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गुस्सैल लड़का

गुस्सैल लड़का

एक पिता ने अपने गुस्सैल लड़के से तंग आकर उसे कीलों से भरा एक थैला देते हुए कहा तुम्हें जितनी बार क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर बाड़े में ठोक देना। 

गुस्सैल लड़का

लड़के को अगले दिन जैसे ही क्रोध आया उसने एक कील बाड़े की दीवार पर ठोक दी। यह प्रक्रिया वह लगातार करता रहा। धीरे धीरे उसकी समझ मे आने लगा कि कील ठोकने की व्यर्थ मेहनत से अच्छा तो अपने क्रोध पर नियंत्रण करना है और क्रमशः कील ठोकने की उसकी संख्या कम होती गई। एक दिन ऐसा भी आया कि लड़के ने दिन में एक भी कील नहीं ठोकी।


उसने खुशी खुशी यह बात अपने पिताजी को बताई। वे प्रसन्न हुए और कहा जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम एकबार भी क्रोधित नहीं हुए, ठोकीं हुई कील मे से एक कील निकाल लेना।


लड़का ऐसा ही करने लगा। एक दिन ऐसा भी आया कि बाड़े मे एक भी कील नहीं बची। उसने खुशी खुशी यह बात अपने पिताजी को बताई। पिताजी उस लड़के को बाड़े मे लेकर गए और कीलों के छेद दिखाते हुए पूछा क्या तुम ये छेद भर सकते हो? लड़के ने कहा नहीं तो पिताजी ने उससे कहा क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गए गलत शब्द, दूसरे के दिल पर ऐसे ही छेद करते हैं जिसकी भरपाई भविष्य में तुम नहीं कर सकते। 

अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें। 

पुस्तैनी घड़ी

पुस्तैनी घड़ी 

मरने से पहले, एक आदमी ने अपने बेटे से कहा, "यह वह घड़ी है जो तुम्हारे दादा ने मुझे दी थी। यह घड़ी 200 साल से अधिक की है। इससे पहले कि मैं इस घड़ी को तुम्हें दे दूँ , तुम इसे लेकर पहले बेहतर पानशॉप पर जाओ। पानशॉप वाले से कहना कि हम इसे बेचना चाहते हैं और पूछना कि वे इसके लिए कितना भुगतान कर सकता है।"

पुस्तैनी घड़ी

पिता की हिदायत पर बेटा घड़ी लेकर गया और थोड़ी देर बाद वापस आया और अपने पिता से कहा - "पानशॉप वाला इस घड़ी के 10$  देने की पेशकश कर रहा है, क्योंकि घड़ी बहुत पुरानी है और बुरी तरह से नष्ट हो गई है।"

"पिता ने अपने बेटे से कहा कि इस बार घड़ी लेकर चौकीदार के पास जा।"

बेटा घंटे बाद वापस आ गया और पिता से कहा, "चौकीदार ने इसकी 20 डॉलर की कीमत लगाई।"

इस बार पिता ने अपने बेटे को फिर कहा : "इस घड़ी को लो और सड़क पर मिलने वाले पहले व्यक्ति के पास जाओ और पूछो कि वह यह घड़ी तुमसे कितने में खरीदेगा।"

बेटा 10 मिनट बाद वापस आता है और कहता है, "पिताजी! इस घड़ी को कोई भी खरीदना नहीं चाहता था, मेरे बहुत कहने पर केवल एक व्यक्ति इसके लिए 5 $ देने को राजी हुआ।"

पिता ने कहा, "इस बार तुम संग्रहालय में जाओ और उन्हें यह घड़ी दिखाओ।"

पिता की आज्ञा से इस बार बेटा संग्रहालय गया और कुछ घंटों बाद बहुत उत्साह के साथ वापस आता है। 

पिताजी! उन्होंने इस घड़ी के लिए एक मिलियन डॉलर की पेशकश की। उन्होंने कहा कि यह एक वास्तविक कृति है। यह कैसे संभव है?"

पिता ने उत्तर दिया, "मैं चाहता था कि तुम यह जान लो कि सही जगह और सही लोग ही तुम्हारे वास्तविक मूल्य की सराहना करेंगे। यही कारण है कि गलत स्थानों पर मत दिखो और जहाँ तुम्हें समझने वाले नहीं हैं, तुमसे गलत व्यवहार किया जा रहा हो, वहाँ से चले जाओ उस जगह को छोड़ दो। जिन्हें तुम्हारी कीमत पता है वो तुम्हारी कदर करेंगे, इसलिए कभी ऐसी जगह और उन लोगों के आसपास मत रहना, जिन्हें तुम्हारी कीमत नहीं दिखती।"

गोबरैला

 गोबरैला

गांव-देहात में एक कीड़ा पाया जाता है, जिसे गोबरैला कहा जाता है। उसे गाय, भैंसों के ताजे गोबर की बू बहुत भाती है! वह सुबह से गोबर की तलाश में निकल पड़ता है और सारा दिन उसे जहां कहीं गोबर मिल जाता है, वहीं उसका गोला बनाना शुरू कर देता है। शाम तक वह एक बड़ा सा गोला बना लेता है। फिर उस गोले को ढ़केलते हुए अपने बिल तक ले जाता है।

गोबरैला

बिल पर पहुँच कर उसे पता चलता है कि गोला तो बहुत बड़ा बन गया मगर उसके बिल का द्वार बहुत छोटा है। बहुत परिश्रम और कोशिशों के बाद भी वह उस गोले को बिल के अन्दर नहीं ढ़केल पाता, और उसे वहीं पर छोड़कर बिल में चला जाता है।

यही हाल हम मनुष्यों का भी है। पूरी जिन्दगी हम दुनियाभर का माल-मत्ता जमा करने में लगे रहते हैं, और जब अन्त समय आता है, तो हमें पता चलता है कि ये सब तो साथ नहीं ले जा सकते। और तब हम उस जीवन भर की कमाई को बड़ी हसरत से देखते हुए इस संसार से विदा हो जाते हैं। 

कहते हैं पुण्य किसी को दगा नहीं देता और पाप किसी का सगा नहीं होता। जो कर्म को समझता है, उसे धर्म को समझने की जरूरत नहीं पड़ती। संपत्ति के उत्तराधिकारी कोई भी या अनेक हो सकते हैं, लेकिन कर्मों के उत्तराधिकारी केवल और केवल हम स्वयं ही होते हैं, इसलिए उसकी खोज में रहे जो हमारे साथ जाना है, उसे हासिल करने में ही समझदारी है।


संगत का असर : आइंस्टीन

संगत का असर

आइंस्टीन के ड्राइवर ने एक बार आइंस्टीन से कहा - सर! "मैंने हर बैठक में आपके द्वारा दिए गए हर भाषण को याद किया है।"

संगत का असर : आइंस्टीन

आइंस्टीन हैरान! उन्होंने कहा- ठीक है - अगले आयोजक मुझे नहीं जानते। आप मेरे स्थान पर वहां बोलिए और मैं ड्राइवर बनूंगा। ऐसा ही हुआ बैठक में अगले दिन ड्राइवर मंच पर चढ़ गया और भाषण देने लगा।

उपस्थित विद्वानों ने जोर-शोर से तालियां बजाईं। उस समय एक प्रोफेसर ने ड्राइवर से पूछा (जो उस समय मंच पर आइंस्टीन बना हुआ था) - "सर! क्या आप उस सापेक्षता की परिभाषा को फिर से समझा सकते हैं?

