धूर्त बगुला और केकड़ा
किसी समय में एक जंगल के बीच में दो तालाब थे। एक तालाब छोटा था दूसरा तालाब बड़ा। ग्रीष्म ऋतु में छोटे तालाब का पानी सूख जाने से उसमें रहने वाले जल - जीवों को कष्ट होने लगा। परंतु वे कुछ कर भी नहीं सकते थे। एक दिन एक बगुला आकर उनके बीच में खड़ा हो गया। मछलियों ने पूछा, "क्यों वहां से आप यहां कैसे आये ?"
बगुले ने कहा, "क्या करूं, तुम लोगों का दुख देखा नहीं जाता। मैं जंगल के दूसरी ओर वाले बड़े तालाब के किनारे रहता हूं, वहां बहुत पानी है। परंतु तुम्हारा तालाब सूख रहा है। मछलियों ने कहा, "जो भाग्य में लिखा होता है, वही होता है। जिए या मरे हमारे लिए इस तालाब को छोड़कर और कोई स्थान नहीं है।"
बगुले ने कहा यदि तुम लोग विश्वास करो तो मैं एक-एक करके सबको अपनी चोंच से उठाकर उस तालाब में छोड़ आऊंगा।" मछलियों ने कहा - "तुम मछलियों को खा जाते हो, हम तुम्हारा विश्वास कैसे कर सकती हैं?"
बगुला बहुत धूर्त था। उसने कहा, यदि तुम में से एक मेरे साथ चल कर उस बड़े तालाब को देख आवे और यदि मैं उसे फिर तुम लोगों के पास लाकर छोड़ दूं तब तो मेरा विश्वास अवश्य ही कर लोगी। सच कहूं, मैंने जन्म भर जो पाप किए हैं, आज मैं कुछ अच्छा काम करके प्रायश्चित करना चाहता हूं। मछलियां बहुत सीधी थी। वह उसके इस प्रस्ताव पर सहमत हो गई। एक छोटी मछली को उसने अपनी चोंच में ले जाकर बड़ा तालाब दिखा लाया, जिसमें जल की लहर उठ रही थी और कमल खिले हुए थे।
वापस आने पर छोटी मछली ने उस तालाब की बड़ी प्रशंसा की। उसकी बातें सुनकर सब मछलियां उस बड़े तालाब में जाने को राजी हो गई। अब बगुले की बात बन गई। वह छोटे तालाब में मछलियों को अपनी चोंच में डाल कर अपने घोंसले पर ले जाने लगा। इस प्रकार उसने तथा उसके परिवार ने मिलकर सब मछलियां खा डाली। अंत में एक केकड़ा बच गया।
उसने कहा बगुला भाई मैं तो मछली नहीं हूं। तुम्हें मुझे चोंच में संभालने में कष्ट होगा। मैं अपनी इन अनेक टांगों के सहारे तुम्हारे गले से चिपक जाऊंगा और तालाब के पास पहुंचकर धीरे से जल में कूद जाऊंगा। इतनी मछलियां खाकर बगुले का लोभ बहुत बढ़ गया था। उसने सोचा घोसले में चलकर इसे भी ठिकाने लगा दूंगा। वह राजी हो गया। केकड़ा बगुले की गर्दन से लिपट गया। घोसले के पास पहुंचकर केकड़ा बोला भाई तालाब कहां है? बगुले ने कहा सब अभी बताता हूं, जरा नीचे उतरो। केकड़ा सब समझ गया। उसने अपनी टांगों से बगुले की गर्दन को इतना कसा कि उसके प्राण निकल गए।
English Translate
Sly Heron and Crab
Once upon a time there were two ponds in the middle of a forest. One pond was small, the other pond was big. Due to the drying up of the water of the small pond in the summer season, the water creatures living in it started suffering. But they could not do anything. One day a heron came and stood in their midst. The fish asked, "Why did you come here from there?"
The heron said, "What to do, you can't see the misery. I live on the bank of the big pond on the other side of the forest, there is a lot of water. But your pond is drying up. The fish said," which is written in fate. It happens, that's what happens. Live or die there is no other place for us except this pond."
The heron said if you believe, I will pick them up one by one with my beak and leave them in that pond." The fish said - "You eat fish, how can we believe you?"
The heron was very cunning. She said, "If one of you comes with me to see that big pond, and if I bring it back to you and leave it, then you will surely believe me." Frankly, the sins I have committed throughout my birth, today I want to atone for some good deed. The fish was very straight. She agreed to his proposal. Taking a small fish in his beak, he showed him the big pond, in which the water was rising and the lotus was in bloom.
On coming back the little fish praised the pond very much. Hearing his words, all the fish agreed to go to that big pond. Now it has become a matter of heron. He started taking the fish to his nest by putting his beak in the small pond. Thus he and his family together ate all the fish. In the end one crab survived.
He said heron brother, I am not a fish. You will find it difficult to hold me in your beak. I will cling to your neck with the help of my many legs and after reaching the pond, I will slowly jump into the water. After eating so many fish, the greed of the heron had increased a lot. He thought that by walking in the nest, I will put it to rest. He agreed. The crab clung to the neck of the heron. After reaching the nest, the crab said, brother, where is the pond? The heron said, I will tell you everything now, just get down. The crab understood everything. He tightened the heron's neck with his legs so much that he lost his life.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकमाल की मेहनत करके लाती है जानकारियाँ
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteशिक्षाप्रद कहानी
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeletenice story
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteAchi kahani
ReplyDeleteरोचक कहानी
ReplyDeleteNIce story
ReplyDeleteNIce story
ReplyDeleteअच्छी कथा, लालच बुरी बला
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteइसको कहते हैं शेर को सवा शेर।शिक्षाप्रद कहानी।
ReplyDeleteVery nice..shikshaprad ..
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice story
ReplyDelete