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यमुनोत्री गंगोत्री, उत्तराखंड || Yamunotri Temple, Uttarakhand

यमुनोत्री मंदिर

उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है। इस पावन स्थल पर कई प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। इनमें चार धाम यात्रा विश्व प्रसिद्ध है। ये धाम क्रमशः यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ हैं। चार धाम यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री से होती है। समुद्रतल से यमुनोत्री की ऊंचाई 3291 मी है। इस स्थान पर मां यमुना का मंदिर स्थापित है।

यमुनोत्री गंगोत्री, उत्तराखंड || Yamunotri Temple, Uttarakhand

यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिमी क्षेत्र में, उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में 3,291 मीटर  (10,804 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर देवी यमुना को समर्पित है और इसमें देवी की एक काले संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। यमुनोत्री मंदिर उत्तराखंड के मुख्य शहरों - ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून से पूरे दिन की यात्रा करके पहुंचा जा सकता है। 

यमुनोत्री, यमुना नदी का स्रोत और हिंदू धर्म में देवी यमुना का स्थान है। उत्तराखंड के चार धाम तीर्थ यात्रा में यह चार स्थलों में से एक है। यमुना नदी के स्रोत यमुनोत्री का पवित्र गढ़, गढ़वाल हिमालय में पश्चिमीतम मंदिर है, जो बंदर पुंछ पर्वत की एक झुंड के ऊपर स्थित है। 

यमुनोत्री गंगोत्री, उत्तराखंड || Yamunotri Temple, Uttarakhand

यमुनोत्री मंदिर तक जाने के लिए हनुमान चट्टी शहर से 13 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी पड़ती है। इसके बाद, जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। इस रास्ते में घोड़े या पालकी भी किराए पर उपलब्ध हैं। हनुमान चट्टी से यमुनोत्री तक की चढ़ाई के दौरान कई झरनें देखे जा सकते हैं। हनुमान चट्टी से यमुनोत्री तक दो ट्रेकिंग मार्ग हैं, एक दाहिने किनारे के साथ मार्कंडेय तीर्थ के माध्यम से आगे बढ़ता है, जहां ऋषि मार्कंडेय ने मार्कंडेय पुराण लिखा था, दूसरा मार्ग जो नदी के बाएं किनारे पर स्थित है, खरसाली से होकर जाता है, जहां से यमुनोत्री पांच या छह घंटे की चढ़ाई की दूरी पर है। 

यह मंदिर अक्षय तृतीया को खुलता है और सर्दियों के लिए यम द्वितीया (दिवाली के बाद दूसरा दिन) को बंद हो जाता है। थोड़ा आगे यमुना नदी का वास्तविक स्रोत है, जो लगभग 4,421 मीटर की ऊंचाई पर है। यमुनोत्री में दो गर्म झरने भी मौजूद हैं, जो 3,292 मीटर की ऊंचाई पर हैं। सूर्य कुंड में गर्म पानी होता है, जबकि गौरी कुंड में स्नान के लिए उपयुक्त गुनगुना पानी होता है। मंदिर के आसपास कुछ छोटे आश्रम और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। यहां उनियाल परिवार के पुजारियों द्वारा प्रसाद बनाने उसके वितरण करने और अनुष्ठान पूजा जैसे कर्तव्यों का पालन किया जाता है। 

यमुना की मूर्ति में एक काली सफेद में एक महिला दृष्टि है और यमुना बंदर पुंछ रेंज में कालींदी पर्वत से बहती है। यहां फूल, विशेष रूप से जंगली गुलाब, बहुतायत में बढ़ते हैं। यमुनोत्री कुछ हरे रंग की चेस्टनट के पेड़ से घिरा हुआ है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना में एक डुबकी लगाने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। 

सनातन शास्त्रों में निहित है कि इस स्थल पर असित मुनि रहते थे। आसान शब्दों में कहें तो यमुनोत्री उनका निवास स्थान था। ब्रह्मांड पुराण में यमुनोत्री को पावन स्थल बताया गया है। साथ ही यमुना नदी के बारे में विस्तार से बताया गया है।

यमुनोत्री गंगोत्री, उत्तराखंड || Yamunotri Temple, Uttarakhand

महाभारत काल में पांडवों ने चार धाम यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री से की थी। इसके बाद क्रमशः गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा की थी। उस समय से चार धाम यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री से की जाती है। यमुनोत्री प्रांगण में एक स्तंभ स्थापित है। इस विशाल स्तंभ को दिव्यशिला कहा जाता है। इस मंदिर के प्रांगण में पदयात्रा कर पहुंचना होता है। पूर्व में वाहन से श्रद्धालु हनुमान चट्टी तक पहुंचते थे। इस स्थल से मंदिर की दूरी 14 किलोमीटर है। वहीं, अब श्रद्धालु जानकी चट्टी तक वाहन से पहुंच सकते हैं। यहां से मंदिर की दूरी महज 5 किलोमीटर है। इस दौरान श्रद्धालु देवी-देवताओं का उद्घोष करते हैं। ऋषिकेश से यमुनोत्री की दूरी 200 किलोमीटर है। माता यमुना मंदिर का निर्माण टिहरी गढवाल के महाराजा प्रताप शाह ने करवाया था।

मंदिर के कपाट दीवाली के बाद बंद कर दिए जाते हैं। वहीं, अक्षय तृतीया के दिन चार धाम के कपाट खोले जाते हैं। हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु चार धाम की यात्रा करते हैं। श्रद्धालु देश की राजधानी दिल्ली से वायु, सड़क और रेल मार्ग के जरिए यमुनोत्री के निकटतम गंतव्य तक पहुंच सकते हैं।

English Translate

Yamunotri Temple

Uttarakhand is called the land of Gods. There are many major religious places on this holy place. Among these, the Char Dham Yatra is world famous. These Dhams are Yamunotri, Gangotri, Kedarnath and Badrinath respectively. The Char Dham Yatra starts from Yamunotri. The height of Yamunotri is 3291 m above sea level. The temple of Mother Yamuna is established at this place.

यमुनोत्री गंगोत्री, उत्तराखंड || Yamunotri Temple, Uttarakhand

Yamunotri Temple is located in the western region of the Garhwal Himalayas, in Uttarkashi district of Uttarakhand state at an altitude of 3,291 meters (10,804 feet). This temple is dedicated to Goddess Yamuna and a black marble statue of the goddess is installed in it. Yamunotri Temple can be reached by a full day trip from the main cities of Uttarakhand - Rishikesh, Haridwar and Dehradun.

Yamunotri is the source of the Yamuna River and the place of Goddess Yamuna in Hinduism. It is one of the four sites in the Char Dham pilgrimage of Uttarakhand. The sacred citadel of Yamunotri, the source of the river Yamuna, is the westernmost temple in the Garhwal Himalaya, situated atop a spur of the Bandar Poonch Mountains.

To reach the Yamunotri temple, one has to trek 13 km from the town of Hanuman Chatti. After this, one has to trek 6 km from Janaki Chatti. Horses or palanquins are also available for hire along this route. Several waterfalls can be seen during the climb from Hanuman Chatti to Yamunotri. There are two trekking routes from Hanuman Chatti to Yamunotri, one proceeds along the right bank through Markandeya Tirtha, where the sage Markandeya wrote the Markandeya Purana, the other route which is located on the left bank of the river goes through Kharsali, from where Yamunotri is a five or six hour uphill walk.

The temple opens on Akshaya Tritiya and closes for the winter on Yama Dwitiya (the second day after Diwali). A little further is the actual source of the Yamuna river, which is at an altitude of about 4,421 metres. Two hot springs are also present at Yamunotri, which is at an altitude of 3,292 metres. The Surya Kund has hot water, while the Gauri Kund has lukewarm water suitable for bathing. A few small ashrams and guest houses are available around the temple. The duties like making, distributing prasad and performing ritual worship are performed by the priests of the Uniyal family.

यमुनोत्री गंगोत्री, उत्तराखंड || Yamunotri Temple, Uttarakhand

The idol of Yamuna has a female visage in black and white and the Yamuna flows from the Kalindi mountain in the Bandar Poonch range. Flowers, especially wild roses, grow in abundance here. Yamunotri is surrounded by a few green chestnut trees. According to Hindu mythology a dip in the Yamuna frees one from all sins.

It is contained in the Sanatan scriptures that sage Asit lived at this site. In simple words, Yamunotri was his abode. Yamunotri is described as a holy place in the Brahmanda Purana. Also, Yamuna river has been described in detail.

During the Mahabharata period, the Pandavas started the Char Dham Yatra from Yamunotri. After this, they visited Gangotri, Kedarnath and Badrinath respectively. Since that time, the Char Dham Yatra is started from Yamunotri. A pillar is installed in the Yamunotri courtyard. This huge pillar is called Divyashila. One has to reach the courtyard of this temple by foot. Earlier, devotees used to reach Hanuman Chatti by vehicle. The distance of the temple from this place is 14 kilometers. Whereas, now devotees can reach Janaki Chatti by vehicle. The distance of the temple from here is just 5 kilometers. During this time, devotees chant the names of gods and goddesses. The distance of Yamunotri from Rishikesh is 200 kilometers. Mata Yamuna Temple was built by Maharaja Pratap Shah of Tehri Garhwal.

यमुनोत्री गंगोत्री, उत्तराखंड || Yamunotri Temple, Uttarakhand

The doors of the temple are closed after Diwali. At the same time, the doors of the four Dhams are opened on the day of Akshaya Tritiya. Every year a large number of devotees visit the four Dhams. Devotees can reach the nearest destination of Yamunotri by air, road and rail from the country's capital Delhi.

