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संत एकनाथ महाराज || Sant Eknath Maharaj

संत एकनाथ महाराज

संतों की कथा में आज बारी है संत एकनाथ महाराज जी की। 

कौन थे संत एकनाथ महाराज जी?

संत एकनाथ महाराज जी प्रसिद्ध मराठी संत थे, जिन्हें सभी में ब्रह्म दिखाई देता था। हमारे हिन्दू धर्म में श्राद्ध विधि का बडा महत्त्व बताया गया है । एक बार संत एकनाथ महाराज श्राद्ध कर्म कर रहे थे। पूर्वजों के लिए उनके घर में स्वादिष्ट भोजन तैयार हो रहा था। उसी समय कुछ भिखारी उनके दरवाजे से गुजर रहे थे। एकनाथ महाराज जी के घर से स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों की सुगंध सर्व ओर फैल रही थी। भिखारियों को भी वह सुगंध आई।

संत एकनाथ महाराज || Sant Eknath Maharaj


तब उनमें से एक भिखारी ने कहा, "यह भोजन पहले पुरोहितों को खिलाया जाता है। हमें तो बचा हुआ जूठा अन्न मिलेगा।"

संत एकनाथ जी ने इन भिखारियों को बात करते हुए सुना। उन्होंने अपनी पत्नी गिरिजाबाई से कहा, "बहुत से लोग ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं और वह उचित भी है, परंतु इन भिखारियों में भी, ब्रह्मपरमात्मा है। अभी उन्हें खिलाओ, परंतु पुरोहितों के लिए भी बाद में भोजन पका पाओगी न ? उनको आने में अभी समय है।"

गिरिजाबाई ने हां कहनेपर एकनाथ महाराज गिरीजाबाई से कहा, "तो उन्हें खिलाओ।" एकनाथ महाराज जी ने भिखारियों के बीच सर्वोच्च आत्मा देखी और उन्हें भोजन कराया। इसके बाद, गिरिजाबाई ने स्नान किया और पुन: भोजन बनाना आरंभ किया। दूसरी ओर यह बात पूरे गांव में फैल गई कि ‘एकनाथजी ने ब्राह्मणों के लिए तैयार भोजन भिखारियों को खिला दिया है। अब गिरिजाबाई पुन: खाना बना रही हैं।’

पुरोहितों ने श्राद्ध के लिए तैयार भोजन उनसे पहले भिखारियों को खिलाना अपना अपमान माना। उन्होंने तुरंत गांववालों की एक बैठक बुलाई गई। पूरा गांव एक ओर था और दूसरी ओर एकनाथ महाराज। बैठक में निर्णय लिया गया कि, "पुरोहितों का अपमान करने के कारण कोई भी श्राद्धकर्म तथा भोजन के लिए एकनाथजी के घर नहीं जाएगा।" एकनाथ महाराज के घर में जाने से रोकने के लिए दो युवक लाठी लेकर उनके घर के दरवाजे के पास खडे रहे।

वहां गिरिजाबाई ने भोजन बनाया था। एकनाथजी ने देखा कि द्वार पर खडे यह लोग किसी को आने नहीं देंगे, तो उन्होंने अपनी इच्छा शक्ति और योग शक्ति का उपयोग किया। जो पुरोहित श्राद्ध के लिए नहीं आ रहे थे उनके पिता, दादा, परदादा आदि को उन्होंने आवाहन किया और सभी प्रगट हो गए। एकनाथ महाराज ने उनसे कहा, "बैठ जाइए भूदेव! आप इस गांव के ब्राह्मण हैं। आज हमारे घर भोजन कीजिए।"

गांव के पुरोहितों के पूर्वज भोजन करने बैठ गए। हाथ धोना, आचमन आदि के समय गाए जाने वाले श्लोकों की आवाज से एकनाथजी का आंगन गूंज उठा। बाहर द्वार पर जो दो युवक लाठी लेकर खडे थे, उन्होंने यह आवाज सुनी। उन्होंने सोचा, "हमने किसी भी ब्राह्मण को प्रवेश नहीं करने दिया, तो यह आवाज कहां से आ रही है ?" उन्होंने अंदर देखा और वे आश्चर्यचकित हो गए। अंदर तो ब्राह्मणों का भोजन चल रहा था। उन्होंने घर के अंदर झांककर देखा, तो पाया कि, "अरे! यह तो मेरे दादा हैं, यहीं मेरे परदादा भी हैं। यह उसका चाचा है, यहीं उसके परदादा हैं।" उनकी आंखे खुली की खुली ही रह गई।

दौडकर उन्होंने गांव के सभी पुरोहितों को यह बात बताई। उन्होंने कहा, "आपके पिता, दादा, परदादा, चाचा आदि सभी पितृलोक से एकनाथ के घर आए हैं। वे अब एकनाथ के आंगन में भोजन कर रहे हैं।"

गांव के सभी लोग एकनाथ महाराज के घर आए। पुरोहित तो इस अद्भुत दृश्य को देखते ही रह गए। उन्हें अपने गलती का भान हुआ। अंत में उन्होंने एकनाथजी से हाथ जोडकर क्षमा मांगते हुए कहा, "महाराज! हमने आपको नहीं पहचाना। हमें क्षमा कर कीजिए।"


मणिपुर का राजकीय फूल - शिरुई लिली || State Flower of Manipur - Siroi Lily

मणिपुर का राजकीय फूल

सामान्य नाम:  शिरुई लिली
स्थानीय नाम: काशोंग टिमरावोन
वैज्ञानिक नाम: लिलियम मैक्लिनिया सीली

मणिपुर भारत के उत्तर पूर्व में स्थित है। मणिपुर का गठन 21 जनवरी 1972 को हुआ (पूर्ण राज्य बन गया)। मणिपुर की राजधानी इम्फाल है और इसमें 16 जिले हैं। सभी राज्यों की तरह मणिपुर के भी राज्य प्रतीक हैं।


मणिपुर का राजकीय फूल - शिरुई लिली  || State Flower of Manipur - Siroi Lily

आज हम मणिपुर के राजकीय पुष्प शिरुई लिली, जिसे "सिरोय लिली या लिलियम मैकलिनी" भी कहा जाता है, की चर्चा करेंगे। यह एक दुर्लभ गुलाबी सफ़ेद फूल है, जो मणिपुर के उखरुल जिले में शिरुई हिल रेंज में पाया जाता है, जो इम्फाल से लगभग 83 किलोमीटर दूर है। फूल का नाम जीन मैकलिन के नाम पर रखा गया था, जो डॉ. फ्रैंक किंगडन वार्ड की पत्नी थीं, जिन्होंने 1946 में वनस्पति नमूने एकत्र करते समय फूल को देखा था। 

मणिपुर के राज्य प्रतीक

राज्य पशु   – संगाई या नाचने वाला हिरणi
राज्य पक्षी  –  मिसेज ह्यूम का तीतर 
राज्य पुष्प  –  शिरोई लिली
राज्य वृक्ष  – बोनसम (या अनिंगथौ)
राज्य मछली –  पेंगबा या थारक 
राज्य गीत – साना लेइबक मणिपुर
राज्य प्रतीक – कंगलाशा प्रतिमा या नोंगसाबा
मणिपुर का राजकीय फूल - शिरुई लिली  || State Flower of Manipur - Siroi Lily
रॉयल हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी, जो दुनिया के अग्रणी बागवानी संगठनों में से एक है, ने 1948 में लंदन में अपने फ्लावर शो में शिरुई लिली को अपने प्रतिष्ठित मेरिट अवार्ड से सम्मानित किया। इस भव्य लिली की पहचान किंग्डन वार्ड द्वारा की गई थी, जिसके लिए उन्हें 1950 में इंग्लैंड के मेरिट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उल्लेखनीय बात यह है कि यह विश्वास है कि यह बल्बनुमा पौधा केवल शिरुई पहाड़ियों में ही उगाया जा सकता है, क्योंकि अंग्रेजों द्वारा इसे अन्यत्र लगाने के प्रयास कभी सफल नहीं हुए।

शिरुई लिली के पौधे की ऊंचाई लगभग 1 - 3 फीट होती है। यह फूल की एक दुर्लभ प्रजाति है, जो केवल मणिपुर में पाई जाती है। इसका फूल घंटी के आकार का होता है। यह हर साल अप्रैल से जून के महीनों के दौरान ही खिलता है, जो इसका चरम मौसम है। ये हल्के पीले या गुलाबी रंग में उगते हैं, जिसमें नीले-गुलाबी पंखुड़ियाँ होती हैं, जो माइक्रोस्कोप से देखने पर सात रंग दिखाती हैं।

यह समुद्र तल से लगभग 1750 - 2550 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी क्षेत्रों में उगता है। शिरुई की पहाड़ियों से उखरुल जिले का मनोरम दृश्य दिखाई देता है और फूलों के मौसम के दौरान चमकीले लिली शिरुई पहाड़ी श्रृंखला के विस्तार को कवर करते हैं। लिली से ढकी पहाड़ी श्रृंखला का सुंदर दृश्य इसे एक अद्भुत तस्वीर बनाता है, जो बेहद खूबसूरत दिखता है।

फूल का स्थानीय नाम काशोंग टिमरावोन है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार काशोंग टिमरावोन भी एक सुरक्षात्मक आत्मा है जो शिरुई चोटी पर निवास करती है। हर साल दुनिया भर से हजारों वैज्ञानिक और पर्यटक इस अनमोल फूल को देखने आते हैं। 

तांगखुल नागा समुदाय की किंवदंतियों के अनुसार, शिरुई पहाड़ियों में एक राजकुमारी दफन है, जो अपने प्रेमी के लौटने का इंतजार कर रही है। यह फूल उस मिट्टी से आता है जहाँ राजकुमारी को दफनाया गया था। कई पौराणिक कथाएँ पीढ़ियों से चली आ रही हैं; उखरुल के स्वदेशी लोगों द्वारा फूल के लिए बहुत प्यार और विस्मय के साथ सुनाई गई कहानियाँ।

मणिपुर का राजकीय फूल - शिरुई लिली  || State Flower of Manipur - Siroi Lily

मणिपुर का गौरव अब संभावित विलुप्ति के खतरे में है और इसे 'लुप्तप्राय प्रजाति' की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि समय के साथ इसके आनुवंशिक संसाधन नष्ट हो रहे हैं। यह पौधा, जो 1948 में 5 फीट ऊंचा बताया गया था, पिछले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे बौना होता गया है, जो 2011 में घटकर 1-3 फीट रह गया तथा अब इसकी औसत ऊंचाई 0.262-0.328 फीट रह गई है। दिसंबर 2015 में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक क्षेत्रीय अध्ययन के अनुसार , इसकी अधिकतम ऊंचाई अब 0.984 फीट तक सीमित है।

पिछले कुछ सालों में इसके वितरण क्षेत्र में भी काफी बदलाव आया है। पहले यह शिरुई हिल रेंज में पहली चोटी से लेकर 250 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बहुतायत में उगता था, लेकिन 2011 से यह केवल तीसरी चोटी से ही उग रहा है। इसके अलावा, 2015 से शिरुई लिली केवल शिरुई हिल्स की सातवीं चोटी पर ही उगती हुई पाई गई है।
मणिपुर का राजकीय फूल - शिरुई लिली  || State Flower of Manipur - Siroi Lily

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State Flower of Manipur

Common Name: Shirui Lily
Local Name: Kashong Timravon
Scientific Name: Lilium Macliniae Sealy

Manipur is located in the north east of India. Manipur was formed on 21st January 1972 (became a full state). The capital of Manipur is Imphal and it has 16 districts. Like all states, Manipur also has state symbols.

