अपराजिता (Aprajita)
अपराजिता एक ऐसी बेल है, जो हमारे बाग बगीचों की शोभा बढ़ाती है। यह श्वेत और नीले दो रंग की होती है। अपराजिता लता वाला पौधा है। इसके आकर्षक फूलों के कारण इसे लान की सजावट के तौर पर भी लगाया जाता है। ये इकहरे फूलों वाली बेल भी होती है और दुहरे फूलों वाली भी। फूल भी दो तरह के होते हैं - नीले और सफेद।
अपराजिता क्या है?
अपराजिता एक बेल है, जिसमें वर्षा ऋतु में फूल लगते हैं। अपराजिता का वृक्ष झाड़ीदार और कोमल होता है। रंगभेद के आधार पर यह दो प्रकार की होती है - श्वेत पुष्प और नील पुष्प। सफेद और नीले पुष्पों के भी दो प्रकार होते हैं - एकहरे पंखुड़ी वाली और दोहरे पंखुड़ियों वाली। इसके पत्ते छोटे और अंडाकार होते हैं। इसकी पर्व संधि से एक शाखा निकलती है, जिसके दोनों और तीन-चार जोड़े पत्र युग में निकलते हैं और अंत में शिखा घर पर एक पत्र होता है। पुष्प खिलने के पश्चात जब सूखते हैं, तब फल लगते हैं, जो मटर की फली के समान लंबे और चपटी होती हैं, जिसमें से उड़द के दानों के बराबर कृष्ण वर्ण के चिकने बीज निकलते हैं।
जानते हैं अपराजिता के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में
दोनों ही प्रकार की अपराजिता चरपरी, मेधा के लिए हितकारी, शीतल, कंठ को शुद्ध करने वाली, दृष्टि को उत्तम करने वाली, स्मृति व बुद्धि वर्धक, कुष्ठ, मूत्र दोष तीनों दोष, सूजन, व्रन तथा विष को दूर करने वाली है।
सिर का दर्द
अपराजिता की फली के रस को नाक में डालने अथवा जड़ के रस को नाक में प्रातः खाली पेट एवं सूर्योदय से पूर्व डालने से शिरो वेदना नष्ट होती है।
माइग्रेन की समस्या
- अपराजिता के बीजों के चार-चार बूंद रस को नाक में डालने से आधासीसी अर्थात माइग्रेन का दर्द दूर होता है।
- अपराजिता की फली बीज और जड़ को बराबर भाग में लेकर जल के साथ पीस लें। इसकी बूंद नाक में लेने से आधासीसी (अर्धावभेदक) में लाभ होता है। इसकी जड़ को कान में बांधने से भी लाभ होता है। बीज, जड़ और फली को अलग-अलग भी प्रयोग कर सकते हैं।
छोटे बच्चों के पेट दर्द में
अपराजिता के 1-2 बीजों को आग पर भूनकर माँ या बकरी के दूध अथवा घी के साथ चटाने से पेट दर्द में शीघ्र लाभ होता है।
आंखों की समस्या
सफेद अपराजिता तथा पुनर्नवा की जड़ की पेस्ट में बराबर भाग में जौ का चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह से घोंट लें। अब इसकी बाती बनाकर सुखा लें। इस बाती को पानी से घिसकर अंजन (आंखों में लगाने) करने से आंखों से जुड़ी सभी बीमारियों का उपचार होता है।
कान दर्द में
अपराजिता के पत्तों के रस को सुखाकर गर्म कर लें। इसे कानों के चारों तरफ लेप करने से कान के दर्द में आराम मिलता है।
दांत दर्द में
अपराजिता की जड़ की पेस्ट तैयार करें। इसमें काली मरिच का चूर्ण मिलाकर मुंह में रखें। इससे दांत दर्द में बहुत ही आराम मिलता है।
गले के रोग में
10 ग्राम अपराजिता के पत्ते को 500 मिलीलीटर पानी में पकायें। इसका आधा भाग शेष रहने पर इसे छान लें। इस तरह से तैयार काढ़े से गरारा करने पर टांसिल, गले के घाव में आराम पहुंचता है। गला खराब होने यानी आवाज में बदलाव आने पर भी यह काढ़े से गराना करना उपयोगी होता है।
