भारत की न्याय व्यवस्था
किसी भी देश की न्याय व्यवस्था वहां के नागरिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। न्याय व्यवस्था जितनी सरल और सहज होती है, उतना ही लाभ उस देश के नागरिकों को मिलता है।
भारत में न्यायिक प्रणाली में न तो उचित प्रक्रियाओं को अपनाया गया था और न ही प्राचीन भारत से लेकर मुगल भारत तक कानून अदालत का उचित संगठन था। हिंदू में मुकदमेबाजी की प्रक्रिया या तो जाति के बुजुर्गों या ग्राम पंचायतों या जमींदारों द्वारा की जाती थी, जबकि मुसलमानों में मुस्लिम काजी मुकदमों की निगरानी करते थे। यदि कोई विसंगति होती तो, राजा और बादशाह न्याय के पक्षधर माने जाते थे।
न्यायालयों की संरचना भी समय-समय पर और राज्य से राज्य तक भिन्न होती थी। लेकिन विभिन्न राज्यों के न्यायिक प्रशासन की एक सामान्य विशेषता यह थी कि जूरी की व्यवस्था अस्तित्व में थी। यहां तक कि राजा और मुख्य न्यायाधीश को न्यायाधीशों के एक पैनल द्वारा सहायता प्रदान की गई। आम तौर पर न्यायाधीशों की संख्या तीन, पाँच या सात थी।
भारतीय न्यायिक प्रणाली अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान बनाई थी। इसको आम कानून व्यवस्था के रुप में जाना जाता है, जिसमें न्यायाधीश अपने फैसलों, आदेशों और निर्णयों से कानून का विकास करते हैं। देश में कई स्तर की विभिन्न तरह की अदालतें न्यायपालिका बनाती हैं। भारत की शीर्ष अदालत नई दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट है और उसके नीचे विभिन्न राज्यों में हाई कोर्ट हैं। हाई कोर्ट के नीचे जिला अदालतें और उसकी अधीनस्थ अदालतें हैं, जिन्हें निचली अदालत कहा जाता है। इसके अलावा ट्रिब्यूनल, फास्ट ट्रेक कोर्ट , लोक अदालत आदि न्यायपालिका के अंग के रुप में कार्य करते हैं। कानून को बनाए रखने और चलाने में न्यायपालिका की बहुत अहम भूमिका है। यह सिर्फ न्याय नहीं करती बल्कि नागरिकों के हितों की रक्षा भी करती है। न्यायपालिका कानूनों और अधिनियमों की व्याख्या कर संविधान के रक्षक के तौर पर का…
न्यायपालिका में भ्रष्टाचार:-
सरकार की किसी भी अन्य संस्था की तरह भारतीय न्यायिक प्रणाली भी समान रुप से भ्रष्ट है। हाल ही में हुए विभिन्न घोटालों जैसे सीडब्ल्यूजी घोटाला, 2जी घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला और बलात्कार सहित समाज में हो रहे अन्य अत्याचारों ने नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों और आम जनता सभी के आचरण पर जोर डाला है और भारतीय न्यायपालिका के काम के तरीकों में भी कमियां दिखाई हैं। यहां जवाबदेही की कोई व्यवस्था नहीं है। मीडिया भी अवमानना के डर से साफ तस्वीर पेश नहीं करता है। रिश्वत लेने वाले किसी जज के खिलाफ बिना मुख्य न्यायाधीश की इजाजत के एफआईआर दर्ज करने का कोई प्रावधान नहीं है।
पारदर्शिता की कमी
भारतीय न्यायिक प्रणाली की एक और समस्या उसमें पारदर्शिता की कमी है। यह देखा गया है कि सूचना के अधिकार को पूरी तरह से कानून प्रणाली से बाहर रखा गया है। इसलिए न्यायपालिका के कामकाज में महत्वपूर्ण मुद्दों, जैसे न्याय और गुणवत्ता को ठीक से नहीं जाना जाता है।
विचाराधीन कैदियों की मुश्किलें: भारतीय जेलों में बंद कैदियों में से ज्यादातर विचाराधीन हैं, जो कि उनके मामलों के फैसले आने तक जेल में ही बंद रहते हैं। कुछ मामलों में तो ये कैदी अपने उपर दायर मामलों की सजा से ज्यादा का समय सिर्फ सुनवाई के इंतजार में ही जेल में निकाल देते हैं। इसके अलावा अदालत में खुद के बचाव का खर्च और दर्द वास्तविक सजा से भी ज्यादा होता है। वहीं दूसरी ओर अमीर लोग पुलिस को अपनी ओर कर लेते हैं, जिससे पुलिस अदालत में लंबित मामले के दौरान गरीब व्यक्ति को परेशान या चुप कर सकती है।
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Judicial system of India
The judicial system of any country is very important for its citizens. The simpler and simpler the judicial system, the more benefits the citizens of that country get.
