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रक्षाबंधन 2023 || Rakshabandhan 2023

रक्षाबंधन || Rakshabandhan 

 रक्षाबंधन का त्यौहार हिंदू धर्म का ऐसा त्योहार है जिसे भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है । उस दिन भाई अपनी बहन की जीवन भर रक्षा करने का वचन देता है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर एक रक्षा सूत्र बांधती हैं,उसे मिठाई खिलाती हैं और भाई की आरती उतारती हैं । इसके बादअपनी बहन को कुछ तोहफा देकर जिन्दगी भर रक्षा करने का वचन देता है । यह त्योहार हर साल बहुत ही पवित्र दिन यानि श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। आम जन मानस में इस त्योहार को राखी के नाम से भी जाना जाता है । इस साल 2023 में राखी 30 और 31 अगस्त को मनाई जाएगी । भद्रा के कारण राखी 30 अगस्त की रात 9 बजे से31 अगस्त की सुबह 7.30 तक मनाई जायगी।

रक्षाबंधन 2023 || Rakshabandhan 2023

राखी का त्यौहार ढेर सारी खुशियां लेकर आता है। रक्षाबंधन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है रक्षा + बंधन अथार्त् रक्षा का बंधन , यानी इस रक्षा सुत्र को बंध जाने के बाद एक भाई अपनी बहन की रक्षा करने को बाध्य हो जाता है । रक्षाबंधन त्योहार को मनाने की शुरुआत बहुत पौराणिक है । ऐसा कहा जाता है की इस त्योहार को देवी – देवताओं के समय से मनाई जा रहा है । आज अपने ब्लॉग के माध्यम से हम इस त्योहार के कुछ पौराणिक आख्यानों के बारे में बात करेंगे।

एक दिन भगवान श्री गणेश जी अपनी बहन मनसा देवी से रक्षा सूत्र बंधवा रहे थे तभी उनके दोनों पुत्र शुभ और लाभ ने देख लिया और इस रस्म के बारे में पूछा। तब भगवान श्री गणेश ने इसे एक सुरक्षा कवच बताया। उन्होंने बताया की यह रक्षा सूत्र आशीर्वाद और भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है । यह सुन कर शुभ और लाभ ने अपने पिता से ज़िद की कि उन्हें एक बहन चाहिए और अपने बच्चों की जिद के आगे हार कर भगवान गणेश ने अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्पन्न की और अपनी दोनों पत्नियों रिद्धि-सिद्धि की आत्मशक्ति के साथ इसे सम्मिलित किया। उस ज्योति से एक कन्या (संतोषी) का जन्म हुआ और दोनों भाइयों को रक्षाबंधन के मौके पर एक बहन मिली।

रक्षाबंधन 2023 || Rakshabandhan 2023

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार

एक बार की बात है जब असुर राजा बलि के दान धर्म से खुश होकर भगवान विष्णु ने उससे वरदान मांगने को कहा तो राजा बलि ने विष्णु भगवान से अपने साथ पाताल लोक में चलने को कहा और उनके साथ वही रह जाने का वरदान मांगा। तब विष्णु भगवान उनके सात बैकुंठ धाम को छोड़ कर पाताल लोक चले गए। बैकुंठ में माता लक्ष्मी अकेली पड़ गईं और भगवान विष्णु को दोबारा वैकुंठ लाने के लिए अनेक प्रयास करने लगीं। फिर एक दिन मां लक्ष्मी राजा बलि के यहां एक गरीब महिला का रूप धरण कर के रहने लगीं। जब मां एक दिन रोने लगी तब राजा बलि ने उनसे रोने का करण पूछा। मां ने बताया कि उनका कोई भाई नहीं है इसलिए वे उदास हैं। ऐसे में राजा बलि ने उनका भाई बनकर उनकी इच्छा पूरी की और माता लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा। फिर राजा बलि ने उनसे इस पवित्र मौके पर कुछ मांगने को कहा तो मां लक्ष्मी ने विष्णु जी को अपने वर के रूप में मांग लिया और इस रह श्री विष्णु भगवान बैकुंठ धाम वापस आए।

एक अन्य प्रचलित कथा कहती है कि 

माहाभारत के दौरान एक बार राजसूय यज्ञ के लिए पांडवों ने भगवान कृष्ण को आमंत्रित किया। उस यज्ञ में श्री कृष्ण के चचेरे भाई शिशुपाल भी थे। उस दौरान शिशुपाल ने भगवान कृष्ण का बहुत अपमान किया। जब पानी सिर के ऊपर चला गया तो भगवान कृष्ण को क्रोध आ गया। क्रोध में भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल पर अपना सुदर्शन चक्र छोड़ दिया लेकिन शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र भगवान श्री कृष्ण के पास लौटा तो उनकी तर्जनी उंगली में गहरा घाव हो गया। यह देख कर द्रौपदी ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर भगवान कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। द्रौपदी के इस स्नेह को देखकर भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और द्रौपदी को वचन दिया कि वे हर स्थिति में हमेशा उनके साथ रहेंगे और हमेशा उनकी रक्षा करेंगे

रक्षाबंधन 2023 || Rakshabandhan 2023

महारानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं की कहानी के अनुसार

जब चित्तौड़ पर सुल्तान बहादुर शाह आक्रमण कर रहे तब महारानी कर्णावती ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए सम्राट हूमायूं को राखी भेजी और उनसे अपनी रक्षा की गुहार लगाई। हुमायूं ने राखी स्वीकार किया और अपने सैनिकों के साथ उनकी रक्षा के लिए चित्तौड़ निकल पड़े मगर हुमायूं के चित्तौड़ पहुंचने से पहले ही रानी कर्णावती ने आत्महत्या कर ली थी।

यम और यमुना की कहानी के अनुसार मृत्यु के देवता यम अपनी बहन यमुना से 12 वर्ष तक मिलने नहीं गये। तब यमुना दुखी हो गई और अपनी मां गंगा से इस बारे में बात की। मां गंगा ने यम तक यह खबर पहुंचाई कि यमुना उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं और यह सुनते यम अपनी बहन युमना से मिलने आए। यम को देखकर यमुना बहुत खुश हुईं और उनके लिए बहुत सारे व्यंजन भी बनाए। यम यह प्रेम भाव देख कर बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने यमुना को मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान मांगा कि यम जल्द ही फिर से अपनी बहन के पास आए. यम अपनी बहन के स्नेह को देख कर बहुत खुश हुए।

रक्षाबंधन 2023 || Rakshabandhan 2023

इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राचीन काल से ही यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। 

आप सब को रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक बधाई।

रेल कोच रेस्टोरेंट, चारबाग, लखनऊ || Rail Coach Restaurant, Charbagh, Lucknow

रेल कोच रेस्टोरेंट, चारबाग, लखनऊ

लखनऊ के चारबाग स्टेशन से दिनांक 28 8 2023 को बड़े ही धूमधाम से रेल कोच रेस्टोरेंट का शुभारंभ हुआ।इस रेस्टोरेंट का उद्घाटन वहां पर आए एक यात्री ने किया। 

रेल कोच रेस्टोरेंट, चारबाग, लखनऊ || Rail Coach Restaurant, Charbagh, Lucknow

जैसा कि हम सभी जानते हैं लखनऊ अपने नजाकत और लजीज व्यंजन के लिए जाना जाता है। और अब यहां लखनऊ का पहला रेल कोच रेस्टोरेंट खुल गया है। इस रेस्टोरेंट में खास बात यह है, कि यहां देशभर के सभी राज्यों के प्रसिद्ध और जायकेदार खान 24 * 7 उपलब्ध रहेगा। दुनिया भर के कोने-कोने के लोग यहां सातों दिन 24 घंटे जायकेदार खाने का लुत्फ उठा सकेंगे।

यह रेस्टोरेंट लगभग 1600 वर्ग फुट में फैला है और चारबाग मेट्रो और रेलवे स्टेशनों के ठीक बीच में बनाया गया है, इस रेस्‍टोरेंट को एक ट्रेन की बोगी में बनाया गया है, लोग रेस्‍टोरेंट पर सीढ़ियों से चढ़कर जाएंगे और ट्रेन के कोच फूड रेस्टोरेंट में बैठकर खिड़कियों से चारबाग रेलवे स्टेशन का नजारा देख सकेंगे। रेस्‍टोरेंट में एक वक्‍त में 50 लोग बैठकर खाना खा सकेंगे। वहीं 30 से ज्यादा लोग बाहर बैठकर खाना खा सकेंगे। नॉदर्न रेलवे ने इस रेस्‍टोरेंट के लिए अपने पुराने और कबाड़ कोच 5 साल के लिए लीज पर दिए हैं। साथ ही इन्‍हें री डिजाइन करने के लिए परमीशन भी दी है।

रेल कोच रेस्टोरेंट, चारबाग, लखनऊ || Rail Coach Restaurant, Charbagh, Lucknow

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Rail Coach Restaurant, Charbagh, Lucknow 

Rail Coach Restaurant was inaugurated with great fanfare on 28 8 2023 from Charbagh station of Lucknow. This restaurant was inaugurated by a passenger who came there.

