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World No Tobacco Day 2024 || 31 वर्ल्ड नो टोबैको डे || World No Tobacco Day

विश्व तंबाकू निषेध दिवस

तंबाकू का सेवन करने वाले और नहीं करने वाले सभी को यह ज्ञात है कि तंबाकू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यहां तक की जानलेवा भी हो सकता है। तंबाकू का सेवन व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक दोनों स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालता है, फिर भी दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोग किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन कर रहे हैं। शायद आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हर साल 80 करोड़ किलोग्राम जहरीला कचरा पैदा होता है और हवा, पानी और मिट्टी में हजारों रसायन छोड़े जाते हैं। आज "विश्व तंबाकू निषेध दिवस" है, चलिए जानते हैं कि यह दिवस क्यों मनाया जाता है और इसका क्या महत्व है? 

World No Tobacco Day 2024 || 31 वर्ल्ड नो टोबैको डे || World No Tobacco Day

हर साल 31 मई को विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसके साझेदार विश्व भर में विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाते हैं, जिसमें तंबाकू के उपयोग से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों पर प्रकाश डाला जाता है और तंबाकू की खपत को कम करने के लिए प्रभावी नीतियों की वकालत की जाती है।

विश्व तंबाकू निषेध दिवस (WNTD) का इतिहास

1987 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन के राज्य सदस्यों ने दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर तंबाकू के उपयोग के विनाशकारी प्रभावों (मृत्यु और बीमारी) के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए "विश्व तंबाकू निषेध दिवस" ​​की स्थापना की। विश्व स्वास्थ्य सभा ने 1987 में संकल्प WHA40.38 में 7 अप्रैल, 1988 को "विश्व धूम्रपान निषेध दिवस" ​​घोषित किया। 1988 में, संकल्प WHA42.19 को अधिनियमित किया गया, जिसमें 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में नामित किया गया।       

विश्व तंबाकू निषेध दिवस का इतिहास 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा विश्व तंबाकू निषेध दिवस की स्थापना साल 1988 में की गई थी। डब्ल्यूएचओ की स्वास्थ्य सभा ने साल 1987 में संकल्प WHA40.38 पारित करने की अपील की थी। वहीं, तंबाकू उत्पादों के कारण दुनियाभर में बढ़ते मामलों को देखकर इस दिवस को मनाया जाने लगा। इस दिवस को मनाने के पीछे का मकसद तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों को तंबाकू उत्पादों से 24 घंटे के लिए दूर रखना था। संकल्प WHA40.38 पारित होने के बाद से हर साल 31 मई को यह दिवस मनाया जाने लगा। 

World No Tobacco Day 2024 || 31 वर्ल्ड नो टोबैको डे || World No Tobacco Day

विश्व तंबाकू निषेध दिवस का महत्व

इस दिवस का महत्व और उद्देश्य लोगों को खासतौर पर युवाओं को तंबाकू से होने वाले नुकसान से बचाना और उन्हें इस बारे में शिक्षित करना है। इस दिवस को मनाकर लोगों में तंबाकू से होने वाले नुकसान के बारे में जागरुक करना होता है। लोगों को तंबाकू को छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाता है और अच्छी आदतों के बारे में बताया जाता है। यह दिवस मनाने का एक उद्देश्य यह भी है कि तंबाकू की खेती पर अंकुश लगे और किसानों को अन्य खाद्य फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाये। 

दुनिया भर में, हर साल लगभग 35 लाख हेक्टेयर भूमि का उपयोग तम्बाकू की खेती के लिए किया जाता है। तम्बाकू की खेती के कारण होने वाले वार्षिक वनों की कटाई का अनुमान 2 लाख हेक्टेयर है। तम्बाकू उत्पादन का पारिस्थितिकी तंत्र पर काफी अधिक विनाशकारी प्रभाव पड़ता है क्योंकि तम्बाकू की खेती वाली भूमि अन्य अन्न उगाने और पशुओं के चरने जैसी अन्य कृषि गतिविधियों के लिए उपयुक्त नहीं रह जाती है। इसके अलावा, तम्बाकू उगाने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के भारी उपयोग की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरता कम हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप अन्य खाद्य फसलों के उत्पादन प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और पैदावार में कमी आती है।

World No Tobacco Day 2024 || 31 वर्ल्ड नो टोबैको डे || World No Tobacco Day

विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2024 की थीम 

साल 2016-17 में ग्लोबल एडल्ट टोबैक्को सर्वे इंडिया द्वारा किए गए एक के अनुसार भारत में 267 मिलियन युवा ऐसे हैं, जो स्मोकिंग या फिर अन्य तरीकों से तंबाकू का सेवन कर रहे हैं। शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष 2024, विश्व तंबाकू निषेध दिवस की थीम रखी गई है - " बच्चों को तंबाकू उद्योग के हस्तक्षेप से बचाना (Protecting children from tobacco industry interference)।" वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल तंबाकू के कारण 1.35 मिलियन लोगों की मौच हो रही है। हालांकि, तंबाकू के प्रति लगातार जागरुकता फैलाने के बाद भी लोग इसका सेवन करने से बाज नहीं आते हैं। 

एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते आपका भी यह फर्ज है कि इस गलत नशे के प्रति खुद जागरूक होइए और औरों को भी जागरूक कीजिये।

English Translate

World No Tobacco Day

Everyone, whether they consume tobacco or not, knows that tobacco is harmful to health. It can even be fatal. Tobacco consumption has a negative impact on both the mental and physical health of a person, yet a large number of people around the world are consuming tobacco in some form or the other. You might be surprised to know that every year 800 million kilograms of toxic waste is produced and thousands of chemicals are released into the air, water and soil. Today is "World No Tobacco Day", let's know why this day is celebrated and what is its importance?

World No Tobacco Day 2024 || 31 वर्ल्ड नो टोबैको डे || World No Tobacco Day

Every year on May 31, the World Health Organization and its partners celebrate World No Tobacco Day across the world, highlighting the health risks associated with tobacco use and advocating effective policies to reduce tobacco consumption.

History of World No Tobacco Day (WNTD)

In 1987, the state members of the World Health Organization established "World No Tobacco Day" to raise awareness about the devastating effects (death and disease) of tobacco use on public health worldwide. The World Health Assembly declared April 7, 1988, as "World No Smoking Day" in resolution WHA40.38 in 1987. In 1988, resolution WHA42.19 was enacted, designating May 31 as World No Tobacco Day.

World No Tobacco Day 2024 || 31 वर्ल्ड नो टोबैको डे || World No Tobacco Day

History of World No Tobacco Day

World No Tobacco Day was established by the World Health Organization (WHO) in the year 1988. The WHO Health Assembly appealed to pass resolution WHA40.38 in the year 1987. At the same time, this day started being celebrated after seeing the increasing cases around the world due to tobacco products. The purpose behind celebrating this day was to keep people who consume tobacco away from tobacco products for 24 hours. Since the resolution WHA40.38 was passed, this day is celebrated every year on 31 May.

Importance of World No Tobacco Day

The importance and purpose of this day is to save people, especially the youth, from the harm caused by tobacco and educate them about it. By celebrating this day, people have to be made aware about the harm caused by tobacco. People are motivated to quit tobacco and are told about good habits. One of the objectives of celebrating this day is also to curb tobacco cultivation and encourage farmers to cultivate other food crops.

Worldwide, about 35 lakh hectares of land is used for tobacco cultivation every year. The annual deforestation caused by tobacco cultivation is estimated at 2 lakh hectares. Tobacco production has a very destructive effect on the ecosystem because the land cultivated for tobacco is no longer suitable for other agricultural activities such as growing other grains and grazing animals. In addition, growing tobacco requires heavy use of chemical fertilizers and pesticides, which can result in reduced soil fertility, which in turn adversely affects the production of other food crops and reduces yields.

World No Tobacco Day 2024 || 31 वर्ल्ड नो टोबैको डे || World No Tobacco Day

Theme of World No Tobacco Day 2024

According to a survey conducted by Global Adult Tobacco Survey India in the year 2016-17, there are 267 million youth in India who are consuming tobacco by smoking or other means. Perhaps keeping this in mind, this year 2024, the theme of World No Tobacco Day has been kept - "Protecting children from the interference of the tobacco industry." At the same time, according to a report of the World Health Organization, 1.35 million people are dying every year in India due to tobacco. However, despite constantly spreading awareness about tobacco, people do not stop consuming it.

As a responsible citizen, it is your duty to be aware of this wrong addiction and also make others aware.

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 .. स्वामिनी

 मानसरोवर-1 .. स्वामिनी

स्वामिनी - मुंशी प्रेमचंद | Swamini by Munshi Premchand

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शिवदास ने भंडारे की कुंजी अपनी बहू रामप्यारी के सामने फेंककर अपनी बूढ़ी आँखों में आँसू भरकर कहा- बहू, आज से गिरस्ती की देखभाल तुम्हारे ऊपर है। मेरा सुख भगवान से नहीं देखा गया, नहीं तो क्या जवान बेटे को यों छीन लेते! उसका काम करने वाला तो कोई चाहिए। एक हल तोड़ दूँ, तो गुजारा न होगा। मेरे ही कुकरम से भगवान का यह कोप आया है और मैं ही अपने माथे पर उसे लूँगा। बिरजू का हल अब मैं ही संभालूँगा। अब घर की देख-रेख करने वाला, धरने-उठाने वाला तुम्हारे सिवा दूसरा कौन है? रोओ मत बेटा, भगवान की जो इच्छा थी, वह हुआ; और जो इच्छा होगी वह होगा। हमारा-तुम्हारा क्या बस है? मेरे जीते-जी तुम्हें कोई टेढ़ी आँख से देख भी न सकेगा। तुम किसी बात का सोच मत किया करो। बिरजू गया, तो अभी बैठा ही हुआ हूँ।

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 .. स्वामिनी

रामप्यारी और रामदुलारी दो सगी बहनें थीं। दोनों का विवाह मथुरा और बिरजू दो सगे भाइयों से हुआ। दोनों बहनें नैहर की तरह ससुराल में भी प्रेम और आनंद से रहने लगीं। शिवदास को पेंशन मिली। दिन-भर द्वार पर गप-शप करते। भरा-पूरा परिवार देखकर प्रसन्न होते और अधिकतर धर्म-चर्चा में लगे रहते थे; लेकिन दैवगति से बड़ा लड़का बिरजू बिमार पड़ा और आज उसे मरे हुए पंद्रह दिन बीत गये। आज क्रिया-कर्म से फुरसत मिली और शिवदास ने सच्चे कर्मवीर की भाँति फिर जीवन संग्राम के लिए कमर कस ली। मन में उसे चाहे कितना ही दु:ख हुआ हो, उसे किसी ने रोते नहीं देखा। आज अपनी बहू को देखकर एक क्षण के लिए उसकी आँखें सजल हो गयीं; लेकिन उसने मन को संभाला और रूद्ध कंठ से उसे दिलासा देने लगा। कदाचित् उसने, सोचा था, घर की स्वामिनी बनकर विधवा के आँसू पुंछ जायेंगे, कम-से-कम उसे इतना कठिन परिश्रम न करना पड़ेगा, इसलिए उसने भंडारे की कुंजी बहू के सामने फेंक दी थी। वैधव्य की व्यथा को स्वामित्व के गर्व से दबा देना चाहता था।

रामप्यारी ने पुलकित कंठ से कहा- यह कैसे हो सकता है दादा, कि तुम मेहनत-मजदूरी करो और मैं मालकिन बनकर बैठूँ? काम धंधे में लगी रहूँगी, तो मन बदला रहेगा। बैठे-बैठे तो रोने के सिवा और कुछ न होगा।

शिवदास ने समझाया- बेटा, दैवगति में तो किसी का बस नहीं, रोने-धोने से हलकानी के सिवा और क्या हाथ आयेगा? घर में भी तो बीसों काम हैं। कोई साधु-संत आ जायँ, कोई पाहुना ही आ पहुँचे, तो उनके सेवा-सत्कार के लिए किसी को घर पर रहना ही पड़ेगा।