Today we will discuss the state flower of Manipur, Shirui Lily, also known as "Siroy Lily or Lilium Maclinii". It is a rare pinkish white flower found in the Shirui Hill Range in Ukhrul district of Manipur, about 83 km from Imphal. The flower was named after Jean Maclin, wife of Dr. Frank Kingdon Ward, who saw the flower while collecting botanical specimens in 1946.
मणिपुर का राजकीय फूल - शिरुई लिली  || State Flower of Manipur - Siroi Lily

State Symbols of Manipur

State Animal – Sangai or Dancing Deer
State Bird – Mrs. Hume’s Pheasant
State Flower – Shirui Lily
State Tree – Bonsam (or Aningthou)
State Fish – Pengba or Tharak
State Song – Sana Leibak Manipur
State Emblem – Kanglasha Pratima or Nongsaba

The Royal Horticultural Society, one of the leading horticultural organizations in the world, awarded its prestigious Merit Award to the Shirui Lily at its Flower Show in London in 1948. This gorgeous lily was identified by Kingdon Ward, for which he was awarded the Merit Award of England in 1950. What is noteworthy is the belief that this bulbous plant can only be grown in the Shirui Hills, as attempts by the British to introduce it elsewhere never succeeded.
The height of the Shirui Lily plant is about 1 – 3 feet. It is a rare species of flower, found only in Manipur. Its flower is bell-shaped. It blooms only during the months of April to June every year, which is its peak season. They grow in light yellow or pink colour, with bluish-pink petals, which show seven colours when viewed under a microscope.

It grows in hilly areas at an altitude of about 1750 - 2550 metres above sea level. The hills of Shirui offer a panoramic view of the Ukhrul district and during the flowering season the bright lilies cover the expanse of the Shirui hill range. The beautiful view of the hill range covered with lilies makes it an amazing picture, which looks extremely beautiful.

The local name of the flower is Kashong Timravon. According to local legends Kashong Timravon is also a protective spirit that resides on the Shirui peak. Every year thousands of scientists and tourists from all over the world come to see this precious flower.

According to the legends of the Tangkhul Naga community, there is a princess buried in the Shirui Hills, waiting for her lover to return. The flower comes from the soil where the princess was buried. Many legends have been passed down through the generations; stories narrated by the indigenous people of Ukhrul with great love and awe for the flower.
मणिपुर का राजकीय फूल - शिरुई लिली  || State Flower of Manipur - Siroi Lily
The pride of Manipur is now in danger of potential extinction and has been categorised as an ‘endangered species’ as its genetic resources are being lost over time. The plant, which was reported to be 5 feet tall in 1948, has gradually dwarfed over the years, falling to 1-3 feet in 2011 and now has an average height of 0.262-0.328 feet. According to a field study conducted by scientists in December 2015, its maximum height is now limited to 0.984 feet.

Its distribution area has also changed significantly over the years. Earlier it grew in abundance in the Shirui Hill range from the first peak to an area of ​​250 square kilometres, but since 2011, it has been growing only from the third peak. Moreover, since 2015, Shirui lily has been found growing only on the seventh peak of the Shirui Hills.

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ...विद्रोही

मानसरोवर-2 ...विद्रोही

विद्रोही - मुंशी प्रेमचंद | Vidrohi by Munshi Premchand

आज दस साल से जब्त कर रहा हूँ । अपने इस नन्हें-से हृदय में अग्नि का दहकता हुआ कुंड छिपाये बैठा हूँ । संसार में कहीं शान्ति होगी, कहीं सैर-तमाशे होगें, कहीं मनोरंजन की वस्तुएँ होगी; मेरे लिए तो अब यहीं अग्निराशि हैं और कुछ नहीं। जीवन की सारी अभिलाषाएँ इसी में जलकर राख हो गयीं। किससे अपनी मनोव्यथा कहूँ ? फायदा ही क्या? जिसके भाग्य में रुदन, अनंत रुदन हो, उसका मर जाना ही अच्छा।
विद्रोही - मुंशी प्रेमचंद | Vidrohi by Munshi Premchand

मैंने पहली बार तारा को उस वक़्त देखा, जब मेरी उम्र दस साल की थी। मेरे पिता आगरे के एक अच्छे डॉक्टर थे। लखनऊ में मेरे एक चचा रहते थे। उन्होंने वकालत में काफी धन कमाया था। मैं उन दिनों चचा ही के साथ रहता था। चचा के कोई सन्तान न थी, इसलिए मैं ही उनका वारिस था। चचा और चची दोनों मुझे अपना पुत्र मानते थे। मेरी माता बचपन में ही सिधार चुकी थी। मातृ- स्नेह का जो कुछ प्रसाद मुझे मिला, वह चची जी ही की भिक्षा थी। यही भिक्षा मेरे उस मातृ- प्रेम से वंचित बालपन की सारी विभूति थी।

चचा साहब के पड़ोस में हमारी बिदादरी के एक बाबू साहब और रहते थे। वह रेलवे-विभाग में किसी अच्छे ओहदे पर थे। दो-ढाई सौ रुपये पाते थे। नाम था विमलचन्द्र। तारा उन्हीं की पुत्री थी। उस वक़्त उसकी उम्र पाँच साल की होगी। बचपन का वह दिन आज भी आँखों के सामने हैं, जब तारा एक फ्राक पहने, बालों में एक गुलाब का फूल गूँथे हुए मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी। कह नही सकता, क्यों में उसे देखकर झेंप-सा गया। मुझे वह देव-कन्या सी मालूम हुई, जो उषा-काल के सौरभ और प्रकाश से रंजित आकाश से उतर आयी हो।

उस दिन से तारा अक्सर मेरे घर आती। उसके घर में खेलने की जगह न थी। चचा साहब के घर के सामने लम्बा-चौड़ा मैदान था। वहीं वह खेला करती। धीरे- धीरे में भी उससे मानूस हो गया। मैं जब स्कूल से लौटता तो तारा दौड़कर मेरे हाथों से किताबों का बस्ता ले लेती। जब मैं स्कूल जाने के लिए गाड़ी पर बैठता, तो वह भी आकर मेरे साथ बैठ जाती। एक दिन उसके सामने चची ने चाचा से कहा- तारा को मैं अपनी बहू बनाऊँगी। क्यों कृष्णा, तू तारा से ब्याह करेगा? मैं मारे शर्म से बाहर भागा; लेकिन तारा वही खड़ी रही, मानो चची ने उसे मिठाई देने को बुलाया हो। उस दिन से चचा और चची में अक्सर यही चर्चा होती- कभी सलाह के ढंग से, कभी मजाक के ढंग से। उस अवसर पर मैं तो शर्मा कर बाहर भाग जाता था; पर तारा खुश होती थी। दोनों परिवारों में इतना घराव था कि इस सम्बन्ध का हो जाना कोई असाधारण बात न थी। तारा के माता-पिता को तो इसका पूरा विश्वास था कि तारा से मेरा विवाह होगा। मैं जब उनके घर जाता, तो मेरी बड़ी आवभगत होती। तारा की माँ उसे मेरे साथ छोड़कर किसी बहाने से टल जाती थी। किसी को अब इसमें शक न था कि तारा ही मेरी हदयेश्वरी होगी।

एक दिन इस सरला ने मिट्टी का एक घरौंदा बनाया। मेरे मकान के सामने नीम का पेड़ था। उसी की छाँह में वह घरौदा तैयार हुआ। उसमें कई जरा-जरा से कमरे थे, कई मिट्टी के बरतन, एक नन्हीं-सी चारपाई थी। मैंने जाकर देखा, तो तारा घरौंदा बनाने में तन्मय हो रही थी। मुझे देखते ही दौड़कर मेरे पास आयी और बोली- कृष्णा, चलो हमारा घर देखो, मैंने अभी बनाया हैं। घरौंदा देखा, तो हँसकर बोला- इसमें कौन रहेगा, तारा?

तारा ने ऐसा मुँह बनाया, मानो वह व्यर्थ का प्रश्न था। बोली- क्यों, हम और तुम रहेंगें ? जब हमारा-तुम्हारा विवाह हो जाएगा, तो हम लोग इसी घर में आकर रहेंगे। वह देखो, तुम्हारी बैठक हैं, तुम यहीं बैठकर पढोगे। दूसरा कमरा मेरा हैं, इसमें बैठकर मैं गुड़िया खेलूँगी।
सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

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मैंने हँसी करके कहा- क्यों, क्या मैं सारी उम्र पढ़ता ही रहूँगा और तुम हमेशा गुड़िया ही खेलती रहोगी?

