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पार्थसारथी मंदिर, चेन्नई । Sri Parthasarathy Temple, Chennai

 पार्थसारथी मंदिर (Parthasarathy Temple)

पार्थसारथी मंदिर (Parthasarathy Temple) भारत के चेन्नई के तिरुवल्लीकेनी में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित आठवीं शताब्दी का मंदिर है। पार्थसारथी मंदिर (Parthasarathy Temple) को अरुलमिगु पार्थसारथीस्वामी मंदिर भी कहा जाता है। यह भगवान कृष्ण का एक वैष्णव मंदिर है। 'पार्थसारथी' एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है,'अर्जुन का सारथी', महाभारत में अर्जुन के सारथी के रूप में कृष्ण की भूमिका का जिक्र है।

Proper name: Parathasarathy Thirukoil
Country: India
State: Tamil Nadu
Location: Chennai
Primary Deity: Parthasarathy (Lord Krishna)
Architectural styles: Dravidian architecture
Date built: 8th century AD
Creator: Pallavas

पार्थसारथी मंदिर, चेन्नई । Sri Parthasarathy Temple, Chennai

यह मूल रूप से पल्लवों द्वारा छठी शताब्दी में राजा नरसिंहवर्मन प्रथम द्वारा बनाया गया था। 

पार्थसारथी मंदिर (Parthasarathy Temple) भगवान विष्णु की पूजा किए जाने वाले 108 प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। यहां भगवान विष्णु के चार अलग-अलग अवतार हैं- भगवान कृष्ण, भगवान राम, भगवान नरसिंह और भगवान वराह। यहां भगवान विष्णु के चारों अवतारों को एक ही जगह पूजा जा सकता है, इससे इसका महत्व और बढ़ जाता है।भगवान राम और भगवान नरसिम्हा के तीर्थस्थल के लिए अलग प्रवेश द्वार बना हुआ है। यह मंदिर इस मायने में अनूठा है। गोपुरम और मंडप दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला की विस्तृत नक्काशिओं से सजाया गया है।

पार्थसारथी मंदिर, चेन्नई । Sri Parthasarathy Temple, Chennai

दंतकथा

 महाभारत के अनुसार, भगवान कृष्ण जो विष्णु के अवतार हैं, कौरवों और पांडवों के युद्ध के दौरान अर्जुन के सारथी के रूप में युद्ध मैदान में आए। युद्ध के दौरान कृष्ण ने कोई हथियार नहीं लिया था। अर्जुन और भीष्म के बीच लड़ाई के दौरान भीष्म के बाणों से कृष्ण घायल हो गए थे। माना जाता है कि मंदिर में भगवान विष्णु के मूर्ति पर निशान इस किंवदंती का पालन करता है।

एक अन्य कथा के अनुसार,  सुमति नाम के एक चोल राजा विष्णु को सारथी के रूप में देखना चाहते थे और उन्होंने तिरुपति के श्रीनिवास मंदिर में प्रार्थना की‌। भगवान बालाजी ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी का रूप बदलकर उनकी यह इच्छा पूरी की। पार्थसारथी उनके सामने युद्ध के घावों और मूछों के साथ प्रकट हुए।

पार्थसारथी मंदिर, चेन्नई । Sri Parthasarathy Temple, Chennai

इतिहास

मंदिर मूल रूप से आठवीं शताब्दी में पल्लव के राजा नरसिंहवर्मन द्वारा बनाया गया था। बाद में चोलों द्वारा और 15वीं शताब्दी में विजय नगर राजाओं द्वारा इसका विस्तार किया गया था। मंदिर में तमिल में आठवीं शताब्दी के शिलालेख हैं,संभवत दंतीवर्मन के काल से जो विष्णु के भक्त थे। ऐतिहासिक साहित्य में भगवान कृष्ण के भक्तों जैसे थिरुमजिसाई अलवर, पेयलवर और थिरुमंगाईलवर के गीतों में भी इसका जिक्र है।मंदिर के आंतरिक संदर्भ से ऐसा प्रतीत होता है कि 1564 ईस्वी के दौरान नए मंदिरों के निर्माण के दौरान मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।

बाद के वर्षों में गांव और उद्यानों के दान ने मंदिर को समृद्ध किया। मंदिर में आठवीं शताब्दी के पल्लव राजा नंदीबर्मन के बारे में भी शिलालेख है।

मंदिर चोल काल के दौरान बड़े पैमाने पर बनाया गया था, और इसी अवधि के कई शिलालेख यहां पाए जाते हैं। सबसे भारी मंडपम विष्णु के विभिन्न रूपों विशेषकर अवतारों की मूर्तियों से भरा हुआ है। मंदिर में आठवीं शताब्दी के दंतीवर्मन पल्लव, चोल और विजयनगर के शिलालेख भी देखे जा सकते हैं।

यह मंदिर 'वृंदारण्यस्थलम' स्थान पर मौजूद है जहां सप्तऋषियों (भृगु, अत्रि, मारिची, मार्कंडेय, सुमति, सप्तरमा और जबाली) ने तप किया था। इस स्थान को 'पंचवीरस्थलम'(इंद्र, सोम, अग्नि, मीना और विष्णु) भी कहा जाता है जिसका अर्थ है पांच वीरों की भूमि। जिस स्थान पर यह मंदिर मौजूद है उसे 'थिरुवल्लीकेनी' कहा जाता है।यह नाम भगवान रंगनाथ कि साथीदेवी 'वेदवल्ली' से आया है, जिनका जन्म इस मंदिर के सामने सरोवर में तैरते कमल पर हुआ था। यह शहर का सबसे पुराना मंदिर है, क्योंकि आज इस गांव में स्थित है उसका उल्लेख पल्लव राजा के शासनकाल तक का है।

पार्थसारथी मंदिर, चेन्नई । Sri Parthasarathy Temple, Chennai

वास्तु कला

पार्थसारथी मंदिर की विशेषता है कि इसका निर्माण किसी एक राजा के द्वारा नहीं हुआ था। समय के साथ-साथ कई राजाओं ने यहां निर्माण कार्य कराए और मंदिर का विस्तार होता गया।मंदिर में कई मंडप और महामंडप हैं, जो विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और त्योहारों पर उपयोग होते हैं। मंदिर का गोपुरम दूर से ही देखा जा सकता है। इसके अलावा मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर बेहतरीन नक्काशी भी की गई है।

पार्थसारथी मंदिर की विशेषता है कि इसके परिसर में विभिन्न भगवानों को समर्पित सात मंदिर हैं।पार्थ सारथी मंदिर के दो प्रवेश द्वार हैं एक द्वार भगवान पार्थसारथी, देवी रुक्मणी और सत्यभामा के मंदिर को जाता है, दूसरा द्वार भगवान नरसिंह के मंदिर को जाता है, जहां वह योग मुद्रा में हैं। भगवान पार्थसारथी दुश्मनों से लड़ने और भगवान नरसिंह सामना करने की शक्ति देते हैं।

मंदिर में पंचधातु से बने श्री कृष्ण की एक मूर्ति है जो अर्जुन के सारथी के रूप में रथ के साथ स्थापित है। इसमें श्रीकृष्ण को घायलावस्था में दिखाया गया है।श्री कृष्ण के चेहरे पर जख्म के निशान महाभारत युद्ध में भीष्म द्वारा छोड़े गए तीरों से हुए दर्शाया गया है। दक्षिण के वृंदावन के रूप में विख्यात मंदिर भारत के गिने-चुने विलक्षण कृष्ण मंदिरों में से एक है।

पार्थसारथी मंदिर अपने गोपुरम और वास्तुशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में साल भर विभिन्न भगवानों के सम्मान में कई उत्सव आयोजित होते हैं, इसी कारण यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। इन त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण है वैकुंठ एकादशी, क्योंकि इस दिन ना केवल चेन्नई बल्कि तमिलनाडु और भारत के विभिन्न हिस्सों से भी भारी भीड़ मंदिर में आती है। यह त्यौहार विभिन्न अनुष्ठानों, गानों, नृत्य, पूजा और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ मनाये जाते हैं।

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Parthasarathy Temple

Parthasarathy Temple is an eighth century temple dedicated to Lord Vishnu located in Tiruvallikeni, Chennai, India. Parthasarathy Temple is also known as Arulmigu Parthasarathyswamy Temple. This is a Vaishnava temple of Lord Krishna. 'Parthasarathy' is a Sanskrit word, meaning 'Arjuna's charioteer', referring to Krishna's role as Arjuna's charioteer in the Mahabharata.

