शिरडी के साईं बाबा
"सबका मालिक एक" साईं बाबा का कथन है। साईं बाबा के विषय में लगभग सभी को जानकारी है .कुछ लोग उनके अनुयाई हैं तो कुछ विरोधी भी हैं। साईं बाबा को लेकर समय-समय पर विवाद भी होते रहे हैं। कभी उनके अस्तित्व को लेकर तो कभी उनकी पूजा करने पर, कभी उनके जन्म को लेकर तो कभी उनके धर्म को लेकर।
साईं बाबा कौन थे? इस बारे में सटीक जानकारी किसी के पास उपलब्ध नहीं है, क्योंकि साईं बाबा का जन्म कहां हुआ था, उनके माता-पिता कौन थे, इस रहस्य के बारे में अभी तक कोई खुलासा नहीं हुआ है। कोई उन्हें हिंदू बताता है, तो कोई मुसलमान कहता है। इसे लेकर भी लोगों में अलग-अलग मत बने हुए हैं, परंतु स्पष्ट रूप से किसी के पास कोई जानकारी नहीं है। क्यूंकि साईं ने कभी इन बातों का जिक्र नहीं किया।
बस एक बार अपने एक भक्त के पूछने पर साईं बाबा ने कहा था कि, उनका जन्म 28 सितंबर 1836 को हुआ था ( हालांकि जन्मतिथि को लेकर कोई पुख्ता प्रणाम नहीं हैं।)। इसलिए हर साल 28 सितंबर को साईं का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
साईं बाबा की जाति क्या थी?
साईं बाबा ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा एक पुराने मस्जिद में बिताया, जिसे वह द्वारका माई कहा करते थे। सिर पर सफेद कपड़ा बांधे हुए फकीर के रूप में बाबा शिरडी में धूनी रमाए रहते थे। इसी रूप के कारण कुछ लोग इन्हें मुस्लिम मानते हैं, जबकि द्वारिका के प्रति श्रद्घा और प्रेम के कारण कुछ लोग इन्हें हिन्दू मानते हैं। लेकिन साईं बाबा ने कबीर की तरह कभी भी अपने को जाति बंधन में नहीं बांधा। हिन्दू हो या मुसलमान साई बाबा ने सभी के प्रति समान भाव रखा और कभी इस बात का उल्लेख नहीं किया कि वह किस जाति के हैं। साईं ने हमेशा मानवता, प्रेम और दयालुता को अपना धर्म माना और "सबका मालिक एक" खुद मानते थे और अपने अनुयायियों को भी कहते थे।
जो भी इनके पास आता उसके प्रति बिना भेद भाव के उसके प्रति कृपा करते। साईं के इसी व्यवहार ने उन्हें शिरडी का साईं बाबा और भक्तों का भगवान बना दिया। साईं बाबा का साईं नाम कैसे पड़ा इसकी भी एक रोचक कथा है।
फकीर से साईं बाबा बनने तक सफर
कहा जाता है कि सन् 1854 ई. में पहली बार साईं बाबा को शिरडी में देखा गया। उस समय बाबा की उम्र लगभग सोलह वर्ष थी। शिरडी के लोगों ने बाबा को पहली बार एक नीम के वृक्ष के नीचे समाधि में लीन देखा। कम उम्र में सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास की जरा भी चिंता किए बगैर बालयोगी को कठिन तपस्या करते देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। त्याग और वैराग्य की मूर्ति बने साईं ने धीरे-धीरे गांव वालों का मनमोह लिया। कुछ समय शिरडी में रहकर साईं एक दिन किसी से कुछ कहे बिना अचानक वहां से चले गए। कुछ सालों के बाद चांद पाटिल नाम के एक व्यक्ति की बारात के साथ साईं बाबा फिर शिरडी में पहुंचे। खंडोबा मंदिर के पुजारी म्हालसापति ने साईं को देखते ही कहा ‘आओ साईं’ इस स्वागत संबोधने के बाद से ही शिरडी के फकीर ‘साईं बाबा’ कहलाने लगे।
साईं बाबा के जीने का तरीका
शुरुवाती दिनों में शिरडी के लोग साईं बाबा को पागल समझते थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी शक्ति और गुणों को जानने के बाद भक्तों की संख्या बढ़ती गयी। साईं बाबा शिरडी के केवल पांच परिवारों से रोज दिन में दो बार भिक्षा मांगते थे। वे टीन के बर्तन में तरल पदार्थ और कंधे पर टंगे हुए कपड़े की झोली में रोटी और ठोस पदार्थ इकट्ठा किया करते थे। सभी सामग्रियों को वे द्वारका माई लाकर मिट्टी के बड़े बर्तन में मिलाकर रख देते थे। कुत्ते, बिल्लियां, चिड़िया निःसंकोच आकर खाने का कुछ अंश खा लेते थे, बची हुए भिक्षा को साईं बाबा भक्तों के साथ मिल बांट कर खाते थे।
शिरडी साई बाबा के चमत्कार
साईं ने अपने जीवनकाल में कई ऐसे चमत्कार दिखाए, जिससे लोगों ने इनमें ईश्वर का अंश महसूस किया। इन्हीं चमत्कारों ने साईं को भगवान और ईश्वर का अवतार बना दिया। लोगों का कहना है कि लक्ष्मी नामक एक स्त्री संतान सुख के लिए तड़प रही थी। एक दिन साईं बाबा के पास अपनी विनती लेकर पहुंच गई। साईं ने उसे उदी यानी भभूत दिया और कहा आधा तुम खा लेना और आधा अपने पति को दे देना। लक्ष्मी ने ऐसा ही किया। निश्चित समय पर लक्ष्मी गर्भवती हुई। साईं के इस चमत्कार से वह साईं की भक्त बन गयी और जहां भी जाती साईं बाबा के गुणगान करती। साईं के किसी विरोधी ने लक्ष्मी के गर्भ को नष्ट करने के लिए धोखे से गर्भ नष्ट करने की दवाई दे दी। इससे लक्ष्मी को पेट में दर्द एवं रक्तस्राव होने लगा। लक्ष्मी साईं के पास पहुंचकर साईं से विनती करने लगी। साईं बाबा ने लक्ष्मी को भभूत खाने के लिए दिया। भभूत खाते ही लक्ष्मी का रक्तस्राव रूक गया और लक्ष्मी को सही समय पर संतान सुख प्राप्त हुआ।
