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श्रीरामचरितमानस – किष्किंधा कांड ( Shri Ramcharitmanas – Kishkindha Kand )

श्री रामचरितमानस की महत्वपूर्ण घटनाएं

रामचरितमानस की समग्र घटनाओं को मुख्य 7 कांड में विभाजित कर सरलता से समझा जा सकता है। बालकाण्डअयोध्याकाण्डअरण्यकांड के बाद किष्किंधा कांड आता है।  

श्रीरामचरितमानस –  किष्किंधा कांड ( Shri Ramcharitmanas – Kishkindha Kand )

श्रीरामचरितमानस –  किष्किंधा कांड ( Shri Ramcharitmanas – Kishkindha Kand )

जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥

अर्थात समुद्र मंथन के समय जो विष समुद्र से निकला था।उस विष को देखकर सभी देवता लोग भयभीत हो गए थे ।जिसका पान स्वयं देवों के देव महादेव ने किया।  हे मंदबुद्धि !तुम भगवान शिव को नहीं जानते उनके नाम का जाप क्यों नहीं करते ।उनके जैसा दया करने वाला इस संसार में कोई नहीं है ।राम के आराध्य वही शिव है।

किष्किंधा कांड में प्रभु श्री राम समाज के सामने मित्रता की जो मिशाल दी है। उससे देवता ,किन्नर और गंधर्व ईर्ष्या करते हैं ।राम की मित्रता में ना कोई राग है और ना कोई द्वेष है ।जिसमें केवल प्रेम है एक दूसरी की समस्याओं को हल करने के लिए प्रतिबद्धता दिखाना। परब्रह्म राम जिस के ऊपर हाथ रख देते हैं उसका उद्धार होना सुनिश्चित हो जाता है। क्योंकि राम कोई साधारण अपितु परब्रह्म है। उनकी इच्छा से ही सूर्य चंद्रमा अपने समय पर उदय और अस्त हो रहे हैं। जब वह अपने नयन को कुछ छड़ के लिए मूंद लेते है  सृष्टि में त्राहिमाम- त्राहिमाम होने लगता है। प्रभु श्रीराम के अंदर सिर्फ दया है करुणा है परोपकार है ।वह अपने भक्तों की एक पुकार परअपने भक्तों की मदद करते हैं। वह इंद्रियों से परे हैं। अर्थात इन्द्रियातीत हैं ।उनके अंदर मोह नहीं है। वह मोह से परे हैं। किष्किंधा कांड में बालि की मृत्यु और हनुमान को अपने बल का ज्ञान कराना यह सब निहित है जो यह सूचित करता है कि मनुष्य को यदि उचित समय पर उचित मार्गदर्शन दिया जाए तो वह समाज के लिए कल्याणकारी होगा।

