भगवान जगन्नाथ मंदिर महाप्रसाद
उड़ीसा में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर को तो सभी लोग जानते हैं। आज हम मंदिर के बारे में नहीं बल्कि वहां बनाए गए प्रसाद की चर्चा करेंगे। कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ का प्रसाद दुनिया के सभी मंदिरों के प्रसाद से भिन्न और चमत्कारिक है, तो आइए जानते हैं, भगवान जगन्नाथ के प्रसाद के बारे में खास बातें-
महाप्रसाद को व्यापक रूप से प्रसिद्ध छप्पन भोग के रूप में भी जाना जाता है।महाप्रसाद दो प्रकार का होता है- एक है संकुड़ी महाप्रसाद और दूसरा है सुखिला महाप्रसाद। दोनों प्रकार के महाप्रसाद भव्य मंदिर के आनंद बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध होता है।
संकुड़ी महाप्रसाद में चावल, घी चावल, मिश्रित चावल, जीरा और नमक के साथ हींग- अदरक चावल, मीठी दाल सब्जियों के साथ सादा दाल, विभिन्न प्रकार की मिश्रित करी, साग भाजा खट्टा दलिया आदि व्यंजन शामिल हैं। यह सभी भगवान को कर्मकांड तरीके से चढ़ाए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि पूजा के समय हर दिन 56 प्रकार के प्रसाद भगवान को चढ़ाए जाते हैं, और इन सभी को मंदिर की रसोई में तैयार किया जाता है और आनंद बाजार में भक्तों को बेचा जाता है।
दूसरा, सुखिला महाप्रसाद में सूखी मिठाइयां होती हैं।
सन्कुड़ी और सुखिला महाप्रसाद के अलावा एक अन्य प्रकार का सूखा महाप्रसाद 'निर्मल्य' है, इसे 'कैबल्य' के नाम से भी जाना जाता है। अध्यात्मिक मान्यता में,निर्मल्य एक व्यक्ति को उसकी मृत्यु शैय्या पर दिया जाता है, जिससे उसके सभी पापों के प्रायश्चित के बाद अपनी मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान मिलता है।
भारत में स्थित चार पवित्र मंदिर अर्थात् पूरी, रामेश्वरम, द्वारिका और बद्रीनाथ, भगवान विष्णु को बेहद प्रिय हैं। ऐसा कहा जाता है और माना जाता है कि, वह रामेश्वरम में स्नान करते हैं, बद्रीनाथ में ध्यान करते हैं, पूरी में भोजन करते हैं और द्वारिका में आराम करते हैं, इसलिए पूरी में मंदिर के भोजन "महाप्रसाद" को सर्वोच्च माना जाता है।
जगन्नाथ धाम, पुरी की रसोई अत्यंत अद्भुत है। 172 साल पुराने इस मंदिर के एक एकड़ में फैली 32 कमरों वाली इस विशाल रसोई (150 फ़ीट लंबी, 100 फ़ीट चौड़ी और 20 फ़ीट ऊँची) में भगवान् को चढ़ाये जाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 752 चूल्हे इस्तेमाल में लाए जाते हैं और लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं। सारा प्रसाद लकड़ी के चूल्हे पर मिट्टी के बर्तन में पकाया जाता है। मिट्टी की जिन सात सौ हंडियों में पकाया जाता है, उन्हें ‘अटका’ कहते हैं। लगभग दो सौ सेवक सब्जियों, फलों, नारियल इत्यादि को काटते हैं, मसालों को पीसते हैं। मान्यता है कि इस रसोई में जो भी भोग बनाया जाता है, उसका निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है।
यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई के रूप में विख्यात है।
यह मंदिर की दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। भोग पूरी तरह शाकाहारी होता है। मीठे व्यंजन तैयार करने के लिए यहाँ शक्कर के स्थान पर अच्छे किस्म का गुड़ प्रयोग में लाया जाता है। आलू, टमाटर और फूलगोभी का उपयोग मन्दिर में नहीं होता। जो भी व्यंजन यहाँ तैयार किये जाते हैं, उनके ‘जगन्नाथ वल्लभ लाडू’, ‘माथपुली’ जैसे कई अन्य नाम रखे जाते हैं। भोग में प्याज व लहसुन का प्रयोग निषिद्ध है।
यहाँ रसोई के पास ही दो कुएं हैं, जिन्हें ‘गंगा’ व ‘यमुना’ कहा जाता है। केवल इनसे निकले पानी से ही भोग का निर्माण किया जाता है। इस रसोई में 56 प्रकार के भोगों का निर्माण किया जाता है। दाल, चावल, सब्जी, मीठी पूरी, खाजा, लड्डू, पेड़े, बूंदी, चिवड़ा, नारियल, घी, माखन, मिसरी आदि से महाप्रसाद बनता है। रसोई में पूरे वर्ष के लिए भोजन पकाने की सामग्री रहती है। रोज़ कम से कम 10 तरह की मिठाइयाँ बनाई जाती हैं।
आठ लाख़ लड्डू एक साथ बनाने पर इस रसोई का नाम गिनीज़ बुक में भी दर्ज हो चुका है
