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फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है..

फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है..

फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है..

उम्र की डोर से फिर 

एक मोती झड़ रहा है..

तारीख़ों के ज़ीने से, एक और साल,

 फिर उतर रहा है..

कुछ चेहरे घटे,चंद यादें जुड़ी,

गए वक़्त में..

उम्र का पंछी नित दूर और

दूर निकल रहा है..

गुनगुनी धूप और ठिठुरी

रातें, जाड़ों की..

गुज़रे लम्हों पर झीना-झीना

सा इक पर्दा गिर रहा है..

कुछ खट्टी - मीठी बातें 

ढ़ेर सारी यादों की बरसातें 

पीछे छोड़ रहा 

उम्र की डोर से फिर 

एक मोती झड़ रहा है..

ज़ायका लिया नहीं और

फिसल गई ज़िन्दगी..

वक़्त है कि सब कुछ समेटे

बादल बन उड़ रहा है..

फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है..

बूढ़ा दिसम्बर, 

जवां जनवरी के क़दमों मे बिछ रहा है

लो अब इस सदी को चौबीसवॉं साल लग रहा है..

फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है..

चतुराई

चतुराई

एक गरीब आदमी था। एक दिन वह राजा के पास गया और बोला- "महाराज, मैं आपसे कर्ज़ मांगने आया हूं। कृपा कर आप मुझे पांच हजार रुपये दें। मैं पांच वर्ष के अंदर आपके रुपये वापस कर दूंगा।" राजा ने उसकी बात पर विश्‍वास कर उसे पांच हजार रुपये दे दिए। पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी जब उस व्‍यक्ति ने राजा के पांच हजार रुपये नहीं लौटाये। तब राजा को मजबूरन उसके घर जाना पड़ा, लेकिन वहां वह व्‍यक्ति नहीं मिला। जब भी राजा वहां जाता बहाना बना कर उसे वापस भेज दिया जाता। एक दिन फिर राजा उस व्‍यक्ति के घर गया। वहां और कोई तो नहीं दिखा, एक छोटी लड़की बैठी थी। राजा ने उसी से पूछा- "तुम्‍हारे पिता जी कहा हैं?"

चतुराई

लड़की बोली- 'पि‍ताजी स्‍वर्ग का पानी रोकने गये हैं।'

राजा ने फिर पूछा- 'तुम्‍हारा भाई कहां है ?'

लड़की बोली- 'बिना झगड़ा के झगड़ा करने गये हैं।'

राजा के समझ में एक भी बात नहीं आ रही थी। इसलिए वह फिर पूछता है- 'तुम्‍हारी माँ कहां है?'

लड़की बोली- 'मां एक से दो करने गई है।'

राजा उसके इन ऊल-जुलूल जवाब से खीझ गया। वह गुस्‍से में पूछता है- 'और तुम यहां बैठी क्‍या कर रही हो ?'

लड़की हंसकर बोली- 'मैं घर बैठी संसार देख रही हूं।'

राजा समझ गया कि लड़की उसकी किसी भी बात का सीधा जवाब नहीं देगी। इसलिए उसे अब इससे इन बातों का मतलब जानने के लिए प्‍यार से बतियाना पड़ेगा। राजा ने चेहरे पर प्‍यार से मुस्‍कान लाकर पूछा- 'बेटी, तुमने जो अभी-अभी मेरे सवालों के जवाब दिये, उनका मतलब क्‍या है ? मैं तुम्‍हारी एक भी बात का मतलब नहीं समझ सका। तुम मुझे सीधे-सीधे उनका मतलब समझाओ।'

लड़की ने भी मुस्‍करा कर पूछा - 'अगर मैं सभी बातों का मतलब समझा दूं तो आप मुझे क्‍या देंगे?'

राजा के मन में सारी बातों को जानने की तीव्र उत्‍कंठा थी। वह बोला- 'जो मांगोगी, वही दूंगा।'

तब लड़की बोली- 'आप मेरे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर देंगे तो मैं आपको सारी बातों का अर्थ बता दूंगी।'

राजा ने कहा- 'ठीक है, मैं तुम्‍हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा। अब तो सारी बातों का अर्थ समझा दो।'

लड़की बोली- 'महाराज, आज मैं आपको सारी बातों का अर्थ नहीं समझा सकती। कृपा कर आप कल आयें। कल मैं ज़रूर बता दूंगी।'

राजा अगले दिन फिर उस व्‍यक्ति के घर गया। आज वहां सभी लोग मौजूद थे। वह आदमी, उसकी पत्‍नी, बेटा और उसकी बेटी भी। राजा को देखते ही लड़की पूछी- 'महाराज, आपको अपना वचन याद है ना?'

राजा बोला- 'हां मुझे याद है। तुम अगर सारी बातों का अर्थ बता दो तो मैं तुम्‍हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा।'

लड़की बोली- 'सबसे पहले मैंने यह कहा था कि पिताजी स्‍वर्ग का पानी रोकने गये हैं, इसका मतलब था कि वर्षा हो रही थी और हमारे घर की छत से पानी टपक रहा था। पिताजी पानी रोकने के लिए छत को छा (बना) रहे थे। यानि वर्षा का पानी आसमान से ही गिरता है और हमलोग तो यही मानते हैं कि आसमान में ही स्‍वर्ग है। बस, पहली बात का अर्थ यही है। दूसरी बात मैंने कही थी कि भइया बिना झगडा़ के झगड़ा करने गये है। इसका मतलब था कि वे रेंगनी के कांटे को काटने गये थे। अगर कोई भी रेंगनी के कांटे को काटेगा तो उसके शरीर में जहां-तहां कांटा गड़ ही जायेगा, यानि झगड़ा नहीं करने पर भी झगड़ा होगा और शरीर पर खरोंचें आयेंगी।'

राजा उसकी बातों से सहमत हो गया। वह मन-ही-मन उसकी चतुराई की प्रशंसा करने लगा। उसने उत्‍सुकता के साथ पूछा- 'और तीसरी-चौथी बात का मतलब बेटी?'

लड़की बोली- 'महाराज, तीसरी बात मैंने कही थी कि माँ एक से दो करने गई है। इसका मतलब था कि माँ अरहर दाल को पीसने यानि उसे एक का दो करने गई है। अगर साबुत दाल को पीसा जाय तो एक दाना का दो भाग हो जाता है। यानि यही था एक का दो करना। रही चौथी बात तो उस समय मैं भात बना रही थी और उसमे से एक चावल निकाल कर देख रही थी कि भात पूरी तरह पका है कि न‍हीं। इसका मतलब है कि मैं एक चावल देखकर ही जान जाती कि पूरा चावल पका है कि नहीं । अर्थात् चावल के संसार को मैं घर बैठी देख रही थी।' यह कहकर लड़की चुप हो गई।

राजा सारी बातों का अर्थ जान चुका था। उसे लड़की की बुद्धिमानी भरी बातों ने आश्‍चर्य में डाल दिया था। फिर राजा ने कहा- 'बेटी, तुम तो बहुत चतुर हो। पर एक बात समझ में नहीं आई कि यह सारी बातें तो तुम मुझे कल भी बता सकती थी, फिर तुमने मुझे आज क्‍यों बुलाया?'

