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अलविदा वर्ष 2024 | जिन्दगी का एक ओर वर्ष कम हो चला

जिन्दगी का एक और वर्ष कम हो चला

अलविदा वर्ष 2024

जिन्दगी का एक ओर वर्ष कम हो चला

कुछ पुरानी यादें पीछे छोड़ चला..


कुछ ख्वाईशें दिल में रह जाती हैं

कुछ बिन मांगे मिल जाती हैं ..


कुछ छोड़ कर चले गये..

कुछ नये जुड़ेंगे इस सफर में..


कुछ मुझसे बहुत खफा हैं..

कुछ मुझसे बहुत खुश हैं..


कुछ मुझे मिल के भूल गये

कुछ मुझे आज भी याद करते हैं..


कुछ शायद अनजान हैं

कुछ बहुत परेशान हैं..


कुछ को मेरा इंतजार हैं ..

कुछ का मुझे इंतजार है..

कुछ सही है, कुछ गलत भी है..


कोई गलती हुई है तो माफ कीजिये और

कुछ अच्छा लगे तो याद कीजिये..

अलविदा वर्ष 2024

अलविदा वर्ष 2024

साल के अंतिम गुजरते दिन पर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की चन्द अनमोल पंक्तियॉ...

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला

साल के अंतिम गुजरते दिन पर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की चन्द अनमोल पंक्तियॉ...

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद !!

जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,

सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं

दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रमाद 

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद !!


साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,

दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई

पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद 

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद... !!

साल के अंतिम गुजरते दिन पर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की चन्द अनमोल पंक्तियॉ...

कविता

 कविता

Rupa Oos ki ek Boond

"अगर कभी टकराते होगें मेरे अल्फाज तुम्हारे दिल से..
जरा सोंचो तो क्या बितती होगी मुझ पर..❣️"

कविता उतरती हैं

सफ़ेद कोरे कागज पर 

अपने पूरे भाव 

श्रृंगार के साथ

शब्दों में पिरो कर

अपनी आत्मा को

 कवि उकेरता हैं

एक किस्सा 

निचोड़ा है उसने एक एक शब्द

अपने अनुभव की धूप से 

तब कहीं जाकर रचता है

एक अद्भुत कलजयी रचना

सम्मोहित होता

 अपनी रचना पर स्वयं

जन्मदाता होता है ज्यों

अपनी अनुकृति पर 

प्रणाम हैं हर कवि की कल्पना को ||

Rupa Oos ki ek Boond

"कभी यूँ भी तो हो,
ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें,
जब पास से तुम्हारे गुज़रें,
तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें
और मुझ तक ले आयें..❣️"

नीम करोली बाबा | Neem Karoli Baba

नीम करोली बाबा

आज facebook पर एक आर्टिकल पढ़ा। 2023 का आर्टिकल है, जिसमें नीम करोली बाबा के विषय में लिखा गया है। भारत वर्ष में नीम करोली बाबा को मानने वाले उनमें आस्था रखने वाले बहुत भक्त हैं। 

नीम करोली बाबा | Neem Karoli Baba

करीब 95 साल पहले की बात है । राजस्थान के अलवर इलाके में एक गडरिया भेड़ चराते हुए जंगल में चला गया । अचानक किसी ने उसे कहा कि यहाँ बकरियां चराना मना है ।बातों बातों में पता चला कि वो इलाके का तहसीलदार था । दोनों में बात होने लगी । पता चला कि बहुत कोशिश के बाद भी तहसीदार को बच्चे नहीं होते । गड़रिये ने उनसे कहा कि आप दौसा के बालाजी हनुमानजी के मंदिर जाकर बेटा मांग लो, मिल जायेगा । 

न जाने क्यों तहसीलदार ने उस गड़रिए की बात मान ली ।उन्होंने हनुमान जी से कहा कि अगर मेरा बेटा हो जायेगा तो मैं उसे यहीं इसी मंदिर में सेवा के लिए छोड़ जाऊंगा । इस बात का ज़िक्र उन्होंने अपनी पत्नी से भी नहीं किया । मन्नत मांगने के एक साल के अंदर उन्हें बेटा नसीब हो गया लेकिन बाप का प्यार अब आड़े आ गया । उन्होंने हनुमानजी से कहा कि मैं अपना वचन पूरा नहीं कर सकता।आपका ये ऋण मुझ पर रहेगा । 

नीम करोली बाबा | Neem Karoli Baba

वो बेटा बड़ा होने लगा । शिक्षा की उम्र तक आया तो पिताजी ने उसे हरिद्वार के एक बड़े विद्वान प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी के यहाँ पढ़ने भेज दिया । लड़के में अद्धभुत क्षमता थी उसे रामायण कंठस्थ थी । बिना पढ़े वो रामायण का पाठ करने लगा। उसकी ख्याति दूर दूर तक फ़ैल गयी और वो साधु सन्यासियों और बड़े बड़े उद्योगपतियों के घर रामायण पाठ करने लगा । जवान होने पर उसकी शादी भी हो गयी । एक दिन देश के बड़े उद्योगपति जुगल किशोर बिरला ने अखबार में विज्ञापन दिया कि दिल्ली के लक्ष्मी नारायण मंदिर यानी बिरला मंदिर में हनुमान जी को रामायण पढ़कर सुनानी है । उसके लिए उस व्यक्ति का टेस्ट खुद बिरला जी लेंगे । तय तारीख पर नारायण स्वामी अपनी पत्नी के साथ बिरला निवास पहुंच गए ! बहुत से और लोग भी बिरला जी को रामायण पढ़कर सुना रहे थे । जब नारायण बाबा का नंबर आया तो उन्होंने बिना रामायण हाथ में लिए पाठ शुरू दिया । बिरला जी के अनुग्रह पर नारायण ने हारमोनियम पर गाकर भी रामायण सुना दी । 

बिरला जी भाव विभोर हो गए । नौकरी पक्की हो गयी । सस्ते ज़माने में 350 रुपए की पगार, रहने के लिए बिरला मंदिर में एक कमरा और इस्तेमाल के लिए एक कार भी नारायण बाबा को दे दी गयी । जीवन बेहद सुकून और आराम का हो गया । रूपया पैसा, शौहरत और देश के सबसे बड़े उद्योगपति से नज़दीकियां । 

बिरला जी के एक गुरु थे नीम करोली बाबा । बेहद चमत्कारी संत थे वो । जैसे ही वो वृन्दावन से दिल्ली आये तो बिरला जी ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए नारायण बाबा का एक रामायण पाठ रख दिया ।बिरला जी ने नीम करोली बाबा से कहा कि एक लड़का है जो रामायण गाकर सुनाता है । नीम करोली बाबा ने कहा कि मुझे भी उस लड़के से मिलना है ! जैसे ही नारायण बाबा कमरे में गये तो नीम करोली बाबा ने कहा कि तेरे बाप ने हनुमान जी से धोखा किया है । नारायण बाबा अपने पिता की खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे लेकिन तय हुआ कि अगर नीम करोली बाबा की बात सच्ची है तो वो उन्हें गुरु रूप में स्वीकार कर लेंगे । तभी के तभी नारायण बाबा अलवर रवाना हो गए और अपने पिता से कहा कि एक संत आपको हनुमान जी का ऋणी बता रहा है और आपको धोखेबाज भी । नारायण बाबा के पिता ने कहा की वो संत हनुमान जी ही हो सकते हैं क्योंकि ये बात सिर्फ उन्हें ही पता है ।पिता की बात सुनकर नारायण बाबा वापस चले आये और नीम करोली बाबा को अपना गुरु स्वीकार कर लिया । 

नीम करोली बाबा | Neem Karoli Baba

नीम करोली बाबा ने आदेश दिया कि नारायण तेरा जनम हनुमान जी की सेवा के लिए हुआ है इसीलिए छोड़ लाला की नौकरी । गुरु आदेश मिलते ही नारायण बाबा ने नौकरी छोड़ दी और दिल्ली के मेहरौली इलाके में एक जंगल में एक गुप्त मंदिर में आश्रय लिया । बिरला मंदिर से निकल कर सांप, भूतों और एक अनजाने जंगल में हनुमान जी की सेवा शुरू कर दी । नीम करोली बाबा ने आदेश दिया कि किसी से एक रूपया भी नहीं लेना है और हर साल नवरात्रे में लोगों का भंडारा करना है । 

नीम करोली बाबा | Neem Karoli Baba

बड़ी अजीबोगरीब बात है कि एक पैसा भी किसी से नहीं लेना और हर साल हज़ारों लोगों को खाना भी खिलाना है लेकिन गुरु ने जो कह दिया वो पत्थर पर लकीर है । बिना सोच के उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया ! नीम करोली बाबा ने बिरला से कहकर नारायण बाबा की पत्नी को घर चलाने के पैसे हर महीने दिलवा दिए लेकिन नारायण बाबा को पैसे से दूर रखा । 1969 से आज तक इस मंदिर से हर साल दो बार नवरात्रे में हज़ारों लोग भंडारा खाकर जाते हैं । किसी को आज तक इस मंदिर में पैसे चढ़ाते नहीं देखा गया लेकिन हाँ प्रसाद पाते सबको देखा है ।

मध्य प्रदेश का राजकीय फूल - मैडोना लिली || State Flower of Madhya Pradesh - Madonna lily || (लिलियम कैंडिडम)

मध्य प्रदेश का राजकीय फूल

सामान्य नाम:  सफेद लिली
स्थानीय नाम: मैडोना लिली
वैज्ञानिक नाम: 'लिलियम कैंडिडम'
मध्य प्रदेश का राजकीय फूल - मैडोना लिली || State Flower of Madhya Pradesh - Madonna lily ||  (लिलियम कैंडिडम)

