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अपराजिता || Aprajita ||

अपराजिता (Aprajita)

अपराजिता एक ऐसी बेल है, जो हमारे बाग बगीचों की शोभा बढ़ाती है। यह श्वेत और नीले दो रंग की होती है। अपराजिता लता वाला पौधा है। इसके आकर्षक फूलों के कारण इसे लान की सजावट के तौर पर भी लगाया जाता है। ये इकहरे फूलों वाली बेल भी होती है और दुहरे फूलों वाली भी। फूल भी दो तरह के होते हैं - नीले और सफेद।

अपराजिता के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

अपराजिता क्या है?

अपराजिता एक बेल है, जिसमें वर्षा ऋतु में फूल लगते हैं। अपराजिता का वृक्ष झाड़ीदार और कोमल होता है। रंगभेद के आधार पर यह दो प्रकार की होती है - श्वेत पुष्प और नील पुष्प। सफेद और नीले पुष्पों के भी दो प्रकार होते हैं - एकहरे पंखुड़ी वाली और दोहरे पंखुड़ियों वाली। इसके पत्ते छोटे और अंडाकार होते हैं। इसकी पर्व संधि से एक शाखा निकलती है, जिसके दोनों और तीन-चार जोड़े पत्र युग में निकलते हैं और अंत में शिखा घर पर एक पत्र होता है। पुष्प खिलने के पश्चात जब सूखते हैं, तब फल लगते हैं, जो मटर की फली के समान लंबे और चपटी होती हैं, जिसमें से उड़द के दानों के बराबर कृष्ण वर्ण के चिकने बीज निकलते हैं।

अपराजिता के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

जानते हैं अपराजिता के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

दोनों ही प्रकार की अपराजिता चरपरी, मेधा के लिए हितकारी, शीतल, कंठ को शुद्ध करने वाली, दृष्टि को उत्तम करने वाली, स्मृति व बुद्धि वर्धक, कुष्ठ, मूत्र दोष तीनों दोष, सूजन, व्रन तथा विष को दूर करने वाली है।

सिर का दर्द

अपराजिता की फली के रस को नाक में डालने अथवा जड़ के रस को नाक में प्रातः खाली पेट एवं सूर्योदय से पूर्व डालने से शिरो वेदना नष्ट होती है।

माइग्रेन की समस्या

  • अपराजिता के बीजों के चार-चार बूंद रस को नाक में डालने से आधासीसी अर्थात माइग्रेन का दर्द दूर होता है।
  • अपराजिता की फली बीज और जड़ को बराबर भाग में लेकर जल के साथ पीस लें। इसकी बूंद नाक में लेने से आधासीसी (अर्धावभेदक) में लाभ होता है। इसकी जड़ को कान में बांधने से भी लाभ होता है। बीज, जड़ और फली को अलग-अलग भी प्रयोग कर सकते हैं।
अपराजिता के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

छोटे बच्चों के पेट दर्द में

अपराजिता के 1-2 बीजों को आग पर भूनकर माँ या बकरी के दूध अथवा घी के साथ चटाने से पेट दर्द में शीघ्र लाभ होता है।

आंखों की समस्‍या 

सफेद अपराजिता तथा पुनर्नवा की जड़ की पेस्‍ट में बराबर भाग में जौ का चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह से घोंट लें। अब इसकी बाती बनाकर सुखा लें। इस बाती को पानी से घिसकर अंजन (आंखों में लगाने) करने से आंखों से जुड़ी सभी बीमारियों का उपचार होता है।

कान दर्द में 

अपराजिता के पत्‍तों के रस को सुखाकर गर्म कर लें। इसे कानों के चारों तरफ लेप करने से कान के दर्द में आराम मिलता है।

दांत दर्द में 

अपराजिता की जड़ की पेस्‍ट तैयार करें। इसमें काली मरिच का चूर्ण मिलाकर मुंह में रखें। इससे दांत दर्द में बहुत ही आराम मिलता है।

गले के रोग में 

10 ग्राम अपराजिता के पत्‍ते को 500 मिलीलीटर पानी में पकायें। इसका आधा भाग शेष रहने पर इसे छान लें। इस तरह से तैयार काढ़े से गरारा करने पर टांसिल, गले के घाव में आराम पहुंचता है। गला खराब होने यानी आवाज में बदलाव आने पर भी यह काढ़े से गराना करना उपयोगी होता है।

अपराजिता के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

पाचनतंत्र की समस्या

सफेद अपराजिता की जड़ को उखाड़ कर गले में बांधें। इसके अलावा रोज इसकी जड़ के चूर्ण को गाय के दूध या गाय के घी के साथ खाएं। इससे अपच की समस्या, पेट में जलन आदि में शीघ्र लाभ होता है।

खांसी को ठीक करने 

अपराजिता की जड़ का शर्बत तैयार कर लें। इसे थोड़ा-थोड़ा पीने से खांसी, सांसों के रोगों की दिक्‍कत और बालकों की कुक्कुर खांसी में लाभ होता है।

पेट की बीमारी में 

आधा ग्राम अपराजिता के भुने हुए बीज का चूर्ण बना लें। इसे चूर्ण को आंच पर भून लें या 1-2 बीजों को आग पर भून लें। इसे बकरी के दूध या घी के साथ दिन में दो बार सेवन करें। इससे जलोदर (पेट में पानी भरने की समस्या), अफारा (पेट की गैस), कामला (पीलिया), तथा पेट दर्द में शीघ्र लाभ होता है।
अपराजिता के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

पीलिया में

3-6 ग्राम अपराजिता के चूर्ण को छाछ के साथ प्रयोग करें। इससे पीलिया में लाभ होता है। इसके अलावा आधा ग्राम अपराजिता के भुने हुए बीज का चूर्ण बना लें। इसे चूर्ण को आंच पर भून लें या 1-2 बीजों को आग पर भून लें। इसे बकरी के दूध या घी के साथ दिन में दो बार सेवन करें। इससे कामला (पीलिया) में शीघ्र लाभ होता है।

मूत्र रोग में

  • 1-2 ग्राम अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गर्म पानी या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार सेवन करें। इससे पेशाब के रास्‍ते में होने वाली जलन दूर होती है।
  • यदि पेशाब कम हो रहा हो तो उसमें भी इसका सेवन करने से लाभ होता है।
  • अपराजिता की जड़ के चूर्ण को चावलों के धोवन के साथ पीस लें। इसे छानकर कुछ दिन सुबह और शाम से पिलाने से मूत्राशय की पथरी टूट कर निकल जाती है।

गठिया (जोड़ों के सूजन) होने पर 

  • अपराजिता के पत्‍तों को पीसकर जोड़ों पर लगाने से गठिया में आराम होता है।
  • 1-2 ग्राम अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गर्म पानी या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार सेवन करें। इससे गठिया में फायदा होता है।

फाइलेरिया या हाथीपांव (श्‍लीपद) में 

10-20 ग्राम अपराजिता की जड़ को थोड़े पानी के साथ पीस लें। इसे गर्म कर लेप करें। इसके साथ ही 8-10 पत्तों के पेस्‍ट की पोटली बनाकर सेंकने से फाइलेरिया या फीलपांव और नारु रोग में लाभ होता है।