It was originally built by the Pallavas in the 6th century AD by King Narasimhavarman I.

Parthasarathy Temple is one of the 108 famous places of worship of Lord Vishnu. There are four different avatars of Lord Vishnu - Lord Krishna, Lord Rama, Lord Narasimha and Lord Varaha. Here all the four incarnations of Lord Vishnu can be worshiped at the same place, which adds to its importance. There is a separate entrance for the shrines of Lord Rama and Lord Narasimha. This temple is unique in this sense. The gopurams and mandapas are decorated with elaborate carvings of South Indian temple architecture.
पार्थसारथी मंदिर, चेन्नई । Sri Parthasarathy Temple, Chennai

Legend

 According to the Mahabharata, Lord Krishna who is an incarnation of Vishnu came to the battlefield as Arjuna's charioteer during the battle between the Kauravas and the Pandavas. Krishna did not take any weapon during the war. During the fight between Arjuna and Bhishma, Krishna was injured by Bhishma's arrows. The mark on the idol of Lord Vishnu in the temple is believed to follow this legend.

According to another legend, a Chola king named Sumati wanted to see Vishnu as a charioteer and prayed at the Srinivasa temple in Tirupati. Lord Balaji fulfilled this wish of Arjuna by changing the form of his charioteer in the war of Mahabharata. Parthasarathy appeared before him with war wounds and a moustache.
पार्थसारथी मंदिर, चेन्नई । Sri Parthasarathy Temple, Chennai

History

The temple was originally built by the Pallava king Narasimhavarman in the eighth century. It was later expanded by the Cholas and by the Vijayanagara kings in the 15th century. The temple has inscriptions in Tamil from the eighth century, probably from the time of Dantivarman, a devotee of Vishnu. It is also mentioned in the historical literature in the songs of the devotees of Lord Krishna such as Thirumajisai Alvar, Payalvar and Thirumangailvar. From the internal context of the temple it appears that the temple was renovated during the construction of new temples during 1564 AD.

In later years the donation of the village and the gardens enriched the temple. The temple also has an inscription about the eighth century Pallava king Nandibarman.

The temple was built extensively during the Chola period, and many inscriptions from the same period are found here. The heaviest mandapam is filled with sculptures of various forms of Vishnu especially incarnations. Inscriptions from the eighth century Dantivarman Pallava, Chola and Vijayanagara can also be seen in the temple.

This temple is present at the place 'Vrindaranyasthalam' where the Saptarishis (Bhrigu, Atri, Marichi, Markandeya, Sumati, Saptrama and Jabali) meditated. This place is also called 'Panchavirasthalam' (Indra, Soma, Agni, Meena and Vishnu) which means the land of five heroes. The place where this temple exists is called 'Thiruvallikeni'. The name comes from 'Vedavalli', the companion of Lord Ranganatha, who was born on a lotus floating in the lake in front of this temple. This is the oldest temple in the city, as it is located in the village today, it is mentioned till the reign of the Pallava king.
पार्थसारथी मंदिर, चेन्नई । Sri Parthasarathy Temple, Chennai

Architecture

The specialty of the Parthasarathy temple is that it was not built by any one king. With the passage of time, many kings carried out construction work here and the temple expanded. The temple has many mandapas and mahamandapas, which are used for various religious rituals and festivals. The Gopuram of the temple can be seen from a distance. Apart from this, excellent carvings have also been done on the pillars and walls of the temple.

Parthasarathy Temple is special in that it has seven temples dedicated to different Gods in its premises. Parthasarathi Temple has two entrances. One door leads to the temple of Lord Parthasarathy, Goddess Rukmani and Satyabhama, the other door leads to the temple of Lord Narasimha, Where he is in yoga posture. Lord Parthasarathy gives strength to fight with enemies and Lord Narasimha to face.

The temple has an idol of Sri Krishna made of Panchadhatu which is installed with a chariot as Arjuna's charioteer. In this, Shri Krishna is shown in an injured condition. The scars on the face of Shri Krishna are shown from the arrows fired by Bhishma in the Mahabharata war. Known as the Vrindavan of the South, the temple is one of the few unique Krishna temples in India.

Parthasarathy Temple is famous for its Gopuram and architecture. Various festivals are organized in the temple throughout the year in honor of different gods, due to which a large number of tourists visit here. The most important of these festivals is Vaikuntha Ekadashi, as on this day huge crowds visit the temple not only from Chennai but also from different parts of Tamil Nadu and India. These festivals are celebrated with various rituals, songs, dance, worship and delicious dishes. 
पार्थसारथी मंदिर, चेन्नई । Sri Parthasarathy Temple, Chennai

सिर्फ केला ही नहीं इसका फूल भी होता है सेहत के लिए फायदेमंद

सिर्फ केला ही नहीं इसका फूल भी होता है सेहत के लिए फायदेमंद 

केले के फायदे से तो सभी परिचित हैं पर शायद केले के फूल के फायदे कुछ लोगों को ही पता होंगे आज हम यहां केले के फूल के औषधीय गुणों की चर्चा करेंगे। केले में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं, तो वहीं इसका फूल भी सेहत के लिए काफी अच्छा होता है। मतलब केले का फूल इसके फल की तरह ही काफी फायदेमंद है। इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधि के रूप में भी किया जाता है।

सिर्फ केला ही नहीं इसका फूल भी होता है सेहत के लिए फायदेमंद

केले का फूल क्या है?

केले के वृक्ष से सभी परिचित हैं। यह मूसा जाति का घासदार पौधा है, जिसमें उत्पादित फल को केला कहते हैं। इसकी खेती संपूर्ण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। मुख्य रूप से फल के लिए इसकी खेती होती है। कुछ हद तक रेशों के उत्पादन और सजावटी पौधे के रूप में इसकी खेती की जाती है। केले का वृक्ष बड़ा होने पर उसके बीच से एक फूल निकलता है, जिसको साधारण बोल चाल की भाषा में केले का घार कहा जाता है। यही केले का फूल होता है, जो नीचे की तरफ लटकते हुए उसमें फल आने शुरू हो जाते हैं। केले के फल लटकते गुच्छों में ही बड़े हो जाते हैं।

जानते हैं केले के फल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में (Kele Ke Phool Ke Fayde)

सिर्फ केला ही नहीं इसका फूल भी होता है सेहत के लिए फायदेमंद

केले के पेड़ के लगभग प्रत्येक हिस्से को किसी न किसी उपयोग में लाया जाता है। फूल, फल और तनों को तो खाया जाता है। पत्तियों को प्लेटों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और छाल का उपयोग कागज बनाने के लिए होता है। केले के फूल फाइबर, प्रोटीन, पोटेशियम, कैल्शियम, तांबा, फास्फोरस, लोहा, मैग्नीशियम और विटामिन ई से भरपूर होते हैं। इन सुंदर फूलों को कच्चा या पक्का कर खाया जा सकता है। इसका इस्तेमाल कई बेशकीमती हेयर सिरम फेशियल ऑयल क्रीम और स्क्रब के लिए भी होता है।

मधुमेह के रोगियों के लिए

केले के फूल को उबालकर उसका काला मधुमेह के रोगियों को पिलाया जाए तो उनका इंसुलिन कम होता है। इसमें रक्त में शर्करा के स्तर को कम करने का गुण पाया जाता है। केले के फूल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स और फाइबर भी डायबिटीज को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। इसके लिए केले के फूल की सब्जी का भी सेवन किया जा सकता है।

वजन कम करने में

केले का फूल वजन कम करने में भी सहायक है इसमें मौजूद फाइबर की मात्रा अधिक होती है जो पेट को ज्यादा समय तक भरी रखती है जिससे भूख कम लगती है और वजन कम करने में मदद मिलती है। इसके लिए केले के फूल के सलाद और सूप का उपयोग करें।

उच्च रक्तचाप के लिए

केले के फूल में मौजूद फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट यौगिक और कई अन्य मैक्रो और माइक्रो पोषक तत्व उच्च रक्तचाप को कम करने में सहायक होते हैं।

