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गुजरात का राजकीय फूल " गेंदा " || State flower of Gujarat - "Marigold"

गुजरात का राजकीय फूल "गेंदा"

सामान्य नाम:  गेंदा
स्थानीय नाम: गेंदा
वैज्ञानिक नाम: टैगेटेस इरेक्टा

टैगेटेस इरेक्टा या मैक्सिकन मैरीगोल्ड मूल रूप से मैक्सिको का मूल निवासी है और इसे इसके सजावटी, औषधीय और औपचारिक उद्देश्य के लिए अत्यधिक माना जाता है। यह पुष्प उद्योग में अत्यधिक मांग वाले कटे हुए फूलों में से एक है। यह 100 सेमी तक बढ़ सकता है। फूल बड़े और चमकीले रंग के होते हैं।  गुजरात का राजकीय फूल गेंदा है. इसका वैज्ञानिक नाम टैगेट इरेक्टा है। 

गुजरात का राजकीय फूल " गेंदा " || State flower of Gujarat - "Marigold"

गुजरात के राज्य प्रतीक  

राज्य पशु – एशियाई शेर 
राज्य पक्षी – ग्रेटर फ्लेमिंगो 
राज्य वृक्ष – बरगद  
राज्य पुष्प – गेंदा  
राज्य की भाषा – गुजराती और हिन्दी  
राज्य गीत 
– जय जय गरवी गुजरात

यह फूल कई देशों में उगता है जो इसकी खूबसूरती की सराहना करते हैं। पुर्तगालियों ने 16वीं शताब्दी में मध्य अमेरिका में इस फूल की खोज की थी। कभी-कभी, गेंदे के फूल का आकार और रंग सूर्य द्वारा दी जाने वाली गर्मी की मात्रा पर निर्भर करता है। फूल को आम तौर पर एक हल्के जलवायु की आवश्यकता होती है, जिसके लिए तापमान 18-20 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। 

गुजरात का राजकीय फूल " गेंदा " || State flower of Gujarat - "Marigold"

यह सूरजमुखी परिवार से संबंधित है और कहीं भी उग सकता है। इसके फूलदार शरीर में 100 से अधिक पत्तियाँ होती हैं। धार्मिक उद्देश्यों आदि के लिए माला बनाने में मैरीगोल्ड बहुत उपयोगी होते हैं। इस फूल का व्यापक रूप से शादी की सजावट के लिए उपयोग किया जाता है। यह मुख्य रूप से गर्मियों के मौसम में उपलब्ध होता है, जो मुख्य रूप से सभी मिट्टी की किस्मों के साथ उगता और उगाया जाता है। हालाँकि, गुजरात के राज्य के फूल में विशिष्ट रंग जैसे सोना, नारंगी, पीला और लाल होता है। फूल की गंध बहुत तेज़ होती है और यह विभिन्न सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों के लिए उपयोगी होता है। इसके प्रकारों में पॉट मैरीगोल्ड, म्यूल मैरीगोल्ड, सिग्नेट मैरीगोल्ड आदि शामिल हैं।

इसके अलावा, गेंदा विभिन्न त्वचा और नेत्र रोगों के लिए दवाइयों के उत्पादन में सहायक है। गेंदे से निकाला गया तरल सिर दर्द, दांत दर्द, कॉर्न, पेट दर्द, सूजन, चोट और मस्से को ठीक करने में मदद करता है। गेंदे का लोशन या क्रीम त्वचा के संक्रमण को ठीक करने में मदद करता है। फूल के तेल या मिश्रण का प्रयोग चोटों को ठीक करने में मदद करता है। गेंदे का रंगद्रव्य खाद्य पदार्थों को रंगने में उपयोगी है। तेल अक्सर इत्र बनाने के लिए उपयोगी होता है। इसलिए, गुजरात का राज्य फूल अपने प्रयोग से लोगों को कई लाभ प्रदान करता है।

English Translate

State Flower of Gujarat “Marigold”

Common Name: Marigold
Local Name: Genda
Scientific Name: Tagetes erecta

Tagetes erecta or Mexican Marigold is originally native to Mexico and is highly regarded for its ornamental, medicinal and ceremonial purpose. It is one of the highly sought cut flowers in the floral industry. It can grow up to 100 cm. The flowers are large and brightly coloured. The state flower of Gujarat is Marigold. Its scientific name is Tagetes erecta.

गुजरात का राजकीय फूल " गेंदा " || State flower of Gujarat - "Marigold"

State Symbols of Gujarat

State Animal – Asiatic Lion
State Bird – Greater Flamingo
State Tree – Banyan
State Flower – Marigold
State Language – Gujarati and Hindi
State Song – Jai Jai Garvi Gujarat

This flower grows in many countries which appreciate its beauty. The Portuguese discovered this flower in Central America in the 16th century. Sometimes, the size and colour of the marigold flower depends on the amount of heat given by the sun. The flower generally requires a mild climate, for which the temperature should be between 18-20 degrees Celsius.

It belongs to the sunflower family and can grow anywhere. Its flower body has more than 100 leaves. Marigolds are very useful in making garlands for religious purposes, etc. This flower is widely used for wedding decorations. It is mainly available in the summer season, mainly grown and cultivated in all soil varieties. However, the state flower of Gujarat has distinctive colors such as gold, orange, yellow, and red. The flower has a very strong smell and is useful for various cosmetics products. Its types include pot marigold, mule marigold, signet marigold, etc.

गुजरात का राजकीय फूल " गेंदा " || State flower of Gujarat - "Marigold"

Also, marigold is helpful in the production of medicines for various skin and eye diseases. The liquid extracted from marigold helps in curing headache, toothache, corns, stomachache, swelling, bruises, and warts. Marigold lotion or cream helps in curing skin infections. Application of the flower oil or mixture helps in healing injuries. Marigold pigment is useful in colouring food items. The oil is often useful for making perfumes. Hence, the state flower of Gujarat provides many benefits to people through its use.


फूलों से रोगों का इलाज 

भारतीय राज्य के राजकीय पशुओं की सूची || List of State Animals of India ||

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..रसिक संपादक

मानसरोवर-1 ..रसिक संपादक 

रसिक सम्पादक - मुंशी प्रेमचंद | Rasik Sampadak by Munshi Premchand

‘नवरस’ के सम्पादक पं. चोखेलाल शर्मा की धर्मपत्नी का जब से देहान्त हुआ हैं, आपको स्त्रियों से विशेष अनुराग हो गया है और रसिकता मात्रा भी कुछ बढ़ गयी है। पुरुषों के अच्छे-अच्छे लेख रद्दी में डाल दिये जाते हैं, पर देवियों के लेख कैसे भी हो, तुरन्त स्वीकार कर लिये जाते हैं और बहुधा लेख की प्रशंसा कुछ इन शब्दों में की जाती हैं- आपका लेख पढ़कर दिल थामकर रह गया, अतीत जीवन आँखों के सामने मूर्तिमान हो गया, अथवा आपके भाव साहित्य-सागर के उज्जवल रत्न हैं जिनकी चमक कभी कम न होगी। और कविताएँ तो उनके हृदय की हिलोरे, विश्व-वीणा की अमर तान, अनन्त की मधुर वेदना, निशा की नीरव गान होती थी। प्रशंसा के साथ दर्शनों की उत्कष्ट अभिलाषा भी प्रकट की जाती थी – यदि आप कभी इधर से गुजरें, तो मुझे न भूलिएगा। जिसने ऐसी कविता की सृष्टि की हैं, उसके दर्शनों का सौभाग्य हमें मिला, तो अपने को धन्य मानूँगा।

