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Black bat flower || काला चमगादड़ फूल

काला चमगादड़ फूल

वैसे तो फूलों की खुशबू व सुंदरता अनायास ही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। शायद यही कारण है कि लोग शादियों, पार्टियों से लेकर अपने घर की बालकनी तक में भी फूल अवश्य लगाते हैं, लेकिन दुनिया में एक फूल ऐसा भी है, जिसकी आकृति लोगों को डरा देती है। जी हां, ब्लैक बैट फलावर नाम से प्रसिद्ध यह फूल न सिर्फ देखने में चमगादड़ जैसा दिखता है अपितु इसका रंग भी गहरा बैंगनी है। इसका रंग व आकार ऐसा है कि इसे एक बार देखने वाला व्यक्ति दूसरी बार पलट कर अवश्य देखता है। 

Black bat flower || काला चमगादड़ फूल

यम परिवार का यह सदस्य, टैका चैंट्रीरी के असामान्य गहरे बैंगनी से काले रंग के फूल चमगादड़ के आकार के होते हैं और इनकी लंबी मूंछें होती हैं जो 28 इंच तक लंबी होती हैं। यह पौधा दक्षिण पूर्व एशिया का मूल निवासी है, जहाँ यह एक मौसम में आठ बार तक खिल सकता है।

यह ब्लैक बैट नामक यह फूल मुख्यतः थाईलैंड, मलेशिया और दक्षिणी चीन सहित दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यह बहुत ही असामान्य व असाधारण दिखने वाला फूल है, जिसके चलते इसे डेविल फ्लावर अर्थात शैतान के फूल के नाम से भी जाना जाता है। 

Black bat flower || काला चमगादड़ फूल

यह अंडरस्टोरी पौधे हैं अर्थात् यह कम से कम साठ प्रतिशत छाया में उत्पन्न होते हैं। इनके विकास के लिए उन्हीं परिस्थितियों की आवश्यकता होती है, जैसे किसी आर्किड के लिए। अच्छी तरह से सूखी मिट्टी में ही इनके बीज बोए जाते हैं। हालांकि इनके विकास के लिए उच्च आर्द्रता व पर्याप्त जल का होना अनिवार्य है। 

इन फूलों के ऊपर ब्रेट्स होते हैं जिन्हें देखने पर आभास होता है मानो चमगादड़ के पंख हों। सामान्यतः यह 12 से 15 इंच लम्बा होता है, लेकिन इसके फूलों पर कई धागों की तरह मूंछ जैसे दिखने वाले बैक्ट्स होते हैं जिसके कारण इसका आकार तकरीबन 8 से 10 इंच तक बढ़ जाता है। इस प्रकार इनका आकार तकरीबन 28 इंच तक बढ़ सकता है। इन पर पंख की तरह दिखने वाले ब्रेट्स भी गहरे बैंगनी रंग के ही होते हैं। इसके पत्ते हरे व चमकदार होते हैं। 

Black bat flower || काला चमगादड़ फूल

यह बैट फलावर तभी खिलना शुरू करता है जब इस पर कम से कम दो पत्तियों का उत्पादन हो जाए। अगर इसे सही वातावरण मिले तो इसमें विकास बहुत अधिक तीव्रता से होता है। एक सीजन में यह 8 गुना तक बढ़ सकता है। यह मुख्यतः फलोरिडा में खिलता है तथा जब गर्मियां खत्म होने की कगार पर होती हैं, तब यह झड़ना प्रारंभ कर देता है। 

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Black Bat Flower

Although the fragrance and beauty of flowers attract people involuntarily. Perhaps this is the reason why people plant flowers in weddings, parties and even in the balcony of their house, but there is a flower in the world whose shape scares people. Yes, this flower, famous by the name of Black Bat Flower, not only looks like a bat, but its color is also dark purple. Its color and shape are such that a person who sees it once, definitely looks back for the second time.

Black bat flower || काला चमगादड़ फूल

This member of the yam family, Tacca Chantrieri's unusual dark purple to black flowers are shaped like bats and have long antennae that are up to 28 inches long. This plant is native to Southeast Asia, where it can bloom up to eight times in a season.

This flower called Black Bat is mainly found in the tropical regions of Southeast Asia, including Thailand, Malaysia and Southern China. This is a very unusual and extraordinary looking flower, due to which it is also known as Devil Flower.

These are understory plants, that is, they grow in at least sixty percent shade. They require the same conditions for their growth as an orchid. Their seeds are sown in well-drained soil. However, high humidity and sufficient water are essential for their growth.

Black bat flower || काला चमगादड़ फूल

These flowers have bracts on them which look like bat wings. Usually it is 12 to 15 inches long, but its flowers have many thread-like whisker-like bracts due to which its size increases to about 8 to 10 inches. Thus, their size can increase to about 28 inches. The feather-like bracts on them are also dark purple in color. Its leaves are green and shiny.

This bat flower starts blooming only when at least two leaves are produced on it. If it gets the right environment, it grows very fast. It can grow up to 8 times in a season. It blooms mainly in Florida and when the summer is about to end, it starts falling.

श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर (गुजरात) || Shree Kashtabhanjan Dev Hanumanji Temple, Sarangpur

श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर

गुजरात का सारंगपुर महज 5 से 7 हजार की आबादी वाला एक छोटा सा गाँव है, जो गुजरात के शहर भावनगर से 82 और अहमदाबाद से करीब 153 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यहीं विराजमान हैं कष्टभंजन देव हनुमान, जिन्हें 'कष्टों के नाशक' भी कहा जाता है। 

श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर (गुजरात) || Shree Kashtabhanjan Dev Hanumanji Temple, Sarangpur

“कष्टभंजन” नाम का अर्थ होता है “कष्टों को दूर करने वाला” या “मुश्किलें नष्ट करने वाला”, जो भगवान हनुमान की दिव्य शक्ति को दर्शाता है, जो उनके भक्तों के सामने आने वाली समस्याओं और चुनौतियों को कम करने में सक्षम होती है। यह मान्यता है कि इस मंदिर में प्रार्थना करने और आशीर्वाद मांगने से बाधाएं दूर होती हैं, रोग ठीक होते हैं और समृद्धि और सुख स्थापित होते हैं।

कष्टभंजन हनुमान मंदिर का इतिहास 20वीं सदी का है। यहां विराजित भगवान ‘‘कष्टभंजन हनुमान’’ जी की प्रतिमा के पैरों के नीचे शनिदेव को स्त्री रूप में दर्शाया गया है। इस संबंध में यहां एक बहुत ही प्रचलित कथा है और यही कथा इस प्रतिमा के कष्टभंजन के रूप को दर्शाती है।

श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर (गुजरात) || Shree Kashtabhanjan Dev Hanumanji Temple, Sarangpur

एक प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन समय में शनिदेव का प्रकोप काफी बढ़ गया था, जिसके कारण यहां के सभी लोगों को तरह-तरह की परेशानियों और दुखों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में यहां के उस समय के स्थानीय निवासियों ने भगवान हनुमान जी से प्रार्थना की कि वे उन्हें इस संकट से मुक्ति दें।

भक्तों को कष्ट में देख कर हनुमान जी ने उनकी विनती को स्वीकार किया और उन्हें शनि के प्रकोप से बचाने के लिए इसी स्थान पर अवतरित हुए। कहा जाता है कि इसके बाद हनुमानजी शनिदेव पर क्रोधित हो गए और उन्हें दंड देने का निश्चय कर लिया। शनिदेव को जब इस बात का पता चला तो वे बहुत डर गए और हनुमानजी के क्रोध से बचने के लिए उपाय सोचने लगे।

शनिदेव जानते थे कि हनुमानजी अत्यंत नीरवधिक और ब्रह्मचारी हैं। वे किसी भी स्त्री पर अपना क्रोध नहीं निकालते थे। इसीलिए, शनिदेव ने उनके क्रोध से बचने के लिए स्त्री रूप अपनाया। वे हनुमानजी के पास चले गए और उनके पवित्र पैरों में गिर पड़े। अपने हृदय से क्षमा मांगने लगे। एक आश्वासन के बाद, हनुमानजी ने शनिदेव को क्षमा देने का निर्णय लिया। इस प्यार और क्षमा भरे संवाद में भावनाओं का आवेश उमड़ आया। यह घटना हमें यह दिखाती है कि पवित्रता, सम्मान और प्रेम के साथ हम किसी को भी माफ कर सकते हैं।

श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर (गुजरात) || Shree Kashtabhanjan Dev Hanumanji Temple, Sarangpur

मंदिर के गर्भगृह में विराजित भगवान “कष्टभंजन हनुमान” (कष्टभंजन हनुमान सरंगपुर) जी की प्रतिमा को उसी प्रचलित कथा के अनुसार कष्टभंजन के रूप में दर्शाया गया है। पर शनिदेव को हनुमानजी के चरणों में स्त्री रूप में पूजा जाता है। इस कष्टभंजन हनुमान जी के इस प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में हनुमान जी सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं, इसलिए उन्हें यहां महाराजाधिराज के नाम से भी पुकारा जाता है।और यही कारण है कि यहां हनुमान जी द्वारा भक्तों के कष्टों का निवारण करने की वजह से ही उन्हें ‘‘कष्टभंजन हनुमान’’ के नाम से जाना जाता है। 

 इसमें हनुमान जी के चारों ओर उनकी वानर सेना को दर्शाया गया है। साथ ही, कष्टभंजन देव का अति भव्य मंदिर एक राजदरबार की तरह सजे सुंदर मंदिर के विशाल और भव्य मंडप के बीच 45 किलो सोने और 95 किलो चांदी से बने एक सुंदर सिंहासन पर पवनपुत्र विराजमान होते हैं और अपने भक्तों की हर मुरादें पूरी करते हैं। इनके शीश पर हीरे जवाहरात का मुकुट है और निकट ही रखी गदा भी स्वर्ण निर्मित है।  

कष्टभंजन हनुमान जी के इस मंदिर में लोगों की श्रद्धा अटूट है, इसलिए यहां दर्शन करने आने वाले भक्तों की संख्या प्रतिदिन हजारों में होती है। लेकिन मंगलवार और शनिवार के दिन यह संख्या चार से पांच गुणा तक बढ़ जाती है।

English Translate 

Shri Kashtbhanjan Hanuman Temple

Sarangpur in Gujarat is a small village with a population of just 5 to 7 thousand, which is located at a distance of 82 km from the city of Bhavnagar in Gujarat and about 153 km from Ahmedabad, where Kashtbhanjan Dev Hanuman, who is also known as 'Kashton Ke Nashak', is seated.

श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर (गुजरात) || Shree Kashtabhanjan Dev Hanumanji Temple, Sarangpur

The name "Kashtbhanjan" means "remover of sufferings" or "destroyer of difficulties", which reflects the divine power of Lord Hanuman, who is capable of reducing the problems and challenges faced by his devotees. It is believed that praying and seeking blessings in this temple removes obstacles, cures diseases and establishes prosperity and happiness.

The history of Kashtbhanjan Hanuman Temple dates back to the 20th century. Shanidev is depicted in female form under the feet of the idol of Lord "Kashtbhanjan Hanuman" installed here. There is a very popular story in this regard and this story shows the form of this statue as a destroyer of troubles.

According to a popular story, in ancient times, the wrath of Shani Dev had increased a lot, due to which all the people here were facing various kinds of troubles and sorrows. In such a situation, the local residents of that time prayed to Lord Hanuman to free them from this crisis.

श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर (गुजरात) || Shree Kashtabhanjan Dev Hanumanji Temple, Sarangpur

Seeing the devotees in trouble, Hanuman ji accepted their request and appeared at this place to save them from the wrath of Shani. It is said that after this Hanuman ji got angry at Shani Dev and decided to punish him. When Shani Dev came to know about this, he got very scared and started thinking of ways to avoid Hanuman ji's anger.