आधा सीसी (माइग्रेन) || Migraine

 आधा सीसी (माइग्रेन) माइग्रेन से बचाव के घरेलू उपचार

माइग्रेन क्या है : -  

यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें सिर के आधे हिस्से में दर्द होता है। कभी -कभी पुरे सिर में भी हो जाता है। यह कई वजह से होती है तथा माइग्रेन की समस्या का कारण हर किसी के लिए अलग- अलग होता है। किसी किसी में यह समस्या आनुवंशिक भी होता है। यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है।

माइग्रेन से बचाव के घरेलू उपचार

आधासीसी का दर्द अधिकाशंतः दिन में ही होता है। यह अत्यधिक मानसिक श्रम, पेट में वायु के बने रहने से, शरीर में धातु दोष होने से होता है। यह पुरुष की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होता है। आधासीसी का रोग सिर के आधे हिस्से में ही होता है और काफी तेज दर्द होता है और रोगी बेचैन हो जाता है।

माइग्रेन क्यों होता है : -  

माइग्रेन में होने वाले सिर दर्द के कई कारण हो सकते हैं।
1. किसी चीज से एलर्जी।
2. दर्द निवारक दवाओं का ज्यादा सेवन।
3. हाई ब्लड प्रेशर।
4. नींद पूरी न होना।
5. मौसम में बदलाव।
6. हार्मोनल बदलाव।

माइग्रेन से बचाव : -  

माइग्रेन से पीड़ित व्यक्ति को कभी भी इसका अटैक पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में सभी को यह पता लगाना चाहिए की दर्द की वजह क्या है और हमेशा उन उपायों पर गौर फरमाना चाहिए, जिनसे माइग्रेन के अटैक से अपना बचाव कर सकते हैं।
1. अगर मौसम में बदलाव वजह हो तो , तेज़ धूप होने की स्थिति में घर से बाहर निकलने से बचें।
2. तीव्र महक वजह हो तो, तेज़ खुशबू वाले परफ्यूम या डियो न लगाएं।
3. अपनी नींद में किसी तरह की कमी या खलल न पड़ने दें। शांत वातावरण में पर्याप्त नींद लेने की कोशिश करें।
4. तनाव के कारण भी माइग्रेन होता है। माइग्रेन से बचने के लिए मेडिटेशन, योग व एक्सरसाइज़ को अपनी नियमित दिनचर्या में शामिल करें।
5. दर्द निवारक दवाओं के ज्यादा सेवन से बचें। 
6. संतुलित आहार लें। 
7. अपने दैनिक जीवन में योग और मेडिटेशन को शामिल करें। 

माइग्रेन से बचाव के घरेलू उपचार निम्नलिखित हैं-

# बादाम का तेल नाक में डालने से आराम मिलता।

# मेहंदी की पत्तियों को पीसकर माथे पर लेप लगाएं।

# दर्द के समय नाक में सरसों का तेल डालकर ऊपर की ओर खींचने से दर्द में काफी राहत मिलती है।

# देशी गाय का घी नाक के नथुनों में डालें।

# एक चुटकी नौसादर और आधा चम्मच अदरक का रस शहद में मिलाकर रोगी को चटाई।

# तुलसी के रस में शहद मिला कर सेवन करने से दर्द में आराम मिलता है।

गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस || Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas

गुरु तेग़ बहादुर (Guru Tegh Bahadur)

गुरु तेगबहादुर जी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतन्त्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रान्तिकारी युग पुरुष थे। गुरु तेगबहादुर जी का शीश औरंगजेब ने 24 नवम्बर 1675 को दिल्ली के चाँदनी चौक में फतवा पढ़वाकर जलालदिन जल्लाद के हाथों तलवार से कटवाया था। इसलिए इस दिन को गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है और उनकी शहादत को याद किया जाता है। 

कौन थे गुरु तेगबहादुर? क्यों इतिहास के पन्नो में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया इनका नाम?

श्री गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे। इनका जन्म अमृतसर में 1 अप्रैल 1621 में हुआ था। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धान्त की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। सारे विश्व मे सिख समुदाय के साथ साथ अन्य धर्मों के लोग भी गुरु तेगबहादुर जी से अत्यधिक प्रभावित हैं।

गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस || Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas

सन 1675 में जब मुग़ल शासक औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने को कहा एवं अपने प्रयत्नों से बाध्य करना चाहा, तब श्री गुरु तेगबहादुरजी जी ने कहा था शीश कटा सकता हुँ अपना पर अपने केश (बाल ) नहीं। उनके इस कथन को सुनकर मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुस्से में सबके सामने उनका शीश कटवा दिया था। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब एवं गुरुद्वारा रकाव गंज साहिब आज भी उन स्थानों की याद दिला देते हैं, जहाँ गुरु तेगबहादुरजी का शीश काटा गया एवं उनका अंतिम संस्कार किया गया था। गुरु जी का बलिदान हमें बताता है कि उन्होंने अपने धर्म पालन के लिए अपने प्राणों का मोह तक न किया। धर्म के प्रति उनकी आस्था कितनी कियोशक्तिप्रबल थी। 

गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस || Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas

गुरु तेग़ बहादुर जी ने समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए बलिदान दिया था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।

मुगल शासक औरंगजेब की धर्म विरोधी धर्म के प्रति वैचारिक स्वतंत्रता को खत्म करने वाली गतिविधियों इक्षाओ के खिलाफ गुरु तेगबहादुर जी का बलिदान ऐतिहासिक घटना थी। गुरु जी का जीवन सदैव अपने धर्म के नियम सिद्धांत पर अडीग रहते हुए धर्म पालन का अद्भुत प्रमाण देता है।

उन्होंने धर्म के प्रचार प्रसार के लिए कई स्थानों का भ्रमण किया था। इन्ही यात्राओं के बीच 1666 में गुरु साहेब को पटना में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जो आगे चल कर दसवें गुरुगोविंद सिंह हुए।

गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान की गाथा

औरंगजेब के शासन काल में उसके दरबार में एक विद्वान पंडित आकर गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था। एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया, किंतु उसे किन श्लोकों  छोड़ना है ये बताना भूल गया जिनका अर्थ वहां नहीं करना था।

गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस || Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas

दरबार में पहुंचकर पंडित के बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया, जिससे औरंगजेब को यह स्पष्ट हो गया कि हर धर्म अपने आपमें एक महान धर्म है और औरंगजेब खुद के धर्म के अलावा किसी और धर्म की प्रशंसा नहीं सुन सकता था। उसके सलाहकारों ने उसे सलाह दी कि वह सबको इस्लाम धारण करवा दे। औरंगजेब ने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया और कुछ लोगों को यह कार्य सौंप दिया।

उसने सबसे कह दिया कि इस्लाम धर्म कबूल करो या मौत को गले लगाओ। ऐसे में अन्य धर्म के लोगों का जीना मुश्किल हो गया। इस जुल्म के शिकार कश्मीरी पंडित गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस तरह ‍इस्लाम धर्म स्वीकारने के लिए दबाव बनाया जा रहा है और न करने वालों को तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं। हमारी बहू-बेटियों की इज्जत को खतरा है। जहां से हम पानी भरते हैं वहां हड्डियां फेंकी जाती है। हमें बुरी तरह मारा जा रहा है। 

जिस समय यह लोग समस्या सुना रहे थे उसी समय गुरु तेगबहादुर के नौ वर्षीय सुपुत्र बाला प्रीतम (गुरु गोविंदसिंह) वहां आए और पिताजी से पूछा- पिताजी यह लोग इतने उदास क्यों हैं? आप इतनी गंभीरता से क्या सोच रहे हैं? गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों की सारी समस्या बताई तो बाला प्रीतम ने कहा- इसका निदान कैसे होगा? गुरु साहिब ने कहा- इसके लिए बलिदान देना होगा। बाला प्रीतम ने कहा कि आपसे महान पुरुष मेरी नजर में कोई नहीं है, भले ही बलिदान देना पड़े पर आप इनके धर्म को बचाइए।

ऐसा कहने पर  प्रीतम को समझाया गया कि अगर आपके पिता जी बलिदान दे देंगे तो आप यतीम हो जाएंगे और आपकी मां विधवा हो जाएगी। बालक ने कहा कि अगर मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों लोग यतीम होने से बच सकते हैं और अकेले मेरी मां के विधवा होने से लाखों मां विधवा होने से बच सकती हैं, तो मुझे यह स्वीकार है। फिर गुरु तेगबहादुर ने उन पंडितों से कहा कि जाकर औरंगजेब से कह ‍दो ‍अगर गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धारण कर लिया तो हम भी कर लेंगे और अगर तुम उनसे इस्लाम धारण नहीं करा पाए तो हम भी इस्लाम धारण नहीं करेंगे और तुम हम पर जबरदस्ती नहीं कर पाओगे। औरंगजेब ने इस बात को स्वीकार कर लिया।

गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं चलकर गए। वहां औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह के लालच दिए। लेकिन बात नहीं बनी तो उन पर बहुत सारे जुल्म किए। उन्हें कैद कर लिया गया। औरंगजेब की सभा में गुरु तेग बहादुर और उनके शिष्यों को पेश किया गया और उनके ही सामने उनके शिष्यों के सिर कलम कर दिये गए, लेकिन उनकी आंखों में डर का नामो निशान तक नहीं था। वहीं उनके भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर डाले। भाई दयाल सिंह और तीसरे भाई सति दास को भी दर्दनाक अंत दिया गया, फिर भी गुरु तेग़ बहादुर को उनके इरादों से डिगा न सके।

गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस || Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas

गुरु तेगबहादुर जी ने औरंगजेब से कहा कि अगर तुम जबरदस्ती करके लोगों को इस्लाम धारण करने के लिए मजबूर कर रहे हो, तो तुम खुद भी सच्चे मुसलमान नहीं हो, क्योंकि तुम्हारा धर्म भी यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म किया जाए। औरंगजेब को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया और उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु साहिब के शीश को काटने का हुक्म दे दिया।

गुरु तेगबहादुर जी अपने धर्म पालन के लिए सदैव सबकी जेहन में जिंदा हैं और रहेंगे। गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपनी शहादत से पहले ही 8 जुलाई, 1675 को गुरु गोविंद सिंह को सिखों का 10वां गुरु घोषित कर दिया था। 

निन्दा तू न गई मन से

निन्दा तू न गई मन से

परनिंदा में जो सुख है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। अद्भुत आनंद की अनुभूति होती है। मन को शांति मिल जाती है। स्त्रियां बहुत होशियार होती हैं। वे इसका पूरा लुत्फ़ उठती हैं। वे इसके आनंद को भली भांति समझती हैं। दिन में दो चार घंटे भी अगर आनन्द पूर्वक न बिताया तो जीवन व्यर्थ सा प्रतीत होता है। 

निन्दा तू न गई मन से

पुरुषों को तो अपने काम से ही फुरसत नहीं मिलती, बेचारे। कभी कभार कोई मौका मिलता भी है तो बोलते हैं कि पहले ही इतने लफ़ड़े हैं, जिंदगी में अब उसके पचड़े में क्यों अपनी नाक घुसेड़ूँ। फिर उनके पास एक गुप्त कार्य भी होता है, ताक झांक करने का, इनसे फुर्सत मिले तब ना।

निंदा की एक बड़ी खूबी है, जितना करो, इसकी इच्छा उतनी ही बढ़ती जाती है। आनन्द भी उतना ही बढ़ता जाता है। इसी आनन्द को हासिल करने के लिए ही तो स्त्रियां निंदा में मशगूल होती हैं।

एक महान हास्य साहित्यकार हुए हैं, नाम सुना होगा आप लोगों ने श्रीमान "हरिशंकर परसाई"। उन्होंने काफी शोध किया है इस विषय पर। उनका कहना है कि निंदा में भरपूर विटामिन और प्रोटीन होते हैं। इससे खून साफ़ होता है और पाचन क्रिया बेहतर होती है। यह बल और स्फूर्ति देती है और पायरिया का शर्तिया इलाज है।

संतों को परनिंदा की मनाही है सो वे स्वनिन्दा से काम चलाते हैं। उन्हीं के लिए गोस्वामी जी ने राह दिखाई है "मो सो कौन कुटिल खल कामी"। यह संत की विनय या आत्मग्लानि नहीं है। टॉनिक है। 

अब यह शोध का विषय हो सकता है कि स्त्रियों ने सन्तों से प्रेरणा ली या सन्तों ने स्त्रियों से।

