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शब्दों की ताकत

शब्दों की ताकत

एक नौजवान चीता पहली बार शिकार करने निकला। अभी वो कुछ ही आगे बढ़ा था कि एक लकड़बग्घा उसे रोकते हुए बोला, "अरे छोटू, कहाँ जा रहे हो तुम ?"

शब्दों की ताकत

"मैं तो आज पहली बार खुद से शिकार करने निकला हूँ !"चीता रोमांचित होते हुए बोला।

 हा-हा-हा-, लकड़बग्घा हंसा, अभी तो तुम्हारे खेलने-कूदने के दिन हैं, तुम इतने छोटे हो, तुम्हे शिकार करने का कोई अनुभव भी नहीं है, तुम क्या शिकार करोगे? लकड़बग्घे की बात सुनकर चीता उदास हो गया।

दिन भर शिकार के लिए वो बेमन इधर-उधर घूमता रहा, कुछ एक प्रयास भी किये पर सफलता नहीं मिली और उसे भूखे पेट ही घर लौटना पड़ा। अगली सुबह वो एक बार फिर शिकार के लिए निकला।

कुछ दूर जाने पर उसे एक बूढ़े बन्दर ने देखा और पुछा, "कहाँ जा रहे हो बेटा ?" "बंदर मामा, मैं शिकार पर जा रहा हूँ"- चीता बोला। बहुत अच्छे बन्दर बोला - ” तुम्हारी ताकत और गति के कारण तुम एक बेहद कुशल शिकारी बन सकते हो। जाओ तुम्हे जल्द ही सफलता मिलेगी।" यह सुन चीता उत्साह से भर गया और कुछ ही समय में उसने एक छोटे हिरन का शिकार कर लिया।

हमारी ज़िन्दगी में “शब्द” बहुत मायने रखते हैं। दोनों ही दिन चीता तो वही था, उसमें वही फूर्ति और वही ताकत थी पर जिस दिन उसे हतोत्साहित किया गया वो असफल हो गया और जिस दिन प्रोत्साहित किया गया वो सफल हो गया।


शिक्षा

इस छोटी सी कहानी से हम तीन ज़रूरी बातें सीख सकते हैं:-

पहली, हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम अपने “शब्दों” से किसी को प्रोत्साहित करें, हतोत्साहित नहीं। इसका ये मतलब नहीं कि हम उसे उसकी कमियों से अवगत न करायें, या बस झूठ में ही प्रोत्साहित करें।

दूसरी हम ऐसे लोगों से बचें जो हमेशा नकारात्मक सोचते और बोलते हों, और उनका साथ लेंवे जिनकी सोच सकारात्मक हो।

तीसरी और सबसे अहम बात, हम खुद से क्या बात करते हैं, खुद में हम कौन से शब्दों का प्रयोग करते हैं इसका सबसे ज्यादा ध्यान रखें, क्योंकि ये “शब्द” बहुत ताकतवर होते हैं। क्योंकि ये “शब्द” ही हमारे विचार बन जाते हैं, और ये विचार ही हमारी ज़िन्दगी की हकीकत बन कर सामने आते हैं, इसलिए दोस्तों,शब्दों की शक्ति को पहचानिये, जहाँ तक हो सके पॉजिटिव वर्ड्स का प्रयोग करिये, इस बात को समझिए कि ये आपकी ज़िन्दगी बदल सकते हैं।

वन्यजीव सफारी (The Wild life safari) / चिड़ियाघर सफारी, राजगीर /जू-सफारी (Zoo safari) /नेचर सफारी (Nature Safari), Rajgir- 1

वन्यजीव सफारी (The Wild life safari)

नालंदा यूनिवर्सिटी के बाद अब चलते हैं राजगीर के "वाइल्ड लाइफ सफारी (वन्यजीव सफारी)" की तरफ, जो 16 फरवरी 2022 को जनता के लिए खोला गया था। वाइल्डलाइफ सफारी के अंदर बहुत कुछ देखने के साथ-साथ बहुत कुछ करने के लिए भी है। यहां हम प्रकृति के नजारे का लुत्फ भी उठा सकते हैं और साथ ही अगर आप एडवेंचर के शौकीन हैं तो वो ख्वाहिशें भी यहां पूरी हो सकती हैं। 

वन्यजीव सफारी (The Wild life safari)

वन्यजीव सफारी (The Wild life safari)

राजगीर पांच पहाड़ियों (विपुलगिरि, रत्नागिरी, उदयगिरि, स्वर्णगिरि और वैभारगिरि) से घिरा एक अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल है। राजगीर की वादियों की मनमोहक छटा सैलानियों को अपनी तरफ आकर्षित करने वाली है और इस खूबसूरती में यह वन्यजीव सफारी चार चाँद लगा रहा है। इस वन्यजीव सफारी के दो पार्ट कर सकते हैं - "नेचर सफारी (Nature Safari) और ज़ू सफारी (Zoo Safari)"। 

नेचर सफारी में हम यहां के खूबसूरत नजारों के बीच लुत्फ उठा सकते हैं - 👇

  • जू-सफारी (वन्यजीव सफ़ारी/ Zoo safari), 
  • ग्लास ब्रिज (Glass Bridge), 
  • पार्क (Park), 
  • सस्पेंशन ब्रिज (Suspension Bridge), 
  • जिपलाइन (Zipline), 
  • स्काई बाइकिंग (Sky Biking), 
  • राइफल शूटिंग (Rifle Shooting), 
  • वाल क्लाइम्बिंग (Wall Climbing), 
  • आर्चरी (Archery)
  • मड हट (Mud Hut) 
वन्यजीव सफारी (The Wild life safari) Entry Point
View of Entry Point 