Shani Dev knew that Hanuman ji is extremely silent and celibate. He did not vent his anger on any woman. That is why, Shani Dev adopted a female form to avoid his anger. He went to Hanuman ji and fell at his holy feet. He started asking for forgiveness from his heart. After an assurance, Hanumanji decided to forgive Shanidev. This loving and forgiving conversation brought a surge of emotions. This incident shows us that with purity, respect and love, we can forgive anyone.

The idol of Lord “Kashtbhanjan Hanuman” (Kashtbhanjan Hanuman Sarangpur) seated in the sanctum sanctorum of the temple is depicted as Kashtbhanjan according to the same popular story. But Shanidev is worshipped in the form of a woman at the feet of Hanumanji. Hanumanji is seated on a golden throne in the sanctum sanctorum of this ancient temple of Kashtbhanjan Hanumanji, hence he is also called Maharajadhiraj here. And this is the reason why Hanumanji is known as “Kashtbhanjan Hanuman” because he relieves the sufferings of the devotees here.

In this, his monkey army is depicted around Hanumanji. Also, in the very grand temple of Kashtbhanjan Dev, in the middle of a huge and grand pavilion of the beautiful temple decorated like a royal court, the son of wind sits on a beautiful throne made of 45 kg gold and 95 kg silver and fulfils all the wishes of his devotees. He has a crown of diamonds and jewels on his head and the mace kept nearby is also made of gold.

People's faith in this temple of Kashtbhanjan Hanuman ji is unwavering, so the number of devotees coming here for darshan is in thousands every day. But on Tuesdays and Saturdays this number increases by four to five times.

Viruddh Aahar (विरुद्ध आहार)..Incompatible food

 Viruddh Aahar (विरुद्ध आहार)..Incompatible food

विरुद्ध आहारः किसके साथ क्या खाएं और क्या ना खाएं

आयुर्वेद के अनुसार विरुद्ध आहार बहुत सी बीमारियों का कारण है। आज कितनी नई बीमारियां लोगों को कष्ट दे रही हैं, जो किस वजह से हो रही कारण का पता नहीं चल पाता है। ऐसी बीमारियों के मूल में कहीं ना कहीं विरुद्ध आहार भी है।

Viruddh Aahar (विरुद्ध आहार)..Incompatible food
कुछ खाद्य-पदार्थ तो स्वभाव से ही हानिकारक होते हैं। जबकि कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे होते हैं जो अकेले तो बहुत गुणकारी और स्वास्थ्य-वर्धक होते हैं, लेकिन जब इन्हीं पदार्थों को किसी अन्य खाद्य-पदार्थ के साथ लिया जाए तो ये फायदे की बजाय सेहत को नुकसान पहुँचाते हैं। ये ही विरुद्धाहार कहलाते हैं। विरुद्ध आहार का सेवन करने से कई तरह के रोग होने का खतरा रहता है। क्योंकि ये रस, रक्त आदि धातुओं को दूषित करते हैं, दोषों को बढ़ाते हैं।

भोजन 17 प्रकार से विरुद्ध हो सकता है:-

देश विरुद्धसूखे या तीखे पदार्थों का सेवन सूखे स्थान पर करना अथवा दलदली जगह में चिकनाई -युक्त भोजन का सेवन करना।

काल विरुद्धठंड में सूखी और ठंडी वस्तुएँ खाना और गर्मी के दिनों में तीखी कशाय भोजन का सेवन।

अग्नि विरुद्धयदि जठराग्नि मध्यम हो और व्यक्ति गरिष्ठ भोजन खाए तो इसे अग्नि विरुद्ध आहार कहा जाता है।

मात्रा विरुद्धयदि घी और शहद बराबर मात्रा में लिया जाए तो ये हानिकारक होता है।

सात्मय विरुद्धनमकीन भोजन खाने की प्रवृत्ति रखने वाले मनुष्य को मीठा रसीले पदार्थ खाने पड़ें।

दोष विरुद्धवो औषधि , भोजन का प्रयोग करना जो व्यक्ति के दोष के को बढ़ाने वाला हो और उनकी प्रकृति के विरुद्ध हो।

संस्कार विरुद्धकई प्रकार के भोजन को अनुचित ढंग से पकाया जाए तो वह विषमई बन जाता है. दही अथवा शहद को अगर गर्म कर लिया जाए तो ये पुष्टि दायक होने की जगह घातक विषैले बन जाते हैं।

कोष्ठ विरुद्धजिस व्यक्ति को  कोष्ठबद्धता हो, यदि उसे हल्का, थोड़ी मात्रा में और कम मल बनाने वाला भोजन दिया जाए या इसके विपरीत शिथिल गुदा वाले व्यक्ति को अधिक गरिष्ठ और ज़्यादा मल बनाने वाला भोजन देना कोष्ठ-विरुद्ध आहार है।

Viruddh Aahar (विरुद्ध आहार)..Incompatible food

अवस्था विरुद्धथकावट के बाद वात बढ़ने वाला भोजन लेना अवस्था विरुद्ध आहार है।

क्रम विरुद्धयदि व्यक्ति भोजन का सेवन पेट सॉफ होने से पहले करे अथवा जब उसे भूख ना लगी हो अथवा जब अत्यधिक भूख लगने से भूख मर गई हो।

परिहार विरुद्धजो चीज़ें व्यक्ति को वैद्य के अनुसार नही खानी चाहिए, उन्हें खाना-जैसे कि जिन लोगों को दूध ना पचता हो, वे दूध से निर्मित पदार्थों का सेवन करें।

उपचार विरुद्धकिसी विशिष्ट उपचार- विधि में अपथ्य (ना खाने योग्य) का सेवन करना. जैसे घी खाने के बाद ठंडी चीज़ें खाना (स्नेहन क्रिया में लिया गया घृत)।

पाक विरुद्धयदि भोजन पकाने वाली अग्नि बहुत कम ईंधन से बनाई जाए जिस से खाना अधपका रह जाए अथवा या कहीं कहीं से जल जाए।

संयोग विरुद्धदूध के साथ अम्लीय पदार्थों का सेवन।

हृदय विरुद्धजो भोजन रुचिकार ना लगे उसे खाना।

समपद विरुद्धयदि अधिक विशुद्ध भोजन को खाया जाए तो यह समपाद विरुद्ध आहार है. इस प्रकार के भोजन से पौष्टिकता विलुप्त हो जाती है. शुद्धीकरण या रेफाइनिंग (refined or matured foods) करने की प्रक्रिया में पोशाक गुण भी निकल जाते हैं।

विधि विरुद्धसार्वजनिक स्थान पर बैठकर भोजन खाना।


Viruddh Aahar (विरुद्ध आहार)..Incompatible food

विरुद्ध आहार के कुछ उदाहरण :-

*-  दूध और दही साथ में नहीं खा सकते हैं।दूध तथा दूध से बने पदार्थ (जैसे खीर, हलवा) के साथ कभी भी दही और दही से बने भोज्य पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए।

*- प्याज और दूध कभी एक साथ न खाये ।
इसको खाने से सबसे ज्यादा चमड़ी के रोग
होते हैं, खाज ,खुजली,एगसिमा ,सोराईसिस,आदि ।

*- ऐसे ही कटहल (jack fruit )और दूध कभी न खाये । ये भी जानी दुश्मन हैं ।

 *- खट्टे फ़ल जिनमे सिट्रिक ऐसिड होता है कभी दूध के साथ न खायें । जैसे संतरा, नींबू, अंगूर, मौसंमी।

*- आयुर्वेद के अनुसार अगर कोई खट्‌टा फ़ल दूध के साथ खाने वाला है वो एक ही है आंवला । आंवला दूध के साथ जरुर खाये ।

*- इसी तरह शहद और घी कभी भी एक साथ न खायें

*- आम की दोस्ती दूध से जबरद्स्त हैं, लेकिन खट्टे आम की नहीं |इसलिये मैग़ो शेक पी रहे है तो ध्यान रखे आम खट्‌टा ना हो।

*- ऐसे ही उरद की दाल और दही एक साथ नहीं खाएं।

*- कच्चे अंकुरित धान्य के साथ पका हुआ भोजन नहीं करना चाहिए।

दो विरुद्ध आहार के बीच कम से कम डेढ़ से दो घंटे का अंतर होना चाहिए।

Viruddh Aahar (विरुद्ध आहार)..Incompatible food

विरुद्ध आहार से होने वाले रोग :-


जो लोग ऊपर लिखित विरुद्ध आहारों का सेवन करते रहते हैं, उनके धातु, दोष व मल आदि विकृत हो जाते हैं। वे निम्नलिखित अनेक प्रकार के रोगों का शिकार हो सकते हैं :
चर्मरोग
फूड पॉयजनिंग
नपुंसकता
पेट में पानी भरना
बड़े फोड़े
भगन्दर
डायबिटीज
पेट से जुड़ी बीमारियां
बवासीर
कुष्ठ,सफेद दाग
टीबी
जुकाम

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Incompatible food

Viruddh Aahar (विरुद्ध आहार)..Incompatible food
 According to Ayurveda, against diet, it is the cause of many diseases.  Today, how many new diseases are causing trouble to people, due to which reason the cause is not known.  At the root of such diseases is some kind of diet as well.

 Some foods are harmful by nature.  While there are some foods that are very beneficial and health-enhancing alone, when taken with other foods, they harm health rather than benefits.  These are called antidote.  There is a risk of many diseases due to taking diet against it.  Because these juices, blood etc. contaminate the metals, increasing the defects.

 17 types of Incompatible food : -


 According to the country: Consumption of dry or pungent substances in a dry place or a greasy food in marshland.

According to Age: Eating dry and cold items in the cold and hot bitter food during summer.

 According to intestinal health: If the gastrointestinal is moderate and the person eats the senior food, it is called the food against Agni.

 According to quantity: If equal amounts of ghee and honey are taken, it is harmful.

 According to truth: A person who has a tendency to eat salty food has to eat sweet juicy foods.

 According to defects: Using medicine, food that enhances the person's defects and is against their nature.

 According to Sanskar: If many types of food are cooked improperly, it becomes odd.  If curd or honey is heated, instead of being confirmed, they become deadly poisonous.

 According to the leprosy: If a person who has leprosy, is given a light, small amount and less stool-feeding food, or conversely, giving a person who has a loose anus more food and more stool-making is a leprosy diet.

According to State: Taking food that increases vata after exhaustion is a diet against stage.

 According to the order: If the person consumes food before the stomach becomes clean or when he is not hungry or when he has died of hunger due to excessive hunger.

 According to Parihara: Things that a person should not eat according to Vaidya, eat them - such as those who do not digest milk, they should consume the milk-made substances.

 According to treatment: Consuming inappropriate (non-edible) in a specific treatment method.  Like eating cold things after eating ghee (melted butter in lubrication).

 According to Pak: If the cooking fire is made with very little fuel, which will cause the food to be half-burnt or burn somewhere else.

 According to coincidence: Consumption of acidic substances with milk.

 According to the heart: eat food that does not taste interesting.

According to the community: If more pure food is eaten, then it is a food against the community.  Nutrition disappears with this type of food.  In the process of refined or matured foods, the dress properties are also removed.

 Lawless: Sitting in a public place and eating food.

 Some examples of Incompatible Food : -


 * - Milk and curd cannot be eaten together. With milk and milk products (like kheer, pudding), one should never consume food items made of curd and curd.

 * - Never eat onion and milk together.
 Most skin diseases by eating it
 There are scabies, itching, agsima, psoriasis, etc.

 * - Never eat jack fruit and milk like this.  They are also known enemies.

  * - Sour fruits that contain citric acid, never eat with milk.  Such as oranges, lemons, grapes, seasonal.

 * - According to Ayurveda, if a khatta fruit is eaten with milk, it is the same Amla.  Amla must be eaten with milk.

