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मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..घासवाली

मानसरोवर-1 ..घासवाली

घासवाली - मुंशी प्रेमचंद | Ghaswali - Munshi Premchand

मुलिया हरी-हरी घास का गट्ठा लेकर आयी, तो उसका गेहुँआ रंग कुछ तमतमाया हुआ था और बड़ी-बड़ी मद्-भरी आँखों में शंका समायी हुई थी। महावीर ने उसका तमतमाया हुआ चेहरा देखकर पूछा – क्या हैं मुलिया, आज कैसा जी हैं?

मुलिया ने कुछ जवाब न दिया। उसकी आँखें डबडबा गयीं।

महावीर ने समीप आकर पूछा – क्या हुआ, बताती क्यों नहीं? किसी ने कुछ कहा हैं, अम्माँ ने डाँटा, क्यों इतनी उदास हैं?

घासवाली - मुंशी प्रेमचंद | Ghaswali - Munshi Premchand

मुलिया ने कहा – कुछ नहीं, हुआ क्या हैं? अच्छी तो हूँ।

महावीर ने मुलिया को सिर से पाँव तक देखकर कहा – चुपचाप रोयेंगी, बतायेगी नहीं?

मुलिया ने बात टालकर कहा – कोई बात भी हो, क्या बताऊँ।

मुलिया इस ऊसर में गुलाब का फूल थी। गेहूँआ रंग था, हिरन की-सी आँखें, नीचें खिंचा हुआ चिबुक, कपोलों पर हल्की लालिमा, बड़ी-बड़ी नुकीली पलकें, आँखों में एक विचित्र आर्द्रता, जिसमें एक स्पष्ट वेदना, एक मूक व्यथा झलकती रहती थी। मालूम नहीं, चमारों के इस घर में यह अप्सरा कहाँ से आ गयी। क्या उसका कोमल फूल-सा गात इस योग्य था कि सिर पर घास की टोकरी रखकर बेचने जाती? उस गाँव में भी ऐसे लोग मौजूद थे, जो उसके तलवों के नीचे आँखे बिछाते थे, उसकी एक चितवन के लिए तरसते थे, जिनसे अगर वह एक शब्द भी बोलती, तो निहाल हो जाते, लेकिन उसे आये साल भर से अधिक हो गया, किसी ने उसे युवकों की तरफ ताकते या बातें करते नहीं देखा। वह घास लिये निकलती, तो ऐसा मालूम होता, मानो उषा का प्रकाश, सुनहरे आवरण से रंजित, अपनी छटा बिखेरता जाता हो। कोई ग़ज़लें गाता, कोई छाता पर हाथ रखता, पर मुलिया नीची आँखें किये अपनी राह चलीं जाती। लोग हैरान होकर कहते- इतना अभिमान! महावीर में ऐसे क्या सूर्खाब के पर लगे है। ऐसा अच्छा जवान भी तो नही, न जाने यह कैसे उसके साथ रहती हैं।

मगर आज ऐसी बात हो गयी, जो इस जाति की और युवतियों के लिए चाहे गुप्त संदेश होती, मुलिया के लिए हृदय का शूल थी। प्रभात का समय था, पवन आम की बौर की सुगन्धि से मतवाला हो रहा था, आकाश पृथ्वी पर सोने की वर्षा कर रहा था। मुलिया सिर पर झौआ रखे घास छिलने चली, तो उसका गेंहूँआ रंग प्रभात की सुनहरी किरणों से कुन्दन की तरह दमक उठा। एकाएक युवक चैनसिंह सामने से आता हुआ दिखाई दिया। मुलिया ने चाहा कि कतराकर निकल जाय, मगर चैनसिंह ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला- मुलिया, तुझे क्या मुझ पर जरा भी दया नही आती?

मुलिया का वह फूल-सा खिला हुआ चहेरा ज्वाला की तरह दहक उठा। वह जरा भी नहीं डरी, जरा भी नही झिझकी, झौला जमीन पर गिरा दिया और बोली- मुझे छोड़ दो, नहीं तो मैं चिल्लाती हूँ।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

चैनसिंह को आज जीवन में एक नया अनुभव हुआ। नीची जाति में रूप-माधुर्य का इसके सिवा और काम ही क्या हैं कि वह ऊँची जातिवालों का खिलौना बने। ऐसे कितने ही मौकें उसने जीते थे, पर आज मुलिया के चेहरे का वह रंग, उसका वह क्रोध, वह अभिमान देखकर उसके छक्के छूट गये। उसने लज्जित होकर उसका हाथ छोड़ दिया। मुलिया वेग से आगे बढ़ गयी।

संघर्ष की गरमी में चोट की व्यथा नही होती, पीछे से टीस होने लगती हैं। मुलिया जब कुछ दूर निकल गयी, तो क्रोध और भय तथा अपनी बेबसी का अनुभव करके उसकी आँखों में आँसू भर आये। उसने कुछ देर जब्त किया, फिर सिसक-सिसक रोने लगी। अगर वह इतनी गरीब न होती, तो किसी की मजाल थी कि इस तरह उसका अपमान करता! वह रोती जाती थी और घास छिलती जाती थी। अगर उससे कह दे, तो वह इस ठाकुर के खून का प्यासा हो जायेगा। फि न जाने क्या हो! इस ख्याल से उसके रोएँ खड़े हो गये। इसीलिए उसने महावीर के प्रश्नों का कोई उत्तर न दिया।

दूसरे दिन मुलिया घास के लिए न गयी। सास ने पूछा- तू क्यों नही जाती और सब तो चली गयीं?

मुलिया ने सिर झुकाकर कहा- मैं अकेलें न जाऊँगी।

सास ने बिगड़कर कहा- अकेले क्या तुझे बाघ उठा ले जायेगा?

मुलिया ने और भी सिर झुका लिया और दबी हुई आवाज से बोली- सब मुझे छेड़ते है।

सास ने डाँटा – न तू औरों के साथ जायेगी, न अकेली जायेगी, तो फिर जायेगी कैसे? साफ-साफ यह क्यों नही कहती कि मै न जाऊँगी। तो यहाँ मेरे धर में रानी बन के निबाग न होगा। किसी को चाम नही प्यारा होता, काम प्यारा होता हैं। तू बड़ी सुन्दर है, तो तेरी सुन्दरता लेकर चाटूँ ? उठा झाबा और घास ला!

द्वार पर नीम के दरख्त के साये में महावीर खड़ा, घोड़े को मल रहा था। उसने मुलिया को रोनी सूरत बनाये जाते देखा, पर कुछ बोल न सका। उसका बस चलता, तो मुलिया को कलेजे में बिठा लेता, आँखों में छिपा लेता, लेकिन घोड़े का पेट भी तो भरना जरूरी था। घास मोल लेकर खिलाये, तो बारह आने रोज से कम न पड़े। ऐसी मजदूरी ही कौन होती है। मुश्किल से डेढ़-दो रुपये मिलते है, वह भी कभी मिले, कभी न मिले। जब से सत्यानाशी लारियाँ चलने लगी है, इक्केवालों की बधिया बैठ गयी हैं। कोई सेंत भी नहीं पूछता। महाजन से डेढ़ सौ रुपये उधार लेकर इक्का और घोड़ा खरीदा था, मगर लारियो के आगे इक्के को कौन पूछता है? महाजन का सूद भी तो न पहुँच सकता था! मूल का कहना ही क्या। ऊपरी मन से बोला- न मन हो, तो रहने दे, देखी जायेगी।

इस दिलजोई से मुलिया निहाल हो गयी। बोली- घोड़ा खायेगा क्या?

आज उसने कल का रास्ता छोड़ दिया और खेतों की मेड़ों से होती हुई चली। बार-बार सतर्क आँखों से इधर-उधर ताकती जाती थी। दोनो तरफ ऊख के खेत खड़े थे। जरा भी खड़खड़ाहट होती, उसका जी सन्न हो जाता। कहीं कोई ऊख में छिपा न बैठा हो, मगर कोई बात न हुई। ऊख के खेत निकल गये, आमों का बाग निकल गया, सिचें हुए खेत नजर आने लगे। दूर के कुएँ पर पुर चल रहा था। खेतों की मेड़ो पर हरी-हरी घास जमी हुई थी। मुलिया का जी ललचाया। यहाँ आध घंटे में जितनी घास छिल सकती है, सूखे मैदान में दोपहर तक न छिल सकेगी । यहाँ देखता ही कौन है? कोई चिल्लाएगा, तो चली जाऊँगी। वह बैठकर घास छीलने लगी और एक घंटे में उसका झाबा आधे से ज्यादा भर गया। वह अपने काम में इतनी तन्मय थी कि चैनसिंह के आने की खबर ही न हुई। एकाएक उसने आहट पाकर सिर उठाया तो चैनसिंह को खड़ा देखा।

मुलिया की छाती धक् से हो गयी। जी में आया, भाग जाय, झाबा उलट दे और खाली झाबा लेकर चली जाय, पर चैनसिंह ने कई गज के फासले से ही रुककर कहा- डर मत, डर मत! भगवान् जानता है, मैं तुमसे कुछ न बोलूँगा। जितनी घास चाहे छिल ले, मेरा ही खेत हैं।

मुलिया के हाथ सुन्न हो गये, खुरपी हाथ में जम-सी गयी, घास नज़र ही न आती थी। जी चाहता था, जमीन फट जाय और मै समा जाऊँ। जमीन आँखों के सामने तैरने लगी।

चैनसिंह ने आश्वासन दिया- छीलती क्यों नहीं? मैं तुझसे कुछ कहता थोड़ा ही हूँ । यहीं रोज चली आया कर मै छील दिया करूँगा।

मुलिया चित्रलिखित-सी बैठी रही।

चैनसिंह ने एक कदम और आगे बढाया और बोला- तू मुझसे इतना डरती क्यों हैं? क्या तू समझती है, मैं आज भी तुझे सताने आया हूँ? ईश्वर जानता है, कल भी तुझे सताने के लिए मैने हाथ नही पकड़ा था। तुझे देखकर आप-ही-आप हाथ आगे बढ़ गये। मुझे कुछ सुध ही नहीं रही। तू चली गयी, तो मैं वहीं बैठकर घंटों रोता रहा। जी में आता था, हाथ काट डालूँ । कभी चाहता था, जहर खा लूँ । तभी से तुझे ढूँढ रहा हूँ। आज तू इसी रास्ते से चली आयी। मैं सारा हार छानता हुआ यहाँ आया हूँ। अब जो सजा तेरे जी में आये, दे दे। अगर तू मेरा सिर भी काट ले, तो गर्दन न हिलाऊँगा। मैं शोहदा था, लुच्चा था, लेकिन जब से तुझे देखा है, मेरे मन की सारी खोट मिट गयी। अब तो यही जी में आता हैं कि तेरा कुत्ता होता और तेरे पीछे-पीछे चलता, तेरा घोड़ा होता, तब तो तू अपने हाथ से मेरे सामने घास डालती। किसी तरह यह चोला लगाया तेरे किसी आये, मेरे मन की यह सबसे बड़ी लालसा हैं। मेरी जवानी काम न आये, अगर मैं किसी खोट से यें बातें कर रहा हूँ। बड़ा भाग्यवान था महावीर, जो ऐसी देवी उसे मिली।

मुलिया चुपचाप सुनती रही, फिर सिर नीचा करे भोलेपन से बोली- तो तुम क्या करने को कहते हो?

चैनसिंह और समीप आकर बोला- बस, तेरी दया चाहता हूँ।

मुलिया ने सिर उठाकर उसकी ओर देखा। उशकी लज्जा न जाने कहाँ गायब हो गयी। चुभते हुए शब्दों में बोली- तुमसे एक बात कहूँ, बुरा तो न मानोगे? तुम्हारा विवाह हो गया या नहीं?

चैनसिंह ने दबी जबान में कहा- ब्याह तो हो गया है, लेकिन ब्याह क्या है, खिलवाड़ हैं।

मुलिया के होटों पर अवहेलना की मुस्कराहट झलक पड़ी, बोली- फिर भी अगर मेरा आदमी तुम्हारी औरत से इसी तरह बातें करता, तो तुम्हें कैसा लगता? तुम उसकी गर्दन काटने पर तैयार हो जाते कि नही? बोलो! क्यां समझते हो कि महावीर चमार हैं, तो उसकी देह में लहू नहीं हैं, उसे लज्जा नहीं हैं, अपनी मर्यादा का विचार नहीं हैं? मेरा रूप-रंग तुम्हें भाता हैं। क्या घाट के किनारे मुझसे कहीं सुन्दर औरतें नहीं घूमा करती? मैं उनके तलवों की बराबरी भी नहीं कर सकती। तुम उनमें से किसी से क्यों नहीं दया माँगते? क्या उनके पास दया नहीं है। मगर वहाँ तुम न जाओगे, क्योंकि वहाँ जाते तुम्हारी छाती दहलती हैं। मुझसे दया माँगते हो, इसलिए न, कि मैं चमारिन हूँ, नीच जाति हूँ और नीच जाति की औरत जरा-सी घुड़की-धमकी या जरा से लालच से तुम्हारी मुठ्ठी में आ जायेगी। कितनी सस्ता सौदा हैं! ठाकुर हो न ऐसा सस्ता सौदा क्यों छोड़ने लगे?