लड़की हंसकर बोली- ' मैं तो बता ही चुकी हूं कि कल जब आप आये थे तो मैं भात बना रही थी। अगर मैं आपको अपनी बातों का मतलब समझाने लगती तो भात गीला हो जाता या जल जाता, तो माँ मुझे ज़रूर पीटती। फिर घर में कल कोई भी नहीं था। अगर मैं इनको बताती कि आपने कर्ज़ माफ कर दिया है, तो ये मेरी बात का विश्‍वास नहीं करते। आज स्‍वयं आपके मुंह से सुनकर कि आपने कर्ज़ माफ कर दिया है, जहां इन्‍हें इसका विश्‍वास हो जायेगा, वहीं खुशी भी होगी।'

राजा लड़की की बात सुनकर बहुत ही प्रसन्‍न हुआ। उसने अपने गले से मोतियों की माला निकाल उसे देते हुए कहा- 'बेटी, यह लो अपनी चतुराई का पुरस्‍कार! तुम्‍हारे पिताजी का कर्ज़ तो मैं माफ कर ही चुका हूं। अब तुम्‍हें या तुम्‍हारे घरवालों को मुझसे बहाना नहीं बनाना पड़ेगा। अब तुम लोग निश्चिंत होकर रहो। अगर फिर कभी किसी चीज की ज़रूरत हो तो बेझिझक होकर मुझसे कहना।'

इतना कहकर राजा लड़की को आशीर्वाद देकर चला गया। लड़की के परिवारवालों ने उसे खुशी से गले लगा लिया।

Dard Quotes / दर्द शायरी / Dard Shayari

दर्द शायरी

"एक उम्र निकाल दी बिना मिले तुमसे,
और लोग हमें इश्क़ करना सिखा रहे हैं..❣️"
Dard Quotes
💔💔

"जो तुम बोलो बिखर जाएँ 
       जो तुम बोलो संवर जायें 
मगर यूँ टूटना जुड़ना 
       बहुत दर्द देता है..❣️"
Dard Quotes
💔💔

"उगती सुबह और डुबती शाम..
इनके बीच का इन्तजार हो तुम..❣️"
Dard Quotes
💔💔


"मेरी मोहब्बत का अंदाजा 
                           कभी मत लगाना 
हिसाब हम लेंगे नहीं 
                    चुका तुम पाओगे नहीं..❣️"

Dard Quotes
💔💔

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) अध्याय - 18 (67 - 78 )

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

अथाष्टादशोऽध्यायः- मोक्षसंन्यासयोग

 श्रीगीताजी का माहात्म्य

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)
इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन ।
न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति || 18.67 ||

भावार्थ : 

तुझे यह गीत रूप रहस्यमय उपदेश किसी भी काल में न तो तपरहित मनुष्य से कहना चाहिए, न भक्ति-(वेद, शास्त्र और परमेश्वर तथा महात्मा और गुरुजनों में श्रद्धा, प्रेम और पूज्य भाव का नाम 'भक्ति' है।)-रहित से और न बिना सुनने की इच्छा वाले से ही कहना चाहिए तथा जो मुझमें दोषदृष्टि रखता है, उससे तो कभी भी नहीं कहना चाहिए৷

य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति ।
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः || 18.68 ||

भावार्थ : 

जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा- इसमें कोई संदेह नहीं है৷

न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः ।
भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि || 18.69 ||

भावार्थ : 

उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है तथा पृथ्वीभर में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्य में होगा भी नहीं৷

अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः ।
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः || 18.70 ||

भावार्थ : 

जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनों के संवाद रूप गीताशास्त्र को पढ़ेगा, उसके द्वारा भी मैं ज्ञानयज्ञ (गीता अध्याय 4 श्लोक 33 का अर्थ देखना चाहिए।) से पूजित होऊँगा- ऐसा मेरा मत है৷

श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नरः ।
सोऽपि मुक्तः शुभाँल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम्‌  || 18.71 ||

भावार्थ : 

जो मनुष्य श्रद्धायुक्त और दोषदृष्टि से रहित होकर इस गीताशास्त्र का श्रवण भी करेगा, वह भी पापों से मुक्त होकर उत्तम कर्म करने वालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा৷

कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा ।
कच्चिदज्ञानसम्मोहः प्रनष्टस्ते धनञ्जय  || 18.72 ||

भावार्थ : 

हे पार्थ! क्या इस (गीताशास्त्र) को तूने एकाग्रचित्त से श्रवण किया? और हे धनञ्जय! क्या तेरा अज्ञानजनित मोह नष्ट हो गया?

अर्जुन उवाच

नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वप्रसादान्मयाच्युत ।
स्थितोऽस्मि गतसंदेहः करिष्ये वचनं तव  || 18.73 ||

भावार्थ : 

अर्जुन बोले- हे अच्युत! आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया और मैंने स्मृति प्राप्त कर ली है, अब मैं संशयरहित होकर स्थिर हूँ, अतः आपकी आज्ञा का पालन करूँगा ৷৷18.73॥

संजय उवाच

इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मनः ।
संवादमिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम्‌  || 18.74 ||

भावार्थ :

संजय बोले- इस प्रकार मैंने श्री वासुदेव के और महात्मा अर्जुन के इस अद्‍भुत रहस्ययुक्त, रोमांचकारक संवाद को सुना৷

व्यासप्रसादाच्छ्रुतवानेतद्‍गुह्यमहं परम्‌ ।
योगं योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम्‌  || 18.75 ||

भावार्थ :श्री व्यासजी की कृपा से दिव्य दृष्टि पाकर मैंने इस परम गोपनीय योग को अर्जुन के प्रति कहते हुए स्वयं योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण से प्रत्यक्ष सुना৷

राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम्‌ ।
केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः  || 18.76 ||

भावार्थ : 

हे राजन! भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के इस रहस्ययुक्त, कल्याणकारक और अद्‍भुत संवाद को पुनः-पुनः स्मरण करके मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ৷

तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः।
विस्मयो मे महान्‌ राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः  || 18.77 ||

भावार्थ : 

हे राजन्‌! श्रीहरि (जिसका स्मरण करने से पापों का नाश होता है उसका नाम 'हरि' है) के उस अत्यंत विलक्षण रूप को भी पुनः-पुनः स्मरण करके मेरे चित्त में महान आश्चर्य होता है और मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ ৷৷18.77॥

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम  || 18.78 ||

भावार्थ : हे राजन! जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन है, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है৷

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे
श्रीकृष्णार्जुनसंवादे मोक्षसन्न्यासयोगो नामाष्टादशोऽध्यायः৷৷18.18॥

मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib)

मिर्जा ग़ालिब

Born: 27 December 1797, Agra
Died: 15 February 1869, Gali Qasim Jan, Delhi
Full name: Mirza Asadullah Baig Khan

नाराज़ तो नहीं थे तेरे जाने से, 
मगर हैरान इस बात से थे कि तुमने मुड़ कर देखा तक नहीं..

मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib)

शेर हो, गजल हो, शायरी हो और मोहब्बत करने वालों की महफिल हो, वहां गालिब साहब खुद ब खुद पहुंच जाते। जी हां आज बात करते हैं उर्दू के बेहद मशहूर शायर मिर्जा ग़ालिब की। आज ग़ालिब जी की 226वीं जयंती है। मिर्जा गालिब का पूरा नाम मिर्जा असदुल्लाह बेग खान है। उनका जन्म 27 दिसंबर 1797 में उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ। उनके पिता का नाम अबदुल्ला बेग और माता का नाम इज्जत उत निसा बेगम था। आज मिर्ज़ा ग़ालिब जी की जयंती पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें और अनछुये पहलू के बारे में.......

मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib)

गालिब जी के आधिकारिक नाम से शायद कुछ लोग वाकिफ ना हों, पर गालिब के नाम से वे हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब वैसे तो फारसी में शायरी किया करते थे, लेकिन उर्दू जुबान शायरी के तौर पर वह बहुत मशहूर हुए। गालिब जब सिर्फ 5 साल के थे तभी पिता का साया उनके सिर से उठ गया और इसके बाद चाचा द्वारा उनका पालन-पोषण किया जाने लगा, लेकिन कुछ समय बाद चाचा का भी निधन हो गया। फिर वे अपने ननिहाल आ गए। 13 साल की उम्र में उनका निकाह उमराव बेगम से हुआ। मिर्जा गालिब की कोई संतान नहीं है। 

मिर्जा गालिब ने 11 साल की उम्र में ही उर्दू और फारसी में गद्य और पद्य लेखन की शुरुआत कर दी। गालिब की शायरी से महफिलों में तालियां बजने लगती थी। वे खड़े-खड़े ही शे'र और गजलें बना लिया करते थे। यही कारण है कि गालिब हिन्दुस्तान और पाकिस्तान समेत दुनियाभर में करोड़ों दिलों के पसंदीदा शायर हैं। गालिब की कई गजलें और शेर लोगों के जुबां पर रहते हैं। 1850 में शहंशाह बहादुर जफर ने मिर्जा गालिब को दबीर-उल-मुल्क और नज्म-उद-दौला के खिताब से नवाजा। इसके बाद उन्हें मिर्जा नोशा का खिताब भी मिला। 

मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib)

गालिब ने शायरी और गजल को एक नया रूप दिया। गालिब के पहले गजल को केवल प्रेम के संदर्भ में देखा जाता है, लेकिन उन्होंने गजल में ही जीवन के दर्शन और रहस्य को दर्शाया। उर्दू शायरी में किसी शख्स का नाम सबसे ज्यादा लिया जाता हैं, तो वह हैं मिर्ज़ा ग़ालिब। मिर्ज़ा ग़ालिब मुग़ल शासन के दौरान ग़ज़ल गायक, कवि और शायर हुआ करते थे। उर्दू भाषा के फनकार और शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का नाम आज भी काफी अदब से लिया जाता हैं। उनके द्वारा लिखी गई गज़लें और शायरियाँ आज भी युवाओं और प्रेमी जोड़ों को अपनी और आकर्षित करती हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरियाँ बेहद ही आसान और कुछ पंक्तियों में हुआ करती थी, जिसके कारण यह जन-मन में पहुँच गयी। 

मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib)

मैं आधा मुसलमान हूं, क्योंकि मैं शराब पीता हूं : गालिब 

हुआ यूँ कि जब गालिब को पहली बार 1857 के विद्रोह के बाद गिरफ्तार किया गया था। उस समय कई मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें जब कर्नल ब्रून के सामने पेश किया गया तो उनसे पूछा गया कि क्या आप मुसलमान हैं। तो उनका जवाब था कि मैं आधा मुसलमान हूं। क्योंकि मैं शराब पीता हूं। लेकिन सुअर का मांस नहीं खाता। वे विनोद प्रिय व्यक्ति थे। 1841 में भी उनकी गिरफ्तारी जुए के आरोप में हुई थी। जिसमें उन्हें 6 महीने की कैद के साथ जुर्माना लगाया गया था।

मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib)

मिर्ज़ा ग़ालिब की मुत्यु 

मिर्ज़ा ग़ालिब के अंतिम साल गुमनामी में कटे लेकिन जीवन के अंतिम क्षण तक वे हाजिर जवाबी रहे। जब वह अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर थे तब दिल्ली में महामारी फ़ैली हुई थी। उन्होंने अपने चहिते शागिर्द को तंज भरे लिहाज में पत्र लिखकर बताया “भई कैसी वबा (महामारी)? जब सत्तर बरस के बुड्ढे-बुढ़िया को न मार सकी।” 

इसका उदाहरण एक और जगह देखने को मिलता है। अंतिम दिनों में ग़ालिब के शरीर में बेहद ही दर्द रहता था। वह बिस्तर पर ही दर्द से करहाते रहते थे। एक दिन दर्द से कराह रहे थे, तब मजरूह (नौकर) आया और देखा तो उनके पैर दबाने लगा। ग़ालिब ने उसे ऐसा करने से मना किया तो मजरूह बोला, "आपको बुरा लग रहा है, तो आप मुझे पैर दबाने की मज़दूरी दे दीजिएगा।" इस पर ग़ालिब ने कहा, ‘ठीक है। पैर दबाने के बाद जब मजरूह ने अपनी मज़दूरी मांगी तो ग़ालिब दर्द के बावजूद हंसते हुए बोले- "कैसी उजरत (मज़दूरी) भाई? तुमने मेरे पांव दाबे, मैंने तुम्हारे पैसे दाबे, हिसाब बराबर।"

मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib)

15 फरवरी 1869 को मिर्जा गालिब की मृत्यु हो गई। उन्हें हजरत निजामुद्दीन की दरगाह के पास दफनाया गया। हैरत की बात यह थी कि मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे महान कवि की मृत्यु होने के दो दिन पश्चात् यह खबर पहली बार उर्दू अखबार अकमल-उल-अख़बार में छपी। रोचक बात यह हैं कि शादी को कैद बताने वाले इस शायर की पत्नी उमराव बेगम की मौत एक साल बाद हो गयी। दोनों की कब्र दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में बनायीं गयी। मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी में दर्द की झलक मिलती हैं, जिससे पता चलता हैं कि जिंदगी एक अनवरत संघर्ष है जो मौत के साथ खत्म होती है। 

मिर्जा गालिब की प्रेम कहानी कभी पूरी नहीं हुई  

गालिब के पिता 1803 में एक युद्ध में मारे गए। इसके बाद उसके मामा ने उसे पालने की कोशिश की लेकिन 1806 में हाथी से गिरकर उनकी मौत हो गई। मां के बारे में ज्यादा जिक्र नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनकी मृत्यु भी जल्दी हो गई थी। गालिब की मां कश्मीरी थीं। बचपन की घटनाओं ने गालिब को एक बहुत ही संजीदा इंसान बना दिया। गालिब का भाई मिर्जा यूसुफ भी स्कित्जोफ्रेनिया नामक बीमारी का शिकार हो गए थे और वो भी युवा अवस्था में ही चल बसे।

मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib)

1810 में महज 13 साल की उम्र में नवाब इलाही बक्श की बेटी उमराव बेगम गालिब की पत्नी बनी। गालिब को अपनी पत्नी से लगाव तो था, लेकिन उनका रिश्ता कभी मोहब्बत की दहलीज को पार नहीं कर पाया था। गालिब ने अपने शेर और खतों में लिखा था कि शादी दूसरी जेल की तरह है। पहली जेल जिंदगी ही है, जिसका संघर्ष उसके साथ ही खत्म होता है।

कुछ रिपोर्ट्स मानती हैं कि गालिब को मुगल जान नामक एक गाने वाली से काफी लगाव हो गया था। गालिब अपनी शादी से खुश नहीं थे और मुगल जान के पास जाते थे। पर मुगल जान पर जान छिड़कने वाले वो अकेले नहीं थे। उस समय का एक और शायद हातिम अली मेहर भी मुगल जान के लिए पलकें बिछाए हुए था। मुगल जान ने जब ये बात गालिब को बताई तो गालिब को गुस्सा नहीं आया और ना ही वो हातिम को अपना दुश्मन समझने लगे। गालिब और हातिम के बीच कोई बड़ी दरार बनती उससे पहले ही मुगल जान की मौत हो गई। उस वक्त हातिम और गालिब दोनों ही दुखी थे। गालिब ने एक खत के जरिए हातिम को बताया कि दोनों एक ही तरह का दुख महसूस कर रहे हैं।

मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib)

आशिकी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूं खून-ए-जिगर होते तक'


गालिब का प्यार मुगल जान के लिए अनोखा था। वो प्यार तो करते थे, लेकिन ये भी जानते थे कि उसे पा नहीं सकते। मुगल जान गालिब के लिए एक कल्पना और पूरा ना हो सकने वाला ख्वाब दोनों थी।

मुगल जान के जाने के बाद गालिब की जिंदगी में एक और महिला के आने की बात कही जाती है, लेकिन गालिब और उस महिला जिसे तुर्की बताया जाता है उसका प्यार भी ज्यादा नहीं चल पाया। वो एक इज्जतदार घराने से थी और समाज की बंदिशों और बदनामी के डर से उसने अपनी जिंदगी खत्म कर ली थी। इसके बाद गालिब दुखों के सागर में डूब गए थे और 'हाय हाय' नामक गजल लिखी थी। ये गजल बताती है कि गालिब खुद उस महिला की कितनी इज्जत करते थे। तो यूं था मिर्जा गालिब का प्यार जो कभी मुकम्मल नहीं हो पाया।

'दर्द से मेरे है तुझको बेकरारी हाय हाय,
क्या हुई जालिम तेरी गफलत शायरी हाय हाय'

बच्चों की मौत का दुख रहा जिंदगी भर

गालिब की शादीशुदा जिंदगी की एक कमी उनकी संतानें भी थीं। गालिब की 7 संतानें हुईं, लेकिन उनमें से कोई भी कुछ महीनों से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाईं।


उनकी जिंदगी की ये सारी बातें उन्हें अकेला करती गईं और गालिब की शायरी निखरती गई।                                  

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा 
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं 

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले 
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले 
                          
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है 
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है 
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार 
या इलाही ये माजरा क्या है 
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ 
काश पूछो कि मुद्दआ' क्या है 
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद 
फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है 
ये परी-चेहरा लोग कैसे हैं 
ग़म्ज़ा ओ इश्वा ओ अदा क्या है 
शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अंबरीं क्यूँ है 
निगह-ए-चश्म-ए-सुरमा सा क्या है 
सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं 
अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है 
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद 
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है 
हाँ भला कर तिरा भला होगा 
और दरवेश की सदा क्या है 
जान तुम पर निसार करता हूँ 
मैं नहीं जानता दुआ क्या है 
मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब' 
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है 

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का 
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

सरदार उधम सिंह || Udham Singh Wala

सरदार उधम सिंह 

Born: 26 December 1899, Sunam Udham Singh Wala
Died: 31 July 1940, HMP Pentonville, London, United Kingdom

सरदार उधम सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। उनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे। उधम सिंह का असली नाम "शेर सिंह" था। उनके एक भाई भी थे, जिनका नाम मुख्ता सिंह था। सात साल की उम्र में उधम अनाथ हो गए थे। पहले उनकी मां चल बसीं और फिर उसके 6 साल बाद पिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। मां-बाप के मरने के बाद उधम और उनके भाई को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में जाना पड़ा। 
सरदार उधम सिंह || Udham Singh Wala

अनाथालय में लोगों ने दोनों भाइयों को नया नाम दिया। शेर सिंह का नाम उधम सिंह और मुख्ता सिंह का नाम साधु सिंह पड़ गया। बाद में सरदार उधम सिंह जी ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर "राम मोहम्मद सिंह आजाद" रख लिया था, जो भारत के प्रमुख धर्मों का प्रतीक है। साल 1917 में उधम के भाई साधु की भी मौत हो गई। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 

1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ तो हो गए थे, परंतु इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा जनरल डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे। उधम सिंह, शहीद भगत सिंह को अपना गुरु मानते थे। 
सरदार उधम सिंह || Udham Singh Wala
1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड का उधम सिंह पर गहरा असर पड़ा था। उधमसिंह 13 अप्रैल 1919  को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। उन्होंने मन में ठान लिया था कि वह डायर को उसके किए अपराधों की सजा दिलाकर रहेंगे। मासूम लोगों की हत्या का बदला लेने के लिए उन्हें 21 साल का समय लग गया था।    

राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ'डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने इस ध्येय को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुँचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना ध्येय को पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत के यह वीर क्रांतिकारी, माइकल ओ'डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगे।
सरदार उधम सिंह || Udham Singh Wala
उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी, जहां माइकल ओ'डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुँच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।

बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ'डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ'डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।
सरदार उधम सिंह || Udham Singh Wala

English Translate

Sardar Udham Singh

Born: 26 December 1899, Sunam Udham Singh Wala
Died: 31 July 1940, HMP Pentonville, London, United Kingdom

Sardar Udham Singh ji was born on 26 December 1899 in Sunam village of Sangrur district of Punjab. His father Sardar Tehal Singh was a railway watchman in Jammu Upalli village. Udham Singh's real name was "Sher Singh". He also had a brother, whose name was Mukhta Singh. Udham became orphan at the age of seven. First his mother passed away and then after 6 years his father said goodbye to this world. After the death of their parents, Udham and his brother had to go to the Central Khalsa Orphanage in Amritsar.
सरदार उधम सिंह || Udham Singh Wala
People in the orphanage gave new names to both the brothers. Sher Singh's name became Udham Singh and Mukhta Singh's name became Sadhu Singh. Later, for the unity of the Indian society, Sardar Udham Singh changed his name to "Ram Mohammad Singh Azad", which is a symbol of the three major religions of India. Udham's brother Sadhu also died in the year 1917. He became a complete orphan.

In 1919, he left the orphanage and joined the revolutionaries in the freedom struggle. Udham Singh had become orphan, but despite this he was not deterred and continued to work for the independence of the country and to fulfill his pledge to kill General Dyer. Udham Singh considered Shaheed Bhagat Singh as his guru.

The Jallianwala Bagh massacre in 1919 had a deep impact on Udham Singh. Udham Singh was an eyewitness to the Jallianwala Bagh massacre that took place on 13 April 1919. He had decided in his mind that he would get Dyer punished for his crimes. It took him 21 years to avenge the murder of innocent people.

Due to political reasons, the exact number of people killed in Jallianwala Bagh was never revealed. Veer Udham Singh was shocked by this incident and he took the soil of Jallianwala Bagh in his hand and took a pledge to teach Michael O'Dwyer a lesson. To achieve this goal, Udham Singh traveled to Africa, Nairobi, Brazil and America under different names. Udham Singh reached London in 1934 and started living there at 9, Elder Street Commercial Road. There he bought a car for traveling purposes and also bought a revolver with six bullets to fulfill his mission. This brave revolutionary of India started waiting for the right time to kill Michael O'Dwyer.
सरदार उधम सिंह || Udham Singh Wala
Udham Singh got a chance in 1940 to avenge the death of hundreds of his brothers and sisters. On 13 March 1940, 21 years after the Jallianwala Bagh massacre, the Royal Central Asian Society met at Caxton Hall, London, where Michael O'Dwyer was one of the speakers. Udham Singh reached the meeting place on time that day. He hid his revolver in a thick book. For this, he had cut the pages of the book in the shape of a revolver in such a way that the weapon that took Dyer's life could be easily hidden.

