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संत एकनाथ महाराज || Sant Eknath Maharaj

संत एकनाथ महाराज

संतों की कथा में आज बारी है संत एकनाथ महाराज जी की। 

कौन थे संत एकनाथ महाराज जी?

संत एकनाथ महाराज जी प्रसिद्ध मराठी संत थे, जिन्हें सभी में ब्रह्म दिखाई देता था। हमारे हिन्दू धर्म में श्राद्ध विधि का बडा महत्त्व बताया गया है । एक बार संत एकनाथ महाराज श्राद्ध कर्म कर रहे थे। पूर्वजों के लिए उनके घर में स्वादिष्ट भोजन तैयार हो रहा था। उसी समय कुछ भिखारी उनके दरवाजे से गुजर रहे थे। एकनाथ महाराज जी के घर से स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों की सुगंध सर्व ओर फैल रही थी। भिखारियों को भी वह सुगंध आई।

संत एकनाथ महाराज || Sant Eknath Maharaj


तब उनमें से एक भिखारी ने कहा, "यह भोजन पहले पुरोहितों को खिलाया जाता है। हमें तो बचा हुआ जूठा अन्न मिलेगा।"

संत एकनाथ जी ने इन भिखारियों को बात करते हुए सुना। उन्होंने अपनी पत्नी गिरिजाबाई से कहा, "बहुत से लोग ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं और वह उचित भी है, परंतु इन भिखारियों में भी, ब्रह्मपरमात्मा है। अभी उन्हें खिलाओ, परंतु पुरोहितों के लिए भी बाद में भोजन पका पाओगी न ? उनको आने में अभी समय है।"

गिरिजाबाई ने हां कहनेपर एकनाथ महाराज गिरीजाबाई से कहा, "तो उन्हें खिलाओ।" एकनाथ महाराज जी ने भिखारियों के बीच सर्वोच्च आत्मा देखी और उन्हें भोजन कराया। इसके बाद, गिरिजाबाई ने स्नान किया और पुन: भोजन बनाना आरंभ किया। दूसरी ओर यह बात पूरे गांव में फैल गई कि ‘एकनाथजी ने ब्राह्मणों के लिए तैयार भोजन भिखारियों को खिला दिया है। अब गिरिजाबाई पुन: खाना बना रही हैं।’

पुरोहितों ने श्राद्ध के लिए तैयार भोजन उनसे पहले भिखारियों को खिलाना अपना अपमान माना। उन्होंने तुरंत गांववालों की एक बैठक बुलाई गई। पूरा गांव एक ओर था और दूसरी ओर एकनाथ महाराज। बैठक में निर्णय लिया गया कि, "पुरोहितों का अपमान करने के कारण कोई भी श्राद्धकर्म तथा भोजन के लिए एकनाथजी के घर नहीं जाएगा।" एकनाथ महाराज के घर में जाने से रोकने के लिए दो युवक लाठी लेकर उनके घर के दरवाजे के पास खडे रहे।

वहां गिरिजाबाई ने भोजन बनाया था। एकनाथजी ने देखा कि द्वार पर खडे यह लोग किसी को आने नहीं देंगे, तो उन्होंने अपनी इच्छा शक्ति और योग शक्ति का उपयोग किया। जो पुरोहित श्राद्ध के लिए नहीं आ रहे थे उनके पिता, दादा, परदादा आदि को उन्होंने आवाहन किया और सभी प्रगट हो गए। एकनाथ महाराज ने उनसे कहा, "बैठ जाइए भूदेव! आप इस गांव के ब्राह्मण हैं। आज हमारे घर भोजन कीजिए।"

गांव के पुरोहितों के पूर्वज भोजन करने बैठ गए। हाथ धोना, आचमन आदि के समय गाए जाने वाले श्लोकों की आवाज से एकनाथजी का आंगन गूंज उठा। बाहर द्वार पर जो दो युवक लाठी लेकर खडे थे, उन्होंने यह आवाज सुनी। उन्होंने सोचा, "हमने किसी भी ब्राह्मण को प्रवेश नहीं करने दिया, तो यह आवाज कहां से आ रही है ?" उन्होंने अंदर देखा और वे आश्चर्यचकित हो गए। अंदर तो ब्राह्मणों का भोजन चल रहा था। उन्होंने घर के अंदर झांककर देखा, तो पाया कि, "अरे! यह तो मेरे दादा हैं, यहीं मेरे परदादा भी हैं। यह उसका चाचा है, यहीं उसके परदादा हैं।" उनकी आंखे खुली की खुली ही रह गई।

दौडकर उन्होंने गांव के सभी पुरोहितों को यह बात बताई। उन्होंने कहा, "आपके पिता, दादा, परदादा, चाचा आदि सभी पितृलोक से एकनाथ के घर आए हैं। वे अब एकनाथ के आंगन में भोजन कर रहे हैं।"

गांव के सभी लोग एकनाथ महाराज के घर आए। पुरोहित तो इस अद्भुत दृश्य को देखते ही रह गए। उन्हें अपने गलती का भान हुआ। अंत में उन्होंने एकनाथजी से हाथ जोडकर क्षमा मांगते हुए कहा, "महाराज! हमने आपको नहीं पहचाना। हमें क्षमा कर कीजिए।"


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