घावों को ठीक करने 

  • हथेली या ऊंगलियों में होने वाले घाव या बहुत ही दर्द देने वाले घावों पर अपराजिता के 10-20 पत्तों की लुगदी को बांध दें। इस पर ठंडा जल छिड़कते रहने से बहुत ही जल्‍दी आराम मिलता है।
  • 10-20 ग्राम अपराजिता की जड़ को कांजी या सिरके के साथ पीस लें। इसका लेप करने से पके हुए फोड़े ठीक हो जाते हैं।
अपराजिता के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

चेहरे की झाई में

अपराजिता की जड़ की राख या भस्म को मक्खन में घिस लें। इसे लेप करने से मुंह की झांई दूर हो जाती है।

मधुमेह (डायबिटीज) में 

मधुमेह में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए आप अपराजिता का प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि अपराजिता में एक रिसर्च के अनुसार एंटी-डायबेटिक गुण पाया जाता है।

अवसाद (डिप्रेशन) कम करने में 

अपराजिता का प्रयोग अवसाद को कम करने में भी किया जाता है, क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार अपराजिता में मेध्य का गुण पाया जाता है जो कि मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है जिससे अवसाद के लक्षणों में कमी आती है। 

हृदय को स्वास्थ्य रखने में

अपराजिता के बीज हृदय को स्वस्थ रखने में मदद करते है, क्योंकि इसमें एंटी-हिपेरलिपिडिमिक का गुणधर्म पाया जाता है जो कि कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद करता है। 

अस्थमा से राहत पाने में

अगर आप अस्थमा की समस्या से परेशान है तो, अपराजिता का प्रयोग आपको इस समस्या को कम करने में मदद कर सकता है। 

बुखार उतारने के लिए 

अपराजिता की बेल को कमर में बांधने से हर तीसरे दिन आने वाले बुखार से राहत मिलने में आसानी होती है।
अपराजिता के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

अपराजिता के इस्तेमाल से सांप के विष का इलाज 

सर्पाक्षी तथा सफेद अपराजिता की जड़ के काढ़े में घी को पकाएं। इसमें सोंठ, भांगरा (भृंङ्गराज), वच तथा हींग मिला लें। इसे छाछ के साथ देने से सांप के जहर से होने वाले प्रभावों का नाश होता है।

विभिन्न भाषाओं में अपराजिता के नाम

Hindi –     अपराजिता, कोयल, कालीजार
English – Butterfly pea, Blue pea, Pigeon wings
Sanskrit – गोकर्णी, गिरिकर्णी, योनिपुष्पा, विष्णुक्रान्ता, अपराजिता
Oriya –     ओपोराजिता (Oporajita)
Urdu –     माजेरीयुनीहिन्दी (Mazeriyunihindi)
Kannada – शंखपुष्पाबल्ली, गिरिकर्णिका, गिरिकर्णीबल्ली
Konkani – काजुली (Cazuli)
Gujarati – गर्णी (Garani), कोयल (Koyala)
Tamil –     काककनाम (Kakkanam), तरुगन्नी (Taruganni)
Telugu –     दिन्तेना (Dintena), नल्लावुसिनितिगे (Nallavusinitige)
Bengali –     गोकरन (Gokaran), अपराजिता (Aparajita)
Nepali –     अपराजिता (Aparajita)
Punjabi –     धनन्तर (Dhanantar)
Malayalam – अराल (Aral), कक्कनम्कोटि (Kakkanamkoti), शंखपुष्पम् (Sankhpushpam)  
Marathi –     गोकर्णी (Gokarni), काजली (Kajali), गोकर्ण (Gokarn)
Arabic –     बजरूल्मजारियुन-ए-हिंदी (Bazrulmazariyun-e-hindi)
Farasi –     दरख्ते बिखेहयात (Darakhte bikhehayat)
अपराजिता के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

अपराजिता के नुकसान (Side Effects of Butterfly pea)

अपराजिता के विषय में अभी तक कोई भी नुकसान की बात सामने नहीं आई है। 

धार्मिक दृष्टि से भी अपराजिता का विशेष महत्व है। अपराजिता का उपयोग काली पूजा और नवदुर्गा पूजा में विशेषरूप में किया जाता है। जहां काली का स्थान बनाया जाता है, वहां पर इसकी बेल को जरूर लगाया जाता है। गर्मी के कुछ समय के अलावा हर समय इसकी बेल फूलों से सुसज्जित रहती है।

बात सीधी थी पर - Baat Seedhi Thi Par || Sunday.. इतवार ..रविवार ||

बात सीधी थी पर  || Baat Seedhi Thi Par ||

कुँवर नारायण (19 सितम्बर 1927 - 14 नवम्बर 2017) एक हिन्दी साहित्यकार थे। नई कविता आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक (1941) के प्रमुख कवियों में रहे हैं। 2009 में उन्हें वर्ष 2005 के लिए भारत के साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

बात सीधी थी पर  || Baat Seedhi Thi Par ||
"हम क्या हैं वो सिर्फ हम जानते हैं,
लोग सिर्फ हमारे बारे में अंदाजा ही लगा सकते हैं.. ❤"

आज कुंवर नारायण जी की सुप्रसिद्ध कविता व्याख्या सहित प्रस्तुत है -

इस कविता में कथ्य के माध्यम से द्वन्द्व को उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात की गई है। कवि का कहना है कि हमें सीधी-सरल बात को बिना पेंच फँसाये सीधे-सरल शब्दों में कहने का प्रयास करना चाहिए। भाषा के फेर में पङने से बात स्पष्ट नहीं हो पाती है, कविता में जटिलता बढ़ जाती है तथा अभिव्यक्ति में उलझाव आ जाता है। अतएव अच्छी बात अथवा अच्छी कविता के लिए शब्दों का चयन या भाषागत प्रयोग सहज होना नितान्त अपेक्षित है। तभी हम कविता के द्वारा सीधी बात कह सकते है।                                      

बात सीधी थी पर 

बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोङा मरोङा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।

व्याख्या-

कवि कहते हैं कि मेरे मेन में एक सीधी सरल सी बात थी, जिसे मैं कहना चाहता था; परन्तु उसे व्यक्त करने के लिए बढ़िया-सी भाषा का प्रयोग करने से अर्थात् भाषायी प्रभाव दिखाने के प्रयास से उसकी सरलता समाप्त हो गई। आशय यह है कि शब्द-जल में सरल बात भी जटिल हो गई। कवि कहता है तब उस बात को कहने के लिए मैनें भाषा को अर्थात् शब्दों को बदलने का प्रयास किया, भाषा को उल्टा-पल्टा, शब्दों को काट-छाँटकर आगे-पीछे किया। मैंने ऐसा प्रयास इसलिए किया कि मूल बात सरलता से व्यक्त हो सके।