हमने ऑनलाइन टिकट बुक कर रखी थी। कुछ लोग वहां पहुँच कर भी टिकट बुक कर रहे थे। अंदर दो लाइन थी एक ज़ू सफारी के लिए और एक नेचर सफारी के लिए। कुछ लोगों को एक साथ अंदर भेजा जा रहा था। जिस गैलरी से होकर अंदर जाना था वहाँ का मुख्य आकर्षण आदमकद जंगली जानवरों की मूर्तियों वाला एक सेल्फी प्वाइंट है। 

वन्यजीव सफारी (The Wild life safari)

इसके बाद हम पहुँच जाते हैं एक 180 डिग्री 3डी थिएटर ओरिएंटेशन सेंटर में। जहाँ हमें लगभग 10 मिनट की वीडियो क्लिप दिखाई जाती है, जिसमें वन्य जीवों के बारे में जानकारी दी जाती है और साथ ही प्लास्टिक के दुष्प्रभाव को बताया जाता है। हम कह सकते हैं कि इस वीडियो में हमें जंगल में जंगली जानवरों को देखने के अलावा, आगंतुकों को वन्य जीवन और उनके संरक्षण के बारे में जागरूक करने का प्रयास किया गया है। 

वन्यजीव सफारी (The Wild life safari)

अंदर खाने पीने की व्यवस्था है, जो सामान्य रेट पर ही उपलब्ध है, जिसमें चाट, समोसे, कचौड़ी, गुलाब जामुन, चाय, कोल्ड ड्रिंक्स हैं, जहाँ हमें बैठ कर अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी होती है। बारी आने पर अनाउंसमेंट होती और फिर शुरू होता ज़ू सफारी और नेचर सफारी का सफर। 

वन्यजीव सफारी (The Wild life safari)
Wow❣️

जू-सफारी (Zoo safari)

अनाउंसमेंट के बाद हमें जाकर गाड़ी में बैठ जाना होता है और फिर हम पहुँच जाते हैं जंगली जानवरों के बीच में, जहाँ जानवर खुले में होते और हम पिंजरे में मतलब गाड़ी में। 

ज़ू तो हमने बहुत से घूम रखे हैं कल पटना का ज़ू भी घूम कर ही आये थे, पर बहुत अंतर है ज़ू और ज़ू सफारी में। ज़ू में जानवर कैद में होते और ज़ू सफारी में हम कैद में होते। थोड़ा जान लेते हैं इस ज़ू सफारी के बारे में। इस सफारी के अंदर पार्क भी है, जहां पौधों को काटकर अलग-अलग जानवरों की आकृति दी गई है।

जू-सफारी (Zoo safari), Rajgir

बिहार के इस पहले जू-सफारी में पर्यटकों की सुविधा का खास ख्याल रखा गया है। पर्यटक शीशे की बंद गाड़ी में सफारी का मजा लेते हैं। गर्मी के दिनों में सैलानियों को परेशानी न हो इस वजह से सभी गाड़ियांँ एयर कंडीशन हैं। इन गाड़ियों में एक ड्राइवर होता, निःसंदेह जो गाड़ी चलाता है और उसकी बगल की सीट पर एक कंडक्टर था, जो टिकट देने के लिए नहीं बल्कि हास्यात्मक तरीके से वहाँ के जानवरों की जानकारी दे रहा था। 

जू-सफारी (Zoo safari), Rajgir

191 हेक्टेयर (470 एकड़) में बने जू सफारी में शेर, बाघ, तेंदुआ, भालू और हिरण का अलग-अलग सफारी बना हुआ है। अपने इलाके में ये जानवर विचरण करते नजर आते हैं। हमलोग मजबूत ग्लास (शीशा) लगे बंद वाहन में सवार होकर उन्हें नजदीक से देख पा रहे थे। सभी जानवरों के अलग-अलग सफारी हैं। सुरक्षा की दृष्टि से प्रवेश द्वार पर दो-दो गेट बने हैं। एक में प्रवेश के बाद उसके बंद होने के बाद दूसरा गेट खुलता है और हम पहुँच जाते हैं जानवरों के बीच। 

मुख्य जंगली जानवरों की प्रजातियों में चीतल , सांभर , काला हिरण , हॉग हिरण, बार्किंग हिरण, जंगली सूअर , स्लॉथ भालू , भारतीय तेंदुआ , रॉयल बंगाल टाइगर और एशियाई शेर शामिल हैं। आगंतुकों को एक सुरक्षित पर्यावरण-अनुकूल वाहन से जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में करीब से देखना ही इस ज़ू सफारी को अन्य ज़ू से अलग बनाता है।

जू-सफारी (Zoo safari), Rajgir
गाड़ी के अंदर से ली गयी तस्वीरें 

ब्लॉग बहुत लंबा हो रहा इसलिए आज सिर्फ ज़ू सफारी। कल चलते हैं नेचर सफारी के सफर पर।  

अल्बर्ट आइंस्टीन || Albert Einstein

 अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein)

Born: 14 March 1879, Ulm, Germany
Died: 18 April 1955 (age 76 years), Princeton, New Jersey, United States

एक जर्मन मूल केसैद्धांतिक भौतिक विज्ञानीजिन्हें व्यापक रूप से सभी समय के सबसे महान और सबसे प्रभावशाली वैज्ञानिकों में से एक माना जाता है।

अल्बर्ट आइंस्टीन || Albert Einstein ||

अल्बर्ट आइंस्टीन का जीवन परिचय 

शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो अल्बर्ट आइंस्टीन को ना जानता हो। अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व के जाने-माने वैज्ञानिक और भौतिक शास्त्री थे। आज ही के दिन 14 मार्च 1879 को अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म हुआ था। अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने जीवन में बहुत से अविष्कार किये, कुछ अविष्कारों के लिए आइंस्टीन का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। वे एक सफल और बहुत ही बुद्धिमानी वैज्ञानिक थे। आधुनिक समय में भौतिकी को सरल बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। सन 1921 में अल्बर्ट आइंस्टीन को उनके अविष्कारों के लिए नोबल पुरस्कार से नवाजा गया था। अल्बर्ट आइंस्टीन ने कड़ी मेहनत कर यह मुकाम हासिल किया था। अल्बर्ट आइंस्टीन को गणित में भी बहुत रूचि थी। इन्होंने भौतिकी को सरल तरीके से समझाने के लिए बहुत से अविष्कार किये, जोकि लोगों के लिए प्रेरणादायक है। 