गर्भाशय से संबंधित समस्या

केले के फूल के काढ़े में हल्दी पाउडर, काली मिर्च और जीरा मिलाकर इसका सेवन करने से गर्भाशय से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं।

पाचन के लिए

केले के फूल में घुलनशील और अघुलनशील फाइबर भरपूर मात्रा में होते हैं। इसमें मौजूद फाइबर पाचन संबंधी समस्याओं में सहायक होता है। यह पेट में भोजन के अवशोषण को बढ़ावा देने में सहायक है।

सिर्फ केला ही नहीं इसका फूल भी होता है सेहत के लिए फायदेमंद

डिप्रेशन की समस्या

केले के फूल में मौजूद मैग्नीशियम स्ट्रेस को कम करता है और तनाव की समस्या को हमसे दूर करता है।

हीमोग्लोबिन की कमी 

केले के फूल में आयरन की प्रचुर मात्रा होती है। यह हिमोग्लोबिन की कमी को पूरा करता है। यह शरीर में खून की कमी को दूर करता हैै। केले के फूल में पोटेशियम, कैल्शियम, कॉपर, फास्फोरस, आयरन, मैग्नीशियम और विटामिन ई भी होता है।

एंटी एजिंग 

केले के फूल खाने के फायदों में जवां दिखना भी शामिल है। केले के फूल में एंटी एजिंग प्रभाव होता है, जो त्वचा पर होने वाले बढ़ती उम्र के प्रभाव को धीमा करता है।

स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए

स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए भी यह एक उत्तम खाद्य पदार्थ है। यह एक तरह का गैलेक्टागोग (Galactagogue) खाद्य पदार्थ है, जो लेक्टेशन को बढ़ावा देता है अर्थात दूध को बढ़ाता है। इसमें मौजूद प्रोटीन भी दूध को बढ़ाने में सहायक होता है।

केले के फूल में मौजूद पौष्टिक तत्व (Nutritional Value of Banana Flower )

केले के फूल में मौजूद पौष्टिक तत्व (Nutritional Value of Banana Flower )

इसके अलावा केले के फूल में मैग्नीशियम पोटेशियम कॉपर फाइबर फास्फोरस विटामिन ई और फैट की अच्छी मात्रा पाई जाती है इनकी वजह से केले के फूल को पौष्टिक माना गया है।

केले के फूल का उपयोग कैसे करें?

  • केले के फूल का उपयोग कई प्रकार से किया जा सकता है -
  • सामान्य तौर पर केले के फूल की सब्जी बनाई जाती है।
  • इसका सूप भी बना सकते हैं।
  • केले के फूल की कड़ी भी खूब पसंद की जाती है।
  • इसका उपयोग दाल में भी किया जा सकता है।
  • इसे उबालकर खाया जा सकता है या इसका पकोड़े बनाने में भी उपयोग होता है।
  • कुछ जगहों पर केले के फूल के आचार बनाने की भी परंपरा है।
  • केले के फूल को हल्का सा तलकर और नमक मिर्ची डालकर भी खाया जाता है।

केले के फूल के नुकसान

  • इसके गुण जानने के साथ ही कुछ सावधानी के तौर पर केले के फूल के नुकसान के बारे में भी जान लेना जरूरी है
  • ऊपर बताए गए अनुसार यह ब्लड ग्लूकोस को कम करने करके डायबिटीज के स्तर को कम करता है ऐसे में इसके अधिक सेवन से ब्लड ग्लूकोज का स्तर कम भी हो सकता है। अतः डायबिटीज के रोगी ध्यान से इसका सेवन करें।
  • या ब्लड प्रेशर को भी कम करता है अतः लो बीपी वाले लोगों को इसका ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए।
  • कोशिश करें कि इसे ताजा ही खाएं यह जितना ताजा होगा शरीर के लिए उतना गुणकारी साबित होगा।

सिर्फ केला ही नहीं इसका फूल भी होता है सेहत के लिए फायदेमंद

English Translate

Not only Banana, its flower is also beneficial for Health

Everyone is familiar with the benefits of banana, but perhaps only a few people will know the benefits of banana flower, today we will discuss the medicinal properties of banana flower here. Many types of nutrients are found in banana, while its flower is also very good for health. Meaning the banana flower is as beneficial as its fruit. It is also used as an Ayurvedic medicine.

What is Banana Flower?

Everyone is familiar with the banana tree. It is a grassy plant of Musa species, in which the fruit produced is called banana. It is cultivated throughout the tropical regions. It is cultivated mainly for the fruit. It is cultivated to some extent for fiber production and as an ornamental plant. When the banana tree grows up, a flower emerges from its middle, which is called the house of banana in the language of simple speech. This is the banana flower, which hangs down and starts bearing fruits. Banana fruits grow in hanging bunches only.

Know about the advantages and disadvantages of banana fruit, its use and medicinal properties.

Almost every part of the banana tree is put to some use or the other. Flowers, fruits and stems are eaten. The leaves can be used as plates and the bark is used to make paper. Banana flowers are rich in fiber, protein, potassium, calcium, copper, phosphorus, iron, magnesium and vitamin E. These beautiful flowers can be eaten raw or cooked. It is also used for many prized hair serums, facial oil creams and scrubs.

For Diabetic Patients

If banana flower is boiled and its black is given to diabetic patients, then their insulin is low. It has the property of reducing the level of sugar in the blood. Antioxidants and fiber present in banana flower are also helpful in controlling diabetes. Banana flower vegetable can also be consumed for this.

In Losing Weight

Banana flower is also helpful in reducing weight, the amount of fiber present in it is high, which keeps the stomach full for a long time, which reduces appetite and helps in reducing weight. Use banana flower salad and soup for this.

For High Blood Pressure

The fiber, antioxidant compounds and many other macro and micro nutrients present in banana flower are helpful in reducing high blood pressure.

Uterine Problems

Mixing turmeric powder, black pepper and cumin seeds in a decoction of banana flower, consuming it cures problems related to the uterus.

For Digestion

Banana flowers are rich in soluble and insoluble fiber. The fiber present in it helps in digestion related problems. It is helpful in promoting the absorption of food in the stomach.

सिर्फ केला ही नहीं इसका फूल भी होता है सेहत के लिए फायदेमंद

Depression Problem

The magnesium present in the banana flower reduces stress and removes the problem of stress from us.

Hemoglobin Deficiency

Banana flowers are rich in iron. It fulfills the deficiency of hemoglobin. It removes the lack of blood in the body. Banana flower also contains potassium, calcium, copper, phosphorus, iron, magnesium and vitamin E.

Anti Aging

The benefits of eating banana flowers also include looking young. Banana flower has anti-aging effect, which slows down the effects of aging on the skin.

For Lactating Mothers

It is also a great food item for lactating mothers. It is a type of galactagogue food item, which promotes lactation i.e. increases milk. The protein present in it also helps in increasing milk.

How to use Banana Flower?

  • Banana flower can be used in many ways -
  • Banana flower vegetable is generally made.
  • You can also make soup from it.
  • Banana flower curry is also very much liked.
  • It can also be used in pulses.
  • It can be eaten boiled or it is also used in making pakoras.
  • There is also a tradition of making pickles from banana flowers in some places.
  • Banana flowers are also eaten after frying them lightly and adding salt and pepper.

Side Effects of Banana Flower

Along with knowing its properties, it is also important to know about the disadvantages of banana flower as a precaution.

  • As mentioned above, it reduces the level of diabetes by lowering the blood glucose, in such a situation, its excessive consumption can also reduce the level of blood glucose. Therefore, diabetic patients should consume it carefully.
  • Or also lowers blood pressure, so people with low BP should not consume much of it.
  • Try to eat it fresh, the fresher it is, the more beneficial it will be for the body.