मैंने कोशिश की कि या तो मेरे मन की बात सहजता से व्यक्त हो जाए या फिर भाषा के जंजाल से छूटकर बाहर आये; परन्तु ये दोनों बातें नही हो सकी। इस प्रयास में स्थिति खराब होते गई, भाषा अधिक जटिल हो गई और मेरी बात उसके जाल में उलझकर रह गई। इस तरह भाषा का परिष्कार करने के चक्कर में बात और भी जटिल हो गई।

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्योंकि इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रही थी
तामशबीनों की शाबाशी और वाह-वाह!
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूङी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

व्याख्या-

कवि कहते हैं कि भाषा के चक्कर में फँसी बात को धैर्यपूर्वक सुलझाने की कोशिश करने पर वह और अधिक उलझ गई। जिस प्रकार पेंच ठीक से न लगे उसे खोलकर बार-बार कसने से उसकी चूङियाँ मर जाती है और तब जबर्दस्ती किया गया प्रयास निष्फल रहता है। इसी प्रकार बेवजह भाषा का पेंच कसने से बात सहज और स्पष्ट होने के स्थान पर और भी क्लिष्ट हो जाती है। कवि कहता है कि ऐसा गलत करने पर वाह-वाह करने वाले और शाबाशी देने वाले लोगों की कमी नहीं थी। उनके प्रोत्साहन में मेरी उलझन और भी बढ़ जाती थी और वे बात बिगङने से खुश होते थे।

भाषा के साथ जबर्दस्ती करने का वही परिणाम हुआ जिसका कवि को डर था। भाषा को तोङने-मरोङने के चक्कर में उसके मूल भाव का प्रभाव ही नष्ट हो गया। पेंच को जबर्दस्ती कसने से उसकी चूङी मर गई और पेंच बेकार ही घूमने लगा, इसी प्रकार भाषा की बनावट के चक्कर में उसका मूल कथ्य नष्ट हो गया और भाषा व्यर्थ में प्रयुक्त होती रही।

हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जग ठोंक दिया।
ऊपर से ठीक ठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा-
’’क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?

व्याख्या-

कवि कहते हैं कि भाषा की तोङ-मरोङ में, उसमें पेच कसने में लगे रहने में जब मैं असमर्थ रहा, तब अपनी अभिव्यक्ति को चमत्कारी शब्दों में ठूँस-ठाँसकर ऐसे ही छोङ दिया। जिस प्रकार चूङियाँ मर जाने से पेंच को कील की तरह ठोंककर छोङ दिया जाता है, उसी तरह मैंने कथ्य के साथ किया। तब वह कविता ऊपर से तो अच्छी और ठीक-ठाक प्रतीत हुई; परन्तु अन्दर से वह एकदम ढीली एवं प्रभावहीन हो गई। तब उस अभिव्यक्ति में न तो कसावट थी और न प्रभावात्मकता थी अर्थात् उसमें अपेक्षित प्रभाव नहीं रह गया था।

कवि कहते हैं कि तब ’बात’ ने शरारती बच्चे की तरह मुझसे पूछा कि तुम क्यों व्यर्थ की शाब्दी-क्रीङा कर रहे हो ? तुम मुझसे खेलते हुए भी व्यर्थ का परिश्रम क्यों कर रहे हो ? मुझे अपना पसीना पोंछते देखकर बात ने कहा कि तुम व्यर्थ में पसीना बहा रहे हो। क्या तुमने अब तक भाषा को सरलता, सहजता और उपयुक्तता से प्रयोग करना नहीं सीखा ? यह तुम्हारी अक्षमता तथा अयोग्यता है, अप्रभावी अभिव्यक्ति की कमी है।

बात सीधी थी पर  || Baat Seedhi Thi Par ||
"किसी को हरा देना बहुत ही आसान है !
लेकिन किसी को जीतना बहुत ही मुश्किल है.. ❤"

दूरदर्शी बनो : पंचतंत्र

दूरदर्शी बनो

यद्भ भविष्यो विनश्यति

"जो होगा देखा जाएगा" कहने वाले नष्ट हो जाते हैं। 

दूरदर्शी बनो : पंचतंत्र

एक तालाब में तीन मछलियां थीं: अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य। एक दिन मछियारों ने उन्हें देख लिया और सोचा इस तालाब में खूब मछलियां हैं। आज तक कभी इसमें जाल भी नहीं डाला है। इसलिए यहां खूब मछलियां हाथ लगेगी। उस दिन शाम अधिक हो गई थी। खाने के लिए मछलियां भी पर्याप्त मिल चुकी थीं। अतः अगले दिन सुबह ही वहां आने का निश्चय करके वे चले गए। 

दूरदर्शी बनो : पंचतंत्र

अनागतविधाता नाम की मछली ने उनकी बात सुनकर सब मछलियों को बुलाया और कहा मैने उन मछुआरों की बात सुन ली है। रातों-रात ही हमें यह तालाब छोड़कर दूसरे तालाब में चले जाना चाहिए। एक क्षण की भी देर करना उचित नहीं। 

प्रत्युत्पन्नमति ने भी उसकी बात का समर्थन किया। उसने कहा - परदेश में जाने का डर प्रायः सबको नपुंसक बना देता है। 'अपने ही कुएं का जल पिएंगे'- यह कहकर लोग जन्म भर खारा पानी पीते हैं, वह कायर होते हैं। स्वदेश का यह राग वही गाते हैं, जिनकी कोई और गति नहीं होती। 

दूरदर्शी बनो : पंचतंत्र

उन दोनों की बातें सुनकर यद्भवति नाम की मछली हंस पड़ी। उसने कहा - किसी राह जाते आदमी के वचन मात्र से डरकर हम अपने पूर्वजों के देश को नहीं छोड़ सकते। दैव अनुकूल होगा तो हम यहां भी सुरक्षित रहेंगे। प्रतिकूल होगा तो अन्यत्र जाकर भी किसी के जाल में फंस जाएंगे। मैं तो नहीं जाती, तुम्हें जाना हो तो जाओ।

उसका आग्रह देखकर अनागतविधाता और प्रत्युत्पन्नमति दोनों सपरिवार पास के तालाब में चली गईं। यदभविष्य अपने परिवार के साथ उसी तालाब में रही। अगले दिन सुबह मछुआरों ने उस तालाब में जाल फैलाकर सब मछलियों को पकड़ लिया। 

इसीलिए मैं कहती हूं कि 'जो होगा देखा जाएगा' कि नीति विनाश की ओर ले जाती है। हमें प्रत्येक विपत्ति का उचित उपाय करना चाहिए। 

दूरदर्शी बनो : पंचतंत्र

यह बात सुनकर टिटिहरे ने टिटिहरी से कहा - मैं यद्भविष्य जैसा मूर्ख और निष्कर्ष नहीं हूं। मेरी बुद्धि का चमत्कार देखती जा। मैं अभी अपनी चोंच से पानी बाहर निकाल कर समुद्र को सुखा देता हूं। 

टिटिहरी - समुंद्र के साथ तेरा बैर तुझे शोभा नहीं देता। इस पर क्रोध करने से क्या लाभ? अपनी शक्ति देखकर हमें किसी से बैर करना चाहिए, नहीं तो आग में जलने वाले पतंगे जैसी गति होगी।

टिटिहरा फिर भी अपनी चोंच से समुद्र को सुखा डालने की डींगे मरता रहा। तब टिटिहरी ने फिर उसे मना करते हुए कहा कि जिस समुंद्र को गंगा - यमुना जैसी सैकड़ों नदियां निरंतर पानी से भर रही हैं, उसे तू अपनी बूंद भर उठाने वाली चोंच से कैसे खाली कर देगा?