मध्य प्रदेश में कई जिले हैं, जिनमें भौगोलिक और जलवायु विशेषताओं की विविधता है। यह राज्य अपनी उत्कृष्ट कला, शिल्प, संगीत और नृत्य के लिए जाना जाता है। आज हम इसके भौगोलिक स्थिति की नहीं अपितु मध्य प्रदेश के प्रतीक चिन्ह में से एक राजकीय फूल "मैडोना लिली" की चर्चा करेंगे। मैडोना लिली (लिलियम कैंडिडम) मध्य प्रदेश का राजकीय पुष्प है। यह सफेद लिली का फूल, जिसे मैडोना लिली फूल के नाम से भी जाना जाता है, पवित्रता और उर्वरता का प्रतीक है। 

मध्य प्रदेश का राजकीय फूल - मैडोना लिली || State Flower of Madhya Pradesh - Madonna lily ||  (लिलियम कैंडिडम)

वर्तमान में इसे फ्रांस, इटली, उत्तरी अफ्रीका और मैक्सिको सहित कई देशों में उगाया जाता है। हालाँकि, यह विशेष रूप से मध्य पूर्व और बाल्कन में पाया जाता है। मैडोना लिली की पंखुड़ियाँ सफ़ेद होती हैं, नीचे का भाग पीला होता है और इसकी खुशबू बहुत तेज़ होती है। सर्दियों में फूल खिलते हैं, लेकिन गर्मियों के आते ही वे गायब हो जाते हैं।      

मध्य प्रदेश के राज्य प्रतीक

राज्य पशु –  बारहसिंगा
राज्य पक्षी –  दूधराज (शाह बुलबुल)
राज्य वृक्ष –   बरगद
राज्य पुष्प – मैडोना लिली 
राज्य की भाषा – 
राज्य मछली –  माहीगीर
प्रसिद्ध मिठाई – मावा बाटी
राज्य नदी   नर्मदा
राज्य खेल  – मलखंभ
राज्य फल  आम
राज्य फसल  सोयाबीन
राज्य नृत्य – सोय राई
राजकीय नाट्य  माच (माचा)
मध्य प्रदेश का राजकीय फूल - मैडोना लिली || State Flower of Madhya Pradesh - Madonna lily ||  (लिलियम कैंडिडम)

मैडोना लिली बेहद खूबसूरत फूल है। उसका प्रयोग सजावट के लिए किया जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि से भी यह  बहुत ही उपयोगी पुष्प है। इस पुष्प का हर हिस्सा औषधीय प्रयोग में लाया जाता है। इसका रस त्वचा के लिए बहुत गुणकारी होता है। लिली पुष्प की करीब 100 प्रजातियां पाई जाती हैं, जो अधिकांशत वसंत ऋतु में खिलती हैं। कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं, जो साल भर किसी न किसी रूप में उपलब्ध होती हैं। 

मध्य प्रदेश का राजकीय फूल - मैडोना लिली || State Flower of Madhya Pradesh - Madonna lily ||  (लिलियम कैंडिडम)

लिली दक्षिण पूर्वी एशिया व अमेरिका का मूल निवासी है। लिली के पौधे की उम्र तकरीबन 5 साल होती है। इसके पौधे की लंबाई 26 फिट होती है। यह प्रजातियों के अनुसार भिन्न-भिन्न रंग के हो सकते हैं। टाइगर लिली भी इसकी एक प्रजाति है, जो नारंगी रंग की होती है। इस टाइगर प्रजाति के पुष्प पर बाघ की भांति भूरे रंग के धब्बे होते हैं। सफेद लिली के फूल में 6 पंखुड़ियां होती हैं। इसलिए इसे स्टार लिली के नाम से भी जाना जाता है। यह अपने पराग के लिए कीट पतंग को आकर्षित करते हैं। लिली के फूल का रस नेक्टर कहलाता है। सफेद और टाइगर लिली के फूल में बहुत ही सुंदर सुगंध पाई जाती है। बाकी लिली के पुष्पों में सुगंध नहीं होता।

English Translate

State flower of Madhya Pradesh

Common name: White lily
Local name: Madonna lily
Scientific name: 'Lilium candidum'
मध्य प्रदेश का राजकीय फूल - मैडोना लिली || State Flower of Madhya Pradesh - Madonna lily ||  (लिलियम कैंडिडम)

Madhya Pradesh has many districts, which have a diversity of geographical and climatic features. The state is known for its excellent arts, crafts, music and dance. Today we will not discuss its geographical location but the state flower "Madonna Lily", one of the symbols of Madhya Pradesh. Madonna Lily (Lilium candidum) is the state flower of Madhya Pradesh. This white lily flower, also known as Madonna lily flower, is a symbol of purity and fertility.

Currently it is grown in many countries including France, Italy, North Africa and Mexico. However, it is especially found in the Middle East and the Balkans. The petals of the Madonna lily are white, the underside is yellow and its fragrance is very strong. The flowers bloom in winter, but they disappear as soon as summer arrives.

मध्य प्रदेश का राजकीय फूल - मैडोना लिली || State Flower of Madhya Pradesh - Madonna lily ||  (लिलियम कैंडिडम)

State animal – Barasingha
State bird – Dudhraj (Shah Bulbul)
State tree – Banyan
State flower – Madonna lily
State language –
State fish – Mahigir
Famous sweet – Mawa Baati
State river – Narmada
State sport – Malkhamb
State fruit – Mango
State crop – Soybean
State dance – Soy Rai
State drama – Mach (Macha)

Madonna lily is a very beautiful flower. It is used for decoration. It is also a very useful flower from the point of view of Ayurveda. Every part of this flower is used for medicinal purposes. Its juice is very beneficial for the skin. There are about 100 species of lily flower, which mostly bloom in the spring season. There are some species which are available in some form or the other throughout the year.

मध्य प्रदेश का राजकीय फूल - मैडोना लिली || State Flower of Madhya Pradesh - Madonna lily ||  (लिलियम कैंडिडम)

Lily is native to South East Asia and America. The age of a lily plant is about 5 years. The length of its plant is 26 feet. It can be of different colors according to the species. Tiger lily is also one of its species, which is orange in color. The flower of this tiger species has brown spots like tiger. The white lily flower has 6 petals. Therefore, it is also known as star lily. It attracts insects for its pollen. The juice of the lily flower is called nectar. A very beautiful fragrance is found in the white and tiger lily flowers. The rest of the lily flowers do not have fragrance.

श्याम बेनेगल | Shyam Benegal

श्याम बेनेगल

मूल नाम : श्याम बेनेगल (Shyam Benegal)
उपनाम : 'NA'
जन्म : 14 दिसंबर 1934 | तिरुमलागिरी , हैदराबाद 
निधन : 23 दिसंबर 2024 (आयु 90) | मुंबई , महाराष्ट्र.

श्याम बेनेगल | Shyam Benegal
आम लोगों की जिंदगी को पर्दे पर उतारने वाले श्याम बेनेगल (Shyam Benegal), हिंदी सिनेमा के एक प्रसिद्ध निर्देशक थे। श्याम बेनेगल का नाम हिंदी सिनेमा जगत के अग्रणी निर्देशकों में शुमार है। श्याम बेनेगल जी पद्मश्री और पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया जा चुके हैं। इसमें कोई संदेह नहीं की इनका निधन हिंदी सिनेमा जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। हाल ही में 23 दिसंबर 2024 को शाम 6:38 पर इन्होंने मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल में आखिरी सांसें ली (जहाँ वे क्रोनिक किडनी रोग का इलाज करवा रहे थे) और मायानगरी को अलविदा कह चले। वे लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। दो साल पहले उनकी दोनों किडनी खराब हो गई थीं। उसके बाद से उनका डायलिसिस के साथ इलाज चल रहा था। श्याम बेनेगल ने फिल्म इंडस्ट्री को कई बड़ी और बेहतरीन फिल्में दी हैं। 

श्याम बेनेगल जी का जीवन परिचय 

श्याम सुंदर बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 में तिरुमलागिरी, हैदराबाद में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता कर्नाटक से थे और पेशे से फोटोग्राफर थे। श्याम बेनेगल बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता और निर्देशक गुरुदत्त के भतीजे थे। श्याम बेनेगल ने नीरा बेनेगल से शादी की। उनकी एक बेटी है पिया बेनेगल, जो एक कॉस्ट्यूम डिजाइनर है। जब श्याम बेनेगल बारह साल के थे, तब उन्होंने अपने फोटोग्राफर पिता श्रीधर बी. बेनेगल द्वारा दिए गए कैमरे से अपनी पहली फिल्म बनाई थी। 
श्याम बेनेगल | Shyam Benegal
2009 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में श्याम बेनेगल ने कहा था,"जब मैं बच्चा था तो तब ये निजाम का हैदराबाद था। जब कुछ बड़ा हुआ तो ये भारत का हिस्सा बना। मैंने कई ऐतिहासिक बदलाव देखे हैं। एक बात और कि हैदराबाद शहर में सामंतवादी राज था लेकिन जहाँ हम रहते थे वो छावनी क्षेत्र था। छावनी की सोच एकदम अलग थी। मैं हैदराबाद के पहले अंग्रेजी स्कूल महबूब कॉलेज हाई स्कूल में पढ़ा। मेरे पिता फोटोग्राफर थे, वैसे तो वो कलाकार थे लेकिन जीविकोपार्जन के लिए उनका स्टूडियो था।"

रचनात्मकता उन्हें अपने पिता से मिली थी। बतौर कॉपी राइटर करियर की शुरुआत करने वाले बेनेगल ने पहले एक दशक तक सैकड़ों विज्ञापनों का निर्देशन किया, लेकिन वो यथार्थवादी फिल्में बनाना चाहते थे, जो सोचने पर मजबूर करें। 