अब स्त्रियां निन्दा न करें तो क्या करें? पड़ोसन खूबसूरत है, अच्छे वस्त्र पहनती है तो डर तो लगता है ना। करमजली उसके पति को फाँस तो नहीं रही? बदसूरत है, गन्दगी से रहती है तो अपना स्टेटस गड़बड़ाता है। फिर आपकी सोसाइटी में आजू बाजू, ऊपर नीचे न जाने कितनी ही स्त्रियां रहतीं हैं। अब बम्बई वाला कल्चर आ गया है तो लोग बगल वाले को भी नहीं पहचानते। फिर क्या करें वो, मन के गुबार को दीवारों पर या हवा में तो नहीं निकाल सकती ना। वैसे जिनको निंदा के लिए कोई पार्टनर नहीं मिल पाता उन्हें आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हवा से बातें करते हुए देखा है। यूपी बोर्ड से पढ़े हुए बन्धु इस तथ्य से भली भांति परिचित होंगे।

गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" मुझे लगता है कि वे शायद "पर निन्दा कुशल बहुतेरे" लिखना चाहते थे। पर अपनी पत्नी से कौन नहीं डरता। परसाई जी बहुत हिम्मती थे। नर्मदा के जल का कुछ प्रभाव रहा होगा जो इतना कुछ लिख गए (वैसे नर्मदा जल का कुछ प्रभाव तो मुझ पर भी है )

आजकल इंटरनेट का ज़माना है। निन्दा भी मॉडर्न हो गई है। अब वह फेसबुक और वाट्स एप्प पर ज्यादा पाई जाती है। एक झंझट खत्म हुआ। पहले निन्दा चर्चा में मुंह दर्द होता था। अब उससे मुक्ति मिल गई है। कोई आवाज नहीं और कार्य फटाफट हो रहा है। और अब तो अड़ोस पड़ोस में कोई पार्टनर न भी मिला तो कोई गम नहीं। पार्टनर बम्बई या अहमदाबाद से भी ऑप्ट किया जा सकता है।

पर हर जगह कुछ न कुछ रिस्क तो रहता ही है। कल मिसेज सिंह मिसेज तिवारी से शिकायत कर रहीं थीं कि उन्होंने सरोज से चैटिंग में कमीनी कामिनी की पूरी पोल पट्टी खोल दी। पर सरोज तो और भी छिनाल निकली, उसने मेरे पोस्ट सब कामिनी को कॉपी पेस्ट कर दिए। अब मैंने उसकी असलियत सबको न बताई तो कहना।

कबीरदास जी भी कह गए हैं कि "निन्दक नियरे राखिए" यानी कि शादी अवश्य कीजिए। वैसे महान लोगों का अनुभव बताता है कि इसका लाभ भी शुरुआत के वर्षों में नहीं मिलता। चार छह साल बाद ही नियरे रखने का लाभ मिल पाता है।

ये पुराण सतयुग से प्रारम्भ हुआ है और अभी चल रहा है जब कि बाकी पुराणों को लोग पढ़ कर भूल भी गए। अस्तु। 

इति श्रीनिन्दा पुराण 1001 वां अध्याय।

( सभी निंदकों से क्षमा याचना सहित)

हरियाणा का राजकीय फूल " कमल " || State flower of - Haryana - "Lotus"

हरियाणा का राजकीय फूल

सामान्य नाम:  कमल 
स्थानीय नाम: कमल 
वैज्ञानिक नाम: 'नेलुम्बो न्यूसिफ़ेरा'

कमल या वाटर लिली एक जलीय पौधा है जिसके चौड़े, तैरते हुए हरे पत्ते और चमकीले सुगंधित फूल होते हैं जो केवल उथले पानी में ही उगते हैं। इसके फूल के रंग के आधार पर इसे दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है, लाल कमल का फूल और सफ़ेद कमल का फूल। सुंदर फूल तैरते हैं और इनमें कई पंखुड़ियाँ एक सममित पैटर्न में एक दूसरे पर ओवरलैप होती हैं। कमल, अपनी शांत सुंदरता के लिए बेशकीमती हैं, तालाब की सतह पर खिलते हुए उनके फूलों को देखना आनंददायक होता है।
हरियाणा का राजकीय फूल " कमल " || State flower of - Haryana  - "Lotus"

हरियाणा के राज्य प्रतीक  

राज्य पशु – कृष्णमृग
राज्य पक्षी – ब्लैक फ्रैंकोलीन (काला तीतर)
राज्य वृक्ष – पीपल,पीपुल या बो पेड़ 
राज्य पुष्प – कमल 
राज्य की भाषा – हरियाणवी 
राज्य गीत – जकड़ी

कमल एक जलीय पौधा है जो हिंदुओं और बौद्धों के लिए पवित्र माना जाता है और अक्सर हमारी कला और पौराणिक कथाओं में दर्शाया जाता है। यह कई संस्कृतियों में पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक भी है। कमल एक जलीय बारहमासी पौधा है जो कीचड़ या उथले पानी में उगता है। कमल के बड़े, गोल पत्ते होते हैं जो पानी पर तैरते हैं, और सुंदर गुलाबी या सफेद फूल होते हैं, जो गर्मियों में खिलते हैं। 

हरियाणा का राजकीय फूल " कमल " || State flower of - Haryana  - "Lotus"

इसका उपयोग भोजन, दवा और धार्मिक समारोहों सहित कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है। हिंदू धर्म में, कमल भगवान विष्णु और ब्रह्मा से जुड़ा हुआ है और इसे एक पवित्र पौधा माना जाता है। बौद्ध धर्म में, कमल ज्ञान का प्रतीक है और इसे अक्सर बुद्ध जी के हाथों में दर्शाया जाता है। कमल भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक अभिन्न अंग है।

हरियाणा का राजकीय फूल " कमल " || State flower of - Haryana  - "Lotus"

इसके अलावा, कमल एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक संकेतक है, क्योंकि यह कठोर और प्रदूषित वातावरण में भी विकसित और जीवित रह सकता है । प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद खिलने की इसकी लचीलापन और क्षमता इसे आशा और लचीलेपन का एक शक्तिशाली प्रतीक बनाती है। भारत का राष्ट्रीय फूल होने के नाते, कमल राष्ट्रीय पहचान और गौरव का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है, और अक्सर भारतीय कला, वास्तुकला और डिजाइन में दर्शाया जाता है।

हरियाणा का राजकीय फूल " कमल " || State flower of - Haryana  - "Lotus"
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State flower of - Haryana

Common name: Lotus
Local name: Lotus
Scientific name: 'Nelumbo nucifera'

The lotus or water lily is an aquatic plant with broad, floating green leaves and brightly scented flowers that grow only in shallow water. It is divided into two types, red lotus flower and white lotus flower, depending on the color of its flower. The beautiful flowers float and have many petals that overlap each other in a symmetrical pattern. Lotus, prized for their serene beauty, is a delight to watch as their flowers bloom on the surface of a pond.
हरियाणा का राजकीय फूल " कमल " || State flower of - Haryana  - "Lotus"

State symbols of Haryana

State animal – Blackbuck
State bird – Black Francolin
State tree – Peepal, Pipal or Bo tree
State flower – Lotus
State language – Haryanvi
State song – Jakdi

The lotus is an aquatic plant that is considered sacred to Hindus and Buddhists and is often depicted in our art and mythology. It is also a symbol of purity and wisdom in many cultures. The lotus is an aquatic perennial plant that grows in muddy or shallow water. The lotus has large, round leaves that float on water, and beautiful pink or white flowers, which bloom in summer.

It is used for many purposes, including food, medicine, and religious ceremonies. In Hinduism, the lotus is associated with Lord Vishnu and Brahma and is considered a sacred plant. In Buddhism, the lotus symbolizes wisdom and is often depicted in the hands of the Buddha. The lotus is an integral part of Indian culture and spirituality.

हरियाणा का राजकीय फूल " कमल " || State flower of - Haryana  - "Lotus"

Also, the lotus is an important ecological indicator, as it can grow and survive even in harsh and polluted environments. Its resilience and ability to bloom despite adversity makes it a powerful symbol of hope and resilience. Being the national flower of India, the lotus is an important symbol of national identity and pride. It represents the country's rich cultural heritage, and is often depicted in Indian art, architecture and design.

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ...खुदाई फौजदार

मानसरोवर-2 ...खुदाई फौजदार

खुदाई फौजदार- मुंशी प्रेमचंद | Khudai Faujdaar by Munshi Premchand

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सेठ नानकचन्द को आज फिर वही लिफाफा मिला और वही लिखावट सामने आयी तो उसका चेहरा पीला पड़ गया। लिफाफा खोलते हुए हाथ और हृदय काँपने लगे। खत में क्या है, यह उसे खूब मालूम था। इसी तरह के दो खत पहले पा चुके हैं। इस तीसरे खत में भी वहीं धमकियाँ हैं, इसमें उन्हें सन्देह न था। पत्र हाथ में लिए हुए आकाश की ओर ताकने लगे। वह दिल के मजबूत आदमी थे, धमकियों से डरना उन्होंने न सीखा था, मुर्दो से भी अपनी रकम वसूल कर लेते थे। दया या उपकार जैसी मानवीय दुर्बलताएँ उन्हें छू भी न गयी थी, नहीं तो महाजन कैसे बनते! उस पर धर्मनिष्ठ भी थे। हर पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा सुनते थे। हर मंगल को महाबीर जी को लड्‌डू चढ़ाते थे, नित्य-प्रति जमुना में स्नान करते थे और हर एकादशी को व्रत रखते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे और इधर जबसे घी में करारा नफा होने लगा था, एक धर्मशाला बनवाने की फिक्र में थे। जमीन ठीक कर ली थी।

उनके असामियों में सैकड़ो ही थवई और बेलदार थे, जो केवल सूद में ही काम को तैयार थे। इन्तजार यही था कि कोई ईट और चूने वाला फँस जाय और दस-बीस हजार का दस्तावेज लिखा ले, तो सूद में ईट और चूना भी मिल जाय। इस धर्मनिष्ठा ने उनकी आत्मा को और भी शक्ति प्रदान कर दी थी। देवताओं के आशीर्वाद औऱ प्रताप से उन्हें कभी किसी सौदे मे घाटा नहीं हुआ और भीषण परिस्थितियों में भी वह स्थिरचित्त रहने के आदी थे; किन्तु जबसे यह धमकियों से भरे पत्र मिलने लगे थे, उन्हें बरबस तरह-तरह की शंकाएँ व्यथित करने लगी थी। कहीं सचमुच डाकूओं ने छापा मारा, तो कौन उनकी सहायता करेगा? दैवी बाधाओं मे तो देवताओं की सहायता पर वह तकिया कर सकते थे, पर सिर पर लटकती हुई इस तलवार के सामने वह श्रद्धा कुछ काम न देती थी। रात को उनके द्वार पर केवल एक चौकीदार रहता था।
मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ...खुदाई फौजदार

