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विदिशा, मध्य प्रदेश || Vidisha, Madhya Pradesh ||

विदिशा, मध्य प्रदेश

किसी भी जगह पर जाकर उस जगह के विषय में यात्रा वृतांत लिखना और पढ़कर इकट्ठी की गयी जानकारी के आधार पर उस जगह के विषय में लिखने में वही फर्क है, जो Theory और Practical में होता है। खैर अगले कुछ अंक में हमलोग मध्य प्रदेश की यात्रा पर रहेंगे। यह यात्रा वृतांत इस ब्लॉग के प्रशंसक, वहीं के मूल निवासी द्वारा इस ब्लॉग के माध्यम से प्रस्तुत की जा रही है। 

विदिशा भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र मध्यभारत का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। आज हम बात करेंगे विदिशा शहर में स्थित प्राचीन गिरी पर्वतों की एवम प्राचीन माँ विजया देवी के मंदिर बिजामण्डल की। 

इस शृंखला में सर्वप्रथम बात करते है, लोहांगी पर्वत की जो अब राजेन्द्र गिरी के नाम से जाना जाता है। 

लोहांगी पर्वत (राजेन्द्र गिरी)

विदिशा, मध्य प्रदेश  ||  Vidisha, Madhya Pradesh || लोहांगी पर्वत (राजेन्द्र गिरी)||

विदिशा नगर के मध्य रेलवे स्टेशन के निकट ही अत्यंत बलुआ पत्थर से निर्मित यह पर्वत १७० फिट ऊँचा है। यह अत्यंत मनोरम स्थान है। इसकी ऊँचाई से रायसेन का प्रसिद्ध किला, सांची का स्तूप, उदयगिरि पर्वत एवम माँ वेत्रवती के निश्छल प्रवाह के दर्शन होते हैं। 

लुहाँगी का इतिहास महाभारत कालीन अश्वमेध यज्ञ से जुड़ा हुआ है। यहाँ आज भी प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा को भव्य मेला लगता है। इस पहाड़ी की प्राचीनता का प्रमाण यहाँ उपलभ्ध सहस्त्र वर्ष पुराना सम्राट अशोक के समय का लेखाउक्त स्तम्भ से मिलता है। यहाँ आज भी महमूद खिलजी द्वारा बनवाया गया पीर का मकबरा है, जिसमें लगे स्वस्तिक चिन्ह पत्थर आज भी उपलब्ध हैं। 


इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए चलते हैं , विजय मंदिर की ओर जिसको लोग बिजामण्डल के नाम से मुख्यता जानते पहचानते हैं। 

सूर्य मंदिर या विजय मंदिर (बीजामण्डल) 

विदिशा के किले की सीमा के अंदर पश्चिम की तरफ अवस्थित इस मंदिर के नाम पर ही विदिशा का नाम भेलसा पड़ा। सर्वप्रथम इसका उल्लेख सन् १०२४ में महमूद गजनी के साथ आये विद्धान अलबरुनी ने किया है। अपने समय में यह देश के विशालतम मंदिरों में से एक माना जाता था। साहित्यिक साक्ष्यों के अनुसार यह आधा मील लंबा- चौड़ा था तथा इसकी ऊँचाई १०५ गज थी, जिससे इसके कलश दूर से ही दिखते थे। दो बाहरी द्वारों के भी चिन्ह मिले हैं। यहाँ सालों भर यात्रियों का मेला लगा रहता था तथा दिन- रात पूजा आरती होती रहती थी।

कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति ने अपनी विदिशा विजय के उपरांत किया था। इसी वजह इसका नाम विजया मंदिर पड़ा। विजय मंदिर को सूर्य मंदिर भी कहा जाता है। 

अपनी विशालता, प्रभाव व प्रसिद्धि के कारण यह मंदिर हमेशा से मुस्लिम शासकों के आँखों का कांटा बना रहा। कई बार इसे लूटा गया और तोड़ा गया और वहाँ के श्रद्धालुगणों ने हर बार उसका पुननिर्माण कर पूजनीय बना डाला।

विदिशा, मध्य प्रदेश  ||  Vidisha, Madhya Pradesh || सूर्य मंदिर या विजय मंदिर (बीजामण्डल) ||

मंदिर की वास्तुकला तथा मूर्तियों की बनावट यह संकेत देते हैं कि १० वीं - ११ वीं सदी में शासकों ने इस मंदिर का पुननिर्माण किया था। ज्यादातर शिलालेख आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिये हैं। स्तंभ पर मिला एक संस्कृत अभिलेख यह स्पष्ट करता है कि यह मंदिर चर्चिका देवी का था। संभवतः इसी देवी का दूसरा नाम विजया था, जिसके नाम से इसे विजय मंदिर के रूप से जाना जाता रहा। यह नाम "बीजा मंडल" के रूप में आज भी प्रसिद्ध है।

विदिशा यात्रा के अंतिम पड़ाव पर बढ़ते हैं। माँ वेत्रवती के चरणों में नमन करते हुए उदयगिरि की सुंदर मनोरम पहाड़ियों के आनंद लेने उनके विषय पर जानने। 

उदयगिरि की गुफाएँ 

विदिशा, मध्य प्रदेश  ||  Vidisha, Madhya Pradesh || उदयगिरि की गुफाएँ  ||

मध्य प्रदेश के विदिशा के निकट स्थित २० गुफाएँ हैं। ये गुफाएँ ५वीं शताब्दी के आरम्भिक काल की हैं और शिलाओं को काटकर बनायी गयीं हैं। इन गुफाओं में भारत के कुछ प्राचीनतम हिन्दू मन्दिर और चित्र सुरक्षित हैं।  गुफाओं में स्थित शिलालेखों के आधार पर यह स्पष्ट है कि ये गुफाएँ गुप्त नरेशों द्वारा निर्मित करायीं गयी थीं। ये गुफाएँ भारत के सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल हैं और भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक हैं।

विदिशा, मध्य प्रदेश  ||  Vidisha, Madhya Pradesh || उदयगिरि की गुफाएँ  ||

विदिशा से वैसनगर होते हुए उदयगिरि पहुँचा जा सकता है।

विदिशा से उदयगिरि लगभग १ मील की दूरी पर है। उदयगिरि को पहले "नीचैगिरि" के नाम से जाना जाता था।  कालिदास जी ने भी इसे इसी नाम से संबोधित किया है। १०वीं शताब्दी में जब विदिशा, धार के परमारों के हाथ में आ गया, तो राजा भोज के पौत्र उदयादित्य ने अपने नाम से इस स्थान का नाम उदयगिरि रख दिया। 

English Translate 

Vidisha, Madhya Pradesh

Vidisha is a major city located in the Indian state of Madhya Pradesh. From the historical and archaeological point of view, this region is considered to be the most important region of Central India. Today we will talk about the ancient Giri mountains located in Vidisha city and Bijamandal, the temple of ancient mother Vijaya Devi.

