ऋणानुबन्ध- 

पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा, आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये ।

शत्रुपुत्र-

पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा। हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होगा !

उदासीनपुत्र

इस प्रकार की सन्तान ना तो माता-पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है, बस उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है विवाह होने पर यह माता-पिता से अलग हो जाते हैं। 

सेवकपुत्र 

पूर्व जन्म में यदि हमने किसी की खूब सेवा की है, तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है, जो बोया है वही तो काटोगे। अपने माँ-बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी अन्यथा कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा। 

यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं। इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है। जैसे यदि कोई किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है, तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है। यदि गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बन्द करने के पश्चात घर से निकाल दिया, तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी। यदि किसी ने किसी निरपराध जीव को सताया है, तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा। इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा ना करें। क्योंकि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे, उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी। यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है, तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं। यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है, तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपये निकल गये। 

ज़रा सोचिये, "हम कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जायेंगे ?

मरने पर जो सोना-चाँदी, धन-दौलत बैंक में पड़ा रह गया, समझो वो व्यर्थ ही कमाया। औलाद अगर अच्छी और लायक है, तो उसके लिए कुछ भी छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है, खुद ही खा-कमा लेगी और औलाद अगर बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्ज़ी धन छोड़कर जाओ,वह चंद दिनों में सब बरबाद करके ही चैन लेगी। मैं, मेरा, तेरा और सारा धन यहीं का यहीं धरा रह जायेगा, कुछभी साथ नहीं जायेगा। साथ यदि कुछ जायेगा भी तो सिर्फ नेकियाँ ही साथ जायेंगी। इसलिए जितना हो सके नेकी करें, सत्कर्म करें और सभी के के साथ मिलजुल कर प्रेम से रहें। 

जब सती अनुसूया के तप से त्रिदेव बन गए शिशु

जब सती अनुसूया के तप से त्रिदेव बन गए शिशु..!

सती अनुसुइया महर्षि अत्रि की पत्नी थीं। अत्रि ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र और सप्तऋषियों में से एक थे। अनुसुइया का स्थान भारतवर्ष की सती-साध्वी नारियों में बहुत ऊँचा है। इनका जन्म अत्यन्त उच्च कुल में हुआ था। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र परम तपस्वी महर्षि अत्रि को इन्होंने पति के रूप में प्राप्त किया था। अत्रि मुनि की पत्नी जो दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थीं। इन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सेवा करके उन्हें प्रसन्न किया और ये त्रिदेव क्रमश: सोम, दत्तात्रेय और दुर्वासा के नाम से उनके पुत्र बने। अनुसुइया पतिव्रत धर्म के लिए प्रसिद्ध हैं। वनवास काल में जब राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में महर्षि अत्रि के आश्रम में पहुँचे तो अनुसूया ने सीता को पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी।

जब सती अनुसूया के तप से त्रिदेव बन गए शिशु..!

इस प्रसंग को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में इस तरह प्रस्तुत किया है-

अनुसुइया के पद गहि सीता । मिली बहोरि सुशील विनीता।।
ऋषि पत्नी मन सुख अधिकाई। आशीष देई निकट बैठाई।।
दिव्य वसन भूषण पहिराये। जे नित नूतन अमल सुहाये।।

 इसी आश्रम में सतीअनुसुइया ने उनके पातिव्रत्य धर्म की परीक्षा लेने आये ब्रह्मा.विष्णु.महेश को शिशु बना दिया था। चलिए जानते हैं क्या है माता अनसुइया द्वारा त्रिदेवों के शिशु बनाने की पौराणिक कथा। 

एक बार नारदजी ने मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां पार्वती को अपने सतीत्व और पवित्रता की चर्चा करते देखा।

जब सती अनुसूया के तप से त्रिदेव बन गए शिशु..!