अगर दस-बीस हथियारबन्द आदमी आ जायँ तो वह अकेला क्या कर सकता हैं? शायद उनकी आहट पाते ही भाग खड़ा हो। पड़ोसियों में ऐसा कोई नजर न आता था, जो इस संकट में काम आवे। यद्यपि सभी उसके असामी थे या रह चुके थे। लेकिन यह एहसान-फरामोशों का सम्प्रदाय हैं, जिस पतल में खाता हैं, उसी में छेद करता हैं; जिसके द्वार पर अवसर पड़ने पर माक रगडता हैं, उसी का दुश्मन हो जाता हैं। इनसे कोई आशा नहीं। हाँ, किवाड़े सुढृढ हैं; उन्हें तोड़ना आसान नही हैं, फिर अन्दर का दरवाजा भी तो हैं। सौ आदमी लग जायँ तो हिलाये न हिले। और किसी ओर से हमले का खटका नही । इतनी ऊँची सपाट दीवार पर कोई क्या खा के चढेगा? फिर उसके पास राइफलें भी तो हैं। एक राइफल से वह दर्जनों आदमियों को भूनकर रख देंगे। मगर इतने प्रतिबन्धो के होते हुए भी उनके मन में एक हूक-सी समायी रहती थी। कौन जाने चौकीदार भी उन्हीं में मिल गया हो, खिदमतगार भी आस्तीन के साँप हो गये हो! इसलिए वह अब बहुधा अन्दर ही रहते थे। और जब तक मिलने वालों का पता-ठिकाना न पूछ ले, उनसे मिलते न थे। फिर भी दो-चार घंटे तो चौपाल में बैठने ही पड़ते थे; नहीं तो सारा कारोबार मिट्टी में मिल जाता! जितनी देर बाहर रहते, उनके प्राण जैसे सूली पर टँगे रहते थे। उधर उनके मिजाज में बड़ी तब्दीली हो गयी थी। इतने विनम्र और मिष्टभाषी वह कभी न थे। गालियाँ तो क्या, किसी से तू -तकार भी न करते। सूद की दर भी कुछ घटा दी थी; लेकिन फिर भी चित्त को शान्ति न मिलती थी।

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आखिर कई मिनट तक दिल को मजबूत करने के बाद उन्होंने पत्र खोला, और जैसे गोली लग गयी। सिर में चक्कर आ गया और सारी चीजें नाचती हुई मालूम हुई। साँस फूलने लगी, आँखें फैल गयी। लिखा था, तुमने हमारे दोनों पत्रों पर कुछ भी ध्यान न दिया। शायद तुम समझते होगे कि पुलिस तुम्हारी रक्षा करेंगी; लेकिन यह तुम्हारा भ्रम हैं। पुलिस उस वक़्त आयेंगी, जब हम अपना काम करके सौ कोस निकल गये होंगे। तुम्हारी अक्ल पर पत्थर पड़ गया हैं। इसमें हमारा कोई दोष नहीं हैं। हम तुमसे सिर्फ 25 हजार रुपये माँगते हैं। इतने रुपयें दे देना तुम्हारे लिये कुछ मुश्किल नहीं। हमें पता हैं कि तुम्हारे पास एक लाख मोहरें रखी हुई हैं; लेकिन विनाशकाले विपरीत बुद्धि; अब हम तुम्हें और ज्यादा न समझायेंगे। तुमको समझाने की चेष्टा करना ही व्यर्थ हैं; अब हम तुम्हें ज्यादा न समझायेंगे। आज शाम तक अगर रुपये न आ गये, तो रात को तुम्हारे ऊपर धावा होगा। अपनी हिफाजत के लिए जिसे बुलाना चाहो, बुला लो, जितने आदमी और हथियार जमा करना चाहो, जमा कर लो। हम ललकार कर आयेंगे और दिनदहाड़े आयेंगे। हम चोर नहीं हैं, हम वीर हैं और हमारा विश्वास बाहुबल में हैं। हम जानते हैं कि लक्ष्मी उसी के गले में जयमाल डालती हैं, जो धनुष तोड़ सकता हैं, मछली को वेध सकता हैं। यदि…

सेठजी ने तुरन्त बही-खाते बन्द कर दिये और रोकड़ सँभालकर तिजोरी में रख दिया और सामने का द्वार बन्द करके मरे हुए से केसर के पास आकर बोले-आज फिर वहीं खत आया, केसर! आज ही आ रहे हैं।

केसर दोहरे बदन की स्त्री थी, यौवन बीत जाने पर भी युवती, शौक-सिंगार में लिप्त रहने वाली, उस फलहीन वृक्ष की तरह जो पतझड़ में भी हरी-हरी पत्तियों से लदा रहता हैं। सन्तान की विफल कामना में जीवन का बड़ा भाग बिता चुकने के बाद, अब उसे संचित माया को भोगने की धुन सवार रहती थी। मालूम नही, कब आँखें बन्द हो जायँ, फिर यह थाती किसके हाथ लगेगी, कौन जाने? इसलिए उसे सबसे अधिक भय बीमारी का था, जिसे वह मौत का पैगाम समझती थी और नित्य ही कोई-न-कोई दवा खाती रहती थी। काया के इस वस्त्र को उस समय तक उतारना न चाहती थी, जब तक उसमें एक तार भी बाकी रहें। बाल-बच्चे होते तो वह मृत्यु का स्वागत करती, लेकिन अब तो उसके जीवन ही के साथ अन्त था, फिर क्यों न वह अधिक-से-अधिक समय तक जिये। हाँ, वह जीवन निरानन्द अवश्य था, उस मधुर ग्रास की भाँति, जिसे हम इसलिए खा जाते हैं कि रखे-रखे सड़ जायगा।

उसने घबराकर कहा- मैं तुमसे कब से कह रहीं हूँ कि दो-चार महीनों के लिए यहाँ से कहीं भाग चलो, लेकिन तुम सुनते ही नहीं। आखिर क्या करने पर तुले हुए हो?

3

सेठजी सशंक तो थे और यह स्वाभाविक थी- ऐसी दशा में कौन शान्त रह सकता था – लेकिन वह कायर नही थे। उन्हें अब भी विश्वास था कि अगर कोई संकट आ पड़े, तो वह पीछे कदम न हटायेंगे। जो कुछ कमजोरी आ गयी थी, वह संकट को सिर पर देखकर भाग गयी थी। हिरन भी तो भागने की राह न पाकर शिकारी पर चोट कर बैठता हूँ। कभी-कभी नहीं, अक्सर संकट पड़ने पर ही आदमी के जौहर खुलते हैं। इतनी देर में सेठजी ने एक तरह से भावी विपत्ति का सामना करने का पक्का इरादा कर लिया था। डर क्यों, जो कुछ होना हैं, वह होकर रहेगा। अपनी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य हैं, मरना-जीना विधि के हाथ में हैं। सेठानीजी को दिलासा देते हुए बोले- तुम नाहक इतना डरती हो केसर, आखिर वे सब भी तो आदमी हैं, अपनी जान का मोह नहीं उन्हें भी हैं, नहीं तो यह कुकर्म ही क्यों करते? मैं खिड़की की आड़ से दस-बीस आदमियों को गिरा सकता हूँ। पुलिस को इत्तला देने भी जा रहा हूँ। पुलिस का कर्त्तव्य हैं कि हमारी रक्षा करे। हम दस हजार सालाना टैक्स देते हैं, किसलिए? मैं अभी दरोगा जी के पास जाता हूँ। जब सरकार हमसे टैक्स लेती हैं, तो हमारी मदद करना उसका धर्म हो जाता हैं।

राजनीति का यह तत्व उसकी समझ में नहीं आया। वह तो किसी तरह उस भय से मुक्त होना चाहती थी, जो उसके दिल में साँप की भाँति बैठा फुफकार रहा था। पुलिस का उसे जो अनुभव था, उससे चित्त को सन्तोष न होता था। बोली- पुलिसवालों को बहुत देख चुकी । वारदात के समय तो उनकी सूरत नही दिखाई देती। जब वारदात हो चुकती हैं, तब अलबत्ता शान के साथ आकर रोब जमाने लगते हैं।

‘पुलिस तो सरकार का राज चला रही हैं। तुम क्या जानो? ’

‘मैं तो कहती हूँ, यों अगर कल वारदात होने वाली होगी, तो पुलिस को खबर देने से आज ही हो जायेगी। लूट के माल में इनका भी साझा होता हैं। ’
सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र
‘जानता हूँ देख चुका हूँ और रोज देखता हूँ; लेकिन मैं तो सरकार को दस हजार का सालाना टैक्स देता हूँ । पुलिसवालों का भी आदर-सत्कार भी करता रहता हूँ । अभी जाड़ों में सुपरिंटेंडेंट साहब आये थे, तो मैं पूरी रसद पहुँचायी थी। एक पूरा कनस्तर घी और एक शक्कर की पूरी बोरी भेज दी थी। यह सब खिलाना- पिलाना किस दिन काम आयेगा। हाँ, आदमी को सोलहों आने दूसरों के भरोसे न बैठना चाहिए; इसलिए मैंने सोचा हैं, तुम्हें भी बन्दूक चलाना सिखा हूँ? हम दोनो बन्दूकें छोड़ना शुरू करेंगे, तो डाकूओं की क्या मजाल हैं कि अन्दर कदम रख सकें? ’

प्रस्ताव हास्यजनक था। केसर ने मुस्कराकर कहा- हाँ और क्या, अब आज मैं बन्दूक चलाना सीखूँगी। तुमको जब देखों, हँसी सूझती हैं।

‘इसमें हँसी की क्या बात हैं? आजकल तो औरतों की फौजें बन रही हैं। सिपाहियों की तरह औरतें भी कवायद करती हैं, बन्दूक चलाती हैं, मैदानों में खेलती हैं। औरतों के घर में बैठने का जमाना अब नहीं हैं।’

‘विलायत की औरतें बन्दूक चलाती होगी, यहाँ की औरतें क्या चलायेंगी। हाँ, हाथ भर की जबान चाहे चला ले।’

‘यहाँ की औरतों ने बहादुरी के जो-जो काम किये हैं, उनसे इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। आज दुनिया उन वृतान्तों को पढ़कर चकित हो जाती हैं।’

‘पुराने जमाने की बातें छोड़ो। तब औरतें बहादुर रही होगी। आज कौन बहादुरी कर रहीं हैं?’

‘वाह! अभी हजारों औरतें घर-बार छोड़कर हँसते-हँसते जेल चली गयी। यह बहादुरी नहीं थीं? अभी पंजाब में हरनाद कुँवर ने अकेले चार सशक्त डाकूओं को गिरफ्तार किया और लाट साहब तक ने उसकी प्रशंसा की।’

‘क्या जाने वे कैसी औरते हैं। मैं तो डाकूओं को देखते ही चक्कर खाकर गिर पडूँगी।’

उसी वक़्त नौकर ने आकर कहा- सरकार, थाने से चार कानिस्टिबिल आये हैं। आपको बुला रहे हैं।

सेठजी ने प्रसन्न होकर कहा- ‘थानेदार भी हैं?’

‘नहीं सरकार, अकेले कानिस्टिबिल हैं।’

‘थानेदार क्यों नहीं आया?’ – यह कहते हुए सेठजी ने पान खाया औऱ बाहर निकले।

सेठजी को देखते ही चारों कानिस्टिबिल ने झुककर सलाम किया, बिल्कुल अंगरेजी कायदे से, मानो अपने किसी अफसर को सैल्यूट कर रहे हो। सेठजी ने उन्हें बेचो पर बैठाया और बोले- दरोगाजी का मिजाज तो अच्छा हैं? मैं तो उनके पास आनेवाला था।

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चारों में जो सबसे प्रौढ़ था, जिसकी आस्तीन पर कई बिल्ले लगे हुए थे, बोला- आप क्यों तकलीफ करते हैं, वह तो खुद ही आ रहे थे; पर एक बड़ी जरूरी तहकीकात आ गयी, इससे रुक गये। कल आपसे मिलेंगे। जबसे यहाँ डाकूओं की खबरें आयी हैं, बेचारे बहुत घबरायें हुए हैं। आपकी तरफ हमेशा उनका ध्यान रहता हैं। कई बार कह चुके हैं कि मुझे सबसे ज्यादा फिकर सेठजी की हैं। गुमनाम खत तो आपके पास भी आये होगे?