The first thing in this series is the Lohangi mountain which is now known as Rajendra Giri.

विदिशा, मध्य प्रदेश  ||  Vidisha, Madhya Pradesh ||

Lohangi Parvat (Rajendra Giri)

This mountain built of extremely sandstone, near the central railway station of Vidisha city, is 170 feet high. This is a very picturesque place. From its height, the famous fort of Raisen, Stupa of Sanchi, Udayagiri mountain and the steady flow of Maa Vetravati are visible.

The history of Luhangi is associated with the Ashwamedha Yagya of Mahabharata. Even today, a grand fair is held here every year on Guru Purnima. The evidence of the antiquity of this hill is available here from the pillar of account of the thousand year old emperor Ashoka. Even today, there is the tomb of Pir, built by Mahmud Khilji, in which the swastika symbol stones are still available today.

Continuing this chain, let's move towards the Vijay Mandir, which people know mainly by the name of Bijamandal.

विदिशा, मध्य प्रदेश  ||  Vidisha, Madhya Pradesh || लोहांगी पर्वत (राजेन्द्र गिरी)||

Sun Temple or Victory Temple (Bijamandal)

Situated on the west side inside the boundary of the fort of Vidisha, the name of Vidisha was named Bhelsa after this temple. It is first mentioned in 1024 by the scholar Alberuni who came with Mahmud of Ghazni. In its time it was considered one of the largest temples in the country. According to literary evidence, it was half a mile long and wide and its height was 105 yards, due to which its Kalash was visible from a distance. Signs of two outer gates have also been found. There used to be a fair of travelers throughout the year and worship and aarti used to take place day and night.

It is said that this temple was built by Vachaspati, the prime minister of Chalukya dynasty king Krishna, after his conquest of Vidisha. That is why it was named Vijaya Mandir. Vijay Mandir is also known as Sun Temple.

Due to its vastness, influence and fame, this temple has always remained a thorn in the eyes of the Muslim rulers. Many times it was looted and broken and the devotees there rebuilt it every time and made it worshipable.

The architecture of the temple and the texture of the sculptures indicate that the temple was rebuilt by the rulers in the 10th - 11th centuries. Most of the inscriptions have been destroyed by the invaders. A Sanskrit inscription found on the pillar makes it clear that the temple belonged to Charchika Devi. Possibly another name of this goddess was Vijaya, by whose name it continued to be known as the Vijay Mandir. This name is still famous as "Bija Mandal".

Proceed to the last stop of the Vidisha journey. Learn on the subject of enjoying the beautiful panoramic hills of Udayagiri while bowing at the feet of Maa Vetravati.

विदिशा, मध्य प्रदेश  ||  Vidisha, Madhya Pradesh || सूर्य मंदिर या विजय मंदिर (बीजामण्डल) ||

Udayagiri Caves

There are 20 caves located near Vidisha in Madhya Pradesh. These caves date back to the early 5th century and were carved out of rocks. Some of the oldest Hindu temples and paintings of India are preserved in these caves. On the basis of the inscriptions located in the caves, it is clear that these caves were built by the Gupta kings. These caves are the most important archaeological sites in India and are protected monuments by the Archaeological Survey of India.

Udayagiri can be reached from Vidisha via Vaisnagar.

विदिशा, मध्य प्रदेश  ||  Vidisha, Madhya Pradesh || उदयगिरि की गुफाएँ  ||

Udayagiri is about 1 mile from Vidisha. Udayagiri was earlier known as "Nichaigiri". Kalidas ji has also addressed it by the same name. When Vidisha came into the hands of the Paramaras of Dhar in the 10th century, Udayaditya, the grandson of Raja Bhoja, renamed the place Udayagiri after himself.

अमलतास || Amaltash ||

अमलतास (Amaltash)

आप सभी भी सड़क किनारे पेड़ से लटके हुए पीले पीले झुंडों में लटके हुए फूल देखे होंगे तथा फूल झड़ने के पश्चात लंबे लटके फल, जी हां हम बात कर रहे हैं अमलतास के पेड़ की। अमलतास एक खूबसूरत पेड़ है, जो आमतौर पर मध्यम आकार का होता है। इसकी पत्तियां आकार में बड़ी गहरे हरे रंग की होती हैं और फूल पीले रंग के होते हैं, जो गुच्छों में खिलते हैं। प्राचीन काल से ही अमलतास के पेड़ की शाखा, फल और पत्तियों को दवा के रूप में उपयोग में लाया जाता रहा है। 

अमलतास के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

अमलतास क्या है

अमलतास का पेड़ 5 से 15 मीटर तक ऊंचा होता है। इस पेड़ पर मार्च से जुलाई के बीच सुनहरे पीले रंग के फूल लगते हैं। इसके फल लंबे और बेलनाकार होते हैं, जो देखने में किसी डंडे की तरह दिखते हैं। फल हरे रंग के होते हैं और पक जाने पर यह फल गहरे भूरे रंग के दिखाई देते हैं। इस पेड़ के फूल, तने और पत्तों में कई प्रकार के पोषक तत्व होते हैं, जो कई प्रकार की शारीरिक समस्याओं के इलाज के तौर पर प्रयोग में लाए जाते हैं। 

जानते हैं अमलतास के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

हमारे प्राचीन ग्रंथों में अमलतास का विवरण मिलता है। अमलतास के पेड़ के सभी भागों का उपयोग औषधिय लाभ के लिए किया जाता है। पेड़ का प्रत्येक भाग गंभीर बीमारियों से निजात दिलाने औऱ इनके संक्रमण से दूर रखने में कारगार होता है। आयुर्वेद में इस पेड़ के हर भाग का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है।

बुखार होने पर 

बुखार होने पर अमलतास के पेड़ की जड़ को कूटकर पाउडर बना लें। इस पाउडर को दिन में दो से तीन बार सेवन करने से बुखार उतर जाता है और शरीर दर्द में राहत मिलता है।

कब्ज की समस्या

  • अमलतास के फूल को सारी रात पानी में भिगोकर छोड़ दें। सुबह हल्की चीनी डालकर इसका पेस्ट बनाकर सेवन करने से कब्ज की समस्या से राहत मिलती है।
  • अमलतास के दो तीन पत्तों को नमक और काली मिर्च मिलाकर सेवन करने से पेट साफ होता है और कब्ज से आराम मिलता है। 

रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने में

अमलतास का पौधा अनेक पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसके पेड़ की छाल एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होती है, जिसके नियमित सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और मौसमी बीमारियों और संक्रमण से बचाव होता है।

फुंसी और छाला होने पर

अमलतास के पेड़ के पत्ते को गाय के दूध में पीसकर इस लेप को शरीर पर लगाने से फुंसी और छाले दूर होते हैं।

नाक में फुंसी होने पर

अमलतास के पत्तों और छाल को पीस लें इसे नाक के छोटी फुंसी पर लगाने से फुंसी ठीक हो जाती है।

मुंह में छाले होने पर

अमलतास के गूदे को मुंह में रखकर चूसने से मुंह के छाले ठीक होते हैं।

घाव होने पर

अमलतास के पत्तों को दूध में पीसकर घाव पर लगाने से घाव सूख जाता है।

शरीर में जलन की समस्या

अमलतास के पेड़ की 10 से 15 ग्राम जड़ या छाल को दूध में उबालकर पीसकर लेप करने से शरीर की जलन ठीक हो जाती है।

कंठ रोग में

अमलतास के पेड़ की जड़ को चावल के पानी के साथ पीसकर सूंघने और लेप करने से कंठ रोग में लाभ होता है।

अमलतास के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

टॉन्सिल की समस्या

कफ के कारण टॉन्सिल के बढ़ने पर 10 ग्राम अमलतास की जड़ की छाल को पानी में पकाकर बूंद बूंद करके मुँह में डालने से आराम मिलता है।

दमा की समस्या

अमलतास के पेड़ के गूदे को निकालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पिलाने से दमा की बीमारी में लाभ होता है।

आंतों के रोग

छोटे बच्चों में अगर आंत से संबंधित कोई बीमारी हो गई हो, तो अमलतास के फूलों का गुलकंद बनाकर सेवन कराने से आंत की बीमारी दूर होती है।

पेट दर्द होने पर

अमलतास के फल की मज्जा को पीसकर बच्चों की नाभि के चारो और लेप करने से पेट दर्द में आराम मिलता है।

मधुमेह की समस्या

10 ग्राम अमलतास के पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में पकाकर काढ़ा बनाकर सेवन से मधुमेह रोग में लाभ होता है।

गठिया रोग में

सरसों के तेल में पकाए हुए अमलतास के पत्तों को शाम के भोजन में सेवन करने से गठिया रोग में लाभ होता है।

एड़ी फटने की समस्या

अमलतास के पत्ते का पेस्ट बनाकर एड़ियों पर लगाने से लाभ होता है।

विभिन्न भाषाओं में अमलतास का नाम (Name of Amaltas in Different Languages)

अमलतास का वानस्पतिक नाम कैसिया फिस्टुला (Cassia fistula L., Syn-Cassia rhombifolia Roxb., Cassia excelsa Kunth.) है। 

Hindi –         अमलतास, सोनहाली, सियरलाठी
English –     Cassia, Golden shower, Indian laburnum, Purging stick, Purging cassia
Sanskrit –     आरग्वध, राजवृक्ष, शम्पाक, चतुरङ्गुल, आरेवत, व्याधिघात, कृतमाल, सुवर्णक, कर्णिकार, परिव्याध, द्रुमोत्पल, दीर्घफल, स्वर्णाङ्ग, स्वर्णफल
Urdu –     अमलतास (Amaltas)
Oriya –     सुनारी (Sunari)
Assamese – सोनारू (Sonaru)
Kannada – कक्केमरा (Kakkemara)
Gujarati – गर्मालो (Garmalo)
Tamil – कोन्डरो (Kondro), कावानी (Kavani), सरकोन्नै (Sarakonnai), कोरैकाय (Karaikaya)
Telugu – आरग्वधामु (Aragvadhamu), सम्पकमु (Sampakamu);
Bengali – सोनाली (Sonali), सोनूलु (Sonulu), बन्दरलाठी (Bandarlati), अमुलतास (Amultas)
Nepali – अमलतास (Amaltas);
Punjabi – अमलतास (Amaltas), करङ्गल (Karangal), कनियार (Kaniar)
Marathi – बाहवा (Bahawa)
Malayalam – कणिकोन्ना (Kanikkonna)
Arabic – खियार-शन्बर (Khiyar-shanbar)
Persian – ख्यार-शन्बर (Khyar-shanbar)

अमलतास के नुकसान (Side Effects of Amaltas)

  • डायरिया और खसरा होने पर अमलतास का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • अधिक मात्रा में सेवन से दस्त की समस्या हो सकती है।

English Translate 

Amaltas (Golden shower)

All of you must have also seen the flowers hanging in the pale yellow bunches hanging from the trees on the roadside and the long hanging fruits after the flowers fall, yes we are talking about the Amaltas tree. Amaltas is a beautiful tree, which is generally of medium size. Its leaves are large dark green in size and flowers are yellow in color, which bloom in clusters. The branch, fruit and leaves of the Amaltas tree have been used as medicine since ancient times.

अमलतास के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

what is amaltas

Amaltas tree grows to a height of 5 to 15 meters. Golden yellow flowers appear on this tree from March to July. Its fruits are long and cylindrical, which look like a stick in appearance. The fruits are green in color and appear dark brown when ripe. The flowers, stems and leaves of this tree contain many types of nutrients, which are used as a treatment for many types of physical problems.


Know about the benefits, harms, uses and medicinal properties of Amaltas

The description of Amaltas is found in our ancient texts. All parts of the Amaltas tree are used for medicinal benefits. Every part of the tree is effective in getting rid of serious diseases and keeping them away from infection. Every part of this tree is used as medicine in Ayurveda.

having a fever

Make a powder by grinding the root of the Amaltas tree in case of fever. Taking this powder two to three times a day brings down fever and provides relief in body pain.

constipation problem

  • Soak the flower of Amaltas in water overnight and leave it. Make a paste by adding light sugar in the morning and consuming it, it provides relief from the problem of constipation.
  • Taking two or three leaves of Amaltas mixed with salt and black pepper clears the stomach and provides relief from constipation.

strengthen immunity

Amaltas plant is rich in many nutrients. The bark of its tree is rich in antioxidant properties, whose regular consumption increases immunity and prevents seasonal diseases and infections.

pimple and blister

Grind the leaves of Amaltas tree in cow's milk and apply this paste on the body, it ends pimples and blisters.

pimple in nose

Grind the leaves and bark of Amaltas, applying it on the small pimple of the nose, it cures the pimple.

mouth ulcers

Mouth ulcers are cured by sucking the pulp of Amaltas in the mouth.

in case of wound

Grinding the leaves of Amaltas in milk and applying it on the wound dries the wound.

body burn problem

Boil 10 to 15 grams root or bark of Amaltas tree in milk and grind it and apply it, it cures burning sensation of the body.

in larynx

Grind the root of Amaltas tree with rice water, sniff and apply it, it is beneficial in throat disease.

tonsil problems

If tonsils are enlarged due to phlegm, cooking 10 grams root bark of Amaltas in water and putting it drop by drop in the mouth provides relief.

asthma problem

Make a decoction by extracting the pulp of the Amaltas tree. Taking this decoction is beneficial in asthma disease.

intestinal diseases

If there is any disease related to intestine in young children, then taking gulkand of Amaltas flowers and taking it cures intestinal disease.

having stomach pain

Grind the marrow of the fruit of Amaltas and apply it around the navel of children, it provides relief in stomachache.