पूरे इतिहास में किए गए कई दावों के बावजूद, शिरडी साईं बाबा का जन्मस्थान और जन्मतिथि अज्ञात है। शिरडी साईं बाबा के बारे में अधिकांश जानकारी हेमाडपंत नामक एक भक्त (जिन्हें अन्नासाहेब दाभोलकर / गोविंद रघुनाथ के नाम से भी जाना जाता है) द्वारा 1929 में मराठी में लिखी गई श्री साईं सच्चरित्र नामक पुस्तक से ली गई है। साईं बाबा का असली नाम तक अज्ञात है।
अंतिम वर्ष और महासमाधी
अगस्त 1918 में, शिरडी साईं बाबा ने अपने कुछ भक्तों से कहा कि वह जल्द ही अपना देह छोड़ देंगे। सितंबर के अंत में उन्हें तेज बुखार हुआ और उन्होंने खाना बंद कर दिया। जैसे-जैसे उनकी हालत बिगड़ती गई, उन्होंने अपने शिष्यों से उन्हें पवित्र ग्रंथ सुनाने के लिए कहा, हालाँकि उन्होंने आगंतुकों से मिलना भी जारी रखा। 15 अक्टूबर 1918 को, उसी वर्ष विजयादशमी उत्सव के दिन, साईने अपना अवतारकार्य समाप्त करते हुए महासमाधी ली। उनके पवित्र देह को शिरडी के बूटी वाडा में दफनाया गया और वहा श्री साई की अलौकिक एवं अविनाशी तुर्बत का निर्माण किया गया, जो बाद में एक पूजा स्थल बन गया, जिसे आज श्री समाधि मंदिर या शिरडी साईं बाबा मंदिर के रूप में जाना जाता है।
आज साईं बाबा के कारण ही शिरडी भारत में एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है और प्रमुख हिंदू तीर्थस्थलों में गिना जाता है। पहला साईं बाबा मंदिर कुडाल, सिंधुदुर्ग में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1922 में हुआ था।
शिरडी में साईं बाबा मंदिर में प्रतिदिन औसतन 25000 तीर्थयात्री आते हैं। धार्मिक उत्सवों के दौरान यह संख्या 2,00,000 तक पहुँच सकती है। मंदिर का आंतरिक भाग और बाहरी शंकु दोनों सोने से ढके हुए हैं। मंदिर के अंदर, साईं बाबा की मूर्ति इतालवी संगमरमर से बनाई गई है और शाही कपड़े से लिपटी हुई, सोने का मुकुट पहने हुए और ताजे फूलों की मालाओं से सजी हुई दिखाई देती है। मंदिर का प्रबंधन श्री साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट शिर्डी द्वारा किया जाता है।
श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए वहाँ अलग-अलग कक्ष बने हुए हैं, जिसमें कुर्सियां लगी हुई हैं। कक्ष से होकर ही धीरे-धीरे श्रद्धालुओं की लाइन आगे बढ़ती है और फिर श्रद्धालु साईं बाबा की मूर्ति तक पहुंचाते हैं। लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार फूल और फूलों की माला साइन बाबा को अर्पित करते हैं और आगे निकल जाते हैं। मंदिर के अंदर प्रवेश करते समय मोबाइल बाहर ही जमा करना होता है, इसलिए मंदिर के अंदर की तस्वीर नहीं ली जा सकती हैं।
साईं बाबा की पालकी यात्रा हर गुरुवार को समाधि मंदिर से द्वारकामाई और चावड़ी तक फिर वापस साईं बाबा मंदिर तक निकाली जाती है। जाति, पंथ और धर्म के बावजूद, सभी धर्मों के भक्तों का समाधि मंदिर में दर्शन करने और प्रसादालय में मुफ्त भोजन करने के लिए स्वागत किया जाता है।
शिरडी कैसे पहुंचे?
साईं बाबा के मंदिर पहुंचने के लिए तीनों तरीकों अर्थात ट्रेन, सड़क और वायु मार्ग से पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा शहर से शिरडी पहुंचने के लिए लोकल बस या टैक्सी भी कर सकते हैं। यदि ट्रेन से जाना है तो कोपरगांव रेलवे स्टेशन शिरडी से सबसे नजदीक है यह रेलवे स्टेशन 16 किलोमीटर दूर है। स्टेशन पर उतरकर शिरडी के लिए बसें, कैब और टैक्सी मिलती है। शिरडी अहमदनगर मनमाड राजमार्ग पर स्थित है और सड़क मार्ग से नासिक मुंबई और पुणे जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ी हुई है ऐसे में शिरडी कार से भी जाया जा सकता है। शिरडी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा महाराष्ट्र के शिरडी शहर से कोकरी गांव में स्थित है।
वंदे भारत ट्रेन भी एक ऑप्शन है। सुबह 6:30 बजे दादर स्टेशन से वंदे भारत मिलती है, जो सुबह 11:20 तक साई नगर शिरडी स्टेशन पहुंचा देगी। स्टेशन के बाहर से ऑटो या टेम्पो लेकर कुल 10 मिनट में शिरडी पहुंच सकते हैं।
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