 * - Likewise, never eat honey and ghee together.

 * - Friendships of mangoes are strong with milk, but not of sour mangoes. So if you are drinking mago shake, then keep in mind that mangoes are not sour.

 * - Do not eat Urad dal and curd together.

 * - Cooked food with raw sprouts should not be eaten.

 There should be a difference of at least one to one and a half to two hours between the two opposed diets.
Viruddh Aahar (विरुद्ध आहार)..Incompatible food

 Diseases caused by Incompatible Food : -


 Those who keep on eating the diet against the above, their metals, defects and feces etc. get distorted.  They can be victims of many of the following diseases:
 Dermatitis
 Food poisoning
 Impotence
 Stomach Water
 Big boils
 Bhagandar
 Diabetes
 Stomach disorders
 Piles
 Leprosy, White Stain
 TB
 common cold

हाँ सुनो

हाँ सुनो

Rupa Oos ki ek Boond
"मुझे  तुम्हारी प्रतीक्षा तमाम उम्र रहेगी,
मुझे तुमसे ही नहीं, तुम्हारे होने से भी प्रेम हैं..❣️"


हाँ सुनो, जब मैं पुकारूॅं तुम्हें आना होगा,

मेरी आवाज के सहारे चले आना होगा..


जब नहीं होंगे उजाले,

आँखों पे जो ऐनक होगी,

झुर्रियों से भरा चेहरा..

न पहले सी रौनक होगी 

हाँ सुनो....


जो तुम्हें याद रहेगी मेरी आवाज, 

सुनो, 

बस दिल की सुनना न रोकना कदम सुन लो,

तुम्हें देखे बिना न छूटेगा जहाँन सुनों.. 

आओगे न बस इक यही वादा कर लो..

हाँ सुनों...

मेरी आवाज के सहारे चले आना होगा..

Rupa Oos ki ek Boond

"कि छोड़ आई हूं खुद को तुझ में ही कहीं,
अब तुझको देखकर हर जुबां पर मेरा भी ज़िक्र आयेगा..❣️"

जीवन का संघर्ष

जीवन का संघर्ष

एक बार एक व्यक्ति को अपने उद्यान में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून दिखाई पड़ा। अब प्रतिदिन वो व्यक्ति उसे देखने लगा और एक दिन उसने देखा कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया है। उस दिन वो वहीं बैठ गया और घंटों उसे देखता रहा। उसने देखा की तितली उस खोल से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है, पर बहुत देर तक प्रयास करने के बाद भी वो उस छेद से नहीं निकल पायी और फिर वो बिल्कुल शांत हो गयी मानो उसने हार मान ली हो। 
जीवन का संघर्ष
इसलिए उस व्यक्ति ने निश्चय किया कि वो उस तितली की मदद करेगा। उसने एक कैंची उठायी और कोकून की उस छेद को इतना बड़ा कर दिया की वो तितली आसानी से बाहर निकल सके और हुआ भी यही , तितली बिना किसी और संघर्ष के आसानी से बाहर निकल आई, पर उसका शरीर सूजा हुआ था और पंख सूखे हुए थे। 

वो व्यक्ति तितली को ये सोच कर देखता रहा कि वो किसी भी वक़्त अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसके उलट बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और उसे अपनी बाकी की ज़िन्दगी इधर-उधर घिसटते हुए बीतानी पड़ी। 

वो व्यक्ति अपनी दया और जल्दबाजी में ये नहीं समझ पाया की दरअसल कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसलिए बनाया है ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल उसके पंखों में पहुंच सके और वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके। 

वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही वो चीज होती है, जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है। यदि हम बिना किसी प्रयत्न के सब कुछ पाने लगे, तो हम भी एक अपंग के सामान हो जायेंगे। बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते, जितना हमारी क्षमता है। इसलिए जीवन में आने वाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये, वो कठिन पल कुछ ऐसा सीखा जायेंगें, जिससे हम अपनी ज़िन्दगी की उड़ान को सफल बना पायेंगे..!!

कारगिल विजय दिवस 2024 || Kargil Vijay Divas 26 july

कारगिल विजय दिवस

आज ही के दिन 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच लगभग 60 दिनों तक चल रहे युद्ध का अंत हुआ था। यह वह दिन है जब भारत के वीर सपूतों ने जम्मू कश्मीर के कारगिल की चोटियों से पाकिस्तानी फौज को बाहर निकाल दिया था और "ऑपरेशन विजय" को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था। भारत के वीर सपूतों के इस साहसिक कार्य के लिए प्रतिवर्ष 26 जुलाई के दिन "कारगिल विजय दिवस" मनाया जाता है। इ्स साल भारत 25वां कारगिल विजय दिवस मनाने जा रहा है। 

कारगिल विजय दिवस 2024 || Kargil Vijay Divas 26 july

भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद कश्मीर को लेकर दोनों देशों में संघर्ष हमेशा जारी रहा। इसी संघर्ष के चलते भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध हुए। इस विवाद को शांत करने के लिए फरवरी 1999 में शांतिपूर्ण समाधान का वादा करते हुए हस्ताक्षर किए गए और कश्मीर भारत के हिस्से में ही रहा। इसके बाद भी पाकिस्तानी फौजियों की घुसपैठ जारी रही। 

3 मई 1999 को भारतीय सेना को जानकारी मिली कि कुछ लोग कारगिल में कुछ हरकत कर रहे हैं। यह जानकारी ताशी नामग्याल नामक एक स्थानीय चरवाहे ने दी थी। दरअसल ताशी कारगिल के बाल्टिक सेक्टर में अपने नए याक को खोज रहा था। तभी उसे वहां संदिग्ध पाकिस्तानी सैनिक नजर आए थे। इसके बाद 5 मई के दिन भारतीय सेवा गश्त पर गई। इस दौरान भारतीय सेना के पांच जवानों को बंधक बनाकर यातनाएं देकर मार दिया गया। पाकिस्तानी सेना भारत की सीमा पर घुसपैठ करते हुए  LOC का कुछ हिस्सा अपने कब्जे में कर चुकी थी। 

कारगिल विजय दिवस 2024 || Kargil Vijay Divas 26 july

8 मई 1999 के दिन पाकिस्तानी सैनिकों और कश्मीरी आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखा गया था, जिसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध में दो लाख भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया था और यह युद्ध 60 दिनों तक चला। 9 जून को भारतीय सैनिकों ने बाल्टिक क्षेत्र की दो चौकियों पर कब्जा किया और 13 जून को द्रास सेक्टर में तोलोलिंग पर परचम लहराया और इसके बाद 29 जून को भारतीय सेवा ने दो और महत्वपूर्ण चौकी पॉइंट 5060 और पॉइंट 5100 पर कब्जा कर लिया। 

2 जुलाई के दिन पाकिस्तानी फौज ने कारगिल में हमला बोल दिया गया, जिसके जवाब में 4 जुलाई को भारतीय सेवा ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया। 5 जुलाई के दिन द्रास पर कब्जा किया और 7 जुलाई के दिन जुबार चोटी पर परचम लहराया। 11 जुलाई के दिन बटालिक की प्रमुख चोटियों पर ही भारत का तिरंगा लहराया। 

कारगिल विजय दिवस 2024 || Kargil Vijay Divas 26 july

इसके बाद 26 जुलाई 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई ने कारगिल को घुसपैठियों से मुक्त करने के लिए चल रहे ऑपरेशन विजय की सफलता की घोषणा कर दी। 26 जुलाई 1999 के दिन आधिकारिक रूप से कारगिल युद्ध समाप्त हुआ और भारत की जीत पक्की हुई। 

भारत के जीत की विजय गाथा गाई गई, पर यह दुखद रहा कि इस कारगिल युद्ध में 527 भारतीय सैनिक भी शहीद हुए थे, जिनमें से एक कैप्टन विक्रम बत्रा भी थे।

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Kargil Vijay Diwas

On this day in 1999, the war between India and Pakistan, which was going on for about 60 days, came to an end. This is the day when the brave sons of India drove out the Pakistani army from the peaks of Kargil in Jammu and Kashmir and successfully carried out "Operation Vijay". "Kargil Vijay Diwas" is celebrated every year on 26 July for this courageous act of the brave sons of India. This year India is going to celebrate the 25th Kargil Vijay Diwas.

कारगिल विजय दिवस 2024 || Kargil Vijay Divas 26 july

After the partition of India and Pakistan, the conflict between the two countries regarding Kashmir always continued. Due to this conflict, many wars took place between India and Pakistan. To calm this dispute, a promise of a peaceful solution was signed in February 1999 and Kashmir remained a part of India. Even after this, the infiltration of Pakistani soldiers continued.

On May 3, 1999, the Indian Army got information that some people were doing some activity in Kargil. This information was given by a local shepherd named Tashi Namgyal. Actually Tashi was searching for his new yak in the Baltic sector of Kargil. Then he saw suspicious Pakistani soldiers there. After this, the Indian Army went on patrol on 5 May. During this time five soldiers of the Indian Army were taken hostage and killed after being tortured. The Pakistani Army had infiltrated the Indian border and captured some part of the LOC.

कारगिल विजय दिवस 2024 || Kargil Vijay Divas 26 july

On 8 May 1999, Pakistani soldiers and Kashmiri terrorists were seen on the peak of Kargil, after which the Kargil war started between India and Pakistan. Two lakh Indian soldiers took part in this war and this war lasted for 60 days. On 9 June, Indian soldiers captured two posts in the Baltic sector and on 13 June, hoisted the flag on Tololing in Dras sector and after this on 29 June, the Indian Army captured two more important posts, Point 5060 and Point 5100.

On 2 July, the Pakistani army attacked Kargil, in response to which the Indian Army captured Tiger Hill on 4 July. On 5 July, Dras was captured and on 7 July, the flag was hoisted on Jubar Peak. On 11 July, the Indian tricolor was hoisted on the main peaks of Batalik.

After this, on 26 July 1999, the then Prime Minister Shri Atal Bihari Vajpayee declared the success of Operation Vijay to free Kargil from intruders. On 26 July 1999, the Kargil war officially ended and India's victory was confirmed.

कारगिल विजय दिवस 2024 || Kargil Vijay Divas 26 july

The victory saga of India's victory was sung, but it was sad that 527 Indian soldiers were also martyred in this Kargil war, one of whom was Captain Vikram Batra.

