भगवान शिव ने क्यों लिया अर्धनारीश्वर अवतार
जैसा कि सभी जानते हैं देवा दी देव महादेव की अर्धनारीश्वर के रूप में भी आराधना की जाती है। उनका एक नाम "अर्धनारीश्वर" भी है। आज के इस पोस्ट में भगवान् महादेव के अर्धनारीश्वर रूप की चर्चा करते हैं।
भगवान् शिवजी की पूजा युगों से हो रही है, यानी जब से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है, लेकिन इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि शिवजी का एक और रूप है जो है अर्धनारीश्वर! दरअसल शिवजी ने यह रूप अपनी मर्जी से धारण किया था, शिवजी इस रूप के जरिये लोगों को संदेश देना चाहते थे कि स्त्री और पुरुष समान है, सज्जनों! आज हम जानने की कोशिश करते हैं, आखिर किस वजह से भगवान् शिवजी को यह रूप धारण करना पड़ा था।
अर्धनारीश्वर अवतार में हम देखते हैं कि भगवान् शंकरजी का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा शरीर पुरुष का है, यह अवतार महिला व पुरुष दोनों की समानता का संदेश देता है, समाज, परिवार तथा मानश जीवन में जितना महत्व पुरुष का है उतना ही स्त्री का भी है, एक दूसरे के बिना इनका जीवन अधूरा है, यह दोनों एक दूसरे को पूरक हैं।
शिवपुराण के अनुसार सृष्टि में प्रजा की वृद्धि न होने पर ब्रह्माजी के मन में कई सवाल उठने लगे, तब उन्होंने मैथुनी सृष्टि उत्पन्न करने का संकल्प किया, लेकिन तब तक शिवजी से नारियों का कुल उत्पन्न नहीं हुआ था, तब ब्रह्माजी ने शक्ति के साथ शिव को संतुष्ट करने के लिए तपस्या की. ब्रह्माजी की तपस्या से परमात्मा शिवजी संतुष्ट हो अर्धनारीश्वर का रूप धारण कर उनके समीप गये तथा अपने शरीर में स्थित देवी शक्ति के अंश को पृथक कर दिया।
उसके बाद ब्रह्माजी ने उनकी उपासना की, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शक्ति ने अपनी भृकुटि के मध्य से अपने ही समान कांति वाली एक अन्य शक्ति की सृष्टि की जिसने दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, दोस्तों, आपने कई बार ये सच सुना होगा कि भगवान की महिमा अपने भक्तो से ही है, भगवान स्वयं से अधिक उनके परम भक्तो का गुणगान करने से अत्यधिक प्रसन्न होते है।
ऐसे ही एक परम भक्त की कहानी आज हम आपको बताते है- जिनकी महिमा हालाँकि उतनी नही फैली जितनी की होनी चाहिए क्योंकि उनकी भक्ति में थोड़ी सी कमी रह गई थी जो बाद में उन्हें चुकानी भी पड़ी, “शीश गंग अर्धंग पार्वती सदा बिराजत कैलाशी नंदी भृंगी नृत्य करत है” शिवजी की स्तुति में आये इस भृंगी नाम को आप सब ने जरुर सुना होगा, पौराणिक कथाओं के अनुसार ये एक ऋषि थे जो महादेव के परम भक्त थे, किन्तु इनकी भक्ति कुछ ज्यादा ही कट्टर किस्म की थी।
कट्टर से तात्पर्य है कि ये भगवान् शिवजी की तो आराधना करते थे, किन्तु बाकि भक्तो की भांति माता पार्वती को नहीं पूजते थे, हालांकि उनकी भक्ति पवित्र और अदम्य थी, लेकिन वो माता पार्वती जी को हमेशा ही शिवजी से अलग समझते थे, या फिर ऐसा भी कह सकते है कि वो माता को कुछ समझते ही नही थे, वैसे ये कोई उनका घमंड नही अपितु शिवजी और केवल शिवजी में आसक्ति थी जिसमे उन्हें शिवजी के आलावा कुछ और नजर ही नही आता था।