चैनसिंह लज्जित होकर बोला- मूला, यह बात नहीं हैं। मैं सच कहता हूँ, इसमें ऊँच -नीच की बात नहीं हैं। सब आदमी बराबर हैं। मैं तो तेरे चरणों पर सिर रखने को तैयार हूँ।

मुलिया- इसलिए न, कि जानते हो, मैं कुछ कर नहीं सकती। जाकर किसी खतरानी के चरणों पर सिर रक्खों, तो मालूम हो कि चरणों पर सिर रखनें का क्या फल मिलता हैं! फिर, यह सिर तुम्हारी गर्दन पर न रहेगा।

चैनसिंह मारे शर्म के जमीन में गड़ा जाता था। उसका मुँह ऐसा सूख गया था, मानो महीनों की बीमारी से उठा हो। मुँह से बात न निकलती थी। मुलिया इतनी वाक्पटु है, इसका उसे गुमान न था।

मुलिया फिर बोली- मैं भी रोज बाजार जाती हूँ। बड़े-बड़े घरों का हाल जानती हूँ। मुझे किसी बड़े घर का नाम बता दो, जिसमें कोई साईस, कोई कोचवान, कोई कहार, कोई पंड़ा, कोई महाराज न घुसा बैठा हो ? यह सब बड़े घर की लीला हैं। और वे औरतें जो कुछ करती हैं, ठीक करती हैं। उनके घरवाले भी तो चमारिनों और कहारिनों पर जान देते फिरते हैं। लेना-देना बराबर हो जाता हैं। बेचारे गरीब आदमियों के लिए यह बातें कहाँ? मेरे आदमी के लिए संसार में जो कुछ हैं, मैं हूँ। वह किसी दूसरी महरिया की और आँख उठाकर भी नहीं देखता। संयोग का बात हैं कि मैं तनिक सुन्दर हूँ, लेकिन काली-कलूटी भी होती, तब भी वह मुझे इसी तरह रखतास इसका मुझे विश्वास हैं। मैं चमारिन होकर भी इतनी नीच नहीं हूँ कि विश्वास का बदला खोट से दूँ । हाँ, वह अपने मन की करने लगे, मेरी छाती पर मूँग दलने लगे, तो मै भी उसकी छाती पर मूँग दलूँगी । तुम मेरे रूप के ही दीवाने हो न? आज मुझे माता निकल जाये, कानी हो जाऊँ, तो मेरी ओर ताकोगे भी नहीं। बोलो, झूठ कहती हूँ?

चैनसिंह इनकार न कर सका।

मुलिया ने उसी गर्व से भरे हुए स्वर में कहा- लेकिन मेरी एक नहीं, दोनो आँखें फूट जाएँ, तब भी वह मुझे इसी तरह रखेगा। मुझे उठावेगा, बैठावेगा, खिलावेगा। तुम चाहते हो, मैं ऐसे आदमी के साथ कपट करूँ? जाओ, अब मुझे कभी न छेड़ना, नही अच्छा न होगा!

जवानी जोश हैं, बल हैं, दया हैं, साहस हैं, आत्मविश्वास हैं, गौरव हैं और वह सब कुछ – जीवन को पवित्र, उज्जवल और पूर्ण बना देता हैं। जवानी का नशा घमंड हैं, निर्दयता हैं, स्वार्थ हैं, शेखी हैं, विषम-वासना हैं, कटुता हैं और वह सब-कुछ – जो जीवन को पशुता, विकार और पतन की ओर ले जाता हैं। चैनसिंह पर जवानी का नशा था। मुलिया के शीतल छींटों ने नशा उतार दिया, जैसे उबलती हुई चाशनी में पानी के छींटे पड़ जाने से फेन मिट जाता हैं, मैल निकल जाता हैं और निर्मल, शुद्ध रस निकल आता हैं। जवानी का नशा जाता रहा, केवल जवानी रह गयी। कामिनी के शब्द जितनी आसानी से दीन और ईमान को गारत कर सकते हैं, उतनी आसानी से उसका उद्धार भी कर सकते हैं।

चैनसिंह उस दिन से दूसरा ही आदमी हो गया। गुस्सा उसकी नाक पर रहता था, बात-बात पर मजदूरों के गालियाँ देना, डाँटना और पीटना उसकी आदत थी। आसामी थरथर काँपते थे। मजदूर उसे आते देखकर अपने काम में चुस्त हो जाते थे। पर ज्योंही उसने पीठ फेरी और उन्होंने चिलम पीना शुरू किया। सब दिल में उससे जलते थे, उसे गालियाँ देते थे, मगर उस दिन से चैनसिंह इतना दयालु, गंभीर, इतना सहनशील हो गया कि लोगों को आश्चर्य होता था।

कई दिन गुजर गये। एक दिन संध्या समय चैनसिंह खेत देखने गया। पुर चल रहा था। उसने देखा कि एक जगह नाली टूट गयी हैं और सारा पानी बहा चला जाता हैं। क्यारियों में पानी बिल्कुल नहीं पहुँचता, मगर क्यारी बनानेवाली बुढ़िया चुपचाप बैठी हैं। उसे जरा भी फिक्र नही है कि पानी क्यों नहीं आता हैं। पहले यह दशा देखकर चैनसिंह आपे से बाहर हो जाता। उस औरत की उस दिन की पूरी मजूरी काट लेता और पुर चलानेवालों को घुड़कियाँ जमाता, पर आज उसे क्रोध नही आया। उसने मिट्टी लेकर नाली बाँध दी और खेत में जाकर बुढ़िया से बोला- तू यहाँ बैठी हैं और पानी बहा जा रहा हैं।

बुढ़िया घबराकर बोली- अभी खुल गया होगा राजा। मैं अभी जाकर बन्द किये देती हूँ।

यह कहती हुई वह थरथर काँपने लगी। चैनसिंह ने उसकी दिलजोई करते हुए कहा- भाग मत, भाग मत, मैने नाली बन्द कर दी हैं। बुढ़ऊ कई दिन से नहीं दिखाई दिये, कहीं कान पर जाते हैं या नहीं?

बुढ़िया गद्-गद् होकर बोली- आजकल तो खाली ही बैठे हैं भैया, कहीं काम नहीं लगता।

चैनसिंह ने नर्म भाव से कहा- तो हमारे यहाँ लगा दे। थोड़ा-सा सन रखा है, उसे कात दें।

यह कहता हुआ वह कुएँ की ओर चला गया। वहाँ चार पुर चल रहे थे, पर इस वक्त दो हँकवे बेर खाने गये हुए थे। चैनसिंह को देखते ही मजूरों के होश उड़ गये। ठाकुर ने पूछा, दो आदमी कहाँ गये, तो क्या जवाब देंगे? सब-के -सब डाँटे जायँगे। बेचारे दिल में सहमें जा रहे थे। चैनसिंह ने पूछा- वह दोनो कहाँ चले गये?

किसी के मुँह से आवाज़ न निकली। सहसा सामने से दोनों मजदूर धोती के एक कोने मे बेर भरे आते दिखाई दिये। चैनसिंह पर निगाह पड़ी, तो दोनो के प्राण सूख गये। पाँव मन-मन भर के हो गये। अब न आते बनता हैं, न जाते। दोनो समझ गये कि आज डाँट पड़ी, शायद मजदूरी भी कट जाए। चाल धीमी पड़ गई। इतने में चैनसिंह ने पुकारा- बढ़ आओ, बढ़ आओ ! कैसे बेर हैं, लाओ जरा मुझे भी दो, मेरे ही पेड़ के हैं न?

दोनों और भी सहम उठे। आज ठाकुर जीता न छोड़ेगा। कैसा मिठा-मिठाकर बोल रहा हैं! उतनी ही भिगो-भिगोकर लगायेगा। बेचारे और भी सिकुड़ गये।

चैनसिंह ने फिर कहा- जल्दी से आओ जी, पक्की-पक्की सब मैं ले लूँगा। जरा एक आदमी लपककर घर से थोड़ा-सा नमक तो ले आओ। (बाकी दोनों मजूरों से) तुम भी दोनो आ जाओ, उस पेड़ के बेर मीठे होते हैं। बेर खा लें, काम तो करना ही हैं।

अब दोनों भगोड़ों को कुछ ढाढस हुआ। सबों ने आकर सब बेर चैनिसंह के आगे डाल दिये और पक्के -पक्के छाँटकर उसे देने लगे। एक आदमी नमक लाने दौड़ा। आध घंटे तक चारो पुर बन्द रहे। जब सब बेर उड़ गये और ठाकुर चलने लगे, तो दोनो अपराधियों ने हाथ जोड़कर कहा- भैयाजी, आज जान बकसी हो जाय। बड़ी भूख लगी थी, नहीं तो कभी न जाते।

चैनिसंह ने नम्रता से कहा- तो इसमें बुराई क्या हुई। मैने भी तो बेर खाये। एक- आध घंटे का हरज हुआ, यही न? तुम चाहोगे, तो घंटे-भर का काम आध घंटे में कर दोगे। न चाहोगे, दिन-भर घंटे-भर का काम न होगा।

चैनिसंह चला गया, तो चारों बात करने लगे।

एक ने कहा- मालिक इस तरह रहे, तो काम करने में भी जी लगता हैं। यह नहीं कि हरदम छाती पर सवार।

दूसरा- मैंने तो समझा, आज कच्चा ही खा जायँगे।

तीसरा- कई दिन से देखता हूँ, मिजाज बहुत नरम हो गया हैं।

चौथा- साँझ को पूरी मजूरी मिले तो कहना!

पहला- तुम तो हो गोबर-गनेश। आदमी नहीं पहचानते।

दूसरा- अब खूब दिल लगाकर काम करेंगे।

तीसरा- और क्या! जब उन्होंने हमारे ऊपर छोड़ दिया, तो हमारा भी धरम हैं कि कोई कसर न छोड़े।

चौथा- मुझे तो भैया, ठाकुर पर अब भी विश्वास नही आता।

एक दिन चैनसिंह को किसी काम से कचहरी जाना था। पाँच मील का सफर था। यों तो बराबर अपने घोड़े पर जाया करता था, पर आज धूप बड़ी तेज हो रही थी, सोचा इक्के पर चला चलूँ । महावीर को कहला भेजा, मुझे भी लेते जाना। कोई नौ बजे महावीर ने पुकारा। चैनसिंह तैयार बैठा था। झटपट इक्के पर बैठ गया, मगर घोड़ा इतना दुर्बल हो रहा था, इक्के को गद्दी इतनी मैली और फटी हुई, सारा सामान इतना रद्दी कि चैनसिंह को उसपर बैठते शर्म आयी! पूछा- यह सामान क्यों बिगड़ा हुआ हैं महावीर? तुम्हारा घोड़ा तो इतना दुर्बल, कभी न था। आजकल सवारियाँ कम हैं क्या?

महावीर ने कहा- नहीं मालिक, सवारियाँ काहे नही हैं, मगर लारी के सामने इक्के को कौन पूछता हैं? कहाँ दो, ढाई, तीन की मजूरी करके घर लौटता था, कहाँ अब बीस आने भी नही मिलते? क्या जानवर को खिलाऊँ, क्या आप खाऊँ ? बड़ी विपत्ति में पड़ा हूँ। सोचता हूँ, इक्का-घोड़ा बेच-बाचकर आप लोगों की मजूरी कर लूँ, पर कोई ग्राहक नही लगता। ज्यादा नही तो बारह आने तो घोड़े को चाहिए, घास ऊपर से। अब अपना ही पेट नहीं चलता, जानवर को कौन पूछे।

चैनसिंह ने उसके फटे हुए कुरते की ओर देखकर कहा- दो-चार आने बीघे की खेती क्यों नहीं कर लेते?