असली आइंस्टीन ने देखा बड़ा खतरा। अब तो वाहन चालक पकड़ा जाएगा। लेकिन ड्राइवर का जवाब सुनकर वे हैरान रह गये। ड्राइवर ने जवाब दिया - क्या यह आसान बात आपके दिमाग में नहीं आई? आप इसे मेरे ड्राइवर से पूछिए !! वह आपको समझाएगा।

शिक्षा:- यदि आप बुद्धिमान लोगों के साथ चलते हैं तो आप भी बुद्धिमान बनेंगे और मूर्खों के साथ ही सदा उठेंगे-बैठेंगे तो आपका मानसिक तथा बुद्धिमता का स्तर और सोच भी उन्हीं की भांति हो जाएगी !!

🌸जैसी संगत,वैसी रंगत।🌸


पुत्रवधू

 पुत्रवधू

वर्षो पहले की घटना है। सुदूर हिमालय की घाटियों में एक सुरम्य नगर बसा हुआ था, जिसका नाम था राजस मन्द। राजस मन्द में एक धनाढ्य सेठजी नंदाराम अपने परिवार के साथ निवास करते थे। सेठ जी का एक पुत्र था रघुवीर। पुत्र बड़ा संस्कारवान था, सेठ जी ने निश्चय किया कि वह एक समझदार लड़की को ही अपनी पुत्रवधु बनाएंगे।     

पुत्रवधू

सेठ जब भी किसी लडक़ी को देखने जाते तो प्रश्न करते सर्दी, गर्मी ओर बरसात में कौन सा मौसम सबसे अच्छा है ? एक लड़की ने उत्तर दिया गर्मी का मौसम सबसे अच्छा होता है। हिमालय की सुरम्य पहाड़ियों पर घूमने का बड़ा आनंद मिलता है। वहाँ टहलने में बड़ा सुख मिलता है।

दूसरी लड़की ने कहा जाड़े का मौसम सबसे अच्छा होता है। इस मौसम में तरह तरह के पकवान बनते है। हम जो भी खाते है, वह सब आसानी से पच जाता है। सर्दी के मौसम में गर्म कपड़े पहन कर घूमने का बड़ा आनंद आता है।

तीसरी लड़की ने कहा मुझे तो वर्षा का मौसम पसंद है। इस मौसम में पृथ्वी पर चारो ओर हरियाली होती है। बारिश में भीगने में बहुत मजा आता है। पहाड़ो पर झरनों का अपना ही मजा है। सेठ जी को एक और लड़की ने बताया कोई मौसम ही अच्छा नहीं लगता, गर्मी में गर्मी से परेशान जाड़े में ठंड से परेशान बारिश में भीग जाओ कीचड़ गंदगी कोई भी मौसम ठीक नहीं।

सेठ जी परेशान होकर लडक़ी देखना बंद कर दिए। कुछ दिनों बाद एक मित्र के यहाँ उनकी मुलाकात एक लड़की से हुई। उन्होंने उससे भी वही प्रश्न किया। लडक़ी बोली शरीर व मन स्वस्थ है, तो सभी मौसम अच्छे हैं यदि हमारा तन मन स्वस्थ नही, तो हर मौसम बेकार है। सेठ जी इस उत्तर से बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने उस लड़की को अपनी पुत्रवधू बना लिया।

सभी मौसम उपयोगी हैं और अच्छे होते हैं। जीवन का भी यही है। शरीर और मन स्वस्थ हो तो काम करने के कोई भी मौसम हो सबका अपना मजा है..!!

गुलाम की सीख

 गुलाम की सीख

दास प्रथा के समय में एक मालिक के पास अनेकों गुलाम हुआ करते थे। उन्हीं में से एक था सुखराम। सभी गुलामों में सुखराम चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी। 

गुलाम की सीख

एक दिन इस बात की खबर उसके मालिक को लगी, मालिक ने सुखराम को बुलाया और कहा- सुना है कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ। अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी। अच्छा जाओ, एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा बढ़िया हो, उसे ले आओ।

सुखराम ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी। तब मालिक के कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया। सुखराम ने कहा - अगर शरीर में जीभ अच्छी हो तो सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता है।

मालिक ने आदेश देते हुए कहा - "अच्छा! इसे उठा ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो वो ले आओ।"

सुखराम बाहर गया और थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को वापस लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया। मालिक के फिर से कारण पूछने पर सुखराम ने कहा - "अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा ही बुरा है।"    उसने आगे कहते हुए कहा - "मालिक! वाणी तो सभी के पास जन्मजात होती है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है, क्या बोलें, कैसे शब्द बोलें, कब बोलें? इस एक कला को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है। कड़वी बातों ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये हैं। इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाये हैं। जीभ तीन इंच का वो हथियार है, जिससे कोई छः फिट के आदमी को भी मार सकता है तो कोई मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक सकता है। संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को ही मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और दुरूपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो सकता है। भारत के विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था।"

मालिक, सुखराम की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों से बहुत खुश हुए। आज उनके गुलाम ने उन्हें एक बहुत बड़ी सीख दी थी और अपने कहे अनुसार उन्होंने उसे आजाद कर दिया।


हमारी वाणी हमारे व्यत्कित्व का प्रतिबिम्ब है।

ईमानदारी

ईमानदारी

आज गांव के एक बच्चे की ईमानदारी की बात करते हैं, जो अभाव में भी अपनी ईमानदारी को नहीं छोड़ता।

किसी गांव में एक लड़का रहता था। उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। बहुत ही मुश्किल से उसके घर में भोजन पानी की व्यवस्था हो पति थी। आर्थिक तंगी के बीच पले बढ़े इस बच्चे के मन में विचार आया कि किसी बड़े शहर में जाकर वह नौकरी कर ले। वह कलकत्ता गया और नौकरी ढूंढने लगा।

कुछ दिन खोज बीन के बाद उसे एक सेठ के घर में नौकरी मिल गयी। काम था सेठ को रोज़ 6 घंटे अख़बार और किताब पढ़कर सुनाना। लड़के को नौकरी की ज़रूरत थी तो उसने वह नौकरी स्वीकार कर ली।

ईमानदारी

एक दिन की बात है लड़के को दुकान के कोने में 100-100 के 8 नोट पड़े मिले। उसने चुपचाप उन्हें अख़बारों और किताबों से ढक दिया। दूसरे दिन रुपयों की खोजबीन हुई। वह रुपये किसी ग्राहक के थे, जो गलती से गिर गए थे। दुकान पर काम करने वाले सभी लोगों से पूछ ताछ शुरू हुई। लड़का सुबह जब दुकान पर आया तो उससे भी पूछा गया।

लड़के ने तुरंत ही प्रसनन्ता से रूपये निकालकर ग्राहक को दे दिए। वह बहुत ही खुश हुआ। लड़के के ईमानदारी से सबको बहुत प्रसनन्ता हुई। सेठ भी लड़के से बहुत खुश हुआ। सेठ ने लड़के को पुरस्कार देना चाहा, तो लड़के ने लेने से मना कर दिया।

लड़के ने सेठ जी से कहा - अगर आप कुछ करना ही चाहते हैं तो, मैं आगे पढ़ना चाहता हुँ , पर पैसो के आभाव ने पढ़ नहीं पा रहा। यदि आप कुछ सहयता कर दें।