सेठजी ने लापरवाही दिखाकर कहा- अजी, ऐसी चिट्ठियाँ आती ही रहती हैं, इनकी कौन परवाह करता हैं। मेरे पास तो तीन खत आ चुके हैं, मैने किसी से जिक्र भी नहीं किया।

कानिस्टिबिल हँसा- दरोगाजी को खबर मिली थी।

‘सच!’

‘हाँ, साहब? रत्ती-रत्ती खबर मिलती रहती हैं। यहाँ तक मालूम हुआ कि कल आपके मकान पर उनका धावा होनेवाला हैं। जभी तो आज दरोगाजी ने मुझे आपकी खिदमत में भेजा।’

‘मगर वहाँ कैसे खबर पहुँची? मैंने तो किसी से कहा ही नहीं।’

कानिस्टिबिल ने रहस्यमय भाव से कहा- हुजूर, यह न पूछे। इलाके के सबसे बड़े सेठ के पास ऐसे खत आयें और पुलिस को खबर न हो! भला, कोई बात हैं। ऊपर से बराबर ताकीद आती रहती हैं कि सेठजी को शिकायत का कोई मौका न दिया जाय। सुपरिंटेंडेंट साहब की खास ताकीद हैं आपके लिए। और हुजूर, सरकार भी तो आप ही के बूते पर चलती हैं। सेठ-साहुकारों के जान-माल की हिफाजत न करें, तो रहें कहाँ? हमारे होते मजाल हैं कि कोई आपकी तरफ तिरछी आँखों से देख सके; मगर कम्बख्त डाकू इतने दिलेर और तादाद में इतने ज्यादा हैं कि थाने के बाहर उनसे मुकाबला करना मुश्किल हैं। दरोगाजी गारद माँगने की बात सोच रहे थे; मगर ये हत्यारे कहीं एक जगह तो रहते नहीं, आज यहाँ हैं, तो कलम यहाँ से दो सौ कोस पर। गारद मँगाकर ही क्या किया जाय? इलाके की रिआया की तो हमें कुछ ज्यादा फिक्र नहीं, हुजूर मालिक हैं, आपसे क्या छिपाये, किसके पास रखा हैं इतना माल-असबाब! और अगर किसी के पास दो-चार सौ की पूँजी निकल ही आयी तो उसके लिए पुलिस डाकूओं के पीछे अपनी जान हथेली पर लिये न फिरेगी। उन्हें क्या, वह तो छूटते ही गोली चलाते हैं और अक्सर छिप कर। हमारे लिए तो हजार बन्दिशें हैं। कोई बात बिगड़ जाए तो उलटे अपनी ही जान आफत में फँस जाय। हमें तो ऐसे रास्ते पर चलना हैं कि साँप मरे और लाठी न टूटे, इसलिए दरोगाजी ने आपसे यह अर्ज किया हैं कि आपके पास जोखिम की जो चीजें हो, उन्हें लाकर सरकारी खजाने में जमा कर दीजिये। जब यह हंगामा ठंड़ा हो जाय तो मँगवा लीजिएगा। इससे आपको भी बेफ्रिकी हो जाएगी और हम भी जिम्मेदारी से बच जायँगे। नहीं खुदा न करे, कोई वारदात हो जाय, तो हुजूर को तो जो नुकसान हो वह तो हो ही हमारे ऊपर भी जवाबदेही आ जाय। और यह जालिम सिर्फ माल-असबाब लेकर ही तो जान नहीं छोड़ते- खून करते हैं, घर में आग लगा देते हैं, यहाँ तक कि औरतों की बेइज्जती भी करते हैं। हुजूर तो जानते हैं, होता है वही जो तकदीर में लिखा हैं। आप इकबालवाले आदमी हैं, डाकू आपका कुछ नही बिगाड़ सकते। सारा कस्बा आपके लिए जान देने को तैयार हैं। आपका पूजा-पाठ धर्म-कर्म खुदा खुद देख रहा हैं। यह उसकी बरकत हैं कि आप मिट्टी भी छू ले, तो सोना हो जाय; लेकिन आदमी भरसक अपनी हिफाजत करता हैं। हुजूर के पास मोटर हैं ही, जो कुछ रखना हो, उस पर रख दीजिए। हम चार आदमी आपके साथ हैं, कोई खटका नहीं। वहाँ एक मिनट में आपको फुरसत हो जायगी। पता चला हैं कि इस गोल में बीस जवान हैं। दो तो बैरागी बने हुए हैं, दो पंजाबियों के भेस में धुस्से और अलवान बेचते फिरते हैं। इन दोनों के साथ दो बहँगीवाले भी हैं। दो आदमी बलूचियों के भेस में छूरियाँ और ताले बेचते हैं। कहाँ तक गिनाऊँ, हुजूर! हमारे थाने में तो हर एक का हुलिया रखा हुआ हैं।

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खतरे में आदमी का दिल कमजोर हो जाता हैं और वह ऐसी बातों पर विश्वास कर लेता हैं, जिन पर शायद होश-हवास में न करता। जब किसी दवा से रोगी को लाभ नहीं होता, तो हम दुआ, तावीज, ओझों और सयानों की शरण लेते हैं और वहाँ तो सन्देह का कोई कारण ही न था। सम्भव हैं, दरोगाजी का कुछ स्वार्थ हो, मगर सेठजी इसके लिए तैयार थे। अगर दो-चार सौ बल खाने पड़े, तो कोई बड़ी बात नहीं। ऐसे अवसर तो जीवन में आते ही रहते हैं और इस परिस्थिति में इससे अच्छा दूसरा क्या इन्तजाम हो सकता था; बल्कि इसे तो ईश्वरीय प्रेरणा समझना चाहिए माना, उनके पास दो-दो बन्दूकें हैं, कुछ लोग मदद करने के लिए निकल ही आयेंगे, लेकिन हैं जान जोखिम। उन्होंने निश्चय किया, दरोगाजी की इस कृपा से लाभ उठाना चाहिए। इन्हीं आदमियों के कुछ दे- दिलाकर सारी चीजें निकलवा लेंगे। दूसरो का क्या भरोसा? कहीं कोई चीज़ उड़ा दे तो बस?

उन्होंने इस भाव से कहा, मानो दरोगाजी ने उसपर कोई विशेष कृपा नही की हैं; वह तो उनका कर्त्तव्य ही था- मैने यहाँ ऐसा प्रबन्ध किया था कि यहाँ वह सब आते तो उनके दाँत खट्टे कर दिये जाते। सारा कस्बा मदद के लिए तैयार था। सभी से तो अपना मित्र-भाव हैं, लेकिन दरोगाजी की तजबीज मुझे पसन्द हैं। इसमें वह भी अपनी जिम्मेदारी से बरी हो जाते हैं और मेरे सिर से भी फिक्र का बोझ उतर जाता हैं, लेकिन भीतर से चीजें निकाल-निकालकर लाना मेरे बूते की बात नहीं। आप लोगों की दुआ से नौकर-चाकरों की कमी नहीं हैं, मगर किसकी नीयत कैसी हैं, कौन जान सकता हैं? आप लोग कुछ मदद करें तो काम आसान हो जाय।

हेड कानिस्टिबिल ने बड़ी खुशी से यह सेवा स्वीकार कर ली और बोला- हम सब हुजूर के ताबेदार हैं, इसमें मदद की कौन-सी बात हैं? तलब सरकार से पाते हैं, यह ठीक हैं; मगर देनेवाले तो आप ही हैं। आप केवल सामान हमें दिखाये जायँ, हम बात-की-बात में सारी चीजें निकाल लायेंगे। हुजूर की खिदमत करेंगे तो कुछ इनाम-इकराम मिलेगा ही। तनख्वाह में गुजर नहीं होती सेठजी, आप लोगों की रहम की निगाह न हो, तो एक दिन भी निर्बाह न हो। बाल-बच्चे भूखों मर जायँ। पन्द्रह-बीस रुपये में क्या होता हैं हुजूर, इतना तो हमारे लिए ही पूरा नही पड़ता।

सेठजी ने अन्दर जाकर केसर से यह समाचार कहा तो उसे जैसे आँखें मिल गयीं। बोली- भगवान् ने सहायता की, नहीं मेरे प्राण संकट में पड़े हुए थे। सेठजी ने सर्वज्ञता के भाव से फरमाया- इसी को कहते हैं सरकार का इंतजाम। इसी मूस्तैदी के बल पर सरकार का राज थमा हुआ हैं। कैसी सुव्यवस्था हैं कि जरा- सी कोई बात हो, वहाँ तक खबर पहुँच जाती हैं और तुरन्त उसके रोकथाम का हुक्म हो जाता हैं। और यहाँ ऐसे बुद्ध हैं कि स्वराज्य-स्वराज्य चिल्ला रहे हैं। इनके हाथ में अख्तियार आ जाए तो दिन-दोपहर लूट मच जाय, कोई किसी की न सुने। ऊपर से ताकीद आयी हैं। हाकिमों का आदर-सत्कार कभी निष्फल नहीं जाता। मैं तो सोचता हूँ, कोई बहुमूल्य वस्तु घर में न छोडूँ। साले आये तो अपना-सा मुँह लेकर रह जायँ.

केसर ने मन-ही-मन प्रसन्न होकर कहा- कुंजी उनके सामने फैंक देना कि जो चीज चाहो निकाल ले जाओ।

‘साले झेंप जायेंगे। ’

‘मुँह में कालिख लग जाएगी। ’

‘धमंड तो देखो कि तिथि तक बता दी। यह नहीं समझे कि अंग्रेजी सरकार का राज हैं। तुम डाल-डाल चलो, हम पात-पात चलते हैं। ’

‘समझे होंगे कि धमकी में आ जायेंगे। ’

तीनों कांस्टेबिलों ने आकर सन्दूकचे और सेफ निकालने शुरू किये। एक बाहर सामान को मोटर पर लाद रहा था और हरेक चीज को नोटबुक पर टाँकता जाता था। आभूषण, मुहरें, नोट, रुपये, कीमती कपड़े, साडियाँ; लहँगे, शाल-दुशाले, सब कार में रख दिये। मामूली बरतन, लोहे-लकड़ी के सामान, फर्श आदि के सिवा घर में और कुछ न बचा। और डाकूओं के लिए ये चीज कौड़ी की भी नहीं। केसर का सिंगारदान खुद सेठजी लाये और हेड के हाथ में देकर बोले- इसे बड़ी हिफाजत से रखना, भाई।

हेड ने सिंगारदान लेकर कहा- मेरे लिए एक-एक तिनका इतना ही कीमती हैं।

सेठजी के मन में सन्देह उठा। पूछा- खजाने कीं कुंजी तो मेरे ही पास रहेगी?

