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श्रीरामचरितमानस – बालकाण्ड ( Shri Ramcharitmanas – Balkand )

श्री रामचरितमानस की महत्वपूर्ण घटनाएं

रामचरितमानस की समग्र घटनाओं को मुख्य 7 कांड में विभाजित कर सरलता से समझा जा सकता है।

बालकांड – यह प्रथम कांड है जिसमें श्री राम और उनके भाइ लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के बचपन का वर्णन है। साथ ही भगवान राम-सीता का विवाह भी इसमें देखने मिलता है।

श्रीरामचरितमानस – बालकाण्ड ( Shri Ramcharitmanas – Balkand )

गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के बालकाण्ड में प्रभु श्री राम के जन्म से विवाह तक के घटनाक्रम का उल्लेख है। बालकाण्ड के सभी घटनाक्रमों की विषय सूची नीचे दी गई है। 

श्रीरामचरितमानस – बालकाण्ड ( Shri Ramcharitmanas – Balkand )

कामरूप खल जिनस अनेका। कुटिल भयंकर बिगत बिबेका॥
कृपा रहित हिंसक सब पापी। बरनि न जाहिं बिस्व परितापी॥

संसार को अपने बल से परेशान करने वाला वह अधर्मी, दुष्ट ,निर्दयी,विवेकरहित और साथ ही साथ हिंसक पापी का वर्णन करना उचित नहीं है क्योंकि इसका कारण है इसकी पाप की सीमा।

परब्रह्म राम के चरित्र का वर्णन करना शब्दों से परे है। राम जी साधारण पुरुष थे ।लेकिन उनके गुण और कर्म और कौशल को देखकर सब लोग उन्हें भगवान की संज्ञा देते थे ।क्योंकि यह सब कार्य सामान्य मनुष्य के लिए दुर्लभ था। क्योंकि कोई भी सामान्य मनुष्य इस दुर्लभ कार्य को नहीं कर सकता है ।

तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस का पहला कांड बालकांड है ।जिसमें श्री राम भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन है ।वह कैसे अपने माता पिता को बाल्यावस्था में सताते थे ? फिर कैसे काल भुसुंडि को अपना दर्शन देकर उसके जीवन को यथार्थ बनाया । साथ ही साथ राम प्रभु बचपन से ही अपने भाइयों से बहुत प्रेम करते थे ।उनके लिए करोड़ों की संपत्ति वैसे ही श्रीहीन है जैसे एक नारी आभूषणों की बिना मर्यादा हीन लगती है।

बालकाण्ड का संक्षिप्त वर्णन

रावण ने भगवान शंकर से अमृत्व का वरदान प्राप्त करके वह पृथ्वी पर मनुष्य और साथ ही साथ पशु पक्षियों को सताने लगा था। जिसके परिणाम स्वरूप उसके भय से देव और गंधर्व और स्वयं पृथ्वी भी उसे प्रताड़ित हो चुकी थी ।जिसके परिणाम स्वरूप भगवान विष्णु सूर्यवंशी राजा दशरथ के यहां मनुष्य के रूप में अवतरित हुए और उनके अवतरण के पश्चात आसपास का वातावरण खिल उठा था। 

इसका प्रमाणिकता इससे मिल जाता है कि पहाड़ झरने नदियां और वन अठखेलियां करने लगे थे। राम कौशल्या के गर्भ से जन्म लिए और लक्ष्मण सुमित्रा के गर्भ से जन्म लिए और साथ ही साथ भरत शत्रुघ्न कैकेई के गर्भ से जन्म लिए। 

इस जन्म के पश्चात चारों भाइयों में सामंजस्य स्थापित रहे ।इसके लिए राम भगवान सदैव से अपने छोटे भाइयों से प्रेम करते थे। जिससे उन्हें माता-पिता का एहसास ना हो ।फिर उन सब का उपनयन संस्कार हुआ। उपनयन संस्कार के पश्चात गुरुकुल गए गुरुकुल में उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई । शिक्षा दीक्षा को पूरा करके फिर अपने राज नगरी अयोध्या वापस आ जाते हैं। अयोध्या में आने के बाद उनके माता- पिता उनसे बहुत स्नेह करते हैं। फिर यह स्नेह का सिलसिला रुक सा जाता है ।