रसिक सम्पादक - मुंशी प्रेमचंद | Rasik Sampadak by Munshi Premchand

लेखिकाएँ अनुराग -मय प्रोत्साहन से भरे पत्र पाकर फूली न समातीं। जो लेख अभागे भिक्षुकों की भाँति कितनी ही पत्र-पत्रिकाओं के द्वार से निराश लौट आये थे, उनका इतना आदर! पहली बार ऐसा सम्पादक जन्मा हैं, जो गुणों का पारखी हैं! और सभी सम्पादक अहम्मन्य हैं, अपने आगे किसी को समझते ही नहीं। ज़रा-सी सम्पादकी क्या मिल गयी मानो कोई राज्य मिल गया। इन सम्पादकों को कहीं सरकारी पद मिल जाय तो अन्धेर मचा दें। वह तो कहा कि सरकार इन्हें पूछती नहीं, उसने बहुत अच्छा किया, जो आर्डिनेन्स पास कर दिये। और स्त्रियों से द्वेष करो! यह उसी का दंड हैं! यह भी सम्पादक ही हैं, कोई घास नहीं छीलते और सम्पादक भी एक जगत विख्यात पत्र के ‘नवरस’ सब पत्रों में राजा हैं।

चोखेलालजी के पत्र की ग्राहक-संख्या बड़े वेग से बढ़ने लगी। हर डाक से धन्यवादो की एक बाढ़-सी आ जाती, और लेखिकाओं में उनकी पूजा होने लगी। ब्याह, गौना, मुंडन, जन्म-मरण के समाचार आने लगे। कोई आशीर्वाद माँगती, कोई उनके मुख से सांत्वना के दो शब्द सुनने की अभिलाषा करती, कोई उनसे घरेलू संकटों में परामर्श पूछती। और महीने में दस-पाँच महिलाएँ उन्हें आकर दर्शन भी दे जाती। शर्माजी उनकी अवाई का तार या पत्र पाते ही स्टेशन पर जाकर उनका स्वागत करते, बड़े आग्रह से उन्हें एक-आध दिन ठहराते, उनकी खूब खातिर करते। सिनेमा के फ्री पास मिले हुए थे ही, खूब सिनेमा दिखाते। महिलाएँ उनके सद्भाव से मुग्ध होकर विदा होती। मशहूर तो यहाँ तक हैं कि शर्माजी का कई लेखिकाओं से बहुत ही घनिष्ट सम्बन्ध हो गया हैं, लेकिन इस विषय में हम निश्चितपूर्वक कुछ नहीं कह सकते। हम तो इतना ही जानते हुँ कि जो देवियाँ एक बार यहाँ आ जाती, वह शर्माजी की अनन्य भक्त हो जातीं। बेचारा साहित्य की कुटिया का तपस्वी हैं। अपने विधुर जीवन की निराशाओं को अपने अन्तस्थल में संचित रखकर मूक वेदना में प्रेम-माधुर्य का रस-पान कर रहा हैं। सम्पादकजी के जीवन में जो कमी आ गयी थी, उनकी कुछ पूर्ति करना महिलाओं ने अपना धर्म-सा मान लिया। उनके भरे हुए भंडार में से अगर एक क्षुधित प्राणी को थोड़ी-सी मिठास दी जा सके, तो उससे भंडार की शोभा हैं। कोई देवी पार्सल से आचार भेज देती, कोई लड्‌डू। एक ने पूजा का ऊनी आसन अपने हाथों से बना कर भेज दिया। एक देवी महीने में एक बार आकर उनके कपड़ो की मरम्मत कर देती थी। दूसरी महीने मे दो-तीन बार आकर उन्हें अच्छी-अच्छी चीजें बनाकर खिला जाती थी। अब वह किसी एक के न के सबके हो गये थे। स्त्रियों के अधिकारों को उनसे कड़ा रक्षृक शायद ही कोई मिले। पुरुषों से तो शर्माजी को हमेशा तीव्र आलोचना ही मिलती थी। श्रद्धामय सहानुभूति का आनन्द तो उन्हें स्त्रियों में ही पाया।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

एक दिन सम्पादकजी को एक ऐसी कविता मिली, जिसमें लेखिका ने अपने उग्र प्रेम का रूप दिखाया था। अन्य सम्पादक उसे अश्लील कहते, लेकिन चोखेलाल इधर बहुत हो हो गये थे। कविता इतने सुन्दर अक्षरों में लिखी थी, लेखिका का नाम इतना मोहक था कि सम्पादकजी के सामने उसका एक कल्पना-चित्र-सा आकर खड़ा हो गया। भावुक प्रकृति, कोमल गीत, याचना भरे नेत्र, बिम्ब-अंधर, चंपई-रंग, अंग-अंग में चपलता भरी हुई, पहले गोंद की तरह शुष्क और कठोर, आर्द्र होते हुए ही चिपक जाने वाली। उन्होंने कविता दो-तीन बार पढ़ी और हर बार उनके मन में सनसनी दौड़ी-

क्या तुम समझते हो, मुझे छोड़कर भाग जाओगे?

भाग सकोगे?

मै तुम्हारे गले में हाथ डाल दूँगी,

मै तुम्हारी कमर में करपाश कस दूँगी,

मैं तुम्हारी पाँव पकड़कर रोक लूँगी,

तब उस पर सर रख दूँगी।

क्या तुम समझते हो, मुझे छोड़कर भाग जाओगे?

छोड़ सकोगे?

मैं तुम्हारे अधरों पर अपने कोपल चिपका दूँगी,

उस प्याले में जो मादक सुधा हैं,

उसे पीकर तुम मस्त हो जाओगे।

क्या तुम समझते हो, मुझे छोड़कर भाग जाओगे?

