खूंखार घोड़ा
राजा कृष्णदेव राय के शासन काल में एक दिन एक अरबी व्यापारी बहुत सारे घोड़े लेकर कृष्णदेव राय के दरबार में आते हैं और महाराजा से सिफारिश करते हैं कि मुझे यह सारे घोड़े बेचने हैं कृपा करके आप इन घोड़ों को खरीद लें। राजा ने उस अरबी व्यापारी से पूछा इन घोड़ा में ऐसा क्या खास है, जिसकी वजह से हम इन्हें खरीदें।
वह अरबी व्यापारी वाक पटुता में माहिर था, उसने राजा के सामने अपने घोड़ों की इतनी तारीफ की कि राजा उन सारे घोड़ों को खरीदने के लिए तैयार हो गए।
महाराजा उस अरबी व्यापारी से उसके सारे घोड़े खरीद लिए। अरबी व्यापारी बहुत खुश हुए और सारे घोड़ों का मोल लेकर दरबार से चले गए। व्यापारी के जाते ही दरबारियों ने राजा से प्रश्न किया कि इन घोड़ों को आप कहां रखेंगे? हमारे पास उन सारे घोड़ों को रखने के लिए इतनी जगह नहीं है। इन घोड़ों को रखने के लिए हमें एक बड़े घुड़साल की आवश्यकता होगी। राजा के सामने एक बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई।
इस समस्या से निपटने के लिए राजा ने अपने दरबार में मंत्रियों की सभा रखी। अगले दिन सभी मंत्री राजा के कहने पर राज्य की सभा पर इकट्ठे हो गए। राजा ने अपनी समस्या मंत्रियों के सामने रखी और मंत्रियों से इस समस्या का हल ढूंढने के लिए कहा गया। सभी मंत्रियों ने उचित से उचित योजना बनाकर राजा के सामने पेश किया।
अगले दिन राजा ने अपनी प्रजा को इकट्ठा होने के लिए आदेश दे दिया। सभी प्रजा राजा के कहने पर एक जगह इकट्ठी हो गई। राजा वहां पहुंचकर अपनी सारी प्रजा से कहते हैं कि - "मैंने आप सभी को एक जरूरी काम सौंपने के लिए बुलाया है। हमने बहुत सारे अरबी नस्ल के घोड़े खरीदे हैं और यह सभी घोड़े बेशकीमती, लाजवाब और समझदार हैं। लेकिन अफसोस इस बात है कि इन सभी घोड़ों को रखने के लिए पर्याप्त जगह राजमहल में नहीं है। इसके लिए एक बहुत बड़े घुड़साल की आवश्यकता है, जिसको तैयार होने में कम से कम तीन महीने लग जायेंगे। इसीलिए तीन महीने तक आप सभी को एक-एक घोड़ा दिया जाएगा, जिसकी देखभाल आपको करनी होगी। इसके लिए आप सभी को हर महीने एक सोने का सिक्का भी दिया जाएगा।"
सभी प्रजा का चेहरा उतर गया। भला एक सोने के सिक्के से क्या होता है? इससे तो एक दिन का चारा पानी भी नहीं आएगा। अब राजा का आदेश था तो सबको मानना पड़ा। राजा ने सभी को एक-एक घोड़ा दे दिया और सभी एक एक घोड़ा लेकर अपनी अपनी घर की तरफ चले गए।
प्रजा के साथ साथ तेनालीरमन को भी एक घोड़ा दिया गया। तेनालीरमन घोड़े को घर लेजाकर घर के पीछे घास फूस की छोटी-सी घुड़साल बना देते हैं और उसके साथ ही तेनालीरमन घोड़े को थोड़ा-सा चारा भी डाल देते हैं। तेनालीरमन हमेशा घोड़े को थोड़ा थोड़ा सा ही चारा और पानी देते रहे।
बाकी प्रजा घोड़े की अच्छी तरीके से सेवा करती रही, क्योंकि प्रजा राजा के क्रोध से डरती थी कि कहीं घोड़ा मर गया तो राजा उन्हें मृत्युदंड ना दे दे। इसीलिए प्रजा ने अपनी आधी से अधिक कमाई घोड़े पर लगा दी। प्रजा खुद भूखी सोती थी लेकिन घोड़े को भरपेट चारा पानी देकर सोती थी।
दो महीने बीत गए थे। तेनालीरमन का घोड़ा बिल्कुल सूख गया। तेनालीराम का घोड़ा चिड़चिड़ा होने लगा। कोई भी उसके सामने आता तो वह अपने मुंह से सामने वाले को घात पहुंचाने की कोशिश करता। तेनालीराम घुड़साल की खिड़की से ही उस घोड़े की देखभाल करते थे। वहीं से वह थोड़ा बहुत चारा पानी डाल देते थे। तीन महीने बीत गए।