क्योंकि विश्वामित्र के आश्रम में मारीच नाम का राक्षस उनकी यज्ञ को पूर्ण नहीं होने देता था। जिसके परिणाम स्वरूप विश्वामित्र राजा दशरथ से राम को मांगने आए थे ।जिससे उनका यज्ञ सफल हो सके राम गुरु विश्वामित्र के साथ उनकी आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं। तब राम ने ताड़का का वध किया और गुरु विश्वामित्र का यज्ञ सफल कराया और फिर निमंत्रण मिलने पर जनकपुर जाते हैं। जहां पर सीता से उनका विवाह होता है।

बालकाण्ड की विशेषता क्या है ?

(1)रावण के अत्याचार से प्रताड़ित होकर पृथ्वी और देवता की करुण पुकार

बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा॥
मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥

अर्थात हे प्रभु हे करुणानिधान पृथ्वी पर दूसरी की स्त्री और दूसरे के धन पर हुक्म चलाने वाले दुष्ट और चोरों की संख्या में वृद्धि हो गई है। अब लोग अपने माता-पिता की सेवा करने के बजाए। उनको प्रताड़ित करते हैं। साधुओं की सेवा करने के बजाय उनसे सेवा करवाते हैं।

तब ब्रह्मा जी ने पृथ्वी और देवता के इस करुण पुकार पर उन्हें श्री हरि के पास जाने के लिए कहते हैं। देवता और पृथ्वी फिर श्री हरि के पास जाकर अपनी दारुण को व्यथा व्यक्त करते हैं।

 (2) श्री हरि का वरदान

जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥

श्री हरि पृथ्वी और ऋषि मुनि की दारुण व्यथा को सुनकर कहते हैं कि डरो मत मैं तुम्हारे लिए पृथ्वी पर मनुष्य का रूप धारण करके अवतार लूंगा।उस अभिमानी रावण के मान को भंग करके उसका वध करूंगा।

फिर भगवान श्री हरि अपनी कथनानुसार अयोध्या के राजा दशरथ के यहां अपनी सभी कलाओं सहित जन्म लेते हैं। भगवान श्री हरि की सहायता के लिए देवता और नाग और गंधर्व भी जन्म लेते हैं किसी न किसी रूप में।

(3) राजा दशरथ के तीनों रानियों का गर्भवती होना

एहि बिधि गर्भसहित सब नारी। भईं हृदयँ हरषित सुख भारी॥
जा दिन तें हरि गर्भहिं आए। सकल लोक सुख संपति छाए॥

अर्थात ऋषि श्रृंगी के आशीर्वाद से कौशल्या सुमित्रा और कैकेई गर्भवती हो गई ।गर्भावस्था को धारण करते ही उन्हें बहुत आनंद मिलता है। साथ ही साथ सब लोको में सुख और सम्पत्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।

धीरे-धीरे समय बीतता गया ।आखिर वह समय आ ही गया जब श्री हरि प्रभु जन्म लेने वाले थे।

(4) श्री हरि का मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होना

नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥

अर्थात चैत्र के महीने में नवमी तिथि के शुभ अवसर पर ना जब ज्यादा गर्म का  था और ना ही ठंड का  था अर्थात सुहाना मौसम था। उस समय श्री हरि श्री राम के रूप में अवतरित हुए।

श्री हरि के धरती पर अवतार लेने के पश्चात शीतल हवा चल रही थी ।नदिया अमृत की धारा बहा रही थी।  फूल अपनी सुगंध से आसपास के वातावरण को सुगंधित कर रहे थे ।और नाग और देवता स्तुति कर रहे थे ।सब देवता गंधर्व कौशल्या को धन्यवाद दे रहे थे कि आपके यहां श्री हरि विष्णु का जन्म हुआ है।