अमलतास के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

diabetes problem

Cook 10 grams of Amaltas leaves in 400 ml water and make a decoction and take, it is beneficial in diabetes.

in gout

Taking Amaltas leaves cooked in mustard oil in the evening meal is beneficial in arthritis.

heel problem

Making a paste of Amaltas leaves and applying it on the ankles is beneficial.

चांद || Chand ||

 चांद

Rupa Oos ki ek Boond

ये चांद भी नित्य प्रति

ढलते सूरज के साथ आ जाता है

ये चांद भी मीलों दूर से 

जाने कितने रिश्ते निभा जाता है

कभी बचपन की चंदा मामा भरी 

लोरियां याद दिलाता है 

कभी थोड़े बड़े होते हुए मेरे सपनों में 

बसती हुई सपनों की शहजादी को 

तोड़ लाऊंगा चांद तारे तेरे लिए 

सरीखे वादे याद दिलाता है

होती है रात की रागनी अपने सबाब पर जब 

हर रोज ये चांद अपनी ओझल सी रोशनी में 

ख्वाबों की दुनिया सजा जाता है

दौड़ते भागते जिंदगी के सफर में 

जब उम्मीदें खत्म होने लगती हैं 

जिंदगी बोझिल सी लगने लगती है 

तब ढलते सूरज के बाद 

ये उगता हुआ चांद  

जीवन के सारे सवालों का जबाब दे जाता है

मन में हिचकोले खाते नकारे विचारों से 

एक ढलते हुए सूरज की रोशनी से 

तपन को पल भर में बदलती 

शीतलता का एहसास दिलाता है

एक चांद ही जन्म से मरण तक

मीलों दूर हो के भी

कभी बेवफा नहीं होता

हर वक्त साथ होता

हर रिश्ते की सौगात लिए

हां कभी कभी

अमावस की धनी रात भी होती

जो कभी कभी बड़ी लंबी हो जाती 

चांद || Chand ||

 

शत्रु का शत्रु मित्र : पंचतंत्र || Shatru ka Shatru Mitra : Panchtantra ||

शत्रु का शत्रु मित्र

शत्रवोऽपि हितायैव विवदन्तः परस्परम् ।

परस्पर लड़ने वाले शत्रु भी हितकारी होते हैं। 

शत्रु का शत्रु मित्र : पंचतंत्र || Shatru ka Shatru Mitra : Panchtantra ||

एक गाँव में द्रोण नाम का ब्राह्मण रहता था। भिक्षा माँगकर उसकी जीविका चलती थी। सर्दी-गर्मी रोकने के लिए उसके पास पर्याप्त वस्त्र भी नहीं थे। एक बार किसी यजमान ने ब्राह्मण पर दया करके उसे बैलों की जोड़ी दे दी। ब्राह्मण ने उनका भरण-पोषण बड़े यत्न से किया। आस-पास से घी-तेल अनाज माँगकर भी उन बैलों को भरपेट खिलाता रहा। इससे दोनों बैल खूब मोटे-ताज़े हो गए। उन्हें देखकर एक चोर के मन में लालच आ गया। उसने चोरी करके दोनों बैलों को भगा ले जाने का निश्चय कर लिया। इस निश्चय के साथ जब वह अपने गाँव से चला तो रास्ते में उसे लम्बे-लम्बे दाँतों, लाल आँखों, सूखे बालों और उभरी हुई नाक वाला भयंकर आदमी मिला ।

उसे देखकर चोर ने डरते-डरते पूछा- तुम कौन हो? उस भयंकर आकृति वाले आदमी ने कहा- मैं ब्रह्मराक्षस हूँ; तुम कौन हो, कहाँ जा रहे हो?

चोर ने कहा- मैं क्रूरकर्मा चोर पास वाले ब्राह्मण के घर से बैलों की जोड़ी चुराने जा रहा हूँ।

राक्षस ने कहा- मित्र ! पिछले छः दिन से मैंने कुछ भी नहीं खाया। चलो, आज उस ब्राह्मण को मारकर ही भूख मिटाऊँगा। हम दोनों एक ही मार्ग के यात्री हैं। चलो, साथ-साथ चलें। 

शाम को दोनों छिपकर ब्राह्मण के घर में घुस गए। ब्राह्मण के शय्याशायी होने के बाद राक्षस जब उसे खाने के लिए आगे बढ़ने लगा तो चोर ने कहा—मित्र! यह बात न्यायानुकूल नहीं है। पहले मैं बैलों की जोड़ी लूँ, तब तू अपना काम करना ।

राक्षस ने कहा - कभी बैलों को चुराते हुए खटका हो गया और ब्राह्मण जाग पड़ा तो अनर्थ हो जाएगा, मैं भूखा ही रह जाऊँगा। इसलिए पहले मुझे ब्राह्मण को खा लेने दे, बाद में तुम चोरी कर लेना।

ब्राह्मण, चोर और राक्षस की कहानी: पंचतंत्र

चोर ने उत्तर दिया - ब्राह्मण की हत्या करते हुए यदि ब्राह्मण बच गया और जागकर उसने रखवाली शुरू कर दी तो में चोरी नहीं कर सकूंगा। इसलिए पहले मुझे अपना काम कर लेने दे। दोनों में इस तरह की कहासुनी हो रही थी कि शोर सुनकर ब्राह्मण जाग उठा। उसे जागा हुआ देख चोर ने ब्राह्मण से कहा - ब्राह्मण! यह तेरी जान लेने लगा था, मैंने इसके हाथ से तेरी रक्षा कर दी। राक्षस बोला - ब्राह्मण! यह चोर तेरे बेलों को चुराने आया था, मैंने तुझे बचा लिया।

इस बातचीत से ब्राह्मण सावधान हो गया। लाठी उठाकर वह अपनी रक्षा के लिए तैयार हो गया उसे तैयार देखकर दोनों भाग गए। उसकी बात सुनने के बाद अरिमर्दन ने फिर दूसरे मन्त्री प्राकारकर्ण से पूछा- सचिव तुम्हारी क्या सम्मति है?

