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मन

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हमारा मन अति सूक्ष्म है, पर है बड़ा शक्तिशाली। अगर हमने अपने मन को काबू में कर लिया तो मानो सारी दुनिया को काबू में कर लिया। चलिए एक उदहारण से समझते हैं - जैसे एक घर होता, घर में उससे छोटा कमरा होता है, कमरे से छोटा उसका दरवाजा होता है, दरवाजे से छोटी उसकी कुंडी होती है, कुंडी से भी छोटा ताला होता है और ताले से छोटी चाबी होती है। छोटी सी चॉबी से ताला लगाते ही सारे घर का कब्जा हमारी जेब में होता है। इसी प्रकार छोटे से मन को कब्जे में करते ही सारा संसार हमारे कब्जे में आ जाता है। 

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मजे की बात देखिए- चॉबी को एक ओर घुमाया तो ताला बंद हो जाता है और दूसरी ओर घुमाने से खुल जाता है। इसी प्रकार मन की चॉबी को परमात्मा की तरफ घुमाने से हम संसार से खुल जाते हैं और परमात्मा से बंध जाते हैं। हमारा मन हमेशा ही अनुकूलता चाहता है, इसे जरा प्रतिकूलता बर्दाश्त नहीं। ये हमेशा ही सुख चैन ढूंढ़ता है। 

मन की तुलना हाथी से की जा सकती है। हाथी को कितना भी नहला-धुला कर आप खड़ा करो, लेकिन वो फिर अपनी सूंड से मिट्टी-धूल अपने ऊपर डाल लेता है। ऐसे ही हमारे ऊपर भी जमाने की मिट्टी-धूल रोज-रोज ही गिरती रहती है। लेकिन एक समझदार महावत हाथी को नहला-धुलाकर खूंटे से बांध देता है। इसी प्रकार हम भी अपने आपको गुरु रूपी खूंटे से बांध कर रखे तो जमाने की मिट्टी-धूल से बचे रहेंगे। मन को ठीक रखने के लिए सद्विचार, सत्संग, सद्गन्थ अध्ययन की औषधि बड़ी कारगर है। इसे रोग, शोक, भोग से बचाकर रखना चाहिए। 

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