हजूर साहिब 'सचखंड' नांदेड़ (महाराष्ट्र)
गोदावरी नदी के किनारे बसा नांदेड़ शहर हजूर साहिब 'सचखंड' गुरुद्वारा के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहां हर साल दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु आते हैं, और मत्था टेक कर स्वयं को धन्य समझते हैं।
हजूर साहिब सिखों के पांच तख्तों में से एक है। यह नांदेड नगर में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। इसमें स्थित गुरुद्वारा 'सचखंड'' कहलाता है।
सन 1708 में तख्त श्री हजूर साहिब में सिखों के दसवें तथा अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी। सन 1708 से पहले गुरु गोविंद सिंह जी ने धर्म प्रचार के लिए कुछ वर्षों के लिए यहां अपने कुछ अनुयायियों के साथ अपना पड़ाव डाला था।
यहीं पर कुछ धार्मिक तथा राजनीतिक कारणों से सरहिंद के नवाब वजीर शाह ने अपने दो आदमी भेज कर उनकी हत्या करवा दी थी।
अपनी मृत्यु को समीप देखकर गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी अन्य को गुरु चुनने के बजाए सभी सिखों को आदेश दिया कि मेरे बाद आप सभी पवित्र ग्रंथ को ही गुरु मानें और तभी से पवित्र ग्रंथ को गुरु ग्रंथ साहिब कहा जाता है।
आगिआ भई अकाल की तवी चलाओ पंथ..
सब सिखन को हुकम है गुरु मानियो ग्रंथ..
गुरु ग्रंथ जी मानियो प्रगट गुरां की देह..
जो प्रभ को मिलबो चहै खोज शब्द में लेह..
परिसर में स्थित गुरुद्वारे को सचखंड नाम से जाना जाता है। यह गुरुद्वारा गुरु गोविंद सिंह जी जहां ज्योति जोति समाये थे, उसी स्थान पर ही बनाया गया है।
गुरुद्वारे का आंतरिक कक्ष अंगीठा साहिब कहलाता है। यह ठीक उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां गुरु गोविंद सिंह जी का दाह संस्कार किया गया था।
तख्त के गर्भ गृह में गुरुद्वारा पटना साहिब की तर्ज पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब तथा श्री दशम ग्रंथ दोनों स्थापित हैं। गुरुद्वारे का निर्माण सन 1832 से 1837 के बीच पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा करवाया गया था।
गुरू गोविंद सिंह जी ने ज्योति ज्योत में समाने से पहले ही सब तख्तों पर योग्य व्यक्तियों को सेवा के लिए लगा दिए थे। तख्त श्री अनचल नगर पर अपने सेवक भाई संतोख सिंह जी की सेवा लगाई और हुक्म दिया कि यहाँ पर देग तेग का पहरा रखना, और हुक्म दिया कि लंगर बनवा कर बांटते जाना किसी बात की कमी नहीं आयेगी।
यह स्थान श्री गुरू गोविंद सिंह जी महाराज के अद्वितीय जीवन की अंतिम सुनहरी यादों से जुडा है। प्रथम नौ गुरू साहिबान के बसाए गये अधिकतर स्थान सुल्तानपुर लोधी, खडूर साहिब, गोइंदवाल, अमृतसर, तरनतारन, कीरतपुर आदि पंजाब राज्य में ही स्थित है,परंतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने विशाल भारत के कोने कोने को अपनी पावन चरण रज से पवित्र किया। पटना साहिब में इनका जन्म हुआ। उत्तर दिशा में स्थित नगर श्री आनंदपुर साहिब में आपने खालसा पंथ स्थापना की। माता पिता और अपने चारों पुत्रों को देश, कौम और धर्म की खातिर न्यौछावर करने के पश्चात दमदमा साहिब मालवा देश में प्रवेश किया। औरंगजेब की मौत के बाद उसके बड़े पुत्र बहादुर शाह जफर को दिल्ली का तख्त सौंप के संगत को तारते हुए भारत की दक्षिण दिशा में पहुंचे। गोदावरी नदी के किनारे बसे नगर नांदेड़ की धरती को पावन किया।