महावीर सिर झुकाकर बोला- खेती के लिए बड़ा पौरुख चाहिए मालिक, मैने तो यही सोचा कि कोई ग्राहक लग जाए, तो इक्के को औने-पौने निकाल दू, फिर घास छीलकर बाजार ले जाया करूँ। आजकल -पतोहू दोनो घास छीलती हैं, तब जाकर दो-चार आने पैसे नसीब होते हैं।

चैनसिंह ने पूछा- तो बुढ़िया बाजार जाती होगी?

महावीर लजाता हुआ बोला- नहीं भैया, वह इतनी दूर कहाँ चल सकती हैं। घरवाली चली जाती हैं। दोपहर तक घास छीलती हैं, तीसरे पहर बाजार जाती हैं। वहाँ से घड़ी रात गये लौटती हैं। हलकान हो जाती हैं भैया, मगर क्या करूँ, तकदीर से क्या जोर!

चैनसिंह कचहरी पहुँच गये और महावीर सवारियों की टोह में इधर-उधर इक्के को घूमाता हुआ शहर की तरफ चला गया। चैनसिंह नें उसे पाँच बजे आने को कह दिया।

कोई चार बजे चैनसिंह कचहरी से फुरसत पाकर बाहर निकले। हाते में पान की दुकान थी, जरा और आगे बढ़कर एक घना बरगद का पेड़ था। उसकी छाँह में बीसों ही तांगे, इक्के, फिटनें खड़ी थी। घोड़े खोल दिये गये थे। वकीलों, मुख्तारो और अफसरों की सवारियाँ यहीं खडी रहती थी। चैनसिंह ने पानी पिया, पान खाया और सोचने लगा, कोई लारी मिल जाय तो जरा शहर चला जाऊँ कि उसकी निगाह एक घासवाली पर गयी। सिर पर घास का झाबा रखे साईसों से मोल- भाव कर रही थी। चैनसिंह का हृदय उछल पड़ा- यह तो मुलिया हैं! बनी-ठनी, एक गुलाबी साड़ी पहने कोचवानों से मोल-भाव कर रही थी। कई कोचवान जमा हो गये थे। कोई दिल्लगी करता था, कोई घूरता था, कोई हँसता था।

एक काले-कलूटे कोचवान ने कहा- मूला, घास तो अधिक-से-अधिक छः आने की हैं।

मुनिया ने उन्माद पैदा करनेवाली आँखों से देखकर कहा- छः आने पर लेना हैं, तो सामने घसियारिनें बैठी हैं, जोऔ दो-चार पैसे कम में पा जाओगे, मेरी घास तो बारह आने में जायेगी?

एक अधेड़ कोचवान ने फिटन के ऊपर से कहा- तेरा जमाना हैं, बारह आने नही, एक रुपया माँग! लेनेवाले झख मारेंगे और लेंगे। निकलने दे वकीलो को। अब देर नहीं हैं।

एक ताँगेवाले ने, जो गुलाबी पगड़ी बाँधे हुए था, कहा- बुढई के मुँह में भी पानी भर आया, अब मुलिया काहे को किसी की ओर देखेगी!

चैनसिंह को ऐसा क्रोध आ रहा था कि इन दुष्टों को जूतों से पीटे। सब-के -सब कैसे उसकी ओर टकटकी लगाये ताक रहे हैं, मानो आँखों से पी जायेंगे। और मुलिया भी यहाँ कितनी खुश हैं ! न लजाती हैं, न झिझकती हैं, न दबती हैं। कैसी मुसकराकर, रसीली आँखों से देख-देखकर सिर का आँचल खिसका-खिसकाकर, मुँह मोड़कर बाते कर रही हैं। वही मुलिया, जो शेरनी की तरह तड़प उठी थी।

इतने में चार बजे। अमले औऱ वकील-मुख्तारों का एक मेला-सा निकल पड़ा। अमले लारियों पर दौड़े, वकील- मुख्तार इन सवारियों की ओर चले। कोचवानों ने भी चटपट घोडे जोते। कई महाशयों ने मुलिया को रसिक नेत्रों से देखा और अपनी गाड़ियों पर जा बैठे।

एकाएक मुलिया घास का झाबा लिये उस फिटन के पीछे दौड़ी। फिटन में अंगरेजी फैशन के जवान वकील साहब बैठे हैं। उन्होने पायदान के पास घास रखवा ली, जेब से कुछ निकालकर मुलिया को दिया। मुलिया मुस्काई। दोनों में कुछ बाते हुई, जो चैनसिंह न सुन सके।

एक क्षण में मुलिया प्रसन्न-मुख घर की ओर चली। चैनसिंह पानवाले की दुकान पर विस्मृति की दशा में खड़ा रहा। पानवाले ने दुकान बढ़ायी, कपड़े पहने और अपने कैबिन का द्वार बन्द करके नीचे उतरा, तो चैनसिंह की समाधि टूटी। पूछा- क्या दुकान बन्द कर दी?

पानवाले ने सहानुभूति दिखाकर कहा- इसकी दवा करो ठाकुर साहब, यह बीमारी अच्छी नहीं हैं।

चैनसिंह ने चकित होकर पूछा- कैसी बीमारी?

पानवाला बोला- कैसी बीमारी! आध घंटे से यहाँ खड़े हो जैसे कोई मुर्दा खड़ा हो। सारी कचहरी खाली हो गयी, सब दुकाने बन्द हो गयीं, मेहतर तक झाडू लगाकर चल दिये, तुम्हें कुछ खबर न हुई? यह बुरी बीमारी हैं, जल्दी दवा कर डालो।

चैनसिंह ने छड़ी सँभाली और फाटक की ओर चला कि महावीर का इक्का सामने से आता दिखाई दिया।

कुछ दूर इक्का निकल गया, तो चैनसिंह ने पूछा- आज कितने पैसे कमाये महावीर?

महावीर नें हँसकर कहा- आज तो मालिक, दिनभर खड़ा ही रह गया। किसी ने बेगार में भी न पकड़ा। ऊपर से चार पैसे की बीड़ियाँ पी गया।

चैनसिंह ने जरा देर बाद कहा- मेरी एक सलाह हैं। तुम मुझसे एक रुपया रोज लिया करो। बस, जब मैं बुलाऊँ, तो इक्का लेकर चले आया करो। तब तो तुम्हारी घरवाली को घास लेकर बाजार न आना पड़ेगा। बोलो, मंजूर हूँ?

महावीर ने सजल आँखों से देखकर कहा- मालिक, आप ही का तो खाता हूँ। आपकी परजा हूँ। जब मरजी हो, पकड़वा मँगवाइए। आपसे रुपये…

चैनसिंह ने बात काटकर कहा- नहीं, मैं तुमसे बेगार नहीं लेना चाहता। तुम मुझसे एक रुपया रोज ले जाया करो। घास लेकर घरवाली को बाजार मत भेजा करो। तुम्हारी आबरू मेरी आबरू हैं। और भी रुपये-पैसे का जब काम लगे, बेखटक चले आया करो। हाँ, देखो, मुलिया से इस बात की भूलकर भी चर्चा न करना। क्या फायदा!

कई दिनों बाद संध्या समय मुलिया चैनसिंह से मिली। चैनसिंह असामियों से मालगुजारी वसूल करके घर की ओर लपका जा रहा था कि उस जगह, जहाँ उसने मुलिया की बाँह पकड़ी थी, मुलिया की आवाज कानों में आयी। उसने ठिठककर पीछे देखा, तो मुलिया दौड़ी चली आ रही थी। बोला- क्या हैं, मूला! क्यों दौड़ती हो, मैं तो खड़ा हूँ?

मुलिया ने हाँफते हुए कहा- कई दिनों से तुमसे मिलना चाहती थी। आज तुम्हें आते देखा, तो दौड़ी। अब मैं घास बेचने नही जाती।

चैनसिंह ने कहा- बहुत अच्छी बात हैं।

‘क्या तुमने मुझे कभी घास बेचते देखा हैं?’

‘हाँ, एक दिन देखा था। क्या महावीर ने तुमसे सब कह डाला। मैने तो मना कर दिया था।’

‘वह मुझसे कोई बात नहीं छिपाता।’

दोनो एक क्षण चुप खड़े रहे। किसी को कोई बात न सूझती थी। एकाएक मुलिया ने मुस्कराकर कहा- यहीं तुमने मेरी बाँह पकड़ी थी।

चैनसिंह ने लज्जित होकर कहा- उसको भूल जाओ मूला! मुझ पर न जाने कौन भूत सवार था।

मुलिया गद्-गद् कंठ से बोली- उसे क्यों भूल जाऊँ? उसी बाँह गहे की लाज तो निभा रहे हो! गरीबी आदमी से जो चाहे करावे। तुमने मुझे बचा लिया।

फिर दोनो चुप हो गये।

जरा देर के बाद मुलिया ने फिर कहा- तुमने समझा होगा, मैं हँसने-बोलने में मगन हो रही थी?

चैनसिंह नें बलपूर्वक कहा- नहीं मुलिया, मैने एक क्षण के लिए भी यह नही समझा।

मुलिया मुस्कराकर बोली- मुझे तुमसे यही आशा थी, और हैं।

पवन के सिंचे हुए खेतों में विश्राम करने जा रहा था, सूर्य निशा की गोद में विश्राम करने जा रहा था, और इस मलिन प्रकाश में चैनसिंह मुलिया की विलीन होती हुई रेखा को खड़ा देख रहा था।

बंदर चेहरा आर्किड || Monkey Face Orchid

बंदर चेहरा आर्किड

बंदर के चेहरे वाले ऑर्किड काफी लोकप्रिय हैं, लेकिन बहुत दुर्लभ ऑर्किड प्रकार हैं। यह प्यारा और डरावना दोनों है। यह दुर्लभ फूल दक्षिण अमेरिकी आर्किड बंदर जैसा दिखता है। इसकी गंध पके संतरे की तरह होती है और यह इक्वाडोर और पेरू के वर्षा वन में पाया जा सकता है। इसे देखने के लिए हाइकिंग बूट पहनने होंगे, क्योंकि यह 2000 मीटर की ऊँचाई पर पहाड़ों के किनारे उगता है।

बंदर चेहरा आर्किड || Monkey Face Orchid

बंदर चेहरा आर्किड, जिसे ड्रैकुला सिमिया या बंदर जैसा ड्रैकुला भी कहा जाता है। क्यूंकि इसके फूल की बनावट बंदर के चेहरे जैसी होती है। ड्रैकुला ऑर्किड परिवार की 120 प्रजातियों में से है। आर्किड की कई प्रजातियाँ मौसमी नहीं होतीं और पूरे साल में कभी भी खिल सकती हैं। हालांकि सबसे लोकप्रिय में से एक ड्रैकुला सिमिया (Monkey Face Orchid) है।

मंकी ऑर्किड से निकलने वाली खुशबू उसके नाम या रूप से ज़्यादा आकर्षक हो सकती है। ऑर्किड की यह खास प्रजाति खिलते समय पके संतरे की खुशबू छोड़ती है। सबसे अच्छी बात क्या है? साल के किसी भी समय, किसी भी मौसम में, वे खिल सकते हैं।

बंदर चेहरा आर्किड || Monkey Face Orchid

ये मनमोहक फूल ठंडे तापमान और आंशिक छाया वाले स्थानों पर सबसे अच्छे लगते हैं। वे एक प्रकार की प्रजाति हैं जिन्हें लंबे समय तक अपने खुश बंदर-चेहरे को जीवित रखने के लिए बहुत देखभाल और प्यार की आवश्यकता होती है। 

यह किसी भी मौसम में खिलता है और इसके पुष्पक्रम पर कई फूल एक के बाद एक खिलते हैं। यह आर्किड आवास विनाश और ज़्यादा संग्रह की वजह से विलुप्त होने के खतरे में है। इसके फूलों के रंग, पैटर्न, और आकार अलग-अलग हो सकते हैं। इसके फूलों की चमक और रंग स्थानीय जलवायु परिस्थितियों और पोषण पर निर्भर करते हैं। 

बंदर चेहरा आर्किड || Monkey Face Orchid

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Monkey Face Orchid

Monkey face orchids are a very popular but very rare orchid type. It is both cute and scary. This rare flowering South American orchid resembles a monkey. It smells like ripe oranges and can be found in the rainforests of Ecuador and Peru. You will need to wear hiking boots to see it, as it grows on the side of mountains at an altitude of 2000 meters.

बंदर चेहरा आर्किड || Monkey Face Orchid

The Monkey Face Orchid, also known as Dracula simia or Monkey Dracula, is one of the 120 species of the Dracula orchid family. Many species of orchids are not seasonal and can bloom at any time throughout the year. However, one of the most popular is the Dracula simia (Monkey Face Orchid).

The fragrance that the monkey orchid gives off may be more attractive than its name or appearance. This special species of orchid gives off the scent of ripe oranges when it blooms. What's the best part? They can bloom any time of the year, in any season.

