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जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

जेड बेल

सामान्य नाम: जेड बेल
वैज्ञानिक नाम: स्ट्रॉन्गिलोडोन मैक्रोबोट्रिस

जेड बेल को एमराल्ड क्रीपर के नाम से भी जाना जाता है। स्ट्रॉन्गिलोडोन मैक्रोबोट्रिस , जिसे आमतौर पर जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल, के नाम से जाना जाता है, फिलीपींस में पाई जाने वाली एक फलीदार बेल है। यह एक खूबसूरत उष्णकटिबंधीय बेल है। जेड बेल के पौधों को नम, समृद्ध, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। हालाँकि आंशिक छाया को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन लाल जेड बेल के पौधे तब सबसे ज़्यादा अच्छे उगते हैं जब उनकी जड़ें पूरी छाया में होती हैं। पौधे के आधार के चारों ओर गीली घास की एक परत बिछाकर इसे आसानी से पूरा किया जा सकता है।

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

यह एक लोकप्रिय सजावटी पौधा है, जो जीवंत फ़िरोज़ा या हरे-नीले पंजे के आकार के फूलों के झरते गुच्छों के लिए जाना जाता है। जेड बेल, जिसे वैज्ञानिक रूप से स्ट्रॉन्गिलोडोन मैक्रोबोट्रिस के नाम से जाना जाता है, फिलीपींस की एक दुर्लभ और आकर्षक फूल वाली बेल है। जबकि यह पौधा आम तौर पर चमकीले नीले-हरे फूल पैदा करता है, लाल फूलों वाली जेड बेल की कोई प्राकृतिक किस्म नहीं है। जेड बेल का सबसे आम रंग रूप नीला है, हालाँकि कुछ खेती की जाने वाली किस्में हैं, जो नीले रंग के हल्के या गहरे रंग प्रदर्शित कर सकती हैं।

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

प्राकृतिक दुनिया में, जेड वाइन अपने अनूठे और जीवंत नीले-हरे फूलों के लिए प्रसिद्ध है, जो लंबे, लटकते हुए गुच्छों में बढ़ते हैं। यह अपनी दुर्लभता और खतरे की स्थिति के कारण एक बेशकीमती और संरक्षित प्रजाति है।

जेड बेल की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय वातावरण की आवश्यकता होती है। पौधे की आकर्षक उपस्थिति और सीमित वितरण दुनिया भर में पौधे के प्रति उत्साही लोगों के बीच इसके आकर्षण में योगदान देता है।  

स्ट्रॉन्गिलोडोन मैक्रोबोट्रिस का वर्णन सबसे पहले 1841 में पश्चिमी खोजकर्ताओं द्वारा किया गया था। यह पौधा फिलीपींस के लुज़ोन द्वीप पर माउंट माकिलिंग की जंगली ढलानों पर संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्वेषण अभियान के सदस्यों द्वारा देखा गया था। इस पौधे को इसका पश्चिमी नाम मिला और इसका वर्णन सबसे पहले पश्चिमी साहित्य में हार्वर्ड स्थित वनस्पतिशास्त्री आसा ग्रे द्वारा किया गया था। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के बहु-जहाज अभियान द्वारा एकत्र किए गए हजारों पौधों का वर्णन किया। 

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

इसकी प्रजाति उपनाम मैक्रोबोट्रिस का अर्थ है “लंबा अंगूर क्लस्टर”, ग्रीक मैक्रोज़ "लंबा" और बोट्रीस "अंगूर का गुच्छा",फल का जिक्र करते हुए; जीनस का नाम स्ट्रॉन्गिलोस "गोल", और ओडस "दांत" से निकला है। कैलिक्स के गोल दांतों का जिक्र करते हुए। 

इसमें 2 सेमी व्यास तक के मोटे तने होते हैं, जिसका उपयोग यह सूरज की रोशनी तक पहुँचने के लिए ऊँचे पेड़ों पर चढ़ने के लिए करता है। इसके तने की लंबाई 18 मीटर तक पहुँच सकती है। बेल अपने मेजबान के तने और शाखाओं के माध्यम से खुद को उलझा लेती है।

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

इसकी हल्की हरी पत्तियां छतरी पर फैली हुई हैं और एकांतर रूप से व्यवस्थित हैं। प्रत्येक पत्ती में म्यूक्रोनेट युक्तियों के साथ तीन आयताकार पत्रक होते हैं, बीच का पत्रक सबसे बड़ा होता है।

पंजे के आकार या चोंच के आकार के फूल 75 या अधिक फूलों के लटकते ट्रस या स्यूडोरेसेम में होते हैं और 3 मीटर तक लंबे हो सकते हैं। फ़िरोज़ा फूल का रंग फ़िरोज़ा और जेड खनिजों के कुछ रूपों के समान होता है , जो नीले-हरे से लेकर पुदीने के हरे रंग तक भिन्न होता है। फूल परिपक्व लताओं द्वारा उत्पादित पुष्पक्रमों से अंगूर के गुच्छों की तरह लटकते हैं । प्रत्येक फूल मुड़े हुए पंखों वाली एक मोटी-तगड़ी तितली जैसा दिखता है; उन्होंने कुछ ऐसे संशोधन विकसित किए हैं, जिससे उन्हें चमगादड़ की एक प्रजाति द्वारा परागण करने की अनुमति मिलती है जो पुष्पक्रम पर उल्टा लटककर उसका रस पीता है ।

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

जेड बेल फल छोटे, आयताकार, मांसल बीजपोड 15 सेमी तक लंबे होते हैं और इनमें 12 बीज तक होते हैं। जेड बेल जंगली में चमगादड़ द्वारा परागित होती है, इसलिए इसके फल को फलने के लिए ग्रीनहाउस में हाथ से परागित किया जाना चाहिए, जो तरबूज के आकार का हो सकता है। यह इंग्लैंड के केव गार्डन में रॉयल बोटेनिक गार्डन में वर्षों से किया जा रहा है, जहाँ बीज संरक्षण एक सतत फोकस है, विशेष रूप से वर्षावन आवास के नुकसान के मद्देनजर। 

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Jade Vine


Common Name: Jade Vine
Scientific Name: Strongylodon macrobotrys

Jade vine is also known as emerald creeper. Strongylodon macrobotrys, commonly known as jade vine, emerald vine or turquoise jade vine, is a leguminous vine native to the Philippines. It is a beautiful tropical vine. Jade vine plants require moist, rich, well-drained soil. Although partial shade is preferred, red jade vine plants grow best when their roots are in full shade. This can be easily accomplished by spreading a layer of mulch around the base of the plant.

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

It is a popular ornamental plant, known for its cascading clusters of vibrant turquoise or greenish-blue claw-shaped flowers. Jade vine, scientifically known as Strongylodon macrobotrys, is a rare and attractive flowering vine native to the Philippines. While this plant typically produces bright blue-green flowers, there are no natural varieties of jade vine with red flowers. The most common color form of jade vine is blue, although there are some cultivated varieties that may display lighter or darker shades of blue.

In the natural world, jade vine is famous for its unique and vibrant blue-green flowers that grow in long, hanging clusters. It is a prized and protected species due to its rarity and threatened status.

Cultivation of jade vine requires a tropical environment. The plant's attractive appearance and limited distribution contribute to its fascination among plant enthusiasts worldwide.

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

Strongylodon macrobotrys was first described by Western explorers in 1841. The plant was observed by members of the United States Exploring Expedition on the forested slopes of Mount Makiling on the island of Luzon in the Philippines. The plant received its western name and was first described in Western literature by Harvard-based botanist Asa Gray. He described thousands of plants collected by a United States multi-ship expedition.

Its species epithet Macrobotrys means “tall grape cluster”, from the Greek macros “tall” and botrys “bunch of grapes”, referring to the fruit; the genus name derives from strongylos “round”, and odus “tooth”, referring to the rounded teeth of the calyx.

It has thick stems up to 2 cm in diameter, which it uses to climb tall trees to reach sunlight. Its stem length can reach 18 m. The vine entangles itself through the stems and branches of its host.

Its light green leaves spread over the canopy and are arranged alternately. Each leaf has three oblong leaflets with mucronate tips, the middle leaflet being the largest.

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

The claw-shaped or beak-shaped flowers are borne in pendent trusses or pseudoracemes of 75 or more flowers and can be up to 3 m long. The turquoise flower color is similar to some forms of the minerals turquoise and jade, varying from blue-green to mint green. The flowers hang like bunches of grapes from inflorescences produced by mature vines. Each flower resembles a stout-bodied butterfly with folded wings; they have evolved certain modifications that allow them to be pollinated by a species of bat that hangs upside down on the inflorescence to drink its nectar.

जेड बेल, एमराल्ड बेल या फ़िरोज़ा जेड बेल || Jade Vine

Jade vine fruits are small, oblong, fleshy seedpods up to 15 cm long and contain up to 12 seeds. Jade vine is pollinated by bats in the wild, so it must be hand-pollinated in greenhouses to produce its fruit, which can be the size of a watermelon. This has been done for years at the Royal Botanic Gardens at Kew Gardens in England, where seed conservation is an ongoing focus, especially in the wake of the loss of rainforest habitat.

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर

100 एकड़ में फैला श्रीपुरम और 1500 किग्रा सोने से बना श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर

स्वर्ण मंदिर का नाम आते ही सबसे पहले अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की छबि बनती है। पंजाब के स्वर्ण मंदिर के बारे में तो आप सभी ने सुना होगा, लेकिन अपने ही देश में एक ऐसा हिन्दू मंदिर है, जिसमें 1500 किला से ज्यादा सोना लगा है। यह मंदिर है तमिलनाडु के वैल्लोर का गोल्डन टेम्पल। पंजाब का गोल्डन टेम्पल ही विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है लेकिन, अपने ही देश के दक्षिण भारतीय राज्य में एक मंदिर मौजूद है, उसको भी गोल्डन टेम्पल के नाम से जाना जाता है। 

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

दक्षिण भारत के तमिलनाडु में मौजूद "महालक्ष्मी स्वर्ण मंदिर", जिसे "श्रीपुरम गोल्डन टेम्पल" के नाम से भी जाना जाता है। तमिलनाडु के वेल्लोर में मौजूद यह मंदिर अद्वितीय सरंचना और बेहतरीन आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी प्रसिद्ध है। श्रीपुरम गोल्डन टेम्पल का इतिहास भी बेहद दिलचस्प है। कहा जाता है कि इस अद्भुत और अनोखे स्वर्ण मंदिर को बनवाने का विचार नारायणी अम्मा के पास आया था, जिसके बाद इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाने का फैसला किया गया। 

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

यह मंदिर भारत के तमिलनाडु में थिरुमलाइकोडी (मलाइकोडी) वेल्लोर में छोटी पहाड़ियों के तल पर श्रीपुरम आध्यात्मिक पार्क में स्थित है। यह तिरुपति से 120 किमी, चेन्नई से 145 किमी, पुदुचेरी से 160 किमी और बेंगलुरु से 200 किमी दूर है। मंदिर में मुख्यतः देवी श्री लक्ष्मी नारायणी या महालक्ष्मी (धन की देवी) की अराधना की जाती है। महालक्ष्मी का महाकुंभ 24 अगस्त 2007 को आयोजित किया गया था। सभी धर्मों के भक्तों का इस मंदिर में स्वागत किया जाता है। अनुमानतः यह मंदिर 1,500 किलोग्राम शुद्ध सोने से सुसज्जित है, जबकि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के गुंबद को 750 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है।