सिर्फ केला ही नहीं इसका फूल भी होता है सेहत के लिए फायदेमंद

केले के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों

Sunday.. इतवार ..रविवार

 इतवार (Sunday)

Sunday.. इतवार ..रविवार..Rupa
ना संघर्ष, ना तकलीफ, तो क्या मज़ा है जीने में
बड़े बड़े तूफ़ान थम जाते हैं, जब आग लगी हो सीने में..❤

*सरल जटिल*

अब भाइयों के आगे पीछे नहीं करना पड़ता
किसी भी काम को करवाने के लिए
होम डिलीवरी ने
लड़कों की जगह ले ली है |

अब कोई बहन किसी बहन की चिरोरी नहीं करती
कि प्लीज मेरी साइंस की कॉपी में चित्र बना दे
मुझे बनानी नहीं आ रही, 
किसी बहन को कोई कला ज्यादा अच्छे से आने पर 
उनके इठलाने का हक मोबाइल ले उड़ा |

अब दादी - नानी के किस्से कहानियों की पोटली में
न खुल सकने वाली गांठ बाँध दी कार्टून ने |
मम्मी के हाथ के जादुई स्वाद के सीक्रेट्स को यूट्यूब वीडियो ने कैद कर लिए |

किसी दोस्त को अब बुलाने की जरूरत नहीं रही मेहंदी लगवाने के लिए, 
अब बुआ, चाची, मौसी, भाभियों से सिलाई, कढ़ाई, 
बुनाई के नमूने नहीं पूछने पड़ते 
गूगल ने सबको सर्वगुण सम्पन्न बना दिया |

अब जरूरत नहीं रही स्कूल का टाइम खत्म होने पर कुछ 
समझने पूछने के लिए किसी विशेष टीचर के इंतजार की 
हमारे पास अब इन्टरनेट गुरु है हर समस्या सुलझाने के लिए |

अब इंतजार नहीं रहता गर्मी की छुट्टियों में कुछ खास कजिन का गोलगप्पे, 
समोसे की दुकान पर ले जाने के लिए 
ऑनलाइन फूड डेलीवरी ने आत्मनिर्भर बना दिया हमें |

अब जरूरत नहीं पड़ती जन्मदिन, सालगिरह, 
को याद रखने के लिए डायरी पेन की, 
और न मुर्गे की बांग वाली अलार्म घड़ी की, 
फेसबुक नोटीफिकेशन जिंदाबाद |

अब जरूरत नहीं पड़ती नाम और पैसे कमाने के लिए 
जल्दी से बड़े हो जाने वाले सपने देखने की 
पाँच साल के बच्चों के लिए भी टीवी जगत ने 
शोहरत और दौलत कमाने के रास्ते खोल दिए |

अब हम नियम नहीं बांधते कि लूडो में पिटी गोटी नहीं चल सकते 
न कैरम में अपनी दो और तीन उँगलियों के करतब दिखा सकते 
न नजर बचा बेईमानी कर थोड़ी दुनियादारी सीखा पाते कि 
एक मशीन ने हमें अनुशासित कर दिया अपने नियमों से |

कि अब हम जमीन पर घुटनों के बल बकइयाँ मार चलने सीखने का 
धैर्य खो चुके अब हम सीधा उड़कर आसमान में पहुँच जाना चाहते हैं 
बिना ये जाने की वहाँ जीवित रहने को अन्न और छत का बसेरा नहीं है |

हम दुनिया को अपनी मुट्ठी में बंद कर लेने के ख्वाब देखा करते थे 
मुट्ठी बंद करने की जरूरत नहीं पड़ी 
उँगलियों की एक छुअन में अब हमने पूरी दुनिया को नाप लिया है |

"सच में दुनिया हमारे लिए कितनी सरल होती जा रही
और मानवीय संवेदनाएं कितनी जटिल" |

Sunday.. इतवार ..रविवार

"जो हाशिल नहीं होती है बस वही याद रह जाती है.. 
बाकी देती तो बहुत कुछ है ज़िंदगी "..❤

सत्य का प्रभाव । जातक कथा

सत्य का प्रभाव

एक बार बोधिसत्व का जन्म ब्रह्मदत्त के राज्य काल में बनारस में एक बहुत धनी व्यापारी के घर हुआ। व्यापारी के दो और भी पुत्र थेे। एक दिन अवकाश का लाभ उठाकर वे तीनों नगर के प्रसिद्ध सरोवर में कमल पुष्प लेने गए।

सत्य का प्रभाव । जातक कथा

सरोवर का रक्षक नकटा था। कमल उसी से प्राप्त करने होते थे। सबसे बड़े भाई ने नकटे के पास जाकर उसे प्रसन्न करने के उद्देश्य से उससे कहा, "बार बार कट छट कर भी मूंछ और दाढ़ी फिर उग आती हैं। तुम्हारी नाक भी इसी भांति फिर से आएगी। कृपया हमें एक कमल पुष्प प्रदान कीजिए।"

उसकी बात सुनकर नकटा बहुत बिगड़ा और उसको कमल पुष्प देने से इनकार कर दिया।

इसके पश्चात दूसरे भाई ने भी अपनी बात उससे कहीं और कमल प्राप्त करने का प्रयत्न किया।

दूसरे ने कहा, "हेमंत में बीज बोए जाते हैं, जो बहुत दिनों बाद अंकुरित होते हैं। भगवान करे तुम्हारी नाक भी इसी प्रकार उग आवे। कृपया हमें एक कमल पुष्प प्रदान कर दीजिए।"

परंतु नकटे ने उसे भी मना कर दिया। 

इसके पश्चात बोधिसत्व ने उसके निकट जाकर कहा, "वह मूर्ख हैं, जो समझते हैं कि कमल इस प्रकार प्राप्त हो जाएगा। कोई चाहे कुछ भी कहे, परंतु कटी हुई नाक फिर से नहीं आती है। देखिए मैं आपसे सच्ची बात कहता हूं। कृपया मुझे केवल एक कमल दे दीजिए।"

 नकटे पर बोधिसत्व के सत्य का प्रभाव पड़ा। उसने कहा भाई तुम मुझे सच्चे मालूम होते हो, परंतु तुम्हारे दोनों भाई तो बिल्कुल भी बिगड़े हुए हैं। कमल पुष्प की प्राप्ति के लिए झूठ का सहारा ले रहे हैं। ऐसा कह कर उसने नीलकमलों का एक बड़ा गुच्छा बोधिसत्व के हाथ पर रख दिया।

English Translate

Effect of Truth

Once a Bodhisattva was born in the house of a very wealthy merchant in Banaras during the reign of Brahmadatta. The merchant had two other sons. One day, taking advantage of the holiday, all three of them went to the famous lake of the city to collect lotus flowers.

सत्य का प्रभाव । जातक कथा

The protector of the lake was Nakata. The lotus was to be obtained from him. The eldest brother went to Nakte to please him and said to him, "Mustache and beard grow again even after being cut again and again. Your nose will also come back in the same way. Please give us a lotus flower."

Hearing this, Nakta was very upset and refused to give him a lotus flower.

After this the other brother also tried to get lotus from him elsewhere.

Another said, "Seeds are sown in Hemant, which germinate after many days. May your nose grow like this. Please give us a lotus flower."

But Nakte refused him too.

After this the Bodhisattva approached him and said, "He is a fool who thinks that the lotus will be obtained in this way. No matter what one says, but the severed nose does not come again. Look, I tell you the truth. Please. Give me only one lotus."

 Nakte was influenced by the Bodhisattva's truth. He said brother, you seem to be true to me, but both your brothers are spoiled at all. They are resorting to lies to get the lotus flower. Having said this, he placed a large bunch of blue lotus flowers on the bodhisattva's hand.

भादो का महीना और आयुर्वेद || भादो के महीने में क्या खाएं क्या ना खाएं

भादो का महीना और आयुर्वेद || भादो के महीने में क्या खाएं क्या ना खाएं

भादो का महीना और आयुर्वेद भादो के महीने में क्या खाएं क्या ना खाएं

भादो

भादो की लस्सी कुत्तो की, कार्तिक की लस्सी पूतों को..