These adorable flowers look best in places with cool temperatures and partial shade. They are a species that needs a lot of care and love to keep their happy monkey-faces alive for a long time.

बंदर चेहरा आर्किड || Monkey Face Orchid

It blooms in any season and has many flowers on its inflorescence, one after the other. This orchid is in danger of extinction due to habitat destruction and overcollection. Its flowers can vary in color, pattern, and size. The brightness and color of its flowers depend on local climatic conditions and nutrition.

हज़ारा रामा मंदिर || Hazara Rama Temple

हज़ारा रामा मंदिर

हजारा राम मंदिर कर्नाटक के हम्पी का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह मंदिर भगवान राम को समर्पित है। यह छोटा लेकिन सुंदर पूजा स्थल हम्पी के शाही क्षेत्र के केंद्र में स्थित है। यह मंदिर विजयनगर के राजाओं का निजी मंदिर था, जो महाकाव्य रामायण की कहानी को दर्शाने वाले सुंदर अवशेषों और पैनलों के लिए लोकप्रिय है। हजारा राम मंदिर हम्पी के शाही बाड़े में स्थित है।  यह एक ऐसी जगह है जिसे आम तौर पर कोई भी पर्यटक अपने हम्पी के रास्ते से नहीं चूकता। यह मंदिर सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुला रहता है। इसमें प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं है। 

हज़ारा रामा मंदिर || Hazara Rama Temple

यह मंदिर कई मायनों में एक विशिष्ट मंदिर है, जिसका नाम मंदिर के प्रमुख देवता भगवान राम को चित्रित करने वाले कई अवशेषों से लिया गया है। दीवारें पत्थर पर उकेरी गई रामायण की कहानी बताती हैं। मंदिर की बाहरी दीवारें राम और कृष्ण के मूल अवशेषों से अलंकृत हैं। मंदिर का नाम “हज़ार राम” मंदिर इसलिए पड़ा क्योंकि इसकी दीवारों पर रामायण के पैनल बने हुए हैं। इस मंदिर की दीवारों पर रामायण की घटनाओं और पात्रों को उकेरा गया है।

अवशेषों में उस समय दशहरा उत्सव में भाग लेने वाले घोड़ों, हाथियों, सेवकों, सैनिकों और नृत्य करने वाली महिलाओं के जुलूस भी दर्शाए गए हैं। ये भारत में कहीं भी पाए जाने वाले सबसे अनोखे अवशेषों में से हैं। यह मंदिर विजयनगर की मूर्तिकला की अद्भुत शिल्पकला का एक उदाहरण है।

हज़ारा रामा मंदिर || Hazara Rama Temple

हजारा राम मंदिर, हम्पी का इतिहास

इसे 15वीं शताब्दी की शुरुआत में विजयनगर के तत्कालीन राजा देवराय द्वितीय ने बनवाया था और इसे एक साधारण संरचना के रूप में बनाया गया था। इसमें केवल एक गर्भगृह, स्तंभों वाला हॉल और एक अर्ध मंडप शामिल था। हालाँकि, बाद में खुले बरामदे और सुंदर स्तंभों को जोड़ने के लिए मंदिर की संरचना का जीर्णोद्धार किया गया। मंदिर के उत्तरी भाग में एक लॉन स्थित है और दो बड़े प्रवेश द्वार मंदिर परिसर की ओर ले जाते हैं।

हजारा राम मंदिर की विशिष्टता

हजारा राम मंदिर कई पहलुओं में एक अनूठा मंदिर है।  मंदिर के बारे में सबसे पहली बात जो ध्यान खींचती है वह है इसका नाम।  'हजारा राम' शब्द का शाब्दिक अर्थ है एक हजार राम और मंदिर के शासक देवता को दर्शाने वाले अवशेषों की भीड़ को संदर्भित करता है। मंदिर की दीवारों पर पत्थर पर उकेरी गई रामायण की कहानी है।  मंदिर की बाहरी दीवारों को राम और कृष्ण के अवशेषों से सजाया गया है।

हज़ारा रामा मंदिर || Hazara Rama Temple

हजारा राम मंदिर की सुंदर संरचना

मंदिर के उत्तरी तरफ एक विशाल लॉन है।  दो विशाल प्रवेश द्वार हैं जो मंदिर परिसर तक पहुँच प्रदान करते हैं।  मंदिर के आंतरिक भाग में अलंकृत स्तंभ हैं।  तीन छेदों वाला एक खाली आसन दर्शाता है कि मंदिर में कभी राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियाँ थीं।  मंदिर परिसर के अंदर एक छोटा मंदिर है जिसमें इसी तरह की महाकाव्य दीवार की नक्काशी है। एकमात्र जोड़ यह है कि इस मंदिर की दीवारों पर भगवान विष्णु के भी चित्रण हैं।  मंदिर विजयनगर के मूर्तिकारों की उत्कृष्ट शिल्प कौशल का एक उदाहरण है।

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Hazara Rama Temple

The Hazara Rama Temple is a major pilgrimage center in Hampi, Karnataka. The temple is dedicated to Lord Rama. This small but beautiful place of worship is located in the heart of the royal enclosure of Hampi. The temple was the private temple of the Vijayanagara kings, popular for the beautiful relics and panels depicting the story of the epic Ramayana. The Hazara Rama Temple is located in the royal enclosure of Hampi. This is one place that no tourist usually misses on their way to Hampi. The temple is open on all days of the week from 6:00 am to 6:00 pm. There is no fee for entry.

हज़ारा रामा मंदिर || Hazara Rama Temple

This temple is a unique temple in many ways, deriving its name from the many relics depicting Lord Rama, the main deity of the temple. The walls tell the story of Ramayana engraved on stone. The outer walls of the temple are adorned with original relics of Rama and Krishna. The temple is named “Hazaar Rama” temple because it has panels from Ramayana on its walls. The walls of this temple have carvings of events and characters from the Ramayana.

The remains also depict processions of horses, elephants, servants, soldiers and dancing women who participated in the Dussehra festival at that time. These are among the most unique remains found anywhere in India. This temple is an example of the amazing craftsmanship of Vijayanagara sculpture.

History of Hazara Rama Temple, Hampi

हज़ारा रामा मंदिर || Hazara Rama Temple

It was built in the early 15th century by the then king of Vijayanagara, Devaraya II and was built as a simple structure. It consisted of only a sanctum, pillared hall and a semi-mandapam. However, the temple structure was later renovated to add open verandas and beautiful pillars. A lawn is located on the northern side of the temple and two large entrance gates lead to the temple complex.

Uniqueness of Hazara Rama Temple

The Hazara Rama Temple is a unique temple in many aspects. The first thing that catches the attention about the temple is its name. The term 'Hazara Rama' literally means a thousand Ramas and refers to the multitude of relics depicting the ruling deity of the temple. The walls of the temple have the story of Ramayana engraved on stone. The outer walls of the temple are decorated with relics of Rama and Krishna.

Beautiful Structure of Hazara Rama Temple

The northern side of the temple has a vast lawn. There are two huge entrance gates that provide access to the temple complex. The interior of the temple has ornate pillars. An empty pedestal with three holes indicates that the temple once housed idols of Rama, Lakshmana and Sita. Inside the temple complex is a smaller shrine that has similar epic wall carvings. The only addition is that this temple also has depictions of Lord Vishnu on its walls. The temple is an example of the excellent craftsmanship of the sculptors of Vijayanagara.

आँख पर गुहेरी, फुंसी, बिलनी, अंजनहारी (Eye Stye)

 गुहेरी

आँख पर गुहेरी, फुंसी, अंजनहारी (Eye Stye), कारण और घरेलू उपचार

आंखों में गुहेरी की समस्या हर उम्र के लोगों को हो सकती है। इसमें आंखों की पलकों के नीचे या उपर लाल रंग का दाना हो जाता है। भले ही यह समस्या देखने में छोटी लगे लेकिन इसके कारण आंखों में तेज दर्द, जलन, खुजली और बार-बार आंसू आने जैसी प्रॉब्लम हो जाती है। बैक्टीरिया पैदा होने, विटामिन A, D की कमी या कब्ज के कारण होने वाली इस समस्या के कारण आंखों के लिए नुकसानदायक हो सकती है। कुछ लोग इसे छोटी समझ इग्नोर कर देते है तो कुछ इसके लिए घरेलू उपाय करते हैं। समय रहते इसका इलाज करने पर आप आंखों को सुरक्षित रख सकते है। आज हम आपको इस गुहेरी की समस्या को दूर करने के लिए कुछ घरेलू उपाय बताएंगे, जिससे आप इस परेशानी से 2-3 दिन में ही छुटकारा पा सकते है।
आँख पर गुहेरी, फुंसी, बिलनी, अंजनहारी (Eye Stye)

आँख पर गुहेरी के कारण

बिलनी रोग संक्रमण के कारण फैलता है। इसमें संक्रमित होने वाले पलकों के बालों में छोटी सी तेल स्रावक ग्रन्थियां होती है। बिलनी रोग में आँख में खुजली व जलन होती है जो बाद में मवाद भरे दानों का रूप ले लेती है।

आंखों में गुहेरी के लक्षण ( Stye Symptoms)

दर्द और सूजन
आंसू आना
आंखों में पपड़ी बनना
खुजली होना

इसको ठीक करने के घरेलू उपाय 

1.  लौंग को पानी में घिसकर लगाने से गुहेरी बैठ जाती है।
2.  रात में भिगोए हुए त्रिफला चूर्ण के पानी से आंखों को छपक्के मारकर धोने से भी लाभ होता है।
3.  बकरी का दूध गुहेरी पर लगाने से आराम होता है। 
4.  गुलाब जल में छोटी हरड़ घिसकर लेप करने से लाभ मिलता है।
5.  अनार का रस आंखों में डालने से काफी लाभ होता है।
6.   छुहारे की गुठली को सील पर घिसकर गुहेरी पर लगाने से आराम मिलता है।
7.   एक घंटे के लिए धनिया बीज को पानी में भिगोकर रख दें और फिर बीजों को छानकर अलग कर दें और           उस पानी का उपयोग अपनी आँख को धोने के लिए करें | 
8.  एलोवेरा जेल को गुहेरी पर लगाने से लाभ मिलता है।
9.  आंख की गुहेरी से राहत पाने के लिए 2 कप पानी और 1 चम्मच हल्दी डाल कर इसे अच्छी तरह से उबाल        लें। फिर इसे ठंडा करके आंख पर सूखे और साफ कपड़े से लगाएं। इससे बहुत जल्दी आराम मिलेगा।
10. केसर को ठंडे पानी में घिसकर लगाने से गुहेरी दूर होती है.
11.  इमली के बीज को पानी में भिंगोकर इसे चन्दन की तरह घिसकर गुहेरी पैर लगाएं       
12. हरड़ को पानी में घिसकर गुहेरी पर लगाने से आराम मिलता है।
13. आम के पत्तों को डाली से तोड़ने पर जो रस निकलता है, उस रस को गुहेरी पर लगाने से बहुत जल्दी आराम मिलता है

 Home Remedies For Eye Stye

 People of all ages can have problems in the eyes.  In this, there is a red colored grain under or above the eyelids.  Even if this problem seems small, but due to this, there is a problem like sharp eye pain, burning, itching and frequent tears.  This problem caused by bacteria, vitamin A, D deficiency or constipation can be harmful to the eyes.  Some people ignore it as small, while some take home remedies for it.  You can protect the eyes by treating it in time.  Today we will tell you some home remedies to overcome this Guheri problem, so that you can get rid of this problem within 2-3 days.
आँख पर गुहेरी, फुंसी, बिलनी, अंजनहारी (Eye Stye)

Causes of stye on the eyes

Styes are caused by infection. The eyelashes that get infected have small oil-secreting glands in them. In styes, there is itching and burning in the eyes, which later take the form of pus-filled pimples.

Stye Symptoms in the Eye

 Pain and swelling
 tears fall
 Crust in the eye
 Itching
आँख पर गुहेरी, फुंसी, बिलनी, अंजनहारी (Eye Stye)

Home remedies to cure it are as follows: -

 1. By grinding cloves in water, Guheri settles.
 2. Wash the eyes with splash of water, soaked at night, by splashing the eyes, it is also beneficial.
 3. Applying goat milk on Guheri provides relief.
 4. Grind small myrabalan chebulie in rose water and apply it on the affected part, it provides relief.
 5. Putting pomegranate juice in the eyes is very beneficial.
 6. Grinding date palm kernels on the seal and applying it to Guheri provides relief.
 7. Soak coriander seeds in water for one hour and then filter and separate the seeds and use that water to wash your eyes.
 8. Applying Aloe Vera gel on Guheri is beneficial.
 9. To get relief from eye cavity, add 2 cups of water and 1 teaspoon of turmeric and boil it well.  Then cool it and apply it on the eye with a dry and clean cloth.  This will give relief very quickly.