अल्बर्ट आइंस्टीन ||  Albert Einstein

अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म और शिक्षा

अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च सन 1879 को जर्मनी के उल्म शहर में हुआ था। किन्तु जर्मनी के म्युनिच शहर में वे बड़े हुए और उनकी शिक्षा का आरम्भ भी वही से हुआ। आइंस्टीन बचपन में पढ़ाई में बहुत ही कमजोर थे, जिसके कारण उनके कुछ अध्यापकों ने उन्हें मानसिक रूप से विकलांग कहना शुरू कर दिया। 9 साल की उम्र तक वे बोलना नहीं जानते थे। वे प्रकृति के नियमों, आश्चर्य की वेदना का अनुभव, कंपास की सुई की दिशा आदि में मंत्रमुग्ध रहते थे। उन्होंने 6 साल की उम्र में सारंगी बजाना शुरू कर दिया था और अपनी पूरी जिन्दगी में इसे बजाना जारी रखा। 12 साल की उम्र में इन्होंने ज्यामिति की खोज की एवं उसका सजग और कुछ प्रमाण भी निकाला। 16 साल की उम्र में, वे गणित के कठिन से कठिन प्रश्न को बड़ी आसानी से हल कर लेते थे। 

अल्बर्ट आइंस्टीन || Albert Einstein ||

अल्बर्ट आइंस्टीन की सेकेंडरी पढ़ाई 16 साल की उम्र तक ख़त्म हो चुकी थी। उनको स्कूल पसंद नही था, वे बिना किसी को परेशान किये, विश्वविद्यालय में जाने के अवसर को ढूंढने की योजना बनाने लग। उनके अध्यापक ने उन्हें वहाँ से हटा दिया, क्यूंकि उनका बर्ताव अच्छा नहीं था, जिसके कारण उनके सहपाठी प्रभावित होते थे। अल्बर्ट आइंस्टीन स्विट्ज़रलैंड के ज्यूरिच में "फ़ेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी" में जाने के लिए प्रयास करने लगे, किन्तु वे वहाँ के दाखिले की परीक्षा में असफल हुए। फिर उनके प्राध्यापक ने सलाह दी कि सबसे पहले उन्हें स्विट्ज़रलैंड के आरौ में "कैनटोनल स्कूल" में डिप्लोमा करना चाहिए। उसके बाद सन 1896 में फ़ेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में अपने आप ही दाखिला मिल जायेगा। उन्होंने प्राध्यापक की सलाह को समझा, वे यहाँ जाने के लिए बहुत ज्यादा इक्छुक थे और वे भौतिकी और गणित में अच्छे थे। 

अल्बर्ट आइंस्टीन ||  Albert Einstein

सन 1900 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने फ़ेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से अपने ग्रेजुएशन की परीक्षा पास की, किन्तु उनके एक अध्यापक उनके खिलाफ थे, उनका कहना था की आइंस्टीन युसूअल युनिवर्सिटी असिस्टेंटशिप के लिए योग्य नही है। 1902 में उन्होंने स्विट्ज़रलैंड के बर्न में पेटेंट ऑफिस में एक इंस्पेक्टर को रखा। उन्होंने 6 महीने बाद मरिअक से शादी कर ली जो उनकी ज्युरिच में सहपाठी थी। उनके 2 बेटे हुए, तब वे बर्न में ही थे और उनकी उम्र 26 साल थी। उस समय उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और अपना पहला क्रांतिकारी विज्ञान सम्बन्धी दस्तावेज लिखा। 

अल्बर्ट आइंस्टीन || Albert Einstein ||

अल्बर्ट आइंस्टीन के रोचक तथ्य 

  • अल्बर्ट आइंस्टीन अपने आप को संशयवादी कहते थे, वे खुद को नास्तिक नहीं कहते थे।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन अपने दिमाग में ही सारे प्रयोग का हल निकाल लेते थे।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन बचपन में पढाई में और बोलने में कमजोर हुआ करते थे।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन की मृत्यु के बाद एक वैज्ञानिक ने उनके दिमाग को चुरा लिया था, फिर वह 20 साल तक एक जार में बंद था।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन को नॉबल पुरस्कार भी मिला किन्तु उसकी राशि उन्हें नही मिल पाई।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन को राष्ट्रपति के पद के लिए भी अवसर मिला।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन युनिवर्सिटी की दाखिले की परीक्षा में फेल भी हो चुके है।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन की याददाश बहुत ख़राब होने के कारण, उनको किसी का नाम, नम्बर याद नही रहता था।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन की आँखे एक सुरक्षित डिब्बे में रखी हुई है।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन के पास खुद की गाड़ी नही थी, इसलिए उनको गाड़ी चलाना भी नहीं आता था।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन का एक गुरुमंत्र था "अभ्यास ही सफलता का मूलमंत्र है"। 

अल्बर्ट आइंस्टीन के सुविचार 

  • वक्त बहुत कम है यदि हमें कुछ करना है तो अभी से शुरुआत कर देनी चाहिए।
  • आपको खेल के नियम सिखने चाहिए और आप किसी भी खिलाड़ी से बेहतर खेलेंगे।
  • मुर्खता और बुद्धिमता में सिर्फ एक फर्क होता है कि बुद्धिमता की एक सीमा होती है। 