तारा ने मेरी तरफ इस ढंग से देखा, जैसे मेरी बात नहीं समझी। पगली जानती थी कि जिन्दगी खेलने और हँसने ही के लिए है। यह न जानती थी कि एक दिन हवा का एक झोंका आयेगा और इस घरौंदे को उड़ा ले जायेगा और इसी के साथ हम दोनों भी कही-से-कहीं जा उड़ेगे।

इसके बाद मैं पिताजी के पास चला आया और कई साल पढ़ता रहा। लखनऊ की जलवायु मेरे अनुकूल न थी या पिताजी ने मुझे अपने पास रखने के लिए यह बहाना किया था, मैं निश्चित नहीं कह सकता। इंटरमीडिएट तक मैंने आगरे ही में पढ़ा; लेकिन चचा साहब के दर्शनों के लिए बराबर जाता रहता था। हर एक तातील में लखनऊ अवश्य जाता और गर्मियों की छुट्टी तो पूरी लखनऊ ही में कटती थी। एक छुट्टी गुजरते ही दूसरी छुट्टी आने के दिन गिने जाते लगते थे। अगर मुझे एक दिन की भी देर हो जाती, तो तारा का पत्र आ पहुँचता। बचपन के उस सरल प्रेम में अब जवानी का उत्साह और उन्माद था। वे प्यारे दिन क्या भूल सकते हैं। वहीं मधुर स्मृतियाँ अब इस जीवन का सर्वस्व हैं। हम दोनों रात को सब की नजरें बचाकर मिलते और हवाई किले बनाते। इससे कोई यह न समझे कि हमारे मन में पाप था, कदापि नहीं। हमारे बीच में एक भी ऐसा शब्द, एक भी ऐसा संकेत न आने पाता, जो हम दूसरों के सामने न कर सकते, जो उचित सीमा के बाहर होते। यह केवल वह संकोच था, जो इस अवस्था में हुआ करता हैं। शादी हो जाने बाद भी तो कुछ दिनों तक स्त्री औऱ पुरुष बड़ो के सामने बातें करते लजाते हैं। हाँ, जो अंग्रेजी सभ्यता के उपासक हैं, उनकी बात मैं नहीं चलता। वे तो बड़ो के सामने आलिंगन और चुम्बन तक करते हैं। हमारी मुलाकतें दोस्तों की मुलाकतें होती थी- कभी ताश की बाजी होती, कभी साहित्य की चर्चा, कभी स्वदेश सेवा के मनसूबे बँधते, कभी संसार यात्रा के। क्या कहूँ, तारा का हृदय कितना पवित्र था। अब मुझे ज्ञात हुआ कि स्त्री कैसे पुरुष पर नियन्त्रण कर सकती हैं, कुत्सित को कैसे पवित्र बना सकती हैं। एक दूसरे से बातें करने में, एक दूसरे के सामने बैठे रहने में हमें असीम आनन्द होता था। फिर, प्रेम की बातों की जरूरत वहाँ होती है, जहाँ अपने अखंड अनुराग, अपनी अतुल निष्ठा, अपने पूर्ण-आत्म-समर्पण का विश्वास दिलाना होता हैं। हमारा सम्बन्ध तो स्थिर हो चुका था। केवल रस्में बाकी थी। वह मुझे अपनी पति समझती थी, मैं उसे अपनी पत्नी समझता था। ठाकुरजी को भोग लगाने के पहले थाल के पदार्थो को कौन हाथ लगा सकता हैं? हम दोनों में कभी-कभी लड़ाई भी होती थी और कई-कई दिनों तक बातचीत की नौबत न आती; लेकिन ज्यादती कोई करें, मनाना उसी को पड़ता था। मैं जरा-सी बात पर तिनक जाता था। वह हँसमुख थी, बहुत ही सहनशील, लेकिन उसके साथ ही मानिनी भी परले सिरे की। मुझे खिलाकर भी खुद न खाती, मुझे हँसाकर भी खुद न हँसती।

इंटरमिडिएट पास होते ही मुझे फौज में एक जगह मिल गयी। उस विभाग के अफसरों में पिताजी का बड़ा मान था। मैं सार्जन्ट हो गया और सौभाग्य से लखनऊ में ही मेरी नियुक्ति हुई। मुँहमाँगी मुराद पूरी हुई।

मगर विधि-वाम कुछ और ही षड्‌यन्त्र रच रहा था। मैं तो इस ख्याल में मग्न था कि कुछ दिनों में तारा मेरी होगी। उधर एख दूसरा ही गुल खिल गया। शहर के एक नामी रईस ने चचा जी से मेरे विवाह की बात छेड़ दी और आठ हजार रुपये दहेज का वचन दिया । चचाजी के मुँह से लार टपक पड़ी। सोचा, यह आशातीत रकम मिलती हैं, इसे क्यों छोड़ूँ । विमल बाबू की कन्या का विवाह कहीं- न-कहीं हो ही जाएगा। उन्हें सोचकर जवाब देने का वादा करके विदा किया और विमल बाबू को बुलाकर कहा- आज चौधरी साहब कृष्णा की शादी की बातचीत करने आये थे। आप तो उन्हें जानते होंगे? अच्छे रईस हैं। आठ हजार दे रहे हैं। मैंने कह दिया, सोच कर जवाब दुँगा। आपकी क्या राय हैं? यह शादी मंजूर कर लूँ?

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विमल बाबू ने चकित होकर कहा- यह आप क्या फरमाते हैं? कृष्णा की शादी तो तारा से ठीक हो चुकी हैं न?

चचा साहब ने अनजान बनकर कहा- यह तो मुझे आज मालूम हो रहा हैं। किसने ठीक की हैं यह शादी? आपसे तो मुझसें इस विषय में कोई भी बातचीत नहीं हुई।

विमल बाबू जरा गर्म होकर बोले- जो बात आज दस-बारह साल से सुनता हूँ, क्या उसकी तसदीक भी करनी चाहिए थी? मैं तो इसे तय समझे बैठा हूँ ; मैं ही क्या, सारा मुहल्ला तय समझ रहा हैं।

चचा साहब में बदनामी के भय से जरा दबकर कहा- भाई साहब, हक तो यह हैं कि जब कभी इस सम्बन्ध की चर्चा करता था, दिल्लगी के तौर पर लेकिन खैर, मैं तो आपको निराश नही करना चाहता। आप मेरे पुराने मित्र हैं। मैं आपके साथ सब तरह की रिआयत करने को तैयार हूँ । मुझे आठ हजार मिल रहे हैं। आप मुझे सात ही हजार दीजिये- छः हजार ही दीजिए।

विमल बाबू ने उदासीन भाव से कहा- आप मुझसे मजाक कर रहे हैं या सचमुच दहेज माँग रहे हैं, मुझे यकीन नहीं आता।

चचा साहब ने माथा सिकोड़कर कहा- इसमें मजाक की तो कोई बात नहीं। मैं आपके सामने चौधरी से बात कर सकता हूँ ।

विमल- बाबूजी, आपने तो यह नया प्रश्न छेड़ दिया। मुझे तो स्वप्न में भी गुमान न था कि हमारे और आपके बीच में यह प्रश्न खड़ा होगा। ईश्वर ने आपको बहुत कुछ दिया। दस-पाँच हजार में आपका कुछ न बनेगा। हाँ, यह रकम मेरी सामर्थ्य से बाहर हैं। मैं तो आपसे दया ही की भिक्षा माँग सकता हूँ । आज दस-बारह साल से हम कृष्णा को अपना दामाद समझते आ रहे हैं। आपकी बातो से भी कई बार इसकी तसदीक हो चुकी हैं। कृष्णा और तारा में जो प्रेम हैं, वह आपसे छिपा नहीं हैं। ईश्वर के लिए थोड़े-से रुपयों के वास्ते कई जनों का खून न कीजिए।

चचा साहब ने धृष्टता से कहा- विमल बाबू, मुझे खेद हैं कि मैं इस विषय में और नहीं दब सकता।

विमल बाबू जरा तेज होकर बोले- आप मेरा गला घोंट रहे हैं।

चचा- आपको मेरा एहसान मानना चाहिए कि कितनी रिआयत कर रहा हूँ ।

विमल- क्यों न हो, आप मेरा गला घोंटें और मैं आपका एहसान मानूँ ? मैं इतना उदार नहीं हूँ । अगर मुझे मालूम होता कि आप इतने लोभी हैं, तो आपसे दूर ही रहता। मैं आपको सज्जन समझता था। अब मालूम हुआ कि आप भी कौड़ियों को गुलाम हैं। जिसकी निगाह में मुरौवत नहीं, जिसकी बातों का विश्वास नहीं, उसे मैं शरीफ नहीं कह सकता। आपको अख्तियार हैं, कृष्णा बाबू की शादी जहाँ चाहें करें; लेकिन आपको हाथ न मलना पड़े, तो कहिएगा। तारा का विवाह तो कहीं-न- कहीं हो ही जायगा और ईश्वर ने चाहा तो किसी अच्छे ही घर में होगा। संसार में सज्जनों का अभाव नहीं हैं, मगर आपके हाथ अपयश के सिवा और कुछ न लगेगा।

चचा साहब ने त्यौरियाँ चढ़ाकर कहा- अगर आप मेरे घर में न होते, तो इस अपमान का कुछ जवाब देता!

विमल बाबू ने छड़ी उठा ली और कमरे बाहर जाते हुए कहा- आप मुझे क्या जवाब देंगे? आप जवाब देने के योग्य ही नहीं हैं।

उसी दिन शाम को जब मैं बैरक से आया और जलपान करके विमल बाबू के घर जाने लगा, तो चची ने कहा- कहाँ जाते हो? विमल बाबू से और तुम्हारे चचाजी से आज एक झड़प हो गयी।

मैने ठिठक कर ताज्जूब के साथ कहा- झड़प हो गयी! किस बात पर?

4

चची ने सारा-का-सारा वृत्तान्त कह सुनाया और विमल को जितने काले रंगों में रंग सकी, रंग – तुमसे क्या कहूँ बेटा, ऐसा मुँहफट तो आदमी ही नही देखा। हजारों ही गालियों दीं, लड़ने पर आमादा हो गया।

मैंने एक मिनट कर सन्नाटे में खड़े रहकर कहा- अच्छी बात हैं, वहाँ न जाऊँगा। बैरक जा रहा हूँ । चची बहुत रोयीं-चिल्लायी; पर मैं एक क्षण-भर भी न ठहरा। ऐसा जान पड़ता था, जैसे कोई मेरे हृदय मं भाले भोंक रहा हैं। घर से बैरक तक पैदल जाने में शायद मुझे दस मिनट से ज्यादा न लगे। बार-बार जी झुँझलता था; चचा साहब पर नहीं, विमल बाबू पर भी नही, केवल अपने ऊपर। क्यों मुझमें इतनी हिम्मत नहीं हैं कि जाकर चचा साहब से कह दूँ- कोई लाख रुपये भी दे, तो शादी न करूँगा। मैं क्यों इतना डरपोक, इतना तेजहीन, इतना दब्बू हो गया?