बहू ने बहुत-से हीले किये, पर शिवदास ने एक न सुनी।

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शिवदास के बाहर चले जाने पर रामप्यारी ने कुंजी उठायी, तो उसे मन में अपूर्व गौरव और उत्तरदायित्व का अनुभव हुआ। जरा देर के लिए पति-वियोग का दु:ख उसे भूल गया। उसकी छोटी बहन और देवर दोनों काम करने गये हुए थे। शिवदास बाहर था। घर बिलकुल खाली था। इस वक्त वह निश्चित होकर भंडारे को खोल सकती है। उसमें क्या-क्या सामान है, क्या-क्या विभूति है, यह देखने के लिए उसका मन लालायित हो उठा। इस घर में वह कभी न आयी थी। जब कभी किसी को कुछ देना या किसी से कुछ लेना होता था, तभी शिवदास आकर इस कोठरी को खोला करता था। फिर उसे बंदकर वह कुंजी अपनी कमर में रख लेता था।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

रामप्यारी कभी-कभी द्वार की दरारों से भीतर झाँकती थी, पर अंधेरे में कुछ न दिखाई देता। सारे घर के लिए वह कोठरी तिलिस्म या रहस्य था, जिसके विषय में भाँति-भाँति की कल्पनाएँ होती रहती थीं। आज रामप्यारी को वह रहस्य खोलकर देखने का अवसर मिल गया। उसने बाहर का द्वार बंद कर दिया, कि कोई उसे भंडार खोलते न देख ले, नहीं सोचेगा, बेजरूरत उसने क्यों खोला, तब आकर काँपते हुए हाथों से ताला खोला। उसकी छाती धड़क रही थी कि कोई द्वार न खटखटाने लगे। अंदर पाँव रखा तो उसे कुछ उसी प्रकार का, लेकिन उससे कहीं तीव्र आनंद हुआ, जो उसे अपने गहने-कपड़े की पिटारी खोलने में होता था। मटकों में गुड़, शक्कर, गेहूँ, जौ आदि चीजें रखी हुई थीं। एक किनारे बड़े-बड़े बरतन धरे थे, जो शादी-ब्याह के अवसर पर निकाले जाते थे, या माँगे दिये जाते थे। एक आले पर मालगुजारी की रसीदें और लेन-देन के पुरजे बंधे हुए रखे थे। कोठरी में एक विभूति-सी छायी थी, मानो लक्ष्मी अज्ञात रूप से विराज रही हों। उस विभूति की छाया में रामप्यारी आधे घंटे तक बैठी अपनी आत्मा को तृप्त करती रही। प्रतिक्षण उसके हृदय पर ममत्व का नशा-सा छाया जा रहा था। जब वह उस कोठरी से निकली, तो उसके मन के संस्कार बदल गये थे, मानो किसी ने उस पर मंत्र डाल दिया हो।

उसी समय द्वार पर किसी ने आवाज दी। उसने तुरंत भंडारे का द्वार बंद किया और जाकर सदर दरवाजा खोल दिया। देखा तो पड़ोसिन झुनिया खड़ी है और एक रूपया उधार माँग रही है।

रामप्यारी ने रूखाई से कहा- अभी तो एक पैसा घर में नहीं है जीजी, क्रिया-कर्म में सब खरच हो गया।

झुनिया चकरा गयी। चौधरी के घर में इस समय एक रूपया भी नहीं है, यह विश्वास करने की बात न थी, जिसके यहाँ सैकड़ों का लेन-देन है, वह सब कुछ क्रिया-कर्म में नहीं खर्च कर सकता। अगर शिवदास ने बहाना किया होता, तो उसे आश्चर्य न होता। प्यारी तो अपने सरल स्वभाव के लिए गाँव में मशहूर थी। अकसर शिवदास की आँखें बचाकर पड़ोसियों को इच्छित वस्तुएँ दे दिया करती थी। अभी कल ही उसने जानकी को सेर-भर दूध दिया। यहाँ तक कि अपने गहने तक माँगे दे देती थी। कृपण शिवदास के घर में ऐसी सखरज बहू का आना गाँव वाले अपने सौभाग्य की बात समझते थे।

झुनिया ने चकित होकर कहा- ऐसा न कहो जीजी, बड़े गाढ़े में पड़कर आयी हूँ, नहीं तुम जानती हो, मेरी आदत ऐसी नहीं है। बाकी का एक रूपया देना है। प्यादा द्वार पर खड़ा बकझक कर रहा है। रूपया दे दो, तो किसी तरह यह विपत्ति टले। मैं आज के आठवें दिन आकर दे जाऊँगी। गाँव में और कौन घर है, जहाँ माँगने जाऊँ?

प्यारी टस से मस न हुई।

उसके जाते ही प्यारी साँझ के लिए रसोई-पानी का इंतजाम करने लगी। पहले चावल-दाल बिनना अपाढ़ लगता था और रसोई में जाना तो सूली पर चढ़ने से कम न था। कुछ देर बहनों में झाँव- झाँव होती, तब शिवदास आकर कहते, क्या आज रसोई न बनेगी, तो दो में से एक उठती और मोटे- मोटे टिक्कड़ लगाकर रख देती, मानो बैलों का रातिब हो। आज प्यारी तन-मन से रसोई के प्रबंध में लगी हुई है। अब वह घर की स्वामिनी है।

तब उसने बाहर निकलकर देखा, कितना कूड़ा-करकट पड़ा हुआ है! बुढ़ऊ दिन-भर मक्खी मारा करते हैं। इतना भी नहीं होता कि जरा झाड़ू ही लगा दें। अब क्या इनसे इतना भी न होगा? द्वार चिकना होना चाहिए कि देखकर आदमी का मन प्रसन्न हो जाय। यह नहीं कि उबकाई आने लगे। अभी कह दूँ, तो तिनक उठें। अच्छा, मुन्नी नाँद से अलग क्यों खड़ी है?

उसने मुन्नी के पास जाकर नाँद में झाँका। दुर्गन्ध आ रही थी। ठीक! मालूम होता है, महीनों से पानी ही नहीं बदला गया। इस तरह तो गाय रह चुकी। अपना पेट भर लिया, छुट्टी हुई और किसी से क्या मतलब? हाँ, दूध सबको अच्छा लगता है। दादा द्वार पर बैठे चिलम पी रहे हैं, मगर इतना नहीं होता कि चार घड़ा पानी नाँद में डाल दें। मजूर रखा है वह भी तीन कौड़ी का। खाने को डेढ़ सेर; काम करते नानी मरती है। आज आता है तो पूछती हूँ, नाँद में पानी क्यों नहीं बदला। रहना हो, रहे या जाय। आदमी बहुत मिलेंगे। चारों ओर तो लोग मारे-मारे फिर रहे हैं।

आखिर उससे न रहा गया। घड़ा उठाकर पानी लाने चली।

शिवदास ने पुकारा- पानी क्या होगा बहू? इसमें पानी भरा हुआ है।

प्यारी ने कहा- नाँद का पानी सड़ गया है। मुन्नी भूसे में मुँह नहीं डालती। देखते नहीं हो, कोस-भर पर खड़ी है।

शिवदास मार्मिक भाव से मुसकराये और आकर बहू के हाथ से घड़ा ले लिया।

3

कई महीने बीत गये। प्यारी के अधिकार में आते ही उस घर में जैसे वसंत आ गया। भीतर-बाहर जहाँ देखिए, किसी निपुण प्रबंधक के हस्तकौशल, सुविचार और सुरूचि के चिह्न दिखते थे। प्यारी ने गृहयंत्र की ऐसी चाभी कस दी थी कि सभी पुरजे ठीक-ठाक चलने लगे थे। भोजन पहले से अच्छा मिलता है और समय पर मिलता है। दूध ज्यादा होता है, घी ज्यादा होता है, और काम ज्यादा होता है। प्यारी न खुद विश्राम लेती है, न दूसरों को विश्राम लेने देती है। घर में ऐसी बरकत आ गयी है कि जो चीज माँगो, घर ही में निकल आती है। आदमी से लेकर जानवर तक सभी स्वस्थ दिखाई देते हैं। अब वह पहले की-सी दशा नहीं है कि कोई चिथड़े लपेटे घूम रहा है, किसी को गहने की धुन सवार है। हाँ अगर कोई रूग्ण और चिंतित तथा मलिन वेष में है, तो वह प्यारी है; फिर भी सारा घर उससे जलता है। यहाँ तक कि बूढ़े शिवदास भी कभी-कभी उसकी बदगोई करते हैं। किसी को पहर रात रहे उठना अच्छा नहीं लगता। मेहनत से सभी जी चुराते हैं। फिर भी यह सब मानते हैं कि प्यारी न हो, तो घर का काम न चले और तो और, दोनों बहनों में भी अब उतना अपनापन नहीं।

प्रात:काल का समय था। दुलारी ने हाथों के कड़े लाकर प्यारी के सामने पटक दिये और घुन्नाई हुई बोली- लेकर इसे भी भंडारे में बंद कर दे।

प्यारी ने कड़े उठा लिये और कोमल स्वर से कहा- कह तो दिया, हाथ में रूपये आने दे, बनवा दूँगी। अभी ऐसा घिस नहीं गया है कि आज ही उतारकर फेंक दिया जाय।

दुलारी लड़ने को तैयार होकर आयी थी। बोली- तेरे हाथ में काहे को कभी रूपये आयेंगे और काहे को कड़े बनेंगे। जोड़- जोड़ रखने में मजा आता है न?

प्यारी ने हॅंसकर कहा- जोड़-जोड़ रखती हूँ तो तेरे ही लिए कि मेरे कोई और बैठा हुआ है, कि मैं सबसे ज्यादा खा-पहन लेती हूँ। मेरा अनंत कब का टूटा पड़ा है।

दुलारी- तुम न खाओ - न पहनो, जस तो पाती हो। यहाँ खाने-पहनने के सिवा और क्या है? मैं तुम्हारा हिसाब-किताब नहीं जानती, मेरे कड़े आज बनने को भेज दो।

प्यारी ने सरल विनोद के भाव से पूछा- रूपये न हों, तो कहाँ से लाऊँ?