किष्किंधा कांड का संक्षिप्त वर्णन

श्री राम मतंग ऋषि के आश्रम से शबरी को गूढ़ ज्ञान देकर ऋष्यमूक पर्वत की ओर प्रस्थान करते है। ऋष्यमूक पर्वत पर जब वह आ रहे होते हैं। नल और नील नाम के दो वानर उनको आते हुए दूर से ही देख लेते हैं ।तत्काल जाकर अपने महाराज सुग्रीव को सूचित करते हैं की  महाराज सुग्रीव आपके भ्राता बाली ने लग रहा है कि आप को मारने के लिए दो नवयुवक वीर पुरुष को भेजे हैं। जिसके कंधे पर धनुष है। इस समस्या के  निवारण के लिए सुग्रीव हनुमान की सहायता लेते हैं। हनुमान ब्राह्मण का वेश बनाकर राम के पास जाकर अपना पांडित्य का प्रभाव जमाने लगते हैं ।जिससे उनका वास्तविक स्वरूप जान सके कि वास्तव में यह दोनों युवक कौन हैं। जब हनुमान जी को पता चलता है कि श्री राम है। साथ में उनके छोटे भाई लक्ष्मण हैं। तब हनुमान जी की आंखों से अश्रु की धारा बहने लगती है। हनुमान जी अपने को दोष देने लगते हैं कि मेरे अंदर ज्ञान का अंहकार हो गया था कि मैं अपने प्रभु के वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचान सका। श्री राम कहते हैं कि हनुमान तुमसे कभी गलती से भी भूल नहीं हो सकती है। फिर हनुमान जी राम को अपने कंधे पर बैठाकर   ऋष्यमूक पर्वत पर ले जाते हैं ।फिर श्रीराम और सुग्रीव से उनकी मुलाकात होती है। सुग्रीव अपनी आपबीती श्रीराम से बताते हैं कि कैसे बाली ने उनका अपमान किया और बल्कि उनकी पत्नी को भी बंदी बना कर रख लिया है  श्री राम सुग्रीव की मदद करने के लिए वचनबद्ध हो जाते हैं। और बदले में वह चाहते हैं कि वह भी सीता की खोज करें । उसके बाद श्री राम चुपके से जब बाली और सुग्रीव गधा युद्ध कर रहे होते हैं तब बाली को मार देते हैं ।बालि को नुकीला तीर लगते ही जमीन पर वह धराशाई हो जाता है। धराशाई होकर जमीन पर गिर जाता है। फिर श्री राम और बालि संवाद होता है। उसके बाद बालि की मृत्यु हो जाती है। बालि की मृत्यु होने के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक होता है। राज्याभिषेक होने के बाद वह भोग विलास में इतना डूब जाता है कि उसे याद नहीं रहता है कि सीता को भी ढूंढना है। फिर लक्ष्मण उसे याद दिलाते हैं कि तुम कैसे यह भूल गए कि यह जो तुम सुख भोग रहे हो यह श्रीराम ने दिलाया है। सुग्रीव को अपनी गलती का एहसास होता है। सुग्रीव ने नल और नील को सारे वानरों को एकत्र करने के लिए भेज दिया ।सारे वानर एकत्र होते हैं। एकत्र हुए सारे वानरों को पूरब, पश्चिम और उत्तर, दक्षिण दिशा में भेज दिया जाता है। दक्षिण दिशा में जामवंत हनुमान और अंगद और साथ ही साथ नल और नील जाते हैं ।वहां पर जटायु के भाई संपाती उन सब को यह बताते हैं कि सीता समुद्र पार लंका में अशोक वाटिका के नीचे बैठी हुई है। अब प्रश्न उठता है कि इस विशाल समुद्र को कौन पार करें ।तब जामवंत जी कहते हैं कि इस समुद्र को केवल वीर हनुमान ही पार कर सकते हैं। हनुमान जी को उनकी शक्ति का भान कराया जाता है।

किष्किंधा कांड की विशेषता क्या है?

(1)राम हनुमान मिलन

सुग्रीव बहुत भयभीत हो गए थे ।उनके मन में यह भय लगने लगा था कि यह दो अजनबी व्यक्ति कौन है? ये जो  तेजस्वी लग रहे हैं क्या इन्हें बाली ने  भेजा है । साथ ही साथ अपने मन से संशय को दूर करने के लिए सुग्रीव हनुमान जी के पास गए और बोले कि हनुमान तुम पंडित  का वेश बनाकर उस तेजस्वी मानव जो ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़ी चले आ रहे हैं। उनके भेद का पता पता लगाओ। यदि वो बाली द्वारा भेजे गए हो तुम मुझे सूचित कर देना मैं ऋष्यमूक पर्वत को छोड़कर भाग जाऊंगा। तत्पश्चात हनुमान जी पंडित का वेश बनाकर राम लक्ष्मण के समीप जाकर पूछते हैं कि हे वीर आप कौन हैं। इस प्रसंग में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते है कि

को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥
कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी॥4॥

तब राम जी हनुमान जी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहते हैं कि मैं अयोध्या के राजा दशरथ का पुत्र राम मैं अपनी पिता की आज्ञा से इस वन में आया हूं। मेरे साथ ये जो है वह मेरा छोटा अनुज लक्ष्मण हैं । मेरी पत्नी को रावण नाम का राक्षस हरण कर लिया ।हम उन्हीं को खोज करते – करते यहाँ तक आए हैं ।तुलसीदास रामचरितमानस के किष्किंधा कांड के इस प्रसंग के विषय में लिखते हैं कि