श्याम बेनेगल की शिक्षा:-

श्याम बेनेगल जी ने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। बाद में फोटोग्राफी शुरू कर दी। बॉलीवुड में उन्हें आर्ट सिनेमा का जनक भी माना जाता है। 

श्याम बेनेगल ने अपना पेशेवर जीवन बॉम्बे में एक विज्ञापन एजेंसी में काम करके शुरू किया। उन्होंने एक कॉपीराइटर के रूप में शुरुआत की और जल्द ही फिल्म निर्माता बन गए। उस पद पर उन्होंने 900 से अधिक वाणिज्यिक और विज्ञापन फिल्में और 11 कॉरपोरेट फिल्में और साथ ही कई वृत्तचित्र बनाए।
श्याम बेनेगल | Shyam Benegal

श्याम बेनेगल जो फ़िल्मों को विशुद्ध मनोरंजन का साधन नहीं, अपितु समाज को आईना दिखाने का माध्यम मानते थे 

विज्ञापन की दुनिया से आए श्याम बेनेगल (एक फ़िल्मकार) ने सिनेमा को केवल विशुद्ध मनोरंजन का साधन मानने से साफ़ इनकार कर दिया। उनका ग़ुस्सा भी यथार्थ से ज़रा दूर हट के फ़िल्मी ही था। उस समय पर 1970 के दसक में जब हिंदी सिनेमा में गीत-संगीत और रोमांटिक कहानियों का दौर था, मुख्य किरदार में सुपर स्टार राजेश खन्ना हुआ करते थे, ऐसे में उनको चुनौती देने का बीड़ा श्याम बेनेगल ने उठा लिया। श्याम बेनेगल, जिन्होंने फ़िल्मों को समाज को आईना दिखाने और बदलाव लाने के एक माध्यम के रूप में देखा। यही नज़र थी, जिसके साथ श्याम बेनेगल ने 1974 में अपनी पहली फ़िल्म 'अंकुर' के साथ मुख्यधारा की मसाला फ़िल्मों के समानांतर एक गाढ़ी लक़ीर खींच दी। श्याम बेनेगल का पूरा सिनेमाई दृष्टिकोण और सामाजिक सरोकार महान फिल्मकार सत्यजीत रे से प्रेरित था। श्याम बेनेगल ने अपने कई इंटरव्यूज़ में कहा है कि स्वतंत्र भारत का महानतम फिल्मकार वह सत्यजीत रे को ही मानते थे क्योंकि सत्यजीत रे ने देश में ऐसे सिनेमाई मानक स्थापित किए, जिनका यहाँ कोई अस्तित्व था ही नहीं। 

बीबीसी को दिए इंटरव्यू (2009) में बेनेगल ने कहा था, "जब मैंने पहली फिल्म बनाई तो मुझे फिल्म निर्माण के तमाम पहलुओं की जानकारी थी। यही वजह थी कि अंकुर बनाने के बाद जब वी शांताराम ने मुझे फोन किया तो पूछा कि ऐसी फिल्म कैसे बनाई? अब तक क्या कर रहे थे? फिर मैं राज कपूर से मिला तो उन्होंने मुझसे कहा कि तुमने पहले कभी फ़िल्म नहीं बनाई फिर भी इतनी अच्छी फ़िल्म बना दी, ये कैसे किया?" 

श्याम बेनेगल की आठ आईकॉनिक फिल्में जिनको मिला नेशनल अवार्ड 

श्याम बेनेगल के नाम सबसे ज्यादा नेशनल अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड है। उन्हें 8 फिल्मों के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 

1974 में आई श्याम बेनेगल की फिल्म "अंकुर (द सीडलिंग)" को बहुत पसंद किया गया था। इस फिल्म के लिए शबाना आजमी को बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवार्ड और फिल्म को बेस्ट पिक्चर फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था। यह सिनेमा ग्रामीण आंध्र प्रदेश में जाति संघर्ष के बारे में एक यथार्थवादी नाटक, समानांतर सिनेमा आंदोलन के युग का प्रतीक है

1975 में आई श्याम बेनेगल की फिल्म "निशांत (नाइट्स एंड)" को इंडिया की तरफ से ऑस्कर में आर्टिफिशियल एंट्री मिली थी। फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था। 

1976 में आई श्याम बेनेगल की तीसरी फिल्म "मंथन (द मंथन)" थी। इस फिल्म को भी बेस्ट पिक्चर फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था। इस फिल्म को बनाने के लिए 5 लाख किसानों ने दो-दो रुपए इकट्ठा किए थे, जो उस समय काफी चर्चा में रही थी। 

1977 में आई श्याम बेनेगल की फिल्म "भूमिका (द रोल)" जो महिलाओं के अधिकारों पर आधारित थी। इस फिल्म के लिए स्मिता पाटिल को बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवार्ड मिला था। 


1978 में आई फिल्म "जुनून (द ऑब्सेशन)" श्याम बेनेगल की एपिक ड्रामा फ़िल्म थी। इस फिल्म को भी बेस्ट पिक्चर फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था। इसे शशि कपूर ने प्रोड्यूस किया था। 

1983 में आई फिल्म "मंडी (द मार्केटप्लेस)" जो कि कोठे की औरतों की कहानी पर आधारित थी, श्याम बेनेगल की आईकॉनिक फिल्म थी। इस फिल्म ने उस समय रिलीज के साथ ही खूब धमाल किया था और इस फिल्म को भी बेस्ट आर्ट डायरेक्शन का नेशनल अवार्ड मिला था। 

1992 में आई फिल्म "सूरज का सातवां घोड़ा" धर्मवीर भारती की उपन्यास पर आधारित था। इस फिल्म को भी बेस्ट फीचर फिल्म के लिए नेशनल अवार्ड मिला था। 

2001 में आई "जुबैदा" श्याम बेनेगल की काफी पसंद की जाने वाली फिल्म में से था। इसमें रेखा, करिश्मा कपूर मनोज बाजपेई अहम भूमिका में थे। इस फिल्म को भी नेशनल अवार्ड मिला था।
श्याम बेनेगल | Shyam Benegal

श्याम बेनेगल की उपलब्धियाँ :-

श्याम बेनेगल जी को अठारह राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (National Film Awards), एक फिल्मफेयर पुरस्कार (Filmfare Awards) और एक नंदी पुरस्कार सहित कई पुरस्कार मिले हैं। 2005 में उन्हें सिनेमा के क्षेत्र में भारत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार (Dada Saheb Phalke Award) से सम्मानित किया गया। 1976 में उन्हें भारत सरकार द्वारा देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म श्री (Padma Shri) से सम्मानित किया गया, और 1991 में उन्हें कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण (Padma Bhushan) से सम्मानित किया गया। 

श्याम बेनेगल ने फिल्म इंडस्ट्री को कई बड़ी और बेहतरीन फिल्में दी 

श्याम बेनेगल की उपलब्धियाँ ही बताती हैं कि उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को कई बड़ी और बेहतरीन फिल्में दी है। फिल्मों के अलावा श्याम बेनेगल ने हिंदी सिनेमा को स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी जैसे बड़े कलाकार भी दिए हैं। इस लाइन का आशय यह है कि श्याम बेनेगल एक्टर के काम को निखारते थे। वे सेट पर बेहद अलग अंदाज में काम करते थे। वह एक्टर को किरदार को सेट पर अपने किरदार के साथ एक्सपेरिमेंट करने का पूरा मौका देते थे। शूटिंग से पहले वह रिहर्सल में एक्टर को देखते थे कि वह अपने किरदार को कैसे निभा रहे हैं?

खबरों के अनुसार कई बार तो वह एक्टर के काम और डेडिकेशन को देखते हुए अपना शॉट और एंगल ही बदल देते थे। वह एक्टर्स के काम और कंट्रीब्यूशन को निखारते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उनके सेट पर किसी भी तरह की चिल्लम चिल्ली नहीं होती थी। उनके सेट पर कभी गाली-गलौच का माहोल भी नहीं था। इसके अलावा वह सेट पर 8 से 9 घंटे तक काम करना पसंद कते थे। इस वजह से उनके प्रोडक्शन हाउस या फिर फिल्म में कोई भी एक्टर थका नहीं दिखता था। 

श्याम बेनेगल को सिर्फ एक बात नहीं पसंद की थी

रिपोर्ट्स के अनुसार श्याम बेनेगल को एक बात बिल्कुल भी पसंद नहीं थी कि कोई एक्टर सेट पर आने के बाद कोई लाइन याद करे। किसी एक्टर को ऐसा करते हुए देखते थे तो वह गुस्सा हो जाते थे। वह अक्सर एक्टर को बोलते थे कि अपनी लाइनें यादकर करके ही वह सेट पर पहुंचा करें। उनके साथ काम करने वाले सभी एक्टर इस बात से अवगत हो गए थे और इस बात को फॉलो करते थे। 

श्याम बेनेगल का 90 की उम्र में निधन, लंबे वक्त से थे बीमार

23 दिसंबर 2024 को 90 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। श्याम बेनेगल का निधन मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल में हुआ जहाँ वे क्रोनिक किडनी रोग का इलाज करवा रहे थे। श्याम बेनेगल अब तक के सबसे बेहतरीन निर्देशकों में से एक थे। 

महामना मदन मोहन मालवीय | Pandit Madan Mohan Malaviya | बनारस हिंदू विश्वविद्यालय

महामना मदन मोहन मालवीय

मूल नाम : महामना मदन मोहन मालवीय
उपनाम : 'मकरन्द'
जन्म : 25 दिसम्बर 1861 |प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
निधन : 12 नवंबर 1946 | वाराणसी, उत्तर प्रदेश