प्राकारकर्ण ने कहा- देव! यह शरणागत व्यक्ति अवध्य ही है। हमें अपने परस्पर के मर्मों की रक्षा करनी चाहिए जो नहीं करते वल्मीक में बैठे साँप की तरह नष्ट हो जाते हैं।

अरिमर्दन ने पूछा- कैसे? प्राकारकर्ण ने तब यह कहानी सुनाई:

घर का भेद

To be continued ...

विश्व ओजोन दिवस, 16 सितम्बर 2022 || World Ozone Day Sep 16, 2022 ||

विश्व ओजोन दिवस

आज 16 सितम्बर के दिन पुरे विश्व में ओज़ोन दिवस मनाया जा रहा है। आखिर ओजोन दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? इसलिए कि लोगों को इस बात के प्रति जागरूक किया जाये कि जीवन के लिए ऑक्सीजन से ज्यादा जरुरी ओजोन है। ओजोन परत के बारे में लोगों को जागरूक करने के साथ ही इसे बचाने तथा इस समस्या के समाधान की ओर ध्यान एकत्रित करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा इस दिवस को मनाने की घोषणा की गई थी।19 दिसंबर, 1994 को 16 सितंबर को ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया। पहली बार विश्व ओजोन दिवस 16 सितंबर 1995 को मनाया गया था। 

विश्व ओजोन दिवस, 16  सितम्बर 2022 || World Ozone Day Sep 16, 2022 ||

ओजोन परत क्या है ?

समय-समय पर हम सभी ओजोन परत को लेकर बातें सुनते रहते होंगे कि इसे सुरक्षित रखना है, ओजोन परत पिघल रही है आदि। धरती का पर्यावरण कुछ परतों से मिलकर बना है जहां सबसे निचली परत को क्षोभ मंडल कहा जाता है। यह पृथ्वी की सतह से 10 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैला हुआ है। लगभग सभी मानव गतिविधियां इसी क्षोभ मंडल में होती हैं। दूसरी परत को समताप मंडल कहा जाता है। जो आगे 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैला हुआ है। अधिकांश हवाई जहाज समताप मंडल में ही उड़ते हैं।

ओजोन परत इसी समताप मंडल का एक हिस्सा है,जो धरती की सतह से 15 से 40 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है। ओजोन परत सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को धरती पर आने से रोकती है। पराबैगनी किरणों का पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जंतु और वनस्पतियों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इससे त्वचा का कैंसर, आंख की बीमारी और समुद्री जीवन के नुकसान का खतरा पैदा हो सकता है।

विश्व ओजोन दिवस, 16  सितम्बर 2022 || World Ozone Day Sep 16, 2022 ||

पराबैंगनी किरणें क्या होती हैं?

पराबैंगनी किरणें रेडिएशन का एक रूप है जो सूर्य से निकलती है। वैसे तो पराबैगनी किरणों से हमें विटामिन डी मिलता है लेकिन इसके कुछ हानिकारक प्रभाव भी हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं।

पराबैंगनी किरणों को wavelength के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है:

Ultraviolet A (UVA) – इसकी वेवलेंथ 315-399 nm होती है.

Ultraviolet B (UVB) – इसकी वेवलेंथ 280-314 nm होती है.

Ultraviolet C (UVC) – इसकी वेवलेंथ 100-279 nm होती है।

लगभग सभी UVC और UVB रेडिएशन को ओजोन लेयर द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, इसलिए धरती पर आने वाली सभी पराबैंगनी किरणें UVA होती है. UVA और UVB दोनों ही स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती हैं लेकिन UVA रेडिएशन UVB की तुलना में कमजोर होती हैं. UVC रेडिएशन सबसे ज्यादा घातक होती हैं जिसे पृथ्वी की ओजोन लेयर द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है और ये धरती पर नहीं पहुंच पाती.

विश्व ओजोन दिवस, 16  सितम्बर 2022 || World Ozone Day Sep 16, 2022 ||

UVB किरणें पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं जिससे जीन में बदलाव, त्वचा का कैंसर और मोतियाबिंद जैसी बीमारियां उत्पन्न होती हैं और पौधों की वृद्धि में रुकावट और पत्तियों को नुकसान पहुंचता है. ओजोन लेयर सूर्य से आने वाली उच्च आवृत्ति की पराबैंगनी किरणों की 93 से 99 % मात्रा अवशोषित कर लेती है जो पृथ्वी पर जीवन के लिए हानिकारक है।

ओजोन छिद्र क्या है, और इसका क्या कारण है?

ओजोन छिद्र के लिए जिम्मेदार गैस क्लोरोफ्लोरोकार्बन है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव निर्मित यौगिक है, जो क्लोरीन, फ्लोरीन और कार्बन से निर्मित होता है।क्लोरोफ्लोरोकार्बन के लिए का इस्तेमाल एरोसॉल स्प्रे के निर्माण में, फोम और पैकिंग मैटेरियल्स के लिए तथा फ्रिज एवं एयर कंडीशनर में किया जाता है।

यह रसायन ग्रीन हाउस में योगदान देने के साथ ही ओजोन लेयर में मौजूद ओजोन गैस के साथ अभिक्रिया करके ओजोन को ऑक्सीजन के रूप में विघटित कर देता है, जिसके कारण ओजोन परत का क्षरण हो जाता है, और हमें ओजोन लेयर के अंदर एक छिद्र दिखाई देता है।

विश्व ओजोन दिवस, 16  सितम्बर 2022 || World Ozone Day Sep 16, 2022 ||

इस प्रकार के क्षेत्र से पराबैंगनी किरणें धरती पर पहुंचती हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकती हैं। कोरोनावायरस में जब दुनिया भर में लॉकडाउन का दौर चला था, तब ओजोन छिद्र भरा हुआ दिखाई दिया था उस समय यह बात पूरी दुनिया के लिए किसी खुशखबरी से कम नहीं थी।

अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारे संधि और समझौते हुए हैं, जिसमें ओजोन छिद्र के बचाव के लिए कई सारे कदम उठाए जा रहे हैं।

आज भी हम अपनी कुछ सहभागिता से ओजोन लेयर में होने वाले छिद्र से कुछ हद तक बचा सकते हैं- जैसे फ्रिज और एसी का कम से कम इस्तेमाल करना, आवागमन के लिए कार एवं बाइक की जगह साइकिल एवं पैदल जाना, और अधिक से अधिक क्षेत्रीय चीजों का उपयोग करना।

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world ozone day

Ozone Day is being celebrated all over the world on the 16th of September. Why was there a need to celebrate Ozone Day? Because people should be made aware that ozone is more important than oxygen for life. The day was announced to be celebrated by the United Nations General Assembly (UNGA) with the aim of making people aware about the ozone layer as well as saving it and gathering attention towards the solution of this problem. On December 19, 1994, 16 September was declared as the International Day for the Protection of the Ozone Layer. World Ozone Day was first observed on 16 September 1995.