इसी क्रोध में मैने पिताजी को एक पत्र लिखा और वह सारा वृत्तांत सुनाने के बाद अन्त में लिखा- मैंने निश्चय कर लिया हैं कि और कहीं शादी न करूँगा, चाहे मुझे आपकी अवज्ञा ही क्यों न करनी पडे। उस आवेश में न जाने क्या-क्या लिख गया, अब याद भी नहीं। इतना याद हैं कि दस-बारह पन्ने दस मिनट में लिख डाले थे। सम्भव होता तो मैं यहीं सारी बाते तार से भेजता।

तीन दिन मैं बड़ी व्यग्रता के साथ काटे। उसका केवल अनुमान किया जा सकता हैं। सोचता, तारा हमें अपने मन में कितना नीच समझ रही होगी। कई बार जी में आया कि चलकर उसके पैरों पर गिर पड़ूँ औऱ कहूँ – देवी, मेरा अपराध क्षमा करो- चचा साहब के कठोर व्यवहार की परवा न करो। मैं तुम्हारा था और तुम्हारा हूँ । चचा साहब मुझसे बिगड़ जायँ, पिताजी घर से निकाल दें, मुझे किसी की परवा नहीं हैं; लेकिन तुम्हें खोकर मेरा जीवन ही खो जायेगा।

तीसरे दिन पत्र का जवाब आया। रही-सही आशा भी टूट गयी। वही जवाब था जिसका मुझे शंका थी। लिखा था- भाई साहब मेरे पूज्य हैं। उन्होंने जो निश्चय किया हैं, उसके विरुद्ध मैं एक शब्द भी मुँह से नहीं निकाल सकता और तुम्हारे लिए भी यही उचित हैं कि उन्हें नाराज न करो।

मैने उस पत्र को फाड़कर पैरों से कुचल दिया और उसी वक़्त विमल बाबू के घर की तरफ चला। आह! उस वक़्त अगर कोई मेरा रास्ता रोक लेता, मुझे धमकता कि उधर मत जाओ, तो मै विमल बाबू के पास जाकर ही दम लेता और आज मेरा जीवन कुछ और ही होता; पर वहाँ मना करने वाला कौन बैठा था। कुछ दूर चल कर हिम्मत हार बैठा। लौट पड़ा। कह नहीं सकता, क्या सोचकर लौटा। चचा साहब की अप्रसन्नता का मुझे रत्ती-भर भी भय न था। उनकी अब मेरे दिल में कोई इज्जत न थी। मैं उनकी सारी सम्पत्ति को ठुकरा देने को तैयार था। पिताजी के नाराज हो जाने का भी डर न था। संकोच केवल यह था- कौन मुँह लेकर जाऊँ; आखिर मैं उन्हीं चचा का भतीजा हूँ । विमल बाबू मुझसे मुखातिब न हुए या जाते-ही-जाते दुत्कार दिया, तो मेरे लिए डूब मेरे लिए डूब मरने के सिवा और क्या रह जायगा? सबसे बड़ी शंका यह थी कि कहीं तारा ही मेरा तिरस्कार कर बैठे तो मेरी क्या गति होगी। हाय! अहृदय तारा! निष्ठुर तारा! अबोध तारा! अगर तूने उस वक़्त दो शब्द लिख कर मुझे तसल्ली दे दी होती, तो आज मेरा जीवन कितना सुखमय होता। तेरे मौन के मुझे मटियामेट कर दिया- सदा के लिए! आह, सदा के लिए।

तीन दिन बाद फिर मैंने अंगारों पर लोट-लोट कर काटे। ठान लिया था कि अब किसी से न मिलूँगा। सारा संसार मुझे अपना शत्रु -सा दिखता था। तारा पर भी क्रोध आता था। चचा साहब की तो सूरत से मझु घृणा हो गयी थी; मगर तीसरे दिन शाम को चचाजी का रुक्का पहुँचा, मुझसे आकर मिल जाओ। जी में तो आया, लिख दूँ, मेरा लिख दूँ, मेरा आपसे कोई सम्बन्ध नही, आप समझ लीजिए, मैं मर गया। मगर फिर उनके स्नेह और उपकारों की याद आ गयी। खरी-खरी सुनाने का भी अच्छा अवसर मिल रहा था। हृदय में युद्ध का नशा और जोश भरे हुए मैं चचाजी की सेवा में गया।

चचाजी नें मुझे सिर से पैर तक देख कर कहा- क्या आजकल तुम्हारी तबियत अच्छी नहीं हैं? रायसाहब सीताराम तशरीफ लाये थे। तुमसे कुछ बातें करना चाहते थे। कल सबेरे मौका मिले, तो चले आना या तुम्हें लौटने की जल्दी न हो, तो मैं इसी वक़्त बुला भेजूँ।

5

मैं समझ गया कि यह रायसाहब कौन हैं; लेकिन अनजान बनकर बोला-यह रायसाहब कौन हैं? मेरा तो उनसे परिचय नहीं हैं।

चचाजी ने लापरवाही से कहा- अजी, यह वही महाशय हैं, जो तुम्हारे ब्याह के लिए घेरे हुए हैं। शहर के रईस और कुलीन आदमी हैं। लड़की भी बहुत अच्छी हैं। कम-से-कम तारा से कई गुनी अच्छी। मैने हाँ कर लिया हैं। तम्हें भी जो बाते पूछनी होस उनसे पूछ लो।

मैने आवेश के उमड़ते हुए तूफान को रोककर कहा- आपने नाहक हाँ की। मैं अपना विवाह नहीं करना चाहता।

चचाजी ने मेरी तरफ आँखें फाड़कर कहा- क्यों?

मैने उसी निर्भीकता से जवाब दिया- इसीलिए कि मैं इस विषय में स्वाधीन रहना चाहता हूँ ।

चचाजी ने जरा नर्म होकर कहा- मैं अपनी बात दे चुका हूँ, क्या तुम्हें इसका कुछ ख्याल नहीं हैं?

मैने उद्दंडता से जवाब दिया- जो बात पैसों पर बिकती हैं, उसके लिए मैं अपनी जिन्दगी नहीं खराब कर सकता।

चचा साहब ने गम्भीर भाव से कहा- यह तुम्हारा आखिरी फैसला हैं?

‘जी हाँ, आखिरी।’

‘पछताना पड़ेगा।’

‘आप इसकी चिन्ता न करें। आपको कष्ट देने न आऊँगा।’

‘अच्छी बात हैं।’

यह कहकर वह उठे और अन्दर चले गये। मैं कमरे से निकला और बैरक की तरफ चला। सारी पृथ्वी चक्कर खा रहीं थी, आसमान नाच रहा था और मेरी देह हवा में उड़ी जाती थी। मालूम होता था, पैरौं के नीचे जमीन हैं ही नहीं।

बैरक में पहुँचकर मैं पलंग पर लेट गया और फूट-फूटकर रोने लगा। माँ-बाप, चाचा-चाची, धन-दौलत, सब कुछ होते होते हुए भी मैं अनाथ था। उफ! कितना निर्दय आघात था!

सबेरे हमारे रेजिमेंट को देहरादून जाने का हुक्म हुआ। मुझे आँखे-सी मिल गयी। अब लखनऊ काटे खाता था। उसके गली-कूचों तक से घृणा हो गयी थी। एक बार जी में आया, चलकर तारा से मिल लूँ ; मगर फिर वही शंका हुई- कहीं वह मुखातिब न हुई तो? विमल बाबू इस दशा में भी मुझसे उतना ही स्नेह दिखायेंगे, जितना अब तक दिखाते आये हैं, इसका मैं निश्चय न कर सका। पहले मैं धनी परिवार का दीपक था, अब एक अनाथ युवक, जिसे मजूरी के सिवा और कोई अवलम्ब नहीं था।

देहरादून में अगर कुछ दिन मैं शान्ति से रहता, तो सम्भव था, मेरा आहत हृदय सँभल जाता और मैं विमल बाबू को मना लेता; लेकिन वहाँ पहुँचे एक सप्ताह भी न हुआ था कि मुझे तारा का पत्र मिल गया। पते को देखकर मेरे हाथ काँपने लगे। समस्त देह में कंपन-सा होने लगा। शायद शेर को देखकर भी मैं इतना भयभीत न होता। हिम्मत ही न पड़ती थी कि उसे खोलूँ । वही लिखावट थी, वही मोतियों की लड़ी, जिसे देखकर मेरे लोचन तृप्त हो जाते थे, जिसे चूमता था और हृदय से लगाता था, वही काले अक्षर आज नागिनों से भी ज्यादा डरावने मालूम होते थे। अनुमान कर रहा था कि उसने क्या लिखा होगा; पर अनुमान की दूर तक दौड़ भी पत्र के विषय तक न पहुँच सकी। आखिर, एक बार कलेजा मजबूत करके मैने पत्र खोल डाला। देखते ही आँखों में अँधेरा छा गया। मालूम हुआ, किसी ने शीशा पिघला कर पिला दिया। तारा का विवाह तय हो गया था। शादी होने में कुल चौबीस घंटे बाकी थे। उसनें मुझसे अपनी भूलों के लिए क्षमा माँगी और विनती की थी कि मुझे भूला देना। पत्र का अन्तिम वाक्य पढ़कर मेरा आँखों से आँसूओं की झड़ी लग गयी। लिखा था- यह अन्तिम प्यार लो। अब आज से मेरे और तुम्हारे बीच में केवल मैत्री का नाता हैं। मगर कुछ और समझूँ तो वह अपने पति के साथ अन्याय होगा, जिसे शायद तुम सबसे ज्यादा नापसंद करोगे। बस इससे अधिक और न लिखूँगी। बहुत अच्छा हुआ कि तुम यहाँ से चले गये। तुम यहाँ रहते, तो तुम्हें भी दु:ख होता औऱ मुझे भी। मगर प्यारे! अपनी इस अभागिनी तारा को भूल न जाना। तुमसे यही अन्तिम निवेदन हैं।

मैं पत्र को हाथ में लिये-लिये लेट गया। मालूम होता था, छाती फट जाएगी! भगवान, अब क्या करूँ? जब तक मैं लखनऊ पहुँचूँगा, बारात द्‌वार पर आ चुकी होगी, यह निश्चय था। लेकिन तारा के अन्तिम दर्शन करने की प्रबल इच्छा को मैं किसी तरह न रोक सकता था। वही अब जीवन की अंतिम लालसा थी।

मैंने जाकर कंमाडिग आफिसर से कहा- मुझे एक बड़े जरूरी काम से लखनऊ जाना हैं। तीन दिन की छुट्टी चाहता हूँ।

साहब ने कहा- अभी छुट्टी नहीं मिल सकती।

‘मेरा जाना जरूरी हैं।’

‘तुम नहीं जा सकते।’

‘मैं किसी तरह नहीं रूक सकता।’

6

‘तुम किसी तरह नहीं जा सकते।’

मैने और अधिक आग्रह न किया। वहाँ से चला आया। रात की गाड़ी से लखनऊ जाने का निश्चय कर लिया। कोर्ट-मार्शल का अब मुझे जरा भी डर न था।

जब मैं लखनऊ पहुँचा, तो शाम हो गयी थी। कुछ देर तक मैं प्लेटफार्म से दूर खड़ा अँधेरा हो जाने का इन्तजार करना रहा। तब अपनी किस्मत के नाटक का सबसे भीषण कांड देखने चला। बारात द्‌वार पर आ गयी थी। गैस की रोशनी हो रही थी। बाराती लोग जमा थे। हमारे मकान की छत तारा की छत से मिली हुई थी। रास्ता मरदाने कमरे की बगल से था। चचा साहब शायद कहीं सैर करने गये हुए थे। नौकर-चाकर सब बारात की बहार देख रहे थे। मैं चुपके से जीने पर चढ़ा और छत पर जा पहूँचा। वहाँ इस वक़्त बिल्कुल सन्नाटा था। उसे देखकर मेरा दिल भर आया। हाय! यहीं वह स्थान हैं, जहाँ हमने प्रेम के आनन्द उठाये थे यहीं मैं तारा के साथ बैठकर जिन्दगी के मनसूबे बाँधता था! यही स्थान मेरी आशाओं का स्वर्ग और मेरे जीवन का तीर्थ था। इस जमीन का एक-एक अणु मेरे लिए मधुर-स्मृतियों से पवित्र था। पर हाय! मेरे हृदय की भाँति आज वह भी ऊजड़, सुनसान, अंधेरा था। मैं उसी जमीन से लिपटकर खूब रोया, यहाँ तक की हिचकियाँ बँध गयी। काश! इस वक़्त तारा वहाँ आ जाती, तो मैं उसके चरणों पर सिर रखकर हमेशा के लिए सो जाता। मुझे ऐसा भासित होता था कि तारा की पवित्र आत्मा मेरी दशा पर रो रही हैं। आज भी तारा यहाँ जरुर आयी होगी। शायद इसी जमीन पर लिपटकर वह भी रोयी होगी। उस भूमि से उसके सुगन्धित केशो की महक आ रही थी। मैने जेब से रूमाल निकाला और वहाँ की धूल जमा करने लगा। एक क्षण में मैने सारी छत साफ कर डाली और अपनी अभिलाषाओं की इस राख को हाथ में लिये घंटो रोया। यही मेरे प्रेम का पुरस्कार हैं, यही मेरी उपासना का वरदान हैं, यहीं मेरे जीवन की विभूति हैं! हाय री दुर्दशा!