जिनके नाम के आगे महामना लगा हो, ऐसे महान व्यक्तित्व के रूप में विख्यात एक कट्टर राष्ट्रवादी, पत्रकार, शिक्षाविद, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, समाज सुधारक, वकील और प्राचीन भारतीय संस्कृति के विद्वान पंडित मदन मोहन मालवीय जी की आज जयंती है। 

महामना मदन मोहन मालवीय | Pandit Madan Mohan Malaviya

25 दिसंबर 1861 को एक संस्कृत ज्ञाता के घर में महामना मदन मोहन मालवीय जी का जन्म हुआ। उनके पिता संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे और श्रीमद् भागवत की कथा सुनाकर आजीविका का निर्वहन करते थे। इनके पूर्वज मध्य प्रदेश के मालवा जिले से थे। इसीलिए इन्हें मालवीय कहा जाता है। इनका विवाह 16 वर्ष की आयु में मिर्जापुर के पंडित नंदलाल की पुत्री कुंदन देवी के साथ हुआ था। 

मदन मोहन मालवीय जी ने 5 वर्ष की उम्र से ही संस्कृत की पढ़ाई शुरू कर दी थी। मालवीय जी संस्कृत भाषा में प्रारंभिक शिक्षा लेकर प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण करके इलाहाबाद के जिला स्कूल में पढ़ाई की। 1879 में म्योर सेंट्रल कॉलेज जिसे आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।  मालवीय जी ने कोलकाता विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और 1884 में कोलकाता विश्वविद्यालय से बी. ए. की उपाधि प्राप्त की। 

 प्रारंभिक दिनों में मदन मोहन मालवीय जी ने शिक्षक की नौकरी की। उसके बाद वकालत की। तत्पश्चात वह एक न्यूज़पेपर के एडिटर भी रहे। 1915 में उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। वह हिंदू महासभा के संस्थापक रहे। मदन मोहन मालवीय प्राचीन और आधुनिक पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियों के संगम का प्रतिनिधित्व किया। सभी सभ्यताओं का सम्मान करते हुए खुद एक सच्चे ऋषि थे और साथ ही आधुनिक विचारों के प्रति भी खुले विचार के थे। स्वतंत्रता संग्राम में इनके उल्लेखनीय योगदान के कारण ये देश के प्रमुख नेताओं में से एक बन गए। उनकी कई महान उपलब्धियों में से एक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय है, जो महामना के जीवन और दृष्टि का जीवंत प्रमाण है। 
महामना मदन मोहन मालवीय | Pandit Madan Mohan Malaviya

महामना मदन मोहन मालवीय जी का जीवन परिचय 

भारतीय ज्ञान-सम्पदा व सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिमूर्ति महामना मदन मोहन मालवीय मध्य भारत के मालवा के निवासी पंडित प्रेमधर के पौत्र तथा पंडित विष्णु प्रसाद के प्रपौत्र थे। पंडित प्रेमधर जी संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान थे। मदन मोहन मालवीय जी के पूर्वजों ने इलाहाबाद में बस जाने सोचा, जबकि उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने पड़ोसी शहर मिर्जापुर को अपना निवास स्थान बनाया।

प्रेमधर जी भागवत की कथा को बड़े सरस ढंग से वाचन व प्रवचन करते थे और यही उनकी आजीविका का श्रोत भी था। मदन मोहन जी अपने पिता ब्रजनाथ जी के छः पुत्र-पुत्रियों में सबसे अधिक गुणी, निपुण एवं मेधावी थे। उनका जन्म 25 दिसम्बर 1861 (हिन्दू पंचाङ्ग के अनुसार पौष कृष्ण अष्टमी, बुधवार, सं0 1918 विक्रम) को इलाहबाद के लाल डिग्गी मुहल्ले में हुआ था। उनकी माता श्रीमती मोना देवी, अत्यन्त धर्मनिष्ठ एवं निर्मल ममतामयी देवी थीं। मदन मोहन जी में अनेक चमत्कारी गुण थे, जिनके कारण उन्होंने ऐसे सपने देखे जो भारत-निर्माण के साथ-साथ मानवता के लिए श्रेष्ठ आदर्श सिद्ध हुए। इन गुणों के कारण ही उन्हें महामना के नाम-रूप में जाना-पहचाना जाता है।

महामना मदन मोहन मालवीय जी की शिक्षा:-

महामना जी की प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद के महाजनी पाठशाला में 5 वर्ष की आयु में आरम्भ हुई थी। मदन मोहन मालवीय जी ने अपने व्यवहार व चरित्र में हिन्दू संस्कारों को भली-भांति आत्मसात् किया था। इसी के फलस्वरूप वे जब भी प्रातःकाल पाठशाला जाते थे, तो सबसे पहले हनुमान-मन्दिर में जाकर यह प्रार्थना अवश्य दुहराते थे:

मनोत्रवं मारूत तुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं श्री रामदूतं शिरसा नमामि ।

15 वर्ष के किशोरावस्था में ही उन्होंने काव्य रचना आरम्भ कर दी थी, जिसे वे अपने उपनाम मकरन्द से पहचाने जाते रहे। हाई स्कूल की परीक्षा सन् 1864 में उत्तीर्ण कर, म्योर सेण्ट्रल काॅलेज (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) में दाखिल हुए। विद्यालय व कालेज दोनों जगहों पर उन्होंने अनेक सांस्कृतिक व सामाजिक आयोजनों में सहभागिता की। सन् 1880 ई0 में उन्होंने हिन्दू समाज की स्थापना की।
महामना मदन मोहन मालवीय | Pandit Madan Mohan Malaviya

महामना मदन मोहन मालवीय जी के सामाजिक कार्य:-

मदन मोहन मालवीय जी कई संस्थाओं के संस्थापक तथा कई पत्रिकाओं के सम्पादक रहे। सामाजिक आयोजनों में बढ़ चढ़ कर सहभागिता की। इस दौरान इन्होंने हिन्दू आदर्शों, सनातन धर्म तथा संस्कारों के पालन द्वारा राष्ट्र-निर्माण की पहल की थी। इस दिशा में प्रयाग हिन्दू सभा की स्थापना कर समसामयिक समस्याओं के संबंध में विचार व्यक्त करते रहे। 

सन् 1884 में वे हिन्दी उद्धारिणी प्रतिनिधि सभा के सदस्य बने, सन् 1885 में इण्डियन यूनियन का सम्पादन किया, सन् 1887 में भारत-धर्म महामण्डल की स्थापना कर सनातन धर्म के प्रचार प्रसार का कार्य किया। सन् 1889 में हिन्दुस्तान का सम्पादन किया। सन् 1891 में इण्डियन ओपीनियन का सम्पादन कर उन्होंने पत्रकारिता को नई दिशा दी। इसके साथ ही सन् 1891 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत करते हुए अनेक महत्वपूर्ण व विशिष्ट मामलों में अपना लोहा मनवाया था। सन् 1913 में वकालत छोड़ दी और राष्ट्र की सेवा का व्रत लिया ताकि राष्ट्र को स्वाधीन देख सकें।

विद्यार्थियों के लिए उठाये गए कदम 

विद्यार्थियों के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा शुरू से ही रहा। सन् 1889 में इस जज्बे को अमली जामा पहनाया। विद्यार्थियों के जीवन-शैली को सुधारने की दिशा में उनके रहन-सहन हेतु छात्रावास का निर्माण कराया। सन् 1889 में एक पुस्तकालय भी स्थापित किया। इलाहाबाद में म्युनिस्पैलिटी के सदस्य रहकर सन् 1916 तक सहयोग किया। इसके साथ ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। सन् 1907 में बसन्त पंचमी के शुभ अवसर पर एक साप्ताहिक हिन्दी पत्रिका अभ्युदय नाम से आरम्भ की। साथ ही अंग्रेजी पत्र लीडर के साथ भी जुड़े रहे।

पिता की मृत्यु के बाद पंडित  मदन मोहन मालवीय जी देश-सेवा के कार्य को अधिक महत्व देने लगे। सन् 1919 में कुम्भ-मेले के अवसर पर प्रयाग में प्रयाग सेवा समिति बनाई ताकि तीर्थयात्रियों की देखभाल हो सके। इसके बाद निरन्तर वे स्वार्थरहित कार्यो की ओर अग्रसर हुए। 

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का निर्माण:-

मदन मोहन मालवीय जी संस्कृत हिंदी और अंग्रेजी तीनों भाषाओं के ज्ञाता थे। विद्यार्थियों के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बे में वो इतने आगे निकल गए कि इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो उस समय पर बेहद चुनौतीपूर्ण निर्णय था। 
महामना मदन मोहन मालवीय | Pandit Madan Mohan Malaviya
मदन मोहन मालवीय जी के व्यक्तित्व पर आयरिश महिला डाॅ. एनीबेसेण्ट का अभूतपूर्व प्रभाव पड़ा, जो हिन्दुस्तान में शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु दृढ़प्रतिज्ञ रहीं। वे वाराणसी नगर के कमच्छा नामक स्थान पर सेण्ट्रल हिन्दू काॅलेज की स्थापना सन् 1889 में कीं, जो बाद में चलकर हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का केन्द्र बना। 

पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने तत्कालीन बनारस के महाराज श्री प्रभुनारायण सिंह की सहायता से सन् 1904 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का मन बनाया। सन् 1905 में बनारस शहर के टाउन हाल मैदान की आमसभा में श्री डी. एन. महाजन की अध्यक्षता में एक प्रस्ताव पारित कराया। सन् 1911 में डाॅ. एनीबेसेण्ट की सहायता से एक प्रस्तावना को मंजूरी दिलाई, जो 28 नवम्बर 1911 में एक सोसाइटी का स्वरूप लिया। इस सोसायटी का उद्देश्य दि बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की स्थापना करना था। 25 मार्च 1915 में सर हरकोर्ट बटलर ने इम्पिरीयल लेजिस्लेटिव एसेम्बली में एक बिल लाया, जो 1 अक्टूबर सन् 1915 को ऐक्ट के रूप में मंजूर कर लिया गया।

