भारतीय राजनीति और धर्म
भारत को हमारे संविधान में धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। अक्सर कहा जाता है, कि भारत में धर्मनिरपेक्षवाद का भविष्य अंधकार में है। यह एक विवादास्पद विषय है, किंतु पक्ष में जो तर्क दिया जाता है, कि भारत में धर्मनिरपेक्ष समाज के निर्माण में धर्म सबसे बड़ी बाधा है, तो यह पूर्णतः सत्य भले ही न हो,परन्तु थोड़ा सत्य तो है ही।
हमारे देश भारत में हर व्यक्ति कहीं ना कहीं (प्रत्यक्ष या परोक्ष) इस राजनीतिक कड़ी से जुड़ा हुआ है। लोग कहते हैं कि राजनीति बहुत ही गंदी चीज होती है, लेकिन मौका आने पर हर व्यक्ति राजनीति से जुड़ना चाहता है। किसी ने खूब कहा है कि राजनीतिक वह गंधैली तकिया है या चादर है, जिसमें से बदबू तो बहुत आती है, लेकिन मौका आने पर हर कोई उस चादर को ओढ़ना चाहता है। आज के समय में राजनीति को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीति का स्तर काफी निम्न दर्जे का हो गया है। आज की राजनीति भी जाति और धर्म प्रधान हो गयी है। राजनीति में धर्म होना चाहिए परंतु धर्म की राजनीति कभी नहीं होनी चाहिए। आए दिन देखा जाता है कि सांप्रदायिक दंगे फैल रहे हैं। दोनों गुट आपस में लड़ रहे हैं। जान माल का नुकसान हो रहा है। सरकारी संपत्ति का नुकसान होता है कुछ ऊपर बैठे राजनेता अपने निजी हित के लिए अपने आंखों को बंद किए हुए बैठे रहते हैं, जो समय रहते उचित कार्यवाही करके रोका जा सकता है उसे रोकने का प्रयास नहीं करते हैं।
वैसे तो धर्म और राजनीति को हमेशा एक दूसरे से अलग माना जाता रहा हैं। मगर आज के समय में ये एक दूसरे को इस प्रकार प्रभावित करते हैं, जिससे एक दूसरे का पूरक कहा जाना, गलत नहीं होगा।
राजनितिक संस्थाएं लोगों में विश्वास तथा उनका प्रतिनिधित्व दर्शाने के लिए धर्म तथा धर्म से जुडी संस्थाओं का सहारा लेती हैं। दूसरी तरफ आज हर धर्म की अपनी संस्थाएं जो प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष तौर पर राजनितिक दलों को अपना समर्थन देती हैं, तथा लोगो से अपील भी करती हैं।
यही वजह हैं कि भारत जैसे देश में लोग धर्म प्रिय हैं। इसी कारण हर तरह के चुनावों में धर्म के नाम पर वोट भी मांगे जाते हैं। वहीं अमेरिका जैसे पश्चिम देशों की राजनीति में धर्म का राजनीति पर ना के बराबर प्रभाव पड़ता है।
भारत हमेशा से सहिष्णुता का पुजारी रहा हैं, कई विदेशी जातियों ने यहाँ आक्रमण किया तथा यही पर रच बस गये। जब भारत का संविधान बना तो इसे एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में मान्यता दी गईं। मगर बहुत से सता स्वार्थी धूर्त राजनेता, जो अंग्रेजों के संभवतः चापलूसी करने वालों की सन्तान ही रहे होंगे, जो इस तथ्य से भली भांति वाकिफ थे, कि भारत में राजनीति को धर्म से अलग नहीं रखा जा सकता।
हमारा धर्म चुनना हमारी स्वतंत्रता हैं, इसका मतलब यह नहीं कि हम हर बात को धर्म के नजरिये से ही देखें। अब वक्त आ चूका हैं धर्म व राजनीति में साठ गाठ करने वालों की दुकाने बंद होनी ही चाहिए। क्योंकि धर्म व्यक्ति की आस्था, परम्परा व इतिहास हैं, इसे व्यक्ति तक ही रहने दिया जाए, न कि विवाद के साथ राजनेताओं के पक्ष-विपक्ष का मुद्दा।