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

इस मंदिर को बनाने में लगभग 7 साल का समय लगा और साल 2007 में इस मंदिर का उद्घाटन किया गया। यह मंदिर महालक्ष्मी को समर्पित है। इस मंदिर की वास्तुकला भी बेहद अद्वितीय है। इस मंदिर के दोनों हिस्सों को सोने की पन्नी से कवर किया गया है। जबकि, मंदिर के गर्भ गृह में देवी महालक्ष्मी की एक दिव्य मूर्ति स्थापित है। आपको बता दें कि बीच में मंदिर और चारों तरफ से बेहतरीन पार्क मौजूद है। यह मंदिर देखने में जितना प्यारा है, उतना ही इस मंदिर की मान्यता भी है।

दक्षिण भारत के इस स्वर्ण मंदिर का नाम श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर है, जो कुछ हद तक बिल्कुल वैसी ही है, जैसे अमृतसर का स्वर्ण मंदिर है। मतलब, जैसे स्वर्ण मंदिर के किनारे पर तालाब है, तो उसी प्रकार से यह मंदिर भी तालाब के बीचों-बीच स्थित है। लेकिन इ्स मंदिर के तालाब में आपको एक खास अंतर जरूर देखने को मिल जाएगा। दरअसल, अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के तालाब में आपको सुनहरी मछलियां देखने को मिलती है और वेल्लोर स्थित श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर के तालाब में आपको सोने-चांदी के आभूषण और रुपये-पैसे देखने को मिल जाएंगे।

इस स्वर्ण मंदिर का आकार बिल्कुल एक श्रीयंत्र की तरह दिखता है, जो बेहद आकर्षक है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार से मुख्य मंदिर की दूरी करीब 1.5 से 2 किमी. है। इस बीच रास्ते में तमाम जड़ी-बूटियां और कई प्रकार के दुर्गम पेड़-पौधे हैं। इतना ही नहीं, रास्ते में कई आध्यात्मिक संदेश लिखे हुए हैं। 

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

मंदिर का एक अलग ड्रेस कोड 

श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर में दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओें के लिए एक ड्रेस कोड रखा गया है, जिसे पहनने के बाद ही मंदिर में प्रवेश करना होता है। मंदिर के अंदर प्रवेश करते समय शॉर्ट पैंट, मिडी और केपरी पहनना सख्त मना है। इसके साथ मंदिर में मोबाइल, कैमरा, तंबाकू या ज्वलंत सामान ले जाना सख्त मना है।

इस स्वर्ण मंदिर की दीवारों पर जो सोने की परतें चढ़ाई गई है, वो मानव निर्मित है। नक्काशीदार तांबे की प्लेटों पर 9 परतों से 10 परतों तक सोने की पन्नी लगाई गई है। इस मंदिर में जो शिलालेख हैं, उनकी कला वेदों से ली गई है। इस पूरे मंदिर की डिजाइन नारायणी अम्मा द्वारा बनायी गई थी।

रात में इस मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है। रोशनी पड़ने यह मंदिर हजारों दिनों की तरह जगमगा उठता है मंदिर की सुरक्षा में 24 घंटे पुलिस और सिक्योरिटी कंपनियों का पहरा रहता है। 

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

English Translate

Gangaikonda Cholapuram or Gangaikondacholiswaram Temple

Sripuram spread over 100 acres and Shri Lakshmi Narayani temple made of 1500 kg gold

As soon as the name of Golden Temple comes, the first image that comes to mind is that of the Golden Temple of Amritsar. You all must have heard about the Golden Temple of Punjab, but there is a Hindu temple in our own country, which has more than 1500 kg of gold. This temple is the Golden Temple of Vellore in Tamil Nadu. The Golden Temple of Punjab is famous worldwide, but there is a temple in the South Indian state of our own country, it is also known as the Golden Temple.

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

"Mahalakshmi Golden Temple" located in Tamil Nadu of South India, which is also known as "Sripuram Golden Temple". This temple located in Vellore, Tamil Nadu is also famous as a unique structure and an excellent spiritual center. The history of Sripuram Golden Temple is also very interesting. It is said that the idea of ​​building this wonderful and unique golden temple came to Narayani Amma, after which it was decided to build this huge temple.

This temple is located in Sripuram Spiritual Park at the foot of small hills in Thirumalaikodi (Malaikodi) Vellore in Tamil Nadu, India. It is 120 km from Tirupati, 145 km from Chennai, 160 km from Puducherry and 200 km from Bengaluru. Goddess Sri Lakshmi Narayani or Mahalakshmi (Goddess of wealth) is mainly worshiped in the temple. Maha Kumbh of Mahalakshmi was held on 24 August 2007. Devotees of all religions are welcomed in this temple. It is estimated that this temple is decorated with 1,500 kg of pure gold, while the dome of the Golden Temple of Amritsar has been decorated with 750 kg of gold.

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

It took about 7 years to build this temple and this temple was inaugurated in the year 2007. This temple is dedicated to Mahalakshmi. The architecture of this temple is also very unique. Both parts of this temple are covered with gold foil. Whereas, a divine idol of Goddess Mahalakshmi is installed in the sanctum sanctorum of the temple. Let us tell you that there is a temple in the middle and a wonderful park all around. This temple is as beautiful to look at as it is popular.

The name of this golden temple of South India is Sripuram Golden Temple, which is to some extent exactly like the Golden Temple of Amritsar. Meaning, just like there is a pond on the banks of the Golden Temple, similarly this temple is also situated in the middle of the pond. But you will definitely get to see a special difference in the pond of this temple. Actually, you get to see golden fishes in the pond of the Golden Temple located in Amritsar and you will get to see gold-silver ornaments and money in the pond of Sripuram Golden Temple located in Vellore.

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

The shape of this golden temple looks exactly like a Sriyantra, which is very attractive. The distance from the entrance of this temple to the main temple is about 1.5 to 2 km. Meanwhile, there are many herbs and many types of inaccessible trees and plants on the way. Not only this, many spiritual messages are written on the way.

A separate dress code of the temple

A dress code has been kept for the devotees to visit Sripuram Golden Temple, which has to be worn only after entering the temple. Wearing short pants, midi and capri is strictly prohibited while entering the temple. Along with this, carrying mobile, camera, tobacco or inflammable items in the temple is strictly prohibited.

The gold layers on the walls of this Golden Temple are man-made. 9 to 10 layers of gold foil have been applied on carved copper plates. The art of the inscriptions in this temple is taken from the Vedas. The design of this entire temple was made by Narayani Amma.

गंगईकोंडा चोलपुरम या गंगईकोंडाचोलीस्वरम मंदिर, तमिलनाडु || दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर

The beauty of this temple at night is worth seeing. When the light falls on this temple, it shines like a thousand days. The temple is guarded by police and security companies 24 hours a day.

लार का महत्व (Saliva) || By Rajiv Dixit

लार का महत्व

लार ऐसी चीज़ है, जो हर दिन हर पल हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। लार स्वस्थ मुँह, अच्छे पाचन और बहुत कुछ के लिए ज़रूरी है। लार शरीर के लिए बहुत फ़ायदेमंद है। 
लार का महत्व (Saliva) || By Rajiv Dixit

लार क्या है? 

लार में 98 प्रतिशत पानी होता है। इसमें बलगम, प्रोटीन, खनिज, इलेक्ट्रोलाइट्स, जीवाणुरोधी यौगिक और एंजाइम सहित महत्वपूर्ण पदार्थों की थोड़ी मात्रा होती है। लार मुंह को आराम देने के लिए नमी प्रदान करती है, चबाने और निगलने के दौरान चिकनाई प्रदान करती है, और हानिकारक एसिड को बेअसर करती है। यह कीटाणुओं को भी मारती है और बदबूदार सांसों को रोकती है, दांतों की सड़न और मसूड़ों की बीमारी से बचाती है, इनेमल की रक्षा करती है और घाव भरने में तेजी लाती है।

लार का महत्व (Saliva) || By Rajiv Dixit
  1. लार दुनियाँ की सबसे अच्छी औषधि  है। इसमें औषधीय गुण बहुत अधिक है। किसी चोट पर लार लगाने से चोट ठीक हो जाती है। लार पैदा होने में एक लाख ग्रंथियों का काम होता है। जब कफ बहुत बढ़ा हुआ हो तभी आप इसे थूक सकते हैं। अन्यथा लार कभी नहीं धूकना चाहिए। सुबह की लार बहुत क्षारीय होती है, इसका PH 8.4 के आस पास होता है।
  2. पान बिना कत्था, सुपारी  और तंबाकू का खाना चाहिए, जिससे कि उसकी लार को थूकना ना पड़े। कत्था  और जर्दा कैंसर करता है, इसलिए इसे लार के साथ अंदर नहीं ले सकते हैं। गहरे रंग की वनस्पतियां कैंसर, मधुमेह, अस्थमा जैसी बीमारियों से बचाती हैं। पान कफ और पित्त दोनों का ही नाश करता है। चूना वात का नाश करता है। जिस वनस्पति का रंग जितना ज्यादा गहरा हो, वह उतनी ही बड़ी औषधि है। देसी पान (गहरे रंग वाला जो कसैला हो) गेहूं के दाने के बराबर चूना, सौंफ, अजवाइन, लौंग,  बड़ी इलायची, गुलाब के फूल का रस मिलाकर खाएं।
  3. ब्रह्म मुहूर्त अथवा सुबह उठते ही मुंह में जो लार होती है, वह बाकी के समय से ज्यादा फायदेमंद होती है। इसलिए सुबह उठते ही यह लार अंदर जानी ही चाहिए।
  4. शरीर के घाव जो कि किसी दवा से ठीक नहीं हो रहे हो, उन पर सुबह उठते ही अपनी बासी मुंह की लार लगानी चाहिए। 15-20 दिन में घाव भरने लगता है और 3 महीने के अंदर घाव पूरा ही ठीक हो जाता है।  गैंग्रीन जैसी बीमारियां 2 साल में ठीक हो जाएगी। जानवर अपने सब घाव चाट चाट कर ही ठीक कर लेते हैं।
  5. लार में वही 18 पोषक तत्व होते हैं जो कि मिट्टी में होते हैं। शरीर पर किसी भी प्रकार के दाग  धब्बे हो तो सुबह की लार लगाते रहने से 1 साल के अंदर सब ठीक कर देती है। एग्जिमा और सोरायसिस जैसी बीमारियों को भी सुबह की लार से ठीक कर सकते हैं। 1 साल के अंदर परिणाम मिल जाते हैं।
  6. सुबह की लार आंखों में लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है और आंखों के चश्मे उतर जाते हैं। आंखें लाल होने की बीमारी सुबह के लार लगाने से 24 घंटों के अंदर ठीक होती है। सुबह सुबह की लार आंखें टेढ़ी हो अर्थात  अर्थात आंखों में भेंगापन की बीमारी हो तो उसको भी सही कर देती है।
  7. आंखों के नीचे के काले धब्बों के लिए रोज सुबह की लार (बासी) लगाएं। सुबह उठने के 48 मिनट के बाद मुंह की लार की क्षारीयता कम हो जाती है।
  8. जितने भी टूथपेस्ट हैं सब एंटी एल्कलाइन हैं, इसमें एक केमिकल होता है, सोडियम लारेल सल्फेट जो लार की ग्रंथियों को सूखा देता है। नीम की दातून चबाते समय बनने वाली लार को पीते रहना चाहिए।