ये सुनने में केवल एक लोक कहावत लगती है लेकिन इसके बहुत गूढ़ अर्थ हैं। और ये सीधा सीधा हमारी सेहत से जुड़ा है। हिंदू कैलेंडर का छठा महीना भादों बरसात के दो महीनों में से एक है। सावन की रिमझिम बारिश में चारों और हरियाली की चादर फैली होती है, तो भाद्रपद महीने की धूपछांव सावन की हरियाली को खत्म करने लगती है। हांलाकि बारिश इस महीने में भी पड़ती है, लेकिन सूर्य चूंकि तब तक सिंह राशि में आ जाता है और शेर की तरह ही दहाड़ता दिखता है। इस महीने की धूप बहुत तीक्ष्ण होती है। इस महीने में भी उन्हीं सब बीमारियों का डर रहता है जिनका सावन में रहता हैं - वायरल, खांसी, जुकाम, डायरिया, मलेरिया, डेंगू आदि। आयुर्वेद में इस महीने में खान- पान के नियम बहुत सख्त रखे गए। इस महीने में दही और लस्सी का प्रयोग तो बिल्कुल मना किया गया है। दही और लस्सी ही क्यों खमीर से बनने वाले जितने भी खाद्य पदार्थ जैसे इडली , वड़ा , डोसा , ढ़ोकला आदि कुछ भी नहीं खाना चाहिए ।

भादो का महीना और आयुर्वेद । भादो के महीने में क्या खाएं क्या ना खाएं

इस महीने की उग्र धूप से शरीर में पित्त का संचय होता है । इसी कारण आपने देखा होगा कि कईं लोगों को बरसात में बहुत फोड़े फुंसियां निकलती हैं इसलिए उन सब वस्तुओं के खाने की मनाही है जिससे पित्त बढ़े। अरबी, भिंडी , कटहल जिमिकंद नहीं खाना चाहिए। परवल, करेला, मेथी दाना, कच्ची हल्दी, चिरायता और गिलोए का सेवन सेहत के लिए बहुत अच्छा है। आयुर्वेद के अनुसार इस महीने में पित्त शांत करने के लिए ठँडे दूध के साथ हरड़ का मुरब्बा खाना चाहिए। आंवले के साथ कुज्जे वाली मिश्री सुबह शाम लेनी चाहिए ।

इसी महीने में आता है गणेश उत्सव और गणेश जी पर दूर्वा चढ़ाई जाती है । महाराष्ट्र में तो दूर्वा की सुंदर माला बना कर गणेश जी को पहनायी जाती है । नन्ही दूब धार्मिक रूप से वृद्धि और विस्तार का प्रतीक है तो आयुर्वेद के अनुसार इसमें बहुत से गुण है दूर्वा पित्त को शांत करती है । कोमल दूर्वा का रस अगर खाली पेट लिया जाए तो शरीर की गरमी शांत होती है । और पित्त भी नियंत्रण में रहता है । दूर्वा एंटिबायटिक भी है ।

भादो का महीना और आयुर्वेद भादो के महीने में क्या खाएं क्या ना खाएं

चातुर्मास विशेषकर बरसात में सोने से तीन घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए . क्योंकि इन महीनों विशेष रूप से बरसात में जठराग्नि मंद पड़ जाती है और पाचन शक्ति बहुत अच्छी नहीं होती । शुद्ध सात्विक और कम मिर्च मसाले का भोजन करना चाहिए ।

भाद्रपद महीने का नाम दो नक्षत्रों उत्तराभाद्रपद और पूर्वाभाद्रपद के नाम से पड़ा है । इस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा इन दोनों में से किसी एक नक्षत्र में होता है । वैदिक काल में इस महीने को नभस्य और षौष्ठपद कहा जाता था । उत्तराभाद्रपद और पूर्वा भाद्रपद दो दो सितारों से मिल कर बने हैं यानि कुल मिला कर हुए चार सितारे । चारों सितारे मिल कर पलंग के पांयें की आकृति जैसे लगते हैं । अकेला उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का प्रतीक जुड़वां है । इसके स्वामी बृहस्पति और शनि हैं इसलिए इसमें सत गुणों और तमस गुणों का टकराव रहता है ।

भादो का महीना और आयुर्वेद । भादो के महीने में क्या खाएं क्या ना खाएं

भले ही भाद्रपद चातुर्मास का दूसरा महीना है, जिसमें सभी शुभ कार्य करने की शास्त्रों में मनाही है । क्योंकि इन महीनों में मन और तन दोनों ही कमज़ोर रहते हैं । नेगेटिव सोच हावी रहती है इसलिए अच्छे फैसले और शुभ कार्य नहीं किए जाते । लेकिन त्यौहारों और पर्वों की इस महीने में भरमार है । भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी उनकी शक्ति और सखी राधा रानी की जन्माष्टमी ,भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म , प्रथम पूजे जाने वाले गणपति बप्पा के जन्म की चतुर्थी और फिर पूरे दस दिन का गणपति उत्सव , भगवान विष्णु का वामन अवतार , केरल का ओणम उत्सव ये भी दस दिन तक चलता है । पूरा केरल फूलों की रंगोलियों से सज जाता है । अपने राजा बलि के धरती पर आगमन की खुशी में केरलवासी दस दिन का उत्सव मनाते हैं । भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराजा बलि से तीन पग धरती मांग ली थी और फिर तीन पग में पूरा ब्रह्मांड माप लिया और राजा बलि को पाताल में भेज दिया था । अपनी प्रजा को बलि बचन देकर गए थे कि इस महीने में दस दिन के लिए वो पृथ्वी पर हर साल आयेंगें । इसी महीने में जाहरवीर गुगापीर का पर्व भी आता है । और सुहागिनों का पर्व हरितालिका तीज भी इसी महीने में मनाया जाता है ।

भादो का महीना और आयुर्वेद । भादो के महीने में क्या खाएं क्या ना खाएं

सावन व् भादो मास में खान पान का विशेष् ध्यान रखे। इस मौसम में जठराग्नि (पाचन शक्ति) कमजोर व् मंद हो जाती है। इसलिए वात् पित्त व् कफ रोग बढ़ जाते है।वर्षा ऋतू में जलवायु में विषाक्त कीटाणु पैदा हो जाते है।जो बीमारियां फैलाते है।

क्या न खाए —

1. दूध, दही, लस्सी न पिए।

2. हरी पते वाली सब्ज़िया न खाएं।

भादो का महीना और आयुर्वेद । भादो के महीने में क्या खाएं क्या ना खाएं

3. रसदार फल न खाएं।

4. बैंगन न खाएं इनमे कीड़े हो जाते है और गैस भी बनाते है।

5. चकुंदर,खीरा, ककड़ी न खाए।

6. फ़ास्ट फूड न खाएं।

7. ज्यादा मिठाई न खाएं।

8. मास मदिरा न ले।

9.ठंडी व् बासी चीज न खाय।

10. आइस क्रीम व् कोल्ड ड्रिंक्स न पियें।

भादो का महीना और आयुर्वेद । भादो के महीने में क्या खाएं क्या ना खाएं

क्या खाएं —-

आयुर्वेद के अनुसार इस महीने में जल्दी पचने वाले ताज़ा व् गर्म खाना चाहिए।

1. सेब,केला,अनार,नासपाती आदि मौसमी फल खाये।

2. टमाटर का सुप ले सकते है।

3. अदरक,प्याज, लहसन खाएं।

4. बेसन की चीजें व् हलवा खाये।

5. पानी उबाल कर पिए।

6. हल्दी वाला दूध पिए।

7. देसी चाय पिए।

8. पुराना चावल, गेहूं ,मक्का, सरसों,मुंग, अरहर की दाल खाएं।

9.छोटी हरड खाएं पेट साफ़ रहेगा व् पेट की बीमारियो से बचाव रहेगा।

भादो का महीना और आयुर्वेद । भादो के महीने में क्या खाएं क्या ना खाएं


ऋतु अनुसार आहार

ऋतु अनुसार आहार (किस महीने में कौन सी चीज़ खानी चाहिए)

ऋतु अनुसार आहार (किस महीने में कौन सी चीज़ नही खानी चाहिए)

तेनालीराम - जादूगर का घमंड | Tenali Raman - Jadugar Ka Ghamand

जादूगर का घमंड

एक बार राजा कृष्ण देव राय के दरबार में एक जादूगर आया। उसने बहुत देर तक हैरतअंगेज़ जादू करतब दिखा कर पूरे दरबार का मनोरंजन किया। फिर जाते समय राजा से ढेर सारे उपहार ले कर अपनी कला के घमंड में सबको चुनौती दे डाली-

क्या कोई व्यक्ति मेरे जैसे अद्भुत करतब दिखा सकता है? क्या कोई मुझे यहाँ टक्कर दे सकता है?