नारद जी उनके पास पहुंचे और उन्हें अत्रि महामुनि की पत्नी अनुसूया के असाधारण पातिव्रत्य के बारे में बताया कि उनके समान पवित्र और पतिव्रता तीनों लोकों में नहीं है।ईर्ष्यावश तीनों ने सती अनसूया के पातिव्रत्य को खंडित के लिए अपने पतियों से ज़िद की। 

इस पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सती अनसूया के सतित्व और ब्रह्मशक्ति को परखने हेतु जब अत्रि ऋषि आश्रम से कहीं बाहर गए थे तब यतियों का भेष धारण कर आश्रम में पहुंचे तथा भिक्षा मांगने लगे, सती अनुसूया ने जब त्रिमूर्तियों का खाना देना चाहा तब वे एक स्वर में बोले, हे साध्वी,हमारा एक नियम है कि जब तुम निर्वस्त्र होकर भोजन परोसोगी, तभी हम भोजन करेंगे।अपने पातिव्रत्य पर आंच आता देख उन्होंने ऋषि अत्रि का स्मरण किया व दिव्य शक्ति से जाना कि वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं,, मुस्कुराते हुए माता अनुसूया बोली 'जैसी आपकी इच्छा'.... तीनों यतियों पर जल छिड़क कर उन्हें तीन प्यारे शिशुओं के रूप में बदल दिया। सुंदर शिशु देख कर माता अनुसूया के हृदय में मातृत्व भाव उमड़ पड़ा। शिशुओं को स्तनपान कराया, दूध-भात खिलाया, गोद में सुलाया। तीनों गहरी नींद में सो गए, तभी नारद जी लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती आ पहुंचे। नारद ने विनयपूर्वक अनसूया से कहा, माते, यह अपने पतियों को ढूंढ रही थी। कृपया इन्हें सौंप दीजिए।

जब सती अनुसूया के तप से त्रिदेव बन गए शिशु..!

अनसूया ने तीनों देवियों को प्रणाम करके कहा, ‘माताओं, झूलों में सोने वाले शिशु अगर आपके पति हैं तो इन्हें आप ले जा सकती हैं ! तीनों देवियों ने माता अनुसूया से क्षमा याचना की और बताया कि उन्होंने ही परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को बाध्य किया था, माता अनसूया ने त्रिदेवों को उनका रूप प्रदान किया। तीनों देव सती अनसूया से प्रसन्न हो बोले, देवी ? वरदान मांगो। त्रिदेव की बात सुन अनसूया बोलीः- “प्रभु ! आप तीनों मेरी कोख से जन्म लें ये वरदान चाहिए। कालान्तर में मतांतर से ब्रह्मा के अंश से चंद्र, विष्णु के अंश से दत्त तथा शिव के अंश से दुर्वासा का जन्म माता अनसूया के गर्भ से हुआ।

सती अनसुइया से जुड़ा एक प्रसंग यह भी है :-

जब सती अनुसूया के तप से त्रिदेव बन गए शिशु

कहा यह जाता है कि अत्रि मुनि गंगा स्नान के लिए प्रतिदिन प्रयागराज जाते थे। यह देख कर अनुसुइया ने एक बार ध्यानस्थ होकर कहा कि अगर मेरे तपोबल में शक्ति है तो गंगा को यहां हमारे आश्रम के पहाड़ से निकलना होगा। कहते हैं कि उनके तप के प्रभाव से पहाड़ से निकले स्रोत ने नदी का रूप ले लिया जो मंदिकनी या पयस्वनी कहलायी।

तेजपत्ता के अद्भुत फायदे

तेजपत्ता (Tej Patta)

 आज बात करते हैं हर किसी के रसोई में होने वाले तेजपत्ते की। भारत के हर रसोई में खाने में फ्लेवर लाने के लिए तेज पत्ते का उपयोग किया जाता है, परंतु इसके अनगिनत गुणों से कम लोग ही वाकिफ होंगे। पूर्वजों ने हमारे खानपान की व्यवस्था ही कुछ इस प्रकार से की है कि हम उसके गुणों से अवगत हो ना हो अपने प्रतिदिन के दिनचर्या में हम उसका उपयोग कर लेते हैं। ऐसा ही एक मसाला है, तेजपत्ता। इसका उपयोग भोजन को स्वादिष्ट और सुगंधित बनाने के लिए किया जाता है। साथ ही इसके बहुत से औषधिय उपयोग भी हैं।

तेजपत्ते के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

तेजपत्ता क्या है?

