श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय ग्यारह- विश्वरूपदर्शनयोग ||
भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना
श्रीभगवानुवाच
भावार्थ :
श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! अनुग्रहपूर्वक मैंने अपनी योगशक्ति के प्रभाव से यह मेरे परम तेजोमय, सबका आदि और सीमारहित विराट् रूप तुझको दिखाया है, जिसे तेरे अतिरिक्त दूसरे किसी ने पहले नहीं देखा था ॥47॥
भावार्थ :
हे अर्जुन! मनुष्य लोक में इस प्रकार विश्व रूप वाला मैं न वेद और यज्ञों के अध्ययन से, न दान से, न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही तेरे अतिरिक्त दूसरे द्वारा देखा जा सकता हूँ ॥ 48॥
भावार्थ :
मेरे इस प्रकार के इस विकराल रूप को देखकर तुझको व्याकुलता नहीं होनी चाहिए और मूढ़भाव भी नहीं होना चाहिए। तू भयरहित और प्रीतियुक्त मनवाला होकर उसी मेरे इस शंख-चक्र-गदा-पद्मयुक्त चतुर्भुज रूप को फिर देख॥49॥
संजय उवाच
भावार्थ :
संजय बोले- वासुदेव भगवान ने अर्जुन के प्रति इस प्रकार कहकर फिर वैसे ही अपने चतुर्भुज रूप को दिखाया और फिर महात्मा श्रीकृष्ण ने सौम्यमूर्ति होकर इस भयभीत अर्जुन को धीरज दिया॥50॥
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ReplyDeleteश्री नाथ नारायण वासुदेव 🙏🏻
ReplyDeleteShri Hari
ReplyDeleteNarayan Narayan🙏🙏
ReplyDelete🌹🙏गोविंद🙏🌹
ReplyDeleteगोविंदाय नमः।
ReplyDelete🙏🙏💐💐शुभरात्रि 🕉️
ReplyDelete🙏जय श्री कृष्णा 🚩🚩🚩
🙏जय श्री कृष्णा 🚩🚩🚩
🙏जय श्री कृष्णा 🚩🚩🚩
👌👌बहुत सुन्दर, आप का बहुत बहुत धन्यवाद
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Jai shriram
ReplyDeleteJai shri vasudev
ReplyDeleteJai shri krishna
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
ReplyDeleteJai shree krishna
ReplyDeleteशुभ मंगल 🌷
ReplyDeleteजय मंगल 🌷
🕉️ श्री नवगुंजराय नमः 🪔🌺🐾🙏🚩🏹⚔️📙⚔️🔱🙌🐅
Jai shree krishna 🙏
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