 As we all know Lucknow is known for its exquisite and delicious food. And now Lucknow's first Rail Coach restaurant has opened here. The special thing in this restaurant is that famous and delicious food from all the states of the country will be available here 24 * 7. People from all corners of the world will be able to enjoy delicious food here 24 hours a day, seven days a week.

रेल कोच रेस्टोरेंट, चारबाग, लखनऊ || Rail Coach Restaurant, Charbagh, Lucknow

 This restaurant is spread over 1600 square feet and is built right in the middle of Charbagh metro and railway stations, this restaurant is built in a train bogie, people will climb the stairs to the restaurant and sit in the train coach food restaurant Will be able to see the view of Charbagh railway station from the windows. At one time 50 people will be able to sit and eat in the restaurant. At the same time, more than 30 people will be able to sit outside and eat food. Northern Railway has given its old and junk coaches on lease for 5 years for this restaurant. Along with this, permission has also been given to redesign them.

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

पुराने समय से बहुत सी परंपराएं प्रचलित हैं, जिनका पालन आज भी काफी लोग कर रहे हैं। ये परंपराएं धर्म से जुड़ी दिखाई देती हैं, लेकिन इनके वैज्ञानिक कारण भी हैं। जो लोग इन परंपराओं को अपने जीवन में उतारते हैं, वे स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों से बचे रहते हैं। यहां जानिए ऐसी ही चौदह प्रमुख परंपराएं, जिनका पालन अधिकतर परिवारों में किया जाता है…

1. एक ही गोत्र में शादी नहीं करना : - कई शोधों में ये बात सामने आई है कि व्यक्ति को जेनेटिक बीमारी न हो इसके लिए एक इलाज है ‘सेपरेशन ऑफ़ जींस’, यानी अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नहीं करना चाहिए। रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नहीं हो पाते हैं और जींस से संबंधित बीमारियां जैसे कलर ब्लाईंडनेस आदि होने की संभावनाएं रहती हैं। संभवत: पुराने समय में ही जींस और डीएनए के बारे खोज कर ली गई थी और इसी कारण एक गोत्र में विवाह न करने की परंपरा बनाई गई।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

2. कान छिदवाने की परंपरा : - स्त्री और पुरुषों, दोनों के लिए पुराने समय से ही कान छिदवाने की परंपरा चली आ रही है। हालांकि, आज पुरुष वर्ग में ये परंपरा मानने वालों की संख्या काफी कम हो गई है। इस परंपरा की वैज्ञानिक मानयता ये है कि इससे सोचने की शक्ति बढ़ती है, बोली अच्छी होती है। कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित और व्यवस्थित रहता है। कान छिदवाने से एक्यूपंक्चर से होने वाले स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे छोटे बच्चों को नजर भी नहीं लगती है।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

3. माथे पर तिलक लगाना : - स्त्री और पुरुष माथे पर कुमकुम, चंदन का तिलक लगाते हैं। इस परंपरा का वैज्ञानिक तर्क यह है कि दोनों आंखों के बीच में आज्ञा चक्र होता है। इसी चक्र स्थान पर तिलक लगाया जाता है। इस चक्र पर तिलक लगाने से हमारी एकाग्रता बढ़ती है। मन बेकार की बातों में उलझता नहीं है। तिलक लगाते समय उंगली या अंगूठे का जो दबाव बनता है, उससे माथे तक जाने वाली नसों का रक्त संचार व्यवस्थित होता है। रक्त कोशिकाएं सक्रिय हो जाती हैं।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

4. जमीन पर बैठकर भोजन करना : - जमीन पर बैठकर भोजन करना पाचन तंत्र और पेट के लिए बहुत फायदेमंद है। पालथी मारकर बैठना एक योग आसन है। इस अवस्था में बैठने से मस्तिष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। पालथी मारकर भोजन करते समय दिमाग से एक संकेत पेट तक जाता है कि पेट भोजन ग्रहण करने के लिए तैयार हो जाए। इस आसन में बैठने से गैस, कब्ज, अपच जैसी समस्याएं दूर रहती हैं।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

5. हाथ जोड़कर नमस्ते करना : - हम जब भी किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते या नमस्कार करते हैं। इस परंपरा का वैज्ञानिक तर्क यह है नमस्ते करते समय सभी उंगलियों के शीर्ष आपस में एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। हाथों की उंगलियों की नसों का संबंध शरीर के सभी प्रमुख अंगों से होता है। इस कारण उंगलियों पर दबाव पड़ता है तो इस एक्यूप्रेशर (दबाव) का सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

 साथ ही, नमस्ते करने से सामने वाला व्यक्ति हम लंबे समय तक याद रह पाता है। इस संबंध में एक अन्य तर्क यह है कि जब हम हाथ मिलाकर अभिवादन करते है तो सामने वाले व्यक्ति के कीटाणु हम तक पहुंच सकते हैं। जबकि नमस्ते करने पर एक-दूसरे का शारीरिक रूप से संपर्क नहीं हो पाता है और बीमारी फैलाने वाले वायरस हम तक पहुंच नहीं पाते हैं।

6. भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से : -  धार्मिक कार्यक्रमों में भोजन की शुरुआत अक्सर मिर्च-मसाले वाले व्यंजन से होती है और भोजन का अंत मिठाई से होता है। इसका वैज्ञानिक तर्क यह है कि तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

7.पीपल की  पूजा : - आमतौर पर लोगों की मान्यता यह है कि पीपल की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसका एक तर्क यह है कि इसकी पूजा इसलिए की जाती है, ताकि हम वृक्षों की सुरक्षा और देखभाल करें और वृक्षों का सम्मान करें, उन्हें काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा वृक्ष है, जो रात में भी ऑक्सीजन छोड़ता है। इसीलिए अन्य वृक्षों की अपेक्षा इसका महत्व काफी अधिक बताया गया है।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

8. दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना : - 

दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोने पर बुरे सपने आते हैं। इसीलिए उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोना चाहिए। इसका वैज्ञानिक तर्क ये है कि जब हम उत्तर दिशा की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर प्रवाहित होने लगता है। इससे दिमाग से संबंधित कोई बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। ब्लड प्रेशर भी असंतुतित हो सकता है। दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से ये परेशानियां नहीं होती हैं।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ, दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना

9. सूर्य की पूजा करना : - सुबह सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है। इस परंपरा का वैज्ञानिक तर्क ये है कि जल चढ़ाते समय पानी से आने वाली सूर्य की किरणें, जब आंखों हमारी में पहुंचती हैं तो आंखों की रोशनी अच्छी होती है। साथ ही, सुबह-सुबह की धूप भी हमारी त्वचा के लिए फायदेमंद होती है। शास्त्रों की मान्यता है कि सूर्य को जल चढ़ाने से घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान मिलता है। कुंडली में सूर्य के अशुभ फल खत्म होते हैं।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

10. चोटी रखना : - पुराने समय में सभी ऋषि-मुनी सिर पर चोटी रखते थे। आज भी कई लोग रखते हैं। इस संबंध में मान्यता है कि जिस जगह पर चोटी रखी जाती है, उस जगह दिमाग की सारी नसों का केंद्र होता है। यहां चोटी रहती है तो दिमाग स्थिर रहता है। क्रोध नहीं आता है और सोचने-समझने की क्षमता बढ़ती है। मानसिक मजबूती मिलती है और एकाग्रता बढ़ती है।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