सेठ ने लड़के की पढ़ाई का प्रबंध कर दिया। लड़के ने जी जान लगा दी और बहुत मेहनत से पढता गया। यह लड़का आगे चलकर सहित्यकार बना। इसका नाम था – राम नरेश त्रिपाठी। हिंदी साहित्य में इनका बहुत बढ़ा योगदान है।

मुश्किल दौर

 मुश्किल दौर

एक बार की बात है, एक कक्षा में गुरूजी अपने सभी छात्रों को समझाना चाहते थे कि प्रकृति सभी को समान अवसर देती है और उस अवसर का इस्तेमाल करके हम अपना भाग्य खुद बना सकते हैं। 

उपदेशात्मक कहानी - मुश्किल दौर

इसी बात को ठीक तरह से समझाने के लिए गुरूजी ने तीन कटोरे लिए। पहले कटोरे में एक आलू रखा, दूसरे में अंडा और तीसरे कटोरे में चाय की पत्ती डाल दी। अब तीनों कटोरों में पानी डालकर उनको गैस पर उबलने के लिए रख दिया। 

सभी छात्र ये सब हैरान होकर देख रहे थे, लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ देर बाद जब तीनों बर्तन में उबाल आने लगे, तो गुरूजी ने सभी कटोरों को नीचे उतारा और आलू, अंडा और चाय को बाहर निकाला।

अब उन्होंने सभी छात्रों से तीनों कटोरों को गौर से देखने के लिए कहा। अब भी किसी छात्र को समझ नहीं आ रहा था।

आखिर में गुरु जी ने एक बच्चे से तीनों (आलू, अंडा और चाय) को स्पर्श करने के लिए कहा। जब छात्र ने आलू को हाथ लगाया तो पाया कि जो आलू पहले काफी कठोर हो गया था और पानी में उबलने के बाद काफी मुलायम हो गया था। 

जब छात्र ने, अंडे को उठाया तो देखा जो अंडा पहले बहुत नाज़ुक था  उबलने के बाद वह कठोर हो गया है। अब बारी थी चाय के कप को उठाने की। जब छात्र ने चाय के कप को उठाया तो देखा चाय की पत्ती ने गर्म पानी के साथ मिलकर अपना रूप बदल लिया था और अब वह चाय बन चुकी थी। 

अब गुरु जी ने समझाया, हमने तीन अलग-अलग चीजों को समान विपत्ति से गुज़ारा, यानी कि तीनों को समान रूप से पानी में उबाला लेकिन बाहर आने पर तीनों चीजें एक जैसी नहीं मिली। 

आलू जो कठोर था वो मुलायम हो गया, अंडा पहले से कठोर हो गया और चाय की पत्ती ने भी अपना रूप बदल लिया। उसी तरह यही बात इंसानों पर भी लागू होती है। 

शिक्षा

सभी को समान अवसर मिलते हैं और मुश्किलें आती हैं लेकिन ये पूरी तरह हम पर निर्भर है कि हम परेशानी का सामना कैसा करते हैं और मुश्किल दौर से कैसे बाहर निकलते हैं।

सुखी जीवन की सीख

सुखी जीवन की सीख

एक बार बुद्ध किसी गांव में प्रवचन दे रहे थे। काफी दूर से लोग उनके प्रवचन सुनने को आए थे। उनके प्रवचन से लोगों को अपनी व्यक्तिगत व पारिवारिक समस्याओं का समाधान मिलता था। इसी गांव के गली में एक गरीब व्यक्ति अपनी छोटी सी कुटिया में रहता था। वह बार-बार लोगों के झुंड को बुद्ध के प्रवचन सुनने की लालसा लिए अपनी कुटिया के सामने से गुजरते हुए देखा करता था। 

सुखी जीवन की सीख

एक दिन उसके मन में एक प्रश्न आया कि भगवान बुद्ध के शिविर में जाते समय लोग उदास एवं परेशान दिखाई पड़ते हैं, पर उनके प्रवचन सुनकर वापस आ रहे लोगों के चेहरों पर एक अजीब सी प्रसन्नता, आत्मविश्वास व शांति के भाव दिखाई पड़ते हैं। आखिर क्यों ? 

आखिर वह भी लोगों के साथ शिविर में गया जहां प्रवचन चल रहा था। उसने देखा प्रवचन समाप्त हो गया है और लोग अपनी समस्याओं व परिस्थितियों के समाधान को लेकर बुद्ध से मिल रहे हैं। भगवान बुद्ध बड़े ही शांत मन से उन सबकी बातें सुनकर उन्हें समाधान बता रहे थे। अंततः उस गरीब व्यक्ति का भी नंबर आया। वह तथागत के सम्मुख खड़ा था वह बोला-महात्मन्, ईश्वर ने सबको इतनी खुशियां दी हैं, धन-धान्य दिया है, पर ईश्वर ने मुझे इतनी गरीबी और दुख क्यों दिया है?

मैंने भला ऐसा कौन सा पापकर्म किया है, जिसके कारण मैं गरीबी और दुखों से भरा जीवन जीने के लिए विवश हूं। इस गरीब की बातें सुनकर, भगवान बुद्ध बड़े ही करुणा भरे स्वर में बोले- वत्स, क्या तुमने कभी किसी को कुछ दिया है। वह बोला- प्रभु भला मैं किसी को क्या दे सकता हूं, मेरे पास किसी को देने के लिए है ही क्या ? मैं तो स्वयं बड़ी मुश्किल से अपना और परिवार का भरण-पोषण कर पाता हूं। कई बार तो हमारे पूरे परिवार को भूखे पेट ही सोना पड़ता है। 

यह सुनकर तथागत बोले- भगवान ने तुम्हें सुंदर चेहरा दिया है, जिससे तुम लोगों को मुस्कराहट दे सकते हो, तुम्हें सुंदर मुख दिया है, जिससे तुम लोगों की प्रशंसा कर सकते हो, भगवान ने तुम्हें दो हाथ दिए हैं, जिससे तुम लोगों की मदद कर सकते हो। जिसके पास ये तीन चीजें हैं वह भला गरीब कैसे हो सकता है ? तुम लोगों को देना सीख लो, उनकी मदद करना शुरू कर दो। अपनी मुस्कराहट और प्रशंसा के शब्द लोगों में बांटना शुरू कर दो। अपने दोनों हाथों से लोगों की जितनी मदद कर सकते हो करना शुरू कर दो। फिर तुम कभी गरीब नहीं रहोगे। 

उस व्यक्ति को अब अपनी समस्या का समाधान मिल चुका था। उसे अपनी गरीबी और दुख के कारणों का पता चल चुका था। वह भी एक नए आत्मविश्वास व चेहरे पर एक अप्रतिम मुस्कराहट व शांति लिए वहां से चल पड़ा। उस दिन से उसके जीवन की दिशा बदल गई। वह, वह नहीं रह गया जो वह अभी-अभी बुद्ध से मिलने के कुछ पल पूर्व तक था। उसकी जीवनदृष्टि बदल चुकी थी और जीवन की दिशा भी। 

अब लोगों की सेवा में, सहायता में निरत रहने लगा। लोगों को खुशी देकर वह भी प्रसन्न रहने लगा। कड़ी मेहनत व पुरुषार्थ के बल पर वह भी औरों की तरह समृद्ध व सुखी हो गया। निश्चित ही हममें से हर कोई इसे अपने जीवन में अपनाकर अनंत गुनी खुशियां पा सकता है। स्वयं के लिए पशु-पक्षी व अन्य प्राणी भी जी लेते हैं। पर मनुष्य विधाता की सर्वोत्कृष्ट कृति है, और हमें इस जगत में रहते हुए अपनी सर्वोत्कृष्टता का परिचय अपने आचरण से देना ही चाहिए।