 टिटिहरा तब भी अपने हठ पर तुला रहा। तब टिटिहरी ने कहा - यदि तूने समुंद्र को सुखाने का हठ ही कर लिया है, तो अन्य पक्षियों की भी सलाह लेकर काम कर। कई बार छोटे-छोटे प्राणी मिलकर अपने से बहुत बड़े जीव को भी हरा देते हैं। जैसे चिड़िया, कठफोड़े और मेंढक ने मिलकर हाथी को मार दिया था।

टिटिहरे ने पूछा - कैसे? 

टिटिहरी ने तब चिड़िया और हाथी की यह कहानी सुनाई। 

एक और एक ग्यारह

To be continued ...

लाजवंती (छुई मुई)/ Shameplant

लाजवंती (छुई मुई)/ Shameplant

लाजवंती (छुई मुई)/ Shameplant

बचपन में छुईमुई के पौधे से लगभग सभी बच्चे बहुत खेलते हैं क्योंकि इसको छूते ही यह सिकुड़ जाती है और हाथ हटाने पर पुनः अपनी पूर्व अवस्था में आ जाती है। यही इस बूटी की खास पहचान है। लाजवंती नाम से ही जैसे कि समझ में आता है कि इस पौधे को छूने से ही वह शर्मा जाती है अर्थात कहने का मतलब ये है कि सिर्फ इंसान के छूने से ही नहीं किसी भी चीज के स्पर्श मात्र से लाजवंती का पौधा सिकूड़ जाता है। इस छुई-मुई के पौधे के पौष्टिक गुणों के आधार पर लाजवंती को आयुर्वेद में औषधी के रूप किया जाता रहा है।

लाजवंती (छुई मुई)/ Shameplant

छुईमुई क्या है?

लाजवन्ती के खास बात यह है कि बूटी को हाथ लगाते ही यह सिकुड़ जाती है और हाथ हटाने पर फिर अपनी पूर्व अवस्था में आ जाती है, यही इस बूटी की खास पहचान है। इस प्रजाति के पौधे अनेक रुपों में मिलते हैं। इसके फूल गुलाबी रंग के तथा छोटे होते हैं। इसकी जड़ स्वाद में अम्लिय तथा कठोर होती है।

जानते हैं छुईमुई के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

छुईमुई शीतल कफ पित्त दूर करने वाली, रक्तपित्त, अतिसार का विनाश करने वाली एक जड़ी बूटी है। लाजवंती प्रकृति से ठंडे तासीर की और कड़वी होती है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में लाजवंती के कई फायदे बताए गए हैं, जिनमें कफ पित्त को दूर करना, पित्त (नाक-कान से खून बहना), दस्त, पित्त, सूजन, जलन, अल्सर, कुष्ठ रोग से आराम दिलाना आदि शामिल हैं।

लाजवंती (छुई मुई)/ Shameplant

खांसी की समस्या

छुईमुई की जड़ को गले में बांधने से खांसी मिटती है। यह एक विचित्र किंतु चमत्कारिक प्रयोग है।

बवासीर की समस्या 

  • लाजवंती के पत्तों का एक चम्मच चूर्ण दूध के साथ प्रातः सायं अथवा तीन बार लेने से बवासीर में लाभ होता है।
  • छुईमुई के जड़ और पत्तों दोनों का एक चम्मच चूर्ण दूध में मिलाकर 2 बार सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
लाजवंती (छुई मुई)/ Shameplant

अतिसार

  • लाजवंती के जड़ का 3 ग्राम चूर्ण दही के साथ खिलाने से रक्त अतिसार में तुरंत लाभ होता है।
  • लाजवंती की जड़ के 10 ग्राम चूर्ण का एक गिलास जल में काढ़ा बनाकर चौथाई शेष रहने पर सुबह-शाम पीने से रक्त अतिसार में लाभ होता है।

अपच की समस्या

छुईमुई के पत्तों का 30 मिलीग्राम रस पिलाने से अपच दूर होता है।

पथरी में

छुईमुई की 10 ग्राम जड़ का क्वाथ बनाकर दोनों समय पिलाने से पथरी गल कर निकल जाती है।

मधुमेह में

मधुमेह में भी इसकी जड़ का सौ ग्राम काढ़ा देने से लाभ होता है।

लाजवंती (छुई मुई)/ Shameplant

नासूर की समस्या

  • छुईमुई की जड़ को घिसकर लेप करने से नासूर मिटता है।
  • छुईमुई के पत्तों को कुचलकर इसमें रुई का फाहा तरकर हर प्रकार के नासूर की ड्रेसिंग करने से लाभ होता है।

सूजन होने पर

छुईमुई की जड़ को घिसकर लेप करने से सूजन मिट जाती है।

घाव पर

लाजवंती के बीजों का चूर्ण घाव पर लगाने से लाभ होता है।

पेचिश में 

पेचिश होने पर उससे राहत दिलाने में लाजवंती का औषधीय गुण बहुत काम आता है। छुईमुई के जड़ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से पेचिश में लाभ होता है।

लाजवंती (छुई मुई)/ Shameplant

गठिया की समस्या 

लाजवंती का उपयोग गठिये की आयुर्वेदिक दवा के रूप में किया जा सकता है। लाजवंती में एंटी-इंफ्लेमेटरी और दर्द निवारक गुण होने के कारण इसके उपयोग से गठिये में होने वाले दर्द और सूजन से आराम मिलता है. 

माहवारी से जुड़ी समस्या 

महिलाएं, लाजवंती का उपयोग मासिक धर्म संबंधी समस्या के दौरन भी कर सकती हैं क्योंकि यह हार्मोन की अनियमितता को दूर करके माहवारी से जुड़ी समस्याओं के लक्षणों को कम करने में मदद करती है।

अस्‍थमा का इलाज 

अस्थमा या कफ संबंधी समस्याओं के इलाज में लाजवंती का उपयोग करना फायदेमंद है, क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार लाजवंती में कफ के शमन (कफ कम करने) का गुण होता है। 

लीवर को स्वस्थ रखने में 

लीवर की बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है।आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का मानना है कि लीवर से जुड़ी समस्याओं में लाजवंती का उपयोग करना लाभदायक होता है।लाजवंती में हेप्टो प्रोटेक्टिव की क्रियाशीलता पायी जाती है जो कि हिप्टो टॉक्सिन से लीवर को सुरक्षित रखती है। 