4 फरवरी, सन् 1916 को दि बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, की नींव डाल दी गई। इस अवसर पर एक भव्य आयोजन हुआ। जिसमें देश व नगर के अधिकाधिक गणमान्य लोग, महाराजगण उपस्थित रहे। 
महामना मदन मोहन मालवीय | Pandit Madan Mohan Malaviya

महामना मदन मोहन मालवीय जी को महामना की उपाधि 

महात्मा गांधी जी ने मदन मोहन मालवीय जी को महामना की उपाधि दी थी। महात्मा गांधी उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे। मदन मोहन मालवीय जी ने ही "सत्यमेव जयते" को लोकप्रिय बनाया, जो बाद में चलकर राष्ट्रीय आदर्श वाक्य बना और इसे राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे अंकित किया गया। हालांकि इस वाक्य को हजारों साल पहले उपनिषद में लिखा गया था, लेकिन इसे लोकप्रिय मदन मोहन मालवीय जी ने किया। 

सन् 1918 के कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने इस वाक्य का प्रयोग किया था। उस वक्त मदन मोहन मालवीय जी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। मदन मोहन मालवीय जी ने कांग्रेस के कई अधिवेशनों की अध्यक्षता की। उन्होंने सन् 1909, 1913, 1919 और 1932 के कांग्रेस अधिवेशनों की अध्यक्षता की। मदन मोहन मालवीय जी ने सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। इन आंदोलनों का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था। 

भारत की आजादी के लिए मदन मोहन मालवीय जी बहुत आशान्वित रहते थे। एक बार उन्होंने कहा था, "मैं 50 वर्षों से कांग्रेस के साथ हूं, हो सकता है कि मैं ज्यादा दिन तक न जियूं और ये कसक रहे कि भारत अब भी स्वतंत्र नहीं है, लेकिन फिर भी मैं आशा रखूंगा कि मैं स्वतंत्र भारत को देख सकूं।" परन्तु उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी और आजादी मिलने के एक साल पहले ही सन् 1946 में मदन मोहन मालवीय का निधन हो गया और वह देश को स्वतंत्र होते हुए नहीं देख सके थे।

हैदराबाद निजाम की जूती नीलाम की घटना क्या है?

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) निर्माण के दौरान मदन मोहन मालवीय जी का एक किस्सा बड़ा मशहूर है।  बीएचयू निर्माण के लिए मदन मोहन मालवीय जी देशभर से चंदा इकट्ठा करने निकले थे। इसी सिलसिले में मालवीय जी हैदराबाद के निजाम के पास आर्थिक मदद की आस में पहुंचे। मालवीय जी ने निजाम से बनारस में यूनिवर्सिटी बनाने के लिए आर्थिक सहयोग देने को कहा। 

हैदराबाद के निजाम ने आर्थिक मदद देने से साफ मना कर दिया। निजाम ने बदतमीजी करते हुए कहा कि दान में देने के लिए उसके पास सिर्फ जूती है। मालवीय जी वैसे तो बहुत विनम्र थे, लेकिन निजाम की इस बदतमीजी के लिए उन्होंने उसे सबक सिखाई। वो निजाम की जूती ही उठाकर ले गए और बाजार में निजाम की जूती को नीलाम करने में लग गए। जब इस बात की जानकारी हैदाराबाद के निजाम को हुई तो उसे लगा कि उसकी इज्जत नीलाम हो रही है। इसके बाद निजाम ने मालवीय जी को बुलाकर उन्हें भारीभरकम दान देकर विदा किया। 

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए 1 करोड़ से ज्यादा का चंदा इकट्ठा किया

महामना मदन मोहन मालवीय | Pandit Madan Mohan Malaviya
अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान देश में एक स्वदेशी विश्वविद्यालय का निर्माण मदन मोहन मालवीय की बहुत बड़ी चुनौती थी और उपलब्धि भी। मालवीय जी ने विश्वविद्यालय निर्माण में चंदे के लिए पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्रा की थी। उन्होंने 1 करोड़ 64 लाख की रकम जमा कर ली थी। 

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए 1360 एकड़ जमीन दान में मिली 

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बनाने के लिए मदन मोहन मालवीय जी को 1360 एकड़ जमीन दान में मिली थी। इसमें 11 गांव, 70 हजार पेड़, 100 पक्के कुएं, 20 कच्चे कुएं, 40 पक्के मकान, 860 कच्चे मकान, एक मंदिर और एक धर्मशाला शामिल था। 

बताया जाता है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की पहली कल्पना दरभंगा नरेश कामेश्वर सिंह ने की थी। सन् 1896 में एनी बेसेंट ने सेंट्रल हिन्दू स्कूल खोला। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का सपना महामना के साथ इन दोनों लोगों का भी था। सन् 1905 में कुंभ मेले के दौरान विश्वविद्यालय का प्रस्ताव लोगों के सामने लाया गया।  उस समय निर्माण के लिए एक करोड़ रुपए जमा करने थे। सन् 1915 में पूरा पैसा जमा कर लिया गया। पांच लाख गायत्री मंत्रों के जाप के साथ भूमि पूजन हुआ। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी निर्माण का काम प्रारंभ हुआ। मदन मोहन मालवीय जी का सपना था कि बनारस की तरह शिमला में एक यूनिवर्सिटी खोली जाए, हालांकि उनका ये सपना भी पूरा नहीं हो सका। राष्ट्र के प्रति उनकी सेवा के सम्मान में वर्ष 2014 में भारत सरकार द्वारा उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

मदन मोहन मालवीय जी भारत के पहले और अंतिम व्यक्ति थे, जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाय उपाधि से विभूषित किया गया है।

दिगंबर जैन लाल मंदिर, दिल्ली || Digambar Jain Lal Mandir, Delhi

दिगंबर जैन लाल मंदिर

दिगंबर जैन मंदिर पुरानी दिल्ली का सबसे पुराना जैन मंदिर हैं। यह लाल मंदिर नेताजी सुभाष मार्ग चांदनी चौक और लाल किले के सामने स्थित जैन धर्म का सबसे पुराना मंदिर है। लाल मंदिर जिसे श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1656 में किया गया था, जिसे मुग़ल शासक शांहजहां के समय में बनाया गया था। इसकी ख़ास बात यह है कि यह मंदिर होने के साथ-साथ पक्षियों के लिए एक चैरिटेबल हॉस्पिटल भी चलाता है, जहां असहाय पक्षियों का इलाज किया जाता है।

दिगंबर जैन लाल मंदिर, दिल्ली || Digambar Jain Lal Mandir, Delhi

मंदिर का इतिहास

मंदिर का इतिहास मुग़ल शासक शांहजहां के शासन काल से जुड़ा है। मंदिर मूल रूप से 1656 में बनाया गया था और बाद में उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में इसका विस्तार और जीर्णोद्धार किया गया। ऐसा कहा जाता है कि      मुगल सम्राट शाहजहां ने कई बार जैन सेठ को शहर में आने के लिए आमंत्रित किया और उन्हें दारिबा गली के आसपास चंदानी चौक के दक्षिण में कुछ भूमि दी। उन्होंने उन्हें एक जैन मंदिर बनाने के लिए एक अस्थायी संरचना का निर्माण करने की भी अनुमति दी। 

जैन समुदाय ने मंदिर के लिए संवत 1526 में भृतराक जिनचंद्र के पर्यवेक्षण में जीवराज पापीवाल द्वारा स्थापित तीन संगमरमर मूर्तियों का अधिग्रहण किया था। मुख्य देवता तीर्थंकर पार्श्व थे। उस समय मंदिर में तीन संगमरमर की मूर्तियाँ थीं, जिन्हें मुगल सेना से संबंधित एक जैन अधिकारी की देखरेख में रखा गया था। मुगल काल के दौरान, मंदिर के लिए शिखर के निर्माण की अनुमति नहीं थी। भारत की आजादी के बाद जब मंदिर का बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण किया गया, तब तक इस मंदिर का औपचारिक शिखर नहीं था।

दिगंबर जैन लाल मंदिर, दिल्ली || Digambar Jain Lal Mandir, Delhi

मंदिर की वास्तुकला

जैसा कि नाम से ही विदित है कि मंदिर का निर्माण प्रभावशाली लाल बलुआ पत्थर से किया गया है। इसमें सामने की ओर एक मानस्तंभ है। एक छोटा सा प्रांगण जो एक स्तंभ से घिरा हुआ है और पहली मंजिल पर मुख्य भक्ति क्षेत्र है। इस मंदिर में कई देवता हैं, मुख्य देवता भगवान महावीर हैं, जिन्हें अंतिम जैन तीर्थंकर माना जाता है। इस मंदिर में ऋषभनाथ की मूर्ति भी है, जिन्हें पहले तीर्थंकर के रूप में जाना जाता है और भगवान पार्श्वनाथ की भी। यह प्रार्थना करने के लिए एक बहुत ही शांतिपूर्ण और शांत स्थान है। मंदिर के पूर्व कक्षों में विस्तृत नक्काशी और रंग-रोगन किया गया है। दुनिया भर से भक्त प्रार्थना करने और फल, अनाज, चावल और मोमबत्तियाँ चढ़ाने के लिए आते हैं। जलती हुई मोमबत्तियाँ और चमकदार रंग-रोगन मंदिर परिसर के अंदर एक शांत वातावरण बनाते हैं। मंदिर परिसर के अंदर एक किताबों की दुकान भी है, जिसमें दुनिया भर से जैन संस्कृति और धर्म से संबंधित पुस्तकें हैं। 