पाचनतंत्र की समस्या
सफेद अपराजिता की जड़ को उखाड़ कर गले में बांधें। इसके अलावा रोज इसकी जड़ के चूर्ण को गाय के दूध या गाय के घी के साथ खाएं। इससे अपच की समस्या, पेट में जलन आदि में शीघ्र लाभ होता है।
खांसी को ठीक करने
पेट की बीमारी में
पीलिया में
मूत्र रोग में
- 1-2 ग्राम अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गर्म पानी या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार सेवन करें। इससे पेशाब के रास्ते में होने वाली जलन दूर होती है।
- यदि पेशाब कम हो रहा हो तो उसमें भी इसका सेवन करने से लाभ होता है।
- अपराजिता की जड़ के चूर्ण को चावलों के धोवन के साथ पीस लें। इसे छानकर कुछ दिन सुबह और शाम से पिलाने से मूत्राशय की पथरी टूट कर निकल जाती है।
गठिया (जोड़ों के सूजन) होने पर
- अपराजिता के पत्तों को पीसकर जोड़ों पर लगाने से गठिया में आराम होता है।
- 1-2 ग्राम अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गर्म पानी या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार सेवन करें। इससे गठिया में फायदा होता है।
फाइलेरिया या हाथीपांव (श्लीपद) में
घावों को ठीक करने
- हथेली या ऊंगलियों में होने वाले घाव या बहुत ही दर्द देने वाले घावों पर अपराजिता के 10-20 पत्तों की लुगदी को बांध दें। इस पर ठंडा जल छिड़कते रहने से बहुत ही जल्दी आराम मिलता है।
- 10-20 ग्राम अपराजिता की जड़ को कांजी या सिरके के साथ पीस लें। इसका लेप करने से पके हुए फोड़े ठीक हो जाते हैं।
चेहरे की झाई में
मधुमेह (डायबिटीज) में
अवसाद (डिप्रेशन) कम करने में
हृदय को स्वास्थ्य रखने में
अस्थमा से राहत पाने में
बुखार उतारने के लिए
अपराजिता के इस्तेमाल से सांप के विष का इलाज
विभिन्न भाषाओं में अपराजिता के नाम
English – Butterfly pea, Blue pea, Pigeon wings
Sanskrit – गोकर्णी, गिरिकर्णी, योनिपुष्पा, विष्णुक्रान्ता, अपराजिता
Oriya – ओपोराजिता (Oporajita)
Urdu – माजेरीयुनीहिन्दी (Mazeriyunihindi)
Kannada – शंखपुष्पाबल्ली, गिरिकर्णिका, गिरिकर्णीबल्ली
Konkani – काजुली (Cazuli)
Gujarati – गर्णी (Garani), कोयल (Koyala)
Tamil – काककनाम (Kakkanam), तरुगन्नी (Taruganni)
Telugu – दिन्तेना (Dintena), नल्लावुसिनितिगे (Nallavusinitige)
Bengali – गोकरन (Gokaran), अपराजिता (Aparajita)
Nepali – अपराजिता (Aparajita)
Punjabi – धनन्तर (Dhanantar)
Malayalam – अराल (Aral), कक्कनम्कोटि (Kakkanamkoti), शंखपुष्पम् (Sankhpushpam)
Marathi – गोकर्णी (Gokarni), काजली (Kajali), गोकर्ण (Gokarn)
Arabic – बजरूल्मजारियुन-ए-हिंदी (Bazrulmazariyun-e-hindi)
Farasi – दरख्ते बिखेहयात (Darakhte bikhehayat)
अपराजिता के नुकसान (Side Effects of Butterfly pea)
अपराजिता के विषय में अभी तक कोई भी नुकसान की बात सामने नहीं आई है।
धार्मिक दृष्टि से भी अपराजिता का विशेष महत्व है। अपराजिता का उपयोग काली पूजा और नवदुर्गा पूजा में विशेषरूप में किया जाता है। जहां काली का स्थान बनाया जाता है, वहां पर इसकी बेल को जरूर लगाया जाता है। गर्मी के कुछ समय के अलावा हर समय इसकी बेल फूलों से सुसज्जित रहती है।