विश्व ओजोन दिवस, 16  सितम्बर 2022 || World Ozone Day Sep 16, 2022 ||

What is ozone layer?

From time to time we all keep hearing things about the ozone layer that it has to be protected, the ozone layer is melting etc. Earth's environment is made up of a few layers where the lowest layer is called the troposphere. It extends up to a height of 10 km from the surface of the earth. Almost all human activities take place in this troposphere. The second layer is called the stratosphere. Which further extends from a height of 10 km to 50 km. Most airplanes fly in the stratosphere.


The ozone layer is a part of this stratosphere, which extends from a height of 15 to 40 kilometers above the surface of the Earth. The ozone layer prevents the incoming ultraviolet rays from reaching the earth from the beginning. Ultraviolet rays can have a bad effect on the flora and fauna living on the earth. This can pose a risk of skin cancer, eye disease and loss of marine life.

विश्व ओजोन दिवस, 16  सितम्बर 2022 || World Ozone Day Sep 16, 2022 ||

What are ultraviolet rays?

Ultraviolet rays are a form of radiation that comes from the Sun. Although we get vitamin D from ultraviolet rays, but it also has some harmful effects which adversely affect our health.

Ultraviolet rays are classified into three parts on the basis of wavelength:

Ultraviolet A (UVA) – Its wavelength is 315-399 nm.

Ultraviolet B (UVB) – Its wavelength is 280-314 nm.

Ultraviolet C (UVC) – Its wavelength is 100-279 nm.

Almost all UVC and UVB radiation is absorbed by the ozone layer, so all ultraviolet rays that hit the earth are UVA. Both UVA and UVB have a bad effect on health but UVA radiation is weaker than UVB. UVC radiation is the most lethal which is absorbed by the earth's ozone layer and does not reach the earth.

UVB rays harm the health of living organisms on Earth, causing gene mutations, causing diseases such as skin cancer and cataracts, and stunting plant growth and damage to leaves. The ozone layer absorbs 93 to 99% of the high frequency ultraviolet rays coming from the Sun, which are harmful to life on Earth.

विश्व ओजोन दिवस, 16  सितम्बर 2022 || World Ozone Day Sep 16, 2022 ||

What is the ozone hole, and what causes it?

The gas responsible for the ozone hole is chlorofluorocarbons. Chlorofluorocarbons are not natural but man-made compounds, composed of chlorine, fluorine and carbon. Chlorofluorocarbons are used in the manufacture of aerosol sprays, for foams and packing materials, and in refrigerators and air conditioners.

This chemical contributes to the greenhouse, as well as reacting with the ozone gas present in the ozone layer, decomposes ozone into the form of oxygen, due to which the ozone layer is depleted, and we see a hole inside the ozone layer. gives.

Ultraviolet rays from this type of area reach the earth which can have serious effects on our health. When there was a period of lockdown around the world in Coronavirus, then the ozone hole appeared to be full, at that time this thing was nothing less than good news for the whole world.

There have been many treaties and agreements at the international and national level, in which many steps are being taken to protect the ozone hole.

Even today, we can save to some extent from the hole in the ozone layer with some of our participation - such as minimizing the use of refrigerators and ACs, cycling and walking instead of cars and bikes for travel, and more and more regional using things.

विश्व ओजोन दिवस, 16  सितम्बर 2022 || World Ozone Day Sep 16, 2022 ||

श्रीमद्भगवद्गीता || Shrimad Bhagwat Geeta || अध्याय दो के अनुच्छेद 39 - 53 ||

  श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय दो ~ सांख्ययोग ||

अथ द्वितीयोऽध्यायः ~ सांख्ययोग

अध्याय दो के अनुच्छेद 39 - 53

श्रीमद्भगवद्गीता || Shrimad Bhagwat Geeta || अध्याय दो के अनुच्छेद 39 - 53 ||

अध्याय दो के अनुच्छेद 39-53 में कर्मयोग विषय का उपदेश है।

एषा तेऽभिहिता साङ्‍ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु ।
बुद्ध्‌या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥2.39॥

भावार्थ : 

हे पार्थ! यह बुद्धि तेरे लिए ज्ञानयोग के विषय में कही गई और अब तू इसको कर्मयोग के (अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका विस्तार देखें।) विषय में सुन- जिस बुद्धि से युक्त हुआ तू कर्मों के बंधन को भली-भाँति त्याग देगा अर्थात सर्वथा नष्ट कर डालेगा॥39॥

यनेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवातो न विद्यते ।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्‌ ॥2.40॥

भावार्थ : 

इस कर्मयोग में आरंभ का अर्थात बीज का नाश नहीं है और उलटा फलरूप दोष भी नहीं है, बल्कि इस कर्मयोग रूप धर्म का थोड़ा-सा भी साधन जन्म-मृत्यु रूप महान भय से रक्षा कर लेता है॥40॥

व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन ।
बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्‌ ॥2.41॥

भावार्थ :  

हे अर्जुन! इस कर्मयोग में निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है, किन्तु अस्थिर विचार वाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदों वाली और अनन्त होती हैं॥41॥

यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः ।
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥2.42॥
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्‌ ।
क्रियाविश्लेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥2.43॥
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्‌ ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥2.44॥

भावार्थ : 

हे अर्जुन! जो भोगों में तन्मय हो रहे हैं, जो कर्मफल के प्रशंसक वेदवाक्यों में ही प्रीति रखते हैं, जिनकी बुद्धि में स्वर्ग ही परम प्राप्य वस्तु है और जो स्वर्ग से बढ़कर दूसरी कोई वस्तु ही नहीं है- ऐसा कहने वाले हैं, वे अविवेकीजन इस प्रकार की जिस पुष्पित अर्थात्‌ दिखाऊ शोभायुक्त वाणी को कहा करते हैं, जो कि जन्मरूप कर्मफल देने वाली एवं भोग तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए नाना प्रकार की बहुत-सी क्रियाओं का वर्णन करने वाली है, उस वाणी द्वारा जिनका चित्त हर लिया गया है, जो भोग और ऐश्वर्य में अत्यन्त आसक्त हैं, उन पुरुषों की परमात्मा में निश्चियात्मिका बुद्धि नहीं होती॥42-44॥

त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्‌ ॥2.45॥

भावार्थ : 