11. व्रत रखना : - पूजा-पाठ, त्योहार या एकादशियों पर लोग व्रत रखते हैं। आयुर्वेद के अनुसार व्रत से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से पाचनतंत्र को आराम मिलता है। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी, मधुमेह आदि रोग होने की संभावनाएं भी कम रहती हैं।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

12. चरण स्पर्श करना : - किसी बड़े व्यक्ति से मिलते समय उसके चरण स्पर्श करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। यही संस्कार बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे भी बड़ों का आदर करें। इस परंपरा के संबंध में मान्यता है कि मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हमारे हाथों से सामने वाले पैरों तक पहुंचती है और बड़े व्यक्ति के पैरों से होते हुए उसके हाथों तक पहुंचती है। आशीर्वाद देते समय व्यक्ति चरण छूने वाले के सिर पर अपना हाथ रखता है, इससे हाथों से वह ऊर्जा पुन: हमारे मस्तिष्क तक पहुंचती है। इससे ऊर्जा का एक चक्र पूरा होता है।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ, चरण स्पर्श करना

13. मांग में सिंदूर लगाना : - विवाहित महिलाओं के लिए मांग में सिंदूर लगाना अनिवार्य परंपरा है। इस संबंध में तर्क यह है कि सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी (पारा- तरल धातु) होता है। इन तीनों का मिश्रण शरीर के ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है। इससे मानसिक तनाव भी कम होता है।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

14. तुलसी की पूजा : - तुलसी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। शांति रहती है। इसका तर्क यह है कि तुलसी के संपर्क से हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। यदि घर में तुलसी होगी तो इसकी पत्तियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे कई बीमारियां दूर रहती हैं।

चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ

उषा पान किसे कहते हैं और इसके फायदे क्या हैं ?

उषा पान किसे कहते हैं और इसके फायदे क्या हैं ?

उषा पान का उल्लेख आयुर्वेदिक ग्रंथों में मिलता है। हमारे ऋषि मुनि और प्राचीन काल के लोग उषा पान करके स्वस्थ और सेहतमंद रहते थे। उषा अर्थात प्रात:काल उठने के बाद जल पीने को उषापान कहते हैं। आयुर्वेद में उषापान को अमृतपान कहा गया है। रोगों को दूर करने में यह सरल, नि:शुल्क व सर्वसुलभ उपचार है। उषा पान को जल चिकित्सा या वाटर थेरेपी भी कहते हैं।
उषा पान किसे कहते हैं और इसके फायदे क्या हैं ?
हम सभी जानते हैं कि हमें 8-10 लीटर पानी दिन भर में पीना चाहिए। जिसमें से 3-4 गिलास पानी हमें सुबह के समय खाली पेट जरूर पीना चाहिए। जिससे कि हमारी त्वचा स्वस्थ रहें, हमारा शरीर डिटॉक्स हो सके और हम रोगों से दूर रह सके आदि।

तो चलिए आज इसी विषय पर चर्चा करते हैं। आयुर्वेद में उषापान के बारे में क्या बताया है? उषापान क्या होता है? क्या उषापान सभी के लिए करना सही है?

“काकचण्डीश्वर_कल्पतन्त्र” 
नामक आयुर्वेदीय ग्रन्थ में रात के पहले प्रहर में पानी पीना विषतुल्य बताया गया हैं। मध्य रात्रि में पिया गया पानी “दूध” के सामान लाभप्रद बताया गया हैं। प्रात : काल (सूर्योदय से पहले) पिया गया जल माँ के दूध के समान लाभप्रद कहा गया हैं।

बर्तन का महत्व

उल्लेखनीय हैं के लोहे के बर्तन में रखा हुआ दूध और ताम्बे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने वाले को कभी यकृत (लिवर) और रक्त सम्बन्धी रोग नहीं होते और उसका रक्त हमेशा शुद्ध बना रहता हैं।
उषा पान किसे कहते हैं और इसके फायदे क्या हैं ?
उषा पान के लिए पिया जाने वाला जल ताम्बे के बर्तन में रात भर रखा जाए, तो उस से और भी स्वस्थ्य लाभ प्राप्त हो सकेंगे। जल से भरा ताम्बे का बर्तन सीधे भूमि के संपर्क में नहीं रखना चाहिए, अपितु इसको लकड़ी के टुकड़े पर रखना चाहिए। और पानी हमेशा नीचे उकडू (घुटनो के बल – उत्कर आसान) बैठ कर पीना चाहिए।

ऐसे लोग जिन्हें यूरिक एसिड बढे होने की शिकायत हैं, उनके लिए तो सुबह उषा पान करना किसी रामबाण औषिधि से कम नहीं।

क्या है उषा पान

प्रात : काल रात्रि के अंतिम प्रहर में पिया जाने वाल जल दूध इत्यादि को आयुर्वेद एवं भारतीय धर्म शास्त्रों में उषा पान शब्द से संबोधित किया गया हैं। सुप्रसिद्ध आयुर्वेदीय ग्रन्थ ‘योग रत्नाकर’ सूर्य उदय होने के निकट समय में जो मनुष्य आठ प्रसर (प्रसृत) मात्रा में जल पीता हैं, वह रोग और बुढ़ापे से मुक्त रहता है और दीर्धायु होता है। 

उषा पान कब करना चाहिए

प्रात : काल बिस्तर से उठ कर बिना मुख प्रक्षालन (कुल्ला इत्यादि) किये हुए ही पानी पीना चाहिए। कुल्ला करने के बाद पिए जाने वाले पानी से सम्पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता। ध्यान रहे पानी मल मूत्र त्याग के भी पहले पीना हैं।

उषा पान के फायदे :

सवेरे ताम्बे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से अर्श (बवासीर), शोथ(सोजिश), ग्रहणी, ज्वर, उदर(पेट के) रोग, जरा(बुढ़ापा), कोष्ठगत रोग, मेद रोग (मोटापा), मूत्राघात, रक्त पित (शरीर के किसी भी मार्ग में होने वाला रक्त स्त्राव), त्वचा के रोग, कान नाक गले सिर एवं नेत्र रोग, कमर दर्द तथा अन्यान्य वायु, पित्त, रक्त और कफ, मासिक धर्म, कैंसर, आंखों की बीमारी, डायरियां, पेशाब संबन्‍धित बीमारी, किड़नी, टीबी, गठिया, सिरदर्द आदि से सम्बंधित अनेक व्याधियां धीरे धीरे समाप्त हो जाती हैं।

उषा पान के 10 फायदे :

1. रात के चौथे प्रहर को उषा काल कहते हैं। रात के 3 बजे से सुबह के 6 बजे के बीच के समय को रात का अंतिम प्रहर भी कहते हैं। यह प्रहर शुद्ध रूप से सात्विक होता है। इस प्रहर में जल की गुणवत्ता बिल्कुल बदल जाती है। इसीलिए यह जल शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होगा है। 

2. शरीर की जैविक घड़ी के अनुसार इस समय में फेफड़े क्रियाशील रहते हैं। यदि हम इस काल में उठकर गुनगुना पानी पीकर थोड़ा खुली हवा में घूमते या प्राणायाम करते हैं तो फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है, क्योंकि इस दौरान उन्हें शुद्ध और ताजी वायु मिलती है। 

3. यदि ऐसा करते हैं तो जब प्रात: 5 से 7 बजे के बीच हमारी बड़ी आंत क्रियाशील रहती है तब इस बीच मल त्यागने में किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है। जो व्यक्ति इस वक्त सोते रहते हैं और मल त्याग नहीं करते हैं उनकी आंतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।

4. 'काकचण्डीश्वर कल्पतन्त्र' नामक आयुर्वेदीय ग्रन्थ के अनुसार रात के पहले प्रहर में पानी पीना विषतुल्य, मध्य रात्रि में पिया गया पानी दूध सामान और प्रात: काल (सूर्योदय से पहले उषा काल में) पिया गया जल मां के दूध के समान लाभप्रद कहा गया हैं।

5. आयुर्वेदीय ग्रन्थ 'योग रत्नाकर' के अनुसार जो मनुष्य सूर्य उदय होने के निकट समय में आठ प्रसर (प्रसृत) मात्रा में जल पीता हैं, वह रोग और बुढ़ापे से मुक्त होकर 100 वर्ष से भी अधिक जीवित रहता हैं।

6. उषापान करने से कब्ज, अत्यधिक एसिडिटी और डाइस्पेसिया जैसे रोगों को खत्म करने में लाभ मिलता है।