अल्बर्ट आइंस्टीन को पुरस्कार 

अल्बर्ट आइंस्टीन को निम्न पुरस्कारों से नवाज़ा गया 

  • भौतिकी का नॉबल पुरस्कार सन 1921 में दिया गया।
  • मत्तयूक्की मैडल सन 1921 में दिया गया।
  • कोपले मैडल सन 1925 में दिया गया।
  • मैक्स प्लांक मैडल सन 1929 में दिया गया।
  • शताब्दी के टाइम पर्सन का पुरस्कार सन 1999 में दिया गया।
अल्बर्ट आइंस्टीन ||  Albert Einstein

अल्बर्ट आइंस्टीन की मृत्यु 

जर्मनी में जब हिटलर शाही का समय आया, तो अल्बर्ट आइंस्टीन को यहूदी होने के कारण जर्मनी छोड़ कर अमेरिका के न्यूजर्सी में आकर रहना पड़ा। अल्बर्ट आइंस्टीन वहाँ के प्रिस्टन कॉलेज में अपनी सेवाएं दे रहे थे और उसी समय 18 अप्रैल 1955 में उनकी मृत्यु हो गई।

English Translate

Albert Einstein

Born: 14 March 1879, Ulm, Germany
Died: 18 April 1955 (age 76 years), Princeton, New Jersey, United States


A German-born theoretical physicist who is widely considered one of the greatest and most influential scientists of all time.

Biography of Albert Einstein

There is hardly any person who does not know Albert Einstein. Albert Einstein was a world famous scientist and physicist. On this day, March 14, 1879, Albert Einstein was born. Albert Einstein made many inventions in his life, for some inventions Einstein's name got recorded in the pages of history. He was a successful and very intelligent scientist. He has made a huge contribution in simplifying physics in modern times. In 1921, Albert Einstein was awarded the Nobel Prize for his inventions. Albert Einstein had achieved this position by working hard. Albert Einstein was also very interested in mathematics. He made many inventions to explain physics in a simple way, which is inspiring for people.

Birth and education of Albert Einstein

Albert Einstein was born on March 14, 1879 in the city of Ulm, Germany. But he grew up in Munich city of Germany and his education also started from there. Einstein was very weak in studies in his childhood, due to which some of his teachers started calling him mentally handicapped. He did not know how to speak until the age of 9. He was fascinated by the laws of nature, the pang of wonder, the direction of the compass needle, etc. He started playing Sarangi at the age of 6 and continued playing it throughout his life. At the age of 12, he discovered geometry and also derived some proofs of it. At the age of 16, he could solve the most difficult mathematics problems with ease.

Albert Einstein's secondary education was over by the age of 16. He didn't like school, so he started planning to find a chance to go to university without bothering anyone. His teacher removed him from there because his behavior was not good, which affected his classmates. Albert Einstein tried to get into the "Federal Institute of Technology" in Zurich, Switzerland, but he failed the entrance examination there. His professor then advised him to first pursue a diploma at the "Cantonal School" in Aarau, Switzerland. After that, he would automatically get admission in the Federal Institute of Technology in 1896. He understood the professor's advice, he was very interested in going here, and he was good at physics and mathematics.

In 1900, Albert Einstein passed his graduation examination from the Federal Institute of Technology, but one of his teachers was against him, saying that Einstein was not qualified for the usual university assistantship. In 1902 he held an inspectorship at the patent office in Bern, Switzerland. He married Mariak, his classmate in Zurich, six months later. He had two sons, when he was still in Bern and he was 26 years old. At that time he obtained his doctorate degree and wrote his first revolutionary scientific paper.

Interesting facts about Albert Einstein

  • Albert Einstein called himself a skeptic, he did not call himself an atheist.
  • Albert Einstein used to solve all the experiments in his own mind.
  • Albert Einstein was weak in studies and speaking in his childhood.
  • After Albert Einstein's death, a scientist stole his brain, then it was kept in a jar for 20 years.
  • Albert Einstein also received the Nobel Prize but he could not get its amount.
  • Albert Einstein also got the opportunity for the post of President.
  • Albert Einstein has also failed in the university entrance examination.
  • Due to Albert Einstein's very poor memory, he could not remember anyone's name or number.
  • Albert Einstein's eyes are kept in a safe box.
  • Albert Einstein did not have his own car, so he did not even know how to drive.
  • One of Albert Einstein's gurumantra was "Practice is the key to success".

Thoughts of Albert Einstein

  • Time is very short, if we have to do something then we should start from now.
  • You must learn the rules of the game and you will play better than any player.
  • The only difference between stupidity and intelligence is that intelligence has a limit.

Albert Einstein Award

Albert Einstein was awarded the following awards

  • The Nobel Prize for Physics was given in 1921.
  • Matteucci Medal was awarded in 1921.
  • Copley Medal was given in 1925.
  • Max Planck Medal was given in 1929.
  • The Time Person of the Century award was given in 1999.

death of albert einstein

When the time of Hitler's rule came in Germany, Albert Einstein, being a Jew, had to leave Germany and come to live in New Jersey, America. Albert Einstein was serving at Princeton College there.

