तबीयत से उछालो यारों
कथाकार और ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार त्यागी (01 सितंबर 1931-30 दिसंबर 1975) को कौन नहीं जानता। अपने छोटे से जीवनकाल में इन्होंने हिंदी साहित्य में ऊँचा मुकाम हासिल किया। इनकी 1975 में प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह "साये में धूप" प्रकाशित हुई थी। इसकी ग़ज़लों को इतनी लोकप्रियता हासिल हुई कि उसके कई शेर कहावतों और मुहावरों के तौर पर लोगों द्वारा व्यवहृत होते हैं। प्रस्तुत है इनकी एक और कविता - तबीयत से उछालो यारों ....
"हर कोई आप को नहीं समझेगा,
यही जिंदगी हैं जनाब.."
तबीयत से उछालो यारों....
यह जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो,
अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो।
दर्दे दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा,
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो।
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे,
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो।
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे,
आज संदूक से वे ख़त तो निकालो यारो।
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की,
तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो।
- दुष्यन्त कुमार
"इस दुनिया में खुशी और मुस्कुराहट ही एकमात्र ऐसा खजाना है,
जिसे जितना बांटो वो और बढ़ता जाएगा.."
✔️✔️
ReplyDeleteक्या बात है 😊
ReplyDeleteये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा ...
_दुष्यंत कुमार
हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
ReplyDeleteइस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
अद्भुत कवि थे दुष्यंत कुमार।
रोचक कविता
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कार्य है 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteHappy sunday
ReplyDeleteNice poem...
ReplyDeleteबहुत ही रोचक कविता 😍
ReplyDelete"एक जंगल है तेरी आँखों में,मैं जहाँ राह भुल जाता हूँ,
ReplyDeleteतु किसी रेल सी गुजरती है और मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ"।
Dushyant ji ki prerak kavita
ReplyDeleteV nice
ReplyDeleteअपने छोटे से जीवन में ऊंचा मुकाम हासिल किया है दुष्यंत कुमार जी ने।हार्दिक श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteBahut khub ❤️
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