आँख पर गुहेरी, फुंसी, बिलनी, अंजनहारी (Eye Stye)

 10. Grinding saffron in cold water removes Guheri.
 11. Soak tamarind seeds in water and rub it like sandalwood and apply Guheri feet.
 12. Grinding myrabalan chebulie in water and applying it on Guheri provides relief.
 13. The juice that comes out when the mango leaves are broken from the dali, by applying that juice on Guheri, it gets relief very quickly.

मैं अक्सर सोचती हूं

मैं अक्सर सोचती हूं

Rupa Oos ki ek Boond
"आओ बैठो कभी किसी इतवार को
मैं वैसी नहीं हूँ जैसा मिलती हूँ, सोमवार को..❣️"

मैं अक्सर सोचती हूं कि तुमने 

थोड़ा और प्रयास क्यों नहीं किया 

क्यों जाने दिया अपनी रुह को

नज़र भर देखने के लिए 

मिलों का सफर तय करते थे 

तुम्हारी भरोसेमंद साथी

साईकिल मुझे आज भी याद है 

गली का नुक्कड़ आज भी टकटकी लगाकर तुम्हारी राह देखता है 

क्यों नहीं ज़ाहिर किया अपना प्रेम 

अपने सपनों की उड़ान के साथ 

क्यों नहीं मेरे भी सपने जोड़े 

मुकाम पर क्या तुम्हें

अकेले ही जाना था ?

मिट्टी सान ली तुमने प्रेम की

बस मूर्ति बनाना भूल गए 

कोई और गढ़ ले, गया

तुम्हारी मूर्ति को 

पर नया मूर्तिकार मूर्ति की

 मुस्कुराहट गढ़ना भूल गया 

न जाने क्या विवशता रही होगी तुम्हारी 

क्या-क्या सोचा होगा अकेले तुमने 

समाज परिवार रुतबा

 या फिर कुछ और 

मुझे कभी इन प्रश्नों के

 उत्तर नहीं मिलते है?

स्वयं ही तुमने निर्धारित कर ली 

मेरी सीमाओं को 

प्रेम करना मेरा अधिकार है 

उसे जीवंत करना तुम्हारा क्षेत्र था 

नवीन कोंपलें अब नहीं आती है 

अब क्यों कर कोशिश करते हो 

विकल्प कोई तलाशते हो 

या तुम्हारी भी मुस्कुराहट गढ़ी नहीं गई

प्रेम बस प्रथम और 

वहीं अंतिम होता है 

अब संभव न होगा 

ये किस्सा अब यूं ही 

अधूरा रहेगा

शायद कभी तुम 

मेरे प्रश्नों के उत्तर दे सको 

आखिर क्यों तुमने प्रयास नहीं किया?

Rupa Oos ki ek Boond
"आती नहीं हैं आहटें अब उस पार से
 फिर भी हम हैं कि सरगोशियां करते जाते हैं..❣️"


राष्ट्रीय चाय दिवस, 21 सितंबर || NATIONAL CHAI DAY, September 21

राष्ट्रीय चाय दिवस

राष्ट्रीय चाय दिवस प्रतिवर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है और यह विश्व स्तर पर स्वस्थ और लाभकारी पेय की सराहना करने के लिए मनाया जाने वाला दिन है। चाय, जिसे मसाला चाय भी कहा जाता है, एक मीठा भारतीय पेय है, जिसमें थोड़ा सा तीखापन होता है, जिसमें पारंपरिक रूप से इलायची, जायफल, दालचीनी और काली मिर्च जैसे सुगंधित मसाले होते हैं।

राष्ट्रीय चाय दिवस, 21 सितंबर || NATIONAL CHAI DAY, September 21

हालाँकि राष्ट्रीय चाय दिवस की शुरुआत 21 सितंबर, 2018 को हुई थी, लेकिन कहा जाता है कि इस पेय को 5,000 साल पहले बनाया गया था, खास तौर पर औषधीय उद्देश्यों के लिए और राजघरानों के लिए एक खास चाय के रूप में। इसका सबसे पहला संस्करण सिर्फ़ मसालों का मिश्रण था, चाय की पत्तियों के बिना। पिछले कुछ सालों में, यह दुनिया भर के लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हो गया है और इसे कई रूपों में लिया जाता है, जिसमें औपनिवेशिक काल के दौरान भारत पर कब्ज़ा करने के दौरान अंग्रेजों द्वारा दूध और स्वीटनर के साथ कैमेलिया साइनेंसिस पौधे की पत्तियों को शामिल करना भी है।

English Translate

National Tea Day

National Tea Day is celebrated annually on September 21 and is a day celebrated globally to appreciate the healthy and beneficial beverage. Chai, also known as masala chai, is a sweet Indian beverage with a slight tartness, traditionally made with aromatic spices such as cardamom, nutmeg, cinnamon and black pepper.

राष्ट्रीय चाय दिवस, 21 सितंबर || NATIONAL CHAI DAY, September 21

Although National Tea Day was started on September 21, 2018, the beverage is said to have been brewed over 5,000 years ago, primarily for medicinal purposes and as a special tea for royalty. Its earliest version was just a blend of spices, without tea leaves. Over the years, it has become quite popular among people around the world and is consumed in many forms, including the addition of the leaves of the Camellia sinensis plant with milk and sweetener by the British when they occupied India during the colonial period.

चाय प्रेमियों को समर्पित कुछ पंक्तियाँ:

छोटे मोटे ग़म तो चाय में घोल कर ही पी लेते हैं
चाय के घूंट के साथ बची हुई ज़िंदगी
 सुकून से जी लेते है...
 चलो कडक मीठी...
गरमा गरम... मसाले वाली... चाय हो जाय..🍵


आऊंगा में कुल्हड़ में मोहब्बत डाल कर,
तुम रखना ज़रा अपनी सर्दियां संभाल कर…!


चलो इस बेफिक्र दुनिया को खुल कर जी लेते है,
सब काम छोड़ो पहले चाय पी लेते है...!


चाय कोई शराब नहीं,
ओर ये सेहत के लिए खराब नहीं…!


यूं तो बहुत सख्त है मेरा दिल,
पर कमबख्त चाय पर पिघल जाता है…!


बरसात में घुल रही है महक अदरक की,
आज बूंदों को भी चाय कि तलब लगेगी…!

राष्ट्रीय चाय दिवस, 21 सितंबर || NATIONAL CHAI DAY, September 21

इंतजार का वक्त इतना प्यारा ना होता,
अगर साथ में चाय का सहारा ना होता…!

चाय की तरह मोहब्बत उसकी,
आज भी उबलती रहती है सीने में…!☕❣️


कल मिलने का वादा है उनका और,
मैं  चाय लिए रोज इंतजार करता हूं…!


कुछ इस तरह जी लेते है हम,
तुम्हारी याद आने पर चाय पी लेते है हम…!

राष्ट्रीय चाय दिवस, 21 सितंबर || NATIONAL CHAI DAY, September 21

वो रखी है टेवल पर चाय तुम इतवार पुराने ले आओ
मैं कह दूंगा आज छुट्टी है तुम यार पुराने ले आओ... ☕☕

बिहार का राजकीय फूल "गेंदा" || State flower of Bihar "Marigold"

बिहार का राजकीय फूल "गेंदा"

सामान्य नाम:  गेंदा
स्थानीय नाम: गेंदा
वैज्ञानिक नाम: Calendula Officinalis

बिहार, ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में बौद्ध मठों (विहारों) की अधिकता के कारण, इस क्षेत्र का नाम बिहार पड़ा। उल्लेखनीय है कि यह क्षेत्र प्राचीन समय में बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है। इंडियन बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ ने 1985 में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दी कि वे अपने-अपने राजकीय पशु, पक्षी, बृक्ष और पुष्प चिन्हित करें। ताकि देश के हर क्षेत्र के लोग अपने वन्य प्राणियों और वनस्पति जगत के संरक्षण की भावना से अभिप्रेरित हो सकें। तब कचनार को बिहार का राजकीय फूल घोषित किया गया था।

बिहार का राजकीय फूल "गेंदा" || || State flower of Bihar ""

बिहार के राजकीय प्रतीक

राजकीय चिह्न - बोधिसत्व
राजकीय पशु - बैल
राज्य पक्षी - गौरैया
राजकीय पुष्प - गेंदा
राजकीय वृक्ष - पीपल
राज्य खेल - कबड्डी
राजकीय मछली - देशी मांगुर
राज्य की भाषा - हिन्दी व उर्दू
बिहार का राजकीय फूल "गेंदा" || || State flower of Bihar ""

पर अब बिहार का राजकीय फूल गेंदा है। बिहार सरकार ने साल 2013 में गेंदा को राजकीय फूल घोषित किया। विभाजन के बाद राज्य के वर्तमान भौगोलिक परिवेश, वनस्पति प्रजातियों तथा प्राणियों की उपलब्धता एवं उनके संरक्षण की जरूरत महसूस की गयी। गेंदे के फूल की लोकप्रियता ने इसे राजकीय फूल का दर्जा दिलाया है। गेंदा एक लोकप्रिय फूल है और बिहार के ज़्यादातर घरों में यह पाया जाता है। गेंदे के फूल की बहुत सी प्रजातियाँ होती हैं। यह एक सजावटी फूल है और इसका माला भी बनता है। 

बिहार का राजकीय फूल "गेंदा" || || State flower of Bihar ""

गेंदा एक बारहमासी फूलों वाली फसल है। इसके पौधे अपने नारंगी और पीले फूलों के लिए लोकप्रिय हैं, जो बगीचों और परिदृश्यों की सुंदरता को बढ़ाते हैं। भारत में गेंदा की खेती मुख्य रूप से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र आदि राज्यों में की जाती है।  भारत में मुख्य रूप से अफ्रीकन गेंदा और फ्रेंच गेंदा की खेती की जाती है। यह एक सजावटी फूल है, इसलिए इसकी खेती मुख्य रूप से इसके रंग बिरंगे फूलों के लिए की जाती है। इसके  फूलों का उपयोग शादी – विवाह, मदिरों एवं कई प्रकार के समरोह में किया जाता है। सजावटी उपयोग के आलावा गेंदा के अपने कई औषधीय महत्व भी होते हैं। भारत में कई किसानों के लिए गेंदा की खेती आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।  भारत में मुख्य रूप से अफ्रीकन गेंदा और फ्रेंच गेंदा की खेती की जाती है।

English Translate

State flower of Bihar "Marigold"


Common name: Marigold
Local name: Marigold
Scientific name: Calendula Officinalis

बिहार का राजकीय फूल "गेंदा" || || State flower of Bihar ""

Bihar, It is believed that due to the abundance of Buddhist monasteries (Viharas) in this region, this region was named Bihar. It is noteworthy that this region has been a major center of Buddhism in ancient times. The Indian Board for Wild Life advised all the states and union territories in 1985 to identify their state animal, bird, tree and flower. So that people of every region of the country can be inspired by the spirit of conservation of their wildlife and flora. Then Kachnar was declared the state flower of Bihar.

बिहार का राजकीय फूल "गेंदा" || || State flower of Bihar ""

State symbols of Bihar

State symbol - Bodhisattva
State animal - Bull
State bird - Sparrow
State flower - Marigold
State tree - Peepal
State game - Kabaddi
State fish - Desi Mangur
State language - Hindi and Urdu

But now the state flower of Bihar is Marigold. The Bihar government declared marigold as the state flower in the year 2013. After the division, the need was felt to protect the current geographical environment of the state, availability of plant species and animals and their conservation. The popularity of marigold flower has given it the status of state flower. Marigold is a popular flower and is found in most of the houses in Bihar. There are many species of marigold flower. It is a decorative flower and garlands are also made from it.

बिहार का राजकीय फूल "गेंदा" || || State flower of Bihar ""

Marigold is a perennial flowering crop. Its plants are popular for their orange and yellow flowers, which enhance the beauty of gardens and landscapes. In India, marigold is mainly cultivated in states like Tamil Nadu, Karnataka, Andhra Pradesh, Madhya Pradesh and Maharashtra. African marigold and French marigold are mainly cultivated in India. It is a decorative flower, so it is cultivated mainly for its colorful flowers. Its flowers are used in weddings, temples and many types of ceremonies. Apart from decorative use, marigold also has many medicinal values. Marigold cultivation is an important source of income for many farmers in India. Mainly African marigold and French marigold are cultivated in India.