दुलारी ने उद्दंडता के साथ कहा- मुझे इससे कोई मतलब नहीं। मैं तो कड़े चाहती हूँ।

इसी तरह घर के सब आदमी अपने-अपने अवसर पर प्यारी को दो-चार खोटी-खरी सुना जाते थे, और वह गरीब सबकी धौंस हँसकर सहती थी। स्वामिनी का यह धर्म है कि सबकी धौंस सुन ले और करे वही, जिसमें घर का कल्याण हो! स्वामित्व के कवच पर धौंस, ताने, धमकी किसी का असर न होता। उसकी स्वामिनी की कल्पना इन आघातों से और भी स्वस्थ होती थी। वह गृहस्थी की संचालिका है। सभी अपने-अपने दु:ख उसी के सामने रोते हैं, पर जो कुछ वह करती है, वही होता है। इतना उसे प्रसन्न करने के लिए काफी था। गाँव में प्यारी की सराहना होती थी। अभी उम्र ही क्या है, लेकिन सारे घर को सँभाले हुए है। चाहती तो सगाई करके चैन से रहती। इस घर के पीछे अपने को मिटाये देती है। कभी किसी से हँसती-बोलती भी नहीं, जैसे काया पलट हो गयी।

कई दिन बाद दुलारी के कड़े बनकर आ गये। प्यारी खुद सुनार के घर दौड़-दौड़ गयी।

संध्या हो गयी थी। दुलारी और मथुरा हाट से लौटे। प्यारी ने नये कड़े दुलारी को दिये। दुलारी निहाल हो गयी। चटपट कड़े पहने और दौड़ी हुई बरौठे में जाकर मथुरा को दिखाने लगी। प्यारी बरौठे के द्वार पर छिपी खड़ी यह दृश्य देखने लगी। उसकी आँखें सजल हो गयीं। दुलारी उससे कुल तीन ही साल तो छोटी है! पर दोनों में कितना अंतर है। उसकी आँखें मानों उस दृश्य पर जम गयीं, दम्पति का वह सरल आनंद, उनका प्रेमालिंगन, उनकी मुग्ध मुद्रा- प्यारी की टकटकी-सी बँध गयी, यहाँ तक कि दीपक के धुँधले प्रकाश में वे दोनों उसकी नजरों से गायब हो गये और अपने ही अतीत जीवन की एक लीला आँखों के सामने बार-बार नये-नये रूप में आने लगी।

सहसा शिवदास ने पुकारा- बड़ी बहू! एक पैसा दो। तमाखू मॅंगवाऊँ।

प्यारी की समाधि टूट गयी। आँसू पोंछती हुई भंडारे में पैसा लेने चली गयी।

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एक-एक करके प्यारी के गहने उसके हाथ से निकलते जाते थे। वह चाहती थी, मेरा घर गाँव में सबसे संपन्न समझा जाय और इस महत्वाकांक्षा का मूल्य देना पड़ता था। कभी घर की मरम्मत के लिए और कभी बैलों की नयी गोई खरीदने के लिए, कभी नातेदारों के व्यवहारों के लिए, कभी बीमारों की दवा- दारू के लिए रूपये की जरूरत पड़ती रहती थी और जब बहुत कतरब्योंत करने पर भी काम न चलता तो वह अपनी कोई-न-कोई चीज निकाल देती। और चीज एक बार हाथ से निकलकर फिर न लौटती थी। वह चाहती, तो इनमें से कितने ही खर्चों को टाल जाती; पर जहाँ इज्जत की बात आ पड़ती थी, वह दिल खोलकर खर्च करती। अगर गाँव में हेठी हो गयी, तो क्या बात रही! लोग उसी का नाम तो धरेंगे। दुलारी के पास भी गहने थे। दो-एक चीजें मथुरा के पास भी थीं, लेकिन प्यारी उनकी चीजें न छूती। उनके खाने-पहनने के दिन हैं। वे इस जंजाल में क्यों फॅंसें!

दुलारी को लड़का हुआ, तो प्यारी ने धूम से जन्मोत्सव मनाने का प्रस्ताव किया।

शिवदास ने विरोध किया- क्या फायदा? जब भगवान की दया से सगाई-ब्याह के दिन आयेंगे, तो धूम-धाम कर लेना।

प्यारी का हौसलों से भरा दिल भला क्यों मानता! बोली- कैसी बात कहते हो दादा? पहलौठे लड़के के लिए भी धूम-धाम न हुई तो कब होगी? मन तो नहीं मानता। फिर दुनिया क्या कहेगी? नाम बड़े, दर्शन थोड़े। मैं तुमसे कुछ नहीं माँगती। अपना सारा सरंजाम कर लूँगी।

गहनों के माथे जायगी, और क्या?- शिवदास ने चिंतित होकर कहा- इस तरह एक दिन धागा भी न बचेगा। कितना समझाया, बेटा, भाई-भौजाई किसी के नहीं होते। अपने पास दो चीजें रहेंगी, तो सब मुँह जोहेंगे; नहीं कोई सीधे बात भी न करेगा।

प्यारी ने ऐसा मुँह बनाया, मानो वह ऐसी बूढ़ी बातें बहुत सुन चुकी है, और बोली- जो अपने हैं, वे भी न पूछें, तो भी अपने ही रहते हैं। मेरा धरम मेरे साथ है, उनका धरम उनके साथ है। मर जाऊँगी तो क्या छाती पर लाद ले जाऊँगी?

धूम-धाम से जन्मोत्सव मनाया गया। बरही के दिन सारी बिरादरी का भोज हुआ। लोग खा-पीकर चले गये, प्यारी दिन-भर की थकी-माँदी आँगन में एक टाट का टुकड़ा बिछाकर कमर सीधी करने लगी। आँखें झपक गयीं। मथुरा उसी वक्त घर में आया। नवजात पुत्र को देखने के लिए उसका चित्त व्याकुल हो रहा था। दुलारी सौर-गृह से निकल चुकी थी। गर्भावस्था में उसकी देह क्षीण हो गयी थी, मुँह भी उतर गया था, पर आज स्वस्थता की लालिमा मुख पर छायी हुई थी। सौर के संयम और पौष्टिक भोजन ने देह को चिकना कर दिया था। मथुरा उसे आँगन में देखते ही समीप आ गया और एक बार प्यारी की ओर ताककर उसके निद्रामग्न होने का निश्चय करके उसने शिशु को गोद में ले लिया और उसका मुँह चूमने लगा।

आहट पाकर प्यारी की आँखें खुल गयीं; पर उसने नींद का बहाना किया और अधखुली आँखों से यह आनंद-क्रीड़ा देखने लगी। माता और पिता दोनों बारी-बारी से बालक को चूमते, गले लगाते और उसके मुख को निहारते थे। कितना स्वर्गीय आनंद था! प्यारी की तृषित लालसा एक क्षण के लिए स्वामिनी को भूल गयी। जैसे लगाम से मुखबद्ध, बोझ से लदा हुआ, हाँकने वाले के चाबुक से पीड़ित, दौड़ते-दौड़ते बेदम तुरंग हिनहिनाने की आवाज सुनकर कनौतियाँ खड़ी कर लेता है और परिस्थिति को भूलकर एक दबी हुई हिनहिनाहट से उसका जवाब देता है, कुछ वही दशा प्यारी की हुई। उसका मातृत्व जो पिंजरे में बंद, मूक, निश्चेष्ट पड़ा हुआ था, समीप से आनेवाली मातृत्व की चहकार सुनकर जैसे जाग पड़ा और चिन्ताओं के उस पिंजरे से निकलने के लिए पंख फड़फड़ाने लगा।

मथुरा ने कहा- यह मेरा लड़का है।

दुलारी ने बालक को गोद में चिपटाकर कहा- हाँ, क्यों नहीं। तुम्हीं ने तो नौ महीने पेट में रखा है। साँसत तो मेरी हुई, बाप कहलाने के लिए तुम कूद पड़े।

मथुरा- मेरा लड़का न होता, तो मेरी सूरत का क्यों होता। चेहरा-मोहरा, रंग-रूप सब मेरा ही-सा है कि नहीं?

दुलारी- इससे क्या होता है। बीज बनिये के घर से आता है। खेत किसान का होता है। उपज बनिये की नहीं होती, किसान की होती है।

मथुरा- बातों में तुमसे कोई न जीतेगा। मेरा लड़का बड़ा हो जायगा, तो मैं द्वार पर बैठकर मजे से हुक्का पिया करूँगा।

दुलारी- मेरा लड़का पढ़े-लिखेगा, कोई बड़ा हुद्दा पाएगा। तुम्हारी तरह दिन-भर बैल के पीछे न चलेगा। मालकिन से कहना है, कल एक पालना बनवा दें।

मथुरा- अब बहुत सबेरे न उठा करना और छाती फाड़कर काम भी न करना।

दुलारी- यह महारानी जीने देंगी?

मथुरा- मुझे तो बेचारी पर दया आती है। उसके कौन बैठा हुआ है? हमीं लोगों के लिए मरती है। भैया होते, तो अब तक दो-तीन बच्चों की माँ हो गयी होती।

प्यारी के कंठ में आँसुओं का ऐसा वेग उठा कि उसे रोकने में सारी देह काँप उठी। अपना वंचित जीवन उसे मरूस्थल-सा लगा, जिसकी सूखी रेत पर वह हरा-भरा बाग लगाने की निष्फल चेष्टा कर रही थी।

5

कुछ दिनों के बाद शिवदास भी मर गया। उधर दुलारी के दो बच्चे और हुए। वह भी अधिकतर बच्चों के लालन-पालन में व्यस्त रहने लगी। खेती का काम मजदूरों पर आ पड़ा। मथुरा मजदूर तो अच्छा था, संचालक अच्छा न था। उसे स्वतंत्र रूप से काम लेने का कभी अवसर न मिला। खुद पहले भाई की निगरानी में काम करता रहा। बाद को बाप की निगरानी में काम करने लगा। खेती का तार भी न जानता था। वही मजूर उसके यहाँ टिकते थे, जो मेहनत नहीं, खुशामद करने में कुशल होते थे, इसलिए प्यारी को अब दिन में दो-चार चक्कर हार के भी लगाना पड़ता। कहने को वह अब भी मालकिन थी, पर वास्तव में घर-भर की सेविका थी। मजूर भी उससे त्योरियाँ बदलते, जमींदार का प्यादा भी उसी पर धौंस जमाता। भोजन में भी किफायत करनी पड़ती; लड़कों को तो जितनी बार माँगे, उतनी बार कुछ-न-कुछ चाहिए। दुलारी तो लड़कौरी थी, उसे भरपूर भोजन चाहिए। मथुरा घर का सरदार था, उसके इस अधिकार को कौन छीन सकता था? मजूर भला क्यों रियायत करने लगे थे। सारी कसर प्यारी पर निकलती थी। वही एक फालतू चीज थी; अगर आधा पेट खाय, तो किसी को हानि न हो सकती थी। तीस वर्ष की अवस्था में उसके बाल पक गये, कमर झुक गयी, आँखों की जोत कम हो गयी; मगर वह प्रसन्न थी। स्वामित्व का गौरव इन सारे जख्मों पर मरहम का काम करता था।

एक दिन मथुरा ने कहा- भाभी, अब तो कहीं परदेश जाने का जी होता है। यहाँ तो कमाई में बरकत नहीं। किसी तरह पेट की रोटी चल जाती है। वह भी रो-धोकर। कई आदमी पूरब से आये हैं। वे कहते हैं, वहाँ दो-तीन रूपये रोज की मजदूरी हो जाती है। चार-पाँच साल भी रह गया, तो मालामाल हो जाऊँगा। अब आगे लड़के-बाले हुए, इनके लिए कुछ तो करना ही चाहिए।

दुलारी ने समर्थन किया- हाथ में चार पैसे होंगे, लड़कों को पढ़ायेंगे-लिखायेंगे। हमारी तो किसी तरह कट गयी, लड़कों को तो आदमी बनाना है।

प्यारी यह प्रस्ताव सुनकर अवाक् रह गयी। उनका मुँह ताकने लगी। इसके पहले इस तरह की बातचीत कभी न हुई थी। यह धुन कैसे सवार हो गयी? उसे संदेह हुआ, शायद मेरे कारण यह भावना उत्पन्न हुई। बोली- मैं तो जाने को न कहूँगी, आगे जैसी इच्छा हो। लड़कों को पढ़ाने-लिखाने के लिए यहाँ भी तो मदरसा है। फिर क्या नित्य यही दिन बने रहेंगे। दो-तीन साल भी खेती बन गयी, तो सब कुछ हो जायगा।

मथुरा- इतने दिन खेती करते हो गये, जब अब तक न बनी, तो अब क्या बन जायगी। इस तरह एक दिन चल देंगे, मन-की-मन में रह जायगी। फिर अब पौरूख भी तो थक रहा है। यह खेती कौन संभालेगा। लड़कों को मैं चक्की में जोतकर उनकी जिंदगी नहीं खराब करना चाहता।

प्यारी ने आँखों में आँसू लाकर कहा- भैया, घर पर जब तक आधी मिले, सारी के लिए न धावना चाहिए, अगर मेरी ओर से कोई बात हो, तो अपना घर-बार अपने हाथ में करो, मुझे एक टुकड़ा दे देना, पड़ी रहूँगी।

मथुरा आर्द्र कंठ होकर बोला- भाभी, यह तुम क्या कहती हो। तुम्हारे ही सॅंभाले यह घर अब तक चला है, नहीं रसातल में चला गया होता। इस गिरस्ती के पीछे तुमने अपने को मिट्‍टी में मिला दिया, अपनी देह घुला डाली। मैं अंधा नहीं हूँ। सब कुछ समझता हूँ। हम लोगों को जाने दो। भगवान ने चाहा, तो घर फिर संभल जायगा। तुम्हारे लिए हम बराबर खरच-बरच भेजते रहेंगे।