लाजवंती (छुई मुई)/ Shameplant

विभिन्न भाषाओं में लाजवंती के नाम

Sanskrit-    लज्जालु, नमस्कारी, अंजलिकारिका, समङ्गा, शमीपत्रा, रक्तपादी, जलकारिका, खदिरका;
Hindi-        लज्जावन्ती, छुई-मुई, लजारु, लाजवती, लजउनी;
Odia-         लाजकुरी (Lajkuri);
Kannada-    नाचीकेगीडा (Nachikegida), लज्जा मुडुगुडवरी (Lajja mudugudvari);
Gujrati-      रीसामणी (Risamani), रीसमनी (Resmani);
Tamil-        थोट्टा-सिनिंगी (Thotta-siningi), तोटलवडी (Totlvaadi);
Telegu-      मुणुगु दामरगु (Munugu damragu), अट्टापट्टी (Attapatii);
Bengali-    लज्जाबती (Lajjabati), लाजक (Lajak);
Nepali-      भूहरीझार (Buharijhar);
Punjabi-    लाजवंती (Lajwanti);
Marathi-    लाजालु (Lajalu), लाजरी (Lajri);
Malayalam- टोटावडी (Tottavaadi।
English-    Humble plant, टच मी नॉट (Touch me not), शेम प्लान्ट (Shame plant)

लाजवंती के नुकसान (Side Effects of Shame plant)

छुईमुई के विषय में अभी तक कोई भी नुकसान की बात सामने नहीं आई है। 

लाजवंती (छुई मुई)/ Shameplant

तेनालीराम मटके में । Tenali Raman Matke me

तेनालीराम मटके में

एक बार महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से इतने नाराज़ हो गए कि उन्होंने उसे अपनी शक्ल न दिखाने का आदेश दे दिया और कहा - "अगर उसने उनके हुक्म की अवहेलना की तो उसे कोड़े लगायें जाएंगे।"

तेनालीराम मटके में । Tenali Raman Matke me

महाराज उस समय बहुत क्रोधित थे इसलिए तेनालीराम ने वहाँ से जाना ही उचित समझा। अगले दिन जब महाराज राजदरबार की ओर आ रहे थे, तो तेनालीराम से चिढ़ने वाला एक दरबारी महाराज को तेनालीराम के खिलाफ भड़काता जा रहा था। 

वह महाराज से बोला- "आज तो तेनालीराम ने आपके आदेश की अवहेलना की है। आपके मना करने के बावजूद भी वह दरबार में आया है और वहाँ ऊल -जुलूल हरकते करके सबको हंसा रहा है।"

दरबारी की बात सुनकर महाराज के कदम तेज़ी से राजदरबार की ओर बढ़ने लगे। राजदरबार पहुँचते ही महाराज ने देखा की तेनालीराम ने अपने मुख पर मटका पहन रखा है, जिसमें आँख की जगह दो छेद बने हुए हैं। यह देखते ही महाराज आग- बबूला हो गए और तेनालीराम पर गरजे , "एक तो तुमने हमारा हुक्म नहीं माना और ऊपर से ये अजीबो – गरीब हरकतें कर रहे हो। अब तो तुम कोड़े खाने के लिए तैयार हो जाओ। जैसे ही महाराज ने ये कहा, तेनालीराम के विरोधी बहुत खुश हुए लेकिन तभी तेनालीराम बोले, "महाराज मैंने तो आपकी किसी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया है। आपका आदेश था की मैं आपको अपना चेहरा न दिखाऊँ। क्या आपको कहीं से मेरा चेहरा दिख रहा है? यदि ऐसा है, तो जरुर उस कुम्हार ने मुझे फूटा हुआ मटका दे दिया है।"

तेनालीराम मटके में । Tenali Raman Matke me

तेनालीराम की बात सुनते ही महाराज का गुस्सा छूमंतर हो गया और उनकी हंसी छूट पड़ी। वे बोले, "किसी ने सच ही कहा है कि बेवकूफों और विदूषकों पर नाराज़ होना व्यर्थ है। तुम्हारी बुद्धि के आगे हमारा गुस्सा करना मुमकिन ही नहीं है। अब इस मटके से मुंह को बाहर निकालो और अपने आसन पर बैठ जाओ। तेनालीराम के विरोधी फिर से मन मारकर रह गए।

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Tenali Raman Matke me 

Once Maharaja Krishnadeva Raya became so angry with Tenalirama that he ordered him not to show his face and said - "If he disobeyed his orders, he would be flogged."

Maharaj was very angry at that time, so Tenaliram thought it appropriate to leave from there. The next day when Maharaj was coming towards the court, a courtier who was annoyed with Tenaliram was inciting Maharaj against Tenaliram.

तेनालीराम मटके में । Tenali Raman Matke me

He said to the Maharaj- "Today Tenaliram has disobeyed your order. Despite your refusal, he has come to the court and is making everyone laugh there by doing ruckus."

After listening to the courtier, the steps of the Maharaj started moving rapidly towards the court. On reaching the court, Maharaj saw that Tenaliram was wearing a matka on his face, in which two holes were made instead of eyes. On seeing this, Maharaj became furious and roared at Tenaliram, "First of all, you have not obeyed our orders and are doing these strange and poor things from above. Now you are ready to be flogged. As soon as Maharaj said this Said, Tenaliram's opponents were very happy, but then Tenaliram said, "Your Majesty, I have not violated any of your orders. Your order was that I should not show you my face. Can you see my face from somewhere? If so, then the potter must have given me a broken pot."

On hearing Tenaliram, Maharaj's anger dissipated and he laughed. He said, "Someone has rightly said that it is futile to be angry with idiots and clowns. Now take out your mouth from this pot and sit on your seat. Tenaliram's opponents were again stunned.

सफल होना हैं तो चलना होगा / If you want to be successful, you have to walk

सफल होना हैं तो चलना होगा

मनुष्य की जिंदगी में सुख और दुख हमेशा साथ - साथ चलते हैं। व्यक्ति को सभी तरह के समय के लिए तैयार रहना चाहिए, लेकिन दुख के समय में लोग बुरी तरह टूट जाते हैं, और आगे बढ़ने की उम्मीद छोड़ देते हैं। जब हम संघर्ष कर रहे होते हैं, तो रास्ते मे बहुत सारे उतार चढ़ाव आते हैं। लेकिन इन उतार चढ़ाव से जो व्यक्ति डर जाता है, वह कभी आगे नही बढ़ पाता और जो ऐसे समय में धैर्य बनाए रखते हुए आगे बढ़ता रहता है, वह जीवन में कभी असफल नहीं हो सकता।

सफल होना हैं तो चलना होगा / If you want to be successful, you have to walk

सफलता उन्हीं को मिलती है, जिनके जीवन का एक लक्ष्य होता है और वे अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार होते हैं। और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सच्चा दृढ़ संकल्प लेते हैं और इसके लिए वे लगातार प्रयास करते रहते है।

किसी भी सफलता की शुरुआत कोशिश करने से ही होती है। इसी बात पर एक बार चन्द्रगुप्त ने चाणक्य से पूछा - “अगर किस्मत पहले लिखी जा चूकी है तो कोशिश करने से क्या मिलेगा।” इस पर चाणक्य ने जवाब दिया - “क्या पता किस्मत में लिखा हो कोशिश करने से ही मिलेगा।” इसीलिए कहा जाता है कि सफल होना है तो कोशिश तो करनी ही पड़ेगी।

