मीलों जहां न पता खुशी का..
जिंदगी भोर है, सूरज से निकलते रहिए..
मैं पीड़ा का राजकुंवर हूं तुम शहज़ादी रूप नगर की
हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहां पर होगा ?
मीलों जहां न पता खुशी का
मैं उस आंगन का इकलौता,
तुम उस घर की कली जहां नित
होंठ करें गीतों का न्योता,
मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहां पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
मेरा कुर्ता सिला दुखों ने
बदनामी ने काज निकाले
तुम जो आंचल ओढ़े उसमें
नभ ने सब तारे जड़ डाले
मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहां पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ी
उम्र आंसुओं की बढ़ जाए
तुम आई इस हेतु कि मेंहदी
रोज़ नए कंगन जड़वाए,
तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दुखान्तकी
जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहां पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
इतना दानी नहीं समय जो
हर गमले में फूल खिला दे,
इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ
जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहां पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
गोपालदास "नीरज"
धीर-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 15 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteपांच लिंकों के आनन्द में इस रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।
Deleteअति सुन्दर
ReplyDeleteVery nice...
ReplyDeleteVery Nice Happy Sunday 😊☺️
ReplyDeleteSunday special for a reason
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रिय हिन्दी
ये गीत मैंने नीरज जी से मंच पर कई बार सुना है । बहुत सुन्दर रचना है।
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर सृजन।
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