प्यारी ने कहा- जो ऐसा ही है तो तुम चले जाओ, बाल-बच्चों को कहाँ-कहाँ बाँधे फिरोगे।

दुलारी बोली- यह कैसे हो सकता है बहन, यहाँ देहात में लड़के क्या पढ़े-लिखेंगे। बच्चों के बिना इनका जी भी वहाँ न लगेगा। दौड़-दौड़कर घर आयेंगे और सारी कमाई रेल खा जायगी। परदेश में अकेले जितना खरचा होगा, उतने में सारा घर आराम से रहेगा।

प्यारी बोली- तो मैं ही यहाँ रहकर क्या करूँगी? मुझे भी लेते चलो।

दुलारी उसे साथ ले चलने को तैयार न थी। कुछ दिन जीवन का आनंद उठाना चाहती थी, अगर परदेश में भी यह बंधन रहा, तो जाने से फायदा ही क्या। बोली- बहन, तुम चलतीं तो क्या बात थी, लेकिन फिर यहाँ का कारोबार तो चौपट हो जायगा। तुम तो कुछ-न-कुछ देखभाल करती ही रहोगी।

प्रस्थान की तिथि के एक दिन पहले ही रामप्यारी ने रात-भर जागकर हलुआ और पूरियाँ पकायीं। जब से इस घर में आयी, कभी एक दिन के लिए अकेले रहने का अवसर नहीं आया। दोनों बहनें सदा साथ रहीं। आज उस भयंकर अवसर को सामने आते देखकर प्यारी का दिल बैठा जाता था। वह देखती थी, मथुरा प्रसन्न है, बाल-वृंद यात्रा के आनंद में खाना-पीना तक भूले हुए हैं, तो उसके जी में आता, वह भी इसी भाँति निर्द्वंद्व रहे, मोह और ममता को पैरों से कुचल डाले, किन्तु वह ममता जिस खाद्यल को खा-खाकर पली थी, उसे अपने सामने से हटाये जाते देखकर क्षुब्ध होने से न रूकती थी। दुलारी तो इस तरह निश्चिंत होकर बैठी थी, मानो कोई मेला देखने जा रही है। नयी- नयी चीजों को देखने, नयी दुनिया में विचरने की उत्सुकता ने उसे क्रियाशून्य-सा कर दिया था। प्यारी के सिरे सारे प्रबंध का भार था। धोबी के घर से सब कपड़े आये हैं, या नहीं, कौन-कौन-से बरतन साथ जायेंगे, सफर-खर्च के लिए कितने रूपये की जरूरत होगी। एक बच्चे को खाँसी आ रही थी। दूसरे को कई दिन से दस्त आ रहे थे, उन दोनों की औषधियों को पीसना-कूटना आदि सैकड़ों ही काम व्यस्त किए हुए थे। लड़कोरी न होकर भी वह बच्चों के लालन-पोषण में दुलारी से कुशल थी। देखो, बच्चों को बहुत मारना-पीटना मत। मारने से बच्चे जिद्दी या बेहया हो जाते हैं। बच्चों के साथ आदमी को बच्चा बन जाना पड़ता है। जो तुम चाहो कि हम आराम से पड़े रहें और बच्चे चुपचाप बैठे रहें, हाथ-पैर न हिलायें, तो यह हो नहीं सकता। बच्चे तो स्वभाव के चंचल होते हैं। उन्हें किसी-न-किसी काम में फॅंसाये रखो। धेले का खिलौना हजार घुड़कियों से बढ़कर होता है। दुलारी इन उपदेशों को इस तरह बेमन होकर सुनती थी, मानों कोई सनककर बक रहा हो।

विदाई का दिन प्यारी के लिए परीक्षा का दिन था। उसके जी में आता था कहीं चली जाय, जिसमें वह दृश्य देखना न पड़े। हा! घड़ी-भर में यह घर सूना हो जायगा। वह दिन-भर घर में अकेली पड़ी रहेगी। किससे हॅंसेगी-बोलेगी। यह सोचकर उसका हृदय काँप जाता था। ज्यों-ज्यों समय निकट आता था, उसकी वृत्तियाँ शिथिल होती जातीं थीं। वह कोई काम करते-करते जैसे खो जाती थी और अपलक नेत्रों से किसी वस्तु को ताकने लगती। कभी अवसर पाकर एकांत में जाकर थोड़ा-सा रो आती थी। मन को समझा रही थी, यह लोग अपने होते तो क्या इस तरह चले जाते। यह तो मानने का नाता है; किसी पर कोई जबरदस्ती है? दूसरों के लिए कितना ही मरो, तो भी अपने नहीं होते। पानी तेल में कितना ही मिले, फिर भी अलग ही रहेगा। बच्चे नये-नये कुरते पहने, नवाब बने घूम रहे थे। प्यारी उन्हें प्यार करने के लिए गोद लेना चाहती, तो रोने का-सा मुँह बनाकर छुड़ाकर भाग जाते। वह क्या जानती थी कि ऐसे अवसर पर बहुधा अपने बच्चे भी निष्ठुर हो जाते हैं।

दस बजते-बजते द्वार पर बैलगाड़ी आ गयी। लड़के पहले ही से उस पर जा बैठे। गाँव के कितने स्त्री-पुरूष मिलने आये। प्यारी को इस समय उनका आना बुरा लग रहा था। वह दुलारी से थोड़ी देर एकांत गले मिलकर रोना चाहती थी, मथुरा से हाथ जोड़कर कहना चाहती थी, मेरी खोज-खबर लेते रहना, तुम्हारे सिवा मेरा संसार में कौन है, लेकिन इस भम्भड़ में उसको इन बातों का मौका न मिला। मथुरा और दुलारी दोनों गाड़ी में जा बैठे और प्यारी द्वार पर रोती खड़ी रह गयी। वह इतनी विहृवल थी कि गाँव के बाहर तक पहुँचाने की भी उसे सुधि न रही।

6

कई दिन तक प्यारी मूर्छित-सी पड़ी रही। न घर से निकली, न चूल्हा जलाया, न हाथ-मुँह धोया। उसका हलवाहा जोखू बार-बार आकर कहता - 'मालकिन, उठो, मुँह-हाथ धोओ, कुछ खाओ-पियो। कब तक इस तरह पड़ी रहोगी। इस तरह की तसल्ली गाँव की और स्त्रियाँ भी देती थीं। पर उनकी तसल्ली में एक प्रकार की ईर्ष्या का भाव छिपा हुआ जान पड़ता था।

जोखू के स्वर में सच्ची सहानुभूति झलकती थी। जोखू कामचोर, बातूनी और नशेबाज था। प्यारी उसे बराबर डाँटती रहती थी। दो-एक बार उसे निकाल भी चुकी थी। पर मथुरा के आग्रह से फिर रख लिया था। आज भी जोखू की सहानुभूति-भरी बातें सुनकर प्यारी झुंझलाती, यह काम करने क्यों नहीं जाता। यहाँ मेरे पीछे क्यों पड़ा हुआ है, मगर उसे झिड़क देने को जी न चाहता था। उसे उस समय सहानुभूति की भूख थी। फल काँटेदार वृक्ष से भी मिलें तो क्या उन्हें छोड़ दिया जाता है?

धीरे-धीरे क्षोभ का वेग कम हुआ। जीवन के व्यापार होने लगे। अब खेती का सारा भार प्यारी पर था। लोगों ने सलाह दी, एक हल तोड़ दो और खेतों को उठा दो, पर प्यारी का गर्व यों ढोल बजाकर अपनी पराजय स्वीकार न करना था। सारे काम पूर्ववत् चलने लगे। उधर मथुरा के चिट्ठी-पत्री न भेजने से उसके अभिमान को और भी उत्तेजना मिली। वह समझता है, मैं उसके आसरे बैठी हूँ, उसके चिट्ठी भेजने से मुझे कोई निधि न मिल जाती। उसे अगर मेरी चिंता नहीं है, तो मैं कब उसकी परवाह करती हूँ।

घर में तो अब विशेष काम रहा नहीं, प्यारी सारे दिन खेती-बारी के कामों में लगी रहती। खरबूजे बोये थे। वह खूब फले और खूब बिके। पहले सारा दूध घर में खर्च हो जाता था, अब बिकने लगा। प्यारी की मनोवृत्तियों में भी एक विचित्र परिवर्तन आ गया। वह अब साफ कपड़े पहनती, माँग-चोटी की ओर से भी उतनी उदासीन न थी। आभूषणों में भी रूचि हुई। रूपये हाथ में आते ही उसने अपने गिरवी गहने छुड़ाए और भोजन भी संयम से करने लगी। सागर पहले खेतों को सींचकर खुद खाली हो जाता था। अब निकास की नालियाँ बंद हो गयी थीं। सागर में पानी जमा होने लगा और उसमें हल्की-हल्की लहरें भी थीं, खिले हुए कमल भी थे।

एक दिन जोखू हार से लौटा, तो अंधेरा हो गया था। प्यारी ने पूछा- अब तक वहाँ क्या करता रहा?

जोखू ने कहा- चार क्यारियाँ बच रही थी। मैंने सोचा, दस मोट और खींच दूँ। कल का झंझट कौन रखे?

जोखू अब कुछ दिनों से काम में मन लगाने लगा था। जब तक मालिक उसके सिर पर सवार रहते थे, वह हीले-बहाने करता था। अब सब-कुछ उसके हाथ में था। प्यारी सारे दिन हार में थोड़ी ही रह सकती थी, इसलिए अब उसमें जिम्मेदारी आ गयी थी।

प्यारी ने लोटे का पानी रखते हुए कहा- अच्छा, हाथ मुँह धो डालो। आदमी जान रखकर काम करता है, हाय-हाय करने से कुछ नहीं होता। खेत आज न होते, कल होते, क्या जल्दी थी।

जोखू ने समझा, प्यारी बिगड़ रही है। उसने तो अपनी समझ में कारगुजारी की थी और समझा था, तारीफ होगी। यहाँ आलोचना हुई। चिढ़कर बोला- मालकिन, दाहने-बायें दोनो ओर चलती हो। जो बात नहीं समझती हो, उसमें क्यों कूदती हो? कल के लिए तो उंचवा के खेत पड़े सूख रहे हैं। आज बड़ी मुश्किल से कुआँ खाली हुआ था। सवेरे मैं पहुँचता, तो कोई और आकर न छेंक लेता? फिर अठवारे तक राह देखनी पड़ती। तक तक तो सारी उख बिदा हो जाती।

प्यारी उसकी सरलता पर हॅंसकर बोली- अरे, तो मैं तुझे कुछ कह थोड़ी रही हूँ, पागल। मैं तो कहती हूँ कि जान रखकर काम कर। कहीं बीमार पड़ गया, तो लेने के देने पड़ जायेंगे।

जोखू- कौन बीमार पड़ जायगा, मैं? बीस साल में कभी सिर तक तो दुखा नहीं, आगे की नहीं जानता। कहो रात-भर काम करता रहूँ।

प्यारी- मैं क्या जानूँ, तुम्हीं अंतरे दिन बैठे रहते थे और पूछा जाता था तो कहते थे- जुर आ गया था, पेट में दरद था।

जोखू झेंपता हुआ बोला- वह बातें जब थीं, जब मालिक लोग चाहते थे कि इसे पीस डालें। अब तो जानता हूँ, मेरे ही माथे हैं। मैं न करूँगा तो सब चौपट हो जायगा।

प्यारी- मै क्या देख-भाल नहीं करती?

जोखू- तुम बहुत करोगी, दो बेर चली जाओगी। सारे दिन तुम वहाँ बैठी नहीं रह सकतीं।

प्यारी को उसके निष्कपट व्यवहार ने मुग्ध कर दिया। बोली- तो इतनी रात गये चूल्हा जलाओगे। कोई सगाई क्यों नही कर लेते?

जोखू ने मुँह धोते हुए कहा- तुम भी खूब कहती हो मालकिन! अपने पेट-भर को तो होता नहीं, सगाई कर लूँ! सवा सेर खाता हूँ एक जून पूरा सवा सेर! दोनों जून के लिए दो सेर चाहिए।

प्यारी- अच्छा, आज मेरी रसोई में खाओ, देखूँ कितना खाते हो?

जोखू ने पुलकित होकर कहा- नहीं मालकिन, तुम बनाते-बनाते थक जाओगी। हाँ, आध-आध सेर के दो रोटा बनाकर खिला दो, तो खा लूँ। मैं तो यही करता हूँ। बस, आटा सानकर दो लिट बनाता हूँ और उपले पर सेंक लेता हूँ। कभी मठे से, कभी नमक से, कभी प्याज से खा लेता हूँ और आकर पड़ रहता हूँ।

प्यारी- मैं तुम्हे आज फुलके खिलाऊँगी।

जोखू- तब तो सारी रात खाते ही बीत जायगी।

प्यारी- बको मत, चटपट आकर बैठ जाओ।

जोखू-जरा बैलों को सानी-पानी देता जाऊँ तो बैठूँ।

7

जोखू और प्यारी में ठनी हुई थी।

प्यारी ने कहा- मैं कहती हूँ, धान रोपने की कोई जरूरत नहीं। झड़ी लग जाय, तो खेत डूब जाय। बर्खा बन्द हो जाय, तो खेत सूख जाय। जुआर, बाजरा, सन, अरहर सब तो हैं, धान न सही।

जोखू ने अपने विशाल कंधे पर फावड़ा रखते हुए कहा- जब सबका होगा, तो मेरा भी होगा। सबका डूब जायगा, तो मेरा भी डूब जायगा। मैं क्यों किसी से पीछे रहूँ? बाबा के जमाने में पाँच बीघा से कम नहीं रोपा जाता था, बिरजू भैया ने उसमें एक-दो बीघे और बढ़ा दिये। मथुरा ने भी थोड़ा-बहुत हर साल रोपा, तो मैं क्या सबसे गया-बीता हूँ? मैं पाँच बीघे से कम न लागाऊँगा।

'तब घर में दो जवान काम करने वाले थे।'

'मै अकेला उन दोनों के बराबर खाता हूँ। दोनों के बराबर काम क्यों न करूँगा?

'चल, झूठा कहीं का। कहते थे, दो सेर खाता हूँ, चार सेर खाता हूँ। आध सेर में रह गये।'

'एक दिन तौलो तब मालूम हो।'

'तौला है। बड़े खानेवाले! मै कहे देती हूँ धान न रोपो मजूर मिलेंगे नहीं, अकेले हलकान होना पड़ेगा।

'तुम्हारी बला से, मैं ही हलकान हूँगा न? यह देह किस दिन काम आयेगी।'

प्यारी ने उसके कंधे पर से फावड़ा ले लिया और बोली- तुम पहर रात से पहर रात तक ताल में रहोगे, अकेले मेरा जी ऊबेगा।

जोखू को ऊबने का अनुभव न था। कोई काम न हो, तो आदमी पड़ कर सो रहे। जी क्यों ऊबे? बोला- जी ऊबे तो सो रहना। मैं घर रहूँगा तब तो और जी ऊबेगा। मैं खाली बैठता हूँ तो बार- बार खाने की सूझती है। बातों में देर हो रही है और बादल घिरे आते हैं।

प्यारी ने कहा- अच्छा, कल से जाना, आज बैठो।

जोखू ने मानों बंधन में पड़कर कहा- अच्छा, बैठ गया, कहो क्या कहती हो?

प्यारी ने विनोद करते हुए पूछा- कहना क्या हे, मैं तुमसे पूछती हूँ, अपनी सगाई क्यों नहीं कर लेते? अकेले मरती हूँ। तब एक से दो हो जाऊँगी।

जोखू शरमाता हुआ बोला- तुमने फिर वही बेबात की बात छेड़ दी, मालकिन! किससे सगाई कर लूँ यहाँ? ऐसी मेहरिया लेकर क्या करूँगा, जो गहनों के लिए मेरी जान खाती रहे।

प्यारी- यह तो तुमने बड़ी कड़ी शर्त लगायी। ऐसी औरत कहाँ मिलेगी, जो गहने भी न चाहे?

जोखू- यह मैं थोड़े ही कहता हूँ कि वह गहने न चाहे; हाँ, मेरी जान न खाय। तुमने तो कभी गहनों के लिए हठ न किया, बल्कि अपने सारे गहने दूसरों के ऊपर लगा दिये।

प्यारी के कपोलों पर हल्का-सा रंग आ गया। बोली- अच्छा, और क्या चाहते हो?

जोखू- मैं कहने लगूँगा, तो बिगड़ जाओगी।

प्यारी की आँखों में लज्जा की एक रेखा नजर आयी, बोली- बिगड़ने की बात कहोगे, तो जरूर बिगडूँगी।

जोखू- तो मैं न कहूँगा।

प्यारी ने उसे पीछे की ओर ठेलते हुए कहा- कहोगे कैसे नहीं, मैं कहला के छोड़ूँगी।

जोखू- मैं चाहता हूँ कि वह तुम्हारी तरह हो, ऐसी गंभीर हो, ऐसी ही बातचीत में चतुर हो, ऐसा ही अच्छा पकाती हो, ऐसी ही किफायती हो, ऐसी ही हँसमुख हो। बस, ऐसी औरत मिलेगी, तो करूँगा, नहीं इसी तरह पड़ा रहूँगा।

प्यारी का मुख लज्जा से आरक्त हो गया। उसने पीछे हटकर कहा- तुम बड़े नटखट हो! हँसी- हँसी में सब कुछ कह गये।

जेलीफ़िश (Jellyfish ) के बारे में रोचक तथ्य

जेलीफ़िश

जेलीफ़िश पृथ्वी पर मौजूद सबसे प्राचीन जानवरों में से कुछ हैं। अधिकांश जीव जिन्हें जेलीफ़िश कहा जाता है, फ़ाइलम निडारिया का हिस्सा हैं , जिसमें 10,000 से अधिक प्रजातियां शामिल हैं। जेलिफ़िश दुनिया भर में ठंडे और गर्म पानी में, समुद्र की गहराई में या सतह के पास प्रचुर संख्या में पाए जाते हैं। 

जेलीफिश के बारे में कुछ रोचक तथ्य

सामान्य नाम : जेलीफ़िश 
वैज्ञानिक नाम :  निडारिया
जंगल में औसत जीवनकाल : 3 से 6 महीने
वर्तमान जनसंख्या : अज्ञात

पहली जेलिफ़िश लगभग 650 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी पर डायनासोर से बहुत पहले दिखाई दी थी। ये न केवल खारे पानी में पाई जाती हैं, बल्कि ताजे पानी में भी पाई जाती हैं। लेकिन सभी मीठे पानी की जेलीफ़िश पूरी तरह से हानिरहित होती हैं – वे डंक नहीं मार सकतीं। जेलीफ़िश सभी महासागरों और समुद्रों में पाई जाती हैं। इनकी कुछ प्रजातियाँ 10 किलोमीटर से अधिक की गहराई में रहती हैं, जिससे इनका अध्ययन करना बहुत कठिन हो जाता है। इसे कही भी रहने में कोई समस्या नहीं होती है। 

इन प्राणियों के शरीर में प्रजातियों के आधार पर लगभग 95-98 प्रतिशत पानी होता है। दुनिया में लगभग 10 हजार विभिन्न प्रकार की जेलीफ़िश हैं। जेलीफ़िश का जीवन चक्र एक पॉलीप से शुरू होता है, जो कुछ महीनों या वर्षों के बाद जेलीफ़िश में बदल जाता है। ठीक उसी तरह जैसे एक कैटरपिलर एक क्रिसलिस में बदल जाता है और फिर एक तितली में।

जेलिफ़िश में मस्तिष्क यानी दिमाग और शरीर नहीं होता है, फिर भी यह बेहद बुद्धिमान स्वभाव के जीव होते हैं।  जेलिफ़िश झींगा, केकड़े और छोटे पौधों पर पनपती है। जेलीफ़िश का वैश्विक समुद्री प्लवक पारिस्थितिकी तंत्र (plankton ecosystem) के बायोमास, स्पेटियोटेम्पोरल गतिशीलता और सामुदायिक संरचना पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. ये बहुत महत्वपूर्ण समुद्री जीव हैं इसीलिए जेलिफ़िश के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 3 नवंबर को विश्व जेलिफ़िश दिवस मनाया जाता है। 

जेलीफिश के बारे में कुछ रोचक तथ्य

कई जहरीली जेलिफ़िश की चुभने वाली कोशिकाएँ डंक मारने की क्षमता रखती हैं, भले ही जेलिफ़िश को धोया गया हो, सूख गया हो और कई महीनों तक वहाँ पड़ा रहा हो।

मेडुसा ट्यूरिटोप्सिस न्यूट्रीकुला – पृथ्वी पर एकमात्र सही मायने में अमर जीवित प्राणी। जब इसका जीवन चक्र समाप्त हो जाता है, तो यह नीचे तक डूब जाता है और फिर से पॉलीप में बदल जाता है, और फिर वापस जेलीफ़िश में बदल जाता है। अगर प्राकृतिक दुश्मनों के लिए नहीं, तो ये जेलीफ़िश सभी महासागरों को भर देगी।

दुनिया में सबसे बड़ी जेलिफ़िश – विशाल अंटार्कटिका। इसके गुंबद का व्यास तीन मीटर तक पहुंचता है, और जाल की लंबाई 35 मीटर है।

जेलीफिश के बारे में कुछ रोचक तथ्य

1. जेलिफ़िश डायनासोर से भी पुरानी हो सकती है

जेलीफ़िश में कोई हड्डियाँ नहीं होती हैं, इसलिए जीवाश्म मिलना मुश्किल है। फिर भी, वैज्ञानिकों के पास इस बात के सबूत हैं कि ये जीव कम से कम 500 मिलियन वर्षों से दुनिया के महासागरों में उछल-कूद कर रहे हैं। वास्तव में, यह संभावना है कि जेलिफ़िश वंश और भी पीछे चला जाता है, संभवतः 700 मिलियन वर्ष। 

सबसे पुराने ज्ञात जेलीफ़िश जीवाश्मों में से कुछ यूटा में पाए गए हैं, जो उस समय के हैं जब संपूर्ण अमेरिका पश्चिम प्रशांत महासागर के नीचे था।

2. वे जलवायु परिवर्तन को अच्छी तरह से अपना रहे हैं

अधिकांश समुद्री जीवों के विपरीत, जेलीफ़िश समुद्री गर्मी की लहरों, समुद्र के अम्लीकरण, अत्यधिक मछली पकड़ने और कई अन्य मानवीय प्रभावों के बावजूद महासागरों में पनप रही हैं। जबकि मूंगे, सीप और गोले बनाने वाले किसी भी समुद्री जीव को तेजी से अम्लीय महासागरों का सबसे बड़ा नुकसान माना जाता है, जेलिफ़िश उतनी संवेदनशील नहीं लगती है।

लेकिन जैसे-जैसे जलवायु संकट गहराता जा रहा है, विशेषज्ञों को उम्मीद है कि कुछ क्षेत्रों में जेलीफ़िश की आबादी बढ़ेगी और कुछ में कमी आएगी। अधिकतर, वे जेलिफ़िश और अन्य जीवों के बीच असंतुलन देखने की उम्मीद करते हैं। उदाहरण के लिए, क्योंकि जेलीफ़िश कम-ऑक्सीजन वाले वातावरण के प्रति अधिक लचीली होती हैं, वे जल्द ही प्लवक से अधिक हो सकती हैं, जिन्हें अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है और जेलीफ़िश के आहार का बड़ा हिस्सा बनाते हैं।

3. वे वास्तव में मछली नहीं हैं

जेलिफ़िश चमकती हुई नारंगी और गुलाबी रंग की, तंबू फैलाए हुए तैरने वाली जीव है, जेलिफ़िश पर एक नज़र डालें तो यह स्पष्ट लग सकता है, लेकिन वे वास्तव में मछली नहीं हैं। वे फाइलम निडारिया से अकशेरुकी हैं और एक वर्गीकरण समूह के रूप में हैं। कई वैज्ञानिकों ने उन्हें केवल "जिलेटिनस ज़ोप्लांकटन" के रूप में संदर्भित करना शुरू कर दिया है।

जेलिफ़िश में मछली की तरह शल्क, गलफड़े या पंख नहीं होते हैं। इसके बजाय, वे अपनी "घंटियाँ" खोलकर और बंद करके तैरते हैं।

4. जेलीफ़िश में 98% पानी होता है

मानव शरीर 60% पानी से बना है और जेलीफ़िश का 98%। जब वे तट पर बहते हैं, तो कुछ ही घंटों के बाद वे गायब हो सकते हैं, उनके शरीर तुरंत हवा में वाष्पित हो जाते हैं। उनके पास एक अल्पविकसित तंत्रिका तंत्र है, एपिडर्मिस में स्थित नसों का एक ढीला नेटवर्क है जिसे "तंत्रिका जाल" कहा जाता है और कोई मस्तिष्क नहीं है। उनके पास भी दिल नहीं है; उनके जिलेटिनस शरीर इतने पतले होते हैं कि उन्हें केवल प्रसार द्वारा ऑक्सीजनित किया जा सकता है।

जेलीफिश के बारे में कुछ रोचक तथ्य

5. जेलीफ़िश की 24 आंखें होती हैं जो एक गोलाकार दृश्य प्रदान करती हैं 

अपने साधारण शारीरिक बनावट के बावजूद, कुछ जेलिफ़िश के पास दृष्टि होती है। वास्तव में, कुछ प्रजातियों के लिए, उनकी दृष्टि आश्चर्यजनक रूप से जटिल हो सकती है। उदाहरण के लिए, बॉक्स जेलीफ़िश की 24 "आँखें" होती हैं, जिनमें से दो रंग में देखने में सक्षम होती हैं। यह भी माना जाता है कि इस जानवर के दृश्य सेंसरों की जटिल श्रृंखला इसे दुनिया के उन कुछ प्राणियों में से एक बनाती है जो अपने पर्यावरण का पूर्ण 360-डिग्री दृश्य रखते हैं।

6. कुछ जेलीफ़िश अमर हो सकती हैं

जेलीफ़िश की कम से कम एक प्रजाति, ट्यूरिटोप्सिस न्यूट्रीकुला मौत को धोखा देने में सक्षम हो सकती है। खतरे की स्थिति में यह प्रजाति सेलुलर ट्रांसडिफेनरेशन से गुजरने में सक्षम है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत जीव की कोशिकाएं अनिवार्य रूप से फिर से नई हो जाती हैं।

इस जेलीफ़िश को बोलचाल की भाषा में "अमर" जेलीफ़िश कहा जाता है और यह कैरेबियन और भूमध्य सागर के गर्म पानी में रहती है। इसकी अद्वितीय ट्रांसडिफ़रेंशिएशन क्षमता अनुसंधान का एक प्रमुख विषय है, क्योंकि यह चिकित्सा क्षेत्र को यह समझने में मदद कर सकती है कि कैंसर कोशिकाओं को मांसपेशियों, तंत्रिकाओं या त्वचा जैसी गैर-कैंसर कोशिकाओं में कैसे बदला जाए।

7. वे वहीं खाते हैं जहां वे मल त्याग करते हैं

यह थोड़ा चौकाने वाला है, लेकिन जेलीफ़िश खाने और मलत्याग के लिए अलग-अलग छिद्रों का उपयोग नहीं करती है। उनके पास एक छिद्र होता है जो मुंह और गुदा दोनों का काम करता है। जेलीफ़िश को एक सरल या "आदिम" जानवर के रूप में जाना जाता है और इसमें दोहरे छेद वाली प्रणाली की कमी - जो विकास की रेखा से बहुत नीचे विकसित हुई - इसका प्रमाण है।

फिर भी, बहुक्रियाशील आंत खोलने का लगातार अध्ययन किया जा रहा है। 2019 में, वैज्ञानिकों ने पाया कि जेलीफ़िश की एक प्रजाति हर बार मलत्याग करने पर एक नया गुदा विकसित करती है।

8. वे शायद ही कभी समूहों में यात्रा करते हैं

कई लोग जेलीफ़िश के समूह को ब्लूम या झुंड के रूप में संदर्भित करते हैं, लेकिन उन्हें "स्मैक" भी कहा जा सकता है। किसी भी मामले में, जेलिफ़िश के समूह को देखना दुर्लभ है क्योंकि ये जानवर ज्यादातर अकेले भटकने वाले होते हैं। वे अकेले जानवर हैं, केवल तभी एक साथ एकत्र होते हैं जब वे सभी एक ही भोजन स्रोत का अनुसरण कर रहे होते हैं या क्योंकि वे एक ही जलधारा में यात्रा कर रहे होते हैं।

जेलीफिश के बारे में कुछ रोचक तथ्य

9. ये पृथ्वी के सबसे घातक प्राणियों में से हैं

सभी जेलीफ़िश में नेमाटोसिस्ट या डंक मारने वाली संरचनाएं होती हैं, लेकिन उनके डंक की शक्ति प्रजातियों के आधार पर व्यापक रूप से भिन्न हो सकती है। दुनिया की सबसे जहरीली जेलीफ़िश बॉक्स जेलीफ़िश है, जो एक डंक से कुछ ही मिनटों में एक वयस्क इंसान को मारने में सक्षम है। प्रत्येक बॉक्स जेलीफ़िश में कथित तौर पर 60 से अधिक मनुष्यों को मारने के लिए पर्याप्त जहर होता है।

इनके लिए ऐसा कहा जाता है कि जहर फैलने से पहले इसका दर्द मार सकता है। 

10. जेलीफ़िश छोटी या विशाल हो सकती है

कुछ जेलिफ़िश इतनी छोटी होती हैं कि वे समुद्र की धाराओं में तैरती हुई व्यावहारिक रूप से अदृश्य होती हैं। सबसे छोटे जेनेरा स्टॉरोक्लाडिया और एलुथेरिया में हैं , जिनकी बेल डिस्क केवल 0.5 मिलीमीटर से लेकर कुछ मिलीमीटर व्यास तक होती है।

इसके विपरीत शेर की अयाल जेलीफ़िश, सायनिया कैपिलाटा , अपने जाल को 120 फीट तक फैला सकती है। वजन और व्यास के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी जेलिफ़िश टाइटैनिक नोमुरा की जेलिफ़िश, नेमोपिलेमा नोमुराई मानी जाती है , जो एक मानव गोताखोर को बौना बना सकती है। इन जानवरों की घंटी का व्यास 6.5 फीट और वजन 440 पाउंड तक हो सकता है।

11. कुछ खाने योग्य हैं

कुछ जेलीफ़िश खाने योग्य हैं, जो जापान और कोरिया जैसे कुछ स्थानों में स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में खाई जाती हैं। वास्तव में, जापानियों ने जेलीफ़िश को कैंडी में बदल दिया है: जेलीफ़िश का उपयोग करने के लिए चीनी, स्टार्च सिरप और जेलीफ़िश पाउडर से बना एक मीठा और नमकीन कारमेल तैयार किया गया है। अधिकतर, इन्हें सलाद में परोसा जाता है, कुरकुरे नूडल्स में तला जाता है, या सुशी जैसे सोया सॉस के साथ खाया जाता है।

जेलीफिश के बारे में कुछ रोचक तथ्य

12. वे अंतरिक्ष में गए हैं

नासा ने पहली बार 1990 के दशक की शुरुआत में कोलंबिया अंतरिक्ष शटल पर जेलीफ़िश को अंतरिक्ष में भेजना शुरू किया था ताकि यह परीक्षण किया जा सके कि वे शून्य-गुरुत्वाकर्षण वातावरण में कैसे अनुकूलित हो सकते हैं। क्यों? दिलचस्प बात यह है कि मनुष्य और जेलिफ़िश दोनों ही स्वयं को उन्मुख करने के लिए विशेष गुरुत्वाकर्षण-संवेदनशील कैल्शियम क्रिस्टल पर भरोसा करते हैं। (मनुष्यों के मामले में ये क्रिस्टल आंतरिक कान के अंदर और जेलीफ़िश के शरीर के निचले किनारे पर स्थित होते हैं।) इसलिए, जेलीफ़िश अंतरिक्ष में कैसे प्रबंधन करती है, इसका अध्ययन करने से इस बारे में सुराग मिल सकते हैं कि मनुष्य भी कैसा प्रदर्शन कर सकते हैं। 

वीर सावरकर जयंती || विनायक दामोदर सावरकर जयंती (Veer Savarkar Jayanti || Vinayak Damodar Savarkar Jayanti)

वीर सावरकर

जन्म: 28 मई 1883 ग्राम भागुर, जिला नासिक बम्बई प्रेसीडेंसी ब्रिटिश भारत
मृत्यु : फ़रवरी 26, 1966 (उम्र 82) बम्बई,  भारत

विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें उनके अनुयायी वीर सावरकर के नाम से भी जानते हैं, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, वकील, राजनीतिज्ञ और लेखक थे। सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को नासिक के पास एक छोटे से गांव भगूर में एक मराठी परिवार में हुआ था। विनायक के पिता का नाम दामोदर पन्त तथा माता का नाम राधाबाई था। सावरकर जी चार भाई - बहन थे। 

वीर सावरकर जयंती || विनायक दामोदर सावरकर जयंती (Veer Savarkar Jayanti || Vinayak Damodar Savarkar Jayanti)
सावरकर जी की प्रारम्भिक शिक्षा नासिक में हुई थी। वे अत्यंत कुशाग्र बुद्धि थे, उन्होंने बचपन में ही गीता के श्लोक कंठस्थ कर लिए थे। ऐसी प्रखर मेधा शक्ति वाले शिष्य के प्रति शिक्षकों का असीम स्नेह होना स्वाभाविक ही था। उन समय महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक के समाचार पत्र, “केसरी” की भारी धूम थी विनायक भी उसे पढ़ते थे जिसके कारण उनके मन में भी क्रांतिकारी विचार आने लगे । केसरी के लेखों से प्रभावित होकर उन्होंने भी कविताएं तथा लेख आदि लिखने प्रारम्भ कर दिये।   

सावरकर जी ऐसे पहले भारतीय थे जिन्होंने वकालत की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। लेकिन उन्होंने अंग्रेज सरकार की वफादारी की शपथ लेने से इन्कार कर दिया था, जिसके कारण उन्हें वकालत की उपाधि प्रदान नहीं की गयी।

वीर सावरकर को "वीर" उपनाम 12 साल की उम्र में मिला जब उन्होंने मुसलमानों के एक समूह के खिलाफ छात्रों का नेतृत्व किया, जिन्होंने उनके गाँव पर हमला किया था। वर्ष 1899 में सावरकर ने “देश भक्तों का मेला” नामक एक दल का गठन किया, जबकि 1900 में उन्होंने “मित्र मेला” नामक संगठन बनाया। 4 वर्ष बाद यही संगठन "अभिनव भारत सोसाइटी" के नाम से सामने आया। इस संगठन का उद्देश्य भारत को पूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त कराना था। 

इसी बीच सावरकर कानून की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए। वे जून 1906 में पर्शिया नामक जलपोत से लंदन के लिए रवाना हुए। लंदन प्रस्थान से पूर्व उन्होंने एक गुप्त सभा में कहा था ,"मैं शत्रु के घर जाकर भारतीयों की शक्ति का प्रदर्शन करूंगा"।
वीर सावरकर जयंती || विनायक दामोदर सावरकर जयंती (Veer Savarkar Jayanti || Vinayak Damodar Savarkar Jayanti)
लंदन में उनकी भेंट श्याम जी कृष्ण वर्मा से हुई। लंदन का इण्डिया हाउस उनकी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था । उनकी योजना नये - नये हथियार खरीद कर भारत भेजने की थी ताकि सशस्त्र क्रांति की जा सके। वहां रहने वाले अनेक छात्रों को उन्होंने क्रांति के लिए प्रेरित किया। इंडिया हाउस में श्याम जी कृष्ण वर्मा के साथ रहने वालों में भाई परमानंद, लाला हरदयाल, ज्ञानचंद वर्मा, मदन लाल धींगरा जैसे क्रांतिकारी भी थे। उनकी गतिविधियां देखकर ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें 13 मार्च 1990 को गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेज शासन के विरूद्ध षड्यंत्र रचने तथा शस्त्र भेजने के अपराध में आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई।

उनकी सारी सम्पत्ति भी जब्त कर ली गई। सावरकर को अंग्रेज न्यायाधीश ने एक अन्य मामले में 30 जनवरी को पुनः आजन्म कारावास की सजा सुनाई। इस प्रकार सावरकर को दो आजन्म करावासों का दण्ड दे दिया गया। सावरकर को जब अंग्रेज न्यायाधीश ने दो आजन्म कारावासों की सजा सुनाई तो उन्होनें कहा कि, "मुझे बहुत प्रसन्नता है कि ब्रिटिश सरकार ने मुझे दो जन्मों का कारावास दंड देकर हिन्दू पुनर्जन्म सिद्धान्त को मान लिया है।"
वीर सावरकर जयंती || विनायक दामोदर सावरकर जयंती (Veer Savarkar Jayanti || Vinayak Damodar Savarkar Jayanti)
सावरकर ने ब्रिटिश अभिलेखागारों का अध्ययन करके "1857 का स्वाधीनता संग्राम" नामक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी, फिर इसे गुप्त रूप से छपने के लिए भारत भेजा गया। ब्रिटिश शासन इस पुस्तक के लेखन एवं प्रकाशन की सूचना मात्र से ही कांप उठा। तब प्रकाशक ने इसे गुप्त रूप से पेरिस भेजा। वहां भी अंग्रेज सरकार ने इस पुस्तक का प्रकाशन नहीं होने दिया, अन्ततः इसका प्रकाशन 1909 में हालैण्ड से हुआ। यह आज भी 1857 के स्वाधीनता संग्राम का सबसे विश्वसनीय पुस्तक है। सत्य तो यह है कि यदि सावरकर ने इस पुस्तक की रचना न की होती तो भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम इतिहास की पुस्तकों में एक मामूली ग़दर बन के रह जाता।

1911 में उन्हें कालेपानी यानि अंडमान भेज दिया गया। वहां उनके बड़े भाई गणेश सावरकर भी बंद थे। जेल में सावरकर पर घोर अत्याचार किए गए गए जो कि एक क्रूर इतिहास बन गया। कोल्हू में जुतकर तेल निकालना, नारियल कूटना, कोड़ों की मार, भूखे- प्यासे रखना आदि। सावरकर जी ने जेल में दी गई यातनाओं का वर्णन अपनी पुस्तक "मेरा आजीवन कारावास" में किया है। अंडमान की काल कोठरी में उन्होंने कविताएं लिखी। उन्होंने मृत्यु को संबोधित करते हुए जो कविता लिखी वह अत्यंत मार्मिक व देशभक्ति से परिपूर्ण थी।
वीर सावरकर जयंती || विनायक दामोदर सावरकर जयंती (Veer Savarkar Jayanti || Vinayak Damodar Savarkar Jayanti)
1921 में उन्हें अंडमान से रत्नागिरि जेल में भेज दिया गया। 1937 में वहां से भी मुक्त कर दिये गये, परन्तु वे सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलकर योजना में लगे रहे। 1947 में उन्हें स्वतंत्रता के बाद गाँधी जी की हत्या के मुकदमें मे झूठा फंसाया गया, लेकिन वे निर्दोष सिद्ध हुए। एक सच्चाई यह भी है कि महात्मा गांधी और सावरकर-बन्धुओं का परिचय बहुत पुराना था। सावरकर-बन्धुओं के व्यक्तित्व के कई पहलुओं से प्रभावित होने वालों और उन्हें ‘वीर’ कहने और मानने वालों में गांधी जी भी थे। इस घटना के बाद वीर क्रांतिकारी सावरकर का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ने लगा और 26 फरवरी 1966 को भूख हड़ताल के बाद उन्होंने माँ भारती की सेवा हित पुनः जन्म लेने का स्वप्न देखते हुए देह त्याग किया।

लू लगना

लू लगना 

लू लगने से मृत्यु क्यों होती है? 

दिल्ली से आंध्रप्रदेश तक....सैकड़ो लोग लू लगने से मर रहे हैं। धूप में हम सभी घूमते हैं फिर कुछ लोगो की धूप में जाने (लू लगने) के कारण अचानक मृत्यु क्यों हो जाती है?

लू लगना

हमारे शरीर का तापमान हमेशा 37° डिग्री सेल्सियस होता है, इस तापमान पर ही हमारे शरीर के सभी अंग सही तरीके से काम कर पाते है। पसीने के रूप में पानी बाहर निकालकर शरीर 37° सेल्सियस टेम्प्रेचर मेंटेन रखता है, लगातार पसीना निकलते वक्त भी पानी पीते रहना अत्यंत जरुरी और आवश्यक है। पानी शरीर में इसके अलावा भी बहुत कार्य करता है, जिससे शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर पसीने के रूप में पानी बाहर निकालना टालता (बंद कर देता है) है। जब बाहर का टेम्प्रेचर 45° डिग्री के पार हो जाता है  और शरीर की कूलिंग व्यवस्था ठप्प हो जाती है, तब शरीर का तापमान 37° डिग्री से ऊपर पहुँचने लगता है। शरीर का तापमान जब 42° सेल्सियस तक पहुँच जाता है तब रक्त गरम होने लगता है और रक्त मे उपस्थित प्रोटीन  पकने लगता है। स्नायु कड़क होने लगते है इस दौरान सांस लेने के लिए जरुरी स्नायु भी काम करना बंद कर देते हैं। शरीर का पानी कम हो जाने से रक्त गाढ़ा होने लगता है, ब्लडप्रेशर low हो जाता है, महत्वपूर्ण अंग  (विशेषतः ब्रेन ) तक ब्लड सप्लाई रुक जाती है। व्यक्ति कोमा में चला जाता है और उसके शरीर के एक- एक अंग कुछ ही क्षणों में काम करना बंद कर देते हैं और उसकी मृत्यु हो जाती है।

  • गर्मी के दिनों में ऐसे अनर्थ टालने के लिए  लगातार थोडा थोडा पानी पीते रहना चाहिए और हमारे शरीर का तापमान 37° मेन्टेन किस तरह रह पायेगा इस ओर  ध्यान देना चाहिए।
  • कृपया 12 से 3 के बीच ज्यादा से ज्यादा घर, कमरे या ऑफिस के अंदर रहने का प्रयास करें।
  • स्वयं को और अपने जानने वालों को पानी की कमी से ग्रसित न होने दें।
  • किसी भी अवस्था में कम से कम 3 ली. पानी जरूर पियें।
  • जहां तक सम्भव हो ब्लड प्रेशर पर नजर रखें। किसी को भी हीट स्ट्रोक हो सकता है।
  • ठंडे पानी से नहाएं। मांस का प्रयोग छोड़ें या कम से कम करें।
  • फल और सब्जियों को भोजन मे ज्यादा स्थान दें।
  • अधिक गर्मी में मौसमी फल, फल का रस, दही, मठ्ठा, जीरा छाछ, जलजीरा, लस्सी, आम का पना पिएं या आम की चटनी खाएं।
  • शयन कक्ष और अन्य कमरों मे 2 आधे पानी से भरे ऊपर से खुले पात्रों को रख कर  कमरे की नमी बरकरार रखी जा सकती है।
  • अपने होठों और आँखों को नम रखने का प्रयत्न करें।

अपना और अपनों का ख्याल रखें। ज्यादा जरुरी होने पर ही धूप में बाहर निकलें। बाहर निकलते वक़्त घर से आम पन्ना, मट्ठा, लस्सी या शिकंजी पी कर निकलें। साथ में पानी की बोतल जरूर रखें। धूप में निकलने पर सिर अवश्य ढकें। आंखों पर सनग्लासेस लगाएं। कच्चा प्याज रोज खाएं। धूप में निकलने पर अपने पॉकेट में छोटा सा प्याज रखें। यह लू शरीर को लगने नहीं देता और सारी गर्मी खुद सोख लेता है।

22 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

Good morning Quotes

22 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages
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A new dawn brings a new ray of hope in the lives of us and our loved ones. Morning time gives us an opportunity and inspiration to forget our problems and move forward in life. At this time our energy level and our positive thinking is high, so if you decide to do any work, then the expectation of its completion increases a lot, that is why today we have brought for you some of the best Inspirational Good Morning Quotes.


Stay in the moment as much as you can, that is where you'll find heaven, you'll find a little peace on earth.

G☕☕D M🌞rninG

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Learn to make people smile it will bring smiles naturally to you.

🍁 Good Morning 🍁
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Trust what you feel 
Not what you hear

Good Morning 👌🏻
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The only way to win with a toxic person, is not to play. Leave the playground.

Good morning 👌🏻 

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Good Morning🙏🏻

Let silence speaks to you about the secrets of the universe.
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Always trust your instincts they are the message from our soul
👍🏻Good morning 🙌🏻

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Shoutout to people whose kindness isn’t a strategy but a way of life.

Good morning 👍🏻
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 Fake people have an image to maintain. Real people just don’t care.

Good morning 👌🏻
22 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages
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💦The Sun is a daily reminder that we too can rise again.💦


✌🏻Good Morning👌🏻
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One can say sorry but can't change the story.
            
GooD-MorninG 🙏🏻
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Your past is meant to guide you ,not define you.

GooD-MorninG ✌🏻
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Time slips through your fingers. While you are holding on the things.

Good morning ✌🏻
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If you talk about it, it's a dream, if you envision it, it's possible, but if you schedule it, it's real.

GooD-MorninG ✌🏻

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Have a good heart but don’t wait for anybody else to realize it.

Good Morning 🌞
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If God can take away something you never expected losing. He can replace it with something you never imagined having.

Good morning
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A Winner is a dreamer who never gives up.

🙏🏻GooD-MorninG 👍🏻
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Always thank God for every little thing.

Good Morning 👌🏻

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Sometimes the most spiritual thing you can do is shut your mouth and be quiet.

Good Morning 🙏🏻
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When you want better, you do better, you attract better , and better comes.

Good Morning
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Only the weak are cruel.
       Gentleness can only be expected from the strong.
🙏🏻GooD-MorninG 👌🏻
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Your passion is waiting for your courage to catch up.

GooD-MorninG👍🏻
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संयम और साहस || Patience and Courage

संयम और साहस

बहुत दिन पहले किसी गांव में एक नाई रहता था। वह बहुत आलसी था। सारा दिन वह आईने के सामने बैठा टूटे कंघे से बाल संवारते हुए गंवा देता। उसकी बूढ़ी मां उसके आलसीपन के लिए दिन-रात फटकारती थी, लेकिन उसके कानों पर जूं भी नहीं रेंगती थी। आखिरकार एक दिन मां ने गुस्से में उसकी पिटाई कर दी। जवान बेटे ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया और घर छोड़ कर चला गया। 

संयम और साहस || Patience and Courage

उसने कसम खाई कि जब तक कुछ धन जमा नहीं कर लेगा, वह घर नहीं लौटेगा। चलते-चलते वह जंगल पहुंचा। उसे कोई काम तो आता नहीं था, इसलिए अब वो भगवान को मनाने बैठ गया। अभी वह प्रार्थना के लिए बैठता, उससे पहले ही उसका एक ब्रम्हराक्षस से सामना हो गया। ब्रम्हराक्षस नाई को देखकर खुश हुआ और खुशी मनाने के लिए लिए नाचने लगा। यह देख नाई के होश उड़ गए, पर अपने डर को जाहिर नहीं होने दिया। उसने साहस बटोरा और राक्षस के साथ नाचने लगा।

कुछ देर बाद उसने राक्षस से पूछा- तुम क्यों नाच रहे हो? तुम्हें किस बात की खुशी है? राक्षस हंसते हुए बोला, मैं तुम्हारे सवाल का इंताज़ार कर रहा था। तुम तो निरे उल्लू हो। तुम समझ नहीं पाओगे। मैं इसलिए नाच रहा हूं कि मुझे तुम्हारा नरम-नरम मांस खाने को मिलेगा। वैसे, तुम क्यों नाच रहे हो? नाई ने ठहाका लगाते हुए कहा, मेरे पास इससे भी बढ़िया कारण है। 

हमारा राजकुमार सख्त बीमार है। चिकित्सकों ने उसे एक सौ एक ब्रम्हराक्षसों के हृदय का रक्त पीने का उपचार बताया है। महाराज ने मुनादी करवाई है जो कोई यह दवा लाकर देगा, उसे वे अपना आधा राज्य देंगे और राजकुमारी का विवाह भी उससे कर देंगे। मैंने सौ ब्रम्हराक्षस तो पकड़ लिए हैं। अब तुम भी मेरी गिरफ्त में हो। यह कहते हुए उसने जेब से छोटा आईना उसकी आंखों के सामने किया। आतंकित राक्षस ने आईने में अपनी शक्ल देखी। चांदनी रात में उसे अपना प्रतिबिम्ब साफ नज़र आया। 

उसे लगा कि वह वाकई उसकी मुट्ठी में है। थर-थर कांपते हुए उसने नाई से विनती की कि उसे छोड़ दे, पर नाई राज़ी नहीं हुआ। तब राक्षस ने उसे सात रियासतों के खज़ाने के बराबर धन देने का लालच दिया। पर इस भेंट में नाई ने दिलचस्पी न लेने का नाटक करते हुए कहा- पर जिस धन का तुम वादा कर रहे हो, वह है कहां और इतनी रात में उस धन को और मुझे घर कौन पहुंचाएगा?

राक्षस ने कहा, खज़ाना तुम्हारे पीछे वाले पेड़ के नीचे गड़ा है। पहले तुम इसे अपनी आंखों से देख लो, फिर मैं तुम्हें और इस खज़ाने को पलक झपकाते ही तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा। राक्षसों की शक्तियां तुमसे क्या छुपी है, कहने के साथ ही उसने पेड़ को जड़ समेत उखाड़ दिया और हीरे-मोतियों से भरे सोने के सात कलश बाहर निकाले। खज़ाने की चमक से नाई की आंखें चौंधिया गईं, पर अपनी भावनाओं को छुपाते हुए उसने रौब से उसे आदेश कि वह उसे और खज़ाने को उसके घर पहुंचा दे। राक्षस ने आदेश का पालन किया। राक्षस ने अपनी मुक्ति की याचना की, पर नाई उसकी सेवाओं से हाथ नहीं धोना चाहता था। इसलिए अगला काम फसल काटने का दे दिया। बेचारे राक्षस को यकीन था कि वह नाई के शिकंजे में है। सो उसे फसल तो काटनी ही पड़ेगी। 

वह फसल काट ही रहा था कि वहां से दूसरा ब्रम्हराक्षस गुजरा। अपने दोस्त को इस हालत में देख वह पूछ बैठा। ब्रम्हराक्षस ने उसे आपबीती बताई और कहा कि, इसके अलावा कोई चारा नहीं है। दूसरे ने हंसते हुए कहा, पागल हो गए हो? राक्षस आदमी से कहीं शक्तिशाली और श्रेष्ठ होते हैं। तुम उस आदमी का घर मुझे दिखा सकते हो? हाँ, दिखा दूंगा, पर दूर से। धान की कटाई पूरी किए बिना उसके पास जाने की मेरी हिम्मत नहीं है। यह कहकर उसने उसे नाई का घर दूर से दिखा दिया।

वहीं अपनी कामयाबी के लिए नाई ने भोज का आयोजन किया। और एक बड़ी मछली भी लेकर आया। लेकिन एक बिल्ली टूटी खिड़की से रसोई में आकर ज्यादा मछली खा गई। गुस्से में नाई की बीवी बिल्ली को मारने के लिए झपटी, पर बिल्ली भाग गई। उसने सोचा, बिल्ली इसी रास्ते से वापस आएगी। सो वह मछली काटने की छुरी थामे खिड़की के पास खड़ी हो गई। उधर दूसरा राक्षस दबे पांव नाई के घर की ओर बढ़ा। उसी टूटी हुई खिड़की से वह घुसा। बिल्ली की ताक में खड़ी नाइन ने तेज़ी से चाकू का वार किया। निशाना सही नहीं बैठा, पर राक्षस की लम्बी नाक आगे से कट गई। दर्द से कराहते हुए वह भाग खड़ा हुआ। और शर्म के मारे अपने दोस्त के पास वो गया भी नहीं।

पहले राक्षस ने धीरज के साथ पूरी फसल काटी और अपनी मुक्ति के लिए नाई के पास गया। धूर्त नाई ने इस बार उल्टा शीशा दिखाया। राक्षस ने बड़े गौर से देखा। उसमें अपनी छवि न पाकर उसने राहत की सांस ली और नाचता-गुनगुनाता चला गया।

शिक्षा:-
धैर्य और संयम से बड़ी मुसीबतें भी टल जाती हैं। साहस से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती है..!!

तेलंगाना का राज्य पशु "चीतल/चितकबरा हीरण" || State Animal of Telangana "Chital/Spotted Deer"

तेलंगाना का राज्य पशु "चीतल/चितकबरा हीरण"

स्थानीय नाम: "चीतल/चितकबरा हीरण"
वैज्ञानिक नाम: एक्सिस एक्सिस

चीतल या चीतल मृग या चित्तिदार हिरन, हिरन के कुल का एक प्राणी है, जो कि श्री लंका, नेपाल, भूटान,
बांग्लादेश, भारत में पाया जाता है और तेलंगाना का राज्य पशु है। ये घने पर्णपाती वन, अर्ध-सदाबहार वन और
खुले घास के मैदान में पसंद करते हैं। वे छाया के लिए घने वन क्षेत्र को भी पसंद करते हैं। भारत के जंगलों में सबसे
ज़्यादा संख्या में चित्तीदार हिरण पाए जाते हैं। घास के मैदान पसंद करते हैं। वे छाया के लिए घने वन क्षेत्र को
भी पसंद करते हैं। ये सभी हिरणों में सबसे सुंदर है।
तेलंगाना का राज्य पशु "चीतल/चितकबरा हीरण" || State Animal of Telangana "Chital/Spotted Deer"
वयस्क चित्तीदार हिरण का वजन 35 से 85 किलोग्राम के बीच होता है। सिर से शरीर की लंबाई लगभग 90 से 140
सेमी होती है। वे अपने शिकारियों से बचने के लिए 60 से 65 किमी/घंटा तक दौड़ सकते हैं। चित्तीदार हिरण एक
सामाजिक जानवर है। नर के सिर पर सींग होते हैं। सींगों में छह सींग होते हैं, प्रत्येक सींग पर तीन सींग होते हैं।
भौंह का सींग बीम के साथ लगभग समकोण बनाता है और टर्मिनल कांटा का अगला सींग पिछले सींग से बहुत
लंबा होता है।

चीतल की त्वचा का रंग हल्का लाल-भूरे रंग का होता है और उसमें सफ़ेद धब्बे होते हैं। पेट और अंदरुनी टांगों का
रंग सफ़ेद होता है। चीतल के सींग, जो कि अमूमन तीन शाखाओं वाले होते हैं, पाश्चात्य वाद्ययंत्र लायर की तरह
घुमावदार होते हैं और ७५ से.मी. तक लंबे हो सकते हैं और जिन्हें यह हर साल गिरा देता है। नर मादा से थोड़ा बड़ा
होता है। नर और मादा दोनों में उनके पिछले पैरों पर अच्छी तरह से विकसित मेटाटार्सल ग्रंथियाँ और पेडल
ग्रंथियाँ होती हैं। यौन परिपक्वता की आयु मादाओं के लिए 12 से 18 महीने और नर के लिए 18 से 30 महीने के
बीच होती है। इसका जीवनकाल 8-14 साल का होता है।
तेलंगाना का राज्य पशु "चीतल/चितकबरा हीरण" || State Animal of Telangana "Chital/Spotted Deer"
चित्तीदार हिरण साल भर मुख्य रूप से घास खाते हैं। वे नर्म टहनियों को पसंद करते हैं, जिनकी अनुपस्थिति में,
लंबी और खुरदरी घास सिरों पर से चट कर जाती है। ब्राउज आहार का एक बड़ा हिस्सा केवल सर्दियों में होता है -
अक्टूबर से जनवरी तक - जब घास, लंबी या सूखी, स्वादिष्ट नहीं रह जाती है। उनके आहार में जड़ी-बूटियाँ,
झाड़ियाँ, पत्ते और फल शामिल हैं।

चित्तीदार हिरण IUCN रेड लिस्ट में एक कम जोखिम वाली प्रजाति है। हालाँकि ये जानवर दुनिया के लगभग
सभी हिस्सों में पाए जा सकते हैं, लेकिन उनके प्राकृतिक आवास के नुकसान के कारण उनकी आबादी में कमी
जारी रह सकती है।
English Translate

State Animal of Telangana "Chital/Spotted Deer"

Local name: "Chital/Spotted Deer"
Scientific name: Axis Axis
तेलंगाना का राज्य पशु "चीतल/चितकबरा हीरण" || State Animal of Telangana "Chital/Spotted Deer"

Chital or chital deer or spotted deer is an animal of the deer family, which is found in Sri Lanka, Nepal, Bhutan, Bangladesh, India and is the state animal of Telangana. They prefer dense deciduous forests, semi-evergreen forests and open grasslands. They also prefer dense forest areas for shade. The largest number of spotted deer is found in the forests of India. Prefers grasslands. They also prefer dense forest areas for shade. This is the most beautiful of all deers.

The weight of an adult spotted deer ranges from 35 to 85 kg. The head to body length is approximately 90 to 140 cm. They can run up to 60 to 65 km/h to escape their predators. The spotted deer is a social animal. Males have horns on their heads. The horns have six horns, with three horns on each horn.
The brow horn forms almost a right angle with the beam and the front horn of the terminal thorn is much longer than the rear horn.
तेलंगाना का राज्य पशु "चीतल/चितकबरा हीरण" || State Animal of Telangana "Chital/Spotted Deer"
Chital's skin color is light red-brown and has white spots. The color of the stomach and inner legs is white. The horns of the chital, which are usually three-branched, are curved like the western musical lyre and are 75 cm long. tall and which it sheds every year. The male is slightly larger than the female. Both males and females have well-developed metatarsal glands and pedal glands on their hind feet. The age of sexual maturity is between 12 to 18 months for females and 18 to 30 months for males. Its lifespan is 8-14 years.

Spotted deer eat primarily grass throughout the year. They prefer soft branches, in the absence of which the long and rough grasses gnaw at the ends. A large portion of the browse diet occurs only in winter – from October to January – when grass, long or dry, is no longer palatable. Their diet includes herbs, bushes, leaves and fruits.
तेलंगाना का राज्य पशु "चीतल/चितकबरा हीरण" || State Animal of Telangana "Chital/Spotted Deer"
The spotted deer is a Least Concern species on the IUCN Red List. Although these animals can be found in almost all parts of the world, their populations may continue to decline due to the loss of their natural habitat.