तकलीफ में शांत रहें

तकलीफ में शांत रहें

हम अपनी कमजोरियों पर ही नहीं, बल्कि उनसे उबरने के रास्तों पर विचार करेंगे, तभी हमारी तरक्की का रास्ता खुलेगा। अंग्रेजी में 'प्रतिस्पर्द्धा' के लिए 'कॉम्पिटिशन' और ईर्ष्या के लिए 'जेलसी' शब्द का प्रयोग हुआ है। 

तकलीफ में शांत रहें

इसी ईर्ष्या के कारण कई बार हम दूसरों को जरूरत से ज्यादा परखने लगते हैं, तो कई बार छोटी-छोटी बातों से प्रभावित होकर अपने जीवन को बोझिल बना देते हैं। किसी के बारे में जल्द राय बनाने की आदत भारी असर डालती है। 

मोटिवेशनल स्पीकर राजीव विज कहते हैं, 'जो जैसा है, उसे वैसा रहने दें। आप अपनी जिंदगी जिएं। अपने कौशल पर भरोसा करते हुए आगे बढ़ें।' हर व्यक्ति को आगे बढ़ने का अधिकार है। याद रखें, जिस प्रगति में सहजता होती है, उसका परिणाम सुखद होता है। किसी को गिराकर या काटकर आगे बढ़ने का विचार कभी सुखद नहीं होता।

स्वामी रामतीर्थ ने ब्लैकबोर्ड पर एक लकीर खींची और कक्षा में उपस्थित छात्रों से बिना स्पर्श किए उसे छोटी करने का निर्देश दिया। ज्यादातर विद्यार्थी उस निर्देश का मर्म नहीं समझ सके। लेकिन एक विद्यार्थी की बुद्धि प्रखर थी। उसने उस लकीर के पास एक बड़ी लकीर खींच दी। स्वामी रामतीर्थ बहुत प्रसन्न हुए। 

अपनी योग्यता और समाधान से विकास करते हुए बड़ा बनना चाहिए। हम अपने दुःखों से नहीं, दूसरों के सुख से ज्यादा परेशान होते हैं। पर कई बार हम ज्यादा ही परेशान हो जाते हैं। जरूरत खुद को काबू में रखने की होती है, लेकिन हम दूसरों को काबू में करने में जुटे रहते हैं। रूमी कहते हैं, 'तूफान को शांत करने की कोशिश छोड़ दें। खुद को शांत होने दें। तूफान तो गुजर ही जाता है।'

कर्म और भाग्य - बहुत ही प्रेरक कथा

 कर्म और भाग्य

एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग अलग क्यों होते हैं? कभी न कभी सबके मन में ये बात आती है, तो चलिए आज जानते हैं।

कर्म और भाग्य - बहुत ही प्रेरक कथा

एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया कि जो मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों?इसका क्या कारण है ?

राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये। क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके भाग्य अलग अलग क्यों हैं?सब सोच में पड़ गये। तभी एक वृद्ध खड़े हुये और बोले महाराज की जय हो ! 

आपके प्रश्न का उत्तर भला कौन दे सकता है , आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में यदि जाएँ तो वहां पर आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है।

राजा की जिज्ञासा बढ़ी और घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार (गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं। सहमे हुए राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा - "तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है मैं भूख से पीड़ित हूँ। तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं वे दे सकते हैं।

राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी..

पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचे, किन्तु यह क्या महात्मा को देखकर राजा हक्का बक्का रह गये, दृश्य ही कुछ ऐसा था। वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे।

राजा के सवाल पूछते ही महात्मा ने भी डांटते हुए कहा - "मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास इतना समय नहीं है। आगे जाओ पहाड़ियों के उस पार एक आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है, जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा। सूर्योदय से पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर दे सकता है।"

सुन कर राजा बड़ा बेचैन हुआ बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न।उत्सुकता प्रबल थी कुछ भी हो यहाँ तक पहुँच चुका हूँ वहाँ भी जाकर देखता हूँ क्या होता है?

राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर किसी तरह प्रातः होने तक उस गाँव में पहुंचा, गाँव में पता किया और उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही और शीघ्रता से बच्चा लाने को कहा। जैसे ही बच्चा हुआ दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया।

राजा को देखते ही बालक ने हँसते हुए कहा राजन्! मेरे पास भी समय नहीं है, किन्तु अपना उत्तर सुनो लो –

तुम, मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों भाई व राजकुमार थे। एकबार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में भटक गए। तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे। अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली जैसे तैसे हमने चार बाटी सेकीं और अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा आ गये।

अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा –"बेटा मैं दस दिन से भूखा हूँ अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो। मुझ पर दया करो जिससे मेरा भी जीवन बच जाय, इस घोर जंगल से पार निकलने की मुझमें भी कुछ सामर्थ्य आ जायेगी।"

इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले “तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या आग खाऊंगा ?

चलो भागो यहां से ….।

वे महात्मा जी फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही। किन्तु उन भइया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या अपना मांस नोचकर खाऊंगा।

भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये।

मुझसे भी बाटी मांगी… तथा दया करने को कहा किन्तु, मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ।

बालक बोला - अंतिम आशा लिये वो महात्मा हे राजन! आपके पास आये, आपसे भी दया की याचना की। सुनते ही आपने उनकी दशा पर दया करते हुये ख़ुशी से अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी।

बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और जाते हुए बोले - तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा। 

बालक ने कहा - इस प्रकार हे राजन ! उस घटना के आधार पर हम अपना भोग, भोग रहे हैं। 

"धरती पर एक समय में अनेकों फूल खिलते हैं, किन्तु सबके फल रूप, गुण, आकार-प्रकार, स्वाद में भिन्न होते हैं" ..।

इतना कहकर वह बालक मर गया। जो असंख्य जीवो के लिए दुर्लभ है, वह मनुष्य जन्म हमें दिया। जहाँ असंख्य जीवो को कूड़ा ढूंढने पर भी भोजन नहीं मिलता वहां हमे ईश्वर ने धनवान कुल में जन्म दिया। ईश्वर ने हम पर भरोसा किया कि हम सब जीवों को सुख देंगे इसी लिए ईश्वर ने हमें यह सब कुछ दिया। 

उपदेशात्मक कहानियां - शिक्षा से बड़ा तजुर्बा

शिक्षा से बड़ा तजुर्बा

एक राजा की बेटी की शादी होनी थी। बेटी की यह शर्त थी कि जो भी 20 तक की गिनती सुनाएगा, वही राजकुमारी का पति बनेगा। गिनती ऐसी होनी चाहिए जिसमें सारा संसार समा जाए। जो यह गिनती नहीं सुना सकेगा, उसे 20 कोड़े खाने पड़ेंगे। यह शर्त केवल राजाओं के लिए ही थी।

उपदेशात्मक कहानियां - शिक्षा से बड़ा तजुर्बा

अब एक तरफ राजकुमारी का वरण और दूसरी तरफ कोड़े! एक-एक करके राजा-महाराजा आए। राजा ने दावत का आयोजन भी किया। मिठाई और विभिन्न पकवान तैयार किए गए। पहले सभी दावत का आनंद लेते हैं, फिर सभा में राजकुमारी का स्वयंवर शुरू होता है।