तेजपत्ते का 7 से 8 मीटर ऊंचा मध्य आकार का वृक्ष होता है। जो बाजार में तेजपत्ता उपलब्ध होते हैं, वह इसी पौधे की पत्तियों को सुखाकर मिलते हैं। यह वृक्ष वर्ष भर हरा भरा रहता है। इसके पत्ते सरल, एकांतर, 10 से 12 सेंटीमीटर लंबे तथा चौड़ाई में अंडाकार होते हैं। नए पत्ते गुलाबी रंग के होते हैं, जो बाद में हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं।

जानते हैं तेजपत्ते के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में 

भोजन और औषधि में तेज पत्ते का उपयोग लगभग 1000 वर्षों से किया जा रहा है। तेज पत्ते की 24 से 25 प्रजातियां हैं, जिसमें से अधिकतर पूर्वी एशिया, दक्षिण उत्तरी अमेरिका में पाई जाती है। तेज पत्ते में भरपूर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। इसके साथ ही इन पत्तियों में कई प्रमुख लवण जैसे कॉपर, पोटेशियम, कैल्शियम, सेलेनियम और आयरन पाया जाता है।

तेजपत्ते के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

सर दर्द की समस्या

वर्तमान समय में तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी में सिर दर्द एक आम समस्या हो गई है। 10 ग्राम तेज पत्ते को जल में पीसकर कपाल पर लेप करने से ठंड या गर्मी की वजह से होने वाले सिर दर्द में आराम मिलता है।

बालों में जुएं होने पर

अगर बालों में जुएं की समस्या है, तो तेज पत्ते के 5 से 6 पत्तों को एक गिलास पानी में इतना उबालें कि पानी आधा रह जाए। इस पानी से प्रतिदिन सिर की मालिश करके नहाने से सिर के जुएं खत्म हो जाते हैं।

सर्दी जुखाम की समस्या

बदलते मौसम की वजह से सर्दी जुकाम की परेशानियां हो जाती हैं। ऐसे में चाय पत्ती की जगह तेजपत्ता के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी, जुकाम, छींक आना, नाक बहना जैसी समस्याओं में लाभ होता है।

दांतो के लिए

यदि किसी कारण से दातों की चमक खो गई है, तो तेज पत्ते के बारीक चूर्ण से सुबह-शाम दातों की मालिश करने से चमक वापस आ जाती है।

मसूड़ों की समस्या

यदि मसूड़ों में सूजन और खून आने की समस्या है, तो तेजपत्ते के डंठल को चलाते रहने से मसूड़ों से खून आना बंद हो जाता है।

भूख ना लगने की समस्या

अगर किसी बीमारी अथवा तनाव के कारण खाने की इच्छा नहीं हो रही है, तो तेज पत्ते के काढ़े का सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।

उल्टी की समस्या

यदि बार-बार उल्टी महसूस हो रही है या उकाई आती है, तो तेजपत्ते के 2 से 4 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से लाभ होता है।

कोलेस्ट्रोल बढ़ने पर

अगर किसी का कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ है, तो प्रतिदिन के खाने में तेजपत्ते को अवश्य शामिल करें क्योंकि रिसर्च के अनुसार तेज पत्ते का प्रयोग कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने में किया जाता है।

विभिन्न भाषाओं में तेजपत्ता का नाम 

Sanskrit-    पत्र, गन्धजात, पाकरञ्जन, तमालपत्र, पत्रक, तेजपत्र;

Hindi-    तमालपत्र, पत्र, तेजपत्ता, बराहमी;

