शरीर विज्ञान व सातचक्र
मूलाधार चक्र : हमारे शरीर का आधार
मूल=जड़
आधार = नींव
जैसे किसी इमारत की बुनियाद सबसे महत्वपूर्ण होती है, उसी तरह मूलाधार सबसे महत्वपूर्ण चक्र होता है। अगर आपका मूलाधार मजबूत हो, तो जीवन हो या मृत्यु, आप स्थिर रहेंगे क्योंकि आपकी नींव मजबूत है और बाकी चीजों को हम बाद में ठीक कर सकते हैं।
- सद्गुरु
मानव शरीर में मुख्यरूप से कुल 7 चक्र होते हैं।
हर चक्र की अपनी एक ख़ासियत है। यह मानव उर्जा के ऐसे स्थान है जहाँ विभिन्न कार्यो के लिए उर्जा एकत्रित होती है।
यानि यह 7 चक्र एक तरह से घुमती हुई उर्जा के 7 पुंज है। यहाँ उर्जा कम और अधिक होती रहती है। इसके कम या अधिक होने से हमारे जीवन पर अलग अलग प्रकार से प्रभाव हैं।
मूलाधार चक्र अनुत्रिक के आधार में स्थित है। यह मानव चक्रों में सबसे पहला है। इसका समान रूप मंत्र लम (LAM) है। मूलाधार चक्र पशु और मानव चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। इसका संबंध अचेतन मन से है, जहां पिछले जीवनों के कर्म और अनुभव संग्रहीत होते हैं। अत: कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह चक्र हमारे भावी प्रारब्ध का मार्ग निर्धारित करता है। यह चक्र हमारे व्यक्तित्व के विकास की नींव भी है।
मूलाधार चक्र की सकारात्मक उपलब्धियां स्फूर्ति, उत्साह और विकास हैं। नकारात्मक गुण हैं सुस्ती, निष्क्रियता, आत्म-केन्द्रित (स्वार्थी) और अपनी शारीरिक इच्छाओं द्वारा प्रभावित होना है।
इस चक्र का देवता भगवान शिव है जो पशुपति महादेव के रूप में ध्यानावस्थित है - जिसका अर्थ है कि निम्नस्तरीय गुणों पर नियंत्रण कर लिया गया है।
मूलाधार चक्र के सांकेतिक चित्र में चार पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये चारों मन के चार कार्यों : मानस, बुद्धि, चित्त और अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं -यह सभी इस चक्र में उत्पन्न होते हैं।
जीवन चेतना है और चेतना उत्क्रांति का प्रयास करती है। मूलाधार चक्र के चिह्न की ऊर्जा और ऊपर उठने की गति दोनों ही विशेषता होती हैं। चक्र का रंग लाल है जो शक्ति का रंग है। शक्ति का अर्थ है ऊर्जा, गति, जाग्रति और विकास। लाल सुप्त चेतना को जाग्रत कर सक्रिय, सतर्क चेतना का प्रतीक है। मूलाधार चक्र का एक दूसरा प्रतीक चिह्न उल्टा त्रिकोण है, जिसके दो अर्थ हैं। एक अर्थ बताता है कि ब्रह्माण्ड की ऊर्जा खिंच रही है और नीचे की ओर इस तरह आ रही जैसे चिमनी में जा रही हो। अन्य अर्थ चेतना के ऊर्ध्व प्रसार का द्योतक है। त्रिकोण का नीचे कीओर इंगित करने वाला बिन्दु प्रारंभिक बिन्दु है, बीज है, और त्रिकोण के ऊपर की ओर जाने वाली भुजाएं मानव चेतना की ओर चेतना के प्रगटीकरण के द्योतक हैं।
मूलाधार चक्र का प्रतिनिधित्व करने वाला पशु ७ सूंडों वाला एक हाथी है। हाथी बुद्धि का प्रतीक है। ७ सूंडें पृथ्वी के ७ खजानों (सप्तधातु) की प्रतीक हैं। मूलाधार चक्र का तत्त्व पृथ्वी है, हमारी आधार और 'माता', जो हमें ऊर्जा और भोजन उपलब्ध कराती है।
स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthana Chakra)