जादूगर का घमंड - तेनालीराम  |  Jadugar Ka Ghamand - Tenali Raman

इस खुली चुनौती को सुन कर सारे दरबारी चुप हो गए, परंतु तेनालीराम को इस जादूगर का यह अभिमान अच्छा नहीं लगा। वह तुरंत उठ खड़े हुए और बोले कि हाँ मैं तुम्हे चुनौती देता हूँ कि जो करतब मैं अपनी आँखें बंद कर के दिखा दूंगा, वह तुम खुली आंखो से भी नहीं कर पाओगे। अब बताओ क्या तुम मेरी चुनौती स्वीकार करते हो?

जादूगर अपने अहम में अंधा हो चुका था। उसने तुरंत इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। तेनालीराम ने रसोइये को बुला कर उस के साथ मिर्ची का पाउडर मंगवाया। अब तेनालीराम ने अपनी आँखें बंद की और उनपर एक मुट्ठी मिर्ची पाउडर डाल दिया। फिर थोड़ी देर में उन्होंने मिर्ची पाउडर झटक कर कपड़े से आँखें पोंछ कर शीतल जल से अपना चेहरा धो लिया। और फिर जादूगर से कहा कि अब तुम खुली आँखों से यह करतब करके अपनी जादूगरी का नमूना दिखाओ।

घमंडी जादूगर को अपनी गलती समझ आ गयी। उसने माफी मांगी और हाथ जोड़ कर राजा के दरबार से चला गया।

राजा कृष्ण देव राय अपने चतुर मंत्री तेनालीराम की इस युक्ति से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होने तुरंत तेनालीराम को पुरस्कार दे कर सम्मानित किया और राज्य की इज्जत रखने के लिए धन्यवाद दिया।


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Sorcerer's Vanity

Once a magician came to the court of King Krishna Deva Raya. He entertained the whole court for a long time by performing amazing magic tricks. On his way back, taking a lot of gifts from the king, he challenged everyone in the pride of his art-

Can someone perform amazing feats like me? Can someone bump me here?

जादूगर का घमंड - तेनालीराम  |  Jadugar Ka Ghamand - Tenali Raman

Hearing this open challenge, all the courtiers became silent, but Tenaliram did not like this magician's pride. He immediately stood up and said that yes I challenge you that the feat that I will show with my eyes closed, you will not be able to do it even with open eyes. Now tell me do you accept my challenge?

The magician had become blind in his ego. He immediately accepted the challenge. Tenaliram called the cook and ordered chili powder with him. Now Tenaliram closed his eyes and put a handful of chili powder on them. Then after a while he wiped his eyes with a cloth after shaking off the chili powder and washed his face with cold water. And then told the magician that now you show the example of your magic by doing this feat with open eyes.

The proud magician realized his mistake. He apologized and with folded hands left the king's court.

King Krishna Deva Raya was greatly impressed by this tactic of his clever minister Tenaliram. He immediately honored Tenali Ram with the award and thanked him for keeping the state's honor.

ध्रुवीय ज्योति ऑरोरा / उत्तरी और दक्षिणी ज्योति

ध्रुवीय ज्योति ऑरोरा / उत्तरी और दक्षिणी ज्योति

The Aurora Borealis (Northern Lights) & the Aurora Australis (Southern Lights)

"ऑरोरा (Aurora)" एक प्राकृतिक रमणीय घटना है, जो आकाश में उज्जवल और रंगीन प्रकाश प्रदर्शित करता है। यह ध्रुवक्षेत्रों के वायुमंडल के ऊपरी भाग में दिखाई पड़ती है। उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को सुमेरु ज्योति (लैटिन:aurora borealis), या उत्तर ध्रुवीय ज्योति, तथा दक्षिणी अक्षांशो की ध्रुवीय ज्योति को कुमेरु ज्योति (लैटिन:aurora australis), या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति कहते हैं।प्राचीन रोम वासियों और यूनानियों को इन घटनाओं का ज्ञान था और उन्होंने इन तथ्यों का बेहद रोचक और विस्तृत वर्णन किया है।

ध्रुवीय ज्योति ऑरोरा / उत्तरी और दक्षिणी ज्योति

आर्कटिक सर्कल में उन्हें ऑरोरा बोरियलिस या उत्तरी रोशनी के रूप में जाना जाता है जबकि अंटार्कटिक सर्कल में उन्हें ऑरोरा आस्ट्रेलिया या दक्षिणी रोशनी कहा जाता है।

यह अद्भुत और रंगीन रोशनी तब बनती है जब सौर हवाओं से विद्युत आवेशित कण पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं और वातावरण में गैसों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं।

इस प्राकृतिक घटना को समझने के लिए हमें पृथ्वी और सूर्य के बारे में थोड़ी जानकारी एकत्रित करनी होगी, जो इस प्रकार है-

Aurora Borealis: Myths and Legends

उच्च ऊर्जा कणों की धारा

सूर्य लगातार विद्युत चुंबकीय विकिरण और अत्यधिक ऊर्जा वाले कणों को अंतरिक्ष में उत्सर्जित करता है, जो अंतरिक्ष मौसम उत्पन्न करते हैं। सौर हवा अंतरिक्ष मौसम का हिस्सा है, और अत्यधिक ऊर्जावान कणों कि एक सतत धारा है-ज्यादातर इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन-जो सूर्य से बहुत तेज गति और उच्च तापमान पर अंतरिक्ष के माध्यम से बाहर निकलते हैं। ये सौर हवाएं एक मिलियन मील प्रति घंटे की गति तक पहुंच सकती हैं।

पृथ्वी एक विशाल चुंबक है-

ध्रुवीय ज्योति ऑरोरा / उत्तरी और दक्षिणी ज्योति

पृथ्वी एक विशाल चुंबक है जिसका चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के केंद्र से अंतरिक्ष में उस क्षेत्र तक फैला हुआ है जहां यह सौर हवाओं से मिलता है। इस क्षेत्र का वह क्षेत्र जहां पृथ्वी का चुंबकीय प्रभाव सौर हवाओं पर हावी होता है मैग्नेटोस्फीयर के रूप में जाना जाता है। सौर हवाओं के टकराव से इसका आकार और प्रकार लगातार बदलता रहता है।

पृथ्वी का मैग्नेटोस्फीयर पृथ्वी को सौर हवाओं और अन्य हानिकारक ब्रह्मांडीय किरणों से बचाता है। यह सौर हवाओं से अधिकांश अत्यधिक आवेशित कणों को विक्षेपित करता है और उन्हें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकता है।

Aurora Australis in New Zealand

उच्च ऊर्जा टकराव

जबकि पृथ्वी का मैग्नेटोस्फीयर इस सौर हवा में अधिक आवेशित कणों से बचाने के लिए जिम्मेदार है, कभी-कभी जब परिस्थितियां सही होती हैं तो ये कण दो ध्रुवों पर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, जहां वे टकराते हैं और गैस के अणु और परमाणु को प्रभावित करते हैं।

जब इस तरह के टकराव होते हैं तो सौर हवाओं में इलेक्ट्रॉनों से ऊर्जा विभिन्न वायुमंडलीय गैसों के परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों में स्थानांतरित हो जाती है। फिर इन उत्तेजित परमाणुओं द्वारा किसी भी अतिरिक्त ऊर्जा को प्रकाश के रूप में छोड़ा जाता है।

ऑरोरा लाइट डिस्प्ले पृथ्वी की सतह से 50 मील (80.43 किलोमीटर) और 200 मील(321.87 किलोमीटर) के बीच होते हैं।

कई अलग-अलग रंग

प्रकाश का रंग गैस के अणुओं के प्रकार, टक्कर के समय उनकी विद्युत स्थिति, और वे किस प्रकार के सौर पवन कणों से टकराते हैं, पर निर्भर करता है। ऑक्सीजन परमाणु पीले - हरे या लाल रंग का प्रकाश उत्सर्जित करते हैं, जबकि नाइट्रोजन परमाणु नीले या बैगनी लाल रंग का प्रकाश उत्पन्न करते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में गैसों का मिश्रण बहुरंगी ऑरोरा बनाता है।

क्योंकि सौर हवाओं के कण लगातार पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं और गैस परमाणुओं के साथ टकराते हैं, इसलिए ऑरोरा डिस्प्ले स्थिर और साथ ही गतिशील हो सकते हैं-वे आकार और रंग बदल सकते हैं और आसमान में स्पंदित हो सकते हैं। ऑरोरल आकृतियां छः श्रेणियों में आती हैं-पर्दे, बैंड, घुंघट कोरोनस, पैच और किरणें।

Aurora Australis in New Zealand: The Southern Lights!