‘और क्या, यह तो मैं पहले ही अर्ज कर चुका; मगर यह सवाल आपके दिल से क्यों पैदा हुआ? ’

‘योंही, पूछा था ’ – सेठजी लज्जित हो गये।

‘नहीं, अगर आपके दिल में कुछ शुबहा हो, तो हम लोग यहाँ भी आपकी खिदमत के लिए हाजिर हैं। हाँ, हम जिम्मेदार न होंगे। ’

‘अजी, नहीं हेड साहब, मैंने योंही पूछ लिया था। यह फिहरिस्त तो मुझे दे दोगे न? ’

‘फिहरिस्त आपको थाने में दारोगाजी के दस्तखत से मिलेगी। इसका क्या एतबार? ’

6

कार पर सारा सामान रख दिया गया। कस्बे के सैकड़ो आदमी तमाशा देख रहे थे। कार बड़ी थी, पर ठसाठस भरी हुई थी। बड़ी मुश्किल से सेठजी के लिए जगह निकली। चारों कांस्टेबिल आगे की सीट पर सिमटकर बैठे।

कार चली। केसर द्वार पर इस तरह खड़ी थी, मानो उसकी बेटी बिदा हो रही हो। बेटी ससुराल जी रही हैं, जहाँ वह मालकिन बनेगी; लेकिन उसका घर सूना किये जा रही हो।

थाना यहाँ से पाँच मील पर था। कस्बे से बाहर निकलते ही पहाड़ो का पथरीला सन्नाटा था, जिसके दामन में हरा-भरा मैदान था और इसी मैदान के बीच में लाल मोरम की सड़के चक्कर खाती हुई लाल साँप-जैसी निकल गयी थी।

हेड ने सेठ से पूछा- यह कहाँ तक सही हैं सेठजी, कि आज से पचीस साल पहले आपके बाप केवल लोटा-डोर लेकर यहाँ खाली हाथ आये थे?

सेठजी ने गर्व करते हुए कहा- ‘बिल्कुल सही हैं। मेरे पास कुल तीन रुपये थे। उसी से आटे-दाल की दूकान खोली थी। तकदीर का खेल हैं, भगवान् की दवा चाहिए, आदमी के बनते-बिगड़ते देर नही लगती। लेकिन मैने कभी पैसे को दाँतों से नहीं पकड़ा। यथाशक्ति धर्म का पालन करता गया। धन की शोभा धर्म ही से हैं, नहीं तो धन से कोई फायदा नही।’

‘आप बिल्कुल ठीक कहते हैं सेठजी। आपकी मूरत बनाकर पूजना चाहिए। तीन रुपये से लाख कमा लेना मामूली काम नहीं हैं! ’

‘आधी रात तक सिर उठाने की फुरसत नहीं मिलती, खाँ साहब!’

‘जंजाल तो हैं ही, मगर भगवान् की ऐसी माया हैं कि आदमी सब कुछ समझकर भी इसमें फँस जाता हैं और सारी उम्र फँसा रहता हैं। मौत आ जाती हैं, तभी छुट्टी मिलती हैं बस, यही अभिलाषा हैं कि कुछ यादगार छोड़ जाऊँ। ’

‘आपके कोई औलाद हुई ही नहीं? ’

‘भाग्य में न थी खाँ साहब, और क्या कहूँ ! जिनके घर में भूनी भाँग नहीं हैं, उनके यहाँ घास-फूस की तरह बच्चे-ही-बच्चे देख लो, जिन्हें भगवान् ने खाने को दिया हैं, वे सन्तान का मुँह देखने को तरसते हैं। ’

‘आप बिल्कुल ठीक कहते हैं, सेठजी! जिन्दगी का मजा सन्तान से हैं। जिसके आगे अन्धेरा हैं, उसके लिए धन-दौलत किस काम का? ’

‘ईश्वर की यही इच्छा हैं तो आदमी क्या करे। मेरा बस चलता, तो मायाजाल से निकल भागता खाँ साहब, एक क्षण-भर यहाँ न रहता, कहीं तीर्थस्थान में बैठकर भगवान् का भजन करता। मगर क्या करूँ? मायाजाल तोड़े नहीं टूटता। ’

‘एक बार दिल मजबूत करके तोड़ क्यों नहीं देते? सब उठाकर गरीबो को बाँट दीजिए। साधु-सन्तों को नही, न मोट ब्राह्मणों को बल्कि उनको, जिनके लिए यह जिन्दगी बोझ हो रही हैं, जिसकी यही आरजू हैं कि मौत आकर उनकी विपत्ति का अन्त कर दे। ’

‘इस मायाजाल को तोड़ना आदमी का काम नहीं हैं खाँ साहब! भगवान् की इच्छा होती हैं, तभी मन में वैराग्य आता हैं। ’

‘आज भगवान् ने आपके ऊपर दया की हैं। हम इस मायाजाल को मकड़ी के जाले की तरह तोड़कर आपको आजाद करने के लिए भेजे गये हैं। भगवान् आपकी भक्ति से प्रसन्न हो गये हैं और आपको इस बन्धन में नही रखना चाहते, जीवन-मुक्त कर देना चाहते हैं।’

‘ऐसी भगवान् की दया हो जाती, तो क्या पूछना खाँ साहब!’

‘भगवान् की ऐसी ही दया है सेठजी, विश्वास मानिए। हमे इसीलिए उन्होंने मृत्युलोक में तैनात किया हैं। हम कितने मायाजाल के कैदियों की बेड़ियाँ काट चुके हैं। आज आपकी बारी हैं।’

सेठजी की नाडियों में जैसे रक्त का प्रवाह बन्द हो गया। सहमी हुई आँखों से सिपाहियों को देखा। फिर बोले – आप बड़े हँसोड़ हो, खाँ साहब?

‘हमारे जीवन का सिद्धान्त हैं कि किसी को कष्ट मत दो; लेकिन ये रुपये वाले कुछ ऐसी औंधी खोंपड़ी के लोग हैं जो उनका उद्धार करने आता हैं, उसी के दुश्मन हो जाते हैं। हम आपकी बेड़ियाँ काटने काटने आये हैं; लेकिन अगर आपसे कहें कि यह सब जमा-जथा और लता-पता छोड़कर घर की राह लीजिए, तो आप चीखना-चिल्लाना शुरू कर देंगे। हम लोग वही खुदाई फौजदार हैं, जिनके इत्तलाई खत आपके पास पहुँच चुके हैं।’

सेठजी मानो आकाश से पाताल में गिर पड़े। सारी ज्ञानेन्द्रियों ने जवाब दे दिया और इसी मूर्च्छा की दशा में वह मोटरकार से नीचे ढकेल दिये गये और गाड़ी चल पड़ी।

सेठजी की चेष्टा जाग पड़ी। बदहवास गाड़ी के पीछे दौड़े- हुजूर, सरकार, तबाह हो जायँगे, दया कीजिए, घर में एक कौड़ी भी नहीं हैं…

हेड साहब ने खिड़की से बाहर हाथ निकला और तीन रुपये जमीन पर फेंक दिये। मोटर की चाल तेज हो गयी।

सेठजी सिर पकड़कर बैठ गये और विक्षिप्त नेत्रों से मोटरकार को देखा, जैसे कोई शव स्वर्गारोही प्राण को देखे। उनके जीवन का स्वप्न उड़ा चला जा रहा था।

तीतर के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Pheasants

तीतर के बारे में रोचक तथ्य

तीतर एक प्रकार का खेल पक्षी  (खेल पक्षी से तात्पर्य उन पक्षियों से है जिनका शिकार खेल और/या भोजन के लिए जंगल में किया जाता है) है, जो अपने स्वादिष्ट मांस और सुंदर पंखों के लिए जाना जाता है। ये पक्षी यूरोप और एशिया के मूल निवासी हैं। तीतर की कई अलग-अलग प्रजातियाँ हैं। दुनिया में तीतर की 30 से ज़्यादा प्रजातियाँ हैं, हालाँकि हम उन सभी के बीच अंतर नहीं बता पाएँगे।  

तीतर के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Pheasants

चलिए आज जानते हैं तीतर के बारे में कुछ रोचक तथ्य

1. तीतरों की कई अलग-अलग प्रजातियाँ हैं, जिनमें ग्रे तीतर, लाल-पैर वाला तीतर और चुकर तीतर शामिल हैं। प्रत्येक प्रजाति की अपनी अलग विशेषताएँ और सीमा होती है।

2. तीतर ज़मीन पर रहने वाले पक्षी हैं, जो खुले घास के मैदानों और कृषि क्षेत्रों को पसंद करते हैं। वे अक्सर खेतों और चरागाहों में पाए जाते हैं, और जंगली इलाकों में भी पाए जा सकते हैं।

3. तीतर सर्वाहारी होते हैं, यानी वे पौधे और जानवर दोनों खाते हैं। उनके आहार में बीज, कीड़े, छोटे स्तनधारी और अन्य पक्षी शामिल हैं।

4. तीतर एकविवाही होते हैं, यानी वे जीवन भर एक साथी के साथ रहते हैं। मादा तीतर जमीन में एक गड्ढा बनाती है जिसे वे काई, घास, पंख और लाइकेन से ढककर घोंसला बनाती हैं।

तीतर के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Pheasants

5. वसंत ऋतु में प्रजनन के मौसम के दौरान - अप्रैल से जून तक - मादा तीतर 2-3 सप्ताह में 10 से 12 अंडे देती है। वे अपने अंडों को लगभग 23 दिनों तक सेते हैं, उसके बाद वे फूटते हैं।

6. तीतर अपनी विशिष्ट आवाज के लिए जाने जाते हैं, जिसका उपयोग वे अन्य पक्षियों के साथ संवाद करने और क्षेत्र निर्धारित करने के लिए करते हैं।

7. तीतरों का शिकार अक्सर खेल और उनके मांस के लिए किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में, तीतरों का शिकार एक लोकप्रिय परंपरा है जो सदियों पुरानी है।             

8. तीतर पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे कीटों की आबादी को नियंत्रित करने और अपने मल के माध्यम से बीज फैलाने में मदद करते हैं।

9. तीतरों को सदियों से साहित्य और कला में दर्शाया जाता रहा है। वे अक्सर ग्रामीण इलाकों और ग्रामीण जीवन से जुड़े होते हैं।

10. कुछ संस्कृतियों में, तीतर को प्रजनन और प्रचुरता का प्रतीक माना जाता है। वे क्रिसमस और अन्य सर्दियों की छुट्टियों से भी जुड़े हुए हैं।

तीतर के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Pheasants

11. नर और मादा तीतर एक दूसरे जैसे नहीं दिखते। जबकि अन्य प्रकार के पक्षी एक जैसे दिखते हैं, चाहे वे नर हों या मादा, नर और मादा तीतरों की शक्लें नाटकीय रूप से भिन्न होती हैं। नर आम तौर पर हरे, सुनहरे, भूरे, सफ़ेद और बैंगनी पंखों के साथ चमकीले रंग के होते हैं, जबकि मादा आम तौर पर पूरी तरह भूरे रंग की होती हैं। नर की पूंछ भी मादाओं की तुलना में लंबी होती है और अक्सर उसका सिर लाल होता है जिस पर एक छोटी सी शिखा होती है।

12. तीतरों की दृष्टि और श्रवण शक्ति बहुत अच्छी होती है। तीतर का शिकार करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि तीतरों की दृष्टि और सुनने की क्षमता बहुत अच्छी होती है। वे शिकारियों को पहचान कर उनसे बच निकलने में सक्षम होते हैं, वे 8 से 10 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ते हैं या 35 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ते हैं। तीतर तैर भी सकते हैं।