स्थान=जगह
स्वाधिष्ठान चक्र त्रिकास्थि (पेडू के पिछले भाग की पसली) के निचले छोर में स्थित है। इसका मंत्र वम (ङ्क्ररू) है।
स्वाधिष्ठान चक्र हमारे विकास के एक-दूसरे स्तर का संकेतक है। चेतना की शुद्ध, मानव चेतना की ओर उत्क्रांति का प्रारंभ स्वाधिष्ठान चक्र में होता है। यह अवचेतन मन का वह स्थान है जहां हमारे अस्तित्व के प्रारंभ में गर्भ से सभी जीवन अनुभव और परछाइयां संग्रहीत रहती हैं। मूलाधार चक्र हमारे कर्मों का भंडारग्रह है तथापि इसको स्वाधिष्ठान चक्र में सक्रिय किया जाता है।
स्वाधिष्ठान चक्र की जाग्रति स्पष्टता और व्यक्तित्व में विकास लाती है। किन्तु ऐसा हो, इससे पहले हमें अपनी चेतना को नकारात्मक गुणों से शुद्ध कर लेना चाहिए। स्वाधिष्ठान चक्र के प्रतीकात्मक चित्र ६ पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये हमारे उन नकारात्मक गुणों को प्रकट करते हैं, जिन पर विजय प्राप्त करनी है - क्रोध, घृणा, वैमनस्य, क्रूरता, अभिलाषा और गर्व। अन्य प्रमुख गुण जो हमारे विकास को रोकते हैं, वे हैं आलस्य, भय, संदेह, बदला, ईर्ष्या और लोभ।
स्वाधिष्ठान चक्र का प्रतीक पशु मगर (मगरमच्छ) है। यह सुस्ती, भावहीनता और खतरे का प्रतीक है जो इस चक्र में छिपे हैं। स्वाधिष्ठान चक्र का तत्त्व है जल, यह भी छुपे हुए खतरे का प्रतीक है। जल कोमल और लचीला है, किन्तु यह जब नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो भयंकर शक्तिशाली भी है। स्वाधिष्ठान चक्र के साथ यही विचित्रता है। जब अवचेतन से चेतनावस्था की ओर नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न होती हैं, तब हम पूर्णरूप से संतुलन खो सकते हैं।
इस चक्र का देवता ब्रह्मा सृष्टिकर्ता और उनकी पुत्री सरस्वती बुद्धि और ललितकलाओं की देवी है। स्वाधिष्ठान का रंग संतरी, सूर्योदय का रंग है जो उदीयमान चेतना का प्रतीक है। संतरी रंग सक्रियता और शुद्धता का रंग है। यह सकारात्मक गुणों का प्रतीक है और इस चक्र में प्रसन्नता, निष्ठा, आत्मविश्वास और ऊर्जा जैसे गुण पैदा होते हैं।
मणिपुर चक्र : नाभि केन्द्र
पुर = स्थान, शहर
मणिपुर चक्र नाभि के पीछे स्थित है। इसका मंत्र है रम। जब हमारी चेतना मणिपुर चक्र में पहुंच जाती है, तब हम स्वाधिष्ठान के निषेधात्मक पक्षों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। मणिपुर चक्र में अनेक बहुमूल्य मणियां हैं जैसे स्पष्टता, आत्मविश्वास, आनन्द, आत्म भरोसा, ज्ञान, बुद्धि और सही निर्णय लेने की योग्यता जैसे गुण।
मणिपुर चक्र का रंग पीला है। मणिपुर का प्रतिनिधित्व करने वाला पशु मेढ़ा (मेष)है। इसका अनुरूप तत्त्व अग्नि है, इसलिए यह 'अग्नि' या 'सूर्य केन्द्र' के नाम से भी जाना जाता है। शरीर में अग्नि तत्त्व सौर मंडल में गर्मी के समान ही प्रकट होता है। मणिपुर चक्र स्फूर्ति का केन्द्र है। यह हमारे स्वास्थ्य को सुदृढ़ और पुष्ट करने के लिए हमारी ऊर्जा नियंत्रित करता है। इस चक्र का प्रभाव एक चुंबक की भांति होता है, जो ब्रह्माण्ड से प्राण को अपनी ओर आकर्षित करता है।