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..धिक्कार

मानसरोवर-1 ..धिक्कार

धिक्कार - मुंशी प्रेमचंद | Dhikkar by Munshi Premchand

1

अनाथ और विधवा मानी के लिये जीवन में अब रोने के सिवा दूसरा अवलंब न था। वह पाँच वर्ष की थी, जब पिता का देहांत हो गया। माता ने किसी तरह उसका पालन किया। सोलह वर्ष की अवस्था में मुहल्ले वालों की मदद से उसका विवाह भी हो गया पर साल के अंदर ही माता और ‍पति दोनों विदा हो गये। इस विपत्ति में उसे पने चचा वंशीधर के सिवा और कोई नजर न आया, जो उसे आश्रय देता। वंशीधर ने अब तक जो व्यवहार किया था, उससे यह आशा न हो सकती थी कि वहाँ वह शांति के साथ रह सकेगी पर वह सब कुछ सहने और सब कुछ करने को तैयार थी। वह गाली, झिड़की, मारपीट सब सह लेगी, कोई उस पर संदेह तो न करेगा, उस पर मिथ्या लांछन तो न लगेगा, शोहदों और लुच्चों से तो उसकी रक्षा होगी । वंशीधर को कुल मर्यादा की कुछ चिंता हुई। मानी की याचना को अस्वीकार न कर सके।

धिक्कार - मुंशी प्रेमचंद | Dhikkar by Munshi Premchand

लेकिन दो चार महीने में ही मानी को मालूम हो गया कि इस घर में बहुत दिनों तक उसका निबाह न होगा। वह घर का सारा काम करती, इशारों पर नाचती, सबको खुश रखने की कोशिश करती पर न जाने क्यों चचा और चची दोनों उससे जलते रहते। उसके आते ही महरी अलग कर दी गयी। नहलाने-धुलाने के लिये एक लौंडा था उसे भी जवाब दे दिया गया पर मानी से इतना उबार होने पर भी चचा और चची न जाने क्यो उससे मुँह फुलाये रहते। कभी चचा घुड़कियाँ जमाते, कभी चची कोसती, यहाँ तक कि उसकी चचेरी बहन ललिता भी बात-बात पर उसे गालियाँ देती। घर-भर में केवल उसके चचेरे भाई गोकुल ही को उससे सहानुभूति थी। उसी की बातों में कुछ स्नेह का परिचय मिलता था । वह उपनी माता का स्वभाव जानता था। अगर वह उसे समझाने की चेष्टा करता, या खुल्लमखुल्ला मानी का पक्ष लेता, तो मानी को एक घड़ी घर में रहना कठिन हो जाता, इसलिये उसकी सहानुभूति मानी ही को दिलासा देने तक रह जाती थी। वह कहता- बहन, मुझे कहीं नौकर हो जाने दो, ‍फिर तुम्हारे कष्टों का अंत हो जायगा। तब देखूँगा, कौन तुम्हें तिरछी आँखों से देखता है। जब तक पढ़ता हूँ, तभी तक तुम्हारे बुरे दिन हैं। मानी ये स्नेह में डूबी हुई बात सुनकर पुलकित हो जाती और उसका रोआँ-रोआँ गोकुल को आशीर्वाद देने लगता।

2

आज ललिता का विवाह है। सबेरे से ही मेहमानों का आना शुरू हो गया है। गहनों की झनकार से घर गूँज रहा है। मानी भी मेहमानों को देख-देखकर खुश हो रही है। उसकी देह पर कोई आभूषण नहीं है और न उसे सुंदर कपड़े ही दिये गये हैं, फिर भी उसका मुख प्रसन्न है।

आधी रात हो गयी थी। विवाह का मुहूर्त निकट आ गया था। जनवासे से चढ़ावे की चीजें आयीं । सभी औरतें उत्सुक हो-होकर उन चीजों को देखने लगीं। ललिता को आभूषण पहिनाये जाने लगे। मानी के हृदय में बड़ी इच्छा हुई कि जाकर वधू को देखे। अभी कल जो बालिका थी, उसे आज वधू वेश में देखने की इच्छा न रोक सकी। वह मुस्कराती हुई कमरे में घुसी। सहसा उसकी चाची ने झिड़ककर कहा- तुझे यहाँ किसने बुलाया था, निकल जा यहाँ से।

मानी ने बड़ी-बड़ी यातनाएँ सही थीं, पर आज की वह झिड़की उसके हृदय में बाण की तरह चुभ गयी । उसका मन उसे धिक्कारने लगा। 'तेरे छिछोरेपन का यही पुरस्कार है। यहाँ सुहागिनों के बीच में तेरे आने की क्या जरूरत थी।' वह खिसियाई हुई कमरे से निकली और एकांत में बैठकर रोने के लिये ऊपर जाने लगी। सहसा जीने पर उसकी इंद्रनाथ से मुठभेड़ हो गयी। इंद्रनाथ गोकुल का सहपाठी और परम मित्र था। वह भी न्यौते में आया हुआ था। इस वक्त गोकुल को खोजने के लिये ऊपर आया था। मानी को वह दो-बार देख चुका था और यह भी जानता था कि यहाँ उसके साथ बड़ा दुर्व्यवहार किया जाता है। चाची की बातों की भनक उसके कान में भी पड़ गयी थी। मानी को ऊपर जाते देखकर वह उसके चित्त का भाव समझ गया और उसे सांत्वना देने के लिये ऊपर आया, मगर दरवाजा भीतर से बंद था। उसने किवाड़ की दरार से भीतर झाँका। मानी मेज के पास खड़ी रो रही थी।

उसने धीरे से कहा- मानी, द्वार खोल दो।

मानी उसकी आवाज सुनकर कोने में छिप गयी और गंभीर स्वर में बोली- क्या काम है?

इंद्रनाथ ने गद्‍गद्‍ स्वर में कहा- तुम्हारे पैरों पड़ता हूँ मानी, खोल दो।

यह स्नेह में डूबा हुआ हुआ विनय मानी के लिये अभूतपूर्व था । इस निर्दय संसार में कोई उससे ऐसे विनती भी कर सकता है, इसकी उसने स्वप्‍न में भी कल्पना न की थी। मानी ने काँपते हुए हाथों से द्वार खोल दिया। इंद्रनाथ झपटकर कमरे में घुसा, देखा कि छत से पंखे के कड़े से एक रस्सी लटक रही है। उसका हृदय काँप उठा। उसने तुरंत जेब से चाकू निकालकर रस्सी काट दी और बोला- क्या करने जा रही थी मानी? जानती हो, इस अपराध का क्या‍ दंड है?

मानी ने गर्दन झुकाकर कहा- इस दंड से कोई और दंड कठोर हो सकता है? जिसकी सूरत से लोगों को घृणा है, उसे मरने के लिये भी अगर कठोर दंड दिया जाय, तो मैं यही कहूँगी कि ईश्वर के दरबार में न्याय का नाम भी नहीं है। तुम मेरी दशा का अनुभव नहीं कर सकते। इंद्रनाथ की आँखें सजल हो गयीं। मानी की बातों में कितना कठोर सत्य भरा हुआ था । बोला- सदा ये दिन नहीं रहेंगे मानी। अगर तुम यह समझ रही हो कि संसार में तुम्हारा कोई नहीं है, तो यह तुम्हारा भ्रम है। संसार में कम-से-कम एक मनुष्य ऐसा है, जिसे तुम्हारे प्राण अपने प्राणों से भी प्यांरे हैं।

सहसा गोकुल आता हुआ दिखाई दिया। मानी कमरे से निकल गयी। इंद्रनाथ के शब्दों ने उसके मन में एक तूफान-सा उठा दिया। उसका क्या आशय है, यह उसकी समझ में न आया। ‍फिर भी आज उसे अपना जीवन सार्थक मालूम हो रहा था । उसके अंधकारमय जीवन में एक प्रकाश का उदय हो गया।

3

इंद्रनाथ को वहाँ बैठे और मानी को कमरे से जाते देखकर गोकुल को कुछ खटक गया। उसकी त्योरियाँ बदल गयीं। कठोर स्वर में बोला- तुम यहाँ कब आये?

इंद्रनाथ ने अविचलित भाव से कहा- तुम्हीं को खोजता हुआ यहाँ आया था। तुम यहाँ न मिले तो नीचे लौटा जा रहा था, अगर चला गया होता तो इस वक्त तुम्हें यह कमरा बंद मिलता और पंखे के कड़े में एक लाश लटकती हुई नजर आती।

गोकुल ने समझा, यह अपने अपराध के छिपाने के लिये कोई बहाना निकाल रहा है। ती‍व्र कंठ से बोला- तुम यह विश्वासघात करोगे, मुझे ऐसी आशा न थी।

इंद्रनाथ का चेहरा लाल हो गया। वह आवेश में खड़ा हो गया और बोला- न मुझे यह आशा थी कि तुम मुझ पर इतना बड़ा लांछन रख दोगे। मुझे न मालूम था कि तुम मुझे इतना नीच और कुटिल समझते हो। मानी तुम्हारे लिये तिरस्कार की वस्तु हो, मेरे लिये वह श्रद्धा की वस्तु है और रहेगी। मुझे तुम्हारे सामने अपनी सफाई देने की जरूरत नहीं है, लेकिन मानी मेरे लिये उससे कहीं पवित्र है, जितनी तुम समझते हो। मैं नहीं चाहता था कि इस वक्त ‍तुमसे ये बातें कहूँ। इसके लिये और अनूकूल परि‍‍स्थितियों की राह देख रहा था, लेकिन मुआमला आ पड़ने पर कहना ही पड़ रहा है। मैं यह तो जानता था कि मानी का तुम्हारे घर में कोई आदर नहीं, लेकिन तुम लोग उसे इतना नीच और त्याज्य समझते हो, यह आज तुम्हारी माताजी की बातें सुनकर मालूम हुआ। केवल इतनी-सी बात के लिये वह चढ़ावे के गहने देखने चली गयी थी, तुम्हा्री माता ने उसे इस बुरी तरह झिड़का, जैसे कोई कुत्ते को भी न झिड़केगा। तुम कहोगे, इसमें मैं क्या करूँ, मैं कर ही क्या सकता हूँ। जिस घर में एक अनाथ स्त्री पर इतना अत्याचार हो, उस घर का पानी पीना भी हराम है। अगर तुमने अपनी माता को पहले ही दिन समझा दिया होता, तो आज यह नौबत न आती। तुम इस इल्जाम से नहीं बच सकते। तुम्हारे घर में आज उत्सव है, मैं तुम्हारे माता-पिता से कुछ बातचीत नहीं कर सकता, लेकिन तुमसे कहने में संकोच नहीं है कि मानी को को मैं अपनी जीवन सहचरी बनाकर अपने को धन्य समझूँगा। मैंने समझा था, अपना कोई ठिकाना करके तब यह प्रस्ताव करूँगा पर मुझे भय है कि और विलंब करने में शायद मानी से हाथ धोना पड़े, इसलिये तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को चिंता से मुक्त करने के लिये मैं आज ही यह प्रस्ताव किये देता हूँ।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

गोकुल के हृदय में इंद्रनाथ के प्रति ऐसी श्रद्धा कभी न हुई थी। उस पर ऐसा संदेह करके वह बहुत ही ल‍‍‍ज्जित हुआ। उसने यह अनुभव भी किया कि माता के भय से मैं मानी के विषय में तटस्थ रहकर कायरता का दोषी हुआ हूँ। यह केवल कायरता थी और कुछ नहीं। कुछ झेंपता हुआ बोला- अगर अम्माँ ने मानी को इस बात पर झिड़का तो वह उनकी मूर्खता है। मैं उनसे अवसर मिलते ही पूछूँगा।

इंद्रनाथ- अब पूछने-पाछने का समय निकल गया। मैं चाहता हूँ कि तुम मानी से इस विषय में सलाह करके मुझे बतला दो। मैं नहीं चाहता कि अब वह यहाँ क्षण-भर भी रहे। मुझे आज मालूम हुआ कि वह गर्विणी प्रकृति की स्त्री है और सच पूछो तो मैं उसके स्वभाव पर मुग्ध हो गया हूँ। ऐसी स्त्री अत्याचार नहीं सह सकती।

गोकुल ने डरते-डरते कहा- लेकिन तुम्हें मालूम है, वह विधवा है?

जब हम किसी के हाथों अपना असाधारण हित होते देखते हैं, तो हम अपनी सारी बुराइयाँ उसके सामने खोलकर रख देते हैं। हम उसे दिखाना चाहते हैं कि हम आपकी इस कृपा के सर्वथा योग्य नहीं हैं।

इंद्रनाथ ने मुस्कराकर कहा- जानता हूँ, सुन चुका हूँ और इसीलिये तुम्हारे बाबूजी से कुछ कहने का मुझे अब तक साहस नहीं हुआ। लेकिन न जानता तो भी इसका मेरे निश्चय पर कोई असर न पड़ता। मानी विधवा ही नहीं, अछूत हो, उससे भी गयी-बीती अगर कुछ हो सकती है, वह भी हो, फिर भी मेरे लिये वह रमणी-रत्न, है। हम छोटे-छोटे कामों के लिये तजुर्बेकार आदमी खोजते हैं, जिसके साथ हमें जीवन-यात्रा करनी है, उसमें तजुर्बे का होना ऐब समझते हैं। मैं न्याय का गला घोटनेवालों में नहीं हूँ। विपत्ति से बढ़कर तजुर्बा सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला। जिसने इस विद्यालय में डिग्री ले ली, उसके हाथों में हम निश्चिंत होकर जीवन की बागडोर दे सकते हैं। किसी रमणी का विधवा होना मेरी आँखों में दोष नहीं, गुण है।

गोकुल ने पूछा- लेकिन तुम्हारे घर के लोग?