The judicial system in India neither followed proper procedures nor proper organization of the court of law from ancient India to Mughal India. In Hindus the process of litigation was carried out either by caste elders or by village panchayats or zamindars, while among Muslims the Muslim Qazi supervised the cases. If there was any discrepancy, the king and the emperor were considered to be the advocates of justice.
The composition of the courts also varied from time to time and from state to state. But a common feature of the judicial administration of different states was the existence of a system of jury. Even the king and the chief justice were assisted by a panel of judges. Usually the number of judges was three, five or seven.
The Indian judicial system was created by the British during the colonial rule. This is known as the common law system, in which the judges develop the law by their decisions, orders and judgments. Various levels of courts make up the judiciary in the country. The top court of India is the Supreme Court in New Delhi and below it are the High Courts in various states. Below the High Court are the district courts and its subordinate courts, which are called lower courts. Apart from this, Tribunals, Fast Track Courts, Lok Adalats etc. work as part of the judiciary. The judiciary has a very important role in maintaining and running the law. It not only does justice but also protects the interests of citizens. The judiciary acts as the protector of the constitution by interpreting laws and enactments.
Corruption in Judiciary:-
The Indian judicial system, like any other institution of government, is equally corrupt. Various recent scams like CWG scam, 2G scam, Adarsh society scam and other atrocities taking place in the society including rape have put emphasis on the conduct of politicians and dignitaries and the general public and also deficiencies in the working of the Indian judiciary. are shown. There is no system of accountability here. Media also does not paint a clear picture for fear of contempt. There is no provision for registering an FIR against a judge taking bribe without the permission of the Chief Justice.
lack of transparency
Another problem of the Indian judicial system is its lack of transparency. It has been observed that the Right to Information has been completely kept out of the legal system. Therefore the important issues in the functioning of the judiciary, such as justice and quality, are not properly known.
Difficulties of undertrials: Most of the prisoners in Indian prisons are undertrials, who remain in jail till their cases are decided. In some cases, these prisoners spend more time in jail just waiting for the hearing of the cases filed against them. Moreover, the cost and pain of defending oneself in court is more than the actual punishment. On the other hand rich people turn the police on their side, due to which the police can harass or silence the poor person during the case pending in the court.
भारतीय न्याय व्यवस्था पर विचारोत्तेजक लेख
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबिना अच्छी न्याय व्यवस्था के लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं रह जाता है यह एक ऐसा विषय है जिस पर बहुत ही कम लोग बात करते हैं।आप ने इतने गमभीर विशेष पर लिखा इसके लिए आपको धन्यवाद
ReplyDeleteहमारी न्याय पालिका में सुधार की जरूरत है।
ReplyDeleteहमारी न्याय पालिका में सुधार की जरूरत है।
ReplyDeleteहमारी न्याय पालिका में सुधार की जरूरत है।
ReplyDeleteभारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आज माता - पिता के लिए अपने बेटे की शादी करना शायद गुनाह हो गया है . समाज में ऐसी धारणा बनी है कि सिर्फ स्त्री ही प्रताड़ित होती है लेकिन आज हकीकत उलट है . आज पूरे भारतवर्ष में कुछ स्त्रियां निर्दोष पुरुषों को झूठे केस में फंसाकर उनका शोषण कर रही हैं . ऐसी स्त्रियां मासूम परिवारों से लाखों रुपए ऐंठने के लिए दहेज उत्पीड़न की धारा 498A , CRPC - 125 ( भरण - पोषण ) , सेक्शन 12 ( घरेलू हिंसा ) का दुरुपयोग धड़ल्ले से कर रही हैं . कुछ परिवारों के लिए तो यही कमाई का साधन बन गया है . लड़की वाले इन कानूनों का दुरुपयोग कर लड़के वालों से खुलेआम बेखौफ एक तरह से ' फिरोती ' मांग रहे हैं . उन्हें सरेआम समाज में बदनाम किया जाता है . खास बात ये है कि पुलिस प्रशासन लड़की वालों की ही सुनता है चाहें लड़के वाला कितने भी सबूत दिखा दे . हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि एक झूठा इल्जाम लड़के और उसके परिवार की जिंदगी किस तरह बर्बाद कर देता है . न्याय की आस में लड़का कोर्ट जाता है , तो वहां भी उसे डराया धमकाया जाता है , यहां तक की कुछ मामलों में लड़के व उसके माता - पिता को कोर्ट परिसर में सरेआम पीटा भी गया है . यूं तो भारत लोकतांत्रिक देश है लेकिन सच ये है कि भारत में पुरुषों के लिए कोई आयोग नहीं , कोई मदद नहीं , कोई कानून पुरुष हित में नहीं . लड़के के पास अपनी बेगुनाही के तमाम सबूत होते हैं , लेकिन प्रशासन उन सबूतों को देखकर भी जानबूझकर अनदेखा कर देता है . पुलिस निर्दोष लड़के वालों के खिलाफ ही चार्जशीट फाइल करती है . झूठे केस से रिश्तेदारों के नाम निकालने के लिए लाखों रुपये की रिश्वत भी मांगी जाती है . शायद यही वजह है कि आर्थिक , मानसिक और सामाजिक रुप से प्रताड़ित होकर हर साल करीब 65,000 विवाहित पुरुष आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं . कुछ जो हिम्मत रखते हैं उनको झूठे केस को झूठा साबित करने में 10-20 साल निकल जाते हैं . प्रधानमंत्री जी , आपसे मेरा व लाखों निर्दोष परिवारों की ओर से विनम्र निवेदन है कि इस लूट / अवैध धन उगाही वाले दहेज उत्पीड़न कानूनों में जल्द से जल्द संशोधन कर एक नई पहल की जाए . साथ ही पुलिस स्टेशनों को निर्देश दिए जाएं कि सबूतों के आधार पर उन शातिर स्त्रियों और उसके साथियों के खिलाफ तुरंत सख्त कार्रवाई करें , जो झूठे केस कर हमें प्रताड़ित कर रहे हैं और लाखों रुपये की ' फिरोती ' मांग रहे हैं . ताकि इन लालची व अपराधी किस्म की स्त्रियों पर शिकंजा कसा जा सके और मासूम परिवार बर्बाद होने से बच जाएं . प्रार्थी- झूठे केस में फंसाकर ' फिरोती ' मांगने वाले ' गैंग ' से पीड़ित परिवार
ReplyDeleteआपकी बात से मैं सहमत हूं। ये कानून सिर्फ स्त्रियों के लिए नहीं होने चाहिए, पुरुषों के लिए भी होने चाहिए। कुछ लोग इसी का सहारा लेकर इसको कमाई का माध्यम बना लिए हैं।
Deleteराजनीति और न्याय व्यवस्था दोनों है तो अलग अलग लेकिन कहीं न कहीं राजनीति का प्रभाव न्याय व्यवस्था पर भी पङता हैं, अपराध अधिक होने का एक कारण जनसंख्या भी है, रोजगार भी है और शिक्षा का भी इसमें बहुत बङा योगदान है
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपन।
ReplyDeleteइससे बचने के लिए अब सरकार को एक पुरुष आयोग का गठन करना चाहिए जिससे पुरुष भी अपनी शिकायतें लेकर कही जा सके।
ReplyDeleteअच्छा लेख 👌👌
ReplyDeleteसमसामयिक लेख, भारतीय न्याय व्यवस्था में तेजी से और व्यापक सुधार की बहुत आवश्यकता है। अभी की न्याय व्यस्था शक्तिशाली और अमीर लोगों प्रति झुकी हुई प्रतीत होती है। भ्रष्टाचार जबरदस्त है और न्याय मिलने में पीढ़ियां खप जाती हैं।
ReplyDeleteI think that any country can face this problem.
ReplyDeleteNyay vyawastha me bahut sudhar ki jarurat hai..sari samasya ki jad aabadi ka jyada hona hai..sabse pahle jansankhya control karne ki jarurat hai..uske baad shiksha..iske saath hi nyay vyawastha me sudhar apne aap hoga..
ReplyDeleteNyay vyavastha mein sansodhan ki aawashyakta hai.
ReplyDeleteNice Article
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteGood article 👌👌
ReplyDeleteNice 👌
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