रामनवमी 2024 (Ram Navami 2024)

रामनवमी (Ram Navami)

सभी पाठकों को राम नवमी की हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाइयाँ 

सुबह-सुबह लो राम का नाम,
पूरे होंगे बिगड़े अधूरे काम
राम जिनका नाम है, अयोध्या जिनका धाम है,
ऐसे रघुनंदन को हमारा प्रणाम है।

रामनवमी 2024 (Ram Navami 2024)

रामनवमी (Ram Navami ) का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है, इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन त्रेता युग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए तथा धर्म की पुनः स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। श्री रामचंद्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से राजा दशरथ के घर में हुआ था।

रामनवमी 2024 (Ram Navami 2024)

कबीर साहिब जी आदि राम की परिभाषा बताते हैं कि आदि राम वह अविनाशी परमात्मा हैं जो सबका सृजनहार व पालनहार हैं, जिसके एक इशारे पर धरती और आकाश काम करते हैं, जिसके स्तुति में 33 करोड़ देवी देवता नतमस्तक रहते हैं जो पूर्ण मोक्ष दायक वह स्वयंभू है।

"एक राम दशरथ का बेटा,
एक राम घट घट में बैठा,
एक राम का सकल उजियारा
एक राम जगत से न्यारा" ।।
रामनवमी 2024 (Ram Navami 2024)

इस बार 17 अप्रैल को नवमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। राम नवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था। अतः इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते हैं।

नालंदा विश्वविद्यालय || Nalanda University

नालंदा विश्वविद्यालय 

नालंदा एक प्रशंसित महाविहार था, जो भारत में प्राचीन साम्राज्य मगध (आधुनिक बिहार) में एक बड़ा बौद्ध मठ था। यह बिहार शरीफ शहर के पास पटना से लगभग 95 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। नालंदा को तक्षशिला के बाद दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। वहीं, आवासीय परिसर के तौर पर यह पहला विश्वविद्यालय है, यह 800 साल तक अस्तित्व में रहा।

नालंदा विश्वविद्यालय || Nalanda University

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुंदर मूर्तियां स्थापित थीं, जो अब नष्ट हो चुकी हैं। नालंदा विश्वविद्यालय की दीवारों के अवशेष आज भी इतनी चौड़ी हैं कि इनके ऊपर ट्रक भी चलाया जा सकता है।

नालंदा विश्वविद्यालय || Nalanda University

नालंदा संस्कृत शब्‍द 'नालम् + दा' से बना है। संस्‍कृत में 'नालम' का अर्थ 'कमल' होता है। कमल ज्ञान का प्रतीक है। नालम् + दा अर्थात ज्ञान देने वाली। कालक्रम से यहाँ महाविहार की स्‍थापना के बाद इसका नाम 'नालंदा महाविहार' रखा गया, जो वास्तव में इसका प्रतीक है, वह इसकी संस्कृत मूल-व्युत्पत्ति है, “न अलं ददाति: "वह जो कम नहीं देता है।" प्रसिद्ध चीनी बौद्ध तीर्थयात्री जुआनज़ैंग (ह्वेन-त्सांग) ने नालंदा का अर्थ "उपहारों का अंत नहीं" और "बिना रुकावट के दान" बताया है। 

नालंदा विश्वविद्यालय || Nalanda University

इस विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं सदी में गुप्त काल के दौरान हुई थी। तब कुमारगुप्त प्रथम ने इसकी नींव रखी थी और उस समय यह दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय बना था। विश्वविद्यालय काफ़ी बड़ा था और इसमें 300 कमरे 7 बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसे धर्म गूंज कहा जाता था, जिसका मतलब ‘सत्य का पर्वत’ से था। नालंदा विश्वविद्यालाय के तीन महान् पुस्तकालय थे-

  • रत्नोदधि,
  • रत्नसागर
  • रत्नरंजक।
नालंदा विश्वविद्यालय || Nalanda University

नालन्दा विश्वविद्यालय भारत का सबसे लंबे समय तक चलने वाला विश्वविद्यालय था। इसका पुनर्निर्माण छठी शताब्दी ईसा पूर्व में नरसिम्हा देव द्वारा किया गया था और यह 13वीं शताब्दी तक सक्रिय था। इस प्रकार यह विश्वविद्यालय 700 वर्षों तक बिना किसी रुकावट के चलता रहा। यह उस समय दुनिया भर में प्रशंसित विश्वविद्यालय था और दूर-दूर के देशों से छात्र यहां आकर ज्ञान प्राप्त करते थे। 

नालंदा विश्वविद्यालय || Nalanda University

प्रवेश एक बहुत ही कठिन प्रवेश परीक्षा के आधार पर सुरक्षित किया जाता था और यहां छात्रों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती थी। इसके साथ उनका रहना और खाना भी पूरी तरह निःशुल्क होता था। विज्ञान, दर्शन, चिकित्सा, युद्ध आदि सहित लगभग सभी विषयों पर ज्ञान प्रदान किया जाता था। इसकी प्रसिद्धि न केवल भारत में बल्कि दक्षिण-पूर्व और मध्य एशिया में भी थी। इसका गणित के साथ-साथ खगोलीय विभाग भी बहुत प्रसिद्ध था। वास्तव में नालंदा दुनिया का पहला विश्वविद्यालय था, जिसने खगोल विज्ञान को गणित से अलग दर्जा दिया था।

विश्वविद्यालय में चीन, जापान, कोरिया, फारस, ग्रीस, इंडोनेशिया, मंगोलिया और कई अन्य देशों के छात्र थे और पढ़ाए जाने वाले विषयों में इतिहास, अर्थशास्त्र, भूगोल, खगोल विज्ञान, कानून, चिकित्सा, भूविज्ञान, गणित, वास्तुकला, धातु विज्ञान, भाषा विज्ञान और कई अन्य विषय शामिल थे। .