सफल होना हैं तो चलना होगा / If you want to be successful, you have to walk

अक्सर कोई भी काम शुरू करने से पहले लोग उसके फायदे, नुकसान, परिणाम, आदि के बारे में सोचने लगते हैं और जब वे ऐसा करते हैं, तो हम एक कदम आगे बढ़ने से पहले ही खुद को पीछे धकेल देते हैं। अगर हम किसी काम को करने की सोचते हैं तो हमें जरूर लगेगा कि हम यह नहीं कर सकते या ऐसा करना हमारे बस की बात नहीं है और जब हम लोगों के सामने इस पर चर्चा करते हैं तो लोग हमारा मजाक उड़ाने लगते हैं।

इसीलिए बिना किसी परिणाम की परवाह किए हमें अपना कार्य करते रहने चाहिए और अपने लक्ष्य को दृढ़ रखान चाहिए। अंतः सफलता प्राप्त होके ही रहेगी| 

सफल होना हैं तो चलना होगा / If you want to be successful, you have to walk

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। 

प्रकृति का नियम है कि जो रुक गया, उसका असफल होना या नष्ट होना तय है। यदि आप अपने Goal को प्राप्त करना चाहते हैं तो आज से ही अपनी कमर कस लीजिये और खुद से वादा कीजिये कि रुकना कभी नहीं है।

विवेकानंद जी ने सही ही कहा है, “उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको।”

सोचो कि जो लोग अपना लक्ष्य केवल इसलिए छोड़ देते हैं कि “इसके लिए चलना बहुत पड़ेगा”, इससे ज्यादा बड़ी असफलता कोई नहीं हो सकती…….क्योंकि सफलता व असफलता तो बाद की बात है, खुद को बिना प्रयास के असफलता की ओर धकेल देना, इससे बुरा कुछ हो ही नहीं सकता।

सफल होना हैं तो चलना होगा / If you want to be successful, you have to walk

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If you want to be successful, you have to walk

Happiness and sorrow always go hand in hand in human life. One should be prepared for all kinds of times, but in times of sorrow, people break down badly, and lose hope of moving forward. When we are struggling, there are many ups and downs along the way. But the person who is afraid of these ups and downs, he can never move forward and the one who keeps on moving forward with patience in such times, he can never fail in life.

सफल होना हैं तो चलना होगा / If you want to be successful, you have to walk

Success comes to those who have a goal in life and are sincere towards their goal. And they take true determination to achieve their goal and for this they keep striving continuously.

Any success begins with trying. On this matter, once Chandragupta asked Chanakya - "If luck has already been written, then what will be achieved by trying." To this Chanakya replied - "Whether it is written in luck, you will get it only by trying." That's why it is said that if you want to be successful, you have to try.

Often before starting any work people start thinking about its advantages, disadvantages, consequences, etc. and when they do, we push ourselves back before taking a step forward. If we think of doing some work then you will definitely feel that you cannot do it or it is not your thing to do so and when you discuss it in front of people then people start making fun of you.

सफल होना हैं तो चलना होगा / If you want to be successful, you have to walk

That's why we should keep doing our work without caring about any result and keep our goal firm. Ultimately success will be achieved. With this I end my speech with these words.

Who says there can't be a hole in the sky, throw a stone when you're sick, guys.

It is the law of nature that whatever is stopped is bound to fail or be destroyed. If you want to achieve your goal, then tighten your waist from today itself and promise yourself that you will never stop.

सफल होना हैं तो चलना होगा / If you want to be successful, you have to walk

Vivekananda has rightly said, “Arise, awake and do not stop till the goal is achieved.”

Think that those who give up their goal just because “it will take a lot to walk for it”, there can be no greater failure than this…….Because success and failure are the latter, push themselves to failure without effort Give, nothing can be worse than this.

सफल होना हैं तो चलना होगा / If you want to be successful, you have to walk

आनंदपुर साहिब, केशगढ़ (पंजाब)/Anandpur Sahib, Keshgarh

 आनंदपुर साहिब, केशगढ़ 

आनंदपुर साहिब भारत के पंजाब राज्य के रूपनगर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। यह शिवालिक पर्वतमाला के चरणों में सतलुज नदी के समीप स्थित है। आनंदपुर साहिब सिख धर्म में सबसे पवित्र स्थानों में से एक है।आनंदपुर साहिब की स्थापना सिखों के नवें गुरु श्री तेग बहादुर सिंह ने 1665 में की थी। यहां दो अंतिम सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी और श्री गुरु गोविंद सिंह जी रहे थे। यही पर सन् 1699 में गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यहां तख्त श्री केशगढ़ साहिब है, जो सिख धर्म के पांच तत्वों में से तीसरा स्थान है। यहां बसंत होला मोहल्ला का उत्सव होता है, जिसमें भारी संख्या में सिख अनुयायी एकत्रित होते हैं।

आनंदपुर साहिब, केशगढ़ (पंजाब)/Anandpur Sahib, Keshgarh

इतिहास के अनुसार बैसाखी पर 1699 में एक बहुत बड़े पंडाल में गुरु गोविंद सिंह जी ने दीवान सजाए। संगत उनके वचन सुन ही रही थी कि गुरु जी अपने दाएं हाथ में एक चमकती हुई तलवार लेकर खड़े हो गए। उन्होंने कहा कि कोई सिख हमें अपना शीश भेंट करें, यह सुनकर भाई दयाराम खड़े हो गए और शीश हाजिर किया। 

आनंदपुर साहिब, केशगढ़ (पंजाब)/Anandpur Sahib, Keshgarh

गुरु जी बाजू पकड़कर उन्हें तंबू में ले गए, कुछ समय बाद रक्त से भीगी तलवार लेकर तंबू से बाहर आए। गुरुजी ने फिर एक और सिख के शीश की मांग की। भाई धर्म जी खड़े हो गए उन्हें भी गुरुजी अंदर ले गए, गुरुजी बाहर आए और फिर शीश मांगा, अब मोहकम चंद व चौथी बार भाई साहिब चंद आगे आए पांचवी बार हिम्मत मल हाथ जोड़कर खड़े हो गए, गुरुजी उन्हें भी अंदर ले गए।गुरुजी ने तलवार को म्यान में डाल दिया और सिंहासन पर बैठ गए। तंबू में ही अपने शीश भेंट करने वाले प्यारों को नई पोशाकें पहना कर अपने पास बैठा कर संगत से कहा यह पांचों मेरा ही स्वरूप है, और मैं इनका स्वरूप हूं, यह पांच मेरे प्यारे हैं। 

आनंदपुर साहिब, केशगढ़ (पंजाब)/Anandpur Sahib, Keshgarh

तीसरे पहर गुरुजी ने लोहे का बांटा मंगवा कर उसमें सतलुज नदी का पानी डालकर अपने आगे रख लिया। पांचों प्यारों को सजा कर अपने सामने खड़ा कर दिया और मुख से जपुजी साहिब आदि बाणियों का पाठ करते रहे। पाठ की समाप्ति के बाद अरदास करके पांच प्यारों को एक-एक करके अमृत के पांच-पांच घूंट पिलाएं। इस तरह पांचों प्यारों के साथ गुरु गोविंद ने अमृत छका। इस स्थान पर यह इतिहास की अहम घटना हुई। इस घटना के बाद श्री गोविंद राय से श्री गोविंद सिंह साहिब जी कहलाए और यहां तख्त श्री केशगढ़ साहिब स्थापित हुआ।