एक से बढ़कर एक राजा-महाराजा आते हैं। सभी गिनती सुनाते हैं, जो उन्होंने पढ़ी हुई थी, लेकिन कोई भी ऐसी गिनती नहीं सुना पाया जिससे राजकुमारी संतुष्ट हो सके।

अब जो भी आता, कोड़े खाकर चला जाता। कुछ राजा तो आगे ही नहीं आए। उनका कहना था कि गिनती तो गिनती होती है, राजकुमारी पागल हो गई है। यह केवल हम सबको पिटवा कर मज़े लूट रही है। यह सब नज़ारा देखकर एक हलवाई हंसने लगा। वह कहता है, "डूब मरो राजाओं, आप सबको 20 तक की गिनती नहीं आती!" यह सुनकर सभी राजा उसे दंड देने के लिए कहने लगे। 

राजा ने उससे पूछा, "क्या तुम गिनती जानते हो? यदि जानते हो तो सुनाओ।" हलवाई कहता है, "हे राजन, यदि मैंने गिनती सुनाई तो क्या राजकुमारी मुझसे शादी करेगी? क्योंकि मैं आपके बराबर नहीं हूँ और यह स्वयंवर भी केवल राजाओं के लिए है, तो गिनती सुनाने से मुझे क्या फायदा?"

पास खड़ी राजकुमारी बोलती है, "ठीक है, यदि तुम गिनती सुना सको तो मैं तुमसे शादी करूँगी और यदि नहीं सुना सके तो तुम्हें मृत्युदंड दिया जाएगा।"

सब देख रहे थे कि आज तो हलवाई की मौत तय है। हलवाई को गिनती बोलने के लिए कहा गया। राजा की आज्ञा लेकर हलवाई ने गिनती शुरू की:

"एक भगवान,

दो पक्ष,

तीन लोक,

चार युग,

पांच पांडव,

छह शास्त्र,

सात वार,

आठ खंड,

नौ ग्रह,

दस दिशा,

ग्यारह रुद्र,

बारह महीने,

तेरह रत्न,

चौदह विद्या,

पन्द्रह तिथि,

सोलह श्राद्ध,

सत्रह वनस्पति,

अठारह पुराण,

उन्नीसवीं तुम और

बीसवां मैं…"

सब लोग हक्के-बक्के रह गए। राजकुमारी हलवाई से शादी कर लेती है .इस गिनती में संसार की सारी वस्तुएं मौजूद हैं। यहाँ शिक्षा से बड़ा तजुर्बा है।

वृद्धाश्रम

वृद्धाश्रम

एक लगभग 80 वर्ष की वृद्धा ने‌ खाना परोस रहे व्यक्ति के कान में ‌धीमे से कहा- बेटा जुगल ! बड़े दिनों से गुलाब जामुन खाने का मन‌ है । अगली बार आइयो तो बाबू लेके आइयो।

वृद्धाश्रम

जुगल मुस्कुराते हुए बोला - ठीक है अम्मा ले आऊँगा, पर तुम्हें मेरी क़सम है, एक पीस ही खाइयो, जे सब डाॅक्टर ने तुम्हें मना कर रक्खा है और हॅंसते हुए आगे खाना परोसने लगा ।

अभी जुगल खाना परोसते हुए आगे बढ़ा ही था कि धीरे धीरे खाना खा रहे एक बूढ़े व्यक्ति ने कहा - जुगल इस बार पूरे दो महीने में आया है, बेटे सबने तो हमें भूला ही रखा है, तू भी हमसे पीछा छुड़ाना चाह रहा है क्या?

जुगल ने मुस्कुराते हुए कहा - बाबा मैं तुम्हारा तब तक पीछा ना छोडूँगा, जब तक तुम्हें लोटे में भरकर हरिद्वार ना पहुँचा दूँ ।

यह सुनकर सब ठहाका लगाकर हँस पड़े ।

ये दृश्य था मेरठ शहर में बने एक वृद्धाश्रम का । लगभग 150 बुजुर्ग इस आश्रम में अपने बुढ़ापे के दिन सम्मान के साथ बिताने के लिए रहते हैं। कईं तो अच्छे सम्भ्रांत परिवारों से ताल्लुक रखते हैं, तथा कोई ख़ुद अच्छी नौकरी से सेवानिवृत्त था ।

किसी को औलाद ने घर से निकाल दिया था, तो कोई ख़ुद ही घर छोड़कर आ गया था ।

दिल को जब कोई बात लग जाती है तो इंसान‌ बड़े बड़े पद धन‌ दौलत महल दुमहले सब छोड़कर चला आता है।

आपने सुना होगा कि फलां व्यक्ति के इतने बच्चे हैं, फलां के उतने, मगर यहाँ 150 व्यक्तियों की एक ही औलाद थी जुगल ।

किसी का बाबू, किसी का बच्चवा, किसी का जुगू तो किसी का जुगल बेटा ।

जुगल इस वृद्धाश्रम का मालिक नही है और नहीं इसका मैनेजर है।

लेकिन जबसे यह वृद्धाश्रम बना है महीने में दो बार ज़रूर ही जुगल यहाँ आता है और अपना समय इन बुजुर्गों के साथ हँसते हँसाते व्यतीत करता है । अपने बच्चों के जन्मदिन पर, त्योहारों पर भी जुगल का नियमित आना होता है। ये आश्रम ऐसी जगह है, जहाँ जुगल के अनगिन मम्मी पापा, ताऊ ताई, चाचा चाची, दादी बाबा रहते हैं।

जुगल एक मध्यम वर्गीय परिवार से, साधारण कद काठी व्यक्ति था । जीवनयापन के लिए दूध की डेरी लगा रखी थी।

इस वृद्धाश्रम से जुड़ाव का एक और कारण भी था, जुगल को विश्वास हो गया था कि जब से वह आश्रम में आने लगा है उस पर ईश्वर की अनुकम्पा बहुत अधिक बढ़ गई है। दूसरा जुगल ने अपने परिवार में तीन तीन पीढ़ियों को एक दूसरे की सेवा करते हुए देखा था।

जुगल जान गया था कि निश्च्छल मन से की गयी सेवा का साक्षी स्वयं ईश्वर होता है।

इन पिछले दस सालों में जुगल ने आश्रम में प्राण त्यागने वालों के सारे संस्कार अपने आप किए, उसी विधि विधान से जैसे एक बेटा करता है।

केवल सगा बेटा, बेटा नहीं होता। संवेदनाओं के रिश्ते, ख़ून के रिश्तों से भी अधिक अपने होते हैं।

पिछली दीपावली की बात ही ले लो, मनसुख बाबा ने ज़िद पकड़ ली कि मुझे वो ही कुर्ता पहनना है जो जुगल लाया था। जबकि वो कुर्ता तो दो महीने पहले ही फट चुका था। मगर क्या करें बुढ़ापे और बचपन का स्वभाव बिल्कुल एक जैसा होता है। मनसुख बाबा ने ज़िद पकड़ ली तो पकड़ ली, केयर टेकर ने मैनेजर को बताया कि बाबा ने आज सुबह से खाना नहीं खाया है और ये ज़िद पकड़ ली है। मैनेजर ने जुगल को फोन किया तथा जुगल की मनसुख बाबा से बात कराई। जुगल ने बाबा को समझाया, तब जाकर बाबा ने खाना खाया।