तकरीबन 10,000 से ज़्यादा विद्यार्थी, यहां पर एक साथ पढ़ाई करते थे, जिन्हें पढ़ाने के लिए 2700 से ज्यादा गुरु थे। दुनिया के कई विद्वान, यहां से शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं। इस विश्वविद्यालय की एक खास बात यह थी कि, यहां लोकतान्त्रिक प्रणाली से सभी कार्य होता था। कोई भी फैसला सभी की सहमति से लिया जाता था। मतलब, सन्यासियों के साथ आचार्य और विद्यार्थी भी अपनी राय देते थे।

नालंदा में पढ़ाने वाले कुछ उल्लेखनीय विद्वानों में नागार्जुन (सबसे महत्वपूर्ण महायान दार्शनिकों में से एक), दिननाग (भारतीय तर्कशास्त्र के बौद्ध संस्थापकों में से एक), धर्मपाल (बंगाल क्षेत्र के पाल साम्राज्य के दूसरे शासक), शीलभद्र, चन्द्रपाल, गुणमति, स्थिरमति, प्रभामित्र, जिनमित्र, ज्ञानचन्द्र, वसुबन्धु, असंग,  धर्मकीर्ति  आदि थे। 

नालंदा में बौद्ध धर्म के अतिरिक्त हेतुविद्या, शब्दविद्या, चिकित्सा शास्त्र, अथर्ववेद तथा सांख्य से संबंधित विषय भी पढ़ाए जाते थे। युवानच्वांग ने लिखा था कि नालंदा के एक सहस्त्र विद्वान् आचार्यों में से सौ ऐसे थे, जो सूत्र और शास्त्र जानते थे, पांच सौ 3 विषयों में पारंगत थे और बीस 50 विषयों में। केवल शीलभद्र ही ऐसे थे जिनकी सभी विषयों में समान गति थी।

इनके भवनों की ऊँचाई का वर्णन करते हुए युवानच्वांग ने लिखा है कि 'इनकी सतमंजिली अटारियों के शिखर बादलों से भी अधिक ऊँचे थे और इन पर प्रातःकाल की हिम जम जाया करती थी। इनके झरोखों में से सूर्य का सतरंगा प्रकाश अन्दर आकर वातावरण को सुंदर एवं आकर्षक बनाता था। इन पुस्तकालयों में सहस्त्रों हस्तलिखित ग्रंथ थे।' जैन ग्रंथ 'सूत्रकृतांग' में नालंदा के 'हस्तियान' नामक सुंदर उद्यान का वर्णन है। 

नालंदा विश्वविद्यालय || Nalanda University

2006 के भारतीय राष्ट्रपति अब्दुल कलाम द्वारा इस प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की परियोजना पर विचार किया गया था, तो इसे दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, सिंगापुर जैसे विविध देशों से उत्साही प्रतिक्रिया और सहायता प्राप्त हुई थी।

कथित तौर पर नालंदा विश्वविद्यालय को आक्रमणकारियों द्वारा तीन बार नष्ट किया गया था, लेकिन केवल दो बार ही इसका पुनर्निर्माण किया गया। पहला विनाश स्कंदगुप्त (455-467 ई.) के शासनकाल के दौरान मिहिरकुल के अधीन हूणों द्वारा किया गया था ।

माना जाता है कि पहले दो विनाश हूण राजा मिहिरकुल और गौड़ राजा शशांक द्वारा किए गए थे। मिहिरकुल हिंदू नहीं एक अल्चोन हूण राजा था, जिसने 515 ई. से 540 ई. तक अधिकांश उत्तर पश्चिमी भारत और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों पर शासन किया। वह हूण जनजाति से था जो एक मध्य एशियाई खानाबदोश जनजाति थी और वेदों के अनुसार उन्हें "म्लेच्छ" माना जाता था।

सोंग यून द्वारा लिखित चीनी बौद्ध ग्रंथों में यह भी उल्लेख है कि मिहिराकुला किसी भी धर्म में विश्वास नहीं करता था और संभवतः नास्तिक था। बाद में मिहिरकुल के साम्राज्य पर गुप्तों का कब्ज़ा हो जाने के बाद, उन्होंने स्वयं कट्टर वैष्णव हिंदू बनकर विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण किया। स्कंद के उत्तराधिकारियों ने एक बड़ी संरचना जोड़कर नालंदा विश्वविद्यालय तथा उसके पुस्तकालय में सुधार किया।

दूसरा विनाश 7वीं शताब्दी के आरंभ में गौड़ों द्वारा हुआ । इस बार बौद्ध राजा हर्षवर्द्धन (606-648 ई.) ने विश्वविद्यालय का जीर्णोद्धार कराया।

तीसरा और सबसे विनाशकारी हमला तब हुआ जब 1193 में तुर्की के भगोड़े बख्तियार खिलजी के नेतृत्व वाली मुस्लिम सेना ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया ।

इतिहास में बताया गया कि एक बार बख्तियार खिलजी बीमार पड़ गया था और उसके दरबार का कोई हकीम उसे ठीक करने में सफल नहीं रहा। तभी किसी ने उसे सलाह दी कि वे खुद को नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्य राहुल श्री भद्र से ठीक करवा ले।

खिलजी को अपनी इस्लामी संस्कृति पर बहुत गर्व था और उसने अपने धर्म के बाहर किसी व्यक्ति से अपना इलाज कराने से इनकार कर दिया था, लेकिन उनकी तबीयत दिन बा दिन खराब होती गई और उनके पास नालंदा से श्री भद्र देव को आमंत्रित करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था। लेकिन खिलजी ने इस्लाम की मदबुद्धिता में एक शर्त रखी और आचार्य से बिना किसी स्पर्श किए और बिना किसी दवा के उसे ठीक करने के लिए कहा। तब आयुर्वेद के श्रेष्ठ वैद्य श्री भद्र जी ने खिलजी को उसकी बीमारी के इलाज के लिए कुरान पढ़ने के लिए कहा।

बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के बताए अनुसार कुरान को पढ़ा और ठीक हो गया। ऐसा कहा जाता है कि राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों पर एक दवा का लेप लगा दिया था, वह थूक के साथ उन पन्नों को पढ़ता गया और ठीक होता चला गया। ठीक होने के बाद खिलजी खुश होने की बजाय इस तथ्य से परेशान रहने लगा कि एक भारतीय विद्वान और शिक्षक को उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञान था। फिर उसने देश से ज्ञान, बौद्ध धर्म और आयुर्वेद की जड़ों को नष्ट करने का फैसला किया। परिणाम स्वरूप खिलजी ने नालंदा की महान पुस्तकालय में आग लगा दी और लगभग 9 मिलियन पांडुलिपियों को जला दिया। 

ऐसा कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थीं कि वह तीन महीने तक जलती रहीं। इसके बाद खिलजी के आदेश पर तुर्की आक्रमणकारियों ने नालंदा के हजारों धार्मिक विद्वानों और भिक्षुओं की भी हत्या कर दी। 

Nalanda University video 

वैसे तो नालंदा विश्वविद्यालय के बचे हुए खंडहर और भी बहुत कुछ बयाँ करते हैं, जिसकी चर्चा फिर कभी करेंगे। अभी राजगीर ट्रिप को आगे बढ़ाते हैं और अगले ब्लॉग में चलेंगे "वाइल्ड लाइफ सफारी".... 