– कामाक्षी

शर्माजी को हर बार इस कविता में एक नया रस मिलता था। उन्होंने उसी क्षण कामाक्षी देवी के नाम यह पत्र लिखा-

‘आपकी कविता पढ़कर, मैं कह नहीं सकता, मेरे चित्त की क्या दशा हुई। हृदय में एक ऐसी तृष्णा जाग उठी हैं, जो मुझे भस्म किये डालती हैं। नही जानता, इसे कैसे शान्त करूँ? बस यही आशा हैं कि इसको शीतल करनेवाली सुधा भी वहीं मिलेगी, जहाँ से यह तृष्णा मिली हैं। मन पतंग की भाँति जंजीर तुड़ाकर भाग जाना चाहता हैं। जिस हृदय से यह भाव निकले हैं, उसमें प्रेम का कितना अक्षय भंडार हैं, उस प्रेम का, जो अपने को समर्पित कर देने में ही आनन्द पाता हैं। मैं आपसे सत्य कहता हूँ कि, ऐसी कविता मैने आज तक नही सुनी थी और इसने मेरे अन्दर जो तूफान उठा दिया हैं, वह मेरी विधुर शांति को छिन्न-भिन्न किये डालता हैं। आपने एक गरीब की फूस की झोपड़ी में आग दी हैं, लेकिन मन यह स्वीकार नही करता कि वह केवल विनोद-क्रीड़ा हैं। इन शब्दों में मुझे एक ऐसा हृदय छिपा हुआ ज्ञात होता हैं, जिसने प्रेम की वेदना सही हैं, जो लालसा की आग से तपा हैं। मैं इसे परम सौभाग्य समझूँगा, यदि आपके दर्शनों का सौभाग्य पर सका। यह कुटिया अनुराग की भेंट के लिए आपका स्वागत करने को तड़प रही हैं।’

तीसरे दिन ही उत्तर आ गया। कामाक्षी ने बड़े भावुकतापूर्ण शब्दों में कृतज्ञता प्रकट की थी और अपने आने की तिथि बतायी थी।

आज कामाक्षी का शुभागमन हैं।

शर्माजी ने प्रातःकाल हजामत बनवायी, साबुन और बेसन से स्नान किया, महीन खद्दर की धोती, कोकटी का ढीला चुन्नटदार कुरता, मलाई के रंग की रेशमी चादर-ठाठ से कार्यालय में बैठे, तो सारा दफ्तर चमक उठा। दफ्तर की भी खूब सफाई कर दी गयी थी। बरामदे में गमले रखवा दिये गये थे, मेज पर गुलदस्ते सजा दिये गये थे। गाड़ी नौ बजे आती हैं, अभी साढे आठ बजे हैं, साढ़े नौ तक यहाँ आ जायेगी। इस परेशानी में कोई काम नहीं हो रहा हैं। बार-बार घड़ी की ओर ताकते हैं, फिर आइने में अपनी सूरत देखकर कमरे में टहलने लगते हैं। मूँछो से दो-चार बाल पके हुए नजर आ रहे हैं, उन्हें उखाड़ फेंकने का इस समय कोई साधन नहीं हैं। कोई हरज नहीं। इससे रंग कुछ और ज्यादा ही जमेगा। प्रेम जब श्रद्धा के साथ आता हैं, तब वह ऐसा मेहमान हो जाता हैं, जो उपहार लेकर आया हो। युवकों के लिए प्रेम खर्चीली वस्तु हैं लेकिन महात्माओं या महीत्मापन के समीप पहुँचे हुए लोगों का प्रेम-उलटे और कुछ ले आता हैं। युवक जो रंग बहुमूल्य उपहारों से जमाता हैं, ये महात्मा या अर्द्ध- महात्मा लोग केवल आशीर्वाद से जमा लेते हैं।

ठीक साढ़े नौ बजे चपरासी ने आकर कार्ड दिया। लिखा था- कामाक्षी।

शर्माजी ने उसे देवीजी को लाने की अनुमति देकर एक बार फिर आइने में अपनी सूरत देखी और एक मोटी-सी पुस्तक पढ़ने लगे, मानो स्वाध्याय में तन्मय हो गये हैं। एक क्षण में देवीजी ने कमरे में कदम रखा। शर्माजी को उनके आने की खबर न हुई।

देवीजी डरते-डरते समीप आ गयी, तब शर्माजी ने चौंककर सिर उठाया मानो समाधि से जाग पड़े हो, और खड़े होकर देवीजी का स्वागत किया, मगर यह वह मूर्ति न थी, जिसकी उन्होंने कल्पना कर रखी थी!

एक काली, मोटी, अधेड़, चंचल औरत थी, जो शर्माजी को इस तरह घूर रही थी, मानो उसे पी जायेगी। शर्माजी का सारा उत्साह, सारा अनुराग ठंड़ा पड़ गया। वह सारी मन की मिठाइयाँ, जो वह महीनों से खा रहे थे, पेट में शूल की भाँति चुभने लगी। कुछ कहते- सुनते न बना। केवल इतना बोले- सम्पादकों का जीवन बिल्कुल पशुओं का जीवन हैं। सिर उठाने का समय नही मिलता। उस पर कार्याधिक्य से इधर मेरा स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा हैं। रात ही से सिर-दर्द से बैचैन हूँ। आपकी क्या खातिर करूँ?

कामाक्षी देवी के हाथ में एक बड़ा-सा पुलिंदा था। उसे मेज पर पटककर रूमाल से मुँह पोंछकर मृदु -स्वर में बोली- यह तो आपने बड़ी बुरी खबर सुनाई। मैं तो एक सहेली से मिलते जा रही थी। सोचा रास्ते में आपके दर्शन करती चलूँ, लेकिन जब आपका स्वास्थ्य ठीक नही हैं, तो कुछ दिन रहकर आपका स्वास्थ्य सुधारना पड़ेगा। मैं आपके सम्पादन-कार्य में भी आपकी मदद करूँगी। आपका स्वास्थ्य स्त्री-जाति के लिए बड़े महत्त्व की वस्तु हैं। आपको इस दशा में छोड़कर अब मैं जा ही नही सकती।

शर्माजी को ऐसा जान पड़ा, जैसे उनका रक्त-प्रवाह रुक गया हैं, नाड़ी टूटी जा रही हैं। उस चुडैल के साथ रहकर तो जीवन ही नरक हो जायेगा। चली है कविता करने, और कविता भी कैसी? अश्लीलता में डूबी हुई। अश्लीलता तो हैं ही। बिल्कुल सड़ी हुई, गंदी। एक सुन्दरी युवती की कलम से वह कविता काम-बाण थी। इस डायन की कलम से तो वह परनाले की कीचड़ हैं। मै कहता हूँ , इसे ऐसी कविता लिखने का अधिकार ही क्या हैं? वह क्यों ऐसी कविता लिखती हैं? क्यों नही किसी कोने में बैठकर राम-भजन करती? आप पूछती हैं- मुझे छोड़कर भाग सकोगे? मैं कहता हूँ, आपके पास कोई आयेगा ही क्यों? दूर से ही देखकर न लम्बा हो जायेगा। कविता क्या हैं, जिसका न सिर हैं, न पैर, मात्राओं तक का तो इसे ज्ञान नहीं हैं। और कविता करती हैं? कविता अगर इस काया में निवास कर सकती हैं, तो फिर गधा भी गा सकता हैं! ऊँट भी नाच सकता हैं! इस राँड़ को इतना भी नहीं मालूम कि कविता करने के लिए रूप और यौवन चाहिए, नजाकत चाहिए। भूतनी-सी तो आपकी सूरत हैं, रात को कोई देख ले, तो डर जाय और आप उत्तेजक कविता लिखती हैं! कोई कितना ही क्षुधातुर हो, तो क्या गोबर खा लेगा? और चुड़ैल इतना बड़ा पोथा लेती आयी हैं। इसमें में वही परनाले का गंदा कीचड़ होगा!