यह कहा जा सकता है, कि हम भारतीय हैं। हमें इस बात पर गर्व है क्योंकि यहां विभिन्न धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं। इसीलिए भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है, जिससे कि धर्म को राजनीति से हटाया जाए किंतु धर्म का प्रभाव व्यवहारिक रूप से भारतीय जनता के मन मस्तिष्क से नहीं मिट पाया है।
आज भारतीय राजनीति का स्तर इतना निम्न कोटि का हो गया है कि उसकी चर्चा करने मे भी शर्मिंदा होना पङता है देश के अंदर तमाम तरह की समस्या है परंतु सभी को नजर अंदाज कर के हमको धर्म और जाति में बाटा जा रहा है. पहले अंग्रेजों द्वारा फूट डालो राज करो.की नीति का पालन.किया जा ता था और अब हमारे देश के राज नेताओं द्वारा यही किया जा रहा है।
ReplyDeleteहमारे देश में राजनीति का स्तर बहुत गिरा हुआ है।सत्ता पाने के लिए कुछ भी किया जा सकता है।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा अध्याय (chapter) डाला ,
ReplyDeleteराजनीति को धर्म के साथ न जोड़ें।
ReplyDeleteशानदार विश्लेषण 👌👌
ReplyDeleteसमसामयिक विषय, इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे देश में राजनीति का स्तर बहुत गिर गया है
ReplyDeleteराजनीति मे शुचिता बहुत आवश्यक है और दुर्भाग्य से भारतीय राजनीति में इसका नितांत अभाव है। आपने एक बढ़िया विषय चुना है।
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ReplyDeleteभाई साहब इस लेख मे न ही किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन किया गया है और न ही किसी राजनीतिक पार्टी का विरोध ही किया गया है, आप के द्वारा जितने भी प्रश्न किए गये है उन सभी प्रश्नो का उत्तर पाने के लिए किसी खुले मंच पर जाने की आवश्यकता है
Deleteनरेश जी, इतने सारे सवाल। मुझे कटघरे में न खड़ा कीजिए। मुझे पता है कि आप बीजेपी के कट्टर वाले समर्थक हैं, पर यहां किसी भी व्यक्ति विशेष या पार्टी विशेष की बात नहीं लिखी गई है। यहां तो राजनीति में धर्म निरपेक्षता की बात की गई है। इस बात से आप भी इंकार नहीं कर सकते कि भारतीय राजनीति में धर्म और जाति की राजनीति होती है।
Deleteमुझे इस बात की खुशी है कि इस मंच पर आपने अपनी बात रखी, अपना विरोध प्रकट किया।अभी तक सिर्फ आपकी प्रशंसा ही मिली थी। पर मजा तो तब भी है, जब विपक्ष में कोई खड़ा हो। माफी चाहती हूं प्रतिक्रिया में विलम्ब के लिए, थोड़ी व्यस्तता थी। पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका अभिनन्दन। उम्मीद है आप मेरे पोस्ट पर हमेशा बने रहेंगे..😊
शुभ रात्रि
👍👍
DeleteNice
ReplyDeleteVery True Rupaji
ReplyDeleteसुंदर लेखन।
ReplyDeleteसुंदर लेखन।
ReplyDeleteप्रत्येक व्यक्ति के अपने अलग-अलग विचार हैं जो जिन विचारों का समर्थन करता है वह उन्हीं बात से आगे बढ़ते हैं लेकिन संविधान के दायरे में देश के सभी नागरिक है जो प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होती हैं ।
ReplyDelete💯🙋♂️💐🙏
जी बिल्कुल🙏🙏💐💐
DeleteNice
ReplyDeleteNice
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