(5) श्री राम की बाल लीला का वर्णन

बालचरित अति सरल सुहाए। सारद सेष संभु श्रुति गाए॥
जिन्ह कर मन इन्ह सन नहिं राता। ते जन बंचित किए बिधाता॥

अर्थात श्री राम की सुंदर और मन को लुभाने वाले बाल लीलाओं का गान सरस्वती ,शिवजी और वेद ने भी किया और जो मनुष्य श्री राम की बाल लीला से विरक्ति का भाव रखने लगे वह भाग्यहीन हो गए थे।

श्री राम बचपन में बहुत ही नटखट थे। वह अवसर पाकर अपनी मुंह में दही और भात का निवाला लिए किलकारी मारते हुए इधर-उधर भागने लगते थे ।जिसके परिणाम स्वरूप इस दृश्य को देखकर राजा दशरथ और उनकी तीनों रानियां आनंद का अनुभव करती थी। श्री राम प्रतिदिन प्रातः काल उठने के बाद सबसे पहले अपने माता-पिता का चरण स्पर्श करते थे। जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त करके अपने दिनचर्या का शुभारंभ करते थे।

(6)मुनि विश्वमित्र द्वारा राम और लक्ष्मण को दशरथ से मांगना

असुर समूह सतावहिं मोही। मैं जाचन आयउँ नृप तोही॥
अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर बध मैं होब सनाथा॥

अर्थात हे राजन !मारीच और राक्षसों का समूह मेरी यज्ञ को सफल नहीं होने दे रहे हैं ।इसलिए हे राजन मैं तुमसे कुछ मांगने के आशय से यहां पर आया हूं। मुझे अपने यज्ञ को सफल बनाने के लिए लक्ष्मण और राम को मुझे सौप दो ।राक्षसों के वध के पश्चात मेरा आश्रम सुरक्षित हो जाएगा।

राम और लक्ष्मण यज्ञ की सुरक्षा के लिए जब विश्वामित्र ने राजा दशरथ से मांग की राजा दशरथ के मन मे मोह आ गया की राम अभी बालक हैं ।वह कैसे राक्षसों का सामना कर पाएगा ।तब ऋषि वशिष्ठ कहते हैं कि राजन आपके चारों पुत्र बहुत ही बलवान है। आप उन्हें विश्वामित्र के साथ जाने दीजिए। आपको कोई चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।

(7) ताड़का का वध करना

चले जात मुनि दीन्हि देखाई। सुनि ताड़का क्रोध करि धाई॥
एकहिं बान प्रान हरि लीन्हा। दीन जानि तेहि निज पद दीन्हा॥

अर्थात वन गमन के दौरान मुनि विश्वामित्र ने ताड़का के विषय में बताया ।ताड़का विश्वामित्र और राम की तरफ क्रोध करके दौड़ने लगती है ।जिसके परिणाम स्वरूप राम और ताड़का का भीषण युद्ध होता है। इस भीषण युद्ध में ताड़का परास्त होकर मारी जाती है।

फिर उसके बाद मुनि विश्वामित्र राम के कौशल से प्रसन्न होकर ब्रह्मास्त्र और अग्नि अस्त्र का शिक्षा देते हैं। लोक कल्याण के लिए विश्वामित्र जो यज्ञ कर रहे थे उस युद्ध को सफल बनाया।

(8) अहिल्या को मुक्ति देना

आश्रम एक दीख मग माहीं। खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं॥
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी। सकल कथा मुनि कहा बिसेषी।।

अर्थात जनकपुर प्रस्थान के दौरान रास्ते में एक आश्रम दिखाई पड़ता है। उस आश्रम के आसपास कोई भी पशु पक्षी जीव जंतु नहीं था ।सिर्फ थी तो एक पत्थर की शिला। इस पत्थर की शिला को देखकर प्रभु श्री राम ने विश्वामित्र से पूछा कि यह किसकी शिला है।