After the meeting, Udham Singh, taking charge from behind the wall, opened fire on Michael O'Dwyer. Two bullets hit Michael O'Dwyer, killing him instantly. Udham Singh did not try to run away from there and surrendered himself to arrest. He was prosecuted. On 4 June 1940, Udham Singh was convicted of murder and on 31 July 1940, he was hanged in Pentonville Jail.

‘द ग्रेट मिमिक्री आर्टिस्ट सर चार्ल्स स्पेयर चैप्लिन - चार्ली चैप्लिन / Charlie Chaplin

चार्ली चैप्लिन (Charlie Chaplin)

Born: 16 April 1889, London, United Kingdom
Died: 25 December 1977, Manoir de Ban, Switzerland

चार्ली चैपलिन का नाम सुनते ही सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है, क्योंकि उन्होंने जिंदगी में मुसीबतों और दर्द में भी लोगों को ठहाके लगाने की सीख दी थी। सर चार्ल्स स्पेंसर चैपलिन को बच्चा बच्चा भी चार्ली चैपलिन के नाम से जानता है। उनकी बातों में, अदाकारी में, लहजे में यहां तक की उनके हर एक अंदाज में लोगों को हंसाने की कला छिपी हुई थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन केवल लोगों की जिंदगी में खुशियां भरने में ही गुजार दी, जबकि उनकी खुद की जिंदगी बेहद संघर्षभरी थी। 

‘द ग्रेट मिमिक्री आर्टिस्ट सर चार्ल्स स्पेयर चैप्लिन - चार्ली चैप्लिन / Charlie Chaplin
उन्होंने कॉमिक एक्टर और फिल्ममेकर के तौर पर अपना करियर बनाया और पूरा जीवन बस लोगों को हंसाते रहें। यह लाइनें चार्ली चैपलिन की हैं -  "जिंदगी करीब से देखने पर त्रासदी से भरी हुई है, लेकिन दूर से देखेंगे तो वह कॉमेडी जैसी दिखती है।" ये लाइनें उनकी जिंदगी की वास्तविकता भी थी। वह जिंदगी के दुखों को किस तरह देखते थे, वह उनकी इन लाइनों से समझा जा सकता है। वह बचपन से ही खुद दुखों के पहाड़ तले दबे रहे, लेकिन उन्होंने खुद के साथ लोगों को हंसना - हंसाना सिखाया।
‘द ग्रेट मिमिक्री आर्टिस्ट सर चार्ल्स स्पेयर चैप्लिन - चार्ली चैप्लिन / Charlie Chaplin
बचपन में ही चार्ली चैपलिन के पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने अपनी मां के साथ आर्थिक तंगी का सामना किया। छोटी सी उम्र में ही चार्ली के ऊपर घर की तमाम जिम्मेदारियां आ गई थीं। उनके पिता मशहूर अभिनेता और गायक थे और उनकी मां हन्ना चैपलिन भी एक गायिका और अभिनेत्री थीं, जिस कारण चार्ली को एक्टिंग की कला विरासत में मिली और उनका भी रुझान अभिनय की तरफ था। मां के बीमार होने के बाद चार्ली को 13 साल की उम्र में ही पढ़ाई छोड़ छोटे-मोटे काम करने पड़े। 14 साल की उम्र में पहली बार उन्होंने एक नाटक में कॉमिक रोल किया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।
‘द ग्रेट मिमिक्री आर्टिस्ट सर चार्ल्स स्पेयर चैप्लिन - चार्ली चैप्लिन / Charlie Chaplin
चार्ली चैपलिन मूक फिल्म युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावशाली व्यक्तित्व में से एक थे, जिन्होंने अपनी फिल्म में अभिनय, निर्देशन, पटकथा, निर्माण और संगीत खुद दिया था। वह कला के हर क्षेत्र में माहिर थे। साल 1940 में चार्ली ने तानाशाह हिटलर पर एक फिल्म बनाई थी, जिसका नाम था 'द ग्रेट डिक्टेटर', जिसमें उन्होंने हिटलर का किरदार निभाया। फिल्म में चार्ली का हिटलर को कॉमिक कैरेक्टर के रूप में पेश करना फैंस को काफी पसंद आया। इसके बाद उन्होंने लगातार कई सुपरहिट फिल्में और एक महान कलाकार बनने के रास्ते पर चल पड़े थे।
‘द ग्रेट मिमिक्री आर्टिस्ट सर चार्ल्स स्पेयर चैप्लिन - चार्ली चैप्लिन / Charlie Chaplin
अपने शानदार अभिनय और लोगों को हंसाने की कला के लिए चार्ली चैपलिन को साल 1973 में ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही चार्ली ने कई पुरस्कारों को अपने नाम किया। बरसों तक लोगों को खुलकर हंसाने वाले चार्ली आखिरकार सबको रुला कर चले गए। उन्होंने 25 दिसंबर 1977 में 88 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 

आपको हम उनके द्वारा कही गई कुछ बातें बता रहें है जिनसे आपको भी अपने बुरे समय का सामना करने की प्रेरणा मिलेगी।
‘द ग्रेट मिमिक्री आर्टिस्ट सर चार्ल्स स्पेयर चैप्लिन - चार्ली चैप्लिन / Charlie Chaplin
  1.  हंसी के बिना बिताया हुआ दिन बर्बाद किया हुआ दिन है।
  2.  बिना कुछ किए, सिर्फ कल्पना करने का कोई मतलब नहीं है।
  3.  इस दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है, हमारी मुसीबतें भी नहीं ।
  4. आप कभी भी एक इंद्रधनुष नहीं ढूंढ पाएंगे, यदि आप नीचे देख रहे है।
  5. यदि आप केवल मुस्कुराएंगे तो आप पाएंगे कि जीवन अभी भी मूल्यवान है।
  6. मैं हमेशा बरसात में घूमना पसंद करता हूँ, ताकि कोई मुझे रोते हुए ना देख सके।
  7. शीशा मेरा सबसे अच्छा मित्र है, क्योंकि जब में रोता हूँ तब वह कभी हंसता नहीं है।
  8. मुझे लगता है कि सही समय पर गलत काम करना, जीवन का कई विडंबनाओं में से एक है।
  9. जरूरतमंद दोस्त की मदद करना आसान है, पर उसे अपना समय दे पाना, हमेशा संभव नहीं हो पाता है।
  10. मेरा दर्द किसी के हंसने का कारण हो सकता है, लेकिन मेरी हंसी कभी भी किसी के दर्द का कारण नहीं होनी चाहिए।
 1960 दशक के आखिर में उनकी आखिरी फिल्म अ काउंटेस फ्र्म हांगकांग के समापन के बाद, चैप्लिन का मजबूत स्वास्थ्य धीरे धीरे खराब होना शुरू हुआ और 1972 में अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने के बाद अधिक तेजी से खराब होने लगा। 1977 तक उन्हें संवाद करने में मुश्किल होने लगी और उन्होंने व्हीलचेयर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।स्विट्जरलैंड के वेवे में 25 दिसम्बर 1977 को नींद में उनकी मृत्यु हो गई।
‘द ग्रेट मिमिक्री आर्टिस्ट सर चार्ल्स स्पेयर चैप्लिन - चार्ली चैप्लिन / Charlie Chaplin

English Translate

Charlie Chaplin

Born: 16 April 1889, London, United Kingdom
Died: 25 December 1977, Manoir de Ban, Switzerland

Hearing the name of Charlie Chaplin brings a smile on everyone's face, because he taught people to laugh even in the troubles and pain of life. Even children know Sir Charles Spencer Chaplin as Charlie Chaplin. The art of making people laugh was hidden in his words, acting, tone and even his every style. He spent his entire life only in filling happiness in the lives of people, whereas his own life was full of struggle.