गुरू गोविंद सिंह जी ने ज्योति ज्योत में समाने से पहले ही सब तख्तों पर योग्य व्यक्तियों को सेवा के लिए लगा दिया था। तख्त श्री अनचल नगर पर आपने गढ़वई सेवक भाई संतोख सिंह जी की सेवा लगाई और हुक्म दिया कि यहाँ पर देग तेग का पहरा रखना,और हुक्म दिया कि लंगर बनवा कर बांटते जाना किसी बात की कमी नहीं आयेगी, धन की चिंता नहीं करना, जितना धन आए,लंगर पर खर्च करते जाना।
गुरु नांदेड़ साहिब का स्थापत्य
तख्त सचखंड साहिब का गुरूद्वारा 8 एकड़ में फैला हुआ है। गुरूद्वारे में प्रवेश के लिए 6 तरफ से विशाल द्वार बनाये गये है। सभी द्वार लगभग 40 फुट ऊंचे हैं, और सुंदर वास्तुकला से सुसज्जित है। तख्त साहिब के चारों तरफ श्वेत संगमरमर के 160 वातानुकूलित कक्ष अतिथियों के ठहरने के लिए बनाये गये है। यह भवन दो मंजिला है, भूतल से 15 फुट ऊंचाई पर तख्त साहिब विराजमान है। गुरूद्वारे का मुख्य द्वार सोने का है, अन्य सभी द्वार चांदी के है। सम्पूर्ण सिंहासन साहिब सोने के पत्तरों से सुसज्जित है। छत, दीवारें, द्वार, श्री गुरू ग्रंथ साहिब का सिंहासन सब कुछ स्वर्ण मंडित है। गुम्बद का कलश भी स्वर्ण मंडित है। गर्भ गृह के चारों ओर परिक्रमा मार्ग है। सम्पूर्ण निर्माण श्वेत संगमरमर एवं ग्रेनाइट पत्थरों से किया गया है।
गुरूद्वारा बोर्ड नांदेड के इतिहास से सम्बंधित यहां नौ अन्य गुरूद्वारे और है। बोर्ड उनका भी प्रबंधन देखता है। इन नौ गुरूद्वारे के दर्शन के लिए निशुल्क बस सेवा चलाई जाती है। गुरूद्वारा बोर्ड की ओर से जनकल्याण के अनेक कार्य किये जाते हैं।
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Hazur Sahib 'Sachkhand' Nanded (Maharashtra)
The city of Nanded, situated on the banks of the Godavari River, is famous all over the world for the Hazur Sahib 'Sachkhand' Gurdwara. Every year lakhs of devotees from all over the world come here, and consider themselves blessed by paying obeisance.
Hazur Sahib is one of the five Takhts of the Sikhs. It is situated on the bank of Godavari River in Nanded Nagar. The Gurudwara situated in it is called 'Sachkhand'.
In 1708, at Takht Sri Hazur Sahib, the tenth and last Guru of the Sikhs, Gobind Singh, breathed his last with his beloved horse Dilbagh. Before 1708, Guru Gobind Singh ji had made his camp here with some of his followers for some years for the propagation of religion.
It was here that for some religious and political reasons, the Nawab of Sirhind, Wazir Shah, had sent two of his men to get him killed.
Seeing his death near, Guru Gobind Singh Ji ordered all the Sikhs instead of choosing any other Guru as his successor, that after me all of you should consider the holy book as Guru and since then the holy book is called Guru Granth Sahib. .
In the words of Guru Gobind Singh Ji:-
All Sikhans have their dictates from the Guru Manio Granth..
Guru Granth ji Maniyo revealed the body of the Guru..
Whoever wants to meet the Lord.
The Gurdwara situated in the complex is known as Sachkhand. This Gurdwara has been built at the same place where Guru Gobind Singh Ji used to hold Jyoti Joti.
The inner chamber of the Gurdwara is called Angitha Sahib. It is built at the exact same place where Guru Gobind Singh was cremated.