महाराजा ने सभी को अपने घोड़े के साथ एकत्रित होने के लिए आदेश दे दिए। सभी अपने अपने घोड़े लेकर राजमहल के आगे पहुंच गए। लेकिन तेनालीराम अपना घोड़ा अपने साथ में नहीं लेकर आए। तेनालीराम से इसका कारण पूछा गया तो तेनालीराम बोले कि महाराज घोड़ा काफी खूंखार और बिगडैल है। वह किसी को अपने पास नहीं आने देता।
महाराज आप घोड़े को लाने की बात कर रहे हैं, मैं तो घुड़साल में जाने की भी हिम्मत नहीं कर सकता, लाने की दूर की बात है। मैं खुद घोड़े की घुड़साल की खिड़की से उसको चारा पानी देता हूं। तभी राजगुरु महाराज से बोले कि महाराज हमें तेनालीराम की बातों का विश्वास नहीं करना चाहिए। हमें खुद वहां जाकर देखना चाहिए। सभी लोग तेनालीराम के घर पर जाते हैं और छोटी सी घुड़साल को राजगुरु देखते हैं।
राजगुरु तेनालीराम से कहते है मूर्ख तेनाली यह क्या घुड़साल बनाई है तूने। इस छोटी सी कुटिया को तुमने घुड़साल नाम दिया है, बड़े शर्म की बात है। राजगुरु की बात पर तेनालीराम बोले की आप बहुत विद्वान हैं, इसीलिए मुझसे ज्यादा आपको पता है। लेकिन घोड़ा खूंखार हो चुका है, इसलिए आप अंदर मत जाइएगा। घुड़साल में मैंने एक खिड़की बनाई है, जहां से मैं घोड़े की देखरेख करता हूं।
आप भी वही से झांक कर देख लीजिए। तेनालीराम के कहने पर राजगुरु घोड़े को देखने के लिए खिड़की तक जाते हैं। खिड़की से झांकते ही वह घोड़ा राजगुरु की दाढ़ी अपने मुंह से पकड़ लिया। राजगुरु दर्द से चीखने लगे। राजगुरु व अन्य सभी साथियों ने दाढ़ी छुड़वाने का बहुत प्रयास किया लेकिन घोड़े ने दाढ़ी नहीं छोड़ी।
तभी एक दरबारी तलवार निकाला और एक ही झटके में राजगुरु की दाढ़ी काट दिया। महाराजा के आदेश से दस सेवक मिलकर जैसे-तैसे घोड़े को दरबार तक लेकर गए। घोड़े को देखते ही महाराजा तेनालीराम से पूछते हैं कि घोड़ा इतना दुबला पतला क्यों है?
तेनालीराम बोले - "मैंने घोड़े को कम से कम चारा और पानी दिया है। जैसे प्रजा थोड़े से ही अपना गुजारा कर लेती है। इस वजह से घोड़ा इतना दुबला पतला है। तेनालीराम ने कहा कि प्रजा आपका सम्मान करती है, इसलिए वह आपकी कोई बात नहीं टाल सकती। सारी प्रजा एक सोने के सिक्के से ही घोड़े को पालने के लिए मान गई।
सारी प्रजा अपनी आधी कमाई उस घोड़े पर लगा दी, जो आपने उन्हें दिया था। घोड़ों को तो भर पेट भोजन मिलता था, लेकिन आधी जनता को बिना खाए पिए ही सोना पड़ता था। इससे आपके घोड़े तो हष्ट पुष्ट हो गए लेकिन आपकी सारी प्रजा दुर्बल हो गई।
आप का कर्म है कि आप प्रजा के हित के लिए काम करें ना कि उन पर अधिक से अधिक बोझ डालें। तेनालीराम अपने सारे वाक्यांशों पर माफी मांगते हुए पीछे हट गए।
महाराजा को तेनालीराम की सारी बातें समझ में आ गई। महाराज ने अपनी गलती पर क्षमा मांगते हुए पूरी प्रजा में महीने भर का राशन मुफ्त में बंटवाया।
Khunkhar Ghoda (the dreaded horse)
One day during the reign of King Krishnadeva Raya an Arabian merchant comes to Krishnadev Raya's court with a lot of horses and recommends to the Maharaja that I have to sell all these horses, please buy these horses. The king asked that Arabian merchant, what is so special about these horses, because of which we should buy them.