पाचक अग्नि के स्थान के रूप में, यह चक्र अग्न्याशय और पाचक अवयवों की प्रक्रिया को विनियमित करता है। इस केन्द्र में अवरोध कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जैसे पाचन में खराबियां, परिसंचारी रोग, मधुमेह और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव। तथापि, एक दृढ़ और सक्रिय मणिपुर चक्र अच्छे स्वास्थ्य में बहुत सहायक होता है और बहुत सी बीमारियों को रोकने में हमारी मदद करता है। जब इस चक्र की ऊर्जा निर्बाध प्रवाहित होती है तो प्रभाव एक शक्तिपुंज के समान, निरन्तर स्फूर्ति प्रदान करने वाला होता है - संतुलन और शक्ति बनाए रखता है।
मणिपुर चक्र के प्रतीक चित्र में दस पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। यह दस प्राणों, प्रमुख शक्तियों का प्रतीक है जो मानव शरीर की सभी प्रक्रियाओं का नियंत्रण और पोषण करती है। मणिपुर का एक अतिरिक्त प्रतीक त्रिभुज है, जिसका शीर्ष बिन्दु नीचे की ओर है। यह ऊर्जा के फैलाव, उद्गम और विकास का द्योतक है। मणिपुर चक्र के सक्रिय होने से मनुष्य नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त होता है और उसकी स्फूर्ति में शुद्धता और शक्ति आती है।
इस चक्र के देवता विष्णु और लक्ष्मी हैं। भगवान विष्णु उदीयमान मानव चेतना के प्रतीक हैं, जिनमें पशु चारित्रता बिल्कुल नहीं है। देवी लक्ष्मी प्रतीक है-भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि की, जो भगवान की कृपा और आशीर्वाद से फलती-फूलती है।
अनाहत चक्र हृदय के निकट सीने के बीच में स्थित है। इसका मंत्र यम(YAM)है। अनाहत चक्र का रंग हलका नीला, आकाश का रंग है। इसका समान रूप तत्त्व वायु है। वायु प्रतीक है-स्वतंत्रता और फैलाव का। इसका अर्थ है कि इस चक्र में हमारी चेतना अनंत तक फैल सकती है।
अनाहत चक्र आत्मा की पीठ (स्थान) है। अनाहत चक्र के प्रतीक चित्र में बारह पंखुडिय़ों का एक कमल है। यह हृदय के दैवीय गुणों जैसे परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चिय का प्रतीक है। तथापि, हृदय केन्द्र भावनाओं और मनोभावों का केन्द्र भी है। इसके प्रतीक छवि में दो तारक आकार के ऊपर से ढाले गए त्रिकोण हैं। एक त्रिकोण का शीर्ष ऊपर की ओर संकेत करता है और दूसरा नीचे की ओर। जब अनाहत चक्र की ऊर्जा आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रवाहित होती है, तब हमारी भावनाएं भक्ति, शुद्ध, ईश्वर प्रेम और निष्ठा प्रकट करती है। तथापि यदि हमारी चेतना सांसारिक कामनाओं के क्षेत्र में डूब जाती है, तब हमारी भावनाएं भ्रमित और असंतुलित हो जाती हैं। तब होता यह है कि इच्छा, द्वेष-जलन, उदासीनता और हताशा भाव हमारे ऊपर छा जाते हैं।
अनाहत, ध्वनि (नाद) की पीठ है। इस चक्र पर एकाग्रता व्यक्ति की प्रतिभा को लेखक या कवि के रूप में विकसित कर सकती है। अनाहत चक्र से उदय होने वाली दूसरी शक्ति संकल्प शक्ति है जो इच्छा पूर्ति की शक्ति है। जब आप किसी इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, तब अपने हृदय में इसे एकाग्रचित्त करें। आपका अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा उतनी ही शीघ्रता से आपकी इच्छा पूरी होगी।