कोसलेस दसरथ के जाए। हम पितु बचन मानि बन आए॥
नाम राम लछिमन दोउ भाई। संग नारि सुकुमारि सुहाई॥

तत्पश्चात अपनी प्रभु की वास्तविक रूप को पहचान कर हनुमान जी प्रभु के चरणों मे  दंडवत की मुद्रा में गिर जाते हैं ।हनुमान जी को इस बात की ग्लानि होती है कि मैं अपने प्रभु की वास्तविक रूप से कैसे नहीं पहचान पाया। हमारी वानरी बुद्धि के कारण प्रभु के वास्तविक रूप को नहीं पहचान पाया। हे नाथ आप भी अपने इस भक्त को कैसे नही पहचान पाए ।मुझसे क्या गलती हो गई ।स्वामी आप जो मुझे नहीं पहचान पाए मैं तो आपका भक्ति हनुमान हूं मैं सदैव राम नाम का माला जपता रहता हूं। तत्पश्चात हृदय रूपी कोमल वाले श्री राम को अपने भक्तों पर दया आती है । भक्त हनुमान को उठाकर अपने गले लगा लेते हैं। अपने नेत्र अश्रुओं से हनुमान के मन को शीतल कर देते हैं। प्रभु मुझे क्षमा करना मैं तो महाराज सुग्रीव की आज्ञा से यह ब्राह्मण का वेश बनाया था। क्योंकि वह आपके वास्तविक रूप का भेद करने के लिए मुझे भेजा था। सारा मन का भेद मिट महाराज सुग्रीव से आप दोस्ती कर लीजिए। क्योंकि महाराज सुग्रीव आपकी मदद कर सकते हैं माता जानकी को ढूंढने में।

(2)श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता

वीर हनुमान श्री राम और लक्ष्मण को अपनी कंधे पर बिठाकर वायु मार्ग द्वारा ऋष्यमूक पर्वत पर जाते हैं।  वहां सुग्रीव से उनकी मित्रता होती है। सुग्रीव प्रभु श्रीराम से मिलते हैं ।सुग्रीव के मन में तरह-तरह के प्रश्न उठने लगा कि  क्या रघुनंदन हमारी मदद करेंगे। क्या वह मुझसे मित्रता करेंगे ।क्या बाली द्वारा दिए गए के दण्ड से  मुझे छुटकारा दिलाएंगे ।आदि प्रश्न सुग्रीव के मन में उठ रहा था।

इस विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
सादर मिलेउ नाइ पद माथा। भेंटेउ अनुज सहित रघुनाथा॥
कपि कर मन बिचार एहि रीती। करिहहिं बिधि मो सन ए प्रीती॥

(3) बालि की मृत्यु

इस मित्रता को प्रगाढ़ करने के लिए पवन पुत्र हनुमान ने अग्नि को साक्षी देकर इस मैत्री को प्रगाढ़ कर दिया तदोपरांत लक्ष्मण ने अपनी आपबीती बताई की कैसे रावण द्वारा सीता का हरण किया गया। इस आपबीती को सुनकर सुग्रीव में अपने नेत्रों में अश्रुओं को भरकर बोली की हे नाथ आप व्यर्थ में चिंता मत करिए। जनक पुत्री सीता जहां भी होंगी वह सुरक्षित ही होगी। और आपको मिल जाएंगे ।सुग्रीव द्वारा दिए गए इस सान्त्वना से उनकी हृदय को थोड़ा राहत मिलती है।  श्री राम को सुग्रीव ने  एक पोटली दिया ।जिसमें आभूषण था। जो वायुमार्ग से एक स्त्री राम नाम का उच्चारण करते हुए मदद के लिए गुहार लगा रही थी।

तभी इस संदर्भ में तुलसीदास जी लिखते हैं
राम राम हा राम पुकारी। हमहि देखि दीन्हेउ पट डारी॥
मागा राम तुरत तेहिं दीन्हा। पट उर लाइ सोच अति कीन्हा॥