फूलों से रोगों का इलाज 

भारतीय राज्य के राजकीय पशुओं की सूची || List of State Animals of India ||

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..तावान

मानसरोवर-1 ..तावान

तावान - मुंशी प्रेमचंद | Taawan - Munshi Premchand

छकौड़ीलाल ने दुकान खोली और कपड़े के थानों को निकाल-निकाल रखने लगा कि एक महिला, दो स्वयंसेवकों के साथ उसकी दुकान को छंकने आ पहुँचीं। छकौड़ी के प्राण निकल गये।

महिला ने तिरस्कार करके कहा- क्यों लाला, तुमने सील तोड़ डाली न? अच्छी बात हैं, देखें तुम कैसे एक गिरह कपड़ा भी बेच लेते हो? भले आदमी, तुम्हें शर्म नहीं आती कि देश में यह संग्राम छिड़ा हुआ है और तुम विलायती कपड़ा बेच रहे हो; डूब मरना चाहिए! औरतें तक घरों से निकल पड़ी हैं, फिर भी तुम्हें लज्जा नही आती! तुम जैसे कायर देश में न होते, तो उसकी यह अधोगति न होती!

तावान - मुंशी प्रेमचंद | Taawan - Munshi Premchand

छकौड़ी ने वास्तव में कल कांग्रेस की सील तोड़ डाली थी। यह तिरस्कार सुनकर उसने सिर नीचा कर लिया। उसके पास कोई सफाई न थी, जवाब न था। उसकी दुकान बहुत छोटी थी। ठेली पर कपड़े लगाकर बेचा करता था। यही जीविका थी। इसी पर वृद्धा माता, रोगिणी स्त्री और पाँच बेटे-बेटियों का निर्वाह होता था। जब स्वराज्य-संग्राम छिड़ा और सभी बजाज विलायती कपड़ो पर मुहरें लगवाने लगे, तो उसने भी मुहर लगवा ली। दस-पाँच थान स्वदेशी कपड़ो के उधार लाकर दुकान पर रख लिए; पर कपड़ों का मेल न था, इसलिए बिक्री कम होती थी। कोई भूला-भटका ग्राहक आ जाता, तो रुपये-आठ आने बिक्री हो जाती। दिन-भर दूकान में तपस्या-सी करके पहर रात को लौट जाता था।

गृहस्थी का खर्च इस बिक्री से क्या चलता! कुछ दिन कर्ज-वर्ज लेकर काम चलाया, फिर गहने बेचने की नौबत आयी। यहाँ तक कि अब घर में कोई ऐसी चीज न बची, जिससे दो-चार महीने पेट का भूत सिर से टाला जाता। उधर स्त्री का रोग असाध्य होता जाता था। बिना किसी कुशल डॉक्टर को दिखाये काम न चल सकता था। इसी चिन्ता में डूब -उतरा रहा था कि विलायती कपड़े का एक ग्राहक मिल गया, जो एक मुश्त दस रुपये का माल लेना चाहता था। इस प्रलोभन को वह रोक न सका।

स्त्री ने सुना, तो कानों पर हाथ रखकर बोली- मैं मुहर तोड़ने को कभी न कहूँगी। डॉक्टर तो कुछ अमृत पिला न देगा। तुम नक्कू क्यों बनो? बचना होगा, बच जाऊँगी, मरना होगा, मर जाऊँगी, बेआबरूई तो न होगी। मै जीकर ही घर का क्या उपकार कर रही हूँ ? और सबको दिक कर रही हूँ । देश को स्वराज्य मिले, सब सुखी हो, बला से मैं मर जाऊँगी ! हजारों आदमी जेल जा रहे हैं, कितने घर तबाह हो गये, तो क्या सबसे ज्यादा प्यारी मेरी जान हैं?

पर छकौड़ी इतना पक्का न था। अपना बस चलते, वह स्त्री को भाग्य के भरोसे न छोड़ सकता था। उसने चुपके से मुहर तोड़ डाली और लागत के दामों दस रुपये के कपड़े बेच लिये।

अब डॉक्टर को कैसे ले जाय। स्त्री से परदा रखता? उसने जाकर साफ़-साफ़ सारा वृत्तांत कह सुनाया और डॉक्टर को बुलाने चला।

स्त्री ने उसका हाथ पकड़कर कहा- मुझे डॉक्टर की जरूरत नहीं, अगर तुमने जिद की, तो दवा की तरफ आँखें भी न उठाऊँगी

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

छकौड़ी और उसकी माँ ने रोगिणी को बहुत समझाया; पर वह डॉक्टर को बुलाने पर राज़ी न हुई। छकौड़ी ने दसों रुपयों को उठाकर घर- कुइयाँ में फेंक दिये और बिना कुछ खाये-पीये, किस्मत को रोता-झीकता दुकान पर चला आया। उसी वक़्त पिकेट करने वाले आ पहुँचे और उसे फटकारना शुरू कर दिया। पड़ोस के दुकानदार ने कांग्रेस-कमेटी में जाकर चुगली खायी थी।

छकौड़ी ने महिला के लिए अंदर से लोहे की एक टूटी, बेरंग कुर्सी निकाली और लपककर उसके लिए पान लाया। जब पान खाकर कुर्सी पर बैठी, तो उसनें अपराध के लिए क्षमा माँगी। बोला- बहनजी, बेसक मुझसे यह अपराध हुआ हैं, लेकिन मैने मजबूर होकर मुहर तोड़ी। अबकी मुझे मुआफी दीजिए। फिर ऐसी खता न होगी।

देशसेविका ने थानेदारों के रौब के साथ कहा- यों अपराध क्षमा नही हो सकता। तुम्हें इसका तावान देना होगा। तुमने कांग्रेस के साथ विश्वासघात किया हैं और इसका तुम्हें दंड मिलेगा। आज ही बायकाट-कमेटी में यह मामला पेश होगा।

छकौड़ी बहुत ही विनीत, बहुत ही सहिष्णु था; लेकिन चिताग्नि में तपकर उसका हृदय उस दशा को पहुँच गया था, जब एक चोट भी चिनगारियाँ पैदा कर देती हैं। तिनककर बोला- तावान तो मैं न दे सकता हूँ, न दूँगा। हाँ, दुकान भले ही बन्द कर दूँ। और दुकान भी क्यों बन्द करूँ अपना माल हैं जिस जगह चाहूँ बेच, सकता हूँ। अभी जाकर थाने में लिखा दूँ, तो बायकाट कमेटी को भागने की राह न मिले। जितना ही दबता हूँ, उतनी ही आप लोग दबाती हैं।

महिला ने सत्याग्रह-शक्ति के प्रदर्शन का अवसर पाकर कहा- हाँ, जरूर पुलिस में रपट करो, मैं तो चाहती हूँ। तुम उन लोगों को यह धमकी दे रहे हो, जो तुम्हारे ही लिए अपने प्राणों का बलिदान कर रहे हैं। तुम इतने स्वार्थान्ध हो गये हो कि अपने स्वार्थ के लिए देश का अहित करते तुम्हें लज्जा नही लाती! उस पर मुझे पुलिस की धमकी देते हो! बायकाट-कमेटी जाय या रहे, पर तुम्हें तावान देना पड़ेगा, अन्यथा दुकान बन्द करनी पड़ेगी।

यह कहते-कहते महिला का चहेरा गर्व से तेजवान हो गया। कई आदमी जमा हो गये और सब-के -सब छकौड़ी को बुरा -भला कहने लगे। छकौड़ी को मालूम हो गया कि पुलिस की धमकी देकर उसने बहुत बड़ा अविवेक किया है। लज्जा और अपमान से उसकी गर्दन झुक गयी और मुँह जरा-सा निकल आया। फिर गर्दन न उठायी।

सारा दिन गुजर गया और धेले की बिक्री न हुई। आखिर हारकर उसने दुकान बन्द कर दी और घर चला गया।

दूसरे दिन प्रातःकाल बायकाट-कमेटी ने एक स्वयंसेवक द्वारा उसे सूचना दे दी कि कमेटी ने उस पर 101रू. का दंड दिया हैं।

छकौड़ी जानता था कि कांग्रेस की शक्ति से सामने वह सर्वथा अशक्त है। उसकी जुबान से जो धमकी निकल गयी थी उस पर घोर पश्चाताप हुआ, लेकिन कीर कमान से निकल चुका था। दुकान खोलना व्यर्थ हैं। वह जानता था। उसकी धेले की बिक्री न होगी। 101रु. देना उसके बूते से बाहर था। दो-तीन दिन तो वह चुपचाप बैठा रहा। एक दिन रात को दुकान खोलकर सारी गाँठें घर उठा लाया, और चुपके -चुपके बेचने लगा। पैसे की चीज धेले में लुटा रहा था और वह भी उधार। जीने के लिए कुछ आधार तो चाहिए।

मगर उसकी यह चाल कांग्रेस से छिपी न रही। चौथे ही दिन गोइंदो ने कांग्रेस को खबर पहुँचा दी। उसी दिन तीसरे पहर छकौड़ी के घर की पिकेटिंग शुरू हो गयी। अबकी सिर्फ पिकेटिंग न थी, स्यापा भी था। पाँच-छह स्वयंसेविकाएँ औऱ इतने ही स्वयंसेवक द्वार पर स्यापा करने लगे।

छकौड़ी आँगन में सिर झुकाये खड़ा था। कुछ अक़्ल काम न करती थी, इस विपत्ति को कैसे टाले। रोगिणी स्त्री सायबान में लेटी हुई थी वृद्धा माता उसके, सिरहाने बैठी पंखा झूल रही थी और बच्चे बाहर स्यापे का आनन्द उठा रहे थे।

स्त्री ने कहा- इन सबसे पूछते नहीं, खाएँ क्या?

छकौड़ी बोला- किससे पूछूँ, जब कोई सुने भी!

जाकर कांग्रेसवालों से कहो हमारे लिए कुछ इंतजाम कर दे‘, हम अभी कपड़े को जला देंगे। ज्यादा नही, 25 रु. ही महीना दे दें।’

‘वहाँ भी कोई नहीं सुनेगा।’

‘तुम जाओ भी, या यहीं से कानून बघारने लगे।’

क्या जाऊँ, उलटे और लोग हँसी उड़ाएँगे। यहाँ तो जिसने दुकान खोली, उसे दुनिया लखपती ही समझने लगती हैं।’

तो खड़े-खड़े ये गालियाँ सुनते रहोगे?’

‘तुम्हारे कहने से कहो, चला जाऊँ, मगर वहाँ ठठोली के सिवा और कुछ न होगा।’

हाँ मेरे कहने से जाओ। जब कोई न सुनेगा, तो हम भी कोई और राह ‘ निकालेंगे।’

छकौड़ी ने मुँह लटकाए कुर्ता पहना और इस तरह कांग्रेस-दफ्तर चला, जैसे कोई मरणासन्न रोगी को देखने के लिए वैद्य को बुलाने जाता हैं।

कांग्रेस-कमेटी के प्रधान ने परिचय के बाद पूछा- तुम्हारे ही ऊपर तो बायकाट- कमेटी ने 101रु. का तावान लगाया हैं?

‘जी हाँ!’

‘तो रुपया कब दोगे?’

‘मुझमें तावान देने की सामर्थ्य नही हैं। आपसे सत्य कहता हूँ, मेरे घर में दो दिन से चूल्हा नही जला। घर की जो जमा-जथा थी, वह सब बेचकर खा गया। अब आपने तावान लगा दिया दुकान बन्द करनी पड़ी। घर पर कुछ माल बेचने लगा। वहाँ स्यापा बैठ गया। अगर आपकी यही इच्छा हो कि हम सब दाने बगैर मर जायँ, तो मार डालिए और मुझे कुछ नहीं कहना हैं।’

छकौड़ी जो बात कहने घर ले चला था, वह उसके मुँह से निकली। उसने देख लिया, यहाँ कोई उस पर विचार करने वाला नहीं हैं!

प्रधान ने गम्भीर-भाव से कहा- तावान तो देना ही पड़ेगा। अगर तुम्हें छोड़ दूँ तो इसी तरह और लोग भी करेंगे। फिर विलायती कपड़े की रोकथाम कैसे होगी?

मैं आपसे जो कह रहा हूँ उस पर आपको विश्वास नही आता?’