उस मोटी पुस्तक की ओर देखते हुए बोले- नहीं, नहीं, मैं आपको कष्ट नहीं देना चाहता। वह ऐसी कोई बात नही हैं! दो-चार दिन के विश्राम से ठीक हो जायेगा। आपकी सहेली आपकी प्रतीक्षा करती होंगी।

‘आप तो महाशयजी संकोच कर रहे हैं। मै दस-पाँच दिन क बाद भी चली जाऊँगी, तो कोई हानि न होगी।’

‘इसकी कोई आवश्यकता नहीं हैं देवीजी।’

‘आपके मुँह पर तो आपकी प्रशंसा करना खुशामद होगी, पर जो सज्जनता मैने आप में देखी, वह कहीं नही पायी। आप पहले महान महानुभाव हैं, जिन्होंने मेरी रचना का आदर किया, नही, मैं तो निराश हो चुकी थी। आपके प्रोत्साहन का यह शुभ फल हैं कि मैने इतनी कविताएँ रच डालीं। आप इनमें से जो चाहे रख ले। मैने एक ड्रामा भी लिखना शुरू कर दिया हैं। उसे भी शीघ्र ही आपकी सेवा में भेजूँगी । कहिए तो दो-चार कविताएँ सुनाऊँ? ऐसा अवसर मुझे कब मिलेगा? यह तो नही जानती कि कविताएँ कैसी है, पर आप सुनकर प्रसन्न होंगे। बिल्कुल उसी रंग की हैं।’

उसने अनुमति की प्रतिक्षा न की। तुरन्त पोथा खोलकर एक कविता सुनाने लगा। शर्माजी को ऐसा मालूम होने लगा, जैसे कोई भिगो-भिगोकर जूते मार रहा हैं। कई बार उन्हें मतली आ गयी, जैसे एक हजार गधे कानों के पास खड़े अपना स्वर अलाप रहे हो। कामाक्षी के स्वर में कोयल का माधुर्य था। पर शर्माजी को इस समय वह भी अप्रिय लग रहा था। सिर में सचमुच दर्द होने लगा। यह गधी टलेगी भी, यह यों ही बैठी सिर खाती रहेंगी? इसे मेरे चेहरे से भी मेरे मनोभावों का ज्ञान नहीं हो रहा हैं! उस पर आप कविता करने चली हैं? इस मुँह से महादेवी या सुभद्राकुमारी की कविताएँ भी घृणा ही उत्पन्न करेंगी।

आखिर रहा न गया। बोले- आपकी रचनाओं का क्या कहना, आप यह संग्रह यहीं छोड़ जायें। मैं अवकाश में पढूँगा। इस समय तो बहुत त-सा काम हैं।

कामाक्षी ने दयार्द्र होकर कहा- आप इतना दुर्बल स्वास्थ्य होने पर भी इतने व्यस्त रहते हैं? मुझे आप पर दया आती हैं।

‘आपकी कृपा हैं।’

‘आपको कल अवकाश रहेगा? जरा मैं ड्रामा सुनाना चाहती थी?’

‘खेद हैं, कल मुझे जरा प्रयाग जाना हैं।’

‘तो मैं भी आपके साथ चलूँ ? गाड़ी में सुनाती चलूँगी?’

‘कुछ निश्चय नही, किस गाड़ी से जाऊँ।’

‘आप लौटेंगे कब तक?’

‘यह भी निश्चय नहीं।’

और टेलिफोन पर जाकर बोले- हल्लो, न. 77

कामाक्षी ने आध घंटे तक उनका इन्तजार किया, मगर शर्माजी एक सज्जन से ऐसी महत्त्व की बातें कर रहे थे, जिसका अन्त ही होने न पाता था।

निराश होकर कामाक्षी देवी विदा हुई और शीध्र ही फिर आने का वादा कर गयी। शर्माजी नें आराम की साँस ली और उस पोथे को उठाकर रद्दी में डाल दिया और जले हुए दिल से आप-ही-आप कहा- ईश्वर न करे कि फिर तुम्हारे दर्शन हो। कितनी बेशर्म हैं, कुलटा कही की! आज इसने सारा मजा किरकिरा कर दिया।

फिर मैनेजर को बुलाकर कहा- कामाक्षी की कविता नही जायेंगी।

मैनेजर ने स्तम्भित होकर कहा- फार्म तो मशीन पर हैं!

‘कोई हरज़ नहीं। फार्म उतार लीजिए।’

‘बड़ी देर होगी।’

‘होने दीजिए। वह कविता नही जायेगी।’

बैलेरिना ऑर्चिड (Ballerina Orchid)

 बैलेरिना ऑर्चिड (Ballerina Orchid)

कैलाडेनिया मेलेनेमा, जिसे आम तौर पर बैलेरीना ऑर्किड के नाम से जाना जाता है। ये छोटे पौधे हैं जिन्हें टेरेस्ट्रियल स्पाइडर ऑर्चिड भी कहते हैं। ये अकेले या फिर समूह में उगते हैं। ये आमतौर पर ऑस्ट्रेलिया के द्वीपों पर देखने को मिलते हैं। इसे सामने से देखने पर लगता है कि कोई बैलेरिना डांसर नाच रही हैं। इसमें तीन तरह के रंग देखने को मिलते हैं। साथ ही मरून रंग की मार्किंग होती हैं। पत्तियों पर भी तीन रंगों का मिश्रण होता है, लेकिन ये जिस इलाके में पैदा होती हैं, वहां पर खरगोश और कंगारू इन फूलों के लिए खतरनाक है। वो इसे खा जाते हैं। इसलिए ये बैलेरिना ऑर्चिड अक्सर देखने को नहीं मिलता है। 

बैलेरिना ऑर्चिड (Ballerina Orchid)

यह एक दुर्लभ ऑर्किड है, जिसमें एक सीधा, रोएँदार पत्ता और एक या दो क्रीम रंग के या हल्के पीले रंग के फूल होते हैं, जिनके बाह्यदल और पंखुड़ियों पर लाल निशान और काले सिरे होते हैं।इसमें फूलों के पौधों का एक विविध और व्यापक समूह होते हैं, जिसके फूल अक्सर रंगीन और सुगंधित होते हैं। ऑर्किडविश्वव्यापी पौधे हैं जो ग्लेशियरों को छोड़कर पृथ्वी पर लगभग हर आवास में पाए जाते हैं। ऑर्किड जेनेरा और प्रजातियों की दुनिया की सबसे समृद्ध विविधता उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है।

बैलेरिना ऑर्चिड (Ballerina Orchid)

कैलेडेनिया मेलेनेमा एक स्थलीय, बारहमासी , पर्णपाती , जड़ी बूटी है, जिसमें एक भूमिगत कंद और एक सीधा, रोएँदार पत्ता होता है, जो 40-120 मिमी लंबा और 2-7 मिमी चौड़ा होता है। लाल निशानों वाले एक या दो क्रीम रंग के फूल, 40-60 मिमी लंबे और 40-50 मिमी चौड़े होते हैं, जो 80-150 मिमी ऊँचे डंठल पर लगते हैं। बाह्यदल और पंखुड़ियाँ गहरे, लाल-भूरे से काले, धागे जैसे सिरों से ढकी होती हैं। पृष्ठीय बाह्यदल सीधा, 20-45 मिमी लंबा, लगभग 2 मिमी चौड़ा होता है। पंखुड़ियाँ 20-30 मिमी लंबी और 1.5-3 मिमी चौड़ी होती हैं और पार्श्व बाह्यदलों की तरह व्यवस्थित होती हैं। लेबेलम के किनारों पर छोटे, सफ़ेद नोक वाले दाँत होते हैं और बीच में कैली की दो पंक्तियाँ होती हैं। इसमें अगस्त से मध्य सितंबर तक फूल खिलते हैं।

