झारखंड का राजकीय फूल - पलाश
वैज्ञानिक नाम: 'ब्यूटिया मोनोस्पर्मा'
पलाश की उत्पत्ति बिहार और झारखंड में हुई थी। पलाश के फूलों को शायद इसके रंग के कारण 'जंगल की लपटें' भी कहा जाता है, वैसे तो यह तीन रंगों में होता है - सफेद, पीला और लाल- नारंगी। आदिवासी संस्कृति में पलाश का बहुत महत्व है।
झारखंड के राज्य प्रतीक
राज्य पक्षी – एशियाई कोयल
राज्य वृक्ष – साल या सखुआ
राज्य पुष्प – पलाश
राज्य की भाषा – हिन्दी (कई जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाएं)
पलाश झारखंड में बहुतायत पाया जाता है। दिखने में यह काफी आकर्षक होता है पर इसमें सुगंध नहीं होती। ग्रीष्म ऋतु के शुरुआती समय में इसे बहुतायत देखा सकता है। पलास भारतवर्ष के सभी प्रदेशों और सभी स्थानों में पाया जाता है। पलास का वृक्ष मैदानों और जंगलों ही में नहीं, ४००० फुट ऊँची पहाड़ियों की चोटियों पर भी मिलता है। पलाश का पेड़ टेढ़ा - मेढ़ा 12 से 15 मीटर ऊंचा, मध्यम आकार का वृक्ष होता है। इसके पत्ते बृहत् त्री- पत्रक युक्त तथा स्पष्ट सिरा युक्त होते हैं। इसके पत्तों का प्रयोग दोना तथा पत्तल बनाने के लिए किया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में इसकी त्वचा को छत करने पर एक रस निकलता है, जो लाल रंग का होता है तथा सूखने पर कृष्णा रक्त वर्ण युक्त, भंगुर तथा चमकदार होता है।
पलाश की वृक्ष पर वसंत ऋतु में फूल खिलते हैं, जो तीन रंगों में होता है - सफेद, पीला और लाल- नारंगी। आयुर्वेद में पलाश के पेड़ को बहुत ही अहम स्थान दिया गया है, क्योंकि पलाश के बहुगुणी होने के कारण इसको कई तरह की बीमारियों के लिए औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद में पलाश के जड़, बीज, तना, फूल और फल का उपयोग किया जाता है। पलाश में बहुत सारे पोषक तत्व हैं जो उसको अमूल्य बना देते हैं। राजस्थान और बंगाल में इनसे तंबाकू की बीड़ियाँ भी बनाते हैं।
पलाश के वृक्ष का हर हिस्सा उपयोगी होता है। पलाश के बीज में पेट के कीड़े मारने का गुण विशेष रूप से निहित होता है। फूल को उबालने से एक प्रकार का ललाई लिए हुए पीला रंग भी निकलता है, जिसका खासकर होली के अवसर पर प्रयोग किया जाता है। फली की बुकनी कर लेने से वह भी अबीर का काम देती है। छाल से एक प्रकार का रेशा निकलता है जिसको जहाज के पटरों की दरारों में भरकर भीतर पानी आने की रोक की जाती है। जड़ की छाल से जो रेशा निकलता है, उसकी रस्सियाँ बटी जाती हैं। इससे दरी और कागज भी बनाया जाता है। इसकी पतली डालियों को उबालकर एक प्रकार का कत्था तैयार किया जाता है। मोटी डालियों और तनों को जलाकर कोयला तैयार करते हैं। छाल पर बछने लगाने से एक प्रकार का गोंद भी निकलता है, जिसको 'चुनियाँ गोंद' या पलास का गोंद कहते हैं।
उत्तर प्रदेश और झारखण्ड का राज्य पुष्प होने के साथ ही इसको 'भारतीय डाकतार विभाग' द्वारा डाक टिकट पर प्रकाशित कर सम्मानित किया जा चुका है। एक "लता पलाश" भी होता है। लता पलाश दो प्रकार का होता है। एक तो लाल पुष्पो वाला और दूसरा सफेद पुष्पो वाला। सफेद पुष्पो वाले लता पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। वैज्ञानिक दस्तावेज़ों में दोनो ही प्रकार के लता पलाश का वर्णन मिलता है। सफेद फूलों वाले लता पलाश का वैज्ञानिक नाम "ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा" है जबकि लाल फूलो वाले को "ब्यूटिया सुपर्बा" कहा जाता है।
एक पीले पुष्पों वाला पलाश भी होता है। इसका उपयोग तांत्रिक गति-विधियों में भी बहुतायत से किया जाता है। पलाश की पत्तियों का उपयोग वैवाहिक कार्यक्रमों मे मंडपाच्छादन के लिए और मेहमानों को भोजन कराने के लिए दोना पत्तल के रूप मेें बहुत प्रचलित था,यह गांव मे सस्ते इंधन का विकल्प है और जलाऊ लकड़ी के रूप मेें उपयोग होता है। पलाश के फूलों का रस तितली, मधुमक्खियों बंदरों के अलावा बच्चों को भी बहुत मधुर लगता है। इसके फूलों के गहने बच्चों को बहुत भाते हैं। छत्तीसगढ़ ये की लोकप्रिय गीत इन फूलों पर बनाते और फिल्माए गए हैं जैसे ,"रस घोले ये माघ फगुनवा,मन डोले रे माघ फगुनवा,राजा बरोबर लगे मौरे आमा रानी सही परसा फुलवा । "
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State flower of Jharkhand - Palash
Local name: Palash
Scientific name: 'Butea monosperma'
The state flower of Jharkhand is Palash. Its scientific name is "butea monosperma". Almost everyone must be knowing the Palash tree. This tree is commonly seen on the roadside and the flowers on it attract everyone with their attractive beauty. This tree is among the trees considered sacred by Hindus. It is mentioned even in the Vedas. Palash is also known as Dhak and Tesu. It is also the state flower of Uttar Pradesh.