राजगीर || Rajgir

राजगीर (Rajgir) 

चलिए आज आपको बिहार के राजगीर लिए चलते हैं। राजगीर, जय प्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, पटना से 99 - 100 km की दूरी पर (लगभग 3 घंटे का समय लगा) स्थित बेहद खूबसूरत जगह है। 

Rupa Oos ki ek Boond
Jay Prakash Narayan International Airport, Patna

राजगीर इन 5 पहाड़ियों विपुलगिरि, रत्नागिरी, उदयगिरि, स्वर्णगिरि और वैभारगिरि से घिरा है। नालंदा ज़िले में स्थित राजगीर एक इंटरनेशनल टूरिस्ट प्लेस है और ऐतिहसिक धरोहरों के साथ यहाँ हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म से जुड़ी कई इमारत, स्मारक और मंदिर मौजूद हैं। पहाड़ी इलाका होने की वजह से यह और भी मनमोहक हो जाता है। यहाँ घूमने के लिए बहुत जगह है और हर जगह का अपना एक इतिहास है, जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University), शारिपुत्र स्तूप (Shariputra Stupa), ह्वेन त्सांग स्मारक (Hieun Tsang memorial), शांति स्तूप (Shanti stupa), पावापुरी जल मंदिर (Pawapuri Jal Mandir) शामिल है। 

राजगीर || Rajgir

इसके साथ ही बिहार को पर्यटन के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए सरकार लगातार काम कर रही है। इसी क्रम में बिहार के राजगीर में नेचर सफारी का निर्माण कराया गया है। नेचर सफारी के अंदर ही जू-सफारी (वन्यजीव सफ़ारी), ग्लास ब्रिज, पार्क, सस्पेंशन ब्रिज (Suspension Bridge), जिपलाइन (Zipline), स्काई बाइकिंग (Sky Biking), राइफल शूटिंग (Rifle Shooting), वाल क्लाइम्बिंग (Wall Climbing), आर्चरी (Archery) और मड हट (Mud Hut) है। इस 191 हेक्टेयर (470 एकड़) में फैले नेचर सफारी के निर्माण में लगभग 20 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। वहीं, जू-सफारी के निर्माण में 177 करोड़ की लागत आई है। 

राजगीर || Rajgir

सुरक्षा के मद्देनज़र नेचर सफारी के अंदर बनाए गए जू-सफारी में वन विभाग के पुलिसकर्मी के साथ-साथ चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। नेचर सफारी में 70 से ज्यादा औषधीय पौधे लगाए गए हैं और इसका इस्तेमाल भी यहां आने वाले लोग कर पाएंगे। साथ ही इस सफारी में रुकने का भी इंतेज़ाम किया गया है, पर हमलोग यहाँ नहीं रुके थे। पूरा राजगीर आराम से घूमने के लिए 5-6 दिन लग जायेंगे। हमलोग यहाँ 3 दिन रुके, पर पांच पहाड़ियों से घिरी अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर की वादियों की मनमोहक खूबसूरती को देखकर यहाँ कुछ दिन और गुजारने की इच्छा हो रही थी। 

पर्यटकों के लिए बिहार सरकार ने ऑनलाइन टिकट की सुविधा उप्लब्ध कराई है। पर्यटक rajgirzoosafari.in पर जा कर टिकट बुक कर सकते हैं। हमलोगों ने भी ऑनलाइन टिकट ही बुक की थी। टिकट की कीमत भी बहुत कम है। सिर्फ 250 रूपये में हम पूरे सफारी की सैर कर सकते हैं। ज़ू सफारी की टिकट इसमें शामिल है और नेचर सफारी में अलग अलग एक्टिविटी के चार्जेज अलग हैं। 

Nature Safari Activity Rate list
Nature Safari Activity Rate list

अगले ब्लॉग में मिलते हैं, नालंदा विश्वविद्यालय की विस्तृत जानकारी के साथ। 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती || Bhimrao Ambedkar Jayanti 2024

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती

Born: 14 April 1891, Dr. Ambedkar Nagar
Died: 6 December 1956 (age 65 years), New Delhi

आज डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी (Dr. Bhimrao Ambedkar) की 133 वी जयंती है। आज 14 अप्रैल है, जिसे देश के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी (Dr. Bhimrao Ambedkar) के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है।डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। उन्हें मरणोपरांत 1990 में भारत रत्न से नवाजा गया था। 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती || Bhimrao Ambedkar Jayanti 2024

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू (मध्य प्रदेश) में सूबेदार रामजी सकपाल एवं भीमाबाई की चौदहवीं संतान के रूप में हुआ था। उनके माता-पिता महार जाति के थे, जिसे उस वक्त अछूत माना जाता था। इस कारण बचपन में इन्हें कई यातनाएं झेलनी पड़ी थी। इसका प्रभाव छोटी उम्र में ही बाबा साहब के मस्तिष्क पर पड़ा। 1908 में उत्कृष्ट परिणामों के साथ मुंबई से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद डॉक्टर अंबेडकर ने मुंबई विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में स्नातक किया। आगे की पढ़ाई के लिए वह विदेश चले गए। 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और विदेश में अर्थशास्त्र के डॉक्टरेट की पढ़ाई करने वाले पहले भारतीय बने। 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती || Bhimrao Ambedkar Jayanti 2024