हे अर्जुन! वेद उपर्युक्त प्रकार से तीनों गुणों के कार्य रूप समस्त भोगों एवं उनके साधनों का प्रतिपादन करने वाले हैं, इसलिए तू उन भोगों एवं उनके साधनों में आसक्तिहीन, हर्ष-शोकादि द्वंद्वों से रहित, नित्यवस्तु परमात्मा में स्थित योग (अप्राप्त की प्राप्ति का नाम 'योग' है।) क्षेम (प्राप्त वस्तु की रक्षा का नाम 'क्षेम' है।) को न चाहने वाला और स्वाधीन अन्तःकरण वाला हो॥45॥

यावानर्थ उदपाने सर्वतः सम्प्लुतोदके ।
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः ॥2.46॥

भावार्थ : 

सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है, ब्रह्म को तत्व से जानने वाले ब्राह्मण का समस्त वेदों में उतना ही प्रयोजन रह जाता है॥46॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥2.47॥

भावार्थ : 

तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो॥47॥

योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥2.48॥

भावार्थ : 

हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व (जो कुछ भी कर्म किया जाए, उसके पूर्ण होने और न होने में तथा उसके फल में समभाव रहने का नाम 'समत्व' है।) ही योग कहलाता है॥48॥

दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनंजय ।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥2.49॥

भावार्थ : 

इस समत्वरूप बुद्धियोग से सकाम कर्म अत्यन्त ही निम्न श्रेणी का है। इसलिए हे धनंजय! तू समबुद्धि में ही रक्षा का उपाय ढूँढ अर्थात्‌ बुद्धियोग का ही आश्रय ग्रहण कर क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यन्त दीन हैं॥49॥

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते ।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्‌ ॥2.50॥

भावार्थ : 

समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व रूप योग में लग जा, यह समत्व रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंध से छूटने का उपाय है॥50॥

कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः ।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्‌ ॥2.51॥

भावार्थ : 

क्योंकि समबुद्धि से युक्त ज्ञानीजन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्यागकर जन्मरूप बंधन से मुक्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं॥51॥

यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति ।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥2.52॥

भावार्थ : जिस काल में तेरी बुद्धि मोहरूपी दलदल को भलीभाँति पार कर जाएगी, उस समय तू सुने हुए और सुनने में आने वाले इस लोक और परलोक संबंधी सभी भोगों से वैराग्य को प्राप्त हो जाएगा॥52॥

श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥2.53॥

भावार्थ : 

भाँति-भाँति के वचनों को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्धि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जाएगी, तब तू योग को प्राप्त हो जाएगा अर्थात तेरा परमात्मा से नित्य संयोग हो जाएगा॥53॥

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कौवे से जुड़े 25 रोचक तथ्य || 25 Interesting facts about crows ||

कौवे से जुड़े रोचक तथ्य

कौवों से तो सभी परिचित हैं। फिर भी उम्मीद करती हूं कि इस लेख से आपको कुछ नया जानने को मिलेगा। कौवों की गिनती प्रकृति को स्वच्छ रखने वाले पक्षियों में की जाती है, क्योंकि यह भोजन के रूप में सड़े गले भोजन एवं मृत जीवो को खाकर वातावरण को स्वच्छ बनाए रखते हैं। 

कौवे से जुड़े 25 रोचक तथ्य || 25 Interesting facts about crows ||

  1. कौवे अंटार्कटिका को छोड़कर पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। दुनिया भर में कौवों की लगभग 40 प्रजातियां पाई जाती हैं, जबकि भारत में दो ही प्रकार के कौवे पाए जाते हैं।
  2. कौवे सर्वाहारी होते हैं। यह अपने आहार में 1000 से अधिक खाद्य पदार्थ खाते हैं, जिनमें कीड़े - मकोड़े मांस से लेकर फल, बीज के साथ-साथ मृत और सड़े हुए जीव भी शामिल हैं।
  3. कौवों की स्मृति बहुत अच्छी होती है। वह बाद में खाने के लिए भोजन छुपा कर रखते हैं। कभी-कभी दो तीन बार भोजन को इधर-उधर छुपाते हैं और हमेशा याद रखते हैं कि उन्होंने भोजन कहां छुपाया है।
  4. कौवों की एक बहुत अच्छी विशेषता होती है कि कौवे आम तौर पर जीवन भर एक ही साथी के प्रति वफादार होते हैं। यह सारा जीवन एक ही साथी के साथ बिताते हैं और साथ में बच्चों को बड़ा करते हैं।
  5. कौवे चेतावनी देने के लिए लगभग 250 प्रकार की अलग-अलग आवाजें निकालते हैं। हर किसी के लिए भिन्न आवाज जैसे बिल्लियों के लिए अलग, बाज के लिए अलग और इंसानों के लिए अलग।
  6. वैसे तो कौवे अक्सर अकेला रहना पसंद करते हैं, परंतु यदि कोई कौवा मुसीबत में हो तो बाकी कौवे उसकी मदद के लिए तुरंत आ जाते हैं।कौवे से जुड़े 25 रोचक तथ्य || 25 Interesting facts about crows ||
  7. अन्य पक्षियों की तरह कौवे एक स्थान से दूसरे स्थान को पलायन नहीं करते। यह जहां जन्म लेते हैं उसके आसपास ही अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं।
  8. कौवों की याददाश्त बहुत तेज होती है। यह इंसानी चेहरे को लगभग 5 सालों तक याद रख सकते हैं।
  9. कौवों को धार्मिक दृष्टि से भी जोड़कर देखा जाता है। कुछ लोग इसे शगुन मानते हैं, जबकि कुछ अपशगुन। श्राद्ध के महीने में कौवों की पूजा भी की जाती है।
  10. सामान्यतः कौवों का जीवनकाल 10 से 15 वर्ष तक का होता है, जबकि ऑस्ट्रेलियाई कौवे 22 साल तक जीते हैं।
  11. यादाश्त तेज होने के साथ-साथ कौवे समझदार भी होते हैं। कभी-कभी अपने शिकार को बिल से बाहर निकालने के लिए छोटी लकड़ियां तथा अन्य साधनों का प्रयोग भी करते हैं।
  12. अपने इलाके की रक्षा के लिए कौवे हमेशा तत्पर रहते हैं। इसके लिए वे अपने से बड़े किसी भी जीव से लड़ जाते हैं। खतरा महसूस होने पर कौवे एक दूसरे को आवाज लगाते हैं और झुंड में हमला करते हैं।
  13. एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि जापान की कैरीऑन (Carrion) कौवे की प्रजाति ट्रैफिक नियमों को भी पहचानने में सक्षम है। यह कौवे जब ट्रैफिक लाइट लाल होती है और गाड़ी रूकती है, तो अखरोट जैसे सख्त खाने को गाड़ी के टायर के नीचे रख देते हैं और गाड़ी चलने के बाद जब अगली बार लाइट लाल होती है, तो टूटा हुआ अखरोट लेकर चले जाते हैं।
  14. लोग सोचते है कि कौवे काले ही होते है, जो कि पूरी तरह से सच नहीं है। कुछ ऐसे कौवे भी होते है जो कि सफेद रंग के होते हैं और उन्हें Albino नाम दिया गया है। यह रंग उनमे आनुवंशिक असामान्यताएं के कारण होता है और ऐसे कौवे कम उम्र में ही मर जाते हैं।कौवे से जुड़े 25 रोचक तथ्य || 25 Interesting facts about crows ||
  15. दुनिया में कौवे की सबसे छोटी प्रजाति मेक्सिको की Dwarf Jay है। इसकी लंबाई 20-23 सेंटीमीटर और वजन मात्र 41 ग्राम होता है। 
  16. दुनिया में कौवे के सबसे बड़ी प्रजाति Thick-billed Raven है, जो इथोपिया में पाई जाती है। इसकी लंबाई 65 सेंटीमीटर और वजन 1.5 किलो तक होता है। 
  17. कौवे के समूह को ‘murder’ कहा जाता है। 
  18. Big Bertha (17 मार्च 1945 से 31 दिसंबर 1993) नामक मादा कौवे के नाम जीवन भर प्रजनन का गिनीज़ बुक वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness Book Of World Record) हैं, जिसने लगभग 49 वर्ष तक के जीवन में 39 कौवों को जन्म दिया था। 
  19. जहाँ उपयुक्त लगे कौवे वहाँ घोंसले बना लेते हैं। जैसे खंभे, पेड़ की डाली या चट्टानों के किनारे। 
  20. नर और मादा दोनों मिलकर टहनियों, बाल और छाल से घोंसला बनाते हैं और अंडे देने के बाद घोंसले में ही मादा अंडों को सेती है। कौवे से जुड़े 25 रोचक तथ्य || 25 Interesting facts about crows ||
  21. कौवे एक बार में 5 से 6 अंडे देते हैं और उन्हें 20 से 40 दिनों तक सेते है। ये अंडे हरे या जैतून के रंग के गहरे धब्बेदार होते हैं। 
  22. कौवे सिखाए जाने पर ये 1 से 7 तक गिन सकते हैं। 
  23. कौवों को निडर पक्षियों में गिना जाता है। वे अपने से 9 गुना अधिक वजन वाले बाज़ का भी पीछा करते हैं। 
  24. अपनी निडरता के बावजूद कौवे अक्सर इंसानों से सावधान रहते हैं, जो उनके सबसे बड़े शिकारी हैं। 
  25. भारत में कौवों को संदेशवाहक भी माना जाता है। कहा जाता है कि वे कई बार अपनी कर्कश आवाज़ में "कांव-कांव" कर भविष्यवाणी करते हैं या अनहोनी की चेतावनी देते हैं। 
कौवे से जुड़े 25 रोचक तथ्य || 25 Interesting facts about crows ||

