श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय तीन ~ कर्मयोग ||
अध्याय तीन के अनुच्छेद 17- 24 में ज्ञानवान और भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता का वर्णन
भावार्थ : परन्तु जो मनुष्य आत्मा में ही रमण करने वाला और आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही सन्तुष्ट हो, उसके लिए कोई कर्तव्य नहीं है॥17॥
संजय उवाच:
भावार्थ :
उस महापुरुष का इस विश्व में न तो कर्म करने से कोई प्रयोजन रहता है और न कर्मों के न करने से ही कोई प्रयोजन रहता है तथा सम्पूर्ण प्राणियों में भी इसका किञ्चिन्मात्र भी स्वार्थ का संबंध नहीं रहता॥18॥
भावार्थ :
इसलिए तू निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्यकर्म को भलीभाँति करता रह क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है॥19॥
भावार्थ :
जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्ति रहित कर्मद्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए थे, इसलिए तथा लोकसंग्रह को देखते हुए भी तू कर्म करने के ही योग्य है अर्थात तुझे कर्म करना ही उचित है॥20॥
भावार्थ :
श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य-समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है (यहाँ क्रिया में एकवचन है, परन्तु 'लोक' शब्द समुदायवाचक होने से भाषा में बहुवचन की क्रिया लिखी गई है।)॥21॥
भावार्थ :
हे अर्जुन! मुझे इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्म में ही बरतता हूँ॥22॥
भावार्थ :
क्योंकि हे पार्थ! यदि कदाचित् मैं सावधान होकर कर्मों में न बरतूँ तो बड़ी हानि हो जाए क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं॥23॥
भावार्थ :
इसलिए यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जाएँ और मैं संकरता का करने वाला होऊँ तथा इस समस्त प्रजा को नष्ट करने वाला बनूँ॥24॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🙏🌹
ReplyDeleteश्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे,हे नाथ नारायण वासुदेव
ReplyDeleteJai shri krishna
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा
ReplyDeleteजय जय श्री कृष्णा 🙏🏻
ReplyDeletejai shree krishna
ReplyDeleteकर्म प्रधान विश्व करी राखा ।
ReplyDeleteजो जस करहि तस फल चाखा।।
कर्म तो करना ही है भगवान श्री
कृष्ण की वाणी है कि बस सावधान
होकर होस हवास में कर्म करें।
ये भी बात सत्य है कि बड़े का अनुसरण
छोटे करते है ये बात परिवार समाज
तथा सरकार पर भी लागू होती है।
तभी तो कहा जाता है कि
जैसा राजा वैसा प्रजा।
गीता के पवित्र ज्ञान को हमलोगों
के बीच प्रसारित करने के लिये
आप को हृदय से आभार🙏
🌹🙏हे गोविंद🙏🌹
कर्त्तव्य परायणता ही जीवन है।
ReplyDeleteJai ho
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