कैलाडेनिया मेलेनेमा का वर्णन पहली बार 2001 में स्टीफन हॉपर और एंड्रयू फिलिप ब्राउन द्वारा लेक ग्रेस के पास एकत्र किए गए नमूने से किया गया था और विवरण नुयत्सिया में प्रकाशित हुआ था। 

English Translate

Ballerina Orchid

Caladenia melanema, commonly known as ballerina orchid. These are small plants which are also called terrestrial spider orchids. They grow alone or in groups. They are usually seen on the islands of Australia. When seen from the front, it seems as if a ballerina dancer is dancing. Three types of colors are seen in it. Also there are maroon markings. There is a mixture of three colors on the leaves too, but in the area where it grows, rabbits and kangaroos are dangerous for these flowers. They eat it. Therefore, this ballerina orchid is not often seen.

बैलेरिना ऑर्चिड (Ballerina Orchid)

This is a rare orchid, which has a straight, hairy leaf and one or two cream-colored or light yellow flowers, whose sepals and petals have red markings and black tips. It has a diverse and wide group of flowering plants, whose flowers are often colorful and fragrant. Orchids are cosmopolitan plants found in almost every habitat on Earth except glaciers. The world's richest diversity of orchid genera and species is found in the tropics.

बैलेरिना ऑर्चिड (Ballerina Orchid)

Caladenia melanema is a terrestrial, perennial, deciduous, herb, with an underground tuber and a single erect, hairy leaf, 40–120 mm long and 2–7 mm broad. One or two cream-coloured flowers with red markings, 40–60 mm long and 40–50 mm broad, are borne on a stalk 80–150 mm high. The sepals and petals are covered with dark, reddish-brown to black, thread-like tips. The dorsal sepal is erect, 20–45 mm long, about 2 mm broad. The petals are 20–30 mm long and 1.5–3 mm broad and are arranged like the lateral sepals. The labellum has small, white-tipped teeth on the edges and two rows of calli in the centre. It flowers from August to mid-September.

बैलेरिना ऑर्चिड (Ballerina Orchid)

Caladenia melanema was first described in 2001 by Stephen Hopper and Andrew Phillip Brown from a specimen collected near Lake Grace and the description was published in Nuytsia.

हम्पी रथ मंदिर, कर्नाटक - पत्थर का रथ – Hampi Rath Temple, karnataka

हम्पी रथ मंदिर

यह भारत में पत्थर से निर्मित तीन प्रसिद्ध रथों में से एक है, अन्य दो रथ  कोणार्क (ओडिशा) और महाबलीपुरम (तमिलनाडु) में हैं। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में विजयनगर शासक, राजा कृष्णदेवराय के आदेश पर हुआ था।विजयनगर शासकों ने 14वीं से 17वीं शताब्दी तक शासन किया। यह भगवान विष्णु के आधिकारिक वाहन गरुड़ को समर्पित एक मंदिर है।

हम्पी रथ मंदिर, कर्नाटक - पत्थर का रथ – Hampi Rath Temple, karnataka

यह रथ वास्तव में विट्ठल मंदिर परिसर के अंदर बना भगवान गरुड़ को समर्पित एक मंदिर है। भगवान विष्णु के अनुरक्षक गरुड़ की विशाल मूर्ति कभी रथ के ऊपर विराजमान थी, लेकिन वर्तमान समय में यह खाली है। 

इस रथ का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेवराय ने 16 वीं शताब्दी में किया था, जो ओडिशा में युद्ध लड़ते समय कोणार्क सूर्य मंदिर के रथ से मोहित हो गए थे। यह रथ साम्राज्य की सुंदरता और कलात्मक पूर्णता का प्रतिनिधित्व करता है। हम्पी रथ से एक दिलचस्प लोककथा निकलती है क्योंकि ग्रामीणों का मानना ​​है कि जब रथ अपनी जगह से हटता है तो दुनिया रुक जाती है। यह एक पवित्र उपस्थिति बन गया है और यूनेस्को द्वारा भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।

द्रविड़ वास्तुकला शैली से प्रेरित यह रथ एक विशाल संरचना है जो पहले के शिल्पकारों और वास्तुकारों के कौशल को दर्शाता है। रथ की खूबसूरती इस तथ्य में निहित है कि यह एक ठोस संरचना की तरह दिखता है लेकिन वास्तव में इसे ग्रेनाइट के स्लैब से बनाया गया है जिनके लिंकेज को कलात्मक डिजाइनों के साथ चतुराई से छिपाया गया है।

हम्पी रथ मंदिर, कर्नाटक - पत्थर का रथ – Hampi Rath Temple, karnataka

जिस आधार पर रथ टिका हुआ है, उस पर जटिल विवरणों के साथ सुंदर पौराणिक युद्ध के दृश्य दर्शाए गए हैं। जहां वर्तमान में हाथी बैठे हुए थे, वहां घोड़ों की मूर्तियां थीं। आगंतुक वास्तव में हाथियों के पीछे घोड़ों के पिछले पैर और पूंछ देख सकते हैं। दो हाथियों के बीच सीढ़ी के अवशेष भी हैं, जिनका उपयोग करके पुजारी गरुड़ की मूर्ति को श्रद्धांजलि देने के लिए आंतरिक गर्भगृह तक चढ़ते थे।

हम्पी:

चौदहवीं शताब्‍दी के दौरान मध्‍यकालीन भारत के महानतम साम्राज्‍यों में से एक विजयनगर साम्राज्‍य की राजधानी हम्‍पी कर्नाटक राज्‍य में स्थित है। इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का ने वर्ष 1336 में की थी। यूनेस्को (वर्ष 1986) द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में वर्गीकृत, यह "विश्व का सबसे बड़ा ओपन-एयर संग्रहालय" भी है।

हम्पी, उत्तर में तुंगभद्रा नदी और अन्‍य तीन ओर से पथरीले ग्रेनाइट के पहाड़ों से घिरा हुआ है। हम्पी के चौंदहवीं शताब्‍दी के भग्‍नावशेष यहाँ लगभग 26 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए हैं।

हम्पी रथ मंदिर, कर्नाटक - पत्थर का रथ – Hampi Rath Temple, karnataka

विजयनगर शहर के स्मारक जिन्हें विद्या नारायण संत के सम्‍मान में विद्या सागर के नाम से भी जाना जाता है, को वर्ष 1336-1570 ईस्वी के बीच हरिहर-I से लेकर सदाशिव राय आदि राजाओं ने बनवाया था। यहाँ पर सबसे अधिक इमारतें तुलुव वंश के महान शासक कृष्णदेव राय (1509 -30 ईस्वी) ने बनवाई थीं।