He made his career as a comic actor and filmmaker and just kept making people laugh all his life. These lines are from Charlie Chaplin - "Life is full of tragedy when seen closely, but from a distance it looks like comedy." These lines were also the reality of his life. How he viewed the sorrows of life can be understood from these lines. He himself remained buried under a mountain of sorrows since childhood, but he taught people to laugh along with him.
‘द ग्रेट मिमिक्री आर्टिस्ट सर चार्ल्स स्पेयर चैप्लिन - चार्ली चैप्लिन / Charlie Chaplin
Charlie Chaplin's father died in his childhood, after which he faced financial difficulties with his mother. At a very young age, all the responsibilities of the house fell on Charlie. His father was a famous actor and singer and his mother Hannah Chaplin was also a singer and actress, due to which Charlie inherited the art of acting and he was also inclined towards acting. After his mother became ill, Charlie had to leave studies at the age of 13 and do odd jobs. At the age of 14, he played a comic role in a play for the first time, which was greatly appreciated by the audience.

Charlie Chaplin was one of the most creative and influential figures of the silent film era, starring, directing, scripting, producing and composing his own films. He was an expert in every field of art. In the year 1940, Charlie made a film on dictator Hitler, named 'The Great Dictator', in which he played the character of Hitler. Fans liked Charlie's presentation of Hitler as a comic character in the film. After this, he continuously did many superhit films and started on the path of becoming a great artist.

Charlie Chaplin was awarded the Oscar Award in the year 1973 for his brilliant acting and the art of making people laugh. Along with this, Charlie won many awards. Charlie, who made people laugh openly for years, finally left after making everyone cry. He left this world on 25 December 1977 at the age of 88.

We are telling you some things said by him which will inspire you to face your bad times.
‘द ग्रेट मिमिक्री आर्टिस्ट सर चार्ल्स स्पेयर चैप्लिन - चार्ली चैप्लिन / Charlie Chaplin
  1. A day spent without laughter is a day wasted.
  2. There is no point just imagining without doing anything.
  3. Nothing is permanent in this world, not even our troubles.
  4. You'll never find a rainbow if you're looking down.
  5. If you just smile you will find that life is still valuable.
  6. I always like to walk in the rain, so that no one sees me crying.
  7. The mirror is my best friend, because it never laughs when I cry.
  8. I guess doing the wrong thing at the right time is one of the many ironies of life.
  9. It is easy to help a needy friend, but it is not always possible to give him/her your time.
  10. My pain may be the reason for someone's laughter, but my laughter should never be the reason for anyone's pain.
‘द ग्रेट मिमिक्री आर्टिस्ट सर चार्ल्स स्पेयर चैप्लिन - चार्ली चैप्लिन / Charlie Chaplin
  Following the completion of his last film, A Countess from Hong Kong, in the late 1960s, Chaplin's strong health began to slowly deteriorate, and more rapidly after receiving an Academy Award in 1972. By 1977, he had difficulty communicating and began using a wheelchair. He died in his sleep on 25 December 1977 in Vevey, Switzerland.

Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)

ओस की बूँद

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आज भीगी हैं पलके किसी की याद में 
आकाश भी सिमट गया है अपने आप में..
ओस की बूँद ऐसी गिरी है जमीन पर, 
मानो चाँद भी रोया है उनकी याद में..💧

Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)

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सुबह की ओस जैसे हो तुम,
बस दिखते हो मग़र छू नहीँ सकते..
करीब हो के भी करीब रह नहीं सकते,
जो भी हो दिल के पास हो तुम
जानते हो बहुत खास हो तुम..💧
Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)
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सुबह से तेरी य़ादों की ओस कुछ ज़मीं सी है, 
फिजायें करे तस्दीक की तेरी कमी सी है..
तस्सवुर में भोर की आँखों में कुछ नमी सी है, 
फिजायें करे तस्दीक की तेरी कमी सी है..💧
हमने सपनों को दूर होते देखा है ,
जो मिला भी नहीं उसे खोते देखा है..
लोग कहते हैं कि रात को ओस गिरती है,
मगर हमने रात में फूलों को रोते देखा है..💧

Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)

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बार बार आईना पोंछा,
मगर हर तस्वीर धुंधली थी..
न जाने आईने पर ओस थी,
या हमारी आँखें गीली थीं..💧
Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)
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आधे आकाश में,
आज दर्ज हुई बारिश..
आधा 
चाँद के नाम रहा,
आधी बारिश और आधी चाँदनी में,
भीगता रहा 
पूरा शहर..💧
Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)
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तारों में छोड़कर आए थे,
हम अपना दु:ख..
यहाँ इस जगह लेटकर,
इसीलिए देखते रहते हैं तारे, 
गिरती रहती है 
'ओस की बूंद'..💧
Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)
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ठहर जरा ओस की बूंद पलभर,
नमी तुम्हारी घड़ी पहर है..
चढ़ेगी ज्यों ही जरा सी किरणें,
तुम्हारा घर फिर कहां इधर है..💧
Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)
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भोर की पहली किरण,
चुन रही तुसार कण..
बांधकर असंख्य मोती,
उड़ चली फिर से गगन..
चढ़ रहा दिनमान उपर,
मृयमान होते जीव जलचर..
उष्णता की ताप में,
जीवन पथिक की सांस दूभर..
चेतना निस्तेज,
प्राणों का आक्लांत क्रंदन..
मेघ आज फिर घिर आओ,
बनकर ओस (बारिश) की बूंदें..💧
Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)
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ओस की बूंदें हैं,
आंखों में नमी है..
ना उपर आसमान है,
ना नीचे जमीन है..
ये कैसा मोड़ है,
जिंदगी का..
जो लोग खास हैं,
उनकी ही कमी है..💧
Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)
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ओस की हर एक बूँद देखो, अनजानी सी हो गई है, 
समय की गर्त में दबी यादें, कुछ बेमानी सी हो गई है..
आज सुबह की भोर घास पे, 
चमकते मोतियों को देखा, 
तबसे बिसरी यादों की खुशबू, 
पहचानी सी हो गयी है..
सर्द सुबह में भी जब भागना, 
मटर के खेतों के यूँ बीच, 
हर ओस की बूँद को चाहना, 
कर ले मुट्ठी भीतर भींच..
अंजाने रिश्तों को सींचती, 
ये अब कहानी सी हो गई है, 
जिन्दगी की आपाधापी में, 
ये आनी जानी सी हो गई है..
फिर भी दिल आज उड़ चला, 
उन प्यारी यादों के पास, 
फिर बुनते हुए अनगिनत, 
ख्वाबों के घरोंदे कुछ खास..
वो पल निश्छल बचपन की,
जैसे निशानी सी हो गई है, 
फिर उन्हीं पलों में जी लेना, 
आदत पुरानी सी हो गई है..💧
Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)
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ओस में डूबता अन्तरिक्ष विदा ले रहा है, अँधेरों पर गिरती तुषार और कोहरों की नमी से..
और यह बूँद न जाने कब तक जिएगी इस लटकती टहनी से जुड़े पत्ते के आलिंगन में..
धूल में जा गिरी तो फिर मिट के जाएगी कहाँ?
ओस की एक बूँद बस चुकी है कब की,
मेरे व्याकुल मन में..💧
Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)
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बूँदे ओस की सीप पर मोती सी नक्षत्र स्वाति,
बूँदे प्रेम की मन सागर भरे जीवन तृप्ति.. 
बूँदे बरसी सारी रात टपकी निर्धन कुटी, 
धरा की प्यास विरह पीर उठे बूँद की आस..💧
Os ki Boond Quotes / ओस की बूंद शायरी (Shayari)
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माँ औऱ बेटा