पक्षियों का चैरिटी अस्पताल

मंदिर के परिसर में एक प्रसिद्ध पक्षी अस्पताल है, जो खुद को दुनिया में अपनी तरह का एकमात्र संस्थान कहता है, कारण यह है कि यहाँ हर साल लगभग 15,000 पक्षियों का इलाज किया जाता है। आचार्य देशभूषण महाराज के निर्देश पर 1956 में बने इस भवन का निर्माण 1930 में ही अस्पताल के लिए किया गया था।

यहां पक्षियों का इलाज मुफ्त में किया जाता है, जो भगवान महावीर द्वारा दिए गए 'जियो और जीने दो' के संदेश से प्रेरित है। यह तीतरों के लिए बचाव अभयारण्य के रूप में कार्य करता है, जिन्हें फाउलर्स द्वारा पकड़ा और घायल किया जाता है और खरीदा जाता है। गिलहरी, जो पक्षियों को चोट नहीं पहुंचाएगी, का भी यहां इलाज किया जाता है, लेकिन शिकार के पक्षियों को सख्ती से बाह्य रोगी के आधार पर देखा जाता है, क्योंकि वे शाकाहारी नहीं हैं।

दिगंबर जैन लाल मंदिर, दिल्ली || Digambar Jain Lal Mandir, Delhi

यहाँ आये घायल पक्षियों को पहले गहन देखभाल इकाई में रखा जाता है। पक्षियों का इलाज किया जाता है, उन्हें नहलाया जाता है और उन्हें पौष्टिक आहार दिया जाता है ताकि वे जल्द ठीक हो जाएं। अंततः उन्हें सामान्य वार्डों में स्थानांतरित कर दिया जाता है, जहां यह अपने पंखों को पुनः प्राप्त करता है और अंततः उड़ जाता है। फेड, ब्रेड और पनीर का शाकाहारी भोजन, उपचार मुफ्त हैं और जैन दान द्वारा वित्त पोषित हैं। अस्पताल अपने शाकाहारी रोगियों को अपने मांसाहारी समकक्षों से अलग करता है। मांसाहारी शिकारी जैसे चील, बाज और बाज़ विशेष रूप से पहली मंजिल पर रखे जाते हैं। अंततः स्वस्थ घोषित किए जाने के बाद, विशेष रूप से प्रत्येक शनिवार को छत के एक हिस्से को खोल दिया जाता है और ठीक हुए पक्षी उड़ जाते हैं। 

अस्पताल जैन धर्म के एक केंद्रीय सिद्धांत का पालन करता है - सभी जीवित प्राणियों की स्वतंत्रता का अधिकार है, चाहे वह कितना भी छोटा या महत्वहीन क्यों न हो। और एक बार जब पक्षियों को भर्ती कर लिया जाता है, तो संभावित कारावास के डर से उन्हें कभी भी उसके मालिकों को वापस नहीं किया जाता है।

दिगंबर जैन लाल मंदिर यात्रा के लिए सर्वोत्तम समय

मंदिर में दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय पर्युषण, संवत्सरी, ज्ञान पंचमी और दीपावली के त्यौहारों के दौरान होता है, जब मंदिर में उत्सव अपने चरम पर होता है। वैसे इन दिनों मंदिर में खासा भीड़ रहता है, तो शांतिप्रिय लोग कभी भी इस मंदिर में जाने का प्लान कर सकते हैं।  

श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर तक कैसे पहुंचें

सड़क द्वारा सेस्थानीय और राज्य बसें मंदिर तक जाती हैं, निकटतम बस स्टॉप शिवाजी पार्क बस स्टॉप है।

रेल द्वारा से: श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर का निकटतम मेट्रो स्टेशन चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 1.5 किमी दूर है।

हवाईजहाज से: निकटतम हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग से 20.4 किमी दूर स्थित है।

श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर का समय

गर्मियों के दौरान, श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर दिल्ली सुबह 5:30 से 11:30 बजे तक और शाम 6:00 बजे से 9:30 बजे तक खुला रहता है। सर्दियों में, श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर सुबह 6:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम 5:30 बजे से 9:00 बजे तक खुला रहता है।

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Digambar Jain Lal Mandir

Digambar Jain Mandir is the oldest Jain temple in Old Delhi. This Lal Mandir is the oldest temple of Jainism located in front of Netaji Subhash Marg Chandni Chowk and Red Fort. Lal Mandir is also known as Shri Digambar Jain Lal Mandir. This Shri Digambar Jain Lal Mandir is dedicated to the 23rd Tirthankara Parshvanath. This temple was built in 1656, which was built during the time of Mughal ruler Shah Jahan. Its special thing is that apart from being a temple, it also runs a charitable hospital for birds, where helpless birds are treated.

दिगंबर जैन लाल मंदिर, दिल्ली || Digambar Jain Lal Mandir, Delhi

History of the temple

The history of the temple is associated with the reign of Mughal ruler Shah Jahan. The temple was originally built in 1656 and was later expanded and renovated in the early nineteenth century. It is said that Mughal emperor Shah Jahan invited Jain Seth to visit the city several times and gave them some land south of Chandani Chowk around Dariba Gali. He also allowed them to build a temporary structure to house a Jain temple.

The Jain community acquired three marble idols for the temple installed by Jivraj Papiwal under the supervision of Bhritaraka Jinchandra in Samvat 1526. The main deity was Tirthankara Parshwanatha. At that time the temple had three marble idols, which were placed under the supervision of a Jain officer belonging to the Mughal army. During the Mughal period, the construction of a shikhara for the temple was not permitted. The temple did not have a formal shikhara until after India's independence when the temple was extensively reconstructed.

Architecture of the Temple

As the name suggests, the temple is constructed with impressive red sandstone. It has a manastambha in the front. A small courtyard surrounded by a pillar and the main devotional area on the first floor. There are many deities in this temple, the main deity is Lord Mahavira, who is considered to be the last Jain Tirthankara. This temple also has the idol of Rishabhanatha, who is known as the first Tirthankara and also of Lord Parshvanath. It is a very peaceful and serene place to pray. The antechambers of the temple have elaborate carvings and paint. Devotees from all over the world come to pray and offer fruits, grains, rice and candles. The burning candles and bright paint create a serene atmosphere inside the temple premises. There is also a bookstore inside the temple premises, which has books related to Jain culture and religion from all over the world.

Birds Charity Hospital

The temple premises have a famous bird hospital, which calls itself the only institution of its kind in the world, the reason being that around 15,000 birds are treated here every year. Built in 1956 on the instructions of Acharya Deshbhushan Maharaj, the building was constructed in 1930 for the hospital itself.

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The birds are treated here free of cost, inspired by the message of 'live and let live' given by Lord Mahavira. It serves as a rescue sanctuary for pheasants, which are caught and injured by fowlers and bought. Squirrels, which will not hurt birds, are also treated here, but birds of prey are strictly seen on an outpatient basis, as they are not vegetarians.

The injured birds brought here are first kept in the intensive care unit. The birds are treated, bathed and given nutritious food so that they recover soon. Eventually they are shifted to the general wards, where it regains its wings and eventually flies away. Fed a vegetarian diet of bread and cheese, the treatments are free of cost and funded by Jain donations. The hospital differentiates its vegetarian patients from their non-vegetarian counterparts. Carnivorous predators like eagles, hawks and falcons are housed exclusively on the first floor. After they are finally declared healthy, a portion of the roof is opened up and the cured birds fly out, especially every Saturday.

The hospital follows a central tenet of Jainism – all living beings have a right to freedom, no matter how small or insignificant. And once the birds are admitted, they are never returned to their owners for fear of possible imprisonment.

Best Time to Visit Digambar Jain Lal Mandir

The best time to visit the temple is during the festivals of Paryushan, Samvatsari, Gyan Panchami and Deepawali, when the festivities at the temple are at their peak. Though the temple is quite crowded during these days, peace-loving people can plan to visit this temple anytime.

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How to Reach Shri Digambar Jain Lal Mandir

By Road: Local and state buses ply to the temple, the nearest bus stop is Shivaji Park Bus Stop.

By Train: The nearest metro station to Shri Digambar Jain Lal Mandir is Chandni Chowk Metro Station, which is about 1.5 km from the temple.

By Air: The nearest airport is Indira Gandhi International Airport, located 20.4 km from the Golden Quadrilateral Highway.

Shri Digambar Jain Lal Mandir Timings

During summers, Shri Digambar Jain Lal Mandir Delhi is open from 5:30 am to 11:30 am and from 6:00 pm to 9:30 pm. In winters, Shri Digambar Jain Lal Mandir is open from 6:00 am to 12:00 pm and from 5:30 pm to 9:00 pm.