हम्‍पी के मंदिरों को उनकी बड़ी विमाओं, पुष्प अलंकरण, स्‍पष्‍ट नक्काशी, विशाल खम्‍भों, भव्‍य मंडपों एवं मूर्ति कला तथा पारंपरिक चित्र निरुपण के लिये जाना जाता है, जिसमें रामायण और महाभारत के विषय शामिल किये गए हैं। हम्‍पी में मौजूद विठ्ठल मंदिर विजय नगर साम्राज्य की कलात्मक शैली का एक उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है। एक पत्‍थर से निर्मित देवी लक्ष्‍मी, नरसिंह तथा गणेश की मूर्तियाँ अपनी विशालता एवं भव्‍यता के लिये उल्‍लेखनीय हैं। यहाँ स्थित जैन मंदिरों में कृष्‍ण मंदिर, पट्टाभिराम मंदिर, हजारा राम चंद्र और चंद्र शेखर मंदिर प्रमुख हैं।

शाम के समय विट्ठल कॉम्प्लेक्स में लगी फ्लड लाइट्स से रथ की खूबसूरत रोशनी होती है। कॉम्प्लेक्स से आने वाली लाइट्स की रोशनी में रथ और उसके विस्तृत डिजाइन का शानदार नजारा देखना एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला अनुभव होता है।

आरबीआई ने 50 रुपये का जो नया नोट जारी किया है, उसपर इसी हंपी रथ मंदिर की तस्वीर छपी है। 

हम्पी रथ मंदिर, कर्नाटक - पत्थर का रथ – Hampi Rath Temple, karnataka

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Hampi Rath Temple

It is one of the three famous chariots made of stone in India, the other two being at Konark (Odisha) and Mahabalipuram (Tamil Nadu). It was constructed in the 16th century on the orders of the Vijayanagara ruler, King Krishnadevaraya. The Vijayanagara rulers ruled from the 14th to the 17th centuries. It is a temple dedicated to Garuda, the official vehicle of Lord Vishnu.

This chariot is actually a temple dedicated to Lord Garuda built inside the Vitthala temple complex. The huge statue of Garuda, Lord Vishnu's escort, was once seated atop the chariot, but it is empty at the present time.

This chariot was built in the 16th century by King Krishnadevaraya of the Vijayanagara Empire, who was fascinated by the chariot of the Konark Sun Temple while fighting a war in Odisha. This chariot represents the beauty and artistic perfection of the empire. An interesting folklore emerges from the Hampi Rath as the villagers believe that the world stops when the chariot moves from its place. It has become a sacred presence and is internationally recognized as a World Heritage Site by UNESCO as well.

हम्पी रथ मंदिर, कर्नाटक - पत्थर का रथ – Hampi Rath Temple, karnataka

Inspired by the Dravidian architectural style, this chariot is a massive structure that reflects the skill of the craftsmen and architects of the past. The beauty of the chariot lies in the fact that it looks like a solid structure but is actually made of granite slabs whose linkages are cleverly hidden with artistic designs.

The base on which the chariot rests depicts beautiful mythological battle scenes with intricate details. Where the elephants were sitting at present, there were sculptures of horses. Visitors can actually see the hind legs and tails of the horses behind the elephants. There are also remains of a staircase between the two elephants, which the priests used to climb up to the inner sanctum to pay homage to the statue of Garuda.

Hampi:

Hampi, the capital of the Vijayanagara Empire, one of the greatest empires of medieval India during the fourteenth century, is located in the state of Karnataka. It was founded by Harihara and Bukka in 1336. Classified as a World Heritage Site by UNESCO (1986), it is also the "world's largest open-air museum".

Hampi is surrounded by the Tungabhadra River on the north and rocky granite mountains on the other three sides. Hampi's fourteenth century ruins are spread over an area of ​​about 26 square kilometers.

The monuments of the Vijayanagara city, also known as Vidya Sagar in honor of Vidya Narayan Saint, were built between 1336-1570 AD by kings from Harihara-I to Sadasiva Raya. Most of the buildings here were built by the great ruler of the Tuluva dynasty, Krishnadeva Raya (1509 -30 AD).

The temples of Hampi are known for their large dimensions, floral ornamentation, elaborate carvings, huge pillars, magnificent mandapas and sculptures and traditional paintings depicting themes from the Ramayana and the Mahabharata. The Vitthala Temple in Hampi is an excellent example of the artistic style of the Vijayanagara Empire. The idols of Goddess Lakshmi, Narasimha and Ganesha carved from a single stone are notable for their hugeness and grandeur. The prominent Jain temples here include the Krishna Temple, Pattabhirama Temple, Hazara Rama Chandra and Chandra Shekhar Temple.

हम्पी रथ मंदिर, कर्नाटक - पत्थर का रथ – Hampi Rath Temple, karnataka

In the evening, the chariot is beautifully illuminated by flood lights installed in the Vitthala complex. It is a mesmerizing experience to see the chariot and its elaborate design in the light of the lights coming from the complex.

The new Rs 50 note issued by RBI has the picture of this Hampi Rath Temple printed on it.

बेशरम/बेहया/थेथर || Behaya Besharam Thethar

बेशरम/बेहया/थेथर

आज जिस पौधे की बात करने जा रहे हैं वो बड़े काम की चीज हुआ करता था, लेकिन आजकल विलुप्त होने की कगार पर है, जिसका नाम "बेहया" है। इसे अलग-अलग जगह पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इसका नाम तो बेहया है पर काम अमृत जैसा है।

बेशरम/बेहया/थेथर || Behaya Besharam Thethar

पोस्ट डालते वक्त बचपन की एक बात याद आ रही है कि प्रतिवर्ष छठ घाट में घाट की सफाई करते हुए लोग इस पौधे को कोसते हुए बोला करते थे कि "अरे एके केतनो साफ कर, ई बेहया ह फिर से जाम जाई।" उस वक्त पर इसके गुनों की बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी। आज इसके गुना की चर्चा कर रही हूं।

बेशरम/बेहया/थेथर एक किस्म का पौधा है। बेहया को स्थानीय भाषा में बेशर्म के नाम से भी जाना जाता है। बेहया भारत में बड़ी ही आसानी से हर जगह देखा जा सकता है। इस पौधे में बहुत सुंदर गुलाबी रंग के फूल खिलते हैं। यह पौधा अक्सर सड़कों के किनारे, खाली जगह पर, नदी, तालाब, नहर आदि के किनारे अपने आप ही उग जाते हैं। इनकी खासियत होती है कि यह कठिन से कठिन परिस्थिति में भी जिंदा रहते हैं। यह पौधा कभी सूखता या मरता नहीं है। इसलिए इसे बेशर्म कहा जाता है। 

बेशरम/बेहया/थेथर || Behaya Besharam Thethar

कम पानी या कम धूप में भी यह मुरझाते नहींहैं। अगर बेहया पौधे की टहनियों को तोड़कर कहीं भी फेंक दिया जाए तो ये वहीं खुद ही उगने लगता है। ये कही भी किसी भी हाल में उग जाता है। इसे पानी में भी उगाया जा सकता है। यह पौधा पानी में सड़ता नहीं है। जंगली जानवर भी इस पौधे को नहीं खाते क्योंकि यह एक ज़हरीला पौधा होता है। बेहया के ज़हर के कारण इंसान भी इसे खा नहीं सकता। इसका उपयोग केवल बाहरी रूप से किया जाता है, अंदरूनी रूप से नहीं। 