माँ औऱ बेटा

माँ, मुझे कुछ महीने के लिये विदेश जाना पड़ रहा है। तेरे रहने का इन्तजाम मैंने करा दिया है। तक़रीबन 32 साल के अविवाहित डॉक्टर सुदीप ने देर रात घर में घुसते ही कहा। 

माँ औऱ बेटा

"बेटा, तेरा विदेश जाना ज़रूरी है क्या ?" माँ की आवाज़ में चिन्ता और घबराहट झलक रही थी। "माँ, मुझे इंग्लैंड जाकर कुछ रिसर्च करनी है। वैसे भी कुछ ही महीनों की तो बात है"- सुदीप ने कहा।

"जैसी तेरी इच्छा। मरी से आवाज़ में माँ बोली।" और छोड़ आया सुदीप अपनी माँ 'प्रभा देवी' को पड़ोस वाले शहर में स्थित एक वृद्धा-आश्रम में। वृद्धा-आश्रम में आने पर शुरू-शुरू में हर बुजुर्ग के चेहरे पर जिन्दगी के प्रति हताशा और निराशा साफ झलकती थी, पर प्रभा देवी के चेहरे पर वृद्धा-आश्रम में आने के बावजूद कोई शिकन तक न थी।

एक दिन आश्रम में बैठे कुछ बुजुर्ग आपस में बात कर रहे थे। उनमें दो-तीन महिलायें भी थीं। उनमें से एक ने कहा, "डॉक्टर का कोई सगा-सम्बन्धी नहीं था जो अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया।" तो वहाँ बैठी एक महिला बोली, "प्रभा देवी के पति की मौत जवानी में ही हो गयी थी। तब सुदीप चार साल का था। पति की मौत के बाद प्रभा देवी और उसके बेटे को रहने और खाने के लाले पड़ गये। तब किसी भी रिश्तेदार ने उनकी मदद नहीं की। प्रभा देवी ने लोगों के कपड़े सिल-सिल कर अपने बेटे को पढ़ाया। बेटा भी पढ़ने में बहुत तेज था, तभी तो वो डॉक्टर बन सका।"

वृद्धा-आश्रम में करीब 6 महीने गुज़र जाने के बाद एक दिन प्रभा देवी ने आश्रम के संचालक राम किशन शर्मा जी के ऑफिस के फोन से अपने बेटे के मोबाईल नम्बर पर फोन किया और कहा, " सुदीप तुम हिंदुस्तान आ गये हो या अभी इंग्लैंड में ही हो ?" माँ, अभी तो मैं इंग्लैंड में ही हूँ- सुदीप का जवाब था।

तीन-तीन, चार-चार महीने के अंतराल पर प्रभा देवी सुदीप को फ़ोन करती उसका एक ही जवाब होता, " मैं अभी वहीं हूँ, जैसे ही अपने देश आऊँगा तुझे बता दूँगा।" इस तरह तक़रीबन दो साल गुजर गये। अब तो वृद्धा-आश्रम के लोग भी कहने लगे कि देखो कैसा चालाक बेटा निकला, कितने धोखे से अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया। आश्रम के ही किसी बुजुर्ग ने कहा, " मुझे तो लगता नहीं कि डॉक्टर विदेश-पिदेश गया होगा, वो तो बुढ़िया से छुटकारा पाना चाह रहा था।" तभी किसी और बुजुर्ग ने कहा, " मगर वो तो शादी-शुदा भी नहीं था।"

"अरे होगी उसकी कोई 'गर्ल-फ्रेण्ड' , जिसने कहा होगा। पहले माँ के रहने का अलग इंतजाम करो, तभी मैं तुमसे शादी करुँगी।" दो साल आश्रम में रहने के बाद अब प्रभा देवी को भी अपनी नियति का पता चल गया। बेटे का गम उसे अंदर ही अंदर खाने लगा। वो बुरी तरह टूट गयी। दो साल आश्रम में और रहने के बाद एक दिन प्रभा देवी की मौत हो गयी। उसकी मौत पर आश्रम के लोगों ने आश्रम के संचालक शर्मा जी से कहा, " इसकी मौत की खबर इसके बेटे को तो दे दो। हमें तो लगता नहीं कि वो विदेश में होगा, वो होगा यहीं कहीं अपने देश में।"

" इसके बेटे को मैं कैसे खबर करूँ? उसे मरे तो तीन साल हो गये।" शर्मा जी की यह बात सुन वहाँ पर उपस्थित लोग सनाका खा गये। उनमें से एक बोला, " अगर उसे मरे तीन साल हो गये तो प्रभा देवी से मोबाईल पर कौन बात करता था।"

"वो मोबाईल तो मेरे पास है, जिसमें उसके बेटे की रिकॉर्डेड आवाज़ है।" शर्मा जी बोले।

"पर ऐसा क्यों ?" किसी ने पूछा।

तब शर्मा जी बोले कि करीब चार साल पहले जब सुदीप अपनी माँ को यहाँ छोड़ने आया तो उसने मुझसे कहा, " शर्मा जी मुझे 'ब्लड कैंसर' हो गया है और डॉक्टर होने के नाते मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि इसकी आखिरी स्टेज में मुझे बहुत तकलीफ होगी। मेरे मुँह से और मसूड़ों आदि से खून भी आयेगा। मेरी यह तकलीफ़ माँ से देखी न जा सकेगी। वो तो जीते जी ही मर जायेगी। मुझे तो मरना ही है पर मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण मेरे से पहले मेरी माँ मरे। मेरे मरने के बाद दो कमरे का हमारा छोटा सा 'फ्लेट' और जो भी घर का सामान आदि है वो मैं आश्रम को दान कर दूँगा।" यह दास्ताँ सुन वहाँ पर उपस्थित लोगों की आँखें झलझला आयीं।

प्रभा देवी का अन्तिम संस्कार आश्रम के ही एक हिस्से में कर दिया गया। उनके अन्तिम संस्कार में शर्मा जी ने आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों के परिवार वालों को भी बुलाया। माँ-बेटे की अनमोल और अटूट प्यार की दास्ताँ का ही असर था कि कुछ बेटे अपने बूढ़े माँ/बाप को वापस अपने घर ले गये। 

हर रिश्ता अनमोल है, रिश्तों को संभाल के रखिये। 

लखनऊ में बसा है ग्रीस देश लोप लो

लखनऊ में बसा है ग्रीस देश

आपको सुनकर हैरानी होगी, लेकिन यह हकीकत है कि लखनऊ की धड़कन हजरतगंज में ‘ग्रीस’ देश बसा हुआ है। इसे हाउस ऑफ नो शुगर यानी होंस कैफे ने बसाया है। इस कैफे को जो रूप दिया गया है वो पूरा ग्रीस देश का है। इस अनोखे कैफे को देखने के लिए दूरदराज से लोग आ रहे हैं। यह कैफे लखनऊ वालों का भी पसंदीदा कैफे बन गया है। इसमें तमाम सेल्फी प्वाइंट हैं। युवाओं का तो खास तौर पर यह अड्डा बन गया है, जबकि यहां का खाना भी लाजवाब है। 

लखनऊ में बसा है ग्रीस देश

इस कैफे के इंचार्ज वरदान केसरवानी ने बताया कि इस जगह पर पहले एक प्रिंटिंग प्रेस हुआ करती थी। यह इमारत अंग्रेजों के जमाने की है। जब यहां पर कैफे खोलने के बारे में सोचा गया तो इस बिल्डिंग का पुराना रूप रहने दिया गया। उसी इमारत को ग्रीस देश का एक लुक दे दिया गया है, जो लोगों को लुभा रहा है। यही वजह है कि लोग यहां पर आ रहे हैं।