दोपहर तक रूपए पैसों का जुगाड़ करके, शाम को लक्ष्मी जी पूजा करके जुगल पत्नी और बच्चों के साथ वृद्धाश्रम पहुंच गए। जैसे ही बुजुर्गों ने जुगल को अपने बीच देखा खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सबसे पहले जुगल मनसुख बाबा के पास पहुंच और कुर्ता पायजामा मनसुख बाबा को देते हुए बोला- ये लो बाबा अब तैयार हो जाओ। जुगल के बच्चे मनसुख को कपड़े पहनाने लगे तथा जुगल धीरे धीरे सभी बुजुर्गों को कपड़े देता और ख़ूब आशीर्वाद प्राप्त करता।

सभी के साथ रात का खाना खाकर जुगल अपने घर वापिस लौट आया।

दीपावली से दो दिन बाद फिर मैनेजर का फोन‌ जुगल के पास आया कि मनसुख बाबा की तबीयत ख़राब हो गई है। वो तुम्हें ही बुला रहे हैं। थोड़ी देर बाद‌ जुगल पहुंच तो पता चला कि बाबा कुछ ही घंटों के मेहमान है। बाबा ने इशारा करके जुगल से अपना बैग खोलने के लिए कहा। जुगल ने बाबा का बैग खोलकर देखा तो एक मैली सी कतरन में कुछ बंधा हुआ है। बाबा ने उसे जुगल की जेब में रख दिया और एक लम्बी सांस लेकर दुनिया को राम नाम सत्य कह दिया।

बाबा के क्रियाकर्म आदि के चक्कर में जुगल को उस छोटी सी पोटली को खोलने का समय नहीं मिला। क्रियाकर्म आदि से निपटकर जब जुगल घर आकर नहाने के लिए कपड़े उतार रहा था, तब वो पोटली नीचे गिरी तो‌ जुगल को याद आया, जुगल ने उसे खोलकर देखा तो बहुत जोर जोर से रोने लगा, उसकी पत्नी और बच्चे भी वहाँ आ गये।

जुगल की पत्नी ने जब उस पोटली को अपने हाथ में लिया और देखा तो उसमें दस बीस पचास के बहुत सारे नोट है, पत्नी ने नोट गिने तो दो हज़ार रूपए निकले।

मनसुख बाबा अंत समय में जुगल को अपना असली‌ वारिस बना गये।

जुगल की पत्नी ने जुगल को सम्भाला और कहा कि ये वो दौलत है जो हर औलाद के हिस्से में नहीं आती।

तुम मनसुख बाबा के असली‌ वारिस हो।

वैश्या और सन्यासी

वैश्या और सन्यासी

एक वैश्या मरी और उसी दिन उसके सामने रहने वाला बूढ़ा सन्यासी भी मर गया,संयोग की बात है। देवता लेने आए सन्यासी को नरक में और वैश्या को स्वर्ग में ले जाने लगे। संन्यासी एक दम अपना डंडा पटक कर खड़ा हो गया, तुम ये कैसा अन्याय कर रहे हो? मुझे नरक में और वैश्या को स्वर्ग में ले जा रहे हो,जरूर कोई भूल हो गई है तुमसे। कोई दफ्तर की गलती रही होगी, पूछताछ करो।

वैश्या और सन्यासी

मेरे नाम आया होगा स्वर्ग का संदेश और इसके नाम नर्क का। मुझे परमात्मा का सामना कर लेने दो, दो दो बातें हो जाए, सारा जीवन बीत गया शास्त्र पढ़ने में और ये परिणाम। मुझे नाहक परमात्मा ने धोखे में डाला। उसे परमात्मा के पास ले जाया गया।

परमात्मा ने कहा इसके पीछे एक गहन कारण है। वैश्या शराब पीती थी, भोग में रहती थी, पर जब तुम मंदिर में बैठकर भजन गाते थे, धूप दीप जलाते थे, घंटियां बजाते थे, तब वह सोचती थी कब मेरे जीवन में यह सौभाग्य होगा? मैं मंदिर में बैठकर भजन कर पाऊंगी कि नहीं। वह ज़ार जार रोती थी और तुम्हारे धूप दीप की सुगंध जब उसके घर में पहुंचती थी, तो वह अपना अहोभाग्य समझती थी। घंटियों की आवाज सुनकर मस्त हो जाती थी। 

लेकिन तुम्हारा मन पूजापाठ करते हुए भी यही सोचता कि वैश्या है तो सुंदर पर वहां तक कैसे पंहुचा जाए? तुम हिम्मत नहीं जुटा पाए। तुम्हारी प्रतिष्ठा आड़े आई--गांव भर के लोग तुम्हें संयासी मानते थे।जब वैश्या नाचती थी, शराब बंटती थी, तुम्हारे मन में वासना जगती थी। 

तुम्हें रस्क था। खुद को अभागा समझते रहे। इसलिए वैश्या को स्वर्ग लाया गया और तुम्हें नरक में। वेश्या को विवेक पुकारता था तुम्हें वासना। वह प्रार्थना करती थी तुम इच्छा रखते थे वासना की। वह कीचड़ में थी पर कमल की भांति ऊपर उठती गई और तुम कमल बनकर आए थे कीचड़ में धंसे रहे। असली सवाल यह नहीं कि तुम बाहर से क्या हो? असली सवाल तो यह है कि तुम भीतर से क्या हो? भीतर ही निर्णायक है।

बुराई एक दिन हार जाती है

बुराई का अंत

एक सांप को एक बाज़ आसमान पे ले कर उड रहा था। अचानक पंजे से सांप छूट गया और कुवें मे गिर गया बाज़ ने बहुत कोशिश की अखिर थक हार कर चला गया। सांप ने देखा कि कुवें में बड़े बड़े मेढक मौजूद थे। पहले तो डरा फिर एक सूखे चबूतरे पर जा बैठा और मेढकों के प्रधान को लगा खोजने। 

बुराई का अंत

अखिर उसने एक मेढक को बुलाया और कहा मैं सांप हूँ मेरा ज़हर तुम सब को पानी में मार देगा। ऐसा करो रोज़ एक मेढक तुम मेरे पास भेजा करो, वह मेरी सेवा करेगा और तुम सब बहुत आराम से रह सकते हो। पर याद रखना एक मेढक रोज़ रोज़ आना चाहिए। एक एक कर के सारे मेढक सांप खा गया। 

जब अकेले प्रधान मेढक बचा तब सांप चबूतरे से उतर कर पानी मे आया और बोला प्रधान जी आज आप की बारी है। प्रधान मेढक ने कहा मेरे साथ विश्वास घात ? सांप बोला जो अपनो के साथ विश्वास घात करता है उसका यही अंजाम होता है। फिर उसने प्रधान जी को गटक लिया।

कुछ देर के बाद साँप आहिस्ता आहिस्ता कुवें के ऊपर आ कर चबूतरे पर लेट गया। तभी एक बाज़ ने आ कर साँप को दबोच लिया। पहचान साँप मुझे मैं वही बाज़ हूँ जिसके बच्चे तूने पिछले साल खा लिये थे और जब तुझे पकड़ कर ले जा रहा था तब तू मेरे पंजे से छूट कर कुवें मे जा गिरा था। 

तब से मैं रोज़ तेरी हरकत पर नज़र रखता था। आज तू सारे मेढक खा कर काफी मोटा हो गया। मेरे फिर से बच्चे बड़े हो रहे है वह तुझे ज़िंदा नोच नोच कर अपने भाई बहनो का बदला लेंगे। फिर बाज़ साँप को लेकर उड़ गया अपने घोसले की तरफ। 

बुराई एक दिन हार ही जाती है वह चाहे कितनी भी ताक़तवर हो..!!