चलिए जानते हैं इसके गुणों के बारे में

बेहया की पत्तियां, टहनियां और दूध को प्राचीन समय से ही लोग कई स्वास्थ्य समस्याएं ठीक करने में इस्तेमाल करते चले आ रहे हैं। बेहया से कीटनाशक भी बनाया जाता है, जिसके छिड़काव से फसलों पर लगने वाले कीटो का नाश होता है। बेहया का इस्तेमाल कम लोग ही करते हैं। गांव में तो आज भी लोग इस पौधे का प्रयोग कर पुराने घाव भरते हैं, लेकिन शहरों में इसके बारे में बहुत कम लोग जानते है। 

घाव ठीक करने में मददगार

बेहया में एंटीबैक्टीरियल एंटीमाइक्रोबियल और एंटीऑक्सिडेंट्स गुण पाए जाते हैं। इसलिए बेहया पौधे का इस्तेमाल घाव भरने में अधिक किया जाता है। इसकी पत्तियों पर तेल लगाकर हल्का गर्म कर चोट या घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं। माना जाता है कि पुराने घाव भरने में भी बेहया काफी कारगर होता है। 

बेशरम/बेहया/थेथर || Behaya Besharam Thethar

दर्द से दिलाए राहत

यह दर्द भी कम करता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी पत्तियां पट्टी के रूप में लगाने से सारा दर्द खींच लेती हैं और दर्द से राहत दिलाती हैं। इसमें दर्द को कम करने वाले गुण मौजूद होते हैं। इस पौधे का इस्तेमाल पुरानी चोट से हो रहे दर्द को भी कम करने की क्षमता रखता है। इसलिए चोट लगने पर चिकित्सक के पास नहीं जाना चाहते तो यह पौधा आपकी मदद कर सकता है। 

सूजन

बेशर्म पौधे में सूजन रोधी गुण यानि एंटी इंफ्लामेटरी गुण पाए जाते हैं। इसकी पत्तियों को गर्म करके सूजी हुई त्वचा पर लगाने से सूजन ठीक हो जाती है। बेहया की पत्तियों से बने लेप को सूजी त्वचा पर लगाने से भी सूजन काम होती है। यह सूजन को 3 से 4 घंटे में ही ठीक करने लगता है। इस तरीके से पुरानी से पुरानी सूजन भी ठीक की जा सकती है। सूजन को कम करने के लिए प्राचीन समय से इस पौधे को काफी लाभकारी माना जाता है। 

जहर को कम करता है

बेशर्म की टहनियों और पत्तों को तोड़ने पर एक प्रकार का दूध निकलता है। बिच्छू के डंक मारने पर यदि यह दूध लगाया जाए तो इससे धीरे-धीरे ज़हर का असर कम होने लगता है। यही नहीं बेहया के पत्तो का लेप भी बिच्छू के डंक पर लगाकर ज़हर के असर को रोका जा सकता है। वो कहते हैं न जहर ही जहर को काटता है। 

चर्म रोग के लिए फायदेमंद

बेशर्म को चर्म रोग ठीक करने में भी प्रयोग किया जाता है। इसके एंटीफंगल गुण चर्म रोग को ठीक करने में सक्षम होते हैं। इसके लिए इस पौधे की जड़ को उखाड़कर और सुखाकर पीस लें और उसमें कपूर का तेल मिलाकर प्रभावित त्वचा पर लगाएं। इससे विटिलिगो जैसे चर्म रोग भी ठीक हो सकते है और तो और बेहया दाद को भी ठीक करने में बहुत लाभदायक माना जाता है। इसके पत्ते त्वचा संबंधी अन्य कई विकारों में भी काम आते हैं।

बेशरम/बेहया/थेथर || Behaya Besharam Thethar

 नोट - बेहया का पौधा बहुत लाभदायक है, पर जहरीला है। इसलिए ध्यान रहे इसे खाना नहीं है। केवल उपरी तौर पर ही इसका प्रयोग लाभ देता है। 

English Translate

Besharam/Behaya/Thethar

The plant we are going to talk about today used to be very useful, but nowadays it is on the verge of extinction, whose name is "Behaya". It is known by different names at different places. Its name is Behaya but its use is like Amrit.

While posting this, I am remembering a childhood incident that every year while cleaning the Chhath Ghat, people used to curse this plant and say, "Oh, how much do you clean it, this Behaya will get jammed again." At that time, there was no information about its qualities. Today I am discussing its qualities.

Besharam/Behaya/Thethar is a type of plant. Behaya is also known as Besharam in the local language. Behaya can be seen very easily everywhere in India. Very beautiful pink flowers bloom in this plant. This plant often grows on its own on the roadside, in empty places, on the banks of rivers, ponds, canals etc. Its specialty is that it survives even in the most difficult conditions. This plant never dries or dies. That is why it is called shameless.

It does not wilt even in less water or less sunlight. If the branches of the Behaiya plant are broken and thrown anywhere, it starts growing there itself. It grows anywhere in any condition. It can also be grown in water. This plant does not rot in water. Wild animals also do not eat this plant because it is a poisonous plant. Due to the poison of Behaiya, even humans cannot eat it. It is used only externally, not internally.

बेशरम/बेहया/थेथर || Behaya Besharam Thethar

Let's know about its properties

Behaiya leaves, branches and milk have been used by people since ancient times to cure many health problems. Insecticide is also made from Behaya, the spraying of which kills the pests on the crops. Very few people use Behaya. Even today, people in villages heal old wounds using this plant, but very few people know about it in cities.

Helpful in healing wounds

Antibacterial, antimicrobial and antioxidant properties are found in Behaya. Therefore, Behaya plant is used more in healing wounds. By applying oil on its leaves, heating it slightly and applying it on the injury or wound, the wound heals quickly. It is believed that Behaya is also very effective in healing old wounds.

Provides relief from pain

It also reduces pain. It is believed that applying its leaves as a bandage draws out all the pain and provides relief from pain. It contains pain-reducing properties. The use of this plant has the ability to reduce the pain caused by old injuries. Therefore, if you do not want to go to the doctor in case of injury, then this plant can help you.

Inflammation

Anti-inflammatory properties are found in Besharam plant. By heating its leaves and applying them on the swollen skin, the swelling is cured. Applying a paste made from Besharam leaves on the swollen skin also reduces swelling. It starts curing the swelling within 3 to 4 hours. In this way, even the most chronic swelling can be cured. This plant is considered very beneficial since ancient times for reducing swelling.

Reduces poison

When the branches and leaves of Besharam are broken, a type of milk comes out. If this milk is applied on a scorpion sting, then the effect of the poison gradually starts reducing. Not only this, the effect of poison can also be stopped by applying a paste of Besharam leaves on the scorpion sting. It is said that only poison bites poison.