इंद्रनाथ ने प्रसन्न होकर कहा- मैं अपने घरवालों को इतना मूर्ख नहीं समझता कि इस विषय में आपत्ति करें; लेकिन वे आपत्ति करें भी तो मैं अपनी किस्मत अपने हाथ में ही रखना पसंद करता हूँ। मेरे बड़ों को मुझपर अनेकों अधिकार हैं। बहुत-सी बातों में मैं उनकी इच्छा को कानून समझता हूँ, लेकिन जिस बात को मैं अपनी आत्मा के विकास के लिये शुभ समझता हूँ, उसमें मैं किसी से दबना नहीं चाहता। मैं इस गर्व का आनंद उठाना चाहता हूँ कि मैं स्वयं अपने जीवन का निर्माता हूँ।

गोकुल ने कुछ शंकित होकर कहा- और अगर मानी न मंजूर करे?

इंद्रनाथ को यह शंका बिल्कुल निर्मूल जान पड़ी। बोले- तुम इस समय बच्चों की-सी बात कर रहे हो गोकुल। यह मानी हुई बात है कि मानी आसानी से मंजूर न करेगी। वह इस घर में ठोकरें खायेगी, झिड़कियाँ सहेगी, गालियाँ सुनेगी, पर इसी घर में रहेगी। युगों के संस्कारों को ‍मिटा देना आसान नहीं है, लेकिन हमें उसको राजी करना पड़ेगा। उसके मन से संचित संस्कारों को निकालना पड़ेगा। मैं विधवाओं के पुनर्विवाह के पक्ष में नहीं हूँ। मेरा खयाल है कि पतिव्रत का अलौकिक आदर्श संसार का अमूल्य रत्न है और हमें बहुत सोच-समझकर उस पर आघात करना चाहिए; लेकिन मानी के विषय में यह बात नहीं उठती। प्रेम और भक्ति नाम से नहीं, व्यक्ति से होती है। जिस पुरूष की उसने सूरत भी नहीं देखी, उससे उसे प्रेम नहीं हो सकता। केवल रस्म की बात है। इस आडंबर की, इस दिखावे की, हमें परवाह नहीं करनी चाहिए। देखो, शायद कोई तुम्हें ‍बुला रहा है। मैं भी जा रहा हूँ। दो-तीन दिन में ‍फिर मिलूँगा, मगर ऐसा न हो कि तुम संकोच में पड़कर सोचते-विचारते रह जाओ और दिन निकलते चले जायँ।

गोकुल ने उसके गले में हाथ डालकर कहा- मैं परसों खुद ही आऊँगा।

4

बारात ‍विदा हो गयी थी। मेहमान भी रूखसत हो गये थे। रात के नौ बज गये ‍थे। विवाह के बाद की नींद मशहूर है। घर के सभी लोग सरेशाम से सो रहे थे। कोई चारपाई पर, कोई तख्त पर, कोई जमीन पर, जिसे जहाँ जगह मिल गयी, वहीं सो रहा था। केवल मानी घर की देखभाल कर रही थी और ऊपर गोकुल अपने कमरे में बैठा हुआ समाचार पढ़ रहा था।

सहसा गोकुल ने पुकारा- मानी, एक ग्लास ठंडा पानी तो लाना, प्यास लगी है।

मानी पानी लेकर ऊपर गयी और मेज पर पानी रखकर लौटना ही चाहती थी कि गोकुल ने कहा- जरा ठहरो मानी, तुमसे कुछ कहना है।

मानी ने कहा- अभी फुरसत नहीं है भाई, सारा घर सो रहा है । कहीं कोई घुस आये तो लोटा-थाली भी न बचे।

गोकुल ने कहा- घुस आने दो, मैं तुम्हारी जगह होता, तो चोरों से मिलकर चोरी करवा देता। मुझे इसी वक्त इंद्रनाथ से मिलना है। मैंने उससे आज मिलने का वचन दिया है- देखो संकोच मत करना, जो बात पूछ रहा हूँ, उसका जल्द उत्तर देना। देर होगी तो वह घबरायेगा। इंद्रनाथ को तुमसे प्रेम है, यह तुम जानती हो न?

मानी ने मुँह फेरकर कहा- यही बात कहने के लिये मुझे बुलाया था? मैं कुछ नहीं जानती।

गोकुल- खैर, यह वह जाने और तुम जानो। वह तुमसे विवाह करना चाहता है। वैदिक रीति से विवाह होगा। तुम्हें स्वीकार है?

मानी की गर्दन शर्म से झुक गयी। वह कुछ जवाब न दे सकी ।

गोकुल ने ‍‍फिर कहा- दादा और अम्माँ से यह बात नहीं कही गयी, इसका कारण तुम जानती ही हो । वह तुम्हें घुड़कियाँ दे-देकर जला-जलाकर चाहे मार डालें, पर विवाह करने की सम्मति कभी नहीं देंगे। इससे उनकी नाक कट जायेगी, इसलिये अब इसका निर्णय तुम्हारे ही ऊपर है। मैं तो समझता हूँ, तुम्हें स्वीकार कर लेना चाहिए। इंद्रनाथ तुमसे प्रेम करता ही है, यों भी निष्कलंक चरित्र का आदमी और बला का दिलेर है । भय तो उसे छू ही नहीं गया। तुम्हें सुखी देखकर मुझे सच्चा आनंद होगा।

मानी के हृदय में एक वेग उठ रहा था, मगर मुँह से आवाज न निकली।

गोकुल ने अबकी खीझकर कहा- देखो मानी, यह चुप रहने का समय नहीं है। क्या सोचती हो?

मानी ने काँपते स्वर में कहा- हाँ।

गोकुल के हृदय का बोझ हल्का हो गया। मुस्कराने लगा। मानी शर्म के मारे वहाँ से भाग गयी।

5

शाम को गोकुल ने अपनी माँ से कहा- अम्माँ, इंद्रनाथ के घर आज कोई उत्सव है। उसकी माता अकेली घबड़ा रही थी कि कैसे सब काम होगा, मैंने कहा, मैं मानी को कल भेज दूँगा। तुम्हा‍री आज्ञा हो, तो मानी का पहुँचा दूँ। कल-परसों तक चली आयेगी।

मानी उसी वक्त वहाँ आ गयी, गोकुल ने उसकी ओर कनखियों से ताका। मानी लज्जा‍ से गड़ गयी । भागने का रास्ता न मिला।

माँ ने कहा- मुझसे क्या पूछते हो, वह जाय, तो ले जाओ।

गोकुल ने मानी से कहा- कपड़े पहनकर तैयार हो जाओ, तुम्हें इंद्रनाथ के घर चलना है।

मानी ने आपत्ति की- मेरा जी अच्छा नहीं है, मैं न जाऊँगी।

गोकुल की माँ ने कहा- चली क्यों नहीं जाती, क्यार वहाँ कोई पहाड़ खोदना है?

मानी एक सफेद साड़ी पहनकर ताँगे पर बैठी, तो उसका हृदय काँप रहा था और बार-बार आँखों में आँसू भर आते थे। उसका हृदय बैठा जाता था, मानों नदी में डुबने जा रही हो।

ताँगा कुछ दूर निकल गया तो उसने गोकुल से कहा- भैया, मेरा जी न जाने कैसा हो रहा है। घर चलो, तुम्हारे पैर पड़ती हूँ।

गोकुल ने कहा- तू पागल है। वहाँ सब लोग तेरी राह देख रहे हैं और तू कहती है लौट चलो।

मानी- मेरा मन कहता है, कोई अनिष्ट होने वाला है।

गोकुल- और मेरा मन कहता है तू रानी बनने जा रही है।

मानी- दस-पाँच दिन ठहर क्यों नहीं जाते? कह देना, मानी बीमार है।

गोकुल- पागलों की-सी बातें न करो।

मानी- लोग कितना हँसेंगे।

गोकुल- मैं शुभ कार्य में किसी की हँसी की परवाह नहीं करता।

मानी- अम्माँ तुम्हें घर में घुसने न देंगी। मेरे कारण तुम्हें भी झिड़कियाँ मिलेंगी।

गोकुल- इसकी कोई परवाह नहीं है। उनकी तो यह आदत ही है।

ताँगा पहुँच गया। इंद्रनाथ की माता विचारशील महिला थीं। उन्होंने आकर वधू को उतारा और भीतर ले गयीं।

6

गोकुल वहाँ से घर चला तो ग्यारह बज रहे थे। एक ओर तो शुभ कार्य के पूरा करने का आनंद था, दूसरी ओर भय था कि कल मानी न जायगी, तो लोगों को क्या जवाब दूँगा। उसने निश्चय किया, चलकर साफ-साफ कह दूँ। छिपाना व्यर्थ है । आज नहीं कल, कल नहीं परसों तो सब-कुछ कहना ही पड़ेगा। आज ही क्यों न कह दूँ।

यह निश्चय करके वह घर में दाखिल हुआ।

माता ने किवाड़ खोलते हुए कहा- इतनी रात तक क्या करने लगे? उसे भी क्यों न लेते आये? कल सवेरे चौका-बर्तन कौन करेगा?

गोकुल ने सिर झुकाकर कहा- वह तो अब शायद लौटकर न आये अम्माँ, उसके वहीं रहने का प्रबंध हो गया है।

माता ने आँखें फाड़कर कहा -क्या बकता है, भला वह वहाँ कैसे रहेगी?

गोकुल- इंद्रनाथ से उसका विवाह हो गया है।

माता मानो आकाश से गिर पड़ी। उन्हें कुछ सुध न रही कि मेरे मुँह से क्या निकल रहा है, कुलांगार, भड़वा, हरामजादा, न जाने क्या -क्या कहा । यहाँ तक कि गोकुल का धैर्य चरमसीमा का उल्लंघन कर गया । उसका मुँह लाल हो गया, त्योरियाँ चढ़ गयी, बोला- अम्माँ, बस करो। अब मुझमें इससे ज्‍यादा सुनने की सामर्थ्य नहीं है। अगर मैंने कोई अनुचित कर्म किया होता, तो आपकी जूतियाँ खाकर भी सिर न उठाता, मगर मैंने कोई अनुचित कर्म नहीं किया। मैंने वही किया जो ऐसी दशा में मेरा कर्तव्य था और जो हर एक भले आदमी को करना चाहिए। तुम मूर्खा हो, तुम्हें नहीं मालूम कि समय की क्या प्रगति है। इसीलिये अब तक मैंने धैर्य के साथ तुम्हारी गालियाँ सुनी। तुमने, और मुझे दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि पिताजी ने भी, मानी के जीवन को नारकीय बना रखा था। तुमने उसे ऐसी-ऐसी ताड़नाएँ दी, जो कोई अपने शत्रु को भी न देगा। इसीलिये न कि वह तुम्हारी आश्रित थी? इसीलिये न कि वह अनाथिनी थी? अब वह तुम्हारी गालियाँ खाने न आवेगी। जिस दिन तुम्हारे घर विवाह का उत्सव हो रहा था, तुम्हारे ही एक कठोर वाक्य से आहत होकर वह आत्महत्या करने जा रही थी। इंद्रनाथ उस समय ऊपर न पहुँच जाते तो आज हम, तुम, सारा घर हवालात में बैठा होता।

माता ने आँखें मटकाकर कहा- आहा ! कितने सपूत बेटे हो तुम, कि सारे घर को संकट से बचा लिया। क्यों न हो ! अभी बहन की बारी है। कुछ दिन में मुझे ले जाकर किसी के गले में बांध आना। ‍फिर तुम्हारी चाँदी हो जायगी। यह रोजगार सबसे अच्छा है। पढ़ लिखकर क्या करोगे?