सुग्रीव द्वारा दिए गए आभूषण को श्री राम अपने हृदय पर लगाकर अश्रु बहाने लगे।  प्रभु माता सीता जिस भी  स्थान पर होंगी। वह सुरक्षित होंगी ।आप धैर्य रखिए ।आप अपना धीरज मत खोइए। सुग्रीव के इस वचन को सुनकर श्री राम हर्षित हो उठे। श्री राम सुग्रीव के विषय में पूछा तुम वन में किस कारण से रहते हो ।तब सुग्रीव ने अपनी पूरी आपबीती बताई कि मेरे भाई ने मुझे अपने राज्य से निकाल दिया है मुझ पर राजद्रोह का आरोप लगाकर। पूरी बात सुनने के बाद श्री राम ने सुग्रीव से कहा कि उस अधर्मी बाली का वध करना समाज के लिए कल्याणकारी है। क्योंकि वह अपने बल के मद में चूर होकर जो निर्दोष प्रजा को सता रहा है उसको उसकी  सजा मिलनी चाहिए ।सुग्रीव की आपबीती सुनने के बाद श्री राम ने अपनी दोनों भुजा को उठाकर कहा कि उस अधर्मी का वध होना अनिवार्य है

इस संदर्भ में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि
सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान।
ब्रह्म रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान।।

सुग्रीव मैं एक ही बाण से उस बाली का वध कर दूंगा। उसकी रक्षा स्वयं ब्रह्मा और भोलेनाथ नहीं कर सकेंगे।

श्री राम बाली वध की प्रतिज्ञा लेने के बाद सुग्रीव ने कहा कि प्रभु बाली बहुत बलवान है। जो भी व्यक्ति उससे युद्ध करने जाता है। उसका आधा बल उसके अंदर आ जाता है ।प्रभु यदि आप बाली से युद्ध करने से पहले अपने बल की जांच परख कर लेते तो ठीक रहता । श्री राम ने कहा कि सुग्रीव तुम मेरे मित्र हो। मित्र के मन में कोई संशय नही रहनी चाहिए ।तब सुग्रीव श्री राम को ढूँढसी नामक राक्षस की हड्डियों और उस ताल के वृक्ष दिखलाए। जिन्हें बालि एक गदा में गिरा देता है। उसके बाद श्रीराम ने भी एक ही बाण से सारे वृक् को गिरा दिए। राम के इस शौर्य को देखकर सुग्रीव अब चिंता मुक्त हो गया कि बाली की मृत्यु होना अब असंभव नहीं है। ऐसा करके वह अपने नयन से अश्रु  को गिराते हुए श्री राम के चरणों में गिर पड़ा ।श्री राम ने उसे उठाकर कहा कि मित्र का स्थान चरणों में नहीं हृदय में होता है ।उसके बाद श्री राम बाली को मारने के लिए सुग्रीव से कहते हैं कि तुम बालि को गदा युद्ध के लिए ललकारो ।जब बाली और सुग्रीव का गदा युध्द होता है। दोनों भाई का कद काठी और स्वरूप एक होने के कारण श्री राम दोनों में भेद नहीं कर पाते की बाली कौन है और सुग्रीव कौन है। जिस कारण बाण नहीं छोड़ते हैं । सुग्रीव बालि के गदा के प्रहार से बचते बचाते भाग कर फिर से ऋष्यमूक पर्वत पर चला जाता है। और श्रीराम से कहता है कि प्रभु यदि आपको बालि का वध नही करना था तो आप मेरी जगहँसाई क्यों कराएं। श्री राम ने कहा कि मैं दोनों भाइयों की रंग रूप एक होने के कारण पहचान नही पाया। उसके बाद सुग्रीव  गले में हार पहनने के बाद फूलों का। फिर से बाली को सुग्रीव युध्द के लिए ललकारता है ।राम ने बाली के ऊपर अपना तेजस्वी बाण छोड़ा और बाली पृथ्वी पर दर्द से कहराते हुए गिर जाता है

इस विषय में तुलसीदास जी लिखते हैं कि
परा बिकल महि सर के लागें। पुनि उठि बैठ देखि प्रभु आगे॥
स्याम गात सिर जटा बनाएँ। अरुन नयन सर चाप चढ़ाएँ।।