अनाहत चक्र का प्रतीक पशु कुरंग (हिरण) है जो अत्यधिक ध्यान देने और चौकन्नेपन का हमें स्मरण कराता है। इस चक्र के देवता शिव और पार्वती हैं, जो चेतना और प्रकृति के प्रतीक हैं। इस चक्र में दोनों को सुव्यवस्था में एक हो जाना चाहिए।
अनाहत नाद : हृदय केन्द्र
ॐ ध्वनि
अनाहत चक्र हृदय के निकट सीने के बीच में स्थित है। इसका मंत्र यम(YAM)है। अनाहत चक्र का रंग हलका नीला, आकाश का रंग है। इसका समान रूप तत्त्व वायु है। वायु प्रतीक है-स्वतंत्रता और फैलाव का। इसका अर्थ है कि इस चक्र में हमारी चेतना अनंत तक फैल सकती है।
अनाहत चक्र आत्मा की पीठ (स्थान) है। अनाहत चक्र के प्रतीक चित्र में बारह पंखुडिय़ों का एक कमल है। यह हृदय के दैवीय गुणों जैसे परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चिय का प्रतीक है। तथापि, हृदय केन्द्र भावनाओं और मनोभावों का केन्द्र भी है। इसके प्रतीक छवि में दो तारक आकार के ऊपर से ढाले गए त्रिकोण हैं। एक त्रिकोण का शीर्ष ऊपर की ओर संकेत करता है और दूसरा नीचे की ओर। जब अनाहत चक्र की ऊर्जा आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रवाहित होती है, तब हमारी भावनाएं भक्ति, शुद्ध, ईश्वर प्रेम और निष्ठा प्रकट करती है। तथापि यदि हमारी चेतना सांसारिक कामनाओं के क्षेत्र में डूब जाती है, तब हमारी भावनाएं भ्रमित और असंतुलित हो जाती हैं। तब होता यह है कि इच्छा, द्वेष-जलन, उदासीनता और हताशा भाव हमारे ऊपर छा जाते हैं।
अनाहत, ध्वनि (नाद) की पीठ है। इस चक्र पर एकाग्रता व्यक्ति की प्रतिभा को लेखक या कवि के रूप में विकसित कर सकती है। अनाहत चक्र से उदय होने वाली दूसरी शक्ति संकल्प शक्ति है जो इच्छा पूर्ति की शक्ति है। जब आप किसी इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, तब अपने हृदय में इसे एकाग्रचित्त करें। आपका अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा उतनी ही शीघ्रता से आपकी इच्छा पूरी होगी।
अनाहत चक्र का प्रतीक पशु कुरंग (हिरण) है जो अत्यधिक ध्यान देने और चौकन्नेपन का हमें स्मरण कराता है। इस चक्र के देवता शिव और पार्वती हैं, जो चेतना और प्रकृति के प्रतीक हैं। इस चक्र में दोनों को सुव्यवस्था में एक हो जाना चाहिए।
विशुद्धि चक्र : कंठ केन्द्र
शुद्धि = अवशिष्ट निकालना
विशुद्धि चक्र कंठ में स्थित है। इसका मंत्र हम है। विशुद्धि का रंग बैंगनी है। इस चक्र में हमारी चेतना पांचवें स्तर पर पहुंच जाती है। इसका समानरूप तत्त्व आकाश (अंतरिक्ष) है। हम इसका अनुवाद 'ईश्वर' (लोकोत्तर) भी कर सकते हैं, इसका अभिप्राय यह है कि यह स्थान ऊर्जा से भरा रहना चाहिए। विशुद्धि चक्र उदान प्राण का प्रारंभिक बिन्दु है। श्वसन के समय शरीर के विषैले पदार्थों को शुद्ध करना इस प्राण की प्रक्रिया है। इस मुख्य कार्य के कारण ही इस चक्र का नाम व्युत्पन्न है। शुद्धिकरण न केवल शारीरिक स्तर पर ही होता है अपितु मनोभाव और मन के स्तर पर भी होता है। जीवन में हमने जिन समस्याओं और दुखद अनुभवों को 'निगल लिया' और भीतर दबा लिया, वे तब तक हमारे अवचेतन मन में बने रहते हैं, जब तक कि हम उनका सामना नहीं करते और बुद्धि से उनका समाधान नहीं कर देते।