बिल्ली और कुत्ता

बिल्ली और कुत्ता

एक दिन की बात है। एक बिल्ली कहीं जा रही थी। तभी अचानक एक विशाल और भयानक कुत्ता उसके सामने आ गया। कुत्ते को देखकर बिल्ली डर गई। कुत्ते और बिल्ली जन्म-बैरी होते हैं। बिल्ली ने अपनी जान का ख़तरा सूंघ लिया और जान हथेली पर रखकर वहाँ से भागने लगी। किंतु फुर्ती में वह कुत्ते से कमतर थी। थोड़ी ही देर में कुत्ते ने उसे दबोच लिया। 

बिल्ली और कुत्ता

बिल्ली की जान पर बन आई। मौत उसके सामने थी। कोई और रास्ता न देख वह कुत्ते के सामने गिड़गिड़ाने लगी, किंतु कुत्ते पर उसके गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ। वह उसे मार डालने को तत्पर था। तभी अचानक बिल्ली ने कुत्ते के सामने एक प्रस्ताव रख दिया, “यदि तुम मेरी जान बख्श दोगे, तो कल से तुम्हें भोजन की तलाश में कहीं जाने की आवश्यता नहीं रह जायेगी। मैं यह ज़िम्मेदारी उठाऊंगी। मैं रोज़ तुम्हारे लिए भोजन लेकर आऊंगी। तुम्हारे खाने के बाद यदि कुछ बच गया, तो मुझे दे देना। मैं उससे अपना पेट भर लूंगी।”


कुत्ते को बिना मेहनत किये रोज़ भोजन मिलने का यह प्रस्ताव जम गया। उसने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। लेकिन साथ ही उसने बिल्ली को आगाह भी किया कि धोखा देने पर परिणाम भयंकर होगा। बिल्ली ने कसम खाई कि वह किसी भी सूरत में अपना वादा निभायेगी। 


कुत्ता आश्वस्त हो गया। उस दिन के बाद से वह बिल्ली द्वारा लाये भोजन पर जीने लगा। उसे भोजन की तलाश में कहीं जाने की आवश्यकता नहीं रह गई। वह दिन भर अपने डेरे पर लेटा रहता और बिल्ली की प्रतीक्षा करता। बिल्ली भी रोज़ समय पर उसे भोजन लाकर देती। इस तरह एक महिना बीत गया। महीने भर कुत्ता कहीं नहीं गया। वह बस एक ही स्थान पर पड़ा रहा। एक जगह पड़े रहने और कोई भागा-दौड़ी न करने से वह बहुत मोटा और भारी हो गया। 


एक दिन कुत्ता रोज़ की तरह बिल्ली का रास्ता देख रहा था। उसे ज़ोरों की भूख लगी थी, किंतु बिल्ली थी कि आने का नाम ही नहीं ले रही थी। बहुत देर प्रतीक्षा करने के बाद भी जब बिल्ली नहीं आई, तो अधीर होकर कुत्ता बिल्ली को खोजने निकल पड़ा। 


वह कुछ ही दूर पहुँचा था कि उसकी दृष्टि बिल्ली पर पड़ी। वह बड़े मज़े से एक चूहे पर हाथ साफ़ कर रही थी।  कुत्ता क्रोध से बिलबिला उठा और गुर्राते हुए बिल्ली से बोला, “धोखेबाज़ बिल्ली, तूने अपना वादा तोड़ दिया। अब अपनी जान की खैर मना।”


इतना कहकर वह बिल्ली की ओर लपका। बिल्ली पहले ही चौकस हो चुकी थी। वह फ़ौरन अपनी जान बचाने वहाँ से भागी। कुत्ता भी उसके पीछे दौड़ा। किंतु इस बार बिल्ली कुत्ते से ज्यादा फुर्तीली निकली। कुत्ता इतना मोटा और भारी हो चुका था कि वह अधिक देर तक बिल्ली का पीछा नहीं कर पाया और थककर बैठ गया। इधर बिल्ली चपलता से भागते हुए उसकी आँखों से ओझल हो गई। 

इसीलिए हमारे बड़े बुजुर्ग कह गए कि दूसरों पर निर्भरता अधिक दिनों तक नहीं चलती। यह हमें कामचोर और कमज़ोर बना देती है। जीवन में सफ़ल होना है,तो आत्मनिर्भर बनो। 

बासी पिज्जा के वो आठ टुकड़े

बासी पिज्जा के वो आठ टुकड़े 

पत्नी ने कहा - आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना। 

पति- क्यों??

उसने कहा - अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आएगी। 

पति- क्यों??

पत्नी - गणपति के लिए अपने नाती से मिलने बेटी के यहाँ जा रही है, बोली थी। 

पति- ठीक है, अधिक कपड़े नहीं निकालता। 

बासी पिज्जा के वो आठ टुकड़े


पत्नी - और हाँ! गणपति के लिए पाँच सौ रूपए दे दूँ उसे? त्यौहार का बोनस। 

पति- क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगे। 

पत्नी - अरे नहीं बाबा! गरीब है बेचारी, बेटी-नाती के यहाँ जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा और इस महँगाई के दौर में उसकी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी?

पति- तुम भी ना, जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो। 

पत्नी- अरे नहीं, चिंता मत करो मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ। खामख्वाह पाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे। 

पति- वाह, वाह क्या कहने! हमारे मुँह से पिज्जा छीनकर बाई की थाली में??

तीन दिन बाद - पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई से पति ने पूछा...

पति- क्या बाई?, कैसी रही छुट्टी?

बाई- बहुत बढ़िया हुई साहब। दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना, त्यौहार का बोनस। 

पति- तो जा आई बेटी के यहाँ, मिल ली अपने नाती से?

बाई- हाँ साब! मजा आया, दो दिन में 500 रूपए खर्च कर दिए। 

पति- अच्छा!! मतलब क्या किया 500 रूपए का?

बाई- नाती के लिए 150 रूपए का शर्ट, 40 रूपए की गुड़िया, बेटी को 50 रूपए के पेड़े लिए, 50 रूपए के पेड़े मंदिर में प्रसाद चढ़ाया, 60 रूपए किराए के लग गए.. 25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए और जमाई के लिए 50 रूपए का बेल्ट लिया अच्छा सा… बचे हुए 75 रूपए नाती को दे दिए कॉपी-पेन्सिल खरीदने के लिए। झाड़ू-पोंछा करते हुए पूरा हिसाब उसकी ज़बान पर रटा हुआ था। 

पति- 500 रूपए में इतना कुछ?