7. उषापान करने वाले की त्वचा भी साफ और सुंदर बनी रहती है।
8. प्रतिदिन उषापान करने से किडनी स्वस्थ बनी रहती है।

9. प्रतिदिन उषापान करने से आपको वजन कम करने में भी लाभ मिलता है। 

10. उषापान करने से पाचन तंत्र दुरुस्त होता है।

खास बातें : 

1. तांबे के लोटे में पीए पानी। रात में तांबे के बरतन में रखा पानी सुबह पीएं तो अधिक लाभ होता है।

2. वात, पित्त, कफ, हिचकी संबंधी कोई गंभीर रोग हो तो पानी ना पीएं।

3. अल्सर जैसे कोई रोग हो तो भी पानी ना पीएं।

एक कहावत है
प्रात : काल खाट से उठकर, पिए तुरतहि पानी।
उस घर वैद्द कबहुँ नहीं आये, बात घाघ ने जानी।।

उषा पान किन्हें नहीं करना चाहिए।

विविध कफ – वातज व्याधियों, हिचकी, आमाशय व्रण(अल्सर), अफारा(आध्मान), न्यूमोनिया इत्यादि से पीड़ित लोगो को उषापान नहीं करना चाहिए।

इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन || ISRO Chief Dr. K. Sivan

डॉ. के. सिवन

डॉ. के. सिवन (Dr. K. Sivan) का नाम है कैलाशावादिवो सिवन। डॉ ० के सिवन भारत के महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं, इन्हे भारत के रॉकेट मैन के रूप में भी जाना जाता है। इनका जन्म 14 अप्रैल 1957 को कन्याकुमारी के एक गांव सरक्कालविलाई में बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता कैलासावदीवुनादार और चेलमल्ल हैं। परिवार इतना गरीब था कि के सिवन की पढ़ाई के लिए भी पैसे नहीं थे। के. सिवन गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। 8वीं तक वहीं पढ़ेने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें गांव से बाहर निकलना था। लेकिन घर में पैसे नहीं थे। 

इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन || ISRO Chief Dr. K. Sivan

के. सिवन को पढ़ने के लिए फीस जुटानी थी और इसके लिए उन्होंने पास के बाजार में आम बेचना शुरू किया। जो पैसे मिलते, उससे अपनी फीस चुकाते। इसरो चेयरमैन बनने के बाद के सिवन ने अंग्रेजी अखबार डेक्कन क्रॉनिकल से बातचीत के दौरान बताया था। आम बेचकर पढ़ाई करते-करते के. सिवन ने इंटरमीडिएट तो कर लिया, लेकिन ग्रैजुएशन के लिए और पैसे चाहिए थे। पैसे न होने की वजह से उनके पिता ने कन्याकुमारी के नागरकोइल के हिंदू कॉलेज में उनका दाखिला करवा दिया और जब वो हिंदू कॉलेज में मैथ्स में बीएससी करने पहुंचे, तो उनके पैरों में चप्पलें आईं। 

इससे पहले के. सिवन के पास कभी इतने पैसे नहीं हुए थे कि वो अपने लिए चप्पल तक खरीद सकें। सिवन ने पढ़ाई की और अपने परिवार के पहले ग्रैजुएट बने। मैथ्स में 100 में 100 नंबर लेकर आए और फिर उनका मन बदल गया। अब उन्हें मैथ्स नहीं, साइंस की पढ़ाई करनी थी और इसके लिए वो पहुंच गए एमआईटी यानी कि मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी। 

वहां उन्हें स्कॉलरशिप मिली और इसकी बदौलत उन्होंने एरोऩॉटिकल इंजीनियरिंग (हवाई जहाज बनाने वाली पढ़ाई) में बीटेक किया, साल था 1980. एमआईटी में उन्हें एस नमसिम्हन, एनएस वेंकटरमन, ए नागराजन, आर धनराज, और के जयरमन जैसे प्रोफेसर मिले, जिन्होंने के. सिवन को गाइड किया। बीटेक करने के बाद के. सिवन ने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया, बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से। 

इसके बाद जब के. सिवन आईआईएस बैंगलोर से बाहर निकले तो वो एयरोनॉटिक्स के बड़े साइंटिस्ट बन चुके थे। धोती-कुर्ता छूट गया था और वो अब पैंट-शर्ट पहनने लगे थे।  ISRO यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेश के साथ उन्होंने अपनी नौकरी शुरू की। पहला काम मिला पीएसएलवी बनाने की टीम में। 

इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन || ISRO Chief Dr. K. Sivan

पीएसएलवी यानी कि पोलर सेटेलाइट लॉन्च वीकल। ऐसा रॉकेट जो भारत के सेटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेज सके। के. सिवन और उनकी टीम इस काम में कामयाब रही। के. सिवन ने रॉकेट को कक्षा में स्थापित करने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया, जिसे नाम दिया गया सितारा। उनका बनाया सॉफ्टवेयर बेहद कामयाब रहा और भारत के वैज्ञानिक जगत में इसकी चर्चा होने लगी। इस दौरान भारत के वैज्ञानिक पीएसएलवी से एक कदम आगे बढ़कर जीएसएलवी की तैयारी कर रहे थे। 

जीएसएलवी यानी कि जियोसेटेलाइट लॉन्च वीकल। 18 अप्रैल, 2001 को जीएसएलवी की टेस्टिंग की गई, लेकिन टेस्टिंग फेल हो गई, क्योंकि जिस जगह पर वैज्ञानिक इसे पहुंचाना चाहते थे, नहीं पहुंचा पाए। के सिवन को इसी काम में महारत हासिल थी। अतः के सिवन को जीएसएलवी को लॉन्च करने का जिम्मा दिया गया और उन्होंने कर दिखाया। 

इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन || ISRO Chief Dr. K. Sivan

इसके बाद से ही के. सिवन को ISRO का रॉकेट मैन कहा जाने लगा। इसके बाद के. सिवन और उनकी टीम ने एक और प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया। प्रोजेक्ट था रियूजेबल लॉन्च वीकल बनाना। मतलब कि लॉन्च वीकल से एक बार सेटेलाइट छोड़ने के बाद दोबारा उस लॉन्च वीकल का इस्तेमाल किया जा सके। अभी तक किसी भी देश में ऐसा नहीं हो पाया था। के. सिवन की अगुवाई में भारत के वैज्ञानिक इसमें जुट गए थे। 

इस दौरान के सिवन ने साल 2006 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में आईआईटी बॉम्बे से डॉक्टरी की डिग्री हासिल कर ली और फिर ISRO में लॉन्च वीकल के लिए ईंधन बनाने वाले डिपार्टमेंट 2 जुलाई, 2014 को मुखिया बना दिए गए। एक साल से भी कम समय का वक्त बीता और के. सिवन को विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर का मुखिया बना दिया गया। वो स्पेस सेंटर जिसका काम है भारत के सेटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजने के लिए वीकल यानी कि रॉकेट तैयार करना। 

इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन || ISRO Chief Dr. K. Sivan

यहां अभी के. सिवन एक साल भी काम नहीं कर पाए कि उस वक्त के ISRO के मुखिया ए.एस. किरन कुमार का कार्यकाल पूरा हो गया और फिर 14 जनवरी, 2015 को के. सिवन को ISRO का मुखिया नियुक्त किया गया। खाली वक्त में क्लासिकल तमिल संगीत सुनने और बागवानी करने वाले के सिवन को कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। उनकी अगुवाई में ISRO ने 15 फरवरी, 2017 को एक साथ 104 सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे। ऐसा करके ISRO ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया और इसके बाद ISRO का सबसे बड़ा मिशन था चंद्रयान 2, जिसे 22 जुलाई, 2019 को ल़ॉन्च किया गया था। 2 सितंबर को चंद्रयान दो हिस्सों में बंट गया. पहला हिस्सा था ऑर्बिटर, जिसने चंद्रमा के चक्कर लगाने शुरू कर दिए. दूसरा हिस्सा था लैंडर, जिसे विक्रम नाम दिया गया था। इसे 6-7 सितंबर की रात चांद की सतह पर उतरना था। 

2019 में जब चंद्रयान-2 मिशन बस चांद की सतह को छूने ही वाला था कि उसका लैंडर विक्रम की क्रैश लैंडिंग हो गई। इस मिशन को देखने के लिए खुद पीएम नरेंद्र मोदी भी पहुंचे थे। मिशन के असफल हो जाने के बाद के सिवन रो पड़े थे। तब पीएम मोदी ने उन्हें ढाढस बढ़ाया था।

इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन || ISRO Chief Dr. K. Sivan

हालांकि अब जब चंद्रयान-3 मिशन सफल हो चुका है, तो वह बेहद खुश हैं। उन्होंने चंद्रयान-2 के समय को याद किया और चंद्रयान-3 की सफलता पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि वह कब से इस पल का इंतजार कर रहे थे। 

English Translate

Dr. Sivan

dr. The name of Sivan (Dr. K. Sivan) is Kailashavadivo Sivan. Dr 0 K Sivan is the great space scientist of India, he is also known as the rocket man of India. He was born on 14 April 1957 in a very poor family in Sarakkalvilai, a village in Kanyakumari. His parents are Kailasavadivunadar and Chelamalla. The family was so poor that there was no money even for K Sivan's studies. Of. Sivan used to study in the government school of the village itself. After studying there till 8th, he had to move out of the village for further studies. But there was no money in the house.