विशुद्धि चक्र का देवता सृष्टिकर्ता, ब्रह्मा है, जो चेतना का प्रतीक है। ध्यान में जब व्यक्ति की चेतना आकाश में समाहित हो जाती है, हमें ज्ञान और बुद्धि प्राप्त होती है। विशुद्धि चक्र का प्रतीक पशु एक सफेद हाथी है। हमें इसके चित्र में एक चन्द्रमा की छवि भी दिखती है जो मन का प्रतीक है।
विशुद्धि चक्र प्रसन्नता की अनगिनत भावनाओं और स्वतंत्रता को दर्शाता है जो हमारी योग्यता और कुशलता को प्रफुल्लित करता है। विकास के इस स्तर के साथ, एक स्पष्ट वाणी, गायन और भाषण की प्रतिभा के साथ-साथ एक संतुलित और शांत विचार भी होते हैं।
जब तक यह चक्र पूर्ण विकसित नहीं हो जाता, कुछ खास कठिनाइयां अनुभव की जा सकती हैं। विशुद्धि चक्र में रुकावट चिन्ता की भावनाएं, स्वतंत्रता का अभाव, बंधन, टेंटुए और कंठ की समस्याएं उत्पन्न करता है। कुछ शारीरिक कठिनाइयों, जैसे सूजन और वाणी में रुकावट, का भी सामना करना पड़ सकता है।
विशुद्धि चक्र के प्रतीक चित्र में सोलह पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये उन सोलह शक्तिशाली कलाओं (योग्यताओं) का प्रतीक है, जिनसे एक मानव विकास कर सकता है। चूंकि विशुद्धि चक्र ध्वनि का केन्द्र है, संख्या सोलह संस्कृत के सोलह स्वरों की भी प्रतीक है। इस केन्द्र में वाक्सिद्धि अनुभव की जा सकती है, जो एक ऐसी असाधारण योग्यता है कि व्यक्ति जो भी बोले वह सत्य सिद्ध हो जाए।
आज्ञा चक्र : भौंहों के केन्द्र में
आज्ञा =आदेश, ज्ञान
आज्ञा चक्र मस्तक के मध्य में, भौंहों के बीच स्थित है। इस कारण इसे "तीसरा नेत्र” भी कहते हैं। आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केन्द्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह ३ प्रमुख नाडिय़ों, इडा (चंद्र नाड़ी) पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने का स्थान है। जब इन तीनों नाडिय़ों की ऊर्जा यहां मिलती है और आगे उठती है, तब हमें समाधि, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है।
इसका मंत्र है ॐ। आज्ञा चक्र का रंग सफेद है। इसका तत्व मन का तत्व, अनुपद तत्त्व है। इसका चिह्न एक श्वेत शिवलिंगम्, सृजनात्मक चेतना का प्रतीक है। इसमें और बाद के सभी चक्रों में कोई पशु चिह्न नहीं है। इस स्तर पर केवल शुद्ध मानव और दैवी गुण होते हैं।
आज्ञा चक्र के प्रतीक चित्र में दो पंखुडिय़ों वाला एक कमल है जो इस बात का द्योतक है कि चेतना के इस स्तर पर 'केवल दो', आत्मा और परमात्मा (स्व और ईश्वर) ही हैं। आज्ञा चक्र की देव मूर्तियों में शिव और शक्ति एक ही रूप में संयुक्त हैं। इसका अर्थ है कि आज्ञा चक्र में चेतना और प्रकृति पहले ही संयुक्त है, किन्तु अभी भी वे पूर्ण ऐक्य में समाए नहीं हैं।