आज 14 अप्रैल के इस दिन को हम अंबेडकर जयंती सहित "समानता दिवस" और "ज्ञान दिवस" के रूप में भी मनाते हैं। अंबेडकर जी की पहली जयंती सदाशिव रणपिसे द्वारा पुणे शहर में 14 अप्रैल 1928 को मनाया गया था और उसी के बाद से अंबेडकर जयंती की प्रथा की शुरुआत हुई। वर्ष 1990 में मरणोपरांत उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया। वे अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण कामना में निछावर कर दिया।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अपने जीवन में समानता के लिए संघर्ष करते रहे और इसी कारण वे समानता और ज्ञान के प्रतीक माने जाते हैं। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर पहले कानून मंत्री और भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार हैं। बाबा साहब समाज के वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए संघर्ष करते रहे। वे समतामूलक न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे। उनका संघर्ष हर पीढ़ी के लिए एक मिसाल है।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती || Bhimrao Ambedkar Jayanti 2024

बाबा साहब ने समाज के वंचित वर्ग को शिक्षित व सशक्त किया और हमें न्याय व समता पर आधारित एक ऐसा प्रगतिशील संविधान दिया, जिसने देश को एकता के सूत्र में बांधने का काम किया। बाबा साहब का विराट जीवन व विचार हमारी प्रेरणा के स्रोत हैं।

प्रतिवर्ष 14 अप्रैल को अंबेडकर जी के भारत की स्वतंत्रता में अमूल्य योगदान के कारण अंबेडकर जयंती मनाई जाती है। 2015 में अंबेडकर जयंती को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया गया है। बाबा साहब का जीवन सचमुच संघर्ष और सफलता की अद्भुत मिसाल है। जानते हैं बाबा साहब के कुछ अनमोल विचार :

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती || Bhimrao Ambedkar Jayanti 2024

* यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं पहला व्यक्ति हूंगा जो इसे जलाऊंगा।

* जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वह आपके लिए बेमानी है।

* समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत के रूप में स्वीकार करना होगा।

* सामाजिक स्वतंत्रता जब तक प्राप्त नहीं है, तब तक कानून द्वारा जो भी स्वतंत्रता प्रदान की जाती है उसका कोई लाभ नहीं है।

* एक विचार को भी प्रसार की आवश्यकता होती है, जितनी कि पौधे को पानी की आवश्यकता होती है नहीं तो दोनों मुरझा जाएंगे और मर जाएंगे।

English Translate

Dr. Bhimrao Ambedkar Jayanti

Born: 14 April 1891, Dr. Ambedkar Nagar
Died: 6 December 1956 (age 65 years), New Delhi

Today is the 133rd birth anniversary of Dr. Bhimrao Ambedkar. Today is 14th April, which is celebrated as the birth anniversary of the creator of the country's Constitution, Dr. Bhimrao Ambedkar. Bhimrao Ambedkar was the chairman of the drafting committee of the Constituent Assembly. He was posthumously awarded the Bharat Ratna in 1990.

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती || Bhimrao Ambedkar Jayanti 2024

Dr. Bhimrao Ambedkar was born on 14 April 1891 in Mhow (Madhya Pradesh) as the fourteenth child of Subedar Ramji Sakpal and Bhimabai. His parents belonged to the Mahar caste, which was considered untouchable at that time. Due to this, he had to face many tortures in his childhood. This had an impact on Baba Saheb's mind at an early age. After passing the matriculation examination from Mumbai with excellent results in 1908, Dr. Ambedkar graduated in Political Science and Economics from the University of Mumbai. He went abroad for further studies. He received his doctorate from Columbia University in 1916 and became the first Indian to pursue an economics doctorate abroad.

Today, we celebrate this day of 14th April along with Ambedkar Jayanti as “Equality Day” and “Knowledge Day”. Ambedkar ji's first birth anniversary was celebrated by Sadashiv Ranpise in Pune city on 14 April 1928 and since then the tradition of Ambedkar Jayanti started. In 1990, he was posthumously awarded India's highest civilian award "Bharat Ratna". He was a leader of exceptional quality, who devoted his entire life for the welfare of entire India.

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती || Bhimrao Ambedkar Jayanti 2024

Dr. Bhimrao Ambedkar struggled for equality throughout his life and that is why he is considered a symbol of equality and knowledge. Baba Saheb Bhimrao Ambedkar is the first Law Minister and the principal architect of the Indian Constitution. Baba Saheb continued to struggle to bring the deprived sections of the society into the mainstream. He struggled throughout his life to create an egalitarian and just society. His struggle is an example for every generation.

Baba Saheb educated and empowered the deprived section of the society and gave us a progressive constitution based on justice and equality, which worked to bind the country in the thread of unity. Baba Saheb's great life and thoughts are our source of inspiration.

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती || Bhimrao Ambedkar Jayanti 2024

Ambedkar Jayanti is celebrated every year on 14 April because of the invaluable contribution of Ambedkar ji to the independence of India. Ambedkar Jayanti has been declared a public holiday in 2015. Baba Saheb's life is truly a wonderful example of struggle and success. Let us know some precious thoughts of Baba Saheb:

* If I felt that the Constitution was being misused, I would be the first person to burn it.

* Unless you achieve social freedom, whatever freedom the law gives you is meaningless to you.

* Equality may be a fantasy, but it still has to be accepted as a governing principle.

* Unless social freedom is achieved, whatever freedom is provided by law is of no use.

* An idea also needs propagation, as much as a plant needs water otherwise both will wither and die.