In the sanctum sanctorum of Takht, both Sri Guru Granth Sahib and Sri Dasam Granth are established on the lines of Gurdwara Patna Sahib. The Gurdwara was built between 1832 and 1837 by Maharaja Ranjit Singh of Punjab.
Even before joining the Jyoti Jyot, Guru Gobind Singh ji had put qualified people on all the boards for service. He put the service of his servant Bhai Santokh Singh ji at Takht Shri Anchal Nagar and ordered that Deg Teg should be guarded here, and ordered that nothing would be lacking by getting langar made and distributed.
This place is associated with the last golden memories of the unique life of Shri Guru Gobind Singh Ji Maharaj. Most of the places inhabited by the first nine Guru Sahibans, Sultanpur Lodhi, Khadur Sahib, Goindwal, Amritsar, Tarn Taran, Kiratpur etc. are located in the state of Punjab, but Shri Guru Gobind Singh Ji Maharaj has sanctified every corner of vast India with his holy feet. did. He was born in Patna Sahib. You established the Khalsa Panth in the city Sri Anandpur Sahib located in the north direction. After sacrificing his parents and his four sons for the sake of country, community and religion, Damdama Sahib entered the country of Malwa. After the death of Aurangzeb, he handed over the throne of Delhi to his eldest son Bahadur Shah Zafar and reached in the south direction of India. Purified the land of Nanded, a city situated on the banks of river Godavari.
Even before joining the Jyoti Jyot, Guru Gobind Singh ji had engaged qualified persons for service on all the boards. At Takht Shree Anchal Nagar, you put the service of Gadhwai Sevak Bhai Santokh Singh ji and ordered that Deg Teg should be guarded here, and ordered that there will be no shortage of anything by making langar and distributing it, don't worry about money, as much as Money comes, go on spending it on anchor.
Architecture of Guru Nanded Sahib
The Gurudwara of Takht Sachkhand Sahib is spread over 8 acres. Huge gates have been made from 6 sides to enter the Gurudwara. All the gates are about 40 feet high, and are adorned with beautiful architecture. 160 air-conditioned rooms of white marble have been built around the Takht Sahib for the stay of the guests. This building is two storeyed, the Takht Sahib is situated at a height of 15 feet from the ground floor. The main gate of the Gurudwara is of gold, all other doors are of silver. The entire throne sahib is decorated with gold leaves. The ceiling, the walls, the gates, the throne of Sri Guru Granth Sahib, everything is gold-plated. The urn of the dome is also gold-plated. There is a parikrama path around the sanctum sanctorum. The entire construction is done with white marble and granite stones.
There are nine more Gurdwaras here related to the history of Gurdwara Board Nanded. The board also looks after their management. Free bus service is run to visit these nine Gurudwaras. Many works of public welfare are done by the Gurudwara Board.
भगवान शिव की कृपा हम सभी पर हमेशा बनी रहे। महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 🔱🔱
ReplyDeleteॐ नमः शिवाय 🙏🙏
सतनाम वाहेगुरु🙏🙏
सतनाम वाहेगुरु
ReplyDeleteVery unique information.i have visited there. The weapons used by guru ji are still there and available to see the pilgrims.
ReplyDeleteजय सतगुरू साहिब
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteSo cute I also Visited there
ReplyDeleteIt's so Beautiful 👌☺️
महाशिव रात्रि की आप सबको बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं, भोलेनाथ सबका कल्याण करें।
ReplyDeleteहजूर साहिब की विस्तृत जानकारी मिली
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामना।
ReplyDeleteA beautiful story. It is lucky for those who were there and saw
ReplyDeleteWaahe guru ji da Khalsa, waahe guru ji di Fateh.
ReplyDeleteSatnaam waheguru..🙏🙏
ReplyDeleteगुरु साहिब सचखंड नांदेड़ भारत के पांच गुरुद्वारा में से एक है।जो गोदावरी के तट पर स्थित है।
ReplyDeleteExcellent Waheguru ji
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteWonderful
ReplyDelete🕉️🙏🙋♂️💐