विश्वामित्र ने श्री राम से कहा कि यह शिला अहिल्या की है ।कृपया अपने चरणों के माध्यम से अहिल्या को मुक्ति दीजिए ।फिर श्री राम अपने चरण से उस शिला को स्पर्श करके अहिल्या को मुक्ति देते हैं।

(9) पुष्प वाटिका में सीता को देखना

देखि सीय शोभा सुखु पावा। हृदयँ सराहत बचनु न आवा॥
जनु बिरंचि सब निज निपुनाई। बिरचि बिस्व कहँ प्रगटि देखाई॥

अर्थात सीता जी की सुंदरता को देखकर श्री राम के हृदय को सुख का अहसास होता है। हृदय में श्री राम सीता की सुंदरता की भूरी भूरी प्रशंसा करते हैं ।लेकिन अपने मुख से एक शब्द भी नहीं कहते हैं ।मानो ब्रह्मा ने सुंदर कल्पित स्त्री को यथार्थ रूप दे दिया हो।

राम और सीता एक दूसरे की प्रथम दर्शन के बाद दोनों एक दूसरे से सहृदय से प्रेम करने लगते हैं ।सीता श्री राम को पाने के लिए गौरी मंदिर जाकर गौरी माता से आशीर्वाद मांगते हैं कि मुझे श्री राम ही मिले।

(10) धनुष भंग करना

गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा। अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा॥
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ॥

अर्थात धनुष भंग के समय धनुष उठाने से पहले मन ही मन में अपने गुरु को प्रणाम किया ।फिर श्री राम ने बड़ी फुर्तीपन के साथ धनुष को अपने हाथ में उठा लिया जैसे ही श्री राम ने धनुष के उठाया ।वैसे ही बिजली की तरह वह धनुष चमका।

तत्पश्चात धनुष पर डोर को चढ़ाने के बाद धनुष को बीच से तोड़ दिया। धनुष को जैसे ही श्रीराम ने बीच से तोड़ा वैसे ही तीनों लोकों में एक भयंकर सी ध्वनि हुई ।जिस ध्वनि से पूरा ब्रह्मांड कपकपा गया। धनुष भंग के के बाद परशुराम का आगमन जनकपुरी में होता है। फिर उसके बाद परशुराम और राम का तर्क वितर्क होता है। जब परशुराम राम के पर ब्रह्म स्वरूप को पहचान जाते हैं फिर वहां से परशुराम चले जाते हैं।

(11) राम ,भरत,लक्ष्मण और शत्रुघ्न की शादी 

तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै॥
कुसकेतु कन्या प्रथम जो गुन सील सुख सोभामई।
सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याहि नृप भरतहि दई॥

अर्थात राम और सीता की शादी के दौरान मंडप में मांडवी और श्रुत्कीर्ति और उर्मिला को लाने के लिए ऋषि वशिष्ठ ने जनक से कहा। जनक के छोटे भाई कुश ध्वज की बड़ी पुत्री मांडवी जो गुण और शील में सीता की तरह ही थी ।उसका ब्याह राजकुमार भरत से किया गया।

लक्ष्मण की शादी उर्मिला से और शत्रुघ्न की शादी श्रुत्कीर्ति से हुई इसके बाद विदाई होती है विदाई के बाद राजा दशरथ अपने चारों पुत्रों और चारों बहुओं के साथ अयोध्या आ जाते हैं।

10 comments:

  1. जय श्री सीता राम

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  2. पवन कुमारJanuary 11, 2024 at 9:11 PM

    रामचरितमानस की प्रत्येक बात अनुकरणीय है।
    प्रभु श्री राम जी तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।अभी के
    विधर्मी लोगों को प्रभु सद्बुद्धि प्रदान करें।
    ,🌹🙏जय सियाराम🙏🌹

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  3. जय सिया राम

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  4. कैकेई के केवल भरत पुत्र थे,शत्रघ्न नहीं।जय सिया राम।

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