एक बार तो ऐसा हुआ की वो कैलाश पर भगवान् शिवजी की परिक्रमा करने गये लेकिन वो पार्वती की परिक्रमा नही करना चाहते थे, ऋषि के इस कृत्य पर माता पार्वतीजी ने ऐतराज प्रकट किया और कहा कि हम दो जिस्म एक जान है, तुम ऐसा नही कर सकते, पर शिव भक्ति की कट्टरता देखिये भृंगी ऋषि ने पार्वतीजी को अनसुना कर दिया और भगवान् शिवजी की परिक्रमा लगाने बढे, किन्तु ऐसा देखकर माता पार्वती शिव से सट कर बैठ गई।
इस किस्से में और नया मोड़ तब आता है जब भृंगी ने सर्प का रूप धारण किया और दोनों के बीच से होते हुए शिवजी की परिक्रमा देनी चाही, तब भगवान् शिवजी ने माता पार्वती का साथ दिया और संसार में महादेव के अर्धनारीश्वर रूप का जन्म हुआ, अब भृंगी ऋषि क्या करते किन्तु गुस्से में आकर उन्होंने चूहे का रूप धारण किया और शिवजी और पार्वतीजी को बीच से कुतरने लगे।
ऋषि के इस कृत्य पर आदिशक्ति को क्रोध आया और उन्होंने भृंगी ऋषि को श्राप दिया कि जो शरीर तुम्हे अपनी माँ से मिला है, वो तत्काल प्रभाव से तुम्हारी देह छोड़ देगा, हमारी तंत्र साधना कहती है कि मनुष्य को अपने शरीर में हड्डिया और मांसपेशिया पिता की देन होती है, जबकि खून और मांस माता की देन होते है श्राप के तुरंत प्रभाव से भृंगी ऋषि के शरीर से खून और मांस गिर गया।
भृंगी निढाल होकर जमीन पर गिर पड़े और वो खड़े भी होने की भी क्षमता खो चुके थे, तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने माँ पार्वतीजी से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी, हालाँकि तब पार्वतीजी ने द्रवित होकर श्राप के तुरंत प्रभाव से भृंगी ऋषि के शरीर से खून और मांस गिर गया।
भृंगी निढाल होकर जमीन पर गिर पड़े और वो खड़े भी होने की भी क्षमता खो चुके थे, तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने माँ पार्वतीजी से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी, हालाँकि तब पार्वतीजी ने द्रवित होकर अपना श्राप वापस लेना चाहा,किन्तु अपराध बोध से भृंगी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।
ऋषि को खड़ा रहने के लिए सहारे स्वरुप एक और (तीसरा) पैर प्रदान किया गया जिसके सहारे वो चल और खड़े हो सके,शास्त्र कहते हैं कि भक्तभृंगी के कारण ऐसे हुआ था महादेवजी के अर्धनारीश्वर रूप का उदय ,अर्धनारीश्वर स्वरूप का जो मनुष्य भक्तिपूर्वक ध्यान करता है, वह संसार में सन्मानित होता है, दीर्घायु होता है, अनंत काल तक वह सौभाग्य प्राप्त होता है, एवम् समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती है।
हर हर महादेव 🚩🚩
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteHar Har Mahadev
ReplyDeleteॐ नमः शिवाय
ReplyDeleteजय हो अर्धनारीश्वर महादेव
ReplyDeleteऔम नमो नारायणाय नमः
ReplyDeleteसुंदर लेखन।
ReplyDeleteHar har mahadev
ReplyDeleteजय हो भगवान शिव मां पार्वती जी की
ReplyDeleteॐ नमः शिवाय
ReplyDeleteअर्ध नारीश्वर भोले नाथ की जय।
ReplyDeletejai shiv shankar
ReplyDeleteJai shankar bhagwan
ReplyDeleteThank you.
ReplyDeleteहर हर महादेव 🙏 🕉️
ReplyDeleteहर हर महादेव
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteHar har mahadev 🙏🏻
ReplyDeleteJai Shiv Shankar 🙏
ReplyDeleteॐ नमः शिवाय
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