इन 10 दिक्कतों से बचाती है मुंह में बनने वाली लार(अमर उजाला पोस्ट )

मुंह में बनने वाली लार हमारी सेहत के लिए कितनी फायदेमंद है इस बारे में हम कभी ध्यान ही नहीं देते लेकिन अगर शरीर में इसकी कमी हो जाए तो मुंह का स्वाद बरकरार रखने से लेकर कई बीमारियों और संक्रमणों का खतरा हो सकता है। आइए जानें, लार बनने के ऐसे 10 फायदे जो आपको स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाए रखने में मददगार है।

1. कैंसर से लड़ने में मदद करती है लार
जापान के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में माना है कि मुंह में मौजूद लार कार्सिनोजेन में मौजूद सुपरऑक्साइड फ्री रेडिकल्स से लड़ते हैं जिससे कैंसर होने का रिस्क कम होता है।
भोजन को रोज 30 मिनट तक चबाकर खाने से मुंह में लार बनती है जो खाते वक्त ही कैर्सिनोजेनिक तत्वों को खत्म करने में मदद करती है।
कार्सिनोजेन डाइट के हानिकारक तत्वों के संक्रमण से लार न सिर्फ मुंह को साफ करती है बल्कि 30 मिनट तक पेट में भी यह प्रक्रिया चलती है।

2. दांतों की रक्षा करती है लार
लार में सोडियन, पोटैशियम, फॉस्फेट, कैल्शियम, प्रोटीन, ग्लूकोज जैसे तत्व होते हैं जो दांतों को मजबूत बनाते हैं। इसमें मौजूद एंटीबॉडीज दांतों को हानिकारक संक्रमणों से बचाते हैं जिससे दांत सड़ते नहीं। यह दांतों पर सुरक्षा कवच की तरह काम करती है।

3. पाचन में फायदेमंद
लार मुंह में भोजन के कणों को तोड़ने में मदद करती है जिससे खाने को पचाने में आसानी होती है। अगर शरीर में लार की कमी हो जाए तो भोजन निगलना मुश्किल हो जाता है और पाचन क्रिया प्रभावित होती है।

4. एंटी एजिंग
लार में 'सलाइवा पैरोटिड ग्लैंड हार्मोन' (एसपीजीएच) पाया जाता है जो त्वचा से उम्र के प्रभावों को कम करते है और आप लंबे समय तक युवा दिख सकते हैं।

5. मसूड़े और गले के लिए फायदेमंद
लार में लाइसोजाइम नामक एंटीबैक्टीरियल तत्व और इम्यून प्रोटीन ए होते हैं जो मसूड़े और गले को कई प्रकार के हनिकारक संक्रमणों से बचाते हैं।

6. मुंह साफ रखती है लार
किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के मुंह में प्रतिदिन 1000 से 1500 मिलीलटर लार बनती है जो मुंह में मौजूद कैविटी, हानिकारक बैक्टीरिया और बारीक भोजन के कणों को साफ करने में मदद करती है। 

7. सेहत का राज बता सकती है लार
जिस तरह किसी शारारिक समस्या का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है, उसी तरह लार के टेस्ट से भी सेहत का हाल पता चल सकता है। खासतौर पर एचआईवी के इलाज में लार के टेस्ट का बहुत महत्व है। अब वैज्ञानिक डायबिटीज, दिल के रोग और कैंसर जैसे रोगों का लार से परीक्षण करने की कोशिश कर रहे हैं।

8. चोट में आराम पहुंचाती है
डच शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि लार का मदद से किसी भी प्रकार की ब्लीडिंग या चोट से रिकवरी आसान होती है। यह मुंह में होने वाली ब्लीडिंग को रोकने में मदद करती है और चेट वाले भाग को संक्रमण से बचाती है। साथ ही, इसका इस्तेमाल चोट लगे हुए हिस्से की सफाई के लिए भी कर सकते हैं।

9. सांसों की बदबू से छुटकारा
कई बार मुंह में लार कम बनने से भी सांसों से बदबू की समस्या हो सकती है। मुंह में रह गए भोजन के कण और बैक्टीरिया कई बार इन्फेक्शन पैदा कर देते हैं जिससे भी सांसों से बदबू आती है। लार इन कणों और बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करती है।

10. बोलने में मदद करती है
लार बनने से मुंह और गले में नमीं बरकरार रहती है जिससे हमें बोलने में आसानी होती है। हां, बहुत अधिक लार बनने से जरूर बोलने में दिक्कत हो सकती है, इस बात से भी गुरेज नहीं किया जा सकता है।

Importance of saliva

Saliva is something that affects our health every moment of every day. Saliva is essential for a healthy mouth, good digestion and much more. Saliva is very beneficial for the body.

लार का महत्व (Saliva) || By Rajiv Dixit

What is saliva?

Saliva is 98 percent water. It contains small amounts of important substances including mucus, proteins, minerals, electrolytes, antibacterial compounds and enzymes. Saliva provides moisture to soothe the mouth, lubricates during chewing and swallowing, and neutralizes harmful acids. It also kills germs and prevents bad breath, prevents tooth decay and gum disease, protects enamel and speeds up wound healing.

Saliva is the best medicine in the world. It has a lot of medicinal properties. Applying saliva on an injury heals the injury. One lakh glands work to produce saliva. You can spit it only when the phlegm is very high. Otherwise, saliva should never be spit out. Morning saliva is very alkaline, its pH is around 8.4.

Paan should be eaten without catechu, betel nut and tobacco, so that the saliva does not have to be spit. Catechu and zarda cause cancer, so it cannot be taken inside with saliva. Dark coloured plants protect against diseases like cancer, diabetes, asthma. Paan destroys both phlegm and bile. Lime destroys Vata. The darker the colour of the plant, the better medicine it is. Eat Desi Paan (dark coloured which is astringent) by mixing lime equal to a grain of wheat, fennel, celery, cloves, big cardamom, rose flower juice.

The saliva in the mouth during Brahma Muhurta or as soon as you wake up in the morning is more beneficial than the rest of the time. Therefore, this saliva must be taken inside as soon as you wake up in the morning.

The wounds of the body which are not getting cured by any medicine, should be applied with the stale saliva of the mouth as soon as you wake up in the morning. The wound starts healing in 15-20 days and within 3 months the wound is completely cured. Diseases like gangrene will be cured in 2 years. Animals cure all their wounds by licking them.
लार का महत्व (Saliva) || By Rajiv Dixit

Saliva contains the same 18 nutrients that are present in the soil. If there are any kind of marks and spots on the body, then applying the morning saliva cures them within 1 year. Diseases like eczema and psoriasis can also be cured with morning saliva. Results are obtained within 1 year.

Applying morning saliva to the eyes improves eyesight and eyeglasses can be removed. The problem of red eyes is cured within 24 hours by applying morning saliva. If the eyes are crooked, that is, if there is a problem of squinting in the eyes, then morning saliva cures that too.

For the black spots under the eyes, apply morning saliva (stale) daily. After 48 minutes of waking up in the morning, the alkalinity of the saliva in the mouth decreases. All the toothpastes are anti-alkaline, it contains a chemical, sodium laurel sulphate which dries the salivary glands. The saliva formed while chewing neem twigs should be drunk.

The saliva formed in the mouth protects from these 10 problems (Amar Ujala Post)

We never pay attention to how beneficial the saliva formed in the mouth is for our health, but if there is a deficiency of it in the body, then there can be a risk of many diseases and infections, from maintaining the taste of the mouth. Let us know, such 10 benefits of saliva formation which are helpful in keeping you safe from health related problems.

1. Saliva helps in fighting cancer

Japanese scientists have accepted in their study that the saliva present in the mouth fights the superoxide free radicals present in the carcinogen, which reduces the risk of cancer.

Chewing food for 30 minutes every day produces saliva in the mouth, which helps in eliminating carcinogenic elements while eating.

Saliva not only cleans the mouth from the infection of harmful elements of carcinogen diet, but this process also continues in the stomach for 30 minutes.

2. Saliva protects teeth

Saliva contains elements like sodium, potassium, phosphate, calcium, protein, glucose which make the teeth strong. The antibodies present in it protect the teeth from harmful infections due to which the teeth do not decay. It acts like a protective shield on the teeth.

3. Beneficial in digestion

Saliva helps in breaking down food particles in the mouth, which makes it easier to digest food. If there is a lack of saliva in the body, then it becomes difficult to swallow food and the digestive process is affected.

4. Anti-aging

'Saliva Parotid Gland Hormone' (SPGH) is found in saliva which reduces the effects of ageing from the skin and you can look young for a long time.

5. Beneficial for gums and throat

Saliva contains antibacterial element called lysozyme and immune protein A which protects gums and throat from many types of harmful infections.

6. Saliva keeps the mouth clean

Every day 1000 to 1500 ml saliva is produced in the mouth of any healthy person which helps in cleaning cavities, harmful bacteria and fine food particles present in the mouth.

7. Saliva can reveal the secret of health

Just like blood test is done to detect any physical problem, in the same way, health condition can also be known through saliva test. Saliva test is especially important in the treatment of HIV. Now scientists are trying to test diseases like diabetes, heart disease and cancer through saliva.

8. Provides relief in injury
Dutch researchers have found in their study that recovery from any type of bleeding or injury is easy with the help of saliva. It helps in stopping bleeding in the mouth and protects the injured part from infection. Also, it can be used for cleaning the injured part.

9. Get rid of bad breath
Sometimes, due to less saliva in the mouth, the problem of bad breath can also occur. Food particles and bacteria left in the mouth sometimes cause infection, which also causes bad breath. Saliva helps in eliminating these particles and bacteria.

10. Helps in speaking
The formation of saliva keeps the mouth and throat moist, which makes it easier for us to speak. Yes, too much saliva can definitely cause difficulty in speaking, this also cannot be denied.

इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"

इंजीनियर डाॅ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया

जन्म: 15 सितंबर 1861, मुद्देनहल्ली, मैसूर राज्य, ब्रिटिश भारत
मृत्यु:  14 अप्रैल 1962 (आयु: 100 वर्ष), बैंगलोर, मैसूर राज्य, भारत (वर्तमान कर्नाटक, भारत)

इंजीनियर डाॅ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया भारत के पहले इंजीनियर थे। इन्हीं की जयंती (15 सितंबर) पर हर साल "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)" मनाया जाता है। इंजीनियर विश्वेश्वरय्या का पूरा नाम मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या था। आज 15 सितंबर को अभियन्ता दिवस (इंजीनियर्स डे) उन्हीं को याद करते हुए मनाया जाता है। 
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"
1911 में डैम बनाना आसान नहीं था, क्योंकि उस समय देश में सीमेंट नहीं बनता था। बावजूद इसके देश के पहले इंजीनियर डाॅ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने हार नहीं मानी। उन्होंने सहयोगी इंजीनियरों के साथ मिलकर माेर्टार तैयार कर दिया, जो सीमेंट से कहीं ज्यादा मजबूत था। मोर्टार एक पेस्ट है, जो पत्थरों, ईंटों और कंक्रीट चिनाई इकाइयों जैसे बिल्डिंग ब्लॉक्स को उनके बीच अनियमित अंतराल को भरने और सील करने के काम आता है। उनके वजन को समान रूप से फैलाता है और कभी-कभी दीवारों पर सजावटी रंग या पैटर्न जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसे आम तौर पर पानी के साथ चूना, रेत वगैरह से बनाया जाता है। उसी मोर्टार से कृष्णा राजा सागर बांध का निर्माण किया। कर्नाटक के मैसूर में उस समय बना यह बांध एशिया का सबसे बड़ा बांध था।
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"
वो मैसूर के 19वें दीवान थे, जिनका कार्यकाल साल 1912 से 1918 के बीच रहा। उन्हें न सिर्फ़ 1955 में "भारत रत्न" की उपाधि से सम्मानित किया गया, बल्कि सार्वजनिक जीवन में योगदान के लिए किंग जॉर्ज पंचम ने उन्हें ब्रिटिश इंडियन एम्पायर के “नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर (केसीआईई)” सम्मान से भी नवाज़ा। 

वो मांड्या ज़िले में बने कृष्णराज सागर बांध के निर्माण के मुख्य स्तंभ माने जाते हैं। विश्वेश्वरय्या के पिता जी संस्कृत के जानकार थे। वो 12 साल के थे जब उनके पिता का निधन हो गया। शुरुआती पढ़ाई चिकबल्लापुर में करने के बाद वो बैंगलोर चले गए, जहां से उन्होंने 1881 में बीए डिग्री हासिल की। इसके बाद पुणे गए, जहां कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग में पढ़ाई की। 

उन्होंने बॉम्बे में पीडब्ल्यूडी से साथ काम किया और उसके बाद भारतीय सिंचाई आयोग में गए। दक्षिण भारत के मैसूर को एक विकसित और समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है। तब कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फ़ैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ़ मैसूर समेत कई संस्थान उनकी कोशिशों का नतीजा हैं। 

इन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहा जाता है। जब वो 32 साल के थे, तब उन्होंने सिंधु नदी से सक्खर कस्बे को पानी भेजने का प्लान तैयार किया, जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था दुरुस्त बनाने के लिए एक समिति बनाई जिसके तहत उन्होंने एक नया ब्लॉक सिस्टम बनाया। उन्होंने स्टील के दरवाज़े बनाए जो बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करते थे। उनके इस सिस्टम की तारीफ़ ब्रिटिश अफ़सरों ने भी की।  विश्वेश्वरय्या ने मूसी और एसी नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान बनाया। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ़ इंजीनियर नियुक्त किया गया। 
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया उद्योग को देश की जान मानते थे, इसीलिए उन्होंने पहले से मौजूद उद्योगों जैसे सिल्क, चंदन, मेटल, स्टील आदि को जापान व इटली के विशेषज्ञों की मदद से और अधिक विकसित किया। 
उन्होंने बैंक ऑफ़ मैसूर खुलवाया और इससे मिलने वाले पैसे का उपयोग उद्योग-धंधों को बढ़ाने में किया गया।  1918 में वो दीवान पद से सेवानिवृत्त हो गए। 

उनके जीवन से संबंधित रेल का एक किस्सा है, जिसके बगैर यह आर्टिकल अधूरा रह जायेगा और यह क़िस्सा काफ़ी मशहूर है। ब्रिटिश भारत में एक रेलगाड़ी चली जा रही थी जिसमें ज़्यादातर अंग्रेज़ सवार थे। एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफ़िर गंभीर मुद्रा में बैठा था, जो विश्वेश्वरैया जी थे। सांवले रंग और मंझले कद के वो मुसाफ़िर सादे कपड़ों में थे और वहां बैठे अंग्रेज़ उन्हें मूर्ख और अनपढ़ समझकर मज़ाक उड़ा रहे थे, पर वो किसी पर ध्यान नहीं दे रहे थे। 

लेकिन अचानक ही उस व्यक्ति ने उठकर गाड़ी की ज़ंजीर खींच दी। तेज़ रफ्तार दौड़ती ट्रेन कुछ ही पलों में रुक गई। सभी यात्री चेन खींचने वाले को भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड आ गया और सवाल किया कि ज़ंजीर किसने खींची। उन्होंने उत्तर दिया, ''मैंने'' वजह पूछी तो उन्होंने बताया, ''मेरा अंदाज़ा है कि यहां से लगभग कुछ दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।''
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"
गार्ड ने पूछा, ''आपको कैसे पता चला?'' वो बोले, ''गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आया है और आवाज़ से मुझे ख़तरे का आभास हो रहा है।'' गार्ड उन्हें लेकर जब कुछ दूर पहुंचा तो देखकर दंग रह गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं। 

English Translate

Engineer Dr. Mokshagundam Visvesvaraya

Born: 15 September 1861, Muddenahalli, Mysore State, British India
Death: 14 April 1962 (age: 100 years), Bangalore, Mysore State, India (present Karnataka, India)

Engineer Dr. Mokshagundam Visvesvaraya was the first engineer of India. Every year "Engineers Day" is celebrated on his birth anniversary (15 September). Engineer Visvesvaraya's full name was Mokshagundam Visvesvaraya. Today, on 15 September, Engineers Day is celebrated in his memory.
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"
Building a dam in 1911 was not easy, because at that time cement was not manufactured in the country. Despite this, the country's first engineer Dr. Mokshagundam Visvesvaraya did not give up. Along with fellow engineers, he prepared a mortar, which was much stronger than cement. Mortar is a paste used to join building blocks such as stones, bricks and concrete masonry units to fill and seal the irregular gaps between them, spread their weight evenly and is sometimes used to add decorative colours or patterns to walls. It is usually made from water with lime, sand etc. Krishna Raja Sagar Dam was constructed with the same mortar. This dam built in Mysore, Karnataka was the largest dam in Asia at that time.

He was the 19th Diwan of Mysore, whose tenure lasted from 1912 to 1918. He was not only awarded the title of "Bharat Ratna" in 1955, but King George V also awarded him the "Knight Commander of the Order of the Indian Empire (KCIE)" honour of the British Indian Empire for his contribution to public life.

He is considered to be the main pillar of the construction of the Krishnaraja Sagar Dam built in Mandya district. Visvesvaraya's father was a scholar of Sanskrit. He was 12 years old when his father died. After completing his early education in Chikballapur, he went to Bangalore, from where he obtained a BA degree in 1881. After this he went to Pune, where he studied at the College of Engineering.

He worked with PWD in Bombay and then went to the Indian Irrigation Commission. He played an important role in making Mysore in South India a developed and prosperous region. Many institutions including Krishnaraja Sagar Dam, Bhadravati Iron and Steel Works, Mysore Sandal Oil and Soap Factory, Mysore University, Bank of Mysore are the result of his efforts.

He is also called Bhagiratha of Karnataka. When he was 32 years old, he prepared a plan to send water from the Indus River to Sakkhar town, which was liked by all the engineers. The government formed a committee to improve the irrigation system under which he created a new block system. He made steel doors which helped in stopping the flow of water from the dam. His system was also praised by British officers. Visvesvaraya also made a plan to dam the water of two rivers named Musi and Asi. After this he was appointed Chief Engineer of Mysore.

Engineer Mokshagundam Visvesvaraya considered industry to be the life of the country, that is why he further developed the already existing industries like silk, sandalwood, metal, steel etc. with the help of experts from Japan and Italy.

He opened the Bank of Mysore and the money received from it was used to expand industries. In 1918, he retired from the post of Diwan.

There is a railway incident related to his life, without which this article would remain incomplete and this incident is quite famous. A train was running in British India in which most of the British were travelling. An Indian passenger was sitting in a compartment in a serious posture, who was Visvesvaraya ji. That passenger of dark complexion and medium height was in plain clothes and the Britishers sitting there were making fun of him thinking him to be a fool and illiterate, but he was not paying attention to anyone.

But suddenly that person got up and pulled the chain of the train. The fast moving train stopped in a few moments. All the passengers started abusing the person who pulled the chain. After some time the guard came and asked who pulled the chain. He replied, "I" When asked the reason, he told, "I guess that the railway track is uprooted at some distance from here."

The guard asked, "How did you know?" He said, "There has been a difference in the natural speed of the train and I am getting a feeling of danger from the sound." When the guard took them some distance, he was stunned to see that actually the joints of the railway track were open at one place and all the nuts and bolts were scattered.

पांच लाख श्लोकों वाले महाभारत का सार मात्र नौ पंक्तियों में समझें

पांच लाख श्लोकों वाले महाभारत का सार मात्र नौ पंक्तियों में समझें:

चाहे हिंदू हों या किसी अन्य धर्म से,

चाहे महिला हों या पुरुष,

चाहे गरीब हों या अमीर,

चाहे अपने देश में हों या विदेश में, फर्क नहीं पड़ता 

संक्षेप में, हम सब एक इंसान हैं। 

यहाँ महाभारत के पांच लाख श्लोकों को किसी ने बाखूबी 9 लाइनों में व्यक्त किया है और अनमोल "9 मोती" नाम दिया है। वाकई में ये नौ वाक्य महाभारत का सार व्यक्त कर रहें हैं, एक बार अवश्य पढ़ें।  

पांच लाख श्लोकों वाले महाभारत का सार मात्र नौ पंक्तियों में समझें

1. अगर समय रहते अपने बच्चों की अनुचित मांगों और इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखते हैं, तो हम जीवन में असहाय हो जाएंगे... "कौरव"

2. हम चाहे कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, अगर अधर्म का साथ देंगे, तो हमारी ताकत, हथियार, कौशल और आशीर्वाद सब बेकार हो जाएंगे... "कर्ण"

3. अपने बच्चों को इतना महत्वाकांक्षी न बनाएं कि वे अपने ज्ञान का दुरुपयोग करें और कुल विनाश का कारण बनें... "अश्वत्थामा"

4. कभी भी ऐसे वादे न करें कि आपको अधर्मियों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़े... "भीष्म पितामह"

5. धन, शक्ति, अधिकार का दुरुपयोग और गलत काम करने वालों का समर्थन अंततः पूर्ण विनाश की ओर ले जाता है... "दुर्योधन"

6. सत्ता की बागडोर कभी भी किसी अंधे व्यक्ति को न सौंपें, अर्थात जो स्वार्थ, धन, अभिमान, ज्ञान, आसक्ति या वासना से अंधा हो, क्योंकि यह विनाश की ओर ले जाएगा... "धृतराष्ट्र"