‘मैं जानता हूँ, तुम मालदार आदमी हो।’

मेरे घर की तलाशी ले लीजिए।’

‘मैं इन चकमों में नही आता।’

छकौड़ी ने उद्दंड होकर कहा- तो यह कहिए कि आप सेवा नही कर रहे हैं, गरीबो का खून चूस रहे हैं। पुलिस वाले कानूनी पहलू से लेते हैं, आप गैरकानूनी पहलू से लेते हैं। नतीजा एक हैं। आप भी अपमान करते है, वह भी अपमान करते हैं। मैं कसम खा रहा हूँ कि मेरे घर में खाने के लिए एक दाना नहीं हैं मेरी स्त्री खाट पर पड़ी-पड़ी मर रही हैं कफर भी आपको विश्वास नहीं आता। आप मुझे कांग्रेस का काम करने के लिए नौकर रख लीजिए। 25 रु. महीने दीजिएगा। इससे ज्यादा अपनी गरीबी का क्या प्रमाण दूँ अगर मेरा काम संतोष के लायक न हो, तो एक महीने के बाद मुझे निकाल दीजिएगा। यह समझ लीजिए कि जब मैं आपकी गुलामी करने को तैयार हुआ हूँ, तो इसीलिए कि मुझे दूसरा कोई आधार नहीं हैं। व्यापारी लोग, अपना बस चलते, किसी की चाकरी नही करते। जमाना बिगड़ा हुआ हैं, नही 101रु. के लिए इतना हाथ-पाँव न जोड़ता।

प्रधानजी हँसकर बोले- यह तो तुमने नयी चाल चली।’

‘चाल नही चल रहा हूँ, अपनी विपत्ति-कथा कह रहा हूँ ।’

कांग्रेस के पास इतने रुपये नही हैं कि वह मोटों को खिलाती फिरे।’

‘अब भी आप मुझे मोटा कहे जायँगे।’

‘तुम मोटे ही हो।’

‘‘मुझ पर जरा भी दया न कीजिएगा?’

प्रधान ज्यादा गहराई से बोले- छकौड़ीलालजी, मुझे पहले तो इसका विश्वास नहीं आता कि आपकी हालत इतनी खराब हैं, और अगर विश्वास आ भी जाये, तो मैं कुछ नही कर सकता। इतने महान् आन्दोलन में कितने ही घर तबाह हुए और होंगे। हम लोग सभी तबाह हो रहे हैं। आप समझते हैं, हमारे सिर कितनी बड़ी जिम्मेदारी हैं ? आपका तावान मुआफ़ कर दिया जाय, तो कल ही आपके बीसियों भाई अपनी मुहरें तोड़ डालेंगे और हम उन्हें किसी तरह कायल न कर सकेंगे । आप गरीब हैं, लेकिन सभी भाई तो गरीब नही हैं। तब तो सभी अपनी गरीबी के प्रमाण देने लगेंगे। मैं किस-किस की तलाशी लेता फिरूँगा। इसलिए जाइए, किसी तरह रुपये का प्रबन्ध कीजिए और दुकान खोलकर कारोबार कीजिए। ईश्वर चाहेगा, तो वह दिन भी आयेगा जब आपका नुकसान पूरा होगा।

छकौड़ी घर पहुँचा, तो अँधेरा हो गया था। अभी तक उसके द्वार पर स्यापा हो रहा था। घर में जाकर स्त्री से बोला- आखिर वही हुआ, जो मैं कहता था। प्रधानजी को मेरी बातों पर विश्वास नहीं आया।

स्त्री का मुरझाया हुआ बदन उत्तेजित हो उठा। उठ खड़ी हुई और बोली- अच्छी बात हैं, हम उन्हें विश्वास दिला देंगे। मैं अब कांग्रेस दफ्तर के सामने मरूँगी। मेरे बदन उसी दफ्तर के सामने भूख से विकल हो-होकर तड़पेंगे। कांग्रेस हमारे साथ सत्याग्रह करती हैं, तो हम भी उसके साथ सत्याग्रह करके दिखा दें। मैं इस मरी हुई दशा में कांग्रेस को तोड़ डालूँगी। जो अभी इतने निर्दयी हैं, वह अधिकार पा जाने पर क्या न्याय करेंगे एक इक्का बुला लो खाट की जरूरत नही। वहीं, सड़क किनारे मेरी जान निकलेगी। जनता ही के बल पर तो वह कूद रहे हैं। मै दिखा दूँगी, जनता तुम्हारे साथ नहीं, मेरे साथ हैं।

इस अग्निकुंड के सामने छकौड़ी की गर्मी शान्त हो गयी। कांग्रेस के साथ इस रूप में सत्याग्रह की कल्पना ही से वह काँप उठा। सारे शहर में हलचल पड़ जायेगी, हजारो आदमी आकर यह दशा देखेंगे। सम्भव है, कोई हंगामा ही हो जाय। ये सभी बाते इतनी भयंकर थी कि छकौड़ी का मन कातर हो गया। उसने स्त्री को शान्त करने की चेष्टा करते हुए कहा- इस तरह चलना उचित नहीं हैं अम्बे! मैं एक बार प्रधानजी से मिलूँगा अब रात हुई, स्यावा बन्द हो जायेगा। कल देखी जायेगी। अभी तो तुमने पथ्य भी नहीं लिया। प्रधानजी बेचारे बड़े असमंजस में पड़े हुए हैं। कहते है, अगर आपके साथ रियायत कर दें, तो फिर कोई शासन ही न रह जायेंगा। मोटे-मोटे आदमी भी मुहरें हरें तोड़ डालेंगे और जब कुछ कहा जायेगा, तो आपकी नज़ीर पेश कर देंगे।

अम्बा एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ी छकौड़ी का मुँह देखती रही, फिर धीरे से खाट पर बैठ गयी। उसकी उत्तेजना गहरे विचार में परिणत हो गयी। कांग्रेस की और अपनी जिम्मेदारी का ख्याल आ गया। प्रधानजी के कथन कितने सत्य थे, यह उससे छिपा न रहा।

उसने छकौड़ी से कहा- तुमने आकर यह बात न कही थी।

छकौड़ी बोला- उस वक़्त मुझे इसकी याद न थी।

‘प्रधानजी ने कहा हैं, या तुम अपनी तरफ से मिला रहे हो।’

नहीं उन्होंने खुद कहा मैं अपनी तरफ से क्यों मिलाता ?’

‘बात तो उन्होंने ठीक ही कहीं!’

हम तो मिट जायेंगे!’

‘हम तो यों ही मिटे हुए हैं!’

‘रुपये कहाँ से आवेंगे? भोजन के लिए तो ठिकाना ही नहीं, दंड कहाँ से दें?’

‘और कुछ नहीं हैं, घर तो हैं। इसे रेहन रख दो और अब विलायती कपड़े भूल कर भी नहीं बेचना। सड़ जायँ, कोई परवाह नही। तुमने सील तोड़कर आफ़त सिर ली। मेरी दवा-दारू की चिन्ता न करो। ईश्वर की जो इच्छा होगी, वही होगा। बाल- बच्चे भूखे मरते हैं, मरने दो। देश में करोड़ों आदमी ऐसे हैं, जिनकी दशा हमारी दशा से भी खराब हैं। हम न रहेंगे देश तो सुखी होगा।’

छकौड़ी जानता था; अम्बा जो कहती हैं, वह करके रहती हैं, कोई उज्र नही सुनती। वह सिर झुकाए, अम्बा पर झुँझलाता हुआ घर से निकलकर महाजन के घर की ओर चला।

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

जेड बेल

सामान्य नाम: जेड बेल
वैज्ञानिक नाम: स्ट्रॉन्गिलोडोन मैक्रोबोट्रिस

जेड बेल को एमराल्ड क्रीपर के नाम से भी जाना जाता है। स्ट्रॉन्गिलोडोन मैक्रोबोट्रिस , जिसे आमतौर पर जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल, के नाम से जाना जाता है, फिलीपींस में पाई जाने वाली एक फलीदार बेल है। यह एक खूबसूरत उष्णकटिबंधीय बेल है। जेड बेल के पौधों को नम, समृद्ध, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। हालाँकि आंशिक छाया को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन लाल जेड बेल के पौधे तब सबसे ज़्यादा अच्छे उगते हैं जब उनकी जड़ें पूरी छाया में होती हैं। पौधे के आधार के चारों ओर गीली घास की एक परत बिछाकर इसे आसानी से पूरा किया जा सकता है।

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

यह एक लोकप्रिय सजावटी पौधा है, जो जीवंत फ़िरोज़ा या हरे-नीले पंजे के आकार के फूलों के झरते गुच्छों के लिए जाना जाता है। जेड बेल, जिसे वैज्ञानिक रूप से स्ट्रॉन्गिलोडोन मैक्रोबोट्रिस के नाम से जाना जाता है, फिलीपींस की एक दुर्लभ और आकर्षक फूल वाली बेल है। जबकि यह पौधा आम तौर पर चमकीले नीले-हरे फूल पैदा करता है, लाल फूलों वाली जेड बेल की कोई प्राकृतिक किस्म नहीं है। जेड बेल का सबसे आम रंग रूप नीला है, हालाँकि कुछ खेती की जाने वाली किस्में हैं, जो नीले रंग के हल्के या गहरे रंग प्रदर्शित कर सकती हैं।

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

प्राकृतिक दुनिया में, जेड वाइन अपने अनूठे और जीवंत नीले-हरे फूलों के लिए प्रसिद्ध है, जो लंबे, लटकते हुए गुच्छों में बढ़ते हैं। यह अपनी दुर्लभता और खतरे की स्थिति के कारण एक बेशकीमती और संरक्षित प्रजाति है।

जेड बेल की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय वातावरण की आवश्यकता होती है। पौधे की आकर्षक उपस्थिति और सीमित वितरण दुनिया भर में पौधे के प्रति उत्साही लोगों के बीच इसके आकर्षण में योगदान देता है।  

स्ट्रॉन्गिलोडोन मैक्रोबोट्रिस का वर्णन सबसे पहले 1841 में पश्चिमी खोजकर्ताओं द्वारा किया गया था। यह पौधा फिलीपींस के लुज़ोन द्वीप पर माउंट माकिलिंग की जंगली ढलानों पर संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्वेषण अभियान के सदस्यों द्वारा देखा गया था। इस पौधे को इसका पश्चिमी नाम मिला और इसका वर्णन सबसे पहले पश्चिमी साहित्य में हार्वर्ड स्थित वनस्पतिशास्त्री आसा ग्रे द्वारा किया गया था। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के बहु-जहाज अभियान द्वारा एकत्र किए गए हजारों पौधों का वर्णन किया। 

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

इसकी प्रजाति उपनाम मैक्रोबोट्रिस का अर्थ है “लंबा अंगूर क्लस्टर”, ग्रीक मैक्रोज़ "लंबा" और बोट्रीस "अंगूर का गुच्छा",फल का जिक्र करते हुए; जीनस का नाम स्ट्रॉन्गिलोस "गोल", और ओडस "दांत" से निकला है। कैलिक्स के गोल दांतों का जिक्र करते हुए। 

इसमें 2 सेमी व्यास तक के मोटे तने होते हैं, जिसका उपयोग यह सूरज की रोशनी तक पहुँचने के लिए ऊँचे पेड़ों पर चढ़ने के लिए करता है। इसके तने की लंबाई 18 मीटर तक पहुँच सकती है। बेल अपने मेजबान के तने और शाखाओं के माध्यम से खुद को उलझा लेती है।

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

इसकी हल्की हरी पत्तियां छतरी पर फैली हुई हैं और एकांतर रूप से व्यवस्थित हैं। प्रत्येक पत्ती में म्यूक्रोनेट युक्तियों के साथ तीन आयताकार पत्रक होते हैं, बीच का पत्रक सबसे बड़ा होता है।

पंजे के आकार या चोंच के आकार के फूल 75 या अधिक फूलों के लटकते ट्रस या स्यूडोरेसेम में होते हैं और 3 मीटर तक लंबे हो सकते हैं। फ़िरोज़ा फूल का रंग फ़िरोज़ा और जेड खनिजों के कुछ रूपों के समान होता है , जो नीले-हरे से लेकर पुदीने के हरे रंग तक भिन्न होता है। फूल परिपक्व लताओं द्वारा उत्पादित पुष्पक्रमों से अंगूर के गुच्छों की तरह लटकते हैं । प्रत्येक फूल मुड़े हुए पंखों वाली एक मोटी-तगड़ी तितली जैसा दिखता है; उन्होंने कुछ ऐसे संशोधन विकसित किए हैं, जिससे उन्हें चमगादड़ की एक प्रजाति द्वारा परागण करने की अनुमति मिलती है जो पुष्पक्रम पर उल्टा लटककर उसका रस पीता है ।

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

जेड बेल फल छोटे, आयताकार, मांसल बीजपोड 15 सेमी तक लंबे होते हैं और इनमें 12 बीज तक होते हैं। जेड बेल जंगली में चमगादड़ द्वारा परागित होती है, इसलिए इसके फल को फलने के लिए ग्रीनहाउस में हाथ से परागित किया जाना चाहिए, जो तरबूज के आकार का हो सकता है। यह इंग्लैंड के केव गार्डन में रॉयल बोटेनिक गार्डन में वर्षों से किया जा रहा है, जहाँ बीज संरक्षण एक सतत फोकस है, विशेष रूप से वर्षावन आवास के नुकसान के मद्देनजर। 

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Jade Vine


Common Name: Jade Vine
Scientific Name: Strongylodon macrobotrys

Jade vine is also known as emerald creeper. Strongylodon macrobotrys, commonly known as jade vine, emerald vine or turquoise jade vine, is a leguminous vine native to the Philippines. It is a beautiful tropical vine. Jade vine plants require moist, rich, well-drained soil. Although partial shade is preferred, red jade vine plants grow best when their roots are in full shade. This can be easily accomplished by spreading a layer of mulch around the base of the plant.

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

It is a popular ornamental plant, known for its cascading clusters of vibrant turquoise or greenish-blue claw-shaped flowers. Jade vine, scientifically known as Strongylodon macrobotrys, is a rare and attractive flowering vine native to the Philippines. While this plant typically produces bright blue-green flowers, there are no natural varieties of jade vine with red flowers. The most common color form of jade vine is blue, although there are some cultivated varieties that may display lighter or darker shades of blue.

In the natural world, jade vine is famous for its unique and vibrant blue-green flowers that grow in long, hanging clusters. It is a prized and protected species due to its rarity and threatened status.

Cultivation of jade vine requires a tropical environment. The plant's attractive appearance and limited distribution contribute to its fascination among plant enthusiasts worldwide.

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

Strongylodon macrobotrys was first described by Western explorers in 1841. The plant was observed by members of the United States Exploring Expedition on the forested slopes of Mount Makiling on the island of Luzon in the Philippines. The plant received its western name and was first described in Western literature by Harvard-based botanist Asa Gray. He described thousands of plants collected by a United States multi-ship expedition.

Its species epithet Macrobotrys means “tall grape cluster”, from the Greek macros “tall” and botrys “bunch of grapes”, referring to the fruit; the genus name derives from strongylos “round”, and odus “tooth”, referring to the rounded teeth of the calyx.

It has thick stems up to 2 cm in diameter, which it uses to climb tall trees to reach sunlight. Its stem length can reach 18 m. The vine entangles itself through the stems and branches of its host.

Its light green leaves spread over the canopy and are arranged alternately. Each leaf has three oblong leaflets with mucronate tips, the middle leaflet being the largest.

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

The claw-shaped or beak-shaped flowers are borne in pendent trusses or pseudoracemes of 75 or more flowers and can be up to 3 m long. The turquoise flower color is similar to some forms of the minerals turquoise and jade, varying from blue-green to mint green. The flowers hang like bunches of grapes from inflorescences produced by mature vines. Each flower resembles a stout-bodied butterfly with folded wings; they have evolved certain modifications that allow them to be pollinated by a species of bat that hangs upside down on the inflorescence to drink its nectar.

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

Jade vine fruits are small, oblong, fleshy seedpods up to 15 cm long and contain up to 12 seeds. Jade vine is pollinated by bats in the wild, so it must be hand-pollinated in greenhouses to produce its fruit, which can be the size of a watermelon. This has been done for years at the Royal Botanic Gardens at Kew Gardens in England, where seed conservation is an ongoing focus, especially in the wake of the loss of rainforest habitat.

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर

100 एकड़ में फैला श्रीपुरम और 1500 किग्रा सोने से बना श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर

स्वर्ण मंदिर का नाम आते ही सबसे पहले अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की छबि बनती है। पंजाब के स्वर्ण मंदिर के बारे में तो आप सभी ने सुना होगा, लेकिन अपने ही देश में एक ऐसा हिन्दू मंदिर है, जिसमें 1500 किला से ज्यादा सोना लगा है। यह मंदिर है तमिलनाडु के वैल्लोर का गोल्डन टेम्पल। पंजाब का गोल्डन टेम्पल ही विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है लेकिन, अपने ही देश के दक्षिण भारतीय राज्य में एक मंदिर मौजूद है, उसको भी गोल्डन टेम्पल के नाम से जाना जाता है। 

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

दक्षिण भारत के तमिलनाडु में मौजूद "महालक्ष्मी स्वर्ण मंदिर", जिसे "श्रीपुरम गोल्डन टेम्पल" के नाम से भी जाना जाता है। तमिलनाडु के वेल्लोर में मौजूद यह मंदिर अद्वितीय सरंचना और बेहतरीन आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी प्रसिद्ध है। श्रीपुरम गोल्डन टेम्पल का इतिहास भी बेहद दिलचस्प है। कहा जाता है कि इस अद्भुत और अनोखे स्वर्ण मंदिर को बनवाने का विचार नारायणी अम्मा के पास आया था, जिसके बाद इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाने का फैसला किया गया। 

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

यह मंदिर भारत के तमिलनाडु में थिरुमलाइकोडी (मलाइकोडी) वेल्लोर में छोटी पहाड़ियों के तल पर श्रीपुरम आध्यात्मिक पार्क में स्थित है। यह तिरुपति से 120 किमी, चेन्नई से 145 किमी, पुदुचेरी से 160 किमी और बेंगलुरु से 200 किमी दूर है। मंदिर में मुख्यतः देवी श्री लक्ष्मी नारायणी या महालक्ष्मी (धन की देवी) की अराधना की जाती है। महालक्ष्मी का महाकुंभ 24 अगस्त 2007 को आयोजित किया गया था। सभी धर्मों के भक्तों का इस मंदिर में स्वागत किया जाता है। अनुमानतः यह मंदिर 1,500 किलोग्राम शुद्ध सोने से सुसज्जित है, जबकि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के गुंबद को 750 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है।

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

इस मंदिर को बनाने में लगभग 7 साल का समय लगा और साल 2007 में इस मंदिर का उद्घाटन किया गया। यह मंदिर महालक्ष्मी को समर्पित है। इस मंदिर की वास्तुकला भी बेहद अद्वितीय है। इस मंदिर के दोनों हिस्सों को सोने की पन्नी से कवर किया गया है। जबकि, मंदिर के गर्भ गृह में देवी महालक्ष्मी की एक दिव्य मूर्ति स्थापित है। आपको बता दें कि बीच में मंदिर और चारों तरफ से बेहतरीन पार्क मौजूद है। यह मंदिर देखने में जितना प्यारा है, उतना ही इस मंदिर की मान्यता भी है।

दक्षिण भारत के इस स्वर्ण मंदिर का नाम श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर है, जो कुछ हद तक बिल्कुल वैसी ही है, जैसे अमृतसर का स्वर्ण मंदिर है। मतलब, जैसे स्वर्ण मंदिर के किनारे पर तालाब है, तो उसी प्रकार से यह मंदिर भी तालाब के बीचों-बीच स्थित है। लेकिन इ्स मंदिर के तालाब में आपको एक खास अंतर जरूर देखने को मिल जाएगा। दरअसल, अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के तालाब में आपको सुनहरी मछलियां देखने को मिलती है और वेल्लोर स्थित श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर के तालाब में आपको सोने-चांदी के आभूषण और रुपये-पैसे देखने को मिल जाएंगे।

इस स्वर्ण मंदिर का आकार बिल्कुल एक श्रीयंत्र की तरह दिखता है, जो बेहद आकर्षक है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार से मुख्य मंदिर की दूरी करीब 1.5 से 2 किमी. है। इस बीच रास्ते में तमाम जड़ी-बूटियां और कई प्रकार के दुर्गम पेड़-पौधे हैं। इतना ही नहीं, रास्ते में कई आध्यात्मिक संदेश लिखे हुए हैं। 

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

मंदिर का एक अलग ड्रेस कोड 

श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर में दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओें के लिए एक ड्रेस कोड रखा गया है, जिसे पहनने के बाद ही मंदिर में प्रवेश करना होता है। मंदिर के अंदर प्रवेश करते समय शॉर्ट पैंट, मिडी और केपरी पहनना सख्त मना है। इसके साथ मंदिर में मोबाइल, कैमरा, तंबाकू या ज्वलंत सामान ले जाना सख्त मना है।

इस स्वर्ण मंदिर की दीवारों पर जो सोने की परतें चढ़ाई गई है, वो मानव निर्मित है। नक्काशीदार तांबे की प्लेटों पर 9 परतों से 10 परतों तक सोने की पन्नी लगाई गई है। इस मंदिर में जो शिलालेख हैं, उनकी कला वेदों से ली गई है। इस पूरे मंदिर की डिजाइन नारायणी अम्मा द्वारा बनायी गई थी।

रात में इस मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है। रोशनी पड़ने यह मंदिर हजारों दिनों की तरह जगमगा उठता है मंदिर की सुरक्षा में 24 घंटे पुलिस और सिक्योरिटी कंपनियों का पहरा रहता है। 

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

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Gangaikonda Cholapuram or Gangaikondacholiswaram Temple

Sripuram spread over 100 acres and Shri Lakshmi Narayani temple made of 1500 kg gold

As soon as the name of Golden Temple comes, the first image that comes to mind is that of the Golden Temple of Amritsar. You all must have heard about the Golden Temple of Punjab, but there is a Hindu temple in our own country, which has more than 1500 kg of gold. This temple is the Golden Temple of Vellore in Tamil Nadu. The Golden Temple of Punjab is famous worldwide, but there is a temple in the South Indian state of our own country, it is also known as the Golden Temple.

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

"Mahalakshmi Golden Temple" located in Tamil Nadu of South India, which is also known as "Sripuram Golden Temple". This temple located in Vellore, Tamil Nadu is also famous as a unique structure and an excellent spiritual center. The history of Sripuram Golden Temple is also very interesting. It is said that the idea of ​​building this wonderful and unique golden temple came to Narayani Amma, after which it was decided to build this huge temple.

This temple is located in Sripuram Spiritual Park at the foot of small hills in Thirumalaikodi (Malaikodi) Vellore in Tamil Nadu, India. It is 120 km from Tirupati, 145 km from Chennai, 160 km from Puducherry and 200 km from Bengaluru. Goddess Sri Lakshmi Narayani or Mahalakshmi (Goddess of wealth) is mainly worshiped in the temple. Maha Kumbh of Mahalakshmi was held on 24 August 2007. Devotees of all religions are welcomed in this temple. It is estimated that this temple is decorated with 1,500 kg of pure gold, while the dome of the Golden Temple of Amritsar has been decorated with 750 kg of gold.

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

It took about 7 years to build this temple and this temple was inaugurated in the year 2007. This temple is dedicated to Mahalakshmi. The architecture of this temple is also very unique. Both parts of this temple are covered with gold foil. Whereas, a divine idol of Goddess Mahalakshmi is installed in the sanctum sanctorum of the temple. Let us tell you that there is a temple in the middle and a wonderful park all around. This temple is as beautiful to look at as it is popular.

The name of this golden temple of South India is Sripuram Golden Temple, which is to some extent exactly like the Golden Temple of Amritsar. Meaning, just like there is a pond on the banks of the Golden Temple, similarly this temple is also situated in the middle of the pond. But you will definitely get to see a special difference in the pond of this temple. Actually, you get to see golden fishes in the pond of the Golden Temple located in Amritsar and you will get to see gold-silver ornaments and money in the pond of Sripuram Golden Temple located in Vellore.

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

The shape of this golden temple looks exactly like a Sriyantra, which is very attractive. The distance from the entrance of this temple to the main temple is about 1.5 to 2 km. Meanwhile, there are many herbs and many types of inaccessible trees and plants on the way. Not only this, many spiritual messages are written on the way.

A separate dress code of the temple

A dress code has been kept for the devotees to visit Sripuram Golden Temple, which has to be worn only after entering the temple. Wearing short pants, midi and capri is strictly prohibited while entering the temple. Along with this, carrying mobile, camera, tobacco or inflammable items in the temple is strictly prohibited.

The gold layers on the walls of this Golden Temple are man-made. 9 to 10 layers of gold foil have been applied on carved copper plates. The art of the inscriptions in this temple is taken from the Vedas. The design of this entire temple was made by Narayani Amma.

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

The beauty of this temple at night is worth seeing. When the light falls on this temple, it shines like a thousand days. The temple is guarded by police and security companies 24 hours a day.