मुस्काती तो है
भोर तक उम्मीद की किरनें भी मुस्काती तो है,
दूर मंजिल राह फिर भी न द्वार तक जाती तो है..
ये जरूरी है नहीं हर साध पूरी हो कोई,
पर तुम्हारी याद मुझको बारहां आती तो है..
नेह देता कौन गर ममतामयी होती नहीं,
गोद में लेकर मेरी माँ मुझको दुलराती तो है..
भूले बिसरे ही सही जब याद करता है कोई,
गै़र मुमकिन रोक पाना हिचकियाँ आती तो हैं..
भीख मागूं मैं किसी से ये कभी मुमकिन नहीं,
मुफ़लिसी में मेरी खुद्दारी ये समझाती तो है..
मन मचल जाता है बरबस याद जब आती तेरी,
गुजरा जमाना, वो यादें तेरी अब भी तड़पाती तो हैं..
👌👌👌👌👌
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 19 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDelete"पांच लिंकों के आनन्द में" इस रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
Delete🙏🙏💐💐☕️☕️
ReplyDelete🕉️ शुभप्रभात🕉
🙏जय श्री कृष्णा 🚩🚩🚩
🙏आप का दिन मंगलमय हो 🙏
🚩🚩राधे राधे 🚩🚩
👍👍👍बहुत खूब 🙏
🙏आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर गजल
ReplyDelete"एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जाएंगे
ReplyDeleteधीर-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये.."
बहुत ही सुन्दर।
Very Nice 👌🏻😊
ReplyDeleteशानदार गजल 🙏🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण गजल
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteलाजवाब।
ReplyDeleteशानदार।