नीचे विवाह के संस्कार हो रहे थे। ठीक आधी रात के समय वधू मंडल के नीचे आयी, अब भाँवरे होगी। मैं छत के किनारे चला आया और यह मर्मान्तक दृश्य देखने लगा। बस, यही मालूम हो रहा था कि कोई हृदय के टुकड़े किये डालता हैं। आश्चर्य हैं, मेरी छाती क्यों न फट गयी, मेरी आँखें न निकल पड़ी। वह मंडप मेरे लिए एक चिता थी, जिसमें वह सब कुछ, जिस पर मेरे जीवन का आधार था; जला जा रहा था।

भाँवरें समाप्त हो गयीं तो मैं कोठे से उतरा। अब क्या बाकी था ? चिता की राख भी जलमग्न हो चुकी थी। दिल को थामे, वेदना से तपड़ता हुआ, जीने के द्‌वार पर आया; मगर द्‌वार बाहर से बन्द था। अब क्या हो? उल्टे पाँव लौटा। अब तारा के आँगन से होकर जाने के सिवा दूसरा रास्ता न था। मैने सोचा, इस जमघट में मुझे कौन पहचानता हैं, निकल जाऊँगा। लेकिन ज्यों ही आँगन में पहुँचा, तारा की माताजी की निगाह पड़ गयी। चौककर बोली- कौन, कृष्णा बाबू? तुम कब आये? आओ, मेरे कमरे में आओ। तुम्हारे चचा साहब के भय से हमने तुम्हें न्यौता नहीं भेजा। तारा प्रातःकाल विदा हो जायगी। आओ, उससे मिल लो। दिन- भर से तुम्हारी रट लगा रही हैं।

यह कहते हए उन्होंने मेरा बाजू पकड़ लिया और मुझे खीचते हूए अपने कमरे में ले गयी। फिर पूछा- अपने घर से होते हुए आये हो न?

मैने कहा- मेरा घर यहाँ कहाँ हैं?

‘क्यों, तुम्हारे चचा साहब नहीं हैं?’

‘हाँ, चचा साहब का घर हैं, मेरा घर अब कहीं नहीं हैं। बनने की कभी आशा थी, पर आप लोगों ने वह भी तोड़ दी।’

‘हमारा इसमे क्या दोष था भैया? लड़की का ब्याह तो कहीं-न-कहीं करना था। तुम्हारे चचाजी ने तो हमें मँझधार में छोड़ दिया था। भगवान ही ने उबारा। क्या अभी स्टेशन से चले आ रहे हो? तब तो अभी कुछ खाया भी न होगा।’

‘हाँ, थोड़ा-सा जहर लाकर दीजिए, यही मेरे लिए सबसे अच्छी दवा हैं।’

7

वृद्धा विस्मित होकर मुँह ताकने लगी। मुझे तारा से कितना प्रेम था, वह बेचारी क्या जानती थी?

मैंने उसी विरक्ति के साथ फिर कहा- जब आप लोगों ने मुझे मार डालने ही का निश्चय कर लिया, तो अब देर क्यों करती हैं? आप मेरे साथ यह दगा करेंगी यह मैं न समझता था। खैर, जो हुआ, अच्छा ही हुआ। चचा और बाप की आँखों से गिरकर में शायद आपकी आँखों में भी न जँचता।

बुढ़िया ने मेरी तरफ शिकायत की नजरों से देखकर कहा- तुम हमको इतना स्वार्थी समझते हो, बेटा।

मैने जले हुए हृदय से कहा- अब तक तो न समझता था लेकिन परिस्थित ने ऐसा समझने को मजबूर किया। मेरे खून का प्यासा दुश्मन भी मेरे ऊपर इससे घातक वार न कर सकता । मेरा खून आप ही की गरदन पर होगा।

‘तुम्हारे चचाजी ने ही तो इन्कार कर दिया?’

‘आप लोगों ने मुझसे भी कुछ पूछा, मुझसे भी कुछ कहा, मुझे भी कुछ कहने का अवसर दिया? आपने तो ऐसी निगाहें फेरी जैसे आप दिल से यही चाहती थी। मगर अब आपसे शिकायत क्यों करूँ? तारा खुश रहे, मेरे लिए यही बहुत हैं।’

‘तो बेटा, तुमने भी तो कुछ नहीं लिखा; अगर तुम एक पुरजा लिख देते तो हमें तस्कीन हो जाती। हमें क्या मालूम था कि तुम तारा को इतना प्यार करते हो। हमसे जरूर भूल हुई; मगर उससे बड़ी भूल तुमसे हुई। अब मुझे मालूम हुआ कि तारा क्यो बराबर डाकिये को पूछती रहती थी। अभी कल वह दिन-भर डाकिये का राह देखती रही। जब तुम्हारा कोई खत नहीं आया, तब वह निराश हो गयी। बुला लूँ उसे? मिलना चाहते हो?’

मैने चारपाई से उठकर कहा- नहीं-नहीं, उसे मत बुलाइए। मैं अब उसे नहीं देख सकता। उसे देख कर मैं न जाने क्या कर बैठूँ ।

यह कहता हुआ मैं चल पड़ा। तारा की माँ ने कई बार पुकारा पर मैने पीछे फिर कर भी न देखा।

यह हैं मुझ निराश की कहानी। इसे आज दस साल गुजर गये। इन दस सालों में मेरे ऊपर जो कुछ बीती, उसे मैं ही जानता हूँ । कई-कई दिन मुझे निराहार रहना पड़ा हैं। फौज से तो उसके तीसरे ही दिन निकाल दिया गया था। अब मारे-मारे फिरने के सिवा मुझे कोई काम नहीं। पहले तो काम मिलता ही नहीं और अगर मिल भी गया, तो मैं टिकता नहीं। जिन्दगी पहाड़ हो गयी हैं। किसी बात की रुचि नही रही। आदमी की सूरत से दूर भागता हूँ ।

तारा प्रसन्न हैं। तीन-चार साल हुए, एक बार मैं उसके घर गया था। उसके स्वामी ने बहुत आग्रह करके बुलाया था। बहुत कसमें दिलायीं। मजबूर होकर गया। यह कली अब खिलकर फूल हो गयी हैं। तारा मेरे सामने आयी। उसका पति भी बैठा हुआ था। मैं उसकी तरफ ताक न सका। उसने मेरे पैर खींच लिये। मेरे मुँह से एक शब्द भी न निकला। अगर तारा दुखी होती, कष्ट में होती, फटेहालों मे होती तो मैं उस पर बलि हो जाता; पर सम्पन्न, सरस, विकसित तारा मेरी संवेदना के योग्य न थी। मैं इस कुटिल विचार को न रोक सका- कितनी निष्ठुरता! कितनी बेवफाई!

शाम को मैं उदास बैठा वहाँ जाने पछता रहा था कि तारा का पति आकर मेरे पास बैठ गया और मुस्कराकर बोला- बाबूजी, मुझे यह सुनकर खेद हुआ कि तारा से मेरे विवाह हो जाने का आपको बड़ा सदमा हुआ तारा जैसी रमणी शायद देवताओं को भी स्वार्थी बना देती; लेकिन मैं आपसे सच कहता हूँ, अगर मैं जानता कि आपको उससे इतना प्रेम हैं, तो मैं हरगिज आपकी राह का काँटा न बनता। शोक यही हैं कि मुझे बहुत पीछे मालूम हुआ। तारा मुझसे आपकी प्रेम- कथा कह चुकी हैं।

मैने मुस्कराकर कहा- तब तो आपको मेरी सूरत से घृणा होगी।

उसने जोश से कहा- इसके प्रतिकूल मैं आपका आभारी हूँ । प्रेम का ऐसा पवित्र, ऐसा उज्जवल आदर्श आपने उसके सामने रखा। वह आपको अब भी उसी मुहब्बत से याद करती हैं। शायद कोई दिन ऐसा नहीं जाता कि आपका जिक्र न करती हो। आपके प्रेम को वह अपनी जिन्दगी की सबसे प्यारी चीज समझती हैं। आप शायद समझते हों कि उन दिनों की याद करके उसे दु:ख होता होगा। बिल्कुल नहीं, वही उसके जीवन की सबसे मधुर स्मृतियाँ हैं। वह कहती हैं, मैने अपने कृष्णा को तुममें पाया हैं। मेरे लिए इतनी ही काफी हैं।

लोमड़ी के बारे में ३२ रोचक तथ्य || 32 Interesting Facts About the Foxes

लोमड़ी के बारे में रोचक तथ्य

रोचक तथ्यों में चमगादड़ के बाद आज बारी है, चतुर लोमड़ी की। लोमड़ी को जंगल का सबसे चालाक जानवर कहा जाता है। चतुर लोमड़ी के किस्से कहानियां तो हम बचपन से सुनते चले आ रहे हैं, परंतु आज इसके कुछ रोचक तथ्यों को जानेंगे।

लोमड़ी के बारे में ३२ रोचक तथ्य || 32 Interesting Facts About the Foxes

लोमड़ी दुनियाभर के विभिन्न क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यह एक आकर्षक जानवर हैं, जो अपनी तेज दृष्टि, बुद्धि, सुनने की क्षमता और चंचल स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। घने जंगलों से लेकर खुले मैदानों तक, यह जानवर विभिन्न प्रकार के वातावरण में रहने के अनुकूल होते हैं। चलिए जानते हैं कुछ रोचक तथ्य। 

