काफिरिस्तान के काफिर..
काफिरिस्तान का नाम सुने हैं? पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर एक छोटा सा इलाका है यह। बड़ा ही महत्वपूर्ण क्षेत्र! जानते हैं क्यों? क्योंकि आज से सवा सौ वर्ष पूर्व तक वहाँ विश्व की सबसे प्राचीन परंपरा को मानने वाले लोग बसते थे।
हिन्दू ही थे वे, पर हमसे थोड़े अलग थे। विशुद्ध वैदिक परम्पराओं को मानने वाले हिन्दू - सूर्य, इंद्र, वरुण आदि प्राकृतिक शक्तियों को पूजने वाले वैदिक हिन्दू। वैदिक काल से अबतक हमारी परम्पराओं में असँख्य परिवर्तन हुए हैं। हमने समय के अनुसार असँख्य बार स्वयं में परिवर्तन किया है, पर काफिरिस्तान के लोगों ने नहीं किया था। बड़े शक्तिशाली लोग थे काफिरिस्तान के। इतने शक्तिशाली कि मोहम्मद बिन कासिम से लेकर अहमद शाह अब्दाली तक हजार वर्षों में हुए असँख्य अरबी आक्रमणों के बाद भी वे नहीं बदले।
वर्तमान अफगानिस्तान के अधिकांश लोग अशोक और कनिष्क के काल में हिन्दू से बौद्ध हो गए थे। आठवीं सदी में जब वहाँ अरबी आक्रमण शुरू हुआ तो ये बौद्ध स्वयं को पच्चीस वर्षों तक भी नहीं बचा पाए। वे तो गए ही, साथ ही शेष हिन्दू भी पतित हो गए। पर यदि कोई नहीं बदला, तो वे चंद सूर्यपूजक सनातनी लोग नहीं बदले।
युग बदल गया, पर वे नहीं बदले। तलवारों के भय से धर्म बदलने वाले हिन्दू और बौद्ध धीरे-धीरे इन प्राचीन लोगों को काफिर और इनके क्षेत्र को काफिरिस्तान कहने लगे। वैदिक सनातनियों का यह क्षेत्र बहुत ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र है। ऊँचे ऊँचे पर्वतों और उनपर उगे घने जंगलों में बसी सभ्यता इतनी मजबूत थी कि वे पचास से अधिक आक्रमणों के बाद भी कभी पराजित नहीं हुए। न टूटे न बदले।
काफिरिस्तान के लोग जितने शक्तिशाली थे, उतने ही सुन्दर भी थे। वहाँ की लड़कियाँ दुनिया की सबसे सुन्दर लड़कियां लगती हैं। माथे पर मोर पंख सजा कर फूल की तरह खिली हुई लड़कियां, जैसे लड़कियाँ नहीं परियाँ हों। वहाँ के चौड़ी छाती और लंबे शरीर वाले पुरुष, देवदूत की तरह लगते थे। दूध की तरह गोरारंग, बड़ी-बड़ी नीली आँखें मानो जैसे स्वर्ग का कोई निर्वासित देवता हो।
अरबी तलवार जब आठ सौ वर्षों में भी उन्हें नहीं बदल पायी, तो उन्होंने हमले का तरीका बदल दिया। अफगानी लोग उनसे मिल-जुल कर रहने लगे। दोनों लोगों में मेल जोल हो गया। फिर, सन अठारह सौ छानबे (१८९६) में अफगानिस्तान के तात्कालिक शासक अब्दीर रहमान खान ने काफिरिस्तान पर आखिरी आक्रमण किया। इस बार प्रतिरोध उतना मजबूत नहीं था। काफिरों में असँख्य थे, जिन्हें लगता था कि हमें प्रेम से रहना चाहिए, युद्ध नहीं करना चाहिए। फल यह हुआ कि हजार वर्षों तक अपराजेय रहने वाले काफिरिस्तान के सनातनी एक झटके में समाप्त हो गए। पूर्णतः समाप्त हो गए, पराजित हुए। फिर हमेशा की तरह हत्या और बलात्कार का ताण्डव शुरू हुआ। आधे लोग मार डाले गए, जो बचे उनका धर्म बदल दिया गया। कोई नहीं बचा, कोई भी नहीं काफिरिस्तान का नाम बदल कर नूरिस्तान कर दिया गया।