7. यदि ज्ञान के साथ बुद्धि भी हो, तो आप निश्चित रूप से विजयी होंगे... "अर्जुन"

8. छल आपको हर समय सभी मामलों में सफलता नहीं दिलाएगा... "शकुनि"

9. यदि आप नैतिकता, धर्म और कर्तव्य को सफलतापूर्वक बनाए रखते हैं, तो दुनिया की कोई भी शक्ति आपको नुकसान नहीं पहुँचा सकती... "युधिष्ठिर"

यह लेख सभी के लिए लाभदायक है, इसलिए कृपया इसे बिना किसी बदलाव के साझा करें।  "सर्वे भवन्तु सुखिनः - सर्वे सन्तु निरामयाः।" 

अरुणाचल प्रदेश का राजकीय फूल " फॉक्सटेल ऑर्किड (राइन्कोस्टाइलिस रेटुसा)" || State flower of Arunachal Pradesh "Foxtail Orchid (Rhynchostylisretusa)"

अरुणाचल प्रदेश का राजकीय फूल "फॉक्सटेल ऑर्किड"

सामान्य नाम:  फॉक्सटेल ऑर्किड
स्थानीय नाम: कोपौ, द्रौपदीमाला
वैज्ञानिक नाम: राइन्कोस्टाइलिस रेटुसा

अरुणाचल प्रदेश राज्य अपनी अविश्वसनीय प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध संस्कृति और अद्वितीय जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। अरुणाचल प्रदेश का शाब्दिक अर्थ है उगते हुए सूरज की भूमि। यह दो शब्दों में मिलकर बना है अरुण: भगवान सूर्य का पुत्र और अंचल: क्षेत्र या प्रदेश। इस राज्य को भारत का फिनलैंड भी कहा जा सकता है क्योंकि सर्दियों के समय में इस राज्य का ज्यादातर हिस्सा बर्फ से ढंक जाता है। हर राज्य की तरह अरुणाचल प्रदेश का अपना राजकीय प्रतीक है। 
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय फूल " फॉक्सटेल ऑर्किड (राइन्कोस्टाइलिस रेटुसा)" || State flower of Arunachal Pradesh "Foxtail Orchid (Rhynchostylisretusa)"

अरुणाचल प्रदेश के राजकीय प्रतीक

राजकीय पक्षी: हॉर्नबिल (बुसेरोस बाइकोर्निस)
राजकीय वृक्ष: होलॉन्ग (डिप्टरोकार्पस मैक्रोकार्पस)
राजकीय पशु: मिथुन (बोस फ्रंटालिस)
राजकीय फूल: फॉक्सटेल ऑर्किड (राइन्कोस्टाइलिस रेटुसा)

भारत के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित अरुणाचल प्रदेश राज्य का राज्य पुष्प "फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड" है। सनातनी धर्म की मान्यताओं व विश्वास के चलते इस फूल को हिंदी में "द्रौपदीमाला" कहते हैं। द्रोपदी के गजरे पर सजने वाला ये पुष्प मां सीता काे भी बेहद प्रिय था। Rhynchostylis retusa बोटानिकल नाम से विख्यात ये पुष्प फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड के नाम से दुनियाभर मे जाना जाता है।वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया व भारत के अरुणाचल प्रदेश, आसाम व बंगाल में ये बहुतायत में प्राकृतिक रूप से उगता है। अरुणाचल प्रदेश व आसाम का ये “राज्य पुष्प” है। 
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय फूल " फॉक्सटेल ऑर्किड (राइन्कोस्टाइलिस रेटुसा)" || State flower of Arunachal Pradesh "Foxtail Orchid (Rhynchostylisretusa)"
अरुणाचल प्रदेश को “ऑर्किड का स्वर्ग” कहा जाता है, क्योंकि यहाँ ऑर्किड की लगभग 622 (जो देश की आर्किड प्रजातियों का लगभग 40% है) पाई जाती हैं, और अनुमान है कि आर्किड प्रजातियों की सबसे अधिक संख्या निचले सुबनसिरी जिले के जीरो घाटी में पाई जाती है। वास्तव में, यह राज्य वनस्पति विज्ञानियों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है।

विभिन्न भारतीय नृत्यों में महिलएं इस फूल का श्रृंगार कर नाचती गाती हैं। इस कड़ी में असम का बीहू नृत्य है जो दुनियाभर में प्रसिद्ध है। सांस्कृतिक कार्यक्रम से लेकर शुभ अवसर पर यहां की महिलाएं बीहू नृत्य करती हैं । मान्यताओं के मुताबिक इस दौरान महिलाएं बालों में इस फूल को जरूर लगाती है। इस फूल को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। एक मान्यता ये भी है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम पंचवटी नासिक में रूके थे। तब सीता मां ने भी इस फूल का इस्तेमाल किया था। जिस वजह से इसे सीतावेणी भी कहा जाता है।

यह एक एपिफाइट जड़ी बूटी है, जिसे गुलाबी, सफेद, बैंगनी या बकाइन रंग के साथ देखा जा सकता है, जो एक दूसरे से सटे होते हैं और 30-40 सेमी तक लंबे होते हैं। उनके प्राकृतिक आवास नम, छायादार, पर्णपाती जंगल और उपवन हैं, जहाँ जून-जुलाई में फूल और फल लगते हैं।

इसकी फॉक्सटेल जैसी लंबी, फूली हुई, डूबती हुई पुष्पक्रम आकृति के कारण इसे फॉक्सटेल ऑर्किड कहा जाता है। अरुणाचल की पड़ोसी बहन, असम भी इसे अपना राज्य फूल मानता है और यह उनकी संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण मूल्य रखता है।

English Translate

State flower of Arunachal Pradesh "Foxtail Orchid"


Common Name: Foxtail Orchid
Local Name: Kopau
Scientific Name: Rhynchostylis retusa


The state of Arunachal Pradesh is famous for its incredible natural beauty, rich culture and unique biodiversity. Arunachal Pradesh literally means the land of the rising sun. It is made up of two words Arun: son of Lord Sun and Anchal: region or territory. This state can also be called the Finland of India because most of this state is covered with snow during winters. Like every state, Arunachal Pradesh has its own state emblem.
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय फूल " फॉक्सटेल ऑर्किड (राइन्कोस्टाइलिस रेटुसा)" || State flower of Arunachal Pradesh "Foxtail Orchid (Rhynchostylisretusa)"

State symbols of Arunachal Pradesh

State bird: Hornbill (Buceros bicornis)
State tree: Hollong (Dipterocarpus macrocarpus)
State animal: Mithun (Bos frontalis)
State flower: Foxtail orchid (Rhynchostylis retusa)

The state flower of Arunachal Pradesh, located in the northeastern part of India, is Foxtail Orchid. Due to the beliefs and faith of Sanatani Dharma, this flower is called Draupadimala in Hindi. This flower, which adorned Draupadi's garland, was also very dear to Mother Sita. Known by the botanical name Rhynchostylis retusa, this flower is known worldwide as Foxtail Orchid. It grows naturally in abundance in Vietnam, Malaysia, Indonesia and Arunachal Pradesh, Assam and Bengal of India. It is the "State Flower" of Arunachal Pradesh and Assam.

Arunachal Pradesh is called the "Paradise of Orchids" because about 622 orchid species (which is about 40% of the country's orchid species) are found here, and it is estimated that the highest number of orchid species is found in the Zero Valley of Lower Subansiri district. In fact, this state is a center of attraction for botanists.

In various Indian dances, women sing and dance adorned with this flower. In this series, there is the Bihu dance of Assam which is famous all over the world. From cultural programs to auspicious occasions, women here perform Bihu dance. According to beliefs, during this time women definitely wear this flower in their hair. This flower is also considered a symbol of love. There is also a belief that during the exile, Lord Shri Ram stayed in Panchvati Nashik. Then Sita Maa also used this flower. Due to which it is also called Sitaveni.
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय फूल " फॉक्सटेल ऑर्किड (राइन्कोस्टाइलिस रेटुसा)" || State flower of Arunachal Pradesh "Foxtail Orchid (Rhynchostylisretusa)"
It is an epiphyte herb, spotted with pink, white, purple or lilac colour, growing closely together and up to 30-40 cm long. Their natural habitat is moist, shady, deciduous forests and groves, where flowering and fruiting occur in June-July.

It is called foxtail orchid because of its foxtail-like long, fluffy, drooping inflorescence shape. Arunachal's sister neighbour, Assam also considers it as their state flower and it holds significant value for their culture.

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..आखिरी हिला

मानसरोवर-1 ..आखिरी हिला

आखिरी हीला - मुंशी प्रेमचंद | Aakhiri Hila by Munshi Premchand

यद्यपि मेरी स्मरण-शक्ति पृथ्वी के इतिहास की सारी स्मरणीय तारीख़े भूल गयी, वे तारीख़े जिन्हें रातों का जागकर औऱ मस्तिष्क को खपाकर याद किया था; मगर विवाह की तिथि समतल भूमि में एक स्तम्भ की भाँति अटल हैं। न भूलता हूँ, न भूल सकता हूँ । उससे पहले और पीछे की सारी घटनाएँ दिल से मिट गयीं, उनका निशान तक बाकी नहीं। वह सारी अनेकता एक एकता में मिश्रित हो गयी हैं और वह मेरे विवाह की तिथि हैं। चाहता हूँ उसे भूल जाऊँ, मगर जिस; तिथि का नित्यप्रति सुमिरन किया जाता हो, वह कैसे भूल जाय? नित्यप्रति सुमिरन क्यों करता हूँ, यह उस विपत्ति-मारे से पूछिए, जिसे भगवद्-भजन के सिवा जीवन के उद्धार का कोई आधार न रहा हो।

आखिरी हीला - मुंशी प्रेमचंद | Aakhiri Hila by Munshi Premchand

लेकिन क्या मैं वैवाहिक जीवन से इसलिए भागता हूँ कि मुझमें रसिकता का अभाव हैं और कोमल वर्ग की मोहिनी शक्ति से निर्लिप्त हूँ और अनासक्ति का पद प्राप्त कर चुका हूँ ? क्या मैं नहीं चाहता कि जब मैं सैर करने निकलूँ तो हृदयेश्वरी भी मेरे साथ विराजमान हो? विलास-वस्तुओं की दुकानों पर उनके साथ जाकर थोड़ी देर के लिए रसमय आग्रह का आनन्द उठाऊँ। मैं उस गर्व और आनन्द और महत्त्व को अनुमान कर सकता हूँ जो मेरे अन्य भाईयों की भाँति, मेरे हृदय में भी आन्दोलित होगा, लेकिन मेरे भाग्य में वह खुशियाँ- वह रँगरेलियाँ नहीं हैं।