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Interesting facts about crows

Everyone is familiar with crows. Still, I hope that you will get to know something new from this article. Crows are counted among the birds that keep nature clean, because they keep the environment clean by eating rotten food and dead creatures in the form of food.

  1. Crows are found all over the world except Antarctica. There are about 40 species of crows found all over the world, while only two types of crows are found in India.
  2. Crows are omnivores. They eat more than 1000 foods in their diet, ranging from insects to meat to fruits, seeds, as well as dead and rotten organisms.
  3. Crows have a very good memory. They hide the food to eat later. Sometimes two or three times they hide the food here and there and always remember where they have hidden the food.
  4. One very nice characteristic of crows is that crows are generally loyal to only one mate throughout their life. They spend their whole life with only one partner and raise children together.
  5. Crows make about 250 different sounds to warn. Different sounds for everyone like different for cats, different for eagles and different for humans.
  6. Although crows often like to be alone, but if a crow is in trouble, other crows come immediately to help him.कौवे से जुड़े 25 रोचक तथ्य || 25 Interesting facts about crows ||
  7. Like other birds, crows do not migrate from one place to another. They spend their whole life around the place where they are born.
  8. The memory of crows is very sharp. They can remember human faces for about 5 years.
  9. Crows are also seen as a religious link. Some consider it an omen, while some consider it a bad omen. Crows are also worshiped in the month of Shradh.
  10. Generally, crows have a lifespan of 10 to 15 years, while Australian crows live up to 22 years.
  11. Along with having fast memory, crows are also intelligent. Sometimes they also use small sticks and other means to get their prey out of the burrow.
  12. Crows are always ready to defend their territory. For this they fight with any creature bigger than themselves. When threatened, crows call out to each other and attack in flocks.
  13. A study has also found that a species of carrion crow from Japan is capable of recognizing traffic rules as well. When the traffic light is red and the car stops, they put hard food like walnuts under the tire of the car and when the next time the light is red after driving, they take away the broken nut.
  14. People think that crows are black, which is not entirely true. There are also some crows that are white in color and have been named Albino. This coloration is due to genetic abnormalities in them and such crows die at a young age.
  15. The smallest species of crow in the world is the Dwarf Jay of Mexico. Its length is 20-23 cm and weight is only 41 grams.
  16. The largest species of crow in the world is the Thick-billed Raven, which is found in Ethiopia. Its length is 65 cm and weight is up to 1.5 kg.कौवे से जुड़े 25 रोचक तथ्य || 25 Interesting facts about crows ||
  17. A group of crows is called a 'murder'.
  18. A female crow named Big Bertha (17 March 1945 to 31 December 1993) holds the Guinness Book of World Record for lifetime breeding, giving birth to 39 crows in a life span of about 49 years.
  19. The crows make nests where they are suitable. Such as pillars, tree branches or the sides of rocks.
  20. Both the male and the female build a nest with twigs, hair and bark, and after laying the eggs, the female incubates the eggs in the nest itself.
  21. Crows lay 5 to 6 eggs at a time and incubate them for 20 to 40 days. These eggs are dark green or olive in color.
  22. Crows can count from 1 to 7 when taught.
  23. Crows are counted among fearless birds. They also chase after a falcon weighing 9 times more than them.
  24. Despite their fearlessness, crows are often wary of humans, who are their greatest predators.
  25. In India, crows are also considered messengers. It is said that at times they prophesy or warn of something untoward by "Kaav-Kaav" in their hoarse voice.

कौवे से जुड़े 25 रोचक तथ्य || 25 Interesting facts about crows ||