Of. Sivan had to raise fees for studies and for this he started selling mangoes in the nearby market. With the money he got, he used to pay his fees. After becoming ISRO chairman, Sivan told during a conversation with the English newspaper Deccan Chronicle. While studying by selling mangoes, K. Sivan completed his intermediate, but needed more money for graduation. Due to lack of money, his father got him enrolled in Hindu College, Nagercoil, Kanyakumari and when he reached Hindu College to do B.Sc in Maths, slippers came on his feet.

इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन || ISRO Chief Dr. K. Sivan

Before that K. Sivan never had enough money to even buy slippers for himself. Sivan studied and became the first graduate in his family. Scored 100 out of 100 in maths and then changed his mind. Now he had to study science, not maths, and for this he reached MIT i.e. Madras Institute of Technology.

There he got a scholarship and due to this he did B.Tech in Aeronautical Engineering (aeronautical studies), the year was 1980. At MIT he got professors like S. Namasimhan, NS Venkataraman, A. Nagarajan, R. Dhanraj, and K. Jayaraman, who taught K. Jayaraman. Guided Sivan. After doing B.Tech. Sivan did his Masters in Aerospace Engineering from the Indian Institute of Science, Bangalore.

After this when K. When Sivan came out of IIS Bangalore, he had become a big scientist of aeronautics. The dhoti-kurta was discarded and now he started wearing pant-shirt. He started his job with ISRO i.e. Indian Space Research Organisation. Got the first job in the team to make PSLV.

PSLV stands for Polar Satellite Launch Vehicle. A rocket that can send India's satellites into space. Of. Sivan and his team were successful in this task. Of. Sivan created a software to put the rocket into orbit, which was named Star. The software he created was very successful and it started being discussed in the scientific world of India. During this, Indian scientists were preparing for GSLV by going one step ahead of PSLV.

GSLV stands for Geosatellite Launch Vehicle. GSLV was tested on April 18, 2001, but the testing failed because the scientists could not reach the place they wanted to reach. K Sivan had mastered this work. So K Sivan was given the responsibility of launching GSLV and he did it.

Since then K. Sivan came to be known as the Rocket Man of ISRO. After this K. Sivan and his team started working on another project. The project was to make a reusable launch vehicle. Meaning that once the satellite is released from the launch vehicle, that launch vehicle can be used again. So far this had not happened in any country. Of. Indian scientists were involved in this under the leadership of Sivan.

Meanwhile, Sivan obtained his doctorate in aerospace engineering from IIT Bombay in 2006 and was then made the head of ISRO's launch vehicle fueling department on July 2, 2014. Less than a year passed and K. Sivan was made the head of the Vikram Sarabhai Space Center. The space center whose job is to prepare vehicles i.e. rockets to send India's satellites into space.

Here now Sivan could not work even for a year that the then ISRO chief A.S. Kiran Kumar's term was completed and then on January 14, 2015, K.K. Sivan was appointed as the head of ISRO. K Sivan, who enjoys listening to classical Tamil music and gardening in his spare time, has been awarded several awards. Under his leadership, ISRO sent 104 satellites into space on February 15, 2017. By doing this ISRO made a world record and after this ISRO's biggest mission was Chandrayaan 2, which was launched on July 22, 2019. On September 2, Chandrayaan split into two parts. The first part was the orbiter, which started orbiting the moon. The second part was the lander, which was named Vikram. It was to land on the lunar surface on the night of 6-7 September.

इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन || ISRO Chief Dr. K. Sivan

In 2019, when the Chandrayaan-2 mission was just about to touch the lunar surface, its lander Vikram made a crash landing. PM Narendra Modi himself had also reached to see this mission. Sivan wept after the mission failed. Then PM Modi had encouraged him.

However, now that the Chandrayaan-3 mission has been successful, he is very happy. He recalled the time of Chandrayaan-2 and congratulated on the success of Chandrayaan-3. He said how long he had been waiting for this moment.

रमेश बाबू प्रज्ञानानंदा (Rameshbabu Praggnanandhaa) || 18 year old chess grandmaster ||

आठ साल में बने विश्व चैंपियन, 12 साल में ग्रैंड मास्टर; सबसे युवा शतरंज विश्व कप उपविजेता

रमेश बाबू प्रज्ञानानंदा (Rameshbabu Praggnanandhaa) एक 18 वर्षीय लड़के ने दुनिया के नंबर 2 और 3 खिलाड़ियों को हराकर फाइनल में प्रवेश किया और दुनिया के नंबर 1 खिलाड़ी के खिलाफ प्रतिस्पर्धा की और 2 बार खेला और मैच को 35 चालों में ड्रा कराया। भले ही प्रगनाननंदा को शतरंज विश्व कप के फाइनल में हार का सामना करना पड़ा हो, लेकिन हार के बावजूद भी यह उनकी जीत है। वह लाखों नए फैंस बनाने में कामयाब रहे हैं। वह सबसे कम उम्र के शतरंज विश्व कप उपविजेता बने हैं। 18 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन को फाइनल में कांटे की टक्कर दी। कार्लसन उम्र में प्रगनाननंदा से लगभग दो गुने हैं।

रमेश बाबू प्रज्ञानानंदा (Rameshbabu Praggnanandhaa) || 18 year old chess grandmaster ||

प्रगनाननंदा आठ साल की उम्र में विश्व विजेता बने थे और पहली बार चर्चा में आए। 10 साल की उम्र में भी उन्होंने अपने वर्ग में खिताब जीता और 12 साल की उम्र में ग्रैंड मास्टर की उपाधि हासिल कर इतिहास रच दिया। रमेश बाबू प्रज्ञानानंदा, जिनसे आज भी बहुत कम भारतीय लोग परिचित हैं, लेकिन विश्व स्तर पर यह नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है।

रमेश बाबू प्रज्ञानानंदा (Rameshbabu Praggnanandhaa) || 18 year old chess grandmaster ||

22 अगस्त 2023 को इस शतरंज विश्व कप फाइनल मुकाबले का पहला मैच ड्रॉ हो गया था। Praggnanandhaa और Magnus Carlsen के बीच फाइनल का दूसरा मुकाबला बुधवार 23 अगस्त 2023 को हुआ लेकिन इस मुकाबले में भी कोई निष्कर्ष नहीं आया और ड्रा हो गया। 24 अगस्त 2023 को R Praggnanandhaa Vs Magnus Carlsen आमने सामने थे। आखिरकार R Praggnanandhaa को हराकर Magnus Carlsen FIDE Word Cup 2023 के विजेता बन गए।

रमेश बाबू प्रज्ञानानंदा (Rameshbabu Praggnanandhaa) || 18 year old chess grandmaster ||

लेकिन Chess World Cup 2023 का फाइनल मुकाबला हार कर भी Praggnanandhaa ने एक नया इतिहास रच दिया है और विश्व में आज तक के सबसे कम उम्र के FIDE विश्व कप उपविजेता बन गए हैं। महज 18 साल की उम्र में FIDE Chess World Cup 2023 उपविजेता का खिताब जीतना भारत और प्रज्ञानानंदा के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है और आज पूरा भारत इस उपलब्धि के लिए उनकी सराहना कर रहा है। भले ही वह इस मुकाबले में हार गए लेकिन उन्होंने करोड़ों भारतवासियों का दिल जीत लिया।

रमेश बाबू प्रज्ञानानंदा (Rameshbabu Praggnanandhaa) || 18 year old chess grandmaster ||

English Translate 

Became World Champion in eight years, Grand Master in 12 years; Youngest Chess World Cup Runner-up

Ramesh Babu Praggnanandhaa an 18-year-old boy defeated world No. 2 and 3 players to enter the final and compete against world No. 1 player and played 2 times and drew the match in 35 moves. Even though Praggnanandhaa had to face defeat in the final of the Chess World Cup, it is a victory for him despite the defeat. He has managed to make millions of new fans. He has become the youngest Chess World Cup runner-up. At the age of 18, he defeated world number one Magnus Carlsen in the final. Carlsen is almost twice the age of Praggnanandhaa.