काफिरिस्तान खड़ी और जंगली घाटियों से भरा था। यह अपनी सटीक लकड़ी की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध था, विशेष रूप से देवदार-लकड़ी के खंभे, नक्काशीदार दरवाजे, फर्नीचर (सींग कुर्सियों सहित ) और मूर्ति। इन स्तंभों में से कुछ जीवित हैं, क्योंकि उनका मस्जिदों में पुन: उपयोग किया गया था, लेकिन मंदिरों, मंदिरों और स्थानीय पंथों के केंद्र, उनके लकड़ी के पुतलों और पूर्वजों की कई मूर्तियों के साथ आग लगा दी गई और जमीन पर जला दिया गया। काबुल में इस इस्लामी जीत की लूट के रूप में केवल एक छोटा सा अंश काबुल वापस लाया गया। इनमें पुश्तैनी नायकों और पूर्व-इस्लामिक स्मारक कुर्सियों के विभिन्न लकड़ी के पुतले शामिल थे। १८९६ में या उसके तुरंत बाद काबुल में लाए गए तीस से अधिक लकड़ी के आंकड़ों में से चौदह काबुल संग्रहालय में गए और चार पेरिस में स्थित मुसी गुइमेट और मुसी डे ल'होमे के पास गए । काबुल संग्रहालय में तालिबान के तहत बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे, लेकिन तब से उन्हें बहाल कर दिया गया है।
आज काफिरिस्तान का नाम लेने वाला कोई नहीं। कुछ लोगों का मानना है कि काफिरिस्तान के वैदिक हिन्दुओं की ही एक शाखा पाकिस्तान के कलाशा में आज भी जीवित है। वे आज भी वैदिक रीतियों का पालन करते हैं। लगभग छह हजार की सँख्या है उनकी।
इनके बारे में सुना तो था परंतु ज्यादा जानकारी नही थी।
ReplyDeleteदिलचस्प जानकारी
यही सनातन की सबसे बड़ी कमजोरी रही है जो सिकुड़ते सिकुड़ते भूमि के सिर्फ 20% भूभाग तक सीमित रह गए
ReplyDeleteइसके बारे में तो जानकारी नहीं थी।
ReplyDeleteVery informative.👌👌
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteWaow amazing
ReplyDeleteकितना अद्भुत इतिहास रहा है सनातन धर्म का, लेकिन आक्रांताओं ने काफिरिस्तान जैसे अनेक
ReplyDeleteजगहों पर पूरी संस्कृति और सभ्यता को तहस नहस कर दिया । कितना रोचक और समृद्ध इतिहास है काफिरिस्तान का और आपके माध्यम से हमलोगों को इसके बारे में जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ इसके लिये आपका आभार🙏🙏🙏
महान शिक्षाप्रद कहानी।
ReplyDeletepahli baar hi suna
ReplyDeleteRare information...
ReplyDeleteवाह रूपा जी कभी-कभी आप कुछ ऐसा लेकर आती हो के कहीं सारे लोगों को इसके बारे में कुछ पता ही नहीं होता है धन्यवाद रूपा जी इस सब जानकारी के लिए
ReplyDeleteदिलचस्प जानकारी मे प्रथम समय ऐसा कुछ पड़ा मन प्रसन्न हो जाता है आपके ब्लॉग पर ये जानकारियां पढ़ के
ReplyDeleteअजीबोगरीब इतिहास कफरिस्तान।
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteYe to kabhi suna hi nahi tha
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