उत्तरी रोशनी देखने के लिए सर्वोत्तम स्थान

यदि ऑरोरा को अंतरिक्ष से देखा जाए तो वह दोनों ध्रुवों के चारों ओर लगभग 2500 मील (4000 किलोमीटर) में फैले एक वलय के आकार का अरोरा दिखेगा। यह आरोरल जोन मध्य और उत्तरी अलास्का और कनाडा, ग्रीनलैंड, उतरी स्कैंडिनेविया और उत्तरी गोलार्ध में रूस और दक्षिणी गोलार्ध में एंटार्कटिका को कवर करता है। दक्षिण में, ऑरोरा को कभी-कभी दक्षिणी आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और चिली से देखा जा सकता है।

कभी-कभी उच्च स्तर की सौर गतिविधि पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर के साथ टकराते हुए सौर हवाओं के तेज और हिंसक झोंकों को जन्म दे सकती है, जिससे भू- चुंबकीय तूफान हो सकता है। यह ध्रुवों के आसपास के क्षेत्र का विस्तार कर सकता है, जहां से ऑरोरल गतिविधि देखी जा सकती हैं जिससे निचले अक्षांशों पर ऑरोरा देखने की संभावना बढ़ जाती है।

ध्रुवीय ज्योति ऑरोरा / उत्तरी और दक्षिणी ज्योति

बहुत ही दुर्लभ अवसरों पर भूमध्य रेखा के करीब के स्थानों से ऑरोरल डिस्प्ले देखे जा सकते हैं उदाहरण के लिए, 1909 में, एक बहुत ही मजबूत भू-चुंबकीय तूफान के कारण सिंगापुर में लोग ऑरोरल डिस्प्ले देखने में सक्षम थे।

ऑरोरल लाइट देखने का सबसे अच्छा समय-

जबकि ऑरोरल गतिविधि और ऑरोरा पूरे वर्ष, दिन और रात में हो सकते हैं, उन्हें देखने का सबसे अच्छा समय सर्दियों के महीनों के दौरान रात में होता है। इसका कारण यह है कि सर्दियों के दौरान उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के आसपास के क्षेत्रों में लंबे समय तक अंधेरा रहता है। ऑरोरा सबसे अच्छी तरह से आधी रात में देखा जा सकता है, शहर से दूर। पूर्णिमा की रात ऑरोरा को देखना बहुत कठिन बना सकता है।

The Southern Lights , Wanderlust

11 साल का चक्र

ऑरोरा सीधे सौर गतिविधि है जो sunspot संख्या से जुड़ा है. Sunspot मतलब सूर्य की सतह पर काले धब्बे. सूर्य की सतह पर काले धब्बे सूर्य की गति की वजह से बनता है।अत्यधिक संख्या में sunspot का अर्थ है सूर्य द्वारा बड़ी संख्या में अत्यधिक आवेशित कणों को बाहर धकेला जा रहा है। यह बदले में पृथ्वी पर अधिक उतरी रोशनी गतिविधि को जन्म दे सकता है।

सौर खगोलविदों ने पाया है कि सूर्य सौर गतिविधि के चक्रों से गुजरता है। यह चक्र, जिसे सौरचक्र भी कहा जाता है, हर 11 साल में आता है। वैज्ञानिकों ने 1755 से 24 सौरचक्रों का अवलोकन किया है। जब मानव द्वारा सौर गतिविधि दर्ज की जाने लगी थी। कहा जाता है कि 24 वां सौर चक्र 2013 के मध्य में अपने चरम पर पहुंच गया 

क्या यह पता है?

कुछ अन्य ग्रहों पर भी ऑरोरा देखे गए हैं। कोई भी ग्रह जिसमें चुंबकीय क्षेत्र और वातावरण होता है उसमें ऑरोरल गतिविधि होती है।

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Polar Flame Aurora / North and South Flame

Aurora is a natural phenomenon, displaying bright and colorful light in the sky. It is visible in the upper part of the atmosphere of the pole regions. The polar flame of the northern latitudes is called the Sumeru flame (Latin: aurora borealis), or the north polar flame, and the polar flame of the southern latitudes is called the cumeru flame (Latin: aurora australis), or the south polar flame. The ancient Romans and Greeks thus He had knowledge of these events and he has given a very interesting and detailed description of these facts.

The Aurora Borealis (Northern Lights) & the Aurora Australis (Southern Lights)

To understand this natural phenomenon, we have to collect some information about the Earth and the Sun.

In the Arctic Circle they are known as the aurora borealis or northern lights while in the Antarctic Circle they are called aurora australis or southern lights.


This wonderful and colorful light is created when electrically charged particles from the solar winds enter the Earth's atmosphere and interact with gases in the atmosphere.

To understand this natural phenomenon, we have to collect some information about the Earth and the Sun, which is as follows-

Stream of high Energy Particles

The Sun continuously emits electromagnetic radiation and highly energized particles into space, which generate space weather. The solar wind is part of space weather, and is a continuous stream of highly energetic particles—mostly electrons and protons—that travel out of the Sun through space at very high speeds and high temperatures. These solar winds can reach speeds of up to a million miles per hour.

Polar Flame Aurora / North and South Flame

Earth is a Huge Magnet

The Earth is a giant magnet whose magnetic field extends from the center of the Earth to the region in space where it meets the solar winds. The region of the Earth where the Earth's magnetic influence dominates the solar winds is known as the magnetosphere. Is. Its size and type are constantly changing due to the collision of solar winds.

Earth's magnetosphere protects Earth from solar winds and other harmful cosmic rays. It deflects most of the highly charged particles from the solar winds and prevents them from entering the Earth's atmosphere.

High Energy Collision

While Earth's magnetosphere is responsible for shielding it from the more charged particles in this solar wind, sometimes when conditions are right these particles enter Earth's atmosphere at the two poles, where they collide and form gas molecules and atoms. affect.

When such collisions occur, the energy from the electrons in the solar wind is transferred to the electrons of the atoms of the various atmospheric gases. Any excess energy is then released as light by these excited atoms.

Aurora light displays are between 50 miles (80.43 kilometers) and 200 miles (321.87 kilometers) from Earth's surface.

ध्रुवीय ज्योति ऑरोरा / उत्तरी और दक्षिणी ज्योति

Many Different Colors

The color of the light depends on the type of gas molecules, their electrical state at the time of the collision, and the type of solar wind particles they collide with. Oxygen atoms emit yellow-green or red light, while nitrogen atoms produce blue or violet-red light. A mixture of gases in Earth's atmosphere creates multicolored auroras.

Because particles from the solar wind continually enter Earth's atmosphere and collide with gas atoms, aurora displays can be static as well as dynamic—they can change shape and color and pulsate across the sky. Auroral figures fall into six categories—curtains, bands, veil coronas, patches, and rays.

Best Places to see the Northern Lights

If viewed from space, the aurora will appear as a ring-shaped aurora spread about 2,500 miles (4000 km) around both poles. This auroral zone covers central and northern Alaska and Canada, Greenland, northern Scandinavia and Russia in the Northern Hemisphere and Antarctica in the Southern Hemisphere. In the south, aurora can sometimes be seen from southern Australia, New Zealand and Chile.

Sometimes high levels of solar activity can lead to strong and violent gusts of solar winds colliding with Earth's magnetosphere, causing geomagnetic storms. This can extend the area around the poles from where auroral activity can be observed, increasing the chances of seeing auroras at lower latitudes.

Polar Flame Aurora / North and South Flame

On very rare occasions auroral displays can be seen from places close to the equator. For example, in 1909, a very strong geomagnetic storm caused people in Singapore to be able to see auroral displays.