आनंदपुर साहिब, केशगढ़ (पंजाब)/Anandpur Sahib, Keshgarh

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Anandpur Sahib, Keshgarh

Anandpur Sahib is a historic town in Rupnagar district in the state of Punjab, India. It is situated near the Sutlej river at the foot of the Shivalik ranges. Anandpur Sahib is one of the holiest places in Sikhism. Anandpur Sahib was established by the ninth Guru of the Sikhs, Shri Tegh Bahadur Singh in 1665. The two last Sikh Gurus, Shri Guru Tegh Bahadur Ji and Shri Guru Gobind Singh Ji were living here. It was here in 1699 that Guru Gobind Singh founded the Khalsa Panth. Here is the Takht Sri Keshgarh Sahib, which is the third of the five elements of Sikhism. The festival of Basant Hola Mohalla takes place here, in which a large number of Sikh followers gather.

आनंदपुर साहिब, केशगढ़ (पंजाब)/Anandpur Sahib, Keshgarh

According to history, on Baisakhi in 1699, Guru Gobind Singh ji decorated a diwan in a very big pandal. The sangat was listening to his words when Guru ji stood up with a shining sword in his right hand. He said that on hearing that some Sikh should present his head to us, Bhai Dayaram stood up and presented the head. 

आनंदपुर साहिब, केशगढ़ (पंजाब)/Anandpur Sahib, Keshgarh

Guruji took them by the arms and took them to the tent, after some time came out of the tent with a sword soaked in blood. Guruji again demanded the head of another Sikh. Bhai Dharam ji stood up and Guruji took him in, Guruji came out and then asked for her head, now Mohkam Chand and Bhai Sahib Chand came forward for the fourth time, Himmat Mal stood up with folded hands for the fifth time, Guruji took them in too. put the sword in its sheath and sat on the throne. 

आनंदपुर साहिब, केशगढ़ (पंजाब)/Anandpur Sahib, Keshgarh

Wearing new clothes to the beloved ones who presented their heads in the tent, sitting next to them, said to the sangat, these five are my form, and I am their form, these five are my dear. On the third hour, Guruji ordered a distribution of iron and put the water of the Sutlej river in it and kept it in front of him. The five beloved were decorated and made them stand in front of them and kept on reciting Japuji Sahib etc. After the end of the lesson, offer five sips of nectar to the five dear ones one by one by doing Ardas. In this way, Guru Gobind spilled nectar with the five beloved. This important event in history took place at this place. After this incident, Shri Govind Rai was called Shri Govind Singh Sahib Ji and Takht Shri Keshgarh Sahib was established here.

आनंदपुर साहिब, केशगढ़ (पंजाब)/Anandpur Sahib, Keshgarh

सदाबहार (Catharanthus)

सदाबहार (Catharanthus)

सदाबहार का पौधा हर जगह देखने को मिल जाता है। यह पौधा बाग - बगीचे, गमले, यहां तक की छत पर ईंट के बीच में भी कभी-कभी निकला हुआ यह पौधा दिख जाता है। हर मौसम में हरा भरा रहने के कारण और औषधीय गुणों से परिपूर्ण होने के कारण ही शायद इसका नाम सदाबहार पड़ा होगा। इसको बारहमासी, नयनतारा, सदाफूली और अन्य कई नामों से भी जाना जाता है। ठंड के कुछ दिनों को छोड़कर यह पूरे वर्ष खूब खिलता है। मंदिरों में पूजा पर चढ़ाए जाने के लिए इसका उपयोग होता है। यह फूल सुंदर तो है ही, साथ ही आसानी से हर मौसम में हर जगह उग आता है। यह कई रंग में खिलता है और इसके गुणों का भी कोई जवाब नहीं।

सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

सदाबहार क्या है?

सदाफूली या सदाबहार 12 महीने खिलने वाले फूलों का एक पौधा है। इनमें से सात मेडागास्कर में तथा आठवीं भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस है। मेडागास्कर मूल की यह फूलदार झाड़ी भारत में कितनी लोकप्रिय है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि लगभग हर भारतीय भाषा में इसको अलग नाम दिया गया है। इसके श्वेत तथा बैगनी आभा वाले छोटे गुच्छों से सजे सुंदर लघु वृक्ष भारत की किसी भी उष्ण जगह की शोभा बढ़ाते हुए सालों साल बारह महीने देखे जा सकते हैं। इसके अंडाकार पत्ते डालियों पर एक-दूसरे के विपरीत लगते हैं और झाड़ी की बढ़वार इतनी साफ़ सुथरी और सलीकेदार होती है कि झाड़ियों की काँट छाँट की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती।

जानते हैं सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

सदाबहार के फूल में एलकालॉइड्स, एजमेलीसीन, सरपेन्टीन नामक तत्व होते हैं, जो शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि सदाबहार में दर्जनों क्षार ऐसे होते हैं, जो रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित रखते हैं। कुछ शोध में यह ज्ञात हुआ है कि सदाबहार के अनेक गुणों का पता चला - सदाबहार पौधा बारूद - जैसे विस्फोटक पदार्थों को पचाकर उन्हें निर्मल कर देता है। यह मात्र कोरी कल्पना नहीं है, अपितु वैज्ञानिकों का कहना है कि सदाबहार विस्फोटक भंडारों वाली लाखो एकड़ जमीन को सुरक्षित एवं उपयोगी बना रहा है। भारत में ही "केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान" द्वारा की गई खोजों से पता चला है कि सदाबहार की पत्तियों में 'विनिकरस्टीन' नामक क्षारीय पदार्थ भी होता है, जो कैंसर विशेषकर रक्त कैंसर में बहुत उपयोगी होता है। आज यह विषाक्त पौधा संजीवनी बूटी का काम कर रहा है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में

सदाबहार की पत्तियों या फिर उसके फूल की पंखुड़ियों का सेवन करते रहने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और व्यक्ति जल्दी बीमार नहीं पड़ते हैं।

मधुमेह में

  • सदाबहार मधुमेह की बीमारी के लिए भी बहुत लाभदायक औषधि है। सदाबहार की 3-4 कोमल पत्तियों को चबाकर रस चूसने से मधुमेह रोग में राहत मिलता है।
  • सदाबहार के पौधे के 4 पत्तों को साफ धुलकर सुबह खाली पेट खाएं और ऊपर से दो घूंट पानी पी लें। इससे मधुमेह मिटता है और यह प्रयोग कम से कम 3 महीने करना चाहिए।

खुजली

त्वचा पर खुजली, लाल निशान या किसी तरह की एलर्जी होने पर सदाबहार की पत्तियों के रस को लगाने से आराम मिलता है।

मुहासे

  • सदाबहार के फूलों और पत्तियों के रस को मुहांसे पर लगाने से कुछ ही दिनों में मुंहासे ठीक हो जाते हैं। 
  • सदाबहार के पत्तियों और फूलों को पानी में थोड़ी मात्रा में कुचल कर लेप बना लें और इस लेप को मुहांसों पर दिन में कम से कम 2 बार लगाने से जल्दी आराम मिलता है।
सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

