अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग
अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग
अध्याय ग्यारह के अनुच्छेद 09 - 14
अध्याय ग्यारह के अनुच्छेद 09 - 14 में संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन है।
संजय उवाच
भावार्थ :
संजय बोले- हे राजन्! महायोगेश्वर और सब पापों के नाश करने वाले भगवान ने इस प्रकार कहकर उसके पश्चात अर्जुन को परम ऐश्वर्ययुक्त दिव्यस्वरूप दिखलाया॥9॥
भावार्थ :
अनेक मुख और नेत्रों से युक्त, अनेक अद्भुत दर्शनों वाले, बहुत से दिव्य भूषणों से युक्त और बहुत से दिव्य शस्त्रों को धारण किए हुए और दिव्य गंध का सारे शरीर में लेप किए हुए, सब प्रकार के आश्चर्यों से युक्त, सीमारहित और सब ओर मुख किए हुए विराट्स्वरूप परमदेव परमेश्वर को अर्जुन ने देखा॥10-11॥
भावार्थ :
आकाश में हजार सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्व रूप परमात्मा के प्रकाश के सदृश कदाचित् ही हो॥12॥
भावार्थ :
पाण्डुपुत्र अर्जुन ने उस समय अनेक प्रकार से विभक्त अर्थात पृथक-पृथक सम्पूर्ण जगत को देवों के देव श्रीकृष्ण भगवान के उस शरीर में एक जगह स्थित देखा॥13॥
भावार्थ :
उसके अनंतर आश्चर्य से चकित और पुलकित शरीर अर्जुन प्रकाशमय विश्वरूप परमात्मा को श्रद्धा-भक्ति सहित सिर से प्रणाम करके हाथ जोड़कर बोले॥14॥
🙏🙏
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
ReplyDeleteओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः🙏🏻🚩
ReplyDeleteक्या बात है , बेहतरीन पॉइंट 👌🏻👌🏻
ReplyDeleteपरमपिता परमात्मा ने विश्वरूप में ज्ञान प्रदान करने तथा जगत कल्याण के लिए अर्जुन को दर्शन दिए।
ReplyDeleteभक्त अगर अर्जुन जैसा हो तो परमात्मा अवश्य ही
दर्शन देंगें🌹🙏गोविंद🙏🌹
Jai krishna
ReplyDeleteकर्म करना हो अधिकार है,फल में नहीं।
ReplyDeleteHare krishan
ReplyDeleteHare krishna
ReplyDelete🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा 🪔🌺🐾🙏🚩🏹⚔️📙⚔️🔱🙌
ReplyDeleteHare Krishna
ReplyDelete🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
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