रमेश बाबू प्रज्ञानानंदा (Rameshbabu Praggnanandhaa) || 18 year old chess grandmaster ||

Praggnanandhaa became world champion at the age of eight and came into limelight for the first time. Even at the age of 10, he won the title in his class and at the age of 12, he created history by achieving the title of Grand Master. Ramesh Babu Pragyanananda, with whom very few Indian people are familiar even today, but globally this name does not need any recognition.

रमेश बाबू प्रज्ञानानंदा (Rameshbabu Praggnanandhaa) || 18 year old chess grandmaster ||

On 22 August 2023, the first match of this Chess World Cup final match was drawn. The second match of the final between Praggnanandhaa and Magnus Carlsen took place on Wednesday, 23 August 2023 but this match also ended in a draw. R Praggnanandhaa Vs Magnus Carlsen were face to face on 24 August 2023. Magnus Carlsen finally became the winner of the FIDE Word Cup 2023 by defeating R Praggnanandhaa.

रमेश बाबू प्रज्ञानानंदा (Rameshbabu Praggnanandhaa) || 18 year old chess grandmaster ||

But even after losing the final match of Chess World Cup 2023, Praggnanandhaa has created a new history and has become the youngest ever FIDE World Cup runner-up in the world. Winning the FIDE Chess World Cup 2023 runner-up title at the age of just 18 is a historic achievement for India and Praggnanandhaa and today the whole of India is applauding him for this achievement. Even though he lost in this match, he won the hearts of crores of Indians.

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ऋतु करिधाल श्रीवास्तव || Ritu Karidhal Srivastava

ऋतु करिधाल

ऋतु करिधाल श्रीवास्तव (Ritu Karidhal Srivastava) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ काम करने वाली एक भारतीय वैज्ञानिक हैं। वह भारत के मंगल कक्षीय मिशन, मंगलयान के उप-संचालन निदेशक थीं। उन्हें भारत की "रॉकेट वुमन" के रूप में जाना जाता है। वह लखनऊ में पैदा हुई थी और एक एयरोस्पेस इंजीनियर थी। उन्होंने पहले भी कई अन्य इसरो प्रोजेक्ट्स के लिए काम किया है और इनमें से कुछ के लिए ऑपरेशन डायरेक्टर के रूप में काम किया है।

ऋतु करिधाल श्रीवास्तव || Ritu Karidhal Srivastava

चांद की सतह पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग होते ही उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के राजाजीपुरम ई-ब्लॉक में पटाखों की गूंज सुनाई देने लगी। छोटे-छोटे बच्चे ‘चंदा मामा अब दूर नहीं’ गाते हुए रॉकेट वुमेन ऋतु करिधाल के घर के बाहर नाचने लगे। इस बीच ऋतु करिधाल की भाभी विनुशी घर से बाहर निकलीं तो सभी ने उन्हें बधाई दी। उनकी आंखें खुशियों से नम थीं। उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक पल है। मेरे पास तो बोलने के लिए शब्द नहीं हैं।

'रॉकेट वुमन' ऋतु करिधाल श्रीवास्तव कर रही थीं चंद्रयान मिशन-3 को लीड ..

ऋतु करिधाल श्रीवास्तव हैं चंद्रयान मिशन-3 की डायरेक्टर - चन्द्रयान पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई थीं। इसमें ‘रॉकेट वुमन’ नाम से चर्चित स्पेस साइंटिस्ट ऋतु करिधाल श्रीवास्तव फ्रंट से लीड कर रही थीं। लखनऊ की ऋतु विज्ञान की दुनिया में भारतीय स्त्रियों की बढ़ती धमक की मिसाल हैं। मंगलयान मिशन में अपनी कुशलता दिखा चुकीं ऋतु ने चन्द्रयान के साथ कामयाबी की एक और ऊंची भरीं। 

प्रारंभिक जीवन और परिवार..

करिधाल का जन्म लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह एक मध्यम वर्गीय कायस्थ परिवार में पली-बढ़ी, जिसने शिक्षा पर बहुत जोर दिया। उनके दो भाई और दो बहनें हैं। उनके पिता रक्षा सेवाओं में थे। कोचिंग संस्थानों और ट्यूशनों के संसाधनों की अनुपलब्धता और असफलताओं ने उन्हें सफल होने के लिए प्रेरणा दी। वह जानती थी कि उसकी दिलचस्पी अंतरिक्ष विज्ञान में थी। रात के आकाश पर घंटों तक टकटकी लगाए और बाहरी स्थान के बारे में सोचते हुए, वह चंद्रमा के बारे में सोचती थी, जैसे कि वह अपना आकार कैसे बदलता है; सितारों का अध्ययन किया और जानना चाहा कि अंधेरे स्थान के पीछे क्या है। अपनी किशोरावस्था में, उन्होंने किसी भी अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधि के बारे में समाचार पत्रों की कटिंग एकत्र करना शुरू कर दिया और इसरो और नासा की गतिविधियों पर नज़र रखनी शुरू कर दी।

ऋतु करिधाल श्रीवास्तव || Ritu Karidhal Srivastava

करिधाल ने लखनऊ विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट) परीक्षा उत्तीर्ण की, और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में अपनी स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने के लिए भारतीय विज्ञान संस्थान (आई आई ऐस सी) में प्रवेश लिया।

इसके बाद उन्होंने बेंगलुरु के इंडियन साइंस इंस्टीट्यूट का रुख किया। जहां अंतरिक्ष विज्ञान में उन्होंने महारथ हासिल की। ऋतु की प्रतिभा को देखते हुए उन्हें ISRO में नौकरी मिल गई। इस युवा साइंटिस्ट ने इसके बाद कई उपलब्धियां हासिल की और 2007 में उन्हें यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड भी मिला। 

ऋतु करिधाल श्रीवास्तव || Ritu Karidhal Srivastava

काफी कम उम्र में ही उनकी काबिलियत और उपलब्धियों ने उन्हें एक बड़ी साइंटिस्ट बना दिया। इसके बाद देश के तमाम बड़े अंतरिक्ष मिशनों में उनकी अहम भूमिका रही। इसीलिए उन्हें भारत की रॉकेट वुमन भी कहा जाता है। 

Ritu Karidhal

Ritu Karidhal Srivastava is an Indian scientist working with the Indian Space Research Organization (ISRO). She was the Deputy Operations Director of India's Mars Orbiter Mission, Mangalyaan. She is known as the "Rocket Woman" of India. She was born in Lucknow and was an aerospace engineer. He has worked for many other ISRO projects in the past as well and served as the Director of Operations for some of these.

ऋतु करिधाल श्रीवास्तव || Ritu Karidhal Srivastava

As soon as the landing of Chandrayaan-3 on the surface of the moon, the echo of firecrackers was heard in the Rajajipuram E-block of Lucknow, the capital of Uttar Pradesh. Small children started dancing outside the house of Rocket Woman Ritu Karidhal singing 'Chanda mama ab door nahi'. Meanwhile, Ritu Karidhal's sister-in-law Vinushi came out of the house and everyone congratulated her. His eyes were moist with happiness. He said that this is a historic moment. I don't have words to speak.

'Rocket Woman' Ritu Karidhal Srivastava was leading Chandrayaan Mission-3 ..