That Arabic merchant was a master of speech, he praised his horses in front of the king so much that the king agreed to buy all those horses.
The Maharaja bought all his horses from that Arabian merchant. The Arabian merchants were very happy and left the court after buying all the horses. As soon as the merchant left, the courtiers asked the king that where will you keep these horses? We don't have enough space to keep all those horses. To keep these horses we will need a big stall. A great difficulty arose in front of the king.
To deal with this problem, the king kept a meeting of ministers in his court. The next day all the ministers gathered at the state assembly at the behest of the king. The king put his problem in front of the ministers and the ministers were asked to find a solution to this problem. All the ministers made a proper plan and presented it to the king.
The next day the king ordered his subjects to gather. All the subjects gathered at one place at the behest of the king. The king reaches there and says to all his subjects that - "I have called all of you to entrust an important task. We have bought many horses of Arabian breed and all these horses are valuable, wonderful and intelligent. But the regret is this. That there is not enough space in the palace to keep all these horses. For this a very big stall is needed, which will take at least three months to prepare. That's why for three months each of you will be given one horse. , which you will have to take care of. For this you all will also be given a gold coin every month.
The faces of all the people fell. What's wrong with a gold coin? Due to this, even a day's fodder and water will not come. Now there was the order of the king, so everyone had to obey. The king gave each horse a horse and they all went towards their home with one horse.
Along with the subjects, Tenaliraman was also given a horse. Tenaliraman takes the horse home and makes a small hay of hay behind the house and with it Tenaliraman also puts some fodder for the horse. Tenaliraman always gave little fodder and water to the horse.
The rest of the subjects continued to serve the horse well, because the subjects were afraid of the king's anger that if the horse died, the king should not give them the death penalty. That is why the subjects put more than half their earnings on the horse. The subjects themselves slept hungry but slept after giving enough fodder and water to the horse.
Two months had passed. Tenaliraman's horse dried up completely. Tenaliram's horse started getting irritable. If anyone came in front of him, he would try to ambush the person in front of him with his mouth. Tenaliram used to take care of that horse from the window of the stall. From there he used to pour some fodder water. Three months passed.
The Maharaja ordered everyone to assemble with his horse. Everyone took their horses and reached in front of the palace. But Tenaliram did not bring his horse with him. When Tenaliram was asked the reason for this, Tenaliram said that Maharaj's horse is very dangerous and bad-tempered. He does not allow anyone to come near him.
Sir, you are talking about bringing a horse, I can't even dare to go to the horse, it is a distant thing to bring. I myself give him fodder and water from the window of the horse's stud. Then Rajguru said to Maharaj that Maharaj should not believe the words of Tenaliram. We should go there and see for ourselves. Everyone goes to Tenaliram's house and sees Rajguru, a small horse.
Rajguru says to Tenali Ram, what a fool Tenali, what a stud have you made. It is a matter of great shame that you have given this small hut the name Ghursal. On Rajguru's talk, Tenaliram said that you are very learned, that is why you know more than me. But the horse is dreaded, so don't go inside. In the stall I have made a window, from where I look after the horse.
Take a look from the same side and see. At the behest of Tenaliram, Rajguru goes to the window to see the horse. As soon as he peeped through the window, the horse grabbed Rajguru's beard from his mouth. Rajguru started screaming in pain. Rajguru and all the other companions tried hard to get rid of the beard but the horse did not give up the beard.
Then a courtier took out the sword and in one stroke cut off the beard of Rajguru. On the orders of the Maharaja, ten servants together took the horse to the court. On seeing the horse, Maharaja asks Tenaliram why the horse is so lean and thin.
Tenaliram said - "I have given at least fodder and water to the horse. Just like the people make a little living for themselves. Because of this the horse is so thin. Tenaliram said that the people respect you, that's why they don't want any of yours." The matter cannot be avoided.All the people agreed to keep the horse with only one gold coin.
All the people put half their earnings on the horse that you gave them. The horses were fed enough food, but half the population had to sleep without eating and drinking. This made your horses strong, but your All the people became weak.
It is your duty to work for the benefit of the people and not put more and more burden on them. Tenaliram backed away apologizing for all his words.
The Maharaja understood everything about Tenaliram. The Maharaj, apologizing for his mistake, distributed free ration for a month among the entire subjects.