वह आश्चर्य से मन ही मन विचार करने लगा। उसकी आँखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा सा पिज्ज़ा घूमने लगा, एक-एक टुकड़ा उसके दिमाग में हथौड़ा मारने लगा। अपने एक पिज्जा के खर्च की तुलना वह कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने लगा। पहला टुकड़ा बच्चे की ड्रेस का, दूसरा टुकड़ा पेड़े का, तीसरा टुकड़ा मंदिर का प्रसाद, चौथा किराए का, पाँचवाँ गुड़िया का, छठवां टुकड़ा चूडियों का, सातवाँ जमाई के बेल्ट का और आठवाँ टुकड़ा बच्चे की कॉपी-पेन्सिल का। आज तक उसने हमेशा पिज्जा की एक ही बाजू देखी थी, कभी पलटाकर नहीं देखा था कि पिज्जा पीछे से कैसा दिखता है, लेकिन आज कामवाली बाई ने उसे पिज्जा की दूसरी बाजू दिखा दी थी। पिज्जा के आठ टुकड़े उसे जीवन का अर्थ समझा गए थे। “जीवन के लिए खर्च” या “खर्च के लिए जीवन” का नवीन अर्थ एक झटके में उसे समझ आ गया। 

जोकर की सीख || Joker's lesson

जोकर की सीख

एक बार एक जोकर सर्कस में लोगों को एक चुटकुला सुना रहा था। चुटकुला सुनकर लोग खूब जोर-जोर से हंसने लगे। कुछ देर बाद जोकर ने वही चुटकुला दुबारा सुनाया। अबकी बार कम लोग हंसे। थोडा और समय बीतने के बाद तीसरी बार भी जोकर ने वही चुटकुला सुनाना शुरू किया।

जोकर की सीख || Joker's lesson

पर इससे पहले कि वो अपनी बात ख़त्म करता बीच में ही एक दर्शक बोला, “अरे ! कितनी बार एक ही चुटकुला सुनाओगे। कुछ और सुनाओ अब इस पर हंसी नहीं आती।”

जोकर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, “धन्यवाद भाई साहब, यही तो मैं भी कहना चाहता हूँ, जब ख़ुशी के एक कारण की वजह से आप लोग बार-बार खुश नहीं हो सकते तो दुःख के एक कारण से बार-बार दुःखी क्यों होते हो, भाइयों हमारे जीवन में अधिक दुःख और कम ख़ुशी का यही कारण है। हम ख़ुशी को आसानी से छोड़ देते हैं, पर दुःख को पकड़ कर बैठे रहते हैं।”

सही बात है ना, जीवन में सुख-दुःख का आना-जाना लगा रहता है। पर जिस तरह एक ही खुशी को हम बार-बार नहीं महसूस करना चाहते उसी तरह हमें एक ही दु:ख से बार-बार दुःखी नहीं महसूस करना चाहिए। जीवन में सफलता तभी मिलती है, जब हम दु:खों को भूलकर आगे बढने का प्रयत्न करते हैं।

English Translate

Joker's lesson

Once a joker was telling a joke to the people in the circus. People started laughing loudly after hearing the joke. After some time the joker told the same joke again. This time fewer people laughed. After some more time the joker started telling the same joke for the third time.

But before he could finish his talk, a spectator interrupted him, "Hey! How many times will you tell the same joke? Tell something else, now this is not funny."

The joker became a little serious and said, "Thank you brother, this is what I also want to say, when you people cannot be happy again and again due to one reason of happiness, then why do you become sad again and again due to one reason of sadness, brothers this is the reason for more sadness and less happiness in our life. We let go of happiness easily, but keep holding on to sadness."

That is right, happiness and sadness keep coming and going in life. But just as we do not want to experience the same happiness again and again, similarly we should not feel sad again and again due to the same sorrow. We get success in life only when we forget our sorrows and try to move forward.


जीवन का संघर्ष

जीवन का संघर्ष

एक बार एक व्यक्ति को अपने उद्यान में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून दिखाई पड़ा। अब प्रतिदिन वो व्यक्ति उसे देखने लगा और एक दिन उसने देखा कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया है। उस दिन वो वहीं बैठ गया और घंटों उसे देखता रहा। उसने देखा की तितली उस खोल से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है, पर बहुत देर तक प्रयास करने के बाद भी वो उस छेद से नहीं निकल पायी और फिर वो बिल्कुल शांत हो गयी मानो उसने हार मान ली हो। 
जीवन का संघर्ष
इसलिए उस व्यक्ति ने निश्चय किया कि वो उस तितली की मदद करेगा। उसने एक कैंची उठायी और कोकून की उस छेद को इतना बड़ा कर दिया की वो तितली आसानी से बाहर निकल सके और हुआ भी यही , तितली बिना किसी और संघर्ष के आसानी से बाहर निकल आई, पर उसका शरीर सूजा हुआ था और पंख सूखे हुए थे। 

वो व्यक्ति तितली को ये सोच कर देखता रहा कि वो किसी भी वक़्त अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसके उलट बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और उसे अपनी बाकी की ज़िन्दगी इधर-उधर घिसटते हुए बीतानी पड़ी। 

वो व्यक्ति अपनी दया और जल्दबाजी में ये नहीं समझ पाया की दरअसल कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसलिए बनाया है ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल उसके पंखों में पहुंच सके और वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके। 

वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही वो चीज होती है, जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है। यदि हम बिना किसी प्रयत्न के सब कुछ पाने लगे, तो हम भी एक अपंग के सामान हो जायेंगे। बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते, जितना हमारी क्षमता है। इसलिए जीवन में आने वाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये, वो कठिन पल कुछ ऐसा सीखा जायेंगें, जिससे हम अपनी ज़िन्दगी की उड़ान को सफल बना पायेंगे..!!

मन

मन

हमारा मन अति सूक्ष्म है, पर है बड़ा शक्तिशाली। अगर हमने अपने मन को काबू में कर लिया तो मानो सारी दुनिया को काबू में कर लिया। चलिए एक उदहारण से समझते हैं - जैसे एक घर होता, घर में उससे छोटा कमरा होता है, कमरे से छोटा उसका दरवाजा होता है, दरवाजे से छोटी उसकी कुंडी होती है, कुंडी से भी छोटा ताला होता है और ताले से छोटी चाबी होती है। छोटी सी चॉबी से ताला लगाते ही सारे घर का कब्जा हमारी जेब में होता है। इसी प्रकार छोटे से मन को कब्जे में करते ही सारा संसार हमारे कब्जे में आ जाता है। 

मन

मजे की बात देखिए- चॉबी को एक ओर घुमाया तो ताला बंद हो जाता है और दूसरी ओर घुमाने से खुल जाता है। इसी प्रकार मन की चॉबी को परमात्मा की तरफ घुमाने से हम संसार से खुल जाते हैं और परमात्मा से बंध जाते हैं। हमारा मन हमेशा ही अनुकूलता चाहता है, इसे जरा प्रतिकूलता बर्दाश्त नहीं। ये हमेशा ही सुख चैन ढूंढ़ता है। 

मन की तुलना हाथी से की जा सकती है। हाथी को कितना भी नहला-धुला कर आप खड़ा करो, लेकिन वो फिर अपनी सूंड से मिट्टी-धूल अपने ऊपर डाल लेता है। ऐसे ही हमारे ऊपर भी जमाने की मिट्टी-धूल रोज-रोज ही गिरती रहती है। लेकिन एक समझदार महावत हाथी को नहला-धुलाकर खूंटे से बांध देता है। इसी प्रकार हम भी अपने आपको गुरु रूपी खूंटे से बांध कर रखे तो जमाने की मिट्टी-धूल से बचे रहेंगे। मन को ठीक रखने के लिए सद्विचार, सत्संग, सद्गन्थ अध्ययन की औषधि बड़ी कारगर है। इसे रोग, शोक, भोग से बचाकर रखना चाहिए।