रसोई में एक बार में 50 हज़ार लोगों के लिए महाप्रसाद बनता है। मन्दिर की रसोई में प्रतिदिन बहत्तर क्विंटल चावल पकाने का स्थान है। रसोई में एक के ऊपर एक 7 कलशों में चावल पकाया जाता है। प्रसाद बनाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रख दिए जाते हैं। सबसे ऊपर रखे बर्तन में रखा भोजन पहले पकता है फिर नीचे की तरफ़ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है। प्रतिदिन नये बर्तन ही भोग बनाने के काम आते हैं।
सर्वप्रथम भगवान् को भोग लगाने के पश्चात् भक्तों को प्रसाद दिया जाता है। भगवान् जगन्नाथ को महाप्रसाद, जिसे ‘अब्धा’ कहा जाता है, निवेदित करने के बाद माता बिमला को निवेदित किया जाता है। तब वह प्रसाद महाप्रसाद बन जाता है। भगवान् श्री जगन्नाथ को दिन में छह बार महाप्रसाद चढ़ाया जाता है।
रथ यात्रा के दिन एक लाख़ चौदह हज़ार लोग रसोई कार्यक्रम में तथा अन्य व्यवस्था में लगे होते हैं। जबकि 6000 पुजारी पूजाविधि में कार्यरत होते हैं। ओडिशा में दस दिनों तक चलने वाले इस राष्ट्रीय उत्सव में भाग लेने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लोग उत्साहपूर्वक उमड़ पड़ते हैं। यहाँ भिन्न-भिन्न जातियों के लोग एकसाथ भोजन करते हैं, जात-पाँत का कोई भेदभाव नहीं रखा जाता।
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Lord Jagannath Temple Mahaprasad
Everyone knows the Lord Jagannath Temple located in Orissa. Today we will not discuss about the temple but the Prasad made there. It is said that the offerings of Lord Jagannath are different and miraculous than the offerings of all the temples of the world, so let's know, the special things about Lord Jagannath's offerings-
Mahaprasad is also widely known as the famous Chappan Bhog. There are two types of Mahaprasad – one is Sankudi Mahaprasad and the other is Sukhila Mahaprasad. Both types of Mahaprasad are available for sale in the Anand Bazar of the grand temple.
Sankudi Mahaprasad includes dishes like rice, ghee rice, mixed rice, asafoetida-ginger rice with cumin and salt, plain lentils with sweet lentils vegetables, a variety of mixed curries, saag bhaja khatta dalia etc. All these are offered to the Lord in a ritualistic manner. It is said that 56 types of prasad are offered to the Lord every day at the time of worship, and all of these are prepared in the temple kitchen and sold to the devotees at Ananda Bazar.
Second, Sukhila Mahaprasad consists of dry sweets.
Apart from Sankudi and Sukhila Mahaprasad, another type of dry Mahaprasad is 'Nirmalya', also known as 'Kaibalya'. In spiritual belief, nirmalya is given to a person on his death bed, thereby atonement for all his sins and a place in heaven after his death.
Four holy temples located in India namely Puri, Rameshwaram, Dwarka and Badrinath are very dear to Lord Vishnu. It is said and believed that, he bathes in Rameshwaram, meditates at Badrinath, eats in Puri and rests in Dwarka, hence the temple food "Mahaprasad" is considered supreme in Puri.
The kitchen of Jagannath Dham, Puri is amazing. In this spacious kitchen (150 feet long, 100 feet wide and 20 feet high) of 32 rooms spread over one acre of this 172 year old temple, 752 chulhas are used to prepare the Mahaprasad to be offered to the deity and approx. 500 cooks and 300 of their associates work. All the prasad is cooked in an earthen pot on a wooden stove. The seven hundred earthen pots in which all these prasad are cooked are called 'Atka'. About two hundred servants chop vegetables, fruits, coconuts, etc., grind spices. It is believed that whatever food is prepared in this kitchen, it is prepared under the supervision of Goddess Lakshmi.