कमजोर स्मरण शक्ति | Weak Memory

कमजोर स्मरण शक्ति

कमजोर स्मरण शक्ति आजकल प्रायः युवा लोगों में देखी जाती है। बुढ़ापे में भी इसकी आम शिकायत रहती है।मनुष्य अपने दिमाग का 5 -8 % ही उपयोग करता है। जिसके कारण दिमाग धीमी गति से काम करता है और हम कुछ छोटी बातों और चीजों को भूल जाते हैं। या ये भी कह सकते हैं कि जिन बातों पर ध्यान नहीं देते वो भूल जाती है।
कमजोर स्मरण शक्ति | Weak Memory

यादास्त कमजोर होने का कारण :-(Causes Of  Weak Memory  ):- 

यादास्त कमजोर होने के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण आज की हमारी व्यस्त भागमभाग जीवनशैली है। जिसमें हम अपने ऊपर ध्यान नहीं दे पाते। धीरे -धीरे छोटी छोटी बातों को नजरअंदाज करते करते यह बीमारी का रूप ले लेता है। कुछ मुख्य कारण :
#  अत्यधिक चिंता
#  अच्छी नींद न लेना
#  भय ग्रस्त होना
#  अत्यधिक क्रोध या शोक में रहना
#  सुबह नाश्ता (भोजन) ना करना , देर तक खाली पेट रहना
#  पानी कम पीना, शरीर की आवश्यकता से कम पानी पीने से भी यादास्त कमजोर होने के साथ और भी परेशानियाँ होती हैं।
#  एक समय पर कई काम करना
#  हानिकारक पदार्थों का सेवन, जैसे बीड़ी, सिगरेट, शराब, पिज़्ज़ा, बर्गर आदि

यादास्त कमजोर होने  के लक्षण (Symptoms of Weak Memory):-


#  दिमाग का हर समय थका हुआ महसूस होना।
#  हमेशा सिर दर्द की शिकायत रहना।
#  किसी काम में मन नहीं लगना।
#  बातों को या चीजों को जल्दी भूल जाना।

स्मरण शक्ति बढ़ाने के घरेलू उपचार (Home Remedies For strong memory ):-

कमजोर स्मरण शक्ति | Weak Memory
इसके कुछ घरेलू उपचार निम्नलिखित हैं।
#  सुबह - शाम बादाम रोगन या देसी गाय का घी नाक में डालें। 
# शंखपुष्पी को पीसकर चूर्ण बनाएं 250 ग्राम दूध में आधा चम्मच शंखपुष्पी और 1 चम्मच शहद मिलाकर प्रातः काल लें।
#  प्रतिदिन सुबह गाय के दूध के साथ 1 आँवले का मुरब्बा लेने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
#  गाय  दूध में 8 -10 खजूर उबालकर पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
#  गाय  दूध में मुलहठी का 1 चम्मच चूर्ण डालकर पियें।
#  पीपल के पेड़ की छाल का चूर्ण शहद के साथ चाटें।
#  आम का रस, अदरख का रस, तुलसी के पत्तों का रस बराबर मात्रा में लेकर शहद के साथ उपयोग करें।
#  5 -7 बादाम गिरी रात को पानी में भिगों दें, सुबह इसका पेस्ट बनाकर दूध के साथ लें।
#  स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए भस्त्रिका, अनुलोम विलोम, भ्रामरी तथा उद्गीत प्राणायाम करें।
कमजोर स्मरण शक्ति | Weak Memory

Weak Memory


Weak memory power is often seen in young people nowadays. It is a common complaint even in old age. Man uses only 5-8% of his brain. Due to which the brain works slowly and we forget some small things and things. Or we can also say that the things we do not pay attention to are forgotten.

Reasons for weak memory: - 

There are many reasons for weak memory. The biggest reason is our busy lifestyle today. In which we are not able to pay attention to ourselves. Gradually, by ignoring small things, it takes the form of a disease. Some main reasons:

# Excessive worry

# Not getting good sleep

# Being afraid

# Being in extreme anger or grief

# Not having breakfast (meal) in the morning, staying hungry for a long time

# Drinking less water, drinking less water than the body's requirement also causes other problems along with weak memory.

# Doing many things at the same time

# Consumption of harmful substances, such as bidi, cigarette, alcohol, pizza, burger etc.

Symptoms of weak memory:-


# Feeling tired of the brain all the time.

# Always complaining of headache.

# Not being able to concentrate on any work.

# Forgetting things or things quickly.
कमजोर स्मरण शक्ति | Weak Memory

Home remedies for increasing memory power:-

Some of its home remedies are as follows.

# Put almond oil or desi cow ghee in the nose in the morning and evening.

# Grind Shankhpushpi and make powder. Mix half a teaspoon of Shankhpushpi and 1 teaspoon of honey in 250 grams of milk and take it in the morning.

# Taking 1 gooseberry jam with cow milk every morning increases memory power.

# Drinking 8-10 dates boiled in cow milk increases memory power.

# Add 1 teaspoon of liquorice powder in cow milk and drink it.

# Lick the powder of the bark of the Peepal tree with honey.

# Take mango juice, ginger juice and basil leaves juice in equal amounts and use it with honey.

# Soak 5-7 almond kernels in water at night, make a paste of it in the morning and take it with milk.

# To increase memory power, do Bhastrika, Anulom Vilom, Bhramari and Udgeet Pranayama.


मौसम का मिज़ाज़

मौसम का मिज़ाज़

Rupa Oos ki ek Boond
"सब कुछ नहीं मिलता जिंदगी में...
 कुछ चीज मुस्कुरा कर छोड़ देनी चाहिए....❣️"

मौसम का मिज़ाज़

ठंडी हवाएं मन गुनगुनाता है

कहता है यह ढूंढे चलो नए रास्ते

मौसम का अजीब सा फलसबा है

ओस में डुबा सारा ज़माना है

कहां से आये है मेहमा नये

पंछियों का आज कल यह नया ठिकाना है

आग की आच पर तप रहे बदन,

चादर ओढ़े घूम रहे लोग

चाय की प्यले के साथ दिन भर गुज़रता है

पानी की बोतल वैसी भरी नज़र आती हैं

फिर बदलेगा ये मौसम का मिजाज 

सूरज की किरणों से 

तपेगी धरती 

ऐसी ही चलती रहेगी ज़िन्दगी

अनिद्रा (Insomnia) : Rajiv Dixit

 अनिद्रा

अनिद्रा में रोगी को पर्याप्त नींद आती। नींद की अवधि पूरी होने के पहले या बीच- बीच में नींद खुल जाती है। जिससे रोगी को आवश्यकतानुसार नींद नहीं हो पाती, विश्राम नहीं हो पाता और इसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ्य रहने क लिए पर्याप्त नींद लेना जरुरी होता है। लगातार नींद पूरी न होने से अन्य स्वस्थ्य संबंधी समस्याएं भी शुरू हो जाती हैं।
अनिद्रा (Insomnia) : Rajiv Dixit
अनिद्रा का कारण (Causes Of  Insomnia)
      यह बीमारी कई कारणों से होती है।इसमें रोगी को नींद नहीं आती। नींद आने पर जरा सी आहट से नींद खुल जाती है। इसलिए शरीर में थकान और आलस्य हमेशा रहता है।
#  अनिद्रा मानसिक अशांति के कारण होती है।
#  बहुत अधिक थकान रहने से ।
#  गलत ढंग से खाने पीने से।
#   कब्ज रहने से।
#  मानसिक तनाव और चिंता रहने से।
#  शरीर के किसी भी भाग के रोग ग्रस्त हो जाने से।
#  अत्यधिक धूम्रपान और मदिरापान करने से।
#  हर दिन सोने के समय में बदलाव से।
#  सोते समय तक मोबाइल, टीवी ,कंप्यूटर आदि का प्रयोग करते रहना।
#  दिन के समय सोना।
अनिद्रा (Insomnia) : Rajiv Dixit

अनिद्रा  के  लक्षण (Symptoms of Insomnia):

# ज्यादा देर तक जागना।
# रात सोने में परेशानी होना।
# दिन में थकान तथा आलस बने रहना।
# सोते में बार -बार उठना या नींद खुल जाना।
# सुबह उठने बाद तरोताज़ा महसूस न होना।

अनिद्रा के लिए घरेलू उपचार (Home Remedies For Insomnia):
अनिद्रा (Insomnia) : Rajiv Dixit

 इसके कुछ घरेलू उपचार निम्नलिखित हैं।
#  गाय का घी एक एक बूंद थोड़ा गर्म करके रात में सोते समय नाक में डाल दें, इसका अद्भुत लाभ है।
#   रात्रि में सोने से पूर्व अच्छे ढंग से गर्म पानी से हाथ पैर धो कर तलवों पर सरसों के तेल का मालिश करें।
#   सरसों के तेल में कपूर अथवा आंवले के तेल में कपूर मिलाकर सिर पर मालिश करने से भी अच्छी नींद आती है
#  दो चम्मच शहद और एक चम्मच प्याज का रस मिलाकर चाहते से लाभ होता है।
#  रात्रि भोजन के पश्चात पत्ता गोभी खाने से तथा सेब का मुरब्बा लेने से नींद अच्छी आती है।
#  पपीते की सब्जी या पका पपीता खाने से अनिद्रा का रोग कम होता जाता है।
#  मेहंदी के पत्तों को पीसकर तलवों में लगाने से अनिद्रा दूर होती है।
#  मेथी दाना दोनों हाथों के अंगूठे के नाखून के नीचे बांध ले और सो  जाऐं।
#  अपनी जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाएं, सोने और जागने का समय निर्धारित करें, जल्दी सोएं जल्दी जागें। #  नियमित योग व्यायाम करें।
#  सोने से पहले भारी भोजन न करें।
#  सोने से 1 -2 घंटे पहले मोबाइल, टीवी,कंप्यूटर बंद कर दें।

मैं एक पुरूष हूं

मैं एक पुरूष हूं

मैं एक पुरूष हूं
"इतना सब्र करना सीख जाओ कि, 
       अब कुछ बुरा भी हो तो बुरा ना लगे...❣️"

मैं पुरुष हूं

इसलिए कठोर हृदय हूं 

 मुझे कोमलता से क्या सरोकार 

आंसुओं को जब्त कर लेता हूं

पर आत्मा तो एक है 

वो कहां मानती है भेदभाव 

जन्मों से उसका आवागमन है 

कभी पुरुष तो कभी स्त्री का 

 वेश धारण किया है उसने 

पुरुष की कठोरता है उसमें 

तो स्त्री की कोमलता भी है 

मुझे (पुरुष) भी दर्द होता है 

स्त्री के प्रेम में पड़ा हुआ पुरूष 

चाहता है थोड़ा सा प्रेम 

उसके आंचल की छांव में 

आंसुओं से भीगना चाहता है

अपने कठोर हृदय के आवरण को उतारना चाहता है 

पिघलना चाहता है उसके प्रेम में 

थक कर उसकी गोद का आसरा खोजता है 

वह उससे कहना चाहता है 

हां मैं हूं एक.....

