श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय सात - ज्ञानविज्ञान योग ||
अथ सप्तमोऽध्यायः- ज्ञानविज्ञानयोगcj
अध्याय सात के अनुच्छेद 20 - 30
भावार्थ :
उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात पूजते हैं॥20॥
भावार्थ :
जो-जो सकाम भक्त जिस-जिस देवता के स्वरूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है, उस-उस भक्त की श्रद्धा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ॥21॥
भावार्थ :
वह पुरुष उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किए हुए उन इच्छित भोगों को निःसंदेह प्राप्त करता है॥22॥
भावार्थ :
परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं॥23॥
अध्याय सात के अनुच्छेद 24 -30 में भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा का वर्णन किया गया है।
भावार्थ :
बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन-इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्मकर व्यक्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं॥24॥
भावार्थ :
अपनी योगमाया से छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिए यह अज्ञानी जनसमुदाय मुझ जन्मरहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है॥25॥
भावार्थ :
हे अर्जुन! पूर्व में व्यतीत हुए और वर्तमान में स्थित तथा आगे होने वाले सब भूतों को मैं जानता हूँ, परन्तु मुझको कोई भी श्रद्धा-भक्तिरहित पुरुष नहीं जानता॥26॥
भावार्थ :
हे भरतवंशी अर्जुन! संसार में इच्छा और द्वेष से उत्पन्न सुख-दुःखादि द्वंद्वरूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञता को प्राप्त हो रहे हैं॥27॥
भावार्थ :
परन्तु निष्काम भाव से श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करने वाले जिन पुरुषों का पाप नष्ट हो गया है, वे राग-द्वेषजनित द्वन्द्व रूप मोह से मुक्त दृढ़निश्चयी भक्त मुझको सब प्रकार से भजते हैं॥28॥
भावार्थ :
जो मेरे शरण होकर जरा और मरण से छूटने के लिए यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को, सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं॥29॥
भावार्थ :
जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव सहित तथा अधियज्ञ सहित (सबका आत्मरूप) मुझे अन्तकाल में भी जानते हैं, वे युक्तचित्तवाले पुरुष मुझे जानते हैं अर्थात प्राप्त हो जाते हैं ॥30॥
जय श्री कृष्ण
ReplyDeleteॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🙏🌹
ReplyDeleteसादर प्रणाम. गीता ईश्वर की वाणी है. नमन
ReplyDeleteकर्म योग ज्ञान की प्राप्ति भगवद्गीता से ही सकती है।
ReplyDeleteगीता सार जो हुआ अच्छा हुआ जो होगा अच्छा होगा।
ReplyDelete👏👏👏जय श्री कृष्णा 🚩जय श्री कृष्णा 🚩जय श्री कृष्णा 🚩🚩🚩
ReplyDeleteजीवन मंत्र जीवन सार जीवन तंत्र
ReplyDelete🌹🙏गोविंद🙏🌹
ReplyDeleteप्रभु तो भाव के भूखे है । श्रद्धा और विस्वास है
तो फिर गोविंद तो हरदम मेरे पास हैं।
‼️श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा ‼️
ReplyDeleteJai shree krishna
ReplyDeleteJai Govind
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