श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय दसवाँ - विभूतियोग ||
अथ दशमोऽध्याय:- विभूतियोग
अथ दशमोऽध्याय:- विभूतियोग
अध्याय दस के अनुच्छेद 31 - 42
भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन
भावार्थ :
मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ तथा मछलियों में मगर हूँ और नदियों में श्री भागीरथी गंगाजी हूँ॥10.31॥
भावार्थ :
हे अर्जुन! सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ। मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या अर्थात् ब्रह्मविद्या और परस्पर विवाद करने वालों का तत्व-निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ॥10.32॥
भावार्थ :
मैं अक्षरों में अकार हूँ और समासों में द्वंद्व नामक समास हूँ। अक्षयकाल अर्थात् काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला, विराट्स्वरूप, सबका धारण-पोषण करने वाला भी मैं ही हूँ॥10.33॥
भावार्थ :
मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उत्पत्ति हेतु हूँ तथा स्त्रियों में कीर्ति (कीर्ति आदि ये सात देवताओं की स्त्रियाँ और स्त्रीवाचक नाम वाले गुण भी प्रसिद्ध हैं, इसलिए दोनों प्रकार से ही भगवान की विभूतियाँ हैं), श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ॥10.34॥
भावार्थ :
तथा गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री छंद हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसंत मैं हूँ॥10.35॥
भावार्थ :
मैं छल करने वालों में जूआ और प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव हूँ। मैं जीतने वालों का विजय हूँ, निश्चय करने वालों का निश्चय और सात्त्विक पुरुषों का सात्त्विक भाव हूँ॥10.36॥
भावार्थ :
वृष्णिवंशियों में (यादवों के अंतर्गत एक वृष्णि वंश भी था) वासुदेव अर्थात् मैं स्वयं तेरा सखा, पाण्डवों में धनञ्जय अर्थात् तू, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूँ॥10.37॥
भावार्थ :
मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात् दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छावालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानों का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ॥10.38॥
भावार्थ :
और हे अर्जुन! जो सब भूतों की उत्पत्ति का कारण है, वह भी मैं ही हूँ, क्योंकि ऐसा चर और अचर कोई भी भूत नहीं है, जो मुझसे रहित हो॥10.39॥
भावार्थ :
हे परंतप! मेरी दिव्य विभूतियों का अंत नहीं है, मैंने अपनी विभूतियों का यह विस्तार तो तेरे लिए एकदेश से अर्थात् संक्षेप से कहा है॥10.40॥
भावार्थ :
जो-जो भी विभूतियुक्त अर्थात् ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, उस-उस को तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति जान॥10.41॥
भावार्थ :
अथवा हे अर्जुन! इस बहुत जानने से तेरा क्या प्रायोजन है। मैं इस संपूर्ण जगत् को अपनी योगशक्ति के एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ॥10.42॥
श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विभूतियोगो नाम दशमोऽध्यायः ॥10॥
🙏🙏
ReplyDeleteॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
ReplyDeleteजय श्री राधे कृष्णा
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteVery nice..
ReplyDeleteJai shri krishna
ReplyDeleteJai shree Krishna.🙏🙏
ReplyDeleteविनाश और विकास दोनो गोविंद की हीं देन है।
ReplyDelete🙏 हे गोविंद 🙏
Jai shree krishna
ReplyDeleteजैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान यह है गीता का ज्ञान।
ReplyDelete🙏🙏💐💐शुभरात्रि 🕉️
ReplyDelete🙏जय श्री कृष्णा 🚩
🙏जय श्री कृष्णा 🚩
🙏जय श्री कृष्णा 🚩
👌👌👌🙏🙏🙏आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
🕉️ नमो योगेश्वराय नमः 🪔🌺🐾🙏🚩🏹⚔️📙⚔️🔱🙌
ReplyDeleteJai shree krishna..
ReplyDeleteJai shree krishna
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