This kitchen is known as the largest kitchen in the world.
It is situated in the south-east direction of the temple. The food is completely vegetarian. Here, instead of sugar, good quality jaggery is used to prepare sweet dishes. Potatoes, tomatoes and cauliflower are not used in the temple. The dishes that are prepared here are given names like 'Jagannath Vallabh Ladu', 'Mathpuli' among many others. The use of onion and garlic in bhog is prohibited.
There are two wells near the kitchen, which are called 'Ganga' and 'Yamuna'. Bhog is prepared only from the water that comes out of them. 56 types of bhoga are prepared in this kitchen. Mahaprasad is made from lentils, rice, vegetables, sweet puri, khaja, laddus, pedas, boondi, chivda, coconut, ghee, butter, misri etc. The kitchen supplies cooking materials for the whole year. At least 10 types of sweets are made daily.
The name of this kitchen has also been recorded in the Guinness Book for making eight lakh laddus together.
Mahaprasad is prepared for 50 thousand people at a time in the kitchen. The kitchen of the temple has a place to cook seventy two quintals of rice every day. In the kitchen, rice is cooked in 7 pots one above the other. To make prasad, 7 utensils are placed on top of each other. The food kept in the vessel placed at the top is cooked first, then the prasad is cooked one after the other from the bottom. Every day new utensils are used for making bhog.
First of all, after offering Bhog to the Lord, Prasad is given to the devotees. After offering Mahaprasad, which is called 'Abdha', to Lord Jagannath, it is offered to Mother Bimala. Then that Prasad becomes Mahaprasad. Mahaprasad is offered to Lord Jagannath six times a day.
On the day of Rath Yatra, one lakh fourteen thousand people are engaged in the kitchen program and other arrangements. While 6000 priests are employed in the rituals. People from all corners of the world throng with enthusiasm to participate in this ten-day long national festival in Odisha. Here people of different castes eat together, there is no discrimination of caste and creed.
"जगन्नाथ पुरी" जहा भगवान कृष्ण धड़कते दिल ह्रदय के साथ आज भी जीवित हैं
श्री जगन्नाथ भगवान की जय।
ReplyDeleteJai ho🙏🙏
ReplyDeleteBhagwan jagnnath ki jai ho
ReplyDeleteमैं तो कभी गई नहीं पर जब रथ यात्रा निकलती है तो न्यूज़ में जरूर आता है और इतनी ही जानकारी थी महाप्रसाद के बारे में आज के इस की पोस्ट से जानकारी मिली..
ReplyDeleteधन्यवाद इतनी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए
इतनी बड़ी रसोई सिर्फ भारत में ही हो सकता है
Nice
ReplyDeleteWow 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteपुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर में महाप्रसाद की रचना अद्भुत है।50हजार भक्तों के लिए एक साथ महाप्रसाद तैयार होता है।जय भगवान जगन्नाथ जी की।
ReplyDeleteइतनी बड़ी रसोई सिर्फ हमारे भारत में ही संभव है। पढ़ के मजा आ गया कि अभी भी वहां मिट्टी के बर्तन में प्रसाद बनता है।
ReplyDeleteभगवान जगन्नाथ की जय🙏🙏
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअति उत्तम व्यवस्था
ReplyDeleteAwesome. It reads in one breath - that's how interesting it is.
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteमंदिर के विषय में तो कुछ जानकारी थी लेकिन महाप्रसाद तो दिव्य है। दिन में छः बार भोग लगता है और वो भी मिट्टी के बरतन में पका हुआ। बहुत ही अद्भुत जानकारी और उन सभी लोगों को साधुवाद जो इस कार्य में लगे हैं।
ReplyDeleteVery nice...
ReplyDeleteअद्भुत महाप्रसाद। भगवान जगन्नाथ की महिमा अपरंपार है, ये तो सभी को पता है, पर महाप्रसाद की जानकारी नहीं थी। 50000 लोगों के लिए प्रसाद तैयार करना,ये कोई साधारण बात नहीं। जय हो जगन्नाथ भगवान की 🙏🙏
ReplyDeleteजय श्री जगन्नाथ बाबा जी
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteWow amazing 👌👌😍
ReplyDeleteJai jagannath baba ji🙏🙏
ReplyDeleteJai ho..
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