13. तीतर अन्य पक्षियों की तरह प्रवास नहीं करते। जबकि कई पक्षी प्रवासी होते हैं, तीतर सर्दियों में घर पर ही रहते हैं। वे ठंड के मौसम से बचने के लिए सर्दियों का अधिकांश समय अपने बसेरे में बिताते हैं। वे कई दिनों तक बिना खाए भी रह सकते हैं, जिससे उनके लिए घर में बंद रहना आसान हो जाता है।

14. तीतर 60 मील प्रति घंटे तक उड़ सकते हैं, जबकि तीतर जमीन पर रहना पसंद करते हैं, वे छोटी दूरी तक उड़ सकते हैं और उड़ते भी हैं। वे प्रभावशाली गति तक भी पहुँच सकते हैं। वे आराम से उड़ान भरने के लिए औसतन 38-48 मील प्रति घंटे की गति से उड़ते हैं, लेकिन जब उन्हें चौंका दिया जाता है या उनका पीछा किया जाता है, तो वे 60 मील प्रति घंटे तक पहुँच सकते हैं ।

15. वे मूल रूप से एशिया से हैं, हालाँकि तीतर अमेरिका में लोकप्रिय खेल पक्षी हैं, लेकिन वे चीन में पैदा हुए थे। हालाँकि कुछ शुरुआती बसने वाले लोग ब्रिटेन से तीतर लेकर आए थे, लेकिन वे इस पक्षी को लाने में पूरी तरह सफल नहीं हुए। उन्हें 1881 में चीन से अमेरिका लाया गया था।

16. जंगली तीतर अल्पायु होते हैं। शिकार के लिए लोकप्रिय जानवर और शिकार के लिए लोकप्रिय खेल के रूप में, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि तीतर आमतौर पर केवल एक वर्ष तक जीवित रहते हैं। वे तेजी से बढ़ते भी हैं। अंडे से निकलने के बाद, चूजे 15 सप्ताह तक पूरी तरह से विकसित दिखाई देंगे। बुढ़ापे में मरना इस प्रजाति के लिए एक दुर्लभ घटना है।

17. कैद में पाले गए तीतर 18 साल तक जीवित रह सकते हैं, जबकि जंगली तीतर शिकार और अन्य शिकारियों के कारण औसतन केवल एक वर्ष तक जीवित रहते हैं, कैद में रखे गए तीतर आश्चर्यजनक रूप से लंबे समय तक जीवित रहते हैं: एक पालतू तीतर का औसत जीवनकाल 18 वर्ष है।

तीतर के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Pheasants

18. तीतरों की इंद्रियाँ बहुत अच्छी होती हैं, तीतरों के लोकप्रिय शिकार पक्षी होने का एक कारण यह भी है कि वे शिकारियों के लिए चुनौती पेश करते हैं। अपनी तेज़ उड़ान, दौड़ने की गति और तैरने की क्षमता के कारण, वे खतरे से बचने के लिए काफी तेज़ और फुर्तीले होते हैं। उनकी दृष्टि और सुनने की क्षमता भी असाधारण होती है।

19. एक समय में, इन पक्षियों का उनके मांस के लिए शिकार किया जाता था, लेकिन वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) 1972 के बाद तीतरों को पकड़ना, रखना, मारना, व्यापार करना या उनके घोंसलों को नुकसान पहुंचाना अवैध है। 

20. तीतर जमीन पर भोजन करते हैं। प्रवास के दौरान, तीतर सैकड़ों अन्य तीतरों के साथ झुंड में रहते हैं। जब वे प्रजनन या प्रवास नहीं कर रहे होते हैं, तब भी तीतर आम तौर पर सुरक्षा के लिए झुंड में रहते हैं, लेकिन ये झुंड आमतौर पर लिंग के आधार पर अलग-अलग होते हैं: नर एक झुंड में रहते हैं, और मादा दूसरे झुंड में।         

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Interesting Facts About Pheasants

Pheasants are a type of game bird (game bird refers to birds that are hunted in the wild for sport and/or food) known for their delicious meat and beautiful feathers. These birds are native to Europe and Asia. There are many different species of pheasants. There are more than 30 species of pheasants in the world, although we will not be able to tell the difference between all of them.

Let's know some interesting facts about pheasants today

तीतर के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Pheasants

1. There are many different species of pheasants, including the gray partridge, the red-legged partridge, and the chukar partridge. Each species has its own characteristics and range.

2. Pheasants are ground-dwelling birds, preferring open grasslands and agricultural areas. They are often found in fields and pastures, and can also be found in wooded areas.

3. Pheasants are omnivores, that is, they eat both plants and animals. Their diet includes seeds, insects, small mammals and other birds.

4. Pheasants are monogamous, meaning they stay with one partner for life. Female pheasants create a depression in the ground that they cover with moss, grass, feathers and lichens to create a nest.

5. During the breeding season in the spring – from April to June – female pheasants lay 10 to 12 eggs over 2-3 weeks. They incubate their eggs for about 23 days before they hatch.

6. Pheasants are known for their distinctive call, which they use to communicate with other birds and to mark territory.

7. Pheasants are often hunted for sport and for their meat. In some areas, pheasant hunting is a popular tradition that dates back centuries.

8. Pheasants are important to the ecosystem, as they help control insect populations and spread seeds through their droppings.

9. Pheasants have been depicted in literature and art for centuries. They are often associated with the countryside and rural life.

10. In some cultures, pheasants are considered a symbol of fertility and abundance. They are also associated with Christmas and other winter holidays.

11. Male and female pheasants do not look alike. While other types of birds look alike whether they are male or female, male and female pheasants have dramatically different appearances. Males are typically brightly colored with green, gold, brown, white, and purple feathers, while females are usually completely brown. Males also have longer tails than females and often have a red head with a small crest.

तीतर के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Pheasants

12. Pheasants have excellent eyesight and hearing. Hunting pheasants can be tricky because pheasants have very good eyesight and hearing. They are able to spot and evade predators by running between 8 and 10 miles per hour or flying up to 35 miles per hour. Pheasants can also swim.

13. Pheasants do not migrate like other birds. While many birds are migratory, pheasants stay at home in the winter. They spend most of the winter in their roosts to avoid the cold weather. They can also go without eating for several days, making it easier for them to survive being cooped up.

14. Pheasants can fly up to 60 miles per hour While pheasants prefer to stay on the ground, they can glide and fly short distances. They can also reach impressive speeds. They fly at an average speed of 38-48 mph for a relaxed flight, but can reach 60 mph when startled or chased.

15. They are originally from Asia, although pheasants are popular game birds in the US, they originated in China. Although some early settlers brought pheasants from Britain, they were not completely successful in introducing this bird. They were introduced to the US from China in 1881.

16. Wild pheasants are short-lived. As a popular animal for hunting and a popular game for hunting, it is no surprise that pheasants usually only live for about a year. They also grow rapidly. After hatching, the chicks will appear fully grown by 15 weeks. Dying of old age is a rare occurrence for this species.

17. Pheasants raised in captivity can live up to 18 years While wild pheasants live only a year on average due to hunting and other predators, pheasants kept in captivity are surprisingly long-lived: the average lifespan of a domesticated pheasant is 18 years.

18. Pheasants have very good senses, one of the reasons pheasants are popular hunting birds is that they pose a challenge to predators. With their high flight, running speed, and swimming ability, they are fast and agile enough to escape danger. Their vision and hearing are also exceptional.

तीतर के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Pheasants

19. At one time, these birds were hunted for their meat, but after the Wildlife Protection Act (WPA) of 1972 it is illegal to capture, keep, kill, trade, or harm the nests of pheasants.

20. Pheasants feed on the ground. During migration, pheasants flock together with hundreds of other pheasants. When they are not breeding or migrating, pheasants still generally flock together for protection, but these flocks are usually separated by gender.           

ज़ेष्ठा देवी मन्दिर, श्रीनगर || Zeashta Devi Shrinagar, Zaethyar

ज़ेष्ठा देवी मन्दिर

जेष्ठ देवी कौन है?

जेष्ठ देवी का जन्म देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। इस समुद्र मंथन के दौरान देवों और असुरों ने क्षीर सागर से अमृत मांगा। मंथन के दौरान सबसे पहले विष निकला, इसने देवताओं और असुरों को समान रूप से भयभीत कर दिया। भगवान शिव ने तीनों लोकों की रक्षा के लिए इस विष को पी लिया। हलाहल के बाद जेष्ठ देवी लाल वस्त्र पहने समुद्र से प्रकट हुईं।  वह देवी लक्ष्मी से पहले समुद्र से प्रकट हुई थीं इसलिए उन्हें जेष्ठ यानी बड़ी बहन के नाम से जाना जाता है। 

ज़ेष्ठा देवी मन्दिर, श्रीनगर || Zeashta Devi Shrinagar, Zaethyar

ज्येष्ठा देवी मंदिर एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में स्थित है। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए एक प्राचीन अभयारण्य के साथ-साथ सांप्रदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक भी है। ज्येष्ठा माता मंदिर के नाम से मशहूर यह पवित्र स्थल 3,000 साल से भी अधिक पुराना है। ज्येष्ठा देवी एक हिंदू देवी हैं, जिनकी पूजा भारत के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में की जाती है। 

यह मंदिर हिंदू देवी ज्येष्ठा को समर्पित है, जिन्हें देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी के दौरान राजा ललितादित्य मुक्तापीड ने किया था, जो कर्कोटा राजवंश के शासक थे। मंदिर की वास्तुकला शैली अद्वितीय है, जो हिंदू और बौद्ध प्रभावों को जोड़ती है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार हिंदू देवताओं की जटिल नक्काशी से सजाया गया है, जबकि मंदिर के आंतरिक भाग में बौद्ध शैली की पेंटिंग हैं। यह मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जो पास की डल झील सहित आसपास के परिदृश्य का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। 

ज़ेष्ठा देवी मन्दिर, श्रीनगर || Zeashta Devi Shrinagar, Zaethyar

यह मंदिर कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है, जो पूजा करने और आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में आते हैं। किंवदंती के अनुसार, मंदिर उस स्थान पर बनाया गया था जहां देवी ज्येष्ठा ने राजा ललितादित्य को दर्शन दिए थे, जो तब उनके सम्मान में मंदिर बनाने के लिए प्रेरित हुए थे। मंदिर को मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल के दौरान आंशिक रूप से नष्ट कर दिया गया था, जो अपनी हिंदू विरोधी नीतियों के लिए जाना जाता है। बाद में मंदिर का जीर्णोद्धार जम्मू-कश्मीर के डोगरा शासकों द्वारा किया गया। यह मंदिर सुंदर प्राकृतिक दृश्यों से घिरा हुआ है और पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है। 

अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के बावजूद, ज्येष्ठा देवी मंदिर जम्मू और कश्मीर के बाहर के अधिकांश लोगों के लिए अपेक्षाकृत अज्ञात है। हालांकि, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की खोज में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए यह एक अवश्य घूमने योग्य स्थान है। 

Jyeshtha Devi Temple

Who is Jyeshtha Devi?