Palash originated in Bihar and Jharkhand. Palash flowers are also called 'flames of the forest' probably because of its color, although it is found in three colors - white, yellow and red-orange. Palash has great importance in tribal culture.
State symbols of Jharkhand
State bird – Asian Koel
State tree – Sal or Sakhua
State flower – Palash
State language – Hindi (many tribal and regional languages)
State song – 'Khelo Jharkhand'
Palash is found in abundance in Jharkhand. It looks very attractive but does not have fragrance. It can be seen in abundance during the early summer season. Palas is found in all the states and all places of India. Palas tree is found not only in plains and forests but also on the peaks of 4000 feet high hills. Palas tree is a crooked, 12 to 15 meter tall, medium sized tree. Its leaves have large three-leaflets and have clear ends. Its leaves are used to make dona and pattal. In summer, when its skin is peeled, a juice comes out which is red in colour and when dried, it becomes blackish red in colour, brittle and shiny.
In spring, flowers bloom on the Palaash tree, which are of three colours - white, yellow and red-orange. In Ayurveda, the Palaash tree has been given a very important place, because due to the versatility of Palaash, it is used as a medicine for many kinds of diseases. In Ayurveda, the root, seed, stem, flower and fruit of Palaash are used. Palaash has many nutrients which make it invaluable. In Rajasthan and Bengal, tobacco bidis are also made from it.
Every part of the Palaash tree is useful. The Palaash seed especially has the property of killing stomach worms. By boiling the flower, a kind of reddish yellow colour also comes out, which is especially used on the occasion of Holi. By grinding the pod into powder, it also works as abir. A type of fiber comes out from the bark which is filled in the cracks of the ship's planks to prevent water from entering inside. The fiber that comes out from the root bark is used to make ropes. Carpets and paper are also made from it. A type of catechu is prepared by boiling its thin branches. Coal is prepared by burning thick branches and stems. A type of gum also comes out by applying resin on the bark, which is called 'Chuniya Gum' or Palas Gum.
Along with being the state flower of Uttar Pradesh and Jharkhand, it has been honored by the 'Indian Postal Department' by publishing it on a postage stamp. There is also a "Laata Palaash". Laata Palaash is of two types. One with red flowers and the other with white flowers. Laata Palaash with white flowers is considered more useful from a medicinal point of view. Description of both types of Laata Palaash is found in scientific documents. The scientific name of the white flowering creeper palash is "Butea parviflora" while the one with red flowers is called "Butea superba".
There is also a yellow flowering palash. It is also used in tantric rituals. The use of palash leaves was very popular in wedding ceremonies for covering the mandap and in the form of dona pattal for serving food to the guests. It is a cheap fuel option in villages and is used as firewood. The nectar of the palash flowers is very sweet not only for butterflies, bees, monkeys but also for children. Children like the ornaments made of its flowers very much. Popular songs of Chhattisgarh have been made and filmed on these flowers such as, "Ras ghole ye Magh phagunwa, Man dole re Magh phagunwa, Raja barobar lage maure aama rani sahi parsa phulwa."
अच्छी जानकारी
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ReplyDeleteVery Nice Information 👌🏻
ReplyDelete🙏🙏💐💐
ReplyDelete🕉सुप्रभात🕉️☕️☕️
🙏ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🚩
🙏जय श्री हरि विष्णु 🚩
🙏आप का दिन मंगलमय हो 🙏
👍👍👍बहुत बढ़िया जानकारी शेयर करने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
Very nice
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