लखनऊ में बसा है ग्रीस देश

नो शुगर है खासियत

वरदान केसरवानी ने बताया कि इस पूरे कैफे की खासियत यह है कि यहां पर आप जो भी मीठा खाना चाहें, खा सकते हैं। दरअसल किसी में भी शुगर नहीं है। सब कुछ यहां पर शुगर फ्री है। इसी वजह से डायबिटीज के मरीज भी खूब आ रहे हैं। यहां एक दो नहीं, 125 वैरायटी की मिलती है नमकीन, हर आइटम का स्‍वाद अनोखा है। 

लखनऊ में बसा है ग्रीस देश

पूरी दुनिया का खाना एक ही कैफे में

केसरवानी ने बताया कि इस कैफे में इटालियन, मैक्सिकन, चाइनीज, इंडियन और साउथ इंडियन के साथ ही ग्रीस की खास डिश को भी रखा गया है। कह सकते हैं कि पूरी दुनिया का खाना एक ही कैफे में परोसा जा रहा है। कीमत भी बेहद कम है। 

लखनऊ में बसा है ग्रीस देश

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) अध्याय - 18 (56 - 66 )

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

अथाष्टादशोऽध्यायः- मोक्षसंन्यासयोग

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)
 भक्ति सहित कर्मयोग का विषय
सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः।
मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्‌ || 18.56 ||

भावार्थ : 

मेरे परायण हुआ कर्मयोगी तो संपूर्ण कर्मों को सदा करता हुआ भी मेरी कृपा से सनातन अविनाशी परमपद को प्राप्त हो जाता है৷

चेतसा सर्वकर्माणि मयि सन्न्यस्य मत्परः।
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव || 18.57 ||

भावार्थ : 

सब कर्मों को मन से मुझमें अर्पण करके (गीता अध्याय 9 श्लोक 27 में जिसकी विधि कही है) तथा समबुद्धि रूप योग को अवलंबन करके मेरे परायण और निरंतर मुझमें चित्तवाला हो৷

मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्वमहाङ्‍कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि || 18.58 ||

भावार्थ : 

उपर्युक्त प्रकार से मुझमें चित्तवाला होकर तू मेरी कृपा से समस्त संकटों को अनायास ही पार कर जाएगा और यदि अहंकार के कारण मेरे वचनों को न सुनेगा तो नष्ट हो जाएगा अर्थात परमार्थ से भ्रष्ट हो जाएगा৷

यदहङ्‍कारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे ।
मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति || 18.59 ||

भावार्थ : 

जो तू अहंकार का आश्रय लेकर यह मान रहा है कि 'मैं युद्ध नहीं करूँगा' तो तेरा यह निश्चय मिथ्या है, क्योंकि तेरा स्वभाव तुझे जबर्दस्ती युद्ध में लगा देगा৷

स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा ।
कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत्‌ || 18.60 ||

भावार्थ : 

हे कुन्तीपुत्र! जिस कर्म को तू मोह के कारण करना नहीं चाहता, उसको भी अपने पूर्वकृत स्वाभाविक कर्म से बँधा हुआ परवश होकर करेगा৷

ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया || 18.61 ||

भावार्थ : 

हे अर्जुन! शरीर रूप यंत्र में आरूढ़ हुए संपूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है৷

तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्‌ || 18.62 ||

भावार्थ : 

हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में (लज्जा, भय, मान, बड़ाई और आसक्ति को त्यागकर एवं शरीर और संसार में अहंता, ममता से रहित होकर एक परमात्मा को ही परम आश्रय, परम गति और सर्वस्व समझना तथा अनन्य भाव से अतिशय श्रद्धा, भक्ति और प्रेमपूर्वक निरंतर भगवान के नाम, गुण, प्रभाव और स्वरूप का चिंतन करते रहना एवं भगवान का भजन, स्मरण करते हुए ही उनके आज्ञा अनुसार कर्तव्य कर्मों का निःस्वार्थ भाव से केवल परमेश्वर के लिए आचरण करना यह 'सब प्रकार से परमात्मा के ही शरण' होना है) जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परमधाम को प्राप्त होगा৷

इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्‍गुह्यतरं मया ।
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु || 18.63 ||

भावार्थ : 

इस प्रकार यह गोपनीय से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुमसे कह दिया। अब तू इस रहस्ययुक्त ज्ञान को पूर्णतया भलीभाँति विचार कर, जैसे चाहता है वैसे ही कर ৷৷18.63॥

सर्वगुह्यतमं भूतः श्रृणु मे परमं वचः ।
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम्‌ || 18.64 ||

भावार्थ : 

संपूर्ण गोपनीयों से अति गोपनीय मेरे परम रहस्ययुक्त वचन को तू फिर भी सुन। तू मेरा अतिशय प्रिय है, इससे यह परम हितकारक वचन मैं तुझसे कहूँगा ৷৷18.64॥

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे || 18.65 ||

भावार्थ : 

हे अर्जुन! तू मुझमें मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो और मुझको प्रणाम कर। ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा, यह मैं तुझसे सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ क्योंकि तू मेरा अत्यंत प्रिय है ৷৷18.65॥

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः || 18.66 ||

भावार्थ : 

संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्यागकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण (इसी अध्याय के श्लोक 62 की टिप्पणी में शरण का भाव देखना चाहिए।) में आ जा। मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर৷

स्वाद और सेहत से भरपूर चाय मसाला

स्वाद और सेहत से भरपूर चाय मसाला

बारिश व सर्दियों से बचने के लिए ख़ास चाय मसाला।

इस मौसम में चाय की चुस्की के साथ साथ आप कई सारे इंफेक्शन जैसे सर्दी जुखाम आदि से भी बचे और स्वस्थ तथा निरोगी बने रहें।

इसको बनाने में उपयोग होने वाली तुलसी कई औषधियों गुणों से परिपूर्ण है।

स्वाद और सेहत से भरपूर चाय मसाला

इसके अलावा लौंग, सोंठ और कालीमिर्च भी सेहत के लिए फायदेमंद हैं।

चाय मसाला पाउडर आवश्यक सामग्री

चाय मसाला पाउडर बनाने के लिए आप अपने किचन में निम्न सामान को एकत्रित कर लें। 

काली मिर्च– 3 बड़े चम्मच

सोंठ पाउडर– 3 बड़े चम्मच

छोटी इलाइची– 15

लौंग– 15

सूखी हुई तुलसी की पत्तियां– 1 कप

दालचीनी का टुकड़ा– 1

स्वाद और सेहत से भरपूर चाय मसाला

चाय मसाला पाउडर बनाने का तरीका...

सोंठ, कालीमिर्च, छोटी इलायची, लौंग, तुलसी की पत्तियां और दालचीनी के टुकड़े को ग्राइंडर में बारीक़ पीस लें।चाय का मसाला पाउडर को एयर टाइट डिब्बे में भर के रख लें। जब भी चाय बनानी हो तो चाय में बस एक चुटकी चाय का मसाला पाउडर मिलाएं और ख़ुशबूदार चाय बनाएं। बारिश या सर्दियों में यह मसाला पाउडर डालकर चाय पीने से आप वायरल इंफेक्शन, कफ, खांसी और जुखाम आदि से बचे रहेंगे। क्योंकि इसमें उपयोग होने वाली प्रत्येक चीज़ स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभप्रद है।