गोकुल मर्म-वेदना से तिलमिला उठा। व्यथित कंठ से बोला- ईश्वर न करे कि कोई बालक तुम जैसी माता के गर्भ से जन्म ले। तुम्हारा मुँह देखना भी पाप है।

यह कहता हुआ वह घर से निकल पड़ा और उन्मत्तों की तरह एक तरफ चल खड़ा हुआ। जोर के झोंके चल रहे थे, पर उसे ऐसा मालूम हो रहा था कि साँस लेने ‍के लिये हवा नहीं है।

7

एक सप्ताह बीत गया पर गोकुल का कहीं पता नहीं। इंद्रनाथ को बंबई में एक जगह मिल गयी थी। वह वहाँ चला गया था। वहाँ रहने का प्रबंध करके वह अपनी माता को तार देगा और तब सास और बहू वहाँ चली जायँगी। वंशीधर को पहले संदेह हुआ कि गोकुल इंद्रनाथ के घर छिपा होगा, पर जब वहाँ पता न चला तो उन्होंने सारे शहर में खोज-पूछ शुरू की। जितने मिलने वाले, मित्र, स्ने‍ही, संबंधी थे, सभी के घर गये, पर सब जगह से साफ जवाब ‍पाया। दिन-भर दौड़-धूप कर शाम को घर आते, तो स्त्री को आड़े हाथों लेते- और कोसो लड़के को, पानी पी-पीकर कोसो। न जाने तुम्हें कभी बु‍द्धि आयेगी भी या नहीं । गयी थी चुड़ैल, जाने देती। एक बोझ सिर से टला। एक महरी रख लो, काम चल जायगा। जब वह न थी, तो घर क्या भूखों मरता था? विधवाओं के पुनर्विवाह चारों ओर तो हो रहे हैं, यह कोई अनहोनी बात नहीं है। हमारे बस की बात होती, तो विधवा-विवाह के पक्षपातियों को देश से निकाल देते, शाप देकर जला देते, लेकिन यह हमारे बस की बात नहीं। फिर तुमसे इतना भी न हो सका कि मुझसे तो पूछ लेतीं। मैं जो उचित समझता, करता। क्या तुमने समझा था, मैं दफ्तर से लौटकर आऊँगा ही नहीं, वहीं मेरी अंत्येष्टि हो जायगी। बस, लड़के पर टूट पड़ीं। अब रोओ, खूब दिल खोलकर।

संध्या हो गयी थी। वंशीधर स्त्री को फटकारें सुनाकर द्वार पर उद्वेग की दशा में टहल रहे थे। रह-रहकर मानी पर क्रोध आता था। इसी राक्षसी के कारण मेरे घर का सर्वनाश हुआ। न जाने किस बुरी साइत में आयी कि घर को मिटाकर छोड़ा। वह न आयी होती, तो आज क्यों यह बुरे दिन ‍देखने पड़ते। ‍कितना होनहार, कितना प्रतिभाशाली लड़का था। न जाने कहाँ गया?

एकाएक एक बुढ़िया उनके समीप आयी और बोली- बाबू साहब, यह खत लायी हूँ। ले लीजिए।

वंशीधर ने लपककर बुढ़िया के हाथ से पत्र ले लिया, उनकी छाती आशा से धक-धक करने लगी। गोकुल ने शायद यह पत्र लिखा होगा। अंधेरे में कुछ न सुझा। पूछा- कहाँ से आयी है?

बुढ़िया ने कहा- वह जो बाबू हुसनेगंज में रहते हैं, जो बंबई में नौकर हैं, उन्हीं की बहू ने भेजा है।

वंशीधर ने कमरे में जाकर लैंप जलाया और पत्र पढ़ने लगे। मानी का खत था। लिखा था-

'पूज्य चाचाजी, अभागिनी मानी का प्रणाम स्वीकार कीजिए।

मुझे यह सुनकर अत्यंत दु:ख हुआ कि गोकुल भैया कहीं चले गये और अब तक उनका पता नहीं है। मैं ही इसका कारण हूँ। यह कलंक मेरे ही मुख पर लगना था वह भी लग गया। मेरे कारण आपको इतना शोक हुआ, इसका मुझे बहुत दु:ख है, मगर भैया आवेंगे अवश्य, इसका मुझे विश्वा‍स है। मैं इसी नौ बजे वाली गाड़ी से बंबई जा रही हूँ । मुझसे जो कुछ अपराध हुआ है, उसे क्षमा कीजिएगा और चाची से मेरा प्रणाम कहिएगा। मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि शीघ्र ही गोकुल भैया सकुशल घर लौट आवें। ईश्वर की इच्छा हुई तो भैया के विवाह में आपके चरणों के दर्शन करूँगी।'

वंशीधर ने पत्र को फाड़कर पुर्जे-पुर्जे कर डाला। घड़ी में देखा तो आठ बज रहे थे। तुरंत कपड़े पहने, सड़क पर आकर एक्का किया और स्टेशन चले।

8

बंबई मेल प्लेटफार्म पर खड़ी थी। मुसा‍फिरों में भगदड़ मची हुई थी। खोमचे वालों की चीख-पुकार से कान में पड़ी आवाज न सुनाई देती थी। गाड़ी छूटने में थोड़ी ही देर थी। मानी और उसकी सास एक जनाने कमरे में ‍बैठी हुई थीं। मानी सजल नेत्रों से सामने ताक रही थी। अतीत चाहे दुःखद ही क्यों न हो, उसकी स्मृतियाँ मधुर होती हैं। मानी आज बुरे दिनों को स्मरण करके दु:खी हो रही थी। गोकुल से अब न जाने कब भेंट होगी। चाचाजी आ जाते तो उनके दर्शन कर लेती। कभी-कभी बिगड़ते थे तो क्या, उसके भले ही के लिये तो डाँटते थे। वह आवेंगे नहीं। अब तो गाड़ी छूटने में थोड़ी ही देर है। कैसे आवें, समाज में हलचल न मच जायगी। भगवान की इच्छा होगी, तो अबकी जब यहाँ आऊँगी, तो जरूर उनके दर्शन करूँगी।

एकाएक उसने लाला वंशीधर को आते देखा। वह गाड़ी से निकलकर बाहर खड़ी हो गयी और चाचाजी की ओर बढ़ी। चरणों पर गिरना चाहती थी कि वह पीछे हट गये और आँखें निकालकर बोले- मुझे मत छू, दूर रह, अभगिनी कहीं की। मुँह में कालिख लगाकर मुझे पत्र लिखती है। तुझे मौत भी नहीं आती। तूने मेरे कुल का सर्वनाश कर दिया। आज तक गोकुल का पता नहीं है। तेरे कारण वह घर से निकला और तू अभी तक मेरी छाती पर मूँग दलने को बैठी है। तेरे लिये क्या गंगा में पानी नहीं है? मैं तुझे ऐसी कुलटा, ऐसी हरजाई समझता, तो पहले दिन ही तेरा गला घोंट देता। अब मुझे अपनी भक्ति दिखलाने चली है। तेरे जैसी पापिष्ठाओं का मरना ही अच्छा है, पृथ्वी का बोझ कम हो जायगा।

प्लेटफार्म पर सैकड़ों आदमियों की भीड़ लग गयी थी और वंशीधर निर्लज्ज भाव से गालियों की बौछार कर रहे थे। किसी की समझ में न आता था, क्या माजरा है, पर मन से सब लाला को ‍धिक्कार रहे ‍थे।

मानी पाषाण-मूर्ति के सामान खड़ी थी, मानो वहीं जम गयी हो। उसका सारा अभिमान चूर-चूर हो गया। ऐसा जी चाहता था, धरती फट जाय और मैं समा जाऊँ, कोई वज्र गिरकर उसके जीवन- अधम जीवन- का अंत कर दे। इतने आदमियों के सामने उसका पानी उतर गया। उसकी आँखों से पानी की एक बूँद भी न निकली, हृदय में आँसू न थे। उसकी जगह एक दावानल-सा दहक रहा था, जो मानो वेग से मस्तिष्क की ओर बढ़ता चला जाता था। संसार में कौन जीवन इतना अधम होगा !

सास ने पुकारा- बहू, अंदर आ जाओ।

9

गाड़ी चली तो माता ने कहा- ऐसा बेशर्म आदमी नहीं देखा। मुझे तो ऐसा क्रोध आ रहा था कि उसका मुँह नोच लूँ।

मानी ने सिर ऊपर न उठाया।

माता ‍फिर बोली- न जाने इन सड़ियलों ‍को बुद्धि कब आयेगी, अब तो मरने के दिन भी आ गये। पूछो, तेरा लड़का भाग गया तो हम क्या करें; अगर ऐसे पापी न होते तो यह वज्र ही क्यों गिरता।

मानी ने फिर भी मुँह न खोला। शायद उसे कुछ सुनाई ही न दिया था। शायद उसे अपने अस्तित्व का ज्ञान भी न था। वह टकटकी लगाये खिड़की की ओर ताक रही थी। उस अंधकार में उसे जाने क्या सूझ रहा था ।

कानपुर आया। माता ने पूछा- बेटी, कुछ खाओगी? थोड़ी-सी मिठाई खा लो; दस कब के बज गये।

मानी ने कहा- अभी तो भूख नहीं है अम्माँ, फिर खा लूँगी।

माताजी सोई। मानी भी लेटी; पर चचा की वह सूरत आँखों के सामने खड़ी थी और उनकी बातें कानों में गूँज रही थीं- आह ! मैं इतनी नीच हूँ, ऐसी पतित, कि मेरे मर जाने से पृथ्वी का भार हल्का हो जायगा? क्या कहा था, तू अपने माँ-बाप की बेटी है तो फिर मुँह मत दिखाना। न दिखाऊँगी, जिस मुँह पर ऐसी कालिमा लगी हुई है, उसे किसी को दिखाने की इच्छा भी नहीं है।

गाड़ी अंधकार को चीरती चली जा रही थी। मानी ने अपना ट्रंक खोला और अपने आभूषण निकालकर उसमें रख दिये। ‍फिर इंद्रनाथ का चित्र निकालकर उसे देर तक देखती रही । उसकी आँखों में गर्व की एक झलक-सी दिखाई दी। उसने तसवीर रख दी और आप-ही-आप बोली- नहीं-नहीं, मैं तुम्हारे जीवन को कलंकित नहीं कर सकती। तुम देवतुल्य हो, तुमने मुझ पर दया की है। मैं अपने पूर्व संस्कारों का प्रायश्चित कर रही थी। तुमने मुझे उठाकर हृदय से लगा लिया; लेकिन मैं तुम्हें कलंकित न करूँगी। तुम्हें मुझसे प्रेम है। तुम मेरे लिये अनादर, अपमान, निंदा सब सह लोगे; पर मैं तुम्हारे जीवन का भार न ‍बनूँगी।

गाड़ी अंधकार को चीरती चली जा रही थी। मानी आकाश की ओर इतनी देर तक देखती रही कि सारे तारे अदृश्य हो गये और उस अंधकार में उसे अपनी माता का स्वरूप दिखाई दिया-ऐसा उज्जवल, ऐसा प्रत्यक्ष कि उसने चौंककर आँखें बंद कर लीं।

10

न जाने कितनी रात गुजर चुकी थी। दरवाजा खुलने की आहट से माता जी की आँखें खुल गयीं। गाड़ी तेजी से चलती जा रही थी; मगर बहू का पता न था। वह आँखें मलकर उठ बैठीं और पुकारा- बहू ! बहू ! कोई जवाब न मिला।

उनका हृदय धक-धक करने लगा। ऊपर के बर्थ पर नजर डाली, पेशाबखाने में देखा, बेंचों के नीचे देखा, बहू कहीं न थी। तब वह द्वार पर आकर खड़ी हो गयी। बहू का क्या हुआ, यह द्वार किसने खोला? कोई गाड़ी में तो नहीं आया। उनका जी घबराने लगा। उन्होंने किवाड़ बंद कर दिया और जोर-जोर से रोने लगीं । किससे पूछें? डाकगाड़ी अब न जाने कितनी देर में रूकेगी। कहती थी, बहू मरदानी गाड़ी में बैठें। पर मेरा कहना न माना। कहने लगी, अम्माँ जी, आपको सोने की तकलीफ होगी। यही आराम दे गयी?

सहसा उसे खतरे की जंजीर याद आई। उसने जोर-जोर से कई बार जंजीर खींची। कई मिनट के बाद गाड़ी रूकी। गार्ड आया। पड़ोस के कमरे से दो-चार आदमी और भी आये। फिर लोगों ने सारा कमरा तलाश किया। नीचे तख्ते को ध्यान से देखा। रक्त का कोई चिह्न न था। असबाब की जाँच की। बिस्तर, संदूक, संदुकची, बरतन सब मौजूद थे। ताले भी सब बंद थे। कोई चीज गायब न थी। अगर बाहर से कोई आदमी आता, तो चलती गाड़ी से जाता कहाँ? एक स्त्री को लेकर गाड़ी से कूद जाना असंभव था। सब लोग इन लक्षणों से इसी नतीजे पर पहुँचे कि मानी द्वार खोलकर बाहर झाँकने लगी होगी और मुठिया हाथ से छूट जाने के कारण गिर पड़ी होगी। गार्ड भला आदमी था। उसने नीचे उतरकर एक मील तक सड़क के दोनों तरफ तलाश किया। मानी का कोई निशान न मिला। रात को इससे ज्यादा और क्या किया जा सकता था? माताजी को कुछ लोग आग्रहपूर्वक एक मरदाने डिब्बे में ले गये। यह निश्चय हुआ कि माताजी अगले स्टेशन पर उतर पड़ें और सबेरे इधर-उधर दूर तक देख-भाल की जाय। विपत्ति में हम परमुखापेक्षी हो जाते हैं। माताजी कभी इसका मुँह देखती, कभी उसका। उनकी याचना से भरी हुई आँखें मानो सबसे कह रही थीं- कोई मेरी बच्ची को खोज क्यों नहीं लाता?हाय, अभी तो बेचारी की चुंदरी भी नहीं मैली हुई। कैसे-कैसे साधों और अरमानों से भरी पति के पास जा रही थी। कोई उस दुष्ट वंशीधर से जाकर कहता क्यों ‍नहीं- ले तेरी मनोभिलाषा पूरी हो गयी- जो तू चाहता था, वह पूरा हो गया। क्या अब भी तेरी छाती नहीं जुड़ाती ।

वुद्धा बैठी रो रही थी और गाड़ी अंधकार को चीरती चली जाती थी ।

11

रविवार का दिन था। संध्या समय इंद्रनाथ दो-तीन मित्रों के साथ अपने घर की छत पर बैठा हुआ था। आपस में हास-परिहास हो रहा था। मानी का आगमन इस परिहास का विषय था।

एक मित्र बोले- क्यों इंद्र, तुमने तो वैवाहिक जीवन का कुछ अनुभव किया है, हमें क्या सलाह देते हो? बनायें कहीं घोसला, या यों ही डालियों पर बैठे-बैठे दिन काटें? पत्र-पत्रिकाओं को देखकर तो यही मालूम होता है कि वैवाहिक जीवन और नरक में कुछ थोड़ा ही-सा अंतर है ।

इंद्रनाथ ने मुस्कराकर कहा- यह तो तकदीर का खेल है, भाई, सोलहों आना तकदीर का। अगर एक दशा में वैवाहिक जीवन नरकतुल्य है, तो दूसरी दशा में स्वर्ग से कम नहीं ।

दूसरे मित्र बोले- इतनी आजादी तो भला क्या रहेगी?

इंद्रनाथ- इतनी क्या, इसका शतांश भी न रहेगी। अगर तुम रोज सिनेमा देखकर बारह बजे लौटना चाहते हो, नौ बजे सोकर उठना चाहते हो और दफ्तर से चार बजे लौटकर ताश खेलना चाहते हो, तो तुम्हें विवाह करने से कोई सुख न होगा। और जो हर महीने सूट बनवाते हो, तब शायद साल-भर में भी न बनवा सको।

'श्रीमतीजी, तो आज रात की गाड़ी से आ रही हैं?'

'हाँ, मेल से। मेरे साथ चलकर उन्हें रिसीव करोगे न?

'यह भी पूछने की बात है ! अब घर कौन जाता है, मगर कल दावत खिलानी पड़ेगी।'

सहसा तार के चपरासी ने आकर इंद्रनाथ के हाथ में तार का लिफाफा रख दिया।

इंद्रनाथ का चेहरा खिल उठा। झट तार खोलकर पढ़ने लगा। एक बार पढ़ते ही उसका हृदय धक हो गया, साँस रूक गयी, सिर घूमने लगा। आँखों की रोशनी लुप्त हो गयी, जैसे विश्व पर काला परदा पड़ गया हो। उसने तार को मित्रों के सामने फेंक दिया ओर दोनों हाथों से मुँह ढाँपकर फूट-फूटकर रोने लगा। दोनों मित्रों ने घबड़ाकर तार उठा लिया और उसे पढ़ते ही हतबुद्धि-से हो दीवार की ओर ताकने लगे। क्या सोच रहे थे और क्या हो गया !

तार में लिखा था- मानी गाड़ी से कूद पड़ी। उसकी लाश लालपुर से तीन मील पर पायी गयी। मैं लालपुर में हूँ, तुरंत आओ।

एक मित्र ने कहा- किसी शत्रु ने झूठी खबर न भेज दी हो?

दूसरे मित्र बोले- हाँ, कभी-कभी लोग ऐसी शरारतें करते हैं।

इंद्रनाथ ने शून्य नेत्रों से उनकी ओर देखा, पर मुँह से कुछ बोले नहीं।

कई मिनट तीनों आदमी निर्वाक् निस्पंद बैठे रहे। एकाएक इंद्रनाथ खड़े हो गये और बोले- मैं इस गाड़ी से जाऊँगा।

बंबई से नौ बजे रात को गाड़ी छूटती थी। दोनों मित्रों ने चटपट बिस्तर आदि बांधकर तैयार कर दिया। एक ने बिस्तर उठाया, दूसरे ने ट्रंक। इंद्रनाथ ने चटपट कपड़े पहने और स्टेशन चले। निराशा आगे थी, आशा रोती हुई पीछे।

12

एक सप्ताह गुजर गया था। लाला वंशीधर दफ्तर से आकर द्वार पर बैठे ही थे कि इंद्रनाथ ने आकर प्रणाम किया। वंशीधर उसे देखकर चौंक पड़े, उसके अनपेक्षित आगमन पर नहीं, उसकी विकृत दशा पर, मानो वीतराग शोक सामने खड़ा हो, मानो कोई हृदय से निकली हुई आह मूर्तिमान् हो गयी हो।

वंशीधर ने पूछा- तुम तो बंबई चले गये थे न?

इंद्रनाथ ने जवाब दिया- जी हाँ, आज ही आया हूँ।

वंशीधर ने तीखे स्वर में कहा- गोकुल को तो तुम ले बीते !

इंद्रनाथ ने अपनी अंगूठी की ओर ताकते हुए कहा- वह मेरे घर पर हैं।

वंशीधर के उदास मुख पर हर्ष का प्रकाश दौड़ गया। बोले- तो यहाँ क्यों नहीं आये? तुमसे कहाँ उसकी भेंट हुई? क्या बंबई चला गया था?

'जी नहीं, कल मैं गाड़ी से उतरा तो स्टेशन पर मिल गये।'

'तो जाकर लिवा लाओ न, जो किया अच्छा किया।'

यह कहते हुए वह घर में दौड़े। एक क्षण में गोकुल की माता ने उसे अंदर बुलाया।

वह अंदर गया तो माता ने उसे सिर से पाँव तक देखा- तुम बीमार थे क्या भैया? चेहरा क्यों इतना उतरा है?

गोकुल की माता ने पानी का लोटा रखकर कहा- हाथ-मुँह धो डालो बेटा, गोकुल है तो अच्छी तरह? कहाँ रहा इतने दिन ! तब से सैकड़ों मन्नतें मान डालीं। आया क्यों नहीं?

इंद्रनाथ ने हाथ-मुँह धोते हुए कहा- मैंने तो कहा था, चलो, लेकिन डर के मारे नहीं आते।

'और था कहाँ इतने दिन?'

'कहते थे, देहातों में घूमता रहा।'

'तो क्या तुम अकेले बंबई से आये हो?'

'जी नहीं, अम्माँ भी आयी हैं।'

गोकुल की माता ने कुछ सकुचाकर पूछा- मानी तो अच्छी तरह है?

इंद्रनाथ ने हँसकर कहा- जी हाँ, अब वह बड़े सुख से हैं। संसार के बंधनों से छूट गयीं।

माता ने अविश्वास करके कहा- चल, नटखट कहीं का ! बेचारी को कोस रहा है, मगर इतनी जल्दी बंबई से लौट क्यों आये?

इंद्रनाथ ने मुस्कराते हुए कहा- क्या करता ! माताजी का तार बंबई में मिला कि मानी ने गाड़ी से कूदकर प्राण दे दिये। वह लालपुर में पड़ी हुई थी, दौड़ा हुआ आया। वहीं दाह-क्रिया की। आज घर चला आया। अब मेरा अपराध क्षमा कीजिए।

वह और कुछ न कह सका। आँसुओं के वेग ने गला बंद कर दिया। जेब से एक पत्र निकालकर माता के सामने रखता हुआ बोला- उसके संदूक में यही पत्र मिला है।

गोकुल की माता कई मिनट तक मर्माहत-सी बैठी जमीन की ओर ताकती रही ! शोक और उससे अधिक पश्चाताप ने सिर को दबा रखा था। फिर पत्र उठाकर पढ़ने लगी-

'स्वामी'

जब यह पत्र आपके हाथों में पहुँचेगा, तब तक मैं इस संसार से विदा हो जाऊँगी। मैं बड़ी अभागिन हूँ। मेरे लिये संसार में स्थान नहीं है। आपको भी मेरे कारण क्लेश और निंदा ही मिलेगी। मैने सोचकर देखा और यही निश्चय किया कि मेरे लिये मरना ही अच्छा है। मुझ पर आपने जो दया की थी, उसके लिये आपको क्या प्रतिदान करूँ? जीवन में मैंने कभी किसी वस्तु की इच्छा नहीं की, परंतु मुझे दु:ख है कि आपके चरणों पर सिर रखकर न मर सकी। मेरी अंतिम याचना है कि मेरे लिये आप शोक न कीजिएगा। ईश्वर आपको सदा सुखी रखे।'

माताजी ने पत्र रख दिया और आँखों से आँसू बहने लगे। बरामदे में वंशीधर निस्पंद खड़े थे और जैसे मानी लज्जानत उनके सामने खड़ी थी।

स्वैडल्ड बेबीज़ || Swaddled Babies Orchid || स्वैडल्ड बेबीज़ ऑर्किड - अद्भुत अजीब फूल

स्वैडल्ड बेबीज़ ऑर्किड - अद्भुत अजीब फूल

सामान्य नाम: स्वैडल्ड बेबीज ऑर्किड, ट्यूलिप ऑर्किड
वैज्ञानिक नाम: एंगुलोआ यूनिफ्लोरा

स्वैडल्ड बेबीज़ || Swaddled Babies Orchid || स्वैडल्ड बेबीज़ ऑर्किड - अद्भुत अजीब फूल

"स्वैडल्ड बेबीज़" ऑर्किड की ऐसी प्रजाति है, जो खिलने के बाद ऐसा लगता है कि उसके अंदर कपड़े में लिपटा बच्चा लेटा है। इसे खिलने के बाद किसी भी तरह से देखने पर बच्चा दिखाई देता है। ये बिलकुल सोते हुए छोटे बच्चे के जैसे दिखाई देते हैं। यह एक खूबसूरत ऑर्किड है, जिसका वैज्ञानिक नाम एंगुलोआ यूनीफ्लोरा (Anguloa Uniflora) है। यह फूल दक्षिण अमेरिका के कोलम्बियाई एंडीज का मूल निवासी है। फूल के ऊपरी हिस्से में एक छेद होता है और अंदर का हिस्सा स्वैडल्ड बेबी जैसा दिखता है। इसलिए इसका नाम ऐसा रखा गया है।

स्वैडल्ड बेबीज़ || Swaddled Babies Orchid || स्वैडल्ड बेबीज़ ऑर्किड - अद्भुत अजीब फूल

पौधे की सबसे आश्चर्यजनक विशेषता इसके फूल हैं जो बड़े, मलाईदार-सफ़ेद और मोमी होते हैं। उनकी संरचना काफी जटिल है और खुलने के एक निश्चित चरण में, वे स्वैडलिंग कपड़े में लिपटे एक बच्चे की तरह दिखने लगते हैं। प्रत्येक फूल स्यूडोबल्ब के आधार से एक ही तने से खिलता है। 

स्वैडल्ड बेबीज़ || Swaddled Babies Orchid || स्वैडल्ड बेबीज़ ऑर्किड - अद्भुत अजीब फूल

 इसका पौधा केवल 18-24 इंच की ऊंचाई तक बढ़ता है। इस ऑर्किड की पतली और प्लीटेड पत्तियों के ठीक नीचे शंक्वाकार आकार के छद्म बल्ब देखे जा सकते हैं। हालाँकि, इस ऑर्किड का मुख्य आकर्षण, बिना किसी संदेह के, इसका जटिल फूल है जो एक बच्चे की तरह दिखता है जिसे एक कपड़े में लपेटा गया है। पौधे के आकार की तुलना में फूल असामान्य रूप से बड़े होते हैं। ये अद्भुत फूल अक्सर क्रीम रंग के या पूरी तरह से सफेद होते हैं और प्रकृति में मोमी होते हैं। इन फूलों के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि वे बेहद सुगंधित होते हैं। वे आमतौर पर वसंत ऋतु के दौरान खिलते हैं।

स्वैडल्ड बेबीज़ || Swaddled Babies Orchid || स्वैडल्ड बेबीज़ ऑर्किड - अद्भुत अजीब फूल

ऑर्किड प्रजाति कुल मिलाकर कई अद्भुत फूल पैदा करती है, लेकिन सबसे बढ़िया फूल एंगुलोआ यूनिफ्लोरा है, जिसके फूल स्वैडल्ड बेबीज जैसे होते हैं। इस खूबसूरत ऑर्किड की खोज वनस्पतिशास्त्री एंटोनियो पावन जिमेनेज और हिपोलिटो रुइज़ लोपेज़ ने चिली और पेरू से 1777 से 1788 तक दस साल के अभियान में की थी। वैज्ञानिकों को वनस्पतिशास्त्री डॉन फ्रांसिस्को डी एंगुलो के सम्मान में इस ऑर्किड का नाम एंगुला यूनिफ्लोरा रखने में दस साल लग गए। जो पेरू के खान महानिदेशक भी थे।

English Translate 

Swaddled Babies Orchid - Amazing Weird Flower


Common Name: Swaddled Babies Orchid, Tulip Orchid
Scientific Name: Anguloa Uniflora

स्वैडल्ड बेबीज़ || Swaddled Babies Orchid || स्वैडल्ड बेबीज़ ऑर्किड - अद्भुत अजीब फूल

"Swaddled Babies" is a species of orchid that, after blooming, looks like a baby wrapped in a cloth is lying inside it. After it blooms, the baby is visible in any way. They look exactly like a sleeping baby. This is a beautiful orchid, whose scientific name is Anguloa Uniflora. This flower is native to the Colombian Andes of South America. There is a hole in the upper part of the flower and the inside looks like a swaddled baby. Hence it is named so.

The most amazing feature of the plant is its flowers which are large, creamy-white and waxy. Their structure is quite complex and at a certain stage of opening, they start looking like a baby wrapped in swaddling cloth. Each flower blooms from a single stem from the base of the pseudobulb.

स्वैडल्ड बेबीज़ || Swaddled Babies Orchid || स्वैडल्ड बेबीज़ ऑर्किड - अद्भुत अजीब फूल

The plant grows to a height of only 18-24 inches. The conical shaped pseudobulbs can be seen just below the thin and pleated leaves of this orchid. However, the main attraction of this orchid, without a doubt, is its intricate flower that looks like a baby that has been swaddled in a cloth. The flowers are unusually large compared to the size of the plant. These wonderful flowers are often cream colored or completely white and are waxy in nature. Another interesting fact about these flowers is that they are extremely fragrant. They usually bloom during the spring season.

स्वैडल्ड बेबीज़ || Swaddled Babies Orchid || स्वैडल्ड बेबीज़ ऑर्किड - अद्भुत अजीब फूल

The orchid species produces many wonderful flowers overall, but the most wonderful flower is Anguloa uniflora, whose flowers resemble swaddled babies. This beautiful orchid was discovered by botanists Antonio Pavón Jiménez and Hipólito Ruiz López in a ten-year expedition to Chile and Peru from 1777 to 1788. It took ten years for scientists to name this orchid Angula uniflora in honor of botanist Don Francisco de Angulo, who was also the Director General of Mines of Peru.

श्री बेट द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात || Shri Beyt Dwarkadhish Temple

बेट द्वारकाधीश मंदिर

द्वारका, जिसे ब्रह्मा या मोक्ष का द्वार कहा जाता है, हिंदू पौराणिक कथाओं में अत्यधिक महत्व रखता है। गुजरात के सौराष्ट्र प्रायद्वीप में स्थित, द्वारका को गुजरात की प्राचीन राजधानी और सात प्राचीन नगरों में से एक माना जाता है। 

श्री बेट द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात || Shri Beyt Dwarkadhish Temple

बेट द्वारका या भेंट द्वारका एक अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल है, जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने राजा के रूप में द्वारका में कई वर्षों के दौरान अपना मूल निवास बनाया था। यह भूमि कच्छ की खाड़ी में द्वारका के तट पर स्थित है। बेट द्वारका का दूसरा नाम बेट शंखोंद्वार है।

भेट का मतलब मुलाकात और उपहार भी होता है। इस नगरी का नाम इन्हीं दो बातों के कारण भेट पड़ा। दरअसल ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण की अपने मित्र सुदामा से भेट हुई थी। इस मंदिर में कृष्‍ण और सुदामा की प्रतिमाओं की पूजा होती है। 

द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्‍ण का महल यहीं पर हुआ करता था। किंवदंतियों के अनुसार, मथुरा छोड़ने के बाद भगवान कृष्ण ने गोमती नदी के किनारे द्वारका में अपना राज्य स्थापित किया। समय के साथ, यह नगर समुद्र में डूब गया और इसे छह बार पुनर्निर्मित किया गया, वर्तमान शहर सातवां है। पुरातात्विक खुदाई से एक प्राचीन शहर की खोज हुई है जो सदियों पुराना है, जिसमें एक सुविचारित नगर योजना और सुसज्जित दीवारें शामिल हैं।

श्री बेट द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात || Shri Beyt Dwarkadhish Temple

द्वारका के न्‍यायाधीश भगवान कृष्‍ण ही थे। भगवान कृष्‍ण को यहां भक्‍तजन द्वारकाधीश के नाम से पुकारते हैं। सुदामा जी जब अपने मित्र से भेंट करने यहां आए थे, तो एक छोटी सी पोटली में चावल भी लाए थे। इन्‍हीं चावलों को खाकर भगवान कृष्‍ण ने अपने मित्र की दरिद्रता दूर कर दी थी। इसलिए यहां आज भी चावल दान करने की परंपरा है। ऐसी मान्‍यता है कि मंदिर में चावल दान देने से भक्‍त कई जन्मों तक गरीब नहीं होते।

यहां के पुजारी बताते हैं कि एक बार संपूर्ण द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी, लेकिन भेंट द्वारका बची रही द्वारका का यह हिस्सा एक टापू के रूप में मौजूद है। मंदिर का अपना अन्न क्षेत्र भी है। यहां मंदिर का निर्माण 500 साल पहले महाप्रभु संत वल्‍लभाचार्य ने करवाया था। मंदिर में मौजूद भगवान द्वारकाधीश की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि इसे रानी रुक्मिणी ने स्‍वयं तैयार किया था।

श्री बेट द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात || Shri Beyt Dwarkadhish Temple

द्वारका एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जो दूर-दराज से भक्तों को आकर्षित करता है। 2000 साल पुराना प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर भगवान कृष्ण की दिव्य उपस्थिति का प्रमाण है। इस शहर में अद्भुत समुद्र तट और प्राचीन द्वारका के जलमग्न अवशेषों को देखने के लिए स्कूबा डाइविंग का अवसर भी मिलता है।

English Translate

Shri Beyt Dwarkadhish Temple

Dwarka, which is called the gate of Brahma or salvation, holds immense importance in Hindu mythology. Located in the Saurashtra peninsula of Gujarat, Dwarka is considered to be the ancient capital of Gujarat and one of the seven ancient cities.

श्री बेट द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात || Shri Beyt Dwarkadhish Temple

Bet Dwarka or Bhent Dwarka is a very sacred pilgrimage site, which is said that Lord Shri Krishna made his native place in Dwarka during his many years as a king. This land is located on the coast of Dwarka in the Gulf of Kutch. Another name for Bet Dwarka is Bet Shankhondwar.

Bhet also means meeting and gift. This city got its name Bhet due to these two things. Actually, it is believed that this is the place where Lord Krishna met his friend Sudama. The idols of Krishna and Sudama are worshipped in this temple.

In the Dwapar era, the palace of Lord Krishna used to be here. According to legends, after leaving Mathura, Lord Krishna established his kingdom at Dwarka on the banks of the Gomti River. Over time, the city sank into the sea and was rebuilt six times, the current city being the seventh. Archaeological excavations have discovered an ancient city that is centuries old, including a well-thought-out city plan and decorated walls.

श्री बेट द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात || Shri Beyt Dwarkadhish Temple

Lord Krishna was the judge of Dwarka. Devotees here call Lord Krishna as Dwarkadhish. When Sudama ji came here to meet his friend, he also brought rice in a small bundle. By eating these rice, Lord Krishna removed the poverty of his friend. Therefore, there is a tradition of donating rice here even today. It is believed that by donating rice in the temple, devotees do not become poor for many births.

The priests here say that once the entire city of Dwarka was submerged in the sea, but Bhet Dwarka remained; this part of Dwarka exists as an island. The temple also has its own food area. The temple was built 500 years ago by Mahaprabhu Saint Vallabhacharya. The idol of Lord Dwarkadhish present in the temple is said to have been prepared by Queen Rukmini herself.

Dwarka is a major pilgrimage site, which attracts devotees from far and wide. The famous 2000-year-old Dwarkadhish temple is a testimony to the divine presence of Lord Krishna. The city also has amazing beaches and the opportunity to go scuba diving to see the submerged remains of ancient Dwarka.