Ritu Karidhal Srivastava is the director of Chandrayaan Mission-3 - The eyes of the whole country were on Chandrayaan. In this, space scientist Ritu Karidhal Srivastava, known as 'Rocket Woman', was leading from the front. The weather of Lucknow is an example of the growing threat of Indian women in the world of science. Ritu, who has shown her skills in the Mangalyaan mission, achieved another high of success with Chandrayaan.

Early life and family

Karidhal was born in Lucknow, Uttar Pradesh. She grew up in a middle-class Kayastha family that placed great emphasis on education. He has two brothers and two sisters. His father was in the defense services. The unavailability of resources and failures of coaching institutes and tuitions gave him the motivation to succeed. She knew that he was interested in space science. Gazing for hours at the night sky and thinking about outer space, she used to think about the moon, like how it changes its shape; He studied the stars and wanted to know what was behind the dark spot. In his teens, he started collecting newspaper cuttings about any space related activity and started tracking the activities of ISRO and NASA.

Karidhal completed his graduation in Physics from Lucknow University. He cleared the Graduate Aptitude Test in Engineering (GATE) exam, and joined the Indian Institute of Science (IISc) to pursue his master's degree in aerospace engineering.

ऋतु करिधाल श्रीवास्तव || Ritu Karidhal Srivastava

After this he turned to the Indian Science Institute of Bangalore. Where he mastered in space science. Seeing Ritu's talent, she got a job in ISRO. This young scientist achieved many achievements after this and in 2007 he also received the Young Scientist Award.

His ability and achievements at a very young age made him a great scientist. After this, he played an important role in all the big space missions of the country. That is why she is also called the Rocket Woman of India.

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) अध्याय- 13 (20-35)

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

अथ त्रयोदशोsध्याय: श्रीभगवानुवाच

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय

श्रीभगवानुवाच

प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्‌यनादी उभावपि ।
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसम्भवान्‌ || 13.20 ||

भावार्थ : 

प्रकृति और पुरुष- इन दोनों को ही तू अनादि जान और राग-द्वेषादि विकारों को तथा त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उत्पन्न जान॥13.20॥

श्रीभगवानुवाच

कार्यकरणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते ।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते || 13.21 ||

भावार्थ : 

कार्य (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी तथा शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध -इनका नाम 'कार्य' है) और करण (बुद्धि, अहंकार और मन तथा श्रोत्र, त्वचा, रसना, नेत्र और घ्राण एवं वाक्‌, हस्त, पाद, उपस्थ और गुदा- इन 13 का नाम 'करण' है) को उत्पन्न करने में हेतु प्रकृति कही जाती है और जीवात्मा सुख-दुःखों के भोक्तपन में अर्थात भोगने में हेतु कहा जाता है॥13.21॥

पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्‍क्ते प्रकृतिजान्गुणान्‌ ।
कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु || 13.22 ||

भावार्थ : 

प्रकृति में (प्रकृति शब्द का अर्थ गीता अध्याय 7 श्लोक 14 में कही हुई भगवान की त्रिगुणमयी माया समझना चाहिए) स्थित ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थों को भोगता है और इन गुणों का संग ही इस जीवात्मा के अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण है। (सत्त्वगुण के संग से देवयोनि में एवं रजोगुण के संग से मनुष्य योनि में और तमो गुण के संग से पशु आदि नीच योनियों में जन्म होता है।)॥13.22॥

उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः ।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः || 13.23 ||

भावार्थ : 

इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है। वह साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता, सबका धारण-पोषण करने वाला होने से भर्ता, जीवरूप से भोक्ता, ब्रह्मा आदि का भी स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानन्दघन होने से परमात्मा- ऐसा कहा गया है॥13.23॥

य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते || 13.24 ||

भावार्थ : 

इस प्रकार पुरुष को और गुणों के सहित प्रकृति को जो मनुष्य तत्व से जानता है (दृश्यमात्र सम्पूर्ण जगत माया का कार्य होने से क्षणभंगुर, नाशवान, जड़ और अनित्य है तथा जीवात्मा नित्य, चेतन, निर्विकार और अविनाशी एवं शुद्ध, बोधस्वरूप, सच्चिदानन्दघन परमात्मा का ही सनातन अंश है, इस प्रकार समझकर सम्पूर्ण मायिक पदार्थों के संग का सर्वथा त्याग करके परम पुरुष परमात्मा में ही एकीभाव से नित्य स्थित रहने का नाम उनको 'तत्व से जानना' है) वह सब प्रकार से कर्तव्य कर्म करता हुआ भी फिर नहीं जन्मता॥13.24॥

ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना ।
अन्ये साङ्‍ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे || 13.25 ||

भावार्थ : 

उस परमात्मा को कितने ही मनुष्य तो शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि से ध्यान (जिसका वर्णन गीता अध्याय 6 में श्लोक 11 से 32 तक विस्तारपूर्वक किया है) द्वारा हृदय में देखते हैं, अन्य कितने ही ज्ञानयोग (जिसका वर्णन गीता अध्याय 2 में श्लोक 11 से 30 तक विस्तारपूर्वक किया है) द्वारा और दूसरे कितने ही कर्मयोग (जिसका वर्णन गीता अध्याय 2 में श्लोक 40 से अध्याय समाप्तिपर्यन्त विस्तारपूर्वक किया है) द्वारा देखते हैं अर्थात प्राप्त करते हैं॥13.25॥

अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वान्येभ्य उपासते ।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः || 13.26 ||

भावार्थ : परन्तु इनसे दूसरे अर्थात जो मंदबुद्धिवाले पुरुष हैं, वे इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात तत्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते हैं और वे श्रवणपरायण पुरुष भी मृत्युरूप संसार-सागर को निःसंदेह तर जाते हैं॥13.26॥

यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्‍गमम्‌ ।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ || 13.27 ||

भावार्थ : 

हे अर्जुन! यावन्मात्र जितने भी स्थावर-जंगम प्राणी उत्पन्न होते हैं, उन सबको तू क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही उत्पन्न जान॥13.27॥

समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्‌ ।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति || 13.28 ||

भावार्थ : 

जो पुरुष नष्ट होते हुए सब चराचर भूतों में परमेश्वर को नाशरहित और समभाव से स्थित देखता है वही यथार्थ देखता है॥13.28॥

समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम्‌ ।
न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम्‌ || 13.29 ||

भावार्थ : 

क्योंकि जो पुरुष सबमें समभाव से स्थित परमेश्वर को समान देखता हुआ अपने द्वारा अपने को नष्ट नहीं करता, इससे वह परम गति को प्राप्त होता है॥13.29॥

प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः ।
यः पश्यति तथात्मानमकर्तारं स पश्यति || 13.30 ||

भावार्थ : 

और जो पुरुष सम्पूर्ण कर्मों को सब प्रकार से प्रकृति द्वारा ही किए जाते हुए देखता है और आत्मा को अकर्ता देखता है, वही यथार्थ देखता है॥13.30॥

यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति ।
तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा || 13.31 ||

भावार्थ : 

जिस क्षण यह पुरुष भूतों के पृथक-पृथक भाव को एक परमात्मा में ही स्थित तथा उस परमात्मा से ही सम्पूर्ण भूतों का विस्तार देखता है, उसी क्षण वह सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है॥13.31॥

अनादित्वान्निर्गुणत्वात्परमात्मायमव्ययः ।
शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते || 13.32 ||

भावार्थ : 

हे अर्जुन! अनादि होने से और निर्गुण होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में न तो कुछ करता है और न लिप्त ही होता है॥13.32॥

यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते ।
सर्वत्रावस्थितो देहे तथात्मा नोपलिप्यते || 13.33 ||

भावार्थ : 

जिस प्रकार सर्वत्र व्याप्त आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता, वैसे ही देह में सर्वत्र स्थित आत्मा निर्गुण होने के कारण देह के गुणों से लिप्त नहीं होता॥13.33॥

यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः ।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत || 13.34 ||

भावार्थ : 

हे अर्जुन! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है॥13.34॥

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा ।
भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्‌ || 13.35 ||

भावार्थ : 

इस प्रकार क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को (क्षेत्र को जड़, विकारी, क्षणिक और नाशवान तथा क्षेत्रज्ञ को नित्य, चेतन, अविकारी और अविनाशी जानना ही 'उनके भेद को जानना' है) तथा कार्य सहित प्रकृति से मुक्त होने को जो पुरुष ज्ञान नेत्रों द्वारा तत्व से जानते हैं, वे महात्माजन परम ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं॥13.35॥