क्योंकि चित्र का दूसरा पक्ष भी तो देखता हूँ । एक पक्ष जितना ही मोहक और आकर्षक हैं, दूसरा उतना ही हृदयविदारक और भयंकर। शाम हुई और आप बदनसीब बच्चे को गोद में लिये तेल या ईधन की दुकान पर खड़े हैं। अँधेरा हुआ और आप आटे की पोटली बगल में दबाये हुए गलियों में यों कदम बढ़ाये हुए निकल जाते हैं, मानो चोरी की हैं। सूर्य निकला और बालकों को गोद में लिये होम्योपैथ डॉक्टर की दुकान में टूटी कुर्सी पर आरूढ़ हैं। किसी खोमचेवाले की रसीली आवाज़ सुनकर बालक ने गगनभेदी विलाप आरम्भ किया औऱ आपके प्राण सूखे। ऐसे बापों को भी देखा हैं जो दफ़्तर से लौटते हुए पैसे-दो पैसे की मूँगफली या रेवड़ियाँ लेकर लज्जास्पद शीध्रता के साथ मुँह में रखते चले जाते हैं कि घर पहुँचते- पहुँचते बालकों के आक्रमण से पहले ही यह पदार्थ समाप्त हो जाय। कितना निराशाजनक होता है यह दृश्य, जब देखता हूँ कि मेले में बच्चा किसी खिलौने की दुकान के सामने मचल रहा हैं और पिता महोदय ऋषियों की- सी विद्वता के साथ उनकी क्षणभंगुरता का राग आलाप रहे हैं।

आखिरी हीला - मुंशी प्रेमचंद | Aakhiri Hila by Munshi Premchand

चित्र का पहला रुख तो मेरे लिए एक मादक स्वप्न हैं, दूसरा रुख एक भयंकर सत्य। इस सत्य के सामने मेरी सारी रसिकता अन्तर्धान हो जाती हैं। मेरी सारी मौलिकता, सारी रचनाशीलता इसी दाम्पत्य के फन्दों से बचने के लिए प्रयुक्त हुई हैं। जानता हूँ कि जाल के नीचे जाना हैं, मगर जाल कितना ही रंगीन और ग्राहक हैं, दाना उतना ही घातक और विषैला। इस जाल में पक्षियों को तड़पते और फड़फड़ाते देखता हूँ और फिर डाली पर जा बैठता हूँ ।

लेकिन इधर कुछ दिनों से श्रीमतीजी ने अविश्रांत रूप से आग्रह करना शुरू किया है कि मुझे बुला लो। पहले जब छुट्टियों में जाता था, तो मेरा केवल ‘कहाँ चलोगी‘ कह देना उनकी चित्तशान्ति के लिए काफी होता था, फिर मैंने ‘झंझट हैं‘ कहकर तसल्ली देनी शुरू की। इसके बाद गृहस्थ-जीवन की असुविधाओं से डराया किन्तु, अब कुछ दिनों से उनका अविश्वास बढ़ता जाता हैं। अब मैने छुट्टियों में भी उनके आग्रह के भय से घर जाना बन्द कर दिया हैं कि कहीं वह मेरे साथ न चल खड़ी हो और नाना प्रकार के बहानों से उन्हें आशंकित करता रहता हूँ ।

मेरा पहला बहाना पत्र-सम्पादकों को जीवन की कठिनाइयों के विषय में था। कभी बारह बजे रात को सोना नसीब होता हैं, कभी रतजगा करना पड़ जाता हैं। सारे दिन गली-गली ठोकरें खानी पड़ती हैं। इस पर तुर्रा यह हैं कि हमेशा सिर पर नंगी तलवार लटकती रहती हैं। न जाने कब गिरफ्तार हो जाऊँ, कब जमानत तलब हो जाय। खुफिया पुलिस की एक फौज हमेशा पीछे पड़ी रहती हैं। कभी बाजार में निकल जाता हूँ तो लोग उँगलियाँ उठाकर कहते हैं- वह जा रहा हैं अखबारवाला। मानो संसार में जितने दैविक, आधिदैविक, भौतिक, आधिभौतिक बाधाएँ हैं, उनका उत्तरदायी मैं हूँ। मानो मेरा मस्तिष्क झूठी खबरें गढने का कार्यालय हैं। सारा दिन अफसरों की सलाम और पुलिस की खुशामद में गुजर जाता हैं। कान्स्टेबलों को देखा और प्राण-पीड़ा होने लगी। मेरी तो यह हालत, और हुक्काम हैं मेरी सूरत से काँपते हैं। एक दिन दुर्भाग्यवश एक अंग्रेज के बँगले तरफ जा निकला। साहब ने पूछा- क्या काम करता हैं? मैने गर्व से साथ कहा- पत्र का सम्पादक हूँ। साहब तुरन्त अन्दर घुस गये और कपाट बन्द कर लिये। फिर मेम साहब और बाबा लोगों को खिड़कियों से झाँकते देखा, मानो कोई भयंकर जन्तु है। एक बार रेलगाड़ी में सफर कर रहा था। साथ और भी कई मित्र थे, इसलिए अपने पद का सम्मान निभाने के लिए सेकंड क्लास का टिकट लेना पड़ा। गाड़ी में बैठा तो एक साहब ने मेरे सूटकेस पर मेरा नाम और पेशा देखते ही तुरन्त अपना सन्दूक खोला और रिवाल्वर निकालकर मेरे सामने गोलियाँ भरी, जिसमें मुझे मालूम हो जाय कि वह मुझसे सचेत हैं। मैने देवीजी से अपनी आर्थिक कठिनाइयों की भी चर्चा नहीं की; क्योंकि मैं रमणियों के सामने यह जिक्र करना अपनी मर्यादा के विरुद्ध समझता हूँ हालाँकि यह चर्चा करता, तो देवीजी की दया का अवश्य पात्र बन जाता।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

मुझे विश्वास था कि श्रीमतीजी फिर यहाँ आने का नाम न लेंगी। मगर यह मेरा भ्रम था। उनके आग्रह पूर्ववत् होते रहे!

तब मैंने दूसरा बहाना सोचा। शहर बीमारियों के अड्डे हैं। हर एक खाने-पीने की चीज में विष की शंका दूध में विष, फलों में विष, शाक-भाजी में विष, हवा में विष, पानी में विष। यहाँ मनुष्य का जीवन पानी का लकीर हैं। जिसे आज देखो, वह कल गायब। अच्छे-खासे बैठे हैं, हृदय की गति बन्द हो गयी। घर से सैर को निकले, मोटर से टकराकर सुरपुर की राह ली। अगर शाम को सांगोपांग घर आ जाय, तो उसे भाग्यवान समझो। मच्छर की आवाज कान में आयी, दिल बैठा; मक्खी नजर आयी और हाथ-पाँव फूले। चूहा बिल से निकला और जान निकल गयी। जिधर देखिए यमराज की अमलदारी हैं। अगर मोटर और ट्राम से बचकर आ गये, तो मच्छर और मक्खी के शिकार हुए। बस, यही समझ लो कि मौत हरदम सिर पर खेलती रहती हैं। रात-भर मच्छरों से लड़ता हूँ, दिन-भर मक्खियों से। नन्हीं-सी जान को किन-किन दुश्मनों से बचाऊँ। साँस भी मुश्किल से लेता हूँ कि कहीं क्षय के कीटाणु फेफड़े में न पहुँच जायँ।

देवीजी को फिर मुझ पर विश्वास न आया। दूसरे पत्र में भी वही आरजू थी। लिखा था, तुम्हारे पत्र ने और चिन्ता बढ़ा दी। अब प्रतिदिन पत्र लिखा करना, नही, मैं एक न सुनूँगी और सीधे चली आऊँगी मैने दिन में कहा- चलो सस्ते छूटे।

मगर खटका लगा हुआ था कि न जाने कब उन्हें शहर आने की सनक सवार हो जाय। इसलिए मैने तीसरा बहाना सोच निकाला। यहाँ मित्रों के मारे नाकों दम रहता हैं आकर बैठ जाते हैं तो उठने का नाम भी नहीं लेते, मानो अपना घर बेच, आये हैं। अगर घर से टल जाओ, तो आकर बेधड़क कमरे में बैठ जाते है और नौकर से जो चीज चाहते हैं, उधार मँगवा लेते हैं। देना मुझे पड़ता हैं। कुछ लोग तो हफ्तों पड़े रहते हैं टलने का नाम ही नही लेते। रोज उनका सेवा-सत्कार करो, रात को थिएटर या सिनेमा ले जाओ, फिर सवेरे तक ताश या शतरंज खेलो। अधिकांश तो ऐसे हैं, जो शराब के बगैर जिन्दा ही नही रह सकते। अकसर तो बीमार आते हैं बल्कि अधिकतर बीमार हो आते हैं। अब रोज डॉक्टर को बुलाओ, सेवा- शुश्रषा करो, रात भर सिरहाने बैठे पंखा झलते रहो, उस पर यह शिकायत भी सुनते रहो कि यहाँ कोई हमारी बात भी नहीं पूछता। मेरी घड़ी महीनों से मेरी कलाई पर नहीं आयी। दोस्तों के साथ जलसों में शरीक हो रही हैं। अचकन हैं, वह एक साहब के पास हैं, कोट दूसरे साहब ले गये। जूते और एक बाबू ले उड़े। मैं वही रद्दी कोट और वहीं चमरौधा जूता पहनकर दफ्तर जाता हूँ । मित्र-वृन्द ताड़ते रहते हैं कि कौन-सी नयी वस्तु लाया। कोई चीज लाता हूँ, तो मारे डर के सन्दूक में बन्द कर देता हूँ, किसी की निगाह पड़ जाय, तो कहीं-न-कहीं न्योता खाने की धुन सवार हो जाय। पहली तारीख को वेतन मिलता हैं, तो चोरों की तरह दबे पाँव घर में आता हूँ कि कहीं कोई महाशय रुपयों की प्रतीक्षा में द्वार पर धरना जमाये न बैठे हो। मालूम नहीं, उनकी सारी आवश्यकताएँ पहली ही तारीख की बाट क्यों जोहती रहती हैं? एक दिन वेतन लेकर बारह बजे रात को लौटा मगर देखा तो आधे दर्जन मित्र उस वक़्त भी डटे हुए थे। माथा ठोक, लिया। कितने बहाने करूँ, उनके सामने एक नहीं चलती। मै कहता हूँ, घर से पत्र आया हैं, माताजी बहुत बीमार हैं। जवाब देते हैं, अजी, बूढे इतनी जल्द नही मरते। मरना ही होता तो इतने दिन जीवित क्यों रहतीं देख लेना, दो-चार दिन में अच्छी हो जायँगी, और अगर मर भी जायँ, तो वृद्धजनों की मृत्यु का शोक ही क्या, वह तो और खुशी की बात हैं। कहता हूँ, लगान का बड़ा तकाजा हो रहा हैं। जवाब मिलता हैं आजकल लगान तो बन्द हो रहा हैं। लगान देने की जरूरत ही नहीं। अगर किसी संस्कार का बहाना करता हूँ, तो फरमाते हैं तुम भी विचित्र जीव हो। इन कुप्रथाओं की लकीर पीटना तुम्हारी शान के खिलाफ है। अगर तुम उनका मूलोच्छेद न करोगे तो वह लोग क्या आकाश से आयेंगे गरज यह कि किसी तरह प्राण नही बचते।

