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तेनालीराम: कुछ नहीं || Tenaliram: Kuch Nahi

कुछ नहीं

तेनालीराम की चतुर बुद्धि तथा राजा कृष्ण देव राय से उनका सानिध्य होने के कारण बहुत से लोग उनसे जलते थे। तेनालीराम से ईर्ष्या करने वालों में से एक रघु नाम का व्यक्ति था, जो फल का व्यापारी था। उसने एक बार तेनालीराम को षड्यंत्र में फंसाने की युक्ति बनाई। उसने तेनालीराम को फल खरीदने के लिए बुलाया। जब तेनालीराम ने फलों का मूल्य पूछा तो रघु मुस्कुराते हुए बोला - "आपके लिए तो इनका दाम ‘कुछ नहीं’ है।"

तेनालीराम: कुछ नहीं  || Tenaliram: Kuch Nahi

इसके बाद तेनालीराम ने कुछ फल खाए और बाकी थैले में भर आगे बढ़ने लगे। तभी रघु ने उन्हें रोका और कहा कि मेरे फल के दाम तो देते जाइये तेनाली जी। 

तेनालीराम रघु की बात से हैरान होते हुए बोले - "अभी तो तुमने कहा की फल का दाम ‘कुछ नहीं’ है। तो अब क्यों अपनी बात से पलट रहे हो।" 

तब रघु बोला - "मेरे फल मुफ्त में नहीं है। मैंने साफ-साफ बताया था की मेरे फलों का दाम ‘कुछ नहीं’ है। अब सीधी तरह मुझे ‘कुछ नहीं’ दे दो, अन्यथा मैं राजा कृष्ण देव राय के पास फरियाद ले कर जाऊंगा और तुम्हें कठोर दंड दिलाऊँगा।"

तेनालीराम बड़े सोंच में पड़ गए और सोचते-सोचते वहाँ से अपने घर चले गए।

उनके मन में एक ही सवाल चल रहा था कि इस पागल फल वाले के अजीब षड्यंत्र का तोड़ कैसे खोजूँ? इसे ‘कुछ नहीं’ कहाँ से लाकर दूँ?

अगले ही दिन फल वाला राजा कृष्णदेव राय के दरबार में आ गया और फरियाद करने लगा। वह बोला की तेनालीराम ने मेरे फलों का दाम ‘कुछ नहीं’ मुझे नहीं दिया है।

राजा कृष्ण देव राय ने तुरंत तेनालीराम को हाज़िर होने को कहा। तेनालीराम के आते ही उनसे सफाई मांगी गई। तेनालीराम पहले से ही इसके लिए तैयार थे। उन्होंने एक रत्न-जड़ित संदूक लाकर रघु फल वाले के सामने रख दिया और कहा ये लो तुम्हारे फलों का दाम।

संदूक को देखते ही रघु की आँखें चौंधिया गयीं, उसने अनुमान लगाया कि इस संदूक में बहुमूल्य हीरे-जवाहरात होंगे। कुछ ही पलों में वह रातों-रात अमीर बनने के ख्वाब देखने लगा। और इन्हीं ख़यालों में खोये-खोये उसने संदूक खोला।

संदूक खोलते ही मानो उसका ख्वाब टूट गया, वह जोर से चिल्लाया, "ये क्या? इसमें तो ‘कुछ नहीं’ है।"

तब तेनालीराम बोले- "बिलकुल सही, अब तुम इसमें से अपना ‘कुछ नहीं’ निकाल लो और यहाँ से चलते बनो।"

वहां मौजूद महाराज और सभी दरबारी ठहाका लगा कर हंसने लगे। और रघु को अपना सा मुंह लेकर वापस जाना पड़ा। एक बार फिर तेनालीराम ने अपने बुद्धि चातुर्य से महाराज का मन जीत लिया।

English Translate

Kuch Nahi

Many people used to envy him because of Tenaliram's clever intellect and his association with King Krishna Deva Raya. One of the envious of Tenalirama was a man named Raghu, who was a merchant of fruits. He once hatched a plan to implicate Tenaliram in a conspiracy. He called Tenaliram to buy fruits. When Tenaliram asked the price of fruits, Raghu smiled and said - "For you they cost 'nothing'."

तेनालीराम: कुछ नहीं  || Tenaliram: Kuch Nahi

After this Tenaliram ate some fruits and started moving ahead in the rest of the bag. Then Raghu stopped them and said that Tenali ji should give the price of my fruits.

Tenaliram was surprised by Raghu's words and said - "Just now you said that the price of the fruit is 'nothing'. So why are you going back on your words now."

Then Raghu said - "My fruits are not for free. I had clearly told that the price of my fruits is 'nothing'. Now give me 'nothing' directly, otherwise I should approach King Krishna Deva Raya. I will do it and I will give you severe punishment."

Tenaliram fell into deep thought and went to his home from there thinking.

There was only one question going on in his mind that how to find the break of this strange conspiracy of this crazy fruit guy? From where should I get this 'nothing'?

The very next day the king of fruits came to the court of Krishna Deva Raya and started complaining. He said that Tenaliram has not given me 'nothing' for my fruits.

King Krishna Deva Raya immediately asked Tenaliram to attend. As soon as Tenaliram came, he was asked for clarification. Tenaliram was already prepared for it. He brought a gem-studded box and placed it in front of the Raghu fruit person and said, take the price of your fruits.

Raghu's eyes were dazzled on seeing the box, he guessed that this box would contain valuable diamonds and jewels. Within a few moments, he started dreaming of becoming rich overnight. And lost in these thoughts he opened the box.

As he opened the box, he cried out loudly, "What is this? There is nothing in it."

Then Tenaliram said - "All right, now take your 'nothing' out of it and keep walking from here."

The Maharaj and all the courtiers present there started laughing. And Raghu had to go back with his own mouth. Once again Tenaliram won the mind of Maharaj with his intellect.

14 comments:

  1. अच्छी कहानी

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  2. अति आनंदमय ।
    तेनालीराम की कथाएं सुनकर मन प्रसन्न हो जाता हैं ।
    तेनालीराम एक बुद्धिमान एवं एक महान व्यक्ति थे ।

    💯👌🏼🙋‍♂️👍🌹🙏

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  3. ये लीजिए निकाला....निकल नहीं रहा..फिर कोशिश करती हूं...ये लीजिए निकल गया "कुछ नही"😄😄😄

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  4. 👌👌
    Very nice

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  5. तेनालीराम की चतुराई के क्या कहने

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  6. सुन्दर

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  7. Pandit Tenali rama the great personality of India one our pride and Treasure of India and for sharing story on this blog, I appreciate your efforts

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