दर्द से कहराते हुए जब बाली ने श्रीराम को अपने पास देखा तो उनसे पूछा कि आप कौन होते हैं दोनों भाइयों के  इस युध्द में हस्तक्षेप करने वाले ।क्या आपका यही धर्म है? श्री राम ने  बाली को धर्म और अधर्म का ज्ञान देते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप वाली श्रीराम के वास्तविक स्वरूप को पहचान जाते है। हृदय में श्री राम के प्रति भक्ति की भावना आ  जाती है। लेकिन मुख पर कठोर लिए हुए कहता हे राम मुझे आपने छिपकर क्यों मारा आपको सुग्रीव प्यारा हो गया और मैं आपका बैरी हो गया इस विषय में तुलसीदास जी लिखते हैं कि

धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं। मारेहु मोहि ब्याध की नाईं॥
मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कवन नाथ मोहि मारा॥

(4) जाम्बवन्त द्वारा हनुमान को अपने बल का भान कराना 

राम के परब्रह्म स्वरूप को बाली ने जान करके अपने जीवन को धन्य माना। उसके बाद सुग्रीव को किष्किंधा का राजा घोषित करने के बाद अपने शरीर का परित्याग कर देते हैं । बालि का पूरे विधि विधान से उनका दाह संस्कार होता है। उसके बाद अंगद को किष्किंधा का युवराज बनाया जाता है और साथ ही साथ सुग्रीव को किष्किंधा का राजा सुग्रीव अपनी पत्नी रोमा के साथ भौतिक सुखों में इतना संलिप्त हो जाता है कि उसे यह भान नहीं रहता है कि उसे श्रीराम का भी कार्य करना है। बसंत ऋतु भी बीत जाता है तब भी उसे याद नहीं आता है कि सीता को ढूंढना है। तब लक्ष्मण जी क्रोधित होकर किष्किंधा जाते हैं। धनुष की झंकार के कंपन से पूरा किष्किंधा राज्य में अफरा तफरी मच जाती है ।उसके बाद लक्ष्मण के क्रोध को शांत करने के लिए देवी तारा सामने आती है। फिर जैसे धीरे-धीरे करके लक्ष्मण का क्रोध शांत होने लगता है। फिर लक्ष्मण सुग्रीव से बताते हैं कि मैंने वानरों को एकत्र करने के लिए नल और नील को भेज दिया है। मैं स्वयं ही सूचित करने के लिए आने वाला था श्री राम के पास। इतने में आप ही आ गए। फिर सुग्रीव श्री राम के पास जाते हैं और इस विलंब के लिए क्षमा भी मांगते हैं । फिर सारे वानर एकत्र हो जाते हैं सीता को ढूंढने के लिए ।एकत्र हुए वानरो को चार श्रेणी में बांटा जाता है। कुछ वानरों को पूरब दिशा में भेजा जाता है और कुछ पश्चिम दिशा में और कुछ उत्तर दिशा में और जामवंत और नल नील और हनुमान और युवराज अंगज को दक्षिण दिशा में जाते हैं ।क्योंकि सीता कि मिलने की प्रायिकता दक्षिण दिशा में ज्यादा है। दक्षिण दिशा में जाने के बाद इस विशाल समुद्र को देखते हैं। फिर जटायु के भाई संपाती उन सब का मार्गदर्शन करते हैं और बताते हैं कि सीता समुद्र पार लंका में अशोक वाटिका में है। यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि सीता लंका में ही है। इतने विशाल समुद्र को पार कौन करेगा। सब के सब पवन पुत्र हनुमान की ओर देखते हैं। जामवंत कहते हैं कि विशाल समुद्र को पवन पुत्र हनुमान पार कर सकते हैं उनके अंदर अपार शक्ति है ।इसके विषय मे तुलसीदास जी कहते है कि

कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥

11 comments:

  1. जय श्री राम जय श्री हनुमान 🙏🏻

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  2. जय सिया राम

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  3. जय श्रो हनुमानजी

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  4. जय श्री राम

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  5. जय श्री राम 🚩🙏🏻

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  6. 🙏🙏💐💐शुभरात्रि 🕉️
    🚩🚩जय जय सियाराम 🚩🚩
    👍👍👍बहुत सुन्दर प्रस्तुति 🙏🙏
    🙏आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐

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  7. जय श्री राम,जय हनुमान।

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