मणिपुर चक्र : नाभि केन्द्र
पुर = स्थान, शहर
मणिपुर चक्र नाभि के पीछे स्थित है। इसका मंत्र है रम। जब हमारी चेतना मणिपुर चक्र में पहुंच जाती है, तब हम स्वाधिष्ठान के निषेधात्मक पक्षों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। मणिपुर चक्र में अनेक बहुमूल्य मणियां हैं जैसे स्पष्टता, आत्मविश्वास, आनन्द, आत्म भरोसा, ज्ञान, बुद्धि और सही निर्णय लेने की योग्यता जैसे गुण।
मणिपुर चक्र का रंग पीला है। मणिपुर का प्रतिनिधित्व करने वाला पशु मेढ़ा (मेष)है। इसका अनुरूप तत्त्व अग्नि है, इसलिए यह 'अग्नि' या 'सूर्य केन्द्र' के नाम से भी जाना जाता है। शरीर में अग्नि तत्त्व सौर मंडल में गर्मी के समान ही प्रकट होता है। मणिपुर चक्र स्फूर्ति का केन्द्र है। यह हमारे स्वास्थ्य को सुदृढ़ और पुष्ट करने के लिए हमारी ऊर्जा नियंत्रित करता है। इस चक्र का प्रभाव एक चुंबक की भांति होता है, जो ब्रह्माण्ड से प्राण को अपनी ओर आकर्षित करता है।
पाचक अग्नि के स्थान के रूप में, यह चक्र अग्न्याशय और पाचक अवयवों की प्रक्रिया को विनियमित करता है। इस केन्द्र में अवरोध कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जैसे पाचन में खराबियां, परिसंचारी रोग, मधुमेह और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव। तथापि, एक दृढ़ और सक्रिय मणिपुर चक्र अच्छे स्वास्थ्य में बहुत सहायक होता है और बहुत सी बीमारियों को रोकने में हमारी मदद करता है। जब इस चक्र की ऊर्जा निर्बाध प्रवाहित होती है तो प्रभाव एक शक्तिपुंज के समान, निरन्तर स्फूर्ति प्रदान करने वाला होता है - संतुलन और शक्ति बनाए रखता है।
मणिपुर चक्र के प्रतीक चित्र में दस पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। यह दस प्राणों, प्रमुख शक्तियों का प्रतीक है जो मानव शरीर की सभी प्रक्रियाओं का नियंत्रण और पोषण करती है। मणिपुर का एक अतिरिक्त प्रतीक त्रिभुज है, जिसका शीर्ष बिन्दु नीचे की ओर है। यह ऊर्जा के फैलाव, उद्गम और विकास का द्योतक है। मणिपुर चक्र के सक्रिय होने से मनुष्य नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त होता है और उसकी स्फूर्ति में शुद्धता और शक्ति आती है।
इस चक्र के देवता विष्णु और लक्ष्मी हैं। भगवान विष्णु उदीयमान मानव चेतना के प्रतीक हैं, जिनमें पशु चारित्रता बिल्कुल नहीं है। देवी लक्ष्मी प्रतीक है-भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि की, जो भगवान की कृपा और आशीर्वाद से फलती-फूलती है।
अनाहत चक्र हृदय के निकट सीने के बीच में स्थित है। इसका मंत्र यम(YAM)है। अनाहत चक्र का रंग हलका नीला, आकाश का रंग है। इसका समान रूप तत्त्व वायु है। वायु प्रतीक है-स्वतंत्रता और फैलाव का। इसका अर्थ है कि इस चक्र में हमारी चेतना अनंत तक फैल सकती है।
अनाहत चक्र आत्मा की पीठ (स्थान) है। अनाहत चक्र के प्रतीक चित्र में बारह पंखुडिय़ों का एक कमल है। यह हृदय के दैवीय गुणों जैसे परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चिय का प्रतीक है। तथापि, हृदय केन्द्र भावनाओं और मनोभावों का केन्द्र भी है। इसके प्रतीक छवि में दो तारक आकार के ऊपर से ढाले गए त्रिकोण हैं। एक त्रिकोण का शीर्ष ऊपर की ओर संकेत करता है और दूसरा नीचे की ओर। जब अनाहत चक्र की ऊर्जा आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रवाहित होती है, तब हमारी भावनाएं भक्ति, शुद्ध, ईश्वर प्रेम और निष्ठा प्रकट करती है। तथापि यदि हमारी चेतना सांसारिक कामनाओं के क्षेत्र में डूब जाती है, तब हमारी भावनाएं भ्रमित और असंतुलित हो जाती हैं। तब होता यह है कि इच्छा, द्वेष-जलन, उदासीनता और हताशा भाव हमारे ऊपर छा जाते हैं।
अनाहत, ध्वनि (नाद) की पीठ है। इस चक्र पर एकाग्रता व्यक्ति की प्रतिभा को लेखक या कवि के रूप में विकसित कर सकती है। अनाहत चक्र से उदय होने वाली दूसरी शक्ति संकल्प शक्ति है जो इच्छा पूर्ति की शक्ति है। जब आप किसी इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, तब अपने हृदय में इसे एकाग्रचित्त करें। आपका अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा उतनी ही शीघ्रता से आपकी इच्छा पूरी होगी।
अनाहत चक्र का प्रतीक पशु कुरंग (हिरण) है जो अत्यधिक ध्यान देने और चौकन्नेपन का हमें स्मरण कराता है। इस चक्र के देवता शिव और पार्वती हैं, जो चेतना और प्रकृति के प्रतीक हैं। इस चक्र में दोनों को सुव्यवस्था में एक हो जाना चाहिए।
बहुत बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteReal beauty of life is our health👏🏻
ReplyDeleteWow great information
ReplyDeleteMahesh
ReplyDeleteBvfbgg
ReplyDeleteVery Nice Information रूपा जी 😊🙏🏻
ReplyDeleteAmazing
ReplyDeleteLajawab
ReplyDeleteचक्र के बारे में उत्तम ज्ञान
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice👌👌
ReplyDeleteWow great 👍 👌
ReplyDeleteGood knowledge
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