चंद्रयान-3 सफलता पूर्वक लैंड || Chandrayaan-3

चंद्रयान-3 सफलता पूर्वक लैंड || Chandrayaan-3

देश के लिए खुशखबरी चंद्रयान-3 सफलता पूर्वक लैंड हुआ। 140 करोड़ देशवासियों के सपनों के साथ चंद्रमा पर उतर चंद्रयान - 3...चंद्रमा के दक्षिणी भाग पर पँहुचने वाला दुनिया का पहला देश बना भारत। नये इतिहास की रचना पर सभी भारतवंशियों को कोटिशः बधाई। Proud Moment for All. Jai Hind Jai Bharat. Congratulations ISRO

चंद्रयान-3 सफलता पूर्वक लैंड || Chandrayaan-3

आज चांद पर चंद्रविजय कर

भारत ने तिरंगा फहराया 

विश्व पटल पर फिर भारत ने 

एक नया इतिहास रचा 

जंहा पहुंच न पाया कोई

वहाँ पहुंच गया हिन्दुस्ता 

राष्ट्रीय चिह्न का छाप छोड़ 

चाँद पर तिरंगा फहराया  

विश्व विजेता तिरंगा प्यारा

अब हो गया चांद हमारा 

बढ गयी देश की मेरे शान

ये है मेरा देश महान

एक नहीं हारे दो बार 

फिर भी कंहा जीत से इंकार

भेजा था फिर से विक्रम

फहर गया तिरंगा प्रग्यान

आज चाँद पर---------

चंद्रयान-3 सफलता पूर्वक लैंड || Chandrayaan-3

#इसरो 
#ISRO 
#Chandrayaan3Landing
चंद्रयान-3 सफलता पूर्वक लैंड || Chandrayaan-3

गॉब्लिन शार्क (goblin shark) - खतरनाक जबड़ा, भयानक आंखें और डरावने चेहरे वाली मछली

गॉब्लिन शार्क (goblin shark)

 इस धरती पर सिर्फ मछलियों की ही ना जाने कितनी ही प्रजातियाँ हैं। इन्हीं में से एक है - गॉब्लिन शार्क (goblin shark)। यह खतरनाक जबड़ा, भयानक आंखें और डरावने चेहरे वाली मछली है। गोब्लिन शार्क की खोज 1898 में जापानी जल में की गई थी। इसका वर्णन अमेरिकी इचिथोलॉजिस्ट डेविड स्टार जॉर्डन द्वारा किया गया था, जिन्होंने इसे न केवल एक नई प्रजाति के रूप में बल्कि एक नए परिवार और जीनस के रूप में भी पहचाना।

गॉब्लिन शार्क (goblin shark) - खतरनाक जबड़ा, भयानक आंखें और डरावने चेहरे वाली मछली
यह लगभग 125 मिलियन वर्ष पुरानी शार्क की प्रजाति है। ये मछलियां समुद्र तल पर 350 फीट और उससे अधिक की गहराई पर घूमना पसंद करती हैं। गोब्लिन शार्क के पास लम्बा, सींग जैसा थूथन (Snout) होता है। यह शिकार को छीनने के लिए दांतों से भरे पार्टी हॉर्न की तरह अपने जबड़ों को आगे बढ़ा सकती हैं। यह न केवल बदसूरत है, बल्कि बहुत आलसी भी होती हैं। 

गोब्लिन शार्क का थूथन विशिष्ट रूप से लंबा और सपाट होता है, जो ब्लेड जैसा दिखता है। उम्र के साथ थूथन की आनुपातिक लंबाई घटती जाती है। आंखें छोटी हैं और उनमें सुरक्षात्मक निक्टिटेटिंग झिल्लियों का अभाव होता है। आंखों के पीछे श्वासरंध्र हैं। बड़ा मुँह आकार में परवलयिक है। जबड़े बहुत उभरे हुए होते हैं और इन्हें लगभग थूथन के अंत तक बढ़ाया जा सकता है, हालांकि आम तौर पर इन्हें सिर के नीचे की ओर सीधा रखा जाता है। इसमें 35-53 ऊपरी और 31-62 निचली दाँत पंक्तियाँ हैं। जबड़े के मुख्य भाग में दांत लंबे और संकीर्ण होते हैं, विशेष रूप से सिम्फिसिस (जबड़े के मध्य बिंदु) के पास, और लंबाई में बारीक खांचे वाले होते हैं। जबड़े के कोनों के पास के पीछे के दाँत छोटे होते हैं और कुचलने के लिए चपटे आकार के होते हैं।
गॉब्लिन शार्क (goblin shark) - खतरनाक जबड़ा, भयानक आंखें और डरावने चेहरे वाली मछली

इस प्रजाति के जीवित शार्क त्वचा के नीचे दिखाई देने वाली रक्त वाहिकाओं के कारण गुलाबी या भूरे रंग के होते हैं।  उम्र के साथ रंग गहरा होता जाता है और युवा शार्क लगभग सफेद हो सकती हैं। पंखों के किनारे पारभासी भूरे या नीले रंग के होते हैं, और आंखें काली होती हैं और परितारिका में नीले रंग की धारियां होती हैं । मृत्यु के बाद, रंग तेजी से फीका होकर हल्का भूरा या भूरा हो जाता है। वयस्क शार्क आमतौर पर 3 से 4 मीटर लंबी होती हैं। हालाँकि, 2000 के दौरान अनुमानित 5.4-6.2 मीटर (18-20 फीट) लंबी एक विशाल मादा को पकड़ने से पता चला कि यह प्रजाति पहले की तुलना में कहीं अधिक बड़ी हो सकती है। 2019 के एक अध्ययन ने सुझाव दिया कि इसकी अधिकतम लंबाई 7 मीटर (23 फीट) तक पहुंच गई होगी। 2022 में 3.8 मीटर (12.5 फीट) लंबाई वाले शार्क के लिए अधिकतम वजन 210 किलोग्राम (460 पाउंड) दर्ज किया गया था।

गॉब्लिन शार्क (goblin shark) - खतरनाक जबड़ा, भयानक आंखें और डरावने चेहरे वाली मछली

English Translate

Goblin shark

   Don't know how many architectural arts are there on this earth not only of fishes. One of the friendly is the goblin shark. It is a fish with menacing jaws, terrifying terrorist and scary fish. The goblin shark was discovered in Japanese waters in 1898. It was described by the American ichthyone David Starr Jordan, including it not only as a new branch but also as a new family and suborder.

This is the architecture of a shark about 125 million years old. These fish prefer to hang out on the ocean floor at depths of 350 feet and above. The goblin shark has a median, as does the horn snout. It can thrust its jaws forward like the ultimate party horn with teeth to chew on prey. It is not only unique, but also very dynamic.

गॉब्लिन शार्क (goblin shark) - खतरनाक जबड़ा, भयानक आंखें और डरावने चेहरे वाली मछली

The goblin shark's snout is distinctively vole-like and resembles a blade. The proportional length of the snout decreases with age. Babies are small and lack well-designed nictitating membranes. There are spiracles behind the eyes. The larger sphere is parabolic in shape. The jaws are very prominent and may be scaled almost to the end of the snout, though are usually held straight down towards the head. It has 35–53 upper and 31–62 coccygeal tooth rows. The teeth in the main part of the jaw are long and unusual, especially near the symphysis (the middle point of the jaw), and the teeth are longitudinally furrowed. The nasopharynx has small teeth at the rear of the jaws and is flattened for crushing.

गॉब्लिन शार्क (goblin shark) - खतरनाक जबड़ा, भयानक आंखें और डरावने चेहरे वाली मछली

Live sharks from this institute have visible blood vessels under the skin that are pink or brown in color. The color deepens with age and young sharks can be nearly white. The tiger has translucent brown or blue stripes on its sides, and the eyes are black with blue stripes across the iris. After death, the color changes from mottled to alternate brown or gray. Adult sharks are usually 3 to 4 meters long. However, the capture of a mammoth female, 5.4–6.2 m (18–20 ft) long, in the 2000s showed that this archetype may be much larger than previously thought. A 2019 study suggested that its maximum length would reach 7 m (23 ft). In 2022, a shark with a length of 3.8 m (12.5 ft) had a maximum recorded weight of 210 lb (460 lb).