Best time to see Auroral Light-

While auroral activity and auroras can occur throughout the year, day and night, the best time to see them is at night during the winter months. This is because the areas around the North and South Poles are dark for long periods of time during the winter. The aurora can be best seen at midnight, away from the city. Full moon nights can make aurora very difficult to see.

11 Year Cycle

Aurora is directly solar activity linked to sunspot number. Sunspot means dark spots on the surface of the Sun. Dark spots on the surface of the Sun are formed due to the motion of the Sun. A large number of sunspots means that a large number of highly charged particles are being pushed out by the Sun. This in turn could lead to more descending light activity on Earth.

Solar astronomers have found that the Sun goes through cycles of solar activity. This cycle, also known as the solar cycle, occurs every 11 years. Scientists have observed 24 solar cycles since 1755. When solar activity was started to be recorded by humans. The 24th solar cycle is said to have reached its peak in mid-2013

Aurora Borealis: Myths and Legends

Do you know it?

Auroras have also been observed on some other planets. Any planet that has a magnetic field and atmosphere has auroral activity.

नर्मदा नदी की कहानी

नर्मदा नदी की कहानी

मान्यता के अनुसार, भारत में एक ऐसी नदी है जहां से निकला हर एक पत्थर शिवलिंग माना जाता है। ग्रंथों में इस नदी को नर्मदा नदी के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहते हैं कि गंगा में नहाने से जो फल मिलता है, वही फल नर्मदा नदी में भी स्नान करने से मिलता है। नर्मदा नदी पूरे भारतवर्ष की नदियों में से एक ही है जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है।

नर्मदा नदी
नर्मदा नदी

पुराणों के अनुसार, नर्मदा नदी से निकला हर एक पत्थर शिवजी का प्रतीक है। यहां से निकले पत्थरों को शिवलिंग के रूप में स्थापित करके उनकी पूजा की जाती है‌। नर्मदा से निकले शिवलिंग को "नर्मदेश्वर शिवलिंग" कहा जाता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, नर्मदा नदी को शिवजी का वरदान प्राप्त है, इसी कारण इससे प्राप्त होने वाले शिवलिंग को पवित्र माना जाता है और सीधा ही स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है, इसके प्राण-प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती। कहा जाता है कि जहां नर्मदेश्वर का वास होता है, वहां काल और यम का भय नहीं होता, और वह व्यक्ति समस्त सुखों का भोग करते हुए शिवलोक तक जाता है। इसलिए सभी शिवलिंगों में नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और फलदाई होती है। गृहस्थ लोगों को शिवलिंग की पूजा हर दिन करनी चाहिए। यह परिवार का मंगल करने वाला समस्त सिद्धियों व स्थिर लक्ष्मी देने वाला शिवलिंग है ।

नर्मदा नदी के हर पत्थर में बसें है शिव

नर्मदा नदी के हर पत्थर में बसें है शिव

नर्मदा नदी का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है, और हैरान करने वाली बात यह है कि यहां से कई बार ऊं लिखे हुए भी शिवलिंग निकलते हैं, जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग यहां आते हैं, और महादेव का चमत्कार देखकर दंग रह जाते हैं।

नर्मदा का "हर कंकर शंकर" है.

नर्मदा नदी के हर पत्थर में बसें है शिव

भारत में गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा सर्वश्रेष्ठ नदियां हैं। इनमें भी इस भूमंडल पर गंगा की समता करने वाली कोई नदी नहीं है।ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में नर्मदा नदी ने बहुत सालों तक तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा। नर्मदा जी ने कहा आप मुझे भी गंगा के समान बना दीजिए, तब ब्रह्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि, यदि कोई दूसरा देवता भगवान शिव की बराबरी कर ले, कोई दूसरा पुरुष भगवान विष्णु के समान हो जाए, कोई दूसरी नारी पार्वती जी की समानता कर ले और कोई दूसरी नगरी काशीपुरी की बराबरी कर सके तो कोई दूसरी नदी भी गंगा के समान हो सकती है।

नर्मदेश्वर महादेव

नर्मदेश्वर महादेव

ब्रह्मा जी की बात सुनकर नर्मदा जी उनके वरदान का त्याग करके काशी चली गईं, और वहीं पिलपिला तीर्थ में शिवलिंग की स्थापना करके कठिन तप करने लगीं। उनके तप से भगवान शंकर खुश हुए और प्रकट होकर कोई वर मांगने को कहा तब नर्मदा जी ने कहा कि तुच्छ वर मांगने से क्या लाभ! बस आपके चरण कमलों में मेरी भक्ति बनी रहे। नर्मदा की बात सुनकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि तुम्हारे तट पर जितने भी पत्थर हैं सब मेरे वर से शिवलिंग रूप में हो जाएंगे, गंगा में स्नान करने से शीघ्र ही पापों का नाश होता है, यमुना 7 दिन के  स्नान से और सरस्वती 3 दिन के स्नान से पापों का नाश करती हैं, मगर तुम दर्शन मात्र से ही संपूर्ण पापों का नाश करने वाली होगी। तुमने जो नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना की है, वह पुण्य और मोक्ष देने वाला होगा उसी समय भगवान शंकर उस शिवलिंग में लीन हो गए। इतनी पवित्रता पाकर नर्मदा भी प्रसन्न हो गईं, इसलिए कहा जाता है कि नर्मदा का हर कंकर शंकर हैं।

नर्मदेश्वर महादेव

नर्मदा का हर कंकर शंकर है

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Story of Narmada River

According to the belief, there is such a river in India from where every stone that comes out is considered to be a Shivling. In the texts this river is known as Narmada River. It is said that the fruit that one gets by bathing in the Ganges, the same result one gets by bathing in the Narmada river. Narmada river is one of the rivers of whole of India which flows from east to west.

According to the Puranas, every stone that came out of the Narmada river is a symbol of Shiva. The stones emanating from here are worshiped by installing them in the form of Shivling. The Shivling that emerged from Narmada is called Narmadeshwar Shivling. According to mythological scriptures, the Narmada river is blessed by Shiva, that is why the Shivalinga obtained from it is considered holy and is worshiped by installing it directly, it does not require life-prestige. It is said that where Narmadeshwar resides, there is no fear of Kaal and Yama, and that person, enjoying all the pleasures, goes to Shivaloka. Therefore the worship of Narmadeshwar Shivling is most important and fruitful among all Shivlings. The householders should worship Shivling every day. This is the Shivalinga, who blesses the family, gives all the accomplishments and stable Lakshmi.

नर्मदा का हर कंकर शंकर है

Narmada river has been mentioned in Shiva Purana, and the surprising thing is that many times Shivling comes out from here, to see which people come from far and wide, and are stunned to see the miracle of Mahadev. go.


"Har Kankar" of Narmada is Shankar.


Ganga, Yamuna, Saraswati and Narmada are the best rivers in India. Even among them there is no river on this earth which is equal to the Ganges. It is said that in ancient times, Narmada river pleased Brahma ji by doing penance for many years. Brahma ji was pleased and asked him to ask for a boon. Narmada ji said that you make me like Ganga, then Brahma ji smiled and said that, if any other deity equals Lord Shiva, another man becomes equal to Lord Vishnu, another woman equals Parvati ji. And if any other city can match Kashipuri, then any other river can also be like Ganga.

नर्मदेश्वर महादेव

नर्मदेश्वर महादेव

Hearing the words of Brahma ji, Narmada ji left his boon and went to Kashi, and there after establishing a Shivling in the Pilapila shrine, she started doing hard penance. Lord Shankar was pleased with his tenacity and appeared and asked to ask for a boon, then Narmada ji said that what is the use of asking for a frivolous boon! Just keep my devotion at your lotus feet. Lord Shankar was very pleased after listening to Narmada and said that all the stones on your banks will be taken from my groom in the form of Shivling, bathing in the Ganges destroys sins soon, Yamuna with 7 days bath and Saraswati Bathing for 3 days destroys sins, but you will destroy all sins by mere darshan. The Narmadeshwar Shivling which you have established will be the one who gives virtue and salvation, at the same time Lord Shankar got absorbed in that Shivling. Narmada was also pleased after getting so much purity, that is why it is said that every kankar of Narmada is Shankar.

नर्मदा नदी के हर पत्थर में बसें है शिव

नर्मदा नदी के हर पत्थर में बसें है शिव