मैने समझा कि हमारा यह बहाना निशाने पर बैठेगा। ऐसे घर में कौन रमणी रहना पसन्द करेगी जो मित्रों पर ही अर्पित हो गया हो। किन्तु मुझे फिर भ्रम हुआ। उत्तर में फिर वही आग्रह था।

तब मैने चौथा हीला सोचा। यहाँ मकान हैं कि चिड़ियों के पिंजरे, न हवा न रोशनी। वह दुर्गन्ध उड़ती हैं कि खोपड़ी भन्ना जाती हैं। कितने ही को तो इसी दुर्गन्ध के कारण विशूचिका, टाइफाइड, यक्ष्मा आदि रोग हो जाते हैं। वर्षा हुई और मकान टपकने लगा। पानी चाहे घंटे-भर बरसे, मकान रात-भर बरसता रहता हैं। ऐसे बहुत ही कम घर होंगे जिनमें प्रेत-बाधाएँ न हों। लोगों को डरावने स्वपन दिखाई देते हैं। कितनों ही को उन्माद-रोग हो जाता हैं। आज नये घर में आयें, कल ही उसे बदलनें की चिन्ता सवार हो गयी। कोई ठेला असबाब से लदा हआ जा रहा हैं। कोई आ रहा हैं। जिधर देखिए, ठेले-ही-ठेले नजर आते हैं। चोरियाँ तो इस कसरत से होती हैं कि अगर कोई रात कुशल से बीत जाय, तो देवताओं की मनौती की जाती हैं। आधी रात हुई और चोर-चोर पकड़ो-पकड़ो! की आवाजे आने लगीं। लोग दरवाजों पर मोटे-मोटं लकड़ी फट्टे या जूते या चिमटे लिये खड़े रहते हैं; फिर भी लोग कुशल है कि आँख बचाकर अन्दर पहुँच जाते हैं। एक मेरे बेतकल्लुफ दोस्त हैं। स्नेहवश मेरे पास बहुत देर तक बैठे रहते थे। रात-अँधेरे में बर्तन खड़के, तो मैंने बत्ती जलायी। देखा, तो वही महाशय बर्तन समेंट रहे थे। मेरी आवाज सुनकर जोर से कहकहा मारा; बोले, मैं तुम्हें चकमा देना चाहता था। मैने दिल में समझ लिया, अगर निकल जाते तो बर्तन आपके थे, अब जाग पड़ा, तो चकमा हो गया। घर में आये कैसे थे? यह रहस्य हैं। कदाचित रात को ताश खेलकर चले, तो बाहर जाने के बदले नीचे अँधेरी कोठरी में छिप गये। एक दिन एक महाशय मुझसे पत्र लिखाने आये, कमरे में कमल-दवात न था। ऊपर के कमरे से लाने गया। लौटकर आया तो देखा, आप गायब हैं और उनके साथ फाउंटेन पेन भी गायब हैं। सारांश यह हैं कि नगर-जीवन नरक-जीवन से कम दुःखदायी नहीं हैं।

मगर पत्नीजी पर नागरिक जीवन का ऐसा जादू चढ़ा हुआ हैं कि मेरा कोई बहाना उन पर असर नहीं करता। इस पत्र के जवाब में उन्होंने लिखा- मुझसे बहाने करते हो मैं हर्गिज न मानूँगी। तुम आकर मुझे ले जाओ।

आखिर मुझे पाँचवाँ बहाना करना पड़ा। यह खोंचेवालों के विषय में था।

अभी बिस्तर से उठने की नौबत नहीं आयी कि कानों में विचित्र आवाजें आने लगीं। काबुल के मीनार के निर्माण के समय भी ऐसी निरर्थक आवाजें न आयी होंगी। यह खोंचेवालों की शब्द-क्रीड़ा हैं। उचित तो यह था, यह खोंचेवाले ढोल- मँजीरे के साथ लोगों को अपनी चीजों की ओर आकर्षित करते; मगर इन औंधी अक्लवालों को यह कहाँ सूझती हैं। ऐसे पैशाचिक स्वर निकालते हैं कि सुननेवालों के रोएँ खड़े हो जाते हैं। बच्चे माँ की गोद में चिपट जाते हैं। मैं भी रात को अक्सर चौंक पड़ता हूँ। एक दिन तो मेरे पड़ोस में एक दुर्घटना हो गयी। ग्यारह बजे थे। कोई महिला बच्चे को दूध पिलाने उठी थी। एकाएक किसी खोंचेवाले की भयंकर ध्वनि कानों में, तो चीख मारकर चिल्ला उठी और फिर बेहोश हो गयी। महीनों की दवा-दारू के बाद अच्छी हुई। अब रात को कानों में रुई डालकर सोती हैं। ऐसे कारण नगरों में नित्य ही रहते हैं। मेरे ही मित्रों में कई ऐसे हैं, जो अपनी स्त्रियों को घर में लाये मगर बेचारियाँ दूसरे ही दिन इन आवाजों से भयभीत होकर लौट गयीं।

श्रीमती ने इसके जवाब में लिखा- तुम समझते हो, मैं खोंमवालों की आवाजों से डर जाऊँगी यहाँ गीदड़ो का हौवाना और उल्लूओं का चीखना सुनकर तो डरती नहीं, खोंमेवालों से क्या डरूँगी ।

फिर मैने लिखा- शहर शरीफ जादियों के रहने की जगह नही। यहाँ की महरियाँ इतनी कटुभाषिणी हैं कि बातों का जवाब गालियों से देती हैं और उनके बनाव- सँवार का क्या पूछना भले घरों की स्त्रियाँ तो इनके ठाट देखकर ही शर्म से पानी-पानी हो जाती हैं। सिर से पाँव तक सोने से लदी हुई, सामने से निकल जाती हैं तो मालूम होता हैं कि सुगन्धि की लपट लग गयी। गृहणियाँ ये ठाट कहाँ से लाएँ; उन्हें तो और भी सैकड़ों चिन्ताएँ हैं। इन महरियों को तो बनाव- सिंगार के सिवा दूसरा काम ही नहीं। नित्य नयी सज-धज, नित्य नयी अदा, और चंचल तो इस गजब की हैं मानो अंगों में रक्त की जगह पारा भर दिया हो। उनका चमकना और मटकना और मुस्कराना देखकर गृहणियाँ लज्जित हो जाती हैं। और ऐसी दीदा-दीलेर हैं कि जबरदस्ती घरों में घुस पड़ती हैं। जिधर देखों इनका मेला-सा लगा हुआ हैं। इनके मारे भले आदमियों का घर में बैठना मुश्किल हैं। कोई खत लिखाने के बहाने से आ जाती हैं, कोई खत पढ़ाने के बहाने से। असली बात यह हैं कि गृहदेवियों का रंग फीका करने में इन्हें आनन्द आता हैं। इसीलिए शरीफजादियाँ बहुत कम शहरों में आती हैं।

मालूम नही, इस पत्र में मुझसे क्या गलती हुई कि तीसरे दिन पत्नीजी एक बूढ़े कहार के साथ मेरा पता पूछती हुई अपने तीनो बच्चों को लिये एक असाध्या रोग का भाँति आ डटी।

मैने बदहवास होकर पूछा- क्यों कुशल तो हैं?

पत्नी ने चादर उतारते हुए कहा- घर में कोई चुड़ैल बैठी तो नहीं हैं? यहाँ किसी ने कदम रखा तो नाक काट लूँगी हाँ, जो तुम्हारी शह न हो।

अच्छा तो अब रहस्य खुला। मैने सिर पीट लिया। क्या जानता था, तमाचा अपने, ही मुँह पर पड़ेगा!

पिचर प्लांट || Pitcher Plants || Most Amazing and Weird Flower

पिचर प्लांट

"पिचर प्लांट" मांसाहारी पौधे हैं, जिनके पत्तों के रूपांतरित रूप ट्यूबलर आकार में जुड़ जाते हैं जिन्हें पिचर के रूप में जाना जाता है। पिचर कीटों को आकर्षित करते हैं और उन्हें फँसाते हैं, जो फिर पिचर के तल पर पाचन रस में विघटित हो जाते हैं। विभिन्न प्रकार के पिचर प्लांट में कीटों को पकड़ने के लिए विभिन्न तंत्र प्रस्तावित किए गए हैं, लेकिन पिचर के अंदर एक फिसलन वाली तरल परत का निर्माण सबसे महत्वपूर्ण है।

पिचर प्लांट || Pitcher Plants || Most Amazing and Weird Flower

नेपेन्थेस पिचर प्लांट के रिम्स की विशेषता रेडियल लकीरों के साथ नियमित सूक्ष्म संरचनाओं से होती है। अमृत के जुड़ने से पानी, बनावट में रिक्त स्थान को भर देगा और एक निरंतर अत्यधिक गीला करने योग्य (सुपरहाइड्रोफिलिक) फिल्म बनाएगा। चींटियों जैसे कीट जिनके पैरों पर नरम चिपकने वाले पैड होते हैं, वे तरल परत से चिपक नहीं सकते हैं, जिसका अर्थ है कि वे बच नहीं सकते हैं। कीटों के पैरों पर तेल जो आमतौर पर चिपकने में मदद करते हैं, इन पिचर प्लांट्स में स्थिति को और खराब कर देते हैं, जिससे पिचर में प्रवेश करने वाली अधिकांश चींटियाँ नम मौसम में फंस जाती हैं।

पिचर प्लांट दिखने में साधारण लेकिन बहुत ही शानदार होते हैं। पिचर प्लांट मांसाहारी होते हैं, जिनकी पत्तियां घड़े के आकार की होती हैं, जो पौधे की पत्तियों से एक जाल बनाती हैं। पिचर प्लांट को ट्रॉपिकल पिचर प्लांट के नाम से भी जाना जाता है और इसका वैज्ञानिक नाम नेपेंथेस है। 

पिचर प्लांट || Pitcher Plants || Most Amazing and Weird Flower

अन्य मांसाहारी पौधों की तरह पिचर प्लांट भी कम पोषक तत्व वाली मिट्टी वाले प्राकृतिक वातावरण में उगते हैं। आम तौर पर ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशिया के दलदलों या मेडागास्कर के नम जंगलों में पाए जाते हैं। 

पिचर प्लांट कई प्रकार के होते हैं -

उष्णकटिबंधीय घटपर्णी पौधों की 100 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, जो मुख्यतः दक्षिण पूर्व एशिया (मलेशिया, इंडोनेशिया और फिलिपींस) तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और भारत में पाई जाती हैं।


नेपेंथेस अलाटा 

दक्षिण पूर्व एशिया, मुख्य रूप से फिलिपींस में इन पिचर पौधों का घर है। इनके 8 इंच लंबे हरे लटकते हुए पिचर होते हैं, जिन पर लाल रंग के धब्बे होते हैं।

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पीला पिक्चर प्लांट या एस. फ्लेवा 

फ्लोरिडा और टेक्सास का मूल निवासी यह पिचर प्लांट प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश में चमकीला पीला हो जाता है।

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बेगानी पिचर प्लांट या सर्रेसेनिया पपुर्रिया

 यह घड़ा पौधा जिसे उत्तरी घड़ा पौधा भी कहा जाता है, कई क्षेत्रों में उगता है। यह कनाडा और उत्तरी अमेरिका में जंगली रूप में पनपता है। इसके घड़े गहरे लाल और बैंगनी रंग के होते हैं।

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पैरट पिचर प्लांट या सितासिना 

यह पौधा पक्षी की चोंच जैसा दिखता है और मिसिसिपी से जॉर्जिया तक गोल्फ तट के गीले क्षेत्र में उगता है।

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कोबरा लिली या डार्लिंगटोनिया कैलिफ़ोर्निका

 कैलिफोर्निया पिचर प्लांट के नाम से भी जाना जाने वाला कोबरा लिली डार्लिंगटोनिया जीनस की एकमात्र प्रजाति है। यह कैलिफोर्निया और ओरेगॉन के तटो पर पाया जाता है। यह घुमावदार पौधा कोबरा के सर जैसा दिखता है, जिसके पेरिस्टम के अंत में कांटेदार जीभ जैसी एक उपांग होती है। कोबरा लिली अपने अनोखे कोबरा सिर जैसी आकृति के कारण ध्यान आकर्षित करती है।

पिचर प्लांट || Pitcher Plants || Most Amazing and Weird Flower

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Pitcher Plants

Pitcher plants are carnivorous plants with modified forms of leaves fused into tubular shapes known as pitchers. Pitchers attract and trap insects, which then disintegrate into digestive juices at the bottom of the pitcher. Various mechanisms have been proposed for the capture of insects in different types of pitcher plant, but the formation of a slippery liquid layer inside the pitcher is the most important.