इस चक्र के गुण हैं - एकता, शून्य, सत, चित्त और आनंद। 'ज्ञान नेत्र' भीतर खुलता है और हम आत्मा की वास्तविकता देखते हैं - इसलिए 'तीसरा नेत्र' का प्रयोग किया गया है जो भगवान शिव का द्योतक है। आज्ञा चक्र 'आंतरिक गुरू' की पीठ (स्थान) है। यह द्योतक है बुद्धि और ज्ञान का, जो सभी कार्यों में अनुभव किया जा सकता है। उच्चतर, नैतिक विवेक के तर्कयुक्त शक्ति के समक्ष अहंकार आधारित प्रतिभा समर्पण कर चुकी है। तथापि, इस चक्र में एक रुकावट का उल्टा प्रभाव है जो व्यक्ति की परिकल्पना और विवेक की शक्ति को कम करता है, जिसका परिणाम भ्रम होता है।
सहस्रार चक्र : मुकुट केन्द्र
सहस्रार =हजार, अनंत, असंख्य
सहस्रार चक्र सिर के शिखर पर स्थित है। इसे "हजार पंखुडिय़ों वाले कमल”, "ब्रह्म रन्ध्र” (ईश्वर का द्वार) या "लक्ष किरणों का केन्द्र” भी कहा जाता है, क्योंकि यह सूर्य की भांति प्रकाश का विकिरण करता है। अन्य कोई प्रकाश सूर्य की चमक के निकट नहीं पहुंच सकता। इसी प्रकार, अन्य सभी चक्रों की ऊर्जा और विकिरण सहस्रार चक्र के विकिरण में धूमिल हो जाते हैं।
सहस्रार चक्र में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति - मेधा शक्ति है। मेधा शक्ति एक हार्मोन है, जो मस्तिष्क की प्रक्रियाओं जैसे स्मरण शक्ति, एकाग्रता और बुद्धि को प्रभावित करता है। योग अभ्यासों से मेधा शक्ति को सक्रिय और मजबूत किया जा सकता है।
सहस्रार चक्र का कोई विशेष रंग या गुण नहीं है। यह विशुद्ध प्रकाश है, जिसमें सभी रंग हैं। सभी नाडिय़ों की ऊर्जा इस केन्द्र में एक हो जाती है, जैसे हजारों नदियों का पानी सागर में गिरता है। यहां अन्तरात्मा शिव की पीठ है। सहस्रार चक्र के जाग्रत होने का अर्थ दैवी चमत्कार और सर्वोच्च चेतना का दर्शन है। जिस प्रकार सूर्योदय के साथ ही रात्रि ओझल हो जाती है, उसी प्रकार सहस्रार चक्र के जागरण से अज्ञान धूमिल (नष्ट) हो जाता है।
यह चक्र योग के उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करता है- आत्म अनुभूति और ईश्वर की अनुभूति, जहां व्यक्ति की आत्मा ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है। जिसे यह उपलब्धि मिल जाती है, वह सभी कर्मों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है - पुनर्जन्म और मृत्यु के चक्र से पूरी तरह स्वतंत्र। ध्यान में योगी निर्विकल्प समाधि (समाधि का उच्चतम स्तर) सहस्रार चक्र पर पहुंचता है, यहां मन पूरी तरह निश्चल हो जाता है और ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय एक में ही समाविष्ट होकर पूर्णता को प्राप्त होते हैं।
सहस्रार चक्र में हजारों पंखुडिय़ों वाले कमल का खिलना संपूर्ण, विस्तृत चेतना का प्रतीक है। इस चक्र के देवता विशुद्ध, सर्वोच्च चेतना के रूप में भगवान शिव है। इसका समान रूप तत्त्व आदितत्त्व, सर्वोच्च, आध्यात्मिक तत्त्व है। मंत्र वही है जैसा आज्ञा चक्र के लिए है- मूल जप ॐ
बिंदु चक्र : चन्द्र चक्र
बिंदु = नोंक, बूँद
बिन्दु चक्र सिर के शीर्ष भाग पर केशों के गुच्छे के नीचे स्थित है। बिन्दु चक्र के चित्र में २३ पंखुडिय़ों वाला कमल होता है। इसका प्रतीक चिह्न चन्द्रमा है, जो वनस्पति की वृद्धि का पोषक है। भगवान कृष्ण ने कहा है : ''मैं मकरंद कोष चंद्रमा होने के कारण सभी वनस्पतियों का पोषण करता हूं" (भगवद्गीता १५/१३)। इसके देवता भगवान शिव हैं, जिनके केशों में सदैव अर्धचन्द्र विद्यमान रहता है। मंत्र है शिवोहम्(शिव हूं मैं)। यह चक्र रंगविहीन और पारदर्शी है।