Jyeshtha Devi was born during the Samudra Manthan performed by the Gods and Asuras. During this Samudra Manthan, the Devas and Asuras sought Amrit from the Ksheera Sagar. During the churning, poison came out first, it frightened the Gods and Asuras alike. Lord Shiva drank this poison to protect the three worlds. After Halahal, Jyeshtha Devi appeared from the sea wearing red clothes. She appeared from the sea before Goddess Lakshmi so she is known as Jyeshtha i.e. elder sister.

ज़ेष्ठा देवी मन्दिर, श्रीनगर || Zeashta Devi Shrinagar, Zaethyar

Jyeshtha Devi Temple is an ancient Hindu temple, located in Srinagar, Jammu and Kashmir. This temple is an ancient sanctuary for the local people as well as a symbol of communal harmony and cultural prosperity. Known as Jyeshtha Mata Temple, this holy place is more than 3,000 years old. Jyeshtha Devi is a Hindu goddess, who is worshiped in various parts of India, especially in the states of Maharashtra and Karnataka.

The temple is dedicated to the Hindu goddess Jyeshtha, who is believed to be the elder sister of Goddess Lakshmi. The temple is believed to have been built during the 9th century by King Lalitaditya Muktapida, a ruler of the Karkota dynasty. The architectural style of the temple is unique, combining Hindu and Buddhist influences. The main entrance of the temple is decorated with intricate carvings of Hindu deities, while the interior of the temple features Buddhist-style paintings. The temple is located on a hilltop, offering a panoramic view of the surrounding landscape, including the nearby Dal Lake.

ज़ेष्ठा देवी मन्दिर, श्रीनगर || Zeashta Devi Shrinagar, Zaethyar

The temple is considered one of the holiest sites for the Kashmiri Pandit community, who visit the temple to worship and seek blessings. According to legend, the temple was built at the spot where Goddess Jyeshtha appeared to King Lalitaditya, who was then inspired to build a temple in her honour. The temple was partially destroyed during the reign of Mughal emperor Aurangzeb, who is known for his anti-Hindu policies. The temple was later renovated by the Dogra rulers of Jammu and Kashmir. The temple is surrounded by beautiful natural scenery and is a popular destination for tourists and pilgrims.

Despite its historical and cultural significance, the Jyeshtha Devi Temple is relatively unknown to most people outside Jammu and Kashmir. However, it is a must-visit place for anyone interested in exploring India's rich cultural heritage.

मुंह के छाले || Mouth ulcers || Rajiv Dixit

 मुंह के छाले

आज हम मुंह के छालों के विषय में बात करेंगे।  यह भी एक छोटी सी समस्या है, परंतु जब हो जाता है, तो बहुत कष्ट देता है। मुंह में छाले पेट की गड़बड़ी के कारण होते हैं।

मुंह के छाले || Mouth ulcers || Rajiv Dixit

           मुंह में छाले होते रहते हैं, मतलब बड़ी आंत साफ नहीं है। ज्यादा गर्म चीजों को खाने से, अमाशय की गड़बड़ी, रक्त की अशुद्धि आदि कारणों से मुंह में छाले होते हैं। यह छाले कभी जीभ की नोक पर, कभी पूरी जीभ पर, कभी होंठ के अंदर वाले हिस्से में निकलते हैं। छालों के कारण मुंह में बार- बार पानी आने लगता है। इन छालों में जलन तथा दर्द रहता है।

मुंह के छालों को ठीक करने के कुछ घरेलू उपाय निम्न प्रकार हैं  :-


1.  भोजन के बाद सौंफ (पिसी हुई) के पानी से कुल्ला करें आराम मिलेगा।

2.  तुलसी के पत्तों का रस जीभ तथा दाँतों पर लगाएं, छाले ठीक होंगे।

3.  दो चम्मच हल्दी का चूर्ण पानी में उबालकर उस से कुल्ला करने से आराम मिलता है।

4.  गुड़ चूसने से भी मुंह के छालों में आराम मिलता है।

5. गाय के दूध में एक चम्मच घी डालकर रात को सोते समय  पियें।

6. शहद में मुलेठी मिलाकर छालों पर लगाएं तथा मुंह के लार को बाहर गिरने दें, इससे छालों में आराम मिलेगा।

7. ज्यादा मात्रा में पानी का सेवन कीजिए, इससे पेट साफ होगा और मुंह के छाले नहीं होंगे।

8. भोजन में ठंडी तासीर वाली चीजों को शामिल करें। दही, छाछ और फलों का जूस पिएं।

9.  दिन में तीन चार बार बार छा से कुल्ला करें।

10. खाना खाने के बाद गुड़ का सेवन करें, ऐसा करने से छालों में राहत मिलते है।

 11. प्रभावित जगह पर एलोवेरा लगाने से जलन कम होगी तथा घाव जल्दी भरेंगे।

 12.  मुंह में लौंग का तेल लगाएं।

          पेट में कब्ज बनाने वाले किसी भी भोजन का सेवन न करें तथा अधिक गरिष्ट भोजन से बचें।

कोई किसी की राह नहीं देखता

कोई किसी की राह नहीं देखता

कोई किसी की राह नहीं देखता

अब कोई नहीं रहता हैं यहां 

सिर्फ पसरा है मौन दूर तक

सड़के सुनसान पड़ी है 

गलियां वीरान हैं अब 

कोई किसी की राह नहीं देखता 

अब किसी का इंतजार नहीं है 

खिड़कियों से कोई झांकता नहीं है 

सुंदर परियां दालान और बरामदों में 

चहल-पहल नहीं करती हैं 

अब कानों में खुशफुसाहट 

नहीं करती है सखियां

अब कोई गीत नहीं गाता मिलन के

अब सावन में झूले पर 

पेगें तेज़ नहीं होती हैं 

शाम अब उदास है 

बारिश का उसे अब इंतखाब नहीं

बारिश की बूंदे‌‌ खारी लगती है

मीठी बूंदे कोई ले गया 

पीछे किनारे पर कुछ खुशनुमा रंग 

रह गया है 

जीने का संबल प्रदान करता..

मुश्किल दौर

 मुश्किल दौर

एक बार की बात है, एक कक्षा में गुरूजी अपने सभी छात्रों को समझाना चाहते थे कि प्रकृति सभी को समान अवसर देती है और उस अवसर का इस्तेमाल करके हम अपना भाग्य खुद बना सकते हैं। 

उपदेशात्मक कहानी - मुश्किल दौर

इसी बात को ठीक तरह से समझाने के लिए गुरूजी ने तीन कटोरे लिए। पहले कटोरे में एक आलू रखा, दूसरे में अंडा और तीसरे कटोरे में चाय की पत्ती डाल दी। अब तीनों कटोरों में पानी डालकर उनको गैस पर उबलने के लिए रख दिया। 

सभी छात्र ये सब हैरान होकर देख रहे थे, लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ देर बाद जब तीनों बर्तन में उबाल आने लगे, तो गुरूजी ने सभी कटोरों को नीचे उतारा और आलू, अंडा और चाय को बाहर निकाला।

अब उन्होंने सभी छात्रों से तीनों कटोरों को गौर से देखने के लिए कहा। अब भी किसी छात्र को समझ नहीं आ रहा था।

आखिर में गुरु जी ने एक बच्चे से तीनों (आलू, अंडा और चाय) को स्पर्श करने के लिए कहा। जब छात्र ने आलू को हाथ लगाया तो पाया कि जो आलू पहले काफी कठोर हो गया था और पानी में उबलने के बाद काफी मुलायम हो गया था। 

जब छात्र ने, अंडे को उठाया तो देखा जो अंडा पहले बहुत नाज़ुक था  उबलने के बाद वह कठोर हो गया है। अब बारी थी चाय के कप को उठाने की। जब छात्र ने चाय के कप को उठाया तो देखा चाय की पत्ती ने गर्म पानी के साथ मिलकर अपना रूप बदल लिया था और अब वह चाय बन चुकी थी। 

अब गुरु जी ने समझाया, हमने तीन अलग-अलग चीजों को समान विपत्ति से गुज़ारा, यानी कि तीनों को समान रूप से पानी में उबाला लेकिन बाहर आने पर तीनों चीजें एक जैसी नहीं मिली। 

आलू जो कठोर था वो मुलायम हो गया, अंडा पहले से कठोर हो गया और चाय की पत्ती ने भी अपना रूप बदल लिया। उसी तरह यही बात इंसानों पर भी लागू होती है। 

शिक्षा

सभी को समान अवसर मिलते हैं और मुश्किलें आती हैं लेकिन ये पूरी तरह हम पर निर्भर है कि हम परेशानी का सामना कैसा करते हैं और मुश्किल दौर से कैसे बाहर निकलते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा || Kartik Purnima 2024 || देव दीपावली || गुरु पर्व

 कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima)

हिंदू धर्म में पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हिंदू धर्म में हर साल 12 पूर्णिमा होती हैं, जो हर महीनें आती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 13 हो जाती है। कार्तिक महीने में आने वाली पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान की पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन "देव दिवाली" मनाई जाती है। इस दिन को "गुरु पर्व" भी कहा जाता है। इस वर्ष १५ नवंबर आज के दिन "देव दिवाली" का पर्व मनाया जा रहा है। 

कार्तिक पूर्णिमा || Kartik Purnima 2024 || देव दीपावली || गुरु पर्व

कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्यों मनाई जाती है देव दीपावली?

दीपावली के ठीक 15 दिन बाद और कार्तिक पूर्णिमा के दिन "देव दीपावली" का पर्व मनाया जाता है। देव दिवाली के दिन काशी और गंगा घाटों पर विशेष उत्सवों के आयोजन किए जाते हैं और गंगा किनारे खूब दीप प्रज्जवलित किए जाते हैं। देव दिवाली मनाने को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता भी स्वर्गलोक से धरती पर आते हैं और दिवाली का पर्व मनाते हैं। 

कार्तिक पूर्णिमा || Kartik Purnima 2024 || देव दीपावली || गुरु पर्व

पौराणिक कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस ने अपने आतंक से धरतीलोक पर मानवों और स्वर्गलोक में सभी देवताओं को त्रस्त कर दिया था। सभी देवतागण त्रिपुरासुर से परेशान हो गए थे। सभी ने भगवान शिव से त्रिपुरासुर का अंत करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। त्रिपुरासुर के अंत के बाद उसके आंतक से मुक्ति मिलने पर सभी देवतागण प्रसन्न हुए और उन्होंने स्वर्ग में दीप जलाएं। इस घटना के बाद से ही कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन को "देव दीपावली" कहा जाने लगा। 

इसके साथ ही इस दिन को त्रिपुरासुर नामक असुर का अंत होने के कारण इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इसी के बाद से भगवान शिव को त्रिपुरारी के रूप में पूजा जाने लगा था।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्यों मनाया जाता है गुरु पर्व?

कार्तिक पूर्णिमा || Kartik Purnima 2024 || देव दीपावली || गुरु पर्व

कार्तिक पूर्णिमा को सिख सम्प्रदाय में प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। सिख धर्म को मानने वाले कार्तिक पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं, क्योंकि इस दिन उनके संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। 

इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा को बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी प्रकट हुई थीं और कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म लिया था। 

सभी पाठकों को कार्तिक पूर्णिमा, गुरुपूर्णिमा और देव दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाइयाँ !!