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मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ...मिस पद्मा

मानसरोवर-2 ...मिस पद्मा

मिस पद्मा - मुंशी प्रेमचंद | Miss Padma by Munshi Premchand

कानून में अच्छी सफलता प्राप्त कर लेने के बाद मिस पद्मा को एक नया अनुभव हुआ, वह था जीवन का सूनापन। विवाह को उन्होंने एक अप्राकृतिक बंधन समझा था और निश्चय कर लिया था कि स्वतंत्र रहकर जीवन का उपभोग करूँगी। एम. ए. की डिग्री ली, फिर कानून पास किया और प्रैक्टिस शुरू कर दी। रूपवती थी, युवती थी, मृदुभाषिणी थी और प्रतिभाशालिनी भी थी। मार्ग में कोई बाधा न थी। देखते-देखते वह अपने साथी नौजवान मर्द वकीलों को पीछे छोड़कर आगे निकल गयी और अब उसकी आमदनी कभी-कभी एक हजार से भी ऊपर बढ़ जाती । अब उतने परिश्रम और सिर-मगजन की आवश्यकता न रही। मुकदमें अधिकतर वही होते थे, जिनका उसे पूरा अनुभव हो चुका था, उसके विषय में किसी तरह की तैयारी की उसे जरूरत न मालूम होती। 
मिस पद्मा - मुंशी प्रेमचंद | Miss Padma by Munshi Premchand

अपनी शक्तियों पर कुछ विश्वास भी हो गया था। कानून में कैसे विजय मिला करती हैं, इसके कुछ लटके भी उसे मालूम हो गये थे। इसलिये उसे अब बहुत अवकाश मिलता था और इसे वह किस्से-कहानियाँ पढ़ने, सैर करने, सिनेमा देखने, मिलने-मिलाने में खर्च करती थी। जीवन को सुखी बनाने के लिए किसी व्यसन की जरूरत को वह खूब समझती थी। उसने फूल और पौधे लगाने का व्यसन पाल लिया था। तरह-तरह के बीज और पौधे मँगाती औऱ उन्हें उगते-बढ़ते, फूलते-फलते देखकर खुश होती; मगर जीवन में सूनपने का अनुभव होता रहता था। यह बात न थी कि उसे पुरुषों से विरक्ति हो। नहीं, उसके प्रेमियों की कमी न थी। अगर उसके पास केवल रूप और यौवन होता, तो भी उपासकों का अभाव न रहता; मगर यहाँ तो रूप और यौवन के साथ धन भी थी। फिर रसिक-वृन्द क्यों चूक जाते? पद्मा को विलास से घृणा थी नहीं, घृणा थी पराधीनता से, विवाह को जीवन का व्यवसाय बनाने से। जब स्वतंत्र रहकर भोग-विलास का आनन्द उठाया जा सकता हैं, तो फिर क्यों न उठाया जाय? भोग में उसे कोई नैतिक बाधा न थी, इसे केवल देह की एक भूख समझती थी। इस भूख को किसी साफ-सुथरी दुकान से भी शान्त किया जा सकता हैं। और पद्मा को साफ-सुथरी दुकाम की हमेशा तलाश रहती थी। ग्राहक दुकान में वहीं चीज लेता हैं, जो उसे पसन्द आती हैं। पद्मा भी वहीं चीज चाहती थी। यों उसके दर्जनों आशिक थे- कई वकील, कई प्रोफेसर, कई डॉक्टर, कई रईस। मगर ये सब-के-सब ऐय्यास थे- बेफिक्र, केवल भौरे की तरह रस लेकर उड़ जाने वाले। ऐसा एक भी न था, जिस पर वह विश्वास कर सकती। अब उसे मालूम हुआ कि उसका मन केवल भोग नहीं चाहता, कुछ और भी चाहता हैं। वह चीज क्या थी? पूरा आत्म-समर्पण और यह उसे न मिलता था।

उसके प्रेमियों में एक मि. प्रसाद था- बड़ा ही रूपवान और धुरन्धर विद्‌वान। एक कॉलेज में प्रोफेसर था। वह भी मुक्त-भोग का आदर्श का उपासक था और पद्मा उस पर फिदा थी। चाहती थी उसे बाँधकर रखे, सम्पूर्णतः अपना बना ले; लेकिन प्रसाद चंगुल में न आता था।

सन्ध्या हो गयी थी। पद्मा सैर करने जा रही थी कि प्रसाद आ गये। सैर करना मुल्तवी हो गया। बातचीत में सैर से कहीं ज्यादा आनन्द था और पद्मा आज प्रसाद से कुछ दिल की बात कहने वाली थी। कई दिन के सोच-विचार के बाद उसने कह डालने का निश्चय किया।

उसने प्रसाद की नशीली आँखों से आँखें मिलाकर कहा- तुम यहीं मेरे बँगले में आकर क्यों नहीं रहते?

2

प्रसाद ने कुटिल-विनोद के साथ कहा- नतीजा यह होगा कि दो-चार महीने में यह मुलाकात बन्द हो जायेगी।

‘मेरी समझ में नही आया, तुम्हारा आशय क्या हैं।’

‘आशय वहीं हैं, जो मैं कह रहा हूँ ।’

‘आखिर क्यों?’

‘मैं अपनी स्वाधीनता न खोना चाहूँगा, तुम अपनी स्वतन्त्रता न खोना चाहोगी। तुम्हारे पास तुम्हारे आशिक आयेंगे, मुझे जलन होगी। मेरे पास मेरी प्रेमिकाएँ आयेंगी, तुम्हें जलन होगी। मनमुटाव होगा, फिर वैमनस्य होगा और तुम मुझे घर से निकाल दोगी। घर तुम्हारा है ही! मुझे बुरा लगेगा ही, फिर यह मैत्री कैसे निभेगी?’

दोनो कई मिनट तक मौन रहे। प्रसाद ने परिस्थिति को इतने स्पष्ट, बेलाग, लट्ठमार शब्दों में खोलकर रख दिया था कि कुछ कहने की जगह न मिलती थी।
सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र
आखिर प्रसाद ही को नुकता सूझा। बोला- जब तब हम दोनों यह प्रतिज्ञा न कर लें कि आज से मैं तुम्हारा हूँ और तुम मेरी हो, तब तक एक साथ निर्वाह नहीं हो सकता!

‘तुम यह प्रतिज्ञा करोंगे?’

‘पहले तुम बतलाओ।’

‘मैं करूँगी।’

‘तो मैं भी करूँगा।’

‘मगर इस एक बात के सिवा मैं और सभी बातों में स्वतंत्र रहूँगी!’

‘और मैं भी इस एक बात के सिवा हर बात में स्वतंत्र रहूँगा।’

‘मंजूर।’

‘मंजूर!’

‘तो कब से?’

‘जब से तुम कहो।’

‘मैं तो कहती हूँ, कल ही से।’

‘तय। लेकिन अगर तुमने इसके विरुद्ध आचारण किया तो?’

‘और तुमने किया तो?’

‘तुम मुझे घर से निकाल सकती हो; लेकिन मैं तुम्हें क्या सजा दूँगा?’

‘तुम मुझे त्याग देना, और क्या करोगे?’

‘जी नहीं, तब इतने से चित्त को शान्ति न मिलेगी। तब मैं चाहूँगा तुम्हे जलील करना; बल्कि तुम्हारी हत्या करना।’

‘तुम बहुत निर्दयी हो, प्रसाद?’

‘जब तक हम दोनों स्वाधीन हैं, हम किसी को कुछ कहने का हक नहीं, लेकिन एक बार प्रतिज्ञा में बँध जाने के बाद फिर न मैं इसकी अवज्ञा सह सकूँगा, न तुम सह सकोगी। तुम्हारे पास दंड का साधन हैं, मेरे पास नहीं। कानून मुझे कोई भी अधिकार नहीं देगा। मैं तो केवल अपनी पशुबल से प्रतिज्ञा का पालन कराऊँगा और तुम्हारे इतने नौकरों के सामने मैं अकेला क्या कर सकूँगा?’

‘तुम तो चित्र का श्याम पक्ष ही देखते हो! जब मैं तुम्हारी हो रही हूँ, तो यह मकान, नौकर-चाकर और जायदाद सब कुछ तुम्हारा हैं। हम-तुम दोनों जानते हैं कि ईर्ष्या से ज्यादा घृणित कोई सामाजिक पाप नहीं हैं। तुम्हें मुझसें प्रेम हैं या नहीं, मैं नहीं कह सकती; लेकिन तुम्हारे लिए मैं सब कुछ सहने, सब कुछ करने के लिए तैयार हूँ ।’

‘दिल से कहती हो पद्मा?’

‘सच्चे दिल से।’

‘मगर न-जाने क्यों तुम्हारे ऊपर विश्वास नहीं आ रहा हैं?’

‘मैं तो तुम्हारे ऊपर विश्वास कर रही हूँ ।’

‘यह समझ लो, मै मेहमान बनकर तुम्हारे घर में न रहूँगा, स्वामी बनकर रहूँगा।’

‘तुम घर के स्वामी ही नही, मेरे स्वामी बनकर रहोगे। मैं तुम्हारी स्वामिनी बन कर रहूँगी।’

3

प्रो. प्रसाद और मिस पद्मा दोनों साथ रहते हैं और प्रसन्न हैं। दोनों ही ने जीवन का जो आदर्श मन में स्थिर कर लिया था, वह सत्य बन गया हैं। प्रसाद को केवल दो-सौ रुपये वेतन मिलता हैं; मगर अप वह अपनी आमदनी का दुगुना भी खर्च कर दे तो परवाह नहीं। पहले वह कभी-कभी शराब पीता था, अब रात-दिन शराब में मस्त रहता है। अब उसके लिए अलग अपनी कार हैं, अलग नौकर हैं, तरह-तरह की बहुमूल्य चीजें मँगवाता रहता है और पद्मा बड़े हर्ष से उसकी सारी फिजूल-खर्जियाँ बर्दाश्त करती हैं। नहीं, बर्दाश्त करने का प्रश्न नहीं। वह खुद उसे अच्छे-से-अच्छे सूट पहनाकर अच्छे-से-अच्छे ठाठ में रखकर, प्रसन्न होती है। जैसी घड़ी इस वक़्त प्रसाद के पास है, शहर के बड़े-बड़े रईस के पास न होगी और पद्मा जितना ही उससे दबती है, प्रसाद उतना ही उसे दबाता है। कभी-कभी उसे नागवार भी लगता हैं, पर किसी अज्ञात कारण से अपने को उसके वश में पाती है। प्रसाद को जरा भी उदास या चिन्तित देखकर उसका मन चंचल हो जाता है। उस पर आवाजें कसी जाती हैं; फबतियाँ चुस्त की जाती हैं। जो उसके पुराने प्रेमी हैं, वे उसे जलाने और कुढ़ाने का प्रयास भी करते हैं; पर वह प्रसाद के पास आते ही सब कुछ भूल जाती है। प्रसाद ने उस पर पूरा आधिपत्य पा लिया है और उसे इसका ज्ञान पद्मा को उसने बारीक आँखों से पढ़ा है और उसका शासन अच्छी तरह पा गया है।

मगर जैसे राजनीति के क्षेत्र में अधिकार दुरुपयोग की ओर जाता है, उसी तरह प्रेम के क्षेत्र में भी वह दुरुपयोग की ओर ही जाता है और जो कमजोर है, उसे तावान देना पड़ता है। आत्माभिमानी पद्मा अब प्रसाद की लौड़ी थी और प्रसाद उसकी दुर्बलता का फायदा उठाने से क्यों चूकता? उसने कील की पतली नोक चुभा ली थी और बड़ी कुशलता से उत्तरोत्तर उसे अन्दर ठोंकता जाता था। यहाँ तक कि उसने रात को देर से आना शुरू किया। पद्मा को अपने साथ न ले जाता, उससे बहाना करता कि मेरे सिर में दर्द है औऱ जब पद्मा घुमने जाती तो अपनी कार निकाल लेता और उड़ जाता। दो साल गुजर गये और पद्मा को गर्भ था। वह स्थूल भी हो चली थी। उसके रूप में पहले की-सी नवीनता और मादकता न रह गई थी। वह घर की मुर्गी थी, साग बराबर।

एक दिन इसी तरह पद्मा लौटकर आयी, तो प्रसाद गायब थे। वह झुँझला उठी। इधर कई दिन से वह प्रसाद का रंग बदला हुआ देख रही थी। आज उसने कुछ स्पष्ट बाते कहने का साहस बटोरा। दस बज गये, ग्यारह बज गये, बारह बज गये, पद्मा उसके इन्तजार में बैठी थी। भोजन ठंड़ा हो गया, नौकर-चाकर सो गये। वह बार-बार उठती, फाटक पर जाकर नजर दौड़ाती। बाहर-एक बजे के करीब प्रसाद घर आये।

पद्मा ने साहस बटोरा था; पर प्रसाद के सामने जाते ही उसे इतनी कमजोरी मालूम हुई। फिर भी उसने जरा कड़े स्वर में पूछा- आज इतनी रात तक कहाँ थे? कुछ खबर है, कितनी रात है?

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प्रसाद को वह इस वक़्त असुन्दरता की मूर्ति-सी लगी। वह एक विद्यालय की छात्रा के साथ सिनेमा देखने गया था। बोला- तुमको आराम से सो जाना चाहिए था। तुम जिस दशा में हो, उसमें तुम्हें, जहाँ तक हो सके, आराम से रहना चाहिए।

पद्मा का साहस कुछ प्रबल हुआ- तुमसे पूछती हूँ, उसका जवाब दो। मुझे जहन्नुम में भेजो!

‘तो तुम भी मुझे जहन्नुम में जाने दो।’

‘तुम मेरे साथ दगा कर रहे हो, यह मैं साफ देख रही हूँ ।’

‘तुम्हारी आँखों की ज्योति कुछ बढ़ गयी होगी!’

‘मैं इधर कई दिनो से तुम्हारा मिजाज कुछ बदला हुआ देख रही हूँ ।’

‘मैं तुम्हारे साथ अपने को बेचा नहीं है। अगर तुम्हारा जी मुझसे भर गया हो, तो मैं आज जाने को तैयार हूँ ।’

‘तुम जाने की धमकी क्या देते हो! यहाँ तुमने आकर कोई बड़ा त्याग नहीं किया है।’

‘मैंने त्याग नहीं किया हैं? तुम यह कहने का साहस कर रही हो। मैं देखता हूँ, तुम्हारा मिजाज़ बिगड़ रहा है। तुम समझती हो, मैंने इसे अपंग कर दिया। मगर मैं इसी वक़्त तुम्हें ठोकर मारने को तैयार हूँ, इसी वक़्त, इसी वक़्त!’

पद्मा का साहस जैसे बुझ गया था। प्रसाद अपना ट्रँक सँभाल रहा था। पद्मा ने दीन-भाव से कहा- मैंने तो ऐसी कोई बात नहीं कहीं, जो तुम इतना बिगड़ उठे। मैं तो केवल तुमसे पूछ रहीं थी, कहाँ थे। क्या मुझे इतना भी अधिकार नहीं देना चाहते? मैं कभी तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध कोई काम नहीं करती और तुम मुझे बात-बात पर डाँटते रहते हो। तुम्हें मुझ पर जरा भी दया नहीं आती। मुझे तुमसे कुछ भी तो सहानुभूति मिलनी चाहिए। मैं तुम्हारे लिए क्या कुछ करने को तैयार नहीं हूँ ? और आज जो मेरी दशा हो गयी है, तो तुम मुझसे आँखे फेर लेते हो। 

उसका कंठ रुँध गया और मेज पर सिर रखकर फूट-फूटकर रोने लगी। प्रसाद ने पूरी विजय पायी।

पद्मा के लिए मातृत्व अब बड़ा ही अप्रिय प्रसंग था। उस पर चिंता मँडराती रहती। कभी-कभी वह भय से काँप उठती और पछताती। प्रसाद की निरंकुशता दिन-दिन बढती जाती थी। क्या करे, क्या न करें। गर्भ पूरा हो गया था, वह कोर्ट न जाती थी। दिन-भर अकेली बैठी रहती थी। प्रसाद सन्ध्या समय आते, चाय-वाय पीकर फिर उड़ जाते, तो ग्यारह-बारह बजे से पहले न लौटते। वह कहाँ जाते हैं, यह भी उससे छिपा न था। प्रसाद को तो जैसे उसकी सूरत से नफरत थी। पूर्ण गर्भ, पीला मुख, चिन्तित, सशंक, उदास। फिर भी वह प्रसाद को श्रृंगार और आभूषण से बाँधने की चेष्टा से बाज न आती थी। मगर वह जितना ही प्रयास करती, उतना ही प्रसाद का मन उसकी ओर से फिरता था। इस अवस्था में श्रृंगार उसे और भी भद्दा लगता।

प्रसव-वेदना हो रही थी। प्रसाद का पता नहीं। नर्स मौजूद थी, लेडी डॉक्टर मौजूद थी; मगर प्रसाद का न रहना पद्मा की प्रसव वेदना को और भी दारूण बना रहा था।

बालक को गोद में देखकर उसका कलेजा फूल उठा, मगर फिर प्रसाद को सामने न पाकर उसने बालक की ओर से मुँह फेर लिया। मीठे फल में जैसे कीड़े पड़ गये हों।

पाँच दिन सौर-गृह में काटने के बाद जैसे पद्मा जेलखाने से निकली- नंगी तलवार बनी हुई। माता बनकर वह अपने में एक अद्भूत शक्ति का अनुभव कर रही थी।

उसने चपरासी को चेक देकर बैंक भेजा। प्रसव-सम्बन्धी कई बिल अदा करने थे। चपरासी खाली हाथ लौट आया।

पद्मा ने पूछा- रुपये?

‘बैंक बाबू ने कहा, रुपये प्रसाद बाबू निकाल ले गये।’

पद्मा को गोली लग गयी। बीस हजार रुपये प्राणों की तरह संचित कर रखे थे, इसी शिशु के लिए। हाय! सौर से निकलने पर मालूम हुआ, प्रसाद विद्‌यालय की एक बालिका को लेकर इंगलैंड की सैर करने चले गये । झल्लायी हुई घर में आयी, प्रसाद की तसवीर उठाकर जमीन पर पटक दी और उसे पैरों से कुचला। उसका जितना सामान था, उसे जमा करके दियासलाई लगा दी और उसके नाम पर थूक दिया।

एक महीना बीत गया था। पद्मा अपने बँगले के फाटक पर शिशु को गोद में लिए खड़ी थी। उसका क्रोध अब शोकमय निराशा बन चुका था। बालक पर कभी दया आती, कभी प्यार आता, कभी घृणा होती। उसने सड़क पर देखा, एक यूरोपियन लेडी अपने पति के साथ अपने बालक को गाड़ी में बिठाये लिये चली जा रही थी। उसने हसरत-भरी आँखों से उस खुशनसीब जोड़े को देखा और उसकी आँखे सजल हो गयीं।

चमगादड़ के बारे में ३० रोचक तथ्य || 30 Interesting Facts About the Bat

चमगादड़ के बारे में रोचक तथ्य

कहते हैं की धरती पर मौजूद हर एक जीव हमारे दैनिक जीवन को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। क्या आप कभी सोच सकते हैं कि चमगादड़ भी हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं? तो चलिए आज जानते हैं, चमगादड़ के विषय में कुछ रोचक बातें। चमगादड़ हमारी दुनिया में सबसे ज़्यादा गलत समझे जाने वाले जानवरों में से एक हैं, चमगादड़ों को दुष्ट प्राणी और बीमारी फैलाने वाला माना जाता है। जबकि यह सच नहीं है। चमगादड़ अद्भुत जानवर हैं जो दुनिया भर के कई पारिस्थितिकी तंत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

चमगादड़ के बारे में ३० रोचक तथ्य || 30 Interesting Facts About the Bat

  1. चमगादड़ दुनिया का एकमात्र ऐसा जीव है, जो स्तनधारी भी है और उड़ने की क्षमता भी रखता है। पूरी दुनिया में इस जीव की 1400 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। चमगादड़ का वैज्ञानिक नाम काइरोप्टेरा है, जिसका ग्रीक भाषा में अर्थ है ‘हाथ का पंख’। 
  2. यह नाम चमगादड़ की लंबी उंगलियों को दर्शाता है, जो एक पतली झिल्ली से जुड़ी होती है। चमगादड़ भले ही उड़ते हैं लेकिन वह पक्षियों की श्रेणी में नहीं आते हैं। 
  3. शायद आपको जानकर हैरानी हो कि चमगादड़ की अधिकांश प्रजातियां कीड़े खाती हैं, कुछ प्रजातियां फल और फूल भी खाती हैं, कुछ केवल खून पीकर ही जीवित रहती हैं और कुछ चमगादड़ मछली, मेंढक, छिपकली आदि चीजें भी खाते हैं। 
  4. एक छोटा चमगादड़ एक रात में सैकड़ों की संख्या में कीड़े खा सकता है। एक छोटा चमगादड़ प्रति घंटे 600 मच्छरों को खा जाता है। 
  5. खून पीने वाले चमगादड़ की प्रजातियों को "पिशाच चमगादड़" कहा जाता है। इन चमगादरों के काटने से रेबीज (एक प्रकार की बीमारी) हो सकता है। 
  6. आकार के आधार पर चमगादरों को दो श्रेणी में रखा गया है। बड़े आकार के चमगादड़ को मेगा बैट और छोटे आकार के चमगादड़ को माइक्रो बैट कहा जाता है।
  7. चीन और जापान में चमगादड़ को सौभाग्य और शुभ संकेत का प्रतीक माना जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा चमगादड़ अमेरिका में पाया जाता है।
  8. साधारणतया चमगादड़ का जीवन काल 20 वर्ष होता है, लेकिन कुछ प्रजातियां ऐसी भी होती हैं, जो 30 वर्ष तक जीवित रह सकती हैं। 
  9. चमगादड़ 60 मील प्रति घंटे (या अधिक) की गति से उड़ सकते हैं।
  10. चमगादड़ अपनी अद्भुत सुनने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं।चमगादड़ आंखों से कम, बल्कि ध्वनि तरंगों की मदद से देखते हैं। चमगादड़ अपने कान को घुमा भी सकते हैं, जिससे उन्हें ध्वनि की दिशा का पता लगाने में मदद मिलती है।
  11. ऐसा कहा जाता है कि जानवर जितना छोटा होता है, उसकी आयु उतनी ही कम होती है, लेकिन चमगादड़ लंबी आयु के इस नियम को तोड़ते हैं। हालाँकि अधिकांश चमगादड़ जंगल में 20 साल से कम जीते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों ने छह ऐसी प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया है जो 30 साल से ज़्यादा जीती हैं। 
  12. सबसे लम्बे समय तक जीवित रहने वाला चमगादड़ 41 वर्ष का है।2006 में साइबेरिया के एक छोटे से चमगादड़ ने 41 साल की उम्र में विश्व रिकॉर्ड बनाया था। 
  13. चमगादड़ ग्रह पर सबसे प्राचीन निवासियों में से एक माने जाते हैं।
  14. चमगादड़ अपने शरीर के तापमान को 50 डिग्री तक बदल सकते हैं। 
  15. बिल्लियों की तरह चमगादड़ भी खुद को साफ करते हैं। चमगादड़ गंदे होने के बजाय खुद को साफ करने में बहुत समय लगाते हैं। कुछ तो एक-दूसरे को भी साफ करते हैं। चिकने फर के अलावा, सफाई करने से परजीवियों को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है। 
  16. केवल कुत्ते ही पिल्ले पैदा करने वाले जीव नहीं हैं। शिशु चमगादड़ों को पिल्ले कहा जाता है, और चमगादड़ों का समूह एक "कॉलोनी" कहलाता है। 
  17. चमगादड़ की बीट का उपयोग बारूद बनाने के लिए किया जा सकता है। 
  18. चमगादड़ का सिर 180 डिग्री तक मुड़ जाता है। सभी चमगादड़ उल्टे नहीं लटकते हैं।
  19. जैसा कि हम सुनते चले आए हैं कि चमगादड़ देख नहीं सकते, पर वास्तव में चमगादड़ अंधे नहीं होते बल्कि वह इंसानों की तुलना में बेहतर देख सकते हैं। 
  20. चमगादड़ों की सबसे बड़ी गुफा टेक्सास में है, जहाँ करीब 2 करोड़ चमगादड़ रहते हैं।  
  21. चमगादड़ पृथ्वी पर लगभग हर जगह पाए जाते हैं। 
  22. उड़ान के दौरान चमगादड़ों का दिल एक मिनट में 1,000 बार धड़कता है। 
  23. दुनिया के सबसे लम्बे चमगादड़ के पंखो की लम्बाई 5 से 6 फुट तक की है।
  24. सभी चमगादड़ शीत निद्रा में नहीं रहते। हालाँकि भालू और चमगादड़ दो सबसे प्रसिद्ध शीतनिद्राजीवी हैं, लेकिन सभी चमगादड़ अपनी सर्दियाँ गुफाओं में नहीं बिताते। 
  25. कुछ प्रजातियाँ, जैसे धब्बेदार चमगादड़, ठंड पड़ने पर भोजन की तलाश में गर्म क्षेत्रों की ओर पलायन करके जीवित रहती हैं। 
  26. चमगादड़ों के प्राकृतिक शिकारी बहुत कम हैं - बीमारी सबसे बड़े खतरों में से एक है। वैसे तो उल्लू, बाज और सांप चमगादड़ खाते हैं, लेकिन यह उन लाखों चमगादड़ों की तुलना में कुछ भी नहीं है जो व्हाइट-नोज़ सिंड्रोम से मर रहे हैं। 
  27. अन्य स्तनधारियों की तरह, मादा चमगादड़ अपने शावकों को कीड़ों से नहीं, बल्कि स्तनदूध से दूध पिलाती हैं। 
  28. अधिकांश चमगादड़ एक ही शावक को जन्म देते हैं। कम से कम एक प्रजाति ऐसी है जिसके जुड़वाँ बच्चे आम तौर पर होते हैं और वह है पूर्वी लाल चमगादड़। मादा चमगादड़ वसंत में गुफाओं, मृत पेड़ों और चट्टानों की दरारों में नर्सरी कॉलोनियाँ बनाती हैं । 
  29. कभी सोचा है कि चमगादड़ पेड़ पर हमेशा उल्टा ही क्यों लटके रहते हैं? असल में चमगादड़ की शारीरिक बनावट दूसरे पक्षियों से भिन्न होती है।
  30. जमीन या पेड़ पर बैठे पक्षी अपने पैरों पर जोर देकर तुरंत तेज गति से उड़ान भरने में सक्षम होते हैं, जबकि चमगादड़ ऐसा नहीं कर पाते, क्योंकि उनके पैर इतने मजबूत नहीं होते कि वे दूसरे पक्षियों की तरह उड़ान भर सकें।
चमगादड़ के बारे में ३० रोचक तथ्य || 30 Interesting Facts About the Bat

अब ये जानिए कि चमगादड़ हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित कैसे करते हैं?

क्या आप जानते हैं कि 300 से ज़्यादा फलों की प्रजातियाँ परागण के लिए चमगादड़ों पर निर्भर हैं? चमगादड़ नट्स, अंजीर और कोको के बीज फैलाने में मदद करते हैं। चमगादड़ों के बिना, हमारे पास एगेव या प्रतिष्ठित सगुआरो कैक्टस जैसे पौधे भी नहीं होते। हर रात, चमगादड़ अपने शरीर के वजन के बराबर कीड़े खा सकते हैं, जिनकी संख्या हज़ारों में होती है, जो किसानों के फसल को बर्बाद करती हैं। इसतरह ये चमगादड़ वनपालों और  किसानों को कीटों से अपनी फ़सलों की रक्षा करने में मदद करता है ।

चमगादड़ के बारे में ३० रोचक तथ्य || 30 Interesting Facts About the Bat

चमगादड़ चिकित्सा जगत के लिए प्रेरणादायी चमत्कार हैं। लगभग 80 दवाइयाँ पौधों से आती हैं, जो अपने अस्तित्व के लिए चमगादड़ों पर निर्भर हैं। 

संरक्षण प्रयासों से चमगादड़ प्रजातियों को पुनर्जीवित करने में मदद मिल सकती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले 15 वर्षों में उत्तरी अमेरिका की चमगादड़ प्रजातियों में से 52% की जनसंख्या में भारी गिरावट का खतरा है। दस अमेरिकी प्रजातियों को लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जबकि एक और को संकटग्रस्त के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इन अद्भुत जानवरों को आवास की हानि और बीमारी सहित कई खतरों का सामना करना पड़ता है, लेकिन सहयोगात्मक, अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण प्रयास एक अंतर ला सकते हैं। दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका और मैक्सिको में, सहयोग ने एक प्रजाति, कम लंबी नाक वाले चमगादड़ को ठीक होने और लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची से हटाए जाने वाली पहली चमगादड़ प्रजाति बनने में मदद की है। 1988 में, 14 ज्ञात बसेरा रेंज में 1,000 से कम चमगादड़ होने का अनुमान लगाया गया था। 2018 तक - तीस साल बाद - 75 बसेरा में अनुमानित 200,000 चमगादड़ थे।

चमगादड़ के बारे में ३० रोचक तथ्य || 30 Interesting Facts About the Bat

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Interesting facts about bats

It is said that every living creature on earth affects our daily life directly or indirectly. Can you ever imagine that bats also affect our lives? So let's know today, some interesting facts about bats. Bats are one of the most misunderstood animals in our world, bats are considered evil creatures and disease spreaders. While this is not true. Bats are amazing animals that play an important role in many ecosystems around the world.

चमगादड़ के बारे में ३० रोचक तथ्य || 30 Interesting Facts About the Bat

  1. Bats are the only creature in the world, which is also a mammal and also has the ability to fly. More than 1400 species of this creature are found all over the world. The scientific name of bats is Chiroptera, which means 'wing of the hand' in Greek language.
  2. This name refers to the long fingers of the bat, which are connected by a thin membrane. Even though bats fly, they do not fall in the category of birds.
  3. You might be surprised to know that most species of bats eat insects, some species also eat fruits and flowers, some survive only by drinking blood and some bats also eat fish, frogs, lizards etc.
  4. A small bat can eat hundreds of insects in a night. A small bat eats 600 mosquitoes per hour.
  5. The species of bats that drink blood are called "vampire bats". The bite of these bats can cause rabies (a type of disease).
  6. Based on size, bats are classified into two categories. Large-sized bats are called mega bats and small-sized bats are called micro bats.
  7. In China and Japan, bats are considered a symbol of good luck and auspicious sign. The highest number of bats in the world is found in America.
  8. Generally, the life span of a bat is 20 years, but there are some species that can live up to 30 years.
  9. Bats can fly at a speed of 60 miles per hour (or more).
  10. Bats are known for their amazing hearing abilities. Bats see not with their eyes but with the help of sound waves. Bats can also move their ears, which helps them detect the direction of sound.
  11. It is said that the smaller the animal, the shorter its lifespan, but bats break this rule of longevity. Although most bats live less than 20 years in the wild, scientists have documented six species that live more than 30 years.
  12. The longest-living bat is 41 years old. In 2006, a small bat from Siberia set a world record at the age of 41.
  13. Bats are considered to be one of the most ancient inhabitants on the planet.
  14. Bats can change their body temperature by up to 50 degrees.
  15. Like cats, bats also clean themselves. Bats spend a lot of time cleaning themselves rather than getting dirty. Some even clean each other. Besides the smoother fur, grooming also helps control parasites.
  16. Dogs aren't the only animals that produce puppies. Baby bats are called pups, and a group of bats is called a "colony."
  17. Bat droppings can be used to make gunpowder.
  18. A bat's head can turn 180 degrees. Not all bats hang upside down.
  19. As we have been hearing, bats can't see, but in reality bats are not blind, but they can see better than humans.
  20. The largest bat cave is in Texas, where about 20 million bats live.
  21. Bats are found almost everywhere on Earth.
  22. During flight, the heart of bats beats 1,000 times a minute.
  23. The wingspan of the world's longest bat is 5 to 6 feet.
  24. Not all bats hibernate. Although bears and bats are the two most well-known hibernators, not all bats spend the winter in caves.
  25. Some species, such as the spotted bat, survive by migrating to warmer areas in search of food when it gets cold.
  26. Bats have very few natural predators - disease is one of the biggest threats. While owls, hawks and snakes eat bats, that's nothing compared to the millions of bats that are dying from white-nose syndrome.
  27. Unlike other mammals, female bats feed their young with breast milk, not insects.
  28. Most bats give birth to a single baby. At least one species commonly has twins: the eastern red bat. Female bats form nursery colonies in caves, dead trees and rock crevices in the spring.
  29. Ever wonder why bats always hang upside down on trees? Bats have a different anatomy than other birds.
  30. Birds sitting on the ground or trees are able to fly instantly at high speed by putting pressure on their legs, whereas bats cannot do this because their legs are not strong enough to fly like other birds.
चमगादड़ के बारे में ३० रोचक तथ्य || 30 Interesting Facts About the Bat

Now know how bats affect our daily life?

Did you know that more than 300 fruit species depend on bats for pollination? Bats help spread the seeds of nuts, figs and cocoa. Without bats, we wouldn't have plants like agave or the iconic saguaro cactus. Every night, bats can eat their body weight in insects, numbering in the thousands, which destroys farmers' crops. In this way, these bats help foresters and farmers protect their crops from pests.

Bats are an inspiring wonder for the medical world. About 80 medicines come from plants, which depend on bats for their survival.

चमगादड़ के बारे में ३० रोचक तथ्य || 30 Interesting Facts About the Bat

Conservation efforts can help revive bat species. Experts estimate that 52% of North America's bat species are at risk of a massive population decline in the next 15 years. Ten U.S. species are listed as endangered, while another is listed as threatened. These amazing animals face many threats, including habitat loss and disease, but collaborative, international conservation efforts can make a difference. In the southwestern U.S. and Mexico, collaboration has helped one species, the lesser long-nosed bat, recover and become the first bat species to be removed from the endangered species list. In 1988, there were estimated to be fewer than 1,000 bats in 14 known roosting ranges. By 2018 – thirty years later – there were an estimated 200,000 bats in 75 roosting ranges.

योगमाया मंदिर अथवा जोगमाया मंदिर, महरौली || Shri Yogmaya Temple, Mehrauli

योगमाया मंदिर अथवा जोगमाया मंदिर

आज एक ऐसे मंदिर की चर्चा करेंगे जो अन्‍य मंदिरों की तरह बहुत ज्‍यादा लोकप्रिय और सुुंदर तो नहीं है, पर बावजूद इसके मंदिर की महत्‍ता बिल्‍कुल भी कम नहीं है। इस मंदिर की वास्‍तुशिल्‍प और संरचना भी बहुत सादी  है। यह है दिल्ली के महरौली में स्थित "श्री योगमाया मंदिर" जिसको "जोगमाया मंदिर" के नाम से भी जाना जाता है। योगमाया मंदिर कुतुब मीनार से सौ मीटर की दूरी पर महरौली के पास में स्थित है। लोगों के बीच ऐसी धारणा है कि इस मंदिर को खुद भगवान कृष्ण ने बनाया है। 

योगमाया मंदिर अथवा जोगमाया मंदिर, महरौली || Shri Yogmaya Temple, Mehrauli

योगमाया मंदिर एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है, जो देवी योगमाया को समर्पित है। कहा जाता है कि यह मंदिर पांच हजार वर्ष पुराना है। इसकी स्थापना पांडवों ने की थी। योगमाया भगवान कृष्ण की बड़ी बहन थीं। पांडवों ने उन्हीं के वरदान से विजय गाथा लिखी थी। मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से बड़े से बड़े संकट दूर हो जाते हैं। यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से है। ऐसा माना जाता है कि श्री योगमाया मंदिर उन पांच मंदिरों में से एक है, जो कि महाभारत काल से हैं। 

दिल्ली के लोगों के बीच योगमाया मंदिर कम मशहूर है, परन्तु महरौली में रहने वाले लोगों में यह खासा प्रचलित है। यहाँ के लोग रोज इस मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार महरौली को पहले योगमाया देवी के नाम पर योगिनीपुरम कहा जाता था। मंदिर 5000 साल पुराना बताया जाता है। आश्‍चर्य की बात यह है कि ये मंदिर किसी इंसान ने नहीं बल्कि खुद भगवान ने बनवाया है। 

योगमाया मंदिर अथवा जोगमाया मंदिर, महरौली || Shri Yogmaya Temple, Mehrauli

महाभारत तो लगभग सभी लोगों ने देखी होगी और भगवान श्री कृष्ण के जन्म का मंजर सबको याद होगा। योगमाया भगवान कृष्ण की बहन थीं, जिनका जन्‍म उन्‍हीं के साथ हुआ था। योगमाया वह देवी हैं, जिन्‍हें भगवान कृष्ण के पिता ने यमुना नदी को पार करके लाया गया था और कृष्ण की जगह पर देवकी के बगल में रख दिया था। कंस ने इन्हें भी देवकी के अन्‍य संतानों की तरह मारना चाहा, लेकिन देवी योगमाया उसके हाथों से निकलकर अदृश्य हो गई थीं और अपने वास्तिवक रूप में सामने आकर कंस की मृत्यु की भविष्यवाणी कीं।

कहा जाता है कि देवी योगमाया आदि शक्ति मां लक्ष्मी की अवतार हैं। उन्हें सतगुण प्रदान देवी भी कहते हैं। इसी वजह से मंदिर में किसी भी तरह की बलि पर प्रतिबंध है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, योगमाया का अर्थ दैवीय भ्रम है और कई लोग उन्‍हें सभी प्राणियों की माता के रूप में पूजते हैं। योगमाया के अलावा, मंदिर में भगवान राम, शिव, गणेश और अन्य देवता भी विराजमान हैं।

योगमाया मंदिर अथवा जोगमाया मंदिर, महरौली || Shri Yogmaya Temple, Mehrauli

970 ईसवी से फारसी शासक गजनी द्वारा नुकसान पहुंचाए जाने के बावजूद भी मंदिर पिछले 5,000 वर्षों से खड़ा है। स्थानीय पुजारी के अनुसार, यह गजनी और बाद में मामलुकों द्वारा नष्ट किए गए 27 मंदिरों में से एक है। यह एकमात्र जीवित मंदिर है जो सल्तनत से पहले से उपयोग में है। मंदिर का सबसे पहले जीर्णोद्धार मुगल सम्राट अकबर द्वितीय (1806-37) के शासनकाल के दौरान लाला सेठमल द्वारा किया गया था।

English Translate

Yogmaya Temple or Jogmaya Temple

Today we will discuss a temple which is not very popular and beautiful like other temples, but despite this the importance of the temple is not less at all. The architecture and structure of this temple is also very simple. This is "Shri Yogmaya Temple" located in Mehrauli, Delhi, which is also known as "Jogmaya Temple". Yogmaya Temple is located near Mehrauli at a distance of hundred meters from Qutub Minar. There is a belief among the people that this temple was built by Lord Krishna himself.

योगमाया मंदिर अथवा जोगमाया मंदिर, महरौली || Shri Yogmaya Temple, Mehrauli

Yogmaya Temple is an ancient Hindu temple, which is dedicated to Goddess Yogmaya. It is said that this temple is five thousand years old. It was established by the Pandavas. Yogmaya was the elder sister of Lord Krishna. The Pandavas wrote the Vijay Gatha with her blessings. It is believed that even the biggest problems are solved by just visiting here. This temple is one of the major temples of Delhi. It is believed that Shri Yogmaya Mandir is one of the five temples which are from the Mahabharata period.

Yogmaya Mandir is less famous among the people of Delhi, but it is quite popular among the people living in Mehrauli. People here come to worship in this temple every day. According to the mythological story, Mehrauli was earlier called Yoginipuram in the name of Yogmaya Devi. The temple is said to be 5000 years old. The surprising thing is that this temple was not built by any human but by God himself.

योगमाया मंदिर अथवा जोगमाया मंदिर, महरौली || Shri Yogmaya Temple, Mehrauli

Almost everyone must have seen Mahabharata and everyone must remember the scene of Lord Shri Krishna's birth. Yogmaya was Lord Krishna's sister, who was born along with him. Yogmaya is the goddess who was brought by Lord Krishna's father after crossing the Yamuna river and was placed next to Devaki in place of Krishna. Kansa wanted to kill them like other children of Devaki, but Goddess Yogmaya slipped out of his hands and became invisible and appeared in her real form and predicted Kansa's death.

It is said that Goddess Yogmaya is the incarnation of Adi Shakti Maa Lakshmi. She is also known as Satgun Pradaan Devi. This is why any kind of sacrifice is prohibited in the temple. According to Hindu mythology, Yogmaya means divine illusion and many people worship her as the mother of all creatures. Apart from Yogmaya, Lord Rama, Shiva, Ganesha and other deities are also enshrined in the temple.

योगमाया मंदिर अथवा जोगमाया मंदिर, महरौली || Shri Yogmaya Temple, Mehrauli

The temple has stood for the last 5,000 years despite damage caused by the Persian ruler Ghazni since 970 AD. According to the local priest, it is one of the 27 temples destroyed by Ghazni and later by the Mamluks. It is the only surviving temple that has been in use since before the Sultanate. The temple was first renovated by Lala Sethmal during the reign of the Mughal emperor Akbar II (1806–37).

त्रिफला (Trifala) : एक महाऔषधि || हरड़, बहेड़ा, आंवला

त्रिफला : एक महाऔषधि

  • वात, पित्त और कफ तीनों को नाश करने वाली चीजें वैसे तो बहुत कम है, लेकिन इनमें जो सबसे अच्छी चीजें हैं वह है हरड़, बहेड़ा और आंवला। तीनों मिलाकर बनता है त्रिफला। त्रिफला 1:2:3 के अनुपात में सबसे अच्छा होता है। त्रिफला में सबसे अच्छा है- आंवला, बहेड़ा इसके बाद हरड़।
त्रिफला (Trifala) : एक महाऔषधि || हरड़, बहेड़ा, आंवला
  • हरड़, बहेड़ा, आंवला- 1:2:3 अनुपात में बनाया गया त्रिफला वात, पित्त और कफ तीनों का नाश करता है।  त्रिफला सुबह में गुड़ या शहद के साथ खाएं। रात में त्रिफला दूध के साथ या गर्म पानी के साथ खाएं।
  • रात को खाया हुआ त्रिफला पेट को साफ करने वाला होता है। कब्जियत मिटा देता है। सुबह खाया हुआ त्रिफला शरीर के लिए पोषक है अर्थात शरीर के सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति करता है। अतः स्वस्थ व्यक्ति को त्रिफला सुबह ही खाना चाहिए।
त्रिफला (Trifala) : एक महाऔषधि || हरड़, बहेड़ा, आंवला
  • जिनका भी मोटापा है उन्हें रोज सुबह त्रिफला गुड़ के साथ खाना चाहिए और यदि त्रिफला ना खा सके तो सुबह सुबह खाली पेट 3-4 आंवला या आंवले की बनी वस्तु का सेवन अधिक करना चाहिए।
  • त्रिफला को एंटी ऑक्सीडेंटल माना जाता है। यह शरीर में होने वाली ऑक्सीडेशन की क्रिया को कम करता है। ऑक्सीडेशन की क्रिया शरीर की वह क्रिया है, जिसमें उम्र कम होती है। इसमें शरीर के हर अंग का क्षय होता है। आँवला इसमें सबसे ज्यादा प्रभावी है।
  • सालों भर आंवला लगातार खाया जा सकता है, लेकिन त्रिफला हर 3 महीने के बाद 15 दिन तक छोड़ देना चाहिए। त्रिफला खाने से शरीर में कमजोरी या अन्य कोई दुष्परिणाम हो सकते हैं।
  • आंवला कच्चा खाना सबसे अच्छा है।आंवले की चटनी बनाकर खाना, आंवले का मुरब्बा बनाकर खाना, आंवले का अचार खा सकते हैं।
  • रात में आँवला 3-4  या त्रिफला एक छोटी चम्मच खाना चाहिए। सुबह में त्रिफला एक बड़ी चम्मच लेना चाहिए। सुबह गुड़ के साथ त्रिफला खाने के बाद दूध भी पी सकते हैं। त्रिफला दिन भर में एक बार ही खा सकते हैं।
त्रिफला (Trifala) : एक महाऔषधि || हरड़, बहेड़ा, आंवला
  • डायबिटीज वात का रोग है, अतः त्रिफला इसमें लाभ पहुंचाएगा।
  • बवासीर, मूढव्याध, पाइल्स, भगंदर अर्थात पेट से जुड़ी बीमारियां ठीक करने के लिए त्रिफला रात में ही लें, खाना खाने के बाद या रात को सोते समय। सुबह में त्रिफला खाली पेट लेना है, खाना या नाश्ते के 40 मिनट पहले।
  • जितने लोग मोटे होते हैं, उनमें कैल्शियम और विटामिन सी की मात्रा कम होती है। इसलिए त्रिफला 1:2:3 का ज्यादा लाभकारी होता है।
त्रिफला (Trifala) : एक महाऔषधि || हरड़, बहेड़ा, आंवला
  • त्रिफला जैसी एक और वस्तु है, वह त्रिकटु (सोंठ+ कालीमिर्च+ पीपर ) और ऐसी ही 108 वस्तुएं हमारे आस पास उपलब्ध हैं।
  • तीन- चार वर्ष से छोटे बच्चों को त्रिफला के स्थान पर आंवला खिलाएं और तीन-चार साल बाद भी। और 14 साल तक आंवला ही दे तो सबसे अच्छा है। अतः त्रिफला 14 वर्ष से अधिक बच्चों को ही दें।
त्रिफला (Trifala) : एक महाऔषधि || हरड़, बहेड़ा, आंवला

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता | Wasim Barelvi (वसीम बरेलवी)

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता | Wasim Barelvi (वसीम बरेलवी)

"कोई इशारा, दिलासा, ना कोई वादा मगर,
 जब आई शाम, तेरा इंतजार करने लगे..❣️"

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता 

आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता


तू छोड़ रहा है तो ख़ता इस में तिरी क्या 

हर शख़्स मिरा साथ निभा भी नहीं सकता


प्यासे रहे जाते हैं ज़माने के सवालात 

किस के लिए ज़िंदा हूँ बता भी नहीं सकता


घर ढूँड रहे हैं मिरा रातों के पुजारी 

मैं हूँ कि चराग़ों को बुझा भी नहीं सकता


वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए 

ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं

-- वसीम बरेलवी

Rupa Oos ki ek Boond

"ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं,
 तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी..❣️"


संत तुकाराम महाराज

संत तुकाराम महाराज

कौन थे संत तुकाराम महाराज?

भारत की देवभूमि पर अनेक ऐसे संत महाराज हुए हैं, जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं है। आप लोगों ने संत महाराज तुकाराम जी का नाम सुना होगा। आज इन्हीं के बारे में इस ब्लॉग में चर्चा करेंगे। संत तुकाराम महाराज जी की भगवान पांडुरंग के प्रति अनन्‍यसाधारण भक्‍ति थी। उनका जन्‍म महाराष्‍ट्र के देहू गांव में हुआ था और ऐसा मानना है कि वे सदेह वैकुंठ गए थे अर्थात वे देहत्‍याग किए बिना अपने स्‍थूल देह के साथ भगवान श्रीविष्‍णुजी के वैकुंठधाम गए थे। उनके वैकुंठ-गमन की तिथी ‘तुकाराम बीज’ के नाम से जानी जाती है। आज हम उनके जीवन के कुछ प्रसंग यहाँ पढ़ेंगे।

संत तुकाराम महाराज

संत तुकाराम महाराजजी का परंपरा से सावकारी का व्‍यवसाय था। एक बार उनके गाँव में सुखा पड गया था। तब लोगों की दीन स्‍थिती देखकर उन्‍होंने अपने घर का सारा धन गांव के लोगों में बाट दिया। कर्ज के बदले में लिए गए लोगों की भूमि के कागज उनके पास थे। वो उन्‍होंने इंद्रायणी नदी में बहा दिए और लोगों को कर्ज से मुक्‍त किया। लोगों में धन बांटने के बाद वे विरक्‍त हो गए। उनकी घर तथा संपत्ति में से रूचि पूर्णतः नष्‍ट हो गई ।

सद़्‍गुरु बाबाजी चैतन्‍य संत तुकाराम महाराज के गुरु थे। एक दिन उन्‍होंने तुकाराम महाराजजी को स्‍वप्‍न में दृष्टांत देकर गुरुमंत्र दिया। पांडुरंग के प्रति असीम भक्‍ती के कारण उनकी वृत्ति विठ्ठल चरणों में स्‍थिर होने लगी। आगे मोक्षप्राप्‍ति की तीव्र उत्‍कंठा के कारण तुकाराम महाराज ने देहू के निकट एक पर्वत पर एकांत में ईश्‍वर साक्षात्‍कार के लिए निर्वाण प्रारंभ किया। वहां पंद्रह दिन एकाग्रता से अखंड नामजप करने पर उन्‍हें दिव्‍य अनुभव प्राप्‍त हुआ।

बाद में उन्‍हें भजन और अभंग (विट्ठल या विठोबा की स्तुति में गाये गये छन्दों को कहते हैं) स्‍फुरने लगे। उनका एक बालमित्र उनके बताए प्रवचन, अभंग लिखकर रखता था। तुकाराम महाराजजी अपने अभंगों से समाज को वेदों का अर्थ सामान्‍य भाषा में सिखाते थे। यह बात बाजू के वाघोली गाँव में रामेश्‍वर भट नामक एक व्‍यक्‍ति को चूभ रही थी। तुकाराम महाराजजी की बढती प्रसिद्धी से वह क्रोधित था। इसलिए उसने संत तुकारामजी के अभंग की गाथा इंद्रायणी नदी में डुबों दी। इससे तुकाराम महाराजजी को अत्‍यंत दु:ख हुआ। उन्‍होंने भगवान विठ्ठल को अपनी स्‍थिती बताई। अपने बालमित्र से कहा, ‘"यह तो प्रभु की इच्‍छा होगी।" ऐसे १२ दिन बीत गए। १३ वें दिन गाथा नदी के पानी से उपर आकर तैरने लगी। यह देख रामेश्‍वर शास्‍त्री को अपने कृत्‍य का पश्‍चाताप हुआ और वे संत तुकाराम महाराजजी के शिष्‍य बन गए।

तुकाराम महाराज जी भगवान पांडुरंग का नामस्‍मरण कर अखंड आनंद की अवस्‍था में रहते थे। उन्‍हें किसी वस्‍तु की कोई अभिलाषा नहीं थी। केवल लोगों के कल्‍याण के लिए ही वे जीवित थे। स्‍वयं भगवान श्रीविष्‍णु का वाहन उन्‍हे वैकुंठ ले जाने के लिए आया था। जाते समय उन्‍होंने लोगों को अंतिम उपदेश करते हुए कहां, "बंधुओ, जीवन व्‍यतीत करते समय अखंड भगवान का नामस्‍मरण करें। अखंड नामजप करना यह भगवान तक जाने का केवल एक अत्‍यंत सुलभ मार्ग है। यह मैंने स्‍वयं अनुभव किया है। नामजप करने से भगवान के प्रति श्रद्धा बढती है और मन भी शुद्ध होता है।"

तभी श्रीविष्‍णुजी का गरुड वाहन उन्‍हें लेने के लिए आता दिखाई दिया। भगवान श्रीविष्‍णुजी के अत्‍यंत सुंदर रूप का वर्णन करते हुए और उपस्‍थित लोगों को प्रणाम करते हुए तुकाराम महाराजजी भगवान के वैकुंठधाम गए। वह फाल्‍गुन कृष्‍ण पक्ष द्वितिया का दिन था। भक्‍ति सिखानेवाले संत तुकाराम महाराजजी के चरणों में हम सभी कोटी कोटी वंदन करते हैं।

महाराष्ट्र का राजकीय फूल - जरुल || State Flower of Maharashtra - Jarul

महाराष्ट्र  का राजकीय फूल

सामान्य नाम:  जरुल
स्थानीय नाम: तामहान
वैज्ञानिक नाम: 'लेगरस्ट्रोमिया स्पेशोसा '

महाराष्ट्र का राजकीय फूल जरुल या लेगरस्ट्रोमिया स्पेशोसा है। इसे विशाल क्रेप-मर्टल के नाम से भी जाना जाता है। इसको भारत का गौरव भी कहा जाता है। जरुल पौधे के फूल चमकीले गुलाबी से लेकर हल्के बैंगनी रंग के होते हैं। इस पौधे के फूल साल में केवल एक बार, गर्मियों के चरम पर खिलते हैं। 

महाराष्ट्र  का राजकीय फूल - जरुल || State Flower of Maharashtra - Jarul

यह एक छोटा से मध्यम आकार का पेड़ है जो 20 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकता है और इसकी छाल चिकनी और परतदार होती है। पत्तियां पर्णपाती, अंडाकार से अण्डाकार, 8-15 सेमी लंबी, 3-7 सेमी चौड़ी और नुकीली नोक वाली होती हैं। फूल 20-40 सेमी लंबे लंबे पैनिकल्स में बनते हैं, जिनमें प्रत्येक फूल पर 2-3.5 सेमी लंबी छह सफेद से बैंगनी पंखुड़ियाँ होती हैं। इस पौधे के फूल साल में केवल एक बार, गर्मियों के चरम पर खिलते हैं।

महाराष्ट्र के राज्य प्रतीक

राज्य स्थापना दिवस – 1 मई 
राज्य पशु   – भारतीय विशाल गिलहरी
राज्य पक्षी  –  पीले पैर वाला हरा कबूतर
राज्य पुष्प  –  विशाल क्रेप-मर्टल/जारुल
राज्य तितली – नीला मॉर्मन
राज्य वृक्ष  – आम का पेड़
                  

यह एक सजावटी पौधा है, जो भारत और फिलीपींस सहित दक्षिणी एशिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों का मूल निवासी है। यह औषधीय मूल्य के लिए फिलीपीन सरकार द्वारा व्यापक रूप से प्रचारित हर्बल पौधों में से एक है। जरुल के पौधे की पत्तियों का उपयोग चाय बनाने के लिए किया जाता है। यह पौधा थेरवाद बौद्ध धर्म में ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। जारुल, जिसे मराठी में "तामहान" के रूप में भी जाना जाता है। 

महाराष्ट्र  का राजकीय फूल - जरुल || State Flower of Maharashtra - Jarul

इसका नाम स्वीडिश प्रकृतिवादी के नाम पर रखा गया था। फूल का अर्थ शानदार या दिखावटी होता है। जारुल लिथ्रम परिवार का सदस्य है, जिसे लिथ्रेसी के रूप में भी जाना जाता है। यह फूल महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उपयोग दवाओं और अन्य स्वास्थ्य देखभाल उत्पादों की तैयारी में किया जाता है।          

ENGLISH TRANSLATE

 State flower of Maharashtra

Common name: Jarul
Local name: Tamhan
Scientific name: 'Lagerstroemia speciosa'

The state flower of Maharashtra is Jarul or Lagerstroemia speciosa. It is also known as giant crepe-myrtle. It is also called the pride of India. The flowers of the Jarul plant range from bright pink to light purple. The flowers of this plant bloom only once a year, at the peak of summer.

महाराष्ट्र  का राजकीय फूल - जरुल || State Flower of Maharashtra - Jarul

It is a small to medium-sized tree that can reach a height of 20 meters and has a smooth and flaky bark. The leaves are deciduous, ovate to elliptical, 8–15 cm long, 3–7 cm broad and have a pointed tip. The flowers are produced in panicles 20–40 cm long, with six white to purple petals 2–3.5 cm long on each flower. The flowers of this plant bloom only once a year, at the peak of summer.

State Symbols of Maharashtra

State Foundation Day – 1 May
State Animal   – Indian Giant Squirrel
State Bird  – Yellow-legged Green Pigeon
State Flower  – Giant Crape-Myrtle/Jarul
State Butterfly – Blue Mormon
State Tree – Mango Tree 

It is an ornamental plant, native to tropical and subtropical regions of Southern Asia, including India and the Philippines. It is one of the herbal plants widely promoted by the Philippine government for its medicinal value. The leaves of the Jarul plant are used to make tea. This plant represents wisdom in Theravada Buddhism. Jarul, also known as “Tamhaan” in Marathi. 

It was named after a Swedish naturalist. The flower means spectacular or showy. Jarul is a member of the Lythrum family, also known as Lythraceae. This flower is important because it is used in the preparation of medicines and other health care products.    

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ...कैदी

मानसरोवर-2 ...कैदी

कैदी- मुंशी प्रेमचंद | Kaidi by Munshi Premchand

चौदह साल तक निरन्तर मानसिक वेदना और शारीरिक यातना भोगने के बाद आइवन औखोटस्क जेल से निकला; पर उस पक्षी की भाँति नहीं, जो शिकारी के पिंजरे से पंखहीन होकर निकला हो बल्कि उस सिंह की भाँति, जिसे कटघरे की दीवारों ने और भी भयंकर तथा और भी रक्त-लोलुप बना दिया हो। उसके अन्तस्तल में एक द्रव ज्वाला उमड़ रही थी, जिसने अपने ताप से उसके बलिष्ट शरीर, सुडौल अंग-प्रत्यंग और लहराती हुई अभिलाषाओं को झुलस डाला था और आज उसके अस्तित्व का एक-एक अणु एक-एक चिनगारी बना हुआ था- क्षुधित, चंचल और विद्रोहमय।
कैदी- मुंशी प्रेमचंद | Kaidi by Munshi Premchand

जेलर ने उसे तौला। प्रवेश के समय दो मन तीस सेर था, आज केवल एक मन पाँच सेर।

जेलर ने सहानुभूति दिखाकर कहा- तुम बहुत दुर्बल हो गये हो, आइवन। अगर जरा भी कृपथ्य हुआ, तो बुरा होगा।

आइवन ने अपने हड्डियों के ढाँचे को विजय-भाव से देखा और अपने अन्दर एक अग्निमय प्रवाह का अनुभव करता हुआ बोला- कौन कहता है कि मैं दुर्बल हो गया हूँ?

तुम खुद देख रहे होगे।’

‘दिल का आग जब तक नहीं बुझेगी, आइवन नहीं मरेगा, मि. जेलर, सौ वर्ष तक नहीं, विश्वास रखिए।’

आइवन इसी प्रकार की बहकी-बहकी बाते किया करता था, इसलिए जेलर ने ज्यादा परवाह न की। सब उसे अर्द्ध-विक्षिप्त समझते थे। कुछ लिखा-पढ़ी हो जाने के बाद उसके कपड़े और पुस्तकें मँगवायी गयी; पर वे सारे सूट अब उसे उतारे हुए से लगते थे। कोटों को जेबों में कई नोट निकले, कई नकद रुबेल। उसने सब कुछ वहीं जेल के वार्डन और निम्न कर्मचारियों को दे दिया मानो उसे कोई राज्य मिल गया हो।

जेलर ने कहा- यह नहीं हो सकता, आइवन! तुम सरकारी आदमियों को रिश्वत नहीं दे सकते।

आइवन साधु-भाव हँसा- यह रिश्वत नहीं हैं, मि. जेलर! इन्हें रिश्वत देकर अब मुझे क्या लेना-देना हैं? अब ये अप्रसन्न होकर मेरा क्या बिगाड़ लेंगे और प्रसन्न होकर मुझे क्या देंगे? यह उन कृपाओं का धन्यवाद हैं जिनके बिना चौदह साल तो क्या, मेरा यहाँ चौदह घंटे रहना असह्य हो जाता।

जब वह जेल के फाटक से निकला, तो जेलर और सारे अन्य कर्मचारी उसके पीछे उसे मोटर तक पहुँचाने चले।

पन्द्रह साल पहले आइवन मास्को के सम्पन्न और सम्भ्रान्त कुल का दीपक था।

उसने विद्यालय में ऊँची शिक्षा पायी थी, खेल में अभ्यस्त था, निर्भीक था, उदार और सहृदय था। दिल आईने की भाँति निर्मल, शील का पुतला, दर्बलों की रक्षा के लिए जान पर खेलनेवाला, जिसकी हिम्मत संकट के सामने नंगी तलवार हो जाती थी। उसके साथ हेलेन नाम की एक युवती पढ़ती थी, जिस पर विद्यालय के सारे युवक जान देते थे। वह जितनी ही रूपवती थी, उतनी ही तेज थी, बड़ी कल्पनाशील; पर मनोभावों को ताले में बन्द रखनेवाली। आइवन में क्या देखकर वह उसकी ओर आकर्षित हो गयी, यह कहना कठिन हैं। दोनो में लेशमात्र भी सामंजस्य न था। आइवन सैर और शराब का प्रेमी था, हेलेन कविता एवं संगीत और नृत्य पर जान देती थी। आइवन की निगाह में रुपये इसलिए थे कि दोनो हाथो से उड़ाये जाएँ, हेलेन अत्यन्त कृपण। आइवन को लेक्चर-हॉल कारागार-सा लगता था; हेलेन इस सागर की मछली थी। पर कदाचित् वह विभिन्नता ही उनमें स्वाभाविक आकर्षण बन गयी, जिसने अन्त में विकल प्रेम का रूप लिया। आइवन ने उससे विवाह का प्रस्ताव किया और उसने स्वीकार कर लिया। और दोनों किसी शुभ मुहर्त में पाणिग्रहण करके सौहागरात बिताने के लिए किसी पहाड़ी में जाने के मनसूबे बना रहे थे कि सहसा राजनैतिक संग्राम ने उन्हें अपनी ओर खींच लिया। हेलेन पहले से ही राष्ट्रवादियों की ओर की हुई थी। आइवन भी उसी रंग में रँग उठा । खानदान का रईस था, उसके लिए प्रजा-पक्ष लेना एक महान तपस्या थी; इसलिए जब कभी वह इस संग्राम में हताश हो जाता, तो हेलेन उसकी हिम्मत बँधाती और आइवन उसके साहस और अनुराग से प्रभावित होकर अपनी दुर्बलता पर लज्जित हो जाता।

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इन्हीं दिनों उक्रायेन प्रान्त की सूबेदारी पर रोमनाफ नाम का एक गवर्नर नियुक्त होकर आया- बड़ा ही कट्टर, राष्ट्रवादियों का जानी दुश्मन, दिन में दो-चार विद्रोहियों को जेल भेज लेता, उसे चैन न आता। आते-ही-आते उसने कई सम्पादकों पर राजद्रोह का अभियोग चलाकर उन्हें साइबेरिया भेजवा दिया, कृषको की सभाएँ तोड़ दी, नगर की म्युनिसिपैलिटी तोड़ दी और जब जनता ने रोष प्रकट करने के लिए जलसे किये, तो पुलिस से भीड़ पर गोलियाँ चलवायीं, जिसमें कई बेगुनाहों की जाने गयीं। मार्शल लॉ जारी कर दिया। सारे नगर में हाहाकार मच गया। लोग मारे डर के डरो से न निकलते थे; क्योंकि पुलिस हर एक की तलाशी लेती थी और उसे पीटती थी।

हेलेन ने कठोर मुद्रा से कहा- यह अन्धेर तो अब नहीं देखा जाता, आइवन। इसका कुछ उपाय होना चाहिए।

आइवन ने प्रश्न की आँखों से देखा- उपाय! हम क्या उपाय कर सकते हैं?

हेलेन ने उसकी जड़ता पर खिन्न होकर कहा- तुम कहते हो, हम क्या कर सकते हैं मैं कहती हूँ, हम सब कुछ कर सकते हैं। मैं इन्हीं हाथों से उनका अन्त कर दूँगी।

आइवन ने विस्मय से उसकी ओर देखा- तुम समझती हो, उसे कत्ल करना आसान हैं? वह कभी खुली गाड़ी में नहीं निकलता। उसके आगे-पीछे सशस्त्र सवारों का एक दल हमेंशा रहता हैं। रेलगाड़ी में भी वह रिर्जव डब्बों मे सफर करता हैं। मुझे तो असम्भव सा लगता हैं, हेलेन- बिल्कुल असम्भव।

हेलेन कई मिनट तक चाय बनाती रही। फिर दो प्याले मेज पर रखकर उसने प्याला मुँह से लगाया और धीरे-धीरे पीने लगी। किसी विचार में तन्मय हो रही थी। सहसा उसने प्याला मेज पर रख दिया और बड़ी-बड़ी आँखों में तेज भर कर बोली- यह सब होते हुए भी मैं उसे कत्ल कर सकती हूँ, आइवन! आदमी एक बार अपनी जान पर खेलकर सब कुछ कर सकता हैं। जानते हो, मैं क्या करूँगी? मैं उससे राहो-रस्म पैदा करूँगी, उसका विश्वास प्राप्त करूँगी उसे इस भ्राँति में डालूँगी कि मुझे उससे प्रेम हैं। मनुष्य कितना ही हृदयहीन हो, उसके हृदय के किसी-न-किसी कोने में पराग की भाँति रस छिपा ही रहता हैं। मैं तो समझती हूँ कि रोमनाफ की यह दमन-नीति उसकी अवरुद्ध अभिलाषा की गाँठ हैं और कुछ नहीं। किसी मायावनी के प्रेम में असफल होकर उसके हृदय का रस-स्रोत सूख गया हैं। वहाँ रस का संचार करना होगा और किसी युवती का एक मध शब्द, एक सरल मुसकान भी जादू का काम करेगी। ऐसों को तो वह चुटकियों में अपने पैरों पर गिरा सकती हैं। तुम-जैसे सैलानियों को रिझाना इससे कहीं कठिन हैं। अगर तुम यह स्वीकार करते हो कि मैं रूपहीन नहीं हूँ, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ कि मेरा कार्य सफल होगा। बतलाओ मैं रूपवती हूँ या नहीं

उसने तिर्छी आँखों से आइवन को देखा। आइवन इस भाव-विलास पर मुग्ध होकर बोला- तुम यह मुझसे पूछती हो, हेलेन? मैं तो संसार की ….

हेलेन ने उसकी बात काट कर कहा- अगर तुम ऐसा समझते हो, तो तुम मूर्ख हो, आइवन ! इसी नगर में नही, हमारे विद्यालय में ही, मुझसे कहीं रूपवती बालिकाएँ मौजूद हैं। हाँ, तुम इतना कह सकते हो कि तुम कुरूपा नहीं हो। क्या तुम समझते हो, मैं तुम्हें संसार का सबसे रूपवान युवक समझती हूँ? कभी नहीं। मैं ऐसे एक नही सौ नाम गिना सकती हूँ, जो चेहरे-मोहरे में तुमसे बढ़कर हैं, मगर तुममे कोई ऐसी वस्तु हैं, जो तुम्हीं में हैं और वह मुझे और कहीं नजर नहीं आती। तो मेरा कार्यक्रम सुनो। एक महीने तो मुझे उससे मेल करते लगेगा। फिर वह मेरे साथ सैर करने निकलेगा। और तब एक दिन हम और वह दोनों रात को पार्क में जायँगे और तालाब के किनारे बेंच पर बैठेंगे। तुम उसी वक़्त रिवाल्वर लिये आ जाओगे और वहीं पृथ्वी उसके बोझ से हलकी हो जायगी।

जैसा हम पहले कह चुके हैं आइवन एक रईस का लड़का था और क्रांतिमय राजनीति से उसका हार्दिक प्रेम न था। हेलेन के प्रभाव से कुछ मानसिक सहानुभूति अवश्य पैदा हो गयी थी और मानसिक सहानुभूति प्राणी को संकट में नहीं डालती। उसने प्रकट रूप से तो कोई आपत्ति नही की लेकिन कुछ संदिग्ध भाव से बोला- यह तो सोचो हेलेन, इस तरह की हत्या कोई मानुषीय कृति हैं।
सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र
हेलेन ने तीखेपन से कहा- जो दूसरों के साथ मानुषीय व्यवहार नहीं करता, उसके साथ हम क्यों मानुषीय व्यवहार करे? क्या यह सूर्य की भाँति प्रकट नहीं हैं कि आज सैकड़ो परिवार इस राक्षस के हाथो से तबाह हो रहे हैं? कौन जानता हैं, इसके हाथ कितने बेगुनाहों के खून से रँगे हुए हैं? ऐसे व्यक्ति के साथ किसी तरह रिआयत करना संगत हैं। तुम न-जाने क्यों इतने ठंडे हो। मैं तो उसके दुष्टाचरण को देखती हूँ तो मेरा रक्त खौलने लगता हैं। मैं सच कहती हूँ, जिस वक़्त उसकी सवारी निकलती हैं. मेरी बोटी-बोटी हिंसा के आवेग से काँपने लगती हैं। अगर मेरे सामने कोई उसकी खाल भी खींच ले, तो मुझे दया न आये। अगर तुममें इतना साहस नहीं हैं, तो कोई हरज नहीं। मैं खुद सब कुछ कर लूँगी। हाँ, देख लेना, मैं कैसे उस कुत्ते को जहन्नुम पहुँचाती हूँ ।

3

हेलेन का मुखमंडल हिंसा के आवेश से लाल हो गया। आइवन ने लज्जित होकर कहा- नहीं-नहीं, यह बात नहीं हैं. हेलेन! मेरा यह आशय न था कि मैं इस काम में तुम्हें सहयोग न दूँगा मुझे आज मालूम हुआ कि तुम्हारी आत्मा देश की दुर्दशा से कितनी विकल हैं; लेकिन मैं फिर यहीं कहूँगा कि यह काम इतना आसान नहीं हैं और हमें बड़ी सावधानी से काम लेना पड़ेगा।

हेलेन ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा- तुम इसकी कुछ चिन्ता न करो, आइवन! संसार में मेरे लिए जो वस्तु सबसे प्यारी हैं, उसे दाँव पर रखते हुए क्या मैं सावधानी से काम न लूँगी? लेकिन तुमसे एक याचना करती हूँ। अगर इस बीच में कोई ऐसा काम करूँ, जो तुम्हे बुरा मालूम हो, तो तुम मुझे क्षमा करोगे न?

आइवन ने विस्मय-भरी आँखों से हेलेन के मुख की ओर देखा। उसका आशय समझ में न आया।

हेलेन डरी, आइवन कोई नयी आपत्ति तो नहीं खड़ी करना चाहता। आश्वासन के लिए अपने मुख को उसके आतुर अक्षरों के समीप ले जाकर बोली- प्रेम का अभिनय करने मुझे वह सब कुछ करना पड़ेगा, जिस पर एकमात्र तुम्हारा ही अधिकार हैं। मै डरती हूँ, कहीं तुम मुझ पर सन्देह न करने लगो।

आइवन ने उसे कर-पाश में लेकर कहा- यह असम्भव हैं हेलेन, विश्वास प्रेम की पहली सीढ़ी हैं।

अंतिम शब्द करते-कहते उसकी आँखे झुक गयी। इन शब्दों में उदारता का जो आदर्श था, वह उस पर पूरा उतरेगा या नहीं, वह यहीं सोचने लगी।

इसके तीन दिन पीछे नाटक का सूत्रपात हुआ। हेलेन अपने ऊपर पुलिस के निराधार संदेह की फरियाद लेकर रोमनाफ से मिली और उसे विश्वास दिलाया कि पुलिस के अधिकारी उससे केवल इसलिए असंतुष्ट है कि वह उनके कलुषित प्रस्तावों को ठुकरा रही हैं। यह सत्य हैं कि विद्यालय में उसकी संगति कुछ उग्र युवकों से ही गयी थी; पर विद्यालय से निकलने के बाद उसका उनसे कोई सम्बन्ध नही हैं । रोमनाफ जितना चतुर था, उससे कही चतुर अपने को समझता था। अपने दस साल के अधिकारी जीवन में उसे किसी रमणी से साबिका न पड़ा था, जिसने उसके ऊपर इतना विश्वास करके अपने को उसकी दया पर छोड़ दिया हो। किसी धन-लोलुप की भाँति सहसा यह धनराशि देखकर उसकी आँखों पर परदा पढ़ गया। अपनी समझ में तो वह हेलेन से उग्र युवकों के विषय में ऐसी बहुत-सी बातो का पता लगाकर फूला न समाया, जो खुफिया पुलिसवालों को बहुत सिर-मारने पर भी ज्ञात न हो सकी थी; पर इन बातों में मिथ्या का कितना मिश्रण हैं, वह न भाँप सका। इस आध घंटे में एक युवती ने एक अनुभवी अफसर को अपने रूप की मदिरा से उन्मत्त कर दिया था।

जब हेलेन चलने लगी, तो रोमनाफ ने कुर्सी से खड़े होकर कहा- मुझे आशा हैं, यह हमारी आखिरी मुलाकात न होगी।

हेलेन ने हाथ बढ़ाकर कहा- हुजूर ने जिस सौजन्य से मेरी विपत्ति-कथा सुनी हैं, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूँ।

‘कल आप तीसरे पहर यहीं चाय पियें।’

रब्त-जब्त बढ़ने लगा। हेलेन आकर रोज की बातें आइवन से कह सुनाती। रोमनाफ वास्तव में जितना बदनाम था, उतरा बुरा नहीं। नहीं, वह बडा रसिक, संगीत और कला का प्रेमी और शील तथा विनय की मूर्ति हैं। इन थोड़े ही दिनों में हेलेन से उसकी घनिष्ठता हो गयी हैं और किसी अज्ञात रीति से नगर में पुलिस का अत्याचार कम होने लगा हैं।

अन्त में निश्चित तिथि आयी। आइवन और हेलेन दिन-भर बैठे-बैठे इसी प्रश्न पर विचार करते रहे। आइवन का मन आज बहुत चंचल हो रहा था। कभी अकारण ही हँसने लगता, कभी अनायास ही रो पड़ता। शंका, प्रतीक्षा और किसी अज्ञात चिंता ने उसके मनो-सागर को इतना अशान्त कर दिया था कि उसमें भावों को नौकाएँ डगमगा रही थीं- न मार्ग का पता था न दिशा का। हेलेन भी आज बहुत चिन्तित और गम्भीर थी। आज के लिए उसने पहले ही से सजीले वस्त्र बनवा रखे थे। रूप को अलंकृत करने के न-जाने किन-किन विधानों कप प्रयोग कर रही थी; पर इसमें किसी योद्धा का उत्साह नहीं, कायर का कम्पन था।

सहसा आइवन ने आँखों में आँसू भरकर कहा- तुम आज इतनी मायाविनी हो गयी हो हेलेन, कि मुझे न-जाने क्यों तुमसे भय हो रहा हैं!

हेलेन मुसकायी। उस मुसकान में करूणा भरी हुई थी- मनुष्य को कभी-कभी कितने ही अप्रिय कर्त्तव्यों का पालन करना पड़ता हैं, आइवन, आज मैं सुधा से विष का काम लेने जा रही हूँ। अलंकार का ऐसा दुरुपयोग तुमने कहीं और देखा हैं?

आइवन उड़े हुए मन से बोला- इसी को राष्ट्र-जीवन कहते हैं।

‘यह राष्ट्र-जीवन हैं- यह नरक हैं।’

‘मगर संसार में अभी कुछ दिन और इसकी जरूरत रहेगी।’

यह अवस्था जितनी जल्द बदल जाय उतना ही अच्छा। ’

4

पाँसा पलट चुका था, आइवन ने गर्म होकर कहा- अत्याचारियों को संसार में फलने-फूलने दिया जाय, जिसमें एक दिन इनके काँटों के मारे पृथ्वी पर कहीं पाँव रखने की जगह न रहे।

हेलेन ने जवाब न दिया; पर उसके मन में जो अवसाद उत्पन्न हो गया था, वह उसके मुख पर झलक रहा था। राष्ट्र उसकी दृष्टि में सर्वोपरि था, उसके सामने व्यक्ति का कोई मूल्य न था। अगर इस समय उसका मन किसी कारण से दुर्बल भी हो रहा था, तो उसे खोल देने का उसमें साहस न था।

दोनो गले मिलकर विदा हुए। कौन जाने, यह अन्तिम दर्शन हो?

दोनों के दिल भारी थे और आँखें सजल।

आइवन ने उत्साह के साथ कहा- मैं ठीक समय पर आऊँगा।

हेलेन ने कोई जवाब न दिया।

आइवन ने फिर सानुरोध कहा- खुदा से मेरे लिए दुआ करना, हेलेन!

हेलेन ने जैसे रोते हुए कहा- मुझे खुदा पर भरोसा नहीं हैं।

‘मुझे तो हैं।’

‘कब से? ’

‘जब से मौत मेरी आँखों के सामने खड़ी हो गयी।’

वह वेग के साथ चला गया। सन्ध्या हो गयी और दो घंटे के बाद ही उस कठिन परीक्षा का समय आ जायगा, जिससे उसके प्राण काँप रहे थे। वह कहीं एकान्त में बैठकर सोचना चाहता था। आज उसे ज्ञात हो रहा था कि वह स्वाधीन नहीं हैं। बड़ी मोटी जंजीर उसके एक-एक अंग को जकड़े हुए थी। इन्हें वह कैसे तोड़े?

दस बज गये थे। हेलेन और रौमनाफ पार्क के एक कुंज में बैठे हुए थे। तेज बर्फीली हवा चल रही थी। चाँद किसी क्षीण आशा की भाँति बादलों में छिपा हुआ था।

हेलेन ने इधर-उधर सशंक नेत्रों से देखकर कहा- अब तो देर हो गयी, यहाँ से चलना चाहिए।

रोमनाफ ने बेंच पर पाँव फैलाते हुए कहा- अभी तो ऐसी देर नहीं हुई हैं, हेलेन! कह नहीं सकता, जीवन के यह क्षण स्वप्न हैं या सत्य; लेकिन सत्य भी हैं तो स्वप्न से अधिक मधुर और स्वप्न भी हैं तो सत्य से अधिक उज्ज्वल।

हेलेन बेचैन होकर उठी और रोमनाफ का हाथ पकड़कर बोली- मेरा जी आज कुछ चंचल हो रहा हैं। सिर में चक्कर आ रहा हैं। चलो मुझे मेरे घर पहुँचा दो।

रोमनाफ ने उसका हाथ पकड़कर अपनी बगल में बैठाते हुए कहा- लेकिन मैने मोटर तो ग्यारह बजे बुलायी हैं।

हेलेन के मुँह से चीख निकल गयी- ग्यारह बजे!

‘हाँ. अब ग्यारह बजा चाहते हैं। आओ तब तक और कुछ बातें हों। रात तो काली बला-सी मालूम होती हैं। जितनी ही देर उसे दूर रख सकूँ उतना ही अच्छा। मैं तो समझता हूँ, उस दिन तुम मेरे सौभाग्य की देवी बनकर आयी थी हेलेन, नहीं तो अब तक मैने न जाने क्या-क्या अत्याचार किये होते। उस उदार नीति ने वातावरण में जो शुभ परिवर्तन कर दिया, उस पर मुझे स्वयं आश्चर्य हो रहा हैं। महीनों के दमन में जो कुछ न कर पाया था, वह दिनों के आश्वासन ने पूरा कर दिखाया। और इसके लिए मैं तुम्हारा ऋणी हूँ, हेलेन, केवल तुम्हारा। पर खेद यही हैं कि हमारी सरकार दवा करना नहीं जानती, केवल मारना जानती हैं। जार के मंत्रियों में अभी से मेरे विषय में सन्देह होने लगा हैं, और मुझे यहाँ से हटाने का प्रस्ताव हो रहा हैं।

सहसा टार्च का चकाचौध पैदा करनेवाला प्रकाश बिजली की भाँति उठा और रिवाल्वर छूटने की आवाज आयी। उसी वक़्त रोमनाफ ने उछलकर आइवन को पकड़ लिया और चिल्लाया- पकड़ो, पकड़ो! खून हेलेन, तुम यहाँ से भागो।

पार्क में कई संतरी थे। चारों ओर से दौड़ पड़े। आइवन घिर गया। एक क्षण में न-जाने कहाँ से टाउन-पुलिस, सशस्त्र पुलिस, गुप्त पुलिस और सवार पुलिस के जत्थे-के-जत्थे आ पहुँचे। आइवन गिरफ्तार हो गया।

रोमनाफ ने हेलेन से हाथ मिलाकर सन्देह के स्वर मे कहा- यह आइवन तो वही युवक है, तो तुम्हारे विद्यालय में था।

हेलेन ने क्षुब्ध होकर कहा- हाँ, हैं। लेकिन मुझे इसका जरा भी अनुमान न था कि वह क्रांतिकारी हो गया हैं।

‘गोली मेरे सिर पर से सन्-सन् करती हुई निकल गयी।’

‘या ईश्वर!’

‘मैने दूसरा फायर करने का अवसर ही न दिया। मुझे इस युवक की दशा पर दु:ख हो रहा हैं, हेलेन! ये अभागे समझते हैं कि इन हत्याओं से वे देश का उद्धार कर लेंगे। अगर मैं मर ही जाता तो क्या मेरी जगह, कोई मुझसे भी ज्यादा कठोर मनुष्य न आ जाता? लेकिन मुझे जरा भी क्रोध, दु:ख या भय नहीं हैं हेलेन, तुम बिल्कुल चिन्ता न करना। चलो, मैं तुम्हें पहुँचा दूँ’

रास्ते भर रोमनाफ इस आघात से बच जाने पर अपने को बधाई और ईश्वर को धन्यवाद देता रहा और हेलेन विचारों में मग्न बैठी रही।

दूसरे दिन मजिस्ट्रेट के इलजास में अभियोग चला और हेलेन सरकारी गवाह थी। आइवन को मालूम हुआ कि दुनिया अंधेरी हो गयी हैं और वह उसकी अथाह गहराई में घँसता चला जा रहा हैं।

5

चौदह साल के बाद।

आइवन रेलगाड़ी से उतरकर हेलेन के पास जा रहा हैं। उसे घरवालों की सुध नहीं हैं। माता और पिता उसके वियो में मरणासन्न हो रहे हैं, इसकी उसे परवाह नही हैं। वह अपने चौदह साल के पाले हुए हिंसा-भाव से उन्मत्त, हेलेन के पास जा रहा हैं, पर उसकी हिंसा में रक्त की प्यास नहीं हैं, केवल गहरी दाहक दुर्भावना हैं। इस चौदह सालों में उसने जो यातनाएँ झेली हैं, उनके दो-चार वाक्यों में मानो सत्त निकालकर, विष के समान हेलेन की धमनियों में भरकर, उसे तड़पते हुए देखकर, वह अपनी आँखों को तृप्त करना चाहता हैं। और वह वाक्य क्या हैं?- ‘हेलेन, तुमने मेरे साथ जो दगा की हैं, वह शायद त्रिया-चरित के इतिहास में भी अद्‌वितीय हैं। मैने अपना सर्वस्व तुम्हारे चरणों पर अर्पण कर दिया। मैं केवल तुम्हारे इशारों का गुलाम था। तुमने ही मुझे रोमनाफ की हत्या के लिए प्रेरित किया और तुमने ही मेरे विरुद्ध साक्षी दी, केवल अपनी कुटिल काम-लिप्सा को पूरा करने के लिए! मेरे विरुद्ध कोई दूसरा प्रणाम न था। रोमनाफ और उसकी सादी पुलिस भी झूठी शहादतों से मुझे परास्त न कर सकती थी; मगर तुमने केवल अपनी वासना को तृप्त करने के लिए, केवल रोमनाफ के विषाक्त आलिंगन का आनन्द उठाने के लिए मेरे साथ यह विश्वासघात किया। पर आँखें खोलकर देखो कि वही आइवन, जिसे तुमने पैर के नीचे कुचला था, आज तुम्हारी उन सारी मक्कारियों का पर्दा खोलने के लिए तुम्हारे सामने खड़ा हैं। तुमने राष्ट्र की सेवा का बीड़ा उठाया था। तुम अपने को राष्ट्र की वेदी पर होम कर देना चाहती थी; किन्तु कुत्सित कामनाओं के पहले ही प्रलोभन में तुम अपने सारे बहुरूप को तिलांजलि देकर भोग-लालसा की गुलामी करने पर उतर गयीं। अधिकार और समृध्दि के पहले ही टुकड़े पर तुम दुम हिलाती हुई टूट पड़ी, धिक्कार हैं तुम्हारी इस भोग-लिप्सा को, तुम्हारे इस कुत्सित जीवन को?’

सन्ध्या-काल था। पश्चिम के क्षितिज पर दिन का चिता जलकर ठंडी हो रही थी और रोमनाफ के विशाल भवन में हेलेन की अर्थी को ले चलने की तैयारियाँ हो रही थी। नगर के नेता जमा थे और रोमनाफ अपने शोक- कंपित हाथों से अर्थी को पुष्पहार से सजा रहा था एवं उन्हें अपने आत्म-जल से शीतल कर रहा था। उसी वक़्त आइवन उन्मत्त वेश में, दुर्बल, झुका हुआ, सिर के बाल बढ़ायें, कंकाल- सा आकर खड़ा हो गया। किसी ने उसकी ओर ध्यान न दिया! समझे, कोई भिक्षुक होगा जो ऐसे अवसरों पर दान के लोभ पर आ जाया करते हैं।

जब नगर के विशप ने अन्तिम संस्कार समाप्त किया और मरियम की बेटियाँ नये जीवन के स्वागत का गीत गा चुकीं, तो आइवन ने अर्थी के पास जाकर, आवेश से काँपते हुए स्वर में कहा- यह वह दुष्टा है, जिसे सारी दुनिया के पवित्र आत्माओं की शुभ कामनाएँ भी नरक की यातना से नहीं बचा सकतीं। वह इस योग्य थी कि उसकी लाश….

6

कई आदमियों ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और धक्के देते हुए फाटक की ओर ले चले। उसी वक़्त रोमनाफ ने आकर उसके कन्धे पर हाथ रख दिया और उसे अलग ले जाकर पूछा- दोस्त, क्या तुम्हारा नाम क्लॉडियस आइवन हैं? हाँ, तुम वही हो. मुझे तुम्हारी सूरत याद आ गयी। मुझे सब कुछ मालूम हैं, रत्ती-रत्ती मालूम हैं। हेलेन ने मुझसे कोई बात नहीं छिपायी। अब वह इस संसार में नहीं हैं, मैं झूठ बोलकर उसकी कोई सेवा नहीं कर सकता। तुम उस पर कठोर शब्दों का प्रहार करो या कठोर आघातों का, वह समान रूप से शान्त रहेगी; लेकिन अन्त समय तक वह तुम्हारी। याद करती रही। उस प्रसंग की स्मृति उसे सदैव रुलाती रहती थी। उसके जीवन की यह सबसे बड़ी कामना थी कि वह तुम्हारे सामने घुटने टेक कर क्षमा की याचना करे, मरते-मरते उसने यह वसीयत की, कि जिस तरह भी हो सके उसकी यह विनय तुम तक पहुचाऊँ कि वह तुम्हारी अपराधिनी हैं और तुमसे क्षमा चाहती हैं। क्या तुम समझते हो, जब वह तुम्हारे सामने आँखों में आँसू भरे आती, तो तुम्हारे हृदय पत्थर होने पर भी न पिघल जाता? क्या इस समय भी तुम्हें दीन याचना की प्रतिमा-सी खडी नही दीखती? चलकर उसका मुसकराता हुआ चेहरा देखो। मोशियो आइलन, तुम्हारा मन अब भी उसका चुम्बन लेने के लिए विकल हो जायगा। मुझे जरा भी ईर्ष्या न होगी। उस फूलों की सेज पर लेटी हुई वह ऐसी लग रही हैं, मानो फूलों की रानी हो। जीवन में उसकी एक ही अभिलाषा अपूर्ण रह गयी आइवन, वह तुम्हारी क्षमा हैं। प्रेमी हृद बड़ा उदार होता हैं आइवन, वह क्षमा और दया का सागर होता हैं। ईर्ष्या और दम्भ के गन्दे नाले उसमें मिलकर उतने ही विशाल और पवित्र हो जाते हैं। जिसे एक बार तुमने प्यार किया उसकी अन्तिम अभिलाषा की तुम उपेक्षा नहीं कर सकते।

उसने आइवन का हाथ पकड़ा और सैकड़ो कुतूहल-पूर्ण नेत्रों के सामने उसे लिये हुए अर्थी के पास आया और ताबूत का ऊपरी तख्ता हटाकर हेलेन का शान्त मुख-मंडल उसे दिखा दिया। उस निस्पन्द, निश्चेष्ट, निर्विकार छवि को मृत्यु ने एक दैवी गरिमा-सी प्रदान कर दी थी, मानो स्वर्ग की सारी विभूतियाँ उसका स्वागत कर रही हैं। आइवन की कुटिल आँखों में एक दिव्य ज्योति-सी चमक उठी और वह अपने हृदय के सारे अनुराग और उल्लास को पुष्पों में गूँथ कर उसके गले में डाला था। उसे जान पड़ा, यह सब कुछ जो उसके सामने हो रहा हैं, स्वप्न हैं और एकाएक उसकी आँखें खुल गयी हैं और वह उसी भाँति हेलेन को अपनी छाती से लगाये हुए हैं। उस आत्मानन्द के एक क्षण के लिए क्या वह फिर चौदह साल का कारावास झेलने के लिए तैयार हो जायगा? क्या अब भी उसके जीवन की सबसे सुखद घड़ियाँ वही न थी, जो हेलेन के साथ गुजरी थी और क्या उन घड़ियों के अनुपम आनन्द को वह इन चौदह सालों मे भी भूल सका था? उसने ताबूत के पास बैठकर श्रद्धा से काँपते हुए कंठ से प्रार्थना की-‘ ईश्वर, तू मेरे प्राणों से प्रिय हेलेन को अपनी क्षमा के दामन में ले!‘ और जब वह ताबूत को कन्धे पर लिये चला, तो उसकी आत्मा लज्जित थी अपनी संकीर्णता पर, अपनी उद्‌विग्नता पर, अपनी नीचता पर और जब ताबूत कब्र में रख दिया, तो वह वहाँ बैठकर न-जाने कब तक रोता रहा। दूसरे दिन रोमनाफ जब फातिहा पढ़ने आया तो देखा, आइवन सिजदे में सिर झुकायें हुए हैं और उसकी आत्मा स्वर्ग को प्रयाण कर चुकी हैं।

नया वर्ष 2025 | Happy New Year 2025

नया वर्ष ले आया घट आशीष का


Rupa Oos ki ek Boond

आज जनम दिन दो हज़ार पच्चीस का,

नया वर्ष ले आया घट आशीष का |  

लाये वो हमको हम उसको , 

दें उपहार बड़े,

नयी योजनायें लेकर हम 

स्वागत में खड़े,

मिले अवनि को रूप स्वयं अवनीश का

नया वर्ष ले आया घट आशीष का |

सुख समृद्धि वैभव से ,

अपने शहर और गांव सजें ,

प्रगति पथ दिखलाते हमको ,

आगे वाद्य बजे,

दीप जले अब अपने स्वयं मनीष का,

नया वर्ष ले आया घट आशीष का | 

नई- नई पहचान बने और 

हों सब काम नये , 

सभी पुराने कामों के भी ,

हों परिणाम नये, 

गौरव मिले हमें ही ऊँचे शीश का,

नया वर्ष ले आया घट आशीष का |  

नया वर्ष 2025 | Happy New Year 2025

नव वर्ष 2025 का तेजस्वी सूर्य आपके और आपके समस्त परिजनों के लिये अनंत प्रकाश में स्वर्णिम कल्पनाओं की सम्यक् सम्पूर्ति, उत्तम स्वास्थ्य एवं सम्पन्नता लाए, इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ आप सभी को अंग्रेजी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🎉