बेशरम/बेहया/थेथर || Behaya Besharam Thethar

Beneficial for skin diseases

Besharam is also used to cure skin diseases. Its antifungal properties are capable of curing skin diseases. For this, uproot the root of this plant, dry it and grind it, add camphor oil to it and apply it on the affected skin. This can also cure skin diseases like vitiligo and is also considered very beneficial in curing behaya ringworm. Its leaves are also useful in many other skin related disorders.

Note - Behaya plant is very beneficial, but it is poisonous. So be careful not to eat it. Its use only externally gives benefits.

इस विशद विश्व-प्रहार में - शिव मंगल सिंह 'सुमन'

इस विशद विश्व-प्रहार में 

Rupa Oos ki ek Boond
"ये बेफिक्र सी सुबह,
और गुनगुनाहट शामों की..

ज़िन्दगी खूबसूरत है अगर 
आदत हो मुस्कुराने की..❣️❣️"

इस विशद विश्व-प्रहार में 

किसको नहीं बहना पड़ा 

सुख-दुख हमारी ही तरह, 

किसको नहीं सहना पड़ा 

फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, 

मुझ पर विधाता वाम है, 

चलना हमारा काम है। 


मैं पूर्णता की खोज में 

दर-दर भटकता ही रहा 

प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ 

रोड़ा अटकता ही रहा 

निराशा क्यों मुझे? 

जीवन इसी का नाम है, 

चलना हमारा काम है। 


साथ में चलते रहे 

कुछ बीच ही से फिर गए 

गति न जीवन की रुकी 

जो गिर गए सो गिर गए 

रहे हर दम, 

उसी की सफलता अभिराम है, 

चलना हमारा काम है। 


"शिव मंगल सिंह 'सुमन'"

Rupa Oos ki ek Boond

"भरोसा न करना सुनी सुनाई बातों पर
उसूल जैसे भी हों बदल जाते हैं हालातों पर.
.❣️❣️"

कन्नप्पा नयनार

कन्नप्पा नयनार


कन्नप्पा तमिल लोककथाओं में एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं, जिन्हें हिंदू भगवान शिव के प्रति उनकी अटूट भक्ति के लिए जाना जाता है। उनकी कहानी भारत के आंध्र प्रदेश के श्रीकालहस्तीश्वर मंदिर से निकटता से जुड़ी हुई है। किंवदंती के अनुसार, कन्नप्पा नामक एक शिकारी ने अपनी भक्ति के प्रतीक के रूप में शिव लिंगम को अपनी आँख अर्पित की थी। इससे पहले कि वह अपनी दूसरी आँख का बलिदान कर पाता, शिव उसके सामने प्रकट हुए, उसकी गहरी आस्था और समर्पण से प्रभावित हुए।

कन्नप्पा नयनार

एक मशहूर धनुर्धर थिम्मन एक दिन शिकार के लिए गए। जंगल में उन्हें एक मंदिर मिला, जिसमें एक शिवलिंग था। थिम्मन के मन में शिव के लिए एक गहरा प्रेम भर गया और उन्होंने वहां कुछ अर्पण करना चाहा, लेकिन उन्हें समझ नहीं आया कि कैसे और किस विधि ये काम करें। उन्होंने भोलेपन में अपने पास मौजूद मांस लिंग पर अर्पित कर दिया और खुश होकर चले गए कि शिव ने उनका चढ़ावा स्वीकार कर लिया।

उस मंदिर की देखभाल एक ब्राह्मण करता था जो उस मंदिर से कहीं दूर रहता था। हालांकि वह शिव का भक्‍त था लेकिन वह रोजाना इतनी दूर मंदिर तक नहीं आ सकता था इसलिए वह सिर्फ पंद्रह दिनों में एक बार आता था। अगले दिन जब ब्राह्मण वहां पहुंचा, तो लिंग के बगल में मांस पड़ा देखकर वह भौंचक्‍का रह गया। यह सोचते हुए कि यह किसी जानवर का काम होगा,उसने मंदिर की सफाई कर दी,अपनी पूजा की और चला गया।

अगले दिन,थिम्मन और मांस अर्पण करने के लिए लाए। उन्हें किसी पूजा पाठ की जानकारी नहीं थी,इसलिए वह बैठकर शिव से अपने दिल की बात करने लगे। वह मांस चढ़ाने के लिए रोज आने लगे। एक दिन उन्हें लगा कि लिंग की सफाई जरूरी है लेकिन उनके पास पानी लाने के लिए कोई बरतन नहीं था। इसलिए वह झरने तक गए और अपने मुंह में पानी भर कर लाए और वही पानी लिंग पर डाल दिया।

जब ब्राह्मण वापस मंदिर आया तो मंदिर में मांस और लिंग पर थूक देखकर घृणा से भर गया। वह जानता था कि ऐसा कोई जानवर नहीं कर सकता। यह कोई इंसान ही कर सकता था। उसने मंदिर साफ किया, लिंग को शुद्ध करने के लिए मंत्र पढ़े। फिर पूजा पाठ करके चला गया। लेकिन हर बार आने पर उसे लिंग उसी अशुद्ध अवस्था में मिलता।

एक दिन उसने आंसुओं से भरकर शिव से पूछा,“हे देवों के देव,आप अपना इतना अपमान कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।” शिव ने जवाब दिया,“जिसे तुम अपमान मानते हो, वह एक दूसरे भक्त का अर्पण है। मैं उसकी भक्ति से बंधा हुआ हूं और वह जो भी अर्पित करता है, उसे स्वीकार करता हूं।

अगर तुम उसकी भक्ति की गहराई देखना चाहते हो,तो पास में कहीं जा कर छिप जाओ और देखो वह आने ही वाला है।” ब्राह्मण एक झाड़ी के पीछे छिप गया। थिम्मन मांस और पानी के साथ आया। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शिव हमेशा की तरह उसका चढ़ावा स्वीकार नहीं कर रहे। वह सोचने लगा कि उसने कौन सा पाप कर दिया है। उसने लिंग को करीब से देखा तो पाया कि लिंग की दाहिनी आंख से कुछ रिस रहा है।

उसने उस आंख में जड़ी-बूटी लगाई ताकि वह ठीक हो सके लेकिन उससे और रक्‍त आने लगा। आखिरकार,उसने अपनी आंख देने का फैसला किया। उसने अपना एक चाकू निकाला, अपनी दाहिनी आंख निकाली और उसे लिंग पर रख दिया। रक्‍त टपकना बंद हो गया और थिम्मन ने राहत की सांस ली। लेकिन तभी उसका ध्यान गया कि लिंग की बाईं आंख से भी रक्‍त निकल रहा है।

उसने तत्काल अपनी दूसरी आंख निकालने के लिए चाकू निकाल लिया,लेकिन फिर उसे लगा कि वह देख नहीं पाएगा कि उस आंख को कहां रखना है। तो उसने लिंग पर अपना पैर रखा और अपनी आंख निकाल ली। उसकी अपार भक्ति को देखते हुए, शिव ने थिम्मन को दर्शन दिए। उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई और वह शिव के आगे दंडवत हो गया। उसे कन्नप्पा नयनार के नाम से जाना गया। कन्ना यानी आंखें अर्पित करने वाला नयनार यानी शिव भक्त।