लोमड़ी के बारे में ३२ रोचक तथ्य || 32 Interesting Facts About the Foxes

  1.  लोमड़ियाँ दूर से काफी बड़ी लग सकती हैं, लेकिन वे वास्तव में छोटी होती हैं।
  2. एक नर लोमड़ी का सिर आमतौर पर 26 से 28 इंच का होता है, जबकि एक मादा का सिर आमतौर पर 24 से 26 इंच का होता है।
  3. लोमड़ियों की पूंछ उनके पूरे शरीर की लंबाई का एक तिहाई हिस्सा होता है। नर लोमड़ी की पूंछ 15 से 17 इंच लंबी होती है, जबकि मादा की 14 से 16 इंच लंबी होती है। लाल लोमड़ी की पूंछ लगभग उनके शरीर की आधी लंबाई के बराबर होती है।
  4. लोमड़ी को जंगल का सबसे चालाक जानवर कहा जाता है। क्यूँ भला? वो इसलिए क्योंकि यह दूसरे जानवर के मुकाबले अपना भोजन तेजी से ढूंढ लेते हैं। 
  5. अब सवाल यह है की लोमड़ी भोजन तेजी से कैसे ढूंढ लेती है? प्रकाश संवेदनशील कोशिकाओं के पीछे टेपेटम ल्यूसिडम नामक एक और परत होती है, जो प्रकाश को आँखों के माध्यम से वापस परावर्तित करती है। इससे लोमड़ी जो देख सकती है उसकी तीव्रता दोगुनी हो जाती है, जिससे वे शिकार पकड़ने में उत्कृष्ट बन जाती हैं।
  6. लोमड़ियाँ शिकार करने के लिए पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करती हैं। 
  7. लोमड़ियाँ दुनिया के पहले ऐसे जानवर हैं जो अपने शिकार की दूरी और दिशा का अंदाजा लगाने के लिए पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का इस्तेमाल करते हैं, जिससे वे ऊंची घास में स्थित छोटे जानवरों का शिकार करते हैं।
  8. लोमड़ियों का जीवनकाल औसतन 14 वर्ष का होता है। नर लोमड़ी को डॉग फॉक्स (Dog Fox) और मादा लोमड़ी को विक्सन (Vixen) कहा जाता है। लोमड़ी के बच्चों को 'पप्स' 'किट' या 'क्यूब्स' कहा जाता है।
  9. लोमड़ी को अकेले रहना ज्यादा पसंद है। कुत्ते परिवार के अन्य सदस्यों के विपरीत, लोमड़ियों को झुंड में रहने वाले जानवर नहीं माना जाता है। लोमड़ियाँ अकेले या छोटे परिवार समूहों में रहती हैं जिन्हें "स्कल्क" कहा जाता है, जिसमें आम तौर पर माँ लोमड़ी और लगभग 6 शावक शामिल होते हैं। 
  10. कई जानवरों के विपरीत, लोमड़ी उन कुछ जानवरों में से एक है जो अपने पर्यावरण पर मानवीय प्रभावों के अनुकूल आसानी से ढल जाते हैं।
  11. दुनिया भर में लोमड़ियों की 24 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।
  12. लोमड़ी 40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से भी दौड़ सकती है। 
  13. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि लोमड़ी 28 से अधिक अलग-अलग आवाज़ें निकाल सकती है। 
  14. एक मादा लोमड़ी एक समय में 2 से 5 बच्चों को जन्म दे सकती है। लोमड़ियाँ जन्म के समय नहीं देख सकती हैं और लोमड़ियों के बच्चों  की आँखें जन्म के नौ दिन बाद तक नहीं खुलती हैं। 
  15. लोमड़ियों की दृष्टि भी बहुत अच्छी होती है, और उनकी पुतली का आकार बहुत कम रोशनी के लिए भी अनुकूल होते हैं अर्थात उनकी आँखें अंधेरे में भी उन्हें देखने की अनुमति देता है।
  16. यही वजह है कि लोमड़ियाँ बहुत अच्छी रात्रिकालीन शिकारी हैं।
  17. लोमड़ियाँ के शिकार का तरीका बिल्लियों की तरह होता है।
  18. लोमड़ियाँ कुत्तों की एकमात्र ऐसी प्रजाति हैं, जो बिल्लियों की तरह अपने पंजे वापस खींच सकती हैं। लोमड़ियों की पुतलियाँ भी खड़ी होती हैं जो अन्य कुत्तों की गोल पुतलियों की तुलना में बिल्लियों की तरह अधिक दिखती हैं।लोमड़ी के बारे में ३२ रोचक तथ्य || 32 Interesting Facts About the Foxes
  19. लोमड़ियों की सुनने की क्षमता भी बहुत अच्छी होती है। वे 36 मीटर दूर से घड़ी की टिक-टिक सुन सकते हैं और यहां तक ​​कि चूहों द्वारा जमीन के नीचे खुदाई करने की आवाज भी सुन सकते हैं। 
  20. लोमड़ियाँ ज़मीन में दबे भोजन को भी सूंघ सकती हैं। उनकी सूंघने की शक्ति भी बहुत तेज़ होती है। 
  21. दुनिया में पाई जाने वाली सबसे बड़ी लोमड़ी की प्रजाति रेड फॉक्स है, जिसका वजन लगभग 14 किलोग्राम होता है।
  22. अंटार्कटिका को छोड़कर दुनिया के हर महाद्वीप में लोमड़ियों पाई जाती हैं। 
  23. लोमड़ियाँ वर्ष में केवल एक बार प्रजनन करती हैं। मादा लोमड़ी लगभग 60 दिनों तक गर्भवती रहती है और एक बार में 4 से 6 शावकों को जन्म देती हैं। 
  24. शिशु लोमड़ियाँ जन्म के समय देखने, चलने या तापमान नियंत्रण में असमर्थ होती हैं और माताएँ आमतौर पर अपने शावकों को उनके जीवन के पहले दो महीनों तक दूध पिलाती हैं, जब तक कि उनमें ये कार्य विकसित नहीं हो जाते। 
  25. इस बीच, नर लोमड़ी परिवार के लिए शिकार करने के लिए बाहर जातें हैं। शावकों के पहली बार अपनी माँ के साथ बाहर निकलने से पहले माँ लगभग तीन सप्ताह तक माँद में शावकों के साथ रहती है। 
  26. लोमड़ी सर्वाहारी होते हैं। ये खरगोश, कृंतक, पक्षी, मेंढक और केंचुए का शिकार करते हैं और साथ ही जामुन और फल भी खाते हैं। 
  27. लोमड़ियाँ आमतौर पर जंगलों में भूमिगत बिल खोदकर अपनी मांद बनाती हैं, जहाँ वे रह सकती हैं और अपने बच्चों की देखभाल करती हैं और शिकारियों से छिपती हैं। लोमड़ी के घर को "मांद" कहा जाता है।
  28. लोमड़ी कुत्तों की तरह ही अलग-अलग चेहरे के भाव और मुद्राओं के साथ संवाद करती हैं। वे खुश होने पर अपनी पूंछ हिलाते हैं और उन लोमड़ियों के साथ आक्रामक व्यवहार भी करते हैं जिन्हें वे नहीं जानते। 
  29. लोमड़ियों की 37 अलग-अलग प्रजातियाँ हैं, केवल 12 को वुलपेस जीनस की "सच्ची" लोमड़ी माना जाता है।
  30. 12 सच्ची लोमड़ियाँ लाल लोमड़ी, फेनेक लोमड़ी, पीली लोमड़ी, केप लोमड़ी, रूपेल की लोमड़ी, तिब्बती रेत लोमड़ी, आर्कटिक लोमड़ी, बंगाल लोमड़ी, ब्लैनफोर्ड की लोमड़ी, कोर्सेक लोमड़ी, किट लोमड़ी और स्विफ्ट लोमड़ी हैं।
  31. सबसे आम लोमड़ी लाल लोमड़ी है जिसकी कार्निवोरा ऑर्डर में 280 से अधिक प्रजातियाँ हैं। लाल लोमड़ियाँ दुनिया की शीर्ष 100 सबसे आक्रामक प्रजातियों में सूचीबद्ध हैं। 
  32. फ़ेनेक लोमड़ी सबसे छोटी लोमड़ी है और इसका वजन तीन पाउंड से भी कम है। वे सबसे प्यारे लोमड़ियों में से एक हैं और एक बिल्ली के बच्चे के समान आकार के हैं, लेकिन उनके कान बहुत बड़े हैं। कान उन्हें शिकार को सुनने और शरीर की गर्मी छोड़ने में भी मदद करते हैं। उनके पास फर से ढके पंजे भी होते हैं, जो लगभग जूतों की तरह काम करते हैं, इसलिए वे गर्म रेत पर चल सकते हैं।
लोमड़ी के बारे में ३२ रोचक तथ्य || 32 Interesting Facts About the Foxes
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Interesting facts about foxes


After bats, today it is the turn of the clever fox in interesting facts. The fox is said to be the smartest animal in the forest. We have been listening to stories of the clever fox since childhood, but today we will know some interesting facts about it.