The rims of Nepenthes pitcher plants are characterised by regular microscopic structures with radial ridges. Water, from the addition of nectar, will fill the spaces in the texture and form a continuous highly wettable (superhydrophilic) film. Insects such as ants which have soft adhesive pads on their feet cannot stick to the liquid layer, meaning they cannot escape. The oils on the insect's feet that normally aid adhesion make the situation worse in these pitcher plants, so that most ants that enter the pitcher become trapped in damp weather.

पिचर प्लांट || Pitcher Plants || Most Amazing and Weird Flower

Pitcher plants are simple in appearance but very spectacular. Pitcher plants are carnivorous plants with pitcher-shaped leaves that form a web with the leaves of the plant. Pitcher plants are also known as tropical pitcher plants and their scientific name is Nepenthes.

Like other carnivorous plants, pitcher plants also grow in natural environments with low nutrient soil. They are usually found in swamps in Australia and Southeast Asia or moist forests in Madagascar.

There are many types of pitcher plants -

There are more than 100 species of tropical pitcher plants, found mainly in Southeast Asia (Malaysia, Indonesia and the Philippines) and northern Australia and India.

Nepenthes alata

Southeast Asia, mainly the Philippines, is home to these pitcher plants. They have 8-inch-long green hanging pitchers with red spots on them.

Yellow Picture Plant or S. flava

Native to Florida and Texas, this pitcher plant turns bright yellow in direct sunlight.

Begone Pitcher Plant or Sarracenia pappurrea

This pitcher plant, also known as the northern pitcher plant, grows in many regions. It grows wild in Canada and North America. Its pitchers are deep red and purple in color.

Parrot Pitcher Plant or Psittacina

This plant resembles a bird's beak and grows in the wet areas of the Gulf Coast from Mississippi to Georgia.

Cobra Lily or Darlingtonia californica

Also known as the California Pitcher Plant, the cobra lily is the only species of the Darlingtonia genus. It is found on the coasts of California and Oregon. This curved plant resembles a cobra's head, with a forked tongue-like appendage at the end of the peristome. The cobra lily attracts attention due to its unique cobra head-like shape.

गंगोत्री मंदिर || Gangotri Temple

गंगोत्री मंदिर

"गंगोत्री मंदिर" का निर्माण नेपाली सेनापति अमर सिंह थापा ने 18वीं शताब्दी की शुरुआत में करवाया था। बाद में जयपुर के महाराजा ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। गंगोत्री मंदिर नागर शैली की वास्तुकला का अनुसरण करता है। यह सरल है और सफेद संगमरमर के पत्थर से बना हुआ है। इस मंदिर में आंतरिक नक्काशी नहीं है। इसमें पांच छोटे शिखर हैं, जिनकी ऊंचाई 20 फीट है। मुख्य गर्भगृह एक ऊंचे मंच पर बनाया गया है। 

गंगोत्री मंदिर || Gangotri Temple

गर्भगृह के सामने एक मंडप है, जहां भक्त पूजा अर्चना करते हैं। आंतरिक गर्भगृह में देवी गंगा की मूर्ति है। इसमें देवी यमुना, अन्नपूर्णा, सरस्वती और लक्ष्मी की मूर्तियां भी हैं। भागीरथ और ऋषि आदि शंकर की मूर्तियां आंतरिक गर्भगृह के अंदर मौजूद मूर्तियों के समूह को पूरा करती हैं। भगवान शिव, भगवान गणेश, अंजनी पुत्र हनुमान और भागीरथी को समर्पित चार छोटे मंदिर है। 

भागीरथी नदी के तट पर स्थित गंगोत्री मंदिर देवदार और चीड़ के पेड़ों के बीच बसा हुआ है। मंदिर की सफेद इमारत के परिसर में छोटी चांदी की मूर्ति है। तीर्थयात्री पवित्र मंदिर में जाने से पहले पवित्र नदी के क्रिस्टल साफ़ पानी में स्नान कर सकते हैं।

गंगोत्री मंदिर || Gangotri Temple

गंगोत्री मंदिर के पास पानी के नीचे डूबा हुआ एक प्राकृतिक चट्टान शिवलिंग है। जब सर्दियां आती है और पानी का स्तर कम होता है, तब इस शिवलिंग को आसानी से देखा जा सकता है। मिथकों और किवदंतियों के अनुसार यह वह स्थान है, जहां भगवान शिव बैठे थे जब गंगा उनकी जटाओं में ऊतरी थीं। शिव ने गंगा को सात धाराओं में विभाजित किया और पृथ्वी को बचाया। 

गंगोत्री मंदिर देवी गंगा को समर्पित सबसे ऊंचे मंदिरों में से है। गंगोत्री, गंगा नदी की उद्गम स्थान है एवं उत्तराखंड के चार धाम तीर्थयात्रा में चार स्थलों में से एक है। नदी के स्रोत को भागीरथी कहा जाता है और देवप्रयाग के बाद से यह अलकनंदा में मिलती है, जहाँ से गंगा नाम कहलाती है। पवित्र नदी का उद्गम गोमुख पर है, जो की गंगोत्री ग्लेशियर में स्थापित है और गंगोत्री से 19 किलोमीटर का ट्रेक है।

गंगोत्री मंदिर || Gangotri Temple

गंगोत्री मंदिर भागीरथ शिला के पास बना है। यह एक स्तंभ है, जहां राजा भगीरथ ने भगवान शिव से गंगा नदी के लिए प्रार्थना की थी। तीर्थ यात्री स्तंभ से जल एकत्र करते हैं और इसे अमृत के रूप में अपने घर ले जाते हैं। अमृत का उपयोग विभिन्न धार्मिक और पवित्र उद्देश्यों के लिए किया जाता है। महाभारत के युद्ध में कौरवों को पराजित करने के बाद पांडवों ने अपने लोगों और रिश्तेदारों की मृत्यु के प्रायश्चित के लिए गंगोत्री मंदिर में देव यज्ञ किया था। 

गंगोत्री कई किंवदंतियों और मिथकों से भी जुड़ा हुआ है। एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार भगवान राम, जो कि सबसे अधिक पूजनीय हिंदू देवताओं में से एक हैं, अपने वनवास के दौरान इस मंदिर में आए थे। यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान हनुमान भी आए थे, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने मंदिर में देवी गंगा की पूजा की थी और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था।

गंगोत्री का हिंदुओं के लिए बहुत आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है और हर साल हज़ारों तीर्थयात्री अपनी प्रार्थना करने और आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर आते हैं। मंदिर मई से अक्टूबर तक आगंतुकों के लिए खुला रहता है। शेष वर्ष में, देवी गंगा की मूर्ति को पास के मुखबा गाँव में रखा जाता है, जहाँ अगले मौसम तक उनकी पूजा की जाती है।

English Translate 

Gangotri Temple

The "Gangotri Temple" was built by Nepalese general Amar Singh Thapa in the early 18th century. Later the Maharaja of Jaipur rebuilt this temple. The Gangotri Temple follows the Nagara style of architecture. It is simple and made of white marble stone. There is no internal carving in this temple. It has five small shikharas, which are 20 feet high. The main sanctum sanctorum is built on an elevated platform.

गंगोत्री मंदिर || Gangotri Temple

There is a mandap in front of the sanctum sanctorum, where devotees worship. The inner sanctum houses the idol of Goddess Ganga. It also houses idols of Goddess Yamuna, Annapurna, Saraswati and Lakshmi. The idols of Bhagiratha and Rishi Adi Shankara complete the group of idols present inside the inner sanctum. There are four small temples dedicated to Lord Shiva, Lord Ganesha, Anjani Putra Hanuman and Bhagirathi.

गंगोत्री मंदिर || Gangotri Temple

Situated on the banks of the Bhagirathi River, the Gangotri Temple is nestled between cedar and pine trees. The white building of the temple has a small silver idol in its premises. Pilgrims can take a dip in the crystal clear waters of the holy river before visiting the sacred temple.

There is a natural rock Shivling submerged under water near Gangotri temple. When winters arrive and the water level is low, this Shivling can be easily seen. According to myths and legends, this is the place where Lord Shiva sat when Ganga descended in his matted hair. Shiva divided Ganga into seven streams and saved the earth.

Gangotri temple is one of the highest temples dedicated to Goddess Ganga. Gangotri is the origin of the river Ganges and is one of the four sites in the Char Dham pilgrimage of Uttarakhand. The source of the river is called Bhagirathi and after Devprayag it joins the Alaknanda, from where it gets the name Ganga. The holy river originates at Gomukh, which is located in the Gangotri glacier and is a 19 km trek from Gangotri.

गंगोत्री मंदिर || Gangotri Temple

Gangotri temple is built near Bhagirath Shila. It is a pillar where King Bhagirath prayed to Lord Shiva for the river Ganga. Pilgrims collect water from the pillar and take it home as Amrit. The Amrit is used for various religious and holy purposes. After defeating the Kauravas in the war of Mahabharata, the Pandavas performed Dev Yagna at the Gangotri temple to atone for the death of their people and relatives.

Gangotri is also associated with many legends and myths. According to a popular legend, Lord Rama, one of the most revered Hindu gods, visited this temple during his exile. It is also said that the temple was also visited by Lord Hanuman, who is believed to have worshipped Goddess Ganga at the temple and received blessings from her.

गंगोत्री मंदिर || Gangotri Temple

Gangotri has great spiritual and cultural significance for Hindus and thousands of pilgrims visit the temple every year to offer their prayers and seek blessings. The temple is open for visitors from May to October. In the rest of the year, the idol of Goddess Ganga is kept in the nearby Mukhaba village, where she is worshipped until the next season.