Kannada-    पत्रक (Patraka), लवन्गदापत्ति (Lavangdapatti);

Gujrati-    तमालपत्र (Tamalpatra), तज (Taj);

Tamil-    कटटु-मुंकाइ (Kattu-murunkai);

Telugu-    आकुपत्री (Akupatri), तालीस पत्री (Talispatri);

Bengali-    तेजपत्र (Tejpatra);  

Nepali-    तेजपात (Tejpat)

Marathi-    तमालपत्र (Tamalpatra), दाल चिन्टिटिकी (Dalchinitiki)

English-    Indian cassia, Cassia cinnamon, Tamala cassia

Arbi-    साज्जेहिन्दी (Sajjehindi), जर्नाब (Zarnab);

Persian-    सद्रसु (Sadrasu)

तेजपत्ता में मौजूद पोषक तत्व

तेजपत्ते के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

तेजपत्ता का नुकसान 

सीमित मात्रा में तेज पत्ते का कोई नुकसान नहीं है परंतु यदि अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो कुछ दुष्प्रभाव सामने आ सकते हैं।
  • गर्भावस्था तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सामान्य तौर पर तेज पत्ते का उपयोग करना चाहिए।
  • मधुमेह के रोगियों को तेज पत्ते का सेवन चिकित्सक के परामर्श से करना चाहिए।
  • किसी भी प्रकार की सर्जरी के कम से कम 2 हफ्ते पहले तेज पत्ते का सेवन बंद कर देना चाहिए।
English Translate 

Bay leaf

  Today let's talk about bay leaf which is there in everyone's kitchen. Bay leaves are used in every kitchen of India to bring flavor to food, but few people would be aware of its innumerable properties. The ancestors have arranged our food in such a way that whether we are aware of its qualities or not, we use it in our daily routine. One such spice is bay leaf. It is used to make food tasty and aromatic. Also it has many medicinal uses.
तेजपत्ते के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

What is bay leaf?

Bay leaf is a medium sized tree 7 to 8 meters high. The bay leaves available in the market are obtained by drying the leaves of this plant. This tree remains green throughout the year. Its leaves are simple, alternate, 10 to 12 cm long and oval in width. Young leaves are pink, later turning light brown.

Know about the benefits, disadvantages, uses and medicinal properties of bay leaves

Bay leaves have been used in food and medicine for almost 1000 years. There are 24 to 25 species of bay leaves, most of which are found in East Asia, South North America. Anti-oxidants are found in abundance in bay leaves. Along with this, many major salts like copper, potassium, calcium, selenium and iron are found in these leaves.
तेजपत्ते के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

headache problem

Headache has become a common problem in today's stressful and run-of-the-mill life. Grind 10 grams bay leaves with water and apply it on the scalp, it provides relief in headache caused by cold or heat.

having lice in the hair

If there is a problem of lice in the hair, then boil 5 to 6 leaves of bay leaf in a glass of water so much that the water remains half. By massaging the head with this water daily and taking a bath, head lice are eradicated.

cold sore problem

Due to the changing weather, there are problems of cold and cold. In such a situation, instead of tea leaves, drinking tea made of bay leaf powder is beneficial in problems like cold, cold, sneezing, runny nose.

for teeth

If due to some reason the shine of the teeth has been lost, then massaging the teeth with the fine powder of bay leaves in the morning and evening brings back the shine.

gum problems

If there is a problem of swelling and bleeding gums, then stirring the stem of bay leaves stops bleeding gums.

loss of appetite

If there is no desire to eat due to any illness or stress, then taking decoction of bay leaves in the morning and evening is beneficial.
तेजपत्ते के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

vomiting problem

If vomiting is felt repeatedly or nausea comes, then taking 2 to 4 grams powder of bay leaf is beneficial.

on increasing cholesterol

If someone's cholesterol is increased, then definitely include bay leaves in the daily diet because according to research, bay leaves are used to control cholesterol.