घाव पर 

त्वचा पर घाव या फोड़े फुंसी हो जाने पर इसकी पत्तियों का रस दूध में मिलाकर लगाने से घाव पक जाता है और जल्द ही मवाद बाहर निकल जाता है।

बालों के लिए

बालों के लिए सदाबहार की पत्तियां बहुत फायदेमंद होती हैं। सदाबहार की पत्तियों को पीसकर आधा चम्मच रस नारियल के तेल में मिलाकर सिर की त्वचा पर मसाज करने से रूसी खत्म होती है और बाल भी स्वस्थ रहते हैं।

बवासीर की समस्या

सदाबहार के फूल और पत्तियों को पीसकर सोने से पहले बवासीर वाली जगह पर लगाने से बवासीर में आराम मिलता है।

मधुमक्खी के काटने पर

मधुमक्खी या फिर ततैया के डंक मारने पर इसके फूल और पत्तियों का रस लगाने से दर्द कम होता है और जल्दी आराम मिलता है।

सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

उच्च रक्तचाप में

सदाबहार की जड़ को सुबह चबाकर खाने से या फिर इसकी जड़ का रस निकालकर पीने से उच्च रक्तचाप में फायदा होता है।

शारीरिक कमजोरी में

सदाबहार के पौधे की जड़ को सुखाकर इसका पाउडर बना लें। एक चम्मच पाउडर में दो चम्मच मिश्री मिलाकर सुबह-शाम दूध या पानी के साथ सेवन करने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।

वजन नियंत्रित करने में

सदाबहार के फूल और पत्तियों को समान मात्रा में मिलाकर इसका काढ़ा बना लें। सुबह-शाम खाली पेट इस काढ़े का सेवन करने से वजन नियंत्रित होता है।

खून साफ करने में

सदाबहार की दो से तीन पत्तियों को प्रतिदिन सुबह चबाकर खाने से खून साफ होता है। इससे चेहरे की सुंदरता भी निखरती है।

सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

विभिन्न भाषाओं में सदाबहार का नाम (Sadabhar name in different languages)

हिन्दी     - सदाबहार 
अंग्रेज़ी -    Catharanthus (कैंथरैंथस)
उड़िया -    अपंस्कांति 
तमिल -   सदाकाडु मल्लिकइ, 
तेलुगु -      बिल्लागैन्नेस्र्, 
पंजाबी -     रतनजोत, 
बांग्ला -     नयनतारा या गुलफिरंगी, 
मराठी -     सदाफूली और 
मलयालम - उषामालारि
सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

सदाबहार के फूल और पत्ते के नुकसान

सदाबहार का वैसे तो कोई नुकसान नहीं है फिर भी इसका अत्यधिक सेवन से बचना चाहिए। इसके अत्यधिक सेवन से यह शुगर लेवल को कम कर सकता है। 

यह फूल सुंदर तो है ही। आसानी से हर मौसम में उगता है, हर रंग में खिलता है और इसके गुणों का भी कोई जवाब नहीं, शायद यही सब देखकर "नेशनल गार्डेन ब्यूरो" ने सन 2002 को इयर आफ़ विंका के लिए चुना।

English Translate

Catharanthus

The evergreen plant is found everywhere. This plant is sometimes seen in the middle of the brick in the garden - garden, pot, even on the roof. Due to being green in every season and being full of medicinal properties, it may have got its name evergreen. It is also known as Perennial, Nayantara, Sadafuli and many other names. It blooms profusely throughout the year except for a few days of winter. It is used for offering to worship in temples. This flower is not only beautiful, but also easily grows everywhere in every season. It blooms in many colors and there is no answer to its properties.

सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

What is Catharanthus?

Evergreen or evergreen is a plant of 12 months blooming flowers. Of these, seven are found in Madagascar and eight in the Indian subcontinent. Its scientific name is Catharanthus. How popular this flowering shrub of Madagascar origin is in India, it is known from the fact that it has been given a different name in almost every Indian language. Beautiful miniature trees adorned with small clusters with its white and purple aura can be seen for twelve months year after year, enhancing the beauty of any hot place of India. Its oval leaves are opposite each other on the branches and the growth of the bush is so neat and graceful that pruning of the bushes is never needed.

Know about the advantages, disadvantages, uses and medicinal properties of evergreen

सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

The evergreen flower contains elements called alkaloids, azemalysin, serpentin, which are extremely beneficial for the body. Scientists believe that there are dozens of alkalis in evergreens, which control the amount of sugar in the blood. In some research it has been known that many properties of evergreen were discovered - the evergreen plant digests explosive substances like gunpowder and makes them pure. This is not mere imagination, but scientists say that evergreens are making millions of acres of land with explosive deposits safe and useful. The discoveries made by the "Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants" in India have shown that the leaves of the evergreen also contain an alkaline substance called 'vinkersteine', which is very useful in cancer, especially blood cancer. Today this poisonous plant is working as a Sanjeevani herb.

boosting immunity

By consuming the leaves of evergreen or the petals of its flower, the body's immunity increases and the person does not fall ill soon.

in diabetes

  • Evergreen is also a very beneficial medicine for the disease of diabetes. Chewing 3-4 tender leaves of evergreen and sucking the juice provides relief in diabetes.
  • Wash 4 leaves of the evergreen plant and eat it on an empty stomach in the morning and drink two sips of water from above. It cures diabetes and this experiment should be done for at least 3 months.

Itching

If there is itching, red marks or any kind of allergy on the skin, applying the juice of evergreen leaves provides relief.

सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

acne

  • By applying the juice of evergreen flowers and leaves on the acne, acne is cured within a few days.
  • Make a paste by crushing the leaves and flowers of evergreen in a small amount of water and applying this paste on the pimples at least twice a day provides quick relief.

on the wound

If there is a wound or boil on the skin, then applying the juice of its leaves mixed with milk, the wound gets cooked and the pus comes out soon.

for hair

Evergreen leaves are very beneficial for hair. Grind the leaves of evergreen and mix half a teaspoon juice with coconut oil and massage it on the scalp, it ends dandruff and keeps the hair healthy.

piles problem

Grind the flowers and leaves of evergreen and apply it on the piles area before sleeping, it provides relief in piles.

on bee bite

After stinging a bee or wasp, applying the juice of its flowers and leaves reduces pain and provides quick relief.

in high blood pressure

Chewing the root of evergreen in the morning or drinking it after extracting the juice of its root is beneficial in high blood pressure.

in physical weakness

Make a powder by drying the root of the evergreen plant. Mixing two spoons of sugar candy in one spoon of powder and taking it with milk or water in the morning and evening ends physical weakness.

in controlling weight

Make a decoction by mixing equal quantity of evergreen flowers and leaves. Consuming this decoction on an empty stomach in the morning and evening controls weight.

to clean the blood

Chewing two to three leaves of evergreen every morning in the morning purifies the blood. It also enhances the beauty of the face.

सदाबहार के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण