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मध्यप्रदेश का राज्य पशु "दलदली हिरण/ बारासिंघा" || State animal of Madhya Pradesh

मध्यप्रदेश का राज्य पशु "दलदली हिरण/ बारासिंघा"

स्थानीय नाम: दलदली हिरण/ बारासिंघा
वैज्ञानिक नाम: रुसेर्वस डुवौसीली

बारहसिंगा मध्य प्रदेश का राज्य पशु है। इसे 'दलदल के मृग' के नाम से जाना जाता है। यह हिरण की एक दुर्लभ प्रजाति है। यह गंगा के मैदानों में बहुतायत में पाए जाते हैं। वे दलदली भूमि और कई प्रकार के जंगलों में पाए जा सकते हैं, शुष्क पर्णपाती से लेकर नम पर्णपाती से लेकर सदाबहार तक। वे घास के मैदानों, वन आवासों और चमकदार बाढ़ के मैदानों में जल निकायों के पास भी पाए जा सकते हैं। यह राज्य के 'कान्हा किसली राष्ट्रीय पार्क' में पायी जाती है। देश में यह उत्तर भारत और मध्य भारत के अतिरिक्त दक्षिण- पश्चिमी नेपाल में पाया जाता है। बारहसिंगा की प्रजाति पाकिस्तान और बांग्लादेश से विलुप्त हो चुकी है। इस जानवर को घने घास वाले विशाल क्षेत्र पसंद हैं। 

मध्यप्रदेश का राज्य पशु "दलदली हिरण/ बारासिंघा" || State animal of Madhya Pradesh

बारहसिंगा से तात्पर्य 12 सींगों से नहीं है। दरअसल इसके सींग विकसित होकर एक से दो शाखा में बढ़ते रहते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से नर में इनकी अधिकतम 10-14 शाखाएं हो जाती हैं। हालांकि कुछ में तो इनकी संख्या 20 तक पहुँच जाती है। वयस्क नर की लम्बाई अधिकतम चार फीस से कुछ अधिक हो सकती है। नर बारहसिंगा का वजन 150 से 280 किलोग्राम के बीच होता है, जबकि मादा का वजन 120 से 170 किलोग्राम के बीच होता है।इसके सींगों की अधिकतम लम्बाई 104.1 सेमी. रिकार्ड की गई है।

सिर के ऊपर और शरीर के निचले हिस्से के बीच की दूरी 160 से 185 सेमी के बीच होती है। उनका शरीर चमकीले नारंगी से गहरे भूरे रंग का होता है, पैरों के अंदर, दुम और पूंछ के नीचे का हिस्सा गंदा सफेद या सफेद होता है, जो किनारों और पेट पर हल्के भूरे रंग का हो जाता है। उनके कान लंबे और चौड़े होते हैं, और खोपड़ी छोटी और मांसल होती है। बारहसिंगा के जानवरों के पैर लंबे और शक्तिशाली होते हैं। उनके खुर लंबे और चौड़े होते हैं, जबकि उनके नीचे का हिस्सा सफेद या गंदे सफेद रंग का होता है।

मध्यप्रदेश का राज्य पशु "दलदली हिरण/ बारासिंघा" || State animal of Madhya Pradesh

नर मादाओं की तुलना में एक या दो शेड गहरे होते हैं। उनकी गर्दन लंबे बालों से ढकी होती है। ऊपर के बाल रोएँदार और नारंगी-भूरे रंग के होते हैं, जबकि नीचे के बाल सफ़ेद होते हैं और रीढ़ की हड्डी के नीचे सफ़ेद बिंदु होते हैं। मादा का रंग नर की अपेक्षा थोड़ा हल्का होता है। इन जानवरों की पीठ पर एक काली पट्टी होती है जिसके दोनों तरफ़ सफ़ेद बिंदुओं की एक पंक्ति होती है। उनका प्रजनन काल सितंबर से अप्रैल तक रहता है। 

मध्यप्रदेश का राज्य पशु "दलदली हिरण/ बारासिंघा" || State animal of Madhya Pradesh

नर बारहसिंगा के सींग हर साल गर्मियों में झड़ जाते है। इसके बाद नवम्बर माह तक पुनः विकसित हो जाते हैं। बाघ, तेंदुआ और जंगली कुत्ते बारहसिंगा के प्राकृतिक शिकारियों की श्रेणी में आते हैं। पहले इनकी संख्या सिंध से लेकर ब्रह्मपुत्र तक संपूर्ण क्षेत्र में थी। परंतु अब ये कुछ ही क्षेत्रों में बचे हैं। प्राकृतिक आवासों का घटना व शिकार इनकी कमी का मुख्य कारण बन रहा है।

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State Animal of Madhya Pradesh "Swamp Deer/ Barasingha"

Local Name: Swamp Deer/ Barasingha
Scientific Name: Rucervus duvauceli

Barasingha is the state animal of Madhya Pradesh. It is known as 'Swamp Deer'. It is a rare species of deer. It is found in abundance in the Gangetic plains. They can be found in marshlands and many types of forests, from dry deciduous to moist deciduous to evergreen. They can also be found near water bodies in grasslands, forest habitats and bright floodplains. It is found in the 'Kanha Kisli National Park' of the state. In the country, it is found in North India and Central India as well as in South-Western Nepal. The species of Barasingha has become extinct from Pakistan and Bangladesh. This animal likes vast areas with dense grass.

मध्यप्रदेश का राज्य पशु "दलदली हिरण/ बारासिंघा" || State animal of Madhya Pradesh

Barasingha does not mean 12 horns. Actually its horns develop and keep growing in one to two branches. Through this process, males develop a maximum of 10-14 branches. However, in some, their number reaches 20. The length of an adult male can be a little more than four feet. The weight of a male reindeer is between 150 and 280 kg, while the weight of a female is between 120 and 170 kg. The maximum length of its horns has been recorded as 104.1 cm.

मध्यप्रदेश का राज्य पशु "दलदली हिरण/ बारासिंघा" || State animal of Madhya Pradesh

The distance between the top of the head and the bottom of the body is between 160 and 185 cm. Their body is bright orange to dark brown, the inside of the legs, rump and the underside of the tail is dirty white or white, which becomes light brown on the sides and belly. Their ears are long and wide, and the skull is small and muscular. The legs of reindeer animals are long and powerful. Their hooves are long and wide, while the underside of them is white or dirty white.

The males are one or two shades darker than the females. Their neck is covered with long hair. The hair on top is hairy and orange-brown in colour, while the hair below is white and there are white dots below the spine. The female is slightly lighter in colour than the males. These animals have a black stripe on their back with a row of white dots on either side. Their breeding season lasts from September to April.

मध्यप्रदेश का राज्य पशु "दलदली हिरण/ बारासिंघा" || State animal of Madhya Pradesh

The horns of the male barasingha fall off every year in summer. After this, they grow again by the month of November. Tigers, leopards and wild dogs are the natural predators of barasingha. Earlier, their number was in the entire area from Sindh to Brahmaputra. But now they are left in only a few areas. The loss of natural habitats and hunting are becoming the main reason for their decline.

भारतीय राज्य के राजकीय पशुओं की सूची || List of State Animals of India ||

भारतीय राज्य के राजकीय पक्षियों की सूची |(List of State Birds of India)

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

आज आपको लिए चलते हैं मध्य प्रदेश के सतना शहर में। सतना शहर अपने ऐतिहासिक सांस्कृतिक और यहां की पवित्र नदी तमसा नदी (टोंस नदी) के लिए जाना जाता है। सतना शहर का इतिहास बहुत ही पुराना है। यह पौराणिक और धार्मिक संस्‍मरणों की अद्भुत पहचान है। महाभारत काल से ही इसका इतिहास रहा है। सतना शहर के आसपास हिंदू धार्मिक कई सारे स्थल है, जो अपनी ऐतिहासिक और पौराणिक गाथाओं का वर्णन करते हैं। यह शहर पूर्ण रूप से बुंदेलखंड के अंदर आता है। इसके अलावा सतना मध्य प्रदेश का सातवाँ सबसे बड़ा और आठवां सबसे अधिक आबादी वाला शहर है, जो अपनी सीमेंट फैक्ट्री और सीमेंट उत्पादन के लिए पूरे भारत भर में प्रसिद्ध है। सतना में डोलोमाइट और चूना पत्‍थर की बहुतायत है। सतना धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल के साथ ही प्राकृतिक पर्यावरण और प्राकृतिक झील झरनों के लिए प्रसिद्ध है।

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

मध्य प्रदेश के सतना शहर का प्रमुख आकर्षण 

  • मैहर धाम, माँ शारदा देवी मंदिर  
  • चित्रकूट धाम
  • पन्नीखोह जलप्रपात
  • गृद्धकूटा पर्वत
  • धारकुंडी आश्रम
  • रामवन मंदिर
  • नागौद किला
  • पारस मनिया पर्वत और झरना
  • राजा बाबा जलप्रपात
  • बीरसिंघपुर
  • भरहुत
  • भटेश्वर नाथ मंदिर
  • आल्हा उदल अखाडा
  • वैष्णो देवी मंदिर
  • माधवगढ़ किला  
  • मैत्री पार्क
  • पुष्कर्णी पार्क
  • आर्ट इचोल
  • भगवान परशुराम सरोवर           
  • बाणसागर बांध   
  • मां कालिका मंदिर
  • पन्नीखोह जलप्रपात 

मैहर धाम माँ शारदा देवी मंदिर

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र मां शारदा देवी मंदिर है। यह धाम यहां के सर्वश्रेष्ठ धार्मिक स्थलों में से एक है जो विंध्याचल पर्वत के त्रिकूट पर्वत की तलहटी में स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 1059 खड़ी सीढ़ी बनी हुई है। 

चित्रकूट धाम

भगवान राम के वनवास काल का हिस्सा रहा चित्रकूट की पावन धरती में थोड़ी थोड़ी दूर पर उस समय के अभिशेष देखने के लिए मिलते हैं। यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल मौजूद हैं, जो उस समय के साक्षी हैं। मंदाकनी नदी के किनारे स्थित चित्रकूट जहाँ भारत के कोने -कोने से श्रद्धालु श्रद्धा भक्ति भाव से सालों भर आते रहते हैं। 

गृद्धकूटा पर्वत

यह पर्वत शहर से 65 किलोमीटर की दूरी  पर स्थित है। हरे भरे पहाड़ों की घाटियां प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर नैसर्गिग वातावरण में पहुंचकर इस पर्वत में मौजूद  4 गुफायें देख सकते हैं, जिनमें रॉक पेंटिंग तथा मुराल पेंटिंग देखे जा सकते है। यहां हर साल जनवरी के महीने में बसंत पंचमी के दिन विशाल मेला लगता है जिसमें लाखों सैलानी शामिल होते हैं।

धारकुंडी आश्रम

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

यह घने जंगल के बीच में स्थित एक मनोरम स्थल है। यहां पर एक कुंड है, जिसमें पहाड़ों से पानी आता है। यहां पर चारों तरफ का दृश्य हरियाली भरा है। बरसात के समय आप यहां पर चारों तरफ हरियाली रहती है। पानी ठंडा और साफ है। यहां पर एक मंदिर और आश्रम है।

रामवन मंदिर

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

यह मन्दिर सतना की एक धार्मिक जगह है। जहां पर हनुमान जी की एक विशाल प्रतिमा है, इस प्रतिमा की खास बात यह है कि इस प्रतिमा की ऊंचाई हर साल बढ़ती है। इसी खासियत के कारण दूर-दूर से लोग इस प्रतिमा को देखने के लिए आते हैं। इसके अलावा यहां पर और भी खूबसूरत मूर्तियां हैं। यहां पर शिव भगवान जी की उनके परिवार के साथ मूर्ति है, जो बहुत ही आकर्षक है। यहां पर एक तालाब है, जिसमें बोटिंग की सुविधा है। तालाब के किनारे पर भगवान शिव का मंदिर भी स्थित है।

पारस मनिया पर्वत और झरना

यहाँ की प्राकृतिक वातावरण की खूबसूरती मन मोह लेने वाले हरे भरे वन और घाटी का मनोरम दृश्य बहुत ही आकर्षक है, जहाँ जगह – जगह पर झरनें नदियाँ देखने को मिलते हैं।यह स्थान सतना शहर से लगभग 55 किलोमीटर दूर स्थित है। जंगली गलियारों के बीच मौजूद परसमनिया पर्वत के चोटी के ऊपर से शानदार दृश्य दिखाई पड़ता है।

राजा बाबा जलप्रपात

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

सतना में खूबसूरत झरनें, नदियाँ और जंगल का एक साथ समन्वय देखने को मिलता है। राजा बाबा जलप्रपात, जहाँ प्राकृतिक नैसर्गक वातावरण का मनोरम दृश्य देखने को मिलता है। विंध्य के चोटी पर बसा परसमनिया पर्वत के पास स्थित सतना का राजा बाबा जलप्रपात है, जिसकी दूरी सतना शहर से लगभग 40 किलोमीटर है।

बीरसिंघपुर

बिरसिंहपुर सतना शहर से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है स्थान भगवान शिव जी को समर्पित है यह एक मंदिर है

भरहुत

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

यह एक बौद्ध साइट है। भरहुत सतना शहर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। यहां पर पत्थरों पर नक्काशी की गई है। यहां पर प्राचीन बौद्ध स्तूप स्थित हैं। यहां पर सम्राट अशोक का शिलालेख भी बना हुआ है। यह जगह खूबसूरत है और एक पहाड़ी पर स्थित है।

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

भटेश्वर नाथ मंदिर

बटेश्वर नाथ मंदिर सतना मुख्य शहर से 8 किलोमीटर की दूरी पर है, जो बटेश्वर नाथ जी को समर्पित है। यह सतना नदी के बीचो बीच में स्थापित है। प्रत्येक रविवार को विशाल भंडारे के आयोजन होता है यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है

आल्हा उदल अखाडा

आल्हा उदल अखाड़ा सतना यह अखाड़ा मैहर माता के प्रचार में है। यह वही अखाड़ा है जहां पर माता शारदा ने आल्हा उदल को अमर होने का वरदान दिया था। 

वैष्णो देवी मंदिर

इस मंदिर का निर्माण सतना की जेल में बंद कैदियों ने करवाया था और यह मंदिर सतना मुख्य जेल के पास में ही स्थित है। यह मंदिर सतना रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 

माधवगढ़ किला  

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

यह किला सतना नदी के किनारे पर बना हुआ है। यह किला खंडहर अवस्था में है। इस किले के अंदर जाना मना है। माधवगढ़ किले के अंदर लोगों को जाने की अनुमति नहीं है। लोग बाहर से ही इस किले को देख सकते हैं। इस किले का जो प्रवेश द्वार है, वह बहुत ही बड़ा है और लकड़ी का बना हुआ है। किले के बाहर बहुत सारी छतरियां बनी हुई हैं और इन छतरियां के नीचे मंदिरों में भगवान शिव के शिवलिंग बने हुए हैं। यहां पर बहुत बड़ा मैदान है। यह किला अब खंडहर में तब्दील होता जा रहा है।

मैत्री पार्क

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

सतना में स्थित बद्री पुरम में एक अच्छा बगीचा है, जो कि सतना जिले के बाहरी क्षेत्र में स्थित है। यहां एक तालाब है और इस तालाब में शंकर जी का मंदिर भी बना हुआ है। यह पार्क बहुत ही मनोरम है। बच्चों के लिए यहां पर बहुत सारे झूले भी लगे हुए हैं। यहां पर फव्वारा भी लगा हुआ है। इस पार्क में हनुमान जी की बहुत बड़ी प्रतिमा है। इस पार्क में जानवरों की बहुत सारी मूर्तियां बानी हुई हैं। 

पुष्कर्णी पार्क

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

पुष्कर्णी पार्क सतना शहर के मध्य में स्थित एक खूबसूरत पार्क है। यह पार्क रेलवे स्टेशन के पास ही में है। यहां पर सुबह के समय एंट्री फ्री रहती है। आस पास के लोग यहां पर मॉर्निंग वॉक के लिए आते हैं। यहां पर बहुत सारे झूले हैं, जो बच्चों के लिए बहुत अच्छे हैं। शाम के समय यहां पर फव्वारा चालू होता है, जो बहुत ही खूबसूरत लगता है। पार्क में तरह-तरह के फूल लगे हुए हैं और चारों तरफ यहां पर हरियाली है। 

आर्ट इचोल

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

आर्ट इचोल एक दर्शनीय जगह है। यहां पर कई तरह के कलात्मक वस्तुएं हैं , जिनका निर्माण स्क्रैप से किया गया है। इस जगह पर लकडी, मिट्टी, धातु और पत्थर से बनी कलात्मक वस्तुएं खुले आसमान के नीचे देखने को मिलती है। यह जगह पूरी तरह से इन अद्भुत वस्तुओं से भरी हुई हैं।

भगवान परशुराम सरोवर       

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

यहां पर परशुराम जी की एक विशाल प्रतिमा है। साथ ही यहां पर एक सरोवर भी बना हुआ है। यह सरोवर सतना सिमरिया रोड पर स्थित है। 

बाणसागर बांध

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

बाणसागर बांध सतना शहर से करीब 100 किलोमीटर दूर है। यहां पर बरसात के समय बहुत ही मनोरम नजारा देखने के लिए मिलता है, क्योंकि बरसात के समय बांध के ओवरफ्लो होने के कारण बांध के गेट खोल दिए जाते हैं, जिससे बहुत ही खूबसूरत नजारा देखने के लिए मिलता है।

मां कालिका मंदिर

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

सतना के भटनवारा में स्थित माता कालिका के मंदिर में देवी दर्शन के लिए नवरात्रि में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। यहां विराजी माता रानी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ति के लिए तो विख्यात हैं ही  साथ ही अपने चमत्कारों और अपनी भाव-भंगिमाओं के लिए भी प्रसिद्ध हैं।

पन्नीखोह जलप्रपात 

मध्य प्रदेश का सतना शहर एक नजर में

प्रकृति प्रेमियों के लिए बहुत ही शानदार पन्नीखोह जलप्रपात त्रिकूट पर्वत में मौजूद मैहर मंदिर के समीप एक प्राकृतिक झरना है, जो पहाड़ के ऊपर से गिरती हुयी झिलमिल जलधारा है। जंगली गलियारों से होते हुए यहां पहुंचते हैं। यह एक बेहतरीन जलप्रपात है जो प्रकृति के वादियों के सौंदर्य का मनोरम दृश्य है। 

"प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख स्मार्ट सिटी मिशन के तहत स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होने वाले सौ भारतीय शहरों में से एक के रूप में सतना का चयन किया गया है।"

चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)- Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh)

चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)

चतुर्भुज मंदिर (Chaturbhuj Temple) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ओरछा नगर में एक भगवान विष्णु का मन्दिर है। ओरछा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित है। यह मंदिर जटिल बहुमंजिला संरचना वाला है तथा मंदिर, दुर्ग एवं राजमहल की वास्तुगत विशेषताओं से युक्त है। यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। चतुर्भुज मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है जो अपनी वह अद्भुत वास्तुकला के लिए जाना जाता है।

चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)- Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh)

चतुर्भुज मंदिर का निर्माण ओरछा के राजा मधुकर शाह ने 1558 और 1573 के बीच बनवाया था। मधुकर शाह ने अपनी पत्नी रानी गणेश कुमारी के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था, जो भगवान राम की भक्त थीं।

इस भव्य मंदिर को ओरछा के छोटे शहर के लगभग किसी भी कोने से देखा जा सकता है। मंदिर एक विशाल पत्थर के मंच पर बनाया गया है और दीवारों में जटिल डिजाइन और धार्मिक प्रतीक, विशेष रूप से कमल हैं। यह बड़ा पत्थर का मंच है जो इसे अतिरिक्त ऊंचाई प्रदान करता है और इसलिए यह एक बड़े टॉवर की तरह दिखाई देता है। मंदिर के तहखानों के भीतर विष्णु की एक रत्न और रेशम से सजी मूर्ति है। चतुर्भुज का अर्थ है चार भुजाओं वाला और कोई इसे मूर्ति में चित्रित देख सकता है। सर्पिल गुंबदों को न केवल बाहर से जटिल रूप से उकेरा गया है, बल्कि आंतरिक नक्काशी भी उतनी ही उत्तम है। मंदिर का निर्माण राजा मधुकर शाह ने शुरू किया था और उनके बेटे बीर सिंह देव ने पूरा किया था।

किंवदंतियों के अनुसार रानी ने एक सपना देखा था, जिसमें भगवान राम ने उन्हें अपने लिए एक मंदिर बनाने के लिए कहा था।

चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)- Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh)

इस मंदिर के निर्माण की स्वीकृति के बाद, रानी भगवान राम की मूर्ति लाने के लिए अयोध्या गईं, जो उनके नए मंदिर में स्थापित हुई, जब वह अयोध्या से वापस आईं, तो मंदिर का निर्माण अधूरा था, इसलिए उन्होंने सबसे पहले मूर्ति को रानी महल में रखा। चतुर्भुज मंदिर का निर्माण पूरा करने के बाद, रानी ने इस मंदिर में मूर्ति स्थापित करने का फैसला किया। लेकिन मूर्ति उस महल से नहीं हिली, तब रानी ने इस मंदिर में चार भुजाओं वाली भगवान विष्णु की एक मूर्ति स्थापित की और तभी से इस मंदिर का नाम चतुर्भुज मंदिर पड़ा।

चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)- Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh)

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Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh)

Chaturbhuj Temple is a temple dedicated to Lord Vishnu in the city of Orchha in the Indian state of Madhya Pradesh. Orchha is located in the Tikamgarh district of Madhya Pradesh. This temple is a complex multi-storied structure and has the architectural features of a temple, a fort and a palace. This is a world famous temple. Chaturbhuj Temple is under the Archaeological Survey of India which is known for its amazing architecture.

चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)- Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh)

The Chaturbhuj Temple was built by King Madhukar Shah of Orchha between 1558 and 1573. Madhukar Shah built this temple for his wife, Rani Ganesh Kumari, who was a devotee of Lord Rama.

This grand temple can be seen from almost any corner of the small town of Orchha. The temple is built on a massive stone platform and the walls have intricate designs and religious symbols, especially the lotus. It is the big stone platform which gives it extra height and hence it looks like a big tower. Within the vaults of the temple is a jeweled and silk-encrusted idol of Vishnu. Chaturbhuj means having four sides and one can see it depicted in the idol. The spiral domes are not only intricately carved from the outside, but the inner carvings are equally exquisite. The construction of the temple was started by Raja Madhukar Shah and completed by his son Bir Singh Deo.

चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)- Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh)

According to legends, the queen had a dream, in which Lord Rama asked her to build a temple for him.

After approving the construction of this temple, the queen went to Ayodhya to bring the idol of Lord Rama, which was installed in her new temple, when she came back from Ayodhya, the construction of the temple was incomplete, so she first brought the idol to Rani Mahal. Kept in After completing the construction of the Chaturbhuj temple, the queen decided to install the idol in this temple. But the idol did not move from that palace, then the queen installed an idol of Lord Vishnu with four arms in this temple and since then this temple was named Chaturbhuj Temple.

चतुर्भुज मंदिर, ओरछा (मध्य प्रदेश)- Chaturbhuj Temple, Orchha (Madhya Pradesh)

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर

साल में केवल एक दिन खुलने वाला मंदिर !!

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का, जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। 

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 17वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फ फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। 

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सर्पराज तक्षक ने घोर तपस्या की थी। सर्पराज की तपस्या से भगवान शंकर खुश हुए और फिर उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को वरदान के रूप में अमरत्व दिया। उसके बाद से ही तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो इस वजह से सिर्फ नागपंचमी के दिन ही उनके मंदिर को खोला जाता है।

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Nagchandreshwar Temple, Ujjain

The temple which opens only one day in a year!!

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

Hinduism has had a tradition of worshiping snakes for centuries. In Hindu tradition, snakes have also been considered as ornaments of God. There are many temples of snakes in India, one of them is the temple of Nagchandreshwar located in Ujjain, which is situated on the third floor of the famous Mahakal temple of Ujjain. Its special thing is that this temple is opened for darshan only one day in a year on Nagpanchami (Shravan Shukla Panchami).

It is believed that Nagraj Takshak himself resides in the temple. The Nagchandreshwar temple has a wonderful statue of 17th century, in which Shiva-Parvati are sitting on the seat of a snake with spread wings. It is said that this statue was brought here from Nepal. There is no such statue anywhere in the world except Ujjain. This is the only temple in the whole world, in which Lord Bholenath is sitting on a snake bed instead of Lord Vishnu. In the ancient idol installed in the temple, Shivji, Ganeshji and Maa Parvati along with Dashmukhi snake are sitting on the bed. Bhujang is wrapped around Shivshambhu's neck and arms.

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

According to mythological beliefs, Sarpraj Takshak had done severe penance to please Lord Bholenath. Lord Shankar was pleased with the penance of Sarpraj and then he gave immortality as a boon to Takshak Nag, the king of snakes. From then on, Takshak Raja started living in the presence of the Lord. But before living in the Mahakal forest, he had the same intention that his solitude should not be disturbed, because of this his temple is opened only on the day of Nagpanchami.

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर

आज बात करते हैं, ग्वालियर में स्थित सास बहू मंदिर की। सास बहू मंदिर जिसे सास बहू मंदिर, सहस्त्रबाहु मंदिर या हरि सदनम मंदिर भी कहा जाता है। 

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

सहस्रबाहु मंदिर (अपभ्रंश नाम - सास बहू मंदिर) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर क्षेत्र में स्थित एक 11वीं शताब्दी में निर्मित हिन्दू मंदिर है। यह विष्णु के पद्मनाभ रूप को समर्पित है और ग्वालियर के किले के समीप स्थित है। यहाँ मिले शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण कच्छपघात राजवंश के राजा महिपाल ने सन् 1093 में किया था। बाद में हुई हिन्दू-मुस्लिम झड़पों में मंदिर को क्षति पहुँची और अब इसके खंडहर हैं।

असल में सास-बहु मंदिर दो अलग-अलग मंदिर है, जिसमें बहु मन्दिर एक खँडहर की भांति खड़ा है, वहीं सास मंदिर कुछ आमूलचूल परिवर्तन के साथ विभिन्न हालत के बीच अपना सामंजस्य बनाये हुए है।

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

ग्वालियर स्थित सास-बहु मन्दिर के बारे में एक रोचक कथा है

कहते हैं कि महाराजा महिपाल जी की पत्नी भगवान विष्णु जी की परम भक्त थीं। इसलिए राजा महिपाल ने भगवन विष्णु जी के सम्मान में मंदिर का निर्माण करवाया। वक्त बीतने के साथ-साथ जब महाराजा महिपाल का पुत्र विवाह योग्य हुआ। तब राजा महिपाल ने राकुमार के विवाह के लिए योग्य वधु की तलाश में लग गये और जल्द ही राजकुमार का विवाह हो गया।

भावी राजकुमार की पत्नी शिव जी की भक्त थीं। इसलिए उन्होंने विष्णु मंदिर के पास ही में शिव मंदिर का भी निर्मित करवाया। पूर्ण रूप से विकसित मंदिर का निर्माण पंक्तिबद्ध रूप से उत्तर दक्षिण दिशा में हुआ, जिसमें गर्भगृह अंतराल, महा मंडप तथा अर्ध मंडप दक्षिण से उत्तर की ओर हैं। मंदिर की दीवारों, खंबों तथा छत पर नक्काशीदार आकृतियां बनाई गई हैं जो देखते ही मन मोह लेती है। समृद्ध नक्काशीदार स्तंभ तथा केंद्रीय सभागार की छत तीन ओर से ड्योढ़ी द्वारा घिरे हुए हैं तथा बाह्य दीवारें ज्यामितीय, पुष्पाकृतियों, पशु पक्षियों, गज, नर्तक, संगीतकार और कृष्ण लीला के सुंदर दृश्यों से परिपूर्ण है। छोटे मंदिर की बाह्य दीवारें भी इसी प्रकार चित्रित हैं। इस मंदिर में एक लघु केंद्रीय सभागार प्रकोष्ठ भी है।

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर से बना है, जिस पर कमल की नक्काशियां की हुई हैं। इसकी संरचना पिरामिड के आकार की है, जिसमें कोई मेहराब नहीं है। यह मंदिर 32 मीटर लंबा तथा 22 मीटर चौड़ा है। मंदिर में प्रवेश के लिए तीन दिशाओं में दरवाजे हैं। चौथी दिशा में एक दरवाजा बना हुआ तो है, पर वो वर्तमान में बंद है। मंदिर की छत से ग्वालियर शहर को देखना भी अपने आप में एक खास अनुभव देता है।

सास-बहु नाम से एक और मंदिर का उल्लेख हमें राजस्थान के नागदा गांव में मिलता है।

राजस्थान के इस प्रसिद्ध मंदिर को भी सहस्राबाहु मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भी भगवान् विष्णु जी को समर्पित है।

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Saas Bahu Ka Mandir, Gwalior

Today let's talk about Saas Bahu Temple located in Gwalior. Saas Bahu Temple also known as Saas Bahu Temple, Sahastrabahu Temple or Hari Sadanam Temple.

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

Sahasrabahu Temple (Apabhramsh name - Saas Bahu Temple) is an 11th-century Hindu temple located in the Gwalior region of the Indian state of Madhya Pradesh. It is dedicated to the Padmanabha form of Vishnu and is located near the Gwalior Fort. According to the inscription found here, it was built by King Mahipala of the Kachchhapaghat dynasty in 1093. The temple was damaged in the subsequent Hindu-Muslim clashes and is now in ruins.

Actually the Saas-Bahu temple are two separate temples, in which the Bahu temple stands like a ruin, while the Saas temple with some radical changes is maintaining its harmony between different conditions.

There is an interesting story about the Saas-Bahu Temple in Gwalior.

It is said that the wife of Maharaja Mahipal ji was an ardent devotee of Lord Vishnu. That's why King Mahipal got the temple constructed in honor of Lord Vishnu. With the passage of time, when the son of Maharaja Mahipal became eligible for marriage. Then King Mahipal started looking for a suitable bride for Rakumar's marriage and soon the prince got married.

The future prince's wife was a devotee of Lord Shiva. That's why he also got the Shiva temple built near the Vishnu temple. The fully developed temple was built in a north-south direction in a row, in which the sanctum antarala, maha mandapa and ardha mandapa are from south to north. Carved figures have been made on the walls, pillars and ceiling of the temple, which fascinates the mind as soon as it is seen. The richly carved pillars and the ceiling of the central hall are surrounded by antechambers on three sides and the outer walls are full of geometrical, floral motifs, animals, birds, yards, dancers, musicians and beautiful scenes of Krishna Leela. The outer walls of the small temple are also painted in the same way. There is also a small central auditorium cell in this temple.

The temple is made of red sandstone with lotus carvings on it. Its structure is in the shape of a pyramid, with no arches. This temple is 32 meters long and 22 meters wide. There are doors in three directions to enter the temple. There is a door built in the fourth direction, but it is currently closed. Viewing the city of Gwalior from the roof of the temple also gives a special experience in itself.

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

We find mention of another temple named Saas-Bahu in Nagda village of Rajasthan.

This famous temple of Rajasthan is also known as Sahasrabahu Temple. This temple is also dedicated to Lord Vishnu.

श्री भरत मिलाप मंदिर, चित्रकूट || Shri Bharat Milap Mandir, Chitrakoot ||

श्री भरत मिलाप मंदिर, चित्रकूट (Shri Bharat Milap Mandir, Chitrakoot)

भरत मिलाप मंदिर (Bharat Milap Mandir) मध्यप्रदेश के चित्रकूट में स्थित है। मंदिर कामदगिरि परिक्रमा मार्ग के रास्ते में पड़ता है। इस मंदिर में भगवान श्री राम और भरत जी, लक्ष्मण जी और शत्रुघ्न जी के चरण के चिन्ह देखने को मिलते हैं, जो चट्टानों पर बने है। यहां पर माता सीता और मां कौशल्या के चरण चिन्ह भी देखने को मिलते हैं।

श्री भरत मिलाप मंदिर, चित्रकूट || Shri Bharat Milap Mandir, Chitrakoot ||

भरत मिलाप मंदिर (Bharat Milap Mandir) को उस स्थान के रूप में जाना जाता है, जहां भरत ने भगवान राम से उनके वनवास के दौरान मुलाकात की और उन्हें अयोध्या लौटने और राज्य पर शासन करने के लिए मनाया। किवदंतीओं के अनुसार दोनों भाइयों की मुलाकात इतनी भावभीनी थी कि इससे चित्रकूट की चट्टानों और पहाड़ों तक के आंसू बह निकले। कई चमत्कारों की पहाड़ी के रूप में जानी जाने वाली इस जगह के बारे में कहा जाता है कि राम जी और भरत जी का प्रेम देखकर यहां की चट्टानें भी पिघल गई थी और उनके चरण चिन्ह चट्टानों में उभर गए थे। यहां भगवान राम और उनके भाइयों के पैरों के निशान हैं, जो आज भी प्रतिवर्ष हजारों भक्तों द्वारा देखें और पूजे जाते हैं।

श्री भरत मिलाप मंदिर, चित्रकूट || Shri Bharat Milap Mandir, Chitrakoot ||

भरत मिलाप मंदिर (Bharat Milap Mandir) के बाहर ही भगवान श्री राम, सीता मां, लक्ष्मण जी और भरत जी की प्रतिमाएं हैं, जो बहुत ही खूबसूरत लगती हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर लिखा है कि आप यहां दर्शन करने जरूर आएं क्योंकि यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है और परिक्रमा मार्ग मंदिर के अंदर से भी होकर जाता है।

भरत मिलाप मंदिर में तुलसीदास जी की प्रतिमा भी देखने को मिलती है। इसके साथ ही मंदिर में भगवान श्री राम, भरत जी की प्रतिमा देखने को मिलती है जिसमें राम जी भरत जी को अपनी चरण पादुका दे रहे हैं। 

English Translate

Shri Bharat Milap Mandir, Chitrakoot

Bharat Milap Mandir is situated in Chitrakoot. The temple falls on the way of Kamadgiri Parikrama Marg. In this temple, the footprints of Lord Shri Ram and Bharat ji, Laxman ji and Shatrughan ji are seen, which are made on the rocks. The footprints of Mata Sita and Kaushalya are also seen here.

श्री भरत मिलाप मंदिर, चित्रकूट || Shri Bharat Milap Mandir, Chitrakoot ||

Bharat Milap Mandir is known to be the place where Bharat met Lord Rama during his exile and persuaded him to return to Ayodhya and rule the kingdom. According to the legends, the meeting of the two brothers was so emotional that even the rocks and mountains of Chitrakoot shed tears. Known as the hill of many miracles, it is said about this place that seeing the love of Ram ji and Bharat ji, the rocks here also melted and their footprints emerged in the rocks. Here are the footprints of Lord Rama and his brothers, which are still seen and worshiped by thousands of devotees every year.

श्री भरत मिलाप मंदिर, चित्रकूट || Shri Bharat Milap Mandir, Chitrakoot ||

Outside the Bharat Milap Mandir, there are statues of Lord Shri Ram, Sita Maa, Laxman ji and Bharat ji, which look very beautiful. It is written at the entrance of the temple that you must come here to visit because this temple is very ancient and the circumambulation path also passes through the inside of the temple.

The statue of Tulsidas ji can also be seen in the Bharat Milap temple. Along with this, the statue of Lord Shri Ram, Bharat ji is seen in the temple, in which Ram ji is giving his foot paduka to Bharat ji.

नर्मदा नदी की कहानी

नर्मदा नदी की कहानी

नर्मदा नदी से शायद ही कोई अपरिचित होगा। नर्मदा नदी पूरे भारतवर्ष की नदियों में से एक ही है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। माँ नर्मदा मध्यप्रदेश की जीवनदायनी मानी जाती है, पर हम बात करेंगे आज भक्तों के द्वारा की जानी वाली नर्मदा परिक्रमा की। 
क्यों करते है लोग माँ नर्मदा परिक्रमा

क्यों करते है लोग माँ नर्मदा परिक्रमा

हिन्दू धर्म मे परिक्रमा का अपना विशेष महत्व है। परिक्रमा का तात्पर्य है, किसी भी जगह व्यक्ति के चारों तरफ घूमना। श्री गणेश के द्वारा अपने माता पिता की परिक्रमा कर समस्त लोकों की परिक्रमा का पूर्ण फल लिया था। ठीक उसी तरह जहाँ से माँ नर्मदा का उद्गम हुआ है वहाँ से अंतिम छोर तक कि परिक्रमा की जाती है।

क्यों करते है लोग माँ नर्मदा परिक्रमा

रहस्य और रोमांच से भरी यह यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। पुराणों में इस नदी पर एक अलग ही रेवाखंड नाम से विस्तार में उल्लेख मिलता है। हिन्दू धर्म में नर्मदा परिक्रमा या यात्रा एक धार्मिक यात्रा है। जिसने भी नर्मदा या गंगा में से किसी एक की परिक्रमा पूरी कर ली उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा काम कर लिया। 

यदि अच्छे से नर्मदाजी की परिक्रमा की जाए तो नर्मदाजी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिनों में पूर्ण होती है, परंतु कुछ लोग इसे 108 दिनों में भी पूरी करते हैं। परिक्रमावासी लगभग 1,312 किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं। 

कब की जाती है माँ नर्मदा की परिक्रमा

कब की जाती है माँ नर्मदा की परिक्रमा

नर्मदा परिक्रमा दो तरह से होती है। पहला हर माह नर्मदा पंचक्रोशी  होती है और दूसरे नर्मदा की परिक्रमा होती है। प्रत्येक माह होने वाली पंचक्रोशी यात्रा की तिथि कैलेंडर में दी हुई होती है। यह यात्रा तीर्थ नगरी अमरकंटक, ओंकारेश्वर और उज्जैन से प्रारम्भ हो कर यहीं समापन की जाती है। परिक्रमा श्रद्धालु अपने समर्थ अनुसार करते हैं। कुछ लोग पैदल करते है तो कुछ लोग अपने द्वारा लाये गए बाहनों से। 

परिक्रमा करते हुए सभी अपने साथ अपनी भोजन सामग्री ले कर चलते हैं। जहाँ विश्राम डेरा डाला बही सात्विक भोजन बना कर ग्रहण कर लिया। परिक्रमा के दौरान परिक्रमा करने वाले मनुष्य को सात्विक भोजन के साथ साथ ब्रह्मचर्य का पालन जरूरी है। 

माँ नर्मदा का उद्गम स्थल कहाँ है एवम कहाँ कहाँ से पिरवाहित होती हैं माँ

माँ नर्मदा का अमरकंटक के कोटितार्थ में उद्गम हुआ है। यहाँ सफेद रंग के 34 दार्शनिक मंदिर हैं। यहां नर्मदा उद्गम कुंड है, जहां से नर्मदा नदी का उद्गम हुआ है। जहाँ नर्मदा जी प्रवाहमान होती हैं वहाँ मंदिर परिसरों में सूर्य, लक्ष्मी, शिव, गणेश, विष्णु आदि देवी-देवताओं के मंदिर हैं। समुद्रतल से 3600 फीट की ऊंचाई पर स्थित अमरकंटक को नदियों की जननी कहा जाता है। यहां से लगभग पांच नदियों का उद्गम होता है, जिसमें नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी प्रमुख हैं। नर्मदा की कुल 41 सहायक नदियां हैं। उत्तरी तट से 19 और दक्षिणी तट से 22। नर्मदा बेसिन का जलग्रहण क्षेत्र एक लाख वर्ग किलोमीटर है। 

यह देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का तीन और मध्य प्रदेश के क्षेत्रफल का 28 प्रतिशत है। नर्मदा की आठ सहायक नदियां 125 किलोमीटर लंबी हैं।

अमरकंटक, माई की बगिया से नर्मदा कुंड, मंडला, जबलपुर, भेड़ाघाट, बरमानघाट, पतईघाट, मगरोल, जोशीपुर, छपानेर, नेमावर, नर्मदासागर, पामाखेड़ा, धावड़ीकुंड, ओंकारेश्‍वर, बालकेश्‍वर, इंदौर, मंडलेश्‍वर, महेश्‍वर, खलघाट, चिखलरा, धर्मराय, कातरखेड़ा, शूलपाड़ी की झाड़ी, हस्तीसंगम, छापेश्वर, सरदार सरोवर, गरुड़ेश्वर, चंदोद, भरूच। इसके बाद लौटने पर पोंडी होते हुए बिमलेश्वर, कोटेश्वर, गोल्डन ब्रिज, बुलबुलकंड, रामकुंड, बड़वानी, ओंकारेश्वर, खंडवा, होशंगाबाद, साडिया, बरमान, बरगी, त्रिवेणी संगम, महाराजपुर, मंडला, डिंडोरी और फिर अमरकंटक ये समस्त ग्राम शहर नर्मदा परिक्रमा के मार्ग है इन समस्त जगह से माँ नर्मदा प्रवाहित होती है परिक्रमा वासी अमरकंटक या होशंगाबाद से यात्रा प्रारंभ कर इन समस्त जगह से होते हुए पुनः जहा से शुरू किया वही पर आ कर माँ नर्मदा के स्नान के साथ अपनी परिक्रमा समाप्त करते हैं। 

यू तो परिक्रमा के बहुत नियम हैं, परंतु कुछ नियम महत्वपूर्ण हैं 

नर्मदा नदी की कहानी

प्रतिदिन नर्मदाजी में स्नान करें। जलपान भी रेवा जल का ही करें। प्रदक्षिणा में दान ग्रहण न करें। श्रद्धापूर्वक कोई भेजन करावे तो कर लें क्योंकि आतिथ्य सत्कार का अंगीकार करना तीर्थयात्री का धर्म है। त्यागी, विरक्त संत तो भोजन ही नहीं करते भिक्षा करते हैं जो अमृत सदृश्य मानी जाती है  परिक्रमा में न किसी प्रकार का छल मन मे रखे न कोई द्वेष किसी से रखे परिक्रमा के दौरान आपस मे मिल जुल के रहें। 

चतुर्मास में परिक्रमा न करें। देवशयनी आषाढ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक सभी गृहस्थ चतुर्मास मानते हैं। मासत्मासे वैपक्षः की बात को लेकर चार पक्षों का सन्यासी यति प्रायः करते हैं। नर्मदा प्रदक्षिणा वासी विजयादशी तक दशहरा पर्यन्त तीन मास का भी कर लेते हैं। उस समय मैया की कढाई यथाशक्ति करें कोई-कोई प्रारम्भ् में भी करके प्रसन्न रहते हैं।

नर्मदा जी के परिक्रमा में पड़ने वाले कुछ तीर्थ स्थल

वैसे तो नर्मदा के तट पर बहुत सारे तीर्थ स्थित है लेकिन यहां कुछ प्रमुख तीर्थों की व्यख्या कर रहे है अमरकंटक, मंडला (राजा सहस्रबाहु ने यही नर्मदा को रोका था), भेड़ा-घाट, होशंगाबाद (यहां प्राचीन नर्मदापुर नगर था), नेमावर, ॐकारेश्वर, मंडलेश्वर, महेश्वर, शुक्लेश्वर, बावन गजा, शूलपाणी, गरुड़ेश्वर, शुक्रतीर्थ, अंकतेश्वर, कर्नाली, चांदोद, शुकेश्वर, व्यासतीर्थ, अनसूयामाई तप स्थल, कंजेठा शकुंतला पुत्र भरत स्थल, सीनोर, अंगारेश्वर, धायड़ी कुंड और अंत में भृगु-कच्छ अथवा भृगु-तीर्थ (भडूच) और विमलेश्वर महादेव तीर्थ।

क्यों करते है लोग परिक्रमा

भगवान भोलेनाथ का वरदान प्राप्त माँ नर्मदा जी परिक्रमा जिसने की उसके पीढ़ियों तक के पाप धुल जाते हैं। सारे विश्व में नर्मदा ही एक मात्र नदी है, जिसे भगवान शिव वरदान दिए हैं। (नर्मदा का "हर कंकर शंकर" है) मान्यता है कि यहाँ दर्शन मात्र से मनुष्य की सारी परेशानियों समाप्त होती हैं एवम पापों का नाश होता है। माँ नर्मदा एकमात्र नदी है जो सबसे विपरीत उल्टी बहती है। 

क्यों नर्मदा नदी के हर कंकर में हैं शंकर 

क्यों नर्मदा नदी के हर कंकर में हैं शंकर

एक मात्र नदी है नर्मदा जिसके हर कंकर में बसते हैं शंकर। नर्मदा नदी से निकलने वाले शिवलिंग को ‘नर्मदेश्वर’ कहते हैं। यह घर में भी स्थापित किए जाने वाला पवित्र और चमत्कारी शिवलिंग है; जिसकी पूजा अत्यन्त फलदायी है। यह साक्षात् शिवस्वरूप, सिद्ध व स्वयम्भू जो भक्तों के कल्याण के लिए स्वयं प्रकट हुए हैं शिवलिंग है इसको वाणलिंग भी कहा जाता है। 

शास्त्रों में कहा गया है कि मिट्टी या पाषाण से करोड़ गुना अधिक फल स्वर्णनिर्मित शिवलिंग के पूजन से मिलता है, स्वर्ण से करोड़गुना अधिक मणि और मणि से करोड़गुना अधिक फल बाणलिंग नर्मदेश्वर के पूजन से प्राप्त होता है, स्कन्दपुराण की कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर ने पार्वतीजी को भगवान विष्णु के शयनकाल (चातुर्मास) में द्वादशाक्षर मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करते हुए तप करने के लिए कहा। पार्वतीजी शंकरजी से आज्ञा लेकर चातुर्मास शुरु होने पर हिमालय पर्वत पर तपस्या करने लगीं। उनके साथ उनकी सखियां भी थीं। पार्वतीजी के तपस्या में लीन होने पर शंकर भगवान पृथ्वी पर विचरण करने लगे। एक बार भगवान शंकर यमुना तट पर विचरण कर रहे थे। यमुनाजी की उछलती हुई तरंगों को देखकर वे यमुना में स्नान करने के लिए जैसे ही जल में घुसे, उनके शरीर की अग्नि के तेज से यमुना का जल काला हो गया। अपने श्यामस्वरूप को देखकर यमुनाजी ने प्रकट होकर शंकरजी की स्तुति की। शंकरजी ने कहा यह क्षेत्र ‘हरतीर्थ’ कहलाएगा व इसमें स्नान से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाएंगे।

सिर्फ एक मात्र माँ नर्मदा है कुँवारी क्यों

सिर्फ एक मात्र माँ नर्मदा है कुँवारी क्यों

पौराणिक कथा के अनुसार सोनभद्र और नर्मदा दोनों के घर पास थे और अमरकंटक की पहाड़ियों में दोनों का बचपन बीता। दोनों किशोर हुए तो लगाव और बढ़ा। वे एक दूसरे के प्रेम में पड़ गए। दोनों ने साथ जीने की कसमें खाई, लेकिन अचानक दोनों के बीच में नर्मदा की सहेली जुहिला आ गई, सोनभद्र जुहिला के प्रेम में पड़ गया। नर्मदा को यह पता चला तो उन्होंने सोनभद्र को समझाने की कोशिश की, लेकिन सोनभद्र नहीं माना। इससे नाराज होकर नर्मदा दूसरी दिशा में चल पड़ी और हमेशा कुंवारी रहने की कसम खाई।

मध्यप्रदेश दर्शन || Madhya Darshan ||

मध्यप्रदेश दर्शन

मैं कभी मध्य प्रदेश नहीं गयी हूँ, फिर भी मेरे ब्लॉग पर आज मध्यप्रदेश दर्शन पब्लिश हो रहा है। इस विषय में दो शब्द आप सभी पाठकों से कहना चाहूंगी। ब्लॉग के एक प्रशंसक जो मध्यप्रदेश के विदिशा के मूल निवासी हैं, इस ब्लॉग के माध्यम से मध्यप्रदेश का भ्रमण कराना चाहते हैं। मैं उनकी शुक्रगुजार हूँ, जो उन्होंने इस काम के लिए मेरा ब्लॉग चुना। तो फिर देर किस बात की, चलिए बैठे बैठे मध्यप्रदेश का दर्शन करते हैं। कभी मौका मिले तो मध्यप्रदेश जाकर भी घूमना होगा। 

मध्यप्रदेश दर्शन || Madhya Darshan ||

यूं तो हम सब जानते हैं, भारत के हर राज्य की अपनी संस्कृति अपनी अलग पहचान है, पर आज हम जिस राज्य की बात कर रहे हैं, उसको भारत का सबसे खूबसूरत प्रदेश कहा जाता है। यह भारत के मध्य में होने के कारण मध्यप्रदेश कहलाता है। भारत मे सबसे ज्यादा नेशनल पार्क इसी राज्य में है। सबसे ज्यादा आदिवासी समाज भी मध्यप्रदेश मैं पाया जाता है। मध्यप्रदेश का खाना, लोकगीत, त्यौहार, परंपरा भारत के अन्य राज्यो से बिल्कुल अलग है। मध्यप्रदेश का इंदौर, जिसे मिनी बॉम्बे के नाम से जाना जाता है, खाने पीने की दृष्टि से सारे भारत में मशहूर है। मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है, जो कई किलो की धरोहर है। सिर्फ मध्यप्रदेश में एक नदी ऐसी है, जो उल्टी बहती है। एक समय पर मध्यप्रदेश को भारत का सबसे बड़ा राज्य का दर्जा प्राप्त था। सन 2000 में छत्तीसगढ़ के अलग होने तक। आज भी मध्यप्रदेश भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। 

मध्यप्रदेश की रोचक बातें

मध्यप्रदेश दर्शन || Madhya Darshan ||

  • मध्यप्रदेश को भारत का दिल *Heart of Nation* भी कहा जाता है। 
  • मध्यप्रदेश में एक क्षेत्र ऐसा भी  है, जहां पिता अपनी बेटियों को विदाई में सर्प  (सांप ) देते हैं। 
  • मध्यप्रदेश की जनसंख्या लगभग 8.50 लाख करोड़ है। 
  • मध्यप्रदेश की सीमा राजस्थान महाराष्ट्र गुजरात उत्तर प्रदेश एवम छत्तीसगढ़ से लगती है। 
  • मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा हिंदी भाषा बोली जाती है। कुछ जनजातिय क्षेत्रों में अन्य भाषायों का प्रयोग भी बहुतायत आपको सुनने को मिलेगा। राज्य की 90 प्रतिशत आबादी हिन्दू है। 6.5 प्रतिशत लोग इस्लाम धर्म को मानने वाले एवं बाकी जैन, सिख, ईसाई, बौद्ध धर्म के लोग भी यहाँ निवास करते हैं। 
  • मध्यप्रदेश की स्थपना 1 नवंबर 1956 को हुई थी। तब तक मध्यप्रदेश की राजधानी नागपुर हुआ करती थी। 1956 में नागपुर को बदल कर भोपाल को राजधानी का दर्जा प्राप्त हुआ। 
  • मध्यप्रदेश में कई शासकों ने राज्य किया है, जिसमे मराठा, बुन्देल, चौहान एवम चंदेल मुख्य हैं। मुगलों का भी यहाँ अल्पकालीन शासन रहा है। भारत के सबसे महान राजाओं में शुमार राजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन भी मध्यप्रदेश में स्थित है। ये राज्य अपने कल्चर ओर शिल्पकला के लिए पूरी दुनिया मे जाना जाता है। 
  • भारत की सबसे प्राचीन नदी नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवनदायनी नदी कहा जाता है। यह इस राज्य की सबसे प्रमुख एवम भारत की 5 वीं सबसे बड़ी नदी है। यह अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलती है। 
  • नर्मदा नदी की सबसे रोचक बात यह है कि यह भारत की एकमात्र ऐसी नदी है, जो विपरीत दिशा में बहती है। जहाँ बाकी सब नदियां पश्चिम से पूर्व की तरफ बहती हैं, वही नर्मदा जी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं। 
  • नर्मदा जी के लिए पुराणों में लिखा है, सिर्फ नर्मदा जी एक मात्र ऐसी नदी हैं, जिसके दर्शन मात्र से व्यक्ति के पापों का हरन हो जाता है। 

मध्यप्रदेश का अदिवादी समुदाय

मध्यप्रदेश दर्शन || Madhya Darshan ||

मध्यप्रदेश एकमात्र राज्य है, जहाँ सबसे ज्यादा जनजाति आदिवासी निवास करते हैं। प्रतिशत के हिसाब से 21 % जनजातीय इस राज्य में निवास करती है। कोड़ी, भील, सहरिया, कोंडा, कूल जैसी जनजातीय प्रमुख हैं। 

बाघों की भूमि (Land of Tigers)

मध्यप्रदेश को "लैंड ऑफ टाइगर" भी कहा जाता है। इस राज्य के नेशनल पार्क में बाघ और रॉयल टाइगर पाए जाते हैं। जितने यहाँ बाघ और रॉयल टाइगर हैं, उतने दुनिया के किसी जंगल में नहीं हैं। मध्यप्रदेश में 10 नेशनल पार्क, 6 टाइगर रिजर्व, 24 वाइल्ड लाइव सेंचुरी हैं, जिसके कारण पूरे राज्य में जंगल ही जंगल एवम हरियाली देखने को मिलेगी। इनमें बांधवगढ़ नेशनल पार्क, कान्हा नेशनल पार्क, पेंच टाइगर रिजर्व सबसे प्रमुख हैं। 

मध्यप्रदेश दर्शन || Madhya Darshan ||

प्रसिद्ध किताब जंगल बुक भी इसी राज्य के जंगलों से प्रेरित हो कर लिखी गयी है। 

मध्यप्रदेश का पन्ना जिला अपने हीरे की खदानों के लिए पूरे दुनिया मे मशहूर है। भारत का सबसे ज्यादा हीरा- पन्ना की खदानों में पाया जाता है। 50 प्रतिशत एरिया में यहाँ ज़मीन के नीचे हीरा पाया जाता है, जहाँ आज भी हज़ारों लोग नियमित रूप से हीरा निकालने कार्य करते हैं। पन्ना का हीरे का कारोबार प्रतिवर्ष 1 विलियन डॉलर के करीब है। इसके साथ साथ यह राज्य कोयला, बेग्निश, डोलोमाइट में भी समृद्ध है। 

मध्यप्रदेश दर्शन || Madhya Darshan ||

महाकालेश्वर उज्जैन

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से दो जोतिर्लिंग महाकालेश्वर उज्जैन में एवम ओम्कारेश्वर में स्थित है।  उज्जैन में प्रति बारह वर्ष में एक बार कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है, जो अब 2028 में आयोजित होगा। 

मध्यप्रदेश में कई त्यौहार बहुत ही धूमधाम और उत्साह से मनाए जाते हैं, जिनमें खंडवा जिले के पास नर्मदा नदी का हनुवंतिया इशलेण्ड का जल महोत्सव, भगोड़िया हाट फेस्टीवल, मालवा उत्सव, तानसेन समारोह, खजुराहो डांस फेस्टिवल प्रमुख हैं। 

मध्यप्रदेश की GDP 1.50 विलियन डॉलर है। यहाँ सबसे ज्यादा लोग कृषि से जुड़े हुए हैं। 

सोयाबीन, तुवर, उडद, मसूर के उत्पादन में मध्यप्रदेश पूरे भारत में प्रथम स्थान पर आता है। वहीं दूसरी तरफ मक्का, तिल, मूंग के उत्पादन में आज भी ये राज्य अपना दूसरा स्थान बनाये हुए है। 

महान लोगों की जन्मभूमि

भारत की कई प्रमुख प्रसिद्ध महान लोगों की जन्मभूमि भी मध्यप्रदेश है। जिनमें चंद्रशेखर आज़ाद, लता मंगेशकर, अटल बिहारी वाजपेयी, अनितवीर, किशोर कुमार और तानसेन प्रमुख हैं। 

मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले के बुन्देल नगर में वीणा वादनी एक ऐसा अनोखा स्कूल है, जहाँ पढ़ने वाले सभी बच्चे दोनों हाथों से एक साथ लिखने की कला में माहिर हैं। यहाँ प्रथम क्लास से ही दोनों हाथों से लिखने की शिक्षा दी जाती है। 

टूरिस्ट स्पॉट

मध्यप्रदेश दर्शन || Madhya Darshan ||

खुजराहो राज्य का ऐसा ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ कई प्राचीन मंदिर हैं। मंदिर के बाहर की गई नक्काशी काफी प्रसिद्ध है। मंदिर के बाहर कामसूत्र की कला कृतियां बनी हुई नजर आती हैं, जो लोगो का आकर्षण का केंद्र हैं। कारीगरी का अद्भुत नजारा जिसे कहा जाता है। वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में भी खुजराहो प्रमुख नाम है। 

रायसेन जिले की भीमबेटका में 600 से ज्यादा प्राचीन गुफाएं हैं, जिनमें कई गुफाएं लाखों साल पुरानी हैं। यहाँ की दीवारों पर 12 हज़ार साल पुरानी पेंटिंग, कला कृतियां उकेरी हुई नजर आती हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। यह जगह भी वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में अपना स्थान बनाये हुए है। 

सांची स्तूप

सांची जिसने नहीं देखा कुछ नहीं देखा। सम्राट अशोक के द्वारा निर्माणधीन स्तूप जो अब तो भारतीय मुद्रा में भी अपना स्थान प्राप्त कर चुका है।

ग्वालिया का किला, तानसेन दरवार, उज्जैन लोक, ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग अनेक टूरिस्ट स्पॉट मध्यप्रदेश में देखने घूमने को मिलेंगे। सबकी अपनी अलग - अलग पहचान है, जो पर्यटकों को अपने तरफ आकर्षित 

मध्यप्रदेश दर्शन || Madhya Darshan ||