बिन्दु चक्र स्वास्थ्य के लिए एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है, हमें स्वास्थ्य और मानसिक पुनर्लाभ प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है। यह चक्र नेत्र दृष्टि को लाभ पहुंचाता है, भावनाओं को शांत करता है और आंतरिक सुव्यवस्था, स्पष्टता और संतुलन को बढ़ाता है। इस चक्र की सहायता से हम भूख और प्यास पर नियंत्रण रखने में सक्षम हो जाते हैं, और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाने की आदतों से दूर रहने की योग्यता प्राप्त कर लेते हैं। बिन्दु पर एकाग्रचित्तता से चिन्ता एवं हताशा और अत्याचार की भावना तथा हृदय दमन से भी छुटकारा मिलता है।
बिन्दु चक्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, स्फूर्ति और यौवन प्रदान करता है, क्योंकि यह "अमरता का मधुरस" (अमृत) उत्पन्न करता है। यह अमृतरस साधारण रूप से मणिपुर चक्र में गिरता है, जहां यह शरीर द्वारा पूरी तरह से उपयोग में लाए बिना ही जठराग्नि से जल जाता है। इसी कारण प्राचीन काल में ऋषियों ने इस मूल्यवान अमृतरस को संग्रह करने का उपाय सोचा और ज्ञात हुआ कि इस अमृतरस के प्रवाह को जिह्वा और विशुद्धि चक्र की सहायता से रोका जा सकता है। जिह्वा में सूक्ष्म ऊर्जा केन्द्र होते हैं, इनमें से हरेक का शरीर के अंग या क्षेत्र से संबंध होता है। उज्जाई प्राणायाम और खेचरी मुद्रा योग विधियों में जिह्वा अमृतरस के प्रवाह को मोड़ देती है और इसे विशुद्धि चक्र में जमा कर देती है। एक होम्योपैथिक दवा की तरह सूक्ष्म ऊर्जा माध्यमों द्वारा यह संपूर्ण शरीर में पुन: वितरित कर दी जाती है, जहां इसका आरोग्यकारी प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।
Wow great information 🙏👍
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी है जी🌹🌹🌹
ReplyDeleteजानदार और शानदार 👏🏻👏🏻
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी आपने शुक्रिया जी
ReplyDeleteवाह इतनी खूबसूरत जानकारी क्या आपने भी कभी अपनाया इसे
ReplyDeleteहम मेडिटेशन करते हैं, अभी यहां तक नहीं पहुंचे।
DeleteGood information
ReplyDeleteGood information
ReplyDeleteVery nice information रूपा ji Thank you so much 😊🙏🏻
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी है 👌👍
ReplyDeleteअत्यंत उपयोगी जानकारी।
ReplyDeleteअच्छी और उपयोगी जानकारी
ReplyDeleteNice information
ReplyDeleteVery nice information...
ReplyDeleteVᴇʀʏ Nɪᴄᴇ Iɴғᴏʀᴍᴀᴛɪᴏɴ 👌👌👌
ReplyDeleteBest way to maintain healthy life👍🏻
ReplyDeleteजिन लोगों का विशुद्धि चक्र अवरुद्ध होता है, वे अक्सर अपनी गलतियों के प्रति अंधे होते हैं और अपने दुख और दुर्भाग्य का दोष दूसरों पर डालने की कोशिश करते हैं।
ReplyDeleteThank you <3
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