पिता पति पुत्र भाई और दोस्त ‌

पर एक कोमल हृदय आत्मा भी हूं 

मैं चाहता हूं स्पर्श तुम्हारे हाथों का 

मान अभिमान‌ कठोर होने का दिखावा 

सब उतार फेंकना चाहता हूं 

मैं चाहता हूं तुम्हारे प्रेम की तपिश 

थोड़ा सा तुम्हारे प्रेम में दुलार

दुनिया के मापदंडों से मैं थक गया हूं 

मैं खुलकर रोना चाहता हूं 

तुम अपने कोमल हाथों को 

मेरे सिर पर रखना 

और कहना कि मैं हुं 

अधिकार देना मुझे टूट कर बिखरने की 

आश्वासन और विश्वास देना 

समेट कर मुझे संबल प्रदान करोगी

हां मैं पुरुष हूं 

पर मैं एक कोमल हृदय भी हूं ।

गुलाम की सीख

 गुलाम की सीख

दास प्रथा के समय में एक मालिक के पास अनेकों गुलाम हुआ करते थे। उन्हीं में से एक था सुखराम। सभी गुलामों में सुखराम चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी। 

गुलाम की सीख

एक दिन इस बात की खबर उसके मालिक को लगी, मालिक ने सुखराम को बुलाया और कहा- सुना है कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ। अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी। अच्छा जाओ, एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा बढ़िया हो, उसे ले आओ।

सुखराम ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी। तब मालिक के कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया। सुखराम ने कहा - अगर शरीर में जीभ अच्छी हो तो सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता है।

मालिक ने आदेश देते हुए कहा - "अच्छा! इसे उठा ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो वो ले आओ।"

सुखराम बाहर गया और थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को वापस लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया। मालिक के फिर से कारण पूछने पर सुखराम ने कहा - "अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा ही बुरा है।"    उसने आगे कहते हुए कहा - "मालिक! वाणी तो सभी के पास जन्मजात होती है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है, क्या बोलें, कैसे शब्द बोलें, कब बोलें? इस एक कला को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है। कड़वी बातों ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये हैं। इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाये हैं। जीभ तीन इंच का वो हथियार है, जिससे कोई छः फिट के आदमी को भी मार सकता है तो कोई मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक सकता है। संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को ही मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और दुरूपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो सकता है। भारत के विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था।"

मालिक, सुखराम की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों से बहुत खुश हुए। आज उनके गुलाम ने उन्हें एक बहुत बड़ी सीख दी थी और अपने कहे अनुसार उन्होंने उसे आजाद कर दिया।


हमारी वाणी हमारे व्यत्कित्व का प्रतिबिम्ब है।

हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron

हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल 

सामान्य नाम:  गुलाबी बुरांस
स्थानीय नाम: गुलाबी बुरांस
वैज्ञानिक नाम: 'रोडोडेंड्रोन कैम्पानुलैटम'

गुलाबी बुरांस हिमाचल प्रदेश का राज्य फूल है। यह नेपाल का राष्ट्रीय फूल भी है। यह फूल ऊंचे तथा ठन्डे जलवायु वाले स्थान में पाया जाता है। इस बेल रोडोडेंड्रॉन, बेल फ्लावर रोडोडेंड्रॉन या बुरांश नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम “Rhododendron campanulatum.” है। पहले साधारण बुरांश हिमाचल प्रदेश का राज्य फूल था, जो व्यापक रूप से हिमालय रेंज में वितरित किया जाता है और रोडोडेंड्रॉन अर्बोरियम उत्तराखंड का एक राज्य वृक्ष है, इसलिए हिमाचल प्रदेश में इसे गुलाबी रोडोडेंड्रॉन में बदल दिया और इसे अपना राज्य फूल बना दिया।  यह बहुत ही सुन्दर फूल होता है। गुलाबी रोडोडेंड्रॉन IUCN (International Union for Conservation of Nature) की संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में है। 
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron
फूलों के पौधे की यह प्रजाति एक सदाबहार झाड़ी या एक छोटा पेड़ है जो 5 मीटर तक पहुंचता है। तने अच्छी तरह से शाखाबद्ध होते हैं, और पत्तियां अंडाकार से अण्डाकार होती हैं। गुलाबी रंग के सफेद फूल टर्मिनल कोरिंबोज रेसमी में व्यवस्थित होते हैं। यह प्रजाति भारत की मूल निवासी है और जम्मू और कश्मीर से सिक्किम तक भारतीय हिमालयी क्षेत्र में 2400 से 5200 मीटर की ऊंचाई पर व्यापक रूप से पाई जाती है।

हिमाचल प्रदेश के राज्य प्रतीक  

राज्य पशु – हिम तेंदुआ 
राज्य पक्षी –  पश्चिमी ट्रैगोपैन
राज्य वृक्ष – देवदार
राज्य पुष्प – गुलाबी बुरांस
राज्य की भाषा – हिन्दी (हिमाचल प्रदेश में कई भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से हिन्दी प्रमुख भाषा है:
हिन्दी, कांगड़ी, पहाड़ी, पंजाबी, मंडियाली, डोगरी, ब्रज भाषा, गढ़वाली, कुमाऊंणी, जगरण)
राज्य मछली – गोल्डन महसीर

भारतीय हिमालय श्रृंखला के साथ-साथ यह फूल तिब्बत में भी पाया जाता है। पूरी दुनिया में यह इसकी 900 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। गुलाबी बुरांस उनमें से एक है, इसकी अधिकांश प्रजातियां भारत-पाकिस्तान तिब्बत, भूटान, चीन और नेपाल के हिमालय पर्वतमाला में पाई जाती है। इसकी यह खासियत है कि यह इसकी सभी प्रजातियां चिकित्सकीय रूप से अत्यधिक समृद्ध हैं। लोग इस फूल का रस भी बनाते हैं। गुलाबी बुरांस के बेल में फूल में मई से नवंबर के बीच में आते हैं। 
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron
बुरांश के फूलों को सेहत के लिए बेहद चमत्कारी माना जाता है। पहाड़ों पर रहने वाले लोग इस फूल का इस्तेमाल सदियों से विभिन्न बीमारियों के इलाज में करते रहे हैं। लोग इसे पहाड़ों पर मिलने वाली संजीवनी बूटी कहते हैं। कई रिसर्च में भी बुरांश के फूलों के औषधीय गुणों पर मुहर लग चुकी है। यह बेहद खूबसूरत फूल सेहत के लिए प्रकृति का वरदान है। कई रिसर्च में इस फूल को सेहत के लिए रामबाण माना गया है। 

इस फूल का जूस, स्क्वैश, जैली, अचार और शहद बनाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। लोगों के लिए यह फूल प्रकृति का वरदान है। रिसर्चगेट की रिपोर्ट के अनुसार बुरांश के फूल में फाइटोकेमिकल प्रॉपर्टी होती हैं और इसका उपयोग बैक्टीरियल इंफेक्शन, सिरदर्द, डायरिया और फंगल इंफेक्शन के इलाज के रूप में किया जाता रहा है। 
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron

English Translate

State flower of Himachal Pradesh


Common name: Pink Rhododendron
Local name: Pink Rhododendron
Scientific name: 'Rhododendron campanulatum'
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron
Pink Rhododendron is the state flower of Himachal Pradesh. It is also the national flower of Nepal. This flower is found in high and cold climate areas. This vine is also known as rhododendron, bell flower rhododendron or buransh. Its scientific name is “Rhododendron campanulatum.” Earlier the common rhododendron was the state flower of Himachal Pradesh, which is widely distributed in the Himalayan range and Rhododendron arboreum is a state tree of Uttarakhand, so Himachal Pradesh changed it to pink rhododendron and made it its state flower. It is a very beautiful flower. Pink Rhododendron is in the list of endangered species of IUCN (International Union for Conservation of Nature).

This species of flowering plant is an evergreen shrub or a small tree that reaches up to 5 meters. The stems are well branched, and the leaves are ovate to elliptical. The pinkish white flowers are arranged in terminal corymbose racemes. The species is native to India and is widely found in the Indian Himalayan region from Jammu and Kashmir to Sikkim at an altitude of 2400 to 5200 m.

State Symbols of Himachal Pradesh

State Animal – Snow Leopard
State Bird – Western Tragopan
State Tree – Deodar
State Flower – Pink Rhododendron
State Language – Hindi (Many languages ​​are spoken in Himachal Pradesh, out of which Hindi is the major language: Hindi, Kangri, Pahari, Punjabi, Mandiali, Dogri, Braj Bhasha, Garhwali, Kumauni, Jagran)
State Fish – Golden Mahseer
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron
Along with the Indian Himalayan range, this flower is also found in Tibet. It has more than 900 species found all over the world. Pink rhododendron is one of them, most of its species are found in the Himalayan ranges of India-Pakistan Tibet, Bhutan, China and Nepal. Its specialty is that all its species are extremely rich in medicinal properties. People also make juice of this flower. The flowers of pink rhododendron vine come between May to November.

Rhododendron flowers are considered very miraculous for health. People living in the mountains have been using this flower for centuries in the treatment of various diseases. People call it Sanjeevani Booti found in the mountains. The medicinal properties of rhododendron flowers have also been confirmed in many researches. This very beautiful flower is a boon of nature for health. In many researches, this flower has been considered a panacea for health.
हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल - गुलाबी बुरांस || State Flower of Himachal Pradesh - Pink Rhododendron
This flower is also used to make juice, squash, jelly, pickles and honey. This flower is a boon of nature for people. According to ResearchGate, rhododendron flowers have phytochemical properties and have been used to treat bacterial infections, headache, diarrhea, and fungal infections.