Foxes are found in different areas around the world. It is a fascinating animal, known for its sharp eyesight, intelligence, hearing ability and playful nature. From dense forests to open fields, these animals are adapted to live in a variety of environments. Let's know some interesting facts.
लोमड़ी के बारे में ३२ रोचक तथ्य || 32 Interesting Facts About the Foxes
  1. Foxes may look quite large from a distance, but they are actually small.
  2. The head of a male fox is usually 26 to 28 inches, while the head of a female is usually 24 to 26 inches.
  3. The tail of foxes is one-third of their entire body length. The tail of a male fox is 15 to 17 inches long, while that of a female is 14 to 16 inches long. The tail of a red fox is almost half the length of their body.
  4. Foxes are called the smartest animals in the forest. Why? That is because they find their food faster than other animals.
  5. Now the question is how do foxes find food faster? Behind the light sensitive cells is another layer called tapetum lucidum, which reflects light back through the eyes. This doubles the intensity of what the fox can see, making them excellent at catching prey.
  6. Foxes use the Earth's magnetic field to hunt.
  7. Foxes are the first animals in the world to use the Earth's magnetic field to estimate the distance and direction of their prey, allowing them to hunt small animals located in tall grass.
  8. Foxes have an average lifespan of 14 years. Male foxes are called dog foxes and female foxes are called vixens. Fox babies are called 'pups', 'kits' or 'cubs'.
  9. Foxes prefer to live alone. Unlike other members of the dog family, foxes are not considered pack animals. Foxes live alone or in small family groups called "skulks", which usually consist of a mother fox and about 6 cubs.
  10. Unlike many animals, foxes are one of the few animals that can easily adapt to human impacts on their environment.
  11. There are more than 24 species of foxes found around the world.
  12. Foxes can also run at a speed of 40 kilometers per hour.
  13. You will be surprised to know that foxes can make more than 28 different sounds.
  14. A female fox can give birth to 2 to 5 cubs at a time. Foxes cannot see at birth and the eyes of the cubs do not open until nine days after birth.
  15. Foxes also have very good vision, and their pupil size is also adapted to very low light, which means their eyes allow them to see even in the dark.
  16. This is why foxes are very good nocturnal hunters.लोमड़ी के बारे में ३२ रोचक तथ्य || 32 Interesting Facts About the Foxes
  17. The hunting style of foxes is similar to that of cats.
  18. Foxes are the only species of dogs that can pull back their claws like cats. Foxes also have vertical pupils that look more like cats than the round pupils of other dogs.
  19. Foxes also have very good hearing. They can hear the ticking of a clock from 36 meters away and can even hear the sound of rats digging under the ground.
  20. Foxes can also smell food buried in the ground. Their sense of smell is also very strong.
  21. The largest fox species found in the world is the red fox, which weighs about 14 kilograms.
  22. Foxes are found in every continent of the world except Antarctica.
  23. Foxes breed only once a year. Female foxes remain pregnant for about 60 days and give birth to 4 to 6 cubs at a time.
  24. Baby foxes are unable to see, walk or temperature control at birth and mothers usually breastfeed their cubs for the first two months of their lives until they develop these functions.
  25. Meanwhile, male foxes go out hunting for the family. The mother stays with the cubs in the den for about three weeks before the cubs venture out with their mother for the first time.
  26. Foxes are omnivores. They hunt rabbits, rodents, birds, frogs and earthworms as well as eating berries and fruit.
  27. Foxes usually dig underground burrows in forests where they can live and care for their young and hide from predators. The fox's home is called a "den".
  28. Foxes communicate with different facial expressions and postures, just like dogs. They wag their tails when they are happy and also behave aggressively with foxes they do not know.
  29. There are 37 different species of foxes, only 12 are considered "true" foxes of the Vulpes genus.
  30. The 12 true foxes are the red fox, fennec fox, yellow fox, Cape fox, Ruppell's fox, Tibetan sand fox, Arctic fox, Bengal fox, Blanford's fox, corsac fox, kit fox, and swift fox.
  31. The most common fox is the red fox which has over 280 species in the Carnivora order. Red foxes are listed in the top 100 most aggressive species in the world.
  32. The fennec fox is the smallest fox and weighs less than three pounds. They are one of the cutest foxes and are about the same size as a kitten, but they have much larger ears. The ears also help them hear prey and release body heat. They also have fur-covered paws, which act almost like shoes, so they can walk on hot sand.
लोमड़ी के बारे में ३२ रोचक तथ्य || 32 Interesting Facts About the Foxes

मकर संक्रांति २०२५ || Makar Sankranti 2025

 मकर संक्रांति (Makar Sankranti)

सर्वप्रथम आप सभी को मकर संक्रांति पर्व की अनेक बधाई।

आज 14 जनवरी को, मकर संक्रांति का पर्व पुरे देश भर में बड़े ही जोश और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस बार तो प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य आयोजन पौष पूर्णिमा के साथ शुरू हो गया है। मकर संक्रांति पर महाकुंभ का पहला अमृत स्नान है। 

मकर संक्रांति २०२५ || Makar Sankranti 2025

  हर पतंग जानती है,
अंत में कचरे मे जाना है। 
लेकिन उसके पहले हमें,
आसमान छूकर दिखाना है ।
" बस ज़िंदगी भी यही चाहती है "

मकर सक्रांन्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं
✨✨✨✨✨✨✨✨✨
हमारा देश सांस्कृतिक रूप से विश्व के सर्वाधिक सशक्त देशों में से एक है। हमारे देश मे मौसम से जुड़े बहुत त्योहार हैं और इन सभी त्योहारों का अपना एक विशेष महत्त्व है। इन्हें मनाने का तरीका भी अलग -अलग है। नए साल के पहले महीने जनवरी में मकर संक्रांति के महा पर्व की शुरुआत होती है। किसी न किसी रूप में लोग अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति को बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। वहीं इस खास दिन पर तिल, गुड़ के पकवानों का आनंद लिया जाता है साथ ही आज के दिन स्नान का भी विशेष महत्व होता है। मकर संक्रांति का महापर्व सिर्फ उत्तर भारत में ही नहीं, बल्कि दक्षिण भागों के साथ अलग-अलग राज्यों में अनेक नामों से मनाया जाता है।  क्या आप जानते है कि हम सभी मकर संक्रांति को क्यों मनाते है? अगर नहीं जानते तो इसका कारण समझते हैं।
मकर संक्रांति २०२५ || Makar Sankranti 2025

दरअसल यह खगोल से जुड़ा हुआ है.  मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकल अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं। कहा जाता है कि इस खास दिन पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए खुद उनके घर में प्रवेश करते है। इस दौरान एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है। वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांति  बेहद अहम हैं, जिनमें मेष, कर्क, तुला, मकर संक्रांति हैं। यही कारण है कि इस खास दिन को हम सभी मकर संक्रांति के नाम से जानते है और इसे पर्व के रूप में मनाते है । आज मकर संक्रांति के पर्व की तिथि है। 

देश में मकर संक्रांति के पर्व को कई नामों से जाना जाता है। पंजाब और जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग में इसे लोहड़ी के नाम से बड़े पैमाने पर मनाते हैं। लोहड़ी का त्‍योहार मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। जब सूरज ढल जाता है तब घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं और स्‍त्री-पुरुष,घर के बच्चे  सज-धजकर नए-नए कपड़े पहनकर  जलते हुए अलाव के चारों ओर भांगड़ा डांस  करते हैं और अग्नि को मेवा, तिल, गजक, चिवड़ा आदि की आहुति भी देते हैं। सभी एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हुए आपस में भेंट बांटते हैं और प्रसाद बाटते  हैं। प्रसाद में तिल, गुड़, मूंगफली, मक्‍का और गजक होती हैं।
मकर संक्रांति २०२५ || Makar Sankranti 2025

मकर संक्रांति को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है. जैसे-  पंजाब में माघी, हिमाचल प्रदेश में माघी साजी, जम्मू में माघी संग्रांद , हरियाणा में सकरत, मध्य भारत में सुकरत, तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात के साथ उत्तर प्रदेश में उत्तरायण, ओडिशा में मकर संक्रांति, असम में माघ बिहू, अन्य नामों से संक्रांति को मनाते है। 

वहीं इस खास दिन पर लोग कामना करते हुए  सूर्य को अर्घ्य देते  हैं,भोग लगाते है जिसमे चावल, दाल, गुड़, तिल, रेवड़ी आदि चढ़ाते हैं। इस शुभ  दिन लोग पतंग उड़ाते हैं। दरअसल मकर संक्रांति एक ऐसा दिन है, जब धरती पर एक अच्छे और शुभ दिन की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है. जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते लगता है तब उसकी किरणें सेहत ,सुख और शांति को बढ़ाती हैं।
मकर संक्रांति २०२५ || Makar Sankranti 2025
आज के दिन तिल, गुड़, मूंगफली, लाई और गजक के साथ ही बिहार में दही चूड़ा और उत्तर प्रदेश में खिचड़ी खाने का प्रचलन है। इस भोजन पीछे भी कई धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारण हैं। 

मकर संक्रांति पर खिचड़ी क्यों बनाई जाती है?

मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने की परंपरा कई धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारणों से जुड़ी हुई है। खिचड़ी को सूर्य और शनि गृह से जुड़ा हुआ माना जाता है। कहते हैं कि इस दिन खिचड़ी खाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। खिचड़ी दाल, चावल और सब्जियों से मिलकर बनती है, जो संतुलित और पौष्टिक आहार है। सर्दियों में शरीर को गर्म और ऊर्जा देने वाला भोजन माना जाता है। खिचड़ी के साथ तिल-गुड़ का सेवन किया जाता है, जो पाचन और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी दान करना बहुत शुभ माना जाता है। गंगा स्नान और खिचड़ी दान का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी है।
मकर संक्रांति २०२५ || Makar Sankranti 2025
यह पर्व जनवरी माह की 14 तारीख को मनाया जाता है। चुकी यह त्यौहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के दिन मनाया जाता है और सूर्य सामान्यता 12, 13, 14 या 15 जनवरी में से किसी एक दिन मकर राशि में प्रवेश करता है, तो कभी-कभी यह त्यौहार 12, 13 या 15 तारीख को भी मनाया जाता है। इस बार भी यह पर्व 14 को अर्थात आज ही मनाया जाएगा।
मकर संक्रांति २०२५ || Makar Sankranti 2025

मकर संक्रांति के शुभ दिन पर यदि पवित्र नदी गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेर में कोई डुबकी लगता है, तो वह अपने सभी अतीत और वर्तमान पापों को धो देता है और आपको एक स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल  जीवन प्रदान करता है। मकर संक्रांति में गुड़, तेल, कंबल, फल, छाता आदि दान करने से लाभ मिलता है।
एक बार पुनः आप सभी को मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनायें। 
आप सभी खुश रहें और स्वस्थ रहें।

 Happy Makar Sankranti

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Fenugreek Seeds || मेथी दाने || 16 Benefits of eating Fenugreek Seeds ||

 मेथी दाने का महत्व

सर्दियों के शुरू होते ही सब्जी बाजार में मेथी के पत्ते (साग) खूब मिलते हैं। कुछ लोग इन पत्तों का उपयोग साग बनाने में करते हैं तो कुछ लोग सब्जी बनाते हैं और कुछ लोग इसकी पूड़ी बनाते हैं।भोजन का स्वाद और सुगंध बढ़ाने के लिए मेथी का प्रयोग प्रायः हर घर में किया जाता है। मेथी को सब्जी तथा इसके दानों को मसाले के रूप में हमारे भोजन में प्रयोग किया जाता है। लगभग हर प्रदेश में मेथी की खेती की जाती है। इसका पौधा एक से दो फुट लम्बा होता है जिसमें जनवरी से मार्च के महीनों में फूल लगते हैं। आज हम इस अंक में मेथी के बीज की उपयोगिता की चर्चा करेंगे।

Fenugreek Seeds || मेथी दाने || 16 Benefits of eating Fenugreek Seeds ||

त्रिफला के बाद आजवाइन, जीरा, हींग और इसके बाद एक सबसे अच्छी वस्तु है हमारी रसोई में जिसका नाम है मेथी का दाना। मेथी का दाना वात और कफ नाशक है। मेथी दाना पित्त को बढ़ाती है। अतः जिनको पित्त की बीमारी पहले से है, वह मेथी का उपयोग ना करें।

  1. मेथी स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है। पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए मेथी बहुत फायदेमंद होती है। 
  2. मेथी अपच, गैस और पेटदर्द में भी फायदेमंद है।    
  3. मेथी डॉयबिटीज़ के लिए बहुत उपयोगी है। मेथी का पाउडर लेना उतना फायदेमंद नहीं है, जितना की उसे रात में पानी में भिगो कर खाना है। 
  4. कब्जियत की शिकायत होने पर मेथी दाने का उपयोग करना चाहिए।
  5. मेथी के दाने कोलेस्ट्रोल को कम करते हैं।
  6. जिस अचार में भी मेथी है, वह अचार नहीं औषधि है। अजवाइन डाला हुआ अचार भी औषधि है।
  7. किसी भी फल के अचार में डाली हुई इस प्रकार की औषधियां फल से ज्यादा असरदार होती हैं।अजवाइन और मेथी दाना दो ऐसी औषधियां हैं जो जिस वस्तु में पड़ती हैं, उसके असर को कम कर देती हैं और अपने असर को बढ़ा देती हैं।
  8. वात और कफ की बीमारियों में इस प्रकार के अचार बहुत ही लाभकारी होते हैं। रात को भिगो हुई मेथी से ज्यादा असरकारक अचार में डाली हुई मेथी होती है। अचार में डाली हुई मेथी का असर कम से कम 20 गुना ज्यादा होता है। यही बात अजवाइन के साथ भी है।
  9. अचार में मेथी, अजवाइन, जीरा, हींग, दालचीनी यह सब डालने के बाद अचार औषधि हो जाता है। मेथी दाना खाने से पित्त की समस्याओं में जैसे गैस अधिक बनना, जलन होना, मुँह सुख जाना आदि समस्याएं आने लगती हैं।
  10. हाई बी.पी. के लिए सबसे अच्छा मेथी दाना है। एक चम्मच मेथी दाना रात को गर्म पानी में डालकर छोड़ देना है और सुबह बासी मुंह पानी पी लेना और मेथी चबा चबाकर खाना है।
  11. भूख नहीं लगना, दमा, बहुमूत्र, सायटिका, पेट तथा मांसपेशियों के दर्द से बचने के लिए अपने भोजन में रोजाना मेथी को शामिल करें।
  12. जले हुए जगह पर मेथी दाना पानी में पीसकर लेप करने से जलन शांत होगा और घाव जल्दी भरेगा।
  13. किसी तरह की अंदरूनी चोट के दर्द को दूर करने के लिए मेथी के पत्तों को पीसकर उस जगह पर लगाने से आराम मिलता है। इससे सूजन भी दूर होती है।
  14. मेथी दानों के लड्डू बनाकर 3 महीने तक सुबह शाम सेवन करने से कमर दर्द में आराम मिलता है।
  15. मेथी के नियमित सेवन से गठिया से होने वाले दर्द में आराम मिलता है।
  16. हरी मेथी की सब्जी के सेवन से खून की कमी की शिकायत दूर होती है। 
English Translate

Importance of Fenugreek Seeds


As soon as winter starts, fenugreek leaves (saag) are available in abundance in the vegetable market. Some people use these leaves to make saag, some people make vegetables and some people make puri from it. Fenugreek is used in almost every household to increase the taste and aroma of food. Fenugreek is used as a vegetable and its seeds as a spice in our food. Fenugreek is cultivated in almost every state. Its plant is one to two feet long, in which flowers bloom in the months of January to March. Today, in this issue, we will discuss the usefulness of fenugreek seeds.
Fenugreek Seeds || मेथी दाने || 16 Benefits of eating Fenugreek Seeds ||

After Triphala, there is ajwain, cumin, asafoetida and after this, there is one best thing in our kitchen whose name is fenugreek seeds. Fenugreek seeds destroy Vata and Kapha. Fenugreek seeds increase bile. Therefore, those who already have bile disease, should not use fenugreek.
  1. Fenugreek is very beneficial for health. Fenugreek is very beneficial in curing digestive problems.
  2. Fenugreek is also beneficial in indigestion, gas and stomachache.
  3. Fenugreek is very useful in diabetes. Taking fenugreek powder is not as beneficial as eating it after soaking it in water overnight.
  4. Fenugreek seeds should be used in case of constipation.
  5. Fenugreek seeds reduce cholesterol.
  6. Any pickle that has fenugreek in it is not a pickle but a medicine. Pickle with celery is also a medicine.
  7. This type of medicine added to the pickle of any fruit is more effective than the fruit itself. Celery and fenugreek seeds are two such medicines that reduce the effect of the thing in which it is added and increase their own effect.
  8. This type of pickle is very beneficial in the diseases of Vata and Kapha. Fenugreek added to pickle is more effective than fenugreek soaked overnight. The effect of fenugreek added to pickle is at least 20 times more. The same is true for celery.
  9. After adding fenugreek, celery, cumin, asafoetida, cinnamon to pickles, the pickle becomes a medicine. Eating fenugreek seeds helps in pitta related problems like excessive gas formation, burning sensation, dry mouth etc.
  10. Fenugreek seeds are the best for high BP. Leave one spoon of fenugreek seeds in hot water overnight and drink the water on an empty stomach in the morning and chew the fenugreek.
  11. Include fenugreek in your diet daily to avoid loss of appetite, asthma, polyuria, sciatica, stomach and muscle pain.
  12. Applying a paste of fenugreek seeds ground in water on a burnt area will soothe the burning sensation and the wound will heal quickly.
  13. To relieve pain due to any kind of internal injury, grinding fenugreek leaves and applying them on that area provides relief. It also relieves swelling.
  14. Making laddus of fenugreek seeds and consuming them every morning and evening for 3 months provides relief from back pain.
  15. Regular consumption of fenugreek provides relief from arthritis pain.
  16. Consumption of green fenugreek vegetable relieves the problem of anemia.
Fenugreek Seeds || मेथी दाने || 16 Benefits of eating Fenugreek Seeds ||

स्वामी विवेकानन्द || Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानन्द

जन्म: 12 जनवरी 1863, कलकत्ता
मृत्यु: 4 जुलाई 1902,
 कलकत्ता के पास

स्वामी विवेकानंद जी वेदों – उपनिषदों के महान ज्ञाता और एक प्रखर वक्ता रहे हैं। उनका सनातन धर्म और संस्कृति के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने विश्वभर में वेदांत दर्शन का प्रसार किया और पूरे विश्व को सनातन धर्म और संस्कृति से परिचित कराया। स्वामी विवेकानंद जी ने कर्म योग, राज योग, ज्ञान योग, भक्ति योग जैसे विचारों को हम तक पहुंचाया है। 1985 से उनका जन्मदिन भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानन्द || Swami Vivekananda

आज स्वामी विवेकानंद जी की जयंती भी है। स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को कलकत्ता में एक कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेंद्रनाथ की माँ भुवनेश्वरी देवी एक गृहिणी और अत्यंत धार्मिक महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था।

बचपन से ही नरेन्द्र अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही और नटखट भी थे। अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। उनके घर में नियमपूर्वक रोज पूजा-पाठ होता था। धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवी को पुराण,रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गये। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी। ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुकता में कभी-कभी इनके प्रश्न इनके माता-पिता और कथावाचक पण्डित तक को निरुत्तर कर देते थे। 

 नरेंद्र बाल्यावस्था से प्रतिभा के धनी थे ही, उन पर मां सरस्वती की कृपा भी थी। नरेन्द्रनाथ को बचपन में रहस्यमय अनुभव हुए और ईश्वर के अस्तित्व के बारे में उनकी आध्यात्मिक जिज्ञासा बढ़ती गई। 16 वर्ष की आयु में 1869 में स्वामी जी ने कलकत्ता विश्व विद्यालय के एंट्रेंस एग्जाम में बैठे और इस एग्जाम में उन्हें सफलता मिली। इसके बाद इसी विश्वविद्यालय ने उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इस दौरन उनकी भेंट काली भक्त परमहंस महाराज जी से हुई, जो विवेकानंद की आध्यात्मिक यात्रा के शीर्ष पर थे। 

प्रारंभ में नरेन्द्रनाथ, जो ब्रह्म समाज के सदस्य थे और पश्चिमी तर्क और बुद्धिवाद के संपर्क में थे, रामकृष्ण की पवित्र प्रथाओं और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण पर संदेह करते थे। हालांकि, समय के साथ उन्होंने रामकृष्ण जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया और अपने दिन रहस्यवादी रामकृष्ण जी के सान्निध्य में बिताए, दिव्यता के बारे में सीखा और अपना आध्यात्मिक विश्वदृष्टिकोण बनाया। रामकृष्ण ने नरेन्द्रनाथ को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी चुना और 1886 में अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले उन्होंने नरेन्द्रनाथ और अन्य शिष्यों को भिक्षुत्व की दीक्षा दी।                      

सन 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित धर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। इस सम्मेलन में स्वामी जी के भाषण की पूरी दुनिया में प्रशंसा की गई। इससे भारत देश को एक नई पहचान मिली। . 

1900 में विवेकानंद अपनी दूसरी विदेश यात्रा से भारत लौटे। उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा और दो साल बाद 4 जुलाई 1902 को बेलूर के रामकृष्ण मठ में ध्यानावस्था में महासमाधि धारण कर स्वामी जी पंचतत्व में विलीन हो गए। उनकी मृत्यु के समय उनकी उम्र सिर्फ 39 वर्ष थी, लेकिन उन्होंने अपने कार्यों, दर्शन और शिष्यों के माध्यम से एक स्थायी विरासत छोड़ी । उनकी शिक्षाएं और व्याख्यान आज भी भारत और दुनिया भर में व्यापक रूप से पढ़े और माने जाते हैं। 

विवेकानंद ने अपने जीवनकाल में जो संगठन स्थापित किए थे, उनका समय के साथ विस्तार हुआ है। वास्तव में, रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के अब वैश्विक स्तर पर 200 से अधिक केंद्र हैं और ये भारत के बाहर 20 से अधिक देशों में मौजूद हैं। 1894 और 1900 में विवेकानंद जी ने क्रमशः न्यूयॉर्क शहर और सैन फ्रांसिस्को में दो वेदान्त समाजों की स्थापना की, जो पश्चिम में अपनी तरह के पहले थे।

इस वर्ष (2025) राष्ट्रीय युवा दिवस की थीम (National Youth Day 2025 Theme)

 1984 में आज के दिन को ही "राष्ट्रीय युवा दिवस" के रूप में मनाने की घोषणा सरकार ने की थी। तभी से प्रतिवर्ष एक थीम के साथ 12 जनवरी को "राष्ट्रीय युवा दिवस" मनाया जाता है। इस वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस का विषय "राष्ट्र निर्माण के लिए युवा सशक्तिकरण" है। इसके साथ ही इस वर्ष इसकी थीम "युवा एक स्थायी भविष्य के लिए: लचीलेपन और जिम्मेदारी के साथ राष्ट्र को आकार देना" (Youth for a Sustainable Future: Shaping the Nation with Resilience and Responsibility) है।

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