श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय दो ~ सांख्ययोग ||
अथ द्वितीयोऽध्यायः ~ सांख्ययोग
अध्याय दो के अनुच्छेद 11 - 30
अध्याय दो के अनुच्छेद 11-30 में गीताशास्त्र का अवतरण की व्याख्या है।
भावार्थ :
श्री भगवान बोले, हे अर्जुन! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पण्डितों के से वचनों को कहता है, परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं, उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए हैं उनके लिए भी पण्डितजन शोक नहीं करते॥11॥
भावार्थ :
न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे॥12॥
भावार्थ :
जैसे जीवात्मा की इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है, उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता।13॥
भावार्थ :
हे कुंतीपुत्र! सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिए हे भारत! उनको तू सहन कर॥14॥
भावार्थ :
क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ठ! दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है॥15॥
भावार्थ :
असत् वस्तु की तो सत्ता नहीं है और सत् का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनों का ही तत्व तत्वज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है॥16॥
भावार्थ :
नाशरहित तो तू उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत्- दृश्यवर्ग व्याप्त है। इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है॥17॥
भावार्थ :
इस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये सब शरीर नाशवान कहे गए हैं, इसलिए हे भरतवंशी अर्जुन! तू युद्ध कर॥18॥
भावार्थ :
जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी द्वारा मारा जाता है॥19॥
भावार्थ :
यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता॥20॥
भावार्थ :
हे पृथापुत्र अर्जुन! जो पुरुष इस आत्मा को नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है?॥21॥
भावार्थ :
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है॥22॥
भावार्थ :
इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता॥23॥
भावार्थ :
क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसंदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है॥24॥
भावार्थ :
यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है। इससे हे अर्जुन! इस आत्मा को उपर्युक्त प्रकार से जानकर तू शोक करने के योग्य नहीं है अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है॥25॥
भावार्थ :
किन्तु यदि तू इस आत्मा को सदा जन्मने वाला तथा सदा मरने वाला मानता हो, तो भी हे महाबाहो! तू इस प्रकार शोक करने योग्य नहीं है॥26॥
भावार्थ :
क्योंकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है। इससे भी इस बिना उपाय वाले विषय में तू शोक करने योग्य नहीं है॥27॥
भावार्थ :
हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट हैं, फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है?॥28॥
भावार्थ :
कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्व का आश्चर्य की भाँति वर्णन करता है तथा दूसरा कोई अधिकारी पुरुष ही इसे आश्चर्य की भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता॥29॥
भावार्थ :
हे अर्जुन! यह आत्मा सबके शरीर में सदा ही अवध्य (जिसका वध नहीं किया जा सके) है। इस कारण सम्पूर्ण प्राणियों के लिए तू शोक करने योग्य नहीं है॥30॥
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श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा 🙏
ReplyDeleteॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🙏🌹
ReplyDeleteUmda, hum jaise bhi blog ke madhyam se bhagwat geeta ke paath padh le rahe...
ReplyDeleteHardik abhar aapka
Jai shree krishna 🙏
अपरंपार कृष्ण लीला का खूबसूरत वर्णन 👌🏻
ReplyDeleteभगवान कहते हैं रिश्तों का मोह ना करो, जबकि जन्म के साथ ही रिश्ते जुड़ जाते
ReplyDeleteभगवान कहते हैं दुख ना करो, आत्मा एक से दूसरे शरीर में जाती है, मरती नहीं, तो आपने ह्दय बनाया ही क्यों बनाया..ना बनाए होते.. ना कोई दुखी होता ना कोई रोता अपना जीवन जीता और फिर आत्मा दूसरे शरीर में चली जाती.. सब कुछ तो आप ही ने दिया है भगवान
जय श्रीकृष्ण
ReplyDeleteजानकारी का भंडार है उनके पास
ReplyDeleteये है गीता का ज्ञान
ReplyDeleteकर्म करो फल की इच्छा मत करो।
ReplyDelete“Like streams and plants, souls also need rain, but rain of a different kind: hope, faith, the meaning of existence. If this is not the case, everything in the soul dies, although the body continues to function. "
ReplyDeletePaulo Coelho
जय श्री कृष्ण
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
ReplyDelete‼️ ~||श्री कृष्ण गोविँद हरे मुरारी........,
ReplyDelete..........हे नाथ नारायण वासुदेवा ||~